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गलेगो

सूची गलेगो

गलेगो (Galago), जो बुशबेबी (bushbaby, अर्थ: झाड़शिशु) और नागापाए (nagapie, आफ़्रीकान्स भाषा में अर्थ: रात का बंदर) भी कहलाता है, अफ़्रीका के मुख्य महाद्वीप में मिलने वाला निशाचरी (रात्रि में सक्रीय) नरवानर प्राणी होते हैं। यह रात को वृक्षों पर घूम कर बच्चों जैसी आवाज़ें करता है, जिस कारण उसका नाम "झाड़शिशु" (बुशबेबी) पड़ा। यह नरवानर गण के स्ट्रेपसिराइनी उपगण के लीमरिफ़ोर्मीस अधोगण (इन्फ़ाऑर्डर) के लोरिसोइडेआ अधिकुल में एक अलग गलेगिडाए (Galagidae) या गलेगोनिडाए (Galagonidae) नामक कुल हैं। .

सामग्री की तालिका

  1. 3 संबंधों: लोरिसोइडेआ, लीमरिफ़ोर्मीस, स्ट्रेपसिराइनी

लोरिसोइडेआ

लोरिसोइडेआ (Lorisoidea) नरवानर गण के स्ट्रेपसिराइनी उपगण के लीमरिफ़ोर्मीस अधोगण (इन्फ़ाऑर्डर) का एक अधिकुल है। इसमें अफ़्रीका के गलेगो और पोटो, और भारत व दक्षिणपूर्वी एशिया के लोरिस शामिल हैं। कुछ जीववैज्ञानिकों के अनुसार इन्हें अलग "लोरिसिफ़ोर्मीस" (Lorisiformes) नामक अधोगण में होना चाहिये। ध्यान दें कि लीमर इस उच्चकुल में नहीं हैं बल्कि लीमरोइडेआ नामक अलग अधिकुल में आते हैं। .

देखें गलेगो और लोरिसोइडेआ

लीमरिफ़ोर्मीस

लीमरिफ़ोर्मीस (Lemuriformes) नरवानर गण के स्ट्रेपसिराइनी उपगण के अंतर्गत एक अधोगण (इन्फ़ाऑर्डर) है। इसमें माडागास्कर के लीमर, अफ़्रीका के गलेगो और पोटो, और भारत व दक्षिणपूर्वी एशिया के लोरिस शामिल हैं। कुछ जीववैज्ञानिकों के अनुसार लोरिसों का अलग "लोरिसिफ़ोर्मीस" (Lorisiformes) नामक अधोगण होना चाहिये। लीमरिफ़ोर्मीस प्राणियों के जबड़ों के सामने के निचले दांत कंघी जैसी व्यवस्था में होते हैं जिनसे वे अपने बाल सँवार सकते हैं। .

देखें गलेगो और लीमरिफ़ोर्मीस

स्ट्रेपसिराइनी

स्ट्रेपसिराइनी (Strepsirrhini) या गिली-नाक नरवानर (dry-nosed primates) नरवानर गण (प्राइमेट) का एक क्लेड है जिसमें सभी लीमररूपी नरवानर शामिल हैं, जैसे कि माडागास्कर के लीमर, अफ़्रीका के गलेगो और पोटो, और भारत व दक्षिणपूर्वी एशिया के लोरिस। स्ट्रेपसिराइनी नरवानर गण के दूसरे प्रमुख क्लेड, हैप्लोराइनी (Haplorhini) से काफ़ी भिन्न होते हैं। इनका मस्तिष्क छोटा होता है। इनकी नाकें गीली रहती हैं, जब की हैप्लोराइनी नाकें बाहर से अधिकतर शुष्क होती हैं। इनकी सूंघने की शक्ति बहुत प्रखर होती है और आँखों में एक प्रतिबिम्बी व्यवस्था के कारण यह रात में देख पाने में अधिक सक्षम होते हैं (यही कारण भी है कि इनकी आँखे रात में चमकती हुई नज़र आती हैं)। इनमें विटामिन सी बना सकने वाला प्रकिण्व (एन्ज़ाइम) होता है और वे यह आवश्यक रसायन स्वयं बना लेते हैं, जबकि हैप्लोराइनी क्लेड के प्राणियों में यह नहीं रहा जिस कारणवश उन्हें विटामिन-सी युक्त भोजन खाने की आवश्यकता होती है। कई स्ट्रेपसिराइनी प्राणियों के जबड़ों के सामने के निचले दांत कंघी जैसी व्यवस्था में होते हैं जिनसे वे अपने बाल सँवार सकते हैं। वर्तमान में अस्तित्व रखने वाली अधिकतर जातियाँ निशाचरी (रात्रि को सक्रीय) हैं। .

देखें गलेगो और स्ट्रेपसिराइनी

गलेगिडाए के रूप में भी जाना जाता है।