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कोशिका विज्ञान

सूची कोशिका विज्ञान

घटक अणुओं के रूप में कोशिकाओं की समझ कोशिका की सामान्यीकृत संरचना तथा कोशिका के आणविक घटक कोशिका विज्ञान (Cytology) या कोशिका जैविकी (Cell biology) में कोशिकाओं के शरीरक्रियात्मक गुणों (physiological properties), संरचना, कोशिकांगों (organelles), वाह्य पर्यावरण के साथ क्रियाओं, जीवनचक्र, विभाजन तथा मृत्यु का वैज्ञानिक अध्यन किया जाता है। यह अध्ययन सूक्ष्म तथा आणविक स्तरों पर किया जाता है। कोशिकाओं के घटकों तथा उनके कार्य करने की विधि का ज्ञान सभी जैविक विज्ञानों के लिये मूलभूत तथा महत्व का विषय है। विशेषतः विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं के बीच समानता और अन्तर की बारीक समझ कोशिकाविज्ञान, अणुजैविकी (molecular biology) तथा जैवचिकित्सीय क्षेत्रों के लिये महत्वपूर्ण है। .

सामग्री की तालिका

  1. 21 संबंधों: ऊतक विज्ञान, परजीवी विज्ञान, प्राणिविज्ञान, रुडाल्फ़ फिर्खो, शैक्षणिक विषयों की सूची, सूत्रकणिका, जानकी अम्माल, जेम्स रॉथमैन, जीन व्यवहार, जीन उत्पाद, वनस्पति विज्ञान, ओटो वारबर्ग, ओंकोजीन, केन्द्रिका, केन्द्रक आव्यूह, कोशिका, कोशिका केन्द्रक, कोशिकीय एवं आणविक जीवविज्ञान केन्द्र, अपच्छेदन, अलैंगिक प्रजनन, उत्परिवर्तन

ऊतक विज्ञान

प्रकाश सूक्ष्मदर्शी की सहायता से ऊतक स्लाइड का अध्ययन ऊतक विज्ञान या ऊतिकी (Histology) की परिभाषा देते हुए स्टोरर ने लिखा है: ऊतक विज्ञान या सूक्ष्म शरीर (microscopic anatomy) अंगों के भीतर ऊतकों की संरचना तथा उनके विन्यास (arrangement) के अध्ययन को कहते हैं। अँगरेजी का हिस्टोलॉजी शब्द यूनानी भाषा के शब्द हिस्टोस्‌ (histos) तथा लॉजिया (logia) से मिलकर बना है, जिनका अर्थ होता है ऊतकों (tissues) का अध्ययन। अत: ऊतक विज्ञान वह विज्ञान है, जिसके अंतर्गत ऊतकों की सूक्ष्म संरचना तथा उनकी व्यवस्था अथवा विन्यास का अध्ययन किया जाता है। 'ऊतक' शब्द फ्रांसीसी भाषा के शब्द टिशू (tissu) से निकला है, जिसका अर्थ होता है संरचना या बनावट (texture)। इस शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम फ्रांसीसी शारीर वैज्ञानिक (anatomist) बिशैट (Bichat) ने 18वीं शताब्दी के अंत में शारीर या शरीर-रचना विज्ञान के प्रसंग में किया था। उन्होंने अपनी पुस्तक में लगभग बी प्रकार के ऊतकों का उल्लेख किया है। किंतु, आजकल केवल चार प्रकार के मुख्य ऊतकों को मान्यता प्राप्त है, जिनके नाम हैं: इपीथिलियमी (epithelial), संयोजक (connective), पेशीय (musclar) और तंत्रिकीय ऊतक (nervous tissues)। .

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परजीवी विज्ञान

परजीवीयों के अध्ययन को परजीवी विज्ञान कहते हैं| वयस्क काली मक्खी (सिमुलियम याहेंस) संग ऑनकोसेर्का वॉल्व्युलस (''Onchocerca volvulus'') कृमि के एण्टिना से निकलता हुआ। यह परजीवी अफ्रीका में रिवर ब्लाइंडनैस (नदी अंधता) नामक रोग के लिये उत्तरदायी होता है। यह नमूना रासायनिक विधि से जमाया व क्रिटिकल बिंदु तक सुखाया हुआ है। फिर परंपरागत स्कैनिंग इलैक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी द्वारा देखा गया। 100X (सौ गुणा) आवर्धित चित्र परजीवी विज्ञान परजीवों सहित उनके मेजबान (होस्ट), तथा उनके बीच के संबंध का अध्ययन है। जीव विज्ञान के विषय के तौर पर, परजीवी विज्ञान का विस्तार, चर्चित प्राणी या उसके वातावरण पर निर्भर नहीं होता, वरन उनके जीवन के तरीके पर निर्भर होता है। अतएव यह अन्य विषयों के, संयोजन से बना है; व कई उप-विषयों की तकनीकों पर आधारित है, जैसे कोशिका जैविकी, सूचना-जैविकी, जैवरासायनिकी आण्विक जैविकी, इम्युनोलॉजी, अनुवांशिकी, विकासवाद एवं पारिस्थितिकी। जीवन की पद्धति पृथ्वी पर सर्व सामान्य है। जिसमें सभी प्रधान टैक्सा के प्रतिनिधि सम्मिलित हैं, जो साधारणतम एक कोशिकीय जीव से लेकर जटिल कशेरुकियों तक हो सकते हैं। प्रत्येक मुक्त-जीव जाति की अपनी अनुपम परजीवी प्रजातियां होतीं हैं। .

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प्राणिविज्ञान

200px प्राणिविज्ञान या जन्तुविज्ञान (en:Zoology) (जीवविज्ञान की शाखा है जो जन्तुओं और उनके जीवन, शरीर, विकास और वर्गीकरण (classification) से सम्बन्धित होती है। .

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रुडाल्फ़ फिर्खो

रुडोल्फ फिर्खो रुडाल्फ़ फिर्खो (Rudolf Virchow, जर्मन उच्चारण:; सन् १८२१ - १९०२) जर्मन विकृतिविज्ञानी तथा राजनीतिज्ञ थे। इनका जन्म पोरेनिया प्रदेश के शिवेल्बीन (Schivelbein) नामक स्थान में हुआ था। शिक्षा पूर्ण होने पर सन् १८४३ में ये चैरिटी अस्पताल में सहायक सर्जन, सन् १८४६ में रेक्टर तथा सन् १८४७ में युनिविर्सिटी के अध्यापक नियुक्त हुए। इसी समय इन्होंने राइनहार्ट (Reinhardh) के सहयोग से शरीररचना तथा क्रियाविज्ञान और विकृतिविज्ञान पर एक प्रसिद्ध प्रकाशन आरंभ किया। राइनहार्ट की मृत्यु के पश्चात् ये इसे अकेले प्रकाशित करते रहे। सन् १८४८ में टाइफ़स की महामारी के कारणों की जाँच के लिए नियुक्त कमीशन के आप सदस्य थे, किन्तु राजनीति में उग्र विचारों के कारण बर्लिन से निकाल दिए गए। तब वुर्जवर्गे मेडिकल स्कूल में इन्होंने शरीररचनाविज्ञान (anatomy) की शिक्षा देनी आरंभ की, जिससे इस स्कूल को बहुत लाभ हुआ। सन् १८५६ में आप बर्लिन में पुन: बुलाए गए। यहाँ विकृति-संबंधी संस्थान (Pathological Institute) के निर्देशक के पद पर आपके रहने के फलस्वरूप मौलिक अनुसंधानों की एक निरंतर धारा निकलती रही। इनके विस्तृत अध्ययनों में रोगवज्ञान संबंधी अनुसंधान प्रमुख थे। औतिकी (Histology), विकृत शरीर तथा विशिष्ट रोगों से संबंधित आपने महत्व की खोजे कीं। इन्होंने कोशिका विज्ञान तथा कोश-विकृति-विज्ञान की स्थापना की। सन् १८५८ में 'सेलुलर पैथोलाजी' नामक आपकी प्रसिद्ध पुस्तक प्रकाशित हुई। इन्होंने महत्व की अनेक वैज्ञानिक तथा अन्य विषयक पुस्तकें भी लिखीं है। फिखों ने मानव विज्ञान तथा प्रागैतिहासिक वास्तुकला संबंधी अनुसंधान किए तथा इन विषयों पर प्रभावशाली लेख लिखे। सन् १८६२ में आप प्रशिया की संसद (Lower House) के सदस्य चुने गए। यहाँ इन्होंने फोर्टश्रिट्स पार्टी की स्थापना की। कई वर्ष तक वित्त कमेटी के ये अध्यक्ष रहे तथा प्रशियन बजेट प्रणाली के प्रमुख संस्थापक थे। सन् १८८० में इन्होंने राइखस्टैग में प्रवेश किया। यहाँ ये विरोधी दल के नेता हो गए तथा बिस्मार्क के प्रबल विरोधी थे। इन्होंने बर्लिन की नगरमहापालिका के सदस्य के रूप में ३० वर्ष तक नगर की सेवा की। इन्हीं की चेष्टाओं से वहाँ वाहित मल का फार्म, जलसंभरण तथा जल निकासी के समुचित प्रबंध हुए। इस परोपकारी वैज्ञानिक की मृत्यु ८१ वर्ष की आयु में हुई। श्रेणी:जर्मन वैज्ञानिक श्रेणी:जर्मन राजनीतिज्ञ.

देखें कोशिका विज्ञान और रुडाल्फ़ फिर्खो

शैक्षणिक विषयों की सूची

यहाँ शैक्षणिक विषय (academic discipline) से मतलब ज्ञान की किसी शाखा से है जिसका अध्ययन महाविद्यालय स्तर या विश्वविद्यालय स्तर पर किया जाता है या जिन पर शोध कार्य किया जाता है। .

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सूत्रकणिका

ई.आर (9) '''माइटोकांड्रिया''' (10) रसधानी (11) कोशिका द्रव (12) लाइसोसोम (13) तारककाय आक्सी श्वसन का क्रिया स्थल, माइटोकान्ड्रिया जीवाणु एवं नील हरित शैवाल को छोड़कर शेष सभी सजीव पादप एवं जंतु कोशिकाओं के कोशिकाद्रव्य में अनियमित रूप से बिखरे हुए द्वीप-एकक पर्दायुक्त कोशिकांगों (organelle) को सूत्रकणिका या माइटोकॉण्ड्रिया (Mitochondria) कहते हैं। कोशिका के अंदर सूक्ष्मदर्शी की सहायता से देखने में ये गोल, लम्बे या अण्डाकार दिखते हैं।। हिन्दुस्तान लाइव।२४अक्तूबर,२००९ माइटोकॉण्ड्रिया सभी प्राणियों में और उनकी हर प्रकार की कोशिकाओं में पाई जाती हैं। माइटोकाण्ड्रिआन या सूत्रकणिका कोशिका के कोशिकाद्रव्य में उपस्थित दोहरी झिल्ली से घिरा रहता है। माइटोकाण्ड्रिया के भीतर आनुवांशिक पदार्थ के रूप में डीएनए होता है जो वैज्ञानिकों के लिए आश्चर्य एवं खोज़ का विषय हैं। माइटोकाण्ड्रिया में उपस्थित डीएनए की रचना एवं आकार जीवाणुओं के डीएनए के समान है। इससे अनुमान लगाया जाता है कि लाखों वर्ष पहले शायद कोई जीवाणु मानव की किसी कोशिका में प्रवेश कर गया होगा एवं कालांतर में उसने कोशिका को ही स्थायी निवास बना लिया। माइटोकाण्ड्रिया के डीएनए एवं कोशिकाओं के केन्द्रक में विद्यमान डीएनए में ३५-३८ जीन एक समान हैं। अपने डीएनए की वज़ह से माइकोण्ड्रिया कोशिका के भीतर आवश्यकता पड़ने पर अपनी संख्या स्वयं बढ़ा सकते हैं। संतानो की कोशिकाओं में पाया जाने वाला माइटोकांड्रिया उन्हें उनकी माता से प्राप्त होता है। निषेचित अंडों के माइटोकाण्ड्रिया में पाया जाने वाले डीएनए में शुक्राणुओं की भूमिका नहीं होती। है।। चाणक्य।३१ अगस्त, २००९। भगवती लाल माली श्वसन की क्रिया प्रत्येक जीवित कोशिका के कोशिका द्रव्य (साइटोप्लाज्म) एवं माइटोकाण्ड्रिया में सम्पन्न होती है। श्वसन सम्बन्धित प्रारम्भिक क्रियाएँ साइटोप्लाज्म में होती है तथा शेष क्रियाएँ माइटोकाण्ड्रियाओं में होती हैं। चूँकि क्रिया के अंतिम चरण में ही अधिकांश ऊर्जा उत्पन्न होती हैं। इसलिए माइटोकाण्ड्रिया को कोशिका का श्वसनांग या 'शक्ति गृह' (पावर हाउस) कहा जाता है। जीव विज्ञान की प्रशाखा कोशिका विज्ञान या कोशिका जैविकी (साइटोलॉजी) इस विषय में विस्तार से वर्णन उपलब्ध कराती है। अमेरिका के शिकागो विश्वविद्यालय के डॉ॰ सिविया यच.

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जानकी अम्माल

एडावलेठ कक्कट जानकी अम्माल (Edavaleth Kakkat Janaki Ammal) (१८९७-१९८४) भारत की एक महिला वैज्ञानिक थीं। अम्माल एक ख्यातिनाम वनस्पति और कोशिका वैज्ञानिक थीं जिन्होंने आनुवांशिकी, उद्विकास, वानस्पतिक भूगोल और नृजातीय वानस्पतिकी के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया। पद्म श्री से सम्मानित जानकी अम्माल भारतीय विज्ञान अकादमी की संस्थापक फेलो रहीं हैं। .

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जेम्स रॉथमैन

जेम्स ई॰ रॉथमैन (जन्म नवम्बर 3, 1950) येल विश्वविद्यालय में जैवचिकित्सा विज्ञान के फ़र्गुस ऍफ़ वालेस प्रोफेसर, येल स्कूल ऑफ़ मेडिसिन के कोशिका विज्ञान विभाग के अध्यक्ष और येल वेस्ट कैम्पस के नैनोबायोलोजी (नैनो-जीवविज्ञान) संस्थान के अध्यक्ष हैं। रॉथमैन को जल स्फोटिका दुर्व्यापार में उनके कार्य के लिए २०१३ का चिकित्सा का नोबेल पुरस्कार (रैंडी शेकमैन और थॉमस सुडॉफ के साथ साझा) प्रदान किया गया। उन्होंने 1996 के किंग फैसल इंटरनेशनल प्राइज, 2002 में कोलंबिया विश्वविद्यालय से द लौइसा ग्रोस होर्वित्ज़ प्राइज और अल्बर्ट लस्कर अवार्ड फॉर बेसिक मेडिकल रिसर्च सहित बहुत से अन्य सम्मान भी प्राप्त किये। .

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जीन व्यवहार

कोशिका विज्ञान और अनुवांशिकी में जीन व्यवहार (gene expression) वह प्रक्रिया होती है जिसमें किसी जीन में उपस्थित सूचना के प्रयोग से किसी जीन उत्पाद का निर्माण होता है। यह उत्पाद अक्सर प्रोटीन होते हैं लेकिन कुछ जीनों का कार्य अंतरण आर॰ऍन॰ए॰ (transfer RNA) की उत्पत्ति होता है। विश्व के सभी ज्ञात जीवों की जीववैज्ञानिक प्रक्रियाओं के लिए जीन व्यवहार आवश्यक है। यह ज़रूरी नहीं है कि किसी जीव की जीनों में उपस्थित हर सम्भव जीन व्यवहार सक्रीय हो। कई जीन व्यवहार जीव की परिस्थितियों के आधार पर सकीय या असक्रीय होते हैं। मानवों में बालों का सफ़ेद हो जाने के पीछे साधारणत जीन व्यवहार होता है, जिसमें केश श्वेत कर देने का व्यवहार किसी परिस्थिति के कारण या बढ़ती आयु में स्वयं सक्रीय हो जाता है। .

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जीन उत्पाद

कोशिका विज्ञान और अनुवांशिकी में जीन उत्पाद (gene product) ऐसा प्रोटीन या आर॰ऍन॰ए॰ होता है जो जीन व्यवहार द्वारा निर्मित हो। कोई जीन कितना सक्रीय है इसका अनुमान अक्सर उसके द्वारा उत्पन्न जीन उत्पाद की मात्रा के मापन से किया जाता है। असाधारण मात्रा में निर्मित जीन उत्पाद अक्सर रोग उत्पन्न करने वाली स्थितियों में देखा जाता है, मसलन किसी ओंकोजीन में असाधारण सक्रीयता से कर्करोग (कैंसर) आरम्भ हो सकता है। .

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वनस्पति विज्ञान

बटरवर्थ का पुष्प जीव जंतुओं या किसी भी जीवित वस्तु के अध्ययन को जीवविज्ञान या बायोलोजी (Biology) कहते हैं। इस विज्ञान की मुख्यतः दो शाखाएँ हैं: (1) प्राणिविज्ञान (Zoology), जिसमें जंतुओं का अध्ययन होता है और (2) वनस्पतिविज्ञान (Botany) या पादपविज्ञान (Plant Science), जिसमें पादपों का अध्ययन होता है। .

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ओटो वारबर्ग

हेनरिक ओटो वारबर्ग (जन्म – 8 अक्टूबर 1883 फ्रायबर्ग, बेडन, जर्मनी निधन – 1 अगस्त 1970 बर्लिन, पश्चिमी जर्मनी) जर्मनी के जीवरसायन शास्त्री और शोधकर्ता थे। इनकी माँ का नाम एलिजाबैथ गार्टनर और पिता का नाम ऐमिल वारबर्ग था, जो बर्लिन विश्वविद्यालय में भौतिकशास्त्री थे। ऐमिल आइन्सटीन के मित्र थे और इन्होंने मेक्स प्लैंक के साथ भी काम किया था। ओटो ने 1906 में बर्लिन विश्वविद्यालय से रसायनशास्त्र में डॉक्ट्रेट की और 1911 में हाइडलबर्ग विश्वविद्यालय से डॉक्टर ऑफ मेडीसिन की डिग्री प्राप्त की थी। इसके बाद कुछ समय वे हाइडलबर्ग में ही शोध करते रहे। लेकिन 1913 में उन्हें बर्लिन के प्रतिष्ठित विल्हेम इन्स्टिट्यूट फोर बॉयोलाजी में नियुक्ति मिल गई। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने सेना में भी काम किया और उन्होंने आयरन क्रॉस पदक प्राप्त किया। लेकिन आइन्सटीन ने उन्हें सेना छोड़ने पर विवश किया और अपनी प्रतिभा और अमूल्य समय को मानव कल्याण हेतु शोध कार्यों में लगाने की प्रेरणा दी। सन् 1931 में वे विल्हेम इन्स्टिट्यूट के निर्देशक के पद से सम्मानित किये गये। वे अपनी मृत्यु तक इस संस्थान के प्रभारी बने रहे। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इसका नाम बदल कर मेक्स प्लैंक इंस्टिट्यूट रख दिया गया। बीसवें दशक के प्रारंभ में डॉ॰ ओटो ने जीवित कोशिकाओं द्वारा ऑक्सीजन का उद्ग्रहण करने की क्रिया (कोशिकीय श्वसन- क्रिया) पर शोध शुरू किया था। सन् 1923 में इसके लिए उन्होंने एक विशेष दबाव-मापक यंत्र विकसित किया जिसे उन्होंने वारबर्ग मेनोमीटर नाम दिया। यह मेनोमीटर जैविक ऊतक की पतली सी तह द्वारा भी ऑक्सीजन के उद्ग्रहण की गति को नापने में सक्षम था। उन्होंने श्वसन-क्रिया को उत्प्रेरित करने करने वाले तत्वों पर बहुत शोध की और तभी ऑक्सीजन-परिवहन एन्जाइम साइटोक्रोम की खोज की, जिसके लिए उन्हें 1931 में नोबेल पुरस्कार मिला। ओटो ने पहली बार बतलाया था कि कैंसर कोशिका सामान्य कोशिका की तुलना में बहुत ही कम ऑक्सीजन ग्रहण करती है। उन्होंने हाइड्रोजन सायनाइड और कार्बन-मोनो-ऑक्साइड पर भी शोध की और बताया कि ये श्वसन-क्रिया को बाधित करते हैं। उन्होंने की जीवरसायन क्रियाओं के लिए सहायक उपघटक निकोटिनेमाइड और डिहाइड्रोजिनेज एन्जाइम आदि का बहुत अध्ययन किया। उन्होंने यह भी सिद्ध किया कि कैंसर कोशिका के पीएच और ऑक्सीजन उपभोग में सीधा संबन्ध होता है। यदि पीएच ज्यादा है तो कोशिका में ऑक्सीजन की मात्रा ज्यादा होगी। उन्होंने यह भी बतलाया कि कैंसर कोशिका में लेक्टिक एसिड और कार्बन-डाई-ऑक्साइड बनने के कारण पीएच बहुत कम लगभग 6.0 होता है। उनकी शोध के अन्य विषय माइटोकोन्ड्रिया में होने वाली इलेक्ट्रोन-परिवहन श्रंखला, पौधों में होने वाली प्रकाश-संश्लेषण क्रिया, कैंसर कोशिका का चयापचय आदि थे। सन् 1963 के बाद से जर्मनी में जीरसायन शास्त्र और आणविक जीवविज्ञान में अच्छी शोध करने वाले वैज्ञानिकों को ओटो वारबर्ग मेडल से सम्मानित किया जाता है और 2007 के बाद से 25000 यूरो का नकद पुरस्कार भी दिया जाता है। इस पुरस्कार को प्राप्त करना वैज्ञानिकों के लिए बहुत सम्मानजनक माना जाता है। डॉ॰ ओटो ने 1931 में द मेटाबोलिज्म ऑफ ट्यूमर्स नामक पुस्तक का संपादन किया और अपने शोध कार्यों को इसमें प्रकाशित किया। 1962 में उन्होने न्यू मेथड्स ऑफ सैल फिजियोलाजी नामक पुस्तक लिखी थी। इन्होंने 178 शोधपत्र भी प्रकाशित किये थे। इनकी प्रयोगशाला में शोध करने वाले हन्स अडोल्फ क्रेब्स और दो अन्य वैज्ञानिकों ने भी नोबेल पुरस्कार प्राप्त किया था। वे हमेशा अध्ययन और मानव सेवा को सर्वोपरि मानते थे और वे आजीवन अविवाहित रहे। डॉ॰ ओटो जीवन के अंतिम पड़ाव में थोड़े चिड़चिड़े और सनकी हो गये थे। वे समझने लगे थे कि सारी बीमारियाँ प्रदूषित चीजें खाने से ही होती हैं, इसलिए वे ब्रेड भी अपने खेत में पैदा हुए जैविक गैंहूं की बनी हुई खाना पसन्द करते थे। कई बार तो वे रेस्टॉरेन्ट में चाय पीने जाते थे, पैसे भी पूरे देते थे परन्तु बदले में सिर्फ गर्म पानी लेते थे और अपने साथ लाई हुई जैविक चाय प्रयोग करते थे। .

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ओंकोजीन

कोशिका विज्ञान, रोगविज्ञान और अनुवांशिकी में ओंकोजीन (oncogene) ऐसी जीन होती है जिसमें कर्करोग (कैंसर) उत्पन्न करने की क्षमता हो। फुलाव (ट्यूमर) की कोशिकाओं में यह ओंकोजीन अक्सर उत्परिवर्तित होते हैं और साथ ही असाधारण स्तरों का जीन व्यवहार दर्शाते हैं। "Oncogenes" Free full text साधारण कोशिकाओं में यदि कोई विकार आ जाए तो वे एपोप्टोसिस नामक प्रक्रिया द्वारा स्वहत्या कर लेते हैं, जिस से जीव को हानि न पहुँचे, लेकिन सक्रीय ओंकोजीन इस एपोप्टोसिस को रोक देते हैं और इन विकृत कोशिकाओं को फैलने का मौका दे देते हैं। .

देखें कोशिका विज्ञान और ओंकोजीन

केन्द्रिका

जीवविज्ञान और कोशिका विज्ञान में केन्द्रिका (nucleolus, न्यूक्लिओलस) वनस्पतियों, प्राणियों और सुकेन्द्रिक जीवों की कोशिकाओं के कोशिका केन्द्रकों (cell nucleus) के भीतर केन्द्रकद्रव्य में स्थित सबसे बड़ी सघन संरचना होती है। यह प्रोटीन, डी ऍन ए और आर ऍन ए के साथ बनी होती है। .

देखें कोशिका विज्ञान और केन्द्रिका

केन्द्रक आव्यूह

जीवविज्ञान और कोशिका विज्ञान में केन्द्रक आव्यूह (nuclear matrix) रेशों का एक जाल होता है जो वनस्पतियों, प्राणियों और सुकेन्द्रिक जीवों की कोशिकाओं के कोशिका केन्द्रकों (cell nucleus) में फैला हुआ होता है। लेकिन जहाँ कोशिका कंकाल एक स्थिर ढांचा होता है वहाँ केन्द्रक आव्यूह के बारे में अनुम्मान है कि यह एक लचीला ढांचा होता है जो केन्द्रक को कई खुले कक्षों में विभाजित करता है जिनमें अणु स्वतंत्रता से पूरे केन्द्रक में आ-जा सकते हैं। हालांकि यह समझा जाता है कि केन्द्रक आव्यूह केन्द्रक को ढांचीय सहारा प्रदान करता है, इसके अन्य कार्यों को लेकर वैज्ञानिकों में विवाद है। .

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कोशिका

कोशिका कोशिका (Cell) सजीवों के शरीर की रचनात्मक और क्रियात्मक इकाई है और प्राय: स्वत: जनन की सामर्थ्य रखती है। यह विभिन्न पदार्थों का वह छोटे-से-छोटा संगठित रूप है जिसमें वे सभी क्रियाएँ होती हैं जिन्हें सामूहिक रूप से हम जीवन कहतें हैं। 'कोशिका' का अंग्रेजी शब्द सेल (Cell) लैटिन भाषा के 'शेलुला' शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ 'एक छोटा कमरा' है। कुछ सजीव जैसे जीवाणुओं के शरीर एक ही कोशिका से बने होते हैं, उन्हें एककोशकीय जीव कहते हैं जबकि कुछ सजीव जैसे मनुष्य का शरीर अनेक कोशिकाओं से मिलकर बना होता है उन्हें बहुकोशकीय सजीव कहते हैं। कोशिका की खोज रॉबर्ट हूक ने १६६५ ई० में किया।"...

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कोशिका केन्द्रक

केन्द्रक का चित्र कोशिका विज्ञान में केन्द्रक (लातीनी व अंग्रेज़ी: nucleus, न्यूक्लियस) वनस्पतियों, प्राणियों और सुकेन्द्रिक जीवों की अधिकांश कोशिकाओं में एक झिल्ली द्वारा बंद एक भाग (या कोशिकांग) होता है। सुकेन्द्रिक जीवों की हर कोशिका में अधिकतर एक केन्द्रक होता है, लेकिन स्तनधारियों की लाल रक्त कोशिकाओं में कोई केन्द्रक नहीं होता और ओस्टियोक्लास्ट कोशिकाओं में कई केन्द्रक होते हैं। प्राणियों के केन्द्रकों का व्यास लगभग ६ माइक्रोमीटर होता है और यह उनकी कोशिकाओं का सबसे बड़ा कोशिकांग होता है। कोशिका केन्द्रकों में कोशिकाओं की अधिकांश आनुवंशिक सामग्री होती है, जो कई लम्बे डी॰ ऍन॰ ए॰ अणुओं में सम्मिलित होती है, जिनके रेशों कई प्रोटीनों के प्रयोग से गुण सूत्रों (क्रोमोज़ोमों) में संगठित होते हैं। इन गुण सूत्रों में उपस्थित जीन कोशिका का जीनोम होते हैं और कोशिका की प्रक्रियाओं को संचालित करते हैं। केन्द्रक इन जीनों को सुरक्षित रखता है और जीन व्यवहार संचालित करता है, यानि केन्द्रक कोशिका का नियंत्रणकक्ष होता है। पूरा केन्द्रक एक लिपिड द्विपरत की बनी झिल्ली द्वारा घिरा होता है जो केन्द्रक झिल्ली (nuclear membrane) कहलाती है और जो केन्द्रक के अन्दर की सामग्री को कोशिकाद्रव्य से पृथक रखता है। केन्द्रक के भीतर केन्द्रक आव्यूह (nuclear matrix) कहलाने वाला रेशों का ढांचा होता है जो केन्द्रक को आकार बनाए रखने के लिए यांत्रिक सहारा देता है, ठीक उसी तरह जैसे कोशिका कंकाल पूरी कोशिका को यांत्रिक सहारा देता है। .

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कोशिकीय एवं आणविक जीवविज्ञान केन्द्र

कोशिकीय व आण्विक जीवविज्ञान केंद्र (सी.सी.एम.बी.), भारत भर में फैली सी एस आई आर की विविध प्रयोगशालाओं में से एक है। यह आन्ध्र प्रदेश की राजधानी, हैदराबाद में स्थित है और जीवविज्ञान के आधुनिक और महत्वपूर्ण क्षेत्रों को समर्पित प्रयोगशाला है। वर्ष 1987 में, 26 नवम्बर के दिन भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा राष्ट्र को समर्पित की गई थी। इसे सी.एस.आई.आर की एक पूर्ण विकसित राष्ट्रीय प्रयोगशाला के रूप में वर्ष 1982 में ही मान्यता प्राप्त हो गयी थी, लेकिन अपने आरंभ के कुछ वर्षों में यह आई.आई.सी.टी, (पूर्व नाम आर.आर.एल.) प्रयोगशाला परिसर से काम करती रही। उसी समय, आई.आई.सी.टी के निकट, उसी प्रयोगशाला के परिसर में, इस केन्द्र के अपने भवनों का निर्माण आरंभ हुआ। वर्ष 1987 तक आते-आते अनेक लोगों के अथक और अद्भुत प्रयासों की सहायता से यह केन्द्र अपने लिए सभी सुविधाओं से युक्त एक सुन्दर परिसर को जुटा सका। आज इस केन्द्र को जीव विज्ञान के क्षेत्र में राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक विशेष ख्याति प्राप्त हो चुकी है। प्रमुखत: यह केन्द्र आज जीव विज्ञान के नवीनतम क्षेत्रों के शोधकार्य एवं उनके अनुप्रयोग को ढूँढने के प्रयासों में जुटा हुआ है। इसके क्रिया-कलापों में आधारभूत शोध कार्य से लेकर समाज-उपयोगी तथा चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े शोधकार्य तक सम्मिलित हैं। .

देखें कोशिका विज्ञान और कोशिकीय एवं आणविक जीवविज्ञान केन्द्र

अपच्छेदन

अपच्छेदन (Abscission) किसी जीव के किसी अंग के अलग होकर गिर जाने की प्रक्रिया को कहते हैं। उदाहरण के लिये वृक्षों से पत्तों, फलों, फूलों या बीजों का गिरना औपचारिक रूप से जीव विज्ञान में अपच्छेदन कहलाता है। इसी तरह से प्राणी विज्ञान में किसी स्वस्थय प्राणी द्वारा नियमित रूप से त्वचा, बाल या पंजे का झड़ना, या फिर किसी परभक्षी से बचने के लिये कुछ प्राणियों द्वारा जान-बूझकर अपनी पूँछ को अलग कर देना भी अपच्छेदन कहलाता है। कोशिका विज्ञान में कोशिकाद्रव्य विभाजन (cytokinesis, साइटोकाइनीसिस) में किसी कोशिका के बंटकर दो अलग पुत्री कोशिकाओं का बन जाना भी अपच्छेदन के नाम से जाना जाता है। .

देखें कोशिका विज्ञान और अपच्छेदन

अलैंगिक प्रजनन

अधिकांश जंतुओं में प्रजनन की क्रिया के लिए संसेचन (शुक्राणु का अंड से मिलना) अनिवार्य है; परंतु कुछ ऐसे भी जंतु हैं जिनमें बिना संसेचन के प्रजनन हो जाता है, इसको आनिषेक जनन या अलैंगिक जनन (Asexual reproduction) कहते हैं। कुछ मछलियों को छोड़कर किसी भी पृष्ठवंशी में अनिषेक जनन नहीं पाया जाता और न कुछ बड़े बड़े कीटगण, जैसे व्याधपतंगगण (ओडोनेटा) तथा भिन्नपक्षानुगण (हेटरोष्टरा) में। कुछ ऐसे भी जंतु हैं जिनमें प्रजनन सर्वथा (अथवा लगभग सर्वथा) अनिषेक जनन द्वारा ही होता है, जैसे द्विजननिक विद्धपत्रा (डाइजेनेटिक ट्रेमैडोड्स), किरोटवर्ग (रोटिफर्स), जलपिंशु (वाटर फ़्ली) तथा द्रुयूका (ऐफ़िड) में। शल्किपक्षा (लेपिडोप्टरा) में अनिषेक जनन बिरले ही मिलता है, किंतु स्यूनशलभवंश (सिकिड्स) की कई एक जातियों में पाया जाता है। घुनों के कुछ अनुवंशों में भी अनिषेक जनन प्राय: पाया जाता है। प्रजनन, लिंगनिश्चयन, तथा कोशिकाविज्ञान (साइटॉलोजी) की दृष्टि से कई प्रकार के अनिषेक जननतंत्र पहचाने जा सकते हैं। .

देखें कोशिका विज्ञान और अलैंगिक प्रजनन

उत्परिवर्तन

जीन डी एन ए के न्यूक्लियोटाइडओं का ऐसा अनुक्रम है, जिसमें सन्निहित कूटबद्ध सूचनाओं से अंततः प्रोटीन के संश्लेषण का कार्य संपन्न होता है। यह अनुवांशिकता के बुनियादी और कार्यक्षम घटक होते हैं। यह यूनानी भाषा के शब्द जीनस से बना है। क्रोमोसोम पर स्थित डी.एन.ए.

देखें कोशिका विज्ञान और उत्परिवर्तन

कोशिका जैविकी, कोशिका जीवविज्ञान, कोशिकानुवंशिकी, कोशिकाविज्ञान के रूप में भी जाना जाता है।