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कृत्तिवास ओझा

सूची कृत्तिवास ओझा

नादिया जिले के फुलिया में बना ''''कृत्तिवास स्मारक'''' कृत्तिवास ओझा (बांग्ला: কৄত্তিবাস ওঝা) या 'कीर्तिवास ओझा'Sen, Sukumar (1991, reprint 2007).

4 संबंधों: बंगाली साहित्य, रामायण मेला, काशीराम दास, कृत्तिवास रामायण

बंगाली साहित्य

बँगला भाषा का साहित्य स्थूल रूप से तीन भागों में बाँटा जा सकता है - 1.

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रामायण मेला

रामायण मेला, उत्तर प्रदेश के चित्रकूट और अयोध्या में लगता है। रामायण मेले में अनेक धर्माचार्य, संत महात्मा, देश-विदेश के रामकथा मर्मज्ञ तथा विद्धान भाग लेते हैं। इस अवसर पर रामलीला, प्रवचन तथा विभिन्न संस्थाओं द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते हैं। रामायण मेला के आयोजन की परिकल्पना डॉ॰ राममनोहर लोहिया ने सन् 1961 में की थी। उसी के तहत 1973 में पहली बार उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी ने चित्रकूट में रामायण मेला आयोजित किया था, जबकि अयोध्या में इसकी शुरूआत 1982 में तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीपति मिश्र ने की थी जिसका उद्देश्य रामायण मेले को केन्द्र में रखकर अयोध्या का विकास करना था। आनन्द, प्रेम और शान्ति के आह्वान के मुख्य प्रयोजन के साथ राममनोहर लोहिया ने रामायण मेला आयोजित करने की संकल्पना की थी। उन्हें लगता था कि आयोजन से भारत की एकता जैसे लक्ष्य भी प्राप्त किए जाएँगे। लोहिया मानते थे कि कम्बन की तमिल रामायण, एकनाथ की मराठी रामायण, कृत्तिबास की बंगला रामायण और ऐसी ही दूसरी रामायणों ने अपनी-अपनी भाषा को जन्म और संस्कार दिया। उनका विचार था कि रामायण मेला में तुलसी की रामायण को केन्द्रित करके इन सभी रामायणों पर विचार किया जाएगा और बानगी के तौर पर उसका पाठ भी होगा। लोहिया का निजी मत था कि तुलसी एक रक्षक कवि थे। .

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काशीराम दास

काशीराम दास (अनुमानतः १६वीं-१७वीं शताब्दी में जन्म) मध्यकालीन बांग्ला के प्रसिद्ध कवि थे। उन्हें 'काशीरामदास' या 'काशीराम देव' भी कहते हैं। उन्होने महाभारत का संस्कृत से बांग्ला में पद्यानुवाद किया। उनके द्वारा रचित यह ग्रन्थ 'भारत पाँचाली' या 'काशीदास महाभारत' के नाम से जाना जाता है। उनके द्वारा अनूदित महाभारत ही बांग्ला भाषा में सबसे अधिक लोकप्रिय है। बंगला रामायण के रचयिता कृत्तिवास ओझा के समान ही इनकी ख्याति बंगाल के जनकवि के रूप में है। .

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कृत्तिवास रामायण

'''अकाल-बंधन''': राम द्वारा शक्ति-पूजा का सर्वप्रथम चित्रण कृतिवास रामायण में ही आता है। कृत्तिवास रामायण (बांग्ला: কৃত্তিবাসি রামায়ণ / कृतिबासी रामायण) या 'श्रीराम पाँचाली' (बांग्ला: শ্রীরাম পাঁচালী), की रचना पन्द्रहवीं शती के बांग्ला कवि कृत्तिवास ओझा ने की थी। यह संस्कृत के अतिरिक्त अन्य उत्तर-भारतीय भाषाओं का पहला रामायण है। गोस्वामी तुलसीदास के रामचरित मानस के रचनाकाल से लगभग सौ वर्ष पूर्व कृत्तिवास रामायण का आविर्भाव हुआ था। इसके रचयिता संत कृत्तिवास बंग-भाषा के आदिकवि माने जाते हैं। वह छंद, व्याकरण, ज्योतिष, धर्म और नीतिशास्त्र के प्रकाण्ड पण्डित थे। और राम-नाम में उनकी परम आस्था थी। यह ग्रंथ मूल रामायण का शब्दानुवाद नहीं है बल्कि इसमें मध्यकालीन बंगाली समाज और संस्कृति का विविध चित्रण भी है। बंग-भाषा के इस महाकाव्य में छः काण्ड (आदि काण्ड, अयोध्या काण्ड, अरण्य काण्ड, किष्किन्धा काण्ड, सुन्दर काण्ड और लंका काण्ड) हैं। .

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