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कुमारगुप्त प्रथम

सूची कुमारगुप्त प्रथम

यह प्राचीन भारत में तीसरी से पाँचवीं सदी तक शासन करने वाले गुप्त राजवंश का राजा था। इनकी राजधानी पाटलीपुत्र थी जो वर्तमान समय में पटना के रूप में बिहार की राजधानी है। श्रेणी:गुप्त राजवंश.

8 संबंधों: दशपुर, ध्रुवस्वामिनी, नालन्दा महाविहार, पुरुगुप्त, प्राचीन भारत, स्कन्दगुप्त, गुप्त राजवंश, कुमारगुप्त

दशपुर

दशपुर अवंति (पश्चिमी मालवा) का प्राचीन नगर था, जो मध्य प्रदेश के ग्वालियर क्षेत्र में उस नाम के नगर से कुछ दूर उत्तर पश्चिम में स्थित आधुनिक मंदसौर है। भारतीय इतिहास के प्राचीन युग में उत्तर भारत में जब भी साम्राज्य स्थापित हुए, अवंति प्राय: उनका एक प्रांत रहा। दशपुर उसी में पड़ता था और कभी कभी वहाँ भी शासन की एक इकाई होती थी। दशपुर का कोई मूल्यवान ऐतिहासिक उल्लेख गुप्तयुग के पहले का नहीं मिलता। कुमारगुप्त प्रथम तथा द्वितीय और बंधुवर्मा का मंदसोर में ४३६ ई. (वि॰सं॰ ४९३) और ४७२ ई. (वि॰सं॰ ५२९) का वत्सभट्टि विरचित लेख मिला है, जिससे ज्ञात होता है कि जब बंधुवर्मा कुमारगुप्त प्रथम का दशपुर में प्रतिनिधि था (४३६ ई.), वहाँ के तंतुवायों ने एक सूर्यमंदिर का निर्माण कराया तथा उसके व्यय का प्रबंध किया। ३६ वर्षों बाद (४७२ ई.) ही उस मंदिर के पुनरुद्वार की आवश्यकता हुई और वह कुमारगुप्त द्वितीय के समय संपन्न हुआ। बंधुवर्मा संभवत: इस सारी अवधि के बीच गुप्तसम्राटों का दशपुर में क्षेत्रीय शासक रहा। थोड़े दिनों बाद हूणों ने उसके सारे पार्श्ववर्ती प्रदेशों को रौंद डाला और गुप्तों का शासन वहाँ से समाप्त हो गया। ग्वालियर में मिलनेवाले मिहिरकुल के सिक्कों से ये प्रतीत होता है कि दशपुर का प्रदेश हूणों के अधिकार में चला गया। किंतु उनकी सफलता स्थायी न थी और यशोधर्मन् विष्णुवर्धन् नामक औलिकरवंशी एक नवोदित राजा ने मिहिरकुल को परास्त किया। मंदसोर से वि॰सं॰ ५८९ (५३२ ई.) का यशोधर्मा का वासुल रचित एक अभिलेख मिला है, जिसमें उसे जनेंद्र, नराधिपति, सम्राट्, राजाधिराज, परमेश्वर उपाधियाँ दी गई हैं। उसका यह भी दावा है कि जिन प्रदेशों को गुप्त सम्राट् भी नहीं भोग सके, उन सबको उसने जीता और नीच मिहिरकुल को विवश होकर पुष्पमालाओं से युक्त अपने सिर को उसके दोनों पैरों पर रखकर उसकी पूजा करनी पड़ी। यशोधर्मा मध्यभारत से होकर उत्तर प्रदेश पहुँचा और पंजाब में मिहिरकुल की शक्ति को नष्ट करता हुआ सारा गुप्त साम्राज्य रौंद डाला। पूर्व में लौहित्य (उत्तरी पूर्वी भारतीय सीमा की लोहित नदी) से प्रारंभ कर हिमालय की चोटियों को छूते हुए पश्चिम पयोधि तक तथा दक्षिण-पूर्व से महेंद्र पर्वत तक के सारे क्षेत्र को स्वायत्त करने का उसने दावा किया है। दशपुर को यशोधर्मा ने अपनी राजधानी बनाया। वर्धन्नामांत दशपुर के कुछ अन्य राजाओं की सूचनाएँ प्राप्त होती हैं। मंदसोर से ही अभी हाल में प्राप्त होनेवाले एक अभिलेख से आदित्यवर्धन् तथा वराहमिहिर की बृहत्संहिता (छठी शती) से अवंति के महाराजाधिराज द्रव्यवर्धन की जानकारी होती है। .

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ध्रुवस्वामिनी

ध्रुवस्वामिनी या ध्रुवदेवी, चन्द्रगुप्त द्वितीय की पत्नी थीं। उनके गर्भ से जन्मे चन्द्रगुप्त के पुत्र का नाम कुमारगुप्त था। .

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नालन्दा महाविहार

नालंदा के प्राचीन विश्वविद्यालय के अवशेष। यह प्राचीन भारत में उच्च शिक्षा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण और विख्यात केन्द्र था। महायान बौद्ध धर्म के इस शिक्षा-केन्द्र में हीनयान बौद्ध-धर्म के साथ ही अन्य धर्मों के तथा अनेक देशों के छात्र पढ़ते थे। वर्तमान बिहार राज्य में पटना से ८८.५ किलोमीटर दक्षिण-पूर्व और राजगीर से ११.५ किलोमीटर उत्तर में एक गाँव के पास अलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा खोजे गए इस महान बौद्ध विश्वविद्यालय के भग्नावशेष इसके प्राचीन वैभव का बहुत कुछ अंदाज़ करा देते हैं। अनेक पुराभिलेखों और सातवीं शताब्दी में भारत भ्रमण के लिए आये चीनी यात्री ह्वेनसांग तथा इत्सिंग के यात्रा विवरणों से इस विश्वविद्यालय के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। यहाँ १०,००० छात्रों को पढ़ाने के लिए २,००० शिक्षक थे। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने ७ वीं शताब्दी में यहाँ जीवन का महत्त्वपूर्ण एक वर्ष एक विद्यार्थी और एक शिक्षक के रूप में व्यतीत किया था। प्रसिद्ध 'बौद्ध सारिपुत्र' का जन्म यहीं पर हुआ था। .

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पुरुगुप्त

पुरुगुप्त (शसन: ४६७-४७३ ई) गुप्त वंश का एक सम्राट था जो उत्तर भारत में शासन करता था। ये गुप्त सम्राट कुमारगुप्त प्रथम का अपनी सम्राज्ञी अनन्तदेवी से उत्पन्न पुत्र था। यह अपने सौतेले भ्राता स्कन्दगुप्त का उत्तराधिकारी बना। पुरुगुप्त के अभी तक कोई शिलालेख, प्रशस्तियाम प्राप्त नहीं हुई हैं। इनको इनके पौत्र कुमारगुप्त तृतीय की रजत-कांस्य मुहर एवं इनके पुत्रों नरसिंहगुप्त एवं बुद्धगुप्त द्वारा बनवाए गए नालंदा की मृत्तिका पट्टिकाओं के द्वारा जाना जाता है। सारनाथ के बुद्ध की छवि के शिलालेख के अनुसार ये माना जाता है कि पुरुगुप्त से कुमारगुप्त तृतीय उत्तराधिकारी बना। .

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प्राचीन भारत

मानव के उदय से लेकर दसवीं सदी तक के भारत का इतिहास प्राचीन भारत का इतिहास कहलाता है। .

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स्कन्दगुप्त

स्कन्दगुप्तकालीन मुद्रा जिस पर स्कन्दगुप्त का चित्र अंकित है। स्कन्दगुप्त प्राचीन भारत में तीसरी से पाँचवीं सदी तक शासन करने वाले गुप्त राजवंश के आठवें राजा थे। इनकी राजधानी पाटलिपुत्र थी जो वर्तमान समय में पटना के रूप में बिहार की राजधानी है। स्कन्दगुप्त ने जितने वर्षों तक शासन किया उतने वर्षों तक युद्ध किया। भारत की बर्बर हूणों से रक्षा करने का श्रेय स्कन्दगुप्त को जाता है। हूण मध्य एशिया में निवास करने वाले बर्बर कबीलाई लोग थे। उन्होंने हिन्दु कुश पार कर गन्धार पर अधिकार कर लिया और फिर महान गुप्त साम्राज्य पर धावा बोला। परंतु वीर स्कन्दगुप्त ने उनका सफल प्रतिरोध कर उन्हें खदेड़ दिया। हूणों के अतिरिक्त उसने पुष्यमित्रों को भी विभिन्न संघर्षों में पराजित किया। पुष्यमित्रों को परास्त कर अपने नेतृत्व की योग्यता और शौर्य को सिद्ध कर स्कन्दगुप्त ने विक्रमादित्य कि उपाधि धारण की.

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गुप्त राजवंश

गुप्त राज्य लगभग ५०० ई इस काल की अजन्ता चित्रकला गुप्त राजवंश या गुप्त वंश प्राचीन भारत के प्रमुख राजवंशों में से एक था। मौर्य वंश के पतन के बाद दीर्घकाल तक भारत में राजनीतिक एकता स्थापित नहीं रही। कुषाण एवं सातवाहनों ने राजनीतिक एकता लाने का प्रयास किया। मौर्योत्तर काल के उपरान्त तीसरी शताब्दी इ. में तीन राजवंशो का उदय हुआ जिसमें मध्य भारत में नाग शक्‍ति, दक्षिण में बाकाटक तथा पूर्वी में गुप्त वंश प्रमुख हैं। मौर्य वंश के पतन के पश्चात नष्ट हुई राजनीतिक एकता को पुनस्थापित करने का श्रेय गुप्त वंश को है। गुप्त साम्राज्य की नींव तीसरी शताब्दी के चौथे दशक में तथा उत्थान चौथी शताब्दी की शुरुआत में हुआ। गुप्त वंश का प्रारम्भिक राज्य आधुनिक उत्तर प्रदेश और बिहार में था। गुप्त वंश पर सबसे ज्यादा रिसर्च करने वाले इतिहासकार डॉ जयसवाल ने इन्हें जाट बताया है।इसके अलावा तेजराम शर्माhttps://books.google.co.in/books?id.

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कुमारगुप्त

कुमारगुप्त नाम के गुप्त राजवंश के दो शासक थे:-.

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

कुमारगुप्त प्रथम्, कुमारगु्प्त १

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