लोगो
यूनियनपीडिया
संचार
Google Play पर पाएं
नई! अपने एंड्रॉयड डिवाइस पर डाउनलोड यूनियनपीडिया!
इंस्टॉल करें
ब्राउज़र की तुलना में तेजी से पहुँच!
 

कुमाऊँनी लोग

सूची कुमाऊँनी लोग

कुमाऊँनी लोग, भारतवर्ष के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमांऊॅं क्षेत्र के लोगों को कहते हैं। इनमें वे सभी लोग सम्मिलित हैं जो कुमाऊँनी भाषा या इससे सम्बन्धित उपभाषाएें बोलते हैं। कुमांऊँनी लोग उत्तराखण्ड प्रदेश के अल्मोड़ा, उधमसिंहनगर, चम्पावत, नैनीताल, पिथौरागढ़ और बागेश्वर जिलों के निवासी हैं। भारत की सशस्त्र सेनाएँ और केन्द्रीय पुलिस संगठन, कुमाऊँ के लोगों के लिए रोजगार का प्रमुख स्रोत रहे हैं। भारत की सीमाओं की रक्षा करने में कुमाऊँ रेजीमेंट की उन्नीस वाहिनियाँ कुमाऊँ के लोगों का स्पष्ट प्रतिनिधित्व करतीं हैं। .

12 संबंधों: चन्द राजवंश, भगत सिंह कोश्यारी, शिवानी, खटीमा, गढ़वाली लोग, कत्यूरी राजवंश, काला चौना, कुमाऊँ, कुमाऊँ मण्डल, कुमांऊॅं, उत्तराखण्ड के लोग, उप्रेती

चन्द राजवंश

कलि कुमाऊँ का किला और और राजधानी, चम्पावत, १८१५ चन्द राजवंश भारत के उत्तराखण्ड राज्य के कुमाऊँ मण्डल का एक मध्यकालीन रघुवंशी राजपूत राजवंश था, जिन्होंने इस क्षेत्र पर ११वीं शताब्दी में कत्यूरी राजवंश के ह्रास के बाद से और १८वीं शताब्दी में अंगेज़ो के आगमन तक शासन किया। .

नई!!: कुमाऊँनी लोग और चन्द राजवंश · और देखें »

भगत सिंह कोश्यारी

भगत सिंह कोश्यारी भारत की राजनीति में उत्तर भारत का एक परिचित नाम है, जो भारतीय जनता पार्टी से सम्बधित एक भारतीय राजनीतिज्ञ हैं। वे उत्तराखण्ड राज्य के द्वितीय सफल मुख्यमन्त्री तथा उत्तराखण्ड विधानसभा में 2002 से 2007 तक विपक्ष के शीर्ष नेता रह चुके हैं। .

नई!!: कुमाऊँनी लोग और भगत सिंह कोश्यारी · और देखें »

शिवानी

शिवानी हिन्दी की एक प्रसिद्ध उपन्यासकार थीं। इनका वास्तविक नाम गौरा पन्त था किन्तु ये शिवानी नाम से लेखन करती थीं। इनका जन्म १७ अक्टूबर १९२३ को विजयदशमी के दिन राजकोट, गुजरात मे हुआ था। इनकी शिक्षा शन्तिनिकेतन में हुई! साठ और सत्तर के दशक में, इनकी लिखी कहानियां और उपन्यास हिन्दी पाठकों के बीच अत्यधिक लोकप्रिय हुए और आज भी लोग उन्हें बहुत चाव से पढ़ते हैं। शिवानी का निधन 2003 ई० मे हुआ। उनकी लिखी कृतियों मे कृष्णकली, भैरवी,आमादेर शन्तिनिकेतन,विषकन्या चौदह फेरे आदि प्रमुख हैं। हिंदी साहित्य जगत में शिवानी एक ऐसी श्ख्सियत रहीं जिनकी हिंदी, संस्कृत, गुजराती, बंगाली, उर्दू तथा अंग्रेजी पर अच्छी पकड रही और जो अपनी कृतियों में उत्तर भारत के कुमाऊं क्षेत्र के आसपास की लोक संस्कृति की झलक दिखलाने और किरदारों के बेमिसाल चरित्र चित्रण करने के लिए जानी गई। महज 12 वर्ष की उम्र में पहली कहानी प्रकाशित होने से लेकर 21 मार्च 2003 को उनके निधन तक उनका लेखन निरंतर जारी रहा। उनकी अधिकतर कहानियां और उपन्यास नारी प्रधान रहे। इसमें उन्होंने नायिका के सौंदर्य और उसके चरित्र का वर्णन बडे दिलचस्प अंदाज में किया कहानी के क्षेत्र में पाठकों और लेखकों की रुचि निर्मित करने तथा कहानी को केंद्रीय विधा के रूप में विकसित करने का श्रेय शिवानी को जाता है।वह कुछ इस तरह लिखती थीं कि लोगों की उसे पढने को लेकर जिज्ञासा पैदा होती थी। उनकी भाषा शैली कुछ-कुछ महादेवी वर्मा जैसी रही पर उनके लेखन में एक लोकप्रिय किस्म का मसविदा था। उनकी कृतियों से यह झलकता है कि उन्होंने अपने समय के यथार्थ को बदलने की कोशिश नहीं की।शिवानी की कृतियों में चरित्र चित्रण में एक तरह का आवेग दिखाई देता है। वह चरित्र को शब्दों में कुछ इस तरह पिरोकर पेश करती थीं जैसे पाठकों की आंखों के सामने राजारवि वर्मा का कोई खूबसूरत चित्र तैर जाए। उन्होंने संस्कृत निष्ठ हिंदी का इस्तेमाल किया। जब शिवानी का उपन्यास कृष्णकली में प्रकाशित हो रहा था तो हर जगह इसकी चर्चा होती थी। मैंने उनके जैसी भाषा शैली और किसी की लेखनी में नहीं देखी। उनके उपन्यास ऐसे हैं जिन्हें पढकर यह एहसास होता था कि वे खत्म ही न हों। उपन्यास का कोई भी अंश उसकी कहानी में पूरी तरह डुबो देता था। भारतवर्ष के हिंदी साहित्य के इतिहास का बहुत प्यारा पन्ना थीं। अपने समकालीन साहित्यकारों की तुलना में वह काफी सहज और सादगी से भरी थीं। उनका साहित्य के क्षेत्र में योगदान बडा है परिचय जन्म: 17 अक्टूबर 1923, राजकोट (गुजरात) भाषा: हिंदी विधाएँ: उपन्यास, कहानी, संस्मरण, यात्रा वृत्तांत, आत्मकथा मुख्य कृतियाँ उपन्यास: कृष्णकली, कालिंदी, अतिथि, पूतों वाली, चल खुसरों घर आपने, श्मशान चंपा, मायापुरी, कैंजा, गेंदा, भैरवी, स्वयंसिद्धा, विषकन्या, रति विलाप, आकाश कहानी संग्रह: शिवानी की श्रेष्ठ कहानियाँ, शिवानी की मशहूर कहानियाँ, झरोखा, मृण्माला की हँसी संस्मरण: अमादेर शांति निकेतन, समृति कलश, वातायन, जालक यात्रा वृतांत: चरैवैति, यात्रिक आत्मकथा: सुनहुँ तात यह अमर कहानी .

नई!!: कुमाऊँनी लोग और शिवानी · और देखें »

खटीमा

खटीमा भारत के उत्तराखण्ड राज्य के ऊधमसिंह नगर जिले में स्थित एक नगर निगम बोर्ड है। .

नई!!: कुमाऊँनी लोग और खटीमा · और देखें »

गढ़वाली लोग

गढ़वाली लोग भारत के उत्तराखण्ड राज्य के गढ़वाल मण्डल के निवासियों को कहते हैं। इसमें वे सभी लोग सम्मिलित हैं जो गढ़वाली भाषा या सम्बन्धित उपभाषाएँ बोलते हैं और जो उत्तराखण्ड के गढ़वाल मण्डल के उत्तरकाशी, चमोली, टिहरी, देहरादून, पौड़ी, रूद्रप्रयाग मनिगुह गांव गढ़वाल का एक थाती गांव है जहाँ पर कुंवर परिवार रहता है आज भी वहां पर पानी के धारे है और हरिद्वार जिलों में रहते हैं। यह लोग कई सदियों से यहाँ के मूल निवासी हैं। यह धैर्यवान लोग तथा पुरानी संस्कृिती से मेल खाते हैं। दस्तावेज साक्ष्य कहता है गढ़वाल क्षेत्र में मानव जाति का निवास कम से कम वैदिक काल से है, आज के गढ़वाल के लोग कई सदियों से प्रवासी हिन्द-आर्य लोगों के विभिन्न तरंगों के वंशज हैं.

नई!!: कुमाऊँनी लोग और गढ़वाली लोग · और देखें »

कत्यूरी राजवंश

कत्यूरी राजवंश भारत के उत्तराखण्ड राज्य का एक मध्ययुगीन राजवंश था जिनके बारे में में माना जाता है कि वे अयोध्या के शालिवाहन शासक के वंशज हैं और इसलिए वे सूर्यवंशी हैं। तथापि, बहुत से इतिहासकार उन्हें कुनिन्दा शासकों से जोड़ते हैं और खस मूल से भी, जिनका कुमाऊँ क्षेत्र पर ६ठीं से ११वीं सदी तक शासन था। कत्यूरी राजाओं को गिरीराज चक्रचूड़ामणि की उपाधी प्राप्त थी। उनकी पहली राजधानी जोशीमठ में थी, जो जल्द ही कार्तिकेयपुर में स्थानांतरित कर दी गई थी। कत्यूरी राजवंश भी शक वंशावली के माने जाते हैं, जैसे राजा शालिवाहन, को भी शक वंश से माना जाता है। तथापि, बद्री दत्त पाण्डेय जैसे इतिहासकारों का मानना है कि कत्यूरी, अयोध्या से आए थे। उन्होंने अपने राज्य को 'कूर्मांचल' कहा, अर्थात 'कूर्म की भूमि', कूर्म भगवान विष्णु का दूसरा अवतार था, जिससे इस स्थान को इसका वर्तमान नाम, कुमाऊँ मिला। कत्युरी राजा का कुलदेवता स्वामी कार्तिकेय (मोहन्याल) नेपाल के बोगटान राज्य मे विराजमान है। .

नई!!: कुमाऊँनी लोग और कत्यूरी राजवंश · और देखें »

काला चौना

काला चौना एक गॉंव है। यह रामगंगा नदी के पूर्वी किनारे पर चौखुटिया तहसील के तल्ला गेवाड़ नामक पट्टी में, भारतवर्ष के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के अल्मोड़ा जिले में स्थित है। यह गॉंव मूलरूप से कनौंणियॉं नामक उपनाम से विख्यात कुमांऊॅंनी हिन्दू राजपूतों का प्राचीन और पुश्तैनी चार गाँवों में से एक है। दक्षिणी हिमालय की तलहटी में बसा यह काला चौना अपनी ऐतिहासिक व सॉंस्कृतिक विरासत, ठेठ कुमांऊॅंनी सभ्यता व संस्कृति, पर्वतीय जीवन शैली, प्रकृति संरक्षण, अलौकिक प्राकृतिक छटा तथा समतल-उपजाऊ भूमि के लिए पहचाना जाता है। .

नई!!: कुमाऊँनी लोग और काला चौना · और देखें »

कुमाऊँ

कुमाऊँ शब्द एक बहुविकल्पी शब्द हैै, इस शब्द के कई रूपांतरण और भेद हैं.

नई!!: कुमाऊँनी लोग और कुमाऊँ · और देखें »

कुमाऊँ मण्डल

यह लेख कुमाऊँ मण्डल पर है। अन्य कुमाऊँ लेखों के लिए देखें कुमांऊॅं उत्तराखण्ड के मण्डल कुमाऊँ मण्डल भारत के उत्तराखण्ड राज्य के दो प्रमुख मण्डलों में से एक हैं। अन्य मण्डल है गढ़वाल। कुमाऊँ मण्डल में निम्न जिले आते हैं:-.

नई!!: कुमाऊँनी लोग और कुमाऊँ मण्डल · और देखें »

कुमांऊॅं

कुमांऊँ नामक शब्द एक बहुविकल्पी शब्द हैै। यह पूर्व में नेपाल, पश्चिम में गढ़वाल, उत्तर में तिब्बत व चीन तथा दक्षिण में उत्तर भारत के मैदानी भूभाग के मध्य क्षेत्र के लिये व क्षेत्र से सम्बन्धित प्रयुक्त होने वाला शब्द है। प्रस्तुत शब्द के कई भेद व प्रकार हैं। जिसका कुमांऊँ, कुमाऊँ, कुमायूँ, कुमांयूँ, कुमांऊँनी, कुमाऊँनी, कुमूं, कुमूँ, कुमइयॉं, कुमय्यॉं, इत्यादि शब्दों व उच्चारणों के अनुसार उपयोग किया जाता रहा है और होता है।.

नई!!: कुमाऊँनी लोग और कुमांऊॅं · और देखें »

उत्तराखण्ड के लोग

उत्तराखण्ड के लोग उत्तराखण्ड के मूल निवासियों को कहते हैं। उत्तराखण्ड के मूल निवासियों को कुमाऊँनी या गढ़वाली कहा जाता है जो प्रदेश के दो मण्डलों कुमाऊँ और गढ़वाल में रहते हैं। एक अन्य श्रेणी हैं गुज्जर, जो एक प्रकार के चरवाहे हैं और दक्षिणपश्चिमी तराई क्षेत्र में रहते हैं। मध्य पहाड़ी की दो बोलियाँ कुमाऊँनी और गढ़वाली, क्रमशः कुमाऊँ और गढ़वाल में बोली जाती हैं। जौनसारी और भोटिया दो अन्य बोलियाँ, जनजाति समुदायों द्वारा क्रमशः पश्चिम और उत्तर में बोली जाती हैं। लेकिन हिन्दी पूरे प्रदेश में बोली और समझी जाती है और नगरीय जनसंख्या अधिकतर हिन्दी ही बोलती है। शेष भारत के समान ही उत्तराखण्ड में हिन्दू बहुमत में हैं और कुल जनसंख्या का ८५% हैं, इसके बाद मुसलमान १२%, सिख २.५% और अन्य धर्मावलम्बी ०.५% हैं। .

नई!!: कुमाऊँनी लोग और उत्तराखण्ड के लोग · और देखें »

उप्रेती

उप्रेती मुख्यतः भारत के उत्तराखण्ड राज्य के कुमाऊँ क्षेत्र में रहने वाले कुमाऊँनी समुदाय के सारस्वत ब्राह्मण हैं। इस समुदाय के लोग नेपाल और सिक्किम में भी पाए जाते हैं। अपनी परम्पराओं के अनुसार, वे ऋषि भारद्वाज के वंशज हैं जो कि शैव सम्प्रदाय के अनुयायी हैं, भगवान शिव को अपना ईष्ट आराध्य मानते हैं। पण्डित बद्री दत्त पाण्डेय की प्रसिद्ध पुस्तक कुमाऊँ और गढ़वाल का इतिहास के अनुसार उप्रेती मूल रूप से पश्चिमी भारत क्षेत्र के महाराष्ट्र राज्य के निवासी थे। जहाँ से वे १२ वीं शताब्दी में इस्लामी आक्रमण के परिणाम स्वरूप उत्तर में हिमालय की ओर पलायन कर गए। वर्तमान उत्तराखण्ड का कुमाऊँ क्षेत्र, सन् १८१४ ईस्वी में ब्रिटिश इण्डिया और गोरखा साम्राज्य के मध्य हुई सुगौली संधि से पूर्व तक गोरखाओं के नियन्त्रण में था, जब वे हिन्दू राज्य के शाही संरक्षण में अल्मोड़ा ज़िले से अन्य ब्राह्मणों के साथ नेपाल की ओर प्रवास कर गए। .

नई!!: कुमाऊँनी लोग और उप्रेती · और देखें »

निवर्तमानआने वाली
अरे! अब हम फेसबुक पर हैं! »