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कीर्तन

सूची कीर्तन

हिन्दू धर्म में ईश्वर या देवता की भक्ति के लिये उनके नामों को भांति-भांति रूप में उच्चारना कीर्तन कहलाता है। यह भक्ति के अनेक मार्गों में से एक है। अन्य हैं - श्रवण, स्मरण, अर्चन आदि। .

15 संबंधों: नारायण वामन तिलक, परमार्थ निकेतन, भारतीय लोकसंगीत, मय़मनसिंह, महेन्द्रनाथ मंदिर , सिवान , बिहार, रामनाम, राग काफ़ी, सात्यकी बनर्जी, संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द, स्वामी विवेकानन्द, हरिहर नातू, जम्मू, घासीराम कोतवाल (नाटक), गुरशरण कौर, अजॉय चक्रबर्ती

नारायण वामन तिलक

नारायण वामन तिलक (6 दिसम्बर, 1861 – 1919) एक मराठी कवि थे। नारायण वामन तिलक का जन्म ६ दिसंबर १८६१ में महाराष्ट्र राज्य के जिला रत्नगिरि के करज गाँव में हुआ था। इनके पिता का स्वभाव कठोर था तथा माता कोमल स्वभाव की थीं। इसलिए सब बच्चे माँ को ही अधिक मानते थे। माता का धर्म से तथा कविता से प्रेम था, अत: तिलक भी बाल्यावस्था से ही धार्मिक प्रवृत्ति के तथा कविता लिखने के शौकीन थे। माता का देहांत ११ वर्ष की अवस्था में हो जाने के कारण उनके जीवन में बड़ा परिवर्तन आया। उन्होंने निश्चय किया कि अब वे अपने पिता से अलग रहकर संसार में अपने लिए स्वयं ही मार्ग ढूँढ़ेगे। वे नासिक चले गए और वहाँ एक युवक के घर में शरण पाई। नासिक में उनकी भेंट प्रसिद्ध विद्वान् गणेश शास्त्री लेले से हुई। उन्होंने नारायण तिलक को संस्कृत की नि:शुल्क शिक्षा दी। एक हाई स्कूल के प्रिंसिपल ने उन्हें कक्षा में नि:शुल्क बैठने की अनुमति दी। इस प्रकार उन्होंने अंग्रेजी का अध्ययन आरंभ किया। इसी समय उनके पिता ने शेष चार बच्चों को भी नासिक भेज दिया कि वे नारायण के साथ रहें। उनको स्कूल छोड़कर जीविका की तलाश में इधर उधर भटकना पड़ा। फिर भी उन्होंने अपना अध्ययन नहीं छोड़ा। कुछ कठिनाई के उपरांत एक स्वजातीय लड़की के साथ उनका विवाह हो गया। वे बहुत समय तक किसी एक वातावरण में न रह सके क्योंकि सत्य की खोज में उनकी तीव्र प्रतिभा बराबर उन्हें नवीन क्षेत्रों की ओर ढकेल रही थी। अपनी युवती पत्नी को उसके मायके में छोड़कर वे महाराष्ट्र का कोना-कोना छानते हुए दूर निकल जाते थे। वे कीर्तन करते, पुराण पढ़ते और व्याख्यान दिया करते थे। धार्मिक क्षेत्रों में वे बड़े उत्साह के साथ सत्य की खोज करते थे। किशोरावस्था में ही जातिवाद से घृणा कने लगे थे। उनकी प्रबल इच्छा थी कि वे बेड़ियाँ जो भारत माँ को जकड़े हुए हैं, तोड़ दी जाएँ। वे मूर्तिपूजा तथा जातिवाद रूपी दीवारों को गिरा देना चाहते थे। उनकी भेंट नागपुर के एक धनी नागरिक अप्पा साहब से हुई जिन्होंने वैदिक तथा अन्य धर्मग्रंथों का संग्रह करने में काफी रकम खर्च की थी। नारायण वामन तिलक ने इन संस्कृत की रचनाओं का मराठी भाषा में अनुवाद किया। एक दिन तिलक नागपुर से राजनाँदगाँव राजा के पास नौकरी करने जा रहे थे कि रेलगाड़ी में उनकी भेंट एक अंग्रेज मिशनरी से हुई जिसने उनको बाइबिल की प्रतिलिपि पढ़ने को दी। अरुचि होने के बावजूद उन्होंने इसे पढ़ने की प्रतिज्ञा की। महीनों तक बाइबिल का अध्ययन करने के बाद मसीही धर्म की सत्यता का उनमें मन में विश्वास हो गया। उन्होंने अमरीकी-मराठी मिशन के पादरी जे.इ. ऐबट साहब से १० फरवरी, १८९५ ई. को बंबई में बप्तिस्मा ले लिया। मनुष्य के नाते नारायण वामन तिलक ने अपने साथियों से जाति, धर्म और कुल का भेदभाव रखे बिना प्रेम किया। किसी विद्वान् ने उनसे प्रश्न किया कि 'प्रभु की सेवा क्या है?' तिलक जी ने उत्तर दिया कि 'जनसेवा ही प्रभु की सेवा के बराबर है। अपने हित को बिसार दो और दूसरों के हित को अपना हित समझो।' भारतीय होने के नाते वे महान् देशभक्त थे। उनमें ऐसी ज्वलंत देशभक्ति विद्यमान थी जिसका अनुभव उनके संपर्क में आकर कोई भी व्यक्ति कर सकता था। वे कहा करते थे कि जब तक मनुष्य देशभक्त न हो, वह यीशु मसीह का सच्चा भक्त नहीं हो सकता। संपूर्ण महाराष्ट्र के नगरों तथा गाँवों में मसीही जनता उनके बनाए हुए गानों को समय समय पर गाया करती है। उनकी मृत्यु १२ जून, १९४० ई. में महाबलेश्वर में हुई। श्रेणी:मराठी कवि.

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परमार्थ निकेतन

परमार्थ निकेतन गांगा नदी की तरफ से परमार्थ निकेतन का दृष्य परमार्थ निकेतन भारत के ऋषिकेश में स्थित एक आश्रम है। यह हिमालय की गोद में गंगा के किनारे स्थित है। इसकी स्थापना 1942 में सन्त सुकदेवानन्द जी महाराज (1901–1965) ने की थी। सन् 1986 स्वामी चिदानन्द सरस्वती इसके अध्यक्ष एवं आध्यात्मिक मुखिया हैं। परमार्थ आश्रम ऋषिकेश का सबसे बड़ा आश्रम है। इसमें १००० से भी अधिक कक्ष हैं। आश्रम में प्रतिदिन प्रभात की सामूहिक पूजा, योग एवं ध्यान, सत्संग, व्याख्यान, कीर्तन, सूर्यास्त के समय गंगा-आरती आदि होते हैं। इसके अलावा प्राकृतिक चिकित्सा, आयुर्वेद चिकित्सा एवं आयुर्वेद प्रशिक्षण आदि भी दिए जाते हैं। आश्रम में भगवान शिव की १४ फुट ऊंम्ची प्रतिमा स्थापित है। आश्रम के प्रांगण में 'कल्पवृक्ष' भी है जिसे 'हिमालय वाहिनी' के विजयपाल बघेल ने रोपा था। .

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भारतीय लोकसंगीत

भारतीय लोकसंगीत भी भारतीय संस्कृति की भांति अत्यन्त विविधतापूर्ण है। पूरे भारत में लोकसंगीत के अनेक रूप विद्यमान हैं, जैसे भांगड़ा, लावणी, डंडिया, राजस्थानी आदि। .

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मय़मनसिंह

मय़मनसिंह या मैमेनसिंह (ময়মনসিংহ, मॉय़मोन्-शिङ्हो), आधिकारिक तौर पर शहर के मेमेन्सिंघ की राजधानी है मेमेन्सिंघ विभाजन की बांग्लादेश.

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महेन्द्रनाथ मंदिर , सिवान , बिहार

बिहार राज्य के सीवान जिला से लगभग 35 किमी दूर सिसवन प्रखण्ड के अतिप्रसिद्ध मेंहदार गांव में स्थित भगवान शिव के प्राचीन महेंद्रनाथ मन्दिर का निर्माण नेपाल नरेश महेंद्रवीर विक्रम सहदेव सत्रहवीं शताब्दी में करवाया था और इसका नाम महेंद्रनाथ रखा था। ऐसी मान्यता है कि मेंहदार के शिवलिंग पर जलाभिषेक करने पर नि:संतानों को संतान व चर्म रोगियों को चर्म रोग रोग से निजात मिल जाती है । .

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रामनाम

रामनाम का शाब्दिक अर्थ है - 'राम का नाम'। 'रामनाम' से आशय विष्णु के अवतार राम की भक्ति से है या फिर निर्गुण निरंकार परम ब्रह्म से। हिन्दू धर्म के विभिन्न सम्रदायों में राम के नाम का कीर्तन या जप किया जाता है। "श्रीराम जय राम जय जय राम" एक प्रसिद्ध मंत्र है जिसे पश्चिमी भारत में समर्थ रामदास ने लोकप्रिय बनाया। .

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राग काफ़ी

राग काफ़ी हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत का एक महत्वपूर्ण राग है। यह काफ़ी थाट का प्रमुख राग है। इस राग का लोक संगीत से घनिष्ठ संबंध है इस लिए अनेक लोकगीत जैसे होली, टप्पा दादरा कीर्तन और भजन इस राग में गाए जाते हैं। इस राग की जाति संपूर्ण संपूर्ण है तथा गांधार व निषाद कोमल हैं। पंचम वादी तथा षड़ज संवादी है। इसका गायन समय रात्रि का प्रथम प्रहर है। राग का प्रमुख रस शृंगार है। आरोहः सा, रे, ग॒, म, प, ध, नि॒ सां अवरोहः सां नि॒ ध प म ग॒ रे सा पकड़: रे प म प ग॒ रे, म म पऽ Filmi songs, Sabab; chandan ka palana resham ki dori, Aazaad; Ja ri Jari O kali Badariya,Ahh; Ajare Aba Mera Dil Pukara, Sahajahan(Saigal); Gum Diye Mustakil Kitna Nazuk Hai Dil, श्रेणी:राग.

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सात्यकी बनर्जी

सात्यकी बनर्जी (সাত্যকি ব্যানার্জি) एक भारतीय बंगाली संगीतकार। वे एक एंग्लो बंगाली बैंड पारापर का एक हिस्सा है जो कि कोलकाता और लंदन का एक मशहूर बैंड है। सात्यकी दो-तारा और सरोद जैसे उपकरणों को भलिभान्ति और निपुन्ता से बजा लेते हैं तथा दोनों शास्त्रीय और लोक पर अपने प्रदर्शन देते हैं। उन्होने अपना ये झान स्व् पंडित दीपक चौधरी से सीखा है और पंडित तेजेन्द्र नारायण मजूमदार के तहत अब साथ सरोद का अध्ययन करते हैं। सात्यकी शास्त्रीय संगीत और लोक संगीत के शानदार गयक हैं और वे लोक संगीतकारों अभ्यास भि करते रहते हैं। सात्यकी एक बहु प्रतिभा वाले व्यक्ति हैं जिन्होंने ओउद और रेबाब अपने आप सीखा और दक्षता से बजा भी लेते हैं। इसके अतिरिक्त वे बंगाली रहस्यमय कविता का गयन् बौल और कीर्तन परंपराओं में करते हैं। .

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संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द

हिन्दी भाषी क्षेत्र में कतिपय संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द प्रचलित हैं। जैसे- सप्तऋषि, सप्तसिन्धु, पंच पीर, द्वादश वन, सत्ताईस नक्षत्र आदि। इनका प्रयोग भाषा में भी होता है। इन शब्दों के गूढ़ अर्थ जानना बहुत जरूरी हो जाता है। इनमें अनेक शब्द ऐसे हैं जिनका सम्बंध भारतीय संस्कृति से है। जब तक इनकी जानकारी नहीं होती तब तक इनके निहितार्थ को नहीं समझा जा सकता। यह लेख अभी निर्माणाधीन हॅ .

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स्वामी विवेकानन्द

स्वामी विवेकानन्द(স্বামী বিবেকানন্দ) (जन्म: १२ जनवरी,१८६३ - मृत्यु: ४ जुलाई,१९०२) वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उनका वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो में सन् १८९३ में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। भारत का आध्यात्मिकता से परिपूर्ण वेदान्त दर्शन अमेरिका और यूरोप के हर एक देश में स्वामी विवेकानन्द की वक्तृता के कारण ही पहुँचा। उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी जो आज भी अपना काम कर रहा है। वे रामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य थे। उन्हें प्रमुख रूप से उनके भाषण की शुरुआत "मेरे अमरीकी भाइयो एवं बहनों" के साथ करने के लिये जाना जाता है। उनके संबोधन के इस प्रथम वाक्य ने सबका दिल जीत लिया था। कलकत्ता के एक कुलीन बंगाली परिवार में जन्मे विवेकानंद आध्यात्मिकता की ओर झुके हुए थे। वे अपने गुरु रामकृष्ण देव से काफी प्रभावित थे जिनसे उन्होंने सीखा कि सारे जीव स्वयं परमात्मा का ही एक अवतार हैं; इसलिए मानव जाति की सेवा द्वारा परमात्मा की भी सेवा की जा सकती है। रामकृष्ण की मृत्यु के बाद विवेकानंद ने बड़े पैमाने पर भारतीय उपमहाद्वीप का दौरा किया और ब्रिटिश भारत में मौजूदा स्थितियों का पहले हाथ ज्ञान हासिल किया। बाद में विश्व धर्म संसद 1893 में भारत का प्रतिनिधित्व करने, संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए कूच की। विवेकानंद के संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैंड और यूरोप में हिंदू दर्शन के सिद्धांतों का प्रसार किया, सैकड़ों सार्वजनिक और निजी व्याख्यानों का आयोजन किया। भारत में, विवेकानंद को एक देशभक्त संत के रूप में माना जाता है और इनके जन्मदिन को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। .

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हरिहर नातू

हरिहर नातू हरिहर नातू महाराष्ट्र के प्रसिद्ध कीर्तनकार हैं। वे नारदीय कीर्तन शैली में कीर्तन करते हैं। श्री नाथू पिछले ३२ वर्षों से कीर्तन कर रहे हैं और बहुत से कीर्तन सम्मेलनों में भाग लिया है। उनके कीर्तन का उद्देश्य भारतीय संस्कृति के अर्थ एवं उसकी महानता का जनता में प्रसार करना है। उनके कीर्तन भिन्न-भिन्न दार्शनिक विषयों पर होते हैं। वे पिछले २५ वर्षों से आकाशवाणी पर भी अपने कार्यक्रम देते रहे हैं। दूरदर्शन पर भी उनके कार्यक्रम हुए हैं। श्री नातू पेशे से बैंककर्मी हैं। .

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जम्मू

जम्मू (جموں, पंजाबी: ਜੰਮੂ), भारत के उत्तरतम राज्य जम्मू एवं कश्मीर में तीन में से एक प्रशासनिक खण्ड है। यह क्षेत्र अपने आप में एक राज्य नहीं वरन जम्मू एवं कश्मीर राज्य का एक भाग है। क्षेत्र के प्रमुख जिलों में डोडा, कठुआ, उधमपुर, राजौरी, रामबन, रियासी, सांबा, किश्तवार एवं पुंछ आते हैं। क्षेत्र की अधिकांश भूमि पहाड़ी या पथरीली है। इसमें ही पीर पंजाल रेंज भी आता है जो कश्मीर घाटी को वृहत हिमालय से पूर्वी जिलों डोडा और किश्तवार में पृथक करता है। यहाम की प्रधान नदी चेनाब (चंद्रभागा) है। जम्मू शहर, जिसे आधिकारिक रूप से जम्मू-तवी भी कहते हैं, इस प्रभाग का सबसे बड़ा नगर है और जम्मू एवं कश्मीर राज्य की शीतकालीन राजधानी भी है। नगर के बीच से तवी नदी निकलती है, जिसके कारण इस नगर को यह आधिकारिक नाम मिला है। जम्मू नगर को "मन्दिरों का शहर" भी कहा जाता है, क्योंकि यहां ढेरों मन्दिर एवं तीर्थ हैं जिनके चमकते शिखर एवं दमकते कलश नगर की क्षितिजरेखा पर सुवर्ण बिन्दुओं जैसे दिखाई देते हैं और एक पवित्र एवं शांतिपूर्ण हिन्दू नगर का वातावरण प्रस्तुत करते हैं। यहां कुछ प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ भी हैं, जैसे वैष्णो देवी, आदि जिनके कारण जम्मू हिन्दू तीर्थ नगरों में गिना जाता है। यहाम की अधिकांश जनसंख्या हिन्दू ही है। हालांकि दूसरे स्थान पर यहां सिख धर्म ही आता है। वृहत अवसंरचना के कारण जम्मू इस राज्य का प्रमुख आर्थिक केन्द्र बनकर उभरा है। .

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घासीराम कोतवाल (नाटक)

घासीराम कोतवाल विजय तेंदुलकर द्वारा लिखित मराठी नाटक है। यह ब्राह्मणों के गढ़ पूना में रोजगार की तलाश में गए एक हिंदी भाषी ब्राह्मण घासीराम के त्रासदी की कहानी है। ब्राह्मणों से अपमानित घासीराम मराठा पेशवा नाना फड़नबीस से अपनी बेटी के विवाह का सौदा करता है और पूना की कोतवाली हासिल कर उन ब्राह्मणों से बदला लेता है। किंतु नाना उसकी बेटी की हत्या कर देता है। घासीराम चाहकर भी इसका बदला नहीं ले पाता। उल्टे नाना उसकी हत्या करवा देता है। इस नाटक के मूल मराठी स्वरूप का पहली बार प्रदर्शन 16 दिसंबर, 1972 को पूना में ‘प्रोग्रेसिव ड्रामाटिक एसोसिएशन’ द्वारा भरत नाट्य मन्दिर में हुआ। निर्देशक थे डॉ॰ जब्बार पटेल। .

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गुरशरण कौर

गुरशरण कौर गुरशरण कौर भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की पत्नी हैं। गुरशरण का जन्म सरदार छत्तर सिंह कोहली, और सरदारनी भागवंती कौर के घर सन 1937 में जालंधर में हुआ था। इनके पिता सरदार छत्तर सिंह कोहली बर्मा शैल में एक कर्मचारी थे। इनकी प्राथमिक शिक्षा गुरु नानक कन्या पाठशाला में हुई इसके बाद इन्होने पटियाला के सरकारी महिला कॉलेज से और इसके बाद खालसा कॉलेज अमृतसर से डिग्री प्राप्त की। गुरशरण कौर का विवाह डॉ॰ मनमोहन सिंह से 1958 में अमृतसर में हुआ। दिल्ली के सिख समुदाय में गुरशरण कौर को कीर्तन करने के लिए जाना जाता है। सरदार मनमोहन सिंह को जब विश्व बैंक की एक नौकरी के सिलसिले में अमेरिका जाना पड़ा तो यह उनके साथ गयीं पर इससे पहले इन्होने ऑल इंडिया रेडियो पर कई बार कीर्तन और गाने गाये थे। इनकी तीन पुत्रियाँ हैं- उपिन्दर सिंह, दमनदीप कौर और अमृत सिंह। तीनो ही पुत्रियाँ अपने अपने क्षेत्र में काफी सफल हैं। श्रेणी:जालंधर के लोग श्रेणी:पंजाब के लोग.

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अजॉय चक्रबर्ती

पण्डित अजॉय चक्रबर्ती (जन्म: २५ दिसम्बर १९५२) एक प्रतिष्ठित भारतीय हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीतकार, गीतकार, गायक और गुरु हैं। उन्हें हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीतकारी के विशिष्ठ व्यक्तित्वों में गिना जाता है। पटियाला कसूर घराना उनकी विशेष दक्षता है, तथा वे मूलतः उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली साहब और उस्ताद बरकत अली खान की गायकी का प्रतिनिधित्व करता हैं। तथा हिन्दुस्तानी शास्त्रीय परम्परा के अन्य घराने, जैसे इंदौर, दिल्ली, जयपुर, ग्वालियर, आगरा, किराना, रामपुर तथा दक्षिण भारतीय कर्नाटिक संगीत की शैलियों का भी इनकी गायिकी पर प्रभाव पड़ता है। .

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निवर्तमानआने वाली
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