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कालाकांकर (रियासत)

सूची कालाकांकर (रियासत)

कालाकांकर अवध का एक रियासत था। वर्तमान में यह उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिला में स्थित हैं। .

सामग्री की तालिका

  1. 6 संबंधों: दिनेश सिंह (राजनीतिज्ञ), बृजेश सिंह, राय होममल्ल, राजा अवधेश सिंह, हिन्दोस्थान, कुंवर सुरेश सिंह

दिनेश सिंह (राजनीतिज्ञ)

राजा दिनेश सिंह (19 जुलाई 1925 – 30 नवम्बर 1995) भारत के भूतपूर्व केन्द्रीय विदेश मंत्री थे। वे उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिला की जानी मानी कालाकांकर राजघराने से ताल्लुक रखते थे। राजा अवधेश सिंह इनके पिता व राजकुमारी रत्ना सिंह इनकी पुती हैं। .

देखें कालाकांकर (रियासत) और दिनेश सिंह (राजनीतिज्ञ)

बृजेश सिंह

कुंवर बृजेश सिंह (म्रत्यु- ३१ अक्टूबर १९६६) कालाकांकर राजघराने से भारतीय कम्युनिस्ट नेता थे। वे भारत के भूतपूर्व विदेश मंत्री राजा दिनेश सिंह के चाचा थे। रूस के तानाशाह स्टालिन की बेटी स्वेतलाना एलिल्युयेवा और कालाकांकर के राजकुमार ब्रजेश सिंह के प्रेम प्रकरण ६० के दशक का चर्चित और विवादित मुद्दा रहा। अपनी बेटी स्वेतलाना एलिल्युयेवा को गोद में उठाये जोसेफ स्तालिन स्वेतलाना रूसी तानाशाह जोसेफ स्तालिन की सबसे छोटी बेटी थी और शायद स्तालिन की सबसे प्रिय संतान भी। बृजेश सिंह भारतीय कम्युनिस्ट नेता थे और इलाज करवाने रूस गए थे। बृजेश सिंह कालाकांकर के राजघराने से थे और उनके भतीजे दिनेश सिंह केंद्र सरकार में मंत्री रहे थे। बृजेश सिंह काफी पढ़े-लिखे, नफीस और सौम्य व्यक्ति थे और उनसे स्वेतलाना का प्रेम संबंध हो गया। लेकिन सोवियत सरकार ने उन्हें शादी की अनुमति नहीं दी। बृजेश सिंह की मृत्यु १९६७ में मास्को में हो गई और उनका शव लेकर स्वेतलाना भारत आईं। नई दिल्ली में वह सोवियत अधिकारियों और जासूसों को चकमा देकर अमेरिकी दूतावास पहुंच गईं। उन्होंने अमेरिका में राजनीतिक शरण मांगी और बाद में अमेरिका और इंग्लैंड में रहीं। यह शीत युद्ध के चरम का वह दौर था और तब स्तालिन की बेटी का अमेरिका से शरण मांगना और सोवियत व्यवस्था को नकार देना बहुत बड़ी खबर थी। भारत में यह संवेदनशील मुद्दा इसलिए था कि स्वेतलाना ने भारत आकर यह किया था और तब भारत के सोवियत संघ और अमेरिका दोनों से अच्छे रिश्ते थे। भारत पूरी तरह सोवियत कैंप में नहीं गया था, लेकिन भारतीय विदेश नीति का झुकाव सोवियत संघ की ओर था। अमेरिका भी इसे तूल नहीं देना चाहता था, क्योंकि तब अमेरिका-रूस संबंधों में थोड़ी बेहतरी आने लगी थी। ऐसे में स्वेतलाना को पहले स्विट्जरलैंड भेजा गया और वहां से कुछ समय बाद वह अमेरिका गईं। यह कहानी इस बात का भी प्रमाण है कि राजनीति और विचारधारा के झगड़े किसी की व्यक्तिगत जिंदगी को कितना प्रभावित करते हैं। बृजेश और स्वेतलाना के मामले में यह इसलिए भी महत्वपूर्ण था, क्योंकि वह २०वीं शताब्दी के सबसे विवादास्पद व्यक्तित्वों में से एक की संतान थी। तानाशाह स्टालिन की बेटी स्वेतलाना ने कालाकांकर के राजकुमार ब्रजेश सिंह से रिश्तों की पींगें बढ़ाई थीं, तब भूचाल उठ खड़ा हुआ था। भारत और सोवियत संघ की दोस्ती शुरुआती दौर में थी और उसके तन्तुओं को अभी मजबूत होना बाकी था। पर सियासत अपनी जगह, प्यार अपनी जगह। दोनों ने जिंदगी के अंतिम समय तक प्रेम की रीति को निभाया। ब्रजेश सिंह की मृत्यु के बाद स्वेतलाना उनकी अस्थियों को लेकर भारत आई थीं। उन्हें मालूम था कि हम हिन्दुस्तानियों की सबसे बड़ी इच्छा गंगा की गोद में विलीन हो जाना ही होती है। बाद में अप्रैल १९६७ में एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने कहा था कि मैं ब्रजेश सिंह की पत्नी हूँ। .

देखें कालाकांकर (रियासत) और बृजेश सिंह

राय होममल्ल

राय होममल्ल या 'राजा होममल्ल कालाकांकर राजवंश के संस्थापक थे। गोरखपुर का मझौली गांव इस राजवंश का मूल स्थान रहा है। वहां से चलकर मिर्जापुर के कान्तित परगना से होते हुए इस वंश के राय होममल्ल ने मानिकपुर से उत्तर बडग़ौ नामक स्थान पर अपना महल बनवाया था। वहीं उनका ११९३ में राज्याभिषेक हुआ। .

देखें कालाकांकर (रियासत) और राय होममल्ल

राजा अवधेश सिंह

राजा अवधेश सिंह कालाकांकर रियासत के राजा थे। कुंवर सुरेश सिंह इनके छोटे भाई थेे। .

देखें कालाकांकर (रियासत) और राजा अवधेश सिंह

हिन्दोस्थान

हिन्दोस्थान १९ वी सदी में कालाकांकर रियासत से प्रकाशित होने वाला एक दैनिक समाचार पत्र था। कालाकांकर नरेश राजा रामपाल सिंह ने नवंबर, १८५८ ई.

देखें कालाकांकर (रियासत) और हिन्दोस्थान

कुंवर सुरेश सिंह

कुंवर सुरेश सिंह अवध की एक एक जाने माने कालाकांकर राजघराने से ताल्लुक रखते थे। कालाकांकर नरेश राजा अवधेश सिंह के छोटे भाई थे। वे एक साहित्य और कला प्रेमी भी थ। वे सुमित्रानंदन पंत और हरिवंश राय बच्चन जैसे बड़े कवियों के निकटस्थ रहे। इन्ही के आग्रह पर कवि सुमित्रानंदन पंत जी कालाकांकर आकर बस गए थे, जिसकी निशानी 'नक्षत्र' (सुमित्रानंदन पन्त की कुटी) आज भी कालाकांकर में मौजूद हैं। कुंवर सुरेश जी "पन्त जी और कालाकांकर" एवं "यादों के झरोखे" नामक पुस्तके भी लिखी हैं। सन्‌ १९३८ ई.

देखें कालाकांकर (रियासत) और कुंवर सुरेश सिंह