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कांजी

सूची कांजी

कांजी उत्तर भारत का वसंत ऋतु का सर्वाधिक लोकप्रिय पेय है। यह एक किण्वित पेय है जो प्राय: गाजर (लाल या काली) और चुकन्दर से बनाया जाता है। यह स्वाद में चटपटा होता है और पेट के लिए स्वास्थ्यवर्धक समझा जाता है। यह उत्तर भारत में होली के अवसर पर बनाया जाने वाला एक विशेष व्यंजन है। कुछ लोग इसमें दाल के बड़े डालकर भी बनाते हैं। गाजर की कांजी बहुत ही स्वादिष्ट और पाचक होती है। यह खाने से पहले भूख को बढ़ा देती है। इसका उपयोग गर्मी और सर्दी दोनों मौसम में कर सकते हैं। कांजी कई रुपों में पी जाती है पर बनाने का ढंग एक सा ही है। इसका पानी तैयार करने के लिए पानी के अतिरिक्त राई, नमक और लाल मिर्च की आवश्यकता होती है। इसके अलावा आधा किलो धुली और छिली हुई काली या लाल गाजर के टुकड़े चाहिए होते हैं। इसको बनाने के लिए पानी को उबाल कर ठंडा कर लिया जाता है और एक बड़े मुँह के बर्तन में रखा जाता है। राई के दानों को सूखा पीस कर इसमें मिला दिया जाता है। स्वाद के लिए नमक और मिर्च भी मिलाए जाते हैं। फिर उसमें गाजर को छीलकर उसके टुकड़े काट कर डाल दिया जाता है। बर्तन का मुंह किसी महीन कपड़े से बंद करके उसे चार पाँच दिन के लिए धूप में रख दिया जाता है जिससे इस मिश्रण में हल्का खमीर आ जाता है। गाजर की कांजी का निकट दृश्य-राई के तैरते हुए टुकड़े देखेंइसका स्वाद हल्का खट्टा हो जाता है और गाजर नर्म हो जाती है। कांजी का तैयार होना बनना तब माना जाता है, जब उसका पानी बहुत ही स्वादिष्ट खट्टा हो जाये। इसके बन जाने के बाद उसे ठंडक (प्रशीतन) में रख सकते हैं, जिससे वह और अधिक खट्टी नहीं होगी। इसके बाद लगभग १५ दिनों तक यह चलेगी। गाजर की जगह चुकंदर, मूली या बड़े भी डाले जाते हैं, या लाल गाजर की कांजी में धुली मूँग की दाल के मगोड़े (पकौड़े) डालकर भी खाए जाते हैं, जिन्हें कांजी के बड़े/मगौड़े कहा जाता है। मानव शरीर में अच्छे और बुरे दोनो तरह के जीवाणु होते हैं। कांजी तथा अन्य किण्वित खाद्य पदार्थ शरीर में अच्छे जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि करते हैं। इससे पाचन शक्ति में लाभ होता है और साथ ही रोगों से लड़नें की क्षमता प्राप्त होती है। चुकन्दर की कांजी से यकृत को साफ रखनें में मदद मिलती है। १० ग्राम सौंफ का रस निकाल कर काँजी में मिलाकर पीने से गठिया यानी घुटनों का दर्द कम होता है। सुबह, शाम कांजी पीना अति लाभदायक बताया गया है। .

10 संबंधों: भारत के अभयारण्य, मांगा, लस्सी, शिज़ूओका, सन गोकू (ड्रैगन बॉल), हिरागाना, होली, जापानी लेखन पद्धति, कराटे, काताकाना

भारत के अभयारण्य

भारत में 500 से अधिक प्राणी अभयारण्य हैं, जिन्हें वन्य जीवन अभयारण्य (IUCN श्रेणी IV सुरक्षित क्षेत्र) कहा जाता है। इनमें से 28 बाघ अभयारण्य बाघ परियोजना द्वारा संचालित हैं, जो बाघ-संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण हैं। कुछ वन्य अभयारण्यों को पक्षी-अभयारण्य कहा जाता रहा है, (जैसे केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान) जब तक कि उन्हें राष्ट्रीय उद्यान का दर्ज़ा नहीं मिल गया। कई राष्ट्रीय उद्यान पहले वन्य जीवन अभयारण्य ही थे। कुछ वन्य जीवन अभयारण्य संरक्षण हेतु राष्ट्रीय महत्व रखते हैं, अपनी कुछ मुख्य प्राणी प्रजातियों के कारण। अतः उन्हें राष्ट्रीय वन्य जीवन अभयारण्य कहा जाता है, जैसे.

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मांगा

सीज़नल पैसर्सबाई (शिकी नो युकिकाई) से "मांगा" के लिए कांजी, 1798, सैंटो क्योडेन और किटाओ शिगेमासा द्वारा जापानी भाषा में मांगा (कांजी: 漫画; हीरागाना: まんが; काटाकना: マンガ) (या) कॉमिक्स और मुद्रित कार्टून्स (जिसे कभी कभी कोमिकू भी कहा जाता है) से मिलकर बनता है और 19 वीं शताब्दी के अंत में जापान में विकसित शैली के अनुरूप है। अपने आधुनिक रूप में, मांगा द्वितीय विश्व युद्ध के बाद शीघ्र ही अप्रचलित हो गया, लेकिन पूर्व जापानी कला में उनका एक लंबा, जटिल पूर्व इतिहास है। जापान में सभी उम्र के लोग मांगा पढ़ते हैं। शैली में विषयों की एक व्यापक रेंज को शामिल किया गया है: साहसिक-कार्य, रोमांस, खेल-कूद और खेल, ऐतिहासिक नाटक, हास्य, विज्ञानं की कल्पित कथाएं और फंतासी, रहस्य, डरावना, कामुकता और और अन्य विषयों में व्यापार/वाणिज्य.

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लस्सी

लस्सी एक पारंपरिक दक्षिण एशियाई पेय है जो खासतौर पर उत्तर एवं पश्चिम भारत तथा पाकिस्तान में काफी लोकप्रिय है। इसे दही को मथ कर एवं पानी मिलाकर बनाया जाता है तथा इसमें ऐच्छिक रूप से तरह तरह के मसाले एवं चीनी या नमक डालकर तैयार किया जाता है। लस्सी एवं छाछ का जिक्र बहुत से पुराने मुगलपुस्तकों में आता है। पारंपरिक लससी में बहुधा लोग भुना हुआ जीरा भी स्वाद के लिए मिलाते हैं। पंजाब की लस्सी में अक्सर लस्सी तैयार करने के बाद ऊपर से मलाई की एक परत डाली जाती है। लस्सी को गर्मी के मौसम में फ्रिज में ठंढा करके या बर्फ डालकर पिया जाता है जिसे अत्यंत स्फूर्ति एवं ताजगीदायक माना गया है। बहुधा बदहजमी जैसे रोगों के लिए लस्सी का प्रयोग लोकोपचार के रूप में किया जाता है। .

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शिज़ूओका

शिज़ूओका (静岡市; Shizuoka; जापानी) जापान की शिज़ूओका प्रांत की राजधानी हैं, और आबादी और क्षेत्र के अनुसार प्रान्त का दूसरा सबसे बड़ा शहर हैं। यह प्रागैतिहासिक काल से आबाद हैं। शहर का नाम दो कांजी लिपि शब्दो, 静 शिज़ू, जिसका अर्थ है "स्थिर" या "शांत"; और 岡 ओका, जिसका अर्थ है "पहाड़ी" से मिलकर बना हैं।Room, Adrian.

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सन गोकू (ड्रैगन बॉल)

यह एक काल्पनिक चरित्र है और अकीरा तोरियामा द्वारा रचित ड्रैगन बॉल फ्रेंचाइजी का मुख्य नायक है। वह सबसे पहले माँगा अध्याय में सामने आया जो साप्ताहिक शोनेन जंप पत्रिका में 3 दिसम्बर 1984 को पहली बार प्रकाशित हुआ। यह सामान्यतः सन वुकोंग पर आधारित है, जो पश्चिम की यात्रा में एक केंद्रीय पात्र है। हालांकि, तोरियामा ने इसे अधिक वास्तविक रूप देने के लिए इसकी कुछ विशेषताओं को बदल दिया। गोकू को एक अजीबोगरीब, बंदर की पूँछ वाले लड़के के रूप में पेश किया गया था जो मार्शल आर्ट जानता है और अलौकिक शक्ति रखता है। जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है यह एक ब्रह्मांडीय काल्पनिक समुदाय, सैयांस के रूप में सामने आता है, जिसे काल्पनिक दुनिया में सबसे शक्तिशाली योद्धा कहा जाता है। गोकू ने अधिकाँश एपिसोड, फिल्मों और विशिष्ट एनिमी सीरीज ड्रैगन बॉल, ड्रैगन बॉल जेड और ड्रैगन बॉल जी.टी. के साथ-साथ अनेकों स्पिन-ऑफ वीडियो गेम्स में भूमिका निभाई है। ड्रैगन बॉल फ्रेंचाइजी के अतिरिक्त, गोकू तोरियामा की सेल्फ-पैरोडीसीरीजनेको माजिन जेड में कैमिओ पात्र रहा है। वह अन्य पैरोडीज का भी विषय रहा है और विभिन्न आयोजनों एवं अमेरिकी पॉप-अप संस्कृति में सामने आया है। .

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हिरागाना

हिराकाना या हिरागाना जापानी भाषा में प्रयुक्त तीन प्रमुख लिपियों में से एक है। अन्य दो हैं - काताकाना और कांजी, यद्यपि यूरोपीय शब्दों के लिए रोमाजी का भी प्रयोग होता है। हिरागाना शुद्ध जापानी शब्दों के लिए इस्तेमाल होता है जबकि अन्य चीनी शब्दों के चीनी यथावत या जापानीकृत उच्चारण लिखने के लिए होता है। श्रेणी: जापानी भाषा.

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होली

होली (Holi) वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण भारतीय और नेपाली लोगों का त्यौहार है। यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। रंगों का त्यौहार कहा जाने वाला यह पर्व पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है। यह प्रमुखता से भारत तथा नेपाल में मनाया जाता है। यह त्यौहार कई अन्य देशों जिनमें अल्पसंख्यक हिन्दू लोग रहते हैं वहाँ भी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। पहले दिन को होलिका जलायी जाती है, जिसे होलिका दहन भी कहते हैं। दूसरे दिन, जिसे प्रमुखतः धुलेंडी व धुरड्डी, धुरखेल या धूलिवंदन इसके अन्य नाम हैं, लोग एक दूसरे पर रंग, अबीर-गुलाल इत्यादि फेंकते हैं, ढोल बजा कर होली के गीत गाये जाते हैं और घर-घर जा कर लोगों को रंग लगाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि होली के दिन लोग पुरानी कटुता को भूल कर गले मिलते हैं और फिर से दोस्त बन जाते हैं। एक दूसरे को रंगने और गाने-बजाने का दौर दोपहर तक चलता है। इसके बाद स्नान कर के विश्राम करने के बाद नए कपड़े पहन कर शाम को लोग एक दूसरे के घर मिलने जाते हैं, गले मिलते हैं और मिठाइयाँ खिलाते हैं। राग-रंग का यह लोकप्रिय पर्व वसंत का संदेशवाहक भी है। राग अर्थात संगीत और रंग तो इसके प्रमुख अंग हैं ही पर इनको उत्कर्ष तक पहुँचाने वाली प्रकृति भी इस समय रंग-बिरंगे यौवन के साथ अपनी चरम अवस्था पर होती है। फाल्गुन माह में मनाए जाने के कारण इसे फाल्गुनी भी कहते हैं। होली का त्यौहार वसंत पंचमी से ही आरंभ हो जाता है। उसी दिन पहली बार गुलाल उड़ाया जाता है। इस दिन से फाग और धमार का गाना प्रारंभ हो जाता है। खेतों में सरसों खिल उठती है। बाग-बगीचों में फूलों की आकर्षक छटा छा जाती है। पेड़-पौधे, पशु-पक्षी और मनुष्य सब उल्लास से परिपूर्ण हो जाते हैं। खेतों में गेहूँ की बालियाँ इठलाने लगती हैं। बच्चे-बूढ़े सभी व्यक्ति सब कुछ संकोच और रूढ़ियाँ भूलकर ढोलक-झाँझ-मंजीरों की धुन के साथ नृत्य-संगीत व रंगों में डूब जाते हैं। चारों तरफ़ रंगों की फुहार फूट पड़ती है। गुझिया होली का प्रमुख पकवान है जो कि मावा (खोया) और मैदा से बनती है और मेवाओं से युक्त होती है इस दिन कांजी के बड़े खाने व खिलाने का भी रिवाज है। नए कपड़े पहन कर होली की शाम को लोग एक दूसरे के घर होली मिलने जाते है जहाँ उनका स्वागत गुझिया,नमकीन व ठंडाई से किया जाता है। होली के दिन आम्र मंजरी तथा चंदन को मिलाकर खाने का बड़ा माहात्म्य है। .

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जापानी लेखन पद्धति

आधुनिक जापानी लेखन पद्धति तीन लिपियों का मिश्रण है-.

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कराटे

() यूक्यू द्वीप समूह में विकसित एक युद्धकला है जो अब ओकिनावा, जापान में है। इसका विकास देशी युद्ध पद्धति से हुआ था जिसे चीनी केम्पो कहते हैंओकिनवान कराटे का इतिहास कराटे एक प्रहार कला है जिसमें मुक्केबाजी, पाद प्रहार और घुटना प्रहार और मुक्त-हस्त प्रौद्योगिकी जैसे नाइफ-हैंड्स (कराटे चोप) के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। कुछ शैलियो में ग्रेपलिंग, लॉक्स, अटकाव, थ्रो और महत्वपूर्ण बिंदुओं पर प्रहार करना सिखाया जाता है अध्याय 9 में मोटोबु-यू और बुजेइकन, दो टी शैली के साथ ग्रेपलिंग और महत्वपूर्ण बिंदुओं में प्रहार तकनीक को बताया गया है। पृष्ठ 165, सेइटोकु हिगा: "एक प्रहार को निष्प्रभाव करने के लिए महत्वपूर्ण बिंदुओं पर दबाव, कलाई पर पकड़, ग्रेपलिंग, प्रहार और पाद प्रहार का प्रयोग एक सौम्य तरीका है।" एक कराटे अभ्यस्त कर्मी को कहा जाता है। 19 वीं शताब्दी में जापान द्वारा यूक्यु साम्राज्य को मिलाने से पहले यहां कराटे को विकसित किया गया था। जापानी और यूक्यूवांश के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान के समय के दौरान 20वीं शताब्दी की प्रारम्भ में इसे जापान की मुख्य भूमि में शामिल किया गया था। 1922 में जापान के शिक्षा मंत्रालय ने गिचिन फुनाकोशी को कराटे के प्रदर्शन के लिए टोक्यो आमंत्रित किया था। 1924 में केइयो विश्वविद्यालय ने पहला विश्वविद्यालय कराटे क्लब की स्थापना की और 1932 तक प्रमुख जापानी विश्वविद्यालयों में कराटे क्लब खुल चुके थे। जापानी सैन्यवाद के इस बढ़ते युग में, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ओकिनावा संयुक्त राज्य सैन्य का एक महत्वपूर्ण स्थान बन गया और वहां तैनात सैनिकों के बीच कराटे लोकप्रिय बन गया। 1960 और 1970 के दशक की फिल्मों के चलते मार्शल आर्ट की लोकप्रियता में काफी इजाफा हुआ और कराटे शब्द का प्रयोग सभी प्रहार-आधारित ओरिएंटल मार्शल आर्ट का उल्लेख करने के लिए एक सामान्य तरीके की शुरूआत की गई। उसके बाद दुनिया भर में कराटे स्कूल खुलने लगे थे और कम रूचि के साथ-साथ जो आर्ट का गहन अध्ययन करना चाहते थे, दोनों की आवश्यकताओं को ध्यान में रख कर स्कूलों को खोला गया। शोटोकोन डोजो के मुख्य प्रशिक्षक शिगेरु एगामी ने कहा कि "विदेशी देशों में कराटे के अनुयायी कराटे का अनुसरण केवल लड़ाई के तकनीक के लिए करते हैं।..फिल्म और टेलीविजन...कराटे को एक रहस्यमयी युद्ध शैली के रूप में दर्शाया गया है जिसमें बताया गया है कि उसमें एक घूंसा भी चोट या मौत का कारण बनने में सक्षम होता है।..

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काताकाना

काताकाना जापानी भाषा को लिखने के लिए प्रयुक्त लिपि है। इसमें प्रायः उन शब्दों को लिखा जाता है जो चीनी (या विदेशी) मूल के हैं लेकिन जापान में उनका उच्चारण या अर्थ अलग हैं। जापानी लिखने के लिए हिराकाना और कांजी का भी इस्तेमाल होता है। श्रेणी:जापानी भाषा.

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