सामग्री की तालिका
398 संबंधों: चन्द्रशेखर वाजपेयी, चाखि खुण्टिआ, चिनुआ अचेबे, चिन्तामणि त्रिपाठी(रीतिग्रंथकार कवि), चक्रव्यूह- कविता संग्रह, चोका, एडगर ऍलन पो, एमिली डिकिंसन, एर्राप्रेगड्डा, एल्फ्रीडे येलिनेक, एलेन गिन्सबर्ग, झवेरचन्द मेघाणी, ठाकुर (कवि), डेविड शुल्मन, तसलीमा नसरीन, ताकाहामा कियोशी, तिक्कन, तुलसीदास, त्यागराज, त्रिदिब मित्रा, तू फू, तेनाली रामा, तेजेंद्र शर्मा, तेजी बच्चन, तोरु दत्त, तोषनिधि, तोषमणि, थॉमस हार्डी, दत्त (रीतिग्रंथकार कवि), दयाराम, दलपतराम, दामोदर स्वरूप 'विद्रोही', दिक्-काल, दिङ्नाग, दुष्यंत कुमार, द्विजेन्द्रलाल राय, देबी राय, धर्मराज थापा, नन्दराम, नर्मद, नरेन्द्र सिंह नेगी, नरेश अग्रवाल, नानालाल, नानक सिंह, नारायण वामन तिलक, नागार्जुन, नाकाचुका इप्पेकिरो, निदा फ़ाज़ली, निर्झर प्रतापगढ़ी, निकोलाई करमज़िन, ... सूचकांक विस्तार (348 अधिक) »
चन्द्रशेखर वाजपेयी
चंद्रशेखर वाजपेयी (संवत् 1855, पौष शुक्ल 10 -- संवत् 1932 विक्रमी) 19वीं शताब्दी के हिन्दी कवि हैं। इनका जन्म सं.
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चाखि खुण्टिआ
चन्दन हजुरी या चाखि खुण्टिआ (१८२७ - १८७०), पुरी के जगन्नाथ मंदिर के पुजारी तथा कवि थे जिन्होने १८५७ के भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था। उनका जन्म जगन्नाथ पुरी में ही हुआ था। उनका शारीरिक बल असाधारण था। श्रेणी:भारतीय स्वतंत्रता सेनानी श्रेणी:भारतीय स्वतंत्रता का प्रथम संग्राम.
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चिनुआ अचेबे
चिनुआ अचेबे (१६ नवम्बर १९३० - २१ मार्च २०१३, बोस्टन) एक नाइजीरियाई उपन्यासकार, कवि, प्राध्यापक एवं आलोचक थे। .
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चिन्तामणि त्रिपाठी(रीतिग्रंथकार कवि)
टिकमापुर, जन्म स्थान चिंतामणि त्रिपाठी हिन्दी के रीतिकाल के कवि हैं। ये यमुना के समीपवर्ती गाँव टिकमापुर या भूषण के अनुसार त्रिविक्रमपुर (जिला कानपुर) के निवासी काश्यप गोत्रीय कान्यकुब्ज त्रिपाठी ब्राह्मण थे। इनका जन्मकाल संo १६६६ विo और रचनाकाल संo १७०० विo माना जाता है। ये रतिनाथ अथवा रत्नाकर त्रिपाठी के पुत्र (भूषण के 'शिवभूषण' की विभिन्न हस्तलिखित प्रतियों में इनके पिता के उक्त दो नामों का उल्लेख मिलता है) और कविवर भूषण, मतिराम तथा जटाशंकर (नीलकंठ) के ज्येष्ठ भ्राता थे। चिंतामणि कभी-कभी अपनी रचनाओं में अपना नाम 'मनिलाल' और 'लालमनि' भी रखते थे। इनका संबंध शाहजहाँ, चित्रकूटाधिपति रुद्रशाह सोलंकी, जैनुद्दीन अहमद और नागपुर के भोंसला राजा मकरदशाह के राजदरबारों से था, जहाँ से इन्हें पर्याप्त सम्मान और प्रतिष्ठा मिली। नागपुर में उस समय कोई मकरदशाह संज्ञक भोंसला राजा नहीं था, इसलिये मकरंदशाह नामधारी इस कवि के आश्रयदाता संभवत: शिवाजी के पितामह ही थे, जो 'मालो जी' नाम से प्रख्यात हैं और भूषण ने जिनका स्मरण 'माल मकरद' कहकर किया है। .
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चक्रव्यूह- कविता संग्रह
कुँवर नारायण का पहला कविता संग्रह चक्रव्यूह है, इस संग्रह से कवि का रंगप्रवेश भले ही हो रहा हो, वे प्रशंसनीय धीरता और खासी कुशलता से मंच पर अवतरित होते हैं। इन कविताओं के माध्यम से कवि के मानस और व्यक्तित्व की जो झलक दिखती है, वह पाठक में और भी जानने की इच्छा जगाती है। स्वागं भरने, मुद्रा ग्रहण करने से इनकार करते हुए कुँवर नारायण सचमुच आधुनिक हैं और सचमुच ही कवि हैं। उन्होंने बहुत कुछ जमा दिया है, वह किताबों से हो या मनुष्यों और स्मृतियों की दुनिया में रहने से। और उन्होंने इस सबको अपने मानस में उतरकर अपने व्यक्तित्व का हिस्सा बन जाने दिया है। उनके विषय, जो वह कहते हैं और जैसे वह कहते हैं, सब उनके एकदम अपने हैं। विचार की अन्तर्वस्तु काफी ही नहीं, कई बार काफी से कुछ ज्यादा होती दिखती है- लेकिन है वह उनकी अपनी, निजी। अगर अन्तिम काव्यात्मक अभिव्यक्ति में कई विभिन्न स्त्रोतों का योगदान रहा है, तो यह योगदान उनके ग्रहणशील, बेहतर संवेदनशील मानस में हुआ है, सीधे उनकी कविता में नहीं।.
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चोका
चोका जापानी कविता की एक शैली है। ये लम्बी कविताएँ हैं। जापान के सबसे पहले कविता-संकलन मान्योशू में २६२ चोका कविताएँ संकलित हैं, जिनमें सबसे छोटी कविता ९ पंक्तियों की है। चोका कविताओं में ५ और ७ वर्णों की आवृत्ति मिलती है। अन्तिम पंक्तियों में प्रायः ५, ७, ५, ७, ७ वर्ण होते हैं। चोका पहली से तेरहवीं शताब्दी में जापानी काव्य विधा में महाकाव्य की कथाकथन शैली रही है। मूलत; चोका गाए जाते रहे हैं। इनका वाचन उच्च स्वर में किया जाता रहा है। यह प्राय: वर्णनात्मक रहा है। इसको एक ही कवि रचता है। .
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एडगर ऍलन पो
एडगर ऍलन पो (अंग्रेजी:Edgar Allan Poe, १९ जनवरी १८०९ – ७ अक्टूबर १८४९) अमरीकन रोमांसवाद के कवि, लेखक, संपादक और आलोचक थे। ये अपनी रहस्यमयी और भयावह कहानियों के लिए प्रसिद्ध हैं। जासूसी कहानियों की शुरुआत इन्होंने ही की और वैज्ञानिक कथाओं की उभरती शैली को भी बढ़ावा दिया। ये पहले विख्यात अमरीकन लेखक थे जिन्होंने लेखन से ही आजीविका कमाने का प्रयास किया, लेकिन इन्हें सदा गरीबी और मुश्किलों का सामना करना पड़ा। इनका जन्म बोस्टन, मैसाचूसिट्स में हुआ था। ये छोटी ही उम्र में अनाथ हो गए, जब इनके पिता परिवार को अकेला छोड़कर चले गए और माँ भी कुछ समय बाद ही चल बसीं। इनका पालन-पोषण रिचमण्ड, वर्जीनिया के जॉन और फ्रांसिस ऍलन ने किया, लेकिन इन्होंने कभी एडगर को औपचारिक रूप से गोद नहीं लिया। इन्होंने वर्जीनिया विश्वविद्यालय में एक छमाही पढ़ाई की, लेकिन पैसों की कमी के कारण पढ़ाई छोड़नी पड़ी। फिर ये सेना में भर्ती हो गए, लेकिन वेस्ट पाइंट पर कैडेट की परीक्षा पास नहीं कर पाए। ये ऍलन परिवार से अलग हो गए और लेखक जीवन शुरु किया। १८२७ में इनकी पहली रचना प्रकाशित हुई, तैमरलेन ऐण्ड अदर पोयम्स (अंग्रेजी: Tamerlane and Other Poems, तैमूर लंग और अन्य कविताएँ), जिसमें उनके नाम की जगह "ए बोस्टनियन" (एक बोस्टन-निवासी) लिखा था। पो ने फिर गद्य की तरफ ध्यान दिया और अगले कई साल साहित्यिक पत्रिकाओं में आलोचक की तरह काम किया। ये अपनी निराली आलोचना शैली के लिए बहुत प्रसिद्ध हुए। इस दौरान ये बाल्टीमोर, फिलाडेल्फिया और न्यू यार्क के बीच काफी घूमे। १८३५ में बाल्टीमोर में इनका विवाह दूर की रिश्तेदार १३ साल की वर्जीनिया क्लेम से हुआ, लेकिन ये कुछ ही वर्ष बाद तपेदिक के कारण चल बसीं। जनवरी १८४५ में पो ने द रेवन (अंग्रेजी: The Raven, काला कौवा) नाम की कविता प्रकाशित की, जो काफी प्रसिद्ध हुई। इन्होंने अपनी खुद की पत्रिका "द पेन्न" (अंग्रेजी: The Penn) प्रकाशित करने की तैयारी शुरु की, लेकिन इसके प्रकाशित होने से पहले ही इनकी मृत्यु हो गई। इनकी मृत्यु बाल्टीमोर में ४० साल की आयु में हुई, लेकिन कारण अभी तक नहीं पता चल पाया है। इतिहासकारों ने शराब, मस्तिष्क की सूजन, हैजा, नशीली दवाएँ, हृदय रोग इत्यादि से लेकर रेबीज़, तपेदिक आदि के बारे में अटकलें लगाई हैं। पो की शैली को "गोथिक" कहा जाता है। इन्होंने अपनी रचनाओं में मुख्यतः मृत्यु, मृत्यु के चिह्न, जीवित दफ़नाना, मृत्योपरांत जीवन और शोक इत्यादि विषयों को टटोला है। इसके साथ ही इन्होंने ऑगस्त द्युपिन नाम के जासूस की रचना की, जिसके द्वारा स्थापित जासूसी विधि का बाद में शर्लक होम्स और हरक्यूल प्वारो जैसे जासूसी नायकों ने भी प्रयोग किया। .
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एमिली डिकिंसन
एमिली डिकिंसन (Emily Dickinson; १८३०-१८८६) सुप्रसिद्ध अमेरिकी कवयित्री हैं। एमिली डिकिंसन का जन्म मेसाचुसेट्स के एमहर्स्ट नामक स्थान में हुआ। उनके पिता वकील और एहमर्स्ट कॉलेज के कोषाध्यक्ष थे। एमिली को एकांत प्रिय थी, इसलिए उनकी शिक्षा, सभी सुविधाएँ होते हुए भी, अधिक व्यापक न हो सकी। वह घर छोड़कर कहीं भी जाना पसंद नहीं करती थीं। उनके जीवनकाल में उनकी तीन चार कविताएँ ही प्रकाशित हुई। साहित्यिकों से उनका परिचय बहुत ही कम था। उनका जीवन मानो शून्य में बीता था। उनकी मृत्यु के बाद उनकी कविताओं की पांडुलिपियाँ उनकी बहन को मिलीं। दुर्भाग्यवश कुछ रचनाएँ उन्होंने नष्ट भी कर दीं। शेष १८९० में प्रकाशित हुईं और तत्काल ही उनकी प्रसिद्धि फैल गई। उनकी कविताएँ जीवन, प्रेम, प्रकृति, मृत्यु आदि विषयों पर लिखी गई हैं। उनकी कला परंपरावादियों को चौंकानेवाली है। वे छंद, लय, तुक आदि के प्रयोग में काफी स्वतंत्रता से लिखती थीं। उनकी अनुभूतियाँ बहुत तीखी थीं। उनके एक साहित्यिक मित्र, हिगिंसन लिखते हैं। ये कविताएँ भूमि से जड़ों सहित उखाड़ी हुई लगती हैं। वे इन रचनाओं की तुलना ब्लेक की रहस्यवादी कविताओं से करते हैं। जीवन और प्रकृति के व्यापारों के प्रति इन छंदों में गहरी, सूक्ष्म और मौलिक अंतदृष्टि हमें मिलती है। हिगिंसन लिखते हैं, 'जब कोई विचार कौंधकर हमें चकित कर दे, व्याकरण की सीख देना अशिष्टता लगती है। एमिली डिकिंसन की तुलना एमर्सन से की गई है। वे एमर्सन के रहस्यवादी व्यक्तिवाद से प्रभावित हुई थीं। ऐसा अनुमान किया जाता है कि उनका प्रेम पिता के ईषालु और संदेही स्वभाव के कारण असफल रह गया और इसीलिए वे अधिकाधिक आत्मकेंद्रित होती गईं। उनकी गणना एमर्सन के साथ १९वीं शताब्दी के दो सर्वश्रेष्ठ अमरीकन कवियों में होती है। पाप और पुण्य, जीवन और मृत्यु के प्रश्न उन्हें व्याकुल करते रहते थे। वे प्यूरिटन हठधर्मी से कतराती थीं और इस मत की स्रष्टा की कल्पना अस्वीकार करती थीं। उनकी सुप्रसिद्ध कविता, 'अकेला श्वान', में विक्टोरियन युग के ईश्वर का उपहास है। अपनी रहस्यवादी कविताओं में वे अधिक आस्तिकता प्रकट करती हैं। .
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एर्राप्रेगड्डा
एर्राप्रेगड्डा (तेलुगु: ఎర్రాప్రగడ) एक तेलुगु कवि थे जिन्हे 'प्रबन्ध परमेश्वर' की उपाधि से विभूषित किया गया था। वे राजा प्रोलया वेमा रेड्डी 1325–1353) के दरबारी कवि थे जो रेड्डी राजवंश के संस्थापक थे। वे कवित्रय में से एक हैं। ये 'कवि शंभुदास' के नाम से भी प्रसिद्ध हैं। इन्होंने महाभारत के अरण्यपर्व के अवशिष्ट भाग का अनुवाद किया। इसलिये महाभारत के तीनों रचयिता "कवित्रयमु" के नाम से प्रसिद्ध हैं। एर्राप्रेगड्डा की अन्य कृतियाँ तेलुगु में 'नृसिंहपुराणमु' और 'हरिवंश' आदि हैं। श्रेणी:तेलुगु साहित्यकार.
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एल्फ्रीडे येलिनेक
एल्फ्रीडे येलिनेक जर्मन भाषा की एक नारीवादी ऑस्ट्रियाई लेखिका, कवयित्री एवं नाटककार हैं जिन्हें 2004 में साहित्य के क्षेत्र में नोबल पुरस्कार से नवाज़ा गया था। येलिनेक साहित्य में नोबेल पुरस्कार जीतने वाली दसवीं महिला एवं पहली ऑस्ट्रियाई हैं। इन्हें अपने अर्ध-आत्मकथात्मक उपन्यास द पियानो टीचर के लिए जाना जाता है, जिस पर आधारित 2001 में ऑस्ट्रियाई निर्देशक माइकल हैनेके द्वारा बनाई फ्रांसीसी भाषा फ़िल्म को कांस ग्रैंड ज्यूरी पुरस्कार मिला था। उन्हें 1998 में जॉर्ज बुख्नर पुरस्कार मिला। वे फ्रान्ज़ काफ़्का पुरस्स्कार जीतने वाली चौथी व्यक्ति एवं पहली महिला हैं। येलीनेक का जन्म ऑस्ट्रिया में 20 अक्टूबर 1946 को ऑस्ट्रिया के स्टीरिया प्रांत के मुत्सतुश्लाख शहर में हुआ था। इनके पिता चेक के यहूदी थे एवं माता वियेना से थीं। उन्होंने बचपन में पियानो, ऑर्गन और रिकॉर्डर बजाना सीखा था। इसके पश्चात उन्होंने वियेना कन्ज़र्वेटरी में संगीत रचना सीखी और उसके बाद वियना विश्वविद्यालय में भाषा, थिएटर एवं कला इतिहास की पढ़ाई की। उनके लेखन की शुरुआत 1967 में छपे कविता संग्रह लीसा'स शैटन(लीसा की छाया) से हुई। येलीनेक 1974 से 1991 तक ऑस्ट्रियाई कम्यूनिस्ट पार्टी की सदस्य थीं। .
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एलेन गिन्सबर्ग
इर्विन एलेन गिन्सबर्ग (Irwin Allen Ginsberg; 3 जून 1926 – 5 अप्रैल 1997), अमेरिका के बीटनिक आंदोलन के प्रख्यात कवि हैं। इनके द्वारा लिखित लंबी कविता हाउल (१९५६) को बीट आंदोलन की महाकविता कहा जाता है। इस कविता को पूंजीवाद और नियन्त्रणवाद के खिलाफ अमेरिकी की नयी पीढ़ी की आवाज माना जाता है जिस समय अमेरिकी समाज को साम्यवादी भय ने जकड़ लिया था। प्रकाशित होते ही इसकी हजारों प्रतियां बिक गयीं और गिंसबर्ग रातों रात नयी पीढ़ी के मसीहा बन गये, जिस पीढ़ी को आज बीटनिक पीढ़ी कहा जाता है। आज तक इस काव्यग्रन्थ की लाखों प्रतियां बिक चुकी हैं। गिंसबर्ग द्वारा निवेदित हाउल की वीसीडी, सीडी और डीवीडी भी खूब बिकी हैं और आज तक उनकी यह पुस्तक और डीवीडी बिक रही हैं। अपनी इस कविता के लिये उन्होने एक नयी लेखन प्रणाली अपनायी जो सांस लेने और सांस छोड़ने के समय पर आधारित थी। यद्यपि उनके पिता एक गीतकार थे, पर गिंसबर्ग ने अपने पिता द्वारा दिखाये गये मार्ग पर चलना उचित नहीं समझा क्योंकि उन्हें महसूस हुआ कि अमेरिकी समाज बदल चुका है। गिंसबर्ग की माता नायोमी गिंसबर्ग का मानसिक सन्तुलन ठीक नहीं था और इसका प्रभाव किशोर गिंसबर्ग पर भी रहा। हाउल प्रकाशित होने के बाद उन्होने अपनी मां के याद मे कैडिश नाम की एक लंबी कविता हाउल के ही अनुरूप लिखी थी। ख्याति मिलने के बाद उन्हें बहुत सारे देशों में कविता पढ़ने के लिये आमंत्रित किया गया और वह भारत भी आये। भारत आकर वह दो साल तक यहीं रहे। बनारस, पटना, कोलकाता, चाइबासा आदि जगहों पर इन्होने कई दिन बिताये एवं यह स्थानीय कवियों से काफी घुलमिल गये। वह हिन्दु और बौद्ध साधुओं से भी मिले। अमेरिका लौटने के बाद गिंसबर्ग ने बौद्धधर्म अपना लिया। भारत से लौटने के बाद जो कवितायें इन्होने लिखीं उन पर भारतीय प्रभाव साफ झलकता है, यहां तक की उनकी किताबों-दस्तावेजों में दिये गये प्रतीक चिह्न असल में अकबर के मकबरे में अंकित तीन मछलियों का चित्र है। .
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झवेरचन्द मेघाणी
झवेरचंद मेघाणी (१८९६ - १९४७) गुजराती साहित्यकार तथा पत्रकार थे। गुजराती-लोकसाहित्य के क्षेत्र में मेघाणी का स्थान सर्वोपरि है। वे सफल कवि ही नहीं, उपन्यासकार, कहानीकार, नाटककार, निबंधकार, जीवनीलेखक तथा अनुवादक भी थे। .
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ठाकुर (कवि)
'ठाकुर' नाम के हिंदी में तीन प्रसिद्ध कवि हुए हैं - असनीवाले प्राचीन ठाकुर, असनीवाले दूसरे ठाकुर और तीसरे ठाकुर बुंदेलखंडी। संख्या में तीन होने के कारण ये 'ठाकुरत्रयी' भी कहलाए। .
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डेविड शुल्मन
डेविड शुल्मन, 2008 डेविड डीन शुल्मन (David Dean Shulman; जन्म: 13 जनवरी, 1949) इजराइल के एक भारतविद हैं। वे विश्व के भारतीय भाषाओं के सबसे अग्रणी विद्वानों में से एक हैं। उनके अनुसंधान-क्षेत्र में दक्षिण भारत में धर्म का इतिहास, भारतीय काव्यशास्त्र, तमिल इस्लाम, द्रविड़ भाषाएँ, तथा कर्नाटक संगीत आदि सम्मिलित हैं। पहले वे हिब्रू विश्वविद्यालय, येरुसलम में भारतीय अध्ययन तथा तुलनात्मक धर्म के प्राध्यापक थे। इसके अलावा वे इसी विश्वविद्यालय में भारतीय, इरानी एवम अर्मेनियायी अध्ययन के प्राध्यापक थे।। सम्प्रति वे हिब्रू विश्वविद्यालय में मानवत अध्ययन के रेनी लैंग (Renee Lang) प्राध्यापक हैं। वे १९८८ से इजराइल विज्ञान एवं मानविकी अकादमी के सदस्य हैं। वे हिब्रू के कवि, साहित्यिक आलोचक एवं सांस्कृतिक मानवविज्ञानी हैं। उन्होने २० से अधिक पुस्तकों का लेखन या सहलेखन किया है। in द हिन्दू, Mar 10, 2006 वे शान्ति कार्यकर्ता हैं और 'ता-आयुष' नामक संयुक्त इजराइल-फिलिस्तीनी आन्दोलन के संस्थापक सदस्य हैं। सन २००७ में उन्होने 'डार्क होप: वर्किंग फॉर पीस इन इजरायल ऐण्ड पैलेस्टाइन' नामक पुस्तक की रचना की। वे हिब्रू और अंग्रेजी में द्विभाषी होने के साथ-साथ संस्कृत, हिन्दी, तमिल, तेलुगु के भी विद्वान हैं। इसके अलावा वे ग्रीक, रूसी, फ्रांसीसी, जर्मन, फारसी, अरबी, मलयालम को पढ़ लेते हैं। उनका विवाह ईलीन शुल्मन (Eileen Shulman) से हुआ है। इनके तीन पुत्र हैं। .
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तसलीमा नसरीन
तसलीमा नसरीन (जन्म: २५ अगस्त १९६२) बांग्ला लेखिका एवं भूतपूर्व चिकित्सक हैं जो १९९४ से बांग्लादेश से निर्वासित हैं। १९७० के दशक में एक कवि के रूप में उभरीं तसलीमा १९९० के दशक के आरम्भ में अत्यन्त प्रसिद्ध हो गयीं। वे अपने नारीवादी विचारों से युक्त लेखों तथा उपन्यासों एवं इस्लाम एवं अन्य नारीद्वेषी मजहबों की आलोचना के लिये जानी जाती हैं। बांग्लादेश में उनपर जारी फ़तवे के कारण आजकल वे कोलकाता में निर्वासित जीवन जी रही हैं। हालांकि कोलकाता में मुसलमानों के विरोध के बाद उन्हें कुछ समय के लिये दिल्ली और उसके बाद फिर स्वीडन में भी समय बिताना पड़ा लेकिन इसके बाद जनवरी २०१० में वे भारत लौट आईं। उन्होंने भारत में स्थाई नागरिकता के लिये आवेदन किया है लेकिन भारत सरकार की ओर से उस पर अब तक कोई निर्णय नहीं हो पाया है। यूरोप और अमेरिका में एक दशक से भी अधिक समय रहने के बाद, तस्लीमा 2005 में भारत चले गए, लेकिन 2008 में देश से हटा दिया गया, हालांकि वह दिल्ली में रह रही है, भारत में एक आवासीय परमिट के लिए दीर्घावधि, बहु- 2004 के बाद से प्रवेश या 'एक्स' वीज़ा। उसे स्वीडन की नागरिकता मिली है। स्त्री के स्वाभिमान और अधिकारों के लिए संघर्ष करते हुए तसलीमा नसरीन ने बहुत कुछ खोया। अपना भरापूरा परिवार, दाम्पत्य, नौकरी सब दांव पर लगा दिया। उसकी पराकाष्ठा थी देश निकाला। नसरीन को रियलिटी शो बिग बॉस 8 में भाग लेने के लिए कलर्स (टीवी चैनल) की तरफ से प्रस्ताव दिया गया है। तसलीमा ने इस शो में भाग लेने से मना कर दिया है। .
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ताकाहामा कियोशी
ताकाहामा कियोशी (जन्म: २२ फ़रवरी १८७४- मृत्यु: ८ अप्रैल १९५९) एक जापानी कवि थे। क्योशि इनका उपनाम था। डॉ॰ अंजली देवधर द्वारा हिन्दी मे अनुवादित ताकाहामा कियोशी का एक हाइकु- एक स्त्री एक टब में नहाती हुई एक कौए की चाह बन गई! नेपाली भाषा मे अनुवाद किया गया कियोशी का एक हाइकु कुकुर सुत्यो खुट्टाले शिर च्यापी फूलको घर .
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तिक्कन
महाभारत के अन्तिम भाग का तेलुगु में अनुवाद करने वाले कवि '''तिक्कन सोमयाजी''' तिक्कन्न (तिक्कन सोमयाजी; तेलुगु: తిక్కన సోమయాజి; 1205–1288) एक कवि थे। वे कवित्रयी में से एक थे जिन्होने शताब्दियों में महाभारत का तेलुगु में अनुवाद किया। .
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तुलसीदास
गोस्वामी तुलसीदास (1511 - 1623) हिंदी साहित्य के महान कवि थे। इनका जन्म सोरों शूकरक्षेत्र, वर्तमान में कासगंज (एटा) उत्तर प्रदेश में हुआ था। कुछ विद्वान् आपका जन्म राजापुर जिला बाँदा(वर्तमान में चित्रकूट) में हुआ मानते हैं। इन्हें आदि काव्य रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि का अवतार भी माना जाता है। श्रीरामचरितमानस का कथानक रामायण से लिया गया है। रामचरितमानस लोक ग्रन्थ है और इसे उत्तर भारत में बड़े भक्तिभाव से पढ़ा जाता है। इसके बाद विनय पत्रिका उनका एक अन्य महत्वपूर्ण काव्य है। महाकाव्य श्रीरामचरितमानस को विश्व के १०० सर्वश्रेष्ठ लोकप्रिय काव्यों में ४६वाँ स्थान दिया गया। .
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त्यागराज
त्यागराज (तेलुगु: శ్రీ త్యాగరాజ; तमिल தியாகராஜ சுவாமிகள்; 4 मई, 1767 – 6 जनवरी, 1847) भक्तिमार्गी कवि एवं कर्णाटक संगीत के महान संगीतज्ञ थे। उन्होने समाज एवं साहित्य के साथ-साथ कला को भी समृद्ध किया। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने सैंकड़ों भक्ति गीतों की रचना की जो भगवान राम की स्तुति में थे और उनके सर्वश्रेष्ठ गीत पंचरत्न कृति अक्सर धार्मिक आयोजनों में गाए जाते हैं। .
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त्रिदिब मित्रा
त्रिदिब मित्रा (३१ दिसम्बर १९४०) बांग्ला साहित्य के भुखी पीढी (हंगरी जेनरेशन) आंदोलन के प्रख्यात कवि थे। वह और उनकि पत्नी आलो मित्रा दोनों मिलकर भुखी पीढी आंदोलन के दो पत्रिकायें चलाया करते थे; अंग्रेजी में वेस्ट्पेपर एवम बांग्ला में उन्मार्ग। बचपन में स्कुली परीक्षा के बाद वह एकबार घर से सात महिनें के लिये भाग गये थे। उस दौरान उनहे जो जीवन व्यतीत करना पडा उसका असर उनके और उनके लेखन में दिखायी देते हैं। उनके सम्पादित लघु पत्रिकायों के नाम से ही प्ता चल जाता है कि उनके मनन में क्या प्रभाव रहा होगा। भुखी पीढी अंदोलन में योग देने के पश्चात ही वह यातनामय स्मृति से उभर पाये थे। उनके लेखन में वह क्रोध झलकता है। बांग्ला संस्कृती में एक नयी आयाम का अनुप्रवेश घटाया था त्रिदिब मित्रा ने। श्मशान, कबरगाह, बाजर, रेल-स्टेशन, खालसिटोला के मद्यपों के बिच कविता पढने और ग्रन्थों का उन्मोचन करने का जो सिलसिला भुखी पीढी अंदोलन के बाद शुरु हुये, उस प्रक्रिया के जनक थे त्रिदिब मित्रा और आलो मित्रा। वे दोनों के कविता पठन के कार्ञक्रम में काफि भीड हुया करता था, क्यों कि पहलिबार कविता को ले जाया गया था आम आदमि के समाज में। अनिल करनजय के बनाये पोस्टरों को कोलकाता के दिवारों में वही दोनों बेझिझक चिपकया करते थे। भुखी पीढी ने जो मुखौटा कार्यक्रम शुरु किया था उसको अनजाम भी त्रिदिब और आलो ने दिये। उंचे पद के लोगों के दफतर में वही दोनों मुखौटा पहुंचाया था। जानवर, राक्षस, जोकर इत्यादि के मुखौटा पर लिखा होता था "कृपया अपना मुखौटा उतारे"। यह कार्यक्रम के कारण ही प्रधानत: कोलकाता प्रशासन भुखी पीढी के खिलाफ खफा हो गया था। त्रिदिब देखने मे सुंदर थे एवम इसि कारण उन्हे भुखी पीढी का राजकुमार कहा जाता था। .
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तू फू
तू फू, चीन के तंग राजवंश के महान कवियों में से एक थे। चीन के अन्य लोगों की तरह अं लुशान का उनके जीवन पर अधिक प्रभाव पड़ा था। दू फू के जीवन के आखिरी पंद्रह साल अत्याधिक अशांति से घिरे रहे। .
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तेनाली रामा
तेनाली रामकृष्ण (तेलुगु: తెనాలి రామకృష్ణ) जो विकटकवि (विदूषक) के रूप में जाने जाते थ,आंध्र प्रदेश के एक तेलुगु कवि थे। वे अपनी कुशाग्र बुद्धि और हास्य बोध के कारण प्रसिद्ध हुये। तेनाली विजयनगर साम्राज्य (१५०९-१५२९) के राजा कृष्णदेवराय के दरबार के अष्टदिग्गजों में से एक थे। विजयनगर के राजपुरोहित वयासतीर्थ तथाचार्य रामा से शत्रुता रखते थे। तथाचार्य और उसके शिष्य धनीचार्य और मनीचार्य तेनाली रामा को मुसीबत में फसाने के लिए नई-नई तरकीबें प्रयोग करते थे पर तेनाली रामा उन तरकीबों का हल निकाल लेता था। .
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तेजेंद्र शर्मा
तेजेंद्र शर्मा (जन्म २१ अक्टूबर १९५२) ब्रिटेन में बसे भारतीय मूल के हिंदी कवि लेखक एवं नाटककार है। इनका जन्म 21 अक्टूबर 1952 में पंजाब के जगरांव शहर में हुआ। तेजेन्द्र शर्मा की स्कूली पढ़ाई दिल्ली के अंधा मुग़ल क्षेत्र के सरकारी स्कूल में हुई। दिल्ली विश्वविद्यालय से अंग्रेजी विषय में एम.ए.
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तेजी बच्चन
तेजी बच्चन (12 अगस्त, 1914 – 21 दिसम्बर, 2007) एक सामाजिक कार्यकर्ता, प्रसिद्ध हिन्दी कवि हरिवंश राय बच्चन की पत्नी तथा सुप्रसिद्ध हिन्दी फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन की माँ थीं। .
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तोरु दत्त
तोरु दत्त (তরু দত্ত) (4 मार्च 1856 – 30 अगसत 1877) एक भारतीय कवि थी जो अंग्रेजी और फ्रेंच में लिखती थी। उनका जन्म रामगोपाल दत्त परिवार के पिता गोविंद चंदर दत्त और मां क्षेत्रमौनी से हुआ था। बहन अरु और भाई अबू के बाद तोरू सबसे कम उम्र की थी। रोमेश चन्दर दत्त, लेखक और भारतीय सिविल सेवक, उनके चचेरे भाई थे। उनका परिवार 1862 (तोरु दत्त जब केवल 6 वर्ष की थी) में ईसाई बन गया। .
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तोषनिधि
तोषनिधि हिन्दी के प्रसिद्ध कवि थे। ये फ़र्रूख़ाबाद (उत्तर प्रदेश) जनपद के कम्पिला नगर के निवासी थे। महाकवि तोषनिधि का उपस्थित काल संवत 1798 है। ज्ञातव्य है कि भाषा काव्य के आचार्य महाकवि तोषनिधि ने ‘सुधानिधि’ (सं0-1691) ‘नखशिख’ और ‘विनय शतक’ तीन ग्रंथों की रचना की है। ‘मिश्रबंधु विनोद’ के अनुसार इनके छः ग्रंथों का पता चलता है- ‘कामधेनु’, ‘भैयालाल पचीसी’, ‘कमलापति चालीसा’, ‘दीन व्यंग्यशतक’ और ‘महाभारती छप्पनी’। (माधुरी, नवम्बर-1927, पृ0-584-85) में इनकी सात रचनाओं का उल्लेख है- ‘भारत पंचशिका’ (यही विनोद का ‘महाभारत’ छप्पनी ग्रंथ प्रतीत होता है।) ‘दौलत चन्द्रिका’, ‘राजनीति’, ‘आत्मशिक्षा’, ‘दुर्गापचीसी’ (संभवतः यही भैयालाल पचीसी है), ‘नायिका भेद’ (अपूर्ण) और ‘व्यंग्यशतक’। इनकी शैली सरल, सरस तथा स्वाभाविक है। एक अन्योक्ति देखिए- |location.
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तोषमणि
तोषमणि हिन्दी कवि थे। .
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थॉमस हार्डी
---- थॉमस हार्डी (2 जून 1840 -- 11 जनवरी 1928) प्रकृतिवादी आंदोलन के अंग्रेजी उपन्यासकार और कवि थे।अपने जीवनकाल में वह अपने उपन्यासों के लिए अधिक प्रसिद्ध थे जबकि उन्होंने स्वंय को मुख्य रूप से कवि माना है। हार्डी की अंग्रेजी साहित्य को महत्वपूर्ण देन है। उन्होंने एक छोटे से क्षेत्र का विशेष अध्ययन किया और क्षेत्रीय साहित्य की सृष्टि की। हिन्दी में इस प्रकार के साहित्य को आंचलिक साहित्य कह रहे हैं। उन्होंने मानव जीवन के संबंध में अपने साहित्य में आधारभूत प्रश्न उठाए तथा जो मर्यादा पूर्वकाल में महाकाव्य और दु:खांत नाटक को प्राप्त थी, वह उपन्यास को प्रदान की। वे अनेक पात्रों के स्रष्टा और अद्भुत् कहानीकार थे किंतु इनके पात्रों में सबसे अधिक सशक्त बेसेक्स है। इस पात्र ने काल का प्रवाह उदासीनताभरे नेत्रों से देखा है, जिनमें न्याय और उचित अनुचित की कोई अपेक्षा नहीं। टॉमस हार्डी का जन्म वेसेक्स प्रदेश में हुआ। यह प्रदेश प्राचीन काल में इंग्लैंड के नक्शे पर था, किंतु अब नहीं है। उनका सभी साहित्य वेसेक्स से संबंधित है। उनके उपन्यास 'वेसेक्स के उपन्यास' कहलाते हैं और उनकी कविता 'वेसेक्स की कविता'। .
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दत्त (रीतिग्रंथकार कवि)
दत्त नाम के कई कवि हुए हैं-.
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दयाराम
दयाराम (1777-1853 ई) मध्यकालीन गुजराती भक्ति-काव्य परंपरा के अंतिम महत्वपूर्ण वैष्णव कवि थे। वे गरबी साहित्य रचने के लिए प्रसिद्ध हैं। वे पुष्टिमार्गी कवि थे। उनके अवसान के साथ मध्यकाल और कृष्ण-भक्ति-काव्य दोनों का पर्यवसान हो गया। इस युगपरिवर्तन के चिह्न-कुछ कुछ दयाराम के काव्य में ही लक्षित होते हैं। भक्ति का वह तीव्र भावावेग एवं अनन्य समर्पणमयी निष्ठा जो नरसी और मीरा के काव्य में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होती है उनकी रचनाओं में उस रूप में प्राप्त नहीं होती। उसके स्थान पर मानवीय प्रेम और विलासिता का समावेश हो जाता है यद्यपि बाह्य रूप परंपरागत गोपी-कृष्ण लीलाओं का ही रहता है। इसी संक्रमणकालीन स्थिति को लक्षित करते हुए गुजरात के प्रसिद्ध इतिहासकार-साहित्यकार कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने अपना अभिमत व्यक्त किया कि दयारामनुं भक्तकवियों मां स्थान न थी, प्रणयना अमर कवियोमां छे। यह कथन अत्युक्तिपूर्ण होते हुए भी दयाराम के काव्य की आंतरिक वास्तविकता की ओर स्पष्ट इंगित करता है। .
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दलपतराम
दलपतराम दह्याभाई त्रिवेदी (દલપતરામ ડાહ્યાભાઈ ત્રવાડી) (1820-1898) गुजराती के प्रसिद्ध कवि थे। उनके पुत्र नानालाल दलपतराम कवि भी एक कवि थे। श्रेणी:गुजराती साहित्यकार.
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दामोदर स्वरूप 'विद्रोही'
दामोदर स्वरूप 'विद्रोही' (जन्म:2 अक्टूबर 1928 - मृत्यु: 11 मई 2008) अमर शहीदों की धरती के लिये विख्यात शाहजहाँपुर जनपद के चहेते कवियों में थे। यहाँ के बच्चे-बच्चे की जुबान पर विद्रोही जी का नाम आज भी उतना ही है जितना कि तब था जब वे जीवित थे। विद्रोही की अग्निधर्मा कविताओं ने उन्हें कवि सम्मेलन के अखिल भारतीय मंचों पर स्थापित ही नहीं किया अपितु अपार लोकप्रियता भी प्रदान की। उनका एक मुक्तक तो सर्वाधिक लोकप्रिय हुआ: सम्पूर्ण हिन्दुस्तान में उनकी पहचान वीर रस के सिद्धहस्त कवि के रूप में भले ही हुई हो परन्तु यह भी एक सच्चाई है कि उनके हृदय में एक सुमधुर गीतकार भी छुपा हुआ था। गीत, गजल, मुक्तक और छन्द के विधान पर उनकी जबर्दस्त पकड़ थी। भ्रष्टाचार, शोषण, अत्याचार, छल और प्रवचन के समूल नाश के लिये वे ओजस्वी कविताओं का निरन्तर शंखनाद करते रहे। उन्होंने चीन व पाकिस्तान युद्ध और आपातकाल के दिनों में अपनी आग्नेय कविताओं की मेघ गर्जना से देशवासियों में अदम्य साहस का संचार किया। हिन्दी साहित्य के आकाश में स्वयं को सूर्य-पुत्र घोषित करने वाले यशस्वी वाणी के धनी विद्रोही जी भौतिक रूप से भले ही इस नश्वर संसार को छोड़ गये हों परन्तु अपनी कालजयी कविताओं के लिये उन्हें सदैव याद किया जायेगा। .
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दिक्-काल
दिक्-काल या स्पेस-टाइम (spacetime) की संकल्पना, अल्बर्ट आइंस्टीन द्वारा उनके सापेक्षता के सिद्धांत में दी गई थी| उनके अनुसार तीन दिशाओं की तरह, समय भी एक आयाम है और भौतिकी में इन्हें एक साथ चार आयामों के रूप में देखना चाहिए। उन्होंने कहा कि वास्तव में ब्रह्माण्ड की सभी चीज़ें इस चार-आयामी दिक्-काल में रहती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि कभी-कभी ऐसी परिस्थितियाँ बन जाती हैं जब भिन्न वस्तुओं को इन सभी-आयामों का अनुभव अलग-अलग प्रतीत हो। दिक् (space) और काल (time) का संबध हमारे नित्य व्यवहार में इतना अधिक आता है कि इनके विषय में कुछ अधूरी सी किंतु दृढ़ धारणाएँ हमारे मन में बचपन से ही होना स्वाभाविक है। कवियों ने दिक् और काल की गंभीर, विशाल तथा सुंदर कल्पनाओं का वर्णन किया है। दर्शन में और पाश्चात्य मनोविज्ञान में भी इनके विषय में पुरातन काल से सोच विचार होता आ रहा है। कणाद (३०० ई.
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दिङ्नाग
दिंनाग दिङ्नाग (चीनी भाषा: 域龍, तिब्बती भाषा: ཕྲོགས་ཀྱི་གླང་པོ་; 480-540 ई.) भारतीय दार्शनिक एवं बौद्ध न्याय के संस्थापकों में से एक। प्रमाणसमुच्चय उनकी प्रसिद्ध रचना है। दिङ्नाग संस्कृत के एक प्रसिद्ध कवि थे। वे रामकथा पर आश्रित कुन्दमाला नामक नाटक के रचयिता माने जाते हैं। कुन्दमाला में प्राप्त आन्तरिक प्रमाणों से यह प्रतीत होता है कि कुन्दमाला के रचयिता कवि (दिंनाग) दक्षिण भारत अथवा श्रीलंका के निवासी थे। कुन्दमाला की रचना उत्तररामचरित से पहले हुयी थी। उसमें प्रयुक्त प्राकृत भाषा के आधार पर यह कहा जा सकता है कि कुन्दमाला की रचना पाँचवीं शताब्दी में किसी समय हुयी होगी। .
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दुष्यंत कुमार
दुष्यंत कुमार त्यागी (१९३३-१९७५) एक हिन्दी कवि और ग़ज़लकार थे। दुष्यंत कुमार का जन्म उत्तर प्रदेश में बिजनौर जनपद की तहसील नजीबाबाद के ग्राम राजपुर नवादा में हुआ था। जिस समय दुष्यंत कुमार ने साहित्य की दुनिया में अपने कदम रखे उस समय भोपाल के दो प्रगतिशील शायरों ताज भोपाली तथा क़ैफ़ भोपाली का ग़ज़लों की दुनिया पर राज था। हिन्दी में भी उस समय अज्ञेय तथा गजानन माधव मुक्तिबोध की कठिन कविताओं का बोलबाला था। उस समय आम आदमी के लिए नागार्जुन तथा धूमिल जैसे कुछ कवि ही बच गए थे। इस समय सिर्फ़ ४२ वर्ष के जीवन में दुष्यंत कुमार ने अपार ख्याति अर्जित की। निदा फ़ाज़ली उनके बारे में लिखते हैं "दुष्यंत की नज़र उनके युग की नई पीढ़ी के ग़ुस्से और नाराज़गी से सजी बनी है। यह ग़ुस्सा और नाराज़गी उस अन्याय और राजनीति के कुकर्मो के ख़िलाफ़ नए तेवरों की आवाज़ थी, जो समाज में मध्यवर्गीय झूठेपन की जगह पिछड़े वर्ग की मेहनत और दया की नुमानंदगी करती है। " .
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द्विजेन्द्रलाल राय
द्विजेन्द्रलाल राय द्विजेन्द्रलाल राय ((19 जुलाई 1863–17 मई 1913) बांग्ला के विशिष्ट नाटककार, कवि तथा संगीतकार थे। वे अपने पौराणिक एवं ऐतिहासिक राष्ट्रवादी नाटकों एवं ५०० से अधिक 'द्विजेन्द्रगीति' नामक गीतों के लिए प्रसिद्ध हैं। नाटक में कला तथा निस्पृह सौंदर्य की दृष्टि से, न कि भावुकता की दृष्टि से, वह कई बार रवींद्रनाथ से आगे निकल गए, ऐसा बहुत से समालोचक मानते हैं। रवींद्र के समसामयिक होते हुए भी उनकी शैली संपूर्ण रूप से रवींद्र के प्रभाव से मुक्त थी। उनका विख्यात गान "धनधान्ये पुष्पे भरा", "बंग आमार! जननी आमार! धात्री आमार! आमार देश" इत्यादि आज भी उतने ही लोकप्रिय हैं। उनके नाटक चार श्रेणियों में विन्यस्त हैं - प्रहसन, काव्यनाट्य, ऐतिहासिक नाटक और सामाजिक नाटक। उनके द्वारा रचित काव्यग्रन्थों में 'आर्यगाथा' (प्रथम और द्वितीय भाग) तथा 'मन्द्र' विख्यात हैं। द्बिजेन्द्रलाल राय के प्रसिद्ध नाटकों में उल्लेखनीय हैं- एकघरे, कल्कि-अबतार, बिरह, सीता, ताराबाई, दुर्गादास, राणा प्रतापसिंह, मेबार-पतन, नूरजाहान, साजाहान, चन्द्रगुप्त, सिंहल-बिजय़ इत्यादि। .
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देबी राय
देबी राय (४-८-१९४०) (দেবী রায়)बांग्ला भाषा के प्रख्यात कवि एवम अनुवादक हैं। भुखी पीढी (हंगरि जेनरेशन) के प्रतिष्ठातायों में वह प्रधान हैं एवम आन्दोलनके बुलेटिन के सम्पादक रहे हैं। उन्होनें तिस से भी ज्यादा कवितापुस्तके लिखें। बांग्ला आधुनिक कविता के वह प्रथम निम्नबर्ग के कवि हैं। .
देखें कवि और देबी राय
धर्मराज थापा
जनकवि केशरी धर्मराज थापा (१९२४ - २०१४) नेपाली कवि, गीतकार एवम् गायक थे। हरियो डाँडा माथि हह माले हह, नेपालीले माया मार्यो वरिलै, आदि के लिए प्रसिद्ध है। उनका विवाह १५ सालके उमरमें सावित्री से हुआ था जो १३ साल की थी। धर्मराज नेपाल एकाडमी के लाइफटाइम सदस्य हैं। .
देखें कवि और धर्मराज थापा
नन्दराम
नंदराम (लग. सं. 1894 - सं. 1944) हिन्दी कवि थे। नन्दराम जीवनकाल के विषय में निश्चित रूप से कुछ कहा नहीं जा सकता। वे सालेहनगर ग्राम (लखनऊ) के निवासी कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे। इन्हें "शिवसिंहसरोज" में उल्लिखित नंदराम से भिन्न माना जाता है। इनका सर्वप्रसिद्ध रसग्रंथ "शृंगारदर्पण" है जो पद्माकरकृत "जगद्विनोद" की पद्धति पर लिखा गया है। यह ग्रंथ भारतजीवन यंत्रालय से प्रकाशित हुआ था। इसमें दोहा, सवैया, घनाक्षरी और कभी-कभी छप्पय आदि छंदों का प्रयोग किया गया है। भाव और भाषा दोनों की सहज, स्वाभाविक और सुकुमार अभिव्यक्ति ही कवि के काव्य की बड़ी विशेषता है, यद्यपि रीतिकाव्य में पाई जानेवाली अलंकारिकता, चमत्कार और कलात्मक आग्रह के प्रति मोह भी उसमें कम नहीं है। कवि ने प्राय: मधुर और निर्दोष भाषा का प्रयोग किया है। श्रेणी:हिन्दी साहित्यकार.
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नर्मद
नर्मदाशंकर लालशंकर दवे (गुजराती: નર્મદાશંકર લાલશંકર દવે) (24 अगस्त 1833 – 26 फ़रवरी 1886), गुजराती के कवि विद्वान एवं महान वक्ता थे। वे नर्मद के नाम से प्रसिद्ध हैं। उन्होने ही १८८० के दशक में सबसे पहले हिन्दी को भारत की राष्ट्रभाषा बनाने का विचार रखा था। गुजराती साहित्य के आधुनिक युग का समारंभ कवि नर्मदाशंकर 'नर्मद' (१८३३-१८८६ ई.) से होता है। वे युगप्रवर्त्तक साहित्यकार थे। जिस प्रकार हिंदी साहित्य में आधुनिक काल के आरंभिक अंश का 'भारतेंदु युग' संज्ञा दी जाती है, उसी प्रकार गुजराती में नवीन चेतना के प्रथम कालखंड को 'नर्मद युग' कहा जाता है। हरिश्चंद्र की तरह ही उनकी प्रतिभा भी सर्वतोमुखी थी। उन्होंने गुजराती साहित्य को गद्य, पद्य सभी दिशाओं में समृद्धि प्रदान की, किंतु काव्य के क्षेत्र में उनका स्थान विशेष है। लगभग सभ प्रचलित विषयों पर उन्होंने काव्यरचना की। महाकाव्य और महाछंदों के स्वप्नदर्शी कवि नर्मद का व्यक्तित्व गुजराती साहित्य में अद्वितीय है। गुजराती के प्रख्यात साहित्यकार मुंशी ने उन्हें 'अर्वाचीनों में आद्य' कहा है। .
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नरेन्द्र सिंह नेगी
नरेन्द्र सिंह नेगी जी (English:Narendra Singh Negi) उत्तराखण्ड के गढवाल हिस्से के मशहूर लोक गीतकारों में से एक है। कहा जाता है कि अगर आप उत्तराखण्ड और वहाँ के लोग, समाज, जीवनशैली, संस्कृति, राजनीति, आदि के बारे में जानना चाहते हो तो, या तो आप किसी महान-विद्वान की पुस्तक पढ लो या फिर नरेन्द्र सिंह नेगी जी के गाने/गीत सुन लो। उनकी श्री नेगी नामक संस्था उत्तराखण्ड कलाकारो के लिए एक लोकप्रिय संस्थाओं मे से एक है। नेगी जी सिर्फ एक मनोरंजन-कार ही नहीं बल्कि एक कलाकार, संगीतकार और कवि है जो कि अपने परिवेश को लेकर काफी भावुक व संवेदनशील है। .
देखें कवि और नरेन्द्र सिंह नेगी
नरेश अग्रवाल
डॉ नरेश अग्रवाल (जन्म: ०१ सितंबर १९६०) एक भारतीय कवि एवं लेखक हैं। वे जमशेदपुर, झारखण्ड से हैं, लेकिन झुनझुनू, राजस्थान इनका पैत्रिक स्थान हैं। वे द्वैमासिक पत्रिका 'कुरजाँ' के सह-सम्पादक और ‘मरुधर’ रंगीन द्विमासिक साहित्यिक पत्रिका के सम्पादक हैं। .
देखें कवि और नरेश अग्रवाल
नानालाल
सुप्रसिद्ध कवीश्वर दलपतराय के पुत्र नानालाल (१८७७-१९४६ ई.) आधुनिक गुजराती साहित्य में सांस्कृतिक चेतना और भावसमृद्धि की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं। जब तक उनका नाम रहेगा उनके द्वारा प्रवर्तित अपद्यागद्य या 'डोलनशैली' की सत्ता भी बनी रहेगी। गुजराती काव्य के क्षेत्र में उन्होंने अपने पिता से भी अधिक ख्याति प्राप्त की। पिता पुत्र का ऐसा यशस्वी कवियुग्म साहित्य के इतिहास में प्राय: दुर्लभ है। उन्होंने देश-विदेश के बहुसंख्यक नाटकों और महाकाव्यों का अनुशीलन करके अपने काव्य को गौरवान्वित किया। अपनी भाषा के अतिरिक्त वे संस्कृत, फारसी और अंगरेजी पर भी विशेष अधिकार रखते थे। .
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नानक सिंह
नानक सिंह (4 जुलाई, 1897 - 28 दिसम्बर, 1971) पंजाबी भाषा के कवि, गीतकार एवं उपन्यासकार थे। उनका मूल नाम हंस राज था। भारत की स्वतन्त्रता के पक्ष में लिखने के कारण अंग्रेजी सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। उन्होने कई उपन्यासों की रचना की। .
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नारायण वामन तिलक
नारायण वामन तिलक (6 दिसम्बर, 1861 – 1919) एक मराठी कवि थे। नारायण वामन तिलक का जन्म ६ दिसंबर १८६१ में महाराष्ट्र राज्य के जिला रत्नगिरि के करज गाँव में हुआ था। इनके पिता का स्वभाव कठोर था तथा माता कोमल स्वभाव की थीं। इसलिए सब बच्चे माँ को ही अधिक मानते थे। माता का धर्म से तथा कविता से प्रेम था, अत: तिलक भी बाल्यावस्था से ही धार्मिक प्रवृत्ति के तथा कविता लिखने के शौकीन थे। माता का देहांत ११ वर्ष की अवस्था में हो जाने के कारण उनके जीवन में बड़ा परिवर्तन आया। उन्होंने निश्चय किया कि अब वे अपने पिता से अलग रहकर संसार में अपने लिए स्वयं ही मार्ग ढूँढ़ेगे। वे नासिक चले गए और वहाँ एक युवक के घर में शरण पाई। नासिक में उनकी भेंट प्रसिद्ध विद्वान् गणेश शास्त्री लेले से हुई। उन्होंने नारायण तिलक को संस्कृत की नि:शुल्क शिक्षा दी। एक हाई स्कूल के प्रिंसिपल ने उन्हें कक्षा में नि:शुल्क बैठने की अनुमति दी। इस प्रकार उन्होंने अंग्रेजी का अध्ययन आरंभ किया। इसी समय उनके पिता ने शेष चार बच्चों को भी नासिक भेज दिया कि वे नारायण के साथ रहें। उनको स्कूल छोड़कर जीविका की तलाश में इधर उधर भटकना पड़ा। फिर भी उन्होंने अपना अध्ययन नहीं छोड़ा। कुछ कठिनाई के उपरांत एक स्वजातीय लड़की के साथ उनका विवाह हो गया। वे बहुत समय तक किसी एक वातावरण में न रह सके क्योंकि सत्य की खोज में उनकी तीव्र प्रतिभा बराबर उन्हें नवीन क्षेत्रों की ओर ढकेल रही थी। अपनी युवती पत्नी को उसके मायके में छोड़कर वे महाराष्ट्र का कोना-कोना छानते हुए दूर निकल जाते थे। वे कीर्तन करते, पुराण पढ़ते और व्याख्यान दिया करते थे। धार्मिक क्षेत्रों में वे बड़े उत्साह के साथ सत्य की खोज करते थे। किशोरावस्था में ही जातिवाद से घृणा कने लगे थे। उनकी प्रबल इच्छा थी कि वे बेड़ियाँ जो भारत माँ को जकड़े हुए हैं, तोड़ दी जाएँ। वे मूर्तिपूजा तथा जातिवाद रूपी दीवारों को गिरा देना चाहते थे। उनकी भेंट नागपुर के एक धनी नागरिक अप्पा साहब से हुई जिन्होंने वैदिक तथा अन्य धर्मग्रंथों का संग्रह करने में काफी रकम खर्च की थी। नारायण वामन तिलक ने इन संस्कृत की रचनाओं का मराठी भाषा में अनुवाद किया। एक दिन तिलक नागपुर से राजनाँदगाँव राजा के पास नौकरी करने जा रहे थे कि रेलगाड़ी में उनकी भेंट एक अंग्रेज मिशनरी से हुई जिसने उनको बाइबिल की प्रतिलिपि पढ़ने को दी। अरुचि होने के बावजूद उन्होंने इसे पढ़ने की प्रतिज्ञा की। महीनों तक बाइबिल का अध्ययन करने के बाद मसीही धर्म की सत्यता का उनमें मन में विश्वास हो गया। उन्होंने अमरीकी-मराठी मिशन के पादरी जे.इ.
देखें कवि और नारायण वामन तिलक
नागार्जुन
नागार्जुन (३० जून १९११-५ नवंबर १९९८) हिन्दी और मैथिली के अप्रतिम लेखक और कवि थे। अनेक भाषाओं के ज्ञाता तथा प्रगतिशील विचारधारा के साहित्यकार नागार्जुन ने हिन्दी के अतिरिक्त मैथिली संस्कृत एवं बाङ्ला में मौलिक रचनाएँ भी कीं तथा संस्कृत, मैथिली एवं बाङ्ला से अनुवाद कार्य भी किया। साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित नागार्जुन ने मैथिली में यात्री उपनाम से लिखा तथा यह उपनाम उनके मूल नाम वैद्यनाथ मिश्र के साथ मिलकर एकमेक हो गया। .
देखें कवि और नागार्जुन
नाकाचुका इप्पेकिरो
नाकाचुका इप्पेकिरो (१८८७-१९४६) एक जापानी कवि एवं हाइकुकार थे। नेपाली मे अनुवादित इप्पेकिरो की एक हाइकु मेरो आकृति ऐनाबाहिर भयो फूलको अघि .
देखें कवि और नाकाचुका इप्पेकिरो
निदा फ़ाज़ली
मुक़्तदा हसन निदा फ़ाज़ली या मात्र निदा फ़ाज़ली (ندا فاضلی.) हिन्दी और उर्दू के मशहूर शायर थे इनका निधन ०८ फ़रवरी २०१६ को मुम्बई में निधन हो गया। .
देखें कवि और निदा फ़ाज़ली
निर्झर प्रतापगढ़ी
निर्झर प्रतापगढ़ी (जन्म: १९६०) अवधी के प्रसिद्द हास्य कवि व पुरातत्वविद हैं। वें उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जनपद से हैं। इनका वास्तविक नाम राजेश पांडे हैं। वें देश के प्रथम ग्रामीण पुरातत्व संग्रहालय अर्थात अजगरा संग्रहालय के संस्थापक हैं। .
देखें कवि और निर्झर प्रतापगढ़ी
निकोलाई करमज़िन
निकोलाई करमज़िन निकोलाई करमज़िन (Nikolay Mikhailovich Karamzin; रूसी Никола́й Миха́йлович Карамзи́н; IPA:; 12 दिसम्बर 1766 – 3 जून 1826) रूस का लेखक, कवि, इतिहासकार और समालोचक था। 'रूसी राज्य का इतिहास' नामक १२ भागों में रूस का राष्ट्रीय इतिहास उसकी अमर कृति है। .
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नवगोपाल मित्र
नवगोपाल मित्र (1840–1894) भारतीय नाटककार, कवि, निबन्धकार तथा देशभक्त थे। हिन्दू राष्ट्रीयता के संस्थापकों में उनका महत्वपूर्ण स्थान है। ऋषि राजनारायण बसु आदि के साथ मिलकर उन्होने हिन्दू मेले की स्थापना की थी। उन्होने नेशनल प्रेस, नेशनल पेपर, नेशनल सोसायटी, नेशनल थिएटर, नेशनल जिम्नेजियम (राष्ट्रीय व्यायामशाला), नेशनल सर्कस आदि की स्थापना की जिनसे उनका नाम ही 'नेशनल मित्र' पड़ गया। .
देखें कवि और नवगोपाल मित्र
नून मीम राशिद
नजर मुहम्मद राशिद (उर्दू: نذرِ مُحَمَّد راشِد), (अगस्त 1910 – 9 अक्तूबर 1975) नून मीम राशीद (उर्दू: ن۔ م۔ راشد) के नाम से विख्यात आधुनिक उर्दू शायरी के एक प्रभावशाली पाकिस्तानी कवि थे। जिन्होंने उर्दू शायरी को छंद और बहर के पारंपरिक बंधनों से आज़ाद करने का बड़ा काम किया। उन्होने सिर्फ शिल्प की दृष्टि से ही उर्दू कविता को आज़ाद नहीं किया बल्कि उर्दू काव्य में उन भावों और संवेदनाओं को भी दाखिला दिलाया, जो इससे पहले असंभव माना जाता था। .
देखें कवि और नून मीम राशिद
नूर अंतर्राष्ट्रीय माइक्रोफिल्म केन्द्र
नूर अंतर्राष्ट्रीय माइक्रोफिल्म केन्द्र, इस्लामिक गणराज्य ईरान नई दिल्ली, के कल्चर हाउस में स्थित है। नूर अंतर्राष्ट्रीय माइक्रोफिल्म केन्द्र पुरानी पाण्डुलिपि की मरम्मत, उनकी माइक्रोफिल्म व तस्वीर तैयार करना व मुद्रित पृष्ठों को प्रकाशित करना, जैसे कार्यो में लिप्त रहा है। मेहदी ख्वाजा पीरी द्वारा किये गए प्रयासों के परिणाम स्वरूप 1985 में इस सेंटर को स्थापित किया गया था। केन्द्र की शैक्षिक व सांस्कृतिक गतिविधियों की शुरुआत अल्लामा क़ाज़ी नूरुल्लाह शुस्तरी की पुण्यतिथि (बरसी) के साथ हुई। वह अपने समय के विधिवेत्ता होने के साथ-साथ एक विद्वान, मोहद्दिस, धर्मशास्त्री, कवि व साहित्यिक व्यक्ति भी थे। उन्हें शहीद-ए-सालिस से भी जाना जाता है। इस महान व्यक्ति की याद में नूर अंतर्राष्ट्रीय माइक्रोफिल्म केन्द्र का नाम रखा गया। .
देखें कवि और नूर अंतर्राष्ट्रीय माइक्रोफिल्म केन्द्र
नेदीम
नेदीम (1681? – 1730) अठारहवीं शताब्दी का एक प्रसिद्ध तुर्की कवि थे। इसका मूल नाम 'अहमद' था और उपनाम 'नेदीम'। जीवन के अंतिम दिनों में इसके पोषक सदरेआजम इब्राहीम पाश ने इसको अने द्वारा स्थापित पुस्तकालय का प्रबंधक नियुक्त किया था। अब वह प्राचीन शैली के कवियों में सबसे ऊँचा तुर्की कवि माना जाता है। नेदीम का जन्म कुस्तुंतुनिया, जिसे अब इस्तांबुल कहते हैं में हुआ था। यहीं उसने शिक्षा प्राप्त की। शिक्षा प्राप्ति के बाद इसने अध्यापन का कार्य ग्रहण किया और नगर के प्रतिष्ठित शिक्षा संस्थानों में अध्यापन किया। नेदीम को कविता से बचपन से ही लगाव था; लेकिन तुर्की के उस्मानी सुलतान अहमद सोयम (१७०३-१७३०) के राज्यकाल में प्रसिद्धि इसे प्राप्त हुई। इसका दीवान, कसीदा, गजल और गीत से युक्त है। इसकी रचनाओं में वर्णनात्मकता के स्थान पर आत्मनिष्ठ रोमानी दिखाई देती है, जो दूसरे तुर्की कवियों में सामान्यतयी नहीं पायी जाती। इसने अपने गजलों और गीतों में अपने जमाने की आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया है और अनेक अछूते विषयों, अर्थोद्घाटक शैली और सुपरिचित शब्दों द्वारा वह अपने पूर्ववर्तियों और प्रभावकों से बढ़ गया है। इसके युग में तुर्क कवि अरबी, फारसी छंदों का ही प्रयोग किया करते थे। तुर्की की प्राचीन लोकप्रिय बहर हिजाई (हिजाई नामक छंद) का प्रयोग दोष माना जाता था। लेकिन नेदीम ने इस छंद का भी प्रयोग एक गीत में किया है और वह गीत आज लोकप्रिय है। श्रेणी:तुर्की साहित्यकार.
देखें कवि और नेदीम
नेमिचन्द्र जैन
नेमिचन्द्र जैन नेमिचन्द्र जैन (16 अगस्त 1919 -- 24 मार्च 2005) हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि, समालोचक, नाट्य-समीक्षक, पत्रकार, अनुवादक, शिक्षक थे। वे भारत की स्वतंत्रता के संघर्ष में भी शामिल हुए थे। ये नटरंग प्रतिष्ठान के अध्यक्ष थे। वे 1959-76 राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में वरिष्ठ प्राध्यापक, 1976-82 जवाहरलाल नेरूह विश्वविद्यालय के कला अनुशीलन केन्द्र के फैलो एवं प्रभारी रहे। अंग्रेजी दैनिक ‘स्टेट्समैन’ के नाट्य-समीक्षक, ‘दिनमान’ तथा ‘नवभारत टाइम्स’ के स्तम्भकार एवं रंगमंच की विख्यात पत्रिका ‘नटरंग’ से संस्थापक संपादक रहे। नाट्य विशेषज्ञ के रूप में रूप, अमरीका, इंगलैंड, पश्चिम एवं पूर्वी जर्मनी, फ्रांस, यूगोस्लाविया, चेकोस्लोवाकिया, पौलेंड आदि देशों की यात्रा की। .
देखें कवि और नेमिचन्द्र जैन
नेवाज (रीतिग्रंथकार कवि)
नेवाज, महाराज छत्रसाल के समकालीन एक हिंदी कवि थे। इनका जन्म, ठाकुर शिवसिंह के कथनानुसार, संवत् १७३९ में हुआ था। इनका लिखा हुआ केवल शकुंतला नाटक देखने में आया है। कुछ फुटकर छंद भी इधर उधर पुस्तकों में बिखरे दिख पड़ते है। कहते हैं कि महाराज छत्रसाल के राजाश्रय में, भगवत कवि के स्थानपर, इनकी नियुक्त हुई थी। ये बड़े रसिक कवि थे। इस नाम के दो कवि और हुए हैं। एक तो विलग्राम के निवासी थे, दूसरे गाजीपुर में भगवंत राय खींची के आश्रित थे। श्रेणी:हिन्दी कवि श्रेणी:रीतिकाल के कवि श्रेणी:हिन्दी साहित्य.
देखें कवि और नेवाज (रीतिग्रंथकार कवि)
नीतिशास्त्र (तेलुगु)
नीतिसार या नीतिशास्त्र तेलुगु कवि बद्देना द्वारा रचित ग्रन्थ है जिसमें नीति-सम्बन्धी कथनों का संग्रह है। बद्देना (१२२० - १२८०?) ने 'सुमतिशतकम' और 'नीतिशास्त्र' की रचना की। बद्देना के बारे में अधिक जानकारी का अभाव है। ऐसा माना जाता है कि वे एक चोल राजकुमार थे जिनको 'भद्र भूपाल' नाम से जाना जाता था। श्रेणी:तेलुगु साहित्य.
देखें कवि और नीतिशास्त्र (तेलुगु)
नीलम सक्सेना चंद्रा
नीलम सक्सेना चंद्रा (जन्म २७ जून, १९६९) एक प्रसिद्ध भारतीय उपन्यासकार, लेखिका, कवियित्री, गीतकार एवं बाल साहित्यकार हैं। इनकी अब तक कुल २७ पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। वे अंग्रेजी व हिंदी दोनों भाषाओ में लिखती हैं। वर्ष २०१४ में इन्हें प्रतिष्ठित रबिन्द्रनाथ टैगोर अन्तराष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। फोर्ब्स इंडिया की १०० सबसे प्रभावशाली हस्तियों की सूची (२०१४ संस्करण) में इनका नाम है।, Forbes India, Nov 26, 2014 .
देखें कवि और नीलम सक्सेना चंद्रा
पढ़ीस
बलभद्र प्रसाद दीक्षित 'पढ़ीस' (जन्म: 25 सितम्बर 1898; मृत्यु: 09 जनवरी 1943) एक आधुनिक अवधी भाषा कवि थे। .
देखें कवि और पढ़ीस
परमिंदर सोढी
परमिंदर सोढी (जन्म: 27 सितम्बर 1960) पंजाबी लेखक, कवि और साहित्यिक एवं दार्शनिक पुस्तकों के अनुवादक हैं। वर्तमान में वे जापान के शहर ओकासा में रहते हैं। सोढी को पंजाब की साहित्यिक दुनिया में जापानी काव्य शैली, हाइकू का परिचय कराने का श्रेय जाता है। .
देखें कवि और परमिंदर सोढी
पर्सी बिश शेली
पर्सी बयसी शेली (१७९२-१८२२) अंग्रेजी स्वच्छंदतावाद कविता के महान कवि थे। उन्हें आलोचकों द्वारा अंग्रेजी कविता के सर्वेशेष्ठ गीत कवि के रूप मैं माना जाता है। उनकी कविता में तत्कालीन राजनैतिक और सामाजिक दृश्य देखे जा सकते हैं। शेली ने अपने जीवनकाल में अधिक प्रशिद्धि प्राप्त नहीं की लेकिन मृत्यु के बाद उनकी प्रशिद्धि काफी बढ़ गयी।Isadora Duncan, "My Life ", W.
देखें कवि और पर्सी बिश शेली
पाल इल्यार
पाल इल्यार (14 दिसम्बर 1895 – 26 नवम्बर 1952) फ्रांस के एक कवि थे। .
देखें कवि और पाल इल्यार
पाश (पंजाबी कवि)
अवतार सिंह संधू (9 सितम्बर 1950 - 23 मार्च 1988), जिन्हें सब पाश के नाम से जानते हैं पंजाबी कवि और क्रांतिकारी थे। .
देखें कवि और पाश (पंजाबी कवि)
पावेल फ्रीडमैन
पावेल फ्रीडमैन (जनवरी 7, 1921 – सितम्बर 29, 1944) एक यहूदी कवि थे, जिन्हे उनकी कविता "द बटरफ्लाई" के लिए ख्याति मिली। .
देखें कवि और पावेल फ्रीडमैन
पजनेस
पजनेस हिन्दी के रीतिकाल के अंतिम दौर के समर्थ कवि थे। .
देखें कवि और पजनेस
पंडित प्रेम बरेलवी
अब तक पंडित प्रेम बरेलवी : ग़ज़लों के अलावा कविता, गीत, छंद, दोहे भी लिखे। देश के कई राज्यों में मुशायरों एवं कवि सम्मेलनों में शायर के रूप में ग़ज़ल/कविता पाठ। 17 साल की अवस्था में आकाशवाणी के बरेली केंद्र से प्रसारित कविता पाठ के कार्यक्रम युवा मंच से दो बार सम्मानित। जिला स्तर पर 20 वर्ष की अवस्था में मैथिली शरण गुप्त सम्मान। कॉलेज में सम्मान। कई प्रदेशों में मंच से सम्मानित। आकाशवाणी नई दिल्ली के युव वाणी पर स्क्रिप्ट राइटर, उद्घोषक एवं शायर के रूप में दर्जनों कार्यक्रमों में अग्रणी भागीदारी, कई कार्यक्रमों का संचालन। आकाशवाणी, दिल्ली के एआईआर एफएम के उर्दू सर्विस चैनल से दर्जनों बार मुशायरों में ग़ज़ल पाठ, कार्यक्रमों की प्रस्तुति। प्रसार भारती के नेशनल रेडियो चैनल से ग़ज़ल पाठ। देश के मशहूर साहित्यकार स्व.
देखें कवि और पंडित प्रेम बरेलवी
पंडित सुन्दर लाल
सत्याग्रह छत्तीसगढ़ के कवि एवं समाजसुधारक पंडित सुन्दर लाल शर्मा के लिये संबन्धित लेख देखें। ----- पंडित सुन्दर लाल (२६ सितम्बर सन १८८५ - 9 मई १९८१) भारत के पत्रकार, इतिहासकार तथा स्वतंत्रता-संग्राम सेनानी थे। वे 'कर्मयोगी' नामक हिन्दी साप्ताहिक पत्र के सम्पादक थे। उनकी महान कृति 'भारत में अंग्रेज़ी राज' है। .
देखें कवि और पंडित सुन्दर लाल
पंकज चतुर्वेदी
पंकज चतुर्वेदी (जन्म १९७१) भारतभूषम अग्रवाल पुरस्कार से सम्मानित कवि एवं आलोचक हैं। आत्मकथा की संस्कृति इनकी सर्वप्रमुख आलोचना पुस्तक है। श्रेणी:हिन्दी साहित्यकार.
देखें कवि और पंकज चतुर्वेदी
पंकज झा
पंकज झा भारतीय कवि एवं गायक हैं। आपने कई हिन्दी गीतों को संस्कृत में गाया है। ‘धीरे-धीरे से मेरी ज़िंदगी में आना...’ का संस्कृत वर्जन ‘शनै: शनै: मम हृदये आगच्छ' के गायक पंकज संस्कृत विषय के रिसर्च स्कॉलर हैं और उनका ताल्लुक, झारखंड के देवघर से है, यहीं उनकी आरंभिक शिक्षा-दीक्षा हुई। आगे भी आपकी योजना प्रचलित हिन्दी गानों को संस्कृत में गाने की है। .
देखें कवि और पंकज झा
पउमचरिउ
पउमचरिउ, रामकथा पर आधारित अपभ्रंश का एक महाकाव्य है जिसके रचयिता जैन कवि स्वयंभू (सत्यभूदेव) हैं। लगभग छठी से बारहवीं शती तक उत्तर भारत में साहित्य और बोलचाल में व्यवहृत प्राकृति की उत्तराधिकारिणी भाषाएँ अपभ्रंश कहलाईं। अपभ्रंश के प्रबंधात्मक साहित्य के प्रमुख प्रतिनिधि कवि थे- स्वयंभू, जिनका जन्म लगभग साढ़े आठ सौ वर्ष पूर्व बरार प्रांत में हुआ था। स्वयंभू जैन मत के माननेवाले थे। उन्होंने रामकथा पर आधारित पउम चरिउ की रचना की जिसमें बारह हजार पद हैं। जैन मत में राजा राम के लिए 'पद्म' शब्द का प्रयोग होता है, इसलिए स्वयंभू की रामायण को 'पद्म चरित' (पउम चरिउ) कहा गया। इसकी सूचना छह वर्ष तीन मास ग्यारह दिन में पूरी हुई। मूलरूप से इस रामायण में कुल 92 सर्ग थे, जिनमें स्वयंभू के पुत्र त्रिभुवन ने अपनी ओर से 16 सर्ग और जोड़े। गोस्वामी तुलसीदास के 'रामचरित मानस' पर महाकवि स्वयंभू रचित 'पउम चरिउ' का प्रभाव स्पष्ट दिखलाई पड़ता है। .
देखें कवि और पउमचरिउ
पुरुषोत्तम दास टंडन
पुरूषोत्तम दास टंडन (१ अगस्त १८८२ - १ जुलाई, १९६२) भारत के स्वतन्त्रता सेनानी थे। हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा के पद पर प्रतिष्ठित करवाने में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान था। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में हुआ था। वे भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के अग्रणी पंक्ति के नेता तो थे ही, समर्पित राजनयिक, हिन्दी के अनन्य सेवक, कर्मठ पत्रकार, तेजस्वी वक्ता और समाज सुधारक भी थे। हिन्दी को भारत की राजभाषा का स्थान दिलवाने के लिए उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान किया। १९५० में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने। उन्हें भारत के राजनैतिक और सामाजिक जीवन में नयी चेतना, नयी लहर, नयी क्रान्ति पैदा करने वाला कर्मयोगी कहा गया। वे जन सामान्य में राजर्षि (संधि विच्छेदः राजा+ऋषि.
देखें कवि और पुरुषोत्तम दास टंडन
प्रताप सहगल
प्रताप सहगल हिन्दी के कवि, नाटककार, कहानीकार और आलोचक हैं। .
देखें कवि और प्रताप सहगल
प्रतापगढ़ (राजस्थान) की संस्कृति
सीतामाता मंदिर के सामने एक मीणा आदिवासी: छाया: हे. शे. हालाँकि प्रतापगढ़ में सभी धर्मों, मतों, विश्वासों और जातियों के लोग सद्भावनापूर्वक निवास करते हैं, पर यहाँ की जनसँख्या का मुख्य घटक- लगभग ६० प्रतिशत, मीना आदिवासी हैं, जो राज्य में 'अनुसूचित जनजाति' के रूप में वर्गीकृत हैं। पीपल खूंट उपखंड में तो ८० फीसदी से ज्यादा आबादी मीणा जनजाति की ही है। जीवन-यापन के लिए ये मीना-परिवार मूलतः कृषि, मजदूरी, पशुपालन और वन-उपज पर आश्रित हैं, जिनकी अपनी विशिष्ट-संस्कृति, बोली और वेशभूषा रही है। अन्य जातियां गूजर, भील, बलाई, भांटी, ढोली, राजपूत, ब्राह्मण, महाजन, सुनार, लुहार, चमार, नाई, तेली, तम्बोली, लखेरा, रंगरेज, रैबारी, गवारिया, धोबी, कुम्हार, धाकड, कुलमी, आंजना, पाटीदार और डांगी आदि हैं। सिख-सरदार इस तरफ़ ढूँढने से भी नज़र नहीं आते.
देखें कवि और प्रतापगढ़ (राजस्थान) की संस्कृति
प्रतापगढ़, राजस्थान
प्रतापगढ़, क्षेत्रफल में भारत के सबसे बड़े राज्य राजस्थान के ३३वें जिले प्रतापगढ़ जिले का मुख्यालय है। प्राकृतिक संपदा का धनी कभी इसे 'कान्ठल प्रदेश' कहा गया। यह नया जिला अपने कुछ प्राचीन और पौराणिक सन्दर्भों से जुड़े स्थानों के लिए दर्शनीय है, यद्यपि इसके सुविचारित विकास के लिए वन विभाग और पर्यटन विभाग ने कोई बहुत उल्लेखनीय योगदान अब तक नहीं किया है। .
देखें कवि और प्रतापगढ़, राजस्थान
प्रत्युष प्रकाश
प्रत्युष प्रकाश (जन्म: १४ दिसम्बर १९९१) बॉलीवुड में कार्यरत एक गीतकार, व कवि हैं। थ्री डी कामसूत्र (२०१४) फिल्म में इनके लिखे गए गीत ऑस्कर के लिए चुना गया था।, retrieved 2014-05-08 .
देखें कवि और प्रत्युष प्रकाश
प्रदीप (गीतकार)
कवि प्रदीप (६ फ़रवरी १९१५ - ११ दिसम्बर १९९८) भारतीय कवि एवं गीतकार थे जो देशभक्ति गीत ऐ मेरे वतन के लोगों की रचना के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान शहीद हुए सैनिकों की श्रद्धांजलि में ये गीत लिखा था। लता मंगेशकर द्वारा गाए इस गीत का तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की उपस्थिति में 26 जनवरी 1963 को दिल्ली के रामलीला मैदान में सीधा प्रसारण किया गया। गीत सुनकर जवाहरलाल नेहरू के आंख भर आए थे। कवि प्रदीप ने इस गीत का राजस्व युद्ध विधवा कोष में जमा करने की अपील की। मुंबई उच्च न्यायालय ने 25 अगस्त 2005 को संगीत कंपनी एचएमवी को इस कोष में अग्रिम रूप से 10 लाख जमा करने का आदेश दिया।.
देखें कवि और प्रदीप (गीतकार)
प्रसून जोशी
प्रसून जोशी (अंग्रेज़ी: Prasoon Joshi, जन्म: 16 सितम्बर 1968) हिन्दी कवि, लेखक, पटकथा लेखक और भारतीय सिनेमा के गीतकार हैं। वे विज्ञापन जगत की गतिविधियों से भी जुड़े हैं और अन्तर्राष्ट्रीय विज्ञापन कंपनी 'मैकऐन इरिक्सन' में कार्यकारी अध्यक्ष हैं। फ़िल्म ‘तारे ज़मीन पर’ के गाने ‘मां...’ के लिए उन्हें 'राष्ट्रीय पुरस्कार' भी मिल चुका है। अब सेंसर बोर्ड के चेयरमैन हैं .
देखें कवि और प्रसून जोशी
प्राणचंद चौहान
प्राणचंद चौहान भक्तिकाल के कवि थे। वे रामायण महानाटक के रचयिता। इनके व्यक्तित्व पर पर्याप्त विवरण नहीं मिलता है। पं.
देखें कवि और प्राणचंद चौहान
प्रियम रेडिकान
प्रियम रेडिकान अपनी ‘स्पोकन वर्ड पोएट्री’ के लिए जानी जाती हैं। .
देखें कवि और प्रियम रेडिकान
प्रीतिश नन्दी
प्रीतिश नन्दी (Pritish Nandy) (जन्म- १५ जनवरी १९५१) एक पत्रकार, कवि, राजनेता एवं दूरदर्शन-व्यक्तित्व हैं। सम्प्रति वह भारत् के ऊपरी सदन राज्य सभा के सदस्य हैं। उन्होने अनेकों काव्य रचनाओं का पल्लवन किया है तथा बांग्ला से अंग्रेजी में अनेकों कविताओं का अनुवाद भी किया है। .
देखें कवि और प्रीतिश नन्दी
पृथ्वी नारायण शाह
पृथ्वी नारायण शाह गोरखा दरबार पृथ्वी नारायण शाह (1722 - 1775) नेपाल के राजा थे जिन्होने काठमाण्डू उपत्यका के छोटे से गोरखा राज्य का विस्तार किया। मल्ल राजवंश के अन्दर कई भागों में बिखरे नेपाल को उन्होने एकत्रित किया और मल्ल राजवंश का शासन समाप्त हुआ। पृथ्वी नारायण शाह को आधुनिक नेपाल का जनक माना जाता है। उन्होने ही नेपाल के एकीकरण अभियान की शुरूआत की थी। .
देखें कवि और पृथ्वी नारायण शाह
पृथ्वीराज
जुनाघर किला एक प्रसिद्ध किला है जहाँ बीकानेर के कई रजओं ने राज किया। पृथ्वीराज बीकानेरनरेश राजसिंह के भाई जो अकबर के दरबार में रहते थे। वे वीर रस के अच्छे कवि थे और मेवाड़ की स्वतंत्रता तथा राजपूतों की मर्यादा की रक्षा के लिये सतत संघर्ष करनेवाले महाराणा प्रताप के अनन्य समर्थक और प्रशंसक थे। जब आर्थिक कठिनाइयों तथा घोर विपत्तियों का सामना करते करते एक दिन राणा प्रताप अपनी छोटी लड़की को आधी रोटी के लिये बिलखते देखकर विचलित हो उठे तो उन्होंने सम्राट के पास संधि का संदेश भेज दिया। इसपर अकबर को बड़ी खुशी हुई और राणा का पत्र पृथ्वीराज को दिखलाया। पृथ्वीराज ने उसकी सचाई में विश्वास करने से इनकार कर दिया। उन्होंने अकबर की स्वीकृति से एक पत्र राणा प्रताप के पास भेजा, जो वीररस से ओतप्रोत, तथा अत्यंत उत्साहवर्धक कविता से परिपूर्ण था। उसमें उन्होंने लिखा हे राणा प्रताप ! तेरे खड़े रहते ऐसा कौन है जो मेवाड़ को घोड़ों के खुरों से रौंद सके ? हे हिंदूपति प्रताप ! हिंदुओं की लज्जा रखो। अपनी शपथ निबाहने के लिये सब तरह को विपत्ति और कष्ट सहन करो। हे दीवान ! मै अपनी मूँछ पर हाथ फेरूँ या अपनी देह को तलवार से काट डालूँ; इन दो में से एक बात लिख दीजिए।' यह पत्र पाकर महाराणा प्रताप पुन: अपनी प्रतिज्ञा पर दृढ़ हुए और उन्होंने पृथ्वीराज को लिख भेजा 'हे वीर आप प्रसन्न होकर मूछों पर हाथ फेरिए। जब तक प्रताप जीवित है, मेरी तलवार को तुरुकों के सिर पर ही समझिए।' पृथ्वीराज की पहली रानी लालादे बड़ी ही गुणवती पत्नी थी। वह भी कविता करती थी। युवास्था में ही उसकी मृत्यु हो गई जिससे उन्हें बड़ा सदमा बैठा। उसके शव को चिता पर जलते देखकर वे चीत्कार कर उठे: 'तो राँघ्यो नहिं खावस्याँ, रे वासदे निसड्ड। मो देखत तू बालिया, साल रहंदा हड्ड।' (हे निष्ठुर अग्नि, मैं तेरा राँघा हुआ भोजन न ग्रहण करुँगा, क्योंकि तूने मेरे देखते देखते लालादे को जला डाला और उसका हाड़ ही शेष रह गया)। बाद में स्वास्थ्य खराब होता देखकर संबंधियों ने जैसलमेर के राव की पुत्री चंपादे से उनका विवाह करा दिया। यह भी कविता करती थी। .
देखें कवि और पृथ्वीराज
पोएट्स कॉर्नर ग्रुप
पोएट्स कॉर्नर ग्रुप साहित्य को बढ़ावा देने वाली एक अव्यवसायिक संस्था हैं जिसमें ऐसे रचनात्मक और प्रतिभाषाली कवि शामिल हैं जो कविता की लुप्त होती जा रही कला को पुनर्जीवित करने के लिए समर्पित हैं। पोएट्स कॉर्नर का मुख्य उद्देश्य पूरी दुनिया में प्रख्यात कवियों की भागीदारी से श्रेष्ठ एवं जीवंत कविताओं को सामने लाना है। इस तरह से उनकी कविता को प्रकाशित एवं प्रचारित कर कवियों को समर्थन देकर उन्हें प्रोत्साहित किया जाता है। पोएट्स कॉर्नर ने अब तक कविता के 20 संकलनों को प्रकाशित किया है और 335+ से अधिक कविताओं को प्रकाशित किया गया जिनमें अंग्रेजी और हिन्दी में नई और पुरानी कविताएं शामिल हैं। पोएट्स कार्नर दिल्ली पोएट्री फेस्टिवल (दिल्ली काव्य महोत्सव) का आयोजन भी करता हैं। पोएट्स कॉर्नर समूह की स्थापना जून 2011 में यासीन अनवर और डॉली सिंह द्वारा किया गया था। .
देखें कवि और पोएट्स कॉर्नर ग्रुप
पीपाजी
पीपाजी (१४वीं-१५वीं शताब्दी) गागरोन के शाक्त राजा एवं सन्त कवि थे। वे भक्ति आंदोलन के प्रमुख संतों में से एक थे। गुरु ग्रंथ साहिब के अलावा २७ पद, १५४ साखियां, चितावणि व क-कहारा जोग ग्रंथ इनके द्वारा रचित संत साहित्य की अमूल्य निधियां हैं। .
देखें कवि और पीपाजी
फणीश्वर नाथ "रेणु"
फणीश्वर नाथ 'रेणु' (४ मार्च १९२१ औराही हिंगना, फारबिसगंज - ११ अप्रैल १९७७) एक हिन्दी भाषा के साहित्यकार थे। इनके पहले उपन्यास मैला आंचल को बहुत ख्याति मिली थी जिसके लिए उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। .
देखें कवि और फणीश्वर नाथ "रेणु"
फरीद पर्बती
चित्र:350px| फरीद पर्बती फरीद पर्बती (जन्मनाम: ग़ुलाब नबी भट) कशमीर के उर्दू कवि थे। उन्होंने काव्य सहित अनेक पुस्तकों की रचना की। उन्होंने ग़ज़लें और रुबाई लिखी। उन्हें कला, संस्कृति और भाषा अकादमी सहित उनकी साहित्यिक रचनाओं के लिए विभिन्न पुरस्कार प्राप्त हुए। .
देखें कवि और फरीद पर्बती
फ़रीदुद्दीन गंजशकर
बाबा फरीद (1173-1266), हजरत ख्वाजा फरीद्दुद्दीन गंजशकर (उर्दू: حضرت بابا فرید الدین مسعود گنج شکر) भारतीय उपमहाद्वीप के पंजाब क्षेत्र के एक सूफी संत थे। आप एक उच्चकोटि के पंजाबी कवि भी थे। सिख गुरुओं ने इनकी रचनाओं को सम्मान सहित श्री गुरु ग्रंथ साहिब में स्थान दिया। वर्तमान समय में भारत के पंजाब प्रांत में स्थित फरीदकोट शहर का नाम बाबा फरीद पर ही रखा गया था। बाबा फरीद का मज़ार पाकपट्टन शरीफ (पाकिस्तान) में है। बाबा फरीद का जन्म ११७3 ई.
देखें कवि और फ़रीदुद्दीन गंजशकर
फेदेरीको गार्सिया लोरका
फेदेरीको गार्सिया लोरका (स्पेनी उचार्ण:; 5 जून 1898 – 19 अगस्त 1936) मूल रूप में एक कवि था लेकिन बाद में वह नाटककार के रूप में भी उतना ही प्रसिद्ध हुआ। उसने कोई औपचारिक विश्वविद्यालय शिक्षा प्राप्त नहीं की थी। उसने ग्रानादा विश्वविद्यालय में दाख़िला ले लिया था पर वह पूर्ण शिक्षा प्राप्त नहीं कर सका। श्रेणी:1898 में जन्मे लोग श्रेणी:१९३६ में निधन श्रेणी:स्पेनी लोग.
देखें कवि और फेदेरीको गार्सिया लोरका
बनगाँव (बिहार )
बनगाँव भारत के बिहार राज्य के सहरसा जिले के पश्चिम मे अवस्थित एक गाँव है जिसकी पहचान सदियों से रही है। जनसँख्या और क्षेत्रफल के हिसाब से ये गाँव ना सिर्फ राज्य के बल्कि देश के सबसे बड़े गांवों मे एक हैं। २००१ की जनगणना के मुताबिक़ इस गाँव की आबादी ६०००० है हालांकि पिछले दशक जनसख्या मे बढोत्तरी को ध्यान मे रखते हुए ये संख्या वर्तमान मे ७००००-७५००० के मध्य मे हो सकती है। यह गाँव कोसी प्रमंडल के कहरा प्रखंड के अंतर्गत आता है। इस गाँव से तीन किलोमीटर पूर्व मे बरियाही बाजार, आठ किलोमीटर पश्चिम मे माँ उग्रतारा की पावन भूमि महिषी और उत्तर मे बिहरा गाँव अवस्थित है। इस गाँव मे तीन पंचायतें हैं। हर पंचायत के एक मुखिया हैं। सरकार द्वारा समय समय पर पंचायती चुनाव कराये जातें है। इन्ही चुनावों से हर पंचायत के सदस्यों का चुनाव किया जाता है। वक्त के हर पड़ाव पर इस गाँव का योगदान अपनी आंचलिक सीमा के पार राज्य, देश और दुनिया को मिलता रहा है। इन योगदानों मे लोक शासन, समाज सेवा, साहित्य, पत्रकारिता, राजनीति, देशसेवा और भक्ति मे योगदान प्रमुख हैं। भक्ति और समाजसेवा के ऐसे की एक स्तंभ, संत लक्ष्मीनाथ गोसाईं, जिन्होंने इस गाँव को अपनी कर्मभूमि बनाई, को लोग भगवान की तरह पूजते है। उनका मंदिर गाँव के प्रमुख दार्शनिक स्थलों मे से एक है। गाँव के बोलचाल की भाषा मैथिली है और यहाँ हिंदू तथा इस्लाम धर्मों को माननेवाले सदियों से आपसी सामंजस्य और धार्मिक सहिष्णुता से साथ रहते हैं। .
देखें कवि और बनगाँव (बिहार )
बशर नवाज
लिपि अमीर खुसरो बशर नवाज (जन्म: १८ अगस्त, १९३५; मृत्यु: ०९ जुलाई, २०१५) प्रख्यात उर्दू कवि एवं गीतकार थें। .
देखें कवि और बशर नवाज
बहिणाबाई चौधरी
बहिनाबाई चौधरी (1880 – 3 दिसम्बर 1951) एक मराठी कवयित्री थीं। .
देखें कवि और बहिणाबाई चौधरी
बा. भो.शास्त्री
बा॰ भो॰ शास्त्री महानुभाव साहित्यात के ज्येष्ठ कवि, लेखक तथा प्रवचनकार हैं। श्रेणी:मराठी साहित्यकार.
देखें कवि और बा. भो.शास्त्री
बालकृष्ण भगवन्त बोरकर
बालकृष्ण भगवन्त बोरकर (कोंकणी: बाळकृष्ण भगवन्त शेणय बोरकार) (1910–1984) भारत के गोवा राज्य के एक कवि थे। इनके द्वारा रचित एक कविता–संग्रह ससया के लिये उन्हें सन् १९८१ में साहित्य अकादमी पुरस्कार (कोंकणी) से सम्मानित किया गया। उन्हें 'बा-कि-बाब' नाम से भी जाना जाता है। बा भा बोरकर ने कम आयु से ही कविताएँ लिखना आरम्भ कर दिया था। वी सा खाण्डेकर, बोरकर की कविताओं के एक प्रारम्भिक समर्थक थे। बोरकर ने 1950 के दशक में गोवा के स्वतन्त्रता संग्राम से जुड़े और पूना चले गए जहाँ उन्होंने रेडियों सेवा में काम किया। उनका अधिकांश साहित्य मराठी में लिखा हुआ है लेकिन कोंकणी भाषा में भी उन्होंने बहुत साहित्य लिखा था। उन्होंने कहा कि साथ ही एक गद्य लेखक के रूप में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। वे गद्य लेखक के रूप में भी उत्कृष्ट लेख रहे थे। उनके द्वारा लिखी गई कविताएँ महात्मायन (गाँधी जी को समर्पित एक अधूरी कविता) और तमहस्तोत्र (मधुमेह और बुढ़ापे के कारण अन्धेपन की सम्भावना पर) प्रसिद्ध हैं। .
देखें कवि और बालकृष्ण भगवन्त बोरकर
बालकृष्ण शर्मा नवीन
बालकृष्ण शर्मा नवीन (१८९७ - १९६० ई०) हिन्दी कवि थे। वे परम्परा और समकालीनता के कवि हैं। उनकी कविता में स्वच्छन्दतावादी धारा के प्रतिनिधि स्वर के साथ-साथ राष्ट्रीय आंदोलन की चेतना, गांधी दर्शन और संवेदनाओं की झंकृतियां समान ऊर्जा और उठान के साथ सुनी जा सकती हैं। आधुनिक हिन्दी कविता के विकास में उनका स्थान अविस्मरणीय है। वे जीवनभर पत्रकारिता और राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़े रहे। नवीन जी द्विवेदी युग के कवि हैं। इनकी कविताओं में भक्ति-भावना, राष्ट्र-प्रेम तथा विद्रोह का स्वर प्रमुखता से आया है। आपने ब्रजभाषा के प्रभाव से युक्त खड़ी बोली हिन्दी में काव्य रचना की। उन्हे साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में सन १९६० में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। .
देखें कवि और बालकृष्ण शर्मा नवीन
बाजे भगत
बाजे भगत (16 जुलाई, 1898 – 26 फरवरी, 1939) एक भारतीय साहित्यकार, कवि, रागनी लेखक, सांग कलाकार और हरियाणवी सांस्कृतिक कलाकार थे। .
देखें कवि और बाजे भगत
बिम्बवाद
बिम्बवाद २०वीं सदी की आंग्ल-अमेरिकी कविता का एक आंदोलन था जिसमें बिम्ब अर्थात् इमेजरी की परिशुद्धता तथा स्पष्ट, तेज भाषा को महत्वपूर्ण माना जाता है। बिम्बवाद को अंग्रेजी कविता में पूर्व-राफ़ेलीय (Raphaelites) आंदोलन के बाद सबसे प्रभावशाली आंदोलन के रूप में वर्णित किया गया है। एक काव्य शैली के रूप में इसने २०वीं सदी की शुरूआत में आधुनिकतावाद का पथ-प्रदर्शन किया। अंग्रेजी भाषा के साहित्य में में इसे पहला संगठित आधुनिकतावादी साहित्यिक आंदोलन माना जाता है। बिम्बवाद पर एज़रा पाउण्ड का कथन है, "ऐसी कविता जिसमें चित्रकला और शिल्पकला मानों संवाद के लिये एकत्र हुए हों।" बिम्बवाद को कभी-कभी विकास की निरंतर या सतत अवधि के बजाय रचनात्मक क्षणों के एक सिलसले के रूप में देखा जाता है। रेने टॉपिन ने टिप्पणी की है कि, बिम्बवाद को एक सिद्धांत और एक काव्य संप्रदाय के रूप न समझ कर कुछ कवियों, जो एक निश्चित समय के लिए एक छोटी संख्या के महत्वपूर्ण सिद्धांतों पर एकमत थे, की एक एसोसिएशन के रूप में समझना अधिक सटीक है। हिन्दी साहित्य में बिम्ब का नवीन अर्थ-प्रतिपादन रामचन्द्र शुक्ल की आलोचना द्वारा हुआ और उन्होंने अर्थ-ग्रहण पर बिम्ब-ग्रहण को वरीयता दी। .
देखें कवि और बिम्बवाद
बिल्हण
बिल्हण, ग्यारहवीं शताब्दी के कश्मीर के प्रसिद्ध कवि थे जिनकी रचना.
देखें कवि और बिल्हण
बंजारानामा
''बंजारानामा'' नज़ीर अकबराबादी (1735-1830) द्वारा लिखी गई एक कविता है बंजारानामा (उर्दू), अठारहवीं शताब्दी के भारतीय शायर नज़ीर अकबराबादी द्वारा लिखी गयी एक प्रसिद्ध कविता है। इस रचना का मुख्य सन्देश है के सांसारिक सफलताओं पर अभिमान करना मूर्खता है क्योंकि मनुष्य की परिस्थितियाँ पलक झपकते बदल सकतीं हैं। धन-सम्पति तो आनी-जानी चीज़ है किन्तु मृत्यु, एक निश्चित सत्य है जो, कभी न कभी हर मनुष्य के साथ घटेगा। यह कविता तेज़ी से भारतीय उपमहाद्वीप के कई भागों में लोकप्रिय हो गई और इसकी ख्याति लगभग पिछली दो शताब्दियों से बनी हुई है। इसके बारे में कहा गया है कि, हालांकि इसकी भाषा देसी और सरल है, पर इसमें पाई जाने वाली छवियाँ और कल्पनाएँ इतना झकझोर देने वालीं हैं कि यह "गीत कई हजार वर्षों की शिक्षाओं को एक सार रूप में सामने लेकर आता है"। इसमें बंजारे का पात्र मृत्यु की ओर इशारा है: जिस तरह यह कभी नहीं बता सकते कि कोई बंजारा कब अपना सारा सामान लाद कर किसी स्थान से चल देगा, उसी तरह से मृत्यु कभी भी आ सकती है। .
देखें कवि और बंजारानामा
बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय
'''वन्दे मातरम्''' के रचयिता बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय (बंगाली: বঙ্কিমচন্দ্র চট্টোপাধ্যায়) (२७ जून १८३८ - ८ अप्रैल १८९४) बंगाली के प्रख्यात उपन्यासकार, कवि, गद्यकार और पत्रकार थे। भारत के राष्ट्रीय गीत 'वन्दे मातरम्' उनकी ही रचना है जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के काल में क्रान्तिकारियों का प्रेरणास्रोत बन गया था। रवीन्द्रनाथ ठाकुर के पूर्ववर्ती बांग्ला साहित्यकारों में उनका अन्यतम स्थान है। आधुनिक युग में बंगला साहित्य का उत्थान उन्नीसवीं सदी के मध्य से शुरु हुआ। इसमें राजा राममोहन राय, ईश्वर चन्द्र विद्यासागर, प्यारीचाँद मित्र, माइकल मधुसुदन दत्त, बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय, रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने अग्रणी भूमिका निभायी। इसके पहले बंगाल के साहित्यकार बंगला की जगह संस्कृत या अंग्रेजी में लिखना पसन्द करते थे। बंगला साहित्य में जनमानस तक पैठ बनाने वालों मे शायद बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय पहले साहित्यकार थे। .
देखें कवि और बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय
बुल्ले शाह
बुल्ले शाह (ਬੁੱਲ੍ਹੇ ਸ਼ਾਹ,, जन्म नाम अब्दुल्ला शाह) (जन्म 1680), जिन्हें बुल्ला शाह भी कहा जाता है, एक पंजाबी सूफ़ी संत एवं कवि थे। उनकी मृत्यु 1757 से 1759 के बीच वर्तमान पाकिस्तान में स्थित शहर क़सूर में हुई थी उनकी कविताओं को काफ़ियाँ कहा जाता है। .
देखें कवि और बुल्ले शाह
ब्रजभाषा चलचित्रपट
ब्रजवुड भारतीय चलचित्र उद्योग है। जिसे ब्रजभाषा सिनेमा भी कहते हैं। .
देखें कवि और ब्रजभाषा चलचित्रपट
बृज नारायण चकबस्त
ब्रजनारायण चकबस्त (1882–1926) उर्दू कवि थे। वे प्रसिद्ध तथा सम्मानित कश्मीरी परिवार के थे। यद्यपि इनके पूर्वज लखनऊ के निवासी थे तथापि इनका जन्म फैजाबाद में सन् 1882 ई.
देखें कवि और बृज नारायण चकबस्त
बेन जॉन्सन
बेंजामिन जॉन्सन (बेन जॉन्सन; १५७२ - १६३७) अंग्रेजी के प्रसिद्ध नाटककार, कवि तथा समीक्षक थे। वे अपने काल के अत्यंत प्रतिष्ठित एवं प्रतिनिधि साहित्यकार थे। .
देखें कवि और बेन जॉन्सन
बेहरामजी मलाबारी
बेहरामजी मेरवानजी मालाबारी (1853–1912) भारत के कवि, प्रकशक, लेखक तथा समाज सुधारक थे। वे स्त्रियों के अधिकारों की रक्षा के प्रबल पक्षधर थे। .
देखें कवि और बेहरामजी मलाबारी
बोधा
बोधा (जन्म: 1767, मृत्यु: 1806) हिन्दी साहित्य के रीतिकालीन कवि थे। उन्हें विप्रलम्भ (वियोग) शृंगार रस की कविताओं के लिये जाना जाता है। वर्तमान उत्तर प्रदेश में बाँदा जिले के राजापुर ग्राम में जन्मे कवि बोधा का पूरा नाम बुद्धिसेन था। वर्तमान मध्य प्रदेश स्थित तत्कालीन पन्ना रियासत में बुद्धिसेन के कुछ सम्बंधी उच्च पदों पर आसीन थे। इस कारण बोधा को राजकवि का दर्ज़ा प्राप्त था। हिंदी साहित्य का इतिहास नामक हिन्दी ग्रन्थ में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने बोधा के नीति सम्बन्धी अनेक छन्दों का उल्लेख किया है। नकछेदी तिवारी द्वारा सम्पादित पुस्तक बोधा कवि का इश्कनामा में इनकी शृंगारपरक कविताओं को देखा जा सकता है। .
देखें कवि और बोधा
बोहेमिया
बोहेमिया कैलिफोर्निया से एक पाकिस्तानी अमेरिकी रैपर और संगीत निर्माता है। इनके द्वारा कई गानो में अपनी रैप आवाज दी गई हैं। .
देखें कवि और बोहेमिया
भट्ट मथुरानाथ शास्त्री
कवि शिरोमणि भट्ट श्री मथुरानाथ शास्त्री कविशिरोमणि भट्ट मथुरानाथ शास्त्री (23 मार्च 1889 - 4 जून 1964) बीसवीं सदी पूर्वार्द्ध के प्रख्यात संस्कृत कवि, मूर्धन्य विद्वान, संस्कृत सौन्दर्यशास्त्र के प्रतिपादक और युगपुरुष थे। उनका जन्म 23 मार्च 1889 (विक्रम संवत 1946 की आषाढ़ कृष्ण सप्तमी) को आंध्र के कृष्णयजुर्वेद की तैत्तरीय शाखा अनुयायी वेल्लनाडु ब्राह्मण विद्वानों के प्रसिद्ध देवर्षि परिवार में हुआ, जिन्हें सवाई जयसिंह द्वितीय ने ‘गुलाबी नगर’ जयपुर शहर की स्थापना के समय यहीं बसने के लिए आमंत्रित किया था। आपके पिता का नाम देवर्षि द्वारकानाथ, माता का नाम जानकी देवी, अग्रज का नाम देवर्षि रमानाथ शास्त्री और पितामह का नाम देवर्षि लक्ष्मीनाथ था। श्रीकृष्ण भट्ट कविकलानिधि, द्वारकानाथ भट्ट, जगदीश भट्ट, वासुदेव भट्ट, मण्डन भट्ट आदि प्रकाण्ड विद्वानों की इसी वंश परम्परा में भट्ट मथुरानाथ शास्त्री ने अपने विपुल साहित्य सर्जन की आभा से संस्कृत जगत् को प्रकाशमान किया। हिन्दी में जिस तरह भारतेन्दु हरिश्चंद्र युग, जयशंकर प्रसाद युग और महावीर प्रसाद द्विवेदी युग हैं, आधुनिक संस्कृत साहित्य के विकास के भी तीन युग - अप्पा शास्त्री राशिवडेकर युग (1890-1930), भट्ट मथुरानाथ शास्त्री युग (1930-1960) और वेंकट राघवन युग (1960-1980) माने जाते हैं। उनके द्वारा प्रणीत साहित्य एवं रचनात्मक संस्कृत लेखन इतना विपुल है कि इसका समुचित आकलन भी नहीं हो पाया है। अनुमानतः यह एक लाख पृष्ठों से भी अधिक है। राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान, नई दिल्ली जैसे कई संस्थानों द्वारा उनके ग्रंथों का पुनः प्रकाशन किया गया है तथा कई अनुपलब्ध ग्रंथों का पुनर्मुद्रण भी हुआ है। भट्ट मथुरानाथ शास्त्री का देहावसान 75 वर्ष की आयु में हृदयाघात के कारण 4 जून 1964 को जयपुर में हुआ। .
देखें कवि और भट्ट मथुरानाथ शास्त्री
भरत जंगम
भरत जंगम (जन्म: 25 नवम्बर 1947) नेपाली पत्रकार और लेखक हैं। यह मुख्य रूप से इनके किताब कालो सूर्य के कारण जाने जाते हैं। "भ्रष्टाचार विरोधी विज्ञान" के रचयिता हैं, जो मानव के नए परेशानियों पर आधारित है। यह त्रिभुवन विश्वविद्यालय, काठमांडू में परीक्षण में है। .
देखें कवि और भरत जंगम
भानुभक्त आचार्य
भानुभक्त आचार्य (1814 – 1868), नेपाल के कवि थे जिन्होने नेपाली में रामायण की रचना की। उन्हें नेपाली भाषा का आदिकवि माना जाता है। नेपाली साहित्य के क्षेत्र में प्रथम महाकाव्य रामायण के रचनाकार भानुभक्त का उदय सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना है। पूर्व से पश्चिम तक नेपाल का कोई ऐसा गाँव अथवा कस्वा नहीं है जहाँ उनकी रामायण की पहुँच नहीं हो। भानुभक्त कृत रामायण वस्तुत: नेपाल का 'रामचरित मानस' है। रम्घा ग्राम में भानुभक्त की प्रतिमा भानुभक्त का जन्म पश्चिमी नेपाल में चुँदी-व्याँसी क्षेत्र के रम्घा ग्राम में २९ आसाढ़ संवत १८७१ तदनुसार १८१४ ई.
देखें कवि और भानुभक्त आचार्य
भानुकवी जामोदेकर
भानुकवी जामोदेकर मराठी महानुभाव साहित्य के ज्येष्ठ कवि हैं। आत्मविकास, ज्ञानगंगा, दिनाची हाक यह उनके कविता संग्रह प्रसिद्ध हैं। श्रेणी:मराठी कवि.
देखें कवि और भानुकवी जामोदेकर
भारत में इस्लाम
भारतीय गणतंत्र में हिन्दू धर्म के बाद इस्लाम दूसरा सर्वाधिक प्रचलित धर्म है, जो देश की जनसंख्या का 14.2% है (2011 की जनगणना के अनुसार 17.2 करोड़)। भारत में इस्लाम का आगमन करीब 7वीं शताब्दी में अरब के व्यापारियों के आने से हुआ था (629 ईसवी सन्) और तब से यह भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत का एक अभिन्न अंग बन गया है। वर्षों से, सम्पूर्ण भारत में हिन्दू और मुस्लिम संस्कृतियों का एक अद्भुत मिलन होता आया है और भारत के आर्थिक उदय और सांस्कृतिक प्रभुत्व में मुसलमानों ने महती भूमिका निभाई है। हालांकि कुछ इतिहासकार ये दावा करते हैं कि मुसलमानों के शासनकाल में हिंदुओं पर क्रूरता किए गए। मंदिरों को तोड़ा गया। जबरन धर्मपरिवर्तन करा कर मुसलमान बनाया गया। ऐसा भी कहा जाता है कि एक मुसलमान शासक टीपू शुल्तान खुद ये दावा करता था कि उसने चार लाख हिंदुओं का धर्म परिवर्तन करवाया था। न्यूयॉर्क टाइम्स, प्रकाशित: 11 दिसम्बर 1992 विश्व में भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां सरकार हज यात्रा के लिए विमान के किराया में सब्सिडी देती थी और २००७ के अनुसार प्रति यात्री 47454 खर्च करती थी। हालांकि 2018 से रियायत हटा ली गयी है। .
देखें कवि और भारत में इस्लाम
भारतीय कवियों की सूची
इस सूची में उन कवियों के नाम सम्मिलित किये गये हैं जो.
देखें कवि और भारतीय कवियों की सूची
भारवि
भारवि (छठी शताब्दी) संस्कृत के महान कवि हैं। वे अर्थ की गौरवता के लिये प्रसिद्ध हैं ("भारवेरर्थगौरवं")। किरातार्जुनीयम् महाकाव्य उनकी महान रचना है। इसे एक उत्कृष्ट श्रेणी की काव्यरचना माना जाता है। इनका काल छठी-सातवीं शताब्दि बताया जाता है। यह काव्य किरातरूपधारी शिव एवं पांडुपुत्र अर्जुन के बीच के धनुर्युद्ध तथा वाद-वार्तालाप पर केंद्रित है। महाभारत के एक पर्व पर आधारित इस महाकाव्य में अट्ठारह सर्ग हैं। भारवि सम्भवतः दक्षिण भारत के कहीं जन्मे थे। उनका रचनाकाल पश्चिमी गंग राजवंश के राजा दुर्विनीत तथा पल्लव राजवंश के राजा सिंहविष्णु के शासनकाल के समय का है। कवि ने बड़े से बड़े अर्थ को थोड़े से शब्दों में प्रकट कर अपनी काव्य-कुशलता का परिचय दिया है। कोमल भावों का प्रदर्शन भी कुशलतापूर्वक किया गया है। इसकी भाषा उदात्त एवं हृदय भावों को प्रकट करने वाली है। प्रकृति के दृश्यों का वर्णन भी अत्यन्त मनोहारी है। भारवि ने केवल एक अक्षर ‘न’ वाला श्लोक लिखकर अपनी काव्य चातुरी का परिचय दिया है। .
देखें कवि और भारवि
भाव प्रकाश
भावप्रकाश आयुर्वेद का एक मूल ग्रन्थ है। इसके रचयिता आचार्य भाव मिश्र थे। भावप्रकाश में आयुवैदिक औषधियों में प्रयुक्त वनस्पतियों एवं जड़ी-बूटियों का वर्णन है। भावप्रकाश, माधवनिदान तथा शार्ङ्गधरसंहिता को संयुक्त रूप से 'लघुत्रयी' कहा जाता है। भावप्रकाशनिघण्टु भावप्रकाश का एक खण्ड है जिसमें सभी प्रकार के औद्भिज, प्राणिज व पार्थिव पदार्थों के गुणकर्मों का विस्तृत विवेचन मूल संस्कृत श्लोकों, उनके हिन्दी अर्थ, समानार्थक अन्य भाषाओं के शब्दों व सम्पूर्ण व्याख्या सहित दिया गया है। .
देखें कवि और भाव प्रकाश
भवानी प्रसाद मिश्र
भवानी प्रसाद मिश्र (जन्म: २९ मार्च १९१४ - मृत्यु: २० फ़रवरी १९८५) हिन्दी के प्रसिद्ध कवि तथा गांधीवादी विचारक थे। वे दूसरे तार-सप्तक के एक प्रमुख कवि हैं। गाँधीवाद की स्वच्छता, पावनता और नैतिकता का प्रभाव तथा उसकी झलक उनकी कविताओं में साफ़ देखी जा सकती है। उनका प्रथम संग्रह 'गीत-फ़रोश' अपनी नई शैली, नई उद्भावनाओं और नये पाठ-प्रवाह के कारण अत्यंत लोकप्रिय हुए थे। प्यार से लोग उन्हें भवानी भाई कहकर सम्बोधित किया करते थे। उन्होंने स्वयं को कभी भी कभी निराशा के गर्त में डूबने नहीं दिया। जैसे सात-सात बार मौत से वे लड़े वैसे ही आजादी के पहले गुलामी से लड़े और आजादी के बाद तानाशाही से भी लड़े। आपातकाल के दौरान नियम पूर्वक सुबह दोपहर शाम तीनों बेलाओं में उन्होंने कवितायें लिखी थीं जो बाद में त्रिकाल सन्ध्या नामक पुस्तक में प्रकाशित भी हुईं।http://www.deshbandhu.co.in/newsdetail/4488/3/52 भवानी भाई को १९७२ में उनकी कृति बुनी हुई रस्सी के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। १९८१-८२ में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का साहित्यकार सम्मान दिया गया तथा १९८३ में उन्हें मध्य प्रदेश शासन के शिखर सम्मान से अलंकृत किया गया। .
देखें कवि और भवानी प्रसाद मिश्र
भुपेन हजारिका
भुपेन हजारिका (ভূপেন হাজৰিকা भूपेन हाजोरिका) (8 सितंबर, 1926- ५ नवम्बर २०११) भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम से एक बहुमुखी प्रतिभा के गीतकार, संगीतकार और गायक थे। इसके अलावा वे असमिया भाषा के कवि, फिल्म निर्माता, लेखक और असम की संस्कृति और संगीत के अच्छे जानकार भी रहे थे। वे भारत के ऐसे विलक्षण कलाकार थे जो अपने गीत खुद लिखते थे, संगीतबद्ध करते थे और गाते थे। उन्हें दक्षिण एशिया के श्रेष्ठतम जीवित सांस्कृतिक दूतों में से एक माना जाता है। उन्होंने कविता लेखन, पत्रकारिता, गायन, फिल्म निर्माण आदि अनेक क्षेत्रों में काम किया। भूपेन हजारिका के गीतों ने लाखों दिलों को छुआ। हजारिका की असरदार आवाज में जिस किसी ने उनके गीत "दिल हूम हूम करे" और "ओ गंगा तू बहती है क्यों" सुना वह इससे इंकार नहीं कर सकता कि उसके दिल पर भूपेन दा का जादू नहीं चला। अपनी मूल भाषा असमिया के अलावा भूपेन हजारिका हिंदी, बंगला समेत कई अन्य भारतीय भाषाओं में गाना गाते रहे थे। उनहोने फिल्म "गांधी टू हिटलर" में महात्मा गांधी का पसंदीदा भजन "वैष्णव जन" गाया था। उन्हें पद्मभूषण सम्मान से भी सम्मानित किया गया था। .
देखें कवि और भुपेन हजारिका
भीमनिधि तिवारी
भीमनिधि तिवारी (वि.सं. १९६८ – वि.सं. २०३०) नेपाली भाषा के अग्रज साहित्यकार है। .
देखें कवि और भीमनिधि तिवारी
मतिराम (बहुविकल्पी)
'मतिराम' से निम्नलिखित व्यक्तियों का बोध होता है.
देखें कवि और मतिराम (बहुविकल्पी)
मधुशाला
मधुशाला हिंदी के बहुत प्रसिद्ध कवि और लेखक हरिवंश राय बच्चन (1907-2003) का अनुपम काव्य है। इसमें एक सौ पैंतीस रूबाइयां (यानी चार पंक्तियों वाली कविताएं) हैं। मधुशाला बीसवीं सदी की शुरुआत के हिन्दी साहित्य की अत्यंत महत्वपूर्ण रचना है, जिसमें सूफीवाद का दर्शन होता है। .
देखें कवि और मधुशाला
मनियार सिंह
मनियार सिंह हिन्दी के कवि है। मनियारसिंह जन्म वाराणसी में संवत् 1807 विक्रमी के लगभग हुआ। इनके पिता का नाम श्यामसिंह था। "हनुमत् छबीसी" नामक रचना से ज्ञात होता है कि इन्होंने कुछ समय बलिया में भी बिताया था। रामचंद्र पंडित इनके प्रमुख आश्रयदाता और कृष्णलाल इनके काव्यगुरु थे। रचनाओं में कवि ने कहीं-कहीं "यार" उपनाम का भी प्रयोग किया है। .
देखें कवि और मनियार सिंह
मनीषा शुक्ला
मनीषा शुक्ला का जन्म उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में हुआ। वे हिंदी कवि सम्मेलन की एक प्रतिष्ठित कवयित्री हैं। जामिया मिल्लिया इस्लामिया से इन्होंने बी टेक (इलैक्ट्रोनिक्स एन्ड कम्युनिकेशन) की उपाधि प्राप्त की। श्रृंगार रस के गीतों में आधुनिकता के बिम्ब पिरोकर वे अपने लेखन को विशेष बनाती हैं। गीत, ग़ज़ल और नवगीत इनके लेखन की प्रमुख शैलियाँ हैं। उन्होंने भारत के संसद भवन में भी काव्य पाठ किया है।.
देखें कवि और मनीषा शुक्ला
मलय रॉय चौधुरी
मलय रायचौधुरी (जन्म २९ अक्टूबर १९३९) (মলয় রায়চৌধুরী) बांग्ला साहित्य के प्रख्यात कवि एवम आलोचक है। वे साठ के दशक के सहित्य आन्दोलन भूखी पीढ़ी (हंगरी जनरेशन) के जन्मदाता माने जाते है। इस आन्दोलन ने बांग्ला साहित्य को एक नयी दिशा दी और पूरे भारत में उथलपुथल मचायी। आन्दोलन के सिलसिले में मलय को उनहे कविता लिखने के कारण कारावास का दण्ड मिला था। वे अब तक सत्तर से ज्यादा कविताग्रन्थ, नाटक, उपन्यास एवम अनुवद के पुस्तक लिख चुके हैं। साठ के दशक मे जो बदलाव बांगला कविता मे आये, उन में एक बड़ा योगदान मलय रायचौधुरी का रहा है। उनके काव्यग्रन्थो मे ख्याति प्राप्त हैं मेधार वतानुकूल घुन्गुर। २००३ में उन्हें अनुवाद के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया था। .
देखें कवि और मलय रॉय चौधुरी
मलयज
मलयज (जन्म: १५ अगस्त १९३५, मृत्यु: २६ अप्रैल १९८२) जिनका पूरा नाम भरत जी श्रीवास्तव है, हिंदी के प्रतिष्ठित कवि, लेखक और आलोचक हैं। मलयज का रामचन्द्र शुक्ल की आलोचना दृष्टि को पुनर्व्याख्यायित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान है, जिसके कारण हिंदी आलोचना जगत में वे विशेष उल्लेखनीय माने जाते हैं। .
देखें कवि और मलयज
मलूकदास
मलूकदास (संo १६३१ की वैशाख बदी ५ - सं. १७३९ वैशाख बदी १४) एक सन्त कवि थे। उनका जन्म, संo १६३१ की वैशाख बदी ५ को, कड़ा (जिo इलाहाबाद) के कक्कड़ खत्री सुंदरदास के घर हुआ था। इनका पूर्वनाम 'मल्लु' था और इनके तीन भाइयों के नाम क्रमश: हरिश्चंद्र, शृंगार तथा रामचंद्र थे। इनकी 'परिचई' के लेखक तथा इनके भांजे एवं शिष्य मथुरादास के अनुसार इनके पितामह जहरमल थे और इनके प्रपितामह का नाम वेणीराम था। उनका कहना है कि मल्लू अपने बचपन से ही अत्यंत उदार एवं कोमल हृदय के थे तथा इनमें भक्तों के लक्षण पाए जाने लगे थे। यह बात इनके माता पिता पसंद नहीं करते थे और जीविकोपार्जन की ओर प्रवृत्त करने के उद्देश्य से, उन्होंने इन्हें केवल बेचने का काम सौंपा था परंतु इसमें उन्हें सफलता नहीं मिल सकी और बहुधा मंगतों को दिए जानेवाले कंबल आदि का हाल सुनकर उन्हें और भी क्लेश होने लगा। बालक मल्लू को दी गई किसी शिक्षा का विवरण हमें उपलब्ध नहीं है और ऐसा अनुमान किया जाता है कि ये अधिक शिक्षित न रहे होंगे। कहते हैं, इनके प्रथम गुरु कोई पुरुषोत्तम थे जो देवनाथ के पुत्र थे और पीछे इन्होंने मुरारिस्वामी से दीक्षा ग्रहण की जिनके विषय में इन्होंने स्वयं भी कहा है, मुझे मुरारि जी सतगुरु मिल गए जिन्होंने मेरे ऊपर विश्वास की छाप लगा दी, (सुखसागर पृo १९२)। अभी तक पाए गए संकेतों के आधार पर कहा जा सकता है कि इनका विवाह संभवत: १२ वर्ष की अवस्था के अनंतर ही हुआ होगा। इनकी पत्नी का नाम ज्ञात नहीं। इनके देशभ्रमण की चर्चा करते समय केवल पुरी, दिल्ली एवं कालपी जैसे स्थानों के ही नाम विशेष रूप से लिए जाते हैं और अनुमान किया जाता है कि यह पर्यटन कार्य भी इन्होंने अधिकतर उस समय किया होगा जब ये वृद्ध हो चले थे तथा जब ये अपने मत का उपदेश भी देने लगे थे। सं.
देखें कवि और मलूकदास
महदंबा
महदम्बा, मराठी भाषा की प्रथम कवयित्री थीं। वे चक्रधर स्वामी की शिष्या थीं जो मराठी भाषा के जनक माने जाते हैं। श्रेणी:मराठी साहित्यकार.
देखें कवि और महदंबा
महमूद गामी
महमूद गामी (1765–1855) कश्मीर प्रान्त के प्रमुख कवि थे। उन्होंने कश्मीरी कविता मे मसनवी और गज़ल लाई। .
देखें कवि और महमूद गामी
महाश्रमण
आचार्य महाश्रमण (जन्म 13 मई 1962) जैन श्वेतांबर तेरापंथ के ग्याहरवें संत अथवा आचार्य हैं। महाश्रमण पुज्य संत, योगी, आध्यात्मिक नेता, दार्शनिक, लेखक, वक्ता और कवि हैं। .
देखें कवि और महाश्रमण
महेश नारायण
महेश नारायण (१८५८ से १९०७) हिन्दी कवि तथा सामाजिक कार्यकर्ता थे। वे आधुनिक बिहार के निर्माता के रूप में भी जाने जाते हैं। सन १८८१ में २३ वर्ष की अवस्था में उन्होंने खड़ी बोली हिंदी में 'स्वप्न' नामक एक कविता की रचना की जिसका प्रकाशन पटना से प्रकाशित 'बिहार बंधु' में १३ अक्टूबर १८८१ में ई को हुआ। यह खड़ी बोली हिंदी में रचित अपने समय की सबसे लंबी कविता तो है ही, साथ ही हिंदी भाषा के पूरे इतिहास में मुक्तछंद की पहली कविता है। उनके पिता मुंशी भगवतीचरण संस्कृत और फारसी के विद्वान थे। उन्होंने महेश नारायण को शुरू से ही विकास का ऐसा वातावरण प्रदान किया जिसके कारण बचपन से ही उनके अंदर कुछ कर गुजरने की चाह बनी रही। पटना से इंट्रैंस की परीक्षा पास करने के बाद वह उच्च शिक्षा के लिये कोलकाता चले गए। बीए की पढ़ाई बीच में ही छोड़कर वे वापस अपने बड़े भाई गोविंदचरण के पास पटना आ गए। तथा उसके बाद उन्होंने 'बिहार टाइम्स' और 'कायस्थ गजेट' का प्रकाशन किया। उन्होने हिंदी और अँग्रेजी दोनो में अनेक निबंधों और कविताओं की रचना की। लेकिन उनकी रचना के केन्द्र में आम आदमी के जीवन की समस्याएँ ही रहीं तथा इसी क्रम में उन्होंने समाज और राष्ट्र की समस्याओं को उठाया। हिंदी भाषा जनता की अस्मिता के लिये उन्होंने लगातार हिंदी की वकालत की तथा अपने द्वारा संपादित पत्रों के संपादकीय में भारतीय राष्ट्रीयता के सवाल को उठाया। .
देखें कवि और महेश नारायण
महेंद्र भटनागर
डॉ महेंद्र भटनागर (Mahendra Bhatnagar जन्म 26 जून,1926) भारतीय समाजार्थिक-राष्ट्रीय-राजनीतिक चेतना-सम्पन्न द्वि-भाषिक (हिन्दी एवं अंग्रेजी) कवि एवं लेखक हैं। ये सन् 1946 से प्रगतिवादी काव्यान्दोलन से सक्रिय रूप से सम्बद्ध प्रगतिशील हिन्दी कविता के द्वितीय उत्थान के चर्चित हस्ताक्षरों में से एक हैं। .
देखें कवि और महेंद्र भटनागर
माणिक्कवाचकर
290px माणिक्कवाचकर (माणिकवासगर) तमिल कवि थे। यद्यपि उनकी गिनती नायनारों में नहीं की जाती है किन्तु तिरुवसाकम नामक ग्रन्थ की रचना में उनका भी योगदान है। इस पुस्तक में शंकर भगवान के भजन और गीत हैं। माणिक्कवाचकर तिरुमुरै के रचनाकारों में से एक हैं जो तमिल शैव सिद्धान्त का प्रमुख ग्रन्थ है। वे पाण्ड्य राजा वरगुणवर्मन द्वितीय (८६२ - ८८५ ई.) के मंत्री थे और मदुरै मे रहते थे। .
देखें कवि और माणिक्कवाचकर
मात्सुओ बाशो
मात्सुओ बाशो मात्सुओ बाशो (१६४४-१६९४) एक महान जापानी कवि थे जो हाइकु काव्य विधा के जनक माने जाते हैं। हाइकु कविता की लोकप्रियता और समृद्धि में उनका विशेष योगदान है। .
देखें कवि और मात्सुओ बाशो
माधवदास 'माधुरी'
माधवदास 'माधुरी' (लगभग संवत् १६५० - लगभग संवत १७१०) चैतन्य सम्प्रदाय के हिन्दी कवि थे। इनका नाम 'माधव दास' था और ये कपूर खत्री थे। कहीं अन्यत्र से आकर वृंदावन के पास माधुरीकुंड पर रहने लगे और अपना उपनाम 'माधुरी' रखा। वंशीवटमाधुरी, केलिमाधुरी, उत्कंठामाधुरी, वृंदावनमाधुरी, दानमाधुरी, मानमाधुरी, होरी माधुरी, प्रिया जी की बधाई आदि इनकी छोटी-छोटी रचनाएँ हैं, जिनका एक संग्रह 'माधुरी वाणी' नाम से प्रकाशित हो चुका है। दो रचनाओं में सं० १६८७ तथा सं० १६९९ रचनाकाल दिया है अत: इनका समय संवत् १६५०-१७१० तक निश्चित रूप से माना जा सकता है। यह चैतन्य संप्रदाय के थे, क्योंकि सभी रचनाओं में श्री चैतन्य महाप्रभु तथा रूपसनातन की वंदना की है। श्रेणी:हिन्दी कवि.
देखें कवि और माधवदास 'माधुरी'
माधवप्रसाद घिमिरे
माधवप्रसाद घिमिरे माधवप्रसाद घिमिरे (जन्म 22 अक्टूबर, 1919) नेपाली भाषा के कवि, साहित्यकार एवं गीतकार हैं। वे नेपाल के राष्ट्रकवि हैं। नवमंजरी (संवत १९९४), घामपानी (संवत २०१०), नयाँ नेपाल (संवत २०१३), किन्नर-किन्नरी (संवत २०३३) आदि उनके प्रमुख कवितासंग्रह हैं। .
देखें कवि और माधवप्रसाद घिमिरे
मानयोशू
Nukata no Ōkimi, a replica from vol.1 मानयोशू, जापान का सबसे पुराना काव्य संकलन है, जिसको ७५९ ईसा पूर्व में नारा काल में संग्रहीत किया गया था। इस ग्रन्थ में जापान के कई महान कवियों की रचनाओं का समावेश है।.
देखें कवि और मानयोशू
मासाओका शिकि
मासाओका शिकि (१८६७-१९०२) एक प्रख्यात जापानी कवि थे। इन्होंने विशिष्ट जापानी कविता “होक्कु” को हाइकु (Haiku) का नाम नाम दिया। मात्सुयामा स्टेशन के सामने एक स्मारक पर शिकि द्वारा लिखा गया हाइकु इनका बचपन का नाम था ‘सुनेनोरी’। ‘शिकि’ उपनाम चुना जिसका अर्थ है -कोयल जो कण्ठ में र्क्त आने तक गाए। तत्कालीन हाइकु कृत्रिमता से भरे थे। इस्सा के चिन्तन ने नए और पुराने की बीच द्वन्द्व को रेखांकित किया। इन्हे केवल ३५ वर्ष का जीवनकाल मिला। चित्रकारी और कविता की अभिरुचियाँ इन्हें बचपन से मिली थीं। ‘हाइकु’ नाम इन्हीं के समय में प्रचारित और स्थापित हुआ। इन्होंने सभी गलित रूढ़ियों और आस्थाओं का विरोध किया। गरीबी और तपेदिक की बीमारी ने इनको शय्या-सेवन के लिए बाध्य कर दिया। बहन ‘रित्सु’ ने इनकी खूब सेवा की। रुग्ण शरीर शिकि अन्तिम श्वास तक लिखते गए और अपना उपनाम सार्थक कर दिया। शिकि की एक कविता है- यदि कोई पूछे कहो मैं अभी जीवित हूँ पतझड़ की हवा .
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माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय का नाम भारत के विख्यात पत्रकार,कवि और स्वतंत्रता सेनानी, श्री माखनलाल चतुर्वेदी के नाम पर रखा गया है। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में स्थित विश्वविद्यालय के निर्माण के पीछे मुख्य उद्देश्य देश में मास मीडिया के क्षेत्र में बेहतर शिक्षण और प्रशिक्षण। मध्यप्रदेश विधानसभा की धारा १५ के तहत १९९० में विश्वविद्यालय की नींव पड़ी। जिसे यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन ने भी सहमति प्रदान की है। .
देखें कवि और माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय
मिर्ज़ा मुहम्मद रफ़ी सौदा
सन् १८७२ में छपा सौदा की कुल्लियात का अंग्रेज़ी अनुवाद मिर्ज़ा मुहम्मद रफ़ी 'सौदा' (उर्दू:, १७१३–१७८१) देहली के एक प्रसिद्ध शायर थे। वे अपनी ग़ज़लों और क़सीदों के लिए जाने जाते हैं। ये मीर के समकालीन थे इसलिए इनकी तुलना भी अक्सर मीर से होती है। मीर जहाँ ग़ज़लों के लिए आधुनिक उर्दू के उस्ताद माने गए हैं (ख़ासकर दिल्ली-लखनऊ के इलाक़े में), सौदा को ग़ज़लों में वो स्थान नहीं मिल पाया । हाँलांकि सौदा ने मसनवी, क़सीदे, मर्सिया तर्जीहबन्द, मुख़म्मस, रुबाई, क़ता और हिजो तक लिखा है। .
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मिर्ज़ा सलामत अली दबीर
मिर्ज़ा सलामत अली दबीर उर्दू के एक कवि थे। उन्होंने मरसिया लिखने की कला को एक नया मुकाम दिया। उन्हें मीर अनीस के साथ मरसिया निगारी का प्रमुख प्रवक्ता माना जाता है। मिर्जा सलामत अली का जन्म 1803 में मिर्जा गुलाम हुसैन के घर दिल्ली में हुआ था। उनमें बचपन से ही मरसिया गाने की लगन थी। इसलिए वे प्रसिध मरसिया गो मुजफ्फर हुसैन के शिष्य बन गए। जब मीर अनीस फैज़ाबाद से लखनऊ आए तो उनकी आपस में दोस्ती हो गयी। .
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मिलारेपा
मिलारेपा (तिब्बती: རྗེ་བཙུན་མི་ལ་རས་པ, Wylie: rje btsun mi la ras pa) (1052 ई. – 1135 ई.) तिब्बत के सबसे प्रसिद्ध योगियों तथा कवियों में से एक थे। .
देखें कवि और मिलारेपा
मिजुहारा शुओशी
मिजुहारा शुओशी (Mizuhara Shuoshi) (१८९२-१९८१) २०वीं शताब्दी के जापानी कवि एवं हाइकुकार थे। पेशे से वे अपने पिता की तरह चिकित्सक थे। उन्होंने सन १९२६ में टोक्यो विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई की। उन्होंने २० खंडो में हाइकु का प्रकाशन किया। डॉ॰ अंजली देवधर द्वारा हिन्दी में अनुवादित शुओशी का एक हाइकु- एक नया वर्ष आरम्भ हुआ खिल जाने से एक तुषारायित गुलाब के .
देखें कवि और मिजुहारा शुओशी
मजरुह सुल्तानपुरी
मजरुह सुल्तानपुरी (مجرُوح سُلطانپُوری) (1 अक्टूबर 1919 − 24 मई 2000) एक भारती उर्दू शायर थे। हिन्दी फिल्मों के एक प्रसिद्ध गीतकार और प्रगतिशील आंदोलन के उर्दू के सबसे बड़े शायरों में से एक थे। Retrieved 11 May 2018 वह 20वीं सदी के उर्दु साहिती जगत के बेहतरीन शायरों में गिना जाता है। बॉलीवुड में गीतकार के रूप में प्रसिद्ध हुवे। उन्होंने अपनी रचनाओं के जरिए देश, समाज और साहित्य को नयी दिशा देने का काम किया। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा सुल्तानपुर जिले के गनपत सहाय कालेज में मजरुह सुल्तानपुरी ग़ज़ल के आइने में शीर्षक से मजरूह सुल्तानपुरी पर राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया। देश के प्रमुख विश्वविद्यालयों के शिक्षाविदों ने इस सेमिनार में हिस्सा लिया और कहा कि वे ऐसी शख्सियत थे जिन्होंने उर्दू को एक नयी ऊंचाई दी है। लखनऊ विश्वविद्यालय की उर्दू विभागाध्यक्ष डॉ॰सीमा रिज़वी की अध्यक्षता व गनपत सहाय कालेज की उर्दू विभागाध्यक्ष डॉ॰जेबा महमूद के संयोजन में राष्ट्रीय सेमिनार को सम्बोधित करते हुए इलाहाबाद विश्वविद्यालय के उर्दू विभागाध्यक्ष प्रो॰अली अहमद फातिमी ने कहा मजरूह, सुल्तानपुर में पैदा हुए और उनके शायरी में यहां की झलक साफ मिलती है। वे इस देश के ऐसे तरक्की पसंद शायर थे जिनकी वजह से उर्दू को नया मुकाम हासिल हुआ। उनकी मशहूर पंक्तियों में 'मै अकेला ही चला था, जानिबे मंजिल मगर लोग पास आते गये और कारवां बनता गया' का जिक्र भी वक्ताओं ने किया। लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो॰मलिक जादा मंजूर अहमद ने कहा कि यूजीसी ने मजरूह पर राष्ट्रीय सेमिनार उनकी जन्मस्थली सुल्तानपुर में आयोजित करके एक नयी दिशा दी है। .
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मजाज़
मजाज़ लखनऊ से उर्दु के प्रख्यात शायर रहे हैं। कुछ तो होते हैं मोहब्बत में जुनूं के आसार और कुछ लोग दीवाना बना देते हैं श्रेणी:शायर श्रेणी:उर्दू शायर 🐍🐍🐍 मजाज़ की एक ग़ज़ल: ख़ुद दिल में रह के आंख से पर्दा करे कोई हां लुत्फ़ जब है पाके भी ढूंढा करे कोई तुम ने तो हुक्म-ए-तर्क-ए-तमन्ना सुना दिया, किस दिल से आह तर्क-ए-तमन्ना करे कोई दुनिया लरज़ गई दिल-ए-हिरमांनसीब की, इस तरह साज़-ए-ऐश न छेड़ा करे कोई मुझ को ये आरज़ू वो उठायें नक़ाब ख़ुद, उन को ये इन्तज़ार तक़ाज़ा करे कोई रंगीनी-ए-नक़ाब में ग़ुम हो गई नज़र, क्या बे-हिजाबियों का तक़ाज़ा करे कोई या तो किसी को जुर्रत-ए-दीदारही न हो, या फिर मेरी निगाह से देखा करे कोई होती है इस में हुस्न की तौहीन ऐ ‘मज़ाज़’, इतना न अहल-ए-इश्क़ को रुसवा करे कोई.
देखें कवि और मजाज़
मखदूम मोहिउद्दीन
मखदूम मोहिउद्दीन (مخدوم محی الدین., మఖ్దూం మొహియుద్దీన్) या अबू सईद मोहम्मद मखदूम मोहिउद्दीन हुजरी (4 फ़रवरी 1908 - 25 अगस्त 1969), भारत से उर्दू के एक शायर और मार्क्सवादी राजनीतिक कार्यकर्ता थे। वे एक प्रतिष्ठित क्रांतिकारी उर्दू कवि थे। .
देखें कवि और मखदूम मोहिउद्दीन
मंजू क़मरैदुल्ल्ही
मंजू क़मरैदुल्ल्ही (अंग्रेजी: Manju Qamaraidullāhī,1908–1983) एक उर्दू नाटककार, नाट्य पटकथाकार और शायर थे। उनका जन्म 1908 में चन्नापटना,कर्नाटक में हुआ और उन्होंने हैदराबाद डेक्कन में अपने कैरियर की शुरुआत की। उन्होंने सामाजिक और ऐतिहासिक महत्व के विभिन्न नाटकों को उर्दू में लिखा.
देखें कवि और मंजू क़मरैदुल्ल्ही
मुशायरा
मुशायरा, (उर्दू: مشاعره) उर्दु भाषा की एक काव्य गोष्ठी है। मुशायरा शब्द हिन्दी में उर्दू से आया है और यह उस महफ़िल (محفل) की व्याख्या करता है जिसमें विभिन्न शायर शिरकत कर अपना अपना काव्य पाठ करते हैं। मुशायरा उत्तर भारत और पाकिस्तान की संस्कृति का अभिन्न अंग है और इसे प्रतिभागियों द्वारा मुक्त आत्म अभिव्यक्ति के एक माध्यम (मंच) के रूप में सराहा जाता है। .
देखें कवि और मुशायरा
मुंशी सदासुखलाल
मुंशी सदासुखलाल (1746 - 1824) हिन्दी लेखक थे। खड़ी बोली के प्रारंभिक गद्यलेखकों में उनका ऐतिहासिक महत्व है। फारसी एवं उर्दू के लेखक और कवि होते हुए भी इन्होंने तत्कालीन शिष्ट लोगों के व्यवहार की भाषा को अपने गद्य-लेखन-कार्य के लिए अपनाया। इस भाषा में संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग करके भाषा के जिस रूप को इन्होंने उपस्थित किया, उसमें खड़ी बोली के भावी साहित्यिक रूप का आभास मिलता है। अंग्रेजों के प्रभाव से मुक्त इन्होंने उस गद्य परंपरा का अनुसरण किया जो रामप्रसाद 'निरंजनी' तथा दौलतराम से चली आ रही थी। .
देखें कवि और मुंशी सदासुखलाल
मुकुन्द दास
मुकुन्द दास (মুকুন্দদাস) (22 फ़रवरी 1878 - 18 मई 1934), भारत से बांग्ला भाषा के कवि, गीतकार, संगीतकार और देशभक्त थे, जिन्होने ग्रामीण स्वदेशी आंदोलन के प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। .
देखें कवि और मुकुन्द दास
मैथिलीशरण गुप्त
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त (३ अगस्त १८८६ – १२ दिसम्बर १९६४) हिन्दी के प्रसिद्ध कवि थे। हिन्दी साहित्य के इतिहास में वे खड़ी बोली के प्रथम महत्त्वपूर्ण कवि हैं। उन्हें साहित्य जगत में 'दद्दा' नाम से सम्बोधित किया जाता था। उनकी कृति भारत-भारती (1912) भारत के स्वतंत्रता संग्राम के समय में काफी प्रभावशाली साबित हुई थी और इसी कारण महात्मा गांधी ने उन्हें 'राष्ट्रकवि' की पदवी भी दी थी। उनकी जयन्ती ३ अगस्त को हर वर्ष 'कवि दिवस' के रूप में मनाया जाता है। महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की प्रेरणा से आपने खड़ी बोली को अपनी रचनाओं का माध्यम बनाया और अपनी कविता के द्वारा खड़ी बोली को एक काव्य-भाषा के रूप में निर्मित करने में अथक प्रयास किया। इस तरह ब्रजभाषा जैसी समृद्ध काव्य-भाषा को छोड़कर समय और संदर्भों के अनुकूल होने के कारण नये कवियों ने इसे ही अपनी काव्य-अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया। हिन्दी कविता के इतिहास में यह गुप्त जी का सबसे बड़ा योगदान है। पवित्रता, नैतिकता और परंपरागत मानवीय सम्बन्धों की रक्षा गुप्त जी के काव्य के प्रथम गुण हैं, जो 'पंचवटी' से लेकर जयद्रथ वध, यशोधरा और साकेत तक में प्रतिष्ठित एवं प्रतिफलित हुए हैं। साकेत उनकी रचना का सर्वोच्च शिखर है। .
देखें कवि और मैथिलीशरण गुप्त
मूँगा (जीव)
मूँगा (कोरल) शब्द के कई अर्थ हैं - अन्य अर्थों के लिए मूँगा का लेख देखें मूँगे के शरीर के अन्दर का दृश्य मूँगा, जिसे कोरल और मिरजान भी कहते हैं, एक प्रकार का नन्हा समुद्री जीव है जो लाखों-करोड़ों की संख्या में एक समूह में रहते हैं। मूँगे की बहुत सी क़िस्मों में, यह जीव अपने इर्द-गिर्द एक बहुत ही सख़्त शंख बना लेते है, जिसके अन्दर वह रहता है। जब ऐसे हजारों-लाखों नन्हे और बेहद सख़्त शंख एक दुसरे से चिपक कर समूह में बनते हैं, तो उस समूह की सख़्ती और स्पर्श लगभग पत्थर जैसा होता है। समुद्र में कई स्थानों पर मूंगे की बड़े क्षेत्र पर फैली हुई शृंखलाएं बन जाती हैं, जिन्हें रीफ़ कहा जाता है। किसी भी मूंगे के समूह में हर एक मूंगे और उसके शंख को वैज्ञानिक भाषा में "पॉलिप" कहते हैं। मूँगा गरम समुद्रों में ही उगता है और अलग-अलग रंगों में मिलता है। लाल और गुलाबी रंगों के मूँगे के क़ीमती पत्थर को पत्थर की ही तरह तराश और चमका कर ज़ेवरों में इस्तेमाल किया जाता है। इनके सब से लोकप्रिय रंग को भी मूँगा (रंग) कहा जाता है। मूँगे समुद्रतल में रहने वाले एक प्रकार के कृमि हैं जो खोलड़ी की तरह का घर बनाकर एक दूसरे से लगे हुए जमते चले जाते हैं। ये कृमि अचर (न चलने वाले) जीवों में हैं। ज्यों ज्यों इनकी वंशवृद्धि होती जाती है, त्यों त्यों इनका समूहपिंड थूहर के पेड़ के आकार में बढ़ता चला जाता है। सुमात्रा और जावा के आसपास प्रशांत महासागर में समुद्र के तल में ऐसे समूहपिंड हजारों मील तक खड़े मिलते हैं। इनकी वृद्धि बहुत जल्दी जल्दी होती है। इनके समूह एक दूसरे के ऊपर पटते चले जाते हैं जिससे समुद्र की सतह पर एक खासा टापू निकल आता है। ऐसे टापू प्रशांत महासागर में बहुत से हैं जो 'प्रवालद्वीप' कहलाते हैं। मूँगे की केवल गुरिया ही नहीं बनती; छड़ी, कुरसी आदि चीजें भी बनती हैं। आभूषण के रूप में मूँगे का व्यवहार भी मोती के समान बहुत दिनों से है। मोती और मूँगे का नाम प्रायः साथ साथ लिया जाता है। रत्नपरीक्षा की पुस्तकों में मूँगे का भी वर्णन रहता है। साधारणतः मूँगे का दाना जितना ही बड़ा होता है, उतना अधिक उसका मूल्य भी होता है। कवि लोग बहुत पुराने समय से ओठों की उपमा मूँगे से देते आए हैं। .
देखें कवि और मूँगा (जीव)
मोतीलाल अग्रहरि गुप्तेश
योगी डॉ० मोतीलाल अग्रहरि गुप्तेश एक जाने माने कवि एवं आयुर्वेदाचार्य हैं। वे उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिला के मिल्कीपुर, पवई ग्राम से हैं। इनकी रचनाएं कई पत्र पत्रिकाओ मे छपती रहती हैं। मोतीलाल अग्रहरि एक वैद्य हैं, और उन्होंने हिमालय की जड़ी-बूटियो से तैयार करके आँखो की रोशनी बढ़ाने वाला तेल बनाया है और उनका दावा है कि, आँखो मे दो बूँद डालने के दस मिनट बाद नेत्र ज्येति स्वत: बढ़ जाएगी। इनके पिता स्व.
देखें कवि और मोतीलाल अग्रहरि गुप्तेश
मोमिन
मुहम्मद मोमिन खाँ (1800-1851) भारत के उर्दू कवि थे। उन्होने गजलें लिखीं हैं। कश्मीरी थे पर वे दिल्ली में आ बसे थे। उस समय शाह आलम बादशाह थे और इनके पितामह शाही हकीमों में नियत हो गए। अँग्रेजी राज्य में पेंशन मिलने लगा, जो मोमिस को भी मिलती थी। इनका जन्म दिल्ली में सन् 1800 ई.
देखें कवि और मोमिन
मोलाराम
मोलाराम (1740-1833) हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि और चित्रकार थे। मई 1658 में जब दाराशिकोह का पुत्र सुलेमान शिकोह औरंगजेब के भय से भागकर गढ़वाल गया तब उसके साथ दो चित्र्कारो को भी लाये थे। कुंवर श्यामदास और उनके पुत्र हरदास.
देखें कवि और मोलाराम
मोशोव्चे
मोशोव्चे (स्लोवाक: Mošovce) (१३८० वासी) है महत्वपूर्ण गांव केन्द्रीय स्लोवाकिया भीतर बहुत ऐतिहासिक यादगार तरफ और जन्मस्थान बड़ा कवि में स्लोवाकिया से, यन् कोल्लर्। .
देखें कवि और मोशोव्चे
मोहन राणा
मोहन राणा का जन्म 1964 में दिल्ली में हुआ। वे ब्रिटेन में बसे भारतीय मूल के हिंदी कवि हैं और बाथ (इंग्लैंड की समरसेट काउंटी में एक रोमन शहर) में निवासी हैं। उनकी कविताओं में जीवन के सूक्ष्म अनुभव महसूस किये जा सकते हैं। बाज़ार संस्कृति की शक्तियों के विरुद्ध उनकी सोच भी कविता में उभरकर सामने आती है। उनकी कविताएँ स्थितियों पर तात्कालिक प्रतिक्रिया मात्र नहीं होती हैं। वे पहले अपने भीतर के कवि और कविता के विषय में एक तटस्थ दूरी पैदा कर लेते हैं। फिर होता है सशक्त भावनाओं का नैसर्गिक विस्फोट। उनकी कविता पढ़कर महसूस होता है कि जैसे वे सच की एक निरंतर खोज यात्रा कर रहे हों। कवि-आलोचक नंदकिशोर आचार्य के अनुसार - हिंदी कविता की नई पीढ़ी में मोहन राणा की कविता अपने उल्लेखनीय वैशिष्टय के कारण अलग से पहचानी जाती रही है, क्योंकि उसे किसी खाते में खतियाना संभव नहीं लगता। यह कविता यदि किसी विचारात्मक खाँचे में नहीं अँटती तो इसका यह अर्थ नहीं लिया जाना चाहिए कि मोहन राणा की कविता विचार से परहेज करती है – बल्कि वह यह जानती है कि कविता में विचार करने और कविता के विचार करने में क्या फर्क है। मोहन राणा के लिए काव्य रचना की प्रक्रिया अपने में एक स्वायत्त विचार प्रक्रिया भी है। .
देखें कवि और मोहन राणा
मोहसिन काकोरवी
मोहसिन काकोरवी लखनऊ से उर्दू के प्रख्यात शायर रहे हैं। श्रेणी:शायर श्रेणी:उर्दू शायर श्रेणी:लखनऊ के लोग.
देखें कवि और मोहसिन काकोरवी
मीर तक़ी "मीर"
ख़ुदा-ए-सुखन मोहम्मद तकी उर्फ मीर तकी "मीर" (1723 - 20 सितम्बर 1810) उर्दू एवं फ़ारसी भाषा के महान शायर थे। मीर को उर्दू के उस प्रचलन के लिए याद किया जाता है जिसमें फ़ारसी और हिन्दुस्तानी के शब्दों का अच्छा मिश्रण और सामंजस्य हो। अहमद शाह अब्दाली और नादिरशाह के हमलों से कटी-फटी दिल्ली को मीर तक़ी मीर ने अपनी आँखों से देखा था। इस त्रासदी की व्यथा उनकी रचनाओं मे दिखती है। अपनी ग़ज़लों के बारे में एक जगह उन्होने कहा था- हमको शायर न कहो मीर कि साहिब हमने दर्दो ग़म कितने किए जमा तो दीवान किया .
देखें कवि और मीर तक़ी "मीर"
मीर बाबर अली अनीस
मीर बबर अली अनीस (उर्दू:میر ببر علی انیس) वर्ष १९०३ में उत्तर भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश के फ़ैज़ाबाद, अवध में जन्मे एक उर्दू शायर थे जिनका वर्ष १८७४ में लखनऊ, उत्तर पश्चिमी प्रान्त में निधन हो गया। अनीस ने फ़ारसी, हिन्दी, अरबी और संस्कृत शब्दों को अपनी शायरी में काम में लिया। अनीस ने दीर्घ मर्सियाँ लिखी जो उस समय में प्रचलित थी लेकिन वर्तमान में धार्मिक समारोहों में भी उनके चयनित भागों का ही उच्चारण किया जाता है। उनका हिज़री सवंत् के १२९१ वें वर्ष में निधन हुआ जो ईसवी संवत् के १८७४ के तुल्य है। डॉ फ़रहत नादिर रिज़वी अपनी पुस्तक "मीर अनीस और क़िस्सागोई का फ़न" में लिखती हैं कि कर्बला के सच्चे ऐतिहासिक घटनाक्रम के वाचक होने के कारण मीर अनीस अपनी कल्पना के भरपूर प्रयोग में पूरे तौर पर स्वतंत्र ना होने के बावजूद अपने मरसियों में एक कुशल कथा वाचक की तरह कथा के सभी आवश्यक तत्वों का भरपूर इस्तेमाल करते हैं और कभी-कभी तो वह एक कुशल कथावाचक की हैसियत से अपने मरसियों को दास्तान व मसनवी से भी उच्च स्तर तक पहुंचाते प्रतीत होते हैं। .
देखें कवि और मीर बाबर अली अनीस
मीराजी
मीराजी: (25 मई, 1912 - 3 नवंबर, 1949) में पैदा हुए.
देखें कवि और मीराजी
युआन मेइ
युआन मेइ युआन मेइ (१७१६ ई०-१७९७ ई०; चीनी: 袁枚 pinyin: Yuán Méi) चीन के कवि, साहित्यिक, आलोचक एवं निबंधकार थे। .
देखें कवि और युआन मेइ
युक्तिभद्र दीक्षित "पुतान"
युक्तिभद्र दीक्षित "पुतान" (मृत्यु: 24 जुलाई) एक अवधी और भोजपुरी भाषा के कवि थे, वे कवि बलभद्र प्रसाद दीक्षित "पढ़ीस" के पुत्र हैं। इन्हें ‘मतई भइया’ के नाम से भी जाना जाता था। पुतान जी ने पचीसो रेडियो नाटक और नौटंकी अवधी और भोजपुरी मे लिखी तथा उनमें भूमिका निभाई। .
देखें कवि और युक्तिभद्र दीक्षित "पुतान"
योसा बुसोन
योसा बुसोन योसा बुसोन या तानिगुचि बुसोन (१७१६–१७ जनवरी १७८४) एक जापानी हाइकु कवि एवं चित्रकार थे, जिन्हें सामान्यत: बुसोन के नाम से जाना गया। इनकी तुलना महान जापानी कवि मात्सुओ बाशो और इस्सा से की जाती है। योसा का मूल नाम तानिगुचि बुसोन था। डॉ॰ अंजली देवधर द्वारा हिन्दी में अनुवादित योसा बुसोन का एक हाइकु- एक पतझड़ की सांझ एक घंटा विश्राम का एक क्षणिक जीवन में बुसोन शब्द-शिल्पी हैं, उनका एक हाइकु है- हारु सामे या मोनोगातारि युकु मिने तो कासा। (मूल हाइकु) अज्ञेय ने इसका अनुवाद किया है- वर्षा में वसन्त को मैंने देखा छाता एक, एक बरसाती साथ-साथ जाते बतियाते। (अज्ञेय द्वारा किया गया अनुवाद) .
देखें कवि और योसा बुसोन
रतन पंडोरवी
रतन पंडोरवी रलाराम का जन्म 07 जुलाई 1907 ई० को ग्राम पंडोरी, तहसील बटाला, जिला गुरदासपुर, पंजाब में हुआ। रतन पंडोरवी पंजाब के प्रसिद्ध उस्ताद शायरों में से एक हैं। उन्हें पंजाब सरकार ने अपने सर्वोच्च सम्मान "शिरोमणि साहित्यकार अवार्ड" से नवाजा। रतन साहब ने शायरी का सलीका मशहूर शायर दिल शाहजहाँपुरी और जोश मलसियानी से सीखा। रतन साहब ने कुल 23 किताबें लिखी जिनमे 9 पद्य और 14 गद्य की हैं। रतन साहब ने अपनी उम्र का लंबा अरसा पंडोरी के एक शिव मन्दिर में फ़क़ीर की तरह गुज़ारा और अपने अंतिम समय में पठानकोट में आ गए और 04 नवंबर 1990 को अपना शरीर त्याग दिया। .
देखें कवि और रतन पंडोरवी
रफ़ीक़ शादानी
रफ़ीक़ शादानी एक भारतीय कवि थे जो अवधी, हिन्दी व उर्दु भाषाओं में लिखते थे। वे अपने व्यंग्य और कटूपहास के लिये जाने जाते हैं। मध्य उत्तर प्रदेश की लोक-बोली का प्रयोग करने वाले रफ़ीक़ शादानी अपने राजनैतिक व्यंगय के लिये भी जाने जाते हैं। उन्होने व्यंग्य की १३ पुस्तकें लिखी। .
देखें कवि और रफ़ीक़ शादानी
रबीन्द्रनाथ ठाकुर
रवीन्द्रनाथ ठाकुर (बंगाली: রবীন্দ্রনাথ ঠাকুর रोबिन्द्रोनाथ ठाकुर) (७ मई, १८६१ – ७ अगस्त, १९४१) को गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है। वे विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार, दार्शनिक और भारतीय साहित्य के एकमात्र नोबल पुरस्कार विजेता हैं। बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान फूँकने वाले युगदृष्टा थे। वे एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार सम्मानित व्यक्ति हैं। वे एकमात्र कवि हैं जिसकी दो रचनाएँ दो देशों का राष्ट्रगान बनीं - भारत का राष्ट्र-गान जन गण मन और बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान आमार सोनार बाँग्ला गुरुदेव की ही रचनाएँ हैं। .
देखें कवि और रबीन्द्रनाथ ठाकुर
रमेश चन्द्र झा
रमेशचन्द्र झा (8 मई 1928 - 7 अप्रैल 1994) भारतीय स्वाधीनता संग्राम में सक्रिय क्रांतिकारी थे जिन्होंने बाद में साहित्य के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय भूमिका निभाई। वे बिहार के एक स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ साथ हिन्दी के कवि, उपन्यासकार और पत्रकार भी थे। बिहार राज्य के चम्पारण जिले का फुलवरिया गाँव उनकी जन्मस्थली है। उनकी कविताओं, कहानियों और ग़ज़लों में जहाँ एक तरफ़ देशभक्ति और राष्ट्रीयता का स्वर है, वहीं दुसरी तरफ़ मानव मूल्यों और जीवन के संघर्षों की भी अभिव्यक्ति है। आम लोगों के जीवन का संघर्ष, उनके सपने और उनकी उम्मीदें रमेश चन्द्र झा कविताओं का मुख्य स्वर है। "अपने और सपने: चम्पारन की साहित्य यात्रा" नाम के एक शोध-परक पुस्तक में उन्होंने चम्पारण की समृद्ध साहित्यिक विरासत को भी बखूबी सहेजा है। यह पुस्तक न केवल पूर्वजों के साहित्यिक कार्यों को उजागर करता है बल्कि आने वाले संभावी साहित्यिक पीढ़ी की भी चर्चा करती है। .
देखें कवि और रमेश चन्द्र झा
रमेशराज तेवरीकार
रमेशराज तेवरीकार (जन्म १५ मार्च सन् १९५४) हिंदी के विद्वान,कवि एवं लेखक हैं । व्यंग्य और रस के क्षेत्र में अपनी विशिष्ट प्रतिभा के कारण प्रसिद्ध हैं| आप हिन्दी-काव्य की नूतन विधा 'तेवरी' और रस-परंपरा का विकास करने वाले प्रमुख विद्वानों में से एक हैं .
देखें कवि और रमेशराज तेवरीकार
रसिक गोविंद(रीतिग्रंथकार कवि)
रसिक गोविंद(रीतिग्रंथकार कवि) रसिक गोविन्द रीतिकाल के कवि थे। वे निंबार्क संप्रदाय के एक महात्मा हरिव्यास की गद्दी के शिष्य थे और वृंदावन में रहते थे। हरिव्यास जी की शिष्य परंपरा में 'सर्वेश्वरशरण देव' जी बड़े भारी भक्त हुए हैं। रसिक गोविंद उन्हीं के शिष्य थे। ये जयपुर (राजपूताना) के रहने वाले और नटाणी जाति के थे। इनके पिता का नाम 'शालिग्राम', माता का 'गुमाना' और बड़े भाई का नाम 'बालमुकुंद' था। इनका कविता काल संवत 1850 से 1890 तक अर्थात विक्रम की उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य से लेकर अंत तक प्रतीत होता है। अब तक इनके 9 ग्रंथों का पता चला है - रामायण सूचनिका, रसिक गोविंदानंद घन, लछिमन चंद्रिका, अष्टदेशभाषा, पिंगल, समयप्रबंध, कलियुगरासो, रसिक गोविंद और युगलरस माधुरी। इनका असली नाम 'गोविन्द' था और ये जयपुर के रहनेवाले नटाणी जाति के वैश्य थे। रामचंद्र शुक्ल के अनुसार इनका काव्यकाल संवत्.
देखें कवि और रसिक गोविंद(रीतिग्रंथकार कवि)
रसूल मीर
रसूल मीर (देहान्त 1870) कश्मीर प्रान्त के प्रमुख कवि थे। उनका जन्म डोरू शाहबाद (अनन्तनाग जिले) में हुआ। श्रेणी:कश्मीर के लोग श्रेणी:कश्मीरी साहित्यकार श्रेणी:कश्मीरी कवि.
देखें कवि और रसूल मीर
रहीम
अब्दुल रहीम ख़ान-ए-ख़ाना या सिर्फ रहीम, एक मध्यकालीन कवि, सेनापति, प्रशासक, आश्रयदाता, दानवीर, कूटनीतिज्ञ, बहुभाषाविद, कलाप्रेमी, एवं विद्वान थे। वे भारतीय सामासिक संस्कृति के अनन्य आराधक तथा सभी संप्रदायों के प्रति समादर भाव के सत्यनिष्ठ साधक थे। उनका व्यक्तित्व बहुमुखी प्रतिभा से संपन्न था। वे एक ही साथ कलम और तलवार के धनी थे और मानव प्रेम के सूत्रधार थे। जन्म से एक मुसलमान होते हुए भी हिंदू जीवन के अंतर्मन में बैठकर रहीम ने जो मार्मिक तथ्य अंकित किये थे, उनकी विशाल हृदयता का परिचय देती हैं। हिंदू देवी-देवताओं, पर्वों, धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं का जहाँ भी आपके द्वारा उल्लेख किया गया है, पूरी जानकारी एवं ईमानदारी के साथ किया गया है। आप जीवन भर हिंदू जीवन को भारतीय जीवन का यथार्थ मानते रहे। रहीम ने काव्य में रामायण, महाभारत, पुराण तथा गीता जैसे ग्रंथों के कथानकों को उदाहरण के लिए चुना है और लौकिक जीवन व्यवहार पक्ष को उसके द्वारा समझाने का प्रयत्न किया है, जो भारतीय सांस्कृति की वर झलक को पेश करता है। .
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राधाचरण गोस्वामी
राधाचरण गोस्वामी (२५ फरवरी १८५९ - १२ दिसम्बर १९२५) हिन्दी के भारतेन्दु मण्डल के साहित्यकार जिन्होने ब्रजभाषा-समर्थक कवि, निबन्धकार, नाटकरकार, पत्रकार, समाजसुधारक, देशप्रेमी आदि भूमिकाओं में भाषा, समाज और देश को अपना महत्वपूर्ण अवदान दिया। आपने अच्छे प्रहसन लिखे हैं। .
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राम प्रसाद 'बिस्मिल'
राम प्रसाद 'बिस्मिल' (११ जून १८९७-१९ दिसम्बर १९२७) भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की क्रान्तिकारी धारा के एक प्रमुख सेनानी थे, जिन्हें ३० वर्ष की आयु में ब्रिटिश सरकार ने फाँसी दे दी। वे मैनपुरी षड्यन्त्र व काकोरी-काण्ड जैसी कई घटनाओं में शामिल थे तथा हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के सदस्य भी थे। राम प्रसाद एक कवि, शायर, अनुवादक, बहुभाषाभाषी, इतिहासकार व साहित्यकार भी थे। बिस्मिल उनका उर्दू तखल्लुस (उपनाम) था जिसका हिन्दी में अर्थ होता है आत्मिक रूप से आहत। बिस्मिल के अतिरिक्त वे राम और अज्ञात के नाम से भी लेख व कवितायें लिखते थे। ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी (निर्जला एकादशी) विक्रमी संवत् १९५४, शुक्रवार को उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर में जन्मे राम प्रसाद ३० वर्ष की आयु में पौष कृष्ण एकादशी (सफला एकादशी), सोमवार, विक्रमी संवत् १९८४ को शहीद हुए। उन्होंने सन् १९१६ में १९ वर्ष की आयु में क्रान्तिकारी मार्ग में कदम रखा था। ११ वर्ष के क्रान्तिकारी जीवन में उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं और स्वयं ही उन्हें प्रकाशित किया। उन पुस्तकों को बेचकर जो पैसा मिला उससे उन्होंने हथियार खरीदे और उन हथियारों का उपयोग ब्रिटिश राज का विरोध करने के लिये किया। ११ पुस्तकें उनके जीवन काल में प्रकाशित हुईं, जिनमें से अधिकतर सरकार द्वारा ज़ब्त कर ली गयीं। --> बिस्मिल को तत्कालीन संयुक्त प्रान्त आगरा व अवध की लखनऊ सेण्ट्रल जेल की ११ नम्बर बैरक--> में रखा गया था। इसी जेल में उनके दल के अन्य साथियोँ को एक साथ रखकर उन सभी पर ब्रिटिश राज के विरुद्ध साजिश रचने का ऐतिहासिक मुकदमा चलाया गया था। --> .
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रामदरश मिश्र
डॉ॰ रामदरश मिश्र (जन्म: १५ अगस्त, १९२४) हिन्दी के प्रतिष्ठित साहित्यकार हैं। ये जितने समर्थ कवि हैं उतने ही समर्थ उपन्यासकार और कहानीकार भी। इनकी लंबी साहित्य-यात्रा समय के कई मोड़ों से गुजरी है और नित्य नूतनता की छवि को प्राप्त होती गई है। ये किसी वाद के कृत्रिम दबाव में नहीं आये बल्कि उन्होंने अपनी वस्तु और शिल्प दोनों को सहज ही परिवर्तित होने दिया। अपने परिवेशगत अनुभवों एवं सोच को सृजन में उतारते हुए, उन्होंने गाँव की मिट्टी, सादगी और मूल्यधर्मिता अपनी रचनाओं में व्याप्त होने दिया जो उनके व्यक्तित्व की पहचान भी है। गीत, नई कविता, छोटी कविता, लंबी कविता यानी कि कविता की कई शैलियों में उनकी सर्जनात्मक प्रतिभा ने अपनी प्रभावशाली अभिव्यक्ति के साथ-साथ गजल में भी उन्होंने अपनी सार्थक उपस्थिति रेखांकित की। इसके अतिरक्त उपन्यास, कहानी, संस्मरण, यात्रावृत्तांत, डायरी, निबंध आदि सभी विधाओं में उनका साहित्यिक योगदान बहुमूल्य है। .
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रामनरेश त्रिपाठी
रामनरेश त्रिपाठी (4 मार्च, 1889 - 16 जनवरी, 1962) हिन्दी भाषा के 'पूर्व छायावाद युग' के कवि थे। कविता, कहानी, उपन्यास, जीवनी, संस्मरण, बाल साहित्य सभी पर उन्होंने कलम चलाई। अपने 72 वर्ष के जीवन काल में उन्होंने लगभग सौ पुस्तकें लिखीं। ग्राम गीतों का संकलन करने वाले वह हिंदी के प्रथम कवि थे जिसे 'कविता कौमुदी' के नाम से जाना जाता है। इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए उन्होंने गांव-गांव जाकर, रात-रात भर घरों के पिछवाड़े बैठकर सोहर और विवाह गीतों को सुना और चुना। वह गांधी के जीवन और कार्यो से अत्यंत प्रभावित थे। उनका कहना था कि मेरे साथ गांधी जी का प्रेम 'लरिकाई को प्रेम' है और मेरी पूरी मनोभूमिका को सत्याग्रह युग ने निर्मित किया है। 'बा और बापू' उनके द्वारा लिखा गया हिंदी का पहला एकांकी नाटक है। ‘स्वप्न’ पर इन्हें हिंदुस्तान अकादमी का पुरस्कार मिला। .
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रामसनेही लाल शर्मा 'यायावर'
डॉ॰ रामसनेही लाल शर्मा 'यायावर' (जन्म: ५ जुलाई १९४९; फिरोज़ाबाद, उत्तर प्रदेश) एक लेखक, कवि एवं साहित्यकार हैं। .
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रामसहायदास
रामसहायदास हिन्दी के रीतिमुक्त कवि थे। ये 'भगत' नाम से प्रसिद्ध थे और इसी नाम से कविताएँ भी लिखते थे। .
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रामजियावन दास
रामजियावन दास 'बावला' (०१ जून १९२२-०१ मई २०१२) भोजपुरी के कवि थे। .
देखें कवि और रामजियावन दास
राय देवीप्रसाद 'पूर्ण'
राय देवीप्रसाद 'पूर्ण' (मार्गशीर्ष कृष्ण १३, संवत् १९२५ वि. - संवत् १९७२) हिन्दी के कवि थे। .
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राहत इन्दौरी
राहत इन्दौरी (उर्दू: ڈاکٹر راحت اندوری) (जन्म: 1 जनवरी 1950) एक भारतीय उर्दू शायर और हिंदी फिल्मों के गीतकार हैं। वे देवी अहिल्या विश्वविद्यालय इंदौर में उर्दू साहित्य के प्राध्यापक भी रह चुके हैं। .
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राज महाजन
राज महाजन एक भारतीय संगीतकार,https://itunes.apple.com/in/album/world-music/id916716124 गीतकार, अभिनेता, कवि, टीवी होस्ट हैं.
देखें कवि और राज महाजन
राजेंद्र नाथ रहबर
राजेंद्र नाथ रहबर उर्दू के प्रमुख उस्ताद शायरों में से एक हैं उनका जन्म 05 नवम्बर 1931 को पंजाब के शकरगढ़ में हुआ, जो विभाजन के बाद पाकिस्तान को मिल गया। तथा रहबर साहिब का परिवार पठानकोट आकर बस गया। रहबर साहिब ने हिन्दू कॉलेज अमृतसर से बी.ए., खालसा कॉलेज पंजाब से एम.ए.(अर्थशास्त्र) और पंजाब यूनिवर्सिटी से एल.एल.बी की। बचपन में शायरी का शौक़ पल गया, बड़े भाई ईश्वरदत्त अंजुम भी शायर थे। रहबर साहिब ने शायरी का फन रतन पंडोरवी से सीखा। रहबर साहिब की नज़्म तेरे खुशबू में बसे ख़त को विश्वव्यापी शोहरत मिली। इस नज़्म को जगजीत सिंह ने लगभग 30 सालों तक अपनी मखमली आवाज़ में गाया। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा रहबर साहिब को लिखे ख़त के लिए भी वो चर्चा में रहे। मशहूर फ़िल्म निर्माता महेश भट्ट ने रहबर साहिब मशहूर नज़्म को अपनी फ़िल्म 'अर्थ' में फिल्माया है। रहबर साहिब अपने जीवन के तकरीब 70 साल उर्दू साहित्य की सेवा में समर्पित किये हैं और अब भी निरंतर साहित्य सेवा में लगे हैं। .
देखें कवि और राजेंद्र नाथ रहबर
राखी गुलज़ार
रक्षाबंधन त्योहार के लिये यहाँ क्लिक करें राखी गुलज़ार (जन्म: 15 अगस्त, 1947) हिन्दी फ़िल्मों की एक अभिनेत्री हैं। .
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रांगेय राघव
रांगेय राघव (१७ जनवरी, १९२३ - १२ सितंबर, १९६२) हिंदी के उन विशिष्ट और बहुमुखी प्रतिभावाले रचनाकारों में से हैं जो बहुत ही कम उम्र लेकर इस संसार में आए, लेकिन जिन्होंने अल्पायु में ही एक साथ उपन्यासकार, कहानीकार, निबंधकार, आलोचक, नाटककार, कवि, इतिहासवेत्ता तथा रिपोर्ताज लेखक के रूप में स्वंय को प्रतिस्थापित कर दिया, साथ ही अपने रचनात्मक कौशल से हिंदी की महान सृजनशीलता के दर्शन करा दिए।आगरा में जन्मे रांगेय राघव ने हिंदीतर भाषी होते हुए भी हिंदी साहित्य के विभिन्न धरातलों पर युगीन सत्य से उपजा महत्त्वपूर्ण साहित्य उपलब्ध कराया। ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर जीवनीपरक उपन्यासों का ढेर लगा दिया। कहानी के पारंपरिक ढाँचे में बदलाव लाते हुए नवीन कथा प्रयोगों द्वारा उसे मौलिक कलेवर में विस्तृत आयाम दिया। रिपोर्ताज लेखन, जीवनचरितात्मक उपन्यास और महायात्रा गाथा की परंपरा डाली। विशिष्ट कथाकार के रूप में उनकी सृजनात्मक संपन्नता प्रेमचंदोत्तर रचनाकारों के लिए बड़ी चुनौती बनी। .
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रघुवीर चौधरी
रघुवीर चौधरी रघुवीर चौधरी (पटेल) गुजराती के प्रसिद्ध उपन्यासकार, कवि एवं आलोचक हैं। वे अनेक समाचारपत्रों में स्तम्भलेखक भी रहे हैं। उन्होने गुजरात विश्वविद्यालय में अध्यापन किया और वहाँ से १९९८ में सेवानिवृत्त हुए। गुजराती के अलावा उन्होने हिन्दी में भी लेखन कार्य किया है। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास उपरवास कथात्रयी के लिये उन्हें सन् १९७७ में साहित्य अकादमी पुरस्कार (गुजराती) से सम्मानित किया गया। .
देखें कवि और रघुवीर चौधरी
रविदास
संत कुलभूषण कवि संत शिरोमणि रविदास उन महान सन्तों में अग्रणी थे जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने में महत्वपूर्ण योगदान किया। इनकी रचनाओं की विशेषता लोक-वाणी का अद्भुत प्रयोग रही है जिससे जनमानस पर इनका अमिट प्रभाव पड़ता है। मधुर एवं सहज संत शिरोमणि रैदास की वाणी ज्ञानाश्रयी होते हुए भी ज्ञानाश्रयी एवं प्रेमाश्रयी शाखाओं के मध्य सेतु की तरह है।प्राचीनकाल से ही भारत में विभिन्न धर्मों तथा मतों के अनुयायी निवास करते रहे हैं। इन सबमें मेल-जोल और भाईचारा बढ़ाने के लिए सन्तों ने समय-समय पर महत्वपूर्ण योगदान दिया है। ऐसे सन्तों में शिरोमणि रैदास का नाम अग्रगण्य है। वे सन्त कबीर के गुरूभाई थे क्योंकि उनके भी गुरु स्वामी रामानन्द थे। इनकी याद में माघ पूर्ण को रविदास जयंती मनाई जाती हैं। .
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रंजीत होसकोटे
रंजीत होसकोटे (जन्म: २० मार्च १९६९) एक भारतीय अंग्रेजी भाषा के कवि एवं लेखक और अनुवादक हैं। इनका जन्म मुंबई में हुआ। .
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रंग दे बसंती
रंग दे बसंती (पंजाबी: ਰੰਗ ਦੇ ਬਸੰਤੀ, उर्दू: رنگ دے بسنتى) एक हिन्दी फिल्म है। 26 जनवरी 2006 को यह फिल्म रिलीज़ हुई थी। इस फिल्म के निर्देशक राकेश ओमप्रकाश मेहरा एवं फिल्म के मुख्य कलाकारों में शामिल हैं, आमिर खान, सिद्धार्थ नारायण, सोहा अली खान, कुणाल कपूर, माधवन, शरमन जोशी, अतुल कुलकर्णी और ब्रिटिश अभिनेत्री एलिस पैटन। पच्चीस करोड़ की लागत से बनी यह फिल्म नई दिल्ली, मुंबई, राजस्थान और पंजाब में फिल्माई गयी थी। कहानी एक ब्रिटिश वृत्तचित्र निर्माता की है जो अपने दादा की डायरी प्रविष्टियों के आधार पर भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों पर एक फिल्म बनाने के लिए भारत आती है। इस फिल्म को सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा फिल्म के लिए 2006 BAFTA पुरस्कार में नामांकित किया गया था। रंग दे बसंती को सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा फिल्म वर्ग में गोल्डन ग्लोब पुरस्कार और अकादमी पुरस्कार के लिए भारत की आधिकारिक प्रविष्टि के रूप में चुना गया। ए.आर.
देखें कवि और रंग दे बसंती
रइघू
रइघू एक अपभ्रंश कवि थे। वे अपभ्रंश के सर्वाधिक यशस्वी एवं अंतिम कवि थे। उन्होने ही गोपाचल पर निर्मित अधिकांश जैन मूर्तियों की प्राण-प्रतिषठा की थी। श्रेणी:अपभ्रंश कवि.
देखें कवि और रइघू
रुडयार्ड किपलिंग
रुडयार्ड किपलिंग (30 दिसम्बर 1865 - 18 जनवरी 1936) एक ब्रिटिश लेखक और कवि थे। ब्रिटिश भारत में बंबई में जन्मे, किपलिंग को मुख्य रूप से उनकी पुस्तक द जंगल बुक(1894) (कहानियों का संग्रह जिसमें रिक्की-टिक्की-टावी भी शामिल है), किम 1901 (साहस की कहानी), द मैन हु वुड बी किंग (1888) और उनकी कविताएं जिसमें मंडालय (1890), गंगा दीन (1890) और इफ- (1910) शामिल हैं, के लिए जाने जाते हैं। उन्हें "लघु कहानी की कला में एक प्रमुख अन्वेषक" माना जाता हैरूदरफोर्ड, एंड्रयू (1987).
देखें कवि और रुडयार्ड किपलिंग
रूपसिह चंदेल
रूपसिह चंदेल (जन्म: १२ मार्च १९५१) हिन्दी कवि और लेखक हैं। १२ मार्च १९५१ को कानपुर के गाँव नौगवां (गौतम) में जन्मे वरिष्ठ कथाकार रूपसिंह चन्देल कानपुर विश्वविद्यालय से एम.ए.
देखें कवि और रूपसिह चंदेल
रॉबर्ट एंडरसन ( कवि )
रॉबर्ट एंडरसन (Robert Anderson; 1770 – 1833) अंगरेज कवि थे जिन्होने कुम्ब्रियन बोली (Cumbrian dialect) में कविताएं रची। वे एक श्रमिक वर्ग के कवि थे। श्रेणी:अंग्रेजी कवि.
देखें कवि और रॉबर्ट एंडरसन ( कवि )
ललिता लेनिन
ललिता लेनिन (मलयालम: ലളിത ലെനിന്; जन्म १७ जुलाई १९४६, थ्रीथल्लूर, त्रिशूर, केरल) मलयालम में एक भारतीय कवि है। लाइब्रेरी और सूचना विज्ञान विभाग, केरल विश्वविद्यालय, तिरुवनंतपुरम की प्रमुख भी है। वह केनेट के कैनेट और अकादमी परिषदकेरल, साहित्य अकादमी की जनरल काउंसिल, जनशिक्षण संस्थान प्रबंधन बोर्ड, स्टेट इंस्टीट्यूट ऑफ चाइल्ड लिटरेचर, स्टेट रिसोर्स सेंटर, केंट्रीय स्टेट कोर ग्रुप ऑन कन्जिन्यूइंग एजुकेशन की सदस्य भी थी। .
देखें कवि और ललिता लेनिन
लारेन्स फेर्लिंघेट्टि
लारेन्स फेर्लिंघेट्टि, 2007 लारेन्स फेर्लिंघेट्टि (२४ मार्च १९१९) अमेरिका के प्रख्यात कवि, अनुवादक, चित्रकार, नाट्यकार और उदारनैतिक भाविक हैं। पचासके दशकमें उनहोने सिटि लाइटस बुकस प्रकाशन संस्था कि स्थापना की, कैलिफोरनियाके संफ्रांन्सिस्को मे। उस रास्ते का नाम अभि जैक केरुयक ऐलि के नाम से जाना जाता है। उनके प्रकाशन संस्था से ही बीट कवि, लेखक एवम नाट्यकारों का पहला किताब प्रकाशित हुये थे, यंहा तक कि गिंसबर्गके हाउल उनके यहां से प्रकाशित होने पर उसपर जो अश्लीलता का मुकदमा हुया था वह भी लारेन्स फेर्लिंघेट्टिको ही झेलना पडा था। वे जाने जाते हैं उनका पहला काव्यग्रन्थ ए कोनि आइलैन्ड ऑफ दि माइन्ड के कारण जो अब तक दस भाषायों में अनुदित हुये हैं और जिसकी दस लाख से भी ज्यादा कापि अब तक बिक चुके हैं। भारतीय भुखी पीढी आंदोलनकारीयाँ के लेखन भी वह प्रकाश कर चुके हैं। मलय रायचौधुरी के खिलाफ जब साठके दशकमें मुकदमा चला था तब वे उनकि कविता प्रकाशित कर अमेरिका के पाठकॉके सामने लाये थे। .
देखें कवि और लारेन्स फेर्लिंघेट्टि
लखनऊ
लखनऊ (भारत के सर्वाधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश की राजधानी है। इस शहर में लखनऊ जिले और लखनऊ मंडल के प्रशासनिक मुख्यालय भी स्थित हैं। लखनऊ शहर अपनी खास नज़ाकत और तहजीब वाली बहुसांस्कृतिक खूबी, दशहरी आम के बाग़ों तथा चिकन की कढ़ाई के काम के लिये जाना जाता है। २००६ मे इसकी जनसंख्या २,५४१,१०१ तथा साक्षरता दर ६८.६३% थी। भारत सरकार की २००१ की जनगणना, सामाजिक आर्थिक सूचकांक और बुनियादी सुविधा सूचकांक संबंधी आंकड़ों के अनुसार, लखनऊ जिला अल्पसंख्यकों की घनी आबादी वाला जिला है। कानपुर के बाद यह शहर उत्तर-प्रदेश का सबसे बड़ा शहरी क्षेत्र है। शहर के बीच से गोमती नदी बहती है, जो लखनऊ की संस्कृति का हिस्सा है। लखनऊ उस क्ष्रेत्र मे स्थित है जिसे ऐतिहासिक रूप से अवध क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। लखनऊ हमेशा से एक बहुसांस्कृतिक शहर रहा है। यहाँ के शिया नवाबों द्वारा शिष्टाचार, खूबसूरत उद्यानों, कविता, संगीत और बढ़िया व्यंजनों को हमेशा संरक्षण दिया गया। लखनऊ को नवाबों के शहर के रूप में भी जाना जाता है। इसे पूर्व की स्वर्ण नगर (गोल्डन सिटी) और शिराज-ए-हिंद के रूप में जाना जाता है। आज का लखनऊ एक जीवंत शहर है जिसमे एक आर्थिक विकास दिखता है और यह भारत के तेजी से बढ़ रहे गैर-महानगरों के शीर्ष पंद्रह में से एक है। यह हिंदी और उर्दू साहित्य के केंद्रों में से एक है। यहां अधिकांश लोग हिन्दी बोलते हैं। यहां की हिन्दी में लखनवी अंदाज़ है, जो विश्वप्रसिद्ध है। इसके अलावा यहाँ उर्दू और अंग्रेज़ी भी बोली जाती हैं। .
देखें कवि और लखनऊ
लखनऊ की संस्कृति
लखनऊ अपनी विरासत में मिली संस्कृति को आधुनिक जीवनशैली के संग बड़ी सुंदरता के साथ संजोये हुए है। भारत के उत्कृष्टतम शहरों में गिने जाने वाले लखनऊ की संस्कृति में भावनाओं की गर्माहट के साथ उच्च श्रेणी का सौजन्य एवं प्रेम भी है। लखनऊ के समाज में नवाबों के समय से ही पहले आप वाली शैली समायी हुई है। हालांकि स्वार्थी आधुनिक शैली की पदचाप सुनायी देती है, किंतु फिर भी शहर की जनसंख्या का एक भाग इस तहजीब को संभाले हुए है। यह तहजीब यहां दो विशाल धर्मों के लोगों को एक समान संस्कृति से बांधती है। ये संस्कृति यहां के नवाबों के समय से चली आ रही है। .
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लक्ष्मीनाथ बेजबरुवा
लक्ष्मीनाथ बेजबरुवा (१८६४-१९३८) आधुनिक असमिया साहित्य के पथ-प्रदर्शक कहे जाते हैं। कविता, नाटक, गल्प, उपन्यास, निबन्ध, रम्यरचना, समालोचना, प्रहसन, जीवनी, आत्मजीवनी, शिशुसाहित्य, इतिहास अध्ययन, सांवादिकता आदि दृष्टियों से बेजबरुवा का योगदानदान अमूल्य है। उनका "असमिया साहित्येर चानेकी" नामक संकलन विशेष प्रसिद्ध है। असमिया साहित्य में उन्होंने कहानी तथा ललित निबंध के बीच के एक सहित्य रूप को अधिक प्रचलित किया। बेजबरुआ की हास्यरस की रचनाओं को काफी लोकप्रियता मिली। इसीलिए उसे "रसराज" की उपाधि दी गई। .
देखें कवि और लक्ष्मीनाथ बेजबरुवा
लक्ष्मीकान्त महापात्र
कान्तकवि लक्ष्मीकान्त महापात्र (९ दिसम्बर १८८८ - २४ फ़रवरी १९५३) ओडिया के प्रसिद्ध कवि थे। उनका जन्म ओडिशा के भद्रक जिले में हुआ था। ओडिशा का राज्यगान 'बन्दे उत्कल जननी' उनकी कृति है। महाकवि लक्ष्मीकान्त महापात्र बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वे कवि होने के साथ ही स्वतन्त्रता सेनानी भी थे। उन्होंने ओड़िया साहित्य को नया आयाम प्रदान किया तथा हजारों लोगों को स्वतन्त्रता संग्राम से जोड़ा। इनका साहित्य हर आयु एवं वर्ग के लोगों के मन को झकझोर देता था। इसीलिए राज्य की जनता ने उन्हें ‘कान्तकवि’ की उपाधि देकर सम्मानित किया। श्रेणी:ऑडिया साहित्यकार.
देखें कवि और लक्ष्मीकान्त महापात्र
लेओपोल्ड सदर सेंघोर
लेओपोल्ड सदर सेंघोर (९ अक्टूबर १९०६ - २० दिसम्बर २००१) एक सेनेगलिस कवि, राजनेता और सांस्कृतिक सिद्धांतवादी थे, जिन्होंने सेनेगल के पहले राष्ट्रपति के रूप में बीस वर्षों तक सेवा दी। सेंघोर एकेडमिक फ्रांकाइस (Académie française) के पहले अफ्रीका सदस्य थे। वे राजनीतिक दल सेनेगालिस डेमोक्रेटिक ब्लॉक के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। उन्हें २० वीं सदी के महत्वपूर्ण अफ्रीकी बुद्धिजीवियों में से एक गिना जाता है। वर्ष 1982 में इन्हें जवाहर लाल नेहरू पुरस्कार से नवाजा गया। श्रेणी:राजनीतिज्ञ.
देखें कवि और लेओपोल्ड सदर सेंघोर
लोलिम्बराज
लोलिंबराज दक्षिण के हरिहर नामक नरेश की सभा के प्रतिष्ठित कवि एवं विद्वान् थे। आयुर्वेद, गांधर्ववेद, तथा काव्यकला में इन्हें विशिष्ट नैपुण्य प्राप्त हुआ। ये धारा के प्रसिद्ध परमारवंशी नरेश भोज के समकालिक थे। भोज के समकालिक होने के कारण लोलिंबराज का भी समय ईसा की एकादश शताब्दी निश्चित रूप से कहा जा सकता है। इनके पिता का नाम दिवाकर सूनु था। लोलिंबराज के अग्रज नि:संतान थे। उन्होंने इनका पुत्रवत् लालन पालन किया। फलत: यौवनागम तक ये निरक्षर ही रहे। आवारों की भाँति दिन भर इधर उधर घूमते रहते, केवल भोजनवेला में घर पर आते। एक बार जब बड़े भाई वृत्ति उपार्जन के लिए परदेश गए हुए थे, इन्होंने अपनी भाभी के हाथ से झपटकर भोजनपात्र छीन लिया। पतिवियोग से संतप्त भाभी ने लोलिम्ब की इस अविनयपूर्ण अशिष्टता से क्रुद्ध होकर इन्हें दुत्कारा, जिससे लोलिंब के हृदय पर गहरा धक्का लगा। तुरंत सभी विषयों से विमुख हो इन्होंने 'सप्तशृंग' नामक पर्वत पर विराजमान अष्टादश भुजाओंवाली भगवती महिषासुरमर्दिनी, की पूर्ण विश्वास के साथ सेवा की, और स्वल्प समय में ही जगदंबा की प्रसन्नता का वर प्राप्त कर लिया। फलत: एक घड़ी में सौ उत्तम श्लोकों की रचना की सामर्थ्य प्राप्त कर ली। इसका उल्लेख उन्होंने स्वयं इस प्रकार किया है: इनकी अनुपम काव्यप्रतिभा से पूर्ण दो वैद्यक ग्रंथ मिलते हैं, 'वैद्यजीवन' तथा 'वैद्यावतंस' और पाँच सर्गों का एक अतिशय मधुर काव्य 'हरिविलास', जिसमें श्रीकृष्णभगवान् की नंदगृह में स्थिति से कंसवध तक की लीला का वर्णन हुआ है। इस काव्य की रचना लोलिंब ने अपने आश्रयदाता श्री सूर्यपुत्र हरि (या हरिहर) नरेश के अनुरोध से की थी- काव्यकला की दृष्टि से इस काव्य में कोई वैशिष्ट्य नहीं प्रतीत होता है। रीति वैदर्भी तथा कहीं-कहीं यमक एवं अनुप्रास की छटा अवश्य देखने को मिलती है। पूर्ववर्ती कवियों में कालिदास तथा भारवि का प्रभाव अत्यधिक प्रतीत होता है। उदाहरणार्थ, रघुवंश के प्रसिद्ध श्लोक 'कुसुमजन्म ततो नवपल्लवास्तदनु षट्पदकोकिलकूजितम्' की छाया इन पंक्तियों में स्पष्ट दिखाई पड़ती है-'पुष्पाणि प्रथमं तत: प्रकटिता, स्वान्तोत्सवा:पल्लवा:। पश्चादुन्मदकोकिलालिललना कोलाहला: कोमला' आदि। कहीं कहीं कुछ अपाणिनीय प्रयोग भी मिलते हैं, जैसे- 'प्रिय इति पतिनोक्ता सा सुखाब्धौ ममज्ज (ह.
देखें कवि और लोलिम्बराज
ली बै
लि पो या लि बै (705-762 ई.) चीन के महान कवि होथे। बहुत दिनों तक वे भ्रमण करते रहे, फिर कुछ कवियों के साथ हिमालय प्रस्थान कर गए। वहाँ से लौटकर राजदरबार में रहने लगे, लेकिन किसी षड्यंत्र के कारण उन्हें शीघ्र ही अपना पद छोड़ना पड़ा। अपनी आंतरिक व्यथा व्यक्त करते हुए कवि ने कहा है: एक बार रात्रि के समय नौकाविहार करते हुए, खुमारी की हालत में, कवि ने जल में प्रतिबिंबित चंद्रमा को पकड़ना चाहा, लेकिन वे नदी में गिर पड़े ओर डूब कर मर गए। श्रेणी:चीनी साहित्यकार श्रेणी:701 में जन्मे लोग श्रेणी:७६२ में निधन.
देखें कवि और ली बै
शम्सुर्रहमान फारुकी
शम्सुर्रहमान फारुकी सरस्वती सम्मान से सम्मानित साहित्यकार और उर्दू ज़बान व अदब के नामवर आलोचक हैं। उनको उर्दू आलोचना के टी.एस.एलियट के रूप में माना जाता है और उन्होंने साहित्यिक समीक्षा के नए मॉडल तैयार किए हैं। इनके द्वारा रचित एक समालोचना तनक़ीदी अफ़कार के लिये उन्हें सन् १९८६ में साहित्य अकादमी पुरस्कार (उर्दू) से सम्मानित किया गया। .
देखें कवि और शम्सुर्रहमान फारुकी
शार्ङ्गधर
शार्ङ्गधर मध्यकाल के एक आयुर्वेदाचार्य थे जिन्होने शार्ङ्गधरसंहिता नामक आयुर्वैदिक ग्रन्थ की रचना की। शार्ङ्गधर का जन्म समय १३वीं-१४वीं सदी के आसपास माना गया है। शार्ङ्गधरसंहिता में ग्रन्थकार ने कुछ ही जगह अपने नामों का उल्लेख किया है। इनके पिता पुरातत्ववेत्ता थे जिनका नाम दामोदर एवं पितामह का नाम राघवदेव था। आचार्य शार्ङ्गधर केवल चिकित्साशास्त्र के मर्मज्ञ ही नहीं थे, अपितु कवित्व शक्ति से सम्पन्न एवं विविध शास्त्रों के ज्ञाता थे। आचार्य शार्ङ्गधर के नाम से दो प्रसिद्ध ग्रन्थ है (१) शार्ङ्गधरसंहिता (२) शार्ङ्गधरपद्धति। .
देखें कवि और शार्ङ्गधर
शाह जो रसालो
शाह जो रसालो, सिन्ध के सूफी कवि शाह अब्दुल लतीफ की काव्य रचना है। .
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शाह अब्दुल लतीफ़
शाह अब्दुल लतीफ शाह अब्दुल लतीफ़ भटाई (1689-1752) सिंध के प्रसिद्ध सूफ़ी कवि थे, जिन्होंने सिन्धी भाषा को विश्व के मंच पर स्थापित किया। शाह लतीफ़ का कालजयी काव्य-संकलन 'शाह जो रसालो' सिन्धी समुदाय के हृदयकी धड़कन सा है। सिन्ध का सन्दर्भ विश्व में शाह लतीफ़ की भूमि के रूप में भी दिया जाता है, जिस की सात नायिकाओं मारुई, मूमल, सस्सी, नूरी, सोहनी, हीर तथा लीला को सात रानियाँ भी कहा जाता है। ये सातों रानियाँ पवित्रता, वफादारी और सतीत्व के प्रतीक रूप में शाश्वत रूप से प्रसिद्ध हैं। इन सब की जीत प्रेम और वीरता की जीत है। शाह अब्दुल लतीफ़ एक सूफी संत थे जिन के बारे में राजमोहन गाँधी ने अपनी पुस्तक 'अण्डरस्टैण्डिंग द मुस्लिम माइण्ड' में लिखा है कि जब उनसे कोई पूछता था कि आप का मज़हब क्या है, तो कहते थे कोई नहीं। फिर क्षण भर बाद कहते थे कि सभी मज़हब मेरे मज़हब हैं। सूफी दर्शन कहता है कि जिस प्रकार किसी वृत्त के केंद्र तक असंख्य अर्द्ध- व्यास पहुँच सकते हैं, वैसे ही सत्य तक पहुँचने के असंख्य रास्ते हैं। हिन्दू या मुस्लिम रास्तों में से कोई एक आदर्श रास्ता हो, ऐसा नहीं है। कबीर की तरह शाह भी प्रेम को उत्सर्ग से जोड़ते हैं। प्रेम तो सरफरोशी चाहता है। इसीलिए शाह अपने एक पद में कहते हैं: .
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शिफ़ा ग्वालियरी
शिफा ग्वालियरी (1912–1968) भारत से एक उर्दू शायर थे। वे मूल रूप से गज़ल और नज़्म लिखते थे। उनका जन्म मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर में हुआ था। वे उर्दू शायर सीमाब अकबराबादी के शिष्य थे। उनके तीन गज़ल संग्रह प्रकाशित है। मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी के द्वारा 2010 में उनके नाम पर एक वार्षिक साहित्यिक पुरस्कार की स्थापना की गई। .
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शिव कुमार बटालवी
शिव कुमार 'बटालवी' (ਸ਼ਿਵ ਕੁਮਾਰ ਬਟਾਲਵੀ) (1936 -1973) पंजाबी भाषा के एक विख्यात कवि थे, जो उन रोमांटिक कविताओं के लिए सबसे ज्यादा जाने जाते हैं, जिनमें भावनाओं का उभार, करुणा, जुदाई और प्रेमी के दर्द का बखूबी चित्रण है। वे 1967 में वे साहित्य अकादमी पुरस्कार पाने वाले सबसे कम उम्र के साहित्यकार बन गये। साहित्य अकादमी (भारत की साहित्य अकादमी) ने यह सम्मान पूरण भगत की प्राचीन कथा पर आधारित उनके महाकाव्य नाटिका लूणा (1965) के लिए दिया, जिसे आधुनिक पंजाबी साहित्य की एक महान कृति माना जाता है और जिसने आधुनिक पंजाबी किस्सागोई की एक नई शैली की स्थापना की। आज उनकी कविता आधुनिक पंजाबी कविता के अमृता प्रीतम और मोहन सिंह जैसे दिग्गजों के बीच बराबरी के स्तर पर खड़ी है,जिनमें से सभी भारत- पाकिस्तान सीमा के दोनों पक्षों में लोकप्रिय हैं।.
देखें कवि और शिव कुमार बटालवी
शिवमंगल सिंह 'सुमन'
शिवमंगल सिंह 'सुमन' (1 915-2002) एक प्रसिद्ध हिंदी कवि और शिक्षाविद् थे। उनकी मृत्यु के बाद, भारत के तत्कालीन प्रधान मंत्री ने कहा, "डॉ शिव मंगल सिंह 'सुमन' केवल हिंदी कविता के क्षेत्र में एक शक्तिशाली हस्ताक्षर ही नहीं थे, बल्कि वह अपने समय की सामूहिक चेतना के संरक्षक भी थे। न केवल अपनी भावनाओं का दर्द व्यक्त किया, बल्कि युग के मुद्दों पर भी निर्भीक रचनात्मक टिप्पणी भी थी। " .
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शिवसिंह सेंगर
शिवसिंह सेंगर (संवत् 1890-1935 वि.) हिन्दी के इतिहास लेखक थे। शिवसिंह सेंगर ग्राम कांथा जिला उन्नाव के जमींदार श्री रणजीतसिंह के पुत्र थे। वे पुलिस इंस्पेक्टर होते हुए भी संस्कृत, फारसी और हिंदी कविता के अध्येता, रसिक काव्यप्रेमी तथा स्वयं भी कवि थे। "ब्रह्मोत्तर खंड" और "शिवपुराण" का हिंदी अनुवाद करने के अतिरिक्त आपकी प्रसिद्धि हिंदी कविता के पहले इतिहासग्रंथ "शिवसिंह सरोज" (रचनाकाल सं.
देखें कवि और शिवसिंह सेंगर
शिवानन्द गोस्वामी
शिवानन्द गोस्वामी | शिरोमणि भट्ट (अनुमानित काल: संवत् १७१०-१७९७) तंत्र-मंत्र, साहित्य, काव्यशास्त्र, आयुर्वेद, सम्प्रदाय-ज्ञान, वेद-वेदांग, कर्मकांड, धर्मशास्त्र, खगोलशास्त्र-ज्योतिष, होरा शास्त्र, व्याकरण आदि अनेक विषयों के जाने-माने विद्वान थे। इनके पूर्वज मूलतः तेलंगाना के तेलगूभाषी उच्चकुलीन पंचद्रविड़ वेल्लनाडू ब्राह्मण थे, जो उत्तर भारतीय राजा-महाराजाओं के आग्रह और निमंत्रण पर राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और उत्तर भारत के अन्य प्रान्तों में आ कर कुलगुरु, राजगुरु, धर्मपीठ निर्देशक, आदि पदों पर आसीन हुए| शिवानन्द गोस्वामी त्रिपुर-सुन्दरी के अनन्य साधक और शक्ति-उपासक थे। एक चमत्कारिक मान्त्रिक और तांत्रिक के रूप में उनकी साधना और सिद्धियों की अनेक घटनाएँ उल्लेखनीय हैं। श्रीमद्भागवत के बाद सबसे विपुल ग्रन्थ सिंह-सिद्धांत-सिन्धु लिखने का श्रेय शिवानंद गोस्वामी को है।" .
देखें कवि और शिवानन्द गोस्वामी
शंकरदेव
श्रीमन्त शंकरदेव असमिया भाषा के अत्यंत प्रसिद्ध कवि, नाटककार तथा हिन्दू समाजसुधारक थे। .
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श्याम नारायण पाण्डेय
वीर रस के कवि श्याम नारायण पाण्डेय (1907-1991) श्याम नारायण पाण्डेय (1907 - 1991) वीर रस के सुविख्यात हिन्दी कवि थे। वह केवल कवि ही नहीं अपितु अपनी ओजस्वी वाणी में वीर रस काव्य के अनन्यतम प्रस्तोता भी थे। .
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श्रीधर पाठक
उत्तर प्रदेश-जन्म स्थान श्रीधर पाठक (११ जनवरी १८५८ - १३ सितंबर १९२८) प्राकृतिक सौंदर्य, स्वदेश प्रेम तथा समाजसुधार की भावनाओ के हिन्दी कवि थे। वे प्रकृतिप्रेमी, सरल, उदार, नम्र, सहृदय, स्वच्छंद तथा विनोदी थे। वे हिंदी साहित्य सम्मेलन के पाँचवें अधिवेशन (1915, लखनऊ) के सभापति हुए और 'कविभूषण' की उपाधि से विभूषित भी। हिंदी, संस्कृत और अंग्रेजी पर उनका समान अधिकार था। .
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श्रीधर भास्कर वर्णेकर
डॉ श्रीधर भास्कर वार्णेकर (३१ जुलाई १९१८ - १० अप्रैल २०००) संस्कृत के विद्वान तथा राष्ट्रवादी कवि थे। उनका जन्म नागपुर में हुआ था। .
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श्रीनारायण चतुर्वेदी
पं॰ श्रीनारायण चतुर्वेदी (१८९५ -- १८ अगस्त १९९०) हिन्दी के साहित्यकार, प्रचारक, सर्जक तथा पत्रकार थे जो आजीवन हिन्दी के लिये समर्पित रहे। वे सरस्वती पत्रिका के सम्पादक रहे। उन्होने राष्ट्र को हिन्दीमय बनाने के लिये जनता में भाषा की जीवन्त चेतना को उकसाया। अपनी अमूल्य हिन्दी सेवा द्वारा उन्होने भारतरत्न मदन मोहन मालवीय तथा पुरुषोत्तम दास टंडन की योजनाओं और लक्ष्यों को आगे बढ़ाया। .
देखें कवि और श्रीनारायण चतुर्वेदी
श्रीकृष्णभट्ट कविकलानिधि
(देवर्षि) श्रीकृष्ण भट्ट कविकलानिधि (1675-1761) सवाई जयसिंह के समकालीन, बूंदी और जयपुर के राजदरबारों से सम्मानित, आन्ध्र-तैलंग-भट्ट, संस्कृत और ब्रजभाषा के महाकवि थे। "सवाई जयसिंह द्वितीय (03 नवम्बर 1688 - 21 सितम्बर 1743) ने अपने समय में जिन विद्वत्परिवारों को बाहर से ला कर अपने राज्य में जागीर तथा संरक्षण दिया उनमें आन्ध्र प्रदेश से आया यह तैलंग ब्राह्मण परिवार प्रमुख स्थान रखता है। इस परिवार में में ही उत्पन्न हुए थे (देवर्षि) कविकलानिधि श्रीकृष्णभट्ट जी, जिन्होंने 'ईश्वर विलास', 'पद्यमुक्तावली', 'राघव गीत' आदि अनेक ग्रंथों की रचना कर राज्य का गौरव बढ़ाया। इन्होंने सवाई जयसिंह से सम्मान प्राप्त किया था, (उनके द्वारा जयपुर में आयोजित) अश्वमेध यज्ञ में भाग लिया था, जयपुर को बसते हुए देखा था और उसका एक ऐतिहासिक महाकाव्य में वर्णन किया था। देवर्षि-कुल के इस प्रकांड विद्वान ने अपनी प्रतिभा के बल पर अपने जीवन-काल में पर्याप्त प्रसिद्धि, समृद्धि एवं सम्मान प्राप्त किया था।" भट्ट मथुरानाथ शास्त्री ने अपने इन पूर्वज कविकलानिधि का सोरठा छंद में निबद्ध संस्कृत-कविता में इन शब्दों में स्मरण किया था- तुलसी-सूर-विहारि-कृष्णभट्ट-भारवि-मुखाः। भाषाकविताकारि-कवयः कस्य न सम्भता:।। .
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शैलेन्द्र
शंकरदास केसरीलाल शैलेन्द्र (१९२३-१९६६) हिन्दी के एक प्रमुख गीतकार थे। जन्म रावलपिंडी में और देहान्त मुम्बई में हुआ। इन्होंने राज कपूर के साथ बहुत काम किया। शैलेन्द्र हिन्दी फिल्मों के साथ-साथ भोजपुरी फिल्मों के भी एक प्रमुख गीतकार थे। .
देखें कवि और शैलेन्द्र
शैलेश लोधा
शैलेश लोढा एक भारतीय अभिनेता तथा कवि(hasya kavi,karun kavi),comedian,manch sanchalak(ANCHOR) है इनका जन्म राजस्थान के जोधपुर जिले हुआ। वर्तमान में तारक मेहता का उल्टा चश्मा में "तारक मेहता" किरदार निभा रहे हैं। .
देखें कवि और शैलेश लोधा
शीलाभट्टारिका
शीलाभट्टारिका ९वीं शताब्दी की संस्कृत कवयित्री थीं। अधिकांश प्रमुख संस्कृत काव्य-संग्रहों में उनका काव्य सम्मिलित मिलता है। अनेक मध्यकालीन संस्कृत आलोचकों ने उनके काव्यकौशल की प्रशंसा की है। १०वीं शताब्दी के कवि राजशेखर ने शीलाभट्टारिका को पाञ्चाली शैली की प्रमुख कवयित्री कहकर उनकी प्रशंशा की है। उस समय साहित्य की चार शैलियाँ प्रमुख थीं- वैदर्भी, गौड़ी, लाटी एवं पाञ्चाली। १५वीं शताब्दी में रचित सुभाषितावली में राजशेखर को उद्दृत करते हुए कहा गया है कि पाञ्चाली शैली में शब्द और अर्थ का संतुलन होता है। राजशेखर ने लिखा है कि पाञ्चाली शैली शीलभट्टारिका के काव्य में मिलती है तथा बाणभट्ट के कुछ ग्रन्थों में भी पांचाली शैली के दर्शन होते हैं। श्रेणी:संस्कृत कवि.
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सन्त एकनाथ
सन्त एकनाथ एकनाथ (१५३३-१५९९ ई.) प्रसिद्ध मराठी सन्त जिनका जन्म पैठण में संत भानुदास के कुल में हुआ था। इन्होंने संत ज्ञानेश्वर द्वारा प्रवृत्त साहित्यिक तथा धार्मिक कार्य का सब प्रकार से उत्कर्ष किया। ये संत भानुदास के पौत्र थे। गोस्वामी तुलसीदास के समान मूल नक्षत्र में जन्म होने के कारण ऐसा विश्वास है कि कुछ महीनों के बाद ही इनके माता पिता की मृत्यु हो गई थी। बालक एकनाथ स्वभावत: श्रद्धावान तथा बुद्धिमान थे। देवगढ़ के हाकिम जनार्दन स्वामी की ब्रह्मनिष्ठा, विद्वत्ता, सदाचार और भक्ति देखकर भावुक एकनाथ उनकी ओर आकृष्ट हुए और उनके शिष्य हो गए। एकनाथ ने अपने गुरु से ज्ञानेश्वरी, अमृतानुभव, श्रीमद्भागवत आदि ग्रंथों का अध्ययन किया और उनका आत्मबोध जाग्रत हुआ। गुरु की आज्ञा से ये गृहस्थ बने। एकनाथ अपूर्व संत थे। प्रवृत्ति और निवृत्ति का ऐसा अनूठा समन्वय कदाचित् ही किसी अन्य संत में दिखाई देता है। आज से ४०० वर्ष पूर्व इन्होंने मानवता की उदार भावना से प्रेरित होकर अछूतोद्धार का प्रयत्न किया। ये जितने ऊँचे संत थे उतने ही ऊँचे कवि भी थे। इनकी टक्कर का बहुमुखी सर्जनशील प्रतिभा का कवि महाराष्ट्र में इनसे पहले पैदा नहीं हुआ था। महाराष्ट्र की अत्यंत विषम अवस्था में इनको साहित्यसृष्टि करनी पड़ी। मराठी भाषा, उर्दू-फारसी से दब गई थी। दूसरी ओर संस्कृत के पंडित देशभाषा मराठी का विरोध करते थे। इन्होंने मराठी के माध्यम से ही जनता को जाग्रत करने का बीड़ा उठाया। .
देखें कवि और सन्त एकनाथ
सरह
सरह या सरहपा या सिद्ध सरहपा (आठवीं शती) हिन्दी के प्रथम कवि माने जाते हैं। उनको बौद्ध धर्म की वज्रयान और सहजयान शाखा का प्रवर्तक तथा आदि सिद्ध माना जाता है। उनका मूल नाम ‘राहुलभद्र’ था और उनके ‘सरोजवज्र’, ‘शरोरुहवज्र’, ‘पद्म‘ तथा ‘पद्मवज्र’ नाम भी मिलते हैं। वे पालशासक धर्मपाल (770-810 ई.) के समकालीन थे। उनके जन्म-स्थान को लेकर विवाद है। एक तिब्बती जनश्रुति के आधार पर उनका जन्म-स्थान उड़ीसा बताया गया है। एक जनश्रुति सहरसा जिले के पंचगछिया ग्राम को भी उनका जन्म-स्थान बताती है। .
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सराह के
सराह के/सराह की एक प्रसिद्ध अमेरिकी कवियित्री हैं, जिन्हे स्पोकेन वर्ड पोएट्री के हैं। वें प्रोजेक्ट V.O.I.C.E की संस्थापक और निर्देशक हैं, स्थापना वर्ष २००४ में हुआ था।Aptowicz, Cristin O'Keefe.
देखें कवि और सराह के
साथ हो तुम
साथ हो तुम (ISBN: 9789381501238), वर्ष 2015 में प्रकाशित पुस्तक हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि राजगोपाल सिंह का अंतिम काव्य संग्रह है। यह उनकी मुत्यु के पश्चात प्रकाशित हुआ। पाँखी प्रकाशन, दिल्ली से प्रकाशित इस संग्रह में कवि की ग़ज़लें, गीत, कविताएँ तथा दोहे आदि अनेक विधाएँ संकलित हैं। इस पुस्तक का संपादन चिराग़ जैन ने किया है। .
देखें कवि और साथ हो तुम
सारला दास
सारला दास ओड़िया के महान कवि थे जिन्होने ओडिया में महाभारत की रचना की। उनका समय पन्द्रहवीं शती का है। उन्हें ओड़िया का आदिकवि कहा जाता है। .
देखें कवि और सारला दास
साल्वातोर काज़ीमोदो
साल्वातोर काज़ीमोदो (Salvatore Quasimodo) इटली के कवि थे। 1959 ई० में साहित्य में नोबेल पुरस्कार विजेता। .
देखें कवि और साल्वातोर काज़ीमोदो
साहिर लुधियानवी
साहिर लुधियानवी (८ मार्च १९२१ - २५ अक्टूबर १९८०) एक प्रसिद्ध शायर तथा गीतकार थे। इनका जन्म लुधियाना में हुआ था और लाहौर (चार उर्दू पत्रिकाओं का सम्पादन, सन् १९४८ तक) तथा बंबई (१९४९ के बाद) इनकी कर्मभूमि रही। .
देखें कवि और साहिर लुधियानवी
सावित्रीबाई फुले
फुले दंपत्ति सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले (3 जनवरी 1831 – 10 मार्च 1897) भारत की प्रथम महिला शिक्षिका, समाज सुधारिका एवं मराठी कवयित्री थीं। उन्होंने अपने पति ज्योतिराव गोविंदराव फुले के साथ मिलकर स्त्रियों के अधिकारों एवं शिसे कार्य किए। सावित्रीबाई भारत के प्रथम कन्या विद्यालय में प्रथम महिला शिक्षिका थीं। उन्हें आधुनिक मराठी काव्य की अग्रदूत माना जाता है। 1852 में उन्होंने अछूत बालिकाओं के लिए एक विद्यालय की स्थापना की। .
देखें कवि और सावित्रीबाई फुले
संदीप नाथ
संदीप नाथ बॉलीवुड फ़िल्मों में कार्यरत एक भारतीय गीतकार और लेखक व कवि हैं। .
देखें कवि और संदीप नाथ
सआलिबी
सआलिबी (Thaalibi; 961–1038) ११वीं शताब्दी पूर्वार्ध का प्रसिद्ध भाषाशास्त्री, कवि और कोशकार जिसका पूरा नाम 'अबू मंसूर अब्दुल मलिक इब्न मुहम्मद इब्न इस्माएल-सआलिबो' था। १०३८ ई.
देखें कवि और सआलिबी
सुब्रह्मण्य भारती
सुब्रह्मण्य भारती (சுப்பிரமணிய பாரதி, ११ दिसम्बर १८८२ - ११ सितम्बर १९२१) एक तमिल कवि थे। उनको 'महाकवि भरतियार' के नाम से भी जाना जाता है। उनकी कविताओं में राष्ट्रभक्ति कूट-कूट कर भरी हुई है। वह एक कवि होने के साथ-साथ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में शामिल सेनानी, समाज सुधारक, पत्रकार तथा उत्तर भारत व दक्षिण भारत के मध्य एकता के सेतु समान थे। .
देखें कवि और सुब्रह्मण्य भारती
सुभाष काक
सुभाष काक सुभाष काक (जन्म 26 मार्च 1947) प्रमुख भारतीय-अमेरिकी कवि, दार्शनिक और वैज्ञानिक हैं। वे अमेरिका के ओक्लाहोमा प्रान्त में संगणक विज्ञान के प्रोफेसर हैं। उनके कई ग्रन्थ वेद, कला और इतिहास पर भी प्रकाशित हुए हैं। उनका जन्म श्रीनगर, कश्मीर में राम नाथ काक और सरोजिनी काक के यहाँ हुआ। उनकी शिक्षा कश्मीर और दिल्ली में हुई। .
देखें कवि और सुभाष काक
सुमन पोखरेल
सुमन पोखरेल (जन्म २१ सितम्बर, १९६७) नेपाली कवि, गीतकार, अनुवादक तथा कलाकार हैं। Ed.
देखें कवि और सुमन पोखरेल
सुरेश सलिल
सुरेश सलिल (जन्म १९४२) हिन्दी के समर्थ कवि, आलोचक और साहित्यिक इतिहास के गहन अध्येता हैं। गणेश शंकर विद्यार्थी के कृतित्व और व्यक्तित्व पर अनेक प्रकाशनों के अतिरिक्त एक कविति संग्रह खुले में खड़े होकर प्रकाशित हुआ है। बच्चों व किशोरों के लिए भी इन्होंने कई किताबें प्रकाशित की हैं। .
देखें कवि और सुरेश सलिल
सुखबीर (पंजाबी उपन्यासकार)
सुखबीर, (पंजाबी: ਸੁਖਬੀਰ) (9 जुलाई 1925 - 22 फ़रवरी 2012), उर्फ़ बलबीर सिंह पंजाबी उपन्यासकार, कहानीकार, कवि और निबन्धकार थे। उनका जन्म 9 जुलाई 1925 को सरदार मंशा सिंह और श्रीमती शिव कौर के घर मुम्बई में हुआ था। ह्रदय रोग से 22 फ़रवरी 2012 को उनका निधन हुआ।http://www.countercurrents.org/date050312.htm .
देखें कवि और सुखबीर (पंजाबी उपन्यासकार)
स्तीफेन जार्ज
'''स्टीफन जार्ज''' (१९१०) स्तीफेन जार्ज (Stephan George 1863-1933) जर्मन कवि, सम्पादक और अनुवादक थे। .
देखें कवि और स्तीफेन जार्ज
सूरदास
सूरदास का नाम कृष्ण भक्ति की अजस्र धारा को प्रवाहित करने वाले भक्त कवियों में सर्वोपरि है। हिन्दी साहित्य में भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य उपासक और ब्रजभाषा के श्रेष्ठ कवि महात्मा सूरदास हिंदी साहित्य के सूर्य माने जाते हैं। हिंदी कविता कामिनी के इस कमनीय कांत ने हिंदी भाषा को समृद्ध करने में जो योगदान दिया है, वह अद्वितीय है। सूरदास हिंन्दी साहित्य में भक्ति काल के सगुण भक्ति शाखा के कृष्ण-भक्ति उपशाखा के महान कवि हैं। .
देखें कवि और सूरदास
सूरजदास
सूरजदास एक प्राचीन संत एवं कवि थे। इन्होने भगवान श्रीराम पर आधारित संक्षित्प्त पुस्तक रामजन्म की रचना की थी। सूरजदास कृति ‘रामजन्म’ को सन १९६६ में बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् द्वारा प्रकाशित किया गया। अवधी में सूरजदास कृत ‘रामजन्म’ नामक पुस्तक के सम्बन्ध में डाॅ वासुदेव शरण अग्रवाल का एक महत्वपूर्ण शोध आलेख है। डाॅ.
देखें कवि और सूरजदास
सूर्यमल्ल
https://commons.wikimedia.org/wiki/File:%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%AE%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B2.jpgमसूर्यमल्ल (मिश्रण) (संवत् 1872 विक्रमी - संवत् 1920 विक्रमी) बूँदी के हाड़ा शासक महाराव रामसिंह के दरबारी कवि थे। उन्होने वंशभास्कर नामक पिंगल काव्य ग्रन्थ की रचना की जिसमें बूँदी राज्य का विस्तृत इतिहास के साथ-साथ उत्तरी भारत का इतिहास तथा राजस्थान में मराठा विरोधी भावना का उल्लेख किया गया है। वे चारणों की मिश्रण शाखा से संबद्ध थे। वे वस्तुत: राष्ट्रीय-विचारधारा तथा भारतीय-संस्कृति के उद्बोधक कवि थे। 'वंशभास्कर' को पूर्ण करने का कार्य कवि सूर्यमल के दत्तक पुत्र मुरारीदान ने किया था। .
देखें कवि और सूर्यमल्ल
सूर्यकुमार पाण्डेय
सूर्यकुमार पाण्डेय (जन्म 10 अक्तूबर 1954) एक हिंदी कवि, हास्य लेखक और व्यंग्यकार हैं। उनके विशिष्ट भाषा शैली के कारण वे एक प्रसिद्ध हास्य कवि के रूप में अभिज्ञात हैं। .
देखें कवि और सूर्यकुमार पाण्डेय
सोम ठाकुर
सोम ठाकुर (जन्म ५ मार्च १९३४) हिन्दी के कवि एवं नवगीतकार हैं। .
देखें कवि और सोम ठाकुर
सोज़ो हेन्जो
सोज़ो हेन्जो (Sōjō Henjō; 遍昭 or 遍照, ८१६– १२ फ़रवरी ८९०) एक जापानी वाका कवि थें। इन्हें छः श्रेष्ठ वाका कवियों में गिना जाता था। वें बौद्ध अनुयायी थे। ऐसी अफवाहे थी की इनका कवियित्री ओनो नो कोमाचि से प्रेम प्रसंग था। .
देखें कवि और सोज़ो हेन्जो
सीताराम अग्रहरि
सीताराम अग्रहरि 'प्रकाश' (जन्म: १९५७) नेपाल के कवि, साहित्यकार एवं प्रख्यात पत्रकार हैं। वे नेपाल के सबसे पुराने समाचार पत्र गोरखापत्र के प्रधान संम्पादक हैं। .
देखें कवि और सीताराम अग्रहरि
सीमाब अकबराबादी
सीमाब अकबराबादी उर्दू के महान लेखक और कवि थे सीमाब अकबराबादी उर्दू के महान लेखक व कवि थे। वह दाग़ देहलवी के शागिर्द थे। जब कभी उर्दू अदब का ज़िक्र होता है तब उनका नाम मोहमद इक़बाल, जोश मलीहाबादी, फ़िराक गोरखपुरी और जिग़र मुरादाबादी के साथ लिया जाता है। .
देखें कवि और सीमाब अकबराबादी
हफ़ीज़ जालंधरी
अबू अल-असर हफ़ीज़ जालंधरी (नस्तालीक़:, जन्म 14 जनवरी 1900 - मौत 21 दिसंबर 1982) एक पाकिस्तानी उर्दु शायर थे जिन्होंने पाकिस्तान का क़ौमी तराना को लिखा। उन्हें "शाहनामा-ए-इस्लाम" की रचना करने के लिए भी जाने जाते हैं। .
देखें कवि और हफ़ीज़ जालंधरी
हबीब तनवीर
हबीब तनवीर चित्र में दाहिने हबीब तनवीर (जन्म: 1 सितंबर 1923) भारत के मशहूर पटकथा लेखक, नाट्य निर्देशक, कवि और अभिनेता थे। हबीब तनवीर का जन्म छत्तीसगढ़ के रायपुर में हुआ था, जबकि निधन 8 जून,2009 को मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में हुआ। उनकी प्रमुख कृतियों में आगरा बाजार (1954) चरणदास चोर (1975) शामिल है। उन्होंने 1959 में दिल्ली में नया थियेटर कंपनी स्थापित किया था। .
देखें कवि और हबीब तनवीर
हरमन मेलविल
हरमन मेलविल (1 अगस्त, 1819 – 28 सितम्बर, 1891) अमेरिकी पुनर्जागरण काल के एक अमेरिकी उपन्यासकार, लघु कथाकार और कवि थे। उनके सबसे प्रसिद्ध कृतियों में टाआइपी (Typee -1846) शामिल है जो उनके पोलिनेशियाई जीवन के अनुभवों का स्नेहात्मक चित्रण है। व्हेल मछलियों के शिकार पर आधारित उपन्यास मोबी-डिक (1851) भी उन्ही की लिखी है। उनके कार्यों पिछले 30 वर्षों के दौरान लगभग भुला दिया गया था। इसलिए हरमन ने स्कूल छोड़कर कारोबार सँभाल लिया। हरमन ने अपनी शिक्षा कारोबार के साथ साथ जारी रखी। उसने बैंक की नौकरी करने के साथ फ़र्र कंपनी में भी काम किया। इसके अलावा वह छोटे छोटे गाँव के स्कूलों में पढ़ाने लगा। 1839 ईः में उन्होंने समुंद्री जहाज़ में नौकरी का चयन किया। फिर वह लिवरपूल, इंगलैंड तक का सफ़र किए। इंगलैंड से वापसी पर उन्होंने अपने चाचा के साथ काम करना शुरू कर दिया। मगर अच्छी तरह से ये साझेदारी निभ नहीं पाई। फिर 1840 ई में समुद्री जहाज़ की नौकरी पर काम करने लगे। .
देखें कवि और हरमन मेलविल
हरमन हेस
हरमन हेस या हेरमान हेस्से (२ जुलाई १८७७ – ९ अगस्त १९६२) एक जर्मन उपन्यासकार, कहानीकार और कवि थे।नोबेल पुरस्कार से सम्मानित जर्मन साहित्यकार हरमन हेस मुख्य रूप से अपने तीन उपन्यासों सिद्धार्थ, स्टेपेनवौल्फ़ और मागिस्टर लुडी के लिये जाने जाते हैं। उन्होनें कविताएँ भी लिखीं और पेंटिंग्स भी बनाईं है। उन्हें १९४६ में साहित्य का नोबेल पुरस्कार दिया गया। हरमन हेस के सृजन में जो अन्तर्बोध और पूर्वी रहस्यवाद की व्यापक धारा बहती है, उसने उन्हें अपनी मृत्यु के बाद यूरोप में युवा वर्ग के बीच अत्यंत लोकप्रिय बना दिया। .
देखें कवि और हरमन हेस
हरिनारायण
हरिनारायण नाम के दो हिन्दी कवि हुए हैं - एक हरिनारायण मिश्र और दूसरे हरिनारायण।.
देखें कवि और हरिनारायण
हर्ता म्यूलर
रोमानिया में १७ अगस्त १९५३ को जन्मीं हर्ता म्यूलर जर्मन उपन्यासकार, कवियित्री और निबंधकार हैं और वे साम्यवादी रोमानिया में निकोलाइ चाउसेस्कु के दमनकारी शासन के दौरान जीवन की कठोर परिस्थितियों का सजीव चित्रण करने के लिए जानी जाती हैं। ८ अक्टूबर २००९, को की गयी एक घोषणा के अनुसार वो वर्ष २००९ की साहित्य के नोबेल पुरस्कार की विजेता हैं। .
देखें कवि और हर्ता म्यूलर
हलधरदास
हलधरदास (लगभग १५२५ ई। - लगभग १६२६ ई.) हिन्दी के मध्यकालीन कवि थे। समयक्रम से सूरदास के बाद कृष्ण-भक्ति-परंपरा के दूसरे प्रसिद्ध कवि हलधरदास ही हैं। हलधरदास का जन्म बिहार राज्य के मुजफ्फरपुर जिले के पदमौल नामक ग्राम में सन् १५२५ ई.
देखें कवि और हलधरदास
हसन कमाल
हसन कमाल एक मशहूर भारतीय कवि और गीतकार है। 1985 में इनहों ने अपने गीत के लिये फिल्मफ़ेर पुरसकार प्राप्त किया। यह गीत फिल्म "आज की आवाज़" के लिये लिखा गया था (1984).
देखें कवि और हसन कमाल
हाइबुन
हाइबुन जापानी साहित्य में एक गद्य की विधा हैं। इसमें पद्य और गद्य दोनों ही विधाओ का समावेश होता हैं। हाइबुन एक संक्षिप्त गद्य और हाइकु का सम्मिश्रण है जो कि एक यात्रा विवरण के रूप में लिखा जाता हैं। मात्सुओ बाशो, जो एक संत और हाइकु कवि थे, इस लेखन शैली के आरम्भ कर्ता हैं। उन्होंने अपनी यात्राओं में कई हाइबुन लिखे। समकालीन हाइबुन का प्रयोग व उनकी रचना अभी विकसित हो रही है। सामान्य तौर पर एक हाइबुन में एक या दो पैराग्राफ (छोटे खंड) होते हैं और एक या दो अन्तःस्थापित हाइकु। गद्य का भाग आमतौर पर पहले लिखा जाता है और संक्षिप्त होता है। उसमें किसी दृश्य या किसी विशेष पल का वर्णन बड़ी वर्णनात्मकता से किया जाता है। उसके साथ जुड़े हाइकु का गद्य से सीधा सम्बंध होता है अर्थात वह गद्य के भावार्थ को पूरी तरह से घेर लेता है और उस उस अनुभव का एक आलेख प्रस्तुत करता है। गद्य व हाइकु के विपरीत भावों को इकट्ठे पढ़कर पाठक को अधिक प्रभावशाली या गहराई का अनुभव होता है जो केवल गद्य या केवल हाइकु पढ़ने से नहीं मिल पाता। यह आवश्यक है कि कुछ भी सीधी तरह नहीं कहा जाना चाहिये बल्कि उस पल का एक चित्र अंकित कर पढ़ने वाले के सामने इस तरह रखा जाये कि वह अपनी कल्पना से लेखक के अनुभव को समझ सके। वर्तमान काल, गद्य की संक्षिप्तता और कम शब्दों में वाक्य विन्यास का प्रयोग करना आधुनिक हाइबुन की रचना में अधिमान्य है। हाइबुन का लेखक सामान्यता का परिहार करते हुए दृश्य को असंपृक्तता से चित्रित करता है। गद्य एक दैनिकी का भाग हो सकता है। परन्तु बहुत सावधानी व देख-रेख से इसे कई बार पढ़कर देखना चाहिए। एक उत्तम हाइबुन में गद्य का भाग हाइकु के बारे में कुछ नहीं बतलाएगा बल्कि हाइकु उस अनुभव के पारिभाषिक पल को बढ़ावा देगा। हाइकु गद्य के साथ तिरछा सम्बंध रखते हुए गद्य में प्रयोग किये संज्ञा, क्रिया, विशेषण और कर्म का परिहार करता है। डॉ॰ अंजली देवधर का एक हाइबुन, .
देखें कवि और हाइबुन
हिसा हिलाल
हिसा हिलाल (حصة هلال) एक सऊदी अरब की कवि है। वे पहले छद्म नाम रेमिआ (अरबीريميه) के तहत प्रकाशित होती थी। उसने अरब दुनिया के बाहर प्रसिद्धि प्राप्त की जब उसने एक अमरीति रीअलटी टेलीविजन कविता प्रतियोगिता, मिलियन कवि पर फतवाओं के खिलाफ कविता सुनाई, और कार्यक्रम के फाइनल तक पहुंचने वाली पहली महिला बनी। .
देखें कवि और हिसा हिलाल
हकीकत राय
हकीकत राय (१७१९–१७३४) एक साहसी था जिसने हिन्दू धर्म के अपमान का प्रतिकार किया और जबरन इस्लाम स्वीकारने के बजाय मृत्यु को गले लगा लिया। .
देखें कवि और हकीकत राय
हुमायुन आजाद
हुमायुन आजाद (२८ अप्रैल १९४७ - ११ अगस्त २००४) (बांग्ला: হুমায়ুন আজাদ) बांग्लादेश के ढाका शहर में जन्मे एक प्रख्यात उपन्यासकार, कवि एवम आलोचक थे। उन्होने सत्तर से भी ज्यादा किताबें लिखीं जिसमें अधिकतर बांग्लादेश के रूढीवादी समाज, धर्म और सैन्य-शासन के खिलाफ हैं। तसलीमा नसरीन को बांग्लादेश ने केवल देश-निकाला करके बाहर भेज दिया था, परन्तु हुमायुन आजादको पहले धमकियों और बाद में कातिलाना हमलों का शिकार होना पड़ा। आखिरकार २७ अप्रैल २००४ को हुए एक खूनी हमले में वे बुरी तरह से घायल हो गए। हमले के बाद उनकी पत्नी उन्हें इलाज के लिए जर्मनी ले गईं, पर आजाद बच नहीं पाये। हुमायुन आजाद .
देखें कवि और हुमायुन आजाद
हुल्लड़ मुरादाबादी
हुल्लड़ मुरादाबादी (२९ मई १९४२ – १२ जुलाई २०१४) एक हिंदी हास्य कवि थे। इतनी ऊंची मत छोड़ो, क्या करेगी चांदनी, यह अंदर की बात है, तथाकथित भगवानों के नाम जैसी हास्य कविताओं से भरपूर पुस्तकें लिखने वाले हुल्लड़ मुरादाबादी को कलाश्री, अट्टहास सम्मान, हास्य रत्न सम्मान, काका हाथरसी पुरस्कार जैसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। भारत के पूर्व राष्ट्रपति डा.
देखें कवि और हुल्लड़ मुरादाबादी
हृदयराम
हृदयराम एक प्राचीन कवि एवं कृष्णदास जी के पुत्र थे। हृदयराम पंजाब के रहने वाले थे। वे रामभक्त थे, उनकी रचनाये भगवा राम को समर्पित थी। वे हनुमन्नाटक के रचयिता हैं। .
देखें कवि और हृदयराम
हैदर बख़्श जतोई
हैदर बख़्स जतोई (सिन्धी: حيدر بخش جتوئي) (1970 - 1901) सिन्ध, पाकिस्तान से एक इंक़लाबी, वामपन्थी, किसान अगुआ थे। उनके समर्थक उनको "बाबा-ए-सिन्ध" के नाम से सम्बोधित करते थे। वे सिन्धी ज़बान के लेखक और कवि भी थे। वे कई साल सिन्ध हरी समिति (सिंध किसान समिति) के प्रधान रहे थे जो नैशनल आवामी पार्टी का एक हिस्सा थी। .
देखें कवि और हैदर बख़्श जतोई
होमर
ब्रिटिश संग्रहालय में होमर की प्रतिकृति होमर यूनान के ऐसे प्राचीनतम कवियों में से हैं जिनकी रचनाएँ आज भी उपलब्ध हैं और जो बहुमत से यूरोप के सबसे महान कवि स्वीकार किए जाते हैं। वे अपने समय की सभ्यता तथा संस्कृति की अभिव्यक्ति का प्रबल माध्यम माने जाते हैं। अन्धे होने के बावजूद उन्होंने दो महाकाव्यों की रचना की - इलियड और ओडिसी। इनका कार्यकाल ईसा से लगभग १००० वर्ष पूर्व था। हालाँकि इसके विषय में प्राचीन काल में जितना विवाद था आज भी उतना ही है। कुछ लोग उनके समय को ट्रोजन युद्ध के समय से जोड़ते है पर इतना तो तय है कि यूनानी इतिहास का एक पूरा काल होमर युग के नाम से विख्यात है, जो ८५० ईसा पूर्व से ट्रोजन युद्ध की तारीख ११९४-११८४ ईसा पूर्व तक फैला हुआ है। इलियड में ट्राय राज्य के साथ ग्रीक लोगों के युद्ध का वर्णन है। इस महाकाव्य में ट्राय की विजय और ध्वंस की कहानी तथा यूनानी वीर एकलिस की वीरता की गाथाएँ हैं। होमर के महाकाव्यों की भाषा प्राचीन यूनानी या हेल्लिकी है। जिस प्रकार हिंदू रामायण में लंका विजय की कहानी पढ़कर आनंदित होते हैं। उसी प्रकार ओडिसी में यूनान वीर यूलीसिस की कथा का वर्णन है। ट्राय का राजकुमार स्पार्टा की रानी हेलेन का अपहरण कर ट्राय नगर ले गया। इस अपमान का बदला लेने के लिए ही ग्रीस के सभी राजाओं और वीरों ने मिलकर ट्राय पर आक्रमण किया। ट्राय से लौटते समय उनका जहाज तूफान में फँस गया। वह बहुत दिनों तक इधर-उधर भटकता रहा। इसके बाद अपने देश लौटा। यूनान (ग्रीस) के तत्कालीन सामाजिक, राजनैतिक एवं धार्मिक तथ्यों की जानकारी का एकमात्र भरोसेमंद साधन के रूप में इनके ये दो महाकाव्य ही उपलब्ध हैं- इलियड और ओडेसी। इसके अतिरिक्त बहुत सी धार्मिक काव्य रचनाएँ भी जिन्हें बाद में परवर्ती कवियों की रचनाएँ माना गया। यह भी कहा जाता है कि इलियड और ओडेसी का प्रारंभिक स्वरूप मौखिक था और इन्हें प्राचीन ग्रीस के गायक गाया करते थे। गाते हुए वे बहुत से स्वरचित पद इसमें मिला देते। इस कारण इन्हें पूर्ण रूप से होमर की रचनाएँ मानना ठीक नहीं है। इस आधार पर वे होमर किसी एक व्यक्ति को नहीं बल्कि समष्टि रूप से इलियड और ओडेसी के रचनाकारों को मानते हैं। .
देखें कवि और होमर
होरेस
होरेस (Horace; वास्तविक नाम: Quintus Horatius Flaccus; दिसम्बर 8, 65 BCE – नवम्बर 27, 8 BCE) प्रसिद्ध रोमन कवि था। श्रेणी:रोमन कवि.
देखें कवि और होरेस
जनार्दन प्रसाद झा 'द्विज'
जनार्दन प्रसाद झा 'द्विज' (१९०४ - ५ मई १९६४) हिन्दी कवि, कथाकार तथा शिक्षक थे। ये कहानी लेखकों की अगली पंक्ति में थे व इनकी गणना हिन्दी के छायावाद काल के भावुक कवियों में की जाती है। विद्यार्थी जीवन में ही इन्होंने कहानी और पद्यरचना आरंभ कर दी थी जब कि ये विद्यालय के एक आदर्श छात्र थे। स्वभाव में गंभीर, प्रकृत्या शांत, प्रत्युत्पन्नमति, हँसमुख व्यक्ति थे जिन्होंने सदा सरल जीवन ही जिया। ये प्रतिभाशाली विचारक, निर्भय आलोचक, एवं स्पष्ट वक्ता थे तथा उन्होंनें हिंदीहित को अपने जीवन में सर्वोपरि रखा। .
देखें कवि और जनार्दन प्रसाद झा 'द्विज'
जमाल
जमाल हिन्दी के कवि थे। .
देखें कवि और जमाल
जमीला निशात
जमीला निशात (जन्म 1955) उर्दू कवि, हैदराबाद, तेलंगाना, भारत से संपादक, और नारीवादी है। .
देखें कवि और जमीला निशात
जय भारत जननीय तनुजते
जय भारत जननीय तनुजते (ಜಯ ಭಾರತ ಜನನಿಯ ತನುಜಾತೆ) एक कन्नड़ कविता है, जिसका संपादन भारतीय कन्नड़ कवि कुवेम्पु ने किया था। यह कविता ६ जनवरी २००४ को कर्नाटक राज्य काई आधिकारिक गान घोषित हुई थी। .
देखें कवि और जय भारत जननीय तनुजते
जयशंकर प्रसाद
जयशंकर प्रसाद (30 जनवरी 1890 - 15 नवम्बर 1937)अंतरंग संस्मरणों में जयशंकर 'प्रसाद', सं०-पुरुषोत्तमदास मोदी, विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी; संस्करण-2001ई०,पृ०-2(तिथि एवं संवत् के लिए)।(क)हिंदी साहित्य का बृहत् इतिहास, भाग-10, नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी; संस्करण-1971ई०, पृ०-145(तारीख एवं ईस्वी के लिए)। (ख)www.drikpanchang.com (30.1.1890 का पंचांग; तिथ्यादि से अंग्रेजी तारीख आदि के मिलान के लिए)।, हिन्दी कवि, नाटककार, कहानीकार, उपन्यासकार तथा निबन्धकार थे। वे हिन्दी के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। उन्होंने हिंदी काव्य में एक तरह से छायावाद की स्थापना की जिसके द्वारा खड़ी बोली के काव्य में न केवल कमनीय माधुर्य की रससिद्ध धारा प्रवाहित हुई, बल्कि जीवन के सूक्ष्म एवं व्यापक आयामों के चित्रण की शक्ति भी संचित हुई और कामायनी तक पहुँचकर वह काव्य प्रेरक शक्तिकाव्य के रूप में भी प्रतिष्ठित हो गया। बाद के प्रगतिशील एवं नयी कविता दोनों धाराओं के प्रमुख आलोचकों ने उसकी इस शक्तिमत्ता को स्वीकृति दी। इसका एक अतिरिक्त प्रभाव यह भी हुआ कि खड़ीबोली हिन्दी काव्य की निर्विवाद सिद्ध भाषा बन गयी। आधुनिक हिन्दी साहित्य के इतिहास में इनके कृतित्व का गौरव अक्षुण्ण है। वे एक युगप्रवर्तक लेखक थे जिन्होंने एक ही साथ कविता, नाटक, कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में हिंदी को गौरवान्वित होने योग्य कृतियाँ दीं। कवि के रूप में वे निराला, पन्त, महादेवी के साथ छायावाद के प्रमुख स्तंभ के रूप में प्रतिष्ठित हुए हैं; नाटक लेखन में भारतेंदु के बाद वे एक अलग धारा बहाने वाले युगप्रवर्तक नाटककार रहे जिनके नाटक आज भी पाठक न केवल चाव से पढ़ते हैं, बल्कि उनकी अर्थगर्भिता तथा रंगमंचीय प्रासंगिकता भी दिनानुदिन बढ़ती ही गयी है। इस दृष्टि से उनकी महत्ता पहचानने एवं स्थापित करने में वीरेन्द्र नारायण, शांता गाँधी, सत्येन्द्र तनेजा एवं अब कई दृष्टियों से सबसे बढ़कर महेश आनन्द का प्रशंसनीय ऐतिहासिक योगदान रहा है। इसके अलावा कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में भी उन्होंने कई यादगार कृतियाँ दीं। विविध रचनाओं के माध्यम से मानवीय करुणा और भारतीय मनीषा के अनेकानेक गौरवपूर्ण पक्षों का उद्घाटन। ४८ वर्षो के छोटे से जीवन में कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास और आलोचनात्मक निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाएँ की। उन्हें 'कामायनी' पर मंगलाप्रसाद पारितोषिक प्राप्त हुआ था। उन्होंने जीवन में कभी साहित्य को अर्जन का माध्यम नहीं बनाया, अपितु वे साधना समझकर ही साहित्य की रचना करते रहे। कुल मिलाकर ऐसी बहुआयामी प्रतिभा का साहित्यकार हिंदी में कम ही मिलेगा जिसने साहित्य के सभी अंगों को अपनी कृतियों से न केवल समृद्ध किया हो, बल्कि उन सभी विधाओं में काफी ऊँचा स्थान भी रखता हो। .
देखें कवि और जयशंकर प्रसाद
ज़िया फ़तेहाबादी
ज़िया फ़तेहाबादी ज़िया फ़तेहाबादी (१९१३ - १९८६) उर्दू लेखक एवं कवि थे। ज़िया फ़तेहाबादी, फ़तेहाबाद (ज़िला: तरन तारन) निवासी मेहर लाल सोनी का उपनाम था। .
देखें कवि और ज़िया फ़तेहाबादी
ज़ोया अख़्तर
जोया अख्तर एक समकालीन भारतीय फिल्म निर्देशक हैं। उन्होंने सर्वप्रथम उन्होंने लक बाइ चांस (2009) नामक फ़िल्म से अपना निर्देशन का कार्य आरम्भ किया। 2011 में, उन्होंने समीक्षात्मक और वाणिज्यिक रूप से सफल फ़िल्म ज़िन्दगी न मिलेगी दोबारा का निर्देशन किया और फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ निर्देशक पुरस्कार जीता। .
देखें कवि और ज़ोया अख़्तर
जाँनिसार अख्तर
जाँनिसार अख्तर (उर्दू: جان نثار اختر;अंग्रेजी:Jan Nisar Akhtar, 18 फ़रवरी 1914 – 19 अगस्त 1976) भारत से 20 वीं सदी के एक महत्वपूर्ण उर्दू शायर, गीतकार और कवि थे। वे प्रगतिशील लेखक आंदोलन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थे। उन्होंने हिंदी फिल्मों के लिए भी गाने लिखे.
देखें कवि और जाँनिसार अख्तर
जावेद जाँनिसार अख्तर
जावेद अख्तर हिन्दी फिल्मों के एक गीतकार हैं। .
देखें कवि और जावेद जाँनिसार अख्तर
जिम मॉरिसन
जेम्स डगलस "जिम" मॉरिसन (8 दिसम्बर 1943 - 3 जुलाई 1971) एक अमेरिकी गायक, गीतकार, कवि, लेखक और फिल्म निर्माता थे। वे द डोर्स के प्रमुख गायक और गीतकार के रूप में सबसे अधिक जाने जाते हैं और उन्हें व्यापक रूप से रॉक संगीत के इतिहास में सबसे करिश्माई अगुआ व्यक्तियों में से एक माना जाता है।"देखे उदाहरण., मॉरिसन पोएम बैक्स क्लाइमेट प्ले", BBC न्यूज़, 31 जनवरी 2007.
देखें कवि और जिम मॉरिसन
जिगर मुरादाबादी
जिगर मुरादाबादी (उर्दू: جِگر مُرادآبادی), एक और नाम: अली सिकंदर (1890–1960), 20 वीं सदी के सबसे प्रसिद्ध उर्दू कवि और उर्दू गजल के प्रमुख हस्ताक्षरों में से एक। उनकी अत्यधिक प्रशंसित कविता संग्रह "आतिश-ए-गुल" के लिए उन्हें 1958 में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया। .
देखें कवि और जिगर मुरादाबादी
जगन्नाथ प्रसाद 'मिलिन्द'
जगन्नाथ प्रसाद 'मिलिन्द' (1907-1986) हिन्दी के कवि एवं नाटककार थे। जगन्नाथप्रसाद 'मिलिंद' का जन्म ग्वालियर के मुरार में हुआ था। उच्च शिक्षा काशी में हुई। आप हिंदी, उर्दू, बंगला, मराठी, गुजराती, संस्कृत और अंग्रेजी के ज्ञाता थे। इन्होंने शांति निकेतन तथा महिला आश्रम, वर्धा में अध्यापन किया एवं भारत के स्वतंत्रता आंदोलन तथा राजनीति में भाग लिया। श्री जगन्नाथ प्रसाद "मिलिंद" ने राष्ट्र के यौवन को बलि-पथ पर अग्रसर होने की प्रेरणा दी- .
देखें कवि और जगन्नाथ प्रसाद 'मिलिन्द'
जगमोहन सिंह
भारतेन्दुयुगीन हिन्दी साहित्यकार '''ठाकुर जगमोहन सिंह''' ठाकुर जगमोहन सिंह (४ अगस्त १८५७ -) हिन्दी के भारतेन्दुयुगीन कवि, आलोचक और उपन्यासकार थे। उन्होंने सन् 1880 से 1882 तक धमतरी में और सन् 1882 से 1887 तक शिवरीनारायण में तहसीलदार और मजिस्ट्रेट के रूप में कार्य किया। छत्तीसगढ़ के बिखरे साहित्यकारों को जगन्मोहन मंडल बनाकर एक सूत्र में पिरोया और उन्हें लेखन की सही दिशा भी दी। जगन्मोहन मंडल काशी के भारतेन्दु मंडल की तर्ज में बनी एक साहित्यिक संस्था थी। हिंदी के अतिरिक्त संस्कृत और अंग्रेजी साहित्य की उन्हें अच्छी जानकारी थी। ठाकुर साहब मूलत: कवि ही थे। उन्होंने अपनी रचनाओं द्वारा नई और पुरानी दोनों प्रकार की काव्यप्रवृत्तियों का पोषण किया। .
देखें कवि और जगमोहन सिंह
जुमई खां आजाद
जुमई खां आजाद (जन्म: ५ अगस्त १९३०; मृत्यु: २९ दिसम्बर २०१३) अवधी भाषा के प्रख्यात कवि और शायर थे। इन्हें अवधी के रसखान व अवधी सम्राट कहा जाता था। इन्हें अवधी अकादमी व लोकबन्धु राजनारायण स्मृति सम्मान से भी नवाजा गया था। .
देखें कवि और जुमई खां आजाद
ज्ञानश्रीमित्र
ज्ञानश्रीमित्र (१०वीं-११वीं शताब्दी) एक प्रमाणवादी भारतीय दार्शनिक थे। वे एक कवि, विक्रमशिला के द्वारपण्डित तथा रत्नकीर्ति के गुरु थे। .
देखें कवि और ज्ञानश्रीमित्र
ज्ञानेश्वर
संत ज्ञानेश्वर महाराष्ट्र तेरहवीं सदी के एक महान सन्त थे जिन्होंने ज्ञानेश्वरी की रचना की। संत ज्ञानेश्वर की गणना भारत के महान संतों एवं मराठी कवियों में होती है। ये संत नामदेव के समकालीन थे और उनके साथ इन्होंने पूरे महाराष्ट्र का भ्रमण कर लोगों को ज्ञान-भक्ति से परिचित कराया और समता, समभाव का उपदेश दिया। वे महाराष्ट्र-संस्कृति के 'आद्य-प्रवर्तकों' में भी माने जाते हैं। .
देखें कवि और ज्ञानेश्वर
ज्योत्स्ना मिलन
ज्योत्स्ना मिलन (१९ जुलाई १९४१-५ मई २०१४) हिंदी की कवयित्री एवं कथाकार थीं। वे स्त्रियों के संगठन 'सेवा' के मासिक मुखपत्र 'अनसूया' की संपादक भी थीं। उन्हें महिलाओं के उत्थान तथा उनसे जुड़े संवेदनशील मुददों को अपनी लेखनी के माध्यम से अभिव्यक्त करने में महारत हासिल थी। वे वरिष्ठ साहित्यकार पद्मश्री रमेशचन्द्र शाह की पत्नी थीं। ‘घर नहीं’ (कविता-संग्रह): ‘अ अस्तु का’ (उपन्यास) और ‘खंडहर और अन्य कहानियां’ (कहानी - संग्रह) इत्यादि उनकी प्रमुख कृतियां हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से उनकी रचनाएं प्रकाशित व प्रशंसित हुई है। साथ हीं वे अनेक मानद सम्मानों से सम्मानित भी हुईं हैं। उनका दिनांक 5 मई 2014 को रात लगभग आठ बजे निधन हो गया। 'हम सविता' श्री इला र.
देखें कवि और ज्योत्स्ना मिलन
जॉन ड्राइडेन
जॉन ड्राइडेन जॉन ड्राइडेन (John Dryden; 9 अगस्त 1631 – 12 मई 1700) आंग्ल कवि, साहित्यिक समालोचक तथा नाटककार था। १६६८ में उसे राष्ट्रकवि (Poet Laureate) बनाया गया। .
देखें कवि और जॉन ड्राइडेन
जोश मलिहाबादी
जोश मलिह्बादी (جوش ملیح آبادی) (जन्म नाम शब्बीर हसन खां) (५ दिसंबर, १८९८ – २२ फरवरी, १९८२)लखनऊ से उर्दु के प्रख्यात शायर रहे हैं। उनको साहित्य एवं शिक्षा क्षेत्र में पद्म भूषण से १९५४ में सम्मानित किया गया। श्रेणी:शायर श्रेणी:लखनऊ के लोग श्रेणी:१९५४ पद्म भूषण.
देखें कवि और जोश मलिहाबादी
ईरान का इतिहास
सुसा में दारुश (दारा) के महल के बाहर बने "अमर सेनानी"। यह उपाधि कुछ चुनिन्दा सैनिकों को दी जाती थी जो महल रक्षा तथा साम्राज्य विस्तार में प्रमुख माने जाते थे। ईरान का पुराना नाम फ़ारस है और इसका इतिहास बहुत ही नाटकीय रहा है जिसमें इसके पड़ोस के क्षेत्र भी शामिल रहे हैं। इरानी इतिहास में साम्राज्यों की कहानी ईसा के ६०० साल पहले के हख़ामनी शासकों से शुरु होती है। इनके द्वारा पश्चिम एशिया तथा मिस्र पर ईसापूर्व 530 के दशक में हुई विजय से लेकर अठारहवीं सदी में नादिरशाह के भारत पर आक्रमण करने के बीच में कई साम्राज्यों ने फ़ारस पर शासन किया। इनमें से कुछ फ़ारसी सांस्कृतिक क्षेत्र के थे तो कुछ बाहरी। फारसी सास्कृतिक प्रभाव वाले क्षेत्रों में आधुनिक ईरान के अलावा इराक का दक्षिणी भाग, अज़रबैजान, पश्चिमी अफगानिस्तान, ताजिकिस्तान का दक्षिणी भाग और पूर्वी तुर्की भी शामिल हैं। ये सब वो क्षेत्र हैं जहाँ कभी फारसी सासकों ने राज किया था और जिसके कारण उनपर फारसी संस्कृति का प्रभाव पड़ा था। सातवीं सदी में ईरान में इस्लाम आया। इससे पहले ईरान में जरदोश्त के धर्म के अनुयायी रहते थे। ईरान शिया इस्लाम का केन्द्र माना जाता है। कुछ लोगों ने इस्लाम कबूल करने से मना कर दिया तो उन्हें यातनाएं दी गई। इनमें से कुछ लोग भाग कर भारत के गुजरात तट पर आ गए। ये आज भी भारत में रहते हैं और इन्हें पारसी कहा जाता है। सूफ़ीवाद का जन्म और विकास ईरान और संबंधित क्षेत्रों में ११वीं सदी के आसपास हुआ। ईरान की शिया जनता पर दमिश्क और बग़दाद के सुन्नी ख़लीफ़ाओं का शासन कोई ९०० साल तक रहा जिसका असर आज के अरब-ईरान रिश्तों पर भी देखा जा सकता है। सोलहवीं सदी के आरंभ में सफ़वी वंश के तुर्क मूल लोगों के सत्ता में आने के बाद ही शिया लोग सत्ता में आ सके। इसके बाद भी देश पर सुन्नियों का शासन हुआ और उन शासकों में नादिर शाह तथा कुछ अफ़ग़ान शासक शामिल हैं। औपनिवेशक दौर में ईरान पर किसी यूरोपीय शक्ति ने सीधा शासन तो नहीं किया पर अंग्रेज़ों तथा रूसियों के बीच ईरान के व्यापार में दखल पड़ा। १९७९ की इस्लामिक क्रांति के बाद ईरान की राजनैतिक स्थिति में बहुत उतार-चढ़ाव आता रहा है। ईराक के साथ युद्ध ने भी देश को इस्लामिक जगत में एक अलग जगह पर ला खड़ा किया है। २३ जनवरी २००८ .
देखें कवि और ईरान का इतिहास
ईश्वरदास (कवि)
ईश्वरदास हिन्दी भाषा के कवि थे जिन्होने 'सत्यवतीकथा' नामक पुस्तक की रचना की। उक्त पुस्तक दिल्ली के बादशाह सिकंदर शाह (सं.
देखें कवि और ईश्वरदास (कवि)
वयलर रामवर्मा
वयलर रामवर्मा या वयलर राम वर्मा (25 मार्च 1928 – 27 अक्टूबर 1975) मलयालम भाषा के कवि थे। यह मुख्य रूप से वयलर के नाम से जाने जाते थे। कलम तलवार की अपेक्षा शक्ति- युक्त और तेज़ है। इसका उत्तम उदाहरण है- साहित्य। मलयालम साहित्य के एक युग पुरुष थे- वयलार रामवर्मा। वयलार रामवर्मा मलयालम के सुप्रसिद्ध गानरचयिता थे। उन्होंने मलयालम में अनेक मार्मिक कविताएँ लिखी है। वे कवि एवं समाज सुधारक थे। समाज में प्रचलित अधंविश्वासों और कुरीतियों को दूर करने के लिए सदा ही उन्होंने अपनी कलम चलाई थी। वे आज भी जन हृदय में निर्भर है। .
देखें कवि और वयलर रामवर्मा
वाल्टर स्काट
वाल्टर स्कॉट सर वाल्टर स्काट (Sir Walter Scott, 1st Baronet, FRSE; १७७१ - १८३२ ई.) अंग्रेजी के प्रसिद्ध ऐतिहासिक उपन्यासकार, नाटककार तथा कवि थे। स्कॉट अंग्रेजी भाषा के प्रथम साहित्यकार थे जिन्हें अपने जीवनकाल में ही अन्तरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हो गयी थी। .
देखें कवि और वाल्टर स्काट
वाशिंगटन ऐल्स्टन
वाशिंगटन ऐल्स्टन (Washington Allston; १७७९-१८४३) अमरीकी कवि तथा चित्रकार थे। उन्होने शिक्षा हार्वर्ड विश्वविद्यालय में पाई। युवावस्था में लंदन, पेरिस, रोम, वेनिस आदि का भ्रमण कर पुन: अमरीका लौट आए और वहीं अपना कार्य आरंभ कर दिया। इनकी कलाकृतियों में प्रकाश और छाया के प्रयोग तथा रंगों के चुनाव आदि में वेनिस की शैली का प्रभाव परिलक्षित है, इसीलिए इन्हें 'अमरीकी तिशियन' भी कहा जाता है। इनके चित्र मिलान के राजभवन और सांता मेरिया के गिरजे में हैं जो इनके गुरु कोरेज्जो की कृतियों से भी अधिक श्रेष्ठ हैं। ये स्वयं धार्मिक स्वभाव के थे और इनके अधिकांश चित्रों की कथा वस्तु भी बाइबिल की कहानियाँ हैं। सर्वोत्तम कृतियाँ–'मृत व्यक्ति का पुनर्जीवन', 'देवदूत द्वारा संत पीतर की मुक्ति' और 'जेकोब का स्वप्न' हैं। लेखक के रूप में अभिव्यक्ति की सुगमता और काल्पनिक शक्ति के लिए ये विख्यात हैं। कोलरिज (ऐल्स्टन द्वारा बनाया जिसका चित्र आज भी नैशनल गैलरी में है) का कहना था कि उस युग में कला और काव्य के क्षेत्र में कोई और ऐल्स्टन की समता नहीं कर सकता था। .
देखें कवि और वाशिंगटन ऐल्स्टन
विद्याधर चक्रवर्ती
विद्याधर चक्रवर्ती। विद्याधर भट्टाचार्य (?)। विद्याधर (१६९३-१७५१) भारत के नगर-नियोजन के पुरोधा थे। आज से 286 साल पहले जयपुर जैसा सुव्यवस्थित और आधुनिक नगर बसाने के आमेर महाराजा सवाई जयसिंह के सपने को साकार करने में उनकी भूमिका सबसे निर्णायक और महत्वपूर्ण रही। गणित, शिल्पशास्त्र, ज्योतिष और संस्कृत आदि विषयों में उनकी असाधारण गति थी। विद्याधर बंगाल मूल के एक गौड़-ब्राह्मण थे, जिनके दस वैदिक ब्राह्मण पूर्वज आमेर-राज्य की कुलदेवी दुर्गा शिलादेवी की शिला खुलना-उपक्षेत्र के जैसोर (तब पूर्व बंगाल), अब बांग्लादेश) से लाने के समय जयपुर आये थे। उन्हीं में से एक के वंशज विद्याधर थे। .
देखें कवि और विद्याधर चक्रवर्ती
विद्यापति
विद्यापति भारतीय साहित्य की 'शृंगार-परम्परा' के साथ-साथ 'भक्ति-परम्परा' के भी प्रमुख स्तंभों मे से एक और मैथिली के सर्वोपरि कवि के रूप में जाने जाते हैं। इनके काव्यों में मध्यकालीन मैथिली भाषा के स्वरूप का दर्शन किया जा सकता है। इन्हें वैष्णव, शैव और शाक्त भक्ति के सेतु के रूप में भी स्वीकार किया गया है। मिथिला के लोगों को 'देसिल बयना सब जन मिट्ठा' का सूत्र दे कर इन्होंने उत्तरी-बिहार में लोकभाषा की जनचेतना को जीवित करने का महान् प्रयास किया है। मिथिलांचल के लोकव्यवहार में प्रयोग किये जानेवाले गीतों में आज भी विद्यापति की शृंगार और भक्ति-रस में पगी रचनाएँ जीवित हैं। पदावली और कीर्तिलता इनकी अमर रचनाएँ हैं। .
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विन्सेंट जॉन पीटर सल्दान्हा
विन्सेंट जॉन पीटर सल्दान्हा (Vincent John Peter Saldanha; कन्नड: ವಿನ್ಸೆಂಟ್ ಜಾನ್ ಪೀಟರ್ ಸಲ್ದಂಹ; 9 जून् 1925 – 22 फरवरी 2000)) कोंकणी भाषा के साहित्यकार, नाटककार, उपन्यासकार और कवि थे। उन्होने कोंकणी साहित्य के प्रति अन्य महत्त्वपूर्ण योगदान दिए हैं। सल्दान्हा ने अपने हर लेखन रचना में अपने कैथलिक पहचान को अच्छे तरह से बनाया रखा था। वह अक्सर अपने ही जात के लोगों के बारे मे लिखते थे। वह 'खदप' या 'रॉक' नाम से लोकप्रीय थे। श्रेणी:कोंकणी साहित्यकार.
देखें कवि और विन्सेंट जॉन पीटर सल्दान्हा
विबुध श्रीधर
विबुध श्रीधर (विक्रम संवत' ११८९-१२३०) उत्तर भारत में एक प्राचीन कवि थे। वें अग्रवाल जैन समुदाय से थे। .
देखें कवि और विबुध श्रीधर
विलहेम राब
जर्मन उपन्यासकार '''विलहेम राब''' विलहेम राब (Wilhelm Raabe, १८३१ - १९१०), जर्मन उपन्यासकार और कवि था। उसकी आरम्भिक कृतियाँ 'जेकब कार्विनस' (Jakob Corvinus) उपनाम से प्रकाशित हुईं थी। .
देखें कवि और विलहेम राब
विष्णुप्रसाद राभा
विष्णुप्रसाद राभा (বিষ্ণুপ্ৰসাদ ৰাভা) असम के एक प्रसिद्ध साहित्यकार एवं संस्कृतिकर्मी थे। वे 'लोक संस्कृति आन्दोलन' के पक्षधर थे और इसलिए उन्होने शास्त्रीय एवं लोक संस्कृति पर बहुत ध्यान दिया। स्थानीय लोग उन्हें 'कलागुरु' कहते हैं। वे एक मेधावी विद्यार्थी थे किन्तु भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लेने के कारण उनकी शिक्षा अधूरी रह गयी। ब्रितानी पुलिस ने उन्हें बहुत सारी यातनाएँ दीं। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में उनके नटरा नृत्य पर मुग्ध होकर तत्कालीन उपकुलपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने बिष्णुप्रसाद राभा को 'कलागुरु' की उपाधि दी थी। .
देखें कवि और विष्णुप्रसाद राभा
विजय शेषाद्रि
विजय शेषाद्रि (जन्म १९५४) पुलित्जर पुरस्कार विजेता कवि, निबंधकार और साहित्यिक समालोचक हैं। वो ब्रुकलीन न्यूयॉर्क के हैं। उनका जन्म भारत के बेंगलूर में हुआ और पांच वर्ष की आयु में १९५९ में अमेरिका चले गये। उनका पालन पोषण ओहियो के कोलम्बस में हुआ। उन्हें २०१४ में उनके कविता संग्रह '3 सेक्शन्स' के लिए पुलित्जर पुरस्कार से सम्मनित किया गया। .
देखें कवि और विजय शेषाद्रि
विजय कुमार
विजय कुमार (जन्म १९४९) कवि आलोचक एवं सम्पादक हैं। कविता की संगत इनकी प्रमुख आलोचना पुस्तकें है। सदी के अंत में कविता (उद्भावना कविता विशेषांक) इनकी संपादित पुस्तक है। श्रेणी:हिन्दी साहित्यकार.
देखें कवि और विजय कुमार
विवेकी राय
विवेकी राय (१९ नवम्बर सन् १९२४ - २२ नवम्बर, २०१६), हिन्दी और भोजपुरी भाषा के प्रसिद्ध साहित्यकार थे। वे ५० से अधिक पुस्तकों की रचना कर चुके हैं। वे ललित निबंध, कथा साहित्य और कविता कर्म में समभ्यस्त हैं। उनकी रचनाएं गंवाई मन और मिज़ाज़ से सम्पृक्त हैं। विवेकी राय का रचना कर्म नगरीय जीवन के ताप से तपाई हुई मनोभूमि पर ग्रामीण जीवन के प्रति सहज राग की रस वर्षा के सामान है जिसमें भींग कर उनके द्वारा रचा गया परिवेश गंवाई गंध की सोन्हाई में डूब जाता है। गाँव की माटी की सोंधी महक उनकी खास पहचान है। ललित निबन्ध विधा में इनकी गिनती आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, विद्यानिवास मिश्र और कुबेरनाथ राय की परम्परा में की जाती है। .
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विक्रम सेठ
विक्रम सेठ विक्रम सेठ (जन्म 20 जून, 1952) भारतीय साहित्य में एक जाने माने नाम है। मुख्य रूप से ये उपन्यासकार और कवि हैं। इनकी पैदाइश और परवरिश कोलकाता में हुई। दून स्कूल और टानब्रिज स्कूल में इनकी प्रारंभिक शिक्षा हुई। आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में इन्होंने दर्शनशास्त्र राजनीतिशास्त्र और अर्थशास्त्र का अध्यन किया, बाद में इन्होंने नानजिंग विश्वविद्यालय में क्लासिकल चीनी कविता का भी अध्यन किया। उन्हें उनके चार प्रमुख उपन्यासों के लिये जाना जाता है.
देखें कवि और विक्रम सेठ
वंशीधर शुक्ल
वंशीधर शुक्ल (जन्म: 1904; मृत्यु: 1980) एक हिंदी और अवधी भाषा के कवि और स्वतंत्रता सेनानी व राजनेता थे। इनके पिता छेदीलाल शुक्ल भी एक कवि थे। वंशीधर शुक्ल जी महात्मा गाँधी के आन्दोलन से भी भाग लिए। उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी विधान सभा से वें विधायक (१९५९-१९६२) भी रहे। “ कदम-कदम बढायें जा खुशी के गीत गाये जा, ये जिंदगी है कौम की तू कौम पर लुटाए जा ” जैसी कालजयी रचना का सृजन करने वाले वंशीधर शुक्ल हैं। ‘उठो सोने वालों सबेरा हुआ है’, ‘उठ जाग मुसाफिर भोर भई’ इनकी अवधी में लिखी हुई पुस्तके हैं। हुजूर केरी रचनावली भी उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ से प्रकाशित हो चुकी है। .
देखें कवि और वंशीधर शुक्ल
वृन्द
वृन्द (१६४३-१७२३) हिन्दी के कवि थे। रीतिकालीन परम्परा के अन्तर्गत वृन्द का नाम आदर के साथ लिया जाता है। इनके नीति के दोहे बहुत प्रसिद्ध हैं। .
देखें कवि और वृन्द
वैरामुत्तु
वैरामुत्तु (வைரமுத்து) (जन्म: 13 1953 जुलाई) एक पुरस्कार विजेता तमिल कवि और गीतकार हैं। निड़लगल (1980) फिल्म से शुरूआत करते हुए तथा 'पोनमलई पोड़ुडु' के लिए बोल लिखते हुए, यथा जनवरी 2009 अब उनके नाम 5800 गीतों का श्रेय है।.
देखें कवि और वैरामुत्तु
वेदान्त देशिक
स्वामी वेदान्त देशिक वेदान्त देशिक (1269 – 1370) वैष्णव गुरू, कवि, भक्त, दार्शनिक एवं आचार्य थे। उनकी पादुका सहस्रम नामक रचना चित्रकाव्य की अनुपम् भेंट है। इनका दूसरा नाम वेंकटनाथ था। तेरहवीं शताब्दी में इनकी स्थिति मानी जाती है। .
देखें कवि और वेदान्त देशिक
वीना वर्मा
वीना वर्मा यू॰ के॰ में रहने वाली एक पंजाबी कहानीकार है जो कहानियाँ लिखती हैं। वीना कहानीकारा के अलावा एक कवयित्री भी हैं। .
देखें कवि और वीना वर्मा
वीरेन्द्र कुमार भट्टाचार्य
वीरेन्द्र कुमार भट्टाचार्य (१ अप्रैल, १९२४ - ६ अगस्त, १९९७) असमिया साहित्यकार थे। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास इयारुइंगम के लिये उन्हें सन् १९६१ में साहित्य अकादमी पुरस्कार (असमिया) से सम्मानित किया गया। इन्हें १९७९ में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। समाजवादी विचारों से प्रेरित श्री भट्टाचार्य कहानीकार, कवि, निबंधकार और पत्रकार थे। वे साहित्य अकादमी, दिल्ली और असम साहित्य सभा के अध्यक्ष रहे। उन्होंने १९५० में संपादित असमी पत्रिका रामधेनु का संपादन कर असमिया साहित्य को नया मोड़ दिया। इनके चर्चित उपन्यासों इयारूंगम, मृत्युंजय, राजपथे, रिंगियाई, आई, प्रितपद, शतघ्नी, कालर हुमुनियाहहैं। इनके दो कहानी संग्रह भी प्रकाशित हुए, कलंग आजियो बोइ और सातसरी। .
देखें कवि और वीरेन्द्र कुमार भट्टाचार्य
खुमार बाराबंकवी
खुमार बाराबंकवी से उर्दु के प्रख्यात शायर (कवि) थे। .
देखें कवि और खुमार बाराबंकवी
ग़ज़ल
यह अरबी साहित्य की प्रसिद्ध काव्य विधा है जो बाद में फ़ारसी, उर्दू, नेपाली और हिंदी साहित्य में भी बेहद लोकप्रिय हुइ। संगीत के क्षेत्र में इस विधा को गाने के लिए इरानी और भारतीय संगीत के मिश्रण से अलग शैली निर्मित हुई। .
देखें कवि और ग़ज़ल
गाफिल स्वामी
गाफिल स्वामी (जन्म: २२ जुलाई १९५३, इगलास, अलीगढ) एक भारतीय साहित्यकार, कवि, लेखक एवं पत्रकार हैं। .
देखें कवि और गाफिल स्वामी
गाब्रिएल दाँनुतस्यो
300px गाब्रिएल दाँनुतस्यो (Gabriele D'Annunzio; इतालवी उच्चारण:; 12 मार्च, 1863 – 01 मार्च 1938) इटली का लेखक, कवि, पत्रकार, नाटककार, तथा प्रथम विश्वयुद्ध का योद्धा त्था। १८८९ से १९१० तक इतालवी साहित्य में तथा १९१४ से १०२४ तक इटली के राजनीतिक जीवन में उसका प्रमुख स्थान था। उसको प्रायः इल वाटे (Il Vate .
देखें कवि और गाब्रिएल दाँनुतस्यो
गिरिजाकुमार माथुर
गिरिजा कुमार माथुर (२२ अगस्त १९१९ - १० जनवरी १९९४) का जन्म ग्वालियर जिले के अशोक नगर कस्बे में हुआ। वे एक कवि, नाटककार और समालोचक के रूप में जाने जाते हैं। उनके पिता देवीचरण माथुर स्कूल अध्यापक थे तथा साहित्य एवं संगीत के शौकीन थे। वे कविता भी लिखा करते थे। सितार बजाने में प्रवीण थे। माता लक्ष्मीदेवी मालवा की रहने वाली थीं और शिक्षित थीं। गिरिजाकुमार की प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई। उनके पिता ने घर ही अंग्रेजी, इतिहास, भूगोल आदि पढाया। स्थानीय कॉलेज से इण्टरमीडिएट करने के बाद १९३६ में स्नातक उपाधि के लिए ग्वालियरचले गये। १९३८ में उन्होंने बी.ए.
देखें कवि और गिरिजाकुमार माथुर
गिरीश कर्नाड
गिरीश कार्नाड (जन्म 19 मई, 1938 माथेरान, महाराष्ट्र) भारत के जाने माने समकालीन लेखक, अभिनेता, फ़िल्म निर्देशक और नाटककार हैं। कन्नड़ और अंग्रेजी भाषा दोनों में इनकी लेखनी समानाधिकार से चलती है। 1998 में ज्ञानपीठ सहित पद्मश्री व पद्मभूषण जैसे कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों के विजेता कार्नाड द्वारा रचित तुगलक, हयवदन, तलेदंड, नागमंडल व ययाति जैसे नाटक अत्यंत लोकप्रिय हुये और भारत की अनेकों भाषाओं में इनका अनुवाद व मंचन हुआ है। प्रमुख भारतीय निदेशको - इब्राहीम अलकाजी, प्रसन्ना, अरविन्द गौड़ और बी.वी.
देखें कवि और गिरीश कर्नाड
गंगादेवी
गंगादेवी (या गंगाम्बिका) चौदहवीं शती ई. की एक प्रख्यात कवयित्री एवं राजकुमारी थीं। वे विजयनगर साम्राज्य के संस्थापक बुक्क की पुत्रवधू और कृष्ण की पट्टमहिषी थीं। उन्होंने संस्कृत में 'मधुराविजयम्' नामक एक काव्य की रचना की थी। इसमें उन्होंने अपने पति वीरकंपराय के पराक्रम का वर्णन किया है। किंतु वह मात्र यशोगान नहीं है। काव्य की दृष्टि से भी उसका महत्व है। यह काव्य अपने पूर्ण रूप में उपलब्ध नहीं है। उसके केवल आठ सर्ग ही मिले हैं। इस काव्य को 'वीरकंपरायचरितम्' भी कहते हैं। श्रेणी:संस्कृत कवि.
देखें कवि और गंगादेवी
गुन्नर गुन्नर्सन
गुन्नर गुन्नर्सन (18 मई 1889 – 21 नवम्बर 1975) डेनिश भाषा के उपन्यासकार, नाटककार, कवि तथा कहानी लेखक थे। इनका जन्म आइसलैंड में १८८९ ई.
देखें कवि और गुन्नर गुन्नर्सन
गुरु नानक
नानक (पंजाबी:ਨਾਨਕ) (15 अप्रैल 1469 – 22 सितंबर 1539) सिखों के प्रथम (आदि गुरु) हैं। इनके अनुयायी इन्हें नानक, नानक देव जी, बाबा नानक और नानकशाह नामों से संबोधित करते हैं। लद्दाख व तिब्बत में इन्हें नानक लामा भी कहा जाता है। नानक अपने व्यक्तित्व में दार्शनिक, योगी, गृहस्थ, धर्मसुधारक, समाजसुधारक, कवि, देशभक्त और विश्वबंधु - सभी के गुण समेटे हुए थे। .
देखें कवि और गुरु नानक
गुलज़ार (गीतकार)
ग़ुलज़ार नाम से प्रसिद्ध सम्पूर्ण सिंह कालरा (जन्म-१८ अगस्त १९३६) हिन्दी फिल्मों के एक प्रसिद्ध गीतकार हैं। इसके अतिरिक्त वे एक कवि, पटकथा लेखक, फ़िल्म निर्देशक तथा नाटककार हैं। उनकी रचनाए मुख्यतः हिन्दी, उर्दू तथा पंजाबी में हैं, परन्तु ब्रज भाषा, खङी बोली, मारवाड़ी और हरियाणवी में भी इन्होने रचनाये की। गुलजार को वर्ष २००२ में सहित्य अकादमी पुरस्कार और वर्ष २००४ में भारत सरकार द्वारा दिया जाने वाला तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है। वर्ष २००९ में डैनी बॉयल निर्देशित फिल्म स्लम्डाग मिलियनेयर में उनके द्वारा लिखे गीत जय हो के लिये उन्हे सर्वश्रेष्ठ गीत का ऑस्कर पुरस्कार पुरस्कार मिल चुका है। इसी गीत के लिये उन्हे ग्रैमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। .
देखें कवि और गुलज़ार (गीतकार)
गुजराती साहित्यकार
गुजराती भाषा के प्रथम व्याकरण ग्रंथ की रचना जैन मुनि हेमचंद्राचार्य ने की थी। गुजराती भाषा के प्रथम कवि नरसिंह महेता हैं तथा प्रथम लेखक नर्मद हैं। .
देखें कवि और गुजराती साहित्यकार
ग्रन्थताल
अंकोरवाट मंदिर के आसपास ग्रन्थताल के वृक्ष ग्रंथताल (Borassus flabellifer L. बोरासूस् फ़्लाबेलीफ़ेर्) को पामीरा पाम (Palmyra palm) कहते हैं। बंबई के इलाके में लोग इसे "ब्रंब" भी कहते हैं। यह एकदली वर्ग, ताल (Palmeae पाल्मेऐ) कुल का सदस्य है और गरम तथा नम प्रदेशों में पाया जाता है। यह अरब देश का पौधा है, पर भारत, बर्मा तथा लंका में अब अधिक मात्रा में उगाया जाता है। अरब के प्राचीन नगर "पामीरा" के नाम पर कदाचित् इस पौधे का नाम "पामीरा पाम" पड़ा है। ग्रंथताल समुद्रतटीय इलाकों तथा शुष्क स्थानों में बलुई मिट्टी पर पाया जाता है। इसके पौधे काफी ऊँचे (60-70 फुट) होते हैं। तना प्राय: सीधा और शाखारहित होता है एवं इसके ऊपरी भाग में गुच्छेदार, पंखे के समान पत्तियाँ होती हैं। ग्रंथताल के नर तथा मादा पौधों को उनके फूलगुच्छे से पहचाना जाता है। पौधे फाल्गुन महीने में फूलते हैं और फल ज्येष्ठ तक आ जाता है। ये फल श्रावणमास तक पक जाते हैं। प्रत्येक फल में एक बीज होता है, जो कड़ा तथा सुपारी की भाँति होता है। दो या तीन मास तक जमीन के अंदर गड़े रहने पर बीज अंकुरित हो जाता है। .
देखें कवि और ग्रन्थताल
गैरी स्नाइडर
गैरी स्नाइडर (८ मई १९३०) अमेरिकी बीट जनरेशन तथा सनफ्रान्सिसको रेनेसाँस के कवि, आलोचक और परिवेशवादी हैं। कविताके लिये उनको पुलित्जर पुरस्कारसे नवाजा गया है। वे प्राचीन चीनि भाषा तथा आधुनिक जापानि कविताके आनुवादक भी हैं। उनका मनन-चिन्तन जेन बौद्ध धर्मसे प्रभावित है। ऐलन गिंसबर्गसे पहले वे भारत आ चुके हैं। भारत भ्रमण पर उनके पुस्तक का नाम है पैसेज थ्रु इनडिया। उनके उस समय के पत्नी जोयाने कयगर ने भी एक स्मृतिलेख लिखे हैं जिसका नाम है स्ट्रेंज बिग मुन: जापान ऐन्ड इनडिया जर्नलस। .
देखें कवि और गैरी स्नाइडर
गो-तोबा
गो-तोबा गो-तोबा (Go-Toba; 後鳥羽天皇) (अगस्त ६, ११८० – मार्च २८, १२३९) जापान के ८२वें सम्राट थे। वें कवि भी थे। सम्राट गो-तोबा का नाम ७४वे सम्राट, सम्राट तोबा के नाम से लिया गया है .
देखें कवि और गो-तोबा
गोपालदेव
गोपालदेव (1540 - 1611 ई.) पूर्वी असम के प्रमुख कवि, नाटककार तथा वैष्णव सम्प्रदाय के मुख्य उपदेशक थे। श्रेणी:हिन्दू सन्त श्रेणी:वैष्णव सन्त श्रेणी:असमिया साहित्यकार.
देखें कवि और गोपालदेव
गोविंददास
चैतन्य महाप्रभु के परवर्ती कवियों में गोविन्ददास कविराज सर्वश्रेष्ठ कवि हुए हैं। इन्होने केवल "ब्रजबुलि" में पर रचना की है। समस्त पद राधा-कृष्ण-लीला संबंधी है। इन पदों में समस्त काव्यगुण बहुत अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। छंद में अत्यंत सुंदर गति शब्दों के चयन द्वारा प्रस्तुत की गई है। अनुप्रासों की छटा भी अनुपम है। तत्सम एवं अर्धतत्सम शब्दों के प्रयोग से काव्य अत्यंत सुन्दर हो उठा है। प्रकृतिचित्रण, नख-शिख-वर्णन अत्यंत मनोमुग्धकारी है। कहा जाता है, कवि ने अपने पदों का संग्रह गीतामृत नाम से स्वयं किया था। इनका जन्म 1530 ई.
देखें कवि और गोविंददास
ओतोमो ताबितो
ओतोमो नो ताबितो (Ōtomo no Tabito; 大伴 旅人?, ६६५ - अगस्त ३१, ७३१) जापान के एक कवि और दार्शनिक थे। वें ओतोमो याकामोचि के पिता थे। .
देखें कवि और ओतोमो ताबितो
ओतोमो याकामोचि
ओतोमो याकामोचि एक जापानी वाका कवि थे। वह एक मेधावी कवि और मान्योशू के अंतिम संग्रहकर्ता थे। उनकी रचनाओं में अद्भुत ओज और कवि व्यक्तित्व की स्पष्ट छाप है। यह मार्च, ७५० में लिखी गई दो कविताओं में से एक है। याकामोचि एक प्राचीन शक्तिशाली कुल के वंशज थे। इनके पिता ओतोमो ताबितो एक प्रख्यात कवी व दार्शनिक थे। .
देखें कवि और ओतोमो याकामोचि
ओनो नो कोमाचि
ओनो नो कोमाचि (小野 小町?, c. ८२५ – c. ९००) एक जापानी वाका कवयित्री थी। .
देखें कवि और ओनो नो कोमाचि
ओज़ियास मार्क
ओज़ियास मार्क (Ausiàs मार्च; 1400 – 3 मार्च 1459) मध्यकालीन वैलेंसियाई कवि और नाईट थे। गन्दिया के निवासी मार्क वैलेंसियाई साहित्य की स्वर्ण शताब्दी (कैटलन: Segle d'or) के सबसे महत्वपूर्ण कवि माने जाते हैं। इनके द्वारा रचित कविताओं ने स्पेन के साहित्य पर भी गहरा प्रभाव छोड़ा। एक छोटे वैलेंसियाई कुलीन परिवार में जन्मे मार्क की रचनाओं ने पन्द्रहवीं शताब्दी के अंत से पुनर्जागरण में एक विशिष्ट योगदान दिया। इनकी कविताएँ मुख्य रूप से मानव जीवन के दो महत्वपूर्ण विषयों पर आधारित हैं: प्रेम और मृत्यु। .
देखें कवि और ओज़ियास मार्क
ओ॰ ऍन॰ वी॰ कुरुप
ओट्टपलाक्कल नीलकंठन वेलु कुरुप (मलयालम: ഒറ്റപ്ലാക്കല് നീലകണ്ഠന് വേലു കുറുപ്പ്; 27 मई, 1931 – 13 फरवरी, 2016), एक मलयाली कवि और गीतकार थे। वे 'ओ.एन.वी.
देखें कवि और ओ॰ ऍन॰ वी॰ कुरुप
आचार्य महाप्रज्ञ
आचार्य श्री महाप्रज्ञ (14 जून 1920 – 9 मई 2010) जैन धर्म के श्वेतांबर तेरापंथ के दसवें संत थे। महाप्रज्ञ एक संत, योगी, आध्यात्मिक, दार्शनिक, अधिनायक, लेखक, वक्ता और कवि थे। उनकी बहुत पुस्तकें और लेख उनके पूर्व नाम मुनि नथमल के नाम से प्रकाशित हुई। उन्होंने दस वर्ष की आयु में जैन संन्यासी के रूप में विकास और धार्मिक प्रतिबिंब का जीवन आरम्भ किया। महाप्रज्ञ ने अनुव्रत आंदोलन में मुख्य भूमिका निभाई जो गुरु आचार्य तुलसी ने 1949 में आरम्भ किया था और 1995 के आंदोलन में स्वीकृत अधिनायक बन गए। आचार्य महाप्रज्ञ ने 1970 के दशक में अच्छी तरह से नियमबद्ध प्रेक्षा ध्यान तैयार किया और शिक्षा प्रणाली में "जीवन विज्ञान" का विकास किया जो छात्रों के संतुलित विकास और उसका चरित्र निर्माण के लिए प्रयोगिक पहुँच है। .
देखें कवि और आचार्य महाप्रज्ञ
आदित्य ठाकरे
आदित्य ठाकरे (जन्म: 13 जून 1990) शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के पुत्र व हिन्दू ह्रदय सम्राट बाल ठाकरे के पौत्र हैं। आदित्य शिवसेना के युवा शाखा 'युवा सेना' के प्रमुख हैं, जिसकी स्थापना 17 अक्टूबर 2010 को हुआ। आदित्य ठाकरे एक कवि भी हैं। आदित्य मुम्बई के मशहूर सेंट जेवियर्स कॉलेज के छात्र हैं। इन्होने 'युवा सेना' के जरिए अपनी राजनीतिक पारी का आगाज किया। बॉम्बे स्कॉटिश स्कूल में पढ़ाई के दौरान आदित्य का अंग्रेजी में एक कविता संग्रह 'माई थॉट इन ब्लैक ऐंड व्हाइट' प्रकाशित हुआ था। बाल ठाकरे अपने समय के मशूहर कार्टूनिस्ट थे तो उद्धव फोटोग्राफर हैं। आदित्य की रुचि भी साहित्य में है। उनकी कविता संग्रह हिंदी और मराठी में भी छप चुका है। इसके अलावा उनके लिखे गए गीतों का एल्बम "उम्मीद" भी लांच हो चुका है। इन गीतों को कैलाश खेर, सुरेश वाडेकर, शंकर महादेवन और सुनिधि चौहान जैसे दिग्गज गायकों ने अपनी आवाज दी है। आदित्य के राजनीति में आने का संकेत उद्धव ने 2008 में ही दे दिया था। 2009 के चुनाव में आदित्य ने शिवसेना के लिए प्रचार भी किया था। .
देखें कवि और आदित्य ठाकरे
आद्या प्रसाद 'उन्मत्त'
आद्या प्रसाद 'उन्मत्त' (जन्म: १३ जुलाई १९३५; प्रतापगढ़) अवधी भाषा के प्रख्यात साहित्यकार व कवि थेे। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में मल्हूपुर गाँव में हुआ था। "माटी अउर महतारी" इनकी अवधी कविताओ का संग्रह हैं। 'अवधी सम्राट' कहे जाने वाले उन्मत्त की रचनाएं अवध विश्वविद्यालय में पढ़ाई जाती हैं। .
देखें कवि और आद्या प्रसाद 'उन्मत्त'
आनंद समाराकून
आनंद समाराकून, (1911-1962), श्रीलंका के एक संगीतकार, कवि और शिक्षक थे। समाराकून ने श्रीलंका के राष्ट्रगान श्रीलंका माता की रचना की थी और उन्हें कलात्मक श्रीलंकाई संगीत का पिता माना जाता है। समाराकून श्रीलंका के आधुनिक “गीत साहित्य” के संस्थापक भी हैं। 5 अप्रैल 1962 को समाराकून ने नींद की अधिक गोलियां खाकर आत्महत्या कर ली, कहा जाता है वो उनके द्वारा रचित श्रीलंका के राष्ट्रगान के कुछ शब्दों को उनकी अनुमति के बिना बदले जाने से आहत थे और इसी कारण उन्होनें आत्महत्या जैसा कदम उठाया। आज भी समाराकून द्वारा रचित संगीत श्रीलंका में लोकप्रिय है। .
देखें कवि और आनंद समाराकून
आर्थर कॉनन डॉयल
सर आर्थर इग्नाशियस कॉनन डॉयल, डीएल (22 मई 1859 - जुलाई 7, 1930) एक स्कॉटिश चिकित्सक और लेखक थे जिन्हें अधिकतर जासूस शरलॉक होम्स की उनकी कहानियों (इन कहानियों को आम तौर पर काल्पनिक अपराध कथा के क्षेत्र में एक प्रमुख नवप्रवर्तन के तौर पर देखा जाता है) और प्रोफ़ेसर चैलेंजर के साहसिक कारनामों के लिए जाना जाता है। वह विज्ञान कल्पना कथाएँ, ऐतिहासिक उपन्यासों, नाटकों और रोमांस, कविता और विभिन्न कल्पना साहित्य के एक विपुल लेखक थे। वे एक सफल लेखक थे जिनकी अन्य रचनाओं में काल्पनिक विज्ञान कथाएं, ऐतिहासिक उपन्यास, नाटक एवं रोमांस, कविता और गैर-काल्पनिक कहानियां शामिल हैं। .
देखें कवि और आर्थर कॉनन डॉयल
आशापूर्णा देवी
आशापूर्णा देवी (बांग्ला: আশাপূর্ণা দেবী, 8 जनवरी 1909-13 जुलाई 1995) भारत से बांग्ला भाषा की कवयित्री और उपन्यासकार थीं, जिन्होंने 13 वर्ष की अवस्था से लेखन प्रारम्भ किया और आजीवन साहित्य रचना से जुड़ीं रहीं। गृहस्थ जीवन के सारे दायित्व को निभाते हुए उन्होंने लगभग दो सौ कृतियाँ लिखीं, जिनमें से अनेक कृतियों का भारत की लगभग सभी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। उनके सृजन में नारी जीवन के विभिन्न पक्ष, पारिवारिक जीवन की समस्यायें, समाज की कुंठा और लिप्सा अत्यंत पैनेपन के साथ उजागर हुई हैं। उनकी कृतियों में नारी का वयक्ति-स्वातन्त्र्य और उसकी महिमा नई दीप्ति के साथ मुखरित हुई है। उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं स्वर्णलता, प्रथम प्रतिश्रुति, प्रेम और प्रयोजन, बकुलकथा, गाछे पाता नील, जल, आगुन आदि। उन्हें 1976 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।यह पुरस्कार प्राप्त करने वाली वे पहली महिला हैं। .
देखें कवि और आशापूर्णा देवी
आकारों के आसपास
इंसान के आपसी और स्वयं अपने साथ संबंधों का एक रूप और स्तर ऐसा भी होता है जो कहानी के आम चालू मुहावरे की पकड़ में अक्सर नहीं आता। ऐसे वक्त शायद कवि की संवेदनशीलता ज्यादा कारगर साबित होती है- न सिर्फ़ अनुभव-तंत्र के एक भिन्न तरंग पर सक्रिय होने के कारण, बल्कि भाषा की सर्जनात्मकता की एक अलग तरह की पहचान और आदत के कारण भी। कवि कुँवर नारायण के कहानी-संग्रह आकारों के आस-पास की कहानियों को पढ़कर इसलिए कुछ ऐसा आस्वाद मिलता है जो आम तौर पर आज की कहानियों से सुखद रूप में अगल है। एक तरह से इन कहानियों की दुनिया कोई खास निजी दुनिया नहीं है, इनमें भी रोज़मर्रा की जिंदगी के ही परिचित अनुभवों को पेश किया गया है। मगर उन्हें देखने वाली नज़र, उसके कोण और इन दोनों के कारण उभरने वाले रूप और भाषाई संगठन का फ़र्क इतना बड़ा है कि इन कहनियों की दुनिया एकदम विशिष्ट और विस्मयकारी जान पड़ती है, जिसमें किसी-न-किसी परिचित संबंध, अनुभव या रुख का या तो कोई अंतर्विरोध या नया अर्थ खुल जाता है, या इसकी कोई नयी परत उभर आती है- जैसा अक्सर कविता के बिम्बों से हुआ करता है। कोई अजब नहीं कि इन कहानियों में यथार्थ और फ़ैंटेसी के बीच लगातार आवाजाही है। दरअसल, फ़ैंटेसी और यथार्थ की मिलावट के अलग-अलग रूप और अनुपात से ही इन कहानियों का अपना अलग-अलग रंग पैदा होता है। ‘संदिग्ध चालें’ में स्त्री-पुरुष संबंधों में तरह-तरह के बाहरी दबावों से उत्पन्न होने वाले तनाव और उनकी टूट-फूट की बड़ी गहरी पीड़ा और करुणा है जो ‘मैं’, महिला, तोते वाला और मूँछोंवाला के इर्द-गिर्द एक फ़ैंटेसी के रूप में बुनी गई है। भाषा में शुरु से आख़ीर तक एक परीकथा-जैसी सहजता और लाक्षणिकता भी है और तीखे तनाव से उत्पन्न काव्यात्मकता भी। ‘उसका यह रूप आईने का मोहताज नहीं, न समय का, क्योंकि वह दोनों से मुक्त आत्मा का उदार सौंदर्य है।‘ या, ‘तुम उनकी ओर मत देखो, केवल मेरी आँखों में देखो जहाँ तुम हो, केवल उत्सव है: जहाँ दूसरे नहीं हैं।‘ और अंत में, ‘स्त्री फ़र्श पर लहूलुहान पड़ी थी: किसी जावन ने उसके कोमल शरीर पर जगह-जगह अपने दाँत और पंजे धँसा दिए थे।‘ ‘दो आदमियों की लड़ाई’ में फ़ैंटेसी कुछ इस अंदाज में ज़ाहिर होती है कि ‘इस सारे झगड़े को कोई कीड़ा देखता होता और उनकी बातचीत को समझता होता तो क्या कभी भी वह आदमी कहलाना पसंद करता?’ अंत में, इस शानदार लड़ाई का इतिहास लिखने का काम पास ही पेड़ पर शांत भाव में बैठे उल्लू को सौंपा गया कि जानवरों की आनेवाली पीढ़ियाँ इस महायुद्ध का वृत्तांत पढ़कर प्रेरणा लें।’ ‘आशंका’ में ‘मैं’ का सामना सीधे एक कीड़े से है। ‘मैं’ को महसूस होता है कि वह कीड़ा ‘अकेला’ नहीं है, अनेक हैं।...इशारा पाते ही वे सब-के-सब कमरे के अंदर रेंग आ सकते थे और मुझे तथा मेरी चीजों को, बल्कि मेरी सारी दुनिया को रौंदकर रख दे सकते थे।’ फैंटेसी के साथ-साथ कुँवर नारायण अपनी बात कहने के लिए तीखे व्यंग की बजाय हलकी विडम्बना या ‘आयरनी’ का इस्तेमाल अधिक करते हैं। इसी से उनके यहाँ फूहड़ अतिरंजना या अति-नाटकीयता नहीं है, एक तरह का सुरुचिपूर्ण संवेदनशील निजीपन है। यह नहीं कि ज़िंदगी के हर स्तर पर फैली हुई कुरुपता, गंदगी, हिंसा, स्वार्थपरता, नीचता उन्हें दीखती नहीं, पर वे उसे घिसे हुए उग्र आक्रामक मुहाविरे की बजाय एक आयासहीन हल्के-धीमे अंदाज में रखते हैं जिससे सचाई की उनकी निजी पहचान शोर में खो नहीं जाती। ‘बड़ा आदमी’ में रेलवे क्रासिंग के चपरासी और डिप्टी कलक्टर के बीच इस प्रकार सामना है: ‘और आज पहली बार एक बड़े आदमी ने दूसरे आदमी के बड़प्पन को पहचाना। वास्तव में बड़ा आदमी वह जिसे कम दिखाई दे, जो अँधेरे और उजाले में फर्क न कर सके।’ ‘चाकू की धार’ में बड़े मियाँ अपने बेटे को अंत में नसीहत देते हैं कि ‘जो चकमा खाकर भी दूसरों को चकमा देना न सीख सके, कभी व्यापार नहीं कर सकता।’ और यह व्यापार ही दुनियादारी है जो घर से शूरू होती है। ‘याद रखो, प्यार या नफरत बच्चे करते हैं, बड़े होकर सिर्फ आदमी व्यापार करते हैं।’ ‘सवाह और सवार’ में कम कपड़े वाले और ज्यादा कपड़े वाले के बीच संघर्ष अंत में यह रूप लेता है: ‘वह मान गया। उसने मेरे सब कपड़े नहीं लिए। कुछ कपड़ों की गठरी बाँधकर चला गया। कह गया, पूरी कोशिश करूँगा कि हम दोनों की इज्ज़त का सवाल है।’ एक साथ कई स्तरों पर व्यंजना की सादगी से ही इन कहानियों में इतनी ताज़गी आती है। मगर इन कहानियों का फैलाव केवल ऐसी प्रतीकात्मक सादगी तक ही सीमित नहीं है। ‘गुड़ियों का खेल’ या ‘कमीज’ जैसी कहानियों में निजी या बाहरी बड़ी गहरी तकलीफ़ मौजूद है। ‘अफ़सर’ में अफ़सरियत की यांत्रिकता, अमानवीयता और साधारण आदमी की पहचान साकार की गई है। ‘जनमति’ में भीड़ के तरल अस्थिर मतामत की एक तस्वीर है, ‘दूसरा चेहरा’ में डरावना और मक्कार दीखनेवाला आदमी के एक बच्चे को ट्रेन से गिरने से बचाने में अपनी जान दे देता है। ‘आत्महत्या’ का कथ्य है: ‘उस मानवीय संविधान को क्या कहा जाए जिसमें जीने और मरने दोनों की संभावनाएँ हों लेकिन साधन की गारंटी एक की भी न हो।’ ‘वह’ में स्त्री-पुरुष के पारस्परिक आकर्षण और उसमें क्रमशः बननेवाले त्रिकोण और चतुष्कोण की बड़ी तल्ख परिणति है। या फिर बड़ी सूक्ष्म प्रतीकात्मकता वाली संग्रह की पहले ही कहानी ‘आकारों के आस-पास’ कहानी और कविता के सीमांत पर रची गई लगती है। दरअसल, ये कहानियाँ काफी फैले हुए फलक पर अनेक मानवीय नैतिक संबंधों, प्रश्नों और मूल्यों को जाँचने, उधेड़ने और परिभाषित करने की कोशिश करती हैं, किसी क्रांतिकारी मुद्रा में नहीं, ब्लकि असलियत की बेझिझक निजी पहचान के इरादे से। बाहरी उत्तेजना भले ही न हो, पर आज की दुनिया में इंसान की हालत को लेकर गहरी बेचैनी और छपटाहट इनमें ज़रूर है। श्रेणी:पुस्तक.
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इरशाद कामिल
इरशाद कामिल या "इर्शाद कामिल' एक भारतीय हिन्दी/उर्दू कवि वा गीतकार हैं। इन्होने जब वी मेट, चमेली, लव आज कल, रॉकस्टार वा आशिकी 2 के लिए गीत लिखे हैं। .
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इंतिज़ार हुसैन
इंतिज़ार हुसैन (7 दिसंबर,1923 - 2 फरवरी,2016) उर्दू के एक उपन्यासकार, कहानीकार और आलोचक थे। फ़्रांस की हुकूमत ने उनको सितंबर 2014 में ऑफीसर आफ़ दी आर्डर आफ़ आर्टस ऐंड लेटर्ज़ अता किया। इंतिज़ार हुसैन का इंतिक़ाल 2 फरवरी 2016 को 92 साल की उम्र में लाहौर के एक हस्पताल में हुआ। .
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इंदिरा शाह
नेपाल की चर्चित युवा कवियित्रि। .
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कन्नदासन
कन्नदासन (கண்ணதாசன்; 24 जून1927-17 अक्टूबर 1981) तमिल कवि और गीतकार थे, जिन्हें तमिल भाषा के आधुनिक युग के सबसे महान और सबसे महत्वपूर्ण प्रारम्भिक लेखक के रूप में मान्यता प्राप्त है।वे प्रायः 'कविअरासु' (कविराज) नाम से प्रसिद्ध अधिक प्रसिद्ध थे। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास चेरमान कादली के लिये उन्हें सन् १९८० में साहित्य अकादमी पुरस्कार (तमिल) से सम्मानित किया गया। कन्नदासन तमिल फिल्मों में अपने गीतों के लिए सर्वाधिक लोकप्रिय थे। इन्होने ५००० से अधिक गीतों के अलावा, ६००० कविताओं और महाकाव्य, नाटकों, निबंध, उपन्यास, सहित लगभग २३२ से अधिक पुस्तकों की रचना की, जिसमें से दस भागों में अर्थमुल्ल इन्धुमथम (सार्थक हिन्दू धर्म) शीर्षक से हिंदू धर्म पर आधारित उनके सबसे लोकप्रिय (10) धार्मिक निबंध हैं। उन्हें वर्ष 1980 में अपने उपन्यास चेरमन कदली के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया। 1969 में, कुज्हंथैक्कागा फिल्म में सर्वश्रेष्ठ गीतकार के रूप में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार पाने वाले पहले गीतकार थे। .
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कबीर पंथ
संत कबीर कबीर पंथ या सतगुरु कबीर पंथ भारत के भक्तिकालीन कवि कबीर की शिक्षाओं पर आधारित एक संप्रदाय है। कबीर के शिष्य धर्मदास ने उनके निधन के लगभग सौ साल बाद इस पंथ की शुरुआत की थी। प्रारंभ में दार्शनिक और नैतिक शिक्षा पर आधारित यह पंथ कालांतर में धार्मिक संप्रदाय में परिवर्तित हो गया। कबीर पंथ के अनुयायियों में हिंदू, मुसलमान, बौद्ध और जैन सभी धर्मों के लोग शामिल हैं। इनमें बहुतायत हिंदुओं की है। कबीर की रचनाओं का संग्रह बीजक इस पंथ के दार्शनिक और आध्यात्मिक चिंतन का आधार ग्रंथ है। अपने काव्य में कबीर ने पंथ को महत्त्वहीन बताते हुए उसका उपहास उड़ाया है। "ऐसा जोग न देखा भाई। भूला फिरै लिए गफिलाई॥ महादेव को पंथ चलावै। ऐसो बड़ो महंथ कहावै॥" कबीर पंथ का अध्ययन करने वाले केदारनाथ द्विवेदी के अनुसार इसका कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है कि पंथ की स्थापना कबीर ने स्वयं की। कबीर की मृत्यु के पश्चात उनके शिष्यों ने यह कार्य किया। .
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कमला सुरय्या
कमला सुरय्या पूर्व नाम कमला दास (अँग्रेजी: Kamala Surayya, मलयालम: കമല സുറയ്യ, 31 मार्च 1934- 31 मई 2009) अँग्रेजी वो मलयालम भाषा की भारतीय लेखिका थीं। वे मलयालम भाषा में माधवी कुटटी के नाम से लिखती थीं। उन्हें उनकी आत्मकथा ‘माई स्टोरी’ से अत्यधिक प्रसिद्धि मिली। .
देखें कवि और कमला सुरय्या
कल्कि कृष्णमूर्ति
कल्कि (तमिल: கல்கி), आर कृष्णमूर्ति (९ सितम्बर १८९९ – ५ दिसम्बर १९५४) का उपनाम था जो एक प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी, सामाज सुधारक, उपन्यासकार, लघुकथाकार,, पत्रकार, हास्यकार, व्यंग्यकार, पटकथालेखक तथा कवि थे। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास आलै–ओसै के लिये उन्हें सन १९५६ में साहित्य अकादमी पुरस्कार (तमिल) से मरणोपरांत सम्मानित किया गया। .
देखें कवि और कल्कि कृष्णमूर्ति
कलीम आजिज़
कलीम आजिज़ (जन्म: १९२६) उर्दू के शायर और शिक्षाविद थे। कलीम साहब का जन्म बिहार के पटना जिले में हुआ था। पटना कॉलेज से उन्होंने स्नातक तथा पटना विश्वविद्यालय से उर्दू साहित्य में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। पटना विश्वविद्यालय से ही उन्होंने बिहार में उर्दू साहित्य का विकास विषय पर पीएच डी की उपाधि अर्जित की। उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया जा चुका है। वर्ष १९७६ के दौरान विज्ञान भवन में भारत के राष्ट्रपति द्वारा उनकी प्रथम पुस्तक का लोकार्पण किया गया। कलीम आजिज़ ६० और ७० के दशक में स्वतंत्रता दिवस की संध्या पर होने वाले लाल किले के मुशायरे में बिहार का प्रतिनिधित्व करने वाले एकमात्र शायर थे। उनकी प्रसिद्धि तुम कत़्ल करो हो कि करामात करो हो जैसी गज़लों के कारण रही है। रविवार १५ फरवरी २०१५ को बिहार के हजारीबाग में उनका निधन हो गया। .
देखें कवि और कलीम आजिज़
क़सीदा
क़सीदा (फ़ारसी) शायरी का वह रूप है जिसमें किसी की प्रशंसा की जाए। कुछ शायर अपने बेहतरीन क़सीदों के लिए विख्यात हुए हैं, जैसे कि मिर्ज़ा सौदा। क़सीदे लिखने का रिवाज अरब संस्कृति से आया है, जहाँ यह इस्लाम के आने से बहुत पूर्व से लिखे जा रहे हैं।, Britannica Educational Publishing, The Rosen Publishing Group, 2011, ISBN 978-1-61530-539-1,...
देखें कवि और क़सीदा
कानन कुसुम (जयशंकर प्रसाद की कृति)
कानन कुसुम हिन्दी भाषा के कवि, लेखक और उपन्यासकार जयशंकर प्रसाद की एक काव्य कृति है। जिसकी भाषा ब्रज है। .
देखें कवि और कानन कुसुम (जयशंकर प्रसाद की कृति)
कालिदास
कालिदास संस्कृत भाषा के महान कवि और नाटककार थे। उन्होंने भारत की पौराणिक कथाओं और दर्शन को आधार बनाकर रचनाएं की और उनकी रचनाओं में भारतीय जीवन और दर्शन के विविध रूप और मूल तत्व निरूपित हैं। कालिदास अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण राष्ट्र की समग्र राष्ट्रीय चेतना को स्वर देने वाले कवि माने जाते हैं और कुछ विद्वान उन्हें राष्ट्रीय कवि का स्थान तक देते हैं। अभिज्ञानशाकुंतलम् कालिदास की सबसे प्रसिद्ध रचना है। यह नाटक कुछ उन भारतीय साहित्यिक कृतियों में से है जिनका सबसे पहले यूरोपीय भाषाओं में अनुवाद हुआ था। यह पूरे विश्व साहित्य में अग्रगण्य रचना मानी जाती है। मेघदूतम् कालिदास की सर्वश्रेष्ठ रचना है जिसमें कवि की कल्पनाशक्ति और अभिव्यंजनावादभावाभिव्यन्जना शक्ति अपने सर्वोत्कृष्ट स्तर पर है और प्रकृति के मानवीकरण का अद्भुत रखंडकाव्ये से खंडकाव्य में दिखता है। कालिदास वैदर्भी रीति के कवि हैं और तदनुरूप वे अपनी अलंकार युक्त किन्तु सरल और मधुर भाषा के लिये विशेष रूप से जाने जाते हैं। उनके प्रकृति वर्णन अद्वितीय हैं और विशेष रूप से अपनी उपमाओं के लिये जाने जाते हैं। साहित्य में औदार्य गुण के प्रति कालिदास का विशेष प्रेम है और उन्होंने अपने शृंगार रस प्रधान साहित्य में भी आदर्शवादी परंपरा और नैतिक मूल्यों का समुचित ध्यान रखा है। कालिदास के परवर्ती कवि बाणभट्ट ने उनकी सूक्तियों की विशेष रूप से प्रशंसा की है। thumb .
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काशीराम दास
काशीराम दास (अनुमानतः १६वीं-१७वीं शताब्दी में जन्म) मध्यकालीन बांग्ला के प्रसिद्ध कवि थे। उन्हें 'काशीरामदास' या 'काशीराम देव' भी कहते हैं। उन्होने महाभारत का संस्कृत से बांग्ला में पद्यानुवाद किया। उनके द्वारा रचित यह ग्रन्थ 'भारत पाँचाली' या 'काशीदास महाभारत' के नाम से जाना जाता है। उनके द्वारा अनूदित महाभारत ही बांग्ला भाषा में सबसे अधिक लोकप्रिय है। बंगला रामायण के रचयिता कृत्तिवास ओझा के समान ही इनकी ख्याति बंगाल के जनकवि के रूप में है। .
देखें कवि और काशीराम दास
काज़िम जरवली
काज़िम जरवली (کاظم جاروالی) (जन्म: जून, 1955) भारत से उर्दू भाषा के शायर हैं।उन्होंने कविता की कई पुस्तकें लिखी है और उनके साहित्यिक काम के लिए उन्हें कतिपय पुरस्कार प्राप्त हुए है। .
देखें कवि और काज़िम जरवली
काज़ी नज़रुल इस्लाम
काजी नज़रुल इस्लाम (কাজী নজরুল ইসলাম), (२४ मई १८९९ - २९ अगस्त १९७६) अग्रणी बांग्ला कवि, संगीतज्ञ, संगीतस्रष्टा और दार्शनिक थे। वे बांग्ला भाषा के अन्यतम साहित्यकार, देशप्रेमी तथा बंगलादेश के राष्ट्रीय कवि हैं। पश्चिम बंगाल और बंगलादेश दोनो ही जगह उनकी कविता और गान को समान आदर प्राप्त है। उनकी कविता में विद्रोह के स्वर होने के कारण उनको 'विद्रोही कवि' के नाम से जाना जाता है। उनकी कविता का वर्ण्यविषय 'मनुष्य के ऊपर मनुष्य का अत्याचार' तथा 'सामाजिक अनाचार तथा शोषण के विरुद्ध सोच्चार प्रतिवाद'। .
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काव्य
काव्य, कविता या पद्य, साहित्य की वह विधा है जिसमें किसी कहानी या मनोभाव को कलात्मक रूप से किसी भाषा के द्वारा अभिव्यक्त किया जाता है। भारत में कविता का इतिहास और कविता का दर्शन बहुत पुराना है। इसका प्रारंभ भरतमुनि से समझा जा सकता है। कविता का शाब्दिक अर्थ है काव्यात्मक रचना या कवि की कृति, जो छन्दों की शृंखलाओं में विधिवत बांधी जाती है। काव्य वह वाक्य रचना है जिससे चित्त किसी रस या मनोवेग से पूर्ण हो। अर्थात् वहजिसमें चुने हुए शब्दों के द्वारा कल्पना और मनोवेगों का प्रभाव डाला जाता है। रसगंगाधर में 'रमणीय' अर्थ के प्रतिपादक शब्द को 'काव्य' कहा है। 'अर्थ की रमणीयता' के अंतर्गत शब्द की रमणीयता (शब्दलंकार) भी समझकर लोग इस लक्षण को स्वीकार करते हैं। पर 'अर्थ' की 'रमणीयता' कई प्रकार की हो सकती है। इससे यह लक्षण बहुत स्पष्ट नहीं है। साहित्य दर्पणाकार विश्वनाथ का लक्षण ही सबसे ठीक जँचता है। उसके अनुसार 'रसात्मक वाक्य ही काव्य है'। रस अर्थात् मनोवेगों का सुखद संचार की काव्य की आत्मा है। काव्यप्रकाश में काव्य तीन प्रकार के कहे गए हैं, ध्वनि, गुणीभूत व्यंग्य और चित्र। ध्वनि वह है जिस, में शब्दों से निकले हुए अर्थ (वाच्य) की अपेक्षा छिपा हुआ अभिप्राय (व्यंग्य) प्रधान हो। गुणीभूत ब्यंग्य वह है जिसमें गौण हो। चित्र या अलंकार वह है जिसमें बिना ब्यंग्य के चमत्कार हो। इन तीनों को क्रमशः उत्तम, मध्यम और अधम भी कहते हैं। काव्यप्रकाशकार का जोर छिपे हुए भाव पर अधिक जान पड़ता है, रस के उद्रेक पर नहीं। काव्य के दो और भेद किए गए हैं, महाकाव्य और खंड काव्य। महाकाव्य सर्गबद्ध और उसका नायक कोई देवता, राजा या धीरोदात्त गुंण संपन्न क्षत्रिय होना चाहिए। उसमें शृंगार, वीर या शांत रसों में से कोई रस प्रधान होना चाहिए। बीच बीच में करुणा; हास्य इत्यादि और रस तथा और और लोगों के प्रसंग भी आने चाहिए। कम से कम आठ सर्ग होने चाहिए। महाकाव्य में संध्या, सूर्य, चंद्र, रात्रि, प्रभात, मृगया, पर्वत, वन, ऋतु, सागर, संयोग, विप्रलम्भ, मुनि, पुर, यज्ञ, रणप्रयाण, विवाह आदि का यथास्थान सन्निवेश होना चाहिए। काव्य दो प्रकार का माना गया है, दृश्य और श्रव्य। दृश्य काव्य वह है जो अभिनय द्वारा दिखलाया जाय, जैसे, नाटक, प्रहसन, आदि जो पढ़ने और सुनेन योग्य हो, वह श्रव्य है। श्रव्य काव्य दो प्रकार का होता है, गद्य और पद्य। पद्य काव्य के महाकाव्य और खंडकाव्य दो भेद कहे जा चुके हैं। गद्य काव्य के भी दो भेद किए गए हैं- कथा और आख्यायिका। चंपू, विरुद और कारंभक तीन प्रकार के काव्य और माने गए है। .
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काव्यमीमांसा
राजशेखर संस्क्रत कवि थे। काव्यमीमांसा कविराज राजशेखर (८८०-९२० ई.) कृत काव्यशास्त्र संबंधी मानक ग्रंथ है। 'काव्यमीमांसा' का अभी तक केवल प्रथम अधिकरण 'कविरहस्य' ही प्राप्त है और इसके भी मात्र १८ अध्याय ही मिलते हैं। १९वाँ अध्याय 'भुवनकोश' अप्राप्त है। किंतु 'कविरहस्य' अधिकरण के प्रथम तीन अध्यायों से पता चलता है कि कृतिकार ने काव्यमीमांसा में १९ अधिकरणों का समायोजन किया था और प्रत्येक अधिकरण में विषयानुरूप कई-कई अध्याय थे। उपलब्ध 'कविरहस्य' शीर्षक अधिकरण में मुख्यत: कवि शिक्षा संबंधी सामग्री है, यद्यपि लेखक ने "गुणवदलङकृतंच काव्यम" (अध्याय ६, पंक्ति २६) सूत्र के माध्यम से काव्य की परिभाषा भी प्रस्तुत की है तथापि इसका सविस्तार विवेचन नहीं किया है। हो सकता है, अगले अधिकरणों में कहीं उक्त विवेचन किया गया हो जो अब अप्राप्त हैं। 'कविरहस्य' अधिकरण के प्रथम अध्याय में राजशेखर ने काव्यशास्त्र के मूल स्रोत पर प्रकाश डालने के अतिरिक्त इसके अंतर्गत परिगणित होनेवाले विषयों की लंबी सूची भी दी है। दूसरे अध्याय में वैदिक वाङ्मय और उत्तरवदिक साहित्य के सन्दर्भ में काव्यशास्त्र का स्थान निश्चित करने के उपरांत, इसको सातवाँ वेदांग (वेदांग छह हैं) तथा १५वीं विद्या (विद्याएँ १४ हैं) कहा गया है। तीसरे अध्याय में ब्रह्मा एवं सरस्वती से काव्यपुरुष की उत्पत्ति, वाल्मीकि एवं व्यास से उसका संबंध, काव्यपुरुष का साहित्यविद्या से विवाह, पति पत्नी का भारत भर में भ्रमण और उनसे विभिन्न स्थानों पर वृत्तियों, प्रवृत्तियों तथा रीतियों का जन्म तथा अंत में काव्यपुरुष एवं साहित्यविद्या द्वारा कविमानस में स्थायी निवास का संकल्प वर्णित है। चौथे से नवें अध्याय तक पदवाक्यविवेक, काव्यपाककल्प, पाठप्रतिष्ठा, काव्यार्थयोनियाँ तथा अर्थव्याप्ति इत्यादि विषयों पर विचार किया गया है। १०वें अध्याय में कविचर्या तथा राजचर्या का सम्यक् उल्लेख है। ११वें से १८वें अध्याय तक शब्दहरण, काव्यहरण, कविसमय, भारत तथा संसार के भूगोल, घटनाओं, स्थानों एवं व्यक्तियों के वर्णन की प्राचीन पद्धतियों, कालगणना तथा ऋतुपरिवर्तनों का परिचय है। काव्यमीमांसा में प्रत्यक्षकवि (समसामयिक कवि) के बारे में कहा है- किसी किसी प्रत्यक्ष कवि का काव्य, कुलवती स्त्री का रूप और घर के वैद्य की विद्या ही अच्छी लगती है। अर्थात् अधिकांश प्रत्यक्ष कवियों का काव्य, कुलवती स्त्रियों का रूप और घर के वैद्यों की विद्या रुचिकर नहीं लगती। .
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काव्यशास्त्र
काव्यशास्त्र काव्य और साहित्य का दर्शन तथा विज्ञान है। यह काव्यकृतियों के विश्लेषण के आधार पर समय-समय पर उद्भावित सिद्धांतों की ज्ञानराशि है। युगानुरूप परिस्थितियों के अनुसार काव्य और साहित्य का कथ्य और शिल्प बदलता रहता है; फलत: काव्यशास्त्रीय सिद्धांतों में भी निरंतर परिवर्तन होता रहा है। भारत में भरत के सिद्धांतों से लेकर आज तक और पश्चिम में सुकरात और उसके शिष्य प्लेटो से लेकर अद्यतन "नवआलोचना' (नियो-क्रिटिसिज्म़) तक के सिद्धांतों के ऐतिहासिक अनुशीलन से यह बात साफ हो जाती है। भारत में काव्य नाटकादि कृतियों को 'लक्ष्य ग्रंथ' तथा सैद्धांतिक ग्रंथों को 'लक्षण ग्रंथ' कहा जाता है। ये लक्षण ग्रंथ सदा लक्ष्य ग्रंथ के पश्चाद्भावनी तथा अनुगामी है और महान् कवि इनकी लीक को चुनौती देते देखे जाते हैं। काव्यशास्त्र के लिए पुराने नाम 'साहित्यशास्त्र' तथा 'अलंकारशास्त्र' हैं और साहित्य के व्यापक रचनात्मक वाङमय को समेटने पर इसे 'समीक्षाशास्त्र' भी कहा जाने लगा। मूलत: काव्यशास्त्रीय चिंतन शब्दकाव्य (महाकाव्य एवं मुक्तक) तथा दृश्यकाव्य (नाटक) के ही सम्बंध में सिद्धांत स्थिर करता देखा जाता है। अरस्तू के "पोयटिक्स" में कामेडी, ट्रैजेडी, तथा एपिक की समीक्षात्मक कसौटी का आकलन है और भरत का नाट्यशास्त्र केवल रूपक या दृश्यकाव्य की ही समीक्षा के सिद्धांत प्रस्तुत करता है। भारत और पश्चिम में यह चिंतन ई.पू.
देखें कवि और काव्यशास्त्र
काकि नो मोतो नो हितोमारो
काकि नो मोतो नो हितोमारो काकि नो मोतो नो हितोमारो (Kakinomoto no Hitomaro; 柿本人麻呂 or 柿本人麿; c. ६६२ – ७१०) एक प्रतिष्ठित जापानी कवि थें। इनकी रचनाओं को मान्योशू में सम्मिलित किया गया था। .
देखें कवि और काकि नो मोतो नो हितोमारो
कवि मृगेश
गुरु प्रसाद सिंह 'मृगेश' (1910 -1985), अवधी भाषा के कवि थे। .
देखें कवि और कवि मृगेश
कवित्रय
तेलुगु के तीन कवियों को सम्मिलित रूप से कवित्रय कहते है, ये तीन कवि हैं- नन्नय्य, तिक्कन और एर्राप्रेगड्डा। कवित्रय ने महाभारत का संस्कृत से तेलुगु में अनुवाद किया। श्रेणी:तेलुगु साहित्यकार.
देखें कवि और कवित्रय
कवींद्राचार्य सरस्वती
कवीन्द्राचार्य सरस्वती ब्रजभाषा के कवि थे। सत्रहवीं शताब्दी में भारत में जो श्रेष्ठ तथा दिग्गज आचार्य कवि हुए उनमें कवींद्राचार्य सरस्वती का नाम विशेष उल्लेखनीय है। दक्षिण में गोदावरी के तीर पर एक गाँव में ऋग्वेदीय आश्वलायन शाखा के ब्राह्मण कुल में जन्मे कवींद्राचार्य के वास्तविक नाम का पता नहीं चलता। 'कवींद्र' इनकी उपाधि है। अद्वैतवेदांती संन्यासी होने के कारण ये 'सरस्वती' उपाधि से विभूषित थे और शाहजहाँ के राज्यकाल में प्रयाग तथा वाराणसी के सबसे प्रधान संन्यासी मठाधीश और काव्यदर्शन तथा वेदवेदांग के मूर्धन्य पंडित थे। .
देखें कवि और कवींद्राचार्य सरस्वती
कुप्पाली वी गौड़ा पुटप्पा
कुपल्ली वेंकटप्पागौड़ा पुटप्पा (ಕುಪ್ಪಳ್ಳಿ ವೆಂಕಟಪ್ಪಗೌಡ ಪುಟ್ಟಪ್ಪ) (२९ दिसम्बर १९०४ - ११ नवम्बर १९९४) एक कन्नड़ लेखक एवं कवि थे, जिन्हें २०वीं शताब्दी के महानतम कन्नड़ कवि की उपाधि दी जाती है। ये कन्नड़ भाषा में ज्ञानपीठ सम्मान पाने वाले सात व्यक्तियों में प्रथम थे। पुटप्पा ने सभी साहित्यिक कार्य उपनाम 'कुवेम्पु' से किये हैं। उनको साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में सन १९५८ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। इनके द्वारा रचित एक महाकाव्य श्रीरामायण दर्शनम् के लिये उन्हें सन् १९५५ में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .
देखें कवि और कुप्पाली वी गौड़ा पुटप्पा
कुमार विश्वास
कुमार विश्वास हिन्दी के एक अग्रणी कवि तथा सामाजिक-राजनैतिक कार्यकर्ता हैं। कविता के क्षेत्र में शृंगार के गीत इनकी विशेषता है। .
देखें कवि और कुमार विश्वास
कुम्भनदास
कुम्भनदास(१४६८-१५८३) अष्टछाप के प्रसिद्ध कवि थे। ये परमानंददास जी के समकालीन थे। कुम्भनदास का चरित "चौरासी वैष्णवन की वार्ता" के अनुसार संकलित किया जाता है। कुम्भनदास ब्रज में गोवर्धन पर्वत से कुछ दूर "जमुनावतौ" नामक गाँव में रहा करते थे। उनके घर में खेती-बाड़ी होती थी। अपने गाँव से वे पारसोली चन्द्रसरोवर होकर श्रीनाथ जी के मन्दिर में कीर्तन करने जाते थे। उनका जन्म गौरवा क्षत्रिय कुल में हुआ था। कुम्भनदास के सात पुत्र थे, जिनमें चतुर्भजदास को छोड़कर अन्य सभी कृषि कर्म में लगे रहते थे। उन्होंने १४९२ ई० में महाप्रभु वल्लभाचार्य से दीक्षा ली थी। वे पूरी तरह से विरक्त और धन, मान, मर्यादा की इच्छा से कोसों दूर थे। एक बार अकबर बादशाह के बुलाने पर इन्हें फतेहपुर सीकरी जाना पड़ा जहाँ इनका बड़ा सम्मान हुआ। पर इसका इन्हें बराबर खेद ही रहा, जैसा कि इनके इस पद से व्यंजित होता है- .
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कुंजर भारती
कुंजर भारती (१८१० - १८९६ ई.) तमिल के विख्यात कवि एवं कर्नाटक संगीत रचनाकार थे। वे शिवगंगा के राजा गौरीवल्लभ के सभास्थान विद्वान थे। उन्होंने इन्हें 'कवि कुंजर' की उपाधि प्रदान की थी। इनकी ख्याति मधुर पदावली और सुंदर कल्पना के लिए है। रूकंदपुराण कीर्तन, पेरिंब कीर्तनैगल और अझगर कुरवंजी इनकी विख्यात रचनाएँ ह श्रेणी:तमिल कवि.
देखें कवि और कुंजर भारती
क्लाज़ एब्नेर
क्लाज़ इब्नेर (Klaus Ebner), (जन्म: सन १९६४, वियना) ऑस्ट्रिया के एक प्रख्यात लेखक, निबंधकार, कवि, तथा अनुवादक हैं। वियना मे पले-बढ़े क्लाज़ ने छोटी आयु से ही लिखना शुरू कर दिया था। प्रमुख पत्रिकायों मे उनकी कहानियाँ सन् १९८० से ही प्रकाशित होनी शुरू हो गई थीं। सन् १९८० से क्लाज़ निबंध एवं सॉफ्टवेयर पर पुस्तकें लिख रहे हैं। इनकी रचनायें मुख्यत: जर्मन और कटालान भाषा मे लिखित हैं। आपने फ्रांसीसी एवं कटालान साहित्य को जर्मन भाषा में अनुवाद भी किया है। वे कई ऑस्ट्रियाई लेखक संगठनों के सदस्य है, जिसमे ग्रेज़र ऑटोरिनेन ऑटोरेंवरसामलुंग (Grazer Autorinnen Autorenversammlung) प्रमुख है। आपके निबंध मुख्यत: कटालान विषयों एवं यहूदी संस्कृति पर आधारित हैं। आपका पहला लघु-कथाओं का संग्रह सन् २००७ मे प्रकाशित हुआ था। सन् २००८ मे आपने अपनी पुस्तक होमीनाइड (Hominide) का प्रकाशन किया। क्लाज़ कई साहित्यिक पुरस्कारो से सम्मानित किये जा चुके हैं। इनमे युवा पुरस्कार अर्स्टर ऑस्टेरीशिस्षर जुगेंड्प्रीस (Erster Österreichischer Jugendpreis) (१९८२) प्रमुख है। ऑस्ट्रिया के विख्यात टिप्पनीकार वूल्फ़गैंग रैट्ज़ (Wolfgang Ratz), ने इब्नेर के लेखन की प्रशंसा की है। क्लाज़ इब्नेर अपने परिवार के साथ वियना में रहते हैं। .
देखें कवि और क्लाज़ एब्नेर
कृत्तिवास ओझा
नादिया जिले के फुलिया में बना ''''कृत्तिवास स्मारक'''' कृत्तिवास ओझा (बांग्ला: কৄত্তিবাস ওঝা) या 'कीर्तिवास ओझा'Sen, Sukumar (1991, reprint 2007).
देखें कवि और कृत्तिवास ओझा
कृष्णदेवराय
कृष्णदेवराय की कांस्य प्रतिमा संगीतमय स्तम्भों से युक्त हम्पी स्थित विट्ठल मन्दिर; इसके होयसला शैली के बहुभुजाकार आधार पर ध्यान दीजिए। कृष्णदेवराय (1509-1529 ई.; राज्यकाल 1509-1529 ई) विजयनगर के सर्वाधिक कीर्तिवान राजा थे। वे स्वयं कवि और कवियों के संरक्षक थे। तेलुगु भाषा में उनका काव्य अमुक्तमाल्यद साहित्य का एक रत्न है। इनकी भारत के प्राचीन इतिहास पर आधारित पुस्तक वंशचरितावली तेलुगू के साथ—साथ संस्कृत में भी मिलती है। संभवत तेलुगू का अनुवाद ही संस्कृत में हुआ है। प्रख्यात इतिहासकार तेजपाल सिंह धामा ने हिन्दी में इनके जीवन पर प्रामाणिक उपन्यास आंध्रभोज लिखा है। तेलुगु भाषा के आठ प्रसिद्ध कवि इनके दरबार में थे जो अष्टदिग्गज के नाम से प्रसिद्ध थे। स्वयं कृष्णदेवराय भी आंध्रभोज के नाम से विख्यात थे। .
देखें कवि और कृष्णदेवराय
कैफ़ भोपाली
कैफ़ भोपाली (کیف بھوپالی) एक भारतीय उर्दू शायर और फ़िल्मी गीतकार थे। वे 1972 में बनी कमाल अमरोही की फिल्म पाक़ीज़ा में मोहम्मद रफ़ी द्वारा गाये गीत "चलो दिलदार चलो....." से लोकप्रिय हुए। .
देखें कवि और कैफ़ भोपाली
कैफ़ी आज़मी
कैफ़ी आज़मी (असली नाम: अख्तर हुसैन रिजवी) उर्दू के एक अज़ीम शायर थे। उन्होंने हिन्दी फिल्मों के लिए भी कई प्रसिद्ध गीत व ग़ज़लें भी लिखीं, जिनमें देशभक्ति का अमर गीत -"कर चले हम फिदा, जान-ओ-तन साथियों" भी शामिल है। .
देखें कवि और कैफ़ी आज़मी
केदारनाथ सिंह
केदारनाथ सिंह (७ जुलाई १९३४ – १९ मार्च २०१८), हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि व साहित्यकार थे। वे अज्ञेय द्वारा सम्पादित तीसरा सप्तक के कवि रहे। भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा उन्हें वर्ष २०१३ का ४९वां ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया था। वे यह पुरस्कार पाने वाले हिन्दी के १०वें लेखक थे। .
देखें कवि और केदारनाथ सिंह
केरला साहित्योत्सव
केरला साहित्योत्सव या केरला लिटरेचर फेस्टिवल (के. एल. एफ) एक वार्षिक साहित्योत्सव है जो हर साल कोषीकोड के समुद्र तट में मनाया जाता है। डी सी कीषकेमुरी फाउंडेशन और अन्य संगठनों की सहायता से के.
देखें कवि और केरला साहित्योत्सव
केशिराज
केशिराज (कन्नड: ಕೇಶಿರಾಜ) तेरहवीं शती के कन्नड वैयाकरण एवं कवि थे। उन्होने 'शब्दमणिदर्पण' नामक प्रसिद्ध कन्नड व्याकरण ग्रन्थ की रचना की थी। इस कार्य के कारण वे कन्नड व्याकरण के सबसे महान सिद्धान्तकार माने जाते हैं। वे संस्कृत के भी पण्डित थे। वे होयसला राजदरबार के प्रतिष्ठित कवि थे। श्रेणी:कन्नड कवि श्रेणी:कन्नड वैयाकरण.
देखें कवि और केशिराज
केशव
केशव का स्वचित्रण (१५७० ई) केशव या केशवदास (जन्म (अनुमानत) 1555 विक्रमी और मृत्यु (अनुमानत) 1618 विक्रमी) हिन्दी साहित्य के रीतिकाल की कवि-त्रयी के एक प्रमुख स्तंभ हैं। वे संस्कृत काव्यशास्त्र का सम्यक् परिचय कराने वाले हिंदी के प्राचीन आचार्य और कवि हैं। इनका जन्म सनाढ्य ब्राह्मण कुल में हुआ था। इनके पिता का नाम काशीराम था जो ओड़छानरेश मधुकरशाह के विशेष स्नेहभाजन थे। मधुकरशाह के पुत्र महाराज इन्द्रजीत सिंह इनके मुख्य आश्रयदाता थे। वे केशव को अपना गुरु मानते थे। रसिकप्रिया के अनुसार केशव ओड़छा राज्यातर्गत तुंगारराय के निकट बेतवा नदी के किनारे स्थित ओड़छा नगर में रहते थे। .
देखें कवि और केशव
केक
रास्पबेरी जैम और नींबू दही से भरा और बटरक्रीम फ़्रॉस्टिंग के साथ सजाया हुआ एक तह वाला पाऊंड केक भोजन के अंत में परोसा जाने वाला मिष्ठान्न, केक सेंककर तैयार किया हुआ भोज्य पदार्थ है। आमतौर पर कई किस्मों वाला केक का आटा, चीनी, अंडे, मक्खन या तेल का मिश्रण है जिसे घोलने के लिए तरल (आम तौर पर दूध या पानी) और खमीर उठाने वाले पदार्थ (जैसे कि खमीर या बेकिंग पाउडर) की ज़रूरत होती है। स्वाद व महक के लिए अक्सर फलों का गाढ़ा गूदा, मेवे या अर्क मिला दिए जाते हैं और मुख्य सामग्री के अनेक विकल्प सुलभ हैं। अक्सर केक में फलों का मुरब्बा या मिष्ठान्न वाली सॉस (जैसे पेस्ट्री क्रीम) भर दी जाती है, उसके ऊपर मक्खन वाली क्रीम या अन्य आइसिंग लगाकर बादाम और अंडे के सफ़ेद हिस्से का मिश्रण, किनारों पर बिंदियां और चाशनी में डूबे फल लगाकर सजाया जाता है। विशेष रूप से शादी, वर्षगाँठ और जन्मदिन जैसे औपचारिक अवसरों पर अक्सर खाने के बाद मिठाई के तौर पर केक का चुनाव किया जाता है। केक बनाने की अनगिनत पाक विधियां हैं, कुछ रोटी की तरह, कुछ गरिष्ठ और बड़े परिश्रम से तैयार की जाने वाली और अनेक पारम्परिक हैं। किसी ज़माने में केक बनाने (विशेष रूप से अंडे की झाग उठाने में) में काफ़ी मेहनत लगा करती थी लेकिन अब केक बनाना कोई जटिल प्रक्रिया नहीं रही, सेंकने वाले उपकरण और विधियां इतनी सरल हो गई हैं कि कोई भी नौसिखिया केक सेंक सकता है। .
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के॰ सच्चिदानन्दन
के.
देखें कवि और के॰ सच्चिदानन्दन
अट्टीपट कृष्णस्वामी रामानुजन
अट्टीपट कृष्णस्वामी रामानुजन (ಅತ್ತಿಪೇಟೆ ಕೃಷ್ಣಸ್ವಾಮಿ ರಾಮಾನುಜನ್) (அத்திப்பட்டு கிருஷ்ணசுவாமி ராமானுஜன்) (१६ मार्च १९२९ - १३ जुलाई १९९३) एक कवि, निबंधकार, शोधकर्ता, अनुवादक, भाषाविद्, नाटककार और लोककथाओं के विशेषज्ञ थे। उन्होंने तमिल, कन्नड़ और अंग्रेज़ी में कवितायें लिखी है जिन्होंने न केवल भारत में बल्कि अमेरिका में भी प्रभाव बनाया और आज भी बहुचर्चित कविताओं में से एक हैं। यद्यपि वह भारतीय थे और उनके अधिकांश काम भारत से संबंधित थे परन्तु उन्होंने अपने जीवन का दूसरा भाग, अपने मृत्यु तक अमेरिका में ही बिताया। विपुल निबंधकार और कवि, रामानुजन ने अनगिनत शैक्षिक और साहित्यिक पत्रिकाओं के लिए योगदान दिया। उन्होंने अपने कार्यों के द्वारा पूर्वी और पश्चिमी संस्कृतियों को पारस्परिक रूप से सुबोध्य बनाने की कोशिश की। उन्हें यह कहते हुए पाया गया है कि - "मैं भारत-अमेरिका में एक संबंधक (हायफेन) हूँ"। A.K.
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अनामिका (हिंदी कवयित्री)
अनामिका हिंदी की कवयित्री हैं। उन्हें हिंदी कविता में अपने विशिष्ट योगदान के कारण राजभाषा परिषद् पुरस्कार, साहित्य सम्मान, भारतभूषण अग्रवाल एवं केदार सम्मान पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। जन्म: 17 अगस्त 1961, मुजफ्फरपुर (बिहार) शिक्षा: दिल्ली विश्वविद्यालय से अँग्रेजी साहित्य में एम.ए., पी.एचडी.। डी० लिट्। अध्यापन- अँग्रेजी विभाग,सत्यवती कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय। आधुनिक समय में हिन्दी भाषा की प्रमुख कहानीकार और उपन्यासकार हैं। समकालीन हिन्दी कविता की चंद सर्वाधिक चर्चित कवयित्रियों में वे शामिल की जाती हैं। अंग्रेज़ी की प्राध्यापिका होने के बावजूद अनामिका ने हिन्दी कविता कोश को समृद्ध करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी है। प्रख्यात आलोचक डॉ.
देखें कवि और अनामिका (हिंदी कवयित्री)
अनिल जनविजय
अनिल जनविजय (२८ जुलाई १९५७), हिन्दी कवि-लेखक और रूसी और अंग्रेज़ी भाषाओं से हिन्दी में दुनिया भर के साहित्य का अनुवादक हैं। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से बी.कॉम और मॉस्को स्थित गोर्की साहित्य संस्थान से सृजनात्मक साहित्य विषय में एम० ए० किया। इन दिनों मॉस्को विश्वविद्यालय में हिंदी साहित्य का अध्यापन और रेडियो रूस का हिन्दी डेस्क देख रहे हैं। .
देखें कवि और अनिल जनविजय
अन्नामाचार्य
श्री तल्लापाका अन्नामाचार्य (శ్రీ తాళ్ళపాక అన్నమాచార్య) या सीधे अन्नामाचार्य (मई 9, 1408- फरवरी 23, 1503) एक तेलुगु संत कवि और कर्नाटक संगीत रचयिता थे। वे दक्षिण भारत के पहले संगीतज्ञ थे जिन्होंने ''संकीर्तन'' की रचना की। उन्होंने तिरूमाला सात पर्वतों के देवता भगवान वेंकटेश्वर की स्तुति में अनेक भजनों की रचना की। तेलुगु भाषा भाषी उनको पद-कविता का पितामह मानते हैं।.
देखें कवि और अन्नामाचार्य
अबू नुवास
अबु नुवास (756-814) इस्लाम के शुरुआती काल में अरबी का प्रसिद्ध कवि था। उसको इस्लाम के सिद्धांतों के ख़िलाफ़ शराब, उत्सव और दैहिक प्रेम के ख़ुले आम प्रशंसा के लिए जाना जाता है। उसकी कविताओं में समलैंगिकता के स्वर भी पाए जाते हैं। इसकी माँ ईरानी थी और मध्य काल (तेरहवीं-चैदहवीं सदी) में हाफ़िज़ तथा कई अन्य सूफ़ी कवियों का प्रेरणास्रोत माना जाता है। .
देखें कवि और अबू नुवास
अभय कुमार
अभय कुमार (जन्म: १९८०) एक भारतीय राजनयिक और कवि हैं। उन्होने कई पुस्तकें लिखी हैं, जिनमे से 'रिवर वैली टू सिलोकोन वैली' भी एक हैं। वे पृथ्वी गान के रचयिता हैं। दक्षिण भारतीय कविता क्षेत्र में योगदान के लिए उन्हें सार्क लिटरेरी अवार्ड प्राप्त हैं। वर्तमान में वे काठमांडू स्थित भारतीय दूतावास के प्रथम सचिव (प्रेस, सूचना और संस्कृति) हैं। .
देखें कवि और अभय कुमार
अभिषेक कुमार अम्बर
अभिषेक कुमार अम्बर (English:Abhishek Kumar Ambar) (Urdu:ابھیشیک کمار امبر) उर्दू शायर एवं लेखक हैं। जो मुख्यतः ग़ज़ल के शायर हैं। यह दिल्ली के छोटे उस्ताद के नाम से भी विख्यात हैं। .
देखें कवि और अभिषेक कुमार अम्बर
अमरु
अमरु (या अमरूक) संस्कृत के महान कवियों में से एक हैं। इनकी रचना अमरूशतक प्रसिद्ध है। इनका कोई अन्य काव्य उपलब्ध नहीं है और केवल इस एक ही सौ पद्यों के काव्य से ये सहृदयों के बीच प्रसिद्ध हुए हैं। सुभाषितावलि के विश्वप्रख्यातनाडिंधमकुलतिलको विश्वकर्मा द्वितीयः पद्य से पता चलता है कि ये सुवर्णकार थे। तथापि इनके माता-पिता कौन थे यह उल्लेख नहीं मिलता। .
देखें कवि और अमरु
अमिताभ ठाकुर
अमिताभ ठाकुर भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी, कवि, व लेखक हैं। वे एक आई। पी.एस.
देखें कवि और अमिताभ ठाकुर
अमीर ख़ुसरो
अबुल हसन यमीनुद्दीन अमीर ख़ुसरो (1253-1325) चौदहवीं सदी के लगभग दिल्ली के निकट रहने वाले एक प्रमुख कवि शायर, गायक और संगीतकार थे। उनका परिवार कई पीढ़ियों से राजदरबार से सम्बंधित था I स्वयं अमीर खुसरो ने आठ सुल्तानों का शासन देखा था I अमीर खुसरो प्रथम मुस्लिम कवि थे जिन्होंने हिंदी शब्दों का खुलकर प्रयोग किया है I वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने हिंदी, हिन्दवी और फारसी में एक साथ लिखा I उन्हे खड़ी बोली के आविष्कार का श्रेय दिया जाता है I वे अपनी पहेलियों और मुकरियों के लिए जाने जाते हैं। सबसे पहले उन्हीं ने अपनी भाषा के लिए हिन्दवी का उल्लेख किया था। वे फारसी के कवि भी थे। उनको दिल्ली सल्तनत का आश्रय मिला हुआ था। उनके ग्रंथो की सूची लम्बी है। साथ ही इनका इतिहास स्रोत रूप में महत्त्व है। मध्य एशिया की लाचन जाति के तुर्क सैफुद्दीन के पुत्र अमीर खुसरो का जन्म सन् (६५२ हि.) में एटा उत्तर प्रदेश के पटियाली नामक कस्बे में हुआ था। लाचन जाति के तुर्क चंगेज खाँ के आक्रमणों से पीड़ित होकर बलबन (१२६६ -१२८६ ई0) के राज्यकाल में ‘’शरणार्थी के रूप में भारत में आ बसे थे। खुसरो की माँ बलबनके युद्धमंत्री इमादुतुल मुल्क की पुत्री तथा एक भारतीय मुसलमान महिला थी। सात वर्ष की अवस्था में खुसरो के पिता का देहान्त हो गया। किशोरावस्था में उन्होंने कविता लिखना प्रारम्भ किया और २० वर्ष के होते होते वे कवि के रूप में प्रसिद्ध हो गए। खुसरो में व्यवहारिक बुद्धि की कोई कमी नहीं थी। सामाजिक जीवन की खुसरो ने कभी अवहेलना नहीं की। खुसरो ने अपना सारा जीवन राज्याश्रय में ही बिताया। राजदरबार में रहते हुए भी खुसरो हमेशा कवि, कलाकार, संगीतज्ञ और सैनिक ही बने रहे। साहित्य के अतिरिक्त संगीत के क्षेत्र में भी खुसरो का महत्वपूर्ण योगदान है I उन्होंने भारतीय और ईरानी रागों का सुन्दर मिश्रण किया और एक नवीन राग शैली इमान, जिल्फ़, साजगरी आदि को जन्म दिया I भारतीय गायन में क़व्वालीऔर सितार को इन्हीं की देन माना जाता है। इन्होंने गीत के तर्ज पर फ़ारसी में और अरबी ग़जल के शब्दों को मिलाकर कई पहेलियाँ और दोहे भी लिखे हैं। .
देखें कवि और अमीर ख़ुसरो
अरिवारा नो नारिहिरा
राजकुमार अरिवारा नो नारिहिरा (Ariwara no Narihira; 在原 業平?, ८२५ – जुलाई ९, ८८०) जापानी वाका कवि थें। .
देखें कवि और अरिवारा नो नारिहिरा
अल्ताफ हुसैन हाली
अल्ताफ हुसैन हाली (1837–1914) उर्दू के प्रसिद्ध कवि एवं लेखक थे। .
देखें कवि और अल्ताफ हुसैन हाली
अल्फ्रेड ऑस्टिन
अल्फ्रेड ऑस्टिन (३० मई १८३५ – २ जून १९१३) अंग्रेज़ कवि थे। उनका जन्म हेड़िगली में हुआ था। उनका पिता जोसफ ऑस्टिन एक व्यापारी था। उनकी माँ जोसफ लोके की बहन थी। .
देखें कवि और अल्फ्रेड ऑस्टिन
अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ाँ
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ, (उर्दू: اشفاق اُللہ خان, अंग्रेजी:Ashfaq Ulla Khan, जन्म:22 अक्तूबर १९००, मृत्यु:१९२७) भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे। उन्होंने काकोरी काण्ड में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। ब्रिटिश शासन ने उनके ऊपर अभियोग चलाया और १९ दिसम्बर सन् १९२७ को उन्हें फैजाबाद जेल में फाँसी पर लटका कर मार दिया गया। राम प्रसाद बिस्मिल की भाँति अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ भी उर्दू भाषा के बेहतरीन शायर थे। उनका उर्दू तखल्लुस, जिसे हिन्दी में उपनाम कहते हैं, हसरत था। उर्दू के अतिरिक्त वे हिन्दी व अँग्रेजी में लेख एवं कवितायें भी लिखा करते थे। उनका पूरा नाम अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ वारसी हसरत था। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के सम्पूर्ण इतिहास में बिस्मिल और अशफ़ाक़ की भूमिका निर्विवाद रूप से हिन्दू-मुस्लिम एकता का अनुपम आख्यान है। .
देखें कवि और अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ाँ
अश्वघोष
अश्वघोष, बौद्ध महाकवि तथा दार्शनिक थे। बुद्धचरितम्''' इनकी प्रसिद्ध रचना है। कुषाणनरेश कनिष्क के समकालीन महाकवि अश्वघोष का समय ईसवी प्रथम शताब्दी का अंत और द्वितीय का आरंभ है। .
देखें कवि और अश्वघोष
अशोक चक्रधर
डॉ॰ अशोक चक्रधर (जन्म ८ फ़रवरी सन् १९५१) हिंदी के विद्वान, कवि एवं लेखक है। हास्य-व्यंग्य के क्षेत्र में अपनी विशिष्ट प्रतिभा के कारण प्रसिद्ध वे कविता की वाचिक परंपरा का विकास करने वाले प्रमुख विद्वानों में से भी एक है। टेलीफ़िल्म लेखक-निर्देशक, वृत्तचित्र लेखक निर्देशक, धारावाहिक लेखक, निर्देशक, अभिनेता, नाटककर्मी, कलाकार तथा मीडिया कर्मी के रूप में निरंतर कार्यरत अशोक चक्रधर जामिया मिलिया इस्लामिया में हिंदी व पत्रकारिता विभाग में प्रोफेसर के पद से सेवा निवृत्त होने के बाद संप्रति केन्द्रीय हिंदी संस्थानतथा हिन्दी अकादमी, दिल्ली के उपाध्यक्ष पद पर कार्यरत हैं। 2014 में उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया गया। .
देखें कवि और अशोक चक्रधर
अशोक आत्रेय
अशोक आत्रेय बहुमुखी प्रतिभा के संस्कृतिकर्मी सातवें दशक के जाने माने वरिष्ठ हिन्दी-कथाकार और (सेवानिवृत्त) पत्रकार हैं | मूलतः कहानीकार होने के अलावा यह कवि, चित्रकार, कला-समीक्षक, रंगकर्मी-निर्देशक, नाटककार, फिल्म-निर्माता, उपन्यासकार और स्तम्भ-लेखक भी हें| .
देखें कवि और अशोक आत्रेय
अष्टदिग्गज
अष्टदिग्गज (तेलुगु: అష్టదిగ్గజాలు) विजयनगर राज्य के राजा कृष्णदेव राय के दरबार में विभूषित आठ कवियों के लिये प्रयुक्त शब्द है। कहा जाता है कि इस काल में तेलुगु साहित्य अपनी पराकाष्ठा तक पहुंच गया था। कृष्णदेव के दरबार में ये कवि साहित्य सभा के आठ स्तम्भ माने जाते थे। इस काल (१५४० से १६००) को तेलुगू कविता के सन्दर्भ में 'प्रबन्ध काल' भी कहा जाता है। ये अष्टदिग्गज ये हैं-.
देखें कवि और अष्टदिग्गज
असद भोपाली
असद भोपाली (जन्म: 10 जुलाई 1921, मृत्यु: 9 जून 1990), बॉलीवुड के एक गीतकार हैं। असद का जन्म भोपाल में 10 जुलाई 1921 को हुआ था। उनके पिता का नाम मुंशी अहमद खान था और असद उनकी पहली संतान थे। उनका जन्म नाम असादुल्लाह खान था। उन्होंने फारसी, अरबी, उर्दू और अंग्रेजी में औपचारिक शिक्षा प्राप्त की थी। असद अपनी शायरी के चलते धीरे धीरे असद भोपाली के नाम से मशहूर हो गये। 28 साल की उम्र में यह गीतकार बनने के लिए बंबई आ गये, लेकिन अपनी पहचान बनाने के लिए उन्हें पूरे जीवन संघर्ष करना पड़ा। उन्होंने पहले पहल 1949 की फिल्म "दुनिया" के लिए दो गीत लिखे, जिन्हे मोहम्मद रफी (रोना है तो चुपके चुपके रो) और सुरैया (अरमान लूटे दिल टूट गया) की आवाज में रिकॉर्ड किया गया था। इन्हे प्रसिद्धि इनके बी आर चोपडा की फिल्म अफसाना के गीतों से मिली। असद ने अपने समय के सबसे प्रमुख संगीत निर्देशकों जैसे कि श्याम सुन्दर, हुस्नलाल-भगतराम, सी.
देखें कवि और असद भोपाली
असमिया भाषा के कवियों की सूची
यहाँ असमिया भाषा के उल्लेखनीय कवियों की सूची दी गयी है। .
देखें कवि और असमिया भाषा के कवियों की सूची
अजयगढ़
मध्यप्रदेश के ऐतिहासिक जिले पन्ना के निकट बसा ६.८१ वर्ग किलोमीटर में फैला अजयगढ़ अपने लगभग २५० साल पुराने दुर्ग, प्राकृतिक सुषमा और वन्य-सम्पदा के लिए प्रसिद्ध है। यह नगर पंचायत है। .
देखें कवि और अजयगढ़
अज्ञेय
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय" (7 मार्च, 1911 - 4 अप्रैल, 1987) को कवि, शैलीकार, कथा-साहित्य को एक महत्त्वपूर्ण मोड़ देने वाले कथाकार, ललित-निबन्धकार, सम्पादक और अध्यापक के रूप में जाना जाता है। इनका जन्म 7 मार्च 1911 को उत्तर प्रदेश के कसया, पुरातत्व-खुदाई शिविर में हुआ। बचपन लखनऊ, कश्मीर, बिहार और मद्रास में बीता। बी.एससी.
देखें कवि और अज्ञेय
अख़लाक़ मुहम्मद ख़ान 'शहरयार'
अख़लाक़ मुहम्मद ख़ान (१६ जून १९३६ – १३ फ़रवरी २०१२), जिन्हें उनके तख़ल्लुस या उपनाम शहरयार से ही पहचाना जाना जाता है, एक भारतीय शिक्षाविद और भारत में उर्दू शायरी के दिग्गज थे। .
देखें कवि और अख़लाक़ मुहम्मद ख़ान 'शहरयार'
अग्रदास
अग्रदास (१६वी शताब्दी) एक संत और कवि थे। वें कृष्णदास पयहारी के शिष्य थे। अग्रदासजी के शिष्य नाभादास जी थे, जिन्होंने 'भक्तमाल' धार्मिक ग्रन्थ की रचना की थी। भक्तिकाल के कवियों में स्वामी अग्रदास के शिष्य नाभादास का विशिष्ट स्थान है। अग्रदास "रसिक संप्रदाय" के संस्थापक आचार्य थे। उनका जन्म १६वी शती का उत्तरार्द्ध बताया जाता हैं। अग्रदास, स्वामी रामानंद के शिष्य-परम्परा के चौथी पीठी में हुए- रामानंद, अनंतानंद, श्रीकृष्णदास पयहारी, अग्रदास। अग्रदास जी का एक पद इस प्रकार है - पहरे राम तुम्हारे सोवत। मैं मतिमंद अंधा नहिं जोवत॥ अपमारग मारग महि जान्यो। इंद्री पोषि पुरुषारथ मान्यो॥ औरनि के बल अनतप्रकार। अगरदास के राम अधार॥ .
देखें कवि और अग्रदास
अकबर के नवरत्न
अकबर के नवरत्न: टोडरमल, तानसेन, अबुल फजल, फैजी, अब्दुल रहीम भारत का महान मुगल बादशाह अकबर स्वयं निरक्षर होते हुए भी इतिहासज्ञों, चित्रकारों, सुलेख लिखने वाले केलिग्राफिस्ट, विचारकों, धर्म-गुरुओं, कलाकारों एवं बुद्धिजीवियो का विशेष प्रेमी था। कहा जाता है अकबर के दरबार में ऐसे नौ (९) गुणवान दरबारी थे जिन्हें कालांतर में अकबर के नवरत्न के नाम से भी जाना गया। .
देखें कवि और अकबर के नवरत्न
अक़बर इलाहाबादी
अकबर ने सैयद अकबर हुसैन के नाम से १८४६ में इलाहाबाद के निकट बारा में एक सम्मानजनक, परिवार में जन्म लिया। उनके पिता का नाम सैयद तफ्फज़ुल हुसैन था। .
देखें कवि और अक़बर इलाहाबादी
अकाहिटो
अकाहिटो (Yamabe no Akahito; 山部 赤人 or 山邊 赤人) (fl. ७२४–७३६) जापान के नारा युगीन कवि थे। जापान की सबसे प्राचीन काव्य संग्रह मान्योशू में इनकी १३ चोका व ३७ वाका (तांका) प्रकाशित हैं। .
देखें कवि और अकाहिटो
उत्पलकुमार बसु
उत्पल कुमार बसु (३ अगस्त १९३९) (উৎপলকুমার বসু) बांग्ला सहित्य के भूखी पीढ़ी (हंगरी जनरेशन) आन्दोलन के एक प्रमुख कवि हैं। १९६० तक वह कृत्तिवास गोष्ठी के सदस्य थे। भुखी पीढी आन्दोलन में योगदान के कारण उनके खिलाफ भी कोलकाता पुलिस समन निकाला था। इसके चलते उन्हे योगमाया देवी कालेज के प्राध्यापक के नौकरि से बरखास्त किया गया था। ततपश्चात वह विदेश चले गये एवम दस साल के लिये कविता लिखना त्याग दिया। दस साल बाद कोलकाता लौट कर उन्होने जो कवितायें प्रकाश करने लगे, साहित्य जगत में मानो तहलका मचा दिया। भुखी पीढी आन्दोलन के समय लिखे उनका पोपेर समाधि को सराहा गया है। .
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उदयशंकर भट्ट
उदयशंकर भट्ट हिंदी के विद्वान सुप्रसिद्ध लेखक व कवि थे। उनका जन्म 1900 में हुआ। .
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उद्भ्रांत
रमाकांत शर्मा 'उद्भ्रांत' हिंदी साहित्य में कवि-गीतकार-नवगीतकार, ग़ज़लगो, कथाकार, समीक्षक, संपादक, अनुवादक एवं बाल साहित्यकार इत्यादि रूपों में जाने जाते हैं। उद्भ्रांत ने नवगीतकार एवं हिंदी गजलगो के रूप में अपना लेखन शुरू किया था। आज वे मिथक काव्य के सफल कवि के रूप में जाने जाते हैं। इनका महाकाव्य 'त्रेता' अत्यधिक चर्चित रहा है। उद्भ्रांत का जन्म 4 सितम्बर 1948 को नवलगढ़, राजस्थान में हुआ। कानपुर के पी.पी.एम.
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उमेश चौहान
उमेश कुमार सिंह चौहान (जन्म: 09 अप्रैल 1959; लखनऊ) एक भारतीय प्रशासनिक सेवा (१९८६ केरल कैडर) के अधिकारी और कवि, अनुवादक व लेखक हैं। .
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उर्दू शायरी
मोमिन ख़ान मोमिन (१८००-१८५१) की एक प्रसिद्ध ग़ज़ल - मक़ते (अंतिम शेर) में उनका तख़ल्लुस 'मोमिन' है मिर्ज़ा ग़ालिब ग़ालिब बुरा न मान जो वाइज़ (मुल्ला/पंडित) बुरा कहे,ऐसा भी है कोई के सब अच्छा कहें जिसे? शायरी, शेर-ओ-शायरी या सुख़न भारतीय उपमहाद्वीप में प्रचलित एक कविता का रूप हैं जिसमें उर्दू-हिन्दी भाषाओँ में कविताएँ लिखी जाती हैं।, Malik Mohammad, Kalinga Publications, 2005, ISBN 978-81-87644-73-6 शायरी में संस्कृत, फ़ारसी, अरबी और तुर्की भाषाओँ के मूल शब्दों का मिश्रित प्रयोग किया जाता है। शायरी लिखने वाले कवि को शायर या सुख़नवर कहा जाता है। .
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उस्मान दिकिक
उस्मान दिकिक (7 जनवरी 1879 – 30 मार्च 1912) एक श्रंगार-रस के कवि थे। वे मोस्तर से थे जो अब बोस्नीया में है। .
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ऋषि
ऋषि भारतीय परंपरा में श्रुति ग्रंथों को दर्शन करने (यानि यथावत समझ पाने) वाले जनों को कहा जाता है। आधुनिक बातचीत में मुनि, योगी, सन्त अथवा कवि इनके पर्याय नाम हैं। ऋषि शब्द की व्युत्पत्ति 'ऋष' है जिसका अर्थ देखना होता है। ऋषि के प्रकाशित कृतियों को आर्ष कहते हैं जो इसी मूल से बना है, इसके अतिरिक्त दृष्टि (नज़र) जैसे शब्द भी इसी मूल से हैं। सप्तर्षि आकाश में हैं और हमारे कपाल में भी। ऋषि आकाश, अन्तरिक्ष और शरीर तीनों में होते हैं। .
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छत्तीसगढ़ी साहित्य
कबीर दास के शिष्य और उनके समकालीन (संवत 1520) धनी धर्मदास को छत्तीसगढ़ी के आदि कवि का दर्जा प्राप्त है, जिनके पदों का संकलन व प्रकाशन हरि ठाकुर जी ने किया है। बाबू रेवाराम के भजनों ने छत्तीसगढ़ी की इस शुरुआत को बल दिया। .
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१९९६
१९९६ निम्न रूप से नामित किया गया था.
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शायर, कवयित्री, कवियित्री, उर्दु शायर के रूप में भी जाना जाता है।
, नवगोपाल मित्र, नून मीम राशिद, नूर अंतर्राष्ट्रीय माइक्रोफिल्म केन्द्र, नेदीम, नेमिचन्द्र जैन, नेवाज (रीतिग्रंथकार कवि), नीतिशास्त्र (तेलुगु), नीलम सक्सेना चंद्रा, पढ़ीस, परमिंदर सोढी, पर्सी बिश शेली, पाल इल्यार, पाश (पंजाबी कवि), पावेल फ्रीडमैन, पजनेस, पंडित प्रेम बरेलवी, पंडित सुन्दर लाल, पंकज चतुर्वेदी, पंकज झा, पउमचरिउ, पुरुषोत्तम दास टंडन, प्रताप सहगल, प्रतापगढ़ (राजस्थान) की संस्कृति, प्रतापगढ़, राजस्थान, प्रत्युष प्रकाश, प्रदीप (गीतकार), प्रसून जोशी, प्राणचंद चौहान, प्रियम रेडिकान, प्रीतिश नन्दी, पृथ्वी नारायण शाह, पृथ्वीराज, पोएट्स कॉर्नर ग्रुप, पीपाजी, फणीश्वर नाथ "रेणु", फरीद पर्बती, फ़रीदुद्दीन गंजशकर, फेदेरीको गार्सिया लोरका, बनगाँव (बिहार ), बशर नवाज, बहिणाबाई चौधरी, बा. भो.शास्त्री, बालकृष्ण भगवन्त बोरकर, बालकृष्ण शर्मा नवीन, बाजे भगत, बिम्बवाद, बिल्हण, बंजारानामा, बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय, बुल्ले शाह, ब्रजभाषा चलचित्रपट, बृज नारायण चकबस्त, बेन जॉन्सन, बेहरामजी मलाबारी, बोधा, बोहेमिया, भट्ट मथुरानाथ शास्त्री, भरत जंगम, भानुभक्त आचार्य, भानुकवी जामोदेकर, भारत में इस्लाम, भारतीय कवियों की सूची, भारवि, भाव प्रकाश, भवानी प्रसाद मिश्र, भुपेन हजारिका, भीमनिधि तिवारी, मतिराम (बहुविकल्पी), मधुशाला, मनियार सिंह, मनीषा शुक्ला, मलय रॉय चौधुरी, मलयज, मलूकदास, महदंबा, महमूद गामी, महाश्रमण, महेश नारायण, महेंद्र भटनागर, माणिक्कवाचकर, मात्सुओ बाशो, माधवदास 'माधुरी', माधवप्रसाद घिमिरे, मानयोशू, मासाओका शिकि, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, मिर्ज़ा मुहम्मद रफ़ी सौदा, मिर्ज़ा सलामत अली दबीर, मिलारेपा, मिजुहारा शुओशी, मजरुह सुल्तानपुरी, मजाज़, मखदूम मोहिउद्दीन, मंजू क़मरैदुल्ल्ही, मुशायरा, मुंशी सदासुखलाल, मुकुन्द दास, मैथिलीशरण गुप्त, मूँगा (जीव), मोतीलाल अग्रहरि गुप्तेश, मोमिन, मोलाराम, मोशोव्चे, मोहन राणा, मोहसिन काकोरवी, मीर तक़ी "मीर", मीर बाबर अली अनीस, मीराजी, युआन मेइ, युक्तिभद्र दीक्षित "पुतान", योसा बुसोन, रतन पंडोरवी, रफ़ीक़ शादानी, रबीन्द्रनाथ ठाकुर, रमेश चन्द्र झा, रमेशराज तेवरीकार, रसिक गोविंद(रीतिग्रंथकार कवि), रसूल मीर, रहीम, राधाचरण गोस्वामी, राम प्रसाद 'बिस्मिल', रामदरश मिश्र, रामनरेश त्रिपाठी, रामसनेही लाल शर्मा 'यायावर', रामसहायदास, रामजियावन दास, राय देवीप्रसाद 'पूर्ण', राहत इन्दौरी, राज महाजन, राजेंद्र नाथ रहबर, राखी गुलज़ार, रांगेय राघव, रघुवीर चौधरी, रविदास, रंजीत होसकोटे, रंग दे बसंती, रइघू, रुडयार्ड किपलिंग, रूपसिह चंदेल, रॉबर्ट एंडरसन ( कवि ), ललिता लेनिन, लारेन्स फेर्लिंघेट्टि, लखनऊ, लखनऊ की संस्कृति, लक्ष्मीनाथ बेजबरुवा, लक्ष्मीकान्त महापात्र, लेओपोल्ड सदर सेंघोर, लोलिम्बराज, ली बै, शम्सुर्रहमान फारुकी, शार्ङ्गधर, शाह जो रसालो, शाह अब्दुल लतीफ़, शिफ़ा ग्वालियरी, शिव कुमार बटालवी, शिवमंगल सिंह 'सुमन', शिवसिंह सेंगर, शिवानन्द गोस्वामी, शंकरदेव, श्याम नारायण पाण्डेय, श्रीधर पाठक, श्रीधर भास्कर वर्णेकर, श्रीनारायण चतुर्वेदी, श्रीकृष्णभट्ट कविकलानिधि, शैलेन्द्र, शैलेश लोधा, शीलाभट्टारिका, सन्त एकनाथ, सरह, सराह के, साथ हो तुम, सारला दास, साल्वातोर काज़ीमोदो, साहिर लुधियानवी, सावित्रीबाई फुले, संदीप नाथ, सआलिबी, सुब्रह्मण्य भारती, सुभाष काक, सुमन पोखरेल, सुरेश सलिल, सुखबीर (पंजाबी उपन्यासकार), स्तीफेन जार्ज, सूरदास, सूरजदास, सूर्यमल्ल, सूर्यकुमार पाण्डेय, सोम ठाकुर, सोज़ो हेन्जो, सीताराम अग्रहरि, सीमाब अकबराबादी, हफ़ीज़ जालंधरी, हबीब तनवीर, हरमन मेलविल, हरमन हेस, हरिनारायण, हर्ता म्यूलर, हलधरदास, हसन कमाल, हाइबुन, हिसा हिलाल, हकीकत राय, हुमायुन आजाद, हुल्लड़ मुरादाबादी, हृदयराम, हैदर बख़्श जतोई, होमर, होरेस, जनार्दन प्रसाद झा 'द्विज', जमाल, जमीला निशात, जय भारत जननीय तनुजते, जयशंकर प्रसाद, ज़िया फ़तेहाबादी, ज़ोया अख़्तर, जाँनिसार अख्तर, जावेद जाँनिसार अख्तर, जिम मॉरिसन, जिगर मुरादाबादी, जगन्नाथ प्रसाद 'मिलिन्द', जगमोहन सिंह, जुमई खां आजाद, ज्ञानश्रीमित्र, ज्ञानेश्वर, ज्योत्स्ना मिलन, जॉन ड्राइडेन, जोश मलिहाबादी, ईरान का इतिहास, ईश्वरदास (कवि), वयलर रामवर्मा, वाल्टर स्काट, वाशिंगटन ऐल्स्टन, विद्याधर चक्रवर्ती, विद्यापति, विन्सेंट जॉन पीटर सल्दान्हा, विबुध श्रीधर, विलहेम राब, विष्णुप्रसाद राभा, विजय शेषाद्रि, विजय कुमार, विवेकी राय, विक्रम सेठ, वंशीधर शुक्ल, वृन्द, वैरामुत्तु, वेदान्त देशिक, वीना वर्मा, वीरेन्द्र कुमार भट्टाचार्य, खुमार बाराबंकवी, ग़ज़ल, गाफिल स्वामी, गाब्रिएल दाँनुतस्यो, गिरिजाकुमार माथुर, गिरीश कर्नाड, गंगादेवी, गुन्नर गुन्नर्सन, गुरु नानक, गुलज़ार (गीतकार), गुजराती साहित्यकार, ग्रन्थताल, गैरी स्नाइडर, गो-तोबा, गोपालदेव, गोविंददास, ओतोमो ताबितो, ओतोमो याकामोचि, ओनो नो कोमाचि, ओज़ियास मार्क, ओ॰ ऍन॰ वी॰ कुरुप, आचार्य महाप्रज्ञ, आदित्य ठाकरे, आद्या प्रसाद 'उन्मत्त', आनंद समाराकून, आर्थर कॉनन डॉयल, आशापूर्णा देवी, आकारों के आसपास, इरशाद कामिल, इंतिज़ार हुसैन, इंदिरा शाह, कन्नदासन, कबीर पंथ, कमला सुरय्या, कल्कि कृष्णमूर्ति, कलीम आजिज़, क़सीदा, कानन कुसुम (जयशंकर प्रसाद की कृति), कालिदास, काशीराम दास, काज़िम जरवली, काज़ी नज़रुल इस्लाम, काव्य, काव्यमीमांसा, काव्यशास्त्र, काकि नो मोतो नो हितोमारो, कवि मृगेश, कवित्रय, कवींद्राचार्य सरस्वती, कुप्पाली वी गौड़ा पुटप्पा, कुमार विश्वास, कुम्भनदास, कुंजर भारती, क्लाज़ एब्नेर, कृत्तिवास ओझा, कृष्णदेवराय, कैफ़ भोपाली, कैफ़ी आज़मी, केदारनाथ सिंह, केरला साहित्योत्सव, केशिराज, केशव, केक, के॰ सच्चिदानन्दन, अट्टीपट कृष्णस्वामी रामानुजन, अनामिका (हिंदी कवयित्री), अनिल जनविजय, अन्नामाचार्य, अबू नुवास, अभय कुमार, अभिषेक कुमार अम्बर, अमरु, अमिताभ ठाकुर, अमीर ख़ुसरो, अरिवारा नो नारिहिरा, अल्ताफ हुसैन हाली, अल्फ्रेड ऑस्टिन, अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ाँ, अश्वघोष, अशोक चक्रधर, अशोक आत्रेय, अष्टदिग्गज, असद भोपाली, असमिया भाषा के कवियों की सूची, अजयगढ़, अज्ञेय, अख़लाक़ मुहम्मद ख़ान 'शहरयार', अग्रदास, अकबर के नवरत्न, अक़बर इलाहाबादी, अकाहिटो, उत्पलकुमार बसु, उदयशंकर भट्ट, उद्भ्रांत, उमेश चौहान, उर्दू शायरी, उस्मान दिकिक, ऋषि, छत्तीसगढ़ी साहित्य, १९९६।