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कल्प (वेदांग)

सूची कल्प (वेदांग)

कल्प वेद के छह अंगों (वेदांगों) में एक है जो कर्मकाण्डों का विवरण देता है। अन्य वेदांग हैं- शिक्षा (प्रातिशाख्यादि), व्याकरण, निरुक्त, छंदशास्त्र और ज्योतिष। अनेक वैदिक ऐतिहासिकों के मत से कल्पग्रंथ या कल्पसूत्र षट् वेदांगों में प्राचीनतम और वैदिक साहित्य के अधिक निकट हैं। षट् वेदांगों में कल्प का विशिष्ट महत्व है - क्योंकि जन्म, उपनयन, विवाह, अंत्येष्टि और यज्ञ जैसे विषय इसमें विहित हैं। .

3 संबंधों: श्रौतसूत्र, कल्पसूत्र, कल्पसूत्र (जैन)

श्रौतसूत्र

श्रौतसूत्र वैदिक ग्रन्थ हैं और वस्तुत: वैदिक कर्मकांड का कल्पविधान है। श्रौतसूत्र के अंतर्गत हवन, याग, इष्टियाँ एवं सत्र प्रकल्पित हैं। इनके द्वारा ऐहिक एवं पारलोकिक फल प्राप्त होते हैं। श्रौतसूत्र उन्हीं वेदविहित कर्मों के अनुष्ठान का विधान करे हैं जो श्रौत अग्नि पर आहिताग्नि द्वारा अनुष्ठेय हैं। 'श्रौत' शब्द 'श्रुति' से व्युत्पन्न है। ये रचनाएँ दिव्यदर्शी कर्मनिष्ठ महर्षियों द्वारा सूत्रशैली में रचित ग्रंथ हैं जिनपर परवर्ती याज्ञिक विद्वानों के द्वारा प्रणीत भाष्य एवं टीकाएँ तथा तदुपकारक पद्धतियाँ एवं अनेक निबंधग्रंथ उपलब्ध हैं। इस प्रकार उपलब्ध सूत्र तथा उनके भाष्य पर्याप्त रूप से प्रमाणित करते हैं कि भारतीय साहित्य में इनका स्थान कितना प्रमुख रहा है। पाश्चात्य मनीषियों को भी श्रौत साहित्य की महत्ता ने अध्ययन की ओर आवर्जित किया जिसके फलस्वरूप पाश्चात्य विद्वानों ने भी अनेक अनर्घ संस्करण संपादित किए। .

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कल्पसूत्र

कल्पसूत्र से निम्नलिखित का बोध होता है-.

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कल्पसूत्र (जैन)

1375-1400 की इस कल्पसूत्र पाण्डुलिपि में महावीर के जन्म का चित्रण है। कल्पसूत्र नामक जैनग्रंथों में तीर्थंकरों (पार्श्वनाथ, महावीर स्वामी आदि) का जीवनचरित वर्णित है। भद्रबाहु इसके रचयिता माने जाते हैं। पारंपरिक रूप से मान्यता है कि इस ग्रन्थ की रचना महावर स्वामी के निर्वाण के १५० वर्ष बाद हुई। आठ दिवसीय पर्यूषण पर्व के समय जैन साधु एवं साध्वी कल्पसूत्र का पाठ एवं व्याख्या करते हैं। इस ग्रन्थ का बहुत अधिक आध्यात्मिक महत्व है इसलिये केवल साधु एवं साध्वी ही इसका वाचन करते हैं और सामान्य लोग इसे हृदयंगम करते हैं। .

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