4 संबंधों: दुर्लभवर्धन, संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द, कटेवा, कार्कोट राजवंश।
दुर्लभवर्धन
दुर्लभ वर्धन सातवीं शताब्दी ई. में कश्मीर के कर्कोटक वंश का प्रवर्तक था।.
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संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द
हिन्दी भाषी क्षेत्र में कतिपय संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द प्रचलित हैं। जैसे- सप्तऋषि, सप्तसिन्धु, पंच पीर, द्वादश वन, सत्ताईस नक्षत्र आदि। इनका प्रयोग भाषा में भी होता है। इन शब्दों के गूढ़ अर्थ जानना बहुत जरूरी हो जाता है। इनमें अनेक शब्द ऐसे हैं जिनका सम्बंध भारतीय संस्कृति से है। जब तक इनकी जानकारी नहीं होती तब तक इनके निहितार्थ को नहीं समझा जा सकता। यह लेख अभी निर्माणाधीन हॅ .
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कटेवा
कटेवा राजस्थान, भारत में पायी जाने वाली एक जाट गोत्र है। कटेवा गोत्र के लोग सिंध, पाकिस्तान में भी स्थित है। वो कर्कोटक के वंशज हैं जो एक नागवंशी राजा था। वे महाभारत काल में किकट साम्राज्य के रहने वाले थे। जबकि कुछ इतिहासकारों के अनुसार वो यदु वंश के सम्बंधित हैं। वास्तव में वाकाटक या कर्कोटक यदुवंशी थे। कुछ लोगों के समूह ने उनके देव और नागा पुजा की पद्धति के अनुसार वंश का विकास किया। कर्क नागा की पुजा करने वालों को कर्कोटक कहा गया। अतः नागवंशी राजा थे। कर्कोटक के वंशज आज भी राजस्थान के कटेवा नामक जाट गोत्र के रूप में पाये जाते हैं। यह माना जाता है कि इन्होने अधिकतर ने यवनों के साथ युद्ध में अपनी जान गवांई अतः कटेवा कहलाये जैसे राजपूतों में शिशोदिया।ठाकुर देशराज: जाट इतिहास, महाराजा सुरज मल स्मारक शिक्षा संस्थान, दिल्ली, 1934, 2nd संस्करण 1992 (पृष्ठ 614) काटली नदी जो झुन्झुनू में बहती है का नामकरण भी कटेवाओं के नाम पर पड़ा है। इसके तट पर एक कटेवा जनपद था। वहाँ पर काटनी नदी के तट पर भी खुडाना नामक स्थान स्थित है जहाँ पर एक दुर्ग भी है जो कटेवाओं का बनवाया गया था। कुछ इतिहासकारों ने उनकी उपस्थिति जयपुर में बताई है जहाँ वो कुशवाहा के नाम से जाने जाते थे। इनमें से कुछ लोग विधवाओं के पुनःविवाह में विश्वास नहीं करते थे और नरवर चले गये और राजपूत बन गये। बाकी जिन्होंने इन पुराने रिवाजों को छोड़ दिया जाट कहलाए। .
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कार्कोट राजवंश
लौह युग के वैदिक भारत में किकट राज्य की स्थिति कर्कोट या कर्कोटक कश्मीर का एक राजवंश था, जिसने गोनंद वंश के पश्चात् कश्मीर पर अपना आधिपत्य जमाया। 'कर्कोट' पुराणों में वर्णित एक प्रसिद्ध नाग का नाम है। उसी के नाम पर इस वंश का नाम पड़ा। .
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