सामग्री की तालिका
6 संबंधों: समस्त रचनाकार, सारिका-पत्रिका, हिन्दी पुस्तकों की सूची/श, वाजश्रवा के बहाने, इन्दु शर्मा अंतर्राष्ट्रीय कथा सम्मान, कमलकान्त बुधकर।
समस्त रचनाकार
अकारादि क्रम से रचनाकारों की सूची अ.
देखें कन्हैयालाल नन्दन और समस्त रचनाकार
सारिका-पत्रिका
सारिका, हिंदी मासिक पत्रिका थी जो पूर्णतया गद्य साहित्य के 'कहानी' विधा को समर्पित थी। यह पत्रिका टाइम्स ऑफ़ इंडिया द्वारा प्रकाशित की जाती थी। कमलेश्वर इस पत्रिका के संपादक थे। १९७० से करीब १९८५ (?) तक यह पत्रिका प्रकाशित होती रही। इस पत्रिका के अंतिम समय इसका संपादन कमलेश्वर जी ने छोड़ दिया था और पत्रिका के संपादक कन्हैयालाल नंदन थे। 'सारिका' कमलेश्वर जी के संपादन में साहित्य की बहुत ऊँची पसंद रखने वालों की पहली पसंद थी। अनेक नए लेखकों को कमलेश्वर जी ने जोड़ा था जिनमें निम्नलिखित प्रमुख थे, जो शायद पहली बार प्रकाशित भी सारिका में हुए और बाद में साहित्य जगत में छा गए- जीतेन्द्र भाटिया, अभिमन्यु अनंत, प्रणव कुमार बंदोपाध्याय, प्रदीप शुक्ल, मालती जोशी, इब्राहिम शरीफ, मंजूर एहतेशाम, पृथ्वीराज मोंगा प्रमुख हैं। साथ ही श्रीलाल शुक्ल, भीष्म साहनी जैसे वरिष्ठ लेखक भी सारिका में प्रकाशित हुआ करते थे। कुछ प्रमुख कहानियां जो सारिका में प्रकाशित हुई उनके नाम: रमजान में मौत, पराई प्यास का सफर, जीतेन्द्र भाटिया की 'कोई नहीं और रक्तजीवी' शुक्ल जी की 'द्वन्द', प्रणव कुमार की 'बारूद की सृष्टिकथा' आदि। सारिका में मराठवाड़ा में आये अकाल पर जीतेन्द्र भाटिया की दो कड़ियों की लेख माला 'झुलसते अक्स' ने भी काफी प्रभावित किया थे। हिंदी साहित्य में कहानी लेखन को पहले उतना सम्मान शायद नहीं था जितना की सारिका ने दिलवाया और कथा जगत को कई नए सितारे दिए। श्रेणी:हिन्दी पत्रिका.
देखें कन्हैयालाल नन्दन और सारिका-पत्रिका
हिन्दी पुस्तकों की सूची/श
संवाद शीर्षक से कविता संग्रह-ईश्वर दयाल गोस्वाामी.
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वाजश्रवा के बहाने
कुंवर नारायण का वाजश्रवा के बहाने खण्ड-काव्य अपने समकालीनों और परवर्ती रचनाकारों के काव्य-संग्रहों के बीच एक अलग और विशिष्ट स्वाद देने वाला है जिसे प्रौढ़ विचारशील मन से ही महसूस किया जा सकता है। यह गहरी अंतर्दृष्टि से किये गये जीवन के उत्सव और हाहाकार का साक्षात्कार है। ऋग्वेद, उपनिषद और गीता की न जाने कितनी दार्शनिक अनुगूंजें हैं इसमें, जो कुछ सुनायी पड़ती हैं, कुछ नहीं सुनायी पड़तीं। अछोर अतीत है पीछे, अनंत अंधकार है आगे। बीच में अथाह जीवन है, जो केवल मानवों का नहीं, सम्पूर्ण सृष्टि का है और जो खंड में नहीं बल्कि अखंड काल की निरंतरता में प्रवहमान है। कुंवर नारायण के इस संग्रह में भी मृत्यु का गहरा बोध है। भले ही इसमें जीवन की ओर से मृत्यु को देखने की कोशिश है। यदि मृत्यु न होती तो जीवन को इस प्रकार देखने की आकांक्षा भी न होती। मृत्यु ही जीवन को अर्थ देती है और निरर्थक में भी अर्थ भरती है' यह कथन असंगत नहीं है। मृत्यु है इसीलिए जिजीविषा भी है। जिजीविषा है इसीलिए सम्भावना भी। कुंवर नारायण के इस काव्य में विषयवस्तु के बिल्कुल विपरीत एक गजब की सहजता और भाषा प्रवाह है। कहीं कोई शब्द अपरिचित नहीं पर अर्थ की गहराइयों के साथ विद्यमान। भावावेग के दबाव के अनेक अवसर आते हैं और आ सकते थे पर कवि पूर्णतः संयम और काव्यानुशासन के साथ सहज होकर पांव रखता है। कदम-कदम पर विचारों के उँचे टीले और गहरी खाइयां हैं पर प्रवाह ऐसा कि एक शब्द दूसरे को ठेल कर आगे निकलता और धारा को अविच्छिन्न रखता हुआ। जैसे सागर की लहरें जो धकेलती हुई आगे बढ़तीं और पछाड़ खाकर पीछे लौटती हैं। जैस फेन बुदबुद और जल का शाश्वत प्रवाह एक साथ। इस काव्य की हर कविता अपने में अलग मगर एक विचार प्रवाह में जुड़ी हुई है। कथन वैचित्र्य और तुकों के साथ सैकड़ों चुस्त उक्तियां सूक्तियों-सी उद्धृत की जाने योग्य हैं। विषय गम्भीरता के साथ सहजता का यह अद्भुत संयोग महान कवि तुलसी की याद दिला देता है। आज के काव्य परिदृश्य में जबकि वर्तमान और स्थूल दृश्य यथार्थ ही सब कुछ है, इस भाव भूमि की कविता से गुजरना एक विरल अनुभव है। कन्हैयालाल नंदन के शब्दों में- "हाल में ही प्रकाशित कुंवर नारायण जी के काव्यसंग्रह 'वाजश्रवा के बहाने' को भी शब्द-शब्द रमते हुए पढ़ा। इस रचना को मैं उनकी वैचारिकता, उनकी दार्शनिकता का मील का पत्थर मानता हूं। अद्भुत लिखा है। फिदा हूं उनकी लेखन शैली पर। इसके पहले भी उन्होंने अपने पूर्ववर्ती काव्य संग्रह 'आत्मजयी' में नचिकेता के संदर्भ में कई महत्वपूर्ण मुद्दों को चमत्कारिक ढंग से विश्लेषित किया है। इन कविताओं की सबसे बड़ी विशेषता ये है कि इनमें कवि ने भारतीय प्राचीन मिथकों, प्रतीकों का आधुनिक संदर्भो में इस्तेमाल करते हुए समकालीन जीवन से जोड़ने का आश्चर्यजनक कार्य किया है।" .
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इन्दु शर्मा अंतर्राष्ट्रीय कथा सम्मान
यू॰के॰कथा सम्मान का प्रतीक चिह्नयू के कथा सम्मान इंदु शर्मा मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा दिया जाने वाला साहित्य सम्मान है। यह सम्मान १९९५ से प्रतिवर्ष कहानी संग्रह या उपन्यास की एक उत्कृष्ट कृति को दिया जाता है। उत्कृष्ट कृति का निर्णय एक निर्णायक मंडल करता है। इस सम्मान के निर्णय की प्रक्रिया में संस्था के भारतीय प्रतिनिधि सूरज प्रकाश करीब २५० साहित्य प्रेमियों, संपादकों एवं लेखकों को पत्र लिख कर उनसे संस्तुतियाँ मँगवाते हैं, एक सर्वसामान्य सूची बनती है, पुस्तकें ख़रीदी जाती हैं, उनकी छटनी होती है और अंत में १० से १२ किताबें रह जाती हैं जो निर्णायक मंडल को पढ़ने के लिये भेजी जाती हैं। निर्णायक मंडल के नाम सार्वजनिक नहीं किए जाते हैं। इस पुरस्कार के अंतर्गत दिल्ली - लंदन - दिल्ली आने जाने का हवाई टिकट (एअर इंडिया द्वारा प्रायोजित) इंगलैंड के लिये वीसा शुल्क, एक स्मृति चिह्न, लंदन में एक सप्ताह तक रहने की सुविधा तथा लंदन के प्रमुख दर्शनीय स्थलों का भ्रमण आदि शामिल होता है। यह पुरस्कार साहित्यकार को लंदन में आयोजित एक भव्य समारोह में प्रदान किया जाता है। .
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कमलकान्त बुधकर
19 जनवरी 1950 को हरिद्वार में जन्मे मराठी भाषी डॉ॰ कमलकांत बुधकर शिक्षक के रूप में 1972 से ही विभिन्न स्नातक महाविद्यालयों में हिन्दी प्राध्यापक और 1990 से गुरुकुल काँगड़ी वि.वि.
देखें कन्हैयालाल नन्दन और कमलकान्त बुधकर
डाक्टर कन्हैयालाल नंदन, कन्हैया लाल नंदन, कन्हैयालाल नंदन के रूप में भी जाना जाता है।