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कण त्वरक

सूची कण त्वरक

'''इन्डस-२''': भारत (इन्दौर) का 2.5GeV सिन्क्रोट्रान विकिरण स्रोत (SRS) कण-त्वरक एसी मशीन है जिसके द्वारा आवेशित कणों की गतिज ऊर्जा बढाई जाती हैं। यह एक ऐसी युक्ति है, जो किसी आवेशित कण (जैसे इलेक्ट्रान, प्रोटान, अल्फा कण आदि) का वेग बढ़ाने (या त्वरित करने) के काम में आती हैं। वेग बढ़ाने (और इस प्रकार ऊर्जा बढाने) के लिये वैद्युत क्षेत्र का प्रयोग किया जाता है, जबकि आवेशित कणों को मोड़ने एवं फोकस करने के लिये चुम्बकीय क्षेत्र का प्रयोग किया जाता है। त्वरित किये जाने वाले आवेशित कणों के समूह या किरण-पुंज (बीम) धातु या सिरैमिक के एक पाइप से होकर गुजरती है, जिसमे निर्वात बनाकर रखना पड़ता है ताकि आवेशित कण किसी अन्य अणु से टकराकर नष्ट न हो जायें। टीवी आदि में प्रयुक्त कैथोड किरण ट्यूब (CRT) भी एक अति साधारण कण-त्वरक ही है। जबकि लार्ज हैड्रान कोलाइडर विश्व का सबसे विशाल और शक्तिशाली कण त्वरक है। कण त्वरकों का महत्व इतना है कि उन्हें 'अनुसंधान का यंत्र' (इंजन्स ऑफ डिस्कवरी) कहा जाता है। .

सामग्री की तालिका

  1. 49 संबंधों: चतुर्ध्रुव चुम्बक, चुम्बक, त्वरण, त्वरक भौतिकी, द्विध्रुवी चुम्बक, धारा स्रोत, नाभिकीय भौतिकी, निम्नताप मॉड्यूल, निर्वात, परमाणु ऊर्जा विभाग (भारत), परिवर्ती उर्जा साइक्लोट्रॉन केन्द्र, फर्मीलैब, ब्लैक होल (काला छिद्र), बीटाट्रॉन, माइक्रोट्रॉन, यूरोपीय नाभिकीय अनुसंधान संगठन, रदरफर्ड केबल, राजा रामन्ना प्रगत प्रौद्योगिकी केन्द्र, रैखिक कण त्वरक, लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर, समुत्खण्डन न्यूट्रॉन स्रोत, साइक्लोट्रॉन, सिन्क्रोट्रॉन प्रकाश स्रोत, सिंक्रोट्रॉन, संग्रह वलय, स्पन्द जनक जालक्रम, स्पन्दित शक्ति, स्प्रिंग-८, हिग्स बोसॉन, जेफर्सन लैब, वान डी ग्राफ़ जेनरेटर, विनोद चौहान, विशिष्ट आपेक्षिकता, आई ओ टी, आवेशित कण-पुंज, इण्डस-१, इन्डस-२, इलेक्ट्रॉन गन, कण भौतिकी, कण भौतिकी के त्वरकों की सूची, कण-पुंज उत्सर्जकता, किरणपुंज रेखा, कोलाइडर (त्वरक), अतिचालकता, अन्तरराष्ट्रीय रैखिक संघट्टक, अवपरमाणुक कण, उच्च ऊर्जा नाभिकीय भौतिकी, उपक्रांतिक रिएक्टर, PS

चतुर्ध्रुव चुम्बक

चतुर्ध्रुव चुम्बक निर्माण के लिए व्यवस्थित चार छड़ चुम्बक सामान्यत: चतुर्ध्रुव चुम्बक का निर्माण चार चुम्बकों को मिलाकर बनाया जाता है। इसका उपयोग कण त्वरकों में किरण पुँज को एक बिन्दु पर केन्द्रित करने के काम में लिया जाता है। .

देखें कण त्वरक और चतुर्ध्रुव चुम्बक

चुम्बक

एक छड़ चुम्बक के चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा आकर्षित हुई लौह-धुरि (iron-filings) एक परिनालिका (सॉलिनॉयड) द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय बल रेखाएँ फेराइट चुम्बक चुम्बक (मैग्नेट्) वह पदार्थ या वस्तु है जो चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है। चुम्बकीय क्षेत्र अदृश्य होता है और चुम्बक का प्रमुख गुण - आस-पास की चुम्बकीय पदार्थों को अपनी ओर खींचने एवं दूसरे चुम्बकों को आकर्षित या प्रतिकर्षित करने का गुण, इसी के कारण होता है। .

देखें कण त्वरक और चुम्बक

त्वरण

विभिन्न प्रकार के त्वरण के अन्तर्गत गति में वस्तु की समान समयान्तराल बाद स्थितियाँ दोलन करता हुआ लोलक: इसका वेग एवं त्वरण तीर द्वारा दर्शाया गया है। वेग एवं त्वरण दोनों का परिमाण एवं दिशा हर क्षण बदल रही है। किसी वस्तु के वेग परिवर्तन की दर को त्वरण (Acceleration) कहते हैं। इसका मात्रक मीटर प्रति सेकेण्ड2 होता है तथा यह एक सदिश राशि हैं। या, उदाहरण: माना समय t.

देखें कण त्वरक और त्वरण

त्वरक भौतिकी

त्वरक भौतिकी (Accelerator physics), अनुप्रयुक्त भौतिकी की एक शाखा है जिसका सम्बन्ध कण त्वरकों के डिजाइन, निर्माण एवं प्रचालन से है। त्वरक भौतिकी को आपेक्षिकीय आवेशित कणों (relativistic charged particle) के पुंज की गति का अध्ययन करने वाला, गति बदलने, तथा उनका प्रेक्षण करने वाला भौतिकी कह सकते हैं। गति बदलने के अन्तर्गत त्वरण (वेग बढ़ाना), गति की दिशा बदलना, फोकस करना आदि आते हैं। .

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द्विध्रुवी चुम्बक

द्विध्रुवी चुम्बक (ऐडवांस फोटॉन सोर्स, यूएसए) द्विध्रुवी चुम्बक का योजनामूलक चित्र: '''पीला''': धारीवाही कुण्डली, '''आसमानी''': लोहे की कोर द्विध्रुवी चुम्बक कण त्वरकों में काम में आने वाला एक विद्युतचुम्बक है जो कुछ दूर तक एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र पैदा करता है। इसका उपयोग गतिमान आवेशित कणों को अपने मार्ग से मोड़ने के लिए किया जाता है। एक के बाद एक करके कई द्विध्रुवी चुम्बकों का प्रयोग करके आवेशित कणपुंज (particle beam) को मोड़कर एक 'वृत्तीय पथ' पर बनाए रखा जा सकता है। .

देखें कण त्वरक और द्विध्रुवी चुम्बक

धारा स्रोत

प्रतिरोध (दाएँ) से जुड़ा एक धारा स्रोत (बाएँ) एक सरल धारा स्रोत जो बीजेटी का उपयोग करते हुए बना है। धारा स्रोत (current source) वह युक्ति या एलेक्ट्रानिक परिपथ है जो एक नियत धारा देती है या लेती है, चाहे उसके सिरों के बीच विभवान्तर कुछ भी हो। उदाहरण के लिए 1.5 एम्पीयर धारा-स्रोत के सिरों के बीच 1 ओम का प्रतिरोध लागाएँ तो उसमें 1.5 अम्पीयर धारा बहेगी और स्रोत के सिरों के बीच विभवान्तर 1.5 वोल्ट होगा और यदि इस धारा स्रोत के सिरों के बीच 5 ओम का प्रतिरोध जोड़ें तो इस प्रतिरोध में भी 1.5 अम्पीयर धारा बहेगी जबकि इस स्थिति में स्रोत के सिरों के बीच विभवान्तर 7.5 (.

देखें कण त्वरक और धारा स्रोत

नाभिकीय भौतिकी

यह भौतिकी की एक शाखा है, जो अणु के नाभि से सम्बंधित है। इसके तीन मुख्य पहलू हैं:-.

देखें कण त्वरक और नाभिकीय भौतिकी

निम्नताप मॉड्यूल

क्रायोमॉड्यूल (cryomodule) या निम्नताप मॉड्यूल उन पात्रों (cryostats) को कहते हैं जिनके अन्दर अतिचालक रेडियो आवृत्ति कैविटी को रखकर उसे अतिचालक बनाया जाता है। इसके लिये क्रायोमॉड्यूल के अन्दर द्रव हिलियम का प्रवेश कराकर उसकी सहायता से कैविटी को 4K या 2K (2 केल्विन्) तक ठण्डा किया जाता है। ये कैविटीज आधुनिक कण त्वरक के प्रमुख अंग हैं। इनके द्वारा ही आवेशित कण किरणपुंज को त्वरित किया जाता है। .

देखें कण त्वरक और निम्नताप मॉड्यूल

निर्वात

निर्वात को प्रदर्शित करने हेतु एक पम्प जब आकाश (स्पेस) के किसी आयतन में कोई पदार्थ नहीं होता तो कहा जाता है कि वह आयतन निर्वात (वैक्युम्) है। निर्वात की स्थिति में गैसीय दाब, वायुमण्डलीय दाब की तुलना में बहुत कम होता है। किन्तु स्पेस का कोई भी आयतन पूर्णतः निर्वात हो ही नहीं सकता। .

देखें कण त्वरक और निर्वात

परमाणु ऊर्जा विभाग (भारत)

भारत का परमाणु ऊर्जा विभाग (पऊवि) एक महत्वपूर्ण विभाग है जो सीधे प्रधानमंत्री के आधीन है। इसका मुख्यालय मुंबई में है। यह विभाग नाभिकीय विद्युत ऊर्जा की प्रौद्योगिकी के विकास, विकिरण प्रौद्योगिकी के विभिन्न क्षेत्रों (कृषि, चिकित्सा, उद्योग, मूलभूत अनुसन्धान आदि) में उपयोग तथा मूलभूत अनुसंधान में संलग्न है। इस विभाग के अन्तर्गत ५ अनुसन्धान केन्द्र, ३ औद्योगिक संगठन, ५ सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम, तथा ३ सेवा संगठन हैं। इसके अलावा इसके अन्दर दो बोर्ड भी हैं जो नाभिकीय क्षेत्र एवं इससे सम्बन्धित क्षेत्रों में मूलभूत अनुसन्धान को प्रोत्साहित करते हैं एवं उसके लिए फण्ड प्रदान करते हैं। परमाणु ऊर्जा विभाग ८ संस्थानों को भी सहायता देता है जो अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित हैं। परमाणु ऊर्जा विभाग (पऊवि) की स्थापना राष्ट्रपति के आदेश के माध्यम से दिनांक 3 अगस्त 1954 को की गई थी। .

देखें कण त्वरक और परमाणु ऊर्जा विभाग (भारत)

परिवर्ती उर्जा साइक्लोट्रॉन केन्द्र

परिवर्ती उर्जा साइक्लोट्रॉन केन्द्र (Variable Energy Cyclotron Centre (VECC)) भारत सरकार के परमाणु उर्जा विभाग का एक अनुसंधान एवं विकास केन्द्र है। यहाँ पर मूलभूत एवं अनुप्रयुक्त नाभिकीय विज्ञान में अनुसंधान होता है। यह भारत के कोलकाता नगर में स्थित है। इस केन्द्र में २२४ सेमी साइक्लोट्रॉन स्थापित है जो भारत में अपने तरह का प्रथम है। यह १९७७ से ही कार्यरत है। इससे विभिन्न उर्जा वाले प्रोटॉन, ड्यूट्रॉन, अल्फा कण एवं अन्य भारी ऑयन के किरण पुंज प्राप्त किये जाते हैं। यह केन्द्र अर्नेट (ERNET) के लिये ट्रन्जिट नोड भी है जो कि दूसरे संस्थानों से आने वाले एलेक्ट्रॉनिक मेल एवं अन्तरजाल का आवश्यक संसादन करता है। .

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फर्मीलैब

'''फर्मीलैब का ऊपर से लिया गया दृष्य''': सामने स्थित वलय (रिंग) मुख्य इंजेक्टर त्वरक है; पीछे की तरफ टेवाट्रॉन वलय है। फर्मीलैब या फर्मी राष्ट्रीय त्वरक प्रयोगशाला (Fermi National Accelerator Laboratory) अमेरिका का एक प्रमुख अनुसंधान संस्थान है जो उच्च उर्जा कण भौतिकी के क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिये कार्य कर रहा है। यह शिकागो के पास बटाविया (Batavia) में स्थित है और यूएसए के परमाणु उर्जा विभाग की राष्ट्रीय प्रयोगशाला है। .

देखें कण त्वरक और फर्मीलैब

ब्लैक होल (काला छिद्र)

बड़े मैग्लेनिक बादल के सामने में एक ब्लैक होल का बनावटी दृश्य। ब्लैक होल स्च्वार्ज़स्चिल्ड त्रिज्या और प्रेक्षक दूरी के बीच का अनुपात 1:9 है। आइंस्टाइन छल्ला नामक गुरुत्वीय लेंसिंग प्रभाव उल्लेखनीय है, जो बादल के दो चमकीले और बड़े परंतु अति विकृत प्रतिबिंबों का निर्माण करता है, अपने कोणीय आकार की तुलना में.

देखें कण त्वरक और ब्लैक होल (काला छिद्र)

बीटाट्रॉन

वर्ष १९४२ में जर्मनी में विकसित एक बीटाट्रॉन (6 MeV) बीटाट्रॉन (betatron) एक प्रकार का चक्रीय कण त्वरक है। इसका विकास नार्वे के वैज्ञानिक रोल्फ विडरो ने किया था। बीटाट्रॉन को एक ट्रान्सफॉर्मर माना जा सकता है जिसकी सेकेण्डरी एक टर्न वाली निर्वात पाइप होती है जिसके अन्दर इलेक्ट्रॉन चक्कर करते हुए त्वरित होते हैं। ट्रान्सफॉर्मर की प्राइमरी में प्रत्यावर्ती धारा प्रवाहित करने पर निर्वात पाइप में चक्कर कर रहे इलेक्ट्रॉन त्वरित होते हैं। बीटाट्रॉन मशीन पहली मशीन थी जिसके द्वारा साधारण इलेक्ट्रॉन गन से प्राप्त होने वाले इलेक्ट्रानों की अपेक्षा अधिक ऊर्जा वाले इलेक्ट्रॉन प्राप्त किये जा सके। श्रेणी:कण त्वरक.

देखें कण त्वरक और बीटाट्रॉन

माइक्रोट्रॉन

परम्परागत माइक्रोट्रान का योजनामूलक चित्र माइक्रोट्रॉन (Microtron) एक प्रकार का छोटा आकार का चक्रीय कण त्वरक है। यह कम उर्जा (लगभग २० मेगा एलेक्ट्रॉन वोल्ट) तक एलेक्ट्रॉनों को त्वरित करने के लिये उपयोगी है। रैखिक कण त्वरक की भांति यह भी बड़े कण त्वरकों का आरम्भिक चरण का काम करता है। परम्परागत माइक्रोट्रान में कण किसी स्रोत से निकाले जाते हैं (चित्र में नीला रंग), प्रत्येक चक्कर में एकबार उन्हें ऊर्जा देकर त्वरित किया जाता है (माइक्रोवेव कैविटी, ग्रे रंग में), इसी प्रकार उनकी ऊर्जा तब तक बढ़ायी जाती है जब तक वे माइक्रोट्रान से बाहर नहीं निकल जाते। .

देखें कण त्वरक और माइक्रोट्रॉन

यूरोपीय नाभिकीय अनुसंधान संगठन

सर्न (Organisation Européenne pour la Recherche Nucléaire या CERN (फ़्रान्सीसी में) .

देखें कण त्वरक और यूरोपीय नाभिकीय अनुसंधान संगठन

रदरफर्ड केबल

रदरफर्ड केबल कण त्वरकों में चुम्बकीय क्षेत्र जनित करने के लिए काम में ली जाने वाली एक अतिचालक केबल है। इसका नामकरण रदरफर्ड प्रयोगशाला के नाम से किया गया जहाँ इस केबल का विकास और निर्माण हुआ। .

देखें कण त्वरक और रदरफर्ड केबल

राजा रामन्ना प्रगत प्रौद्योगिकी केन्द्र

राजा रामन्ना प्रगत प्रौद्योगिकी केन्द्र स्थित '''इण्डस-दो''' (INDUS-2) राजा रामन्ना प्रगत प्रौद्योगिकी केन्द्र (RRCAT) मध्य प्रदेश के इन्दौर के बाहरी हिस्से में सुखनिवास गांव के पास स्थित है। यह भारत सरकार के परमाणु उर्जा विभाग के अन्तरगत स्थापित एक अनुसंधान एवं विकास केन्द्र है। इसकी स्थापना १९८५ में तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने की थी। यहाँ पर मुख्यतः दो क्षेत्रों में कार्य होता है - कणों के त्वरक (particle accelerator) तथा लेजर (LASER)। इस समय इण्डस्-१ व इन्डस्-२ नामक दो इलेक्ट्रान त्वरक यहां काम कर रहे हैं। इनसे निकलने वाले विकिरण का नाम सिंक्रोट्रान् रेडिएशन (Synchrotron radiation) है जिसका उपयोग अनेक क्षेत्रों में होता है। इसके अतिरिक्त यहां पर औद्योगिक व मेडिकल त्वरक बनाने का कार्य भी हांथ में लिया गया है। .

देखें कण त्वरक और राजा रामन्ना प्रगत प्रौद्योगिकी केन्द्र

रैखिक कण त्वरक

जापान के केक (KEK) नामक कण-त्वरक सुविधा में प्रयुक्त एक रैखिक कण त्वरक वे कण त्वरक रैखिक कण त्वरक (linear particle accelerator) या लिनैक (linac) कहलाते हैं जो आवेशित कणों को सीधी रेखा में (बिना मोड़े) त्वरित करते हैं। टीवी (पिक्चर ट्यूब वाली टीवी) सरलतम रैखिक त्वरक है जो ट्यूब के पिछले सिरे पर स्थित कैथोड से उत्सर्जित एलेक्ट्रॉनों की वेग वृद्धि करके अधिक तेजी से पर्दे पर टकराने में मदद करता है। रैखिक कण त्वरक का आविष्कार सन् १९२८ में रॉल्फ विडेरो (Rolf Widerøe) ने किया था। .

देखें कण त्वरक और रैखिक कण त्वरक

लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर

लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर या वृहद हैड्रॉन संघट्टक (Large Hadron Collider; LHC के रूप में संक्षेपाक्षरित) विश्व का सबसे विशाल और शक्तिशाली कण त्वरक है। यह सर्न की महत्वाकांक्षी परियोजना है। यह जेनेवा के समीप फ़्रान्स और स्विट्ज़रलैण्ड की सीमा पर ज़मीन के नीचे स्थित है। इसकी रचना २७ किलोमीटर परिधि वाले एक छल्ले-नुमा सुरंग में हुई है, जिसे आम भाषा में लार्ड ऑफ द रिंग कहा जा रहा है। इसी सुरंग में इस त्वरक के चुम्बक, संसूचक (डिटेक्टर), बीम-लाइन एवं अन्य उपकरण लगे हैं। सुरंग के अन्दर दो बीम पाइपों में दो विपरीत दिशाओं से आ रही ७ TeV (टेरा एले़ट्रान वोल्ट्) की प्रोट्रॉन किरण-पुंजों (बीम) को आपस में संघट्ट (टक्कर) किया जायेगा जिससे वही स्थिति उत्पन्न की जायेगी जो ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के समय बिग बैंग के रूप में हुई थी। ग्यातव्य है कि ७ TeV उर्जा वाले प्रोटॉन का वेग प्रकाश के वेग के लगभग बराबर होता है। एल एच सी की सहायता से किये जाने वाले प्रयोगों का मुख्य उद्देश्य स्टैन्डर्ड मॉडेल की सीमाओं एवं वैधता की जाँच करना है। स्टैन्डर्ड मॉडेल इस समय कण-भौतिकी का सबसे आधुनिक सैद्धान्तिक व्याख्या या मॉडल है। १० सितंबर २००८ को पहली बार इसमें सफलता पूर्वक प्रोटान धारा प्रवाहित की गई। इस परियोजना में विश्व के ८५ से अधिक देशों नें अपना योगदान किया है। परियोजना में ८००० भौतिक वैज्ञानिक कार्य कर रहे हैं जो विभिन्न देशों, या विश्वविद्यालयों से आए हैं। प्रोटॉन बीम को त्वरित (accelerate) करने के लिये इसके कुछ अवयवों (जैसे द्विध्रुव (डाइपोल) चुम्बक, चतुर्ध्रुव (quadrupole) चुमबक आदि) का तापमान लगभग 1.90केल्विन या -२७१.२५0सेन्टीग्रेड तक ठंडा करना आवश्यक होता है ताकि जिन चालकों (conductors) में धारा बहती है वे अतिचालकता (superconductivity) की अवस्था में आ जांय और ये चुम्बक आवश्यक चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न कर सकें।"".

देखें कण त्वरक और लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर

समुत्खण्डन न्यूट्रॉन स्रोत

समुत्खण्डन न्यूट्रॉन स्रोत (Spallation Neutron Source (SNS)), न्यूट्रॉनों का ऐसा स्रोत है जो त्वरक पर आधारित होता है। इसकी सहायता से सर्वाधिक तीव्र स्पन्दित न्यूट्रान (pulsed neutron source) स्रोत प्राप्त किया जाता है जिसकी सहायता से वैज्ञानिक अनुसंधान एवं औद्योगिक विकास के कार्य किये जाते हैं। भारत में भी एक एस एन एस का निर्माण प्रस्तावित है। इसका नाम भारतीय समुत्खण्डन न्यूट्रॉन स्रोत (Indian Spallation Neutron Source(ISNS)) होगा। .

देखें कण त्वरक और समुत्खण्डन न्यूट्रॉन स्रोत

साइक्लोट्रॉन

साइक्लोट्रॉन में आवेशित कण जैसे-जैसे त्वरित होता है, उसके गति-पथ की त्रिज्या बढ़ती जाती है। साइक्लोट्रॉन (Cyclotron) एक प्रकार का कण त्वरक है। 1932 ई.

देखें कण त्वरक और साइक्लोट्रॉन

सिन्क्रोट्रॉन प्रकाश स्रोत

पेरिस स्थित '''SOLEIL''' (सूर्य) नामक सिन्क्रोट्रॉन प्रकाश स्रोत का योजनामूलक चित्र सिन्क्रोट्रॉन प्रकाश स्रोत (synchrotron light source) वह मशीन है जो वैज्ञानिक तथा तकनीकी उद्देश्यों के लिये विद्युतचुम्बकीय विकिरण (जैसे एक्स-किरण, दृष्य प्रकाश आदि) उत्पन्न करती है। यह प्रायः एक भण्डारण वलय (स्टोरेज रिंग) के रूप में होती है। सिन्क्रोट्रॉन प्रकाश सबसे पहले सिन्क्रोट्रॉन में देखी गयी थी। आजकल सिन्क्रोट्रॉन प्रकाश, भण्डारण वलयों तथा विशेष प्रकार के अन्य कण त्वरकों द्वारा उत्पन्न की जाती है। सिन्क्रोट्रॉन प्रकाश प्रायः इलेक्ट्रॉन को त्वरित करके प्राप्त की जाती है। इसके लिये पहले उच्च ऊर्जा की इलेक्ट्रॉन पुंज पैदा की जाती है। इस इलेक्ट्रॉन किरण-पुंज को एक द्विध्रुव चुम्बक के चुम्बकीय क्षेत्र से गुजारा जाता है जिसका चुम्बकीय क्षेत्र इलेक्ट्रानों की गति की दिशा के लम्बवत होता है। इससे इलेक्ट्रानों पर उनकी गति की दिशा (तथा चुम्बकीय क्षेत्र) के लम्बवत बल लगता है जिससे वे सरल रेखा के बजाय वृत्तिय पथ पर गति करने लगते हैं। (दूसरे शब्दों में, इनका त्वरण होता है।)। इसी त्वरण के फलस्वरूप सिन्क्रोट्रॉन प्रकाश उत्पन्न होता है जो अनेक प्रकार से उपयोगी है। चुम्बकीय द्विध्रुव के अलावा, अनडुलेटर, विगलर तथा मुक्त इलेक्ट्रॉन लेजर द्वारा भी सिन्क्रोट्रॉन प्रकाश पैदा किया जाता है। .

देखें कण त्वरक और सिन्क्रोट्रॉन प्रकाश स्रोत

सिंक्रोट्रॉन

BEP 900 MeV बूस्टर सिन्क्रोट्रॉन सिंक्रोट्रॉन (synchrotron) एक प्रकार का कण त्वरक है। इसमें आवेशित कण-पुंज एक चक्रीय बन्द पथ पर चलते हैं। उदाहरण के लिये भारत में राजा रामन्ना प्रगत प्रौद्योगिकी केन्द्र, इन्दौर में इण्डस-एक और इण्डस-दो नामक दो सिन्क्रोट्रॉन कार्यरत हैं। श्रेणी:कण त्वरक.

देखें कण त्वरक और सिंक्रोट्रॉन

संग्रह वलय

बीईपी ९०० एमईवी एलेक्ट्रॉन तथा पॉजिट्रॉन बुस्टर संग्रह वलय (storage ring) वृत्ताकार कण त्वरक होते हैं जिनमें कई घण्टों तक कणों का पुंज चक्कर लगाते रहता है। श्रेणी:कण त्वरक.

देखें कण त्वरक और संग्रह वलय

स्पन्द जनक जालक्रम

LANL स्थित '''शिव स्टार''' उच्च ऊर्जा वाले फ्यूजन पॉवर प्रयोगों के लिये आवश्यक स्पन्द उत्पन्न करता है। एन डी याग लेजर बनाने में प्रयुक्त पीएफएन स्पन्द जनक जालक्रम (pulse forming network (PFN)) वह विद्युत परिपथ है जो विद्युत ऊर्जा को अपेक्षाकृत अधिक समय तक एकत्र करने के बाद उस ऊर्जा को कम समय की लगभग वर्गाकार स्पन्द (स्क्वायर पल्स) के रूप में देता है। इस तरह की कम समय की वर्गाकार स्पन्द का अनेकों जगह उपयोग किया जाता है। उदाहरण के लिये, पीएफएन का उपयोग क्लाइस्ट्रान और मैग्नेट्रान आदि को नैनोसेकेण्ड अवधि के स्पन्द प्रदान करने के लिये किया जाता है, जो राडार, स्पन्दित लेजर, कण त्वरक, फ्लैशट्यूब तथा अन्य उच्च वोल्टता के उपकरणों में प्रयुक्त होतें हैं। .

देखें कण त्वरक और स्पन्द जनक जालक्रम

स्पन्दित शक्ति

स्पन्दित शक्ति (Pulsed power) किसी अवयव में अपेक्षाकृत लम्बे समय में ऊर्जा एकत्र करके इस ऊर्जा को अल्प समय में निर्मुक्त करने का विज्ञान और प्रौद्योगिकी है। इससे हमें अल्प समय के लिये अत्यधिक तात्क्षणिक शक्ति (instantaneous power) प्राप्त हो जाती है। उदाहरण के लिये, किसी संधारित्र में धीरे-धीरे करके १ जूल ऊर्जा एकत्र की जाय और इस ऊर्जा को केवल १ माइक्रोसेकेण्ड में ही किसी लोड में निर्मुक्त कर दिया जाय तो एक माइक्रोसेकेण्ड की अवधि के लिये उस लोड को १ मेगावाट तात्क्षणिक शक्ति मिलेगी। किन्तु इसी १ जूल ऊर्जा को किसी लोड में १ सेकेण्ड में निर्मुक्त किया जाय तो उस लोड को केवल १ वाट तात्क्षणिक ऊर्जा मिलेगी। स्पन्दित शक्ति का उपयोग अनेक क्षेत्रों में होता है, जैसे- राडार, कण त्वरक, अति उच्च चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करने के लिये, फ्यूजन अनुसंधान, विद्युतचुम्बकीय स्पन्द (पल्सेस), तथा उच्च शक्ति वाले स्पन्दित लेजर आदि। .

देखें कण त्वरक और स्पन्दित शक्ति

स्प्रिंग-८

स्प्रिंग-8 (SPring-8) जापान का एक कण त्वरक है। यह जापान के ह्योगो प्रीफेक्चर में स्थित 8 GeV ऊर्जा वाली एक सिन्क्रोट्रॉन विकिरण सुविधा है जिसका विकास संयुक्त रूप से RIKEN एवं जापान का परमाणु ऊर्जा अनुसन्धान संस्थान ने किया है। यह विश्व के ५ विशालतम सिन्क्रोट्रॉन स्रोतों में से एक है। स्प्रिंग-८ .

देखें कण त्वरक और स्प्रिंग-८

हिग्स बोसॉन

एक सिमुलेट की गयी घटना जो हिग्स बोसान की उत्पत्ति को दर्शा रही है। हिग्स बोसॉन (Higgs boson) एक मूल कण है जिसकी प्रथम परिकल्पना 1964 में दी गई और इसका प्रायोगिक सत्यापन 14 मार्च 2013 को किया गया। इस आविष्कार को एक 'यादगार' कहा गया क्योंकि इससे हिग्स क्षेत्र की पुष्टि हो गई। कण भौतिकी के मानक मॉडल द्वारा इसके अस्तित्व का अनुमान लगाया गया है। वर्तमान समय तक इस प्रकार के किसी भी कण के विद्यमान होने की ज्ञान नहीं है। हिग्स बोसॉन को कणो के द्रव्यमान या भार के लिये जिम्मेदार माना जाता है। प्रायः इसे अंतिम मूलभूत कण माना जाता है। .

देखें कण त्वरक और हिग्स बोसॉन

जेफर्सन लैब

जेफर्सन प्रयोगशाला का विहंगम दृष्य थॉमस जेफर्सन राष्ट्रीय त्वरक सुविधा (Thomas Jefferson National Accelerator Facility (TJNAF)) यूएसए की एक राष्ट्रीय प्रयोगशाला है। यह वर्जीनिया के न्यूपोर्ट न्यूज में स्थित है। इसे प्रायः 'जेफर्सन लैब' या जे-लैब कहते हैं। सन् २००६ तक 'काँतिन्यूअस एलेक्ट्रान बीम एसेलेरेटर फैसिलिटी' (Continuous Electron Beam Accelerator Facility (CEBAF))। इसकी स्थापना सन् १९८४ में हुई थी। यहाँ पर कण त्वरक पर कार्य होता है। .

देखें कण त्वरक और जेफर्सन लैब

वान डी ग्राफ़ जेनरेटर

वान डी ग्राफ जनित्र का योजनामूलक चित्र वान डी ग्राफ जनित्र वान डी ग्राफ़ जेनरेटर (अंग्रेज़ी:Van der Graaf Generator) एक वैज्ञानिक उपकरण है। वान डी ग्राफ़ जेनरेटर उच्च विभवान्तर पैदा करने में प्रयोग होता है। .

देखें कण त्वरक और वान डी ग्राफ़ जेनरेटर

विनोद चौहान

विनोद चौहान (जन्म: 1 मई, 1949) तंजानिया में जन्मे भारतीय मूल के त्वरक विशेषज्ञ एवं इंजीनियर हैं। वे नाभिकीय अनुसंधान के यूरोपीय केन्द्र (सर्न) के वरिष्ट सदस्य हैं और ३० से भी अधिक वर्षों से इससे जुड़े हुए हैं। श्रेणी:इंजीनियर.

देखें कण त्वरक और विनोद चौहान

विशिष्ट आपेक्षिकता

विशिष्ट आपेक्षिकता सिद्धांत अथवा आपेक्षिकता का विशिष्ट सिद्धांत (Spezielle Relativitätstheorie, special theory of relativity or STR) गतिशील वस्तुओं में वैद्युतस्थितिकी पर अपने शोध-पत्र में अल्बर्ट आइंस्टीन ने १९०५ में प्रस्तावित जड़त्वीय निर्देश तंत्र में मापन का एक भौतिक सिद्धांत दिया।अल्बर्ट आइंस्टीन (1905) "", Annalen der Physik 17: 891; अंग्रेजी अनुवाद का जॉर्ज बार्कर जेफ़री और विल्फ्रिड पेर्रेट्ट ने 1923 में किया; मेघनाद साहा द्वारा (1920) में अन्य अंग्रेजी अनुवाद गतिशील वस्तुओं की वैद्युतगतिकी गैलीलियो गैलिली ने अभिगृहीत किया था कि सभी समान गतियाँ सापेक्षिक हैं और यहाँ कुछ भी निरपेक्ष नहीं है तथा कुछ भी विराम अवस्था में भी नहीं है, जिसे अब गैलीलियो का आपेक्षिकता सिद्धांत कहा जाता है। आइंस्टीन ने इस सिद्धांत को विस्तारित किया, जिसके अनुसार प्रकाश का वेग निरपेक्ष व नियत है, यह एक ऐसी घटना है जो माइकलसन-मोरले के प्रयोग में हाल ही में दृष्टिगोचर हुई थी। उन्होने एक अभिगृहीत यह भी दिया कि यह सभी भौतिक नियम, यांत्रिकी व स्थिरवैद्युतिकी के सभी नियमों, वो जो भी हों, समान रहते हैं। इस सिद्धांत के परिणामों की संख्या वृहत है जो प्रायोगिक रूप से प्रेक्षित हो चुके हैं, जैसे- समय विस्तारण, लम्बाई संकुचन और समक्षणिकता। इस सिद्धांत ने निश्चर समय अन्तराल जैसी अवधारणा को बदलकर निश्चर दिक्-काल अन्तराल जैसी नई अवधारणा को जन्म दिया है। इस सिद्धांत ने क्रन्तिकारी द्रव्यमान-ऊर्जा सम्बन्ध E.

देखें कण त्वरक और विशिष्ट आपेक्षिकता

आई ओ टी

इन्डक्टिव आउटपुट ट्यूब (IOT) या क्लाइस्ट्रोड (klystrode) एक प्रकार की निर्वात नलिका है जिसका उपयोग उच्च आवृत्ति की रेडियो तरंगों को प्रवर्धित करने के लिए शक्ति प्रवर्धक के रूप में किया जाता है। यह क्लाइस्ट्रॉन के तरह की युक्ति है। इसका विकास १९८० के दशक में हुआ जब रेडियो ट्रान्समिटरों में प्रयुक्त उच्च शक्ति वाले रेडियो आवृत्ति प्रवर्धकों की दक्षता को अधिकाधिक करने की चुनौती सामने आयी। आई ओ टी का प्रमुख व्यापारिक उपयोग UHF टेलीविजन ट्रान्समिटरों में होता है जहाँ अब क्लाइस्ट्रानों के स्थान पर आई ओ टी का उपयोग होने लगा है। इसका कारण इनकी अधिक दक्षता (35% से 40%) और छोटा आकार है। आई ओ टॉ का उपयोग कण त्वरकों में भी होता है। इनके द्वारा लगभग 30 kW शक्ति (सतत) तथा 7 MW (स्पन्दित) आउटपुट की जा सकती है और गिगाहर्ट्ज आवृत्ति तक 20–23 dB की लब्धि प्राप्त की जा सकती है। श्रेणी:निर्वात नलिका श्रेणी:माइक्रोवेव प्रौद्योगिकी.

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आवेशित कण-पुंज

किसी अवकास (स्पेस) में गतिमान आवशों के समूह को आवेशित कण-पुंज (charged particle beam) कहते हैं। आवेशित कण-पुंज के सभी कणों की स्थिति, गतिज ऊर्जा एवं दिशा लगभग समान होती है। ध्यातव्य है कि इन कणों की गतिज ऊर्जा उनकी साधारण अवस्था की ऊर्जा की अपेक्षा बहुत अधिक होती है। अपनी उच्च ऊर्जा एवं अत्यधिक एकदिशता के कारण ये आवेशित कण-पुंज अनेक कार्यों के लिये बहुत उपयोगी सिद्ध होते हैं। (कण-पुंज के उपयोग (Particle Beam Usage), देखें) .

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इण्डस-१

इण्डस-१, भारत का प्रथम सिन्क्रोट्रॉन विकिरण स्रोत (Synchrotron Radiation Source) है। यह राजा रामन्ना प्रगत प्रौद्योगिकी केन्द्र, इन्दौर द्वारा विकसित एवं संचालित है। .

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इन्डस-२

इण्डस-२ (Indus-2) भारत के राजा रामन्ना प्रगत प्रौद्योगिकी केन्द्र, इन्दौर द्वारा विकसित एलेक्ट्रॉन त्वरक है। .

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इलेक्ट्रॉन गन

सीआरटी की इलेक्ट्रॉन बंदूक (एलेक्ट्रॉन गन) इलेक्ट्रॉन गन का योजनामूलक चित्र: ➀ गरम कैथोड ➁ वेनेट (Wehnelt) सिलिन्डर ➂ एनोड इलेक्ट्रॉन बंदूक (एलेक्ट्रॉन गन) की संरचना इलेक्ट्रॉन बंदूक (electron gun या एलेक्ट्रॉन गन) एक वैद्युत अवयव है जो निर्धारित गतिज ऊर्जा वाले इलेक्ट्रॉन पुंज पैदा करता है। यह प्रायः दूरदर्शन अभिग्राहीयों (टेलीविजन सेटों) में तथा संगणक पटलों (कम्प्यूटर मॉनिटरों) में प्रयोग की जाती है। इसके अलावा एलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी, इलेक्ट्रॉन बीम वेल्डिंग मशीन, तथा त्वरकों में भी प्रयुक्त होती है। इलेक्ट्रॉन गन के दो मुख्य चरण हैं, इलेक्ट्रॉन उत्सर्जन का साधन तथा इलेक्ट्रॉन निष्कर्षण (extraction) का साधन। इलेक्ट्रॉन का उत्सर्जन तीन प्रकार से किया जा सकता है- तापायनिक उत्सर्जन, क्षेत्र उत्सर्जन और प्रकाश उत्सर्जन। निष्कर्षण दो प्रकार से किया जा सकता है- डी सी वोल्टेज द्वारा तथा रेडियो आवृति (RF) के वोल्टेज द्वारा।; इलेक्ट्रॉन स्रोत (गन).

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कण भौतिकी

कण भौतिकी, भौतिकी की एक शाखा है जिसमें मूलभूत उप परमाणविक कणो के पारस्परिक संबन्धो तथा उनके अस्तित्व का अध्ययन किया जाता है, जिनसे पदार्थ तथा विकिरण निर्मित हैं। हमारी अब तक कि समझ के अनुसार कण क्वांटम क्षेत्रों के उत्तेजन (excitations) हैं। दूसरे कणों के साथ इनकी अन्तःक्रिया की अपनी गतिकी है। कण भौतिकी के क्षेत्र में अधिकांश रुचि मूलभूत क्षेत्रों (fundamental fields) में है। मौलिक क्षेत्रों और उनकी गतिशीलताओ के सार को सिद्धान्त के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इसिलिये कण भौतिकी में अधिकतर स्टैंडर्ड मॉडल (Standard Model) के मूल कणों तथा उनके सम्भावित विस्तार के बारे में अध्यन किया जाता है। .

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कण भौतिकी के त्वरकों की सूची

नीचे उन कण त्वरकों की सूची दी गयी है जो कण भौतिकी के प्रयोगों में प्रयुक्त होते हैं। कुछ आरम्भिक त्वरकों को भी इसमें शामिल किया गया है जो नाभिकीय भौतिकी में अनुसंधान के लिये प्रयुक्त हुए थे क्योंकि तब तक नाभिकीय भौतिकी और कण भौतिकी अलग-अलग नहीं थे। .

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कण-पुंज उत्सर्जकता

bivariate normal distribution, representing particles in phase space, with position horizontal and momentum vertical. उत्सर्जकता या एमिटैन्स (Emittance) कण त्वरक के आवेशित कण-पुंज का एक प्रमुख गुण है। कण-पुंज के मार्ग के किसी परिच्छेद पर उत्सर्जकता, फेज अवकाश (फेज स्पेस) में कणों के निर्देशांक के औसत वितरण का परिचायक है। इसकी बीमा, दूरी (जैसे, मीटर) या दूरी x कोण (मीटर-रेडियन) की बीमा होती है। कण-पुंज के मार्ग के सभी बिन्दुओं पर उत्सर्जकता, संरक्षित रहती है। श्रेणी:कण त्वरक.

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किरणपुंज रेखा

फ्रांस के सिन्क्रोट्रान सोलिल (SOLEIL) की योजना: इसमें विशाल केन्द्रीय वलय (लाल रंग में चित्रित) में इलेक्ट्रान घूमते हैं और जहाँ वे अपने पथ से मोड़े जाते हैं वहाँ सिन्क्रोट्रान विकिरण निकालते हैं। यह सिन्क्रोट्रान आठ स्पर्शरेखीय बीमलाइनों में ले जाया जाता है जहाँ विभिन्न प्रकार के प्रयोग किए जाते हैं। कण त्वरक के सन्दर्भ में किरणपुंज रेखा (बीमलाइन / beamline) से अभिप्राय किररणपुंज अथवा कणपुंज के गमनपथ से है जिसके अन्तर्गत किरणपुंज के मार्ग में आने वाले सभी अवयव (निर्वात नली/पाइप, विभिन्न प्रकार के चुम्बक, नैदानिक युक्तियाँ, प्रकाशीय युक्तियाँ आदि) भी सम्मिलित हैं। बीमलाइन प्रायः दो प्रकार की होती है-.

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कोलाइडर (त्वरक)

कोलाइडर (Collider) एक प्रकार के कण त्वरक हैं जिसमें विपरीत दिशाओं से आ रहीं अत्यधिक उर्जा वाली आवेशित कणों की किरणपुंजों (बीम) का संघट्ट (टक्कर / collision) कराया जाता है। ये त्वरक रैखिक हो सकते हैं या चक्रीय त्वरक (साइक्लिक एसलरेटर) हो सकते हैं। जिनेवा स्थित सर्न का लार्ज हैड्रान कोलाइडर (या LHC) इसी प्रकार का कण त्वरक है। .

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अतिचालकता

सामान्य चालकों तथा अतिचालकों में ताप के साथ प्रतिरोधकता का परिवर्तन जब किसी मैटेरियल को 0°k तक ठंडा किया जाता है तो उसका प्रतिरोध पूर्णतः शून्य प्रतिरोधकता प्रदर्शित करते हैं। उनके इस गुण को अतिचालकता (superconductivity) कहते हैं। शून्य प्रतिरोधकता के अलावा अतिचालकता की दशा में पदार्थ के भीतर चुम्बकीय क्षेत्र भी शून्य हो जाता है जिसे मेसनर प्रभाव (Meissner effect) के नाम से जाना जाता है। सुविदित है कि धात्विक चालकों की प्रतिरोधकता उनका ताप घटाने पर घटती जाती है। किन्तु सामान्य चालकों जैसे ताँबा और चाँदी आदि में, अशुद्धियों और दूसरे अपूर्णताओं (defects) के कारण एक सीमा के बाद प्रतिरोधकता में कमी नहीं होती। यहाँ तक कि ताँबा (कॉपर) परम शून्य ताप पर भी अशून्य प्रतिरोधकता प्रदर्शित करता है। इसके विपरीत, अतिचालक पदार्थ का ताप क्रान्तिक ताप से नीचे ले जाने पर, इसकी प्रतिरोधकता तेजी से शून्य हो जाती है। अतिचालक तार से बने हुए किसी बंद परिपथ की विद्युत धारा किसी विद्युत स्रोत के बिना सदा के लिए स्थिर रह सकती है। अतिचालकता एक प्रमात्रा-यांत्रिक दृग्विषय (quantum mechanical phenomenon.) है। अतिचालक पदार्थ चुंबकीय परिलक्षण का भी प्रभाव प्रदर्शित करते हैं। इन सबका ताप-वैद्युत-बल शून्य होता है और टामसन-गुणांक बराबर होता है। संक्रमण ताप पर इनकी विशिष्ट उष्मा में भी अकस्मात् परिवर्तन हो जाता है। यह विशेष उल्लेखनीय है कि जिन परमाणुओं में बाह्य इलेक्ट्रॉनों की संख्या 5 अथवा 7 है उनमें संक्रमण ताप उच्चतम होता है और अतिचालकता का गुण भी उत्कृष्ट होता है। .

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अन्तरराष्ट्रीय रैखिक संघट्टक

अन्तरराष्ट्रीय रैखिक संघट्टक (इंटरनेशनल लीनियर कोलाइडर' (आईएलसी)) रैखिक कण त्वरक निर्मान का एक अंतरराष्ट्रीय प्रोजेक्ट है। इसका मकसद भी विज्ञान के अनसुलझे सवालों को खोजना होगा। वैश्विक स्तर पर तैयारी: दो दर्जन से अधिक देशों के 300 विश्वविद्यालयों तथा प्रयोगशालाओं के 2000 से अधिक लोग इस प्रयोग से जुड़े है। तीन साल पहले शुरू हुए लगभग 32 अरब रुपए के इस प्रोजेक्ट पर अभी तक 12 अरब रुपए खर्च हो चुके हैं। उम्मीद है कि इसका फाइनल डिजाइन 2012 तक आ जाएगा। हालाँकि इसे किस देश में स्थापित किया जाएगा, इसका फैसला अभी बाकी है। पर अंदाजा लगाया जा रहा है कि इसे भी स्विट्जरलैंड में लगाया जाएगा। .

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अवपरमाणुक कण

अवपरमाणुक कणों का सोपान (हाइरार्की) भौतिकी में अवपरमाणुक कण (subatomic particles) उन कणों को कहते हैं जिनसे मिलकर न्युक्लियॉन (nucleons) और परमाणु बने हैं। अवपरमाणुक कण दो प्रकार के हैं -.

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उच्च ऊर्जा नाभिकीय भौतिकी

उच्च ऊर्जा नाभिकीय भौतिकी (High-energy nuclear physics) वह विधा है जो 'उच्च ऊर्जा' की स्थिति में 'नाभिकीय पदार्थ' का अध्ययन करती है। इसका ध्यान प्रमुखतः भारी आयनों के संघट्ट (collisions) पर होता है। .

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उपक्रांतिक रिएक्टर

त्वरक-चालित रिएक्टर की योजना जो नाभिकीय विखण्डन रिएक्टर बिना क्रान्तिक हुए भी सतत नाभिकीय विखण्डन प्रदान करे उसे उपक्रांतिक रिएक्टर (subcritical reactor) कहते हैं। इसमें शृंखला अभिक्रिया को बनाये रखने के लिए आवश्यक कुल न्यूट्रानों का कुछ भाग (जैसे ५%) किसी वाह्य स्रोत (जैसे स्पालेशन न्यूट्रान स्रोत) से लिया जाता है। किसी कण त्वरक के साथ जुड़कर चलने वाला इस प्रकार का रिएक्तर त्वरक-चालित निकाय (Accelerator-driven system (ADS)) कहलाता है। .

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PS

पत्रों में PS पोस्ट स्क्रिप्टम अथवा पोस्टस्क्रिप्ट (उपसंहार) का प्रतीक होता है। .

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कण-त्वरक के रूप में भी जाना जाता है।