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कटहल

सूची कटहल

कटहल का पेड़ और उस पर लगे फल कटहल या फनस का वृक्ष शाखायुक्त, सपुष्पक तथा बहुवर्षीय वृक्ष है। यह दक्षिण तथा दक्षिण-पूर्व एशिया का मूल-निवासी है। पेड़ पर होने वाले फलों में इसका फल विश्व में सबसे बड़ा होता है। फल के बाहरी सतह पर छोटे-छोटे काँटे पाए जाते हैं। इस प्रकार के संग्रन्थित फल को सोरोसिस कहते हैं। .

16 संबंधों: धोंडास, नायर, पादप प्रवर्धन, पाकशास्त्र, फलदार वृक्ष, बड़हल, भारतीय अचारों की सूची, मद्रास प्रैज़िडन्सी, मेघालय, संयुक्त फल, स्तंभपुष्पता, जनन, वसा, विटामिन सी, विषुक्कणि, कटहरी चम्पा

धोंडास

धोंडास एक भारतीय मिठाई है जो अधिकतर गोवा तथा पश्चिम भारत में लोकप्रिय है ।कटहल या खीरा, रवा, गुड़, नारियल से बनाई जाती है। .

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नायर

नायर (मलयालम: നായര്,, जो नैयर और मलयाला क्षत्रिय के रूप में भी विख्यात है), भारतीय राज्य केरल के हिन्दू उन्नत जाति का नाम है। 1792 में ब्रिटिश विजय से पहले, केरल राज्य में छोटे, सामंती क्षेत्र शामिल थे, जिनमें से प्रत्येक शाही और कुलीन वंश में, नागरिक सेना और अधिकांश भू प्रबंधकों के लिए नायर और संबंधित जातियों से जुड़े व्यक्ति चुने जाते थे। नायर राजनीति, सरकारी सेवा, चिकित्सा, शिक्षा और क़ानून में प्रमुख थे। नायर शासक, योद्धा और केरल के भू-स्वामी कुलीन वर्गों में संस्थापित थे (भारतीय स्वतंत्रता से पूर्व).

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पादप प्रवर्धन

पौधों में अन्य जीवों की भांति अपने जैसे पौधे पैदा करने की क्षमता होती है, पादप प्रवर्धन (Plant Propagation) कहते हैं। यह कार्य पौधों में अनेक प्रकार से होता है। इसे मुख्यत: तीन मौलिक भागों में विभाजित किया जा सकता है।.

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पाकशास्त्र

खाना बनाते दो रसोइये कच्चे भोज्य पदार्थों को खाने योग्य बनाने की कला को पाकक्रिया (cooking) कहते हैं। बहुत सी वस्तुएँ कच्ची खाई जा सकती हैं और वे इसी रूप में खाने पर विशेष लाभप्रद भी होती हैं, परंतु बहुत सी वस्तुएँ ऐसी हैं जो कच्ची नहीं खाई जा सकती। कुस्वाद एवं हानिकारक होना दोनों ही इसके कारण हैं। कच्चा आलू, जमीकंद, केला आदि, कुस्वाद होते हैं। समस्त अनाज कच्चा खाने पर हानि पहुँचाते हैं। श्वेतसार से युक्त वस्तुएँ पकाकर खाने पर ही लाभप्रद होती हैं। उनका श्वेतसार पककर ही सुपाच्य होता है। ऐसे कच्चे भोज्य पदार्थ दो प्रकार से खाने योग्य बनाए जा सकते हैं, एक तो पकाकर, दूसरे सुरक्षित करके। .

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फलदार वृक्ष

300px उन वृक्षों को फलदार वृक्ष कहते हैं जिन पर लगने वाले फल मनुष्य एवं कुछ जानवरों के खाने के काम आते हैं। पुष्प वाले सभी वृक्ष फल भी देते हैं। फल वास्तव में पुष्प का पका हुआ अण्डाशय ही है। इनमें एक या अधिक बीज होते हैं। किन्तु उद्यानिकी में 'फलदार वृक्ष' से तात्पर्य केवल उन वृक्षों से है जो मानव के भोजन के काम आने वाले फल देते हैं। .

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बड़हल

बड़हल (Artocarpus lakoocha या Monkey jack) एक फलदार वृक्ष है। इसका वृक्ष १०-१५ मीटर ऊँचा होता है। इसकी पत्तियाँ २५-३० सेमी लम्बी एवं १५-२० सेमी चौड़ी होती हैं। इसके फल गोल आकार के या बेडौल होते हैं। हरे रंग का कच्चा फल पकने पर पीला हो जाता है जिसे खाया जाता है। इसके अन्दर छोटे-छोटे कोए (जैसे कटहल में) होते हैं। फल का आकार २ से पाँच इंच का होता है। .

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भारतीय अचारों की सूची

भारत में अनेकों फलों से अचार बनाये जाते हैं। इसमें से आम, नीबू, और आँवला के अचार सबसे सामान्य हैं।;अन्य अचार-.

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मद्रास प्रैज़िडन्सी

मद्रास प्रेसीडेंसी (சென்னை மாகாணம், చెన్నపురి సంస్థానము, മദ്രാസ് പ്രസിഡന്‍സി, ಮದ್ರಾಸ್ ಪ್ರೆಸಿಡೆನ್ಸಿ, ମଦ୍ରାସ୍ ପ୍ରେସୋଦେନ୍ଚ୍ଯ), जिसे आधिकारिक तौर पर फोर्ट सेंट जॉर्ज की प्रेसीडेंसी तथा मद्रास प्रोविंस के रूप में भी जाना जाता है, ब्रिटिश भारत का एक प्रशासनिक अनुमंडल था। अपनी सबसे विस्तृत सीमा तक प्रेसीडेंसी में दक्षिण भारत के अधिकांश हिस्सों सहित वर्तमान भारतीय राज्य तमिलनाडु, उत्तरी केरल का मालाबार क्षेत्र, लक्षद्वीप द्वीपसमूह, तटीय आंध्र प्रदेश और आंध्र प्रदेश के रायलसीमा क्षेत्र, गंजाम, मल्कानगिरी, कोरापुट, रायगढ़, नवरंगपुर और दक्षिणी उड़ीसा के गजपति जिले और बेल्लारी, दक्षिण कन्नड़ और कर्नाटक के उडुपी जिले शामिल थे। प्रेसीडेंसी की अपनी शीतकालीन राजधानी मद्रास और ग्रीष्मकालीन राजधानी ऊटाकामंड थी। 1639 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने मद्रासपट्टनम गांव को खरीदा था और इसके एक साल बाद मद्रास प्रेसीडेंसी की पूर्ववर्ती, सेंट जॉर्ज किले की एजेंसी की स्थापना की थी, हालांकि मछलीपट्टनम और आर्मागोन में कंपनी के कारखाने 17वीं सदी के प्रारंभ से ही मौजूद थे। 1655 में एक बार फिर से इसकी पूर्व की स्थिति में वापस लाने से पहले एजेंसी को 1652 में एक प्रेसीडेंसी के रूप में उन्नत बनाया गया था। 1684 में इसे फिर से एक प्रेसीडेंसी के रूप में उन्नत बनाया गया और एलीहू येल को पहला प्रेसिडेंट नियुक्त किया गया। 1785 में पिट्स इंडिया एक्ट के प्रावधानों के तहत मद्रास ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा स्थापित तीन प्रांतों में से एक बन गया। उसके बाद क्षेत्र के प्रमुख को "प्रेसिडेंट" की बजाय "गवर्नर" का नाम दिया गया और कलकत्ता में गवर्नर-जनरल का अधीनस्थ बनाया गया, यह एक ऐसा पद था जो 1947 तक कायम रहा.

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मेघालय

मेघालय पूर्वोत्तर भारत का एक राज्य है। इसका अर्थ है बादलों का घर। २०१६ के अनुसार यहां की जनसंख्या ३२,११,४७४ है। मेघालय का विस्तार २२,४३० वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में है, जिसका लम्बाई से चौडाई अनुपात लगभग ३:१ का है। IBEF, India (2013) राज्य का दक्षिणी छोर मयमनसिंह एवं सिलहट बांग्लादेशी विभागों से लगता है, पश्चिमी ओर रंगपुर बांग्लादेशी भाग तथा उत्तर एवं पूर्वी ओर भारतीय राज्य असम से घिरा हुआ है। राज्य की राजधानी शिलांग है। भारत में ब्रिटिश राज के समय तत्कालीन ब्रिटिश शाही अधिकारियों द्वारा इसे "पूर्व का स्काटलैण्ड" की संज्ञा दी थी।Arnold P. Kaminsky and Roger D. Long (2011), India Today: An Encyclopedia of Life in the Republic,, pp.

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संयुक्त फल

शहतूत के फल जब किसी पौधे के अनेक फूल मिलकर एक फल का निर्माण करते हैं तो उस फल को संयुक्त फल कहते हैं। अनानास, कटहल आदि संयुक्त फल हैं। श्रेणी:फल.

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स्तंभपुष्पता

तने पर फला कटहल आस्ट्रेलिया का वाटरमेलन पौधे के क्षैतिज शाखा पर लगे पुष्प स्तंभपुष्पता (Cauliflory) वनस्पति विज्ञान का एक शब्द है। उन पेड़ों को स्तम्भपुष्पी कहते हैं जिनके पुष्प और फल उनके मुख्य तने या अन्य मोटी शाखाओं पर लगते हैं, न कि नये पल्लवों पर। गूलर, और कटहल इसके प्रमुख उदाहरण हैम। श्रेणी:वनस्पति विज्ञान.

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जनन

जनन (Reproduction) द्वारा कोई जीव (वनस्पति या प्राणी) अपने ही सदृश किसी दूसरे जीव को जन्म देकर अपनी जाति की वृद्धि करता है। जन्म देने की इस क्रिया को जनन कहते हैं। जनन जीवितों की विशेषता है। जीव की उत्पत्ति किसी पूर्ववर्ती जीवित जीव से ही होती है। निर्जीव पिंड से सजीव की उत्पत्ति नहीं देखी गई है। संभवत: विषाणु (Virus) इसके अपवाद हों (देखें, स्वयंजनन, Abiogenesis)। जनन के दो उद्देश्य होते हैं एक व्यक्तिविशेष का संरक्षण और दूसरा जाति की शृंखला बनाए रखना। दोनों का आधार पोषण है। पोषण से ही संरक्षण, वृद्धि और जनन होते हैं। जीवधारियों के अंतअंतहेलनस्पति और प्राणी दोनों आते हैं। दोनों में ही जैविक घटनाएँ घटित होती है। दोनों की जननविधियों में समानता है, पर सूक्ष्म विस्तार में अंतर अवश्य है। अत: उनका विचार अलग अलग किया जा रहा है। .

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वसा

lipid एक ट्राईग्लीसराइड अणु वसा अर्थात चिकनाई शरीर को क्रियाशील बनाए रखने में सहयोग करती है। वसा शरीर के लिए उपयोगी है, किंतु इसकी अधिकता हानिकारक भी हो सकती है। यह मांस तथा वनस्पति समूह दोनों प्रकार से प्राप्त होती है। इससे शरीर को दैनिक कार्यों के लिए शक्ति प्राप्त होती है। इसको शक्तिदायक ईंधन भी कहा जाता है। एक स्वस्थ व्यक्ति के लिए १०० ग्राम चिकनाई का प्रयोग करना आवश्यक है। इसको पचाने में शरीर को काफ़ी समय लगता है। यह शरीर में प्रोटीन की आवश्यकता को कम करने के लिए आवश्यक होती है। वसा का शरीर में अत्यधिक मात्रा में बढ़ जाना उचित नहीं होता। यह संतुलित आहार द्वारा आवश्यक मात्रा में ही शरीर को उपलब्ध कराई जानी चाहिए। अधिक मात्रा जानलेवा भी हो सकती है, यह ध्यान योग्य है। यह आमाशय की गतिशीलता में कमी ला देती है तथा भूख कम कर देती है। इससे आमाशय की वृद्धि होती है। चिकनाई कम हो जाने से रोगों का मुकाबला करने की शक्ति कम हो जाती है। अत्यधिक वसा सीधे स्रोत से हानिकारक है। इसकी संतुलित मात्रा लेना ही लाभदायक है। .

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विटामिन सी

विटामिन सी या एल-एस्कॉर्बिक अम्ल मानव एवं विभिन्न अन्य पशु प्रजातियों के लिये अत्यंत आवश्यक पोषक तत्त्व है। ये विटामिन रूप में कार्य करता है। कई प्रकार की उपापचयी अभिक्रियाओं हेतु एस्कॉर्बेट (एस्कॉर्बिक अम्ल का एक आयन) सभी पादपों व पशुओं में आवश्यक होता है। ये लगभग सभी जीवों द्वारा आंतरिक प्रणाली द्वारा निर्मित किया जाता है (सिवाय कुछ विशेष प्रजातियों के) जिनमें स्तनपायी समूह जैसे चमगादड़, एक या दो प्रधान प्राइमेट सबऑर्डर, ऐन्थ्रोपोएडिया (वानर, वनमानुष एवं मानव) आते हैं। इसका निर्माण गिनी शूकर एवं पक्षियों एवं मछलियों की कुछ प्रजातियों में नहीं होता है। जो भी प्रजातियां इसका निर्माण आंतरिक रूप से नहीं कर पातीं, उन्हें ये आहार रूप में वांछित होता है। इस विटामिन की कमी से मानवों में स्कर्वी नामक रोग हो जाता है।। हिन्दुस्ताण लाइव। २८ मार्च २०१० इसे व्यापक रूप से खाद्य पूर्क रूप में प्रयोग किया जाता है। .

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विषुक्कणि

विषुक्कणी उस झाँकी-दर्शन को कहते हैं, जिसका दर्शन विषु के दिन प्रात:काल सर्वप्रथम किया जाता है। ऐसा विश्वास है कि विषुक्कणी का प्रभाव वर्ष भर रहता है। विषु की पूर्व संध्या को 'कणी' दर्शन की सामग्री इकट्ठी करके सजा दी जाती है। एक काँसे के डेगची या अन्य किसी बर्तन में चावल, नया कप़ड़ा, ककड़ी, कच्चा आम, पान का पत्ता, सुपारी, कटहल, आइना, अमलतास के फूल आदि सजा कर रख दिए जाते हैं। इस बर्तन के पास एक लम्बा दीपक जलाकर रखा जाता है। प्रातः काल परिवार का कोई बुजुर्ग व्यक्ति एक-एक करके परिवार के सदस्यों की आँखें मूंद 'विषुक्कणी' तक ले आकर आँखें खुलवाते हैं। उपर्युक्त 'कणी' का दर्शन कराने के बाद घर के बुजुर्ग परिवार के सभी सदस्यों को 'कैनीट्टम' या भेंट में कुछ रुपये देते हैं। इस अवसर पर दावत भी दी जाती है। उत्तरी केरल में विषु के दिन आतिशबाजी का आयोजन भी होता है। .

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कटहरी चम्पा

कटहरी चम्पा एनोनेसिई (Annonaceae) कुल का पौधा है। इसे हरा, अथवा कटहरी, चंपा कहते हैं। इसका वानस्पतिक नाम चंपा आर्टाबोट्रिस ओडोराटिसियम (Artabotrys odoratissimus) है। यह अरटाबोट्रिस वर्ग के पौधे अफ्रीका तथा पूर्वी एशिया के देशों में पाए जाते हैं। भारत में इस वर्ग की १० जातियाँ पाई जाती हैं। इसका पेड़ झाड़ी जैसा, तीन से लेकर पाँच मीटर तक ऊँचा होता है। पत्तियाँ सरल तथा चमकीली हरी होती हैं। फूल अर्धवृत्ताकार डंठल पर लगते हैं। ये डंठल अन्य वृक्षों की डालियों के ऊपर चढ़ने में उपयोगी होते हैं। शुरू में फूल हरे होते हैं, परंतु बाद में इनका रंग हलका पीला हो जाता है। इन फूलों से पर्याप्त सुगंध निकलती है, जो पके कटहल के गंध जैसी होती है। इससे इनका पता पेड़ पर आसानी से लग जाता है। चंपा के पेड़ सजावट एवं सुगंध के लिये बगीचों में प्राय: लगाए जाते हैं। .

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