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ओरछा

सूची ओरछा

भारत के इतिहास में झांसी के पास स्थित ओरछा का एक अपना महत्व है। इससे जुड़ी तमाम कहानियां और किस्से पिछली कई दशकों से लोगों की जुबान पर हैं। .

23 संबंधों: चतुर्भुज मंदिर (ओरछा), झांसी का किला, धामोनी, प्रवीणराय, बनारसीदास चतुर्वेदी, बुन्देलखण्ड, बुंदेलखंड के शासक, ब्रिटिशकालीन भारत के रियासतों की सूची, भट्ट मथुरानाथ शास्त्री, भारत के मेलों की सूची, मधुकरसाह बुन्देला, मध्य प्रदेश, मध्य प्रदेश का पर्यटन, महापुरा, रानी लक्ष्मीबाई, रामराजा मन्दिर, शिवानन्द गोस्वामी, हरिराम व्यास, जुझारसिंह बुन्देला, गोस्वामी हरिकृष्ण शास्त्री, ओरछा किला, कुलपहाड़, केशव

चतुर्भुज मंदिर (ओरछा)

ओरछा का चतुर्भुज मंदिर विष्णु का मंदिर है। यह मंदिर जटिल बहुमंजिला संरचना वाला है तथा मंदिर, दुर्ग एवं राजमहल की वास्तुगत विशेषताओं से युक्त है। श्रेणी:भारत के मंदिर.

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झांसी का किला

झाँसी का दुर्ग (सन १८८२ में) उत्तर प्रदेश राज्य के झाँसी में बंगरा नामक पहाड़ी पर १६१३ इस्वी में यह दुर्ग ओरछा के बुन्देल राजा बीरसिंह जुदेव ने बनवाया था। २५ वर्षों तक बुंदेलों ने यहाँ राज्य किया उसके बाद इस दुर्ग पर क्रमश मुगलों, मराठों और अंग्रजों का अधिकार रहा। मराठा शासक नारुशंकर ने १७२९-३० में इस दुर्ग में कई परिवर्तन किये जिससे यह परिवर्धित क्षेत्र शंकरगढ़ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। १८५७ के स्वतंत्रता संग्राम में इसे अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ। १९३८ में यह किला केन्द्रीय संरक्षण में लिया गया। यह दुर्ग १५ एकड़ में फैला हुआ है। इसमें २२ बुर्ज और दो तरफ़ रक्षा खाई हैं। नगर की दीवार में १० द्वार थे। इसके अलावा ४ खिड़कियाँ थीं। दुर्ग के भीतर बारादरी, पंचमहल, शंकरगढ़, रानी के नियमित पूजा स्थल शिवमंदिर और गणेश मंदिर जो मराठा स्थापत्य कला के सुन्दर उदाहरण हैं। कूदान स्थल, कड़क बिजली तोप पर्यटकों का विशेष आकर्षण हैं। फांसी घर को राजा गंगाधर के समय प्रयोग किया जाता था जिसका प्रयोग रानी ने बंद करवा दिया था। किले के सबसे ऊँचे स्थान पर ध्वज स्थल है जहाँ आज तिरंगा लहरा रहा है। किले से शहर का भव्य नज़ारा दिखाई देता है। यह किला भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है और देखने के लिए पर्यटकों को टिकट लेना होता है। वर्ष पर्यन्त देखने जा सकते हैं।यहॉ सड़क तथा रेल मारग दोनो से पहुँचा जा सकता है। .

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धामोनी

धामोनी: सागर के उत्तर में झांसी मार्ग पर करीब 50 किमी की दूरी पर स्थित धामोनी अब उजाड़ हो चुका है लेकिन इसका ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्व है। गढ़ा मंडला के राज्‍यकाल में महत्वपूर्ण होने के कारण इसे गढ़ बनाया गया था और इसके साथ 50 मौजे थे। गढ़ा मंडला वंश के एक वंशज सूरत शाह ने इस किले को बनाया था। .

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प्रवीणराय

प्रवीणराय एक वेश्या थी जो गायन और नृत्यकला में प्रवीण होने के साथ साथ काव्यरचना में भी चतुर थी। वह ओड़छा के महाराज इंद्रजीतसिंह के महल में रहती थी। वह महाकवि केशवदास की शिष्या थी। इसकी प्रशंसा सुनकर अकबर ने इसे अपने दरबार में बुला भेजा किंतु इंद्रजीतसिंह ने इसे वहाँ भेजने से इनकार कर दिया। इसपर उन्हें अकबर का कोपभाजन बनना पड़ा। अकबर ने उनपर एक करोड़ का जुरमाना ठोंक दिया और प्रवीणराय को जबरन बुलवा मँगाया। प्रवीणराय ने दरबार में उपस्थित होकर अपनी कविता सुनाई और शाह की धाक का वर्णन करते हुए अंत में निवेदन किया: इसपर अकबर बड़ा प्रसन्न हुआ और उसने प्रवीणराय को ओड़छा में ही रहने की अनुमति दे दी। प्रवीणराय द्वारा रचित कोई काव्यग्रंथ देखा नहीं गया किंतु उसके बनाए हुए कई छंद उपलब्ध हैं जिनसे उसका काव्य-कला-कौशल प्रकट होता है। .

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बनारसीदास चतुर्वेदी

पण्डित बनारसीदास चतुर्वेदी (२४ दिसम्बर, १८९२ -- २ मई, १९८५) प्रसिद्ध हिन्दी लेखक एवं पत्रकार थे। वे राज्यसभा के सांसद भी रहे। उनके सम्पादकत्व में हिन्दी में कोलकाता से 'विशाल भारत' नामक हिन्दी मासिक निकला। पं॰ बनारसीदास चतुर्वेदी जैसे सुधी चिंतक ने ही साक्षात्कार की विधा को पुष्पित एवं पल्लवित करने के लिए सर्वप्रथम सार्थक कदम बढ़ाया था। उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। वे अपने समय का अग्रगण्य संपादक थे तथा अपनी विशिष्ट और स्वतंत्र वृत्ति के लिए जाने जाते हैं। उनके जैसा शहीदों की स्मृति का पुरस्कर्ता (सामने लाने वाला) और छायावाद का विरोधी समूचे हिंदी साहित्य में कोई और नहीं हुआ। उनकी स्मृति में बनारसीदास चतुर्वेदी सम्मान दिया जाता है। कहते हैं कि वे किसी भी नई सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक या राष्ट्रीय मुहिम से जुड़ने, नए काम में हाथ डालने या नई रचना में प्रवृत्त होने से पहले स्वयं से एक ही प्रश्न पूछते थे कि उससे देश, समाज, उसकी भाषाओं और साहित्यों, विशेषकर हिंदी का कुछ भला होगा या मानव जीवन के किसी भी क्षेत्र में उच्चतर मूल्यों की प्रतिष्ठा होगी या नहीं? .

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बुन्देलखण्ड

बुन्देलखण्ड मध्य भारत का एक प्राचीन क्षेत्र है।इसका प्राचीन नाम जेजाकभुक्ति है.

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बुंदेलखंड के शासक

' बुंदेलखंड के ज्ञात इतिहास के अनुसार यहां ३०० ई. प सौरभ तिवारी ब्राह्मण सासक मौर्य शासनकाल के साक्ष्‍य उपलब्‍ध है। इसके पश्‍चात वाकाटक और गुप्‍त शासनकाल, कलचुरी शासनकाल, चंदेल शासनकाल, खंगार1खंगार शासनकाल, बुंदेल शासनकाल (जिनमें ओरछा के बुंदेल भी शामिल थे), मराठा शासनकाल और अंग्रेजों के शासनकाल का उल्‍लेख मिलता है। .

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ब्रिटिशकालीन भारत के रियासतों की सूची

सन १९१९ में भारतीय उपमहाद्वीप की मानचित्र। ब्रितिश साशित क्षेत्र व स्वतन्त्र रियासतों के क्षेत्रों को दरशाया गया है सन १९४७ में स्वतंत्रता और विभाजन से पहले भारतवर्ष में ब्रिटिश शासित क्षेत्र के अलावा भी छोटे-बड़े कुल 565 स्वतन्त्र रियासत हुआ करते थे, जो ब्रिटिश भारत का हिस्सा नहीं थे। ये रियासतें भारतीय उपमहाद्वीप के वो क्षेत्र थे, जहाँ पर अंग्रेज़ों का प्रत्यक्ष रूप से शासन नहीं था, बल्कि ये रियासत सन्धि द्वारा ब्रिटिश राज के प्रभुत्व के अधीन थे। इन संधियों के शर्त, हर रियासत के लिये भिन्न थे, परन्तु मूल रूप से हर संधि के तहत रियासतों को विदेश मामले, अन्य रियासतों से रिश्ते व समझौते और सेना व सुरक्षा से संबंधित विषयों पर ब्रिटिशों की अनुमति लेनी होती थी, इन विषयों का प्रभार प्रत्यक्ष रूप से अंग्रेजी शासन पर था और बदले में ब्रिटिश सरकार, शासकों को स्वतन्त्र रूप से शासन करने की अनुमती देती थी। सन १९४७ में भारत की स्वतंत्रता व विभाजन के पश्चात सिक्किम के अलावा अन्य सभी रियासत या तो भारत या पाकिस्तान अधिराज्यों में से किसी एक में शामिल हो गए, या उन पर कब्जा कर लिया गया। नव स्वतंत्र भारत में ब्रिटिश भारत की एजेंसियों को "दूसरी श्रेणी" के राज्यों का दर्जा दिया गया (उदाहरणस्वरूप: "सेंट्रल इण्डिया एजेंसी", "मध्य भारत राज्य" बन गया)। इन राज्यों के मुखिया को राज्यपाल नहीं राजप्रमुख कहा जाता था। १९५६ तक "राज्य पुनर्गठन अयोग" के सुझाव पर अमल करते हुए भारत सरकार ने राज्यों को पुनर्गठित कर वर्तमान स्थिती में लाया। परिणामस्वरूप सभी रियासतों को स्वतंत्र भारत के राज्यों में विलीन कर लिया गया। इस तरह रियासतों का अंत हो गया। सन १९६२ में प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के शासनकाल के दौरान इन रियासतों के शासकों के निजी कोशों को एवं अन्य सभी ग़ैर-लोकतान्त्रिक रियायतों को भी रद्ध कर दिया गया .

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भट्ट मथुरानाथ शास्त्री

कवि शिरोमणि भट्ट श्री मथुरानाथ शास्त्री कविशिरोमणि भट्ट मथुरानाथ शास्त्री (23 मार्च 1889 - 4 जून 1964) बीसवीं सदी पूर्वार्द्ध के प्रख्यात संस्कृत कवि, मूर्धन्य विद्वान, संस्कृत सौन्दर्यशास्त्र के प्रतिपादक और युगपुरुष थे। उनका जन्म 23 मार्च 1889 (विक्रम संवत 1946 की आषाढ़ कृष्ण सप्तमी) को आंध्र के कृष्णयजुर्वेद की तैत्तरीय शाखा अनुयायी वेल्लनाडु ब्राह्मण विद्वानों के प्रसिद्ध देवर्षि परिवार में हुआ, जिन्हें सवाई जयसिंह द्वितीय ने ‘गुलाबी नगर’ जयपुर शहर की स्थापना के समय यहीं बसने के लिए आमंत्रित किया था। आपके पिता का नाम देवर्षि द्वारकानाथ, माता का नाम जानकी देवी, अग्रज का नाम देवर्षि रमानाथ शास्त्री और पितामह का नाम देवर्षि लक्ष्मीनाथ था। श्रीकृष्ण भट्ट कविकलानिधि, द्वारकानाथ भट्ट, जगदीश भट्ट, वासुदेव भट्ट, मण्डन भट्ट आदि प्रकाण्ड विद्वानों की इसी वंश परम्परा में भट्ट मथुरानाथ शास्त्री ने अपने विपुल साहित्य सर्जन की आभा से संस्कृत जगत् को प्रकाशमान किया। हिन्दी में जिस तरह भारतेन्दु हरिश्चंद्र युग, जयशंकर प्रसाद युग और महावीर प्रसाद द्विवेदी युग हैं, आधुनिक संस्कृत साहित्य के विकास के भी तीन युग - अप्पा शास्त्री राशिवडेकर युग (1890-1930), भट्ट मथुरानाथ शास्त्री युग (1930-1960) और वेंकट राघवन युग (1960-1980) माने जाते हैं। उनके द्वारा प्रणीत साहित्य एवं रचनात्मक संस्कृत लेखन इतना विपुल है कि इसका समुचित आकलन भी नहीं हो पाया है। अनुमानतः यह एक लाख पृष्ठों से भी अधिक है। राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान, नई दिल्ली जैसे कई संस्थानों द्वारा उनके ग्रंथों का पुनः प्रकाशन किया गया है तथा कई अनुपलब्ध ग्रंथों का पुनर्मुद्रण भी हुआ है। भट्ट मथुरानाथ शास्त्री का देहावसान 75 वर्ष की आयु में हृदयाघात के कारण 4 जून 1964 को जयपुर में हुआ। .

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भारत के मेलों की सूची

कोई विवरण नहीं।

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मधुकरसाह बुन्देला

राजा मधुकरसाह बुंदेला के पिता प्रतापरुद्र या रुद्रप्रताप ने ओड़छा नगर की नींव डाली। मधुकरसाह ने सत्तारूढ़ होकर आस-पास की छोटी छोटी बस्तियों को अपने अधिकार में कर लिया। स्वाभिमान के कारण इसने मुगल सम्राट् अकबर के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। अकबर ने इसके विरुद्ध सादिक खॉ हर्वी और राजा आसकरण को भेजा। युद्ध में परास्त होकर मधुकर ने आत्मसमर्पण कर दिया। जब मालवा का सेनाध्यक्ष शहाबुद्दीन अहमद खाँ मिर्जा कोका के साथ दक्षिण की चढ़ाई पर नियुक्त हुआ, तो इसे भी साथ भेजा गया, किंतु इसने अजीज कोका का साथ नहीं दिया। इसपर शहाबुद्दीन अहमद खाँ ने इसे दंड देना निश्चित किया। बाद में यह पुन: राजा आसकरन की मध्यस्थता से राजी हुआ। लेकिन सेना के पास पहुँचते ही जैसे इसमें फिर से उन्माद आया और यह भाग खड़ा हुआ। इसकी सारी संपत्ति लूट ली गई। किसी प्रकार फिर दरबार में आया और राजकुमार की सेवा में नियुक्त हुआ। 1592 में इसकी मृत्यु हो गई। श्रेणी:भारत के राजा.

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मध्य प्रदेश

मध्य प्रदेश भारत का एक राज्य है, इसकी राजधानी भोपाल है। मध्य प्रदेश १ नवंबर, २००० तक क्षेत्रफल के आधार पर भारत का सबसे बड़ा राज्य था। इस दिन एवं मध्यप्रदेश के कई नगर उस से हटा कर छत्तीसगढ़ की स्थापना हुई थी। मध्य प्रदेश की सीमाऐं पांच राज्यों की सीमाओं से मिलती है। इसके उत्तर में उत्तर प्रदेश, पूर्व में छत्तीसगढ़, दक्षिण में महाराष्ट्र, पश्चिम में गुजरात, तथा उत्तर-पश्चिम में राजस्थान है। हाल के वर्षों में राज्य के सकल घरेलू उत्पाद की विकास दर राष्ट्रीय औसत से ऊपर हो गया है। खनिज संसाधनों से समृद्ध, मध्य प्रदेश हीरे और तांबे का सबसे बड़ा भंडार है। अपने क्षेत्र की 30% से अधिक वन क्षेत्र के अधीन है। इसके पर्यटन उद्योग में काफी वृद्धि हुई है। राज्य में वर्ष 2010-11 राष्ट्रीय पर्यटन पुरस्कार जीत लिया। .

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मध्य प्रदेश का पर्यटन

मध्य प्रदेश भारत के ठीक मध्य में स्थित है। अधिकतर पठारी हिस्से में बसे मध्यप्रदेश में विन्ध्य और सतपुडा की पर्वत श्रृखंलाएं इस प्रदेश को रमणीय बनाती हैं। ये पर्वत श्रृखंलाएं हैं कई नदियों के उद्गम स्थलों को जन्म देती हैं, ताप्ती, नर्मदा,चम्बल, सोन,बेतवा, महानदी जो यहां से निकल भारत के कई प्रदेशों में बहती हैं। इस वैविध्यपूर्ण प्राकृतिक देन की वजह से मध्यप्रदेश एक बेहद खूबसूरत हर्राभरा हिस्सा बन कर उभरता है। जैसे एक हरे पत्ते पर ओस की बूंदों सी झीलें, एक दूसरे को काटकर गुजरती पत्ती की शिराओं सी नदियां। इतना ही विहंगम है मध्य प्रदेश जहां, पर्यटन की अपार संभावनायें हैं। हालांकि 1956 में मध्यप्रदेश भारत के मानचित्र पर एक राज्य बनकर उभरा था, किन्तु यहां की संस्कृति प्राचीन और ऐतिहासिक है। असंख्य ऐतिहासिक सांस्कृतिक धरोहरें विशेषत: उत्कृष्ट शिल्प और मूर्तिकला से सजे मंदिर, स्तूप और स्थापत्य के अनूठे उदाहरण यहां के महल और किले हमें यहां उत्पन्न हुए महान राजाओं और उनके वैभवशाली काल तथा महान योध्दाओं, शिल्पकारों, कवियों, संगीतज्ञों के साथ-साथ हिन्दु, मुस्लिम,जैन और बौध्द धर्म के साधकों की याद दिलाते हैं। भारत के अमर कवि, नाटककार कालिदास और प्रसिध्द संगीतकार तानसेन ने इस उर्वर धरा पर जन्म ले इसका गौरव बढाया है। मध्यप्रदेश का एक तिहाई हिस्सा वन संपदा के रूप में संरक्षित है। जहां पर्यटक वन्यजीवन को पास से जानने का अदभुत अनुभव प्राप्त कर सकते हैं। कान्हा नेशनल पार्क,बांधवगढ़, शिवपुरी आदि ऐसे स्थान हैं जहां आप बाघ, जंगली भैंसे, हिरणों, बारहसिंघों को स्वछंद विचरते देख पाने का दुर्लभ अवसर प्राप्त कर सकते हैं। मध्यप्रदेश के हर इलाके की अपनी संस्कृति है और अपनी धार्मिक परम्पराएं हैं जो उनके उत्सवों और मेलों में अपना रंग भरती हैं। खजुराहो का वार्षिक नृत्यउत्सव पर्यटकों को बहुत लुभाता है और ओरछा और पचमढी क़े उत्सव वहा/ कि समृध्द लोक और आदिवासी संस्कृति को सजीव बनाते हैं। मध्यप्रदेश की व्यापकता और विविधता को खयाल में रख हम इसे पर्यटन की सुविधानुसार पांच भागों में बांट सकते र्हैं मध्य प्रदेश राज्य में अत्यधिक पर्यटन स्थल हैं। .

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महापुरा

महापुरा, राजस्थान की राजधानी से कोई दस किलोमीटर दूर (जयपुर-अजमेर रोड से करीब एक किलोमीटर दक्षिण-दिशा में) जयपुर जिले की सांगानेर तहसील का एक ऐतिहासिक ग्राम है जो शिवानन्द गोस्वामी जैसे उद्भट विद्वान को आमेर नरेश महाराजा बिशन सिंह / महाराजा विष्णुसिंह ने अन्य चार गांवों के साथ उनका शिष्यत्व स्वीकारने के उपलक्ष्य में जागीर के रूप में भेंट दिया था। महापुरा अनेक कारणों से भारत के विलक्षण ग्रामों में से एक है, क्योंकि इस गाँव के साथ इतिहास और संस्कृति के कई अनजाने पहलू सम्बद्ध हैं। .

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रानी लक्ष्मीबाई

रानी लक्ष्मीबाई (जन्म: 19 नवम्बर 1828 के अनुसार रानी लक्ष्मीबाई की जन्मतिथि 19 नवम्बर 1835 है – मृत्यु: 18 जून 1858) मराठा शासित झाँसी राज्य की रानी और 1857 के प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम की वीरांगना थीं। उन्होंने सिर्फ़ 23 साल की उम्र में अंग्रेज़ साम्राज्य की सेना से जद्दोजहद की और रणभूमि में उनकी मौत हुई थी। .

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रामराजा मन्दिर

रामराजा मन्दिर मध्य प्रदेश के ओरछा में स्थित है। .

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शिवानन्द गोस्वामी

शिवानन्द गोस्वामी | शिरोमणि भट्ट (अनुमानित काल: संवत् १७१०-१७९७) तंत्र-मंत्र, साहित्य, काव्यशास्त्र, आयुर्वेद, सम्प्रदाय-ज्ञान, वेद-वेदांग, कर्मकांड, धर्मशास्त्र, खगोलशास्त्र-ज्योतिष, होरा शास्त्र, व्याकरण आदि अनेक विषयों के जाने-माने विद्वान थे। इनके पूर्वज मूलतः तेलंगाना के तेलगूभाषी उच्चकुलीन पंचद्रविड़ वेल्लनाडू ब्राह्मण थे, जो उत्तर भारतीय राजा-महाराजाओं के आग्रह और निमंत्रण पर राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और उत्तर भारत के अन्य प्रान्तों में आ कर कुलगुरु, राजगुरु, धर्मपीठ निर्देशक, आदि पदों पर आसीन हुए| शिवानन्द गोस्वामी त्रिपुर-सुन्दरी के अनन्य साधक और शक्ति-उपासक थे। एक चमत्कारिक मान्त्रिक और तांत्रिक के रूप में उनकी साधना और सिद्धियों की अनेक घटनाएँ उल्लेखनीय हैं। श्रीमद्भागवत के बाद सबसे विपुल ग्रन्थ सिंह-सिद्धांत-सिन्धु लिखने का श्रेय शिवानंद गोस्वामी को है।" .

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हरिराम व्यास

हरिराम व्यास (संवत १५६७ - १६८९) राधावल्लभ सम्प्रदाय के उच्च कोटि के भक्त तथा कवि थे।http://hindisahityainfo.blogspot.in/2017/05/blog-post_18.html राघावल्लभीय संप्रदाय के हरित्रय में इनका विशिष्ट स्थान है।http://bharatdiscovery.org/india/हरिराम_व्यास .

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जुझारसिंह बुन्देला

जुझारसिंह बुंदेला, ओरछा के राजा वीरसिंह देव के पुत्र थे। जहाँगीर शासन के अंतिम काल में इन्हें राजा की उपाधि मिली और ये चार हजारी मंसबदार बने। सन् १६२७ ईo शाहजहाँ ने इन्हें उपहारों से सम्मानित किया। किंतु कुछ समय पश्चात् अशुद्ध करलेखा की शाहजहाँ द्वारा जाँच किए जाने की सूचना से डरकर ये आगरे से भागकर ओरछा चले गए। वहाँ अपनी सैन्य शक्ति बढ़ाने लगे। जब जहांगीर को ये समाचार ज्ञात हुआ तो उसने सेनाएँ भेजकर ओरछा में घेरा डलवा दिया। फलत: युद्ध हुआ, किंतु 'एरिच' दुर्ग बादशाही सेनाओं के अधिकार में आ जाने से जुझारसिंह के पराजय की संभावना उत्पन्न हो गई। तब इन्होंने महावत खाँ की शरण में जाकर, जो बादशाही सेना के एक भाग का नेतृत्व कर रहा था, क्षमा माँगी। महावत खाँ इन्हें शाहजहाँ के दरबार में ले आया। शाहजहाँ ने इन्हें क्षमा कर दिया। शाहजहाँ जब खानजहाँ लोदी और निजामुल्मुल्क पर आक्रमण करने के उद्देश्य से दक्षिण की ओर गया तब यह भी दक्षिण के सूबेदार आज़म खाँ के साथ नियुक्त हुए। तत्पश्चात् ये चंदावल में नियुक्त हुए। दक्षिण प्रांत पूर्णत: विजित होने पर कुछ दिनों के लिये अपने देश चले गए। देश पहुँचने पर इन्होंने चौरागढ़ दुर्ग पर आक्रमण कर उसे जीत लिया। जब जहांगीर को यह सूचना मिली तो उसने एक आदेश जुझारसिंह के लिये जारी किया कि विजित प्रांत और कोष की संपत्ति का बहुत बड़ा भाग बादशाह को सौंप दे। किंतु वह टाल गए और अपने पुत्र को भी, जो दक्षिण में था, बुलवा लिया। शाहजहाँ ने उन्हें दंडित करने के लिये सेनाएँ भेजीं। वह अपने पुत्र के साथ सारा सामान लिये इधर से उधर भागते फिरते रहे। इस बीच इनका बहुत सा बहुमूल्य सामान इनसे छिनता गया। किंतु अपने पुत्र विक्रमाजीत सिंह के साथ ये जंगलों में छिपे रहे। सन् १६४४ ईo में देवगढ़ के गोंड़ों ने इन दोनों को मार डाला। खानेदौराँ ने दोनों के सर कटवाकर बादशाह के पास भिजवा दिए। चौरागढ़ के कोष से प्राप्त १ करोड़ रुपया भी दरबार में भेज दिया गया। .

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गोस्वामी हरिकृष्ण शास्त्री

सन 1904 ईस्वी में महापुरा (जयपुर) में जन्मे गोस्वामी हरिकृष्ण शास्त्री साहित्य, न्याय-शास्त्र और वेदांत दर्शन के जाने माने अध्येता विद्वान, तंत्र-विद्या के ज्ञाता, संस्कृत गद्य और पद्य के जाने-माने लेखक और आशुकवि थे। इनके पिता का नाम गोपीकृष्ण गोस्वामी और माता का नाम ऐनादेवी था। इनका विवाह मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ में ओरछा राजगुरुओं के परिवार में हुआ। कवि शिरोमणि भट्ट मथुरानाथ शास्त्री के साले गोस्वामी हरिकृष्ण शास्त्री तैलंग ब्राह्मणों के आत्रेय गोत्र में कृष्ण-यजुर्वेद के तैत्तरीय आपस्तम्ब में मूलपुरुष श्रीव्येंकटेश अणणम्मा और शिवानन्द गोस्वामी के वंशज थे। .

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ओरछा किला

ओरछा किला भारत के मध्य प्रदेश राज्य के ओरछा नामक स्थान पर बना एक किला है। इसका निर्माण सोलहवीं सदी में राजा रुद्र प्रताप सिंह ने शुरू करवाया था। .

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कुलपहाड़

कुलपहाड़ भारत देश के राज्य उत्तर प्रदेश के महोबा जिले का एक शहर है। यह बुन्देलखण्ड क्षेत्र का एक एतिहासिक नगर है। ११ फरवरी १९९५ से पूर्व यह जनपद हमीरपुर का हिस्सा था। कुलपहाड़ उत्तर प्रदेश का विशालतम उपजनपद है। कुलपहाड़ खजुराहो एवम अन्य एतिहासिक नगरों चरखारी, महोबा, झांसी, कालिंजर, ओरछा, अजयगढ़ से अपनी नजदीकी के कारण जाना जाता है। इस शहर में चंदेल कालीन मानव निर्मित कई मंदिर, भवन एवं जलाशय हैं। .

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केशव

केशव का स्वचित्रण (१५७० ई) केशव या केशवदास (जन्म (अनुमानत) 1555 विक्रमी और मृत्यु (अनुमानत) 1618 विक्रमी) हिन्दी साहित्य के रीतिकाल की कवि-त्रयी के एक प्रमुख स्तंभ हैं। वे संस्कृत काव्यशास्त्र का सम्यक् परिचय कराने वाले हिंदी के प्राचीन आचार्य और कवि हैं। इनका जन्म सनाढ्य ब्राह्मण कुल में हुआ था। इनके पिता का नाम काशीराम था जो ओड़छानरेश मधुकरशाह के विशेष स्नेहभाजन थे। मधुकरशाह के पुत्र महाराज इन्द्रजीत सिंह इनके मुख्य आश्रयदाता थे। वे केशव को अपना गुरु मानते थे। रसिकप्रिया के अनुसार केशव ओड़छा राज्यातर्गत तुंगारराय के निकट बेतवा नदी के किनारे स्थित ओड़छा नगर में रहते थे। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

चतुरभुज मन्दिर, ओरछा, ओड़छा, ओर्छा (रियासत)

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