लोगो
यूनियनपीडिया
संचार
Google Play पर पाएं
नई! अपने एंड्रॉयड डिवाइस पर डाउनलोड यूनियनपीडिया!
डाउनलोड
ब्राउज़र की तुलना में तेजी से पहुँच!
 

एकजीववाद

सूची एकजीववाद

एकजीववाद सिद्धांत के अनुसार वेदांत में एक ही जीव की स्थिति मानी जाती है। अविद्या एक है, अत: अविद्या से आवृत्त जीव भी एक होगा। इस वाद के कई रूप शंकर के परवर्ती अद्वैत वेदांत में मिलते हैं। कुछ लोगों के अनुसार एक ही जीव एक ही शरीर में रहता है। अन्य शरीर स्वप्नदृष्ट शरीरों की तरह चेतनाशून्य हैं। दूसरे लोग ब्रह्म के प्रतिबिंब रूप में हिरण्यगर्भ की कल्पना करते हैं। अन्य जीव हिरण्यगर्भ के प्रतिबिंब मात्र हैं। भौतिक शरीरों में असत्य जीव की स्थिति होती है। वास्तविक शरीर हिरण्यगर्भ है। अन्य व्याख्या के अनुसार नाना शरीरों में रहनेवाला एक ही जीव है। जीव में वैयक्तिकता का बोध शरीर की भिन्नता के कारण होता है। इस सिद्धांत पर यह आक्षेप किया जाता है कि यदि जीव एक है तो एक जीव का मोक्ष होने पर सभी जीवों का मोक्ष होना चाहिए। एक के सुख दु:ख का ज्ञान सभी को होना चाहिए। किंतु जैसे जलपात्र के मालिन होने या नष्ट होने से उसमें पड़नेवाला सूर्य का प्रतिबिंब अप्रभावित रहता है उसी प्रकार जीव पर दूसरे शरीरों का प्रभाव नहीं होता। .

1 संबंध: अप्पय दीक्षित

अप्पय दीक्षित

अप्पय दीक्षित (जन्म लगभग 1550 ई.) वेदांत दर्शन के विद्वान्‌। इनके पौत्र नीलकंठ दीक्षित के अनुसार ये 72 वर्ष जीवित रहे थे। 1626 में शैवों और वैष्णवों का झगड़ा निपटाने ये पांड्य देश गए बताए जाते हैं। सुप्रसिद्ध वैयाकरण भट्टोजि दीक्षित इनके शिष्य थे। इनके करीब 400 ग्रंथों का उल्लेख मिलता है। शंकरानुसारी अद्वैत वेदान्त का प्रतिपादन करने के अलावा इन्होंने ब्रह्मसूत्र के शैव भाष्य पर भी शिव की मणिदीपिका नामक शैव संप्रदायानुसारी टीका लिखी। अद्वैतवादी होते हुए भी शैवमत की ओर इनका विशेष झुकाव था। .

नई!!: एकजीववाद और अप्पय दीक्षित · और देखें »

निवर्तमानआने वाली
अरे! अब हम फेसबुक पर हैं! »