सामग्री की तालिका
298 संबंधों: चयापचय के रोग, ऊर्जा भण्डारण, ऊर्जा संरक्षण, ऊर्जा संरक्षण का नियम, ऊर्जा स्वतंत्रता, ऊर्जा विज्ञान, ऊर्जा का रूपान्तरण, ऊर्जा के परिमाण की कोटि, ऊर्जा अर्थशास्त्र, ऊष्मा विनिमायक, ऊष्मारसायन, ऊष्मागतिक तापक्रम, ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया, चिरसम्मत भौतिकी, चिरसम्मत यांत्रिकी, चक्र, चक्रीय अर्थव्यवस्था, चुम्बकीय ऊर्जा, चुंबकत्व, चूल्हा, चीन-पाक आर्थिक गलियारा, टाटा समूह, ट्रान्सड्यूसर, टेरी - ऊर्जा और संसाधन संस्थान, एनरॉन, एनरॉन घोटाला, एन्ट्रॉपी, एबीबी एसिया ब्राउन बॉवेरी, एंटीमैटर, एक्स किरण नलिका, ऐतिहासिक भूविज्ञान, तन्त्र, तरंग शक्ति, तरंगरोध, तापीय न्यूट्रॉन रिऐक्टर, त्वरक-चालित उपक्रांतिक रिएक्टर, तेजस्विता, दिल्ली मुंबई औद्योगिक गलियारा परियोजना, दक्षता, दक्षिण-दक्षिण सहयोग, द्रव्यमान-ऊर्जा समतुल्यता, द्विघात इंजन, धनुष, ध्वनि, नदी घाटी परियोजनाएँ, नाभिकीय ऊर्जा, नाभिकीय पनडुब्बी, नाभिकीय संलयन, नाभिकीय विस्फोट, नाभिकीय विस्फोट के परिणाम, ... सूचकांक विस्तार (248 अधिक) »
चयापचय के रोग
चयापचयन या उपापचयन (metabolism) जीवन का प्रधान लक्षण तथा क्रिया है। प्रत्येक जीवित पदार्थ में प्रत्येक क्षण उपापचयन घटना घटती रहती है। 'चय' का अर्थ है एकत्र करना और 'अपचय' का अर्थ व्यय करना, बाँटना या बिखेरना है। चय क्रिया से ऊर्जा की उत्पत्ति और संग्रह होता है। इस ऊर्जा का पेशियों की क्रिया के, अथवा शारीरिक ताप के, रूप में व्यय होना अपचय है। जो कुछ आहार हम करते हैं - प्रोटीन, कारबोहाइड्रेट, वसा- उस सबका अत्यंत सूक्ष्म रूप में पाचन होकर शरीर की वस्तु को, जिसमें ऊर्जा एकत्र रहती है, फिर से बनाना चय है। ये परिवर्तन अनेक गूढ़ रासायनिक क्रियाओं के फल होते हैं, जिनके लिये ऑक्सीजन आवश्यक होता है। रक्त फुफ्फुसों में वायु से ऑक्सीजन लेकर प्रत्येक ऊतक तथा शरीर की कोशिका को पहुँचाता है। इन्हीं क्रियाओं से जहाँ एक ओर एक वस्तु बनती है वहाँ दूसरी ओर दूसरी वस्तु का भंजन होकर ऐसे अंतिम पदार्थ बन जाते हैं जिनका शरीर से फुफ्फुस, वृक्क, आंत्र तथा चर्म द्वारा त्याग होता है। प्रोटीन के पाचन से अंतिम पदार्थ ऐमिनो अम्ल बनते हैं, जिनके पुनर्विन्यास से शरीर में उपस्थित प्रोटीन बनता है। कुछ ऐमिनो अम्लां का भंजन भी होता है, जिससे यूरिया और यूरिक अम्ल बनकर मूत्र द्वारा शरीर से निकल जाते हैं। कार्बोहाइड्रेट के पाचन से ग्लूकोज़ बनकर पेशियों में काम आता है और अंत को जल और कार्बन डाइआक्साइड के रूप में मूत्र, स्वेद तथा श्वास द्वारा बाहर निकल जाता है। ग्लूकोज़ ग्लाइकोजन के रूप में यकृत में एकत्र भी हो जाता है। ग्लूकोज़ ग्लाइकोजन के रूप में यकृत में एकत्र भी हो जाता है। वसा के कण शरीर में विस्तृत जालक-अंत: कला-तंत्र (Reticulo endothelial system) में एकत्र रहते हैं तथा विभाजित होकर जल और कार्बन डाइआक्सइड के रूप में शरीर से पृथक् होते हैं। जल, खनिज लवण, एंजाइम (enzyme) तथा हारमोन उन सब गूढ़ रासयनिक प्रक्रियाओं के ठीक ठीक संचालन में विशेष सहायक होते हैं जिनके ये परिवर्तन परिणाम हैं। .
देखें ऊर्जा और चयापचय के रोग
ऊर्जा भण्डारण
बाँध बनाकर वर्षा-जल को ऊंचे स्थान पर ही रोक लिया जाता है।इस जल की स्थितिज ऊर्जा को गतिज ऊर्जा में और फिर विद्युत ऊर्जा में बदलकर सूदूर स्थानों पर प्रेषित कर दिया जाता है। किसी प्रकार की ऊर्जा को भविष्य में उपयोग करने के उद्देश्य से संचित करना ऊर्जा भण्डारण (Energy storage) कहलाता है। ऊर्जा को संचित करने वाली युक्तियों को ऊर्जा संचायक (accumulator) कहते हैं। ऊर्जा विविध रूपों में रह सकती है, जैसे विकिरण, रासायनिक ऊर्जा, गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा, वैद्युत स्थितिज ऊर्जा, वैद्युत ऊर्जा, ऊष्मीय ऊर्जा (अधिक ताप पर किसी वस्तु को रखना), गुप्त ऊष्मा तथा गतिज ऊर्जा। कुछ प्रकार की ऊर्जाओं को भण्डारित करना अपेक्षाकृत सरल तथा कम खर्चीला कार्य है जबकि अन्य को भण्डारित करना अपेक्षाकृत कठिन। इसलिये ऊर्जा भण्डारण के लिये ऊर्जा को उस रूप में बदल लिया जाता है जिसमें भण्डारित करना आसान हो और जिससे आसानी से दूसरे रूप में ऊर्जा को परिवर्तित किया जा सके। भारी मात्रा में ऊर्जा के भण्डारण के लिये पम्पित जल (pumped hydro) सबसे उपयुक्त है। इसी लिये विश्व की सम्पूर्ण संचित ऊर्जा का ९९% ऊर्जा इसी रूप में संचित की जाती है। कुछ प्रकार की ऊर्जा भण्डारण कम समय के लिये ही सम्भव होता है जबकि कुछ प्रकार के ऊर्जा भण्डारण उसकी अपेक्षा बहुत अधिक समय के लिये भी किया जा सकता है। .
देखें ऊर्जा और ऊर्जा भण्डारण
ऊर्जा संरक्षण
किसी काम को करने के लिए ऐसी विधि या प्रक्रम का पालन करना कि वह काम पूरा होने में कम ऊर्जा लगे, इसे ही ऊर्जा संरक्षण करना कहते हैं। उदाहरण के लिए आप यदि कार से हर दिन आना जाना कर रहे हैं और यदि आप उसके स्थान पर साइकल का उपयोग करें तो उससे कार में लगने वाले ईंधन की बचत होगी और आपने उस ऊर्जा का उपयोग न कर उसका संरक्षण किया। .
देखें ऊर्जा और ऊर्जा संरक्षण
ऊर्जा संरक्षण का नियम
उर्जा बचाने या उर्जा संरक्षण (Energy conservation) के उपायों आदि के लिये देखें - उर्जा संरक्षण ---- उर्जा संरक्षण का नियम (law of conservation of energy) भौतिकी का एक प्रयोगाधारित नियम (empirical law) है। इसके अनुसार उष्मागतिकी का प्रथम नियम भी वास्तव में उर्जा संरक्षण के नियम का एक परिवर्तित रूप है। .
देखें ऊर्जा और ऊर्जा संरक्षण का नियम
ऊर्जा स्वतंत्रता
ऊर्जा स्वतन्त्रता के प्रायः दो अर्थ होते हैं-.
देखें ऊर्जा और ऊर्जा स्वतंत्रता
ऊर्जा विज्ञान
उर्जा के प्रवाह एवं भण्डारण का वैज्ञानिक अध्ययन उर्जा विज्ञान (Energetics) कहलाता है। सर्वसामान्य रूप में उर्जा विज्ञान उन सिद्धान्तों को समझने की कोशिश करता है जो रूपान्तरण के समय उर्जा के उपयोगी एवं अनुपयोगी प्रवाह एवं भण्डारण की ठीक-ठीक व्याख्या करते हैं। चूंकि उर्जा का प्रवाह किसी भी पैमाने पर सम्भव है (क्वान्टम से लेकर जैवमण्डल या ब्रह्माण्ड तक) - उर्जाविज्ञान एक बहुत ही विस्तृत क्षेत्र वाली विधा है। उदाहरण के लिये इसमें उष्मागतिकी, रसायन विज्ञान, जैववैज्ञानिक उर्जा विज्ञान, जैवरसायन आदि समाहित हैं। .
देखें ऊर्जा और ऊर्जा विज्ञान
ऊर्जा का रूपान्तरण
ऊर्जा के रूपान्तरण में तीन ऊर्जा: इन्पुट उर्जा, आउटपुट ऊर्जा एवं नष्ट ऊर्जा (ऊर्जा क्षति) किसी संकाय (सिस्टम) की कार्य करने की क्षमता को उर्जा कहते हैं। किसी संकाय पर काम करके या उसके द्वारा काम कराकर ही उसकी उर्जा को बदला जा सकता है क्योंकि उर्जा वह राशि है जो संरक्षित (कंजर्व्ड) होती है। उर्जा तरह-तरह के रूपों में पायी जाती है और भिन्न-भिन्न प्रकार की उर्जा का परस्पर परिवर्तन किया जा सकता है। किसी प्रकार की उर्जा कहीं उपयोगी है तो किसी प्रकार की कहीं और। उदाहरण के लिये कोयले में संचित रासायनिक उर्जा को जलाकर उससे उष्मीय उर्जा प्राप्त की जा सकती है। इस उष्मा से पानी को उबालकर वाष्प बनाकर उससे वाष्प टरबाइन चलाकर इसे यांत्रिक उर्जा में बदला जा सकता है। इस टरबाइन से कोई विद्युत जनित्र चलाकर इस यांत्रिक उर्जा को विद्युत उर्जा में बदला जा सकता है। इस विद्युत उर्जा से प्रकाश बल्ब जलाकर प्रकाश उर्जा प्राप्त की जा सकती है। .
देखें ऊर्जा और ऊर्जा का रूपान्तरण
ऊर्जा के परिमाण की कोटि
इस सूची में विभिन्न प्रणालियों में निहित ऊर्जा (जूल में) को परिमाण की कोटि के क्रम में व्यवस्थित किया गया है। .
देखें ऊर्जा और ऊर्जा के परिमाण की कोटि
ऊर्जा अर्थशास्त्र
ऊर्जा अर्थशास्त्र (Energy economics) एक विस्तृत वैज्ञानिक क्षेत्र है जिसमें समाज में ऊर्जा की आपूर्ति व उपयोग से संबंधित विषयों का उध्ययन किया जाता है। .
देखें ऊर्जा और ऊर्जा अर्थशास्त्र
ऊष्मा विनिमायक
नलिकाकार ताप विनिमायक. ऊष्मा विनिमायक (हीट इक्सचेंजर) एक माध्यम से दूसरे माध्यम में प्रभावी ऊष्मा अंतरण के लिए बनाया गया एक उपकरण है। माध्यम एक ठोस दीवार से अलग हो सकता है, ताकि वे कभी आपस में ना मिलें, या वे सीधे संपर्क में हो सकें.
देखें ऊर्जा और ऊष्मा विनिमायक
ऊष्मारसायन
संसार का प्रथम हिम-कैलोरीमीटर (ice-calorimeter) उष्मागतिकी एवं भौतिक रसायन में उष्मारसायन (thermochemistry) वह विद्या है जो किसी रासायनिक अभिक्रिया में उत्पन्न या शोषित की गयी उर्जा का अध्ययन करती है। उष्मारसायन में प्राय: उर्जा के शोषण या उत्सर्जन के परिणामस्वरूप होने वाले भौतिक परिवर्तन (जैसे गलन, क्वथन, फेज परिवर्तन (phase transition) आदि) का भी अध्ययन शामिल है। इसके साथ-साथ उष्मा धारिता, ज्वलन की उष्मा, निर्माण की उष्मा (heat of formation), इन्थाल्पी एवं मुक्त उर्जा (free energy) की गणना भी की जाती है। .
देखें ऊर्जा और ऊष्मारसायन
ऊष्मागतिक तापक्रम
ऊष्मगतिक तापक्रम (Thermodynamic temperature) या 'परम ताप' (absolute temperature)' तापमान का विशुद्ध माप है। यह ऊष्मगतिकी के मुख्य प्राचलों (पैरामीटर) में से एक है। ऊष्मागतिक तापक्रम ऊष्मागतिकी के द्वितीय नियम द्वारा परिभाषित है जिसमें सिद्धान्त रूप में न्यूनतम सम्भव ताप को 'शून्य बिन्दु' माना जाता है। इस ताप को 'परम शून्य' (absolute zero) भी कहते हैं। इस ताप पर पदार्थ के कण न्यूनतम गति की स्थिति में होते हैं तथा इससे कम ठण्डे नहीं हो सकते। क्वाण्टम यांत्रिकी की भाषा में, परम ताप पर पदार्थ अपनी निम्नतम अवस्था (ground state) में होता है जो इसकी न्यूनतम ऊर्जा की अवस्था है। इस कारण ही ऊष्मागतिक तापक्रम को 'परम ताप' भी कहा जाता है। एट्मॉस्फेयर दबाव में दर्शित है। इन सामान्य तापमान पर स्थित परमणुओं की एक औसत गति निश्चित होती है (यहां दो ट्रिलियन गुणा कम करी गयी है)। किसी दिये गये समय पर हीलियम परमाणु औसत से कहीं अधिक तेज गति पर हो सकता है, वहीं कोई दूसरा एकदम निष्क्रीय भी हो सकता है। गति दिखाने हेतु पाँच परमाणु लाल दर्शित हैं। .
देखें ऊर्जा और ऊष्मागतिक तापक्रम
ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया
किसी ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया का ऊर्जा-प्रोफाइल वह रासायनिक अभिक्रिया उष्माक्षेपी (exothermic reaction) कहलाती है जिसमें उष्मा के रूप में उर्जा प्राप्त होती है। इसके विपरीत रासायनिक अभिक्रिया उष्माशोषी कहलाती है। रासायनिक अभिक्रिया के रूप में व्यक्त करने पर - उदाहरण के लिए, हाइड्रोजन का जलना एक ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया है। .
देखें ऊर्जा और ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया
चिरसम्मत भौतिकी
आधुनिक भौतिकी के चार प्रमुख क्षेत्र चिरसम्मत भौतिकी (क्लासिकल फिजिक्स) भौतिक विज्ञान की वह शाखा है जिसमें द्रव्य और ऊर्जा दो अलग अवधारणाएं हैं। प्रारम्भिक रूप से यह न्यूटन के गति के नियम व मैक्सवेल के विद्युतचुम्बकीय विकिरण सिद्धान्त पर आधारित है। चिरसम्मत भौतिकी को सामान्यतः विभिन्न क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है। इनमें यांत्रिकी (इसमें पदार्थ की गति तथा उस पर आरोपित बलों का अध्ययन किया जाता है।), गतिकी, स्थैतिकी, प्रकाशिकी, उष्मागतिकी (ऊर्जा और उष्मा का अध्ययन) और ध्वनिकी शामिल हैं तथा इसी प्रकार विद्युत व चुम्बकत्व के परिसर में दृष्टिगोचर अध्ययन। द्रव्यमान संरक्षण का नियम, ऊर्जा संरक्षण का नियम और संवेग संरक्षण का नियम भी चिरसम्मत भौतिकी में महत्वपूर्ण हैं। इसके अनुसार द्रव्यमान और ऊर्जा को ना ही तो बनाया जा सकता है और ना ही नष्ट किया जा सकता और केवल बाह्य असन्तुलित बल आरोपित करके ही संवेग को परिवर्तित किया जा सकता है। .
देखें ऊर्जा और चिरसम्मत भौतिकी
चिरसम्मत यांत्रिकी
भौतिक विज्ञान में चिरसम्मत यांत्रिकी, यांत्रिकी के दो विशाल क्षेत्रों में से एक है, जो बलों के प्रभाव में वस्तुओं की गति से सम्बंधित भौतिकी के नियमो के समुच्चय की विवेचना करता है। वस्तुओं की गति का अध्ययन बहुत प्राचीन है, जो चिरसम्मत यांत्रिकी को विज्ञान, अभियांत्रिकी और प्रौद्योगिकी सबसे प्राचीन विषयों में से एक और विशाल विषय बनाता है। .
देखें ऊर्जा और चिरसम्मत यांत्रिकी
चक्र
चक्र, (संस्कृत: चक्रम्); पालि: हक्क चक्का) एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ 'पहिया' या 'घूमना' है।परमहंस स्वामी महेश्वराआनंदा, मानव में छिपी बिजली, इबेरा वरलैग, पृष्ठ 54.
देखें ऊर्जा और चक्र
चक्रीय अर्थव्यवस्था
चक्रीय अर्थव्यवस्था (circular economy) एक पुनर्सर्जक व्यवस्था है जिसमें निविष्ट संसाधन, बर्बादी, उत्सर्जन, ऊर्जा लीकेज आदि को न्यूनतम कर दिया जाता है। ऐसा पदार्थ तथा ऊर्जा के लूपों को धीमा करके, बन्द करके या संकरा करके किया जाता है। चक्रीय अर्थव्यवस्था, रैखिक अर्थव्यवस्था से उल्टी व्यवस्था है जिसमें लो, बनाओ, डिस्पोज करो मॉडल ('take, make, dispose' model) चलता है। श्रेणी:आर्थिक विचारधारा श्रेणी:पर्यावरणीय अर्थव्यवस्था.
देखें ऊर्जा और चक्रीय अर्थव्यवस्था
चुम्बकीय ऊर्जा
भौतिकी में, चुम्बकीय ऊर्जा, चुम्बकीय क्षेत्र से सम्बन्धित ऊर्जा है। B चुम्बकीय क्षेत्र में रखे हुए m चुम्बकीय आघूर्ण वाले चुम्बक की स्थितिज ऊर्जा निम्नलिखित है- किसी प्रेरकत्व L में धारा I प्रवाहित हो रही हो तो उसमें संग्रहित ऊर्जा: ऊर्जा को चुम्बकीय क्षेत्र के रूप में भी भण्डारित किया जाता है। \mu पारगम्यता वाले किसी क्षेत्र के ईकाई आयतन में संगृहित चुम्बकीय ऊर्जा: जहाँ B सम्बन्धित बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता (टेसला में) है। .
देखें ऊर्जा और चुम्बकीय ऊर्जा
चुंबकत्व
चुंबकत्व प्रायोगिक चुंबकीय क्षेत्र के परमाणु या उप-परमाणु स्तर पर प्रतिक्रिया करने वाले तत्वों का गुण है। उदाहरण के लिए, चुंबकत्व का ज्ञात रूप है जो की लौह चुंबकत्व है, जहां कुछ लौह-चुंबकीय तत्व स्वयं अपना निरंतर चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करते रहते हैं। हालांकि, सभी तत्व चुंबकीय क्षेत्र की उपस्थिति से कम या अधिक स्तर तक प्रभावित होते हैं। कुछ चुंबकीय क्षेत्र (अणुचंबकत्व) के प्रति आकर्षित होते हैं; अन्य चुंबकीय क्षेत्र (प्रति-चुंबकत्व) से विकर्षित होते हैं; जब कि दूसरों का प्रायोगिक चुंबकीय क्षेत्र के साथ और अधिक जटिल संबंध होता है। पदार्थ है कि चुंबकीय क्षेत्रों द्वारा नगण्य रूप से प्रभावित पदार्थ ग़ैर-चुंबकीय पदार्थ के रूप में जाने जाते हैं। इनमें शामिल हैं तांबा, एल्यूमिनियम, गैस और प्लास्टिक.
देखें ऊर्जा और चुंबकत्व
चूल्हा
इण्डोनेशिया का पारम्परिक चूल्हा। भारत में भी कुछ इसी प्रकार के चूल्हें ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी उपयोग किये जाते हैं। गैस चूल्हा चूल्हा उष्मा का वह स्रोत है जिससे प्राप्त उष्मा का प्रयोग भोजन पकाने में किया जाता है। चूल्हे कई प्रकार के होते हैं जैसे, मिट्टी का चूल्हा, अंगीठी या सिगड़ी, गैस का चूल्हा और सूक्ष्मतरंग चूल्हा, सौर चूल्हा आदि और इनमे प्रयोग होने वाले ऊर्जा के स्रोत भी भिन्न हो सकते हैं, जैसे लकड़ी, गोबर के उपले, कोयला, द्रवित पेट्रोलियम गैस सौर ऊर्जा और बिजली आदि। OffeneHerdstelleMainfränkischesMuseumWürzburgL1050585 (3).jpg|जर्मनी के एक संग्रहालय में रखा हुआ खुला चूल्हा Noć muzeja 2015, Čakovec - stari štednjak iz 19.st.jpg|right|thumb|300px|बुडापेस्ट में निर्मित १९वीं शताब्दी का एक चूल्हा। इस चूल्हे को २०१५ में क्रोशिया में प्रदर्शित किया गया था। .
देखें ऊर्जा और चूल्हा
चीन-पाक आर्थिक गलियारा
नक़्शा चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा या उर्दू में पाकिस्तान-चीन इक़तिसादी राहदारी (चीनी: 中国 - 巴基斯坦 经济 走廊) एक बहुत बड़ी वाणिज्यिक परियोजना है, जिसका उद्देश्य दक्षिण-पश्चिमी पाकिस्तान से चीन के उत्तर-पश्चिमी स्वायत्त क्षेत्र शिंजियांग तक ग्वादर बंदरगाह, रेलवे और हाइवे के माध्यम से तेल और गैस की कम समय में वितरण करना है। आर्थिक गलियारा चीन-पाक संबंधों में केंद्रीय महत्व रखता है, गलियारा ग्वादर से काशगर तक लगभग 2442 किलोमीटर लंबा है। यह योजना को सम्पूर्ण होने में काफी समय लगेगा। इस योजना पर 46 बिलियन डॉलर लागत का अनुमान किया गया है। यह गलियारा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर, गिलगित-बाल्टिस्तान और बलूचिस्तान होते हुए जायेगा। विविध सूचनाओं के अनुसार ग्वादर बंदरगाह को इस तरह से विकसित किया जा रहा है, ताकि वह 19 मिलियन टन कच्चे तेल को चीन तक सीधे भेजने में सक्षम होगा। .
देखें ऊर्जा और चीन-पाक आर्थिक गलियारा
टाटा समूह
टाटा समूह एक निजी व्यवसायिक समूह है जिसका मुख्यालय मुंबई में स्थित है। वर्तमान में इसके अध्यक्ष रतन टाटा हैं टाटा समूह के चेयरमेन रतन टाटा ने 28 दिसम्बर 2012 को सायरस मिस्त्री को टाटा समूह का उत्तराधिकारी नियुक्त किया। रतन टाटा पिछले 50 सालों से टाटा समूह से जुड़े हैं वे 21 सालों तक टाटा समूह के अध्यक्ष रहे। रतन टाटा ने जे आर डी टाटा के बाद 1991 में कार्यभार संभाला। टाटा परिवार का एक सदस्य ही हमेशा टाटा समूह का अध्यक्ष रहा है। इसका कार्यक्षेत्र अनेक व्यवसायों व व्यवसाय से सम्बंधित सेवाओं के क्षेत्र में फैला हुआ है - जैसे इंजिनियरंग, सूचना प्रौद्योगिकी, संचार, वाहन, रासायनिक उद्योग, ऊर्जा, साफ्टवेयर, होटल, इस्पात एवं उपभोक्ता सामग्री। टाटा समूह की सफलता को इसके आंकडे बखूबी बयां करते हैं। 2005-06 में इसकी कुल आय $967229 मिलियन थी। ये समस्त भारत कि GDP के 2.8 % के बराबर है। 2004 के आंकड़ों के अनुसार टाटा समूह में करीब 2 लाख 46 हज़ार लोग काम करते हैं। market capitalization का आंकड़ा $57.6 बिलियन को छूता है। टाटा समूह कि कुल 96 कम्पनियां 7 अलग अलग व्यवसायिक क्षेत्रों में सक्रिय हैं। इन 96 में से केवल 28 publicly listed कम्पनियाँ हैं। टाटा समूह ६ महाद्वीपों के 40 से भी अधिक देशों में सक्रिय है। टाटा समूह दुनिया के 140 से भी अधिक देशों को उत्पाद व सेवाएँ निर्यात करता है। इसके करीब 65.8% भाग पर टाटा के Charitable Trust का मालिकाना हक है। टिस्को (TISCO), जिसे अब टाटा स्टील (Tata steel) के नाम से जाना जाता है, की स्थापना 1907 में भारत के पहले लोहा व इस्पात कारखाने के तौर पर हुई थी। इसकी स्थापना जमशेदपुर में हुई थी जिसे लोग टाटा नगर भी पुकारते हैं। इस्पात (steel) व लोहे का असल उत्पादन 1912 में शुरू हुआ। यह दुनिया में सबसे किफायती दरों पर इस्पात का निर्माण करता है। इसका मुख्य कारण है कि समूह की ही एक अन्य कंपनी इसे कच्चा माल, जैसे कोयला और लोहा आदि, उपलब्ध कराती है। 1910 में टाटा जलविद्युत शक्ति आपूर्ति कम्पनी (Tata Hydro-Electric Power Supply Company) की स्थापना हुई। 1917 में टाटा आयल मिल्स (Tata Oil Mill) की स्थापना के साथ ही समूह ने घरेलू वस्तुयों के क्षेत्र में कदम रखा और साबुन, कपडे धोने के साबुन, डिटर्जेंट्स (detergents), खाना पकाने के तेल आदि का निर्माण शुरू किया। 1932 में टाटा एयरलाइन्स (Tata Airlines) की शुरुआत हुई। टाटा केमिकल्स (Tata Chemicals) का आगमन 1939 में हुआ। टेल्को (TELCO), जिसे अब टाटा मोटर्स (TataMotors) के नाम से जाना जाता है, ने 1945 में रेल इंजनों और अन्य मशीनी उत्पादों का निर्माण शुरू किया। जनवरी 2007 का महीना टाटा समूह के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में दर्ज किया जाएगा। टाटा स्टील ने यूनाइटेड किंगडम (UK) में स्थित कोरस समूह (Corus Group) की सफल बोली लगा कर उसे हासिल किया। कोरस समूह दुनिया की सबसे बड़ी लोहा व इस्पात निर्माण कंपनी है। बोली के अप्रत्याशित 9 दौर चले जिसके अंत में टाटा समूह ने कोरस का 100 प्रति शत हिस्सा 608 पाउंड प्रति शेयर (नकद) के हिसाब से कुल 12.
देखें ऊर्जा और टाटा समूह
ट्रान्सड्यूसर
मापन में ट्रांसड्यूसर (transducer) उन युक्तियों (devices) को कहते हैं जो एक प्रकार की उर्जा को दूसरे प्रकार की उर्जा में बदलती हैं; अथवा एक प्रकार की भौतिक राशि के संगत दूसरे प्रकार की भौतिक राशि प्रदान करते हैं। इनका उपयोग विभिन्न भौतिक राशियों को मापना, उन्हे प्रदर्शित करना (display) या उनको स्वतः नियंत्रित (automatic control) करना होता है। परिवर्तक विद्युतीय, एलेक्ट्रानिक, विद्युत-यांत्रिक, विद्युतचुम्बकीय, प्रकाशीय (फोटॉनिक) या प्रकाश-विद्युतीय आदि होते हैं। उदाहरण के लिये एक दाब परिवर्तक किसी स्थान पर मौजूद दाब के अनुसार एक विद्युत-विभव प्रदान कर सकता है। इलेक्ट्रानिक संचार प्रणाली में ट्रांसड्यूसर का का प्रयोग विभिन्न प्रकार के भौतिक संकेतों को विद्युत संकेत में बदलने के लिये, या विद्युत संकेतों को विभिन्न प्रकार के भौतिक संकेतों में बदलने के लिये, किया जाता है। उदाहरण के लिये इस चित्र में दो ट्रांसड्यूसर प्रयुक्त हुए हैं - (१) '''माइक्रोफोन''': जो ध्वनि संकेतों को विद्युत संकेत में बदलता है तथा (२) '''स्पीकर''' - जो विद्युत संकेतों को ध्वनि संकेत में बदल देता है। .
देखें ऊर्जा और ट्रान्सड्यूसर
टेरी - ऊर्जा और संसाधन संस्थान
ऊर्जा एवं संसाधन संस्थान, जो आमतौर पर टेरी के नाम से जाना जाता है (पूर्व में टाटा ऊर्जा अनुसंधान संस्थान), १९७४ में स्थापित, ऊर्जा, पर्यावरण और टिकाऊ विकास के क्षेत्रों में अनुसंधान गतिविधियों पर केंद्रित नई दिल्ली में आधारित शोध संस्थान है। .
देखें ऊर्जा और टेरी - ऊर्जा और संसाधन संस्थान
एनरॉन
एनरॉन कॉर्पोरेशन (पूर्व में NYSE टिकर प्रतीक ENE) एक अमेरिकी ऊर्जा कम्पनी थी जो मूलतः टेक्सास के डाउनटाउन ह्यूस्टन में एनरॉन कॉम्प्लेक्स में स्थित थी। 2001 में अपने दिवालिया होने से पहले एनरॉन में लगभग 22,000 कर्मचारी कार्यरत थे और यह विश्व की एक अग्रणी विद्युत्, प्राकृतिक गैस, संचार और लुगदी और काग़ज़ की कंपनियां थीं, वर्ष 2000 में जिसका दावाकृत राजस्व लगभग $101 बिलियन था। फॉर्च्यून ने एनरॉन को लगातार छह वर्षों के लिए "अमेरिका की सर्वाधिक नवोन्मेषी कंपनी" का नाम दिया। 2001 के अंत में यह खुलासा हुआ कि इसकी सूचित वित्तीय स्थिति मूल रूप से संस्थागत, व्यवस्थित और रचनात्मक रूप से नियोजित लेखांकन धोखाधड़ी के कारण निरंतर बनी हुई थी, जो "एनरॉन घोटाले" के रूप में विख्यात है। तब से एनरॉन स्वैच्छिक निगमित धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार की लोकप्रिय प्रतीक बन गई। इस घोटाले ने संयुक्त राज्य के कई अन्य निगमों के लेखांकन प्रणालियों पर सवाल खड़े किए और 2002 के सारबेंस-ऑक्स्ले अधिनियम की स्थापना का एक मुख्य कारण बना। इस घोटाले ने व्यापक व्यापार जगत को भी प्रभावित किया जिसके परिणाम स्वरूप आर्थर एंडरसन लेखांकन फर्म का विघटन हुआ। 2001 के उत्तरार्ध में एनरॉन ने न्यूयॉर्क के सदर्न डिस्ट्रिक्ट में दिवालियापन संरक्षण मुकदमा दायर करवाया और अपने दिवालियेपन के वकीलों के रूप में वेइल, गॉट्शल एंड मैन्जेस को चुना। अमेरिका के इतिहास में एक सबसे बड़ा और सबसे जटिल दिवालियापन मुकदमा चलने के बाद, वह पुनर्गठन की एक न्यायालय-अनुमोदित योजना के अनुसार, नवंबर 2004 में दिवालियापन से उभरी.
देखें ऊर्जा और एनरॉन
एनरॉन घोटाला
अक्टूबर 2001 में रहस्योद्घाटन होने वाले एनरॉन घोटाले के परिणामस्वरूप अंततः टेक्सास के हॉस्टन की एनरॉन कॉर्पोरेशन (Enron Corporation) नामक एक अमेरिकी ऊर्जा कंपनी को दिवालियापन का और दुनिया के पांच सबसे बड़े लेखा-परीक्षण एवं लेखाशास्त्र साझेदारी प्रतिष्ठानों में से एक, आर्थर एंडरसन (Arthur Andersen) को विघटन का मुंह देखना पड़ा.
देखें ऊर्जा और एनरॉन घोटाला
एन्ट्रॉपी
एन्ट्रॉपी। ऊष्मागतिकी में, एन्ट्रॉपी एक भौतिक राशि है जो सीधे मापी नहीं जाती बल्कि गणना (कैल्कुलेशन) द्वारा इसका मान निकाला जाता है। इसका प्रतीक S है। किसी निकाय की कुल ऊर्जा का वह भाग जिसे उपयोग में नहीं लाया जा सकता (दूसरे शब्दों में, कार्य में नहीं बदला जा सकता), उस निकाय की एन्ट्रॉपी कहलाती है। एण्ट्रॉपी की गणितीय परिभाषा नीचे दी गयी है। जर्मनी के गणितज्ञ एवं भौतिकशास्त्री रुडॉल्फ क्लासिअस ने १८५० के दशक में एन्ट्रॉपी की संकल्पना दी और उसका यह नाम दिया। १८७७ में लुडविग बोल्ट्जमान ने एन्ट्रॉपी की प्रायिकता पर आधारित परिभाषा दी। .
देखें ऊर्जा और एन्ट्रॉपी
एबीबी एसिया ब्राउन बॉवेरी
ए॰बी॰बी, पूरा नाम ए॰एस॰ई॰ए ब्राउन बॉवेरी, मुख्यतः ऊर्जा और स्वचालन के क्षेत्रों में काम करने वाला एक स्विस-स्वीडिश बहुराष्ट्रीय निगम है। इसका मुख्यालय ज़्यूरिख़, स्विटज़रलैंड में है। एबीबी दुनिया की सबसे बड़ी इंजीनियरिंग कंपनियों तथा सबसे बड़ी सामूहिक कंपनियों में से एक है। एबीबी विश्व के लगभग 100 देशों में कार्यरत है और इसमें तकरीबन 117,000 कर्मचारियों काम करते हैं। एबीबी ज़्यूरिक के सिक्स स्विस एक्सचेंज में, स्वीडेन के स्टॉकहोम स्टॉक एक्सचेंज में, तथा अमेरिका के न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध है। .
देखें ऊर्जा और एबीबी एसिया ब्राउन बॉवेरी
एंटीमैटर
एंटीमैटर क्लाउड कण भौतिकी में, प्रतिद्रव्य या एंटीमैटर (antimatter) वस्तुतः पदार्थ के एंटीपार्टिकल के सिद्धांत का विस्तार है। दूसरे शब्दों में, जिस प्रकार पदार्थ कणों का बना होता है उसी प्रकार प्रतिद्रव्य प्रतिकणों से मिलकर बना होता है। उदाहरण के लिये, एक एंटीइलेक्ट्रॉन (एक पॉज़ीट्रॉन, जो एक घनात्मक आवेश सहित एक इलेक्ट्रॉन होता है) एवं एक एंटीप्रोटोन (ऋणात्मक आवेश सहित एक प्रोटोन) मिल कर एक एंटीहाईड्रोजन परमाणु ठीक उसी प्रकार बना सकते हैं, जिस प्रकार एक इलेक्ट्रॉन एवं एक प्रोटोन मिल कर हाईड्रोजन परमाणु बनाते हैं। साथ ही पदार्थ एवं एंटीमैटर के संगम का परिणाम दोनों का विनाश (एनिहिलेशन) होता है, ठीक वैसे ही जैसे एंटीपार्टिकल एवं कण का संगम होता है। जिसके परिणामस्वरूप उच्च-ऊर्जा फोटोन (गामा किरण) या अन्य पार्टिकल-एंटीपार्टिकल युगल बनते हैं। वैसे विज्ञान कथाओं और साइंस फिक्शन चलचित्रों में कई बार एंटीमैटर का नाम सुना जाता रहा है। एंटीहाइड्रोजन परमाणु का त्रिआयामी चित्र एंटीमैटर केवल एक काल्पनिक तत्व नहीं, बल्कि असली तत्व होता है। इसकी खोज बीसवीं शताब्दी के पूर्वाद्ध में हुई थी। तब से यह आज तक वैज्ञानिकों के लिए कौतूहल का विषय बना हुआ है। जिस तरह सभी भौतिक वस्तुएं मैटर यानी पदार्थ से बनती हैं और स्वयं मैटर में प्रोटोन, इलेक्ट्रॉन और न्यूट्रॉन होते हैं, उसी तरह एंटीमैटर में एंटीप्रोटोन, पोसिट्रॉन्स और एंटीन्यूट्रॉन होते हैं।। नवभारत टाइम्स। १२ नवम्बर २००८। हिन्दुस्तान लाइव। ५ मार्च २०१० एंटीमैटर इन सभी सूक्ष्म तत्वों को दिया गया एक नाम है। सभी पार्टिकल और एंटीपार्टिकल्स का आकार एक समान किन्तु आवेश भिन्न होते हैं, जैसे कि एक इलैक्ट्रॉन ऋणावेशी होता है जबकि पॉजिट्रॉन घनावेशी चार्ज होता है। जब मैटर और एंटीमैटर एक दूसरे के संपर्क में आते हैं तो दोनों नष्ट हो जाते हैं। ब्रह्मांड की उत्पत्ति का सिद्धांत महाविस्फोट (बिग बैंग) ऐसी ही टकराहट का परिणाम था। हालांकि, आज आसपास के ब्रह्मांड में ये नहीं मिलते हैं लेकिन वैज्ञानिकों के अनुसार ब्रह्मांड के आरंभ के लिए उत्तरदायी बिग बैंग के एकदम बाद हर जगह मैटर और एंटीमैटर बिखरा हुआ था। विरोधी कण आपस में टकराए और भारी मात्रा में ऊर्जा गामा किरणों के रूप में निकली। इस टक्कर में अधिकांश पदार्थ नष्ट हो गया और बहुत थोड़ी मात्रा में मैटर ही बचा है निकटवर्ती ब्रह्मांड में। इस क्षेत्र में ५० करोड़ प्रकाश वर्ष दूर तक स्थित तारे और आकाशगंगा शामिल हैं। वैज्ञानिकों के अनुमान के अनुसार सुदूर ब्रह्मांड में एंटीमैटर मिलने की संभावना है। अंतरराष्ट्रीय स्तर के खगोलशास्त्रियों के एक समूह ने यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) के गामा-किरण वेधशाला से मिले चार साल के आंकड़ों के अध्ययन के बाद बताया है कि आकाश गंगा के मध्य में दिखने वाले बादल असल में गामा किरणें हैं, जो एंटीमैटर के पोजिट्रान और इलेक्ट्रान से टकराने पर निकलती हैं। पोजिट्रान और इलेक्ट्रान के बीच टक्कर से लगभग ५११ हजार इलेक्ट्रान वोल्ट ऊर्जा उत्सर्जित होती है। इन रहस्यमयी बादलों की आकृति आकाशगंगा के केंद्र से परे, पूरी तरह गोल नहीं है। इसके गोलाई वाले मध्य क्षेत्र का दूसरा सिरा अनियमित आकृति के साथ करीब दोगुना विस्तार लिए हुए हैं।। याहू जागरण। १४ जनवरी २००९ एंटीमैटर की खोज में रत वैज्ञानिकों का मानना है कि ब्लैक होल द्वारा तारों को दो हिस्सों में चीरने की घटना में एंटीमैटर अवश्य उत्पन्न होता होगा। इसके अलावा वे लार्ज हैडरन कोलाइडर जैसे उच्च-ऊर्जा कण-त्वरकों द्वारा एंटी पार्टिकल उत्पन्न करने का प्रयास भी कर रहे हैं। पार्टिकल एवं एंटीपार्टिकल पृथ्वी पर एंटीमैटर की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन वैज्ञानिकों ने प्रयोगशालाओं में बहुत थोड़ी मात्रा में एंटीमैटर का निर्माण किया है। प्राकृतिक रूप में एंटीमैटर पृथ्वी पर अंतरिक्ष तरंगों के पृथ्वी के वातावरण में आ जाने पर अस्तित्व में आता है या फिर रेडियोधर्मी पदार्थ के ब्रेकडाउन से अस्तित्व में आता है। शीघ्र नष्ट हो जाने के कारण यह पृथ्वी पर अस्तित्व में नहीं आता, लेकिन बाह्य अंतरिक्ष में यह बड़ी मात्र में उपलब्ध है जिसे अत्याधुनिक यंत्रों की सहायता से देखा जा सकता है। एंटीमैटर नवीकृत ईंधन के रूप में बहुत उपयोगी होता है। लेकिन इसे बनाने की प्रक्रिया फिल्हाल इसके ईंधन के तौर पर अंतत: होने वाले प्रयोग से कहीं अधिक महंगी पड़ती है। इसके अलावा आयुर्विज्ञान में भी यह कैंसर का पेट स्कैन (पोजिस्ट्रान एमिशन टोमोग्राफी) के द्वारा पता लगाने में भी इसका प्रयोग होता है। साथ ही कई रेडिएशन तकनीकों में भी इसका प्रयोग प्रयोग होता है। नासा के मुताबिक, एंटीमैटर धरती का सबसे महंगा मैटेरियल है। 1 मिलिग्राम एंटीमैटर बनाने में 250 लाख डॉलर रुपये तक लग जाते हैं। एंटीमैटर का इस्तेमाल अंतरिक्ष में दूसरे ग्रहों पर जाने वाले विमानों में ईधन की तरह किया जा सकता है। 1 ग्राम एंटीमैटर की कीमत 312500 अरब रुपये (3125 खरब रुपये) है। .
देखें ऊर्जा और एंटीमैटर
एक्स किरण नलिका
सन् १९१७ के आसपास बनी कूलिज की एक्सरे-नलिका; गरम कैथोड बाएँ तरफ है तथा एनोड दाँयी तरफ है। एक्सरे, नीचे की तरफ निकलती है। उस निर्वात नलिका को एक्स किरण नलिका या 'एक्सरे ट्यूब' (X-ray tube) कहते हैं जो एक्स किरण उत्पन्न करती है। एक्सरे नलिकाओं का विकास क्रुक्स की नलिका से हुआ जिससे सर्वप्रथमेक्सरे खोजा गया था। इन नलिकाओं से प्राप्त एक्स किरणों के अनेक उपयोग हैं, जैसे- रेडियोग्राफी, कैट (CAT) स्कैनर, हवाई-अड्डों के सामान-स्कैनर, एक्सरे-क्रिस्टलोग्राफी आदि। .
देखें ऊर्जा और एक्स किरण नलिका
ऐतिहासिक भूविज्ञान
ऐतिहासिक भूविज्ञान (Historical geology) के अन्तर्गत भूविज्ञान के सिद्धान्तों का उपयोग करके पृथ्वी के इतिहास की पुनर्रचना की जाती है और उसे समझने की कोशिश की जाती है। ऐतिहासिक भूविज्ञान उन प्रक्रियाओं पर अपना ध्यान केंद्रित करता है जो पृथ्वी की सतह तथा उपसतह को बदलते हैं। यह स्तरिकी (stratigraphy), संरचना-भूविज्ञान तथा पैलिओंटोलॉजी (paleontology) आदि का उपयोग करके इन घटनाओं के क्रम को निर्धारित करता है। ऐतिहासिक भूविज्ञान विभिन्न भूवैज्ञानिक कालों में विकसित पादपों एवं जन्तुओं पर भी ध्यान केंद्रित करता है। बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में रेडियोसक्रियता एवं अन्य रेडियोमापी कालनिर्धारण तकनीकों के विकास से ऐतिहासिक भूविज्ञान को बहुत सहायता मिली। किसी स्थान के भूवैज्ञानिक इतिहास की अच्छी जानकारी से आर्थिक भूविज्ञान के क्षेत्र में बहुत मदद मिलती है। आर्थिक भूविज्ञान, ऊर्जा एवं कच्चे माल की खोज एवं निष्कर्षण का विज्ञान है। इसी प्रकार, ऐतिहासिक भूविज्ञान की गहरी समझ के द्वारा पर्यावरणीय भूविज्ञान (Environmental geology) में बहुत मदद मिलती है, जैसे भूकम्प एवं ज्वालामुखी आदि के बारे में जानकारी। .
देखें ऊर्जा और ऐतिहासिक भूविज्ञान
तन्त्र
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी से सम्बन्धित तंत्र या प्रणाली या सिस्टम के बारे में तंत्र (सिस्टम) देखें। ---- तन्त्र कलाएं (ऊपर से, दक्षिणावर्त): हिन्दू तांत्रिक देवता, बौद्ध तान्त्रिक देवता, जैन तान्त्रिक चित्र, कुण्डलिनी चक्र, एक यंत्र एवं ११वीं शताब्दी का सैछो (तेन्दाई तंत्र परम्परा का संस्थापक तन्त्र, परम्परा से जुड़े हुए आगम ग्रन्थ हैं। तन्त्र शब्द के अर्थ बहुत विस्तृत है। तन्त्र-परम्परा एक हिन्दू एवं बौद्ध परम्परा तो है ही, जैन धर्म, सिख धर्म, तिब्बत की बोन परम्परा, दाओ-परम्परा तथा जापान की शिन्तो परम्परा में पायी जाती है। भारतीय परम्परा में किसी भी व्यवस्थित ग्रन्थ, सिद्धान्त, विधि, उपकरण, तकनीक या कार्यप्रणाली को भी तन्त्र कहते हैं। हिन्दू परम्परा में तन्त्र मुख्यतः शाक्त सम्प्रदाय से जुड़ा हुआ है, उसके बाद शैव सम्प्रदाय से, और कुछ सीमा तक वैष्णव परम्परा से भी। शैव परम्परा में तन्त्र ग्रन्थों के वक्ता साधारणतयः शिवजी होते हैं। बौद्ध धर्म का वज्रयान सम्प्रदाय अपने तन्त्र-सम्बन्धी विचारों, कर्मकाण्डों और साहित्य के लिये प्रसिद्ध है। तन्त्र का शाब्दिक उद्भव इस प्रकार माना जाता है - “तनोति त्रायति तन्त्र”। जिससे अभिप्राय है – तनना, विस्तार, फैलाव इस प्रकार इससे त्राण होना तन्त्र है। हिन्दू, बौद्ध तथा जैन दर्शनों में तन्त्र परम्परायें मिलती हैं। यहाँ पर तन्त्र साधना से अभिप्राय "गुह्य या गूढ़ साधनाओं" से किया जाता रहा है। तन्त्रों को वेदों के काल के बाद की रचना माना जाता है जिसका विकास प्रथम सहस्राब्दी के मध्य के आसपास हुआ। साहित्यक रूप में जिस प्रकार पुराण ग्रन्थ मध्ययुग की दार्शनिक-धार्मिक रचनायें माने जाते हैं उसी प्रकार तन्त्रों में प्राचीन-अख्यान, कथानक आदि का समावेश होता है। अपनी विषयवस्तु की दृष्टि से ये धर्म, दर्शन, सृष्टिरचना शास्त्र, प्राचीन विज्ञान आदि के इनसाक्लोपीडिया भी कहे जा सकते हैं। यूरोपीय विद्वानों ने अपने उपनिवीशवादी लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए तन्त्र को 'गूढ़ साधना' (esoteric practice) या 'साम्प्रदायिक कर्मकाण्ड' बताकर भटकाने की कोशिश की है। वैसे तो तन्त्र ग्रन्थों की संख्या हजारों में है, किन्तु मुख्य-मुख्य तन्त्र 64 कहे गये हैं। तन्त्र का प्रभाव विश्व स्तर पर है। इसका प्रमाण हिन्दू, बौद्ध, जैन, तिब्बती आदि धर्मों की तन्त्र-साधना के ग्रन्थ हैं। भारत में प्राचीन काल से ही बंगाल, बिहार और राजस्थान तन्त्र के गढ़ रहे हैं। .
देखें ऊर्जा और तन्त्र
तरंग शक्ति
पेलामिस का तरंग ऊर्जा परिवर्तक पवन तरंगों (हवा के झोंकों) में ऊर्जा होती है जिसे तरंग शक्ति (Wave power) कहते हैं। इसी ऊर्जा को किसी प्रकार कार्य करने के लिये उपयोग में लाया जा सकता है या ऊर्जा के किसी दूसरे रूप में (जैसे, विद्युत में) बदला जा सकता है। जिस युक्ति की सहायता से तरंग शक्ति को कार्य या दूसरी ऊर्जा में बदला जाता है उसे 'तरंग ऊर्जा परिवर्तक' (wave energy converter (WEC)) कहते हैं। .
देखें ऊर्जा और तरंग शक्ति
तरंगरोध
डोलोसी में समुद्र के किनारे बना तरंगरोध समुद्री लहरों में निहित ऊर्जा में ह्रास के लिये, तट से लगी हुई जो रुकावटें बनाई जाती हैं, उन्हें 'पन-ऊर्जा-तोड़' कहा जा सकता है। सरलता के लिये उन्हें तरंगरोध या पनतोड़ (Break-water) कहते हैं। खुले हुए समुद्रतट पर स्थित बंदरगाहों की सुरक्षा पनतोड़ों द्वारा प्राप्त की जाती है। समुद्री लहरों में ऊर्जा बहुत बड़ी मात्रा में होती है ओर तूफानों में भारी से भारी तथा बड़े से बड़े पुश्ते भी विस्थापित हो जाते हैं, इसलिये बंदरगाहों की सुरक्षा के लिये पनतोड़ों के निर्माण पर बहुत व्यय किया जाता है। .
देखें ऊर्जा और तरंगरोध
तापीय न्यूट्रॉन रिऐक्टर
तापीय न्यूट्रॉन रिऐक्टर (thermal neutron reactor) उन रिऐक्टरों को कहते हैं जिनकी विखण्डन शृंखला अभिक्रिया के पीछे तापीय या मन्द न्यूट्रानों का हाथ होता है। यहाँ 'तापीय' का अर्थ 'गरम' नहीं है बल्कि इसका अर्थ यह है कि वह न्यूट्रान आसपास के माध्यम (नाभिकीय ईंधन, मन्दक, संरचनात्मक अवयव आदि आदि) से तापीय साम्य में है। नाभिकीय विखण्डन के तुरन्त बाद जो न्यूट्रान पैदा होते हैं उनकी ऊर्जा बहुत अधिक होती हैं और उन्हें 'द्रुत न्यूट्रॉन' कहते हैं। ये न्यूट्रान अपने आसपास (के माध्यम (मुख्यतः मन्दक) से अप्रत्यास्थ संघट्त करके अपनी ऊर्जा का क्षय कर देते हैं और तब इन्हें 'तापीय न्यूट्रॉन' कहा जाता है। .
देखें ऊर्जा और तापीय न्यूट्रॉन रिऐक्टर
त्वरक-चालित उपक्रांतिक रिएक्टर
त्वरक-चालित उपक्रांतिक रिएक्टर (accelerator-driven subcritical reactor) नाभिकीय भट्ठियों को कहते हैं जिनमें उपयोग आने वाले कुल न्यूट्रानों की एक अच्छी-खासी मात्रा (लगभग ५%) किसी उच्च ऊर्जा वाले प्रोटॉन त्वरक से आती है। ऐसे रिएक्टर, थोरियम को नाभिकीय ईंधन के रूप में प्रयोग करेंगे जो यूरेनियम और प्लूटोनियम की अपेक्षा अधिक मात्रा में उपलब्ध है। .
देखें ऊर्जा और त्वरक-चालित उपक्रांतिक रिएक्टर
तेजस्विता
खगोलशास्त्र में तेजस्विता (luminosity) किसी तारे, गैलेक्सी या अन्य खगोलीय वस्तु द्वारा किसी समय की ईकाई में प्रसारित होने वाली ऊर्जा की मात्रा होती है। यह चमक (brightness) से सम्बन्धित है जो वस्तु की वर्णक्रम के किसी भाग में मापी गई तेजस्विता को कहते हैं। अन्तरराष्ट्रीय मात्रक प्रणाली में तेजस्विता को जूल प्रति सकैंड या वॉट में मापा जाता है। अक्सर इसे हमारे सूरज की तेजस्विता की तुलना में मापा जाता है, जिसका कुल ऊर्जा उत्पादन है। सौर ज्योति (सौर तेजस्विता) का चिन्ह L⊙ है। .
देखें ऊर्जा और तेजस्विता
दिल्ली मुंबई औद्योगिक गलियारा परियोजना
दिल्ली मुंबई औद्योगिक गलियारा (The Delhi-Mumbai Industrial Corridor) भारत सरकार द्वारा प्रायोजित औद्योगिक-विकास की विशाल परियोजना है। एक विशाल औद्योगिक क्षेत्र स्थापित करने की यह एक महत्वाकांक्षी योजना है जो छः राज्यों को समेटे हुए हैं। इस परियोजना के पूरा होने पर अधोसंरचना एवं उद्योग का अत्यधिक प्रसार हो जायेगा तथा रेल, सड़क, बंदरगाह एवं हवाई यातायात की व्यापक वृद्धि हो जायेगी। इसके तहत भारत एवं जापान ने परियोजना विकास निधि स्थापित करने का निर्णय लिया है जो आरम्भ में १००० करोड़ रूपये की होगी। दोनो सरकारें समान मात्रा में योगदान करेंगी। .
देखें ऊर्जा और दिल्ली मुंबई औद्योगिक गलियारा परियोजना
दक्षता
दक्षता (Efficiency) का सामान्य अर्थ यह है कि किसी कार्य या उद्देश्य को पूरा करने में लगाया गया समय या श्रम या ऊर्जा कितनी अच्छी तरह काम में आती है। 'दक्षता' का विभिन्न क्षेत्रों एवं विषयों में उपयोग किया जाता है और विभिन्न सन्दर्भों में इसके अर्थ में भी काफी भिन्नता पायी जाती है। दक्षता एक मापने योग्य राशि है। ऊर्जा के रूपान्तरण की स्थिति में आउटपुट ऊर्जा और इनपुट उर्जा के अनुपात को दक्षता कहते हैं।;उदाहरण कोई ट्रांसफॉर्मर १००० किलोवाट विद्युत ऊर्जा लेकर अपने आउटपुट में जुड़े लोड को ९८० किलोवाट विद्युत ऊर्जा देता है, तो इसकी दक्षता श्रेणी:ऊर्जा श्रेणी:अर्थशास्त्र श्रेणी:ऊष्मा अंतरण श्रेणी:विचार की गुणवत्ताएँ.
देखें ऊर्जा और दक्षता
दक्षिण-दक्षिण सहयोग
नई अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की स्थापना के लिए विकसित और विकासशील देशों में उत्तर-दक्षिण संवाद की शुरुआत हुई। परन्तु विकसित राष्ट्रों के अपेक्षापूर्ण व अड़ियल व्यवहार के कारण उत्तर-दक्षिण सहयोग की बार सिरे नहीं चढ़ सकी। विकाशशील देशों पर ऋणों का भार लगातार बढ़ने लगा। उन्हें प्राप्त होने वाली अधिकतर विदेशी सहायता का हिस्सा ब्याज के भुगतान में ही खर्च होने लगा और अंतरराष्ट्रीय आर्थिक सम्बन्ध अधिक भेदभावपूर्ण व जटिल होते गए। विकासशील देश यह महसूस करने लगे कि उत्तर दक्षिण सहयोग की बात करना उनके हितों को कोई फायदा नहीं पहुंचा सकता। इसलिए उन्हें दक्षिण-दक्षिण सहयोग (South-South Co-operation) की ही बात करनी चाहिए। इसलिए विकासशील देशों ने दक्षिण के गरीब व अल्प-विकसित देशों में ही सहयोग के आधार तलाशने शुरू कर दिए। इसी से दक्षिण-दक्षिण संवाद या सहयोग का नारा बुलन्द हुआ। .
देखें ऊर्जा और दक्षिण-दक्षिण सहयोग
द्रव्यमान-ऊर्जा समतुल्यता
भौतिकी में, द्रव्यमान-ऊर्जा समतुल्यता (mass–energy equivalence) के सिद्धान्त के अनुसार यदि किसी वस्तु में कुछ द्रव्यमान है तो उसमें उसके तुल्य एक ऊर्जा होती है और यदि उसमें कुछ ऊर्जा है तो उसके तुल्य एक द्रव्यमान होता है। द्रव्यमान और ऊर्जा, अलबर्ट आइंस्टीण के निम्नलिखित सूत्र से एक दूसरे से सम्बन्धित हैं- E.
देखें ऊर्जा और द्रव्यमान-ऊर्जा समतुल्यता
द्विघात इंजन
द्विघात इंजन का चलित (एनिमेटेड) स्वरूप द्विघात इंजन (two-stroke engine) एक प्रकार का अन्तर्दहन इंजन है जो क्रैंकशाफ्ट के एक ही चक्कर (अर्थात, पिस्टन के दो चक्कर) में ही उर्जा-परिवर्तन का पूरा चक्र (thermodynamic cycle) पूरा कर लेता है। अर्थात दो-घाती इंजन अपने ऊष्मागतिकी चक्र को पिस्टन के दो चक्रों में पूरा करता है। चतुर्घात इंजन में उर्जा-परिवर्तन का चक्र पिस्टन के चार चक्करों में पूरा होता है। .
देखें ऊर्जा और द्विघात इंजन
धनुष
thumbधनुष की सहायता से बाण चलाना निस्संदेह बहुत प्राचीन कला है, जिसका चलन आज भी है। आहार और आत्मरक्षा के लिए संसार के सभी भागों में अन्य हथियारों की अपेक्षा धनुष-बाण का प्रयोग सर्वाधिक और व्यापक हुआ है। आदिकाल से लेकर 16वीं शताब्दी तक धनुषबाण मनुष्य के निरंतर सहायक रहे हैं; यहाँ तक कि जब अग्न्यस्त्रों ने इनकी उपयोगिता समाप्त कर दी, तब भी खेल, शौक और मनोरंजन के रूप में इनका प्रयोग चलता रहा है। .
देखें ऊर्जा और धनुष
ध्वनि
ड्रम की झिल्ली में कंपन पैदा होता होता जो जो हवा के सम्पर्क में आकर ध्वनि तरंगें पैदा करती है मानव एवं अन्य जन्तु ध्वनि को कैसे सुनते हैं? -- ('''नीला''': ध्वनि तरंग, '''लाल''': कान का पर्दा, '''पीला''': कान की वह मेकेनिज्म जो ध्वनि को संकेतों में बदल देती है। '''हरा''': श्रवण तंत्रिकाएँ, '''नीललोहित''' (पर्पल): ध्वनि संकेत का आवृति स्पेक्ट्रम, '''नारंगी''': तंत्रिका में गया संकेत) ध्वनि (Sound) एक प्रकार का कम्पन या विक्षोभ है जो किसी ठोस, द्रव या गैस से होकर संचारित होती है। किन्तु मुख्य रूप से उन कम्पनों को ही ध्वनि कहते हैं जो मानव के कान (Ear) से सुनायी पडती हैं। .
देखें ऊर्जा और ध्वनि
नदी घाटी परियोजनाएँ
नदियों की घाटियो पर बडे-बडे बाँध बनाकर ऊर्जा, सिंचाई, पर्यटन स्थलों की सुविधाएं प्राप्त की जातीं हैं। इसीलिए इन्हें बहूद्देशीय परियोजना कहते हैं। नदीघाटी योजना का प्राथमिक उद्देश्य होता है किसी नदीघाटी के अंतर्गत जल और थल का मानवहितार्थ पूर्ण उपयोग। .
देखें ऊर्जा और नदी घाटी परियोजनाएँ
नाभिकीय ऊर्जा
इकाटा परमाणु ऊर्जा संयंत्र, एक दबावयुक्त जल रिएक्टर जो समुद्र के साथ माध्यमिक शीतलक विनिमय द्वारा ठंडा करता है। सुसक्युहाना वाष्प विद्युत् केंद्र, एक उबलता जल रिएक्टर.
देखें ऊर्जा और नाभिकीय ऊर्जा
नाभिकीय पनडुब्बी
नाभिकीय पनडुब्बी (nuclear submarine) वह पनडुब्बी है जिसको चलाने के लिए आवश्यक ऊर्जा उस पर लगे एक नाभिकीय रिएक्टर से मिलती है। परम्परागत पनडुब्बियों (जैसे डीजल-विद्युत चालित) की तुलना में नाभिकिय पनडुब्बियाँ कई मामलों में श्रेष्ठ होतीं हैं। उदाहरण के लिए, नाभिकिय पनडुब्बियों को कार्य करने के लिए वायु की आवश्यकता नहीं होती, अतः इन्हें हवा लेने के लिए बार-बार सतह पर आने की भी आवश्यकता नहीं होती। .
देखें ऊर्जा और नाभिकीय पनडुब्बी
नाभिकीय संलयन
publisher.
देखें ऊर्जा और नाभिकीय संलयन
नाभिकीय विस्फोट
अनियंत्रित नाभिकीय अभिक्रिया के फलस्वरूप अत्यन्त कम समय में बहुत अधिक ऊर्जा निकलती है जिसे नाभिकीय विस्फोट (nuclear explosion) या 'परमाणु विस्फोट' कहते हैं। नाभिकीय अभिक्रिया के पीछे नाभिकीय विखण्डन, नाभिकीय संलयन या बहुचरण वाला प्रकम हो सकता है जिसमें इन दोनों प्रकार की अभिक्रियाओं का समिश्रण किया गया हो। .
देखें ऊर्जा और नाभिकीय विस्फोट
नाभिकीय विस्फोट के परिणाम
नाभिकीय विस्फोट के परिणाम उससे निकली कुल ऊर्जा की मात्रा पर निर्भर करती है। श्रेणी:नाभिकीय हथियार.
देखें ऊर्जा और नाभिकीय विस्फोट के परिणाम
नाभिकीय उर्जा
एक दाबित जल परमाणु रिएक्टर नियंत्रित नाभिकीय अभिक्रियाओं के परिणामस्वरूप प्राप्त उर्जा नाभिकीय उर्जा या परमाणु उर्जा कहलाती है। दो प्रकार की नाभिकीय अभिक्रियाओं से नाभिकीय उर्जा प्राप्त हो सकती है - नाभिकीय संलयन एवं नाभिकीय विखंडन। किन्तु वर्तमान समय में सभी वाणिज्यिक परमाणु-उर्जा इकाइयाँ नाभिकीय विखंडन पर ही आधारित हैं। सन् २००९ में विश्व की संपूर्ण विद्युत शक्ति का १३-१४% भाग नाभिकीय उर्जा से प्राप्त हुआ। .
देखें ऊर्जा और नाभिकीय उर्जा
निश्चर द्रव्यमान
द्रव्यमन की विशेषताए निश्चर द्रव्यमान, विराम द्रव्यमान, नैज द्रव्यमान, उपयुक्त द्रव्यमान या (परिबद्ध निकाय अथवा कण जो अपने संवेग केन्द्र निर्देश तंत्र में प्रक्षित किए जाते हैं कि स्थिति में) सामान्य द्रव्यमान, किसी वस्तु या वस्तुओं अथवा निकाय की कुल ऊर्जा और संवेग का गुणधर्म है जो सभी निर्देश तंत्रों में लोरेन्ट्स रूपांतरण के अधीन समान रहते हैं। .
देखें ऊर्जा और निश्चर द्रव्यमान
निष्क्रिय घटक
निष्क्रियता किसी इंजीनियरी प्रणाली का एक गुण है, जिसका प्रयोग सबसे अधिक इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरी और नियंत्रण प्रणालियों में किया जाता है। क्षेत्र के आधार पर एक निष्क्रिय घटक (passive compnent) वह है जो उर्जा का उपभोग तो करता है पर इसका उत्पादन नहीं करता, या यह वो घटक हैं जो शक्ति प्रवर्धन (power gain) मे अक्षम होते हैं। जो घटक निष्क्रिय नहीं होते, सक्रिय घटक (Active components) कहलाते हैं। पूरी तरह से निष्क्रिय घटकों से बना एक इलेक्ट्रॉनिक परिपथ, निष्क्रिय परिपथ कहलाता है (और इसके गुण एक निष्क्रिय घटक के समान ही होते हैं)।;निष्क्रिय घटक - प्रतिरोध, प्रेरकत्व, संधारित्र, डायोड आदि; सक्रिय घटक - ट्रांजिस्टर, मॉसफेट, टेट्रोड, पेन्टोड, आपरेशनल एम्प्लिफायर आदि .
देखें ऊर्जा और निष्क्रिय घटक
नवीकरणीय संसाधन
नवीकरणीय संसाधन अथवा नव्य संसाधन वे संसाधन हैं जिनके भण्डार में प्राकृतिक/पारिस्थितिक प्रक्रियाओं द्वारा पुनर्स्थापन (replenishment) होता रहता है। हालाँकि मानव द्वारा ऐसे संसाधनों का दोहन (उपयोग) अगर उनके पुनर्स्थापन की दर से अधिक तेजी से हो तो फिर ये नवीकरणीय संसाधन नहीं रह जाते और इनका क्षय होने लगता है। उपरोक्त परिभाषा के अनुसार ऐसे संसाधनों में ज्यादातर जैव संसाधन आते है जिनमें जैविक प्रक्रमों द्वारा पुनर्स्थापन होता रहता है। उदाहरण के लिये एक वन क्षेत्र से वनोपजों का मानव उपयोग वन को एक नवीकरणीय संसाधन बनाता है किन्तु यदि उन वनोपजों का इतनी तेजी से दोहन हो कि उनके पुनर्स्थापन की दर से अधिक हो जाए तो वन का क्षय होने लगेगा। सामान्यतया नवीकरणीय संसाधनों में नवीकरणीय उर्जा संसाधन भी शामिल किये जाते हैं जैसे सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, भूतापीय ऊर्जा इत्यादि। किन्तु सही अर्थों में ये ऊर्जा संसाधन अक्षय ऊर्जा संसाधन हैं न कि नवीकरणीय। .
देखें ऊर्जा और नवीकरणीय संसाधन
नोदक (पदार्थ)
नोदक (प्रोपेलेण्ट / propellant) वे रासायनिक पदार्थ हैं जो ऊर्जा या दाबित गैस पैदा करने के लिये प्रयुक्त होते हैं। नोदक से प्राप्त ऊर्जा या दाबित गैस का उपयोग किसी यान, प्रक्षेप्य, या अन्य वस्तु को आगे बढाने में होता है। पेट्रोल, जेट ईंधन, रॉकेट ईंधन और ऑक्सीकारक आदि सामान्य नोदक हैं। नोदकों के जलाने से अथवा इनका विघटन करने से नोदक गैस पैदा होती है। कुछ अन्य नोदक द्रव होते हैं जिनको तेजी से वाष्पीकृत करने से नोदन प्राप्त होता है। श्रेणी:रॉकेट.
देखें ऊर्जा और नोदक (पदार्थ)
पदार्थ
रसायन विज्ञान और भौतिक विज्ञान में पदार्थ (matter) उसे कहते हैं जो स्थान घेरता है व जिसमे द्रव्यमान (mass) होता है। पदार्थ और ऊर्जा दो अलग-अलग वस्तुएं हैं। विज्ञान के आरम्भिक विकास के दिनों में ऐसा माना जाता था कि पदार्थ न तो उत्पन्न किया जा सकता है, न नष्ट ही किया जा सकता है, अर्थात् पदार्थ अविनाशी है। इसे पदार्थ की अविनाशिता का नियम कहा जाता था। किन्तु अब यह स्थापित हो गया है कि पदार्थ और ऊर्जा का परस्पर परिवर्तन सम्भव है। यह परिवर्तन आइन्स्टीन के प्रसिद्ध समीकरण E.
देखें ऊर्जा और पदार्थ
पदार्थ (भारतीय दर्शन)
मनुष्य सर्वदा से ही विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक वस्तुओं द्वारा चारों तरफ से घिरा हुआ है। सृष्टि के आविर्भाव से ही वह स्वयं की अन्त:प्रेरणा से परिवर्तनों का अध्ययन करता रहा है- परिवर्तन जो गुण व्यवहार की रीति इत्यादि में आये हैं- जो प्राकृतिक विज्ञान के विकास का कारक बना। सम्भवत: इसी अन्त: प्रेरणा के कारण महर्षि कणाद ने 'वैशेषिक दर्शन' का आविर्भाव किया। महर्षि कणाद ने भौतिक राशियों (अमूर्त) को द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय के रूप में नामांकित किया है। यहाँ 'द्रव्य' के अन्तर्गत ठोस (पृथ्वी), द्रव (अप्), ऊर्जा (तेजस्), गैस (वायु), प्लाज्मा (आकाश), समय (काल) एवं मुख्यतया सदिश लम्बाई के सन्दर्भ में दिक्, 'आत्मा' और 'मन' सम्मिलित हैं। प्रकृत प्रसंग में वैशेषिक दर्शन का अधिकारपूर्वक कथन है कि उपर्युक्त द्रव्यों में प्रथम चार सृष्टि के प्रत्यक्ष कारक हैं, और आकाश, दिक् और काल, सनातन और सर्वव्याप्त हैं। वैशेषिक दर्शन 'आत्मा' और 'मन' को क्रमश: इन्द्रिय ज्ञान और अनुभव का कारक मानता है, अर्थात् 'आत्मा' प्रेक्षक है और 'मन' अनुभव प्राप्त करने का उसका उपकरण। इस हेतु पदार्थमय संसार की भौतिक राशियों की सीमा से बहिष्कृत रहने पर भी, वैशेषिक दर्शन द्वारा 'आत्मा' और 'मन' को भौतिक राशियों में सम्मिलित करना न्याय संगत प्रतीत होता है, क्योंकि ये तत्व प्रेक्षण और अनुभव के लिये नितान्त आवश्यक हैं। तथापि आधुनिक भौतिकी के अनुसार 'आत्मा' और 'मन' के व्यतिरिक्त, प्रस्तुत प्रबन्ध में 'पृथ्वी' से 'दिक्' पर्यन्त वैशेषिकों के प्रथम सात द्रव्यों की विवेचना करते हुए भौतिकी में उल्लिखित उनके प्रतिरूपों के साथ तुलनात्मक अघ्ययन किया जायेगा। .
देखें ऊर्जा और पदार्थ (भारतीय दर्शन)
परमाणु ऊर्जा के पर्यावरणीय प्रभाव
नाभिकीय ऊर्जा से जुडे क्रियाकलाप जो पर्यावरण को हानि पहुँचाते हैं- खनन, संवर्धन, विद्युत-जनन तथा भूगर्भीय निपटान (geological disposal)। पर्यावरण पर पडने वाले प्रभाव की दृष्टि से परमाणु ऊर्जा अन्य ऊर्जाओं से कुछ मामलों में अच्छी है और कुछ मामलों में खराब। नाभिकीय ऊर्जा में सबसे बडी बाधा नाभिकीय दुर्घटना की सम्भावना और उससे जुडे खतरे हैं। नाभिकीय रिएक्टरों से हरितगृह गैसों का उत्सर्जन बहुत कम होता है, जो इसके पक्ष में है। .
देखें ऊर्जा और परमाणु ऊर्जा के पर्यावरणीय प्रभाव
परमाणु परीक्षण
२७ मार्च, १९५४ को अमरीका द्वारा किये गये कैसल रोमियो नाभिकीय परीक्षण का चित्र "बेकर शॉट", संयुक्त राष्ट्र द्वारा किया गया ऑपरेशन क्रॉसरोड्स अभियान का एक भाग, १९४६ नाभिकीय अस्त्र परीक्षण (अंग्रेज़ी:Nuclear weapons tests) या परमाण परीक्षण उन प्रयोगों को कहते हैं जो डिजाइन एवं निर्मित किये गये नाभिकीय अस्त्रों के प्रभाविकता, उत्पादकता एवं विस्फोटक क्षमता की जाँच करने के लिये किये जाते हैं। परमाणु परीक्षणों से कई जानकारियाँ प्राप्त होतीं हैं; जैसे - ये नाभिकीय हथियार कैसा काम करते हैं; विभिन्न स्थितियों में ये किस प्रकार का परिणाम देते हैं; भवन एवं अन्य संरचनायें इन हथियारों के प्रयोग के बाद कैसा बर्ताव करतीं हं। सन् १९४५ के बाद बहुत से देशों ने परमाणु परीक्षण किये। इसके अलावा परमाणु परीक्षणों से वैज्ञानिक, तकनीकी एवं सैनिक शक्ति का प्रदर्शन करने की कोशिश भी की जाती है। .
देखें ऊर्जा और परमाणु परीक्षण
परमाणु बम
सन् १९४५ में जापान के नागासाकी पर गिराये बम से उत्पन्न कुकुरमुता के सदृश बादल - ये बादल बम के गिरने के स्थान से लगभग १८ किमी उपर तक उठे थे। नाभिकीय अस्त्र या परमाणु बम एक विस्फोटक युक्ति है जिसकी विध्वंसक शक्ति का आधार नाभिकीय अभिक्रिया होती है। यह नाभिकीय संलयन (Nuclear fusion) या नाभिकीय विखण्डन (nuclear fission) या इन दोनो प्रकार की नाभिकीय अभिक्रियों के सम्मिलन से बनाये जा सकते हैं। दोनो ही प्रकार की अभिक्रिया के परिणामस्वरूप थोड़े ही सामग्री से भारी मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न होती है। आज का एक हजार किलो से थोड़ा बड़ा नाभिकीय हथियार इतनी ऊर्जा उत्पन्न कर सकता है जितनी कई अरब किलो के परम्परागत विस्फोटकों से ही उत्पन्न हो सकती है। नाभिकीय हथियार महाविनाशकारी हथियार (weapons of mass destruction) कहे जाते हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध में सबसे अधिक शक्तिशाली विस्फोटक, जो प्रयुक्त हुआ था, उसका नाम 'ब्लॉकबस्टर' (blockbuster) था। इसके निर्माण में तब तक ज्ञात प्रबलतम विस्फोटक ट्राईनाइट्रोटोलुईन (TNT) का 11 टन प्रयुक्त हुआ था। इस विस्फोटक से 2000 गुना अधिक शक्तिशाली प्रथम परमाणु बम था जिसका विस्फोट टी.
देखें ऊर्जा और परमाणु बम
परमाणु कक्षक
पहले पांच परमाणु कक्षाओं का आकार क्वांटम यांत्रिकी में, एक परमाणु कक्षीय एक गणितीय समारोह में कहा कि या तो एक इलेक्ट्रॉन या एक परमाणु में इलेक्ट्रॉनों की एक जोड़ी की लहर की तरह व्यवहार का वर्णन करता है। इस समारोह में एक परमाणु के किसी भी इलेक्ट्रॉन पाने की संभावना की गणना करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता परमाणु के नाभिक के चारों ओर किसी भी विशिष्ट क्षेत्र में। अवधि, परमाणु कक्षीय, यह भी शारीरिक क्षेत्र या स्थान जहां इलेक्ट्रॉन, के रूप में कक्षीय की विशेष गणितीय रूप से परिभाषित उपस्थित होने के लिए गणना की जा सकती करने के लिए उल्लेख कर सकते हैं। एक परमाणु में प्रत्येक कक्षीय तीन क्वांटम संख्या n, ℓ, और मीटर के मूल्यों, जो क्रमशः इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा, कोणीय गति, और एक कोणीय गति वेक्टर घटक (चुंबकीय क्वांटम संख्या) के अनुरूप की एक अद्वितीय सेट की विशेषता है। इस तरह प्रत्येक कक्षीय दो इलेक्ट्रॉनों के साथ अपने स्वयं के स्पिन क्वांटम संख्या प्रत्येक की एक अधिकतम द्वारा कब्जा किया जा सकता है। परमाणु कक्षाओं परमाणु कक्षीय मॉडल (वैकल्पिक रूप से बादल इलेक्ट्रॉन या लहर यांत्रिकी मॉडल के रूप में जाना जाता है), इस मामले में इलेक्ट्रॉनों की उपसूक्ष्म व्यवहार विसशवलयिसिग के लिए एक आधुनिक ढांचे की बुनियादी इमारत ब्लॉकों हैं। इस मॉडल में एक बहु इलेक्ट्रॉन परमाणु के इलेक्ट्रॉन बादल (सन्निकटन में) का निर्माण किया जा रहा है एक इलेक्ट्रॉन विन्यास सरल हाइड्रोजन की तरह परमाणु कक्षाओं का एक उत्पाद है कि के रूप में देखा जा सकता है .
देखें ऊर्जा और परमाणु कक्षक
परासरण
संगणक के द्वारा परासरण क्रिया का प्रदर्शन कम सांद्रण वाले घोल से अधिक सान्द्रण वाले घोल की तरफ विलायक के अणुओं की गति के कारण बाद में विलयन का स्तर अलग-अलग हो जाता है। परासरण (Osmosis) दो भिन्न सान्द्रता वाले घोलों के बीच होनेवाली एक विशेष प्रकार की विसरण क्रिया है जो एक अर्धपारगम्य झिल्ली के द्वारा होती है। इसमें विलायक (घोलक) के अणु कम सान्द्रता वाले घोल से अधिक सान्द्रता वाले घोल का ओर गति करते हैं। यह एक भौतिक क्रिया है जिसमें घोलक के अणु बिना किसी बाह्य उर्जा के प्रयोग के अर्धपारगम्य झिल्ली से होकर गति करते हैं। विलेय (घुल्य) के अणु गति नहीं करते हैं क्योंकि वे दोनों घोलों के अलग करने वाली अर्धपारगम्य झिल्ली को पार नहीं कर पाते हैं। परासरण में उर्जा मुक्त होती है जिसके प्रयोग से पेड़-पौधों के बढते जड़ चट्टानों को भी तोड़ देती हैं। परासरण- वह क्रिया जिसके फलस्वरूप अर्धपरागम्य झिल्ली से होकर विलायक के अणु कम सांद्रता वाले घोल से अधिक सांद्रता की और जाते है परासरण क्रिया कहलाती है। .
देखें ऊर्जा और परासरण
परिवहन परिघटना
अभियान्त्रिकी, भौतिकी और रसायनिकी में परिवहन परिघटना (transport phenomena) किन्ही दो या दो से अधिक भौतिक तंत्रों के बीच में द्रव्यमान, ऊर्जा, आवेश, संवेग या कोणीय संवेग के आदान-प्रदान को कहते हैं। द्रव्यमान, ताप, ऊर्जा और संवेग के गणितीय विश्लेषण में बहुत-सी समानताएँ होती हैं जिनका परिवहन परिघटनाओं के अध्ययन में व्यवस्थित रूप से लाभ उठाया जाता है। .
देखें ऊर्जा और परिवहन परिघटना
पर्यावरण प्रौद्योगिकी
पर्यावरण प्रौद्योगिकी (ऍनवायरोटेक के रूप में संक्षेपित) या हरित प्रौद्योगिकी (ग्रीनटेक के रूप में संक्षेपित) या स्वच्छ प्रौद्योगिकी (क्लीनटेक के रूप में संक्षेपित) प्राकृतिक पर्यावरण और संसधानों के संरक्षण और मानव हस्तक्षेप के फलस्वरूप हुए नकारात्मक प्रभावों को रोकने हेतु पर्यावरणीय विज्ञान का एक अनुप्रयोग है। सतत विकास ही पर्यावरणीय प्रौद्योगिकी का सबसे महत्त्वपूर्ण भाग है। .
देखें ऊर्जा और पर्यावरण प्रौद्योगिकी
पल्स पोलियो प्रतिरक्षण अभियान
पल्स पोलियो प्रतिरक्षण अभियान भारत ने डब्ल्यूएचओ वैश्विक पोलियो उन्मूलन प्रयास के परिणाम स्वरूप 1995 में पल्स पोलियो टीकाकरण (पीपीआई) कार्यक्रम आरंभ किया ' इस कार्यक्रम के तहत 5 वर्ष से कम आयु के सभी बच्चों को पोलियो समाप्त होने तक हर वर्ष दिसंबर और जनवरी माह में ओरल पोलियो टीके (ओपीवी) की दो खुराकें दी जाती हैं' यह अभियान सफल सिद्ध हुआ है और भारत में पोलियो माइलिटिस की दर में काफी कमी आई है' पीपीआई की शुरुआत ओपीवी के तहत शत प्रतिशत कवरेज प्राप्त करने के उद्देश्य से की गई थी' इसका लक्ष्य उन्नत सामाजिक प्रेरण, उन क्षेत्रों में मॉप अप प्रचालनों की योजना बनाकर उन बच्चों तक पहुंचना है जहां पोलियो वायरस लगभग गायब हो चुका है और यहां जनता के बीच उच्च मनोबल बनाए रखना है' 2009 के दौरान हाल ही में भारत में विश्व के पोलियो के मामलों का उच्चतम भार (741) था, यहां तीन अन्य महामारियों से पीडित देशों की संख्या से अधिक मामले थे' यह टीका बच्चों तक पहुंचाने के असाधारण उपाय अपनाने से भारत में पश्चिम बंगाल राज्य की एक दो वर्षीय बालिका के अलावा कोई अन्य मामला नहीं देखा गया जिसे 13 जनवरी 2011 को लकवा हो गया था 'आज भारत ने पोलियो के खिलाफ अपने संघर्ष में एक महत्वपूर्ण पड़ाव प्राप्त किया है, चूंकि अब पोलियो का अन्य कोई केन्द्र नहीं है' भारत में 13 जनवरी 2011 के बाद से सीवेज के नमूनों में न तो वन्य पोलियो वायरस और न ही अन्य पोलियो वायरस का मामला दर्ज किया गया है 'इसकी असाधारण उपलब्धि लाखों टीका लगाने वालों, स्वयं सेवकों, सामाजिक प्रेरणादायी व्यक्तियों,अभिनेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं और धार्मिक नेताओं के साथ सरकार द्वारा लगाई गई ऊर्जा,समर्पण और कठोर प्रयास का परिणाम है ' पोलियो उन्मूलन के प्रयास देश में सर्वाधिक मान्यता प्राप्त ब्रांड हैं, जिसमें फिल्म उद्योग के चर्चित सितारे जनता को संदेश देते हैं 'ग्रामीण क्षेत्रों के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन का प्रयास एक वरदान सिद्ध हुआ है ' सरकार को तकनीकी और रसद संबंधी सहायता प्रदान करने के लिए 1997 में राष्ट्रीय पोलियो निगरानी परियोजना आरंभ की गई और अब यह राज्य सरकारों के साथ नजदीकी से कार्य करती है और देश में पोलियो उन्मूलन का लक्ष्य पूरा करने के लिए भागीदारी एजेंसियों की एक बड़ी श्रृंखला इसमें संलग्न है ' .
देखें ऊर्जा और पल्स पोलियो प्रतिरक्षण अभियान
पारिस्थितिक पदचिह्न
पारिस्थितिक पदचिह्न, पृथ्वी के पारिस्थितिक तंत्रों पर मानवीय माँग का एक मापक है। यह इंसान की मांग की तुलना, पृथ्वी की पारिस्थितिकी के पुनरुत्पादन करने की क्षमता से करता है। यह मानव आबादी द्वारा उपभोग किए जाने वाले संसाधनों के पुनरुत्पादन और उससे उत्पन्न अपशिष्ट के अवशोषण और उसे हानिरहित बनाकर लौटाने के लिए ज़रूरी जैविक उत्पादक भूमि और समुद्री क्षेत्र की मात्रा को दर्शाता है। इसका प्रयोग करते हुए यह अनुमान लगाया जा सकता है कि अगर प्रत्येक व्यक्ति एक निश्चित जीवन शैली अपनाए, तो मानवता की सहायता के लिए पृथ्वी के कितने हिस्से (या कितने पृथ्वी ग्रह) की ज़रूरत होगी। 2006 के लिए मनुष्य जाति के कुल पारिस्थितिक पदचिन्ह को 1.4 पृथ्वी ग्रह अनुमानित किया गया था, अर्थात मानव जाति पारिस्थितिक सेवाओं का उपयोग पृथ्वी द्वारा उनके पुनर्सृजन की तुलना में 1.4 गुना तेज़ी से करती है। प्रति वर्ष इस संख्या की पुनर्गणना की जाती है – संयुक्त राष्ट्र को आधारभूत आंकड़े इकट्ठा करने और प्रकाशित करने में समय लगने के कारण यह तीन साल पीछे चलती है। जहां पारिस्थितिक पदचिह्न शब्द का व्यापक रूप से प्रयोग किया जाता है, वहीं इसके मापन के तरीके भिन्न होते हैं। हालांकि गणना के मानक अब ज्यादा तुलनात्मक और संगत परिणाम देने वाले बन कर उभर रहे हैं। .
देखें ऊर्जा और पारिस्थितिक पदचिह्न
पिशाच
फिलिप बर्न-जोन्स द्वारा पिशाच, 1897 पिशाच कल्पित प्राणी है जो जीवित प्राणियों के जीवन-सार खाकर जीवित रहते हैं आमतौर पर उनका खून पीकर.
देखें ऊर्जा और पिशाच
पवन टर्बाइन
बेल्जियम के उत्तरी सागर में अपतटीय पवन फार्म 5 मेगावॉट टर्बाइन आरई-पॉवर एम5 (REpower M5) का उपयोग करते हुए पवन टर्बाइन एक रोटरी उपकरण है, जो हवा से ऊर्जा को खींचता है। अगर यांत्रिक ऊर्जा का इस्तेमाल मशीनरी द्वारा सीधे होता है, जैसा कि पानी पंप करने लिए, इमारती लकड़ी काटने के लिए या पत्थर तोड़ने के लिए होता है, तो वह मशीनपवन-चक्की कहलाती है। इसके बदले अगर यांत्रिक ऊर्जा बिजली में परिवर्तित होती है, तो मशीन को अक्सर पवन जेनरेटर कहा जाता है। .
देखें ऊर्जा और पवन टर्बाइन
पुनर्चक्रण
पुनरावर्तन में संभावित उपयोग में आने वाली सामग्रियों के अपशिष्ट की रोकथाम कर नए उत्पादों में संसाधित करने की प्रक्रिया ताजे कच्चे मालों के उपभोग को कम करने के लिए, उर्जा के उपयोग को घटाने के लिए वायु-प्रदूषण को कम करने के लिए (भस्मीकरण से) तथा जल प्रदूषण (कचरों से जमीन की भराई से) पारंपरिक अपशिष्ट के निपटान की आवश्यकता को कम करने के लिए, तथा अप्रयुक्त विशुद्ध उत्पाद की तुलना में ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन को कम करने के लिए पुनरावर्तन में प्रयुक्त पदार्थों को नए उत्पादों में प्रसंस्करण की प्रक्रियाएं सम्मिलित हैं। पुनरावर्तन आधुनिक अपशिष्ट को कम करने में प्रमुख तथा अपशिष्ट को "कम करने, पुनः प्रयोग करने, पुनरावर्तन करने" की क्रम परम्परा का तीसरा घटक है। पुनरावर्तनीय पदार्थों में कई किस्म के कांच, कागज, धातु, प्लास्टिक, कपड़े, एवं इलेक्ट्रॉनिक्स शामिल हैं। हालांकि प्रभाव में एक जैसा ही लेकिन आमतौर पर जैविक विकृतियों के अपशेष से खाद बनाने अथवा अन्य पुनः उपयोग में लाने - जैसे कि भोजन (पके अन्न) तथा बाग़-बगीचों के कचरों को पुनरावर्तन के लायक नहीं समझा जाता है। पुनरावर्तनीय सामग्रियों को या तो किसी संग्रह शाला में लाया जाता है अथवा उच्छिस्ट स्थान से ही उठा लिया जाता है, तब उन्हें नए पदार्थों में उत्पादन के लिए छंटाई, सफाई तथा पुनर्विनीकरण की जाती है। सही मायने में, पदार्थ के पुनरावर्तन से उसी सामग्री की ताजा आपूर्ति होगी, उदाहरणार्थ, इस्तेमाल में आ चुका कागज़ और अधिक कागज़ उत्पादित करेगा, अथवा इस्तेमाल में आ चुका फोम पोलीस्टाइरीन से अधिक पोलीस्टाइरीन पैदा होगा। हालांकि, यह कभी-कभार या तो कठिन अथवा काफी खर्चीला हो जाता है (दूसरे कच्चे मालों अथवा अन्य संसाधनों से उसी उत्पाद को उत्पन्न करने की तुलना में), इसीलिए कई उत्पादों अथवा सामग्रियों के पुनरावर्तन में अन्य सामग्रियों के उत्पादन में (जैसे कि कागज़ के बोर्ड बनाने में) बदले में उनकें ही अपने ही पुनः उपयोग शामिल हैं। पुनरावर्तन का एक और दूसरा तरीका मिश्र उत्पादों से, बचे हुए माल को या तो उनकी निजी कीमत के कारण (उदाहरणार्थ गाड़ियों की बैटरी से शीशा, या कंप्यूटर के उपकरणों में सोना), अथवा उनकी जोखिमी गुणवत्ता के कारण (जैसे कि, अनेक वस्तुओं से पारे को अलग निकालकर उसे पुनर्व्यव्हार में लाना) फिर से उबारकर व्यवहार योग्य बनाना है। पुनरावर्तन की प्रक्रिया में आई लागत के कारण आलोचकों में निवल आर्थिक और पर्यावरणीय लाभों को लेकर मतभेद हैं और उनके सुझाव के अनुसार पुनरावर्तन के प्रस्तावक पदार्थों को और भी बदतर बना देते हैं तथा अनुभोदन एवं पुष्टिकरण के पक्षपातपूर्ण पूर्वग्रह झेलना पड़ता है। विशेषरूप से, आलोचकों का इस मामले में तर्क है कि संग्रहीकरण एवं ढुलाई में लगने वाली लागत एवं उर्जा उत्पादन कि प्रक्रिया में बचाई गई लागत और उर्जा से घट जाती (तथा भारी पड़ जाती हैं) और साथ ही यह भी कि पुनरावर्त के उद्योग में उत्पन्न नौकरियां लकड़ी उद्योग, खदान एवं अन्य मौलिक उत्पादनों से जुड़े उद्योगों की नौकरियां को निकृष्ट सकझा जाती है; और सामग्रियों जैसे कि कागज़ की लुग्दी आदि का पुनरावर्तक सामग्री के अपकर्षण से कुछ ही बार पहले हो सकता है जो और आगे पुनरावर्तन के लिए बाधक हैं। पुनरावर्तन के प्रस्तावकों के ऐसे प्रत्येक दावे में विवाद है और इस संदर्भ में दोनों ही पक्षों से तर्क की प्रामाणिकता ने लम्बे विवाद को जन्म दिया है। .
देखें ऊर्जा और पुनर्चक्रण
प्रति-कण
कण (बायें) और प्रति-कण (दायें) के आकार और विद्युत आवेश का चित्रण। ऊपर से नीचे इलेक्ट्रॉन/पोजीट्रॉन,प्रोटॉन/प्रतिप्रोटोन, न्यूट्रॉन/प्रतिन्यूट्रॉन.
देखें ऊर्जा और प्रति-कण
प्रमात्रा यान्त्रिकी
प्रमात्रा यान्त्रिकी (Quantum mechanics) कुछ वैज्ञानिक सिद्धान्तों का एक समुच्चय है जो परमाणवीय पैमाने पर उर्जा एवं पदार्थ के ज्ञात गुणधर्मों की व्याख्या करते हैं। इसमें उप-परमाणु पैमाने पर जो प्रकाश और उप-परमाण्वीय कणों में तरंग-कण द्विरूप देखा जाता है, उसका गणित आधार सम्मिलित है। क्वाण्टम यान्त्रिकी में उर्जा और पदार्थ के गहरे सम्बन्ध का भी गणित आधार सम्मिलित है। .
देखें ऊर्जा और प्रमात्रा यान्त्रिकी
प्राणी
प्राणी या जंतु या जानवर 'ऐनिमेलिया' (Animalia) या मेटाज़ोआ (Metazoa) जगत के बहुकोशिकीय और सुकेंद्रिक जीवों का एक मुख्य समूह है। पैदा होने के बाद जैसे-जैसे कोई प्राणी बड़ा होता है उसकी शारीरिक योजना निर्धारित रूप से विकसित होती जाती है, हालांकि कुछ प्राणी जीवन में आगे जाकर कायान्तरण (metamorphosis) की प्रकिया से गुज़रते हैं। अधिकांश जंतु गतिशील होते हैं, अर्थात अपने आप और स्वतंत्र रूप से गति कर सकते हैं। ज्यादातर जंतु परपोषी भी होते हैं, अर्थात वे जीने के लिए दूसरे जंतु पर निर्भर रहते हैं। अधिकतम ज्ञात जंतु संघ 542 करोड़ साल पहले कैम्ब्रियन विस्फोट के दौरान जीवाश्म रिकॉर्ड में समुद्री प्रजातियों के रूप में प्रकट हुए। .
देखें ऊर्जा और प्राणी
प्राणी उड़ान और पाल-उड़ान
पृथ्वी पर बहुत से प्राणियों में उड़ान और पाल-उड़ान की क्षमता है जिससे वे धरातल या समुद्रतल से उठकर वायु में यातायात कर सकते हैं। कुछ में पंख मारकर ऊर्जा के व्यय से उड़ान की क्षमता होती है जबकि अन्यों में पाल-उड़ान (ग्लाइडिंग) द्वारा स्थान-से-स्थान बिना अधिक ऊर्जा ख़र्च करे जाने की क्षमता होती है। पृथ्वी पर क्रम-विकास से चार बिलकुल अलग ज्ञात अवसरों पर उड़ने की क्षमता विकसित हुई है: कीटों में, पक्षियों में, चमगादड़ों में और टेरोसोरों में। पाल-उड़ान की क्षमता इस से कई अधिक बार स्वतंत्र रूप से प्राणियों में विकसित हुई है और अक्सर प्राणियों को एक वृक्ष से दूसरे वृक्ष तक जाने में सहायक रही है। यह विशेष रूप से बोर्नियो जैसे स्थानों में देखा गया है जहाँ के वनों में पेड़ों के बीच अधिक दूरी होती है। .
देखें ऊर्जा और प्राणी उड़ान और पाल-उड़ान
प्रार्थना
ढाका में शक्तिपूजक हिन्दू प्रार्थना की मुद्रा में प्रार्थना एक धार्मिक क्रिया है जो ब्रह्माण्ड के किसी 'महान शक्ति' से सम्बन्ध जोड़ने की कोशिश करती है। प्रार्थना व्यक्तिगत हो सकती है और सामूहिक भी। इसमें शब्दों (मंत्र, गीत आदि) का प्रयोग हो सकता है या प्रार्थना मौन भी हो सकती है।.
देखें ऊर्जा और प्रार्थना
प्राक्षेपिकी
प्रक्षेपिकी क्षेपण विज्ञान या प्राक्षेपिकी (Ballistics, यूनानी भाषा में βάλλειν ('ba'llein') .
देखें ऊर्जा और प्राक्षेपिकी
प्रघाती तरंग
प्रघाती तरंग (shock wave) (या केवल 'प्रघात') वास्तव में एक प्रगामी विक्षोभ (propagating disturbance) है। साधारण तरंग की तरह ही इसमें भी उर्जा होती है तथा यह किसी माध्यम (ठोस, द्रव, गैस व प्लाज्मा) में गमन कर सकती है। कुछ स्थितियों में यह बिना माध्यम के भी विचरण कर सकती है (जैसे विद्युतचुम्बकीय क्षेत्र के रूप में)। प्रघाती तरंगों की प्रमुख विशेषता यह है कि ये माध्यम के गुणों में असतत परिवर्तन (discontinuous change) पैदा करतीं हैं। प्रघात क्षेत्र में दाब, ताप, घनत्व में अत्यन्त तेज गति से परिवर्तन होते हैं। अधिकांश माध्यमों में प्रघाती तरंगों का वेग सामान्य तरंग के वेग से अधिक होता है। .
देखें ऊर्जा और प्रघाती तरंग
प्रगामी तरंग नलिका
हेलिक्स TWT का कट-वे दृष्य (1) इलेक्ट्रॉन गन; (2) RF इनपुट; (3) चुम्बक; (4) अटेन्युएटर (Attenuator); (5) हेलिक्स कुण्डली (Helix coil); (6) RF ऑउटपुट; (7) निर्वात नलिका; (8) कलेक्टर १९८० के दशक की रूसी TWT जो संचार उपग्रह में प्रयुक्त हुई थी। प्रगामी तरंग नलिका (traveling-wave tube (TWT)) एक विशिष्ट निर्वात नलिका होती है जिसका उपयोग माइक्रोवेव परास वाले रेडियो आवृत्ति के संकेतों को प्रवर्धित करने के लिये किया जाता है। इस नलिका में चल रहे इलेक्ट्रानों के पुंज से ऊर्जा अवशोशिष कर रेडियो संकेत प्रवर्धित होता है। प्रगामी तरंग नलिका कैइ तरह की होती हैं, जिनमें से दो प्रमुख हैं-.
देखें ऊर्जा और प्रगामी तरंग नलिका
प्रकाश रसायन
प्रकाश रसायन (Photochemistry) के अंतर्गत वे सभी रासायनिक क्रियाएँ आ जाती हैं जिनके होने के लिये प्रकाश प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष कारक होता है। यद्यपि यह सच है कि लघु वैद्युच्चुंबकीय तरंगों, जैसे एक्स, गामा तथा कॉस्मिक विकिरण द्वारा भी पदार्थो में रासायनिक प्रभाव उत्पन्न होते हैं, किंतु इन सब तरंगों का प्राथमिक प्रभाव आयन उत्पादन है। प्रकाश रसायन में उन्हीं प्रकाशतरंगों के प्रभाव का अध्ययन किया जाता है जिनके द्वारा विघटन या सक्रियण होता है। इन प्रकाशतरंगों की दैर्ध्यसीमा सामान्य रूप से १०,००० आँगस्ट्राम से १,८०० आँगस्ट्राम तक (१ आँ .
देखें ऊर्जा और प्रकाश रसायन
प्रकाश का प्रकीर्णन
प्रकाश का प्रकीर्णन (Light scattering) वह प्रकीर्णन है जिसमें ऊर्जा का वाहक और प्रकीर्ण होने वाला विकिरण प्रकाश होता है। जब प्रकाश किसी ऐसे माध्यम से गुजरता है, जिसमे धुल तथा अन्य पदार्थों के अत्यंत सूक्ष्म कण होते है, तो इनके द्वारा प्रकाश सभी दिशाओं में प्रसारित हो जाता है, जिसे प्रकाश का प्रकीर्णन कहते हैं। लार्ड रेले के अनुसार किसी रंग का प्रकीर्णन उसकी तरंगदेध्र्य पर निर्भर करता है, तथा जिस रंग के प्रकाश की तरंगदेधर्य सबसे कम होती है, उस रंग का प्रकीर्णन सबसे अधिक तथा जिस रंग के प्रकाश की तरंगदेधर्य सबसे अधिक होती है, उस रंग का प्रकीर्णन सबसे कम होता है। इसका एक उदाहरण आकाश का रंग है, जो सूर्य के प्रकाश के प्रकीर्णन के कारण नीला दिखाई देता है। .
देखें ऊर्जा और प्रकाश का प्रकीर्णन
प्रकाश का क्वाण्टम सिद्धान्त
तरंग सिद्धान्त के प्रतिपादन के बाद के कुछ वर्षो में कुछ बातें ऐसी भी मालूम हुई जो प्रकाश के तरंगमय स्वरूप के सर्वथा प्रतिकूल हैं। इनकी व्याख्या तरंगसिद्धांत के द्वारा हो ही नहीं सकती। इनके लिये प्लांक (Planck) के क्वांटम सिद्धांत का सहारा लेना पड़ता है। क्वांटम सिद्धान्त का प्रतिपादन 1900 ई.
देखें ऊर्जा और प्रकाश का क्वाण्टम सिद्धान्त
प्रकाश उत्सर्जक डायोड
एल.ई.डी की आंतरिक संरचना प्रकाश उत्सर्जन डायोड (अंग्रेज़ी:लाइट एमिटिंग डायोड) एक अर्ध चालक-डायोड होता है, जिसमें विद्युत धारा प्रवाहित करने पर यह प्रकाश उत्सर्जित करता है। यह प्रकाश इसकी बनावट के अनुसार किसी भी रंग का हो सकता है। एल.ई.डी.
देखें ऊर्जा और प्रकाश उत्सर्जक डायोड
प्रकाश-संश्लेषण
हरी पत्तियाँ, प्रकाश संश्लेषण के लिये प्रधान अंग हैं। सजीव कोशिकाओं के द्वारा प्रकाशीय उर्जा को रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित करने की क्रिया को प्रकाश संश्लेषण (फोटोसिन्थेसिस) कहते है। प्रकाश संश्लेषण वह क्रिया है जिसमें पौधे अपने हरे रंग वाले अंगो जैसे पत्ती, द्वारा सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में वायु से कार्बनडाइऑक्साइड तथा भूमि से जल लेकर जटिल कार्बनिक खाद्य पदार्थों जैसे कार्बोहाइड्रेट्स का निर्माण करते हैं तथा आक्सीजन गैस (O2) बाहर निकालते हैं। प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में पौधों की हरी पत्तियों की कोंशिकाओं के अन्दर कार्बन डाइआक्साइड और पानी के संयोग से पहले साधारण कार्बोहाइड्रेट और बाद में जटिल काबोहाइड्रेट का निर्माण होता है। इस प्रक्रिया में आक्सीजन एवं ऊर्जा से भरपूर कार्बोहाइड्रेट (सूक्रोज, ग्लूकोज, स्टार्च (मंड) आदि) का निर्माण होता है तथा आक्सीजन गैस बाहर निकलती है। जल, कार्बनडाइऑक्साइड, सूर्य का प्रकाश तथा क्लोरोफिल (पर्णहरित) को प्रकाश संश्लेषण का अवयव कहते हैं। इसमें से जल तथा कार्बनडाइऑक्साइड को प्रकाश संश्लेषण का कच्चा माल कहा जाता है। प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया सबसे महत्वपूर्ण जैवरासायनिक अभिक्रियाओं में से एक है। सीधे या परोक्ष रूप से दुनिया के सभी सजीव इस पर आश्रित हैं। प्रकाश संश्वेषण करने वाले सजीवों को स्वपोषी कहते हैं। .
देखें ऊर्जा और प्रकाश-संश्लेषण
प्रकाश-विद्युत प्रभाव
किसी धातु के प्लेट से एलेक्ट्रानों का उत्सर्जन प्रकाशविद्युत प्रभाव का अध्ययन करने के लिये प्रयोग। इसमें प्रकाश स्रोत एक पतली आवृत्ति बैण्ड वाला (लगभग एकवर्णी) लेते हैं। इस प्रकाश को कैथोड पर डालते हैं जो निर्वात में स्थित है। एनोड और कैथोड के बीच विभवान्तर से यह निर्धारित हो जाता है कि कैथोड से उत्सर्जित वे ही इलेक्ट्रान एनोड तक आ पायेंगे जिनके पास निकलते समय eV से अधिक गतिज ऊर्जा होगी। धारा की मात्रा (μA), प्राप्त इलेक्ट्रानों की संख्या के समानुपाती होगी। जब कोई पदार्थ (धातु एवं अधातु ठोस, द्रव एवं गैसें) किसी विद्युतचुम्बकीय विकिरण (जैसे एक्स-रे, दृष्य प्रकाश आदि) से उर्जा शोषित करने के बाद इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित करता है तो इसे प्रकाश विद्युत प्रभाव (photoelectric effect) कहते हैं। इस क्रिया में जो एलेक्ट्रान निकलते हैं उन्हें "प्रकाश-इलेक्ट्रॉन" (photoelectrons) कहते हैं। सन 1887 मे एच.
देखें ऊर्जा और प्रकाश-विद्युत प्रभाव
प्रकाशमिति
किसी प्रकाशस्रोत से उत्सर्जित प्रकाश ऊर्जा का मापन करने के लिये अनेक विधियाँ प्रचलित हैं। इनमें विविध प्रकार के यंत्रों का उपयोग किया जाता है। उदाहरण के लिये, जब किसी प्रकाशस्रोत से उत्सर्जित प्रकाश एक तापवैद्युत पुंज (thermopile) के कृष्ण तल पर पड़ता है तब उस तल के ताप में वृद्धि होती है। जिससे प्रकाश ऊर्जा का मापन किया जा सकता है। दो प्रकाशस्रोतों द्वारा उत्सर्जित ऊर्जाओं के परिमाणों की तुलना उन स्रोतों को बारी बारी से तापीय पुंज की समान दूरी पर रखकर तथा उनसे पुंज के तल पर वर्धित ताप के कारण उत्पन्न ताप विद्युत-धाराओं की तुलना धारामापी की सहायता से करके, की जा सकती है। किंतु ये सभी विधियाँ ऊर्जा के सापेक्षिक परिमाणों की ही तुलना कर सकती हैं, उन प्रकाशस्रोतों की कांति या द्युति (brightness) की तुलना नहीं कर सकतीं, क्योंकि प्रकाशस्रोतों की द्युति उनसे उत्सर्जित प्रकाश के तरंगदैर्घ्य पर निर्भर करती है। द्युति का आपेक्षिक ज्ञान हमें अपने नेत्रों द्वारा भली प्रकार होता है, किंतु हमारे नेत्र भी अधिक विश्वसनीय साधन नहीं हैं। भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के नेत्र भी भिन्न भिन्न रंगों के प्रकाश को भिन्न भिन्न ढंगों से एवं भिन्न भिन्न मात्राओं में ग्रहण करते हैं। इसलिये दो प्रकाशस्रोतों की द्युतियों का मापन उनसे उत्सर्जित प्रकाश की किसी मानक स्रोत (standard source) की द्युति के साथ तुलना करके और उस मानक की द्युति को इकाई मानकर ही करना आवश्यक होता है, अन्यथा चक्षुदृष्ट कांति का मूल्यांकन करने में सभी एकमत नहीं हो सकते। अन्य विधि यह भी हो सकती है कि उन स्रोतों को द्युतियों की तुलना उनके द्वारा प्रदीप्त किसी तल पर प्रकाश की प्रदीप्ति की तीव्रताओं (intensities of illumination) की तुलना करके की जाय। प्रकाशस्रोतों की दीप्तियों या प्रदीपन शक्तियों (illuminating powers) को अथवा प्रकाशित तलों की प्रदीप्ति की तीव्रताओं की तुलना करने के लिये जो यंत्र अथवा उपकरण व्यवहृत होते हें उन्हें ज्योतिर्मापी या प्रकाशमापी (photometer) कहते हैं और प्रकाशिकी (optics) का वह अंग जो इन क्रियाओं से संबद्ध होता है, ज्योतिर्मिति या प्रकाशमिति (photometry) कहलाता है। प्रकाशमिति की प्रक्रिया में मानक प्रकाशस्रोत का सबसे अधिक महत्व है। ऐसे मानक की प्रारंभिक अर्हता यह है कि उसके द्वारा उत्सर्जित प्रकाश स्थिर हो अथवा अत्यल्प परिवर्तनशील हो तथा जिन प्रकाशस्रोतों की तुलना के लिये उसका प्रयोग किया जा रहा है उनके स्पेक्ट्रमी वितरण (spectral distribution) की सन्निकटस्थ सीमा तक उसका भी स्पेक्ट्रमी वितरण हो। इसके अतिरिक्त वह मानक प्रकाश स्रोत सुगमता से पुनरुत्पादनीय भी होना चाहिए और प्रत्येक दशा में उसके विभिन्न भागों में पर्याप्त स्थायित्व भी रहना चाहिए। इन अर्हताओं की पूर्ति के निमित्त अनेक मानक स्रोतों का व्यवहार किया जाता रहा है। इनमें सबसे प्राचीन मानक स्पमेंसेटी कैंडिल या ब्रिटिश कैंडिल है जिसका व्यास ७/८ इंच तथा १/६ पाउंड होती है तथा वह ११० ग्रेन प्रति घंटे की दर से जलती है। किंतु इसकी द्युति पर इसमें प्रयुक्त बत्ती (wick) की तथा प्रयोगस्थल पर व्याप्त वातावरण में विद्यमान जल की मात्रा का प्रभाव अनिवार्य रूप से पड़ता है। इसलिए इसका प्रयोग अब प्राय: नहीं किया जाता और इसके स्थान पर विभिन्न प्रकार के वैद्युत् मानक प्रकाश स्रोतों का व्यवहार किया जाता है। इनमें वर्नन हार्कोटे पेंटेन लैंप (Vernon Harcourt pentane lamp), दस कैंडिल लैंप तथा हेफनर (Hefner) लैंप आदि विशेष उल्लेखनीय हैं। पूर्वकथित वर्नन हारकोर्ट लैंप में ऐसी व्यवस्था रहती है कि ज्वाला का आकार सदा नियत रहे। सन् १९०९ तक मानक ज्योति तीव्रता (luminous intensity) इस लैंप की ज्योति के दशांश के बराबर मानी जाती रही।। सन् १९२१ में ऐसे अनेक विद्युत लैंपों के समूह की औसत प्रदीपन क्षमता या प्रदीपकता को अंतरराष्ट्रीय मानक माना गया। ब्रिटेन, फ्रांस, संयुक्त राज्य अमरीका की तीन प्रमुख मानकीकारक प्रयोगशालाओं में ऐसे मानकों द्वारा अन्य लैंपों के मानकीकरण किए जाते रहे। किंतु शुद्ध पेटेन (अन्य हाइड्रोकार्बनों से मुक्त) के दुष्प्राप्य होने तथा जिस बर्नर से इसकी ज्वाला निकलती है, उसमें तापवृद्धि के साथ ज्वाला की दीर्घता में अनियंत्रणीय परिवर्तन होते रहने के कारण इस लैंप का भी प्रचलन बहुत कम हो गया है। ऊपर कथित हेफ़नर लैंप में ऐमिल ऐसीटेट (amyl acetate) के दहन द्वारा ज्वाला उत्पन्न की जाती है जिसका रंग लाल होता है और जिसकी लंबाई प्राय: ४ सेंटीमीटर होती है। सुगम, सुप्राप्य एवं पुनरुत्पादनीय होने के कारण आजकल इसी लैंप का ज्योतिर्मितीय प्रयोजन के लिये अधिक उपयोग किया जाता है, इसकी ज्योति पेंटेन लैंप के अंतरराष्ट्रीय मानक की ९/१० गुनी होती है। सन् १९३९ में अंतरराष्ट्रीय अनुबंध (करारनामा) के द्वारा एक नवीन एवं सर्वश्रेष्ठ प्राथमिक मानक (primary standard) का प्रयोग किया जाने लगा है जिसका नाम प्लैंकियन विकिरक (planckian radiator) है। इसमें प्लैटिनम को विद्युद्विधि से उसके गलनांक (melting point) तक उत्तप्त किया जाता है। उसकी द्युति को विशेष विकिरण व्यवस्था द्वारा ज्योतिर्मापी तक प्रेषित किया जाता है। ज्योतितीव्रता की अंतरराष्ट्रीय ईकाई का निर्धारण भी इसी विकिरक के आधार पर किया गया, किंतु द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण उसका व्यवहार स्थगित हो गया। १ जनवरी १९४८ ई.
देखें ऊर्जा और प्रकाशमिति
प्रेरक
प्रेरकत्व का प्रतीक कुछ छोटे आकार-प्रकार के प्रेरकत्व अपेक्षाकृत बड़ा प्रेरकत्व जो पावर सप्लाइयों में प्रयुक्त होते हैं। प्रेरक या इंडक्टर (inductor) एक वैद्युत अवयव है जिसमें कोई विद्युत धारा प्रवाहित करने पर यह चुम्बकीय क्षेत्र के रूप में उर्जा का भंडारण करता है। प्रेरक द्वारा चुम्बकीय उर्जा के भंडारण की क्षमता को इसका प्रेरकत्व (inductance) कहा जाता है और इसे मापने की इकाई हेनरी है। प्रेरक को साधारण भाषा में 'चोक' (choke) और 'कुण्डली' (coil) भी कहते हैं। .
देखें ऊर्जा और प्रेरक
पृथ्वी का भूवैज्ञानिक इतिहास
300px पृथ्वी का भूवैज्ञानिक इतिहास इसके शैलों के स्तरों के अध्ययन के आधार पर निकाला जाता है। पृथ्वी का निर्माण लगभग 4.54 बिलियन वर्ष पूर्व हुआ। .
देखें ऊर्जा और पृथ्वी का भूवैज्ञानिक इतिहास
पृष्ठ तनाव
कुछ कीट जल की सतह पर 'चल' पाते हैं। इसका कारण पृष्ठ-तनाव ही है। पृष्ठ तनाव (Surface tension) किसी द्रव के सतह या पृष्ट का एक विशिष्ट गुण है। दूसरे शब्दों मे, पृष्ठ-तनाव के कारण ही द्रवों का पृष्ट एक प्रकार की प्रत्यास्थता (एलास्टिक) का गुण प्रदर्शित करता है। पृष्ट तनाव के कारण ही पारे की बूँद, गोल आकार धारण कर लेती है न कि अन्य कोई रूप (जैसे घनाकार)। पृष्ठ तनाव के कारण द्रव अपने पृष्ठ (सतह) का क्षेत्रफल न्यूनतम करने की कोशिश करते हैं। गणितीय रूप में, पृष्ठ के इकाई लम्बाई पर लगने वाले बल को द्रव का पृष्ठ तनाव कहते हैं। दूसरे शब्दों में, द्रव के पृष्ठ के इकाई क्षेत्रफल की वृद्धि के लिये आवश्यक ऊर्जा को उस द्रव का पृष्ठ तनाव कहते हैं। इसका मात्रक बल प्रति इकाई लंबाई (जैसे न्यूटन/मीटर), या ऊर्जा प्रति इकाई क्षेत्र (जैसे जूल/वर्ग मीटर) है। .
देखें ऊर्जा और पृष्ठ तनाव
पूर्वानुमान
अज्ञात स्थितियों में तर्कपूर्ण आकलन (estimation) करने को पूर्वानुमान करना (Forecasting) कहते हैं। जैसे दो दिन बाद किसी स्थान के मौसम के बारे में अनुमान लगाना, एक वर्ष बाद किसी देश की आर्थिक स्थिति के बारे में कहना आदि पूर्वानुमान हैं। पूर्वानुमान के साथ अनिश्चितता और खतरा (Risk) का घनिष्ट सम्बन्ध है। आधुनिक युग में पूर्वानुमान के अनेकानेक उपयोग हैं; जैसे - ग्राहक की मांग की योजना बनाना। .
देखें ऊर्जा और पूर्वानुमान
पेट्रोलियम उत्पाद
ग्रेंगमोउथ, स्कॉटलैंड में एक पेट्रोकेमिकल्स रिफाइनरी. पेट्रोलियम उत्पाद, तेल रिफाइनरियों में संसाधित कच्चे तेल (पेट्रोलियम) से प्राप्त होने वाली उपयोगी सामग्रियों को कहते हैं। कच्चे तेल की संरचना और मांग के अनुसार रिफाइनरियां पेट्रोलियम उत्पादों को विभिन्न मात्राओं में उत्पादित कर सकती हैं। तेल उत्पादों का सबसे अधिक मात्रा में उर्जा वाहकों के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, जैसे कि इंधन तेल तथा गैसोलीन (पेट्रोल) के विभिन्न प्रकार.
देखें ऊर्जा और पेट्रोलियम उत्पाद
पेशी
पेशी की संरचना पेशी (Muscle) प्राणियों का आकुंचित होने वाला (contractile) ऊतक है। इनमें आंकुंचित होने वाले सूत्र होते हैं जो कोशिका का आकार बदल देते हैं। पेशी कोशिकाओं द्वारा निर्मित उस ऊतक को पेशी ऊतक कहा जाता है जो समस्त अंगों में गति उत्पन्न करता है। इस ऊतक का निर्माण करने वाली कोशिकाएं विशेष प्रकार की आकृति और रचना वाली होती हैं। इनमें कुंचन करने की क्षमता होती है। पेशिया रेखित, अरेखित एवं हृदय तीन प्रकार की होती हैं। मनुष्य के शरीर में 40 प्रतिशत भाग पेशियों का होता है। मानव शरीर में 693 मांसपेशियां पाई जाती हैं। इनमें से 400 पेशियाँ रेखित होती है। शरीर में सर्वाधिक पेशियां पीठ में पाई जाती है। पीठ में 180 पेशियां पाई जाती हैं। पेशियां तीन प्रकार की होती हैं। ऐच्छिक मांसपेशियाँ, अनैच्छिक मांसपेशियाँ और हृदय मांसपेशियाँ। .
देखें ऊर्जा और पेशी
पोषण
1.
देखें ऊर्जा और पोषण
पोषक तत्व
सागर में पोषण चक्रएक पोषक तत्व या पोषकतत्व वह रसायन होता है, जिसकी आवश्यकता किसी जीव के उसके जीवन और वृद्धि के साथ साथ उसके शरीर के उपापचय की क्रिया को चलाने के लिए भी पड़ती है और जिसे वो अपने वातावरण से ग्रहण करता है।Whitney, Elanor and Sharon Rolfes.
देखें ऊर्जा और पोषक तत्व
पोजीट्रॉन
पाजीट्रोन (e+) या पोजीटिव इलेक्ट्रोन (धन आवेश युक्त इलेक्ट्रोन) परमाणु में पाया जाने वाला एक मौलिक कण है। यह धन आवेश युक्त इलेक्ट्रोन है। इसके गुण इलेक्ट्रोन के समान होते किन्तु दोनो में अंतर यह है कि इलेक्ट्रोन ऋण आवेश युक्त कण है तथा पोजीट्रोन धन आवेश युक्त कण है। इसका द्रव्यमान इलेक्ट्रोन के द्रव्यमान के समान होता है। इसकी खोज सन १९३२ में कार्ल डी एंडरसन ने की थी। इसका विद्युत आवेश +1.602176487(40)×10−19 कूलाम्ब होता है। इसकी घूर्णन गति आधी होती है। पोजिट्रोन को β+ चिन्ह से भी दर्शाते है। जब पोजिट्रोन तथा इलेक्ट्रोन की टक्कर होती है तो दोनो नष्ट हो जाते हैं और दो गामा किरण फोटान उत्पन्न होती है। चिकित्सालय में उपयोग होने वाले एक्स किरण में न्यूट्रोन, गामा किरण, प्रोटोन, न्यूट्रिनो, के साथ पोजिट्रोन भी शामिल रहता है। .
देखें ऊर्जा और पोजीट्रॉन
पीयूष ग्रन्थि
पीयूष ग्रन्थि या पीयूषिका, एक अंत:स्रावी ग्रंथि है जिसका आकार एक मटर के दाने जैसा होता है और वजन 0.5 ग्राम (0.02 आउन्स) होता है। यह मस्तिष्क के तल पर हाइपोथैलेमस (अध;श्चेतक) के निचले हिस्से से निकला हुआ उभार है और यह एक छोटे अस्थिमय गुहा (पर्याणिका) में दृढ़तानिका-रज्जु (diaphragma sellae) से ढंका हुआ होता है। पीयूषिका खात, जिसमें पीयूषिका ग्रंथि रहता है, वह मस्तिष्क के आधार में कपालीय खात में जतुकास्थी में स्थित रहता है। इसे एक मास्टर ग्रंथि माना जाता है। पीयूषिका ग्रंथि हार्मोन का स्राव करने वाले समस्थिति का विनियमन करता है, जिसमें अन्य अंत:स्रावी ग्रंथियों को उत्तेजित करने वाले ट्रॉपिक हार्मोन शामिल होते हैं। कार्यात्मक रूप से यह हाइपोथैलेमस से माध्यिक उभार द्वारा जुड़ा हुआ होता है। .
देखें ऊर्जा और पीयूष ग्रन्थि
फोर स्ट्रोक इंजन
वर्तमान युग में कारों, ट्रकों, मोटरसाइकिलों व वायुयानों आदि में प्रयोग होने वाले अन्तर्दहन इंजन प्रायः फोर स्ट्रोक इंजन होते हैं। 'चार स्ट्रोक' का मतलब है कि ईंधन से यांत्रिक उर्जा में परिवर्तन का चक्र कुल चार चरणों में पूरा होता है। इन चरणों या स्ट्रोकों को क्रमश: इनटेक, संपीडन (कम्प्रेशन), ज्वलन (combustion), एवं उत्सर्जन (exhaust) कहते हैं। ध्यान देने की बात है कि इन चार चरणों (स्ट्रोकों) को पूरा करने में क्रैंकसाशाफ्ट को दो चक्कर लगाने पड़ते हैं। वर्तमान में गाड़ियों में सामान्यत: फोर स्ट्रोक इंजन का प्रयोग ज्यादा होता है।। हिन्दुस्तान लाइव। ७ जनवरी २०१० इससे पहले गाड़ियों में टू स्ट्रोक इंजन का प्रयोग हुआ करता था, लेकिन कम माइलेज और जीवन अवधि कम होने के कारण इसका स्थान फोर स्ट्रोक इंजन ने ले लिया। .
देखें ऊर्जा और फोर स्ट्रोक इंजन
फीडफॉरवर्ड नियंत्रण
फीडफॉरवर्ड नियंत्रण (feedforward control) की स्थिति तब बनती है जब सेट-पॉइंट और/या डिस्टर्बेंस से सीधे नियंत्रित चर (control variable) की सीधी कपुलिंग हो। अर्थात इसमें इनपुट सिगनल से कंट्रोल चर तक कपलिंग होती है। जहाँ फीडबैक कंट्रोल में कंट्रोल चर का मान त्रुटि (error) पर आधारित होता है वहीं फीडफॉर्वर्ड में त्रुटि के बजाय इनपुट पर आधारित होता है। प्रायः फीडबैक या फीडफॉर्वर्ड को अकेले उपयोग में न लाकर दोनो का समुचित मिश्रण का उपयोग किया जाता है। फीडफॉरवर्ड का आधार नियंत्रित की जाने वाली प्रणाली गणितीय मॉडल का ज्ञान तथा प्रक्रिया में आने वाले डिस्टर्बैंसेस का मापन है। इनका ज्ञान जितना शुद्ध एवं प्रामाणिक होगा, फीडफॉरवर्ड का उपयोग उतने ही कारगर ढ़ंग से किया जा सकेगा। तीन प्रकार के नियंत्रण-तंत्र: खुला लूप, फीडबैक और फीडफॉरवर्ड .
देखें ऊर्जा और फीडफॉरवर्ड नियंत्रण
बचाव (वित्त)
वित्त में बचाव, किसी व्यक्ति के ऋण जोखिम को कम करने के उद्देश्य से बाज़ार में स्थापित एक ऐसी स्थिति है, जो अवांछित जोखिम के प्रति, अन्य बाज़ार की किसी प्रतिकूल स्थिति में मूल्यों के उतार-चढ़ाव के मामले में, ऋण जोखिम के प्रति-संतुलन का प्रयास है। इसे हासिल करने के लिए बीमा पॉलिसी, वायदा संविदा, विनिमय, विकल्प संविदा, काउंटर पर कई तरह से शेयरों की ख़रीद-बिक्री और व्युत्पन्न उत्पाद और संभवतः सबसे लोकप्रिय भावी संविदाएं जैसे कई विशिष्ट वित्तीय साधन मौजूद हैं। 1800 के दशक में कृषि पण्य क़ीमतों में पारदर्शी, मानक और कुशल बचाव-व्यवस्था को अनुमत करने के लिए सार्वजनिक वायदा सट्टा बाज़ार स्थापित किए गए; अब इनमें ऊर्जा, बहुमूल्य धातु, विदेशी-मुद्रा के मूल्यों, तथा ब्याज दर उतार-चढ़ाव के लिए बचाव-व्यवस्था हेतु भावी संविदाओं को शामिल करने के लिए, इन्हें विस्तृत किया गया। .
देखें ऊर्जा और बचाव (वित्त)
बिग बैंग सिद्धांत
महाविस्फोट प्रतिरूप के अनुसार, यह ब्रह्मांड अति सघन और ऊष्म अवस्था से विस्तृत हुआ है और अब तक इसका विस्तार चालू है। एक सामान्य धारणा के अनुसार अंतरिक्ष स्वयं भी अपनी आकाशगंगाओं सहित विस्तृत होता जा रहा है। ऊपर दर्शित चित्र ब्रह्माण्ड के एक सपाट भाग के विस्तार का कलात्मक दृश्य है। ब्रह्मांड का जन्म एक महाविस्फोट के परिणामस्वरूप हुआ। इसी को महाविस्फोट सिद्धान्त या बिग बैंग सिद्धान्त कहते हैं।।अमर उजाला।। श्य़ामरत्न पाठक, तारा भौतिकविद, जिसके अनुसार से लगभग बारह से चौदह अरब वर्ष पूर्व संपूर्ण ब्रह्मांड एक परमाण्विक इकाई के रूप में था।।बीबीसी हिन्दी।। बीबीसी संवाददाता, लंदन:ममता गुप्ता और महबूब ख़ान उस समय मानवीय समय और स्थान जैसी कोई अवधारणा अस्तित्व में नहीं थी।।हिन्दुस्तान लाइव।।२७ अक्टूबर, २००९ महाविस्फोट सिद्धांत के अनुसार लगभग १३.७ अरब वर्ष पूर्व इस धमाके में अत्यधिक ऊर्जा का उत्सजर्न हुआ। यह ऊर्जा इतनी अधिक थी जिसके प्रभाव से आज तक ब्रह्मांड फैलता ही जा रहा है। सारी भौतिक मान्यताएं इस एक ही घटना से परिभाषित होती हैं जिसे महाविस्फोट सिद्धांत कहा जाता है। महाविस्फोट नामक इस महाविस्फोट के धमाके के मात्र १.४३ सेकेंड अंतराल के बाद समय, अंतरिक्ष की वर्तमान मान्यताएं अस्तित्व में आ चुकी थीं। भौतिकी के नियम लागू होने लग गये थे। १.३४वें सेकेंड में ब्रह्मांड १०३० गुणा फैल चुका था और क्वार्क, लैप्टान और फोटोन का गर्म द्रव्य बन चुका था। १.४ सेकेंड पर क्वार्क मिलकर प्रोटॉन और न्यूट्रॉन बनाने लगे और ब्रह्मांड अब कुछ ठंडा हो चुका था। हाइड्रोजन, हीलियम आदि के अस्तित्त्व का आरंभ होने लगा था और अन्य भौतिक तत्व बनने लगे थे। महाविस्फोट सिद्धान्त के आरंभ का इतिहास आधुनिक भौतिकी में जॉर्ज लिमेत्री ने लिखा हुआ है। लिमेत्री एक रोमन कैथोलिक पादरी थे और साथ ही वैज्ञानिक भी। उनका यह सिद्धान्त अल्बर्ट आइंसटीन के प्रसिद्ध सामान्य सापेक्षवाद के सिद्धांत पर आधारित था। महाविस्फोट सिद्धांत दो मुख्य धारणाओं पर आधारित होता है। पहला भौतिक नियम और दूसरा ब्रह्माण्डीय सिद्धांत। ब्रह्माण्डीय सिद्वांत के मुताबिक ब्रह्मांड सजातीय और समदैशिक (आइसोट्रॉपिक) होता है। १९६४ में ब्रिटिश वैज्ञानिक पीटर हिग्गस ने महाविस्फोट के बाद एक सेकेंड के अरबें भाग में ब्रह्मांड के द्रव्यों को मिलने वाले भार का सिद्धांत प्रतिपादित किया था, जो भारतीय वैज्ञानिक सत्येन्द्र नाथ बोस के बोसोन सिद्धांत पर ही आधारित था। इसे बाद में 'हिग्गस-बोसोन' के नाम से जाना गया। इस सिद्धांत ने जहां ब्रह्मांड की उत्पत्ति के रहस्यों पर से पर्दा उठाया, वहीं उसके स्वरूप को परिभाषित करने में भी मदद की।। दैट्स हिन्दी॥।१० सितंबर, २००८। इंडो-एशियन न्यूज सर्विस। .
देखें ऊर्जा और बिग बैंग सिद्धांत
ब्रह्माण्ड
ब्रह्माण्ड सम्पूर्ण समय और अंतरिक्ष और उसकी अंतर्वस्तु को कहते हैं। ब्रह्माण्ड में सभी ग्रह, तारे, गैलेक्सिया, गैलेक्सियों के बीच के अंतरिक्ष की अंतर्वस्तु, अपरमाणविक कण, और सारा पदार्थ और सारी ऊर्जा शामिल है। अवलोकन योग्य ब्रह्माण्ड का व्यास वर्तमान में लगभग 28 अरब पारसैक (91 अरब प्रकाश-वर्ष) है। पूरे ब्रह्माण्ड का व्यास अज्ञात है, और ये अनंत हो सकता है। .
देखें ऊर्जा और ब्रह्माण्ड
ब्रह्माण्ड किरण
ब्रह्माण्डीय किरण का उर्जा-स्पेक्ट्रम ब्रह्माण्ड किरणें (cosmic ray) अत्यधिक उर्जा वाले कण हैं जो बाहरी अंतरिक्ष में पैदा होते हैं और छिटक कर पृथ्वी पर आ जाते हैं। लगभग ९०% ब्रह्माण्ड किरण (कण) प्रोटॉन होते हैं; लगभग १०% हिलियम के नाभिक होते हैं; तथा १% से कम ही भारी तत्व तथा इलेक्ट्रॉन (बीटा मिनस कण) होते हैं। वस्तुत: इनको "किरण" कहना ठीक नहीं है क्योंकि धरती पर पहुँचने वाले ब्रह्माण्डीय कण अकेले होते हैं न कि किसी पुंज या किरण के रूप में। .
देखें ऊर्जा और ब्रह्माण्ड किरण
बृहस्पति (ग्रह)
बृहस्पति सूर्य से पांचवाँ और हमारे सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है। यह एक गैस दानव है जिसका द्रव्यमान सूर्य के हजारवें भाग के बराबर तथा सौरमंडल में मौजूद अन्य सात ग्रहों के कुल द्रव्यमान का ढाई गुना है। बृहस्पति को शनि, अरुण और वरुण के साथ एक गैसीय ग्रह के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इन चारों ग्रहों को बाहरी ग्रहों के रूप में जाना जाता है। यह ग्रह प्राचीन काल से ही खगोलविदों द्वारा जाना जाता रहा है तथा यह अनेकों संस्कृतियों की पौराणिक कथाओं और धार्मिक विश्वासों के साथ जुड़ा हुआ था। रोमन सभ्यता ने अपने देवता जुपिटर के नाम पर इसका नाम रखा था। इसे जब पृथ्वी से देखा गया, बृहस्पति -2.94 के सापेक्ष कांतिमान तक पहुंच सकता है, छाया डालने लायक पर्याप्त उज्जवल, जो इसे चन्द्रमा और शुक्र के बाद आसमान की औसत तृतीय सर्वाधिक चमकीली वस्तु बनाता है। (मंगल ग्रह अपनी कक्षा के कुछ बिंदुओं पर बृहस्पति की चमक से मेल खाता है)। बृहस्पति एक चौथाई हीलियम द्रव्यमान के साथ मुख्य रूप से हाइड्रोजन से बना हुआ है और इसका भारी तत्वों से युक्त एक चट्टानी कोर हो सकता है।अपने तेज घूर्णन के कारण बृहस्पति का आकार एक चपटा उपगोल (भूमध्य रेखा के पास चारों ओर एक मामूली लेकिन ध्यान देने योग्य उभार लिए हुए) है। इसके बाहरी वातावरण में विभिन्न अक्षांशों पर कई पृथक दृश्य पट्टियां नजर आती है जो अपनी सीमाओं के साथ भिन्न भिन्न वातावरण के परिणामस्वरूप बनती है। बृहस्पति के विश्मयकारी 'महान लाल धब्बा' (Great Red Spot), जो कि एक विशाल तूफ़ान है, के अस्तित्व को १७ वीं सदी के बाद तब से ही जान लिया गया था जब इसे पहली बार दूरबीन से देखा गया था। यह ग्रह एक शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र और एक धुंधले ग्रहीय वलय प्रणाली से घिरा हुआ है। बृहस्पति के कम से कम ६४ चन्द्रमा है। इनमें वो चार सबसे बड़े चन्द्रमा भी शामिल है जिसे गेलीलियन चन्द्रमा कहा जाता है जिसे सन् १६१० में पहली बार गैलीलियो गैलिली द्वारा खोजा गया था। गैनिमीड सबसे बड़ा चन्द्रमा है जिसका व्यास बुध ग्रह से भी ज्यादा है। यहाँ चन्द्रमा का तात्पर्य उपग्रह से है। बृहस्पति का अनेक अवसरों पर रोबोटिक अंतरिक्ष यान द्वारा, विशेष रूप से पहले पायोनियर और वॉयजर मिशन के दौरान और बाद में गैलिलियो यान के द्वारा, अन्वेषण किया जाता रहा है। फरवरी २००७ में न्यू होराएज़न्ज़ प्लूटो सहित बृहस्पति की यात्रा करने वाला अंतिम अंतरिक्ष यान था। इस यान की गति बृहस्पति के गुरुत्वाकर्षण का इस्तेमाल कर बढाई गई थी। इस बाहरी ग्रहीय प्रणाली के भविष्य के अन्वेषण के लिए संभवतः अगला लक्ष्य यूरोपा चंद्रमा पर बर्फ से ढके हुए तरल सागर शामिल हैं। .
देखें ऊर्जा और बृहस्पति (ग्रह)
बैटरी आवेशक
रिचार्जेबल सेल को चार्ज करने वाला चार्जर कार की बैटरी के लिये उपयुक्त चार्जर: यह ६ या १२ वोल्ट की बैटरी को ४ अम्पीयर धारा देकर चार्ज कर सकता है। द्वितीयक सेल या 'रिचार्जेबल बैटरी' में विद्युत धारा प्रवाहित कराकर उनमें विद्युत ऊर्जा भरने वाली एलेक्ट्रॉनिक युक्तियों को बैटरी आवेशक (battery charger) कहते हैं। ये प्रायः २२० वोल्ट एसी से विद्युत ऊर्जा लेकर उसे कम वोल्टेज (४८ वोल्ट, १२ वोल्ट, ९ वोल्त, ३ वोल्ट आदि) की डीसी में बदल देते हैं। इनमें प्रायः आवेशन धारा का नियंत्रण करने और अधिक चार्ज होने के पहले ही चार्ज करना रोकने की व्यवस्था होती है। इनका उपयोग क्षेत्र बहुत विस्तृत है। जहाँ-जहाँ द्वितीयक बैटरी है, वहाँ-वहाँ बैटरी-आवेशक है। कार आदि गाड़ियों के बैटरी आवेशक, लैपटॉप के आवेशक, सेल फोन के आवेशक, तथा यूपीएस के आवेशक कुछ प्रमुख उदाहरण हैं। किसी भी बैटरी को चार्ज करने हेतु उसमें धारा प्रवाहित करनी पड़ती है जिसकी दिशा ऐसी हो कि बैटरी के धनाग्र (पॉजिटिव एलेक्ट्रोड) में घुसकर उसके ऋणाग्र से निकले। धारा की मात्रा और अन्य बातें चार्ज की जाने वाली बैटरी या सेल की प्रकृति पर निर्भर करती है। उदाहरण के लिये ट्रक की बैटरी को आवेशित करने हेतु २० एम्पीयर धारा दी जा सकती है जबकि किसी पेंसिल सेल को चार्ज करने के लिये एक अम्पीयर से भी कम धारा चाहिये। बैटरी आवेशक के विद्युत परिपथ में अन्य बातों के अलावा एक एसी से डीसी करने वाला दिष्टकारी (रेक्टिफायर) तथा बैटरी में जाने वाली धारा को उचित मान पर बनाये रखने वाला धारा नियंत्रक होता है। बैटरी चार्जर भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं। कम शक्ति के आवेशकों में आजकल एसएमपीएस (जैसे फॉरवर्ड कन्वर्टर) पर आधारित परिपथ प्रयोग किया जाता है जिससे इनका आकार अपेक्षाकृत बहुत छोटा होता है। .
देखें ऊर्जा और बैटरी आवेशक
बैण्ड विस्तारण
जब किसी पदार्थ को विद्युत् या ऊष्मा शक्ति देकर उत्तेजित किया जाता है तब उससे विभिन्न वर्ण की रश्मियाँ (radiations) निकलने लगती हैं। स्पेक्ट्रोग्राफ की सहायता से इनका स्पेक्ट्रम प्राप्त किया जा सकता है। यदि पदार्थ को इतनी ऊर्जा दी जाए कि उसके अणु उत्तेजित हो जाएँ, किंतु वे टूटकर परमाणुओं में परिवर्तित न हों, तो उनसे उत्सर्जित रश्मियों के स्पेक्ट्रम में विभिन्न वर्ण की छोटी-छोटी पट्टियाँ, या बैंड, पाए जाते हैं। ऐसे स्पेक्ट्रम को बैंड स्पेक्ट्रम (Band Spectrum) कहते हैं। यदि पदार्थ को बहुत अधिक ऊर्जा दी जाए तो अणु टूट जाते हैं और पदार्थ के परमाणु उत्तेजित हो जाते हैं। उत्तेजित परमाणुओं से जो स्पेक्ट्रम प्राप्त होता है, उसमें विभिन्न वर्ण की रेखाएँ पाई जाती हैं। यह स्पेक्ट्रम बैंड स्पेक्ट्रम से सर्वथा भिन्न होता है। .
देखें ऊर्जा और बैण्ड विस्तारण
बेशी ऊर्जा गृह
बेशी ऊर्जा गृह (energy-plus house) उस घर को कहते हैं जो एक वर्ष में जितनी ऊर्जा बाह्य स्रोतों से लेकर खपत करता है उससे भी अधिक ऊर्जा नवीकरणीय ऊर्जा-स्रोतों से पैदा करके वापस कर देता है। श्रेणी:अल्प ऊर्जा गृह.
देखें ऊर्जा और बेशी ऊर्जा गृह
बोस-आइन्स्टाइन सांख्यिकी
बसु-आइंस्टीन वक्र (ऊपर वाला) तथा फर्मी-डिरैक वक्र (नीचे वाला) क्वांटम सांख्यिकी तथा सांख्यिकीय भौतिकी में अविलगनीय (indistinguishable) कणों का संचय केवल दो विविक्त ऊर्जा प्रावस्थाओं (discrete energy states) में रह रकता है। इसमें से एक का नाम बोस-आइन्स्टाइन सांख्यिकी (Bose–Einstein statistics) है। लेजर तथा घर्षणहीन अतितरल हिलियम के व्यवहार इसी सांख्यिकी के परिणाम हैं। इस व्यवहार का सिद्धान्त १९२४-२५ में सत्येन्द्र नाथ बसु और अल्बर्ट आइंस्टीन ने विकसित किया था। 'अविलगनीय कणों' से मतलब उन कणों से है जिनकी ऊर्जा अवस्थाएँ बिल्कुल समान हों। यह सांख्यिकी उन्ही कणों पर लागू होती है जो जो पाउली के अपवर्जन सिद्धांत के अनुसार नहीं चलते, अर्थात् अनेकों कण एक साथ एक ही 'क्वांटम स्टेट' में रह सकते हैं। ऐसे कणों का चक्रण (स्पिन) का मान पूर्णांक होता है तथा उन्हें बोसॉन (bosons) कहते हैं। यह सांख्यिकी १९२० में सत्येन्द्रनाथ बोस द्वारा प्रतिपादित की गयी थी और फोटानों के सांख्यिकीय व्यवहार को बताने के लिये थी। इसे सन् १९२४ में आइंस्टीन ने सामान्यीकृत किया जो कणों पर भी लागू होती है। .
देखें ऊर्जा और बोस-आइन्स्टाइन सांख्यिकी
बीटा कण
'''β−''' (बीटा माइनस) क्षय अलफा, बीटा तथा गामा किरणों की भेदन-क्षमता की तुलना कुछ रेडियोसक्रिय नाभिकों (जैसे, पोटैशियम-40) से उत्सर्जित होने वाले उच्च-ऊर्जा तथा उच्च-वेग वाले इलेक्ट्रॉन या पॉजिट्रॉनों को बीटा कण (Beta particles) कहते हैं। ये एक प्रकार के आयनकारी विकिरण हैं। इन्हें 'बीटा किरण' भी कहते हैं। रेडियोसक्रिय नाभिक से बीटा कणों का निकलना 'बीटा-क्षय' (beta decay) कहा जाता है। बीटा कणों को ग्रीक-वर्ण बीटा (β) द्वारा निरूपित किया जाता है। बीता-क्षय दो प्रकार का होता है, β− तथा β+, जिसमें क्रमशः इलेक्ट्रॉन और पॉजिट्रॉन निकलते हैं। श्रेणी:रेडियोसक्रियता श्रेणी:विकिरण.
देखें ऊर्जा और बीटा कण
बीटाट्रॉन
वर्ष १९४२ में जर्मनी में विकसित एक बीटाट्रॉन (6 MeV) बीटाट्रॉन (betatron) एक प्रकार का चक्रीय कण त्वरक है। इसका विकास नार्वे के वैज्ञानिक रोल्फ विडरो ने किया था। बीटाट्रॉन को एक ट्रान्सफॉर्मर माना जा सकता है जिसकी सेकेण्डरी एक टर्न वाली निर्वात पाइप होती है जिसके अन्दर इलेक्ट्रॉन चक्कर करते हुए त्वरित होते हैं। ट्रान्सफॉर्मर की प्राइमरी में प्रत्यावर्ती धारा प्रवाहित करने पर निर्वात पाइप में चक्कर कर रहे इलेक्ट्रॉन त्वरित होते हैं। बीटाट्रॉन मशीन पहली मशीन थी जिसके द्वारा साधारण इलेक्ट्रॉन गन से प्राप्त होने वाले इलेक्ट्रानों की अपेक्षा अधिक ऊर्जा वाले इलेक्ट्रॉन प्राप्त किये जा सके। श्रेणी:कण त्वरक.
देखें ऊर्जा और बीटाट्रॉन
भँवर धारा
ट्रान्सफार्मर के कोर में फ्ल्क्स और भँवर धारा; भँवरधारा के कारण ऊर्जा-ह्रास को रोकने के लिए कोर को पतली-पतली पट्टियों से बनाया जाता है। किसी चालक के भीतर परिवर्ती चुम्बकीय क्षेत्र होने पर उसमें विद्युत धारा उत्पन्न होती है उसे भँवर धारा (Eddy current) कहते हैं। धारा की ये भवरें चुम्बकीय क्षेत्र पैदा करती हैं और यह चुम्बकीय बाहर से आरोपित चुम्बकीय क्षेत्र के परिवर्तन का विरोध करता है। भँवर धाराओं से उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र आकर्षण, प्रतिकर्षण, ऊष्मन आदि प्रभाव उत्पन्न करता है। बाहर से आरोपित चुम्बकीय क्षेत्र जितना ही तीव्र होगा और उसके परिवर्तन की गति जितनी अधिक होगी और पदार्थ की विद्युत चालकता जितनी अधिक होगी, उतनी ही अधिक मात्रा में भँवर धाराएँ उत्पन्न होंगी तथा उनके कारण उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र का मान भी उतना ही अधिक होगा। परिणामित्र (ट्रांसफॉर्मर), विद्युत जनित्र एवं विद्युत मोटरों के कोर में भँवर धाराओं के कारण ऊर्जा की हानि होती है और इसके कारण क्रोड गर्म होती है। कोर में भँवरधारा हानि कम करने के लिए क्रोड को पट्टयित (लैमिनेटेड) बनाया जाता है, अर्थात पतली-पतली पट्टियों को मिलाकर कोर बनाई जाती है, न कि एक ठोस कोर (सॉलिड कोर) से। .
देखें ऊर्जा और भँवर धारा
भारत में ऊर्जा
भारत में ऊर्जा 31 मार्च 2013 को विद्युत उत्पादन केन्द्रों की कुल अखिल भारतीय संस्थापित क्षमता 2,23,343.60 मेगावाट थी और मांग 1,35,453 मेगावाट थी। २०२० के दशक की आरम्भ तक भारत सभी को बिजली और स्वच्छ भोजन-निर्माण की सुविधाएं पहुंचाने में सफल रहेगा। इंटरनैशनल एनर्जी एजेंसी के अनुसार, भारत इन लक्ष्यों को पाने में अन्य विकासशील देशों से एक दशक आगे है। २०१२-१३ तक भारत में ऊर्जा की स्थिति निम्नलिखित सारणी में दर्शायी गयी है-: .
देखें ऊर्जा और भारत में ऊर्जा
भारत में कोयला-खनन
भारत में कोयले का उत्पादन भारत में कोयले के खनन का इतिहास बहुत पुराना है। ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने १७७४ में दामोदर नदी के पश्चिमी किनारे पर रानीगंज में कोयले का वाणिज्यिक खनन आरम्भ किया। इसके बाद लगभग एक शताब्दी तक खनन का कार्य अपेक्षाकृत धीमी गति से चलता रहा क्योंकि कोयले की मांग बहुत कम थी। किन्तु १८५३ में भाप से चलने वाली गाड़ियों के आरम्भ होने से कोयले की मांग बढ़ गयी और खनन को प्रोत्साहन मिला। इसके बाद कोयले का उत्पादन लगभग १ मिलियन मेट्रिक टन प्रति वर्ष हो गया। १९वीं शताब्दी के अन्त तक भारत में उत्पादन 6.12 मिलियन टन वार्षिक हो गया। और १९२० तक १८ मिलियन मेट्रिक टन वार्षिक। प्रथम विश्वयुद्ध के समय उत्पादन में सहसा वृद्धि हुई किन्तु १९३० के आरम्भिक दशक में फिर से उत्पादन में कमी आ गयी। १९४२ तक उत्पादन २९ मिलियन मेट्रिक टन प्रतिवर्ष तथा १९४६ तक ३० मिलियन मेट्रिक टन हो गया। .
देखें ऊर्जा और भारत में कोयला-खनन
भारत के निजी विश्वविद्यालयों की सूची
भारत में उच्च शिक्षा प्रणाली के अन्तर्गत सार्वजनिक और निजी दोनों प्रकार के विश्वविद्यालय सम्मिलित हैं। सार्वजनिक विश्वविद्यालयों को भारत के केन्द्रीय सरकार तथा राज्य सरकारों से सहायता मिलती है जबकि निजी विश्वविद्यालय विभिन्न निजी संस्थाओं एवं सोसायटी के द्वारा संचालित होते हैं। भारत में विश्वविद्यालयों की मान्यता विश्वविद्यालय अनुदान आयोग देता है। .
देखें ऊर्जा और भारत के निजी विश्वविद्यालयों की सूची
भारत-म्यांमार सम्बन्ध
भारत और म्यांमार दोनों पड़ोसी हैं। इनके संबन्ध अत्यन्त प्राचीन और गहरे हैं और आधुनिक इतिहास के तो कई अध्याय बिना एक-दूसरे के उल्लेख के पूरे ही नहीं हो सकते। आधुनिक काल में 1937 तक बर्मा भी भारत का ही भाग था और ब्रिटिश राज के अधीन था। बर्मा के अधिकतर लोग बौद्ध हैं और इस नाते भी भारत का सांस्कृतिक सम्बन्ध बनता है। पड़ोसी देश होने के कारण भारत के लिए बर्मा का आर्थिक, राजनीतिक और रणनीतिक महत्व भी है। यह नहीं भूलना चाहिए कि यह वही बर्मा है जहाँ भारतीय स्वाधीनता की पहली संगठित लड़ाई का अगुवा बहादुरशाह ज़फर कैद कर रखा गया और वहीं उसे दफ़नाया गया। बरसों बाद बाल गंगाधर तिलक को उसी बर्मा की मांडले जेल में कैद रखा गया। रंगून और मांडले की जेलें अनगिनत स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदानों की गवाह हैं। उस बर्मा में बड़ी संख्या में गिरमिटिया मजदूर ब्रिटिश शासन की गुलामी के लिए ले जाए गए और वे लौट कर नहीं आ सके। इनके आलावा रोज़गार और व्यापार के लिए गए भारतियों की भी बड़ी संख्या वहाँ निवास करती है। यह वही बर्मा है जो कभी भारत की पॉपुलर संस्कृति में ‘मेरे पिया गए रंगून, वहाँ से किया है टेलीफून’ जैसे गीतों में दर्ज हुआ करता था। भारत के लिए म्यांमार का महत्व बहुत ही स्पष्ट है: भारत और म्यांमार की सीमाएं आपस में लगती हैं जिनकी लंबाई 1600 किमी से भी अधिक है तथा बंगाल की खाड़ी में एक समुद्री सीमा से भी दोनों देश जुड़े हुए हैं। अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, मणिपुर और नागालैंड की सीमा म्यांमार से सटी हुई है। म्यांमार के साथ चहुंमुखी संबंधों को बढ़ावा देना भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के आर्थिक परिवर्तन के लिए महत्वपूर्ण है। यह क्षेत्र दुर्गम पहाड़ और जंगल से घिरा हुआ है। इसके एक तरफ भारतीय सीमा में चीन की तत्परता भारत के लिए चिंता का विषय है तो दूसरी तरफ भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में अलगाववादी ताकतों की सक्रियता और घुसपैठ की संभावनाओं को देखते हुए बर्मा से अच्छे संबंध बनाए रखना भारत के लिए अत्यावश्यक है। भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी म्यांमार बहुत महत्वपूर्ण है। दोनों देशों ने सीमा क्षेत्र से बाहर प्रचालन करने वाले भारतीय विद्रोहियों से लड़ने के लिए वास्तविक समयानुसार आसूचना को साझा करने के लिए संधि की है। इस संधि में सीमा एवं समुद्री सीमा के दोनों ओर समन्वित रूप से गस्त लगाने की परिकल्पना है तथा इसके लिए सूचना का आदान–प्रदान आवश्यक है ताकि विद्रोह, हथियारों की तस्करी तथा ड्रग, मानव एवं वन्य जीव के अवैध व्यापार से संयुक्त रूप से निपटा जा सके। स्पष्ट है कि भारत म्यांमार के साथ अपने संबंध को बिगाड़ने के पक्ष में कभी नहीं रहा है। वहीं म्यांमार की फौजी सरकार भी भारत के साथ संबंध बिगाड़ने के पक्ष में नहीं रही है क्योंकि पूर्वोत्तर के भारतीय राज्यों से सीमा के सटे होने के अलावा म्यांमार का पूरा तटवर्तीय क्षेत्र बंगाल की खाड़ी के जरिए भारत से जुड़ा हुआ है। इसकी कुल लंबाई लगभग 2,276 किलोमीटर है। अतः भारत के लिए म्यांमार का बड़ा महत्त्व है। म्यांमार न केवल सार्क, आसियान का सदस्य है, बल्कि तेजी से बढ़ते पूर्व और दक्षिणपूर्व एशिया की अर्थव्यवस्था का एक द्वार भी है। इसके अलावा पूर्वोत्तर भारत में बढ़ती अलगाववादी गतिविधियों के मद्देनजर भी म्यांमार से भारत के रिश्ते का महत्त्व है। 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद फौजी सरकार के सूचना मंत्री ने असम के उल्फा, मणिपुर के पीएलए और नागालैंड के एनएससीएन पर कार्यवाही के लिए तत्पर होने का भरोसा जताया था। भारत, म्यांमार के जरिए थाईलैंड और वियतनाम के साथ संबंध मजबूत कर सकता है। दक्षिण एशिया एवं दक्षिणपूर्व एशिया के बीच सेतु के रूप में म्यांमार ने भारत के राजनयिक क्षेत्र को बहुत ज्यादा आकर्षित किया है। व्यवसाय, संस्कृति एवं राजनय के मिश्रण की दृष्टि से दोनों देशों के बीच मजबूत संबंध है। बौद्ध धर्म, व्यवसाय, बॉलीवुड, भरतनाट्यम और बर्मा का टीक (साल) – ये 5 'बी' (B) हैं जो आम जनता की दृष्टि से भारत-म्यांमार संबंध का निर्माण करते हैं। 1951 की मैत्री संधि पर आधारित द्विपक्षीय संबंध समय की कसौटी पर खरे उतरे हैं तथा एक दुर्लभ गतिशीलता एवं लोच का प्रदर्शन किया है। यह विडम्बना ही है कि पिछले कई वर्षों से बर्मा भारत की विदेश-नीति और राजनीतिक विमर्श में लगभग अनुपस्थित रहा है। 1987 में तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गांधी की यात्रा ने भारत और म्यांमार के बीच मजबूत संबंध की नींव रखी। कुछ साल पहले म्यांमार में राजनीतिक एवं आर्थिक सुधारों के बाद से पिछले चार वर्षों में भारत-म्यांमार संबंधों में महत्वपूर्ण उछाल आया है। राष्ट्रपति यू थिन सेन 12 से 15 अक्टूबर, 2011 के दौरान भारत यात्रा पर आए थे जो मार्च, 2011 में म्यांमार की नई सरकार के शपथ लेने के बाद से म्यांमार की ओर से भारत की पहली राजकीय यात्रा थी। इसके बाद भारत के तत्कालीन प्रधान मंत्री डा.
देखें ऊर्जा और भारत-म्यांमार सम्बन्ध
भारतीय नाभिकीय विद्युत निगम लिमिटेड
भारतीय नाभिकीय विद्युत निगम लिमिटेड (भाविनि), परमाणु ऊर्जा विभाग के प्रशासनिक नियंत्रण मे आनेवाला, भारत सरकार का पूर्णत: स्वामित्वाधीन उद्यम है। कंपनी अधिनियम, 1956 के अंतर्गत दिनाकं 22 अक्टूबर 2003 को निगमित एक सार्वजनिक कंपनी है जिसका उद्देश्य परमाणु ऊर्जा अधिनियम, १९६२ के प्रावधान के अंर्तगत भारत सरकार के योजनाएं एवं कार्यक्रमों के अनुसरण मे तमिलनाडु स्थित कल्पाक्कम में पहला 500 मेगवाट द्रुत प्रजनन रिएक्टर (फास्ट ब्रीडर रिएक्टर) का निर्माण एवं प्रवर्तन करना एवं ऊर्जा उत्पादन हेतु उत्तरवर्ती द्रुत प्रजनन रिएक्टरों के निर्माण, प्रवर्तन, प्रचालन एवं अनुरक्षण मे लगे रहना है।http://www.bhavini.nic.in/hindi/company-profile-hindi.htm .
देखें ऊर्जा और भारतीय नाभिकीय विद्युत निगम लिमिटेड
भारतीय रेल
यार्ड में खड़ी एक जनशताब्दी रेल। भारतीय रेल (आईआर) एशिया का सबसे बड़ा रेल नेटवर्क तथा एकल सरकारी स्वामित्व वाला विश्व का दूसरा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है। यह १६० वर्षों से भी अधिक समय तक भारत के परिवहन क्षेत्र का मुख्य घटक रहा है। यह विश्व का सबसे बड़ा नियोक्ता है, जिसके १३ लाख से भी अधिक कर्मचारी हैं। यह न केवल देश की मूल संरचनात्मक आवश्यकताओं को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है अपितु बिखरे हुए क्षेत्रों को एक साथ जोड़ने में और देश राष्ट्रीय अखंडता का भी संवर्धन करता है। राष्ट्रीय आपात स्थिति के दौरान आपदाग्रस्त क्षेत्रों में राहत सामग्री पहुंचाने में भारतीय रेलवे अग्रणी रहा है। अर्थव्यस्था में अंतर्देशीय परिवहन का रेल मुख्य माध्यम है। यह ऊर्जा सक्षम परिवहन मोड, जो बड़ी मात्रा में जनशक्ति के आवागमन के लिए बड़ा ही आदर्श एवं उपयुक्त है, बड़ी मात्रा में वस्तुओं को लाने ले जाने तथा लंबी दूरी की यात्रा के लिए अत्यन्त उपयुक्त है। यह देश की जीवनधारा है और इसके सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए इनका महत्वपूर्ण स्थान है। सुस्थापित रेल प्रणाली देश के दूरतम स्थानों से लोगों को एक साथ मिलाती है और व्यापार करना, दृश्य दर्शन, तीर्थ और शिक्षा संभव बनाती है। यह जीवन स्तर सुधारती है और इस प्रकार से उद्योग और कृषि का विकासशील त्वरित करने में सहायता करता है। .
देखें ऊर्जा और भारतीय रेल
भौतिक शास्त्र
भौतिकी के अन्तर्गत बहुत से प्राकृतिक विज्ञान आते हैं भौतिक शास्त्र अथवा भौतिकी, प्रकृति विज्ञान की एक विशाल शाखा है। भौतिकी को परिभाषित करना कठिन है। कुछ विद्वानों के मतानुसार यह ऊर्जा विषयक विज्ञान है और इसमें ऊर्जा के रूपांतरण तथा उसके द्रव्य संबन्धों की विवेचना की जाती है। इसके द्वारा प्राकृत जगत और उसकी आन्तरिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। स्थान, काल, गति, द्रव्य, विद्युत, प्रकाश, ऊष्मा तथा ध्वनि इत्यादि अनेक विषय इसकी परिधि में आते हैं। यह विज्ञान का एक प्रमुख विभाग है। इसके सिद्धांत समूचे विज्ञान में मान्य हैं और विज्ञान के प्रत्येक अंग में लागू होते हैं। इसका क्षेत्र विस्तृत है और इसकी सीमा निर्धारित करना अति दुष्कर है। सभी वैज्ञानिक विषय अल्पाधिक मात्रा में इसके अंतर्गत आ जाते हैं। विज्ञान की अन्य शाखायें या तो सीधे ही भौतिक पर आधारित हैं, अथवा इनके तथ्यों को इसके मूल सिद्धांतों से संबद्ध करने का प्रयत्न किया जाता है। भौतिकी का महत्व इसलिये भी अधिक है कि अभियांत्रिकी तथा शिल्पविज्ञान की जन्मदात्री होने के नाते यह इस युग के अखिल सामाजिक एवं आर्थिक विकास की मूल प्रेरक है। बहुत पहले इसको दर्शन शास्त्र का अंग मानकर नैचुरल फिलॉसोफी या प्राकृतिक दर्शनशास्त्र कहते थे, किंतु १८७० ईस्वी के लगभग इसको वर्तमान नाम भौतिकी या फिजिक्स द्वारा संबोधित करने लगे। धीरे-धीरे यह विज्ञान उन्नति करता गया और इस समय तो इसके विकास की तीव्र गति देखकर, अग्रगण्य भौतिक विज्ञानियों को भी आश्चर्य हो रहा है। धीरे-धीरे इससे अनेक महत्वपूर्ण शाखाओं की उत्पत्ति हुई, जैसे रासायनिक भौतिकी, तारा भौतिकी, जीवभौतिकी, भूभौतिकी, नाभिकीय भौतिकी, आकाशीय भौतिकी इत्यादि। भौतिकी का मुख्य सिद्धांत "उर्जा संरक्षण का नियम" है। इसके अनुसार किसी भी द्रव्यसमुदाय की ऊर्जा की मात्रा स्थिर होती है। समुदाय की आंतरिक क्रियाओं द्वारा इस मात्रा को घटाना या बढ़ाना संभव नहीं। ऊर्जा के अनेक रूप होते हैं और उसका रूपांतरण हो सकता है, किंतु उसकी मात्रा में किसी प्रकार परिवर्तन करना संभव नहीं हो सकता। आइंस्टाइन के सापेक्षिकता सिद्धांत के अनुसार द्रव्यमान भी उर्जा में बदला जा सकता है। इस प्रकार ऊर्जा संरक्षण और द्रव्यमान संरक्षण दोनों सिद्धांतों का समन्वय हो जाता है और इस सिद्धांत के द्वारा भौतिकी और रसायन एक दूसरे से संबद्ध हो जाते हैं। .
देखें ऊर्जा और भौतिक शास्त्र
भौतिक विज्ञान का इतिहास
भौतिकी (Physics), विज्ञान की मूलभूत शाखा है जिसका विकास प्रकृति एवं दर्शन के अध्ययन से हुआ था। १९वीं शताब्दी के अन्त तक इसे 'प्राकृतिक दर्शन' ("natural philosophy") कहा जाता था। वर्तमान समय में पदार्थ, उर्जा तथा इसके पारस्परिक सम्बन्धों का अध्ययन भौतिकी कहलाता है। श्रेणी:विज्ञान का इतिहास.
देखें ऊर्जा और भौतिक विज्ञान का इतिहास
भौतिक विज्ञान की पारिभाषिक शब्दावली
(abscissa) किसी ग्राफ पर किसी बिन्दु की Y-अक्ष से लम्बवत दूरी; इसे X-निर्देशांक भी कहते हैं। प्रति-कण (antiparticle) A counterpart of a subatomic particle having opposite properties (except for equal mass)। द्वारक (aperture) Any opening through which radiation may pass.
देखें ऊर्जा और भौतिक विज्ञान की पारिभाषिक शब्दावली
भौतिक विज्ञानी
अल्बर्ट आइंस्टीन, जिन्होने सामान्य आपेक्षिकता का सिद्धान्त दिया भौतिक विज्ञानी अथवा भौतिक शास्त्री अथवा भौतिकीविद् वो वैज्ञानिक कहलाते हैं जो अपना शोध कार्य भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में करते हैं। उप-परवमाणविक कणों (कण भौतिकी) से लेकर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड तक सभी परिघटनाओं का अध्ययन करने वाले लोग इस श्रेणी में माने जाते हैं। .
देखें ऊर्जा और भौतिक विज्ञानी
भौतिकवाद
भौतिकवाद (Materialism) दार्शनिक एकत्ववाद का एक प्रकार हैं, जिसका यह मत है कि प्रकृति में पदार्थ ही मूल द्रव्य है, और साथ ही, सभी दृग्विषय, जिस में मानसिक दृग्विषय और चेतना भी शामिल हैं, भौतिक परस्पर संक्रिया के परिणाम हैं। भौतिकवाद का भौतिकतावाद (Physicalism) से गहरा सम्बन्ध हैं, जिसका यह मत है कि जो कुछ भी अस्तित्व में हैं, वह अंततः भौतिक हैं। भौतिक विज्ञानों की ख़ोज के साथ, दार्शनिक भौतिकतावाद भौतिकवाद से क्रम-विकासित हुआ, ताकि सिर्फ़ सामान्य पदार्थ के बजाए भौतिकता के अधिक परिष्कृत विचारों को समाहित किया जा सकें, जैसे कि, दिक्-काल, भौतिक ऊर्जाएँ और बल, डार्क मैटर, इत्यादि। अतः, कुछ लोग "भौतिकवाद" से बढ़कर "भौतिकतावाद" शब्द को वरीयता देते हैं, जबकि कुछ इन शब्दों का प्रयोग समानार्थी शब्दों के रूप में करते हैं। भौतिकवाद या भौतिकतावाद से विरुद्ध दर्शनों में आदर्शवाद, बहुलवाद, द्वैतवाद और एकत्ववाद के कुछ प्रकार सम्मिलित हैं। .
देखें ऊर्जा और भौतिकवाद
भौतिकी के मूलभूत सिद्धान्तों के खोज का इतिहास
प्रकाश वैद्युत प्रभाव, आइंस्टाइन ब्राउनी गति, आइंस्टाइन नाभिक की खोज अतिचालकता द्रव्य तरंगें (Matter waves) मंदाकिनी Galaxies फोटॉनों के कण-प्रकृति की पुष्टि न्यूट्रॉन की खोज तारों में ऊर्जा-उत्पादन की प्रक्रिया समझी गई म्यूआन न्यूट्रिनो पाया गया सौर न्यूट्रिनो प्रश्न (problem) मिला पल्सर (Pulsars या neutron stars) की खोज चार्म्ड क्वार्क (Charmed quark) का पता चला श्रेणी:भौतिकी श्रेणी:इतिहास ru:Хронология открытий человечества.
देखें ऊर्जा और भौतिकी के मूलभूत सिद्धान्तों के खोज का इतिहास
भू-तापीय ऊर्जा
आइसलैंड के नेसजावेलीर जीओथर्मल पॉवर स्टेशन से उठता भाप. भू-तापीय ऊर्जा (जिसे जियोथर्मल पॉवर कहते हैं, ग्रीक धातु जियो से आया है, जिसका अर्थ है पृथ्वी और थर्मोस अर्थात ताप) वह ऊर्जा है जिसे पृथ्वी में संग्रहित ताप से निकाला जाता है। यह भू-तापीय ऊर्जा, ग्रह के मूल गठन से, खनिज के रेडियोधर्मी क्षय से और सतह पर अवशोषित सौर ऊर्जा से उत्पन्न होती है। पेलिओलिथिक काल से इसका प्रयोग स्नान के लिए और रोमन काल से स्थानों को गर्म करने के लिए किया जाता रहा है, लेकिन अब इसे बिजली उत्पन्न करने के लिए बेहतर रूप में जाना जाता है। दुनिया भर में, भू-तापीय संयंत्रों में यथा 2007, 10 गीगावाट बिजली उत्पन्न करने की क्षमता है और अभ्यास में यह बिजली की वैश्विक मांग का 0.3% की आपूर्ति करती है। 28 गीगावाट की एक अतिरिक्त भू-तापीय ताप क्षमता को जिला तापक, स्थान तापक, स्पा, औद्योगिक प्रक्रियाओं, नमक हटाने और कृषि अनुप्रयोगों के लिए स्थापित किया गया है। भू-तापीय ऊर्जा लागत प्रभावी, विश्वसनीय, टिकाऊ, संपोषणीय और पर्यावरण के अनुकूल है, लेकिन ऐतिहासिक रूप से यह प्लेट विवर्तनिक सीमाओं के निकट के क्षेत्रों तक सीमित रही है। हाल के तकनीकी विकासों ने व्यवहार्य संसाधनों की सीमाओं और आकार को नाटकीय रूप से विस्तार दिया है, विशेष रूप से गृह तापन जैसे अनुप्रयोगों के लिए और बड़े पैमाने पर दोहन की संभावनाओं को भी खोला है। भू-तापीय कुएं, ग्रीन हाउस गैसों को छोड़ते हैं जो धरती के भीतर गहरे फंसी होती है, लेकिन ये उत्सर्जन, ऊर्जा की प्रति यूनिट के हिसाब से जीवाश्म ईंधन की तुलना में बहुत कम हैं। परिणामस्वरूप, भू-तापीय ऊर्जा में वैश्विक गर्मी को कम अर्ने में मदद करने की क्षमता है यदि इन्हें जीवाश्म ईंधन के स्थान पर व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाए.
देखें ऊर्जा और भू-तापीय ऊर्जा
भूकम्प
भूकम्प या भूचाल पृथ्वी की सतह के हिलने को कहते हैं। यह पृथ्वी के स्थलमण्डल (लिथोस्फ़ीयर) में ऊर्जा के अचानक मुक्त हो जाने के कारण उत्पन्न होने वाली भूकम्पीय तरंगों की वजह से होता है। भूकम्प बहुत हिंसात्मक हो सकते हैं और कुछ ही क्षणों में लोगों को गिराकर चोट पहुँचाने से लेकर पूरे नगर को ध्वस्त कर सकने की इसमें क्षमता होती है। भूकंप का मापन भूकम्पमापी यंत्रों (सीस्मोमीटर) के साथ करा जाता है, जो सीस्मोग्राफ भी कहलाता है। एक भूकंप का आघूर्ण परिमाण मापक्रम पारंपरिक रूप से नापा जाता है, या सम्बंधित और अप्रचलित रिक्टर परिमाण लिया जाता है। ३ या उस से कम रिक्टर परिमाण की तीव्रता का भूकंप अक्सर अगोचर होता है, जबकि ७ रिक्टर की तीव्रता का भूकंप बड़े क्षेत्रों में गंभीर क्षति का कारण होता है। झटकों की तीव्रता का मापन विकसित मरकैली पैमाने पर किया जाता है। पृथ्वी की सतह पर, भूकंप अपने आप को, भूमि को हिलाकर या विस्थापित कर के प्रकट करता है। जब एक बड़ा भूकंप उपरिकेंद्र अपतटीय स्थति में होता है, यह समुद्र के किनारे पर पर्याप्त मात्रा में विस्थापन का कारण बनता है, जो सूनामी का कारण है। भूकंप के झटके कभी-कभी भूस्खलन और ज्वालामुखी गतिविधियों को भी पैदा कर सकते हैं। सर्वाधिक सामान्य अर्थ में, किसी भी सीस्मिक घटना का वर्णन करने के लिए भूकंप शब्द का प्रयोग किया जाता है, एक प्राकृतिक घटना) या मनुष्यों के कारण हुई कोई घटना -जो सीस्मिक तरंगों) को उत्पन्न करती है। अक्सर भूकंप भूगर्भीय दोषों के कारण आते हैं, भारी मात्रा में गैस प्रवास, पृथ्वी के भीतर मुख्यतः गहरी मीथेन, ज्वालामुखी, भूस्खलन और नाभिकीय परिक्षण ऐसे मुख्य दोष हैं। भूकंप के उत्पन्न होने का प्रारंभिक बिन्दु केन्द्र या हाईपो सेंटर कहलाता है। शब्द उपरिकेंद्र का अर्थ है, भूमि के स्तर पर ठीक इसके ऊपर का बिन्दु। San Andreas faultके मामले में, बहुत से भूकंप प्लेट सीमा से दूर उत्पन्न होते हैं और विरूपण के व्यापक क्षेत्र में विकसित तनाव से सम्बंधित होते हैं, यह विरूपण दोष क्षेत्र (उदा.
देखें ऊर्जा और भूकम्प
भूकम्पीय तरंग
भूकम्पीय तरंगें (seismic waves) पृथ्वी की आतंरिक परतों व सतह पर चलने वाली ऊर्जा की तरंगें होती हैं, जो भूकम्प, ज्वालामुखी विस्फोट, बड़े भूस्खलन, पृथ्वी के अंदर मैग्मा की हिलावट और कम-आवृत्ति (फ़्रीक्वेन्सी) की ध्वनि-ऊर्जा वाले मानवकृत विस्फोटों से उत्पन्न होती हैं। .
देखें ऊर्जा और भूकम्पीय तरंग
भोजन में फल व सब्जियां
भोजन में फल व सब्जियों का विशेष महत्त्व होता है। भोजन वह पदार्थ होता है, जिसे जीव अपनी जीविका चलाने हेतु ग्रहण किया करते हैं। मानव भोजन में पोषण के अलावा स्वाद भी महत्त्वपूर्ण होता है। किंतु स्वाद के साथ-साथ ही पोषण स्वास्थ्यवर्धक भी होना चाहिये। इसके लिये यह आवश्यक है कि आपके प्रतिदिन के खाने में अलग-अलग रंगों के फल एवं सब्जियां सम्मिलित हों।। हिन्दुस्तान लाइव। ७ फ़रवरी २०१० फलों और सब्जियों से विभिन्न प्रकार के विटामिन, खनिज और फाइटोकैमिकल्स प्राप्त होते हैं। इससे शरीर को रोगों से बचाव के लिए आवश्यक ऊर्जा प्राप्त होती है, साथ ही आयु के बढ़ते प्रभाव को कम करता है, युवा दिखने में मदद करता है और रोगों की रोकथाम करता है, जैसे कि उच्च रक्तचाप, हृदय रोग आदि। फलों और सब्जियों में पोटैशियम की अधिक मात्र होने से उच्च रक्तचाप और गुर्दे में पथरी होने से बचा जा सकता है। साथ ही ये हड्डियों के क्षय को भी रोकता है। सब्जियों में पाये जाने वाले एंटीऑक्सीडेंट्स कई आवश्यक तत्वों, आहारीय रेशा, खनिज-लवण, विटामिनों और अन्य लाभदायक तत्वों को किसी भी गोली के माध्यम से प्राप्त नहीं किया जा सकता है। फलों के तुल्य कोई भी अन्य भोज्य पदार्थ नहीं हो सकता है। इसमें कई ऐसे जादुई सूक्ष्मात्रिक तत्वों और एंटीआक्सीडेंट्स का मिश्रण पाया जाता है जिनकी पूर्ण खोज व ज्ञान अभी भी अज्ञात है। भोजन में पोटैशियम की पूर्ति फलों और सब्जियों के माध्यम से ही होती है, पोटैशियम की शारीरिक ऊर्जा उपापचय में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसकी कमी होने से मांसपेशियों में कमजोरी और कई मानसिक विषमताएं हो जाती हैं। ये कमियां हृदय की कार्यक्षमता में दिखाई देती है। टिटोफन एक आवश्यक एमिनो एसिड है जो फलों और सब्जियों में पाया जाता है। कई प्रकार के ट्रेस एलिमेन्ट्स और अकार्बनिक तत्वों की शरीर के एन्जाइम तंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जिससे शरीर की प्रोटीन और हार्मोन संरचना बनी रहती है। कई प्रकार के खनिज लवण और अन्य सूक्ष्मात्रिक तत्व फलों और सब्जियों में पाये जाते हैं जिनकी मात्र मौसम, कृषि कार्य, मृदा प्रकार और किस्मों की मात्र पर निर्भर करती है। इसलिये अलग-अलग प्रकार के भोज्य पदार्थो को भोजन में शामिल अवश्य करना चाहिये व अच्छे स्वास्थ्य के लिए खाने में सभी आवश्यक तत्वों का पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए। जिन फलों के सेवन से स्वास्थ्य को अच्छा बनाये रखने में मदद मिलती है उनमें सेब, अमरूद, अंगूर, संतरा, केला, पपीता विशेष रूप से प्रयोग किया जा सकता है। इसके अलावा हरी सब्जियों का सेवन करना भी अत्यंत लाभदायक होता है। .
देखें ऊर्जा और भोजन में फल व सब्जियां
महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय
महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय (MGCGV) मध्य प्रदेश के सतना जिले में मन्दाकिनी नदी के किनारे चित्रकूट में स्थित है। इसकी स्थापना का मुख्य उद्देश्य महात्मा गांधी के ग्रामीण विकास के स्वप्न को साकार कर ग्राम स्वराज्य की स्थापना है। अत: सम्यक तकनीक की शिक्षा और इसका प्रसार करना इसका प्रमुख लक्ष्य है। इसकी स्थापना १२ फ़रवरी सन् १९९१ को महाशिवरात्रि के दिन मध्यप्रदेश सरकार के अधिनियम (९, १९९१) के द्वारा हुई। .
देखें ऊर्जा और महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय
महास्कंध
पृथ्वी का अभ्यंतर पिघले हुए पाषाणों का आगार है। ताप एवं ऊर्जा का संकेंद्रण कभी-कभी इतना उग्र हो उठता है कि पिघला हुआ पदार्थ (मैग्मा) पृथ्वी की पपड़ी फाड़कर दरारों के मार्ग से बारह निकल आता है। दरारों में जमे मैग्मा के इन शैलपिंडों को नितुन्न शैल (इंट्रूसिव) कहते हैं। उन विराट् पर्वताकार नितुन्न शैलों को, जिनका आकार गहराई के साथ-साथ बढ़ता चला जाता है और जिनके आधार का पता ही नहीं चल पाता है, महास्कंध या अधःशैल या बैथोलिथ (Batholith) कहते हैं। पर्वत निर्माण की घटनाओं से अधशैलों का गंभीर संबंध है। विशाल पर्वत शृंखलाओं के मध्यवर्ती अक्षीय भाग में अधशैल ही अवस्थित होते हैं। हिमालय की केंद्रीय उच्चतम श्रेणियाँ ग्रेनाइट के अधःशैलों से ही निर्मित हैं। अधःशैलों का विकास दो प्रकार से होता है। ये पूर्वस्थित शैलों के पूर्ण रासायनिक प्रतिस्थापन (रिप्लेसमेंट) एवं पुनस्फाटन (री-क्रिस्टैलाइजेशन) से निर्मित होते हैं और इसके अतिरिक्त अधिकांश छोटे-मोटे नितुन्न शैल पृथ्वी की पपड़ी फाड़कर मैग्मा के जमने से बनते हैं। अध:शैलों की उत्पत्ति के विषय में स्थान का प्रश्न अति महत्वपूर्ण है। क्लूस, इडिंग्स आदि विशेषज्ञों का मत है कि पूर्वस्थित शैल आरोही मैग्मा द्वारा ऊपर एवं पार्श्व की ओर विस्थापित कर दिए गए हैं, परंतु डेली, कोल एवं बैरल जैसे विद्वानों का मत है कि आरोही मैग्मा ने पूर्वस्थित शैलों को सशरीर घोलकर आत्मसात् कर लिया या क्रमश कुतर कुतरकर सरदन (कोरोज़न) द्वारा अपने लिए मार्ग बनाया। .
देखें ऊर्जा और महास्कंध
मौलाना आजाद राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, भोपाल
---- मौलाना आजाद राष्ट्रीय तकनीकी संस्थान, भोपाल की स्थापना १९६० में की गई थी और २६ जून २००२ को इसे राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान का दर्जा दिया गया। इस संस्थान में 8 विभाग हैं। यह संस्थान सिविल इंजीनियरी, अभियांत्रिकी इंजीनियरी, विद्युत इंजीनियरी, इलैक्टोनिकी तथा संचार इंजीनियरी, कम्प्यूटर विज्ञान तथा इंजीनियरी, सूचना प्रौद्योगिकी में चार वर्षीय बी.टेक कार्यक्रम और एक पांच वर्षीय बी.आर्क.
देखें ऊर्जा और मौलाना आजाद राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, भोपाल
मैक्स प्लांक
युवा मैक्स प्लांक (१८७८) जर्मन वैज्ञानिक मैक्स प्लांक (Max Planck) का जन्म 23 अप्रैल 1858 को हुआ था। ग्रेजुएशन के बाद जब उसने भौतिकी का क्षेत्र चुना तो एक अध्यापक ने राय दी कि इस क्षेत्र में लगभग सभी कुछ खोजा जा चुका है अतः इसमें कार्य करना निरर्थक है। प्लांक ने जवाब दिया कि मैं पुरानी चीज़ें ही सीखना चाहता हूँ.
देखें ऊर्जा और मैक्स प्लांक
मूलाधार चक्र
मूलाधार चक्र तंत्र और योग साधना की चक्र संकल्पना का पहला चक्र है। यह अनुत्रिक के आधार में स्थित है। इसे पशु और मानव चेतना के बीच सीमा निर्धारित करने वाला माना जाता है। इसका संबंध अचेतन मन से है, जिसमें पिछले जीवनों के कर्म और अनुभव संचित रहते हैं। कर्म सिद्धान्त के अनुसार यह चक्र प्राणी के भावी प्रारब्ध निर्धारित करता है। .
देखें ऊर्जा और मूलाधार चक्र
मोचन
लोलक घड़ी के लोलक से जुड़ा हुआ 'मोचन': इस व्यवस्था के कारण चक्र एक निश्चित चाल से चलता है। मोचन या इस्केपमेंट (escapement) एक यंत्रावली (मेकेनिज्म) है जो यांत्रिक घड़ियों में प्रयुक्त होता है। यह दोलनी गति को चक्रीयगति में बदल देता है। समयमापन की भाषा में, मोचन दो काम करता है- (१) इम्पल्स ऐक्सन (impulse action): समयमापी अवयव को ऊर्जा देना ताकि घर्षण से नष्ट ऊर्जा की भरपाई होती रहे अर्थात् समयमापी बिना रूके चलता रहे। (२) लॉक करना (locking action): समयमापी अवयव के दोलनों को गिनना; अर्थात् अपनी गति समयमापी की गति के अनुरूप करना घड़ियों में आने वाली 'टिक-टिक' ध्वनि का स्रोत मोचन ही है। इसका विकास सन् १७१५ के आसपास जॉर्ज ग्राहम ने किया। मोचन में दांतेदार पहियों (गीयरों) की एक शृंखला होती है जो किसी ऊर्जास्रोत (जैसे स्प्रिंग, भार आदि) से जुड़ी होती है। 'टर्बिलियन मोचन' (tourbillon escapement) से युक्त एक घड़ी .
देखें ऊर्जा और मोचन
यांत्रिक लाभ
उत्तोलक (लीवर) द्वारा प्राप्त यांत्रिक लाभ चित्र से स्पष्ट है। '''A''' पर बहुत कम बल लगाकर भी '''B''' बिन्दु पर लटकी भारी वस्तु को उठाया जा सकता है। भौतिकी और इंजीनियरी में किसी मेकेनिज्म द्वारा उत्पन्न बल तथा उस पर लगाये बल के अनुपात को यांत्रिक लाभ (mechanical advantage MA) कहते हैं। घर्षणरहित आदर्श मेकेनिज्मों के लिये इसे निम्न प्रकार भी व्यक्त कर सकते हैं- क्रेन आदि बहुत सारी युक्तियाँ यांत्रिक लाभ पर आधारित हैं जिनमें कम बल लगाकर भी बहुत अधिक बल या टॉर्क पैदा किया जाता है। ध्यान रहे कि कि इसमें कोई अतिरिक्त शक्ति या ऊर्जा उत्पन्न नहीं की जा रही है। अलग-अलग गीयर में होने से सायकिल में अलग-अलग यांत्रिक लाभ मिलता है घिरनी के प्रयोग द्वारा यांत्रिक लाभ प्राप्ति के कुछ उदाहरण नी-हिंज लीवर द्वारा प्राप्त यांत्रिक लाभ .
देखें ऊर्जा और यांत्रिक लाभ
यांत्रिक इंजीनियरी
सिलाई मशीन (सन् 1900 के आसपास); मशीन के कार्य आज भी लगभग वही है जो पहले था। एक आधुनिक मशीन: फिलिंग और डोसिंग मशीन यांत्रिक इंजीनियर इंजन, शक्ति-संयंत्र आदि की डिजाइन करते हैं। Two involute gears, the left driving the right: Blue arrows show the contact forces between them.
देखें ऊर्जा और यांत्रिक इंजीनियरी
यंत्र
जेम्स अल्बर्ट बोनसैक द्वारा सन् १८८० में विकसित मशीन; यह मशीन प्रति घण्टे लगभग २०० सिगरेट बनाती थी। कोई भी युक्ति जो उर्जा लेकर कुछ कार्यकलाप करती है उसे यंत्र या मशीन (machine) कहते हैं। सरल मशीन वह युक्ति है जो लगाये जाने वाले बल का परिमाण या दिशा को बदल दे किन्तु स्वयं कोई उर्जा खपत न करे। .
देखें ऊर्जा और यंत्र
रसायन विज्ञान
300pxरसायनशास्त्र विज्ञान की वह शाखा है जिसमें पदार्थों के संघटन, संरचना, गुणों और रासायनिक प्रतिक्रिया के दौरान इनमें हुए परिवर्तनों का अध्ययन किया जाता है। इसका शाब्दिक विन्यास रस+अयन है जिसका शाब्दिक अर्थ रसों (द्रवों) का अध्ययन है। यह एक भौतिक विज्ञान है जिसमें पदार्थों के परमाणुओं, अणुओं, क्रिस्टलों (रवों) और रासायनिक प्रक्रिया के दौरान मुक्त हुए या प्रयुक्त हुए ऊर्जा का अध्ययन किया जाता है। संक्षेप में रसायन विज्ञान रासायनिक पदार्थों का वैज्ञानिक अध्ययन है। पदार्थों का संघटन परमाणु या उप-परमाण्विक कणों जैसे इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन और न्यूट्रॉन से हुआ है। रसायन विज्ञान को केंद्रीय विज्ञान या आधारभूत विज्ञान भी कहा जाता है क्योंकि यह दूसरे विज्ञानों जैसे, खगोलविज्ञान, भौतिकी, पदार्थ विज्ञान, जीवविज्ञान और भूविज्ञान को जोड़ता है। .
देखें ऊर्जा और रसायन विज्ञान
राष्ट्रीय समुद्र प्रौद्योगिकी संस्थान
राष्ट्रीय समुद्र प्रौद्योगिकी संस्थान (National Institute of Ocean Technology / रासप्रौस) भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तकनीकी स्कन्ध के रूप में विद्यमान है। यह संस्थान समुद्र के संसाधनों की फसल काटने से संबंधित तकनीकी विकासात्मक गतिविधियां संचालित करने के काम में लगा हुआ है। इस संस्थान के लक्ष्यक्षेत्र हैं - ऊर्जा व समुद्र जल से शुद्ध जल संगृहित करना, गहन सागर प्रौद्योगिकी, तटीय व पर्यावरणात्मक इन्जीनियरिंग, समुद्री ध्वनिकी, द्वीपों के लिए समुद्री विज्ञान व प्रौद्योगिकी और समुद्र परिवेक्षण प्रणाली आदि। इनके अलावा रासप्रौस के जलपोत प्रबंधन कक्ष दो तटीय अनुसन्धानात्मक जलपोतों का एक उत्फुल्लक टेन्डर व अनुसन्धानात्मक जलपोत और प्राद्योगिकी प्रदर्शनात्मक जलपोत का सन्धारण कर रहा है और उनके द्वारा, गृहाधीन कार्यक्रम अनुसन्धान संगठन व विश्व विद्यालयों को सेवाएं प्रदान कर रहा है। .
देखें ऊर्जा और राष्ट्रीय समुद्र प्रौद्योगिकी संस्थान
रासायनिक ऊर्जा
रासायनिक ऊर्जा एक प्रकार की ऊर्जा है। ऊर्जा का यह रूप पदार्थों के मध्य संचित रहता है। यह अणुओं के मध्य परमाणु के स्थिति के कारण तथा विभिन्न छोटे कणों के आपसी स्थिति के कारण उत्पन्न होता है। यदि किसी तंत्र में रासायनिक ऊर्जा का परिमाण घट जाता है तो इसका अर्थ है कि उसमें होने वाली रासायनिक प्रतिक्रिया से कुछ रासायनिक उर्जा आस-पास के वातारण में उष्मा के रूप में मुक्त हुई है। यदि किसी तंत्र में रासायनिक ऊर्जा का परिमाण बढ़ जाता है तो इसका अर्थ है कि उसमें होने वाली रासायनिक प्रतिक्रिया में कुछ रासायनिक उर्जा आस-पास के वातारण से उष्मा के रूप में अवशोषित हुई है। प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया में प्रकाश ऊर्जा का रासायनिक ऊर्जा में रूपान्तरण होता है। श्रेणी:ऊर्जा.
देखें ऊर्जा और रासायनिक ऊर्जा
रासायनिक आबंध
यह '''लेविस डॉट चित्र''' है जो कि रासायनिक आबंध दर्शाने में मददगार है किसी अणु में दो या दो से अधिक परमाणु जिस बल के द्वारा एक दूसरे से बंधे होते हैं उसे रासायनिक आबन्ध (केमिकल बॉण्ड) कहते हैं। ये आबन्ध रासायनिक संयोग के बाद बनते हैं तथा परमाणु अपने से सबसे पास वाली निष्क्रिय गैस का इलेक्ट्रान विन्यास प्राप्त कर लेते हैं। दूसरे शब्दों में, रासायनिक आबन्ध वह परिघटना है जिसमें दो या दो से अधिक अणु या परमाणु एक दूसरे से आकर्षित होकर और जुड़कर एक नया अणु या आयन बनाते हैं (एक विशेष प्रकार के बन्धन 'धात्विक बन्धन' में यह प्रक्रिया भिन्न होती है)। यह प्रक्रिया सूक्ष्म स्तर पर होती है, लेकिन इसके परिणाम का स्थूल रूप में अवलोकन किया जा सकता है, क्योंकि यही प्रक्रिया अनेकानेक अणुओं और परमाणुओं के साथ होती है। गैस में ये नये अणु स्वतन्त्र रूप से मौजू़द रहते हैं, द्रव में अणु या आयन ढीले तौर पर जुडे रहते हैं और ठोस में ये एक आवर्ती (दुहराव वाले) ढाँचे में एक दूसरे से स्थिरता से जुड़े रहते हैं। .
देखें ऊर्जा और रासायनिक आबंध
रागी
रागी या मड़ुआ अफ्रीका और एशिया के सूखे क्षेत्रों में उगाया जाने वाला एक मोटा अन्न है। यह एक वर्ष में पक कर तैयार हो जाता है। यह मूल रूप से इथियोपिया के उच्च इलाकों का पौधा है जिसे भारत में कोई चार हजार साल पहले लाया गया। ऊँचे इलाकों में अनुकूलित होने में यह काफी समर्थ है। हिमालय में यह २,३०० मीटर की ऊंचाई तक उगाया जाता है। .
देखें ऊर्जा और रागी
रिलायंस अनिल धीरूभाई अंबानी समूह
रिलायंस अनिल धीरूभाई अम्बानी समूह कई कम्पनियों वाला एक औद्योगिक घराना या समूह है। अनिल अंबानी इसके मालिक हैं। मुकेश अंबानी एवं अनिल अम्बाणी के आपसी झगड़े के कारण रिलायंस इण्डस्ट्रीज के विभाजन हुआ और यह समूह अस्तित्व में आया। इसके लगभग ८० लाख शेयर धारक हैं जिससे यह विश्व का सबसे अधिक अंशधारकों वाला समूह बन गया है। इस समूह के अन्तर्गत निम्नलिखित कम्पनियाँ हैं.
देखें ऊर्जा और रिलायंस अनिल धीरूभाई अंबानी समूह
रिक्टर पैमाना
चार्ल्स रिक्टर रिक्टर पैमाना (अंग्रेज़ी:Richter magnitude scale) भूकंप की तरंगों की तीव्रता मापने का एक गणितीय पैमाना है। किसी भूकम्प के समय भूमि के कम्पन के अधिकतम आयाम और किसी यादृच्छ (आर्बिट्रेरी) छोटे आयाम के अनुपात के साधारण लघुगणक को 'रिक्टर पैमाना' कहते हैं। रिक्टर पैमाने का विकास १९३० के दशक में किया गया था। १९७० के बाद से भूकम्प की तीव्रता के मापन के लिये रिक्टर पैमाने के स्थान पर 'आघूर्ण परिमाण पैमाना' (Moment Magnitude Scale (MMS)) का उपयोग किया जाने लगा। 'रिक्तर पैमाने' का पूरा नाम रिक्टर परिमाण परीक्षण पैमाना (रिक्टर मैग्नीट्यूड टेस्ट स्केल) है और लघु रूप में इसे स्थानिक परिमाण (लोकल मैग्नीट्यूड) (M_L) लिखते हैं। .
देखें ऊर्जा और रिक्टर पैमाना
रुद्धोष्म प्रक्रम
रुद्धोष्म प्रक्रम (एडियाबेटिक प्रॉसेस) किसी उष्मा गतिक निकाय में किए गए ऐसे प्रक्रम को कहते हैं, जिसमें परिवर्तन के समय निकाय और वाह्य वातावरण के बीच उष्मीय ऊर्जा का आदान-प्रदान न हो। (रुद्धोष्म .
देखें ऊर्जा और रुद्धोष्म प्रक्रम
रेडियो आवृत्ति
3 किलोहर्ट्ज से 300 गीगा हर्ट्ज़ की आवृत्ति वाली तरंगों को रेडियो आवृत्ति (RF) कहते हैं। रेडियो तरंगें, रेडियो आवृत्ति की तरंगे ही होतीं हैं। रेडियो आवृत्ति के कम्पन - यांत्रिक कम्पन और वैद्युत कम्पन दोनों हो सकते हैं किन्तु प्रायः रेडियो आवृत्ति से आशय विद्युत कम्पन से ही होता है न कि यांत्रिक कम्पन से। .
देखें ऊर्जा और रेडियो आवृत्ति
रेडियो आवृत्ति चतुर्ध्रुवी
रेडियो आवृत्ति चतुर्ध्रुवी त्वरक का योजनामूलक चित्र रेडियो आवृत्ति चतुर्ध्रुवी (radio-frequency quadrupole (RFQ)), रैखिक त्वरक का एक अवयव है जो कम ऊर्जा (50keV से 3MeV) के कणपुंज (बीम) के त्वरित करने के लिये प्रयुक्त होता है। श्रेणी:कण त्वरक.
देखें ऊर्जा और रेडियो आवृत्ति चतुर्ध्रुवी
रेडियोसक्रियता
अल्फा, बीटा और गामा विकिरण की भेदन क्षमता अलग-अलग होती है। रेडियोसक्रियता (रेडियोऐक्टिविटी / radioactivity) या रेडियोधर्मिता वह प्रकिया होती है जिसमें एक अस्थिर परमाणु अपने नाभिक (न्यूक्लियस) से आयनकारी विकिरण (ionizing radiation) के रूप में ऊर्जा फेंकता है। ऐसे पदार्थ जो स्वयं ही ऐसी ऊर्जा निकालते हों विकिरणशील या रेडियोधर्मी कहलाते हैं। यह विकिरण अल्फा कण (alpha particles), बीटा कण (beta particle), गामा किरण (gamma rays) और इलेक्ट्रॉनों के रूप में होती है। ऐसे पदार्थ जिनकी परमाण्विक नाभी स्थिर नहीं होती और जो निश्चित मात्रा में आवेशित कणों को छोड़ते हैं, रेडियोधर्मी (रेडियोऐक्टिव) कहलाते हैं। .
देखें ऊर्जा और रेडियोसक्रियता
रेकी चिकित्सा
100px रेकी चिकित्सा प्रगति पर 2-ch'i4 |j.
देखें ऊर्जा और रेकी चिकित्सा
रोडरनर
कंप्यूटर बनाने वाली शीर्ष कंपनी आईबीएम दुनिया का सबसे तेज़ सुपर कंप्यूटर बना रही है जो प्रति सेकेंड में 1.6 हज़ार खरब तक गणना करने में सक्षम होगा। कंपनी ने इसका नाम 'रोडरनर' रखा है और इसे अमरीकी शहर न्यू मेक्सिको की लॉस अलामोस प्रयोगशाला में तैयार किया जाएगा.
देखें ऊर्जा और रोडरनर
लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर
लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर या वृहद हैड्रॉन संघट्टक (Large Hadron Collider; LHC के रूप में संक्षेपाक्षरित) विश्व का सबसे विशाल और शक्तिशाली कण त्वरक है। यह सर्न की महत्वाकांक्षी परियोजना है। यह जेनेवा के समीप फ़्रान्स और स्विट्ज़रलैण्ड की सीमा पर ज़मीन के नीचे स्थित है। इसकी रचना २७ किलोमीटर परिधि वाले एक छल्ले-नुमा सुरंग में हुई है, जिसे आम भाषा में लार्ड ऑफ द रिंग कहा जा रहा है। इसी सुरंग में इस त्वरक के चुम्बक, संसूचक (डिटेक्टर), बीम-लाइन एवं अन्य उपकरण लगे हैं। सुरंग के अन्दर दो बीम पाइपों में दो विपरीत दिशाओं से आ रही ७ TeV (टेरा एले़ट्रान वोल्ट्) की प्रोट्रॉन किरण-पुंजों (बीम) को आपस में संघट्ट (टक्कर) किया जायेगा जिससे वही स्थिति उत्पन्न की जायेगी जो ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के समय बिग बैंग के रूप में हुई थी। ग्यातव्य है कि ७ TeV उर्जा वाले प्रोटॉन का वेग प्रकाश के वेग के लगभग बराबर होता है। एल एच सी की सहायता से किये जाने वाले प्रयोगों का मुख्य उद्देश्य स्टैन्डर्ड मॉडेल की सीमाओं एवं वैधता की जाँच करना है। स्टैन्डर्ड मॉडेल इस समय कण-भौतिकी का सबसे आधुनिक सैद्धान्तिक व्याख्या या मॉडल है। १० सितंबर २००८ को पहली बार इसमें सफलता पूर्वक प्रोटान धारा प्रवाहित की गई। इस परियोजना में विश्व के ८५ से अधिक देशों नें अपना योगदान किया है। परियोजना में ८००० भौतिक वैज्ञानिक कार्य कर रहे हैं जो विभिन्न देशों, या विश्वविद्यालयों से आए हैं। प्रोटॉन बीम को त्वरित (accelerate) करने के लिये इसके कुछ अवयवों (जैसे द्विध्रुव (डाइपोल) चुम्बक, चतुर्ध्रुव (quadrupole) चुमबक आदि) का तापमान लगभग 1.90केल्विन या -२७१.२५0सेन्टीग्रेड तक ठंडा करना आवश्यक होता है ताकि जिन चालकों (conductors) में धारा बहती है वे अतिचालकता (superconductivity) की अवस्था में आ जांय और ये चुम्बक आवश्यक चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न कर सकें।"".
देखें ऊर्जा और लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर
लाल
लाल वर्ण को रक्त वर्ण भी कहा जाता है, कारण इसका रक्त के रंग का होना। लाल वर्ण प्रकाश की सर्वाधिक लम्बी तरंग दैर्घ्य वाली रोशनी या प्रकाश किरण को कहते हैं, जो कि मानवीय आँख द्वारा दृश्य हो। इसका तरंग दैर्घ्य लगभग625–740 nm तक होता है। इससे लम्बी तरंग को अधोरक्त कहते हैं, जो कि मानवीय चक्षु द्वारा दृश्य नहीं है। लाल रंग प्रकाश का संयोजी प्राथमिक रंग है, जो कि क्याना रंग का सम्पूरक है। लाल रंग सब्ट्रेक्टिव प्राथमिक रंग भी है RYB वर्ण व्योम में, परंतु CMYK वर्ण व्योम में नहीं। मानवीय रंग मनोविज्ञान में, लाल रंग जुडा़ है ऊष्मा, ऊर्जा एवं रक्त से, साथ ही वे भावनाएं जो कि रक्त से जुडी़ हैं। जैसे कि क्रोध, आवेश, प्रेम। .
देखें ऊर्जा और लाल
लेसर विज्ञान
लेसर विज्ञान U.S. Air Force)). लेजर (विकिरण के उद्दीप्त उत्सर्जन द्वारा प्रकाश प्रवर्धन) एक ऐसा यंत्र है जो प्रेरित उत्सर्जन (stimulated emission) एक प्रक्रिया के माध्यम से प्रकाश (light) (चुंबकीय विकिरण) उत्सर्जित करता है। लेजर शब्द प्रकाश प्रवर्धन का प्रेरित उत्सर्जन के द्वारा विकीरण का संक्षिप्त (acronym) शब्द है। लेजर प्रकाश आमतौर पर आकाशिक रूप से सशक्त (coherent), होते हैं, जिसका अर्थ है कि प्रकाश या तो एक संकरे, निम्न प्रवाहित किरण (low-divergence beam) के रूप में निकलेगी, या उसे देखने वाले यंत्रों जैसे लैंस (lens) लैंसों की मदद से एक कर दिया जाएगा। आमतौर पर, लेजर का अर्थ संकरे तरंगदैर्ध्य (wavelength) प्रकाशपुंज से निकलने वाले प्रकाश (मोनोक्रोमेटिक प्रकाश) से लगाया जाता है। यह अर्थ सभी लेजरों के लिए सही नहीं है, हालांकि कुछ लेजर व्यापक प्रकाशपुंज की तरह प्रकाश उत्सर्जित करते हैं, जबकि कुछ कई प्रकार के विशिष्ट तरंगदैर्घ्य पर साथ साथ प्रकाश उत्सर्जित करते हैं। पारंपिरक लेसर के उत्सर्जन में विशिष्ट सामन्जस्य होता है। प्रकाश के अधिकतर अन्य स्रोत असंगत प्रकाश उत्सर्जित करते हैं जिनमें विभिन्न चरण (phase) होते हैं और जो समय और स्थान के साथ निरंतर बदलता रहता है। .
देखें ऊर्जा और लेसर विज्ञान
लोलक (गणित)
गणित में लोलक की गति का विस्तृत और बिना किसी सरलीकरण के अध्ययन किया जा सकता है। .
देखें ऊर्जा और लोलक (गणित)
शरीर द्रव्यमान सूचकांक
एक शरीर द्रव्यमान सूचकांक का ग्राफ़ यहां दिखाया गया है। डैश वाली रेखा प्रधान श्रेणी के खण्ड दिखाती है। कम भार के उपखण्ड हैं: अत्यंत, मध्यम एवं थोड़ा। ''विश्व स्वास्थ्य संगठन के http://www.who.int/bmi/index.jsp?introPage.
देखें ऊर्जा और शरीर द्रव्यमान सूचकांक
शाश्वत गति
रॉबर्ट फ्लड (Robert Fludd) की सन् १६१८ में बनी ''वाटर स्क्रू'' नामक '''निरन्तर-गति मशीन''' का सन् १६६० में निर्मित लकड़ी पर नक्काशी शाश्वत गति (perpetual motion) का शाब्दिक अर्थ है - वह गति जो सदा चलती रहती है। किन्तु प्राय: इसका अर्थ ऐसी किसी युक्ति या प्रणाली से है जो कम ऊर्जा लेकर अधिक ऊर्जा उत्पन्न करती है - जिसका अर्थ है कि यह अनन्त काल तक कुछ न कुछ 'शुद्ध (नेट) ऊर्जा' उत्पन्न करती रहती है। ऐसी मशीन की कल्पना और निर्माण का प्रयत्न बहुत दिनों तक चला किन्तु अब यह मान लिया गया है कि ऐसी मशीन सम्भव नहीं है क्योंकि यदि ऐसा हुआ तो वह ऊर्जा संरक्षण का नियम का उलंघन होगा। .
देखें ऊर्जा और शाश्वत गति
शाहिद खाकन अब्बासी
शाहिद खाकान अब्बासी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री हैं। वे पाकिस्तान की राष्ट्रीय सभा में वह पाकिस्तानी पंजाब के NA-50 निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। - पाकिस्तान के राष्ट्रीय विधानसभा .
देखें ऊर्जा और शाहिद खाकन अब्बासी
शक्ति
भौतिकी में कार्य करने की दर को शक्ति (पावर/Power) कहते हैं। इसकी इकाई वाट होती है जो १ जूल प्रति सेकेण्ड के बराबर होती है। इसके अलावा 'शक्ति' शब्द का अन्य अर्थों में भी उपयोग होता है, जैसे 'देवी', राजनीतिक शक्ति, सैन्य शक्ति आदि। .
देखें ऊर्जा और शक्ति
शक्ति (भौतिकी)
शक्ति (भौतिकी) भौतिकी मे, शक्ति या विद्युत-शक्ति या पावर (प्रतीक: P), वह दर है जिस पर कोई कार्य किया जाता है या ऊर्जा संचारित होती है, या एक नियत समय में कितनी ऊर्जा की आवश्यकता होती है या उर्जा व्यय होती है। P .
देखें ऊर्जा और शक्ति (भौतिकी)
शक्ति संचरण
शक्ति (Power) शब्द का प्रयोग मानवनियंत्रित ऊर्जा को जो यांत्रिक कार्य करने के लिए प्राप्य हो, सूचित करने के लिए किया जाता है। शक्ति के मुख्य स्रोत (source) हैं: मनुष्यों एवं जानवरों की पेशीय ऊर्जा (muscular energy), नदी एवं वायु की गतिज ऊर्जा, उच्च सतहों पर स्थित जलाशय की स्थितिज (potential) ऊर्जा, लहरों एवं ज्वारभाटा की ऊर्जा, पृथ्वी एवं सूर्य की ऊष्मा ऊर्जा, ईंधन को जलाने से प्राप्त ऊष्मा ऊर्जा आदि। पालतू जानवरों की शक्ति का उपयोग मानवीय सभ्यता का प्रथम कदम था। बाद में क्रमश: विभिन्न प्रकार की शक्तियों को उपयोग में लाने के लिए प्रयास किए जाते रहे। अभी भी अधिक से अधिक शक्तियों को नियंत्रित करने में वैज्ञानिक व्यस्त हैं एवं प्रयत्न जारी है। .
देखें ऊर्जा और शक्ति संचरण
शेवरॉन कॉर्पोरेशन
"बिग ऑइल" नाम से मशहूर प्रमुख ऊर्जा कंपनियों के चार्ट, नवीनतम प्रकाशित राजस्व के अनुसार अनुक्रमित कैलिफोर्निया के सैन रेमोन स्थित शेवरॉन मुख्यालय परिसर का प्रवेश द्वार विशाल शेवरॉन मुख्यालय परिसर का एक दृश्य शेवरॉन के पूर्व ट्रेडमार्क की रक्षा के शेवरॉन के "स्टेंडर्ड" नामक ब्रांड नाम से मशहूर 16 शेवरॉन के स्टेशनों में से एक; यह लास वेगास, नेवादा में स्थित है शेवरॉन कॉरपोरेशन एक अमेरिकी बहुराष्ट्रीय ऊर्जा निगम है। इसका मुख्यालय कैलिफोर्निया के सैन रमोन में है और यह 180 से अधिक देशों में सक्रिय है। यह तेल, गैस और भूतापीय ऊर्जा उद्योगों के प्रत्येक पहलू में कार्यरत है जिसमें अन्वेषण और उत्पादन; शोधन, विपणन और परिवहन; रसायन निर्माण एवं बिक्री; और शक्ति उत्पादन भी शामिल है। शेवरॉन दुनिया की छह "सुपरमेजर (अति विशाल)" तेल कंपनियों में से एक है। पिछले पांच साल से शेवरॉन को लगातार फॉर्च्यून 500 द्वारा अमेरिका की 5 सबसे बड़ी कंपनियों में से एक के रूप में श्रेणित किया जाता रहा है। .
देखें ऊर्जा और शेवरॉन कॉर्पोरेशन
सतत वर्णक्रम
भौतिकी में सतत वर्णक्रम (continuous spectrum) ऊर्जा या तरंगदैर्घ्य जैसी किसी भौतिक राशि के सम्भव मूल्यों का ऐसा समुच्चय होता है जो वास्तविक संख्याओं का एक अंतराल हो। इसके विपरीत असतत वर्णक्रम (discrete spectrum) होता है जिसमें राशि का मूल्य किसी असतत समुच्चय का ही हो सकता है, यानि मूल्यों के बीच कुछ रिक्त स्थान होता है। सतत वर्णक्रम का एक बड़ा उदाहरण उत्सर्जन वर्णक्रम है, जिसमें उत्तेजित हाइड्रोजन परमाणुओं द्वारा उत्पन्न प्रकाश का तरंगदैर्घ्य (वेवलेन्थ) होता है। .
देखें ऊर्जा और सतत वर्णक्रम
सस्यविज्ञान
पौधों से भोजन, ईंधन, चारा एवं तन्तु (फाइबर) की प्राप्ति के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी को सस्यविज्ञान (Agronomy) कहते हैं। सस्यविज्ञान के अन्तर्गत पादप अनुवांशिकी, पादप क्रियाविज्ञान, मौसमविज्ञान तथा मृदा विज्ञान समाहित हैं। यह जीवविज्ञान, रसायन विज्ञान, अर्थशास्त्र, पर्यावरण, मृदा विज्ञान तथा आनुवांशिकी आदि विषयों का सम्मिलित अनुप्रयोग है। वर्तमान में सस्यवैज्ञानिक अनेकों कार्यों में संलग्न हैं, जैसे- अन्न उत्पादन, अधिक स्वास्थ्यकर भोजन का उत्पादन, पादपों से ऊर्जा का उत्पादन आदि। सस्यवैज्ञानिक प्रायः सस्य आवर्तन (crop rotation), सिंचाई एवं जलनिकास, पादप प्रजनन, पादपकार्यिकी (plant physiology), मृदा-वर्गीकरण, मृदा-उर्वरकता, खरपतवार-प्रबन्धन, कीट-प्रबन्धन आदि में विशेषज्ञता प्राप्त करते हैं। .
देखें ऊर्जा और सस्यविज्ञान
सातत्य समीकरण
भौतिकी में सातत्य समीकरण (continuity equation) एक समीकरण है जो किसी 'संरक्षित राशि' के परिवहन को अभिव्यक्त करता है। चूँकि द्रव्यमान, ऊर्जा, संवेग, विद्युत आवेश, तथा अन्य प्राकृतिक राशियाँ अपनी-अपनी विशिष्ट दशाओं में संरक्षित रहतीं हैं, इसलिये सातत्य समीकरण का उपयोग करते हुए कई प्रकार की भौतिक परिघटनाओं को अभिव्यक्त किया जा सकता है। उदाहरण के लिये, A1 v1 .
देखें ऊर्जा और सातत्य समीकरण
सिंटेल
सिंटेल, इनकोर्पोरेटेड (Syntel, Inc.) सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) एवं नॉलेज प्रॉसेस आउटसोर्सिंग (केपीओ-KPO) संबंधी समाधानों का एक वैश्विक प्रदाता है, जिसके वैश्विक विकास केंद्र भारत एवं संयुक्त राज्य अमेरिका में हैं। सिंटेल की स्थापना ट्रॉय, मिशिगन में 1980 में मिशिगन विश्वविद्यालय के स्टीफन एम.
देखें ऊर्जा और सिंटेल
संचायक (उर्जा का)
संचायक (Accumulator), ऊर्जा संचित करनेवाला उपकरण है। द्रवइंजीनियरी (hydraulics) मे द्रवचालित संपीडक तथा उत्थापक (elevator) को शक्ति (power) प्रदान करने के लिए, एक प्रकार का संचायक होता है, जिसके ऊर्ध्वाधर बेलन में मज्जक (plunger) भारी भार से भारित रहता है। बेलन में पानी, जो भारयुक्त मज्जक उठा देता है, पंप द्वारा भर दिया जाता है। भारयुक्त मज्जक की क्रिया के कारण उच्चदाब पर पानी तीव्रता से विसर्जित होता है, जिससे यंत्रों को चलाने के लिए द्रवचालित शक्ति प्राप्त होती है। संचायक अल्पकाल के लिए बड़े परिणाम में शक्ति संभरित करता है और इसका भरण निम्न शक्तिवाले पंप से हो सकता है। जल-विद्युत्शक्ति प्रणाली में संचायक संयंत्र के रूप में दूसरे प्रकार के संचायक का उपयोग किया जाता है। ब्रिटेन में संचायक बैटरी (storage battery) को भी संचायक कहते हैं। .
देखें ऊर्जा और संचायक (उर्जा का)
संचार व्यवस्था
संचार सूचना के संप्रेषण की क्रिया है। इस संसार का प्रत्येक प्राणी, अपने चारों ओर के संसार के अन्य प्राणियों से लगभग निरंतर ही सूचनाओं के आदान-प्रदान की आवश्यकता का अनुभव करता है। किसी सफल संचार के लिए यह आवश्यक है कि प्रेषक एवं ग्राही दोनों ही किसी सर्वसामान्य भाषा को समझते हों। मानव निरंतर ही यह प्रयत्न करता रहा है कि उसका मानव जाति से संचार गुणता में उन्नत हो। मानव प्रागैतिहासिक काल से आधुनिक काल तक, संचार में उपयोग होने वाली नयी-नयी भाषाओं एवं विधियों की खोज करने के लिए प्रयत्नशील रहा है, ताकि संचार की गति एवं जटिलताओं के पदों में बढती आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके। संचार प्रणाली के विकास को प्रोन्नत करने वाली घटनाओं एवं उपलब्धियों के विषय में जानकारी होना लाभप्रद है। आधुनिक संचार की जड़ें 19 वी तथा 20 वीं शताब्दियों में सर जगदीश चन्द्र बोस, सेम्युल एफ.बी.
देखें ऊर्जा और संचार व्यवस्था
संचालक
किसी मशीन का जो भाग गति कराने, या ऊर्जा प्रवाहित करने का काम करता है, उसे संचालक या प्रवर्तक (actuator) कहते हैं। संचालक में नियन्त्रण संकेत और ऊर्जा का स्रोत दोनों ही जुड़े होते हैं। संचालक, नियन्त्रण संकेत के अनुसार ऊर्जा को कम या अधिक करने का काम करता है। उदाहरण के लिये मोटर एक संचालक है। .
देखें ऊर्जा और संचालक
संधारणीय ऊर्जा
संधारणीय ऊर्जा (सस्टेनेबल इनर्जी), ऊर्जा के उस प्रावधान को कहते हैं जो भावी पीढ़ियों की ऊर्जा आवश्यकताओं से समझौता किए बिना वर्तमान की जरूरतों को पूरा करती है। अक्षय ऊर्जा स्रोतों में अक्सर सभी नवीकरणीय स्रोत शामिल होते हैं, जैसे वनस्पति पदार्थ, सौर शक्ति, पवन शक्ति, भू-ऊष्मा शक्ति, तरंग शक्ति और ज्वार द्वारा उत्पन्न शक्ति.
देखें ऊर्जा और संधारणीय ऊर्जा
संधारणीय विकास लक्ष्य
संयुक्त राष्ट्र संघ के संधारणीय विकास लक्ष्य का आधिकारिक अंग्रेजी प्रतीक (लोगो) संधारणीय विकास लक्ष्य (Sustainable Development Goals, संक्षेपारित रूप में SDG) भविष्य के अंतरराष्ट्रीय विकास संबंधित लक्ष्यों के सेट हैं। संधारणीय विकास के लिए उनको संयुक्त राष्ट्र द्वारा बनाया गया है और वैश्विक लक्ष्यों के समान प्रचारित किया गया है। 2015 के अंत में सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों के निरस्त हो जाने पर ये उनको प्रतिस्थापित कर रहे हैं। यह लक्ष्य 2015 से 2030 तक चलेगा। उन लक्ष्यों के लिए 17 लक्ष्य और 169 विशिष्ट लक्ष्य हैं। .
देखें ऊर्जा और संधारणीय विकास लक्ष्य
संपीडित वायु ऊर्जा भण्डारण
संपीडित वायु से चलने वाली गाड़ी ऊर्जा भण्डारण की इस विधि में ऊर्जा को संपीडित वायु के रूप में रखा जाता है। इसी लिये इसे संपीडित वायु ऊर्जा भण्डारण (Compressed air energy storage (CAES)) कहते हैं। .
देखें ऊर्जा और संपीडित वायु ऊर्जा भण्डारण
संभार-तंत्र
वस्तुओं, सूचना, उर्जा एवं अन्य संसाधनों को उनके उत्पत्ति-स्थान से लेकर उनके उपभोग के स्थान तक के प्रवाह (आवागमन) का प्रबन्धन करने वाली प्रणाली को संभार-तंत्र (Logistics) कहते हैं। संभार तंत्र में सूचना, यातायात, इन्वेन्टरी, गोदाम, वस्तुओं की उतारना-चढ़ाना (हैडिलिंग), उनकी पैकेजिंग करना एवं उनकी सुरक्षा आदि सम्मिलित है। आधुनिक युद्धकला का वह अंग भी संभार-तंत्र या लॉजिस्टिक्स कहलाता है जिसमें सेना के संचालन, निवास आदि और सैनिको को उनकी आवश्यक सामग्री पहुँचाने की व्यवस्था होती है। .
देखें ऊर्जा और संभार-तंत्र
सक्रियण ऊर्जा
The relationship between activation energy (E_a) and enthalpy of formation (ΔH) with and without a catalyst, plotted against the reaction coordinate. The highest energy position (peak position) represents the transition state. With the catalyst, the energy required to enter transition state decreases, thereby decreasing the energy required to initiate the reaction.
देखें ऊर्जा और सक्रियण ऊर्जा
सुथनी
सुथनी (वानस्पतिक नाम: Dioscorea esculenta; अंग्रेजी: lesser yam) एक प्रकार का कंद है जो शकरकंद परिवार से आता है। हालांकि इसका स्वाद शकरकंद के सामान मीठा नहीं होता, फिर भी यह कठिन परिश्रम करने वाले लोगों को लंबे समय तक ऊर्जा प्रदान करता है। शकरकंद प्रजाति का यह कंद अब विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुका है। यह जमीन की सतह से पांच-छः इंच नीचे पैदा होता है। सुथनी को मुख्यतः उबालकर खाया जाता है और इसका स्वाद हल्का मीठा होता है। हालांकि प्रत्येक कंद का कुछ भाग स्वादहीन होता है। आजकल सुथनी के कई व्यंजन भी बनाए जाने लगे हैं। सुथनी को अंग्रेजी में लेसर येम कहा जाता है और इसका वानस्पतिक नाम दायोस्कोरिया एस्कुलान्ता है। इसकी लता तीन मीटर तक लंबी होती है। यह उष्णकटिबंधीय प्रदेशों, खासकर एशिया और प्रशांत क्षेत्रों में मुख्य खाद्य पदार्थों में से एक रहा है। चीन में 1700 सालों से भी अधिक समय से इसका बड़ी मात्रा में उत्पादन किया जाता रहा है। .
देखें ऊर्जा और सुथनी
स्टेफॉन वोल्ज़मान नियम
स्टेफॉन वोल्ज़मान नियम जिसे स्टेफॉन का नियम के नाम से भी जाना जाता है एक सम्बंध है जो कृष्णिका द्वारा विकरित शक्ति को ताप के शब्दों में वर्णित करता है। विशेष रूप से स्टेफॉन वोल्ज़मान नियमानुसार इकाई समय में सभी तरंगदैर्घ्य परास में कृष्णिका द्वारा प्रति इकाई पृष्ठिय क्षेत्रफल द्वारा विकरित कुल ऊर्जा j^ कृष्णिका के ऊष्मगतिकीय ताप T के चतुर्थ घात के अनुक्रमानुपाती होता है: अनुक्रमानुपाती नियतांक σ को स्टेफॉन-बोल्ज़मान स्थिरांक अथवा स्टेफॉन नियतांक कहा जाता है जिसे अन्य ज्ञात मूलभूत भौतिक नियतांकों से व्युत्पन किया जाता है। इसका मान निम्न होता है: \sigma.
देखें ऊर्जा और स्टेफॉन वोल्ज़मान नियम
स्पन्दित शक्ति
स्पन्दित शक्ति (Pulsed power) किसी अवयव में अपेक्षाकृत लम्बे समय में ऊर्जा एकत्र करके इस ऊर्जा को अल्प समय में निर्मुक्त करने का विज्ञान और प्रौद्योगिकी है। इससे हमें अल्प समय के लिये अत्यधिक तात्क्षणिक शक्ति (instantaneous power) प्राप्त हो जाती है। उदाहरण के लिये, किसी संधारित्र में धीरे-धीरे करके १ जूल ऊर्जा एकत्र की जाय और इस ऊर्जा को केवल १ माइक्रोसेकेण्ड में ही किसी लोड में निर्मुक्त कर दिया जाय तो एक माइक्रोसेकेण्ड की अवधि के लिये उस लोड को १ मेगावाट तात्क्षणिक शक्ति मिलेगी। किन्तु इसी १ जूल ऊर्जा को किसी लोड में १ सेकेण्ड में निर्मुक्त किया जाय तो उस लोड को केवल १ वाट तात्क्षणिक ऊर्जा मिलेगी। स्पन्दित शक्ति का उपयोग अनेक क्षेत्रों में होता है, जैसे- राडार, कण त्वरक, अति उच्च चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करने के लिये, फ्यूजन अनुसंधान, विद्युतचुम्बकीय स्पन्द (पल्सेस), तथा उच्च शक्ति वाले स्पन्दित लेजर आदि। .
देखें ऊर्जा और स्पन्दित शक्ति
स्पेक्ट्रोस्कोपी
स्पेक्ट्रमिकी का सबसे सरल उदाहरण: श्वेत प्रकाश को प्रिज्म होकर ले जाने पर वह सात रंगों में बंट जाती है। स्पेक्ट्रमिकी, भौतिकी विज्ञान की एक शाखा है जिसमें पदार्थों द्वारा उत्सर्जित या अवशोषित विद्युत चुंबकीय विकिरणों के स्पेक्ट्रमों का अध्ययन किया जाता है और इस अध्ययन से पदार्थों की आंतरिक रचना का ज्ञान प्राप्त किया जाता है। इस शाखा में मुख्य रूप से वर्णक्रम का ही अध्ययन होता है अत: इसे स्पेक्ट्रमिकी या स्पेक्ट्रमविज्ञान (Spectroscopy) कहते हैं। मूलत: विकिरण एवं पदार्थ के बीच अन्तरक्रिया (interaction) के अध्ययन को स्पेक्ट्रमिकी या स्पेक्ट्रोस्कोपी (Spectroscopy) कहा जाता था। वस्तुत: ऐतिहासिक रूप से दृष्य प्रकाश का किसी प्रिज्म से गुजरने पर अलग-अलग आवृत्तियों का अलग-अलग रास्ते पर जाना ही स्पेक्ट्रोस्कोपी कहलाता था। बाद में 'स्पेक्ट्रोस्कोपी' शबद के अर्थ का विस्तार हुआ। अब तरंगदैर्ध्य (या आवृत्ति) के फलन के रूप में किसी भी राशि का मापन स्पेक्ट्रोस्कोपी कहलाती है। इसकी परिभाषा का और विस्तार तब मिला जब उर्जा (E) को चर राशि के रूप में सम्मिलित कर लिया गया (क्योंकि पता चला कि उर्जा और आवृत्ति में सीधा सम्बन्ध है: E .
देखें ऊर्जा और स्पेक्ट्रोस्कोपी
स्व-एकत्रण
स्व-एकत्रण ऐसे प्रक्रम हैं जो बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के, अव्यवस्था की स्थिति में विद्यमान प्रणाली से, पूर्व-उपस्थित घटकों के स्थानीय स्तर पर अंतःक्रियाओं के द्वारा स्व-संयोजित होते हैं। स्व-एकत्रण स्थैतिक या गतिक हो सकते हैं। स्थैतिक स्व-एकत्रण में किसी प्रणाली में संतुलन आता है, जिससे उसकी मुक्त उर्जा में कमी आती है। .
देखें ऊर्जा और स्व-एकत्रण
सौर ऊर्जा
विश्व के विभिन्न भागों का औसत सौर विकिरण (आतपन, सूर्यातप)। इस चित्र में जो छोटे-छोटे काले बिन्दु दिखाये गये हैं, यदि उनके ऊपर गिरने वाले सम्पूर्ण सौर विकिरण का उपयोग कर लिया जाय तो विश्व में उपयोग की जा रही सम्पूर्ण ऊर्जा (लगभग 18 टेरावाट) की आपूर्ति इससे ही हो जायेगी। यूएसए के कैलिफोर्निया के सान बर्नार्डिनो में 354 MW वाला SEGS सौर कम्प्लेक्स सौर ऊर्जा वह उर्जा है जो सीधे सूर्य से प्राप्त की जाती है। सौर ऊर्जा ही मौसम एवं जलवायु का परिवर्तन करती है। यहीं धरती पर सभी प्रकार के जीवन (पेड़-पौधे और जीव-जन्तु) का सहारा है। वैसे तो सौर उर्जा के विविध प्रकार से प्रयोग किया जाता है, किन्तु सूर्य की उर्जा को विद्युत उर्जा में बदलने को ही मुख्य रूप से सौर उर्जा के रूप में जाना जाता है। सूर्य की उर्जा को दो प्रकार से विदुत उर्जा में बदला जा सकता है। पहला प्रकाश-विद्युत सेल की सहायता से और दूसरा किसी तरल पदार्थ को सूर्य की उष्मा से गर्म करने के बाद इससे विद्युत जनित्र चलाकर। .
देखें ऊर्जा और सौर ऊर्जा
सौर चूल्हा
सौर चूल्हा In Ghana, Zouzugu villagers like this woman prevent dracunculiasis and other waterborne diseases by pasteurizing water in a CooKit solar cooker. सौर कुकर या सौर चूल्हा (सोलर कूकर) ऐसी युक्ति है जो सूरज के प्रकाश एवं उष्मा की उर्जा से भोजन पकाता है। चूंकि सौर चूल्हे में किसी ईंधन की आवश्यकता नहीं होती और उन्हें चलाने के लिये कोई खर्च नहीं आता, इस कारण से मानवतावादी संस्थाएं इनका कम दामों पर वितरण करके वनों के विनाश एवं मरूस्थलीकरण की प्रक्रिया को कम करने का काम कर रही हैं। The HotPot cooking vessel consists of a dark pot suspended inside a clear pot with a lid .
देखें ऊर्जा और सौर चूल्हा
सौर प्रज्वाल
सौर प्रज्वाल (solar flare) सूरज की सतह के किसी स्थान पर अचानक बढ़ने वाली चमक को कहते हैं। यह प्रकाश वर्णक्रम के बहुत बड़े भाग के तरंगदैर्घ्यों (वेवलेन्थ) पर उत्पन्न होता है। सौर प्रज्वाल में कभी-कभी कोरोना द्रव्य उत्क्षेपण (coronal mass ejection) भी होता है जिसमें सूरज के कोरोना से प्लाज़्मा और चुम्बकीय क्षेत्र बाहर फेंक दिये जाते हैं। यह सामग्री तेज़ी से सौर मंडल में फैलती है और इसके बादल बाहर फेंके जाने के एक या दो दिन बाद पृथ्वी तक पहुँच जाते हैं। इनसे अंतरिक्ष यानों पर दुष्प्रभाव के साथ-साथ पृथ्वी के आयनमंडल पर भी प्रभाव पड़ सकता है, जिस से दूरसंचार प्रभावित होने की सम्भावना बनी रहती है। .
देखें ऊर्जा और सौर प्रज्वाल
सौर मण्डल
सौर मंडल में सूर्य और वह खगोलीय पिंड सम्मलित हैं, जो इस मंडल में एक दूसरे से गुरुत्वाकर्षण बल द्वारा बंधे हैं। किसी तारे के इर्द गिर्द परिक्रमा करते हुई उन खगोलीय वस्तुओं के समूह को ग्रहीय मण्डल कहा जाता है जो अन्य तारे न हों, जैसे की ग्रह, बौने ग्रह, प्राकृतिक उपग्रह, क्षुद्रग्रह, उल्का, धूमकेतु और खगोलीय धूल। हमारे सूरज और उसके ग्रहीय मण्डल को मिलाकर हमारा सौर मण्डल बनता है। इन पिंडों में आठ ग्रह, उनके 166 ज्ञात उपग्रह, पाँच बौने ग्रह और अरबों छोटे पिंड शामिल हैं। इन छोटे पिंडों में क्षुद्रग्रह, बर्फ़ीला काइपर घेरा के पिंड, धूमकेतु, उल्कायें और ग्रहों के बीच की धूल शामिल हैं। सौर मंडल के चार छोटे आंतरिक ग्रह बुध, शुक्र, पृथ्वी और मंगल ग्रह जिन्हें स्थलीय ग्रह कहा जाता है, मुख्यतया पत्थर और धातु से बने हैं। और इसमें क्षुद्रग्रह घेरा, चार विशाल गैस से बने बाहरी गैस दानव ग्रह, काइपर घेरा और बिखरा चक्र शामिल हैं। काल्पनिक और्ट बादल भी सनदी क्षेत्रों से लगभग एक हजार गुना दूरी से परे मौजूद हो सकता है। सूर्य से होने वाला प्लाज़्मा का प्रवाह (सौर हवा) सौर मंडल को भेदता है। यह तारे के बीच के माध्यम में एक बुलबुला बनाता है जिसे हेलिओमंडल कहते हैं, जो इससे बाहर फैल कर बिखरी हुई तश्तरी के बीच तक जाता है। .
देखें ऊर्जा और सौर मण्डल
सौर सेल
मोनोक्रिस्टलाइन सिलिकॉन वैफ़र से बना सौर सेल सौर बैटरी या सौर सेल फोटोवोल्टाइक प्रभाव के द्वारा सूर्य या प्रकाश के किसी अन्य स्रोत से ऊर्जा प्राप्त करता है। अधिकांश उपकरणों के साथ सौर बैटरी इस तरह से जोड़ी जाती है कि वह उस उपकरण का हिस्सा ही बन जाती जाती है और उससे अलग नहीं की जा सकती। सूर्य की रोशनी से एक या दो घंटे में यह पूरी तरह चार्ज हो जाती है। सौर बैटरी में लगे सेल प्रकाश को समाहित कर अर्धचालकों के इलेक्ट्रॉन को उस धातु के साथ क्रिया करने को प्रेरित करता है।। हिन्दुस्तान लाइव। ३१ मार्च २०१० एक बार यह क्रिया होने के बाद इलेक्ट्रॉन में उपस्थित ऊर्जा या तो बैटरी में भंडार हो जाती है या फिर सीधे प्रयोग में आती है। ऊर्जा के भंडारण होने के बाद सौर बैटरी अपने निश्चित समय पर डिस्चार्ज होती है। ये उपकरण में लगे हुए स्वचालित तरीके से पुनः चालू होती है, या उसे कोई व्यक्ति ऑन करता है। सौर सेल का चिह्न एक परिकलक में लगे सौर सेल अधिकांशतः जस्ता-अम्लीय (लेड एसिड) और निकल कैडमियम सौर बैटरियां प्रयोग होती हैं। लेड एसिड बैटरियों की कुछ सीमाएं होती हैं, जैसे कि वह पूरी तरह चार्ज नहीं हो पातीं, जबकि इसके विपरीत निकल कैडिमयम बैटरियों में यह कमी नहीं होती, लेकिन ये अपेक्षाकृत भी होती हैं। सौर बैटरियों को वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत के रूप में भी प्रयोग करने हेतु भी गौर किया जा रहा है। अभी तक, इन्हें केवल छोटे इलैक्ट्रॉनिक उपकरणों में प्रयोगनीय समझा जा रहा है। पूरे घर को सौर बैटरी से चलाना चाहे संभव हो, लेकिन इसके लिए कई सौर बैटरियों की आवश्यकता होगी। इसकी विधियां तो उपलब्ध हैं, लेकिन यह अधिकांश लोगों के लिए अत्यधिक महंगा पड़ेगा। बहुत से सौर सेलों को मिलाकर (आवश्यकतानुसार श्रेणीक्रम या समानान्तरक्रम में जोड़कर) सौर पैनल, सौर मॉड्यूल, एवं सौर अर्रे बनाये जाते हैं। सौर सेलों द्वारा जनित उर्जा, सौर उर्जा का एक उदाहरण है। .
देखें ऊर्जा और सौर सेल
सौर जल तापन
अंगूठाकार सूर्य से धरती पर आने वाली ऊर्जा का उपयोग करके जल का ताप बढ़ाना सौर जल तापन (Solar water heating (SWH)) कहलाता है। इसके लिए सौर ऊष्मा संग्राही (सोलर थर्मल कलेक्तर) का उपयोग किया जाता है। आज सौर जल तापन के लिए विभिन्न स्थितियों के लिए उपयुक्त तथा विभिन्न मूल्य वाली अनेकों प्रणालियाँ उपलब्ध हैं। सौर जल तापन का उपयोग घरों और उद्योगों में बहुतायत में हो रहा है। श्रेणी:सौर ऊर्जा.
देखें ऊर्जा और सौर जल तापन
सूचना क्रांति
सूचना क्रांति (information revolution) वर्तमान समय के आर्थिक, सामाजिक एवं तकनीकी प्रगति को इंगित करता है जो औद्योगिक क्रांति के अतिरिक्त है। .
देखें ऊर्जा और सूचना क्रांति
सूत्रकणिका
ई.आर (9) '''माइटोकांड्रिया''' (10) रसधानी (11) कोशिका द्रव (12) लाइसोसोम (13) तारककाय आक्सी श्वसन का क्रिया स्थल, माइटोकान्ड्रिया जीवाणु एवं नील हरित शैवाल को छोड़कर शेष सभी सजीव पादप एवं जंतु कोशिकाओं के कोशिकाद्रव्य में अनियमित रूप से बिखरे हुए द्वीप-एकक पर्दायुक्त कोशिकांगों (organelle) को सूत्रकणिका या माइटोकॉण्ड्रिया (Mitochondria) कहते हैं। कोशिका के अंदर सूक्ष्मदर्शी की सहायता से देखने में ये गोल, लम्बे या अण्डाकार दिखते हैं।। हिन्दुस्तान लाइव।२४अक्तूबर,२००९ माइटोकॉण्ड्रिया सभी प्राणियों में और उनकी हर प्रकार की कोशिकाओं में पाई जाती हैं। माइटोकाण्ड्रिआन या सूत्रकणिका कोशिका के कोशिकाद्रव्य में उपस्थित दोहरी झिल्ली से घिरा रहता है। माइटोकाण्ड्रिया के भीतर आनुवांशिक पदार्थ के रूप में डीएनए होता है जो वैज्ञानिकों के लिए आश्चर्य एवं खोज़ का विषय हैं। माइटोकाण्ड्रिया में उपस्थित डीएनए की रचना एवं आकार जीवाणुओं के डीएनए के समान है। इससे अनुमान लगाया जाता है कि लाखों वर्ष पहले शायद कोई जीवाणु मानव की किसी कोशिका में प्रवेश कर गया होगा एवं कालांतर में उसने कोशिका को ही स्थायी निवास बना लिया। माइटोकाण्ड्रिया के डीएनए एवं कोशिकाओं के केन्द्रक में विद्यमान डीएनए में ३५-३८ जीन एक समान हैं। अपने डीएनए की वज़ह से माइकोण्ड्रिया कोशिका के भीतर आवश्यकता पड़ने पर अपनी संख्या स्वयं बढ़ा सकते हैं। संतानो की कोशिकाओं में पाया जाने वाला माइटोकांड्रिया उन्हें उनकी माता से प्राप्त होता है। निषेचित अंडों के माइटोकाण्ड्रिया में पाया जाने वाले डीएनए में शुक्राणुओं की भूमिका नहीं होती। है।। चाणक्य।३१ अगस्त, २००९। भगवती लाल माली श्वसन की क्रिया प्रत्येक जीवित कोशिका के कोशिका द्रव्य (साइटोप्लाज्म) एवं माइटोकाण्ड्रिया में सम्पन्न होती है। श्वसन सम्बन्धित प्रारम्भिक क्रियाएँ साइटोप्लाज्म में होती है तथा शेष क्रियाएँ माइटोकाण्ड्रियाओं में होती हैं। चूँकि क्रिया के अंतिम चरण में ही अधिकांश ऊर्जा उत्पन्न होती हैं। इसलिए माइटोकाण्ड्रिया को कोशिका का श्वसनांग या 'शक्ति गृह' (पावर हाउस) कहा जाता है। जीव विज्ञान की प्रशाखा कोशिका विज्ञान या कोशिका जैविकी (साइटोलॉजी) इस विषय में विस्तार से वर्णन उपलब्ध कराती है। अमेरिका के शिकागो विश्वविद्यालय के डॉ॰ सिविया यच.
देखें ऊर्जा और सूत्रकणिका
सूर्य
सूर्य अथवा सूरज सौरमंडल के केन्द्र में स्थित एक तारा जिसके चारों तरफ पृथ्वी और सौरमंडल के अन्य अवयव घूमते हैं। सूर्य हमारे सौर मंडल का सबसे बड़ा पिंड है और उसका व्यास लगभग १३ लाख ९० हज़ार किलोमीटर है जो पृथ्वी से लगभग १०९ गुना अधिक है। ऊर्जा का यह शक्तिशाली भंडार मुख्य रूप से हाइड्रोजन और हीलियम गैसों का एक विशाल गोला है। परमाणु विलय की प्रक्रिया द्वारा सूर्य अपने केंद्र में ऊर्जा पैदा करता है। सूर्य से निकली ऊर्जा का छोटा सा भाग ही पृथ्वी पर पहुँचता है जिसमें से १५ प्रतिशत अंतरिक्ष में परावर्तित हो जाता है, ३० प्रतिशत पानी को भाप बनाने में काम आता है और बहुत सी ऊर्जा पेड़-पौधे समुद्र सोख लेते हैं। इसकी मजबूत गुरुत्वाकर्षण शक्ति विभिन्न कक्षाओं में घूमते हुए पृथ्वी और अन्य ग्रहों को इसकी तरफ खींच कर रखती है। सूर्य से पृथ्वी की औसत दूरी लगभग १४,९६,००,००० किलोमीटर या ९,२९,६०,००० मील है तथा सूर्य से पृथ्वी पर प्रकाश को आने में ८.३ मिनट का समय लगता है। इसी प्रकाशीय ऊर्जा से प्रकाश-संश्लेषण नामक एक महत्वपूर्ण जैव-रासायनिक अभिक्रिया होती है जो पृथ्वी पर जीवन का आधार है। यह पृथ्वी के जलवायु और मौसम को प्रभावित करता है। सूर्य की सतह का निर्माण हाइड्रोजन, हिलियम, लोहा, निकेल, ऑक्सीजन, सिलिकन, सल्फर, मैग्निसियम, कार्बन, नियोन, कैल्सियम, क्रोमियम तत्वों से हुआ है। इनमें से हाइड्रोजन सूर्य के सतह की मात्रा का ७४ % तथा हिलियम २४ % है। इस जलते हुए गैसीय पिंड को दूरदर्शी यंत्र से देखने पर इसकी सतह पर छोटे-बड़े धब्बे दिखलाई पड़ते हैं। इन्हें सौर कलंक कहा जाता है। ये कलंक अपने स्थान से सरकते हुए दिखाई पड़ते हैं। इससे वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला है कि सूर्य पूरब से पश्चिम की ओर २७ दिनों में अपने अक्ष पर एक परिक्रमा करता है। जिस प्रकार पृथ्वी और अन्य ग्रह सूरज की परिक्रमा करते हैं उसी प्रकार सूरज भी आकाश गंगा के केन्द्र की परिक्रमा करता है। इसको परिक्रमा करनें में २२ से २५ करोड़ वर्ष लगते हैं, इसे एक निहारिका वर्ष भी कहते हैं। इसके परिक्रमा करने की गति २५१ किलोमीटर प्रति सेकेंड है। Barnhart, Robert K.
देखें ऊर्जा और सूर्य
सूक्ष्मजीव
जीवाणुओं का एक झुंड वे जीव जिन्हें मनुष्य नंगी आंखों से नही देख सकता तथा जिन्हें देखने के लिए सूक्ष्मदर्शी यंत्र की आवश्यकता पड़ता है, उन्हें सूक्ष्मजीव (माइक्रोऑर्गैनिज्म) कहते हैं। सूक्ष्मजैविकी (microbiology) में सूक्ष्मजीवों का अध्ययन किया जाता है। सूक्ष्मजीवों का संसार अत्यन्त विविधता से बह्रा हुआ है। सूक्ष्मजीवों के अन्तर्गत सभी जीवाणु (बैक्टीरिया) और आर्किया तथा लगभग सभी प्रोटोजोआ के अलावा कुछ कवक (फंगी), शैवाल (एल्गी), और चक्रधर (रॉटिफर) आदि जीव आते हैं। बहुत से अन्य जीवों तथा पादपों के शिशु भी सूक्ष्मजीव ही होते हैं। कुछ सूक्ष्मजीवविज्ञानी विषाणुओं को भी सूक्ष्मजीव के अन्दर रखते हैं किन्तु अन्य लोग इन्हें 'निर्जीव' मानते हैं। सूक्ष्मजीव सर्वव्यापी होते हैं। यह मृदा, जल, वायु, हमारे शरीर के अंदर तथा अन्य प्रकार के प्राणियों तथा पादपों में पाए जाते हैं। जहाँ किसी प्रकार जीवन संभव नहीं है जैसे गीज़र के भीतर गहराई तक, (तापीय चिमनी) जहाँ ताप 100 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा हुआ रहता है, मृदा में गहराई तक, बर्फ की पर्तों के कई मीटर नीचे तथा उच्च अम्लीय पर्यावरण जैसे स्थानों पर भी पाए जाते हैं। जीवाणु तथा अधिकांश कवकों के समान सूक्ष्मजीवियों को पोषक मीडिया (माध्यमों) पर उगाया जा सकता है, ताकि वृद्धि कर यह कालोनी का रूप ले लें और इन्हें नग्न नेत्रों से देखा जा सके। ऐसे संवर्धनजन सूक्ष्मजीवियों पर अध्ययन के दौरान काफी लाभदायक होते हैं। .
देखें ऊर्जा और सूक्ष्मजीव
सेंटीमीटर-ग्राम-सैकिण्ड इकाई प्रणाली
। सेन्टीमीटर मापने का टेपसेंटीमीटर-ग्राम-सैकिण्ड इकाई प्रणाली (CGS) भौतिक इकाइयों के मापन की प्रणाली है। यह या~ंत्रिक इकाइयों हेतु सर्वदा समान है, पर्म्तु कई विद्युत इकाइयाँ जुडी़ हैं। इसका स्थान बाद में MKS इकाई प्रणाली ने ले लिया था, जिसमें मीटर, किलोग्राम सैकिण्ड प्रयोग होते थे,। वह भी बाद में अन्तर्राष्ट्रीय इकाई प्रणाली से बदली गयी। इस नयी प्रणाली में MKS प्रणाली की ही इकैयाँ थी, जिनके साथ साथ एम्पीयर, मोल, कैण्डेला और कैल्विन शामिल थे। .
देखें ऊर्जा और सेंटीमीटर-ग्राम-सैकिण्ड इकाई प्रणाली
सी एफ एल
ट्यूबनुमा लघु फ्लोरिसेंट लैम्प (सीएफएल) सी एफ एल या कम्पैक्ट फ्लोरिसेन्ट लैम्प एक प्रकार का फ्लोरिसेंट लैम्प है। इससे विद्युत उर्जा की बचत होती है और कम उर्जा से ही अपेक्षाकृत अधिक प्रकाश प्राप्त होता है। आजकल इनको इस प्रकार डिजाइन किया गया है कि बल्ब लगाने के लिये पहले से उपलब्ध साकेटों में इन्हें लगाया जा सकता है। .
देखें ऊर्जा और सी एफ एल
हरितलवक
हरितलवक या क्लोरोप्लास्ट एक प्रकार का कोशिकांग है जो सुकेन्द्रिक पादप कोशिकाओं में और शैवालीय कोशिकाओं में पाया जाता है। हरितलवक प्रकाश-संश्लेषण द्वारा प्रकाशीय ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित करतें हैं। इन का हरा रंग इन में पर्णहरित (क्लोरोफ़िल) रसायन के होने के कारण है जो प्रकाश-संश्लेषण में अत्यावश्यक है। माना जाता है कि नील हरित शैवाल नाम के जीवाणुओं से हरितलवकों का विकास हुआ। श्रेणी:कोशिकाविज्ञान श्रेणी:कोशिका श्रेणी:कोशिकांग श्रेणी:अंतर्सहजीवी घटनाएँ.
देखें ऊर्जा और हरितलवक
हरकिमर हीरा
२X३.१ सें.मी. का हरकिमर हीरा हरकिमर हीरे दोहरे टर्माइटेड क्वार्ट्ज क्रिस्टलों को कहते हैं, जो देखने में एकदम असली हीरे जैसे लगते हैं। इनकी खोज सर्वप्रथम न्यू यॉर्क के हरकिमर काउण्टी स्थित लिटिल प्रपात एवं मोहॉक नदी घाटी से प्राप्त डोलोमाइट से हुई थी। १७०० के दशक के अंत में मोहॉक घाटी में इनकी बड़ी मात्रा प्राप्त हुई और तब ये बहुत प्रचलित हुए थे। भूगर्भशास्त्रियों ने हरकिमर काउंटी में इन्हें खुले में ही पाया और वहीं खोज व खनन आरंभ किया। यही से सबसे खास क्लीपर क्वार्ट्ज़ स्टोन भी सबसे पहले मिला था, वहीं से इनको अपना वर्तमान नाम भी मिला। ये खूबसूरत नगीने हूबहू हीरों की तरह लगते हैं, लेकिन असल में हैं ये क्वाट्र्ज ही। इसीलिए ‘ड्रीम स्टोन’ भी कहलाते हैं। कहीं-कहीं स्मोकी हरकिमर का प्रयोग इमारतों की बाहरी शोभा बढ़ाने के लिए भी किया जाता है। मात्र सजावट के लिए नहीं, बल्कि विद्युतचुम्बकत्व या भौगोलिक प्रदूषण की मार से बचाने के लिए भी ये प्रयोग किया जाता है।|हिन्दुस्तान लाइव। १२ जनवरी २०१०। अमिताभ सिंह फेंग्शुई में भी हरकिमर का बखान आता है। इसके अनुसार हरकिमर को आसपास रखने से ऊर्जा को आवश्यकता की जगहों पर लगाने की समझ आती है। अपने शयन-कक्ष, अध्ययन कक्ष या कार्यालय के उत्तर पूर्व दिशा में हरकिमर रखने से ज्ञान और समझ ग्रहण करने हेतु ऊर्जा ग्रहण करने की गति तेज होती जाती है। मिडविले, न्यू यॉर्क से प्राप्त हरकिमर डायमंड, सिलिकॉन डाईऑक्साइड लोगों की मान्यता अनुसार इसके द्वारा सोच-विचार, ऊर्जा और संतुष्टि की गहरी भावना बढ़ने और फिर समाने लगती है। हरकिमर बेहतरीन हीलिंग स्टोन के रूप में भी प्रसिद्ध हुआ है। यह दैनिक जीवन की समस्याओं, दबाव यानी स्ट्रेस और तनाव को नियंत्रण में रखते हुए इनसे जुड़े रोगों से प्रतिरक्षा करता है। शारीरिक हानि होने से पूर्व ही लक्षणों को भांप कर, हरकिमर पहनने या संग-अंग रखने वाला सचेत होने लगता है। किसी भी राशि वालों को इसे पहनने की मनाही नहीं है। यह वृश्चिक, कर्क और सिंह राशियों का जन्म-रत्न है। गोल्डन हरकिमर लिंग बदलने वालों के लिए जबरदस्त सहायक स्टोन है। .
देखें ऊर्जा और हरकिमर हीरा
हाईड एक्ट
हाइड एक्ट का पूरा नाम हेनरी जे हाइड संयुक्त राज्य-भारत शांतिपूर्ण परमाणु ऊर्जा सहयोग अधिनियम २००६ है। यह अमेरिकी कांग्रेस में एक निजी सदस्य बिल के रूप में पास हुआ है। इसमें भारत और अमेरिका के बीच प्रस्तावित परमाणु समझौते से जुड़े नियम एवं शर्तों को समाहित किया गया है। इस समझौते के लिए जब अमेरिका के परमाणु ऊर्जा अधिनियम १९५४ की धारा १२३ में संशोधन किया गया तब इसका नाम हाइड एक्ट रख दिया गया। श्रेणी:परमाणु परीक्षण.
देखें ऊर्जा और हाईड एक्ट
हाइड्रोजन प्रौद्योगिकी
हाइड्रोजन के उत्पादन एवं उपयोग से सम्बन्धित समस्त तकनीकें हाइड्रोजन प्रौद्योगिकी के अन्तर्गत आतीं हैं। हाइड्रोजन प्रौद्योगिकी का अनेकानेक क्षेत्रों में उपयोग हो रहा है या हो सकता है। कुछ हाइद्रोजन प्रौद्योगिकियाँ कार्बन न्यूट्रल हैं तथा इस कारण जलवायु परिवर्तन को रोकने तथा भविष्य की हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती हैं। .
देखें ऊर्जा और हाइड्रोजन प्रौद्योगिकी
हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था
हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था के घटक हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था की सम्भावित समयरेखा हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था (हाइड्रोजन इकनॉमी) से आशय उस प्रस्तावित प्रणाली से है जिसमें अधिकांश ऊर्जा, हाइड्रोजन से प्राप्त होगी। 'हाइड्रोजन इकनॉमी' नामक शब्द का प्रयोग सबसे पहले १९७० में जॉन बोकरिस ने एक व्याख्यान के समय किया था। .
देखें ऊर्जा और हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था
हिमाचल प्रदेश
हिमाचल प्रदेश (अंग्रेज़ी: Himachal Pradesh, उच्चारण) उत्तर-पश्चिमी भारत में स्थित एक राज्य है। यह 21,629 मील² (56019 किमी²) से अधिक क्षेत्र में फ़ैला है तथा उत्तर में जम्मू कश्मीर, पश्चिम तथा दक्षिण-पश्चिम में पंजाब (भारत), दक्षिण में हरियाणा एवं उत्तर प्रदेश, दक्षिण-पूर्व में उत्तराखण्ड तथा पूर्व में तिब्बत से घिरा हुआ है। हिमाचल प्रदेश का शाब्दिक अर्थ "बर्फ़ीले पहाड़ों का प्रांत" है। हिमाचल प्रदेश को "देव भूमि" भी कहा जाता है। इस क्षेत्र में आर्यों का प्रभाव ऋग्वेद से भी पुराना है। आंग्ल-गोरखा युद्ध के बाद, यह ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार के हाथ में आ गया। सन 1857 तक यह महाराजा रणजीत सिंह के शासन के अधीन पंजाब राज्य (पंजाब हिल्स के सीबा राज्य को छोड़कर) का हिस्सा था। सन 1950 मे इसे केन्द्र शासित प्रदेश बनाया गया, लेकिन 1971 मे इसे, हिमाचल प्रदेश राज्य अधिनियम-1971 के अन्तर्गत इसे 25 january 1971 को भारत का अठारहवाँ राज्य बनाया गया। हिमाचल प्रदेश की प्रतिव्यक्ति आय भारत के किसी भी अन्य राज्य की तुलना में अधिक है । बारहमासी नदियों की बहुतायत के कारण, हिमाचल अन्य राज्यों को पनबिजली बेचता है जिनमे प्रमुख हैं दिल्ली, पंजाब (भारत) और राजस्थान। राज्य की अर्थव्यवस्था तीन प्रमुख कारकों पर निर्भर करती है जो हैं, पनबिजली, पर्यटन और कृषि। हिंदु राज्य की जनसंख्या का 95% हैं और प्रमुख समुदायों मे ब्राह्मण, राजपूत, घिर्थ (चौधरी), गद्दी, कन्नेत, राठी और कोली शामिल हैं। ट्रान्सपरेन्सी इंटरनैशनल के 2005 के सर्वेक्षण के अनुसार, हिमाचल प्रदेश देश में केरल के बाद दूसरी सबसे कम भ्रष्ट राज्य है। .
देखें ऊर्जा और हिमाचल प्रदेश
हिंदुजा समूह
हिंदुजा समूह के मालिक श्रीचंद हिंदुजा और उनके भाई गोपीचंद हिंदुजा हैं, जिन्हें संक्षेप में हिंदुजा भाइयों के रूप में जाना जाता है.
देखें ऊर्जा और हिंदुजा समूह
जठरांत्र क्षेत्र
जठरांत्र क्षेत्र (gastrointestinal tract या digestive tract (पाचन क्षेत्र) या alimentary canal) मनुष्य एवं अन्य जन्तुओं के अन्दर पाया जाने वाला अंग तंत्र है जो भोजन को ग्रहण करता है, इसका पाचन करता है, उसमें से ऊर्जा एवं पोषक पदार्थों का शोषण करता है, और अन्त में बचे हुए अपशिष्ट (वेस्ट) को मल एवं मूत्र के रूप में बाहर निकालता है। मानव के जठरान्त्र क्षेत्र में, मुख, आमाशय, छोटी आँत, बडी आँत होते हैं। .
देखें ऊर्जा और जठरांत्र क्षेत्र
जल
जल या पानी एक आम रासायनिक पदार्थ है जिसका अणु दो हाइड्रोजन परमाणु और एक ऑक्सीजन परमाणु से बना है - H2O। यह सारे प्राणियों के जीवन का आधार है। आमतौर पर जल शब्द का प्प्रयोग द्रव अवस्था के लिए उपयोग में लाया जाता है पर यह ठोस अवस्था (बर्फ) और गैसीय अवस्था (भाप या जल वाष्प) में भी पाया जाता है। पानी जल-आत्मीय सतहों पर तरल-क्रिस्टल के रूप में भी पाया जाता है। पृथ्वी का लगभग 71% सतह को 1.460 पीटा टन (पीटी) (1021 किलोग्राम) जल से आच्छदित है जो अधिकतर महासागरों और अन्य बड़े जल निकायों का हिस्सा होता है इसके अतिरिक्त, 1.6% भूमिगत जल एक्वीफर और 0.001% जल वाष्प और बादल (इनका गठन हवा में जल के निलंबित ठोस और द्रव कणों से होता है) के रूप में पाया जाता है। खारे जल के महासागरों में पृथ्वी का कुल 97%, हिमनदों और ध्रुवीय बर्फ चोटिओं में 2.4% और अन्य स्रोतों जैसे नदियों, झीलों और तालाबों में 0.6% जल पाया जाता है। पृथ्वी पर जल की एक बहुत छोटी मात्रा, पानी की टंकिओं, जैविक निकायों, विनिर्मित उत्पादों के भीतर और खाद्य भंडार में निहित है। बर्फीली चोटिओं, हिमनद, एक्वीफर या झीलों का जल कई बार धरती पर जीवन के लिए साफ जल उपलब्ध कराता है। जल लगातार एक चक्र में घूमता रहता है जिसे जलचक्र कहते है, इसमे वाष्पीकरण या ट्रांस्पिरेशन, वर्षा और बह कर सागर में पहुॅचना शामिल है। हवा जल वाष्प को स्थल के ऊपर उसी दर से उड़ा ले जाती है जिस गति से यह बहकर सागर में पहँचता है लगभग 36 Tt (1012किलोग्राम) प्रति वर्ष। भूमि पर 107 Tt वर्षा के अलावा, वाष्पीकरण 71 Tt प्रति वर्ष का अतिरिक्त योगदान देता है। साफ और ताजा पेयजल मानवीय और अन्य जीवन के लिए आवश्यक है, लेकिन दुनिया के कई भागों में खासकर विकासशील देशों में भयंकर जलसंकट है और अनुमान है कि 2025 तक विश्व की आधी जनसंख्या इस जलसंकट से दो-चार होगी।.
देखें ऊर्जा और जल
जल इंजीनियरी
द्रविकी का अन्य विधाओं से सम्बन्ध द्रविकी (Hydraulics / 'द्रवविज्ञान' या जल इंजीनियरी अथवा द्रव इंजीनियरी) के अंतर्गत तरल पदार्थों के प्रवाह के गुणधर्म का अध्ययन करती है। प्रौद्योगिकी में द्रविकी का उपयोग अन्य कार्यों के अलावा संकेत, बल या ऊर्जा के संचरण (ट्रांसमिशन) के लिये किया जाता है। द्रविकी में इंजीनियरी के उपतत्वों का विचार आ जाता है जिनके अंतर्गत जल, वायु तथा तैल और अन्य रासायनिक विलयनों का उपयोग प्राकृतिक दशा में या दबाव के अंदर होता है। इन द्रवों के प्राकृतिक गुणों का, जैसे घनत्व, श्यानता, प्रत्यास्थता और पृष्ठ तनाव आदि, के ऊपर इंजीनियरी के समस्त अभिकल्प निर्भर होते हैं, क्योंकि सारे द्रवों का आधारभूत व्यवहार एक सा ही होता है। जल इंजीनियरी के और भी बहुत से विशेष अंग हैं जिनका विवरण उन विशेष अंगों के अंतर्गत मिल सकता है। जल इंजीनियरी में मुख्यत: जल का स्थिर दबाव, उसकी गति तथा उसका प्रभाव, उसके द्वारा चालित यंत्र जल का मापन आदि विषयों का विचार आ जाता है। .
देखें ऊर्जा और जल इंजीनियरी
जलमौसमविज्ञान
जलमौसमविज्ञान या हाइड्रोमेतेरोलोजी (Hydrometeorology) मौसमविज्ञान एवं जलविज्ञान की एक शाखा है। इसके अन्तर्गत धरातल और वायुमण्डल की नीचली सतह के बीच जल एवं उर्जा के स्थानान्तरण का अध्ययन किया जाता है। जलमौसमविज्ञान की सहायता से ही मौसम परिवर्तन का पूर्वानुमान लगाया जाता है। .
देखें ऊर्जा और जलमौसमविज्ञान
जलशक्ति
गिरते हुए जल या तेज गति से प्रवाहित जल से जो शक्ति (ऊर्जा) प्राप्त की जाती है उसे जलशक्ति (Hydropower) कहते हैं। प्राचीन काल से ही जलचक्की का उपयोग करके जलशक्ति प्राप्त की जाती रही है और इससे आरा मशीने, कपड़ा बुनने की मशीनें आदि चलायी जातीं थीं। आधुनिक युग में जलशक्ति से विद्युत का उत्पादन किया जाता है जिसे दूर-दूर तक भेजा जा सकता है और अनेकों प्रकार से इसका उपयोग किया जा सकता है। .
देखें ऊर्जा और जलशक्ति
जलविद्युत ऊर्जा
'''थ्री जार्ज बांध''' - विश्व का सबसे बड़ा जलविद्युत स्टेशन गिरते हुए या बहते हुए जल की उर्जा से जो विद्युत उत्पन्न की जाती है उसे जलविद्युत (Hydroelectricity) कहते हैं। सन् २००५ में विश्व भर में लगभग ८१६ GWe (जिगावाट एलेक्ट्रिकल) जलविद्युत उत्पन्न की जाती थी जो कि विश्व की सम्पूर्ण विद्युत उर्जा का लगभग २०% है। यह बिजली प्रदूषण रहित है। एवं यह पर्यावरण के अनुकूल है। .
देखें ऊर्जा और जलविद्युत ऊर्जा
जैवनिस्यंदन
जैवनिस्यन्दन (बायोफिल्ट्रेशन) एक नवीन तकनीक है, जिसके द्वरा दुर्गन्धपूर्ण गैस और कम सान्द्र वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों (वोलेटाइल आर्गेनिक कंपाउंड्स) को समाप्त किया जाता है। किसी भी वस्तु में दुर्गन्घ उसमे पलने वाले कीटाणुओं के उपस्थिति से होता है। इन कीटाणुओं को बायोफिल्ट्रेशन द्वारा समाप्त किया जा सकता है। .
देखें ऊर्जा और जैवनिस्यंदन
जैवभार
पुआल के गट्ठर बायोमास बानाने के काम आते हैं। धान की भूसी को जलाकर ऊर्जा (ऊष्मा) प्राप्त की जा सकती है। Panicum virgatum का उपयोग जैव मात्रा के रूप में किया जाता है। जीवित जीवों अथवा हाल ही में मरे हुए जीवों से प्राप्त पदार्थ जैव मात्रा या जैव संहति या 'बायोमास' (Biomass) कहलाता है। प्रायः यहाँ 'जीव' से आशय 'पौधों' से है। बायोमास ऊर्जा के स्रोत हैं। इन्हें सीधे जलाकर इस्तेमाल किया जा सकता है या इनको विभिन्न प्रकार के जैव ईंधन में परिवर्तित करने के बाद इस्तेमाल किया जा सकता है। उदाहरण- गन्ने की खोई, धान की भूसी, अनुपयोगी लकड़ी आदि बायोमास को जैव ईंधन के रूप में कई प्रकार से बदला जा सकता है, जिन्हें मोटे तौर पर तीन भागों में बांटा जा सकता है- ऊष्मीय विधियाँ, रासायनिक विधियाँ तथा जैवरासायनिक विधियाँ। .
देखें ऊर्जा और जैवभार
जूल (इकाई)
जूल (संकेताक्षर: J), अंतर्राष्ट्रीय इकाई प्रणाली के अंतर्गत ऊर्जा या कार्य की एक व्युत्पन्न इकाई है। एक जूल, एक न्यूटन बल को बल की दिशा में, एक मीटर दूरी तक लगाने में, या फिर एक एम्पियर की विद्युत धारा को एक ओम के प्रतिरोध से एक सेकण्ड तक गुजारने में व्यय हुई ऊर्जा या किये गये कार्य के बराबर होता है। इस इकाई को अंग्रेज भौतिक विज्ञानी जेम्स प्रेस्कॉट जूल के नाम पर नामित किया गया है। अन्य एस आई इकाइयों के संदर्भ में: जहां N न्यूटन, m मीटर, kg किलोग्राम, s सेकण्ड, Pa पास्कल और W वाट है। .
देखें ऊर्जा और जूल (इकाई)
जेम्स प्रेस्कॉट जूल
जूल का ऊष्मा-उपकरण जेम्स प्रेस्कॉट जूल (अंग्रेजी: James Prescott Joule, जन्म: 24 दिसम्बर 1818 - मृत्यु: 11 अक्टूबर 1889) सैल्फोर्ड, लंकाशायर में जन्मे एक अंग्रेज भौतिकविज्ञानी और शराब निर्माता थे। .
देखें ऊर्जा और जेम्स प्रेस्कॉट जूल
जीएमआर समूह
जीएमआर समूह का प्रतीक चिह्न जीएमआर समूह (GMR Group) भारत में अधोसंरचना विकास की प्रमुख कम्पनी है। इसका मुख्यालय बंगलुरू में है। इसकी संस्थापना सन् १९७८ में हुई थी। यह समूह हवाई अड्डों का निर्माण, ऊर्जा, सड़क, कृषि एवं उड्ड्यन क्षेत्र में सक्रिय है। यह समूह कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व के तहत सामुदायिक विकास में योगदान देता है और अपने सामाजिक उत्तरदायित्व को निभाने में भी अग्रणी है। .
देखें ऊर्जा और जीएमआर समूह
जीव विज्ञान
जीवविज्ञान भांति-भांति के जीवों का अध्ययन करता है। जीवविज्ञान प्राकृतिक विज्ञान की तीन विशाल शाखाओं में से एक है। यह विज्ञान जीव, जीवन और जीवन के प्रक्रियाओं के अध्ययन से सम्बन्धित है। इस विज्ञान में हम जीवों की संरचना, कार्यों, विकास, उद्भव, पहचान, वितरण एवं उनके वर्गीकरण के बारे में पढ़ते हैं। आधुनिक जीव विज्ञान एक बहुत विस्तृत विज्ञान है, जिसकी कई शाखाएँ हैं। 'बायलोजी' (जीवविज्ञान) शब्द का प्रयोग सबसे पहले लैमार्क और ट्रविरेनस नाम के वैज्ञानिको ने १८०२ ई० में किया। जिन वस्तुओं की उत्पत्ति किसी विशेष अकृत्रिम जातीय प्रक्रिया के फलस्वरूप होती है, जीव कहलाती हैं। इनका एक परिमित जीवनचक्र होता है। हम सभी जीव हैं। जीवों में कुछ मौलिक प्रक्रियाऐं होती हैं.
देखें ऊर्जा और जीव विज्ञान
ईन्धन
जलती हुई प्राकृतिक गैस ईधंन (Fuel) ऐसे पदार्थ हैं, जो आक्सीजन के साथ संयोग कर काफी ऊष्मा उत्पन्न करते हैं। 'ईंधन' संस्कृत की इन्ध् धातु से निकला है जिसका अर्थ है - 'जलाना'। ठोस ईंधनों में काष्ठ (लकड़ी), पीट, लिग्नाइट एवं कोयला प्रमुख हैं। पेट्रोलियम, मिट्टी का तेल तथा गैसोलीन द्रव ईधंन हैं। कोलगैस, भाप-अंगार-गैस, द्रवीकृत पेट्रोलियम गैस और प्राकृतिक गैस आदि गैसीय ईंधनों में प्रमुख हैं। आजकल परमाणु ऊर्जा भी शक्ति के स्रोत के रूप में उपयोग की जाती है, इसलिए विखंडनीय पदार्थों (fissile materials) को भी अब ईंधन माना जाता है। वैज्ञानिक और सैनिक कार्यों के लिए उपयोग में लाए जानेवाले राकेटों में, एल्कोहाल, अमोनिया एवं हाइड्रोजन जैसे अनेक रासायनिक यौगिक भी ईंधन के रूप में प्रयुक्त होते हैं। इन पदार्थों से ऊर्जा की प्राप्ति तीव्र गति से होती है। विद्युत् ऊर्जा का प्रयोग भी ऊष्मा की प्राप्ति के लिए किया जाता है इसलिए इसे भी कभी-कभी ईंधनों में सम्मिलित कर लिया जाता है। .
देखें ऊर्जा और ईन्धन
ईंधन प्रौद्योगिकी
ईंधन प्रौद्योगिकी जैव कारकों अथवा उनके अवयवों के उपयोग से उर्जा विरल स्रोतों को उर्जा बहुल स्रोतों में रूपांतरित करने को ईंधन प्रौद्योगिकी या फ्युअल इंजीनियरिंग कहते हैं। श्रेणी:जीव विज्ञान श्रेणी:शब्दावली श्रेणी:सूक्ष्मजैविकी श्रेणी:जैव प्रौद्योगिकी श्रेणी:आण्विक जैविकी.
देखें ऊर्जा और ईंधन प्रौद्योगिकी
वायरलेस उर्जा हस्तांतरण
वायरलेस उर्जा हस्तांतरण (WPT) या वायरलेस ऊर्जा संचरण विद्युत् उर्जा का प्रवाह है उर्जा के स्तोर्त से विद्युत् से विद्यतभार या फिर उर्जा खर्च करने वाले यन्त्र पर इस संचरण में मानव निर्मित सुचालकों का इस्तेमाल नहीं होता ताररहित उर्जा संचरण उन सभी मामलों में बहुत उपयोगी होता है जहाँ बहुत सारे तारों के चलते दुर्घटना की सम्भावना बहुत रहती है वायरलेस उर्जा हस्तांतरण की तन्किन दो प्रकार की होती हैं- गैर विकिरण और विकिरण। .
देखें ऊर्जा और वायरलेस उर्जा हस्तांतरण
वायु संपीडक
चलनेयोग्य (मोबाइल) वायु संपीडक वायु संपीडक (air compressor) का उपयोग वायु को संपीडित करने के लिये किया जाता है। यह किसी अन्य प्रकार की ऊर्जा का उपयोग करके उसे वायु की स्थितिज ऊर्जा (अर्थात दाब) में बदल देता है। वायु संपीडक, किसी उपयुक्त विधि का उपयोग करते हुए, भण्डारण टैंक में अधिक से अधिक वायु भरने की कोशिश करता है जिससे दाब बढ़ जाता है।; उपयोग.
देखें ऊर्जा और वायु संपीडक
वाष्पन की पूर्ण उष्मा
वाष्पन की पूर्ण ऊष्मा या वाष्पन की एन्थैल्पी (enthalpy of vaporization; प्रतीक ∆Hvap) ऊर्जा की वह मात्रा है जो द्रव के इकाई मात्रा को गैस में बदलने के लिये आवश्यक होती है। इसे वाष्पन की गुप्त ऊष्मा भी कहते हैं। वाष्पन की एन्थैल्पी, उस दाब पर भी निर्भर करती है जिस पर यह अवस्था परिवर्तन किया जाता है। .
देखें ऊर्जा और वाष्पन की पूर्ण उष्मा
वित्तीय प्रबंधन
वित्तीय प्रबन्धन (Financial management) से आशय धन (फण्ड) के दक्ष एवं प्रभावी प्रबन्धन है ताकि संगठन के लक्ष्यों की प्राप्ति की जा सके। वित्त प्रबन्धन का कार्य संगठन के सबसे ऊपरी प्रबन्धकों का विशिष्ट कार्य है। मनुष्य द्वारा अपने जीवन काल में प्रायः दो प्रकार की क्रियाएं सम्पादित की जाती है - आर्थिक क्रियायें तथा अनार्थिक क्रियाएं। आर्थिक क्रियाओं के अर्न्तगत हम उन समस्त क्रियाओं को सम्मिलित करते हैं जिनमें प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से धन की संलग्नता होती है जैसे रोटी, कपड़े, मकान की व्यवस्था आदि। अनार्थिक क्रियाओं के अन्तर्गत पूजा-पाठ, व अन्य सामाजिक व राजनैतिक कार्यों को सम्मिलित किया जा सकता है। जब हम किसी प्रकार का व्यवसाय करते हैं अथवा उद्योग लगाते हैं अथवा फिर कतिपय तकनीकी दक्षता प्राप्त करके किसी पेशे को अपनाते हैं तो हमें सर्वप्रथम वित्त (finance) धन (money) की आवश्यकता पड़ती है जिसे हम पूँजी (capital) कहते हैं। जिस प्रकार किसी मशीन को चलाने हेतु ऊर्जा के रूप में तेल, गैस या बिजली की आवश्यकता होती है उसी प्रकार किसी भी आर्थिक संगठन के संचालन हेतु वित्त की आवश्यकता होती है। अतः वित्त जैसे अमूल्य तत्व का प्रबन्ध ही वित्तीय प्रबन्धन कहलाता है। व्यवसाय के लिये कितनी मात्रा में धन की आवश्यकता होगी, वह धन कहॉं से प्राप्त होगा और उपयोग संगठन में किस रूप में किया जायेगा, वित्तीय प्रबन्धक को इन्हीं प्रश्नों के उत्तर खोजने पड़ते हैं। व्यवसाय का उद्देश्य अधिकतम लाभ अर्जन करना होता है जो दो प्रकार से किया जा सकता है।.
देखें ऊर्जा और वित्तीय प्रबंधन
विद्युत ऊर्जा
विद्युत शक्ति एक प्रणाली के भीतर पारम्परिक आवेशित कणों के बीच कूलम्ब बल से जुडी़ स्थितिज ऊर्जा होती है। यहाँ अपरिमित स्थित कणों के बीच सन्दर्भित विभवीय ऊर्जा शून्य होती है। इसकी परिभाषा है: कार्य की मात्रा, जो आवेशित भार रहित कणों पर लगायी जाये, जिससे वे अपरिमित दूरी से किसी निश्चित दूरी तक लाये जा सकें। .
देखें ऊर्जा और विद्युत ऊर्जा
विद्युत मशीन
वैद्युत अभियांत्रिकी मे, विद्युत मशीन, विद्युत मोटर और विद्युत उत्पाद्क तथा अन्य विद्युतचुंबकीय उपकरणों के लिये एक व्यापक शब्द हे। यह सब वैध्युतयांत्रिक उर्जा परीवर्तक हे। विद्युत मोटर विद्युत उर्जा को यांत्रिक उर्जा मे, जब की विद्युत उत्पाद्क यांत्रिक उर्जा को विद्युत उर्जा मे परीवर्तीत करता हे। यंत्र के गतिशील भाग घूर्णन या रैखिक गती रख सकते हे। मोटर और उत्पाद्क के अतिरिक्त, बहुधा ट्रांसफार्मर (परिणतक) का तीसरी श्रेणी की तरह समावेश किया जाता हे, हालाँकि इन मे कोइ गतिशील खंड नही होते, फ़िर भी प्रत्यावर्ती उर्जा का विद्युत दाब परीवर्तीत करता हे। विद्युत यंत्र, परीवर्तक के स्वरूप मे, वस्तुतः संसार की समस्त वैध्युत शक्ति का उत्पादन करते हे, तथा विद्युत मोटर के स्वरूप मे, समस्त उत्पादित वैध्युत शक्ति लगभग ६० प्रतिशत उपभोग करते हे। विद्युत यंत्र १९ वी शताब्दी की शुरुआत मे विकसित कीये गए थे, उस समय से आधारिक संरचना का सर्वव्यापी घटक बन गए हे। हरित ऊर्जा या वैकल्पिक ऊर्जा, अधिक कार्यक्षम विद्युत यंत्र विकसित करना वैश्विक संरक्षण के लिये महत्वपूर्ण हे। ट्रांसफॉर्मर, विद्युत मोटर, विद्युत जनित्र आदि को विद्युत मशीन (electrical machine) कहते हैं। विद्युत मशीने तीन प्रकार से ऊर्जा का परिवर्तन करतीं है.
देखें ऊर्जा और विद्युत मशीन
विद्युत मोटर
विभिन्न आकार-प्रकार की विद्युत मोटरें विद्युत मोटर (electric motor) एक विद्युतयांत्रिक मशीन है जो विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में बदलती है; अर्थात इसे उपयुक्त विद्युत स्रोत से जोड़ने पर यह घूमने लगती है जिससे इससे जुड़ी मशीन या यन्त्र भी घूमने लगती है। अर्थात यह विद्युत जनित्र का उल्टा काम करती है जो यांत्रिक ऊर्जा लेकर विद्युत उर्जा पैदा करता है। कुछ मोटरें अलग-अलग परिस्थितियों में मोटर या जनरेटर (जनित्र) दोनो की तरह भी काम करती हैं। विद्युत् मोटर विद्युत् ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में परिणत करने के साधन हैं। विद्युत् मोटर औद्योगिक प्रगति का महत्वपूर्ण सूचक है। यह एक बड़ी सरल तथा बड़ी उपयोगी मशीन है। उद्योगों में शायद ही कोई ऐसा प्रयोजन हो जिसके लिए उपयुक्त विद्युत मोटर का चयन न किया जा सके। .
देखें ऊर्जा और विद्युत मोटर
विद्युत शक्ति
किसी विद्युत परिपथ में जिस दर से विद्युत उर्जा स्थानान्तरित होती है उसे विद्युत शक्ति (Electric power) कहते हैं। इसका एसआई मात्रक 'वाट' (W) है। किसी परिपथ के दो नोडों के बीच विभवान्तर v(t) हो तथा इस शाखा में धारा i(t) हो तो उस शाखा द्वारा ली गयी विद्युतशक्ति, .
देखें ऊर्जा और विद्युत शक्ति
विद्युत कोष
विभिन्न प्रकार की विद्युत कोष (बांयी तरफ् नीचे से दक्षिणावर्त): दो 9-वोल्ट; दो AA; दो AAA; एक D विद्युत कोष; एक C विद्युत कोष; एक हैम-रेडियो की विद्युत कोष; कार्डलेस फोन की विद्युत कोष; और एक कैमराकार्डर विद्युत कोष (लेटी हुई) विद्युत कोष (Battery) विद्युत ऊर्जा का स्रोत है जिसे रासायनिक उर्जा से प्राप्त किया जाता है। वैद्युत अभियांत्रिकी एवं एलेक्ट्रानिक्स में दो या दो से अधिक विद्युतरासायनिक सेलों के संयोजन को विद्युत कोष कहते हैं। ये रासायनिक उर्जा भण्डारित करते हैं एवं इस उर्जा को विद्युत उर्जा के रूप में उपलब्ध करते हैं। सन १८०० में अलेसान्द्रो वोल्टा द्वारा sabse पहले बैटरी का आविष्कार हुआ। आजकल अधिकांश घरेलू एवं औद्योगिक उपयोगों के लिये विद्युत कोष ही विद्युत उर्जा का प्रमुख साधन है। सन २००५ के एक अनुमान के अनुसार विश्व भर में विद्युत कोष की बिक्री लगभग ४८ बिलियन अमेरिकी डालर के बराबर होता है। .
देखें ऊर्जा और विद्युत कोष
विद्युत अपघटन
डेनियल सेल से मेल खाता हा एक विद्युतरासायनिक सेल रसायन विज्ञान एवं निर्माण (मैन्युफैक्चरिंग) मे विद्युत अपघटन (electrolysis) उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसके द्वारा किसी रासायनिक यौगिक में विद्युत-धारा प्रवाहित करके उसके रासायनिक बन्धों को को तोड़ा जाता है। उदाहरण के लिये जल में विद्युत धारा प्रवाहित करने पर जल, हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन में विघटित हो जाता है जिसे जल का विद्युत अपघटन कहते हैं। विद्युत अपघटन के बहुत से उपयोग हैं। अयस्कों को प्रसंस्कारित करके उनमें निहित रासायनिक तत्व को शुद्ध करना एवं उसे अलग करना इसका सबसे महत्वपूर्ण औद्योगिक एवं व्यावसायिक उपयोग है। .
देखें ऊर्जा और विद्युत अपघटन
विद्युत उत्पादन
उर्जा के अन्य स्रोतों से विद्युत शक्ति का निर्माण विद्युत उत्पादन कहलाता है। व्यावहारिक रूप में विद्युत् शक्ति का उत्पादन, विद्युत् जनित्रों (generators) द्वारा किया जाता है। विद्युत उत्पादन के मूलभूत सिद्धान्त की खोज अंग्रेज वैज्ञानिक माइकेल फैराडे ने १९२० के दशक के दौरान एवं १९३० के दशक के आरम्भिक काल में किया था। तार की एक कुण्डली को किसी चुम्बकीय क्षेत्र में घुमाकर विद्युत उत्पन्न करने की माइकेल फैराडे की मूल विधि आज भी उसी रूप में प्रयुक्त होती है। विद्युत का उत्पादन जहाँ किया जाता है उसे बिजलीघर कहते हैं। बिजलीघरों में विद्युत-यांत्रिक जनित्रों के द्वारा बिजली पैदा की जाती है जिसे किसी किसी अन्य युक्ति से घुमाया जाता है, इसे मुख्यघूर्णक या प्रधान चालक (प्राइम मूवर) कहते हैं। प्राइम मूवर के लिये जल टर्बाइन, वाष्प टर्बाइन या गैस टर्बाइन हो सकती है। विद्युत शक्ति, जल से, कोयले आदि की उष्मा से, नाभिकीय अभिक्रियाओं से, पवन शक्ति से एवं अन्य कई विधियों से पैदा की जाती है। .
देखें ऊर्जा और विद्युत उत्पादन
विद्युत उपकरण
एक वोल्टमापी, जिसके सभी अवयव स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं। किसी पॉवर सप्लाई में लगे हुए अमीटर और वोल्टमीटर वर्तमान समय में अधिकांश उपकरण डिजिटल हो गये हैं। एक '''डिजिटल बहुमापी''' (मल्टीमीटर) विद्युत का उपयोग बहुत समय से होता आ रहा है और निरंतर अन्वेषण कार्य के फलस्वरूप आज के युग में अनेक प्रकार के विद्युत् उपकरणों (Electrical Instruments) का प्रयोग होने लगा है। .
देखें ऊर्जा और विद्युत उपकरण
विद्युत-मापी
विद्युत-मापी (Electricity meters) या 'ऊर्जामापी' सामान्यत: उन सभी उपकरणों को कहा जाता है विद्युत ऊर्जा का माप करने के लिए प्रयुक्त होते हैं। विद्युत-मापी प्रायः किलोवाट-घण्टा (kWh) में अंशांकित (कैलिब्रेटेड) होते हैं। कुछ विद्युत् मापी विशेष कार्यों के लिए व्यवस्थित होते हैं, जैसे महत्तम माँग संसूचक (Maximum Demand indicator), जिसमें मीटर के साथ ऐसा काल अंशक होता है जो निश्चित अवधि में अधिकतम ऊर्जा का निर्देश करे। कुछ विद्युत-मापी ऐसे भी होते हैं जो महत्तम लोड (पीकलोड) के समय में स्वयं लोड को काट दें। .
देखें ऊर्जा और विद्युत-मापी
विद्युतचुंबकीय विकिरण
विद्युतचुंबकीय तरंगों का दृष्यात्मक निरूपण विद्युत चुंबकीय विकिरण शून्य (स्पेस) एवं अन्य माध्यमों से स्वयं-प्रसारित तरंग होती है। इसे प्रकाश भी कहा जाता है किन्तु वास्तव में प्रकाश, विद्युतचुंबकीय विकिरण का एक छोटा सा भाग है। दृष्य प्रकाश, एक्स-किरण, गामा-किरण, रेडियो तरंगे आदि सभी विद्युतचुंबकीय तरंगे हैं। .
देखें ऊर्जा और विद्युतचुंबकीय विकिरण
विदेश्वरस्थान
विदेश्वरस्थान बिहार राज्य के मधुबनी जिला के अन्तर्गत झंझारपुर प्रखंड का एक अतिप्राचीन तीर्थस्थान है। यह मंडन मिश्र रेलवे हाल्ट से २ किलोमीटर उत्तर दिशा में स्थित है। विदेश्वरस्थान राष्ट्रीय राजमार्ग 57, लोहना चौक से 1.5 किलोमीटर दक्षिण दिशा में स्थित है। यह मंदिर झंझारपुर से 5 किलोमीटर पश्चिम में स्थित है। विदेश्वरस्थान में प्रतिवर्ष होने वाले मकर एवं शिवरात्री का मेला प्रार्ंभ से ही विशिष्टता के लिये प्रसिद्ध है। शिव भक्त हजारों लाखों की संख्या में पूजा -आराधना करते है। .
देखें ऊर्जा और विदेश्वरस्थान
विमीय विश्लेषण
विमीय विश्लेषण (Dimensional analysis) एक संकाल्पनिक औजार (कांसेप्चुअल टूल) है जो भौतिकी, रसायन, प्रौद्योगिकी, गणित एवं सांख्यिकी में प्रयुक्त होता है। यह वहाँ उपयोगी होता है जहाँ कई तरह की भौतिक राशियाँ किसी घटना के परिणाम के लिये जिम्मेदार हों। भौतिकविद अक्सर इसका उपयोग किसी समीकरण आदि कि वैधता (plausibility) की जाँच के लिये करते रहते हैं। दूसरी तरफ इसका उपयोग जटिल भौतिक स्थितियों से सम्बंधित चरों को आपस में समीकरण द्वारा जोड़ने के लिये किया जाता है। विमीय विश्लेषण की विधि से प्राप्त इन सम्भावित समीकरणों को प्रयोग द्वारा जाँचा जाता है, या अन्य सिद्धान्तों के प्रकाश में देखा जाता है। बकिंघम का पाई प्रमेय (Buckingham π theorem), विमीय विश्लेषण का आधार है। .
देखें ऊर्जा और विमीय विश्लेषण
विशिष्ट ऊर्जा
इकाई द्रव्यमान में निहित ऊर्जा को विशिष्ट ऊर्जा (Specific energy) कहते हैं। इसकी इकाई जूल प्रति किग्रा (J/kg) है। यह एक गहन गुण (intensive property) है जबकि ऊर्जा एक मात्रात्मक गुणधर्म (extensive property) है। विशिष्ट ऊर्जा मुख्यतः दो प्रकार की होती है - विशिष्ट स्थितिज ऊर्जा तथा विशिष्ट गतिज ऊर्जा। ग्रे (gray) और सेवर्ट (sievert) भी विशिष्ट ऊर्जा के ही प्रकार हैं जो विकिरण अवशोषण (absorption of radiation) के मापक हैं। .
देखें ऊर्जा और विशिष्ट ऊर्जा
विघटनात्मक चयापचयिक क्रिया
कैटाबोलिक प्रतिक्रिया का स्कीमैटिक चित्र सजीवों के शरीर में होने वाली विभिन्न विघटनात्मक जैव-रासायनिक क्रियायों को केटाबोलिक क्रिया कहते हैं। ये क्रियाएं शरीर की जीवित कोशिकाओं के अन्दर जीव द्रव्य में सम्पन्न होती हैं। इन क्रियाओं से ऊर्जा उत्पन्न होती है एवं किसी ना किसी पदार्थ का विघटन होता है। बड़े जैविक अणुओं के विखंडन से छोटे अणु बनते हैं। इसका सर्वप्रमुख उदाहरण कोशिकीय श्वसन है। एटीपी क्रिया, विघटनात्मक चयापचयिक en:Catabolism.
देखें ऊर्जा और विघटनात्मक चयापचयिक क्रिया
विकासपीडिया
विकासपीडिया का प्रतीकचिह्न विकासपीडिया भारत सरकार द्वारा शुरू की गयी एक वेबसाइट है जो विभिन्न प्रकार की सूचनायें प्रदान करती है। यह फरवरी २०१४ में आरम्भ की गयी थी। इस पोर्टल का विकास 'भारत विकास प्रवेशद्वार-एक राष्ट्रीय पहल' के एक भाग के रूप में सामाजिक विकास के कार्यक्षेत्रों की सूचनाएं/ जानकारियां और सूचना एवं प्रौद्योगिकी पर आधारित उत्पाद व सेवाएं देने के लिए किया गया है। भारत विकास प्रवेशद्वार, भारत सरकार के संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी विभाग (डीईआइटीवाई), की एक पहल और प्रगत संगणन विकास केंद्र (सी-डैक), हैदराबाद के द्वारा कार्यान्वित है। यह वेबस्थल हिन्दी, अंग्रेजी, असमिया, मराठी, बांग्ला, तेलुगु, गुजराती, कन्नड, मलयालम, तमिल, मराठी आदि २३ भाषाओं में है। विकासपीडिया में 6 अलग-अलग विषय हैं, कृषि, स्वास्थ्य, शिक्षा, समाज कल्याण, ऊर्जा, और ई-शासन। .
देखें ऊर्जा और विकासपीडिया
विकिरण
भौतिकी में प्रयुक्त विकिरण ऊर्जा का एक रूप है जो तरंगों या किसी परमाणु या अन्य निकाय द्वारा उत्सर्जित गतिशील उपपरमाणुविक कणों के रूप में उच्च से निम्न ऊर्जा अवस्था की ओर चलती है। विकिरण को परमाणु पदार्थ पर उसके प्रभाव के आधार पर या विआयनीकारक के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। विकिरण जो अणु या परमाणु का आयनीकरण करने मे सक्षम होता है उसमे उर्जा का स्तर विआयनीकारक विकिरण से अधिक होता है। रेडियोधर्मी पदार्थ वो भौतिक पदार्थ है जो कि आयनीकारक विकिरण उत्सर्जित करती है। तीन भिन्न प्रकार के विकिरण और उनका भेदन .
देखें ऊर्जा और विकिरण
विकिरण समस्थानिक
विकिरण समस्थानिक (radionuclide या radioactive nuclide या radioisotope या radioactive isotope) उन परमाणुओं को कहते हैं जिनके नाभिक अपनी अतिरिक्त ऊर्जा के कारण अस्थायी (अनस्टेबल) होते हैं। ये समस्थानिक या तो अपनी ऊर्जा को गामा किरणों के रूप में निकालते हैं, या अल्फा कण / बीटा कण के रूप में निकालते हैं या अपनी ऊर्जा को अपने ही किसी इलेक्ट्रॉन को दे देते हैं जिससे वह परमाणु से निकल जाता है। इस प्रक्रिया को रेडियो सक्रिय क्षय कहते हैं। 1,000 से भी अधिक रेडियो समस्थानिक ज्ञात हैं। इनमें से लगभग ५० तो प्राकृतिक रूप से पाये जाते हैं। शेष सभी नाभिकीय अभिक्रियाओं में सीधे उत्पन्न होते हैं या नाभिकीय अभिक्रायाओं के उत्पादों से व्युत्पन्न होते हैं। उदाहरण -.
देखें ऊर्जा और विकिरण समस्थानिक
व्यतिकरण (तरंगों का)
दो वृत्तीय तरंगों का व्यतिकरण व्यतिकरण (Interference) से किसी भी प्रकार की तरंगों की एक दूसरे पर पारस्परिक प्रक्रिया की अभिव्यक्ति होती है, जिसके परिणामस्वरूप कुछ विशेष स्थितियों में कंपनों और उनके प्रभावों में वृद्धि, कमी या उदासीनता आ जाती है। व्यतिकरण का विस्तृत अध्ययन विशाल विभेदन शक्ति वाले सभी यंत्रों के मूल में काम करता है। भौतिक प्रकाशिकी में इस धारण का समावेश टॉमस यंग (Thomas Young) ने किया। उनके बाद व्यतिकरण का व्यवहार किसी भी तरह की तरंगों या कंपनों के समवेत या तज्जन्य प्रभावों को व्यक्त करने के लिए किया जाता रहा है। संक्षेप में किसी भी तरह की (जल, प्रकाश, ध्वनि, ताप या विद्युत् से उद्भूत) तरंगगति के कारण लहरों के टकराव से उत्पन्न स्थिति को व्यतिकरण की संज्ञा दी जाती है। जब कभी जल या अन्य किसी द्रव की सतह पर दो भिन्न तरंगसमूह एक साथ मिलें तो व्यतिकरण की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। जहाँ एक तरंगसमूह से संबंद्ध लहरों के तरंगश्रृंगों का दूसरी शृंखला से संबद्धलहरों के तंरगश्रृंगों से सम्मिलिन होता है, वहाँ द्रव की सतह का उन्नयन उस स्थान पर लहरों के स्वतंत्र और एकांत अस्तित्व के संभव उन्नयनों के योग के बराबर होता है। जब तरंगों में से एक के तरंगश्रृंग का दूसरे के तरंगगर्त पर समापातन होता है, तब द्रव की सतह पर तरंगों का उद्वेलन कम हो जाता है और प्रतिफलित उन्नयन (या अवनयन) एक तरंग अवयव (component) के उन्नयन और दूसरे के अवनयन के अंतर के बराबर होता है। ध्वनि में उत्पन्न विस्पंद (beats) इसी व्यतिकरण का एक साधारण रूप है, जहाँ दो या दो से अधिक तरंगसमूह, जिनके तरंगदैर्ध्य में मामूली सा अंतर होता है, करीब एक ही दिशा में अग्रसर होते हुए मिलते हैं। .
देखें ऊर्जा और व्यतिकरण (तरंगों का)
वैद्युत पृथक्करण
ट्रांसफॉर्मर की प्राइमरी और सेकेण्डरी वाइंडिंग विद्युत की दृष्टि से परस्पर पृथक्कृत होती हैं; इनमें विद्युत ऊर्जा का हस्तान्तरण चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा होता है। प्रकाशीय पृथक्करण किसी वैद्युत प्रणाली के दो या अधिक प्रभागों को इस प्रकार विलगित करना कि उनके बीच में आवेश-वाहक कणों का प्रवाह नहीं (बहुत कम) हो, वैद्युत पृथक्करण (Galvanic isolation) कहलाता है। पृथकृत प्रभागों के बीच विद्युत पृथक्करण के होते हुए भी ऊर्जा या सूचना का विनिमय सम्भव है जो धारिता, प्रेरण, विद्युतचुंबकीय तरंगों, श्रव्य तरंगों या यांत्रिक विधियों से किया जाता है। .
देखें ऊर्जा और वैद्युत पृथक्करण
वैकल्पिक ऊर्जा
ऊर्जा के उन सभी स्रोतों को वैकल्पिक ऊर्जा (Alternative energy) कहते हैं जो जीवाश्म ऊर्जा के विकल्प हों। उदाहरण के लिये, पवन ऊर्जा, जलविद्युत, सौर ऊर्जा आदि। .
देखें ऊर्जा और वैकल्पिक ऊर्जा
वेवगाइड
एक वेवगाइड वेवगाइड (waveguide) एक युक्ति है जो उच्च आवृत्ति के संकेतों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने के लिये प्रयुक्त होती है। यह संकेत की ऊर्जा में कम से कम ह्रास करते हुए उसे अपने अन्दर से होकर जाने देता है। दूसरे शब्दों में, यह एक संरचना है जो विद्युतचुम्बकीय तरंगों और ध्वनि तरंगों आदि को एक निर्धारित मार्ग से लेकर जाती है। श्रेणी:माइक्रोवेव.
देखें ऊर्जा और वेवगाइड
वॉट
वॉट (चिह्न: W) शक्ति की SI व्युत्पन्न इकाई है। यह ऊर्जा के परिवर्तन या रूपान्तरण की दर मापती है। एक वॉट - १ जूल (J) ऊर्जा प्रति सैकण्ड के समकक्ष होती है। यांत्रिक ऊर्जा के संबंध में, एक वॉट उस कार्य को करने की दर होती है, जब एक वस्तु को १ मीटर प्रति सैकण्ड की गति से १ न्यूटन के बल के विरुद्ध ले जाया जाये। पोटेन्शियल डिफरेन्स (वोल्ट) और विद्युत धारा (एम्पीयर) की परिभाषा अनुसार, कार्य १ वॉट की दर से किया गया होता है, जब १ एम्पीयर विद्युत धारा, १ वोल्ट पोटेन्शियल डिफरेन्स पर बहती है। .
देखें ऊर्जा और वॉट
वॉट घंटा
घरेलू विद्युत-मापी; इसका अंशांकन 'किलोवॉट घंट' में है। वॉट घंटा या वॉट आवर (बड़ी ईकाई, किलोवॉट घंटा)Taylor, Barry N. (1995).
देखें ऊर्जा और वॉट घंटा
वॉयेजर द्वितीय
वायेजर द्वितीय एक अमरीकी मानव रहित अंतरग्रहीय शोध यान था जिसे वायेजर १ से पहले २० अगस्त १९७७ को अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा द्वारा प्रक्षेपित किया गया था। यह काफी कुछ अपने पूर्व संस्करण यान वायेजर १ के समान ही था, किन्तु उससे अलग इसका यात्रा पथ कुछ धीमा है। इसे धीमा रखने का कारण था इसका पथ युरेनस और नेपचून तक पहुंचने के लिये अनुकूल बनाना। इसके पथ में जब शनि ग्रह आया, तब उसके गुरुत्वाकर्षण के कारण यह युरेनस की ओर अग्रसर हुआ था और इस कारण यह भी वायेजर १ के समान ही बृहस्पति के चन्द्रमा टाईटन का अवलोकन नहीं कर पाया था। किन्तु फिर भी यह युरेनस और नेपच्युन तक पहुंचने वाला प्रथम यान था। इसकी यात्रा में एक विशेष ग्रहीय परिस्थिति का लाभ उठाया गया था जिसमे सभी ग्रह एक सरल रेखा मे आ जाते है। यह विशेष स्थिति प्रत्येक १७६ वर्ष पश्चात ही आती है। इस कारण इसकी ऊर्जा में बड़ी बचत हुई और इसने ग्रहों के गुरुत्व का प्रयोग किया था। .
देखें ऊर्जा और वॉयेजर द्वितीय
खगोलीय रेडियो स्रोत
खगोलीय रेडियो स्रोत (astronomical radio sources) अंतरिक्ष में ऐसी खगोलीय वस्तुएँ होती हैं जिनसे शक्तिशाली रेडियो तरंगें प्रसारित हो रही हों। ऐसी वस्तुओं में न्यूट्रॉन तारे, महानोवा अवशेष और काले छिद्र शामिल हैं, जो ब्रह्माण्ड की सर्वाधिक ऊर्जावान भौतिक प्रक्रियाओं को प्रदर्शित करते हैं। .
देखें ऊर्जा और खगोलीय रेडियो स्रोत
गतिपालक चक्र में ऊर्जा भण्डारण
बेलनाकार गतिपालक-चक्र एवं रोटर की समुच्चय (असेम्बली) गतिपालक चक्र में ऊर्जा भण्डारण (Flywheel energy storage (FES)), ऊर्जा भण्डारण की वह विधि है जिसमें ऊर्जा का भण्डारण एक गतिपालक चक्र की घूर्णी ऊर्जा के रूप में किया जाता है। इसके लिये गतिपालक चक्र का कोणीय वेग धीरे-धीरे बढ़ाकर उसे अधिकतम चाल तक ले जाते हैं और इतनी ऊर्जा उसे देते रहते हैं कि उसकी चाल नियत बनी रहे। जब ऊर्जा की जरूरत होती है तब इस गतिज ऊर्जा को अन्य ऊर्जा में बदल लिया जाता है (उदाहरण के लिये, उससे एक विद्युत जनित्र जोड़कर उससे विद्युत शक्ति पैदा कर ली जाती है।)। जब इससे ऊर्जा ली जाती है तो इसकी चाल कम हो जाती है जिसे पुनः त्वरित करते हुए बढ़ाकर अधिकतम चाल तक पहुँचा दिया जाता है। .
देखें ऊर्जा और गतिपालक चक्र में ऊर्जा भण्डारण
गरज
गरज या गड़गड़ाहट मुख्य रूप से बिजली के चमकते समय होती है। यह आकाशीय बिजली से निकालने वाले ध्वनि को कहते हैं। यह दूरी और बिजली के प्रकार पर निर्भर करता है। इसकी दूरी मापने के लिए इसके चमक और आवाज होने के बीच की दूरी को गिना जाता है। यह अचानक बढ़े दाब और तापमान के कारण होता है। जब अचानक से वायु का प्रसार होता है तो यह आवाज निकलता है। .
देखें ऊर्जा और गरज
गामा किरण
गामा किरण (γ-किरण) एक प्रकार का विद्युत चुम्बकीय विकिरण या फोटॉन हैं, जो परमाणु-नाभिक के रेडियोसक्रिय क्षय से उत्पन्न होता है। गामा किरणों के फोटॉनों की ऊर्जा अब तक प्रेक्षित अन्य सभी फोटॉनों की ऊर्जा से अधिक होती है। सन १९०० में फ्रांस के भौतिकशास्त्री पॉल विलार्ड ने इसकी खोज की थी जब वे रेडियम से निकलने वाले विकिरण का अध्ययन कर रहे थे। जब परमाणु का नाभिक एक उच्च ऊर्जा स्तर से निम्न ऊर्जा स्तर पर क्ष्यित होता है तो इस प्रक्रिया में गामा किरणें निकली हैं। इस प्रक्रिया को गामा-क्षय (gamma decay) कहा जाता है। अपने ऊँचे ऊर्जा स्तर के कारण, जैविक कोशिका द्वारा सोख लिए जाने पर अत्यंत नुकसान पहुँचा सकती हैं। .
देखें ऊर्जा और गामा किरण
ग्रे (इकाई)
ग्रे (gray), जिसका चिन्ह Gy है, अन्तरराष्ट्रीय मात्रक प्रणाली में आयनकारी विकिरण (ionizing radiation) मापने की एक व्युत्पन्न इकाई है। एक ग्रे की परिभाषा एक जूल विकिरण ऊर्जा प्रति किलोग्राम है, यानि दस किलोग्राम की कोई चीज़ अगर दस जूल विकिरण ऊर्जा सोख ले तो यह एक ग्रे आयनकारी विकिरण मापी जाएगी। सेंटीमीटर-ग्राम-सैकिण्ड इकाई प्रणाली में आयनकारी विकिरण की एक अलग मापन इकाई है, जो रैड (rad) कहलाती है - एक रैड ठीक 0.01 ग्रे के बराबर है। .
देखें ऊर्जा और ग्रे (इकाई)
ग्लाइकोलिसिस
ग्लाइकोलिसिस (Glycolysis) या ग्लाइको अपघटन, श्वसन की प्रथम अवस्था है जो कोशिका द्रव में होती है। इस क्रिया में ग्लूकोज का आंशिक आक्सीकरण होता है, फलस्वरूप ग्लूकोज के एक अणु से पाइरूविक अम्ल के 2 अणु बनते हैं तथा कुछ ऊर्जा मुक्त होती है। यह क्रिया कई चरणों में होती है एवं प्रत्येक चरण में एक विशिष्ठ इन्जाइम उत्प्रेरक का कार्य करता है। इस क्रिया को इएणपी पाथवे भी कहा जाता है। इसमें ग्लूकोज में संचित ऊर्जा का 4 प्रतिशत भाग मुक्त होकर एनएडीएच (NADH2) में चली जाती है तथा शेष 96 प्रतिशत ऊर्जा पाइरूविक अम्ल में संचित हो जाती है। ग्लाइकोलिसिस की अभिक्रिया माइट्रोकांड्रिया के मैट्रिक्स में संपन्न होती है ग्लाइकोसिस की प्रक्रिया ग्लूकोकोज से आरम्भ होकर विभिन्न मध्यवर्ती उपापचयजों (metabolites) से होते हुए पाइरुवेट तक जाती है। हर रासायनिक परिवर्तन (लाल बक्सा) एक अलग एंजाइम द्वारा सम्पन्न होता है। चरण 1 तथा 3 में ATP (नीला) का उपभोग होता है और चरण 7 तथा 10 में ATP (पीला) बनता है। चूँकि चरण 6-10 प्रत्येक ग्लूकोज अणु के लिये दो बार होती है, इस कारण नेट ATP उत्पादन होता है। श्रेणी:श्वसन.
देखें ऊर्जा और ग्लाइकोलिसिस
ग्लूकोज़
ग्लूकोज के संतुलन की योजनाबद्ध प्रतिनिधित्व। ग्लूकोज़ (Glucose) या द्राक्ष शर्करा (द्राक्षधु) सबसे सरल कार्बोहाइड्रेट है। यह जल में घुलनशील होता है तथा इसका रासायनिक सूत्र C६H१२O६ है। यह स्वाद में मीठा होता है तथा सजीवों की कोशिकाओं के लिये उर्जा का सर्व प्रमुख स्रोत है। यह पौधों के फलों जैसे काजू, अंगूर व अन्य फलों में, जड़ों जैसे चुकुन्दर की जड़ों में, तनों में जैसे ईख के रूप में सामान्य रूप से संग्रहित भोज्य पदार्थों के रूप में पायी जाती है। ग्लूकोज़ प्रमुख आहार औषध है। इससे देह में उष्णता और शक्ति उत्पन्न होती है। मिठाइयों और सुराओं के निर्माण में भी यह व्यवहृत होता है। ग्लाइकोजन के रूप में यह यकृत और पेशियों में संचित रहता है। इसका अणुसूत्र (C6 H12 O6) और आकृतिसूत्र है: (CH2 OH.
देखें ऊर्जा और ग्लूकोज़
गैस टर्बाइन
एक प्रकार की गैस टर्बाइन और उसके विभिन्न भाग: A-प्रोपेलर, B-गीयर, C-कंप्रेसर, D-ज्वालक (कंबस्टर), E-टर्बाइन, F-निकास गैस टर्बाइन (gas turbine) एक प्रकार का अंतर्दहन इंजन है जो घूमने के लिए आवश्यक ऊर्जा ज्वलनशील गैस के प्रवाह से प्राप्त करता है और इसी कारण इसे 'दहन टर्बाइन' (combustion turbine) भी कहा जाता है। चूंकि टरबाइन की गति घूर्णी (रोटरी) होती है, यह विद्युत जनित्र को घुमाने के लिए विशेष रूप से उपयुक्त है। यूएसए की लगभग ९० प्रतिशत विद्युत ऊर्जा भाप टरबाइनों के सहारे ही पैदा की जाती है (१९९६)। भाप टरबाइन की दक्षता अन्य ऊष्मा इंजनों से अधिक होती है। अधिक दक्षता भाप के प्रसार के लिए कई चरणों का प्रयोग करने से प्राप्त होती है। 'गैस टरबाइन' की विभिन्न परिभाषाएँ दी जाती हैं। विस्तृत परिभाषा के अनुसार गैस टरबाइन वह मूल चालक (prime mover) है जिसके संपूर्ण उष्मीय चक्र में कार्यकारी तरल गैसीय अवस्था में ही बना रहता है एवं जिसके सभी यंत्रांगों की गति परिभ्रमी होती है। संकीर्ण परिभाषा के अनुसार इस शब्द का प्रयोग सिर्फ उस मुख्य टरबाइन अंग के लिये किया जाता है जिसका माध्यम गरम वायु होती है। कुछ विद्वानों के मतानुसार गैस टरबाइन वह यंत्र है जिसमें प्रवाह प्रक्रम अविरत रहता है एवं शक्ति टरबाइन द्वारा प्राप्त होती है। .
देखें ऊर्जा और गैस टर्बाइन
गैसीकरण
गैसीकरण (Gasification) वह प्रक्रिया है जिसमें जैविक पदार्थों या जीवाश्म आधारित कार्बनयुक्त पदार्थों को कार्बन मोनोऑक्साइड, हाइड्रोजन, कार्बन डाईऑक्साइड और मिथेन में बदला जाता है। इस प्रक्रिया में पदार्थ को उच्च ताप (>700 °C) पर ले जाकर, बिना ज्वलन के, नियंत्रित मात्रा में ऑक्सीजन और/या जलवाष्प से क्रिया करायी जाती है। प्राप्त गैस का मिश्रण प्रोड्युसर गैस या 'सिंथेटिक गैस' कहलाती है जो स्वयं एक ईंधन है। इसका महत्व इस बात में है कि यह नवीकरणीय ऊर्जा प्राप्ति का एक स्रोत है। गैसीकरण का लाभ यह है कि सिंथेटिक गैस को उपयोग में लाना मूल पदार्थ को उपयोग में लाने की अपेक्षा अधिक दक्ष (efficient) है क्योंकि इसे अधिक ताप पर भी जलाया जा सकता है या ईंधन सेल में भी जलाया जा सकता है। इस गैस को सीधे गैस इंजनों में भी जलाया जा सकता है। इस गैस को फिशर-ट्रॉप्स प्रक्रिया (Fischer-Tropsch process) द्वारा मेथेनॉल और हाइड्रोजन में बदला जा सकता है। गैसीकरण के लिये ऐसे पदार्थ का भी उपयोग किया जा सकता है जो अन्यथा कचड़ा समझकर फेंक दिया जाता है। इस समय जीवाश्म ईंधन का गैसीकरण औद्योगिक पैमाने बहुतायत में हो रहा है जिससे बिजली पैदा की जाती है। .
देखें ऊर्जा और गैसीकरण
आन्तरिक ऊर्जा
ऊष्मागतिकी में, किसी निकाय में अंतर्विष्ट (contained) ऊर्जा को उस निकाय की आन्तरिक ऊर्जा (internal energy) कहते हैं। ध्यान देने योग्य है कि आन्तरिक ऊर्जा में उस निकाय की गतिज ऊर्जा और स्थितिज ऊर्जा सम्मिलित नहीं की जाती। 'कुल' आन्तरिक ऊर्जा U को नहीं मापा जा सकता किन्तु आन्तरिक ऊर्जा में परिवर्तन \Delta U को मापा जा सकता है। जहाँ .
देखें ऊर्जा और आन्तरिक ऊर्जा
आपेक्षिक ऊर्जा व संवेग के परिक्षण
न्यूटनीय यांत्रिकी और विशिष्ट आपेक्षिकता आपेक्षिक ऊर्जा व संवेग के परिक्षण, ऊर्जा, संवेग व द्रव्यमान के आपेक्षिक व्यंजकों के मापन के उद्देश्य हैं। विशिष्ट आपेक्षिकता सिद्धान्त के अनुसार प्रकाश के वेग की कोटि के वेग से गतिशील कण चिरसम्मत यांत्रिकी के गुणधर्मों के समान नहीं होते। .
देखें ऊर्जा और आपेक्षिक ऊर्जा व संवेग के परिक्षण
आपेक्षिकता सिद्धांत
सामान्य आपेक्षिकता में वर्णित त्रिविमीय स्पेस-समय कर्वेचर की एनालॉजी के का द्विविमीयप्रक्षेपण। आपेक्षिकता सिद्धांत अथवा सापेक्षिकता का सिद्धांत (अंग्रेज़ी: थ़िओरी ऑफ़ रॅलेटिविटि), या केवल आपेक्षिकता, आधुनिक भौतिकी का एक बुनियादी सिद्धांत है जिसे अल्बर्ट आइंस्टीन ने विकसित किया और जिसके दो बड़े अंग हैं - विशिष्ट आपेक्षिकता (स्पॅशल रॅलॅटिविटि) और सामान्य आपेक्षिकता (जॅनॅरल रॅलॅटिविटि)। फिर भी कई बार आपेक्षिकता या रिलेटिविटी शब्द को गैलीलियन इन्वैरियन्स के संदर्भ में भी प्रयोग किया जाता है। थ्योरी ऑफ् रिलेटिविटी नामक इस शब्द का प्रयोग सबसे पहले सन १९०६ में मैक्स प्लैंक ने किया था। यह अंग्रेज़ी शब्द समूह "रिलेटिव थ्योरी" (Relativtheorie) से लिया गया था जिसमें यह बताया गया है कि कैसे यह सिद्धांत प्रिंसिपल ऑफ रिलेटिविटी का प्रयोग करता है। इसी पेपर के चर्चा संभाग में अल्फ्रेड बुकरर ने प्रथम बार "थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी" (Relativitätstheorie) का प्रयोग किया था। .
देखें ऊर्जा और आपेक्षिकता सिद्धांत
आयनन ऊर्जा
किसी विलगित (आइसोलेटेड) गैसीय अवस्था वाले परमाणु के सबसे शिथिलतः बद्ध (लूजली बाउण्ड) इलेक्ट्रान को परमाणु से अलग करने के लिये आवश्यक ऊर्जा, आयनन ऊर्जा (ionization energy (IE)) या 'आयनन विभव' या 'आयनन एन्थैल्पी' कहलाती है। \ A_ + E_ \to A^+_ \ + e^-.
देखें ऊर्जा और आयनन ऊर्जा
आर्थिक विकास
देशों, क्षेत्रों या व्यक्तिओं की आर्थिक समृद्धि के वृद्धि को आर्थिक विकास कहते हैं। नीति निर्माण की दृष्टि से आर्थिक विकास उन सभी प्रयत्नों को कहते हैं जिनका लक्ष्य किसी जन-समुदाय की आर्थिक स्थिति व जीवन-स्तर के सुधार के लिये अपनाये जाते हैं। वर्तमान युग की सबसे महत्वपूर्ण समस्या 'आर्थिक विकास' की समस्या है। आर्थिक स्वतन्त्रता के बिना राजनैतिक स्वतन्त्रता का कोई महत्व (उपयोग) नहीं है। विकास और उससे जुड़े हुए मुद्दों के इस महत्व के कारण ही अर्थशास्त्र के क्षेत्र में विकास-अर्थशास्त्र नामक एक अलग विषय का ही उदय हो गया। किन्तु पिछले कुछ वर्षों से विकास-अर्थशास्त्र के एक स्वतंत्र विषय के रूप में अस्तित्व पर प्रश्न चिह्न-सा उभरता दिखाई दे रहा है। कई अर्थशास्त्री हैं जो "विकास-अर्थशास्त्र" नामक अलग विषय की आवश्यकता से ही इनकार करने लगे हैं, इनमें प्रमुख हैं- स्लट्ज, हैबरलर, बार, लिटिल, वाल्टर्स आदि। अर्थशास्त्रियों का एक वर्ग "विकास-अर्थशास्त्र" को ही समाप्त कर देने की मांग करने लगा है। कुछ अर्थशास्त्रियों ने 'आर्थिक विकास' (इकनॉमिक डेवलपमेन्ट), 'आर्थिक प्रगति' (इकनॉमिक ग्रोथ) और दीर्घकालीन परिवर्तन (सेक्युलर डेवलपमेन्ट) की अलग-अलग परिभाषाएँ की हैं। किन्तु मायर और बोल्डविन ने इन तीनों श्ब्द-समूहों का एक ही अर्थ में प्रयोग किया है तथा अलग-अलग अर्थ निकालने को 'बाल की खाल निकालना' कहा है। उनके अनुसार, .
देखें ऊर्जा और आर्थिक विकास
आहार ऊर्जा
आहार ऊर्जा (Food energy) वह रासायनिक ऊर्जा है जिसे सभी जन्तु अपने आहार से प्राप्त करते हैं। यह ऊर्जा आणविक आक्सीजन की सहायता से कोशिकीय श्वसन में उत्पन्न होती है। श्रेणी:पोषण.
देखें ऊर्जा और आहार ऊर्जा
आहारीय रेशा
लेग्यूम्स में आहारीय रेशा भरपूर मात्रा में उपस्थित होता है आहारीय रेशा, आहार में उपस्थित रेशे तत्त्व को कहते हैं। ये पौधों से मिलने वाले ऐसे तत्व हैं जो स्वयं तो अपाच्य होते हैं, किन्तु मूल रूप से पाचन क्रिया को सुचारू बनाने का अत्यावश्यक योगदान करते हैं। रेशे शरीर की कोशिकाओं की दीवार का निर्माण करते हैं। इनको एन्ज़ाइम भंग नहीं कर पाते हैं। अतः ये अपाच्य होते हैं।।। हेल्थ एण्ड थेराप्यूटिक। अभिगमन तिथि:११ अक्टूबर, २००९ कुछ समय पूर्व तक इन्हें आहार के संबंध में बेकार समझा जाता था, किन्तु बाद की शोधों से ज्ञात हुआ कि इनमें अनेक यांत्रिक एवं अन्य विशेषतायें होती हैं, जैसे ये शरीर में जल को रोक कर रखते हैं, जिससे अवशिष्ट (मल) में पानी की कमी नहीं हो पाती है और कब्ज की स्थिति से बचे रहते हैं। रेशे वाले भोजन स्रोतों को प्रायः उनके घुलनशीलता के आधार पर भी बांटा जाता है। ये रेशे घुलनशील और अघुलनशील होते हैं। ये दोनों तत्व पौधों से मिलने वाले रेशों में पाए जाते हैं। सब्जियां, गेहू और अधिकतर अनाजों में घुलनशील रेशे की अपेक्षा अघुलनशील रेशा होता है। स्वास्थ्य में योगदान की दृष्टि से दोनों तरह के रेशे अपने-अपने ढंग से काम करते हैं। जहां घुलनशील रेशे से संपूर्ण स्वास्थय पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, वहीं अघुलनशील रेशे से मोटापा संबंधी समस्या भी बढ़ सकती है। अघुलनशील रेशे पाचन में मदद करते है और कब्ज कम करते है। घुलनशील रेशे सीरम कोलेस्ट्राल कम करते है और अच्छे कोलेस्ट्राल (एच.डी.एल) का अनुपात बढाते है। भोजन में उच्च रेशे वाले आहार से वजन नियंत्रित होता है। ऐसे भोजन को अधिक चबाना पड़ता है एवं अधिक ऊर्जा व्यय होती है। इसके साथ ही रेशा इन्सुलिन के स्तर कोप भी गिराता है, जिससे भूख पर नियंत्रण रहता है, तथा उच्च रेशा आहार पेट में अधिक समय तक रहते हैं, जिससे पेट भरे होने का अहसास भी रहता है। रेशा मल निर्माण को भी प्रभावित करता है और इसे अधिक भारी बनाता है। मल जितना भारी होगा, आंतों से निकलने में उसे उतना ही समय लगेगा। गेहू की चोकर उच्च रेशे से परिपूर्ण होने के कारण मल का भार बढाने में मदद करती है। उसी मात्रा के गाजर या बन्दगोभी के रेशे से दूगनी प्रभावशील है। हिप्पोक्रेटज के अनुसार सम्पूर्ण अनाज की डबल रोटी आंत को साफ़ कर देती है। आहारीय रेशे सभी पौधों में पाए जाते हैं। जिन पौधों में रेशा अधिक मात्र में पाया जाता है, अधिकतर उनसे ही इन्हें प्राप्त किया जाता है। अधिक मात्र वाले फाइबर पौधों को सीधे तौर पर भी आहार में ग्रहण किया जा सकता है या इन्हें उचित विधि से पकाकर भोजन के तौर पर भी खाया जा सकता है। घुलनशील रेशे कई पौधों में पाए जाते हैं जिनसे मिलने वाले खाद्य पदार्थो में जौ, केला, सेब, मूली, आलू, प्याज आदि प्रमुख हैं। अघुलनशील रेशे मक्का, आलू के छिलके, मूंगफली, गोभी और टमाटर में से प्राप्त होते हैं। रसभरी जैसे फल में भी रेशा होता है। घुलनशील रेशे से शरीर को अधिक ऊर्जा मिलती है, जबकि अघुलनशील रेशे से शरीर को ऊर्जा प्राप्त नहीं करनी चाहिए। यह भी ध्यान योग्य है कि दोनों तरीके से शरीर में प्रति ग्राम फाइबर से चार कैलोरी भी जाती है। .
देखें ऊर्जा और आहारीय रेशा
आघूर्ण परिमाण मापक्रम
आघूर्ण परिमाण मापक्रम (Moment magnitude scale) भूकम्पज्ञों द्वारा उपयोग में लाया जाने वाला मापक्रम (स्केल) है जो किसी भूकंप की तीव्रता को नापने के लिए प्रयुक्त किया जाता है। इसमें भूकंप को उसके द्वारा छोड़ी गई ऊर्जा के संबंध में मापा जाता है। इसका विकास थॉमस सी हैंक्स और हिरो कानामोरी द्वारा सत्तर के दशक के अंत में रिक्टर परिमाप के अद्यतन स्वरूप किया गया था जो की तीस के दशक में भूकम्पों को मापने के लिए विकसित किया गया था। रिक्टर पैमाने ही समान यह भी लघुगणकीय परिमाप है, अर्थात प्रति एक इकाई की वृद्धि वाला भूकम्प पिछली इकाई के भूकम्प से √१००० या ३१.६ गुणा अधिक शक्तिशाली होता है: उदाहरणार्थ, ५ की तीव्रता वाला भूकम्प ४ की तीव्रता वाले भूकम्प से तीस गुणा अधिक शक्तिशाली होगा और ६ की तीव्रता वाला ४ वाले से लगभग १००० (३१.६x३१.६) गुणा अधिक शक्ति शाली होगा और ७ की तीव्रता वाला भूकम्प तो ४ वाले से ३१,५५५ (३१.६x३१.६x३१.६) गुणा अधिक शक्तिशाली होगा। आघूर्ण परिमाण मापक्रम एक विमाहीन संख्या है। गणितकीय रूप से इसकी परिभाषा यह है- M_\mathrm .
देखें ऊर्जा और आघूर्ण परिमाण मापक्रम
आइनस्टाइन क्षेत्र समीकरण
वस्तुओं के द्रव्यमान और गति से उनके आसपास के दिक्-काल (स्पेसटाइम) में मरोड़ आती है और आइनस्टाइन क्षेत्र समीकरण इसका विवरण देते हैं आइनस्टाइन क्षेत्र समीकरण (Einstein field equations) भौतिकी में ऐल्बर्ट आइनस्टाइन के सामान्य सापेक्षता सिद्धांत में दस समीकरणों (इक्वेशनों) का एक समूह है जो पदार्थ और ऊर्जा द्वारा दिक्-काल (स्पेसटाइम) में पैदा की गई मरोड़ से होने वाले गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव का वर्णन करता है। इसे आइनस्टाइन ने सन् १९१५ में आतानक विश्लेषण (टेन्सर अनैलिसिस) के रूप में छापा था। जिस तरह मैक्सवेल के समीकरण आवेश (चार्ज) और विद्युत धारा से उत्पन्न होने वाले विद्युतचुम्बकीय क्षेत्र की विवरण देते हैं उसी तरह आइनस्टाइन क्षेत्र समीकरण ऊर्जा, द्रव्यमान और चाल (गति) से दिक्-काल में उत्पन्न होने वाले बदलावों का बखान करते हैं।, Norman K.
देखें ऊर्जा और आइनस्टाइन क्षेत्र समीकरण
इण्डियन एसोसियेशन फॉर द कल्टिवेशन ऑफ साईन्स
आई ए सी एस का प्रतीकचिह्न इण्डियन एसोसियेशन फॉर द कल्टिवेशन ऑफ साईन्स (IACS) भारत के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अन्तर्गत एक स्वायत्त शोध संस्थान है। इसकी संस्थापना 29 जुलाई 1876 को डॉ महेन्द्रलाल सरकार ने की थी। यह भारत का प्राचीनतम शोध संस्थान है। यह संस्थान भौतिकी, रसायन, जीवविज्ञान, उर्जा, बहुलक तथा पदार्थों के सीमांतवर्ती क्षेत्रों में मौलिक शोध कार्य में समर्पित है। प्रत्येक क्षेत्र में आई ए सी एस युवा एवं प्रगतिशील शोध अध्येताओं का उनके डॉक्टरॉल कार्यक्रमों में उचित पोषण करती है। चन्द्रशेखर वेंकट रमन आई ए सी एस में 1907 से 1933 तक भौतिकी के विविध विषयों पर शोध कार्य करते रहे तथा 1928 में उन्होंने प्रकाश के प्रकीर्णन के प्रभाव पर अपना बहुचर्चित आविष्कार किया जिसने उन्हें ख्याति के साथ अनेक पुरस्कार भी दिलवाए जिनमें 1930 में प्राप्त नोबेल पुरस्कार भी शामिल है। अमेरिकन केमिकल सोसाइटी ने 1998 में रमन प्रभाव को 'अंतर्राष्ट्रीय ऐतिहासिक रासायनिक युगांतकारी घटना' की स्वीकृति प्रदान की है। .
देखें ऊर्जा और इण्डियन एसोसियेशन फॉर द कल्टिवेशन ऑफ साईन्स
इन्सुलिन
issn .
देखें ऊर्जा और इन्सुलिन
इलेक्ट्रिक कार (विद्युत् कार)
निसान लीफ अमेरिका और चुनें बाजारों में 2010 के अंत तक बिक्री के लिए उपलब्ध हो जाएगी तथा इसकी वैश्विक उपलब्धता 2012 में होगी। 1 मित्सुबिशी i MiEV की जनता के लिए बिक्री जापान में अप्रैल 2010 में, हांगकांग में मई 2010 में और ऑस्ट्रेलिया में जुलाई 2010 में प्रारंभ हुई.2 इलेक्ट्रिक कार बैटरी की शक्ति से चलने वाली विद्युत् मोटरों द्वारा संचालित वाहन है। हालांकि बिजली के कारों में सामान्यतः अच्छा त्वरण (शीघ्र गति पकड़ना) होता है तथा उनकी अधिकतम गति भी सर्व-स्वीकृत होती है, परन्तु 2010 में उपलब्ध बैटरियां कार्बन आधारित ईंधन की अपेक्षा कम विशिष्ट ऊर्जा वाली थीं जिसका अर्थ यह हुआ कि न सिर्फ वे वाहन के भार का एक बड़ा हिस्सा होंगी, बल्कि चार्ज होने के पश्चात् अधिक परास भी नहीं देंगी। रिचार्जिंग में भी लम्बा समय लग सकता है। छोटी परास की, रोजाना आवागमन की यात्राओं के लिए इलेक्ट्रिक कार यातायात का एक व्यावहारिक साधन है और इसे बहुत कम खर्च पर रात भर में चार्ज किया जा सकता है, परन्तु लम्बी यात्राओं के लिए यह व्यावहारिक नहीं है। लम्बी दूरी की यात्राओं के लिए विकल्पों के रूप में बैटरी बदलने के स्टेशन जैसी आधारभूत सुविधाओं के विकास का कार्य टोक्यो तथा कुछ अन्य शहरों में आज़माइश के तौर पर चल रहा है। इलेक्टिक कारों में शहरों में प्रदूषण को उल्लेखनीय रूप से कम कर सकने की क्षमता है क्योंकि इससे होने वाले उत्सर्जन शून्य होते हैं। वाहन से उत्सर्जित ग्रीनहाउस गैसों की कमी इसपर निर्भर करती है कि विद्युत् का उत्पादन कैसे किया जा रहा है। वर्तमान सं.रा.
देखें ऊर्जा और इलेक्ट्रिक कार (विद्युत् कार)
इलेक्ट्रॉन
इलेक्ट्रॉन या विद्युदणु (प्राचीन यूनानी भाषा: ἤλεκτρον, लैटिन, अंग्रेज़ी, फ्रेंच, स्पेनिश: Electron, जर्मन: Elektron) ऋणात्मक वैद्युत आवेश युक्त मूलभूत उपपरमाणविक कण है। यह परमाणु में नाभिक के चारो ओर चक्कर लगाता हैं। इसका द्रव्यमान सबसे छोटे परमाणु (हाइड्रोजन) से भी हजारगुना कम होता है। परम्परागत रूप से इसके आवेश को ऋणात्मक माना जाता है और इसका मान -१ परमाणु इकाई (e) निर्धारित किया गया है। इस पर 1.6E-19 कूलाम्ब परिमाण का ऋण आवेश होता है। इसका द्रव्यमान 9.11E−31 किग्रा होता है जो प्रोटॉन के द्रव्यमान का लगभग १८३७ वां भाग है। किसी उदासीन परमाणु में विद्युदणुओं की संख्या और प्रोटानों की संख्या समान होती है। इनकी आंतरिक संरचना ज्ञात नहीं है इसलिए इसे प्राय:मूलभूत कण माना जाता है। इनकी आंतरिक प्रचक्रण १/२ होती है, अतः यह फर्मीय होते हैं। इलेक्ट्रॉन का प्रतिकणपोजीट्रॉन कहलाता है। द्रव्यमान के अलावा पोजीट्रॉन के सारे गुण यथा आवेश इत्यादि इलेक्ट्रॉन के बिलकुल विपरीत होते हैं। जब इलेक्ट्रॉन और पोजीट्रॉन की टक्कर होती है तो दोंनो पूर्णतः नष्ट हो जाते हैं एवं दो फोटॉन उत्पन्न होती है। इलेक्ट्रॉन, लेप्टॉन परिवार के प्रथम पीढी का सदस्य है, जो कि गुरुत्वाकर्षण, विद्युत चुम्बकत्व एवं दुर्बल प्रभाव सभी में भूमिका निभाता है। इलेक्ट्रॉन कण एवं तरंग दोनो तरह के व्यवहार प्रदर्शित करता है। बीटा-क्षय के रूप में यह कण जैसा व्यवहार करता है, जबकि यंग का डबल स्लिट प्रयोग (Young's double slit experiment) में इसका किरण जैसा व्यवहार सिद्ध हुआ। चूंकि इसका सांख्यिकीय व्यवहार फर्मिऑन होता है और यह पॉली एक्सक्ल्युसन सिध्दांत का पालन करता है। आइरिस भौतिकविद जॉर्ज जॉनस्टोन स्टोनी (George Johnstone Stoney) ने १८९४ में एलेक्ट्रों नाम का सुझाव दिया था। विद्युदणु की कण के रूप में पहचान १८९७ में जे जे थॉमसन (J J Thomson) और उनकी विलायती भौतिकविद दल ने की थी। कइ भौतिकीय घटनाएं जैसे-विध्युत, चुम्बकत्व, उष्मा चालकता में विद्युदणु की अहम भूमिका होती है। जब विद्युदणु त्वरित होता है तो यह फोटान के रूप मेंऊर्जा का अवशोषण या उत्सर्जन करता है।प्रोटॉन व न्यूट्रॉन के साथ मिलकर यह्परमाणु का निर्माण करता है।परमाणु के कुल द्रव्यमान में विद्युदणु का हिस्सा कम से कम् 0.0६ प्रतिशत होता है। विद्युदणु और प्रोटॉन के बीच लगने वाले कुलाम्ब बल (coulomb force) के कारण विद्युदणु परमाणु से बंधा होता है। दो या दो से अधिक परमाणुओं के विद्युदणुओं के आपसी आदान-प्रदान या साझेदारी के कारण रासायनिक बंध बनते हैं। ब्रह्माण्ड में अधिकतर विद्युदणुओं का निर्माण बिग-बैंग के दौरान हुआ है, इनका निर्माण रेडियोधर्मी समस्थानिक (radioactive isotope) से बीटा-क्षय और अंतरिक्षीय किरणो (cosmic ray) के वायुमंडल में प्रवेश के दौरान उच्च ऊर्जा टक्कर के कारण भी होता है।.
देखें ऊर्जा और इलेक्ट्रॉन
इलेक्ट्रॉन साइक्लोट्रॉन अनुनाद
इलेक्ट्रॉन साइक्लोट्रॉन अनुनाद (Electron cyclotron resonance या ECR) नामक परिघटना (phenomenon) प्लाज्मा भौतिकी, संघनित पदार्थ भौतिकी (condensed matter physics) तथा त्वरक भौतिकी देखने को मिलती है। इसमें नियत चुम्बकीय क्षेत्र में गतिमान इलेक्ट्रॉनों द्वारा विद्युतचुम्बकीय तरंगों का अनुनादी अवशोषण होता है। इस नाम में 'साइक्लोट्रॉन' आया है जिसका कारण यह है कि यहाँ इलेक्ट्रान की आवृत्ति का सूत्र वही है जो साइक्लोट्रॉन में होती है। प्लाज्मा में इलेक्ट्रॉन साइक्लोट्रॉन अनुनाद का उपयोग करके इलेक्ट्रानों की गतिज ऊर्जा में वृद्धि की जाती है जिससे प्लाज्मा की ऊर्जा में वृद्धि होती है और प्लाज्मा का ताप बढ़ जाता है। मुक्त इलेक्ट्रानों का साइक्लोट्रान अनुनाद ही गाइरोट्रॉन (gyrotron) के कार्य करने का आधार है। यही सिद्धान्त मैग्नेट्रॉन (magnetron) के कार्य का भी आधार है। गाइरोट्रॉन और मैग्नेट्रॉन दोनो ही शक्तिशाली माइक्रोवेव जनित्र हैं। इसके अलावा आवेशित कणों के साइक्लोट्रॉन अनुनाद के अनेकों उपयोग हैं। .
देखें ऊर्जा और इलेक्ट्रॉन साइक्लोट्रॉन अनुनाद
इलेक्ट्रॉन वोल्ट
इलेक्ट्रॉन वोल्ट (चिन्ह eV) ऊर्जा की इकाई है। यह गतिज ऊर्जा की वह मात्रा है, जो एक इलेक्ट्रॉन द्वारा निर्वात में एक वोल्ट का विभवांतर पार करने पर प्राप्त की जाती है। सरल शब्दों में, यह 1 वोल्ट तथा 1 एलेक्ट्रानिक आवेश (e) के गुणनफल के बराबर होती है, जहाँ एक वोल्ट .
देखें ऊर्जा और इलेक्ट्रॉन वोल्ट
इलेक्ट्रॉन-पुंज प्रक्रमण
उच्च ऊर्जा के बीटा विकिरण का प्रयोग करके किसी वस्तु के गुणों में परिवर्तन करना इलेक्ट्रॉन किरण-पुंज प्रक्रमण (Electron beam processing) या इलेक्ट्रॉन विकिरण (electron irradiation) कहलाता है। अधिकतर यह कार्य सामान्य ताप के बजाय उच्च ताप पर और नाइट्रोजन के वातावरण में किया जाता है। उदाहरण के लिये, बहुलकों की तिर्यक बन्धन (क्रॉस-लिंकिंग) तथा रोगाणुनाशन (sterilization) के लिये इलेक्ट्रॉन बीम का उपयोग किया जाता है। श्रेणी:इलेक्ट्रॉन.
देखें ऊर्जा और इलेक्ट्रॉन-पुंज प्रक्रमण
इंदिरा गांधी नहर
इन्दिरा गाँधी नहर राजस्थान की प्रमुख नहर हैं। इसका पुराना नाम "राजस्थान नहर" था। यह राजस्थान प्रदेश के उत्तर-पश्चिम भाग में बहती है। राजस्थान की महत्वाकांक्षी इंदिरा गांधी नहर परियोजना से मरूस्थलीय क्षेत्र में चमत्कारिक बदलाव आ रहा है और इससे मरूभूमि में सिंचाई के साथ ही पेयजल और औद्योगिक कार्यो के लिए॰भी पानी मिलने लगा है। नहर निर्माण से पूर्व लोगों को कई मील दूर से पीने का पानी लाना पड़ता था। लेकिन अब परियोजना के अन्तर्गत बारह सौ क्यूसेक पानी केवल पेयजल उद्योग, सेना एवं ऊर्जा परियोजनाओं के लिए आरक्षित किया गया है। विशेषतौर से चुरू, श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, बीकानेर, जैसलमेर, बाडमेर और नागौर जैसे रेगिस्तानी जिलों के निवासियों को इस परियोजना से पेयजल सुविधा उपलब्ध कराने के प्रयास जारी हैं। राजस्थान नहर सतलज और व्यास नदियों के संगम पर निर्मित हरिके बांध से निकाली गई है। यह नहर पंजाब व राजस्थान को पानी की आपूर्ति करती है। पंजाब में इस नहर की लम्बाई 132 किलोमीटर है और वहां इसे राजस्थान फीडर के नाम से जाना जाता है। इससे इस क्षेत्र में सिंचाई नहीं होती है बल्कि पेयजल की उपलब्धि होती है। राजस्थान में इस नहर की लम्बाई 470 किलोमीटर है। राजस्थान में इस नहर को राज कैनाल भी कहते हैं। राजस्थान नहर इसकी मुख्य शाखा या मेन कैनाल 256 किलोमीटर लंबी हे जबकि वितरिकाएं 5606 किलोमीटर और इसका सिंचित क्षेत्र 19.63 लाख हेक्टेयर आंका गया है। इसकी मेनफीडर 204 किलोमीटर लंबी है जिसका 35 किलोमीटर हिस्सा राजस्थान व 169 किलोमीटर हिस्सा पंजाब व हरियाणा में है।यह नहर राजस्थान की एक प्रमुख नहर है। इस नहर का उद्घाटन 31 मार्च 1958 को हुआ जबकि दो नवंबर 1984 को इसका नाम इंदिरा गांधी नहर परियोजना कर दिया गया। श्रेणी:राजस्थान की प्रमुख नहरें.
देखें ऊर्जा और इंदिरा गांधी नहर
इंजन
चार-स्ट्रोक वाला आन्तरिक दहन इंजन आजकल अधिकांश कामों में इस्तेमाल होता है इंजन या मोटर उस यंत्र या मशीन (या उसके भाग) को कहते हैं जिसकी सहायता से किसी भी प्रकार की ऊर्जा का यांत्रिक ऊर्जा में रूपांतरण होता है। इंजन की इस यांत्रिक ऊर्जा का उपयोग, कार्य करने के लिए किया जाता है। अर्थात् इंजन रासायनिक ऊर्जा, विद्युत ऊर्जा, गतिज ऊर्जा या ऊष्मीय ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में बदलने का कार्य करता है। वर्तमान युग में अंतर्दहन इंजन तथा विद्युत मोटरों का अत्यन्त महत्व है। .
देखें ऊर्जा और इंजन
कण त्वरक
'''इन्डस-२''': भारत (इन्दौर) का 2.5GeV सिन्क्रोट्रान विकिरण स्रोत (SRS) कण-त्वरक एसी मशीन है जिसके द्वारा आवेशित कणों की गतिज ऊर्जा बढाई जाती हैं। यह एक ऐसी युक्ति है, जो किसी आवेशित कण (जैसे इलेक्ट्रान, प्रोटान, अल्फा कण आदि) का वेग बढ़ाने (या त्वरित करने) के काम में आती हैं। वेग बढ़ाने (और इस प्रकार ऊर्जा बढाने) के लिये वैद्युत क्षेत्र का प्रयोग किया जाता है, जबकि आवेशित कणों को मोड़ने एवं फोकस करने के लिये चुम्बकीय क्षेत्र का प्रयोग किया जाता है। त्वरित किये जाने वाले आवेशित कणों के समूह या किरण-पुंज (बीम) धातु या सिरैमिक के एक पाइप से होकर गुजरती है, जिसमे निर्वात बनाकर रखना पड़ता है ताकि आवेशित कण किसी अन्य अणु से टकराकर नष्ट न हो जायें। टीवी आदि में प्रयुक्त कैथोड किरण ट्यूब (CRT) भी एक अति साधारण कण-त्वरक ही है। जबकि लार्ज हैड्रान कोलाइडर विश्व का सबसे विशाल और शक्तिशाली कण त्वरक है। कण त्वरकों का महत्व इतना है कि उन्हें 'अनुसंधान का यंत्र' (इंजन्स ऑफ डिस्कवरी) कहा जाता है। .
देखें ऊर्जा और कण त्वरक
कण भौतिकी
कण भौतिकी, भौतिकी की एक शाखा है जिसमें मूलभूत उप परमाणविक कणो के पारस्परिक संबन्धो तथा उनके अस्तित्व का अध्ययन किया जाता है, जिनसे पदार्थ तथा विकिरण निर्मित हैं। हमारी अब तक कि समझ के अनुसार कण क्वांटम क्षेत्रों के उत्तेजन (excitations) हैं। दूसरे कणों के साथ इनकी अन्तःक्रिया की अपनी गतिकी है। कण भौतिकी के क्षेत्र में अधिकांश रुचि मूलभूत क्षेत्रों (fundamental fields) में है। मौलिक क्षेत्रों और उनकी गतिशीलताओ के सार को सिद्धान्त के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इसिलिये कण भौतिकी में अधिकतर स्टैंडर्ड मॉडल (Standard Model) के मूल कणों तथा उनके सम्भावित विस्तार के बारे में अध्यन किया जाता है। .
देखें ऊर्जा और कण भौतिकी
कण क्षेपण
कण क्षेपण (Sputtering/स्पटरिंग) वह प्रक्रिया है जिसमें एक ठोस लक्ष्य (टार्गेट) पर ऊर्जावान कणों की बमबारी करके उससे दूसरे कण निकालते हैं। यह तभी सम्भव है जब बमबारी करने वाले कणों की गतिज ऊर्जा, ऊष्मीय ऊर्जा सी अपेक्षा बहुत अधिक हो (≫ 1 eV)। इस प्रक्रम का उपयोग कई कार्यों के लिये किया जाता है, जैसे- तनुफिल्म निक्षेपण (thin-film deposition), निक्षारण (etching/इचिंग) तथा वैश्लेषिक तकनीकों में। श्रेणी:पदार्थ विज्ञान.
देखें ऊर्जा और कण क्षेपण
कमानी
कुण्डलीनुमा स्प्रिंग - ये तनाव के लिये डिजाइन किये जाते हैं। कमानी या स्प्रिंग (spring) एक यांत्रिक युक्ति है जो प्रत्यास्थ उर्जा के भण्डारण के काम आती है। .
देखें ऊर्जा और कमानी
कार्दाशेव मापनी
कार्दाशेव मापनी (Kardashev scale) किसी सभ्यता के प्रौद्योगिकीय विकास के स्तर को मापने की एक विधि है। इसमें सभ्यता द्वारा संचार के लिये उपयोग में ली जाने वाली ऊर्जा को आधार के रूप में लिया जाता है। इस आधार पर सभ्यताओं की तीन श्रेणीया बतायी गयी हैं- श्रेणी-१, श्रेणी-२ तथा श्रेणी-३। 1964 मे कार्दाशेव ने किसी परग्रही सभ्यता के तकनीकी विकास की क्षमता को मापने के लिये इस मापनी को प्रस्तावित किया। रूसी खगोल विज्ञानी निकोलाइ कार्दाशेव के अनुसार सभ्यता के विकास के विभिन्न चरणो को ऊर्जा की खपत के अनुसार श्रेणीबद्ध लिया जा सकता है। इन चरणो के आधार पर परग्रही सभ्यताओं का वर्गीकरण किया जा सकता है। .
देखें ऊर्जा और कार्दाशेव मापनी
कार्बन-न्यूट्रल ईंधन
कार्बन-न्यूट्रल ईंधन ऊर्जा ईंधन या कोई शुद्ध ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन या कार्बन पदचिह्न है, जो ऊर्जा प्रणालियों की एक किस्म का उल्लेख करती है। एक वर्ग (मीथेन,पेट्रोल,डीजल,ईंधन,जेट ईंधन या अमोनिया सहित) कृत्रिम ईंधन है ' बिजली संयंत्र ग्रिप निकास गैस से साफ किया जा सकता है या समुद्री जल में कार्बोनिक एसिड से निकाली गई अपशिष्ट कार्बन डाइऑक्साइड हैद्रोजेनेट करने के लिए इस्तेमाल स्थायी या परमाणु ऊर्जा से उत्पादित होती है 'और इसका प्रयोग अन्य प्रकार के पवन टर्बाइन,सौर पैनलों, और पनबिजली संयंत्रों के रूप में अक्षय ऊर्जा स्रोतों से उत्पादन किया जा सकता है ' .
देखें ऊर्जा और कार्बन-न्यूट्रल ईंधन
कार्बोहाइड्रेट
रासायनिक रुप से ‘‘कार्बोहाइड्रेट्स पालिहाइड्राक्सी एल्डिहाइड या पालिहाइड्राक्सी कीटोन्स होते हैं तथा स्वयं के जलीय अपघटन के फलस्वरुप पालिहाइड्राक्सी एल्डिहाइड या पालिहाइड्राक्सी कीटोन्स देते हैं।’’ कार्बोहाइड्रेट्स, कार्बनिक पदार्थ हैं जिसमें कार्बन, हाइड्रोजन व आक्सीजन होते है। इसमें हाइड्रोजन व आक्सीजन का अनुपात जल के समान होता है। कुछ कार्बोहाइड्रेट्स सजीवों के शरीर के रचनात्मक तत्वों का निर्माण करते हैं जैसे कि सेल्यूलोज, हेमीसेल्यूलोज, काइटिन तथा पेक्टिन। जबकि कुछ कार्बोहाइड्रेट्स उर्जा प्रदान करते हैं, जैसे कि मण्ड, शर्करा, ग्लूकोज़, ग्लाइकोजेन.
देखें ऊर्जा और कार्बोहाइड्रेट
कार्य (ऊष्मागतिकी)
ऊष्मागतिकी के सन्दर्भ में, किसी निकाय द्वारा अपने परिवेश (surroundings) को जितनी ऊर्जा स्थानान्तरित की जाती है, उसे उस निकाय द्वारा किया गया कार्य कहते हैं। .
देखें ऊर्जा और कार्य (ऊष्मागतिकी)
कार्य (भौतिकी)
भौतिकी में कार्य (work) होना तब माना जाता है जब किसी वस्तु पर कोई बल लगाने से वह वस्तु बल की दिशा में कुछ विस्थापित हो। दूसरे शब्दों में, कोई बल लगाने से बल की दिशा में वस्तु का विस्थापन हो तो कहते हैं कि बल ने कार्य किया। कार्य, भौतिकी की सबसे महत्वपूर्ण राशियों में से एक है। कार्य करने की दर को शक्ति कहते हैं। कार्य करने या कराने से वस्तुओं की ऊर्जा में परिवर्तन होता है। किसी वस्तु पर F बल लगाने पर वह वस्तु बल की दिशा में d दूरी विस्थापित हो जाय तो किया गया कार्य होगा। उदाहरण: 10 न्यूटन (F .
देखें ऊर्जा और कार्य (भौतिकी)
कार्य फलन
ठोस अवस्था भौतिकी में, निर्वात में किसी ठोस से एक इलेक्ट्रॉन निकालने के लिये आवश्यक न्यूनतम ऊर्जा को उस ठोस का कार्य-फलन (work function) कहते हैं। श्रेणी:इलेक्ट्रॉन.
देखें ऊर्जा और कार्य फलन
किरण
'''बुलबुले से प्रकाश का परावर्तन''': चित्र में दिखायी गयीं सीधी रेखाएँ प्रकाश की किरणों को निरुपित करतीं हैं। प्रकाशिकी के सन्दर्भ में प्रकाश के वेवफ्रॉण्ट (wavefronts) के लम्बवत किसी रेखा को किरण या रश्मि (ray) कहते हैं। वस्तुतः यह प्रकाश का सरलीकृत मॉडल है। किरण, प्रकाश ऊर्जा के प्रवाह की दिशा का द्योतक है। श्रेणी:प्रकाश.
देखें ऊर्जा और किरण
क्रेब्स चक्र
क्रेब्स चक्र वायवीय श्वसन की दूसरी अवस्था है। यह कोशिका के माइटोकाँन्ड्रिया में होती है। इस क्रिया में ग्लूकोज का अंत पदार्थ पाइरूविक अम्ल पूर्ण रूप से आक्सीकृत होकर कार्बन डाईआक्साइड और जल में बदल जाता है तथा अधिक मात्रा में ऊर्जा मुक्त होती है। यह क्रिया कई चरणों में होती है तथा एक चक्र के रूप में कार्य करती है। इस चक्र का अध्ययन सर्वप्रथम हैन्स एडोल्फ क्रेब ने किया था, उन्हीं के नाम पर इस क्रिया को क्रेब्स चक्र कहते हैं। श्रेणी:श्वसन.
देखें ऊर्जा और क्रेब्स चक्र
कैलोरी
कैलोरी (Calorie) ऊर्जा की इकाई है। यह मापन की मीटरी पद्धति का अंग है और इसके संगत एस आई प्रणाली में अब जूल का प्रयोग किया जाता है किन्तु भोजन में निहित ऊर्जा तथा कुछ अन्य उपयोगों में अब भी कैलोरी का ही प्रयोग किया जाता है। १००० कैलोरी को १ किलोकैलोरी कहते हैं। सबसे पहले प्रोफेसर निकोलस क्लीमेण्ट ने १८२४ में कैलोरी को ऊर्जा की इकाई के रूप में परिभाषित किया। १८४२ और १८६७ के मध्य इस शब्द को अंग्रेजी एवं फ्रेंच शब्दकोशों में सम्मिलित किया गया। १ ग्राम जल का ताप १ डिग्री सेल्सियस बढ़ाने के लिये १ कैलोरी ऊष्मा की आवश्यकता होती है। १ कैलरी लगभग ४.२ जूल के बराबर होती है। .
देखें ऊर्जा और कैलोरी
कॉफ़ी
कॉफ़ी का प्यालाकॉफ़ी (अरब. قهوة क़हवा उत्तेजक पेय पदार्थ) — एक लोकप्रिय पेय पदार्थ (साधारणतया गर्म) है, जो कॉफ़ी के पेड़ के भुने हुए बीजों से बनाया जाता है। कॉफ़ी में कैफ़ीन होने के कारण वह हल्के उद्दीपक सा प्रभाव डालती है। इसके विषय में वैज्ञानिकों का कोई निश्चित मत नहीं हैं। जहाँ एक ओर कहा जाता है कि कॉफ़ी से शुक्राणुओं की सक्रियता बढ़ती है वहीं दूसरी ओर कुछ अध्ययनों में यह भी पता चला है कि अधिक कॉफ़ी पीने से मतिभ्रम भी हो सकता है। .
देखें ऊर्जा और कॉफ़ी
कॉम्पटन तरंगदैर्घ्य
कॉम्पटन तरंगदैर्घ्य (Compton wavelength) किसी कण की क्वाण्टम यांत्रिक गुण है। इसका विवेचन आर्थर कॉम्पटन ने किया था। किसी कण का कॉम्पटन तरंगदैर्घ्य उस फोटॉन के तरंगदैर्घ्य के बराबर होता है जिसकी ऊर्जा उस कण के द्रव्यमान के तुल्य है। किसी कण की मानक कॉम्प्टन तरंगदैर्घ्य, निम्नलिखित समीकरण द्वारा निकाली जाती है- जहाँ प्लांक नियतांक है, उस कण का द्रव्यमान है, और प्रकाश का वेग है। .
देखें ऊर्जा और कॉम्पटन तरंगदैर्घ्य
कॉम्पटन प्रभाव
काम्प्टन प्रभाव कॉम्पटन प्रभाव उच्च आवृत्ति के विद्युतचुंबकीय विकिरण (अर्थात फोटॉन) की पदार्थ के साथ वह अंत:क्रिया (इंटरऐक्शन) है जिसमें मुक्त इलेक्ट्रानों से प्रकीर्ण (स्कैटर) होकर फ़ोटान की ऊर्जा में ह्रास हो जाता है और उनके तरंग आयाम में वृद्धि हो जाती है। प्रकीर्णित विकिरण की तरंगदैर्घ्य केवल प्रकीर्णन के कोण पर निर्भर करती है। कॉम्प्टन प्रभाव के स्पष्टीकरण के लिए 1923 ई.
देखें ऊर्जा और कॉम्पटन प्रभाव
कोयला
कोयला एक ठोस कार्बनिक पदार्थ है जिसको ईंधन के रूप में प्रयोग में लाया जाता है। ऊर्जा के प्रमुख स्रोत के रूप में कोयला अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। कुल प्रयुक्त ऊर्जा का ३५% से ४०% भाग कोयलें से पाप्त होता हैं। विभिन्न प्रकार के कोयले में कार्बन की मात्रा अलग-अलग होती है। कोयले से अन्य दहनशील तथा उपयोगी पदार्थ भी प्राप्त किया जाता है। ऊर्जा के अन्य स्रोतों में पेट्रोलियम तथा उसके उत्पाद का नाम सर्वोपरि है। .
देखें ऊर्जा और कोयला
कोशिकीय श्वसन
सजीव कोशिकाओं में भोजन के आक्सीकरण के फलस्वरूप ऊर्जा उत्पन्न होने की क्रिया को कोशिकीय श्वसन कहते हैं। यह एक केटाबोलिक क्रिया है जो आक्सीजन की उपस्थिति या अनुपस्थिति दोनों ही अवस्थाओं में सम्पन्न हो सकती है। इस क्रिया के दौरान मुक्त होने वाली ऊर्जा को एटीपी नामक जैव अणु में संग्रहित करके रख लिया जाता है जिसका उपयोग सजीव अपनी विभिन्न जैविक क्रियाओं में करते हैं। यह जैव-रासायनिक क्रिया पौधों एवं जन्तुओं दोनों की ही कोशिकाओं में दिन-रात हर समय होती रहती है। कोशिकाएँ भोज्य पदार्थ के रूप में ग्लूकोज, अमीनो अम्ल तथा वसीय अम्ल का प्रयोग करती हैं जिनको आक्सीकृत करने के लिए आक्सीजन का परमाणु इलेक्ट्रान ग्रहण करने का कार्य करता है। कोशिकीय श्वसन एवं श्वास क्रिया में अभिन्न सम्बंध है एवं ये दोनों क्रियाएँ एक-दूसरे की पूरक हैं। श्वांस क्रिया सजीव के श्वसन अंगों एवं उनके वातावरण के बीच होती है। इसके दौरान सजीव एवं उनके वातावरण के बीच आक्सीजन एवं कार्बन डाईऑक्साइड गैस का आदान-प्रदान होता है तथा इस क्रिया द्वारा आक्सीजन गैस वातावरण से सजीवों के श्वसन अंगों में पहुँचती है। आक्सीजन गैस श्वसन अंगों से विसरण द्वारा रक्त में प्रवेश कर जाती है। रक्त परिवहन का माध्यम है जो इस आक्सीजन को शरीर के विभिन्न भागों की कोशिकाओं में पहुँचा देता है। वहाँ इसका उपयोग कोशिकाएँ अपने कोशिकीय श्वसन में करती हैं। श्वसन की क्रिया प्रत्येक जीवित कोशिका के कोशिका द्रव्य (साइटोप्लाज्म) एवं माइटोकाण्ड्रिया में सम्पन्न होती है। श्वसन सम्बन्धित प्रारम्भिक क्रियाएँ साइटोप्लाज्म में होती है तथा शेष क्रियाएँ माइटोकाण्ड्रियाओं में होती हैं। चूँकि क्रिया के अंतिम चरण में ही अधिकांश ऊर्जा उत्पन्न होती हैं। इसलिए माइटोकाण्ड्रिया को कोशिका का श्वसनांग या शक्ति-गृह (पावर हाउस) कहा जाता है। .
देखें ऊर्जा और कोशिकीय श्वसन
अतिसंधारित्र
अतिसंधारित्र (supercapacitor (SC)) वे संधारित्र हैं जिनकी धारिता अन्य प्रकार के संधारित्रों की तुलना में बहुत अधिक होती है। अपने इस गुण के कारण इनका उपयोग वहाँ होता है जिसकी ऊर्जा-आवश्यकताएँ विद्युत अपघट्य संधारित्र से अधिक किन्तु तथा पुनर्भरणीय बैटरी से कम होतीं है। अतिसंधारित्र अपेक्षाकृत बहुत कम वोल्टेज तक ही आवेशित किये जा सकते है (अथवा उनकी वोल्टता धारण की सीमा कम होती है।) विद्युत-अपघट्य संधारित्रों की तुलना में अतिसंधारित्रों की (प्रति आयतन, या प्रति किलोग्राम) ऊर्जा-संग्रह की क्षमता सामान्यतः १० से १०० गुना तक अधिक होती है। इसके अलावा वे पुनर्भरणीय बैटरी की तुलना में बहुत तेज गति से आवेशित एवं अनावेशित किये जा सकते हैं और उनकी तुलना में बहुत अधिक बार आवेशित-अनावेशित किये जा सकते हैं। .
देखें ऊर्जा और अतिसंधारित्र
अधोमधुरक्तता
रक्त में जब ग्लूकोज़ का स्तर सामान्य से कम हो जाता है, तो उस अवस्था को अधोमधुरक्तता (Hypoglycemia) कहते हैं। यह चिकित्साशास्त्र का शब्द है। भोजन करने के 8 घंटे पश्चात या खाली पेट में रक्त में ग्लूकोज़ का स्तर 80 मिली ग्राम प्रति डेसी लिटर रहता है। साधारणतः जब यह स्तर 70 मिली ग्राम प्रति डेसी लिटर से कम हो जाता है तो अधोमधुरक्तता कहलाता है। हमारे शरीर की सभी कोशिकाएं उर्जा प्राप्त करने के लिये ग्लूकोज़ का ही उपयोग करती है। अधोमधुरक्तता अधोमधुरक्तता अधोमधुरक्तता श्रेणी:चित्र जोड़ें.
देखें ऊर्जा और अधोमधुरक्तता
अनार
अनार अनार (वानस्पतिक नाम-प्यूनिका ग्रेनेटम) एक फल हैं, यह लाल रंग का होता है। इसमें सैकड़ों लाल रंग के छोटे पर रसीले दाने होते हैं। अनार दुनिया के गर्म प्रदेशों में पाया जाता है। स्वास्थ्य की दृष्टि से यह एक महत्त्वपूर्ण फल है। भारत में अनार के पेड़ अधिकतर महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और गुजरात में पाए जाते हैं। सबसे पहले अनार के बारे में रोमन भाषियों ने पता लगाया था। रोम के निवासी अनार को ज्यादा बीज वाला सेब कहते थे। भारत में अनार को कई नामों में जाना जाता है। बांग्ला भाषा में अनार को बेदाना कहते हैं, हिन्दी में अनार, संस्कृत में दाडिम और तमिल में मादुलई कहा जाता है। अनार के पेड़ सुंदर व छोटे आकार के होते हैं। इस पेड़ पर फल आने से पहले लाल रंग का बडा फूल लगता है, जो हरी पत्तियों के साथ बहुत ही खूबसूरत दिखता है। शोधकर्ताओं का मानना है कि यह फल लगभग ३०० साल पुराना है। यहूदी धर्म में अनार को जननक्षमता का सूचक माना जाता है, जबकि भारत में अनार अपने स्वास्थ्य सम्ब्न्धी गुण के कारण लोकप्रिय है। .
देखें ऊर्जा और अनार
अन्तरिक्ष
अन्तरिक्ष (स्पेस) असीम, तीन-आयामी विस्तार है जिसमें वस्तुएं और घटनाएं होती है और उनकी सापेक्ष स्थिति और दिशा होती है। भौतिक अन्तरिक्ष अक्सर तीन रैखिक आयाम की तरह समझा जाता है, हालांकि आधुनिक भौतिकविद आमतौर पर इसे, समय के साथ, असीम चार-आयामी सातत्यक जिसे स्पेस टाइम कहते है, का एक भाग समझते हैं। गणित में 'अन्तरिक्ष' को विभिन्न आधारभूत संरचनाओं और आयामों की विभिन्न संख्या के साथ समझा जाता है। भौतिक ब्रह्मांड को समझने के लिए अन्तरिक्ष की अवधारणा को बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है हालांकि दार्शनिकों के मध्य इस तथ्य को लेकर असहमति जारी है कि यह स्वयं एक इकाई है, या इकाइयों के मध्य एक सम्बन्ध है, या वैचारिक ढांचे का एक हिस्सा है। पारम्परिक यांत्रिकी के प्रारंभिक विकास के दौरान, 17 वीं शताब्दी में कई दार्शनिक प्रश्न उजागर हुए थे। इसाक न्यूटन के अनुसार, अन्तरिक्ष निरपेक्ष था - अर्थात् यह स्थायी रूप से अस्तित्व में है और इस बात पर निर्भर नहीं करता है कि क्या अन्तरिक्ष में कोई विषयवस्तु थी या नहीं। अन्य प्राकृतिक दार्शनिक, विशेष रूप से गोटफ्राइड लेबनिज़, ने इसके बजाय सोचा कि अन्तरिक्ष वस्तुओं के बीच संबंधों का एक संग्रह था, जो एक दूसरे से उनकी दूरी और दिशा के द्वारा दिया जाता है। 18वीं सदी में, इम्मानुएल काण्ट ने अन्तरिक्ष और समय को संरचनात्मक ढांचे के तत्वों के रूप में वर्णित किया है जिसको मनुष्य अपने अनुभव के निर्माण हेतु उपयोग करते है। 19वीं और 20वीं सदी में गणितज्ञों ने गैर इयूक्लिडियन रेखागणित का परीक्षण करना शुरू कर दिया था जिसमें अन्तरिक्ष को समतल के बजाय वक्रित कह सकते है। अल्बर्ट आइंस्टाइन का सामान्य सापेक्षता सिद्धांत के अनुसार गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र के आसपास का अन्तरिक्ष इयूक्लिडियन अन्तरिक्ष से विसामान्य होता है। सामान्य सापेक्षता के प्रायोगिक परीक्षण ने यह पुष्टि की है कि गैर इयूक्लिडियन अन्तरिक्ष प्रकाशिकी और यांत्रिकी के और मौजूदा सिद्धांतो की व्याख्या हेतु एक बेहतर मॉडल उपलब्ध कराता है। .
देखें ऊर्जा और अन्तरिक्ष
अगवानपुर
अगवानपुर बाढ, पटना, बिहार स्थित एक गाँव है। .
देखें ऊर्जा और अगवानपुर
अगवानपुर गाँव, बाढ (पटना)
अगवानपुर बाढ, पटना, बिहार स्थित एक गाँव है। .
देखें ऊर्जा और अगवानपुर गाँव, बाढ (पटना)
अंतरराष्ट्रीय तापनाभिकीय प्रायोगिक संयंत्र
आई। टी.ई.आर निर्वात वैसल के प्रतिरूप का चित्र; जिसमें डाईवर्टर कैसेट्स की अंदरूनी सतहों पर ४४० ब्लैंकेट्स जुड़े दिख रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय तापनाभिकीय प्रायोगिक संयंत्र (अंग्रेज़ी:इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्सपेरिमेंटल रिएक्टर (आईटीईआर)) ऊर्जा की कमी की समस्या से निबटने के लिए भारत सहित विश्व के कई राष्ट्रों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के सहयोग से मिलकर बनाया जा रहा संलयन नाभिकीय प्रक्रिया पर आधारित ऐसा विशाल रिएक्टर है, जो कम ईंधन की सहायता से ही अपार ऊर्जा उत्पन्न करेगा। सस्ती, प्रदूषणविहीन और असीमित ऊर्जा पैदा करने की दिशा में हाइड्रोजन बम के सिद्धांत पर इस नाभिकीय महापरियोजना को प्रयोग के तौर पर शुरू किया गया है। इसमें संलयन से उसी प्रकार से ऊर्जा मिलेगी जैसे पृथ्वी को सूर्य या अन्य तारों से मिलती है। .
देखें ऊर्जा और अंतरराष्ट्रीय तापनाभिकीय प्रायोगिक संयंत्र
अक्षय ऊर्जा
अक्षय उर्जा या नवीकरणीय ऊर्जा (अंग्रेजी:Renewable Energy) में वे सारी उर्जा शामिल हैं जो प्रदूषणकारक नहीं हैं तथा जिनके स्रोत का क्षय नहीं होता, या जिनके स्रोत का पुनः-भरण होता रहता है। सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जलविद्युत उर्जा, ज्वार-भाटा से प्राप्त उर्जा, बायोमास, जैव इंधन आदि नवीनीकरणीय उर्जा के कुछ उदाहरण हैं। .
देखें ऊर्जा और अक्षय ऊर्जा
उच्च उर्जा पदार्थ अनुसंधान प्रयोगशाला
उच्च उर्जा पदार्थ अनुसंधान प्रयोगशाला (एच.ई.एम.आर.एल.) रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डी.आर.डी.ओ.) की एक प्रयोगशाला है। यह पुणे में स्थित है। इसका मुख्य कार्य उच्च ऊर्जा पदार्थ और विस्फोटक पदार्थ के क्षेत्र में अनुसंधान, प्रौद्योगिकियों और उत्पादों के विकास है। एचईएमआरएल में लगभग 1200 कर्मी है, जिसमें भौतिकविद, गणितज्ञ, रासायन, यांत्रिक और इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर शामिल है। यह एक आईएसओ 9001: 2000 प्रमाणित प्रयोगशाला है। .
देखें ऊर्जा और उच्च उर्जा पदार्थ अनुसंधान प्रयोगशाला
उच्च-वोल्टता डीसी पारेषण
लम्बी दूरी की एक उच्च-वोल्टता डीसी पारेषण लाइन एकध्रुवी (मोनोपोल) HVDC प्रणाली का ब्लॉक चित्र द्विध्रुवी (bipolar) HVDC प्रणाली का ब्लॉक चित्र HVDC प्रणाली के लिये उपयुक्त १२ पल्स वाला SCR ब्रिज रेक्टिफायर उच्च-वोल्टता डीसी पारेषण (high-voltage, direct current transmission) बड़ी मात्रा में विद्युत शक्ति के पारेषण की विधि है जिसमें विद्युत शक्ति परम्परागत एसी के बजाय डीसी रूप में भेजी जाती है। इसके कुछ विशिष्ट लाभ हैं; जैसे - लम्बी दूरी तक विद्युत शक्ति भेजने के लिये यह विधि सस्ती पड़ती है; इसमें उर्जा का क्षय कम होता है; कई लाइनों को आपस में जोड़ना आसान है (सिन्क्रोनाइजेशन की समस्या नहीं होती) आदि। .
देखें ऊर्जा और उच्च-वोल्टता डीसी पारेषण
उत्पादकता वृद्धि करने वाली प्रौद्योगिकियाँ
औद्योगिक क्रान्ति से लेकर अब तक उत्पादकता की वृद्धि में मुख्यतः निम्नलिखित प्रौद्योगिकियों की प्रमुख भूमिका रही है-.
देखें ऊर्जा और उत्पादकता वृद्धि करने वाली प्रौद्योगिकियाँ
उत्सर्जन वर्णक्रम
उत्सर्जन वर्णक्रम (emission spectrum) किसी रासायनिक तत्व या रासायनिक यौगिक से उत्पन्न होने वाले विद्युतचुंबकीय विकिरण (रेडियेशन) के वर्णक्रम (स्पेक्ट्रम) को कहते हैं। जब कोई परमाणु या अणु अधिक ऊर्जा वाली स्थिति से कम ऊर्जा वाली स्थिति में आता है तो वह इस ऊर्जा के अंतर को फ़ोटोन के रूप में विकिरणित करता है। इस फ़ोटोन का तरंगदैर्घ्य (वेवलेन्थ) क्या है, यह उस रसायन पर और उसकी ऊर्जा स्थिति (तापमान, आदि) पर निर्भर करता है। किसी सुदूर स्थित सामग्री से उत्पन्न विकिरण के वर्णक्रम को यदि परखा जाए तो अनुमान लगाया जा सकता है कि वह किन रसायनों की बनी हुई है। यही तथ्य खगोलशास्त्र में हमसे हज़ारों प्रकाश-वर्ष दूर स्थित तारों व ग्रहों की रसायनिक रचना समझने में सहयोगी होता है। .
देखें ऊर्जा और उत्सर्जन वर्णक्रम
उद्योग
एक औद्योगिक क्षेत्र का दृश्य किसी विशेष क्षेत्र में भारी मात्रा में सामान का निर्माण/उत्पादन या वृहद रूप से सेवा प्रदान करने के मानवीय कर्म को उद्योग (industry) कहते हैं। उद्योगों के कारण गुणवत्ता वाले उत्पाद सस्ते दामों पर प्राप्त होते है जिससे लोगों का रहन-सहन के स्तर में सुधार होता है और जीवन सुविधाजनक होता चला जाता है। औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप यूरोप एवं उत्तरी अमेरिका में नये-नये उद्योग-धन्धे आरम्भ हुए। इसके बाद आधुनिक औद्योगीकरण ने पैर पसारना अरम्भ किया। इस काल में नयी-नयी तकनीकें एवं उर्जा के नये साधनों के आगमन ने उद्योगों को जबर्दस्त बढावा दिया। उद्योगों के दो मुख्य पक्ष हैं: १) भारी मात्रा में उत्पादन (मॉस प्रोडक्सन) उद्योगों में मानक डिजाइन के उत्पाद भारी मात्रा में उत्पन्न किये जाते हैं। इसके लिये स्वतः-चालित मशीनें एवं असेम्बली-लाइन आदि का प्रयोग किया जाता है। २) कार्य का विभाजन (डिविजन ऑफ् लेबर) उद्योगों में डिजाइन, उत्पादन, मार्कटिंग, प्रबन्धन आदि कार्य अलग-अलग लोगों या समूहों द्वारा किये जाते हैं जबकि परम्परागत कारीगर द्वारा निर्माण में एक ही व्यक्ति सब कुछ करता था/है। इतना ही नहीं, एक ही काम (जैसे उत्पादन) को छोटे-छोटे अनेक कार्यों में बांट दिया जाता है। सकल घरेलू उत्पाद (Gross domestic product/GDP) हरा - कृषि, लाल - उद्योग, नीला - सेवा क्षेत्र .
देखें ऊर्जा और उद्योग
उर्जा रूपान्तरण की दक्षता
किसी निकाय द्वारा प्रदत्त उर्जा उसे दी गयी उर्जा से सदा कम होती है। उर्जा का रूपान्तरण करने वाली किसी मशीन या तन्त्र के निर्गम (आउटपुट) और निवेश (इनपुट) उर्जाओं के अनुपात (रेशियो) को उस मशीन की उर्जा रूपान्तरण की दक्षता (Energy conversion efficiency) कहते हैं। \eta .
देखें ऊर्जा और उर्जा रूपान्तरण की दक्षता
उष्मागतिकी
भौतिकी में उष्मागतिकी (उष्मा+गतिकी .
देखें ऊर्जा और उष्मागतिकी
छोटा नागपुर पठार
राँची स्थित हुँडरु जलप्रपात छोटा नागपुर पठार पूर्वी भारत में स्थित एक पठार है। झारखंड राज्य का अधिकतर हिस्सा एवं उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, बिहार व छत्तीसगढ़ के कुछ भाग इस पठार में आते हैं। इसके पूर्व में सिन्धु-गंगा का मैदान और दक्षिण में महानदी हैं। इसका कुल क्षेत्रफल 65,000 वर्ग किमी है।, mapsofindia, Accessed 2010-05-02 .
देखें ऊर्जा और छोटा नागपुर पठार
११ अक्टूबर
11 अक्टूबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 284वॉ (लीप वर्ष मे 285 वॉ) दिन है। साल मे अभी और 81 दिन बाकी है। .
देखें ऊर्जा और ११ अक्टूबर
१२३ समझौता
१२३ समझौता नाम से प्रसिद्ध यह समझौता अमेरिका के परमाणु ऊर्जा अधिनियम १९५४ की धारा १२३ के तहत किया गया है। इसलिए इसे १२३ समझौता कहते हैं। सत्रह अनुच्छेदों के इस समझौते का पूरा नाम है- भारत सरकार और संयुक्त राज्य अमेरिका की सरकार के बीच नाभिकीय ऊर्जा के शांतिपूर्ण प्रयोग के लिए सहयोग का समझौता। इसके स्वरूप पर भारत और अमेरिका के बीच १ अगस्त २००७ को सहमति हुई। अमेरिका अब तक लगभग पच्चीस देशों के साथ यह समझौता कर चुका है। इस समझौते के अभिलेख में अमेरिका ने भारत को आणविक हथियार संपन्न देश नहीं माना है, बल्कि इसमें यह कहा गया है कि आणविक अप्रसार संधि के लिए अमेरिका ने भारत को विशेष महत्व दिया है। श्रेणी:परमाणु परीक्षण.
देखें ऊर्जा और १२३ समझौता
ऊर्जावान के रूप में भी जाना जाता है।
, नाभिकीय उर्जा, निश्चर द्रव्यमान, निष्क्रिय घटक, नवीकरणीय संसाधन, नोदक (पदार्थ), पदार्थ, पदार्थ (भारतीय दर्शन), परमाणु ऊर्जा के पर्यावरणीय प्रभाव, परमाणु परीक्षण, परमाणु बम, परमाणु कक्षक, परासरण, परिवहन परिघटना, पर्यावरण प्रौद्योगिकी, पल्स पोलियो प्रतिरक्षण अभियान, पारिस्थितिक पदचिह्न, पिशाच, पवन टर्बाइन, पुनर्चक्रण, प्रति-कण, प्रमात्रा यान्त्रिकी, प्राणी, प्राणी उड़ान और पाल-उड़ान, प्रार्थना, प्राक्षेपिकी, प्रघाती तरंग, प्रगामी तरंग नलिका, प्रकाश रसायन, प्रकाश का प्रकीर्णन, प्रकाश का क्वाण्टम सिद्धान्त, प्रकाश उत्सर्जक डायोड, प्रकाश-संश्लेषण, प्रकाश-विद्युत प्रभाव, प्रकाशमिति, प्रेरक, पृथ्वी का भूवैज्ञानिक इतिहास, पृष्ठ तनाव, पूर्वानुमान, पेट्रोलियम उत्पाद, पेशी, पोषण, पोषक तत्व, पोजीट्रॉन, पीयूष ग्रन्थि, फोर स्ट्रोक इंजन, फीडफॉरवर्ड नियंत्रण, बचाव (वित्त), बिग बैंग सिद्धांत, ब्रह्माण्ड, ब्रह्माण्ड किरण, बृहस्पति (ग्रह), बैटरी आवेशक, बैण्ड विस्तारण, बेशी ऊर्जा गृह, बोस-आइन्स्टाइन सांख्यिकी, बीटा कण, बीटाट्रॉन, भँवर धारा, भारत में ऊर्जा, भारत में कोयला-खनन, भारत के निजी विश्वविद्यालयों की सूची, भारत-म्यांमार सम्बन्ध, भारतीय नाभिकीय विद्युत निगम लिमिटेड, भारतीय रेल, भौतिक शास्त्र, भौतिक विज्ञान का इतिहास, भौतिक विज्ञान की पारिभाषिक शब्दावली, भौतिक विज्ञानी, भौतिकवाद, भौतिकी के मूलभूत सिद्धान्तों के खोज का इतिहास, भू-तापीय ऊर्जा, भूकम्प, भूकम्पीय तरंग, भोजन में फल व सब्जियां, महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय, महास्कंध, मौलाना आजाद राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, भोपाल, मैक्स प्लांक, मूलाधार चक्र, मोचन, यांत्रिक लाभ, यांत्रिक इंजीनियरी, यंत्र, रसायन विज्ञान, राष्ट्रीय समुद्र प्रौद्योगिकी संस्थान, रासायनिक ऊर्जा, रासायनिक आबंध, रागी, रिलायंस अनिल धीरूभाई अंबानी समूह, रिक्टर पैमाना, रुद्धोष्म प्रक्रम, रेडियो आवृत्ति, रेडियो आवृत्ति चतुर्ध्रुवी, रेडियोसक्रियता, रेकी चिकित्सा, रोडरनर, लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर, लाल, लेसर विज्ञान, लोलक (गणित), शरीर द्रव्यमान सूचकांक, शाश्वत गति, शाहिद खाकन अब्बासी, शक्ति, शक्ति (भौतिकी), शक्ति संचरण, शेवरॉन कॉर्पोरेशन, सतत वर्णक्रम, सस्यविज्ञान, सातत्य समीकरण, सिंटेल, संचायक (उर्जा का), संचार व्यवस्था, संचालक, संधारणीय ऊर्जा, संधारणीय विकास लक्ष्य, संपीडित वायु ऊर्जा भण्डारण, संभार-तंत्र, सक्रियण ऊर्जा, सुथनी, स्टेफॉन वोल्ज़मान नियम, स्पन्दित शक्ति, स्पेक्ट्रोस्कोपी, स्व-एकत्रण, सौर ऊर्जा, सौर चूल्हा, सौर प्रज्वाल, सौर मण्डल, सौर सेल, सौर जल तापन, सूचना क्रांति, सूत्रकणिका, सूर्य, सूक्ष्मजीव, सेंटीमीटर-ग्राम-सैकिण्ड इकाई प्रणाली, सी एफ एल, हरितलवक, हरकिमर हीरा, हाईड एक्ट, हाइड्रोजन प्रौद्योगिकी, हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था, हिमाचल प्रदेश, हिंदुजा समूह, जठरांत्र क्षेत्र, जल, जल इंजीनियरी, जलमौसमविज्ञान, जलशक्ति, जलविद्युत ऊर्जा, जैवनिस्यंदन, जैवभार, जूल (इकाई), जेम्स प्रेस्कॉट जूल, जीएमआर समूह, जीव विज्ञान, ईन्धन, ईंधन प्रौद्योगिकी, वायरलेस उर्जा हस्तांतरण, वायु संपीडक, वाष्पन की पूर्ण उष्मा, वित्तीय प्रबंधन, विद्युत ऊर्जा, विद्युत मशीन, विद्युत मोटर, विद्युत शक्ति, विद्युत कोष, विद्युत अपघटन, विद्युत उत्पादन, विद्युत उपकरण, विद्युत-मापी, विद्युतचुंबकीय विकिरण, विदेश्वरस्थान, विमीय विश्लेषण, विशिष्ट ऊर्जा, विघटनात्मक चयापचयिक क्रिया, विकासपीडिया, विकिरण, विकिरण समस्थानिक, व्यतिकरण (तरंगों का), वैद्युत पृथक्करण, वैकल्पिक ऊर्जा, वेवगाइड, वॉट, वॉट घंटा, वॉयेजर द्वितीय, खगोलीय रेडियो स्रोत, गतिपालक चक्र में ऊर्जा भण्डारण, गरज, गामा किरण, ग्रे (इकाई), ग्लाइकोलिसिस, ग्लूकोज़, गैस टर्बाइन, गैसीकरण, आन्तरिक ऊर्जा, आपेक्षिक ऊर्जा व संवेग के परिक्षण, आपेक्षिकता सिद्धांत, आयनन ऊर्जा, आर्थिक विकास, आहार ऊर्जा, आहारीय रेशा, आघूर्ण परिमाण मापक्रम, आइनस्टाइन क्षेत्र समीकरण, इण्डियन एसोसियेशन फॉर द कल्टिवेशन ऑफ साईन्स, इन्सुलिन, इलेक्ट्रिक कार (विद्युत् कार), इलेक्ट्रॉन, इलेक्ट्रॉन साइक्लोट्रॉन अनुनाद, इलेक्ट्रॉन वोल्ट, इलेक्ट्रॉन-पुंज प्रक्रमण, इंदिरा गांधी नहर, इंजन, कण त्वरक, कण भौतिकी, कण क्षेपण, कमानी, कार्दाशेव मापनी, कार्बन-न्यूट्रल ईंधन, कार्बोहाइड्रेट, कार्य (ऊष्मागतिकी), कार्य (भौतिकी), कार्य फलन, किरण, क्रेब्स चक्र, कैलोरी, कॉफ़ी, कॉम्पटन तरंगदैर्घ्य, कॉम्पटन प्रभाव, कोयला, कोशिकीय श्वसन, अतिसंधारित्र, अधोमधुरक्तता, अनार, अन्तरिक्ष, अगवानपुर, अगवानपुर गाँव, बाढ (पटना), अंतरराष्ट्रीय तापनाभिकीय प्रायोगिक संयंत्र, अक्षय ऊर्जा, उच्च उर्जा पदार्थ अनुसंधान प्रयोगशाला, उच्च-वोल्टता डीसी पारेषण, उत्पादकता वृद्धि करने वाली प्रौद्योगिकियाँ, उत्सर्जन वर्णक्रम, उद्योग, उर्जा रूपान्तरण की दक्षता, उष्मागतिकी, छोटा नागपुर पठार, ११ अक्टूबर, १२३ समझौता।