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उत्तराखण्ड सरकार

सूची उत्तराखण्ड सरकार

उत्तराखण्ड सरकार, उत्तराखण्ड, भारत की राज्य सरकार को कहते हैं। स्थानीय तौर पर राज्य सरकार भी कह दिया जाता है। यह उत्तराखण्ड राज्य का सर्वोच्च शासन प्राधिकरण है। इसमें राज्यपाल, कार्यकारिणी, न्यायपालिका और वैधानिक शाखा सम्मिलित हैं। भारत के अन्य राज्यों के समान ही, उत्तराखण्ड राज्य का प्रमुख राज्यपाल होता है, जिसकी नियुक्ति भारत का राष्ट्रपति केन्द्र सरकार से विमर्श कर करता है। राज्यपाल का पद केवल आनुष्ठानिक है। मुख्यमंत्री राज्य सरकार का मुखिया होता है और जिसके पास अधिकांश कार्यकारिणी शक्तियाँ होती हैं। देहरादून राज्य की राजधानी है, जहाँ पर राज्य विधासभा और सचिवालय स्थित हैं। उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय, नैनीताल में स्थित है और जिसका न्यायक्षेत्र पूरा उत्तराखणड राज्य है। उत्तराखण्ड की वर्तमान एकविधाई विधानसभा में ७० सदस्य हैं जिन्हें विधायक कहा जाता है। सरकार का कार्यकाल पाँच वर्षों का होता है या फिर सरकार को पाँव वर्षों से पहले भी भंग किया जा सकता है। .

23 संबंधों: नई टिहरी, पाटी तहसील, बागेश्वर का इतिहास, भाभर, यशपाल आर्य, रेखा आर्य, लोहाघाट तहसील, श्री पूर्णागिरी तहसील, गैरसैंण, गोविन्द बल्लभ पन्त अभियान्त्रिकी महाविद्यालय, इन्दिरा गांधी अन्तरराष्ट्रीय खेल स्टेडियम, हल्द्वानी, काशीपुर का इतिहास, काशीपुर, उत्तराखण्ड, कुमाऊँ अभियान्त्रिकी महाविद्यालय, अजेन्द्र अजय, उत्तराखण्ड, उत्तराखण्ड विद्यालयी शिक्षा परिषद्, उत्तराखण्ड विधानसभा, उत्तराखण्ड विधानसभा के अध्यक्षों की सूची, उत्तराखण्ड का राज्य-चिह्न, उत्तराखण्ड के मुख्यमन्त्रियों की सूची, उत्तराखण्ड की राजनीति, उत्तराखण्ड/आलेख

नई टिहरी

नई टिहरी (न्यू टिहरी) टिहरी जिले का मुख्यालय है। पर्वतों के बीच स्थित यह जगह काफी खूबसूरत है। हर वर्ष काफी संख्या में पर्यटक यहां पर घूमने के लिए आते हैं। यह स्थान धार्मिक स्थल के रूप में भी काफी प्रसिद्ध है। यहां आप चम्बा, बूढा केदार मंदिर, कैम्पटी फॉल, देवप्रयाग आदि स्थानों में घूम सकते हैं। यहां की प्राकृतिक खूबसूरती काफी संख्या में पर्यटकों को अपनी ओर खिंचती है। .

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पाटी तहसील

पाटी तहसील भारत के उत्तराखंड राज्य में चम्पावत जनपद की एक तहसील है। चम्पावत जनपद के पश्चिमी भाग में स्थित इस तहसील के मुख्यालय पाटी गांव में स्थित हैं। १७ जनवरी २००४ को उत्तरांचल सरकार के शाशनादेश से चम्पावत तहसील के १४६ ग्रामों के साथ इसका गठन किया गया। इसके पूर्व में लोहाघाट और चम्पावत तहसील, पश्चिम में नैनीताल जनपद की धारी तहसील, उत्तर में अल्मोड़ा जनपद की भनोली तहसील, तथा दक्षिण में नैनीताल जनपद की हल्द्वानी तहसील है। .

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बागेश्वर का इतिहास

पुरा कथाओं में भगवान शिव के बाघ रूप धारण करने वाले इस स्थान को व्याघ्रेश्वर तथा बागीश्वर से कालान्तर में बागेश्वर के रूप में जाना जाता है। शिव पुराण के मानस खंड के अनुसार इस नगर को शिव के गण चंडीश ने शिवजी की इच्छा के अनुसार बसाया था। स्कन्द पुराण के अन्तर्गत बागेश्वर माहात्म्य में सरयू के तट पर स्वयंभू शिव की इस भूमि को उत्तर में सूर्यकुण्ड, दक्षिण में अग्निकुण्ड के मध्य (नदी विशर्प जनित प्राकृतिक कुण्ड से) सीमांकित कर पापनाशक तपस्थली तथा मोक्षदा तीर्थ के रूप में धार्मिक मान्यता प्राप्त है। ऐतिहासिक रूप से कत्यूरी राजवंश काल से (७वीं सदी से ११वीं सदी तक) सम्बन्धित भूदेव का शिलालेख इस मन्दिर तथा बस्ती के अस्तित्व का प्राचीनतम गवाह है। ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार सन् १६०२ में राजा लक्ष्मी चन्द ने बागनाथ के वर्तमान मुख्य मन्दिर एवं मन्दिर समूह का पुनर्निर्माण कर इसके वर्तमान रूप को अक्षुण्ण रखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने बागेश्वर से पिण्डारी तक लगभग ४५ मील (७० किमी.) लम्बे अश्व मार्ग के निर्माण द्वारा दानपुर के सुदूर ग्राम्यांचल को पहुँच देने का प्रयास भी किया। स्वतंत्रता के १०० वर्ष पूर्व सन् १८४७ में इ. मडेन द्वारा बाह्य जगत को हिमालयी हिमनदों की जानकारी मिलने के बाद पिण्डारी ग्लेशियर को अन्तर्राष्ट्रीय पहचान मिली और बागेश्वर विदेशी पर्यटकों एवं पर्वतारोहियों का विश्रामस्थल भी बना। १९वीं सदी के प्रारम्भ में बागेश्वर आठ-दस घरों की एक छोटी सी बस्ती थी। सन् १८६० के आसपास यह स्थान २००-३०० दुकानों एवं घरों वाले एक कस्बे का रूप धारण कर चुका था। मुख्य बस्ती मन्दिर से संलग्न थी। सरयू नदी के पार दुग बाजार और सरकारी डाक बंगले का विवरण मिलता है। एटकिन्सन के हिमालय गजेटियर में वर्ष १८८६ में इस स्थान की स्थायी आबादी ५०० बतायी गई है। सरयू और गोमती नदी में दो बडे़ और मजबूत लकड़ी के पुलों द्वारा नदियों के आरपार विस्तृत ग्राम्यांचल के मध्य आवागमन सुलभ था। अंग्रेज लेखक ओस्लो लिखते है कि १८७१ में आयी सरयू की बाढ़ ने नदी किनारे बसी बस्ती को ही प्रभावित नहीं किया, वरन् दोनों नदियांे के पुराने पुल भी बहा दिये। फलस्वरूप १९१३ में वर्तमान पैदल झूला पुल बना। इसमें सरयू पर बना झूला पुल आज भी प्रयोग में है। गोमती नदी का पुल ७० के दशक में जीर्ण-क्षीर्ण होने के कारण गिरा दिया गया और उसके स्थान पर नया मोटर पुल बन गया। प्रथम विश्वयुद्ध से पूर्व, सन् १९०५ में अंग्रेजी शासकों द्वारा टनकपुर-बागेश्वर रेलवे लाईन का सर्वेक्षण किया गया, जिसके साक्ष्य आज भी यत्र-तत्र बिखरे मिलते हैं। विश्व युद्ध के कारण यह योजना ठंडे बस्ते में चली गई और बाद के योजनाकारों द्वारा पूरी तरह विस्मृत कर दी गयी। १९८० के दशक में श्रीमती इंदिरा गांधी के बागेश्वर आगमन पर उन्हें इस रेलवे लाईन की याद दिलाई गई। अब जाकर, क्षेत्रीय जनता द्वारा किये गये लम्बे संघर्ष के उपरान्त आखिरकार टनकपुर-बागेश्वर रेलवे लाईन के सर्वेंक्षण को राष्ट्रीय रेल परियोजना के अन्तर्गत सम्मिलित किया गया है। वर्ष १९२१ के उत्तरायणी मेले के अवसर पर कुमाऊँ केसरी बद्री दत्त पाण्डेय, हरगोविंद पंत, श्याम लाल साह, विक्टर मोहन जोशी, राम लाल साह, मोहन सिह मेहता, ईश्वरी लाल साह आदि के नेतृत्व में सैकड़ों आन्दोलनकारियों ने कुली बेगार के रजिस्टर बहा कर इस कलंकपूर्ण प्रथा को समाप्त करने की कसम इसी सरयू तट पर ली थी। पर्वतीय क्षेत्र के निवासियों का राष्ट्रीय आन्दोलन में यह योगदान था, जिससे प्रभावित हो कर सन् १९२९ में महात्मा गांधी स्वयं बागेश्वर पहुँचे। तभी विक्टर मोहन जोशी द्वारा उनके कर कमलों से स्वराज मंदिर का शिलान्यास भी करवाया गया। बींसवी सदी के प्रारम्भ में यहाँ औषधालय(१९०६) तथा डाकघर(१९०९) की तो यहाँ स्थापना हो गयी, तथापि शिक्षा का प्रसार यहाँ विलम्बित रहा। १९२६ में एक सरकारी स्कूल प्रारम्भ हुआ, जो १९३३ में जूनियर हाईस्कूल बना। आजादी के बाद १९४९ में स्थानीय निवासियों के प्रयास से विक्टर मोहन जोशी की स्मृति में एक प्राइवेट हाइस्कूल खुला, जो कि १९६७ में जा कर इण्टर कालेज बन सका। महिलाओं के लिए पृथक प्राथमिक पाठशाला ५० के दशक में खुली और पृथक महिला सरकारी हाईस्कूल १९७५ में। १९७४ में तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमवती नन्दन बहुगुणा द्वारा राजकीय डिग्री कालेज का उद्घाटन किया गया। बालीघाट में स्थापित २५ किलोवाट क्षमता वाले जल विद्युत संयंत्र से उत्पादित बिजली से १९५१ में बागेश्वर पहली बार जगमगाया। वर्षा काल में नदियों में नदियों के गंदले पानी से निजात पाने के लिए टाउन एरिया गठन के उपरान्त राजकीय अनुदान तथा स्थानीय लोगों के श्रमदान से नगर में शुद्ध सार्वजनिक पेयजल प्रणाली का शुभारम्भ हुआ। १९५२ में अल्मोडा से वाया गरुड़ मोटर रोड बागेश्वर पहुँची। क्षेत्रीय निवासियों के श्रमदान से निर्मित बागेश्वर-कपकोट मोटर मार्ग में बस सेवा का संचालन १९५५-५६ के बाद प्रारम्भ हो पाया। १९६२ में चीन युद्ध के बाद सामरिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण बागेश्वर-पिथौरागढ़ सड़क १९६५ में बनकर तैयार हो गई। सत्तर के दशक में बागेश्वर से अल्मोड़ा के लिये वाया ताकुला एक वैकल्पिक रोड बनी तो अस्सी के दशक में बागेश्वर- चैंरा- दोफाड़ रोड पर आवागमन शुरू हुआ। तहसील मुख्यालय बनने के बाद तो आसपास गाँवों के लिये अनेक मोटर मार्गो का निर्माण प्रारम्भ हुआ। जनपद मुख्यालय बनने के उपरान्त तो नगर के समीपवर्ती भागों में स्थापित कार्यालयों, न्यायालय आदि के लिए भी सम्पर्क मार्ग बनने लगे। .

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भाभर

भाभर निम्न हिमालय और शिवालिक की पहाड़ियों के दक्षिणी ओर बसा एक क्षेत्र है जहाँ पर जलोढ़ ग्रेड हिन्द-गंगा क्षेत्र के मैदानों में विलीन हो जाती है। .

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यशपाल आर्य

यशपाल आर्य एक भारतीय राजनीतिज्ञ तथा वर्तमान उत्तराखंड सरकार में परिवहन मंत्री है| वे पूर्व उत्तराखंड विधानसभा के अध्यक्ष रहे है| भारतीय जनता पार्टी के राजनेता है| .

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रेखा आर्य

रेखा आर्य एक भारतीय राजनेत्री तथा वर्तमान उत्तराखंड सरकार में महिला एवं बाल विकास मंत्री है| वे भारतीय जनता पार्टी के राजनेत्री है| .

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लोहाघाट तहसील

लोहाघाट तहसील भारत के उत्तराखंड राज्य में चम्पावत जनपद की एक तहसील है। चम्पावत जनपद के उत्तरी भाग में स्थित इस तहसील के मुख्यालय लोहाघाट नगर में स्थित हैं। १३ फरवरी २००४ को उत्तराखण्ड सरकार के शाशनादेश से चम्पावत तहसील के १४६ ग्रामों के साथ इसका गठन किया गया। इसके पूर्व में नेपाल, पश्चिम में पाटी तहसील और अल्मोड़ा जनपद की भनोली तहसील, उत्तर में पिथौरागढ़ जनपद की पिथौरागढ़ तहसील तथा दक्षिण में चम्पावत तहसील है। .

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श्री पूर्णागिरी तहसील

श्री पूर्णागिरी तहसील भारत के उत्तराखंड राज्य में चम्पावत जनपद की एक तहसील है। चम्पावत जनपद के दक्षिणी भाग में स्थित इस तहसील के मुख्यालय टनकपुर नगर में स्थित हैं। ३० अक्टूबर २००३ को उत्तरांचल सरकार के शाशनादेश से चम्पावत तहसील के ८१ ग्रामों के साथ इसका गठन किया गया। इसके पूर्व में नेपाल, पश्चिम में नैनीताल जनपद की हल्द्वानी तहसील, उत्तर में चम्पावत तहसील तथा दक्षिण में उधम सिंह नगर जनपद की खटीमा तहसील है। .

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गैरसैंण

गैरसैंण भारत के उत्तराखण्ड राज्य के चमोली जिले में स्थित एक शहर है। यह समूचे उत्तराखण्ड राज्य के मध्य में होने के कारण उत्तराखण्ड राज्य की पूर्व-निर्धारित व प्रस्तावित स्थाई राजधानी के नाम से बहुविदित है। .

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गोविन्द बल्लभ पन्त अभियान्त्रिकी महाविद्यालय

गोविन्द बल्लभ पंत अभियान्त्रिकी महाविद्यालय भारत के उत्तराखण्ड राज्य में उच्च तकनीकी शिक्षा का संस्थान है जिसका संचालन उत्तराखण्ड सरकार करती है। इसकी स्थापना १९८९ में महान स्वतन्त्रता सेनानी और पद्म रत्न श्री से सम्मानित गोविन्द बल्लभ पंत के सम्मानमें कि गई थी। यह महाविद्यालय गढ़वाल हिमालय में समुद्रतल से १,८०० मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। महाविद्यालय कुअल १६९ एकड़ में फैला हुआ है। महाविद्यालय का वातावरण शान्त, सौहार्दपूर्ण, पर्वतीय और प्रदूषण मुक्त है और मनोहारी दृश्य कैम्पस के चारों ओर से है। गर्मियाँ अधिकतम ३०० से॰ तापमान के साथ सुहावनी होती हैं और दो महीने तक रहती है और बाकि के दस महीनें मौसम ठण्डा रहता है। .

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इन्दिरा गांधी अन्तरराष्ट्रीय खेल स्टेडियम, हल्द्वानी

इन्दिरा गांधी अन्तरराष्ट्रीय खेल स्टेडियम, उत्तराखण्ड राज्य के हल्द्वानी नगर में स्थित एक निर्माणाधीन बहुउद्देशीय स्टेडियम है। भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी के नाम पर स्थापित इस स्टेडियम का निर्माण २०१५-१६ में ३८वें राष्ट्रीय खेलों के आयोजन के लिए करवाया गया था। २५,००० लोगों की क्षमता वाले इस स्टेडियम का उद्घाटन १८ दिसंबर २०१६ को उत्तराखण्ड के तत्कालीन मुख्यमंत्री, हरीश रावत ने किया था। यह स्टेडियम ७० एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है और इसमें क्रिकेट और फुटबॉल के मैदान, ८०० मीटर दौड़ के लिए एक ट्रैक, एक हॉकी फील्ड, बैडमिंटन कोर्ट, लॉन टेनिस कोर्ट, बॉक्सिंग रिंग और स्विमिंग पूल भी हैं। .

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काशीपुर का इतिहास

काशीपुर, भारत के उत्तराखण्ड राज्य के उधम सिंह नगर जनपद का एक महत्वपूर्ण पौराणिक एवं औद्योगिक शहर है। .

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काशीपुर, उत्तराखण्ड

काशीपुर भारत के उत्तराखण्ड राज्य के उधम सिंह नगर जनपद का एक महत्वपूर्ण पौराणिक एवं औद्योगिक शहर है। उधम सिंह नगर जनपद के पश्चिमी भाग में स्थित काशीपुर जनसंख्या के मामले में कुमाऊँ का तीसरा और उत्तराखण्ड का छठा सबसे बड़ा नगर है। भारत की २०११ की जनगणना के अनुसार काशीपुर नगर की जनसंख्या १,२१,६२३, जबकि काशीपुर तहसील की जनसंख्या २,८३,१३६ है। यह नगर भारत की राजधानी, नई दिल्ली से लगभग २४० किलोमीटर, और उत्तराखण्ड की अंतरिम राजधानी, देहरादून से लगभग २०० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। काशीपुर को पुरातन काल से गोविषाण या उज्जयनी नगरी भी कहा जाता रहा है, और हर्ष के शासनकाल से पहले यह नगर कुनिन्दा, कुषाण, यादव, और गुप्त समेत कई राजवंशों के अधीन रहा है। इस जगह का नाम काशीपुर, चन्दवंशीय राजा देवी चन्द के एक पदाधिकारी काशीनाथ अधिकारी के नाम पर पड़ा, जिन्होंने इसे १६-१७ वीं शताब्दी में बसाया था। १८ वीं शताब्दी तक यह नगर कुमाऊँ राज्य में रहा, और फिर यह नन्द राम द्वारा स्थापित काशीपुर राज्य की राजधानी बन गया। १८०१ में यह नगर ब्रिटिश शासन के अंतर्गत आया, जिसके बाद इसने १८१४ के आंग्ल-गोरखा युद्ध में कुमाऊँ पर अंग्रेजों के कब्जे में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। काशीपुर को बाद में कुमाऊँ मण्डल के तराई जिले का मुख्यालय बना दिया गया। ऐतिहासिक रूप से, इस क्षेत्र की अर्थव्यस्था कृषि तथा बहुत छोटे पैमाने पर लघु औद्योगिक गतिविधियों पर आधारित रही है। काशीपुर को कपड़े और धातु के बर्तनों का ऐतिहासिक व्यापार केंद्र भी माना जाता है। आजादी से पहले काशीपुर नगर में जापान से मखमल, चीन से रेशम व इंग्लैंड के मैनचेस्टर से सूती कपड़े आते थे, जिनका तिब्बत व पर्वतीय क्षेत्रों में व्यापार होता था। बाद में प्रशासनिक प्रोत्साहन और समर्थन के साथ काशीपुर शहर के आसपास तेजी से औद्योगिक विकास हुआ। वर्तमान में नगर के एस्कॉर्ट्स फार्म क्षेत्र में छोटी और मझोली औद्योगिक इकाइयों के लिए एक इंटीग्रेटेड इंडस्ट्रियल एस्टेट निर्माणाधीन है। भौगोलिक रूप से काशीपुर कुमाऊँ के तराई क्षेत्र में स्थित है, जो पश्चिम में जसपुर तक तथा पूर्व में खटीमा तक फैला है। कोशी और रामगंगा नदियों के अपवाह क्षेत्र में स्थित काशीपुर ढेला नदी के तट पर बसा हुआ है। १८७२ में काशीपुर नगरपालिका की स्थापना हुई, और २०११ में इसे उच्चीकृत कर नगर निगम का दर्जा दिया गया। यह नगर अपने वार्षिक चैती मेले के लिए प्रसिद्ध है। महिषासुर मर्दिनी देवी, मोटेश्वर महादेव तथा मां बालासुन्दरी के मन्दिर, उज्जैन किला, द्रोण सागर, गिरिताल, तुमरिया बाँध तथा गुरुद्वारा श्री ननकाना साहिब काशीपुर के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल हैं। .

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कुमाऊँ अभियान्त्रिकी महाविद्यालय

कुमाऊँ अभियान्त्रिकी महाविद्यालय या कुमाँयू इंजिनीयरिंग कॉलेज भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अल्मोड़ा जिले में स्थित एक अभियान्त्रिकी महाविद्यालय है, जिसका एकमात्र उद्देश्य राज्य में प्रौद्योगिकीय शिक्षा प्रदान करना है। इस महाविद्यालय की स्थापना १९९१ में कि गई थी और पिछले १९ वर्षों की यात्रा में इसने बहुत से बदलाव देखें हैं। यह संस्थान उत्तराखण्ड सरकार द्वारा पूर्णतः वित्त-पोषित है और इसका प्रबन्धन राज्य सरकार के प्रौद्योगिकी मन्त्री की अध्यक्षता में अध्यक्ष बोर्ड करता है। इस संस्थान का प्रधानाचार्य अधयक्ष बोर्ड का सदस्य सचिव है। यह महाविद्यालय, राज्य सरकार द्वारा पौड़ी के गोविन्द बल्लभ पंत अभियांत्रिकी महाविद्यालय के साथ मिलकर राज्य का प्रस्तावित राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान है। .

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अजेन्द्र अजय

अजेन्द्र अजय एक युवा राजनीतिज्ञ हैं। वे भारतीय जनता पार्टी से जुडे़ हैं और २९ मई २०१० को उत्तराखण्ड सरकार में के उपाध्यक्ष बने। श्रेणी:भारतीय राजनीतिज्ञ श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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उत्तराखण्ड

उत्तराखण्ड (पूर्व नाम उत्तरांचल), उत्तर भारत में स्थित एक राज्य है जिसका निर्माण ९ नवम्बर २००० को कई वर्षों के आन्दोलन के पश्चात भारत गणराज्य के सत्ताइसवें राज्य के रूप में किया गया था। सन २००० से २००६ तक यह उत्तरांचल के नाम से जाना जाता था। जनवरी २००७ में स्थानीय लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए राज्य का आधिकारिक नाम बदलकर उत्तराखण्ड कर दिया गया। राज्य की सीमाएँ उत्तर में तिब्बत और पूर्व में नेपाल से लगी हैं। पश्चिम में हिमाचल प्रदेश और दक्षिण में उत्तर प्रदेश इसकी सीमा से लगे राज्य हैं। सन २००० में अपने गठन से पूर्व यह उत्तर प्रदेश का एक भाग था। पारम्परिक हिन्दू ग्रन्थों और प्राचीन साहित्य में इस क्षेत्र का उल्लेख उत्तराखण्ड के रूप में किया गया है। हिन्दी और संस्कृत में उत्तराखण्ड का अर्थ उत्तरी क्षेत्र या भाग होता है। राज्य में हिन्दू धर्म की पवित्रतम और भारत की सबसे बड़ी नदियों गंगा और यमुना के उद्गम स्थल क्रमशः गंगोत्री और यमुनोत्री तथा इनके तटों पर बसे वैदिक संस्कृति के कई महत्त्वपूर्ण तीर्थस्थान हैं। देहरादून, उत्तराखण्ड की अन्तरिम राजधानी होने के साथ इस राज्य का सबसे बड़ा नगर है। गैरसैण नामक एक छोटे से कस्बे को इसकी भौगोलिक स्थिति को देखते हुए भविष्य की राजधानी के रूप में प्रस्तावित किया गया है किन्तु विवादों और संसाधनों के अभाव के चलते अभी भी देहरादून अस्थाई राजधानी बना हुआ है। राज्य का उच्च न्यायालय नैनीताल में है। राज्य सरकार ने हाल ही में हस्तशिल्प और हथकरघा उद्योगों को बढ़ावा देने के लिये कुछ पहल की हैं। साथ ही बढ़ते पर्यटन व्यापार तथा उच्च तकनीकी वाले उद्योगों को प्रोत्साहन देने के लिए आकर्षक कर योजनायें प्रस्तुत की हैं। राज्य में कुछ विवादास्पद किन्तु वृहत बाँध परियोजनाएँ भी हैं जिनकी पूरे देश में कई बार आलोचनाएँ भी की जाती रही हैं, जिनमें विशेष है भागीरथी-भीलांगना नदियों पर बनने वाली टिहरी बाँध परियोजना। इस परियोजना की कल्पना १९५३ मे की गई थी और यह अन्ततः २००७ में बनकर तैयार हुआ। उत्तराखण्ड, चिपको आन्दोलन के जन्मस्थान के नाम से भी जाना जाता है। .

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उत्तराखण्ड विद्यालयी शिक्षा परिषद्

उत्तराखण्ड जहाम उत्तराखण्ड विद्यालयी शिक्षा परिषद है। उत्तराखण्ड विद्यालयी शिक्षा परिषद्, उत्तराखण्ड सरकार के अधीन शिक्षा विभाग की एक संस्था है, जिसका कार्य राज्य के माध्यमिक विद्यालय के छात्रों के लिए पाठ्यक्रम तैयार करना तथा हाई स्कूल एवं इण्टरमीडिएट स्तर की वार्षिक परिषदीय परीक्षाएँ आयोजित कराना है। इसकी स्थापना 2001 में की गयी तथा रामनगर में इसका मुख्यालय है। वर्तमान में 10,000 से अधिक स्कूल परिषद् से संबद्ध हैं। परिषद् प्रतिवर्ष 1300 से अधिक परीक्षा केन्द्रों पर 300,000 से अधिक परीक्षार्थियों के लिए वार्षिक परीक्षाएँ संपन्न कराती है। .

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उत्तराखण्ड विधानसभा

उत्तराखण्ड विधानसभा भारत के उत्तराखण्ड राज्य की विधानसभा को कहते है। यह विधानसभा एकविधाई है और इसमें कुल विधायक संख्या ७० है तथा एक सदस्य नामांकित होता है जो आंग्ल-भारतीय होना चाहिए। उत्तराखण्ड विधान सभा भवन राज्य की राजधानी देहरादून में स्थित है। २०१७ में हुए चुनावों के बाद वर्तमान विधानसभा में ५७ विधायकों के साथ भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ा दल है। .

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उत्तराखण्ड विधानसभा के अध्यक्षों की सूची

उत्तराखण्ड विधानसभा के अध्यक्ष उत्तराखण्ड राज्य की विधानसभा की अध्यक्षता करते है। उनका निर्वाचन उत्तराखण्ड विधान सभा के सदस्यों द्वारा होता है। अध्यक्ष केवल विधान सभा के सदस्य ही बन सकते हैं। प्रेमचंद्र अग्रवाल उत्तराखण्ड विधान सभा के मौजूदा अध्यक्ष हैं। .

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उत्तराखण्ड का राज्य-चिह्न

उत्तराखण्ड का राज्य-चिह्न अथवा उत्तराखण्ड का प्रतीक-चिह्न, उत्तराखण्ड सरकार की राजकीय मोहर है, जिसका उपयोग राज्य द्वारा सभी प्रकार के प्रशासनिक एवं राजकीय क्रियाकलापों में उत्तराखण्ड राज्य का प्रतिनिधित्व करने के लिये किया जाता है। इसे उत्तराखण्ड राज्य की स्थापना के समय दिनाँक 9 नवम्बर 2000 को राज्य की नवगठित अन्तरिम सरकार द्वारा अधिकृत किया गया था। .

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उत्तराखण्ड के मुख्यमन्त्रियों की सूची

उत्तराखण्ड का मुख्यमंत्री, उत्तर भारत के राज्य उत्तराखण्ड का प्रमुख होता होता है। यहाँ पर उत्तराखण्ड राज्य के मुख्यमंत्रियों की सूची दी गई है। सन 2000 में उत्तर प्रदेश पर्वतीय जिलों को अलग कर के उत्तराखण्ड राज्य बनाया गया था। इस राज्य में अब तक 7 मुख्यमंत्री रह चुके हैं, जिनमे से चार भारतीय जनता पार्टी से व शेष तीन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से हैं। नित्यानन्द स्वामी राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री थे। .

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उत्तराखण्ड की राजनीति

उत्तराखण्ड की राजनीति भारत के उत्तराखण्ड की राजनैतिक व्यवस्था को कहते हैं। इस राज्य राजनीति की विशेषता है राष्ट्रीय दलों और क्षेत्रिय दलों के बीच आपसी संयोजन जिससे राज्य में शासन व्यव्स्था चलाई जाती है। उत्तराखण्ड राज्य २००० में बनाया गया था। एक अलग राज्य की स्थापना लम्बे समय से ऊपरी हिमालय की पहाड़ियों पर रह रहे लोगों की हार्दिक इच्छा थी।भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी), उत्तराखण्ड की राजनीति में सबसे प्रमुख राष्ट्रीय दल हैं। इसके अतिरिक्त बहुजन समाज पार्टी(बसपा) का भी राज्य के मैदानी क्षेत्रों में जनाधार है। राष्ट्रीय स्तर के दलों को उत्तराखण्ड के राज्य स्तरीय दलों से मजबूत समर्थन प्राप्त है। विशेष रूप से, उत्तराखण्ड क्रान्ति दल (उक्राद), जिसकी स्थापना १९७० के दशक में पृथक राज्य के लिए लोगों को जागृत करने के लिए कि गई थी और जो पर्वतिय निवासियों के लिए अलग राज्य के गठन के पीछे मुख्य विचारक था, अभी भी उत्तराखण्ड की राजनीति के मैदान में एक विस्तृत प्रभाव वाला दल है। राज्य गठन के बाद सबसे पहले चुनाव २००२ में आयिजित किए गए थे। इन चुनावों में कांग्रेस सबसे बड़े दल के रूप में उभरा और राज्य में प्रथम सरकार बनाई। इन चुनावों में भाजपा, दूसरा सबसे बड़ा दल था। इसके बाद, फ़रवरी २००७ के दूसरे विधानसभा चुनावों में सरकार-विरोधी लहर के चलते, भाजपा सबसे बड़े दल के रूप में सामने आया। भाजपा को इन चुनावों में ३४ सीटें प्राप्त हुईं, जो बहुत से एक कम थी जिसे उक्राद के तीन सदस्यों के समर्थ्न ने पूरा कर दिया। उत्तराखण्ड राज्य विधायिका, उत्तराखण्ड की राजनीति का केन्द्र बिन्दू है। वर्तमान (2017)चुनाव में भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) ने राज्य की 70 विधानसभा सीटों में से 57 सीटों पर जीत का परचम लहराया है। यह राज्य में अब तक के इतिहास में न केवल भारतीय जनता पार्टी, बल्कि किसी भी दल के लिए सबसे बड़ा आंकड़ा है। वहीं, कांग्रेस के खाते में बस 11 सीटें ही आई.

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उत्तराखण्ड/आलेख

उत्तराखण्ड (पूर्व नाम उत्तरांचल), उत्तर भारत में स्थित एक राज्य है। २००० और २००६ के बीच यह उत्तरांचल के नाम से जाना जाता था। ९ नवंबर २००० को उत्तराखण्ड भारत गणराज्य के २७ वें राज्य के रूप में अस्तित्व में आया। राज्य का निर्माण कई वर्षों के आन्दोलन के पश्चात हुआ। इस राज्य में वैदिक संस्कृति के कुछ अति महत्त्वपूर्ण तीर्थस्थान हैं। राज्य की सीमाएँ उत्तर में तिब्बत और पूर्व में नेपाल से लगी हैं तथा पश्चिम में हिमाचल प्रदेश और दक्षिण में उत्तर प्रदेश (सन २००० में अपने गठन से पूर्व यह उत्तर प्रदेश का एक भाग था) इसके पड़ोसी हैं। पारंपरिक हिन्दू ग्रंथों और प्राचीन साहित्य में इस क्षेत्र का उल्लेख उत्तराखण्ड के रूप में किया गया है। हिन्दी और संस्कृत में उत्तराखण्ड का अर्थ उत्तरी क्षेत्र या भाग होता है। जनवरी २००७ में स्थानीय लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए राज्य का नाम आधिकारिक तौर पर उत्तरांचल से बदलकर उत्तराखण्ड कर दिया गया। देहरादून, उत्तराखण्ड की अंतरिम राजधानी होने के साथ इस क्षेत्र में सबसे बड़ा नगर है। गैरसैण नामक एक छोटे से कस्बे को इसकी भौगोलिक स्थिति को देखते हुए भविष्य की राजधानी के रूप में प्रस्तावित किया गया है किन्तु विवादों और संसाधनों के अभाव के चलते अभी भी देहरादून अस्थाई राजधानी बना हुआ है। राज्य का उच्च न्यायालय नैनीताल में है। राज्य सरकार ने हाल ही में हस्तशिल्प और हथकरघा उद्योगों को बढ़ावा देने के लिये कुछ पहल की हैं। साथ ही बढ़ते पर्यटन व्यापार तथा उच्च तकनीकी वाले उद्योगों को प्रोत्साहन देने के लिए आकर्षक कर योजनायें प्रस्तुत की हैं। राज्य में कुछ विवादास्पद किन्तु वृहत बांध परियोजनाएँ भी हैं जिनकी पूरे देश में प्रायः आलोचना की जाती रही है, जैसे कि भागीरथी-भीलांगना नदियों पर बनने वाली टिहरी बाँध परियोजना। इस परियोजना की कल्पना १९५३ में की गई थी और यह अंततः २००७ में बनकर तैयार हुआ। उत्तराखण्ड, चिपको आंदोलन के जन्मस्थान के नाम से भी जाना जाता है। .

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