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उच्छेदवाद

सूची उच्छेदवाद

उच्छेदवाद आत्मा के भी नष्ट हो जाने का सिद्धांत है। प्राचीन काल में अजित केशकंबली के सिद्धांत को उच्छेदवाद के नाम से जाना जाता था। इस सिद्धांत के अनुसार मृत्यु के बाद कोई भी पदार्थ स्थायी नहीं रहता। शरीरस्थ सभी पदार्थों के अस्थायित्व में विश्वास करनेवाले इस मत की मान्यता थी कि मृत्युपरांत पृथ्वी, जल, तेज और वायु नामक चार तत्व अपने मूल तत्व में लीन हो जाते हैं। देह के भस्म हो जाने के बाद कुछ भी शेष नहीं रहता, आत्मा भी नहीं। आत्मा की सत्ता मिथ्या है। इस सिद्धांत का दूसरा नाम जड़वाद भी है। बुद्धकाल में इसका विरोधी मत शाश्वतवाद के नाम से प्रसिद्ध था जो पाँच तत्वों के साथ ही सुख, दु:ख एवं आत्मा को भी नित्य एवं अचल मानता था। यह मत प्रक्रुध कात्यायन के मत के रूप में विख्यात था। बुद्ध ने इन दोनों अंतों का त्याग कर मध्यम मार्ग का अनुसरण करने का उपदेश दिया था। उच्छेदवादी सिद्धांत प्राचीन भौतिकवाद में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इंग्लैंड के विचारक एडवर्ड ह्वाइट ने भी पाश्चात्य ढंग से उच्छेदवाद सिद्धांत का प्रतिपादन किया है। इसके अनुसार कुटिल और पापी लोग मृत्यु के साथ पूर्णत: विनष्ट हो जाते हैं, लेकिन सदाचारी व्यक्तियों के साथ ऐसा नहीं होता। धर्मशास्त्र और नीतिशास्त्र के अतिरिक्त इस सिद्धांत में दर्शन की पीठिका भी गृहीत है क्योंकि इसके प्रतिपादन के बीच एडवर्ड ह्वाइट ने कुछ दार्शनिक प्रश्नों को भी उठाया है। लेकिन दर्शन के क्षेत्र में इस सिद्धांत का विशेष महत्व नहीं है। श्रेणी:भारतीय दर्शन.

2 संबंधों: शाश्वतवाद, अजित केशकंबली

शाश्वतवाद

शाश्वतवाद (पालि: सास्सतवाद) बुद्ध के समय में प्रचलित वह दार्शनिक सिद्धान्त है जो मानता है कि आत्मा एक रूप, चिरन्तन और नित्य है, उनका न तो कभी नाश होता है और न कभी उसमें कोई विकार होता है। यह सिद्धान्त उच्छेदवाद का विपर्याय (विलोम) है। इस प्रकार के विचार बुद्ध के समय में अनेक पन्थों और सम्प्रदायों में व्याप्त था। बुद्ध ने निकायों और आगमों में इसका खण्डन किया। बुद्ध का अनित्यवाद, शाश्वतवाद तथा उच्छेदवाद का मध्यम मार्ग है। 'प्रत्येक वस्तु है मैं (शाश्वतवाद), यह एक एकान्तिक मत है, प्रत्येक वस्तु नहीं है, यह दूसरा एकांतिक मत है। इन दोनों ही एकांतिक मतों को छोड़कर बुद्ध ने मध्यम मार्ग का उपदेश दिया। श्रेणी:भारतीय दर्शन.

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अजित केशकंबली

भगवान बुद्ध के समकालीन एवं तरह-तरह के मतों का प्रतिपादन करने वाले जो कई धर्माचार्य मंडलियों के साथ घूमा करते थे उनमें अजित केशकंबली भी एक प्रधान आचार्य थे। इनका नाम था अजित और केश का बना कंबल धारण करने के कारण वह केशकंबली नाम से विख्यात हुए। उनका सिद्धान्त घोर उच्छेदवाद का था। भौतिक सत्ता के परे वह किसी तत्व में विश्वास नहीं करते थे। उनके मत में न तो कोई कर्म पुण्य था और न पाप। मृत्यु के बाद शरीर जला दिए जाने पर उसका कुछ शेष नहीं रहता, चार महाभूत अपने तत्व में मिल जाते हैं और उसका सर्वथा अंत हो जाता है- यही उनकी शिक्षा थी। .

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