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8 संबंधों: शुकनासोपदेश, समुद्र मन्थन, वारुणी, गरुड़, कद्रू, कश्यप, कालकूट, उच्चैःश्रवा।
शुकनासोपदेश
शुकनासोपदेशः (शुकनास का उपदेश), कादम्बरी का ही एक अंश है। गीता की तरह शुकनासोपदेश का भी स्वतंत्र महत्व है। यह एक ऐसा उपदेशात्मक ग्रंथ है जिसमें जीवन दर्शन का एक भी पक्ष बाणभट्ट की दृष्टि से ओझल नहीं हो सका। इसमें राजा तारापीड का नीतिनिपुण एवं अनुभवी मन्त्री शुकनास राजकुमामार चन्द्रापीड को राज्याभिषेक के पूर्व वात्सल्य भाव से उपदेश देते हैं और रूप, यौवन, प्रभुता तथा ऐश्वर्य से उद्भूत दोषों से सावधान रहने की शिक्षा देते हैं। यह प्रत्येक युवक के लिए उपादेय उपदेश है। चन्द्रापीड को दिये गये शुकनासोपदेश में कवि की प्रतिभा का चरमोत्कर्ष परिलक्षित होता है। कवि की लेखनी भावोद्रेक में बहती हुर्इ सी प्रतीत होती है। शुकनासोपदेश में ऐसा प्रतीत होता है मानो सरस्वती साक्षात मूर्तिमती होकर बोल रही हैं। इसमें बाणभट्ट की शब्दचातुरी प्रदर्शित हुई है। शुकनासोपदेश का नायक राजकुमार चन्द्रापीड है, जो सत्व, शौर्य और आर्जव भावों से युक्त है। शुकनास एक अनुभवी मन्त्री हैं जो चन्द्रापीड को राज्याभिषेक के पूर्व वात्सल्यभाव से उपदेश देते हैं। वे उसे युवावस्था में सुलभ रूप, यौवन, प्रभुता एवं ऐश्वर्य से उद्भूत दोषों के विषय में सावधान कर देना उचित समझते हैं। इसे युवावस्था में प्रवेश कर रहे समस्त युवकों को प्रदत्त ‘दीक्षान्त भाषण’ कहा जा सकता है। 'शुकनासोपदेश', कादम्बरी का प्रवेशद्वार माना जाता है। इसमें लक्ष्मी की ब्याजस्तुति ब्याज निन्दा का अत्यन्त मनोरम वर्णन है। ‘गद्यं कवीनां निकषं वदन्ति’ इस उक्ति को चरितार्थ करने वाला यह साहित्य है। इसके अध्ययन से काव्यात्मक तत्व का तो ज्ञान होता ही है, साथ में तत्कालीन सामाजिक ज्ञान भी प्राप्त होता है। लक्ष्मी के बारे में शुकनासोपदेश का एक अंश देखिये- .
देखें उच्चैःश्रवा और शुकनासोपदेश
समुद्र मन्थन
अंगकोर वाट में समुद्र मंथन का भित्ति चित्र। समुद्र मन्थन एक प्रसिद्ध हपौराणिक katha है। यह कथा भागवत पुराण, महाभारत तथा विष्णु पुराण में आती है। .
देखें उच्चैःश्रवा और समुद्र मन्थन
वारुणी
वारुणी का सामान्य अर्थ मदिरा से लिया जाता है। हिन्दू मिथकों में वर्णित समुद्र मन्थन के समय क्षीरसागर निकली मदिरा को वारुणी कहा गया। आख्यानों के अनुसार यह देवी के रूप में समुद्र से निकली मदिरा की देवी के रूप में प्रतिष्ठित हुई। इसे देवता वरुण की पत्नी के रूप में माना जाता है और अन्य नाम वरुणानी भी उद्धृत किया जाता है। .
देखें उच्चैःश्रवा और वारुणी
गरुड़
गरुड़ हिंदू मान्यताओं के अनुसार गरुड़ पक्षियों के राजा और भगवान विष्णु के वाहन हैं। गरुड़ कश्यप ऋषि और उनकी दूसरी पत्नी विनता की सन्तान हैं। .
देखें उच्चैःश्रवा और गरुड़
कद्रू
कद्रू (या, कद्रु) दक्ष प्रजापति की कन्या, महर्षि कश्यप की पत्नी। पौराणिक इतिवृत्त है कि एक बार महर्षि कश्यप ने कहा, 'तुम्हारी जो इच्छा हो, माँग लो'। कद्रु ने एक सहस्र तेजस्वी नागों को पुत्र रूप में माँगा (महाभारत, आदिपर्व, 16-8)। श्वेत उच्चैःश्रवा घोड़े की पूँछ के रंग को लेकर कद्रु तथा विनता में विवाद छिड़ा। कद्रु ने उसे काले रंग का बताया। हारने पर दासी होने की शर्त ठहरी। कद्रु ने अपने सहस्र पुत्रों को आज्ञा दी कि वे काले रंग के बाल बनकर पूँछ में लग जाय जिन सर्पों ने उसकी आज्ञा नहीं मानी उन्हें उसने शाप दिया कि पांडववंशी बुद्धिमान राजर्षि जनमेजय के सर्पसत्र में प्रज्वलित अग्नि उन्हें जलाकर भस्म कर देगी। शीघ्रगामिनी कद्रु विनता के साथ उस समुद्र को लाँघकर तुरंत ही उच्चैःश्रवा घोड़े के पास पहुँच गई। श्वेतवर्ण के महावेगशाली अश्व की पूँछ के घनीभूत काले रंग को देखकर विनता विषाद की मूर्ति बन गई और उसने कद्रु की दासी होना स्वीकार किया। कद्रु, विनता तथा कद्रु के पुत्र गरुड की पीठ पर बैठकर नागलोक देखने गए। गरुड़ इतनी ऊँचाई पर उड़े कि सर्प सूर्य ताप से मूर्छित हो उठे। कद्रु ने मेघवर्षा के द्वारा तापशमन करने के लिए इंद्र की स्तुति की। श्रेणी:पौराणिक पात्र.
देखें उच्चैःश्रवा और कद्रू
कश्यप
आंध्र प्रदेश में कश्यप प्रतिमा वामन अवतार, ऋषि कश्यप एवं अदिति के पुत्र, महाराज बलि के दरबार में। कश्यप ऋषि एक वैदिक ऋषि थे। इनकी गणना सप्तर्षि गणों में की जाती थी। हिन्दू मान्यता अनुसार इनके वंशज ही सृष्टि के प्रसार में सहायक हुए। .
देखें उच्चैःश्रवा और कश्यप
कालकूट
कालकूट अथवा हलाहल हिन्दू मिथकों में वर्णित वह विष है जो समुद्र मन्थन के समय क्षीरसागर से निकला था। .
देखें उच्चैःश्रवा और कालकूट
उच्चैःश्रवा
उच्चैःश्रवा हिन्दू मिथकों में वर्णित समुद्र मन्थन के दौरान निकले चौदह रत्नों में से एक था। पौराणिक आख्यानों के अनुसार यह सफ़ेद रंग का और सात मुख वाला घोडा था जो देवताओं (इन्द्र) को प्राप्त हुआ। गीता में कृष्ण ने श्रेष्ठतम वस्तुओं से अपनी तुलना के क्रम में अपने को अश्वों में उच्चैःश्रवा बताया है। कुमारसंभवम् में कालिदास, इसे इन्द्र से तारकासुर द्वारा छीन लिये जाने का वर्णन करते हैं। .
देखें उच्चैःश्रवा और उच्चैःश्रवा
उच्चैश्रवा के रूप में भी जाना जाता है।