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इलाहाबाद

सूची इलाहाबाद

इलाहाबाद उत्तर भारत के उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग में स्थित एक नगर एवं इलाहाबाद जिले का प्रशासनिक मुख्यालय है। इसका प्राचीन नाम प्रयाग है। इसे 'तीर्थराज' (तीर्थों का राजा) भी कहते हैं। इलाहाबाद भारत का दूसरा प्राचीनतम बसा नगर है। हिन्दू मान्यता अनुसार, यहां सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने सृष्टि कार्य पूर्ण होने के बाद प्रथम यज्ञ किया था। इसी प्रथम यज्ञ के प्र और याग अर्थात यज्ञ से मिलकर प्रयाग बना और उस स्थान का नाम प्रयाग पड़ा जहाँ भगवान श्री ब्रम्हा जी ने सृष्टि का सबसे पहला यज्ञ सम्पन्न किया था। इस पावन नगरी के अधिष्ठाता भगवान श्री विष्णु स्वयं हैं और वे यहाँ माधव रूप में विराजमान हैं। भगवान के यहाँ बारह स्वरूप विध्यमान हैं। जिन्हें द्वादश माधव कहा जाता है। सबसे बड़े हिन्दू सम्मेलन महाकुंभ की चार स्थलियों में से एक है, शेष तीन हरिद्वार, उज्जैन एवं नासिक हैं। हिन्दू धर्मग्रन्थों में वर्णित प्रयाग स्थल पवित्रतम नदी गंगा और यमुना के संगम पर स्थित है। यहीं सरस्वती नदी गुप्त रूप से संगम में मिलती है, अतः ये त्रिवेणी संगम कहलाता है, जहां प्रत्येक बारह वर्ष में कुंभ मेला लगता है। इलाहाबाद में कई महत्त्वपूर्ण राज्य सरकार के कार्यालय स्थित हैं, जैसे इलाहाबाद उच्च न्यायालय, प्रधान महालेखाधिकारी (एजी ऑफ़िस), उत्तर प्रदेश राज्य लोक सेवा आयोग (पी.एस.सी), राज्य पुलिस मुख्यालय, उत्तर मध्य रेलवे मुख्यालय, केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का क्षेत्रीय कार्यालय एवं उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद कार्यालय। भारत सरकार द्वारा इलाहाबाद को जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण योजना के लिये मिशन शहर के रूप में चुना गया है। .

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जनवरी, १८५७ का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, १९ दिसम्बर, २०१० हरिद्वार महाकुम्भ, २५ दिसम्बर, ३० सितम्बर सूचकांक विस्तार (430 अधिक) »

चन्द्रशेखर धर मिश्र

पण्डित चन्द्रशेखर धर मिश्र (१८५९-१९४९) आधुनिक हिंदी साहित्य में भारतेन्दु युग के अल्पज्ञात कवियों में से एक हैं। खड़ी बोली हिन्दी-कविता के बिकास में अपने एटिहासिक योगदान के लिए ये आचार्य रामचन्द्र शुक्ल द्वारा प्रशंसित हैं। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार चंपारण के प्रसिद्ध विद्वान पण्डित चन्द्रशेखर धर मिश्र' जो भारतेन्दु जी के मित्रों में से थे, संस्कृत के अतिरिक्त हिन्दी में भी बड़ी सुंदर आशु कविता करते थे। मैं समझता हूँ कि हिन्दी साहित्य के आधुनिक काल में संस्कृत वृत्तों में खड़ी बोली के कुछ पद्य पहले-पहल मिश्र जी ने ही लिखे थे। .

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चन्द्रशेखर आजाद

पण्डित चन्द्रशेखर 'आजाद' (२३ जुलाई १९०६ - २७ फ़रवरी १९३१) ऐतिहासिक दृष्टि से भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के स्वतंत्रता सेनानी थे। वे पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल व सरदार भगत सिंह सरीखे क्रान्तिकारियों के अनन्यतम साथियों में से थे। सन् १९२२ में गाँधीजी द्वारा असहयोग आन्दोलन को अचानक बन्द कर देने के कारण उनकी विचारधारा में बदलाव आया और वे क्रान्तिकारी गतिविधियों से जुड़ कर हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसियेशन के सक्रिय सदस्य बन गये। इस संस्था के माध्यम से उन्होंने राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में पहले ९ अगस्त १९२५ को काकोरी काण्ड किया और फरार हो गये। इसके पश्चात् सन् १९२७ में 'बिस्मिल' के साथ ४ प्रमुख साथियों के बलिदान के बाद उन्होंने उत्तर भारत की सभी क्रान्तिकारी पार्टियों को मिलाकर एक करते हुए हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसियेशन का गठन किया तथा भगत सिंह के साथ लाहौर में लाला लाजपत राय की मौत का बदला सॉण्डर्स का हत्या करके लिया एवं दिल्ली पहुँच कर असेम्बली बम काण्ड को अंजाम दिया। .

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चन्द्रशेखर आजाद पार्क, इलाहाबाद

चन्द्रशेखर आजाद पार्कइलाहाबाद स्थित यह पार्क महान स्वतंत्रता सैनानी चन्द्रशेखर आजाद को समर्पित है, जिन्होंने अंग्रेजी सेना से लड़ते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी। अमर शहीद के सम्‍मान मे पार्क में उनकी मूर्ति स्थापित है। पूर्व मे इसे अल्‍फ्रेड पार्क के नाम से जाना जाता रहा है। श्रेणी:इलाहाबाद के दर्शनीय स्थल.

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चन्द्रगुप्त प्रथम

चंद्रगुप्त प्रथम गुप्त वंश के तृतीय किंतु प्रथम स्वतंत्र एवं शक्तिशाली नरेश। साधरणतया विद्वान्‌ उनके राज्यारोहण की तिथि 319-320 ई. निश्चित करते हैं। कुछ लोग ऐसा भी मानते हैं कि उन्होंने उसी तिथि से आरंभ होनेवाले गुप्त संवत्‌ की स्थापना भी की थी। गुप्तों का आधिपतय आरंभ में दक्षिण बिहार तथा उत्तर-पश्चिम बंगाल पर था। प्रथम चंद्रगुप्त ने साम्राज्य का विस्तार किया। वायुपुराण में प्रयाग तक के गंगा के तटवर्ती प्रदेश, साकेत तथा मगध को गुप्तों की 'भोगभूमि' कहा है। इस उल्लेख के आधार पर विद्वान्‌ चंद्रगुप्त प्रथम की राज्यसीमा का निर्धारण करते हैं, यद्यपि इस बात का कोई पुष्ट प्रमाण उपलब्ध नहीं है। चंद्रगुप्त प्रथम ने लिच्छवि कुमारदेवी से विवाह किया था। संभव है, साम्राज्यनिर्माण में चंद्रगुप्त प्रथम को लिच्छवियों से पर्याप्त सहायता मिली हो। यह भी संभव है कि लिच्छवि राज्य मिथिला इस विवाह के फलस्वरूप चंद्रगुप्त के शासन के अंतर्गत आ गया हो। 'कौमुदी महोत्सव' आदि से ज्ञात एवं उनपर आधृत, चंद्रगुप्त प्रथम के राज्यारोहण आदि से संबद्ध इतिहास निर्धारण सर्वथा असंगत है। उन्होंने संभवतः एक प्रकार की स्वर्णमुद्रा का प्रचलन किया, एवं महाराजाधिराज का विरुद धारण किया। प्रयाग प्रशस्ति के आधार पर कह सकते हैं कि चंद्रगुप्त प्रथम ने समुद्रगुप्त को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया और संभवतः 380 ई. के लगभग उनके सुदीर्घ शासन का अंत हुआ। .

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चन्द्रकुंवर बर्त्वाल

चन्द्र कुंवर बर्त्वाल (20 अगस्त 1919 - १९४७) हिन्दी के कवि थे। उन्होंने मात्र 28 साल की उम्र में हिंदी साहित्य को अनमोल कविताओं का समृद्ध खजाना दे दिया था। समीक्षक चंद्र कुंवर बर्त्वाल को हिंदी का 'कालिदास' मानते हैं। उनकी कविताओं में प्रकृतिप्रेम झलकता है। .

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चम्पावत का इतिहास

चम्पावत नगर का एक दृश्य चम्पावत उत्तराखण्ड राज्य के पूर्वी भाग में स्थित चम्पावत जनपद का मुख्यालय तथा एक प्रमुख नगर है। चम्पावत कई वर्षों तक कुमाऊँ के शासकों की राजधानी रहा है। चन्द शासकों के किले के अवशेष आज भी चम्पावत में देखे जा सकते हैं। .

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चाँद (पत्रिका)

चाँद एक प्रसिद्ध हिन्दी पत्रिका थी जिसका प्रकाशन सन १९२३ में इलाहाबाद से हुआ। इसके संपादक नंद गोपाल सिंह सहगल, महादेवी वर्मा, नन्द किशोर तिवारी रहे। कुछ दिनों तक इसका संपादन मुंशी नवजादिक लाल ने किया था। इस पत्रिका में नारी जीवन से सम्बंधित चर्चा अधिक रहती थी। ‘चाँद’ का मारवाणी अंक अपने समय में बहुचर्चित रहा। साहित्यिक होते हुए भी इस में समाज सुधार की प्रवृत्ति बलवती रही। इसका एक विशेषांक ‘फाँसी’ नाम से भी (१८२८ ई०) में प्रकाशित हुआ था जो अनेक देशभक्तों के लिये प्रेरणा का स्रोत बना। .

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चित्रकूट

चित्रकूट धाम मंदाकिनी नदी के किनारे पर बसा भारत के सबसे प्राचीन तीर्थस्थलों में एक है। उत्तर प्रदेश में 38.2 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला शांत और सुन्दर चित्रकूट प्रकृति और ईश्वर की अनुपम देन है। चारों ओर से विन्ध्य पर्वत श्रृंखलाओं और वनों से घिरे चित्रकूट को अनेक आश्चर्यो की पहाड़ी कहा जाता है। मंदाकिनी नदी के किनार बने अनेक घाट और मंदिर में पूरे साल श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है। माना जाता है कि भगवान राम ने सीता और लक्ष्मण के साथ अपने वनवास के चौदह वर्षो में ग्यारह वर्ष चित्रकूट में ही बिताए थे। इसी स्थान पर ऋषि अत्रि और सती अनसुइया ने ध्यान लगाया था। ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने चित्रकूट में ही सती अनसुइया के घर जन्म लिया था। .

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चंद्रवंशी समाज

चंद्रवंशी समाज भारतवर्ष के प्राचीनतम क्षत्रिय समाजों में से एक है। वर्तमान समय में कर्म संबोधन यह कहार जाति के रूप में जानी जाती है। यह भारत के विभिन्न प्रांतों में विभिन्न नामों से पायी जाती है। .

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चौदहवीं लोकसभा

भारत में चौदहवीं लोकसभा का गठन अप्रैल-मई 2004 में होनेवाले आमचुनावोंके बाद हुआ था। .

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चौक घंटाघर, इलाहाबाद

चौक घंटाघर उत्तर प्रदेश में स्थित एक घड़ी का टॉवर है। यह चौक, इलाहाबाद में स्थित है, जो भारत के सबसे पुराने बाजारों में से एक है और मुगलों की कलात्मक और संरचनात्मक कौशल का एक उदाहरण है। यह 1913 में बनाया गया थालखनऊ के घंटाघर बाद यह उत्तर प्रदेश का दूसरा सबसे पुराना घड़ी का टावर है। इसके खम्भोँ पर बहुत ही सुन्दर रोमन नक्कासी हैं। .

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चैतन्य महाप्रभु

चैतन्य महाप्रभु (१८ फरवरी, १४८६-१५३४) वैष्णव धर्म के भक्ति योग के परम प्रचारक एवं भक्तिकाल के प्रमुख कवियों में से एक हैं। इन्होंने वैष्णवों के गौड़ीय संप्रदाय की आधारशिला रखी, भजन गायकी की एक नयी शैली को जन्म दिया तथा राजनैतिक अस्थिरता के दिनों में हिंदू-मुस्लिम एकता की सद्भावना को बल दिया, जाति-पांत, ऊंच-नीच की भावना को दूर करने की शिक्षा दी तथा विलुप्त वृंदावन को फिर से बसाया और अपने जीवन का अंतिम भाग वहीं व्यतीत किया। उनके द्वारा प्रारंभ किए गए महामंत्र नाम संकीर्तन का अत्यंत व्यापक व सकारात्मक प्रभाव आज पश्चिमी जगत तक में है। यह भी कहा जाता है, कि यदि गौरांग ना होते तो वृंदावन आज तक एक मिथक ही होता। वैष्णव लोग तो इन्हें श्रीकृष्ण का राधा रानी के संयोग का अवतार मानते हैं। गौरांग के ऊपर बहुत से ग्रंथ लिखे गए हैं, जिनमें से प्रमुख है श्री कृष्णदास कविराज गोस्वामी विरचित चैतन्य चरितामृत। इसके अलावा श्री वृंदावन दास ठाकुर रचित चैतन्य भागवत तथा लोचनदास ठाकुर का चैतन्य मंगल भी हैं। .

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चैमालपुर गाँव, फूलपुर (इलाहाबाद)

चैमलपुर फूलपुर, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है। जो इलाहाबाद जिला मुख्यालय से लगभग 25 किलो मीटर की दूरी पर स्थित है। .

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टनकपुर

टनकपुर भारत के उत्तराखण्ड राज्य का एक प्रमुख नगर है। चम्पावत जनपद के दक्षिणी भाग में स्थित टनकपुर नेपाल की सीमा पर बसा हुआ है। टनकपुर, हिमालय पर्वत की तलहटी में फैले भाभर क्षेत्र में स्थित है। शारदा नदी टनकपुर से होकर बहती है। इस नगर का निर्माण १८९८ में नेपाल की ब्रह्मदेव मंडी के विकल्प के रूप में किया गया था, जो शारदा नदी की बाढ़ में बह गई थी। कुछ समय तक यह चम्पावत तहसील के उप-प्रभागीय मजिस्ट्रेट का शीतकालीन कार्यालय भी रहा। १९०१ में इसकी जनसंख्या ६९२ थी। सुनियोजित ढंग से निर्मित बाजार, चौड़ी खुली सड़कें, फैले हुए फुटपाथ, खुली हवादार कालोनियां इस नगर की विशेषताएं हैं। पूर्णागिरि मन्दिर के मुख्य द्वार के रूप में शारदा नदी के तट पर बसा हुआ यह नगर पर्यटकों और प्रकृति प्रेमियों के आकर्षण का केन्द्र है। .

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टोन्स नदी

यह नदी मध्यप्रदेश के सतना जिला के कैमोर श्रेणी में स्थित मैहर के समीप तमशाकुण्ड जलाशय से निकलकर उत्तर-पूर्व में प्रवाहित होती है तथा सतना नदी में मिलती हैँ। पुरबा के निकट यह मैदान में उतरती हैँ। यह नदी अपने मार्ग में सुन्दर जलप्रपात बनाती हैँ। यह इलाहबाद के समीप करछना तहसील में सिरसा नामक स्थान पर गंगा नदी में मिल जाती हैँ। वेलन इसकी सहायक नदी हैँ। इसकी लम्बाई 265 किलोमीटर हैँ। श्रेणी:भारत की नदियाँ श्रेणी:मध्य प्रदेश की नदियाँ.

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एशियाई राजमार्ग १

एशियाई राजमार्ग १ (ए एच १) एशियाई राजमार्ग जाल में सबसे लम्बा राजमार्ग है। इसकी कुल लम्बाई २०,५५७ किलोमीटर (१२,७७४ मील) है। यह टोक्यो, जापान से शुरू होकर कोरिया, चीन, हांगकांग, दक्षिण पूर्व एशिया, बांग्लादेश, भारत, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और ईरान से होता हुआ तुर्की और बुल्गारिया तक जाता है। इस्तांबुल के पश्चिम में यह यूरोपीय ई८० मार्ग से मिल जाता है। .

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ठाकुर शिवकुमार सिंह

ठाकुर शिवकुमार सिंह (1870-1968) काशी नागरीप्रचारिणी सभा के संस्थापकों में से एक थे। आपने चंदौली के मिडिल स्कूल में शिक्षा प्राप्त की। तत्पश्चात् स्वर्गीय पं॰ श्री रामनारायण मिश्र और बाबू श्यामसुंदर दास जी तथा अन्य सहयोगियों को साथ लेकर ये सभा की उन्नति में लग गए। अध्ययन के समय तत्कालीन विद्वान् श्री सुधाकर द्विवेदी तथा हिंदी के सर्वप्रथम उपन्यासकार श्री देवकीनंदन खत्री आदि विद्वानों के संपर्क का इनपर पर्याप्त प्रभाव पड़ा। दसवीं श्रेणी में उत्तीर्ण होने पर आपने लखनऊ के सी.टी.

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ठुमरी

ठुमरी भारतीय शास्त्रीय संगीत की एक गायन शैली है। इसमें रस, रंग और भाव की प्रधानता होती है। अर्थात जिसमें राग की शुद्धता की तुलना में भाव सौंदर्य को ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है। यह विविध भावों को प्रकट करने वाली शैली है जिसमें श्रृंगार रस की प्रधानता होती है साथ ही यह रागों के मिश्रण की शैली भी है जिसमें एक राग से दूसरे राग में गमन की भी छूट होती है और रंजकता तथा भावाभिव्यक्ति इसका मूल मंतव्य होता है। इसी वज़ह से इसे अर्ध-शास्त्रीय गायन के अंतर्गत रखा जाता है। .

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डिम्पल यादव

डिम्पल यादव समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष, विधान मण्डल दल के नेता व उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमन्त्री अखिलेश यादव की धर्मपत्नी हैं जो कि कन्नौज से निर्विरोध सांसद चुनी गई हैं। उनके तीन बच्चे हैं-अदिति, टीना और अर्जुन। राजनीति में आने से पूर्व डिम्पल अपने परिवार के सदस्यों सहित आय से अधिक सम्पत्ति अर्जित करने के मामले में शामिल थीं। राजनीतिक क्षेत्र में पहला चुनाव वे हार गयीं लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। अन्तत: उनके पति अखिलेश यादव ने अपने द्वारा जीती गयी कन्नौज लोक सभा सीट उनके लिये खाली कर दी। डिम्पल ने इस सीट के लिये अपना नामांकन पत्र दाखिल कर दिया। मुकाबले में कांग्रेस, भाजपा और बहुजन समाज पार्टी ने उनके खिलाफ अपना प्रत्याशी ही नहीं उतारा जबकि दो अन्य, दशरथ सिंह शंकवार (संयुक्त समाजवादी दल) और संजू कटियार (स्वतन्त्र उम्मीदवार) ने अपना नामांकन वापस ले लिया। जिसका परिणाम यह हुआ कि 2012 का लोक सभा उप-चुनाव उन्होंने निर्विरोध जीतकर उत्तर प्रदेश में एक कीर्तिमान स्थपित किया। डिम्पल से पूर्व पुरुषोत्तम दास टंडन ने उत्तर प्रदेश की इलाहाबाद पश्चिमी लोकसभा सीट सन् 1952 में एक पुरुष प्रत्याशी में रूप में निर्विरोध जीती थी। राजनीति में अपने पति का हाथ बटाने के लिये वे मुख्य मन्त्री अखिलेश यादव का ट्वीटर व फेसबुक अकाउण्ट स्वयं देखती हैं। सेलेब्रिटी सांसद बनीं डिंपल डिंपल यादव उत्तर प्रदेश में सेलेब्रिटी सांसद के रूप में भी जानी जाती हैं। हर बड़े बिजनेस घराने और संस्थान अपने कार्यक्रमों में श्रीमती यादव को आमंत्रित करने की होड़ में रहती हैं। .

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डेरापुर, कानपुर देहात

डेरापुर उत्तर प्रदेश राज्य के कानपुर देहात जिले का एक नगर एवं सब- डिवीज़न/ तहसील मुख्यालय है जो वर्ष २००५ में ग्राम पंचायत से नगर पंचायत के अस्तित्व में परिवर्तित हुआ। डेरापुर के नाम के सम्बन्ध में जनश्रुति है कि जब श्रीकृष्ण और वाणासुर के बीच संग्राम हुआ था तब श्रीकृष्ण ने इसी स्थान पर डेरा डाला था। .

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डॉ॰ सुभाष राय

डॉ सुभाष राय एक हिन्दी साहित्यकार और पत्रकार हैं। इनका जन्म जनवरी 1957 में उत्तर प्रदेश में स्थित मऊ जिला के गांव बड़ागांव में हुआ। शिक्षा काशी, प्रयाग और आगरा में हुई। उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय के ख्यातिप्राप्त संस्थान के.

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तमसा

तमसा नदी भारत में प्रवाहित होने वाली सुप्रसिद्ध नदी है; परंतु यह किसी एक ही नदी के लिए सुनिश्चित नाम नहीं है। वस्तुतः इस नाम से प्रसिद्ध एक से अधिक नदियाँ हैं और इन सभी नदियों का नामांतर समान रूप से टौंस या टोंस भी है जिसे कि तमसा का ही अपभ्रंश अथवा अंग्रेजी उच्चारण का प्रभाव माना गया है। .

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तात्या टोपे

तात्या टोपे (1814 - 18 अप्रैल 1859) भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के एक प्रमुख सेनानायक थे। सन १८५७ के महान विद्रोह में उनकी भूमिका सबसे महत्त्वपूर्ण, प्रेरणादायक और बेजोड़ थी। सन् सत्तावन के विद्रोह की शुरुआत १० मई को मेरठ से हुई थी। जल्दी ही क्रांति की चिन्गारी समूचे उत्तर भारत में फैल गयी। विदेशी सत्ता का खूनी पंजा मोडने के लिए भारतीय जनता ने जबरदस्त संघर्ष किया। उसने अपने खून से त्याग और बलिदान की अमर गाथा लिखी। उस रक्तरंजित और गौरवशाली इतिहास के मंच से झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, नाना साहब पेशवा, राव साहब, बहादुरशाह जफर आदि के विदा हो जाने के बाद करीब एक साल बाद तक तात्या विद्रोहियों की कमान संभाले रहे।nice and thanks .

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ताराघर

---- नेहरू ताराघर, मुंबई ताराघर (अंग्रेज़ी में प्लेनेटेरियम) या तारामण्डल या नक्षत्रालय एक ऐसा भवन होता है जहाँ खगोलिकी व नाइट स्काई विषयक ज्ञानवर्धक व मनोरंजक कार्यक्रम प्रस्तुत किये जाते हैं। ताराघर की पहचान अक्सर उसकी विशाल गुंबदनुमा प्रोजेक्शन स्क्रीन होती है। भारत में ३० ताराघर हैं। इनमें से चार, जो क्रमशः मुंबई, नई दिल्ली, बंगलौर व इलाहाबाद में स्थित हैं, जवाहरलाल नेहरू के नाम से जाने जाते हैं। चार ताराघर बिड़ला घराने द्वारा पोषित हैं जो कोलकाता, चैन्नई, हैदराबाद व जयपुर में हैं। सितंबर १९६२ में प्रारंभ कोलकाता स्थित एम पी बिड़ला ताराघर देश का पहला ताराघर है। .

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तिलहर

तिलहर (अंग्रेजी: Tilhar) भारतवर्ष के राज्य उत्तर प्रदेश में स्थित शाहजहाँपुर जिले का एक महत्वपूर्ण नगर होने के साथ-साथ तहसील भी है। केवल इतना ही नहीं, यह उत्तर प्रदेश विधान सभा का एक प्रमुख क्षेत्र भी है। मुगल काल में सेना के लिये तीर और कमान बनाने के कारण प्राचीन भारत में इसे कमान नगर के नाम से ही जाना जाता था। तीर कमान तो अब नहीं बनते पर यहाँ के परम्परागत कारीगर मजबूत बाँस की निचले हिस्से पर लोहे का खोल चढ़ी गुलाही लाठी बनाने में आज भी माहिर हैं। टेढ़े से टेढ़े बाँस को शीरा लगाकर तेज आँच में गरम करके सीधा करना जब उन्हें आता है तो निस्सन्देह सीधे बाँस को इसी तकनीक से धनुष का आकार देने की कला भी उनके पूर्वजों को अवश्य ही आती होगी। .

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तिलोकपुर

तिलोकपुर (अंग्रेजी:Tilokpur) भारतवर्ष के राज्य उत्तर प्रदेश के जिला शाहजहाँपुर का एक बहुत ही पुराना गाँव है। यह शाहजहाँपुर जिले के भौगोलिक क्षेत्र से बहने वाली शारदा नहर के किनारे बसा हुआ है। यह नहर मीरानपुर कटरा से तिलोकपुर और काँट होते हुए कुर्रिया कलाँ तक जाती है। काकोरी काण्ड के अभियुक्तों में से एक बनवारी लाल जो मुकदमें के दौरान वायदा माफ गवाह (अंगेजी में अप्रूवर) बन गया था, इसी गाँव का रहने वाला था। बाद में उसने ब्राह्मणों से जान का खतरा होने के कारण यह गाँव छोड़ दिया और पास के ही दूसरे गाँव केशवपुर में रहने लगा जहाँ उसकी कायस्थ बिरादरी के लोग रहते थे। मध्यम आकार के इस गाँव में कुल 167 घर हैं। इन घरों के परिवारों में 1036 लोग रहते हैं जिनमें स्त्री, पुरुष व बच्चे सभी शामिल हैं। .

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तिग्मांशु धूलिया

तिग्मांशु धूलिया (जन्मः ३ जुलाई १९६७) भारतीय हिन्दी फिल्म उद्योग बॉलीवुड के एक प्रसिद्ध निर्माता, निर्देशक और अभिनेता हैं। उन्होने अपना कैरियर शेखर कपूर निर्देशित फिल्म बैंडिट क्वीन से बतौर कास्टिंग निर्देशक शुरू किया। .

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त्रिवेणी पुष्प

त्रिवेणी पुष्प इलाहाबाद के समीप अरैल नमक स्थान पर यमुना के तट पर स्थित एक भव्य स्थापत्य है। यह एक मीनार के रूप में है जो संगम से दक्षिण-पूर्व दिशा में स्पष्ट दिखता है। अन्य चीजों में, यहाँ पर कई पौराणिक मंदिरों के नमूने और अन्य धार्मिक प्रतिकृतियों को रखा गया है जैसे, रामजन्मभूमि, बद्रीनाथ, केदारनाथ, गौतम बुद्ध इत्यादि। अरैल का पुराना नाम अलर्कवती था और वर्तमान में यहाँ महर्षि महेश योगी द्वारा स्थापित बड़ा सा आश्रम और विद्यालय है। त्रिवेणी पुष्प इसी संस्था द्वारा स्थापित मीनार है। श्रेणी:इलाहाबाद के दर्शनीय स्थल श्रेणी:प्रयाग.

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तेज बहादुर सप्रू

तेज बहादुर सप्रू मोटे अक्षरसर तेज बहादुर सप्रू (8 दिसम्बर 1875 – 20 जनवरी 1949) प्रसिद्ध वकील, राजनेता और समाज सुधारक थे। उन्होंने गोपाल कृष्ण गोखले की उदारवादी नीतियों को आगे बढ़ाया और आजाद हिन्द फौज के सेनानियों का मुकदमा लड़ने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। .

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तोषमणि

तोषमणि हिन्दी कवि थे। .

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तीर्थ

तीर्थ धार्मिक और आध्यात्मिक महत्त्व वाले स्थानों को कहते हैं जहाँ जाने के लिए लोग लम्बी और अकसर कष्टदायक यात्राएँ करते हैं। इन यात्राओं को तीर्थयात्रा (pilgrimage) कहते हैं। हिन्दू धर्म के तीर्थ प्रायः देवताओं के निवास-स्थान होते हैं। मुसलमानों के लिए मक्का और मदीना महत्त्वपूर्ण तीर्थ हैं और इन जगहों पर जीवन में एक बार जाना हर मुसलमान के लिए ज़रूरी है। इसके अतिरिक्त कई तीर्थ महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक व्यक्तियों के जीवन से भी सम्बन्धित हो सकते हैं। उदाहरण स्वरूप, मास्को में लेनिन की समाधि साम्यवादियों के लिए एक तीर्थ है। .

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थल

थल उत्तराखंड राज्य के पिथौरागढ़ जनपद में रामगंगा नदी के तट पर स्थित एक छोटा सा नगर है। यहाँ १६वीं शताब्दी का एक शिव मंदिर है। १९५७ से १९६२ तक यह अल्मोड़ा जनपद का एक विकासखंड था। ३० सितम्बर २०१४ से यह पिथौरागढ़ जनपद की एक तहसील है। बेरीनाग तथा डीडीहाट तहसील के ११४ ग्रामों से इसका गठन किया गया। .

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द हिन्दू

द हिन्दू (द हिन्दू) भारत में प्रकाशित होने वाला एक दैनिक अंग्रेज़ी समाचार पत्र है। इसका मुख्यालय चेन्नई में है और इसका साप्ताहिक पत्रिका के रूप में प्रकाशन वर्ष 1878 में आरम्भ हुआ। यह दैनिक के रूप में वर्ष 1889 में आरम्भ हुआ। यह भारत के शीर्ष दैनिक अंग्रेज़ी समाचार पत्रों में से एक है। भारतीय पाठक सर्वेक्षण के 2014 के अनुसार यह भारत में पढ़े जाने वाले अंग्रेज़ी समाचार पत्रों में तीसरे स्थान पर है। पहले दो स्थानों पर द टाइम्स ऑफ़ इंडिया और हिन्दुस्तान टाइम्स पाये गये। द हिन्दू मुख्य रूप से दक्षिण भारत में पढ़ा जाता है और केरल एवं तमिलनाडु में सबसे ज्यादा पढ़ा जाने वाला अंग्रेज़ी दैनिक समाचार पत्र है। वर्ष २०१० के आँकड़ों के अनुसार इस उद्यम में 1,600 से अधिक लोगों को काम दिया गया है और इसकी वार्षिक आय $200 मिलियन से अधिक है। इसकी आय के मुख्य स्रोतों में अंशदान और विज्ञापन प्रमुख हैं। वर्ष 1995 में अपना ऑनलाइन संस्करण उपलब्ध करवाने वाला, द हिन्दू प्रथम भारतीय समाचार पत्र है। नवम्बर 2015 के अनुसार, यह भारत के नौ राज्यों में 18 स्थानों से प्रकाशित होता है: बंगलौर, चेन्नई, हैदराबाद, तिरुवनन्तपुरम, विजयवाड़ा, कोलकाता, मुम्बई, कोयंबतूर, मदुरै, नोएडा, विशाखपट्नम, कोच्चि, मैंगलूर, तिरुचिरापल्ली, हुबली, मोहाली, लखनऊ, इलाहाबाद और मलप्पुरम। .

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दया प्रकाश सिन्हा

दया प्रकाश सिन्हा (जन्म: २ मई १९३५, कासगंज, जिला एटा, उत्तर प्रदेश) एक अवकाशप्राप्त आई०ए०एस० अधिकारी होने के साथ-साथ हिन्दी भाषा के प्रतिष्ठित लेखक, नाटककार, नाट्यकर्मी, निर्देशक व चर्चित इतिहासकार हैं। प्राच्य इतिहास, पुरातत्व व संस्कृति में एम० ए० की डिग्री तथा लोक प्रशासन में मास्टर्स डिप्लोमा प्राप्त सिन्हा जी विभिन्न राज्यों की प्रशासनिक सेवाओं में रहे। साहित्य कला परिषद, दिल्ली प्रशासन के सचिव, भारतीय उच्चायुक्त, फिजी के प्रथम सांस्कृतिक सचिव, उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी व ललित कला अकादमी के अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ के निदेशक जैसे अनेकानेक उच्च पदों पर रहने के पश्चात सन् १९९३ में भारत भवन, भोपाल के निदेशक पद से सेवानिवृत्त हुए। नाट्य-लेखन के साथ-साथ रंगमंच पर अभिनय एवं नाट्य-निर्देशन के क्षेत्र में लगभग ५० वर्षों तक सक्रिय रहे सिन्हा जी की नाट्य कृतियाँ निरन्तर प्रकाशित, प्रसारित व मंचित होती रही हैं। अनेक देशों में भारत के सांस्कृतिक प्रतिनिधि के रूप में भ्रमण कर चुके श्री सिन्हा को कई पुरस्कार व सम्मान भी मिल चुके हैं। .

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दरभंगा, इलाहाबाद

दरभंगा कॉलोनी इलाहाबाद, भारत का एक पड़ोसी क्षेत्र है। यह पूर्व में दरभंगा के शाही परिवार के स्वामित्व में था । यह अभी भी लोथर महल कॉलोनी में है । दरभंगा कॉलोनी ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 4थे और 8वें वार्षिक सम्मेलन यहाँ आयोजित किया गया था । .

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दशनामी सम्प्रदाय

दशनामी शब्द संन्यासियों के एक संगठनविशेष के लिए प्रयुक्त होता है और प्रसिद्ध है कि उसे सर्वप्रथम स्वामी शंकराचार्य ने चलाया था, किंतु इसका श्रेय कभी-कभी स्वामी सुरेश्वराचार्य को भी दिया जाता है, जो उनके अनन्तर दक्षिण भारत के शृंगेरी मठ के तृतीय आचार्य थे। ("ए हिस्ट्री ऑव दशनामी नागा संन्यासीज़ पृ. 50") .

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दसलाखी नगर

जो शहर मोटे अक्षरों में लिखे हैं वो अपने राज्य या केंद्रशासित प्रदेश की राजधानी भी हैं .

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दानिश मुजतबा

दानिश मुजतबा (Danish Mujtaba) (जन्म २०दिसम्बर १९८८,इलाहाबाद) एक भारतीय प्रोफेशनल फ़ील्ड हॉकी के खिलाड़ी है। इन्होंने अपने राष्ट्रीय कैरियर की शुरुआत २००९ में की थी। इन्होंने भारत की ओर 2012 ग्रीष्मकालीन ओलम्पिक खेलों में प्रतिनिधित्व किया था जो लन्दन में आयोजित किया गया था। .

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दारा शूकोह

दारा शूकोह (जन्म 20 मार्च 1615 - हत्या 10 सितंबर 1659) मुमताज़ महल के गर्भ से उत्पन्न मुग़ल सम्राट शाहजहाँ का ज्येष्ठ पुत्र तथा औरंगज़ेब का बड़ा भाई। .

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दारागंज रेलवे स्टेशन

दारागंज रेलवे स्टेशन भारतीय रेल का एक रेलवे स्टेशन है। यह इलाहाबाद शहर में स्थित है। श्रेणी:उत्तर प्रदेश के रेलवे स्टेशन.

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दिल्ली मण्डल

दिल्ली मण्डल ब्रिटिश भारत में एक प्रशासनिक क्षेत्र था। इस क्षेत्र में दिल्ली के अतिरिक्त वर्तमान हरियाणा राज्य के गुड़गांव, रोहतक, हिसार, पानीपत और करनाल जिले भी शामिल थे। .

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दुर्गा शक्ति नागपाल

दुर्गा शक्ति नागपाल (जन्म: 25 जून 1985) 2009 बैच की भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी हैं जो अपनी ईमानदारी के लिये जानी जाती हैं। उन्हें अवैध खनन के खिलाफ मोर्चा खोलने के कारण निलम्बित कर दिया गया। उन पर आरोप यह लगाया गया कि उन्होंने अवैध रूप से बनाई जा रही एक मस्जिद की दीवार को गिरा दिया था जिससे इलाके में साम्प्रदायिक तनाव फैल जाने की आशंका थी। बाद में जनता के विरोध के मद्देनज़र उन्हें राजस्व विभाग से सम्बद्ध कर दिया गया। मूल रूप से पंजाब कैडर की भारतीय प्रशासनिक अधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल ने 2011 बैच के उत्तर प्रदेश कैडर के भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी अभिषेक सिंह से शादी करके अपना स्थानान्तरण उत्तर प्रदेश में करा लिया था। उनकी पहली तैनाती सितम्बर 2012 के दौरान गौतम बुद्ध नगर जिले के ग्रेटर नोएडा क्षेत्र में हुई जहाँ उन्हें उ०प्र० सरकार द्वारा सब डिवीजनल मजिस्ट्रेट (एस०डी०एम०) के पद पर तैनात किया गया। 28 वर्षीय युवा व स्वभाव से ही तेजतर्रार इस महिला प्रशासनिक अधिकारी ने यमुना नदी के खादर में रेत से भरी 300 ट्रॉलियों को अपने कब्जे में ले लिया था। उन्होंने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यमुना और हिंडन नदियों में खनन माफियाओं पर नजर रखने के लिये विशेष उड़न दस्तों का गठन किया और उनका नेतृत्व भी स्वयं सम्भाला। जिसके चलते वे राजनीतिक हस्तक्षेप की शिकार हो गयीं। उत्तर प्रदेश आई०ए०एस० ऐसोसिएशन ने दुर्गा शक्ति नागपाल के निलम्बन पर विरोध दर्ज कराया और इसे रद्द करने की माँग की। इसके परिणाम स्वरूप नागपाल के निलम्बन पर विचार करने को यू०पी० सरकार तैयार हुई। उ०प्र० सरकार के मुख्य सचिव आलोक रंजन ने ऐसोसिएशन को बताया कि मुख्य मन्त्री अखिलेश यादव ने दुर्गा शक्ति नागपाल के निलम्बन पर नियमानुसार पुनर्विचार करने का आदेश उन्हें दे दिया है जिसके चलते प्रशासनिक कार्रवाई की जायेगी। मुख्यमन्त्री से व्यक्तिगत रूप से मिलकर उन्होंने अपना पक्ष प्रस्तुत किया जिससे सन्तुष्ट होकर अखिलेश यादव ने उन्हें चन्द घण्टों बाद ही बहाल कर दिया। .

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द्वारका प्रसाद शर्मा

द्वारका प्रसाद शर्मा (संवत १८७७-) हिन्दी के साहित्यकार थे। इन्हें हिंदी गद्य के विकास काल के आरंभिक लेखकों में गिना जाता है। चतुर्वेदीजी को हिंदी साहित्य जगत में महत्वपूर्ण योगदान हेतु "शर्मा" की उपाधि से सम्मानित किया गया। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के इटावा में संवत १८७७ में हुआ था। वे बाद में इलाहाबाद में आकर बस गए थे। ये पहले सरकारी नौकरी में थे परंतु वारेन हेस्टिंग्स का जीवन चरित्र लिखने के कारण नौकरी से अलग कर दिए गए और साहित्य की ओर प्रवृत हुए। चतुर्वेदीजी ने "राघवेंद्र" मासिक पत्र भी निकल था.

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द्विराष्ट्र सिद्धांत

द्विराष्ट्र सिद्धांत या दो क़ौमी नज़रिया भारतीय उपमहाद्वीप के मुसलमानों के हिन्दुओं से अलग पहचान का सिद्धांत है। .

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दैनिक जागरण

दैनिक जागरण उत्तर भारत का सर्वाधिक लोकप्रिय समाचारपत्र है। पिछले कई वर्षोँ से यह भारत में सर्वाधिक प्रसार संख्या वाला समाचार-पत्र बन गया है। यह समाचारपत्र विश्व का सर्वाधिक पढ़ा जाने वाला दैनिक है। इस बात की पुष्टि विश्व समाचारपत्र संघ (वैन) द्वारा की गई है। वर्ष 2008 में बीबीसी और रॉयटर्स की नामावली के अनुसार यह प्रतिवेदित किया गया कि यह भारत में समाचारों का सबसे विश्वसनीय स्रोत दैनिक जागरण है। .

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देवनागरी का इतिहास

देवनागरी लिपि की जड़ें प्राचीन ब्राह्मी परिवार में हैं। गुजरात के कुछ शिलालेखों की लिपि, जो प्रथम शताब्दी से चौथी शताब्दी के बीच के हैं, नागरी लिपि से बहुत मेल खाती है। ७वीं शताब्दी और उसके बाद नागरी का प्रयोग लगातार देखा जा सकता है। .

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देवप्रयाग

देवप्रयाग भारत के उत्तराखण्ड राज्य में स्थित एक नगर एवं प्रसिद्ध तीर्थस्थान है। यह अलकनंदा तथा भागीरथी नदियों के संगम पर स्थित है। इसी संगम स्थल के बाद इस नदी को पहली बार 'गंगा' के नाम से जाना जाता है। यहाँ श्री रघुनाथ जी का मंदिर है, जहाँ हिंदू तीर्थयात्री भारत के कोने कोने से आते हैं। देवप्रयाग अलकनंदा और भागीरथी नदियों के संगम पर बसा है। यहीं से दोनों नदियों की सम्मिलित धारा 'गंगा' कहलाती है। यह टेहरी से १८ मील दक्षिण-दक्षिण-पूर्व दिशा में स्थित है। प्राचीन हिंदू मंदिर के कारण इस तीर्थस्थान का विशेष महत्व है। संगम पर होने के कारण तीर्थराज प्रयाग की भाँति ही इसका भी नामकरण हुआ है। देवप्रयाग समुद्र सतह से १५०० फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है और निकटवर्ती शहर ऋषिकेश से सड़क मार्ग द्वारा ७० किमी० पर है। यह स्थान उत्तराखण्ड राज्य के '''पंच प्रयागों''' में से एक माना जाता है। इसके अलावा इसके बारे में कहा जाता है कि जब राजा भगीरथ ने गंगा को पृथ्वी पर उतरने को राजी कर लिया तो ३३ करोड़ देवी-देवता भी गंगा के साथ स्वर्ग से उतरे। तब उन्होंने अपना आवास देवप्रयाग में बनाया जो गंगा की जन्म भूमि है। भागीरथी और अलकनंदा के संगम के बाद यही से पवित्र नदी गंगा का उद्भव हुआ है। यहीं पहली बार यह नदी गंगा के नाम से जानी जाती है। गढ़वाल क्षेत्र में मान्यतानुसार भगीरथी नदी को सास तथा अलकनंदा नदी को बहू कहा जाता है। यहां के मुख्य आकर्षण में संगम के अलावा एक शिव मंदिर तथा रघुनाथ मंदिर हैं जिनमें रघुनाथ मंदिर द्रविड शैली से निर्मित है। देवप्रयाग प्राकृतिक संपदा से परिपूर्ण है। यहां का सौन्दर्य अद्वितीय है। निकटवर्ती डंडा नागराज मंदिर और चंद्रवदनी मंदिर भी दर्शनीय हैं। देवप्रयाग को 'सुदर्शन क्षेत्र' भी कहा जाता है। यहां कौवे दिखायी नहीं देते, जो की एक आश्चर्य की बात है। .

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दोआब

भारत का प्रसिद्ध दोआब: गंगा-यमुना का दोआब उत्तरी भारतीय उपमहाद्वीप के प्रसिद्ध दोआब दोआब दो नदियों के बीच के क्षेत्र को कहते हैं। यह 'दो' और 'आब' (यानि 'पानी') शब्दों के जोड़ से बना है, जैसे गंगा और यमुना के बीच की भूमि। दुनियाँ में इस प्रकार के अनेक दोआब हैं, जैसे दजला और फरात का दोआब आदि। पर भारत में दोआब विशेष रूप से गंगा और यमुना के मध्य की भूमि को ही कहते हैं, जो उत्तर प्रदेश में शिवालिक पहाड़ियों से लेकर इलाहाबाद में दोनों नदियों के संगमस्थल तक फैला हुआ है। निम्न दोआब, जो इटावा जिले से लेकर इलाहाबाद तक फैला है, अंतर्वेद कहलाता है। .

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दीनदयाल उपाध्याय

पण्डित दीनदयाल उपाध्याय (जन्म: २५ सितम्बर १९१६–११ फ़रवरी १९६८) चिन्तक और संगठनकर्ता थे। वे भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष भी रहे। उन्होंने भारत की सनातन विचारधारा को युगानुकूल रूप में प्रस्तुत करते हुए देश को एकात्म मानववाद जैसी प्रगतिशील विचारधारा दी। उपाध्यायजी नितान्त सरल और सौम्य स्वभाव के व्यक्ति थे। राजनीति के अतिरिक्त साहित्य में भी उनकी गहरी अभिरुचि थी। उनके हिंदी और अंग्रेजी के लेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते थे। केवल एक बैठक में ही उन्होंने चन्द्रगुप्त नाटक लिख डाला था। .

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दीपराज राणा

दीपराज राणा (अंग्रेजी:Deepraj Rana) एक भारतीय फ़िल्म और टेलीविज़न अभिनेता है। इनका जन्म इलाहाबाद में हुआ था।.

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धरनीदास

धरनीदास (जन्म १६१६ ई. के आसपास -) हिन्दी के सन्त कवि थे। इननका जन्म १६१६ ई. के आसपास मांझी गाँव, जिला सारन (बिहार), में हुआ था। आपके तीन ग्रंथ प्रसिद्ध हैं- शब्दप्रकाश, रत्नावली और प्रेमप्रगास। इलाहाबाद के बेलवेडियर प्रेस से प्रकाशित 'धरनीदास की बानी' के बहुसंख्यक पद 'शब्दप्रकाश' के ही हैं। रत्नावली में आपकी गुरुपरंपरा का वर्णन है तथा कुछ अन्य संतों का वृत्तांत दिया गया है। 'प्रेमप्रगास' प्रेमाख्यान है जिसमें मनमोहन तथा प्रानपति प्रानपती के प्रेम का वर्णन है। श्रेणी:हिन्दी कवि.

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धरमदास

धरमदास (या धनी धर्मदास; १४३३ - १५४३ अनुमानित) कबीर दास के शिष्य और उनके समकालीन सन्त एवं हिन्दी कवि थे। धनी धर्मदास को छत्तीसगढ़ी के आदि कवि का दर्जा प्राप्त है। कबीरदास के बाद हरमदास कबीरपंथ के सबसे बड़े उन्नायक थे। .

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धर्मवीर भारती

धर्मवीर भारती (२५ दिसंबर, १९२६- ४ सितंबर, १९९७) आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रमुख लेखक, कवि, नाटककार और सामाजिक विचारक थे। वे एक समय की प्रख्यात साप्ताहिक पत्रिका धर्मयुग के प्रधान संपादक भी थे। डॉ धर्मवीर भारती को १९७२ में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। उनका उपन्यास गुनाहों का देवता सदाबहार रचना मानी जाती है। सूरज का सातवां घोड़ा को कहानी कहने का अनुपम प्रयोग माना जाता है, जिस श्याम बेनेगल ने इसी नाम की फिल्म बनायी, अंधा युग उनका प्रसिद्ध नाटक है।। इब्राहीम अलकाजी, राम गोपाल बजाज, अरविन्द गौड़, रतन थियम, एम के रैना, मोहन महर्षि और कई अन्य भारतीय रंगमंच निर्देशकों ने इसका मंचन किया है। .

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ध्यानचंद सिंह

मेजर ध्यानचंद सिंह (२९ अगस्त, १९०५ -३ दिसंबर, १९७९) भारतीय फील्ड हॉकी के भूतपूर्व खिलाड़ी एवं कप्तान थे। भारत एवं विश्व हॉकी के सर्वश्रेष्ठ खिलाडड़ियों में उनकी गिनती होती है। वे तीन बार ओलम्पिक के स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम के सदस्य रहे (जिनमें १९२८ का एम्सटर्डम ओलोम्पिक, १९३२ का लॉस एंजेल्स ओलोम्पिक एवं १९३६ का बर्लिन ओलम्पिक)। उनकी जन्मतिथि को भारत में "राष्ट्रीय खेल दिवस" के के रूप में मनाया जाता है। children.co.in/india/festivals/national-sports-day.htm उनके छोटे भाई रूप सिंह भी अच्छे हॉकी खिलाड़ी थे जिन्होने ओलम्पिक में कई गोल दागे थे। उन्हें हॉकी का जादूगर ही कहा जाता है। उन्होंने अपने खेल जीवन में 1000 से अधिक गोल दागे। जब वो मैदान में खेलने को उतरते थे तो गेंद मानों उनकी हॉकी स्टिक से चिपक सी जाती थी। उन्हें १९५६ में भारत के प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा बहुत से संगठन और प्रसिद्ध लोग समय-समय पर उन्हे 'भारतरत्न' से सम्मानित करने की माँग करते रहे हैं किन्तु अब केन्द्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार होने से उन्हे यह सम्मान प्रदान किये जाने की सम्भावना बहुत बढ़ गयी है। .

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धीरेन्द्र वर्मा

डॉ धीरेन्द्र वर्मा (१८९७ - १९७३), हिन्दी तथा ब्रजभाषा के कवि एवं इतिहासकार थे। वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रथम हिन्दी विभागाध्यक्ष थे। धर्मवीर भारती ने उनके ही मार्गदर्शन में अपना शोधकार्य किया। जो कार्य हिन्दी समीक्षा के क्षेत्र में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने किया, वही कार्य हिन्दी शोध के क्षेत्र में डॉ॰ धीरेन्द्र वर्मा ने किया था। धीरेन्द्र वर्मा जहाँ एक तरफ़ हिन्दी विभाग के उत्कृष्ट व्यवस्थापक रहे, वहीं दूसरी ओर एक आदर्श प्राध्यापक भी थे। भारतीय भाषाओं से सम्बद्ध समस्त शोध कार्य के आधार पर उन्होंने 1933 ई. में हिन्दी भाषा का प्रथम वैज्ञानिक इतिहास लिखा था। फ्रेंच भाषा में उनका ब्रजभाषा पर शोध प्रबन्ध है, जिसका अब हिन्दी अनुवाद हो चुका है। मार्च, सन् 1959 में डॉ॰ धीरेंद्र वर्मा हिंदी विश्वकोश के प्रधान संपादक नियुक्त हुए। विश्वकोश का प्रथम खंड लगभग डेढ़ वर्षों की अल्पावधि में ही सन् 1960 में प्रकाशित हुआ। .

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नदियों पर बसे भारतीय शहर

नदियों के तट पर बसे भारतीय शहरों की सूची श्रेणी:भारत के नगर.

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नन्द गोपाल गुप्ता "नंदी"

नन्द गोपाल गुप्ता (जन्म:२३ मई १९७४) इलाहबाद से राजनेता, उद्योगपति है। वे "नंदी" के नाम से लोकप्रिय हैं। वर्तमान में वे उत्तर प्रदेश की भाजपा नेतृत्व वाली सरकार में स्टाम्प और नागरिक उड्डयन मंत्री हैं। .

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नयी कविता

नयी कविता भारतीय स्वतंत्रता के बाद लिखी गईं उन कविताओं को कहा गया, जिनमें परंपरागत कविता से आगे नये भावबोधों की अभिव्यक्ति के साथ ही नये मूल्यों और नये शिल्प-विधान का अन्वेषण किया गया। यह भी कहा जा सकता है कि प्रयोगवाद के बाद हिंदी कविता की जो नवीन धारा विकसित हुई, वह नई कविता है। नयी कविता नाम आज़ादी के बाद लिखी गई उन कविताओं के लिए रूढ हो गया, जो अपनी वस्तु-छवि और रूप-छवि दोनों में प्रगतिवाद और प्रयोगवाद का विकास होकर भी विशिष्ट है। नयी कविता-आंदोलन का आरंभ इलाहाबाद की साहित्यिक संस्था परिमल के कवि लेखकों- जगदीश गुप्त, रामस्वरुप चतुर्वेदी और विजयदेवनरायण साही के संपादन में १९५४ में प्रकाशित "नयी कविता" पत्रिका से माना जाता है। इससे पहले अज्ञेय के संपादन में प्रकाशित काव्य-संग्रह 'दूसरा सप्तक' की भूमिका तथा उसमें शामिल कुछ कवियों के वक्तव्यों में अपनी कवितओं के लिये 'नयी कविता' शब्द को स्वीकार किया गया था। .

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नरेन्द्र शर्मा

पण्डित नरेन्द्र शर्मा (२८ फरवरी १९१३–११ फरवरी १९८९) हिन्दी के लेखक, कवि तथा गीतकार थे। उन्होने हिन्दी फिल्मों (जैसे सत्यम शिवम सुन्दरम) के लिये गीत भी लिखे। .

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नासिरा शर्मा

नासिरा शर्मा (जन्म: १९४८) हिन्दी की प्रमुख लेखिका हैं। सृजनात्मक लेखन के साथ ही स्वतन्त्र पत्रकारिता में भी उन्होंने उल्लेखनीय कार्य किया है। वह ईरानी समाज और राजनीति के अतिरिक्त साहित्य कला व सांस्कृतिक विषयों की विशेषज्ञ हैं। वर्ष २०१६ का साहित्य अकादमी पुरस्कार उनके उपन्यास पारिजात के लिए दिया जायेगा। .

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नासिक

नासिक अथवा नाशिक भारत के महाराष्ट्र राज्य का एक शहर है। नसिक महाराष्ट्र के उत्तर पश्चिम में, मुम्बई से १५० किमी और पुणे से २०५ किमी की दुरी में स्थित है। यह शहर प्रमुख रूप से हिन्दू तीर्थयात्रियों का प्रमुख केन्द्र है। नासिक पवित्र गोदावरी नदी के तट पर स्थित है। समुद्र तल से इसकी ऊंचाई 565 मीटर है। गोदावरी नदी के तट पर बहुत से सुंदर घाट स्थित है। इस शहर का सबसे प्रमुख भाग पंचवटी है। इसके अलावा यहां बहुत से मंदिर भी है। नासिक में त्योहारों के समय में बहुत अधिक संख्या में भीड़ दिखलाई पड़ती है। .

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नागरीप्रचारिणी सभा

नागरीप्रचारिणी सभा, हिंदी भाषा और साहित्य तथा देवनागरी लिपि की उन्नति तथा प्रचार और प्रसार करनेवाली भारत की अग्रणी संस्था है। भारतेन्दु युग के अनंतर हिंदी साहित्य की जो उल्लेखनीय प्रवृत्तियाँ रही हैं उन सबके नियमन, नियंत्रण और संचालन में इस सभा का महत्वपूर्ण योग रहा है। .

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नागा साधु

पशुपतिनाथ मन्दिर, नेपाल में एक नागा साधु नागा साधु हिन्दू धर्मावलम्बी साधु हैं जो कि नग्न रहने तथा युद्ध कला में माहिर होने के लिये प्रसिद्ध हैं। ये विभिन्न अखाड़ों में रहते हैं जिनकी परम्परा जगद्गुरु आदिशंकराचार्य द्वारा की गयी थी। .

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नागेश भट्ट

नागेश भट्ट (1730–1810) संस्कृत के नव्य वैयाकरणों में सर्वश्रेष्ठ है। इनकी रचनाएँ आज भी भारत के कोने-कोने में पढ़ाई जाती हैं। ये महाराष्ट्र के ब्राह्मण थे। इनके पिता का नाम शिव भट्ट और माता का नाम सतीदेवी था। साहित्य, धर्मशास्त्र, दर्शन तथा ज्योतिष विषयों में भी इनकी अबाध गति थी। प्रयाग के पास श्रृंगवेरपुर में रामसिंह राजा रहते थे। वहीं इनके आश्रयदाता थे। एक जनप्रवाद है कि नागेश भट्ट को सं.

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नितिन सक्सेना

वैज्ञानिक उदहरण वेग्यानिक स्थान् नितिन सक्सेना (जन्म: ३ मई १९८१, इलाहाबाद) गणित एवं सैद्धांतिक संगणक विज्ञान के क्षेत्र में कार्यरत एक भारतीय संगणक वैज्ञानिक है। उन्होंने मणीन्द्र अग्रवाल और नीरज कयाल के साथ मिलकर ऐकेएस पराएमीलिटी टेस्ट प्रस्तावित किया, जिसके लिए उन्हें उनके सह लेखकों के साथ प्रतिष्ठित गोडेल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। उल्लेखनीय रूप से यह अनुसंधान उनके अवर अध्ययन का एक हिस्सा था। .

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निर्मला (उपन्यास)

निर्मला, मुंशी प्रेमचन्द द्वारा रचित प्रसिद्ध हिन्दी उपन्यास है। इसका प्रकाशन सन १९२७ में हुआ था। सन १९२६ में दहेज प्रथा और अनमेल विवाह को आधार बना कर इस उपन्यास का लेखन प्रारम्भ हुआ। इलाहाबाद से प्रकाशित होने वाली महिलाओं की पत्रिका 'चाँद' में नवम्बर १९२५ से दिसम्बर १९२६ तक यह उपन्यास विभिन्न किस्तों में प्रकाशित हुआ। महिला-केन्द्रित साहित्य के इतिहास में इस उपन्यास का विशेष स्थान है। इस उपन्यास की कथा का केन्द्र और मुख्य पात्र 'निर्मला' नाम की १५ वर्षीय सुन्दर और सुशील लड़की है। निर्मला का विवाह एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति से कर दिया जाता है। जिसके पूर्व पत्नी से तीन बेटे हैं। निर्मला का चरित्र निर्मल है, परन्तु फिर भी समाज में उसे अनादर एवं अवहेलना का शिकार होना पड़ता है। उसकी पति परायणता काम नहीं आती। उस पर सन्देह किया जाता है, उसे परिस्थितियाँ उसे दोषी बना देती है। इस प्रकार निर्मला विपरीत परिस्थितियों से जूझती हुई मृत्यु को प्राप्त करती है। निर्मला में अनमेल विवाह और दहेज प्रथा की दुखान्त कहानी है। उपन्यास का लक्ष्य अनमेल-विवाह तथा दहेज़ प्रथा के बुरे प्रभाव को अंकित करता है। निर्मला के माध्यम से भारत की मध्यवर्गीय युवतियों की दयनीय हालत का चित्रण हुआ है। उपन्यास के अन्त में निर्मला की मृत्यृ इस कुत्सित सामाजिक प्रथा को मिटा डालने के लिए एक भारी चुनौती है। प्रेमचन्द ने भालचन्द और मोटेराम शास्त्री के प्रसंग द्वारा उपन्यास में हास्य की सृष्टि की है। निर्मला के चारों ओर कथा-भवन का निर्माण करते हुए असम्बद्ध प्रसंगों का पूर्णतः बहिष्कार किया गया है। इससे यह उपन्यास सेवासदन से भी अधिक सुग्रंथित एवं सुसंगठित बन गया है। इसे प्रेमचन्द का प्रथम ‘यथार्थवादी’ तथा हिन्दी का प्रथम ‘मनोवैज्ञानिक उपन्यास’ कहा जा सकता है। निर्मला का एक वैशिष्ट्य यह भी है कि इसमें ‘प्रचारक प्रेमचन्द’ के लोप ने इसे ने केवल कलात्मक बना दिया है, बल्कि प्रेमचन्द के शिल्प का एक विकास-चिन्ह भी बन गया है। .

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निज़ाम सिद्दिक़ी

निज़ाम सिद्दिक़ी भारतीय उर्दू भाषा के विख्यात समालोचक एवं लेखक हैं। इनके द्वारा रचित एक समालोचना माबाद-ए-जदिदिआत से नये अहेद की तखलिकि़यात तक के लिये उन्हें सन् २०१६ में साहित्य अकादमी पुरस्कार (उर्दू) से सम्मानित किया गया। सिद्दिक़ी उर्दू भाषा के साथ हिन्दी, अरबी, फ्रेंच, अंग्रेज़ी और फारसी साहित्य में भी रुची रखते हैं। उनकी प्राथमिक शिक्षा इलाहाबाद में हुई और फिर कानपुर विश्वविद्यालय से ग्रैजुएशन और पेास्ट ग्रैजुएशन पूरा किया। बतौर समालोचक उनकी तीन किताबे छपी हैं और लेखक के रूप में उन्होंने सात पुस्तकोंका प्रकाशन किया हैं। .

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नज़ीर अहमद देहलवी

नज़ीर अहमद देहलवी (१८३०-१९१२), जिन्हें औमतौर पर डिप्टी नज़ीर अहमद (उर्दू) बुलाया जाता था, १९वीं सदी के एक विख्यात भारतीय उर्दू-लेखक, विद्वान और सामाजिक व धार्मिक सुधारक थे। उनकी लिखी कुछ उपन्यास-शैली की किताबें, जैसे कि 'मिरात-उल-उरूस' और 'बिनात-उल-नाश' और बच्चों के लिए लिखी पुस्तकें, जैसे कि 'क़िस्से-कहानियाँ' और 'ज़ालिम भेड़िया', आज तक उत्तर भारत व पाकिस्तान में पढ़ी जाती हैं। .

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न्यू आर. एस. जे. पब्लिक स्कूल

न्यू आर.

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नैनी जंक्शन रेलवे स्टेशन

नैनी जंक्शन रेलवे स्टेशन भारतीय रेल का एक रेलवे स्टेशन है। यह इलाहाबाद शहर में स्थित है। श्रेणी:उत्तर प्रदेश के रेलवे स्टेशन श्रेणी:जंक्शन.

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पचराही

पचराही भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के कबीरधाम जिले का एक छोटा सा कस्बा है। हाल में ही यहाँ पुरातात्विक उत्खनन में प्राचीन मंदिर, बैल, लोहे का चुल्हा सहित कई सिक्के मिले हैं। इससे पचराही पुरातात्विक विशेषताओं को लेकर राष्ट्रीय परिदृश्य पर उभर आएगा। कल्चुरी राजाओं के इतिहास का गवाह यह इलाका देश के खास उत्खनन केंद्रों में गिना जाने लगा है। पचराही एक नैसर्गिक और पुरातात्विक स्थल है। पुरातनकाल में राजाओं ने इस स्थान पर मंदिर व शहर इसलिए बसाया था क्योंकि वर्तमान कंकालिन मंदिर के पास आकर हाफ नदी उत्तर-पूर्व दिशा में बह रही है। जिन स्थानों पर नदी उत्तर यानी ईशान कोण में बहती है वह भाग हिन्दुशास्त्रों के मुताबिक सबसे पवित्र स्थान माना जाता है। ईशान कोण पर ईश्वर का निवास होता है। पचराही की भांति ही छत्तीसगढ़ में मदकू-द्वीप, सिरपुर भी ईशान कोण पर बहती है। वहीं इलाहाबाद, अयोध्या व वाराणसी में गंगा, सरयू ईशान कोण की ओर बहती है। इन स्थलों पर शहर व मंदिर बसाने का यह भी अभिप्राय रहा है। श्री शर्मा ने बताया कि पचराही की सभ्यता इलाहाबाद आयोध्या व वाराणसी के समान है जहां उत्खनन प्रारंभ होते ही अनेक ऐतिहासिक चीजें मिली है। .

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पटना

पटना (पटनम्) या पाटलिपुत्र भारत के बिहार राज्य की राजधानी एवं सबसे बड़ा नगर है। पटना का प्राचीन नाम पाटलिपुत्र था। आधुनिक पटना दुनिया के गिने-चुने उन विशेष प्राचीन नगरों में से एक है जो अति प्राचीन काल से आज तक आबाद है। अपने आप में इस शहर का ऐतिहासिक महत्व है। ईसा पूर्व मेगास्थनीज(350 ईपू-290 ईपू) ने अपने भारत भ्रमण के पश्चात लिखी अपनी पुस्तक इंडिका में इस नगर का उल्लेख किया है। पलिबोथ्रा (पाटलिपुत्र) जो गंगा और अरेन्नोवास (सोनभद्र-हिरण्यवाह) के संगम पर बसा था। उस पुस्तक के आकलनों के हिसाब से प्राचीन पटना (पलिबोथा) 9 मील (14.5 कि॰मी॰) लम्बा तथा 1.75 मील (2.8 कि॰मी॰) चौड़ा था। पटना बिहार राज्य की राजधानी है और गंगा नदी के दक्षिणी किनारे पर अवस्थित है। जहां पर गंगा घाघरा, सोन और गंडक जैसी सहायक नदियों से मिलती है। सोलह लाख (2011 की जनगणना के अनुसार 1,683,200) से भी अधिक आबादी वाला यह शहर, लगभग 15 कि॰मी॰ लम्बा और 7 कि॰मी॰ चौड़ा है। प्राचीन बौद्ध और जैन तीर्थस्थल वैशाली, राजगीर या राजगृह, नालन्दा, बोधगया और पावापुरी पटना शहर के आस पास ही अवस्थित हैं। पटना सिक्खों के लिये एक अत्यंत ही पवित्र स्थल है। सिक्खों के १०वें तथा अंतिम गुरु गुरू गोबिंद सिंह का जन्म पटना में हीं हुआ था। प्रति वर्ष देश-विदेश से लाखों सिक्ख श्रद्धालु पटना में हरमंदिर साहब के दर्शन करने आते हैं तथा मत्था टेकते हैं। पटना एवं इसके आसपास के प्राचीन भग्नावशेष/खंडहर नगर के ऐतिहासिक गौरव के मौन गवाह हैं तथा नगर की प्राचीन गरिमा को आज भी प्रदर्शित करते हैं। एतिहासिक और प्रशासनिक महत्व के अतिरिक्त, पटना शिक्षा और चिकित्सा का भी एक प्रमुख केंद्र है। दीवालों से घिरा नगर का पुराना क्षेत्र, जिसे पटना सिटी के नाम से जाना जाता है, एक प्रमुख वाणिज्यिक केन्द्र है। .

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पड़िला महादेव मंदिर

पड़िला महादेव मंदिर, प्रयाग के पाँचकोशी यात्रा का एक महत्वपूर्ण स्थान है।भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर तीर्थराज प्रयाग (इलाहाबाद) के उत्तरांचल मे जनपद मुख्यालय से 16 किलोमीटर दूर (इलाहाबाद-प्रतापगढ़ राष्ट्रीय राजमार्ग 96) फाफामऊ के थरवई गाँव मे स्थित हैं। इसे पांडेश्वर महादेव मंदिर कजे नाम से भी जाना जाता है। यह स्थान सोराँव तहसील में फाफामऊ कस्बे से ३ किमी उत्तर पूर्व में स्थित हैं। किंवदन्ती है कि श्री कृष्ण की सलाह पर यहाँ पाण्ड्वों ने भगवान शंकर के लिंग की स्थापना अपने वनवासकाल के दौरान किया था। यह मन्दिर पूर्ण रूप से पत्थरों से बना हुआ है। गजेटियर के अनुसार यहाँ शिवरात्रि व फाल्गुन कृष्ण १५ को मेला लगता है। श्रेणी:शिव मंदिर.

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पब्लिक लाइब्रेरी, इलाहाबाद

इलाहाबाद के चन्द्रशेखर आजाद पार्क के अंदर स्थित यह लाइब्रेरी शहर की सबसे प्राचीन लाइब्रेरी है। 1864 में स्थापित यह लाइब्रेरी वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। यहां बहुत सी दुर्लभ पुस्तकें देखी जा सकती हैं। श्रेणी:इलाहाबाद के दर्शनीय स्थल.

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परमाणु ऊर्जा विभाग (भारत)

भारत का परमाणु ऊर्जा विभाग (पऊवि) एक महत्वपूर्ण विभाग है जो सीधे प्रधानमंत्री के आधीन है। इसका मुख्यालय मुंबई में है। यह विभाग नाभिकीय विद्युत ऊर्जा की प्रौद्योगिकी के विकास, विकिरण प्रौद्योगिकी के विभिन्न क्षेत्रों (कृषि, चिकित्सा, उद्योग, मूलभूत अनुसन्धान आदि) में उपयोग तथा मूलभूत अनुसंधान में संलग्न है। इस विभाग के अन्तर्गत ५ अनुसन्धान केन्द्र, ३ औद्योगिक संगठन, ५ सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम, तथा ३ सेवा संगठन हैं। इसके अलावा इसके अन्दर दो बोर्ड भी हैं जो नाभिकीय क्षेत्र एवं इससे सम्बन्धित क्षेत्रों में मूलभूत अनुसन्धान को प्रोत्साहित करते हैं एवं उसके लिए फण्ड प्रदान करते हैं। परमाणु ऊर्जा विभाग ८ संस्थानों को भी सहायता देता है जो अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित हैं। परमाणु ऊर्जा विभाग (पऊवि) की स्थापना राष्ट्रपति के आदेश के माध्यम से दिनांक 3 अगस्त 1954 को की गई थी। .

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परमेश्वर नारायण हक्सर

परमेश्वर नारायण हक्सर (1913–1998) स्वतंत्र भारत के राजनीतिक लोकतंत्र को प्राप्त करने की प्रक्रिया में एक रणनीतिकार थे। उनक महत्वपूर्ण कार्य इन्दिरा गांधी के राजनीतिक सलाहकार के रूप में था। वो केंद्रीकरण और समाजवाद के समर्थक थे। हक्सर ऑस्ट्रिया और नाइजीरिया में भारतीय राजनयिक थे जिन्होंने राजदूत के रूप में काम किया। .

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परिकल्पना सम्मान

परिकल्पना सम्मान हिन्दी ब्लॉगिंग का एक ऐसा वृहद सम्मान है, जिसे बहुचर्चित तकनीकी ब्लॉगर रवि रतलामी ने हिन्दी ब्लॉगिंग का ऑस्कर कहा है। यह सम्मान प्रत्येक वर्ष आयोजित अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी ब्लॉगर सम्मेलन में देशविदेश से आए हिन्दी के चिरपरिचित ब्लॉगर्स की उपस्थिति में प्रदान किया जाता है। .

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पजनेस

पजनेस हिन्दी के रीतिकाल के अंतिम दौर के समर्थ कवि थे। .

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पंडित सुन्दर लाल

सत्याग्रह छत्तीसगढ़ के कवि एवं समाजसुधारक पंडित सुन्दर लाल शर्मा के लिये संबन्धित लेख देखें। ----- पंडित सुन्दर लाल (२६ सितम्बर सन १८८५ - 9 मई १९८१) भारत के पत्रकार, इतिहासकार तथा स्वतंत्रता-संग्राम सेनानी थे। वे 'कर्मयोगी' नामक हिन्दी साप्ताहिक पत्र के सम्पादक थे। उनकी महान कृति 'भारत में अंग्रेज़ी राज' है। .

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पुरुषोत्तम दास टंडन

पुरूषोत्तम दास टंडन (१ अगस्त १८८२ - १ जुलाई, १९६२) भारत के स्वतन्त्रता सेनानी थे। हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा के पद पर प्रतिष्ठित करवाने में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान था। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में हुआ था। वे भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के अग्रणी पंक्ति के नेता तो थे ही, समर्पित राजनयिक, हिन्दी के अनन्य सेवक, कर्मठ पत्रकार, तेजस्वी वक्ता और समाज सुधारक भी थे। हिन्दी को भारत की राजभाषा का स्थान दिलवाने के लिए उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान किया। १९५० में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने। उन्हें भारत के राजनैतिक और सामाजिक जीवन में नयी चेतना, नयी लहर, नयी क्रान्ति पैदा करने वाला कर्मयोगी कहा गया। वे जन सामान्य में राजर्षि (संधि विच्छेदः राजा+ऋषि.

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पुष्कर

पुष्कर राजस्थान में विख्यात तीर्थस्थान है जहाँ प्रतिवर्ष प्रसिद्ध 'पुष्कर मेला' लगता है। यह राजस्थान के अजमेर जिले में है। यहाँ ब्रह्मा का एक मन्दिर है। पुष्कर अजमेर शहर से १४ की.मी दूरी पर स्थित है। .

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पुस्तकालय का इतिहास

आधुनिक भारत में पुस्तकालयों का विकास बड़ी धीमी गति से हुआ है। हमारा देश परतंत्र था और विदेशी शासन के कारण शिक्षा एवं पुस्तकालयों की ओर कोई ध्यान ही नहीं दिया गया। इसी से पुस्तकालय आंदोलन का स्वरूप राष्ट्रीय नहीं था और न इस आंदोलन को कोई कानूनी सहायता ही प्राप्त थीं। बड़ौदा राज्य का योगदान इस दिशा में प्रशंसनीय रहा है। यहाँ पर 1910 ई. में पुस्तकालय आंदोलन प्रारंभ किया गया। राज्य में एक पुस्तकालय विभाग खोला गया और पुस्तकालयों चार श्रेणियों में विभक्त किया गया- जिला पुस्तकालय, तहसील पुस्तकालय, नगर पुस्तकालय, एवं ग्राम पुस्तकालय आदि। पूरे राज्य में इनका जाल बिछा दिया गया था। भारत में सर्वप्रथम चल पुस्तकालय की स्थापना भी बड़ौदा राज्य में ही हुई। श्री डब्ल्यू.

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प्रतापगढ़ जिला

उत्तर प्रदेश के अन्तर्गत प्रतापगढ़ जिला प्रतापगढ़ भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश का एक जिला है। इसे को बेला, बेल्हा, परतापगढ़, या प्रताबगढ़ भी कहा जाता है। यह प्रतापगढ़ जिले का प्रशासनिक मुख्यालय है। यह उत्तर प्रदेश का 72वां जिला है। इसे लोग बेल्हा भी कहते हैं, क्योंकि यहां बेल्हा देवी मंदिर है जो कि सई नदी के किनारे बना है। इस जिले को ऐतिहासिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। यहां के विधानसभा क्षेत्र पट्टी से ही देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं॰ जवाहर लाल नेहरू ने अपना राजनैतिक करियर शुरू किया था। इस धरती को राष्ट्रीय कवि हरिवंश राय बच्चन की जन्म स्थली के नाम से भी जाना जाता है। .

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प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश

प्रतापगढ़ भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश का एक जिला है, इसे लोग बेल्हा भी कहते हैं, क्योंकि यहां बेल्हा देवी मंदिर है जो कि सई नदी के किनारे बना है। इस जिले को ऐतिहासिक दृष्टिकोण से काफी अहम माना जाता है। यहां के विधानसभा क्षेत्र पट्टी से ही देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं॰ जवाहर लाल नेहरू ने पदयात्रा के माध्यम से अपना राजनैतिक करियर शुरू किया था। इस धरती को रीतिकाल के श्रेष्ठ कवि आचार्य भिखारीदास और राष्ट्रीय कवि हरिवंश राय बच्चन की जन्मस्थली के नाम से भी जाना जाता है। यह जिला धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी कि जन्मभूमि और महात्मा बुद्ध की तपोस्थली है। .

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प्रभात शास्त्री

डॉ प्रभात शास्त्री (२७ मई १९१७ -) हिन्दी के महान उन्नायक तथा संस्कृत और हिन्दी के विद्वान थे। प्रयाग में जन्में डॉ॰ प्रभात शास्त्री राष्ट्रभाषा के प्रति समर्पित संस्कृतज्ञ थे I वे सन १९७५ से सन १९९९ तक सम्मेलन के प्रधानमंत्री थे I इस कालावधि में उनहोंने सम्मेलन का चतुर्दिक विकास किया I और इसी लिए उन्हें 'सम्मेलन के उन्नायक ' नाम से अभिहित किया जाता है | संस्कृत साहित्य के साथ-साथ पं॰ प्रभात शास्त्री की अभिरुचि हिंदी के प्रति अतीव विकासोन्मुखी रही थी। 1910 ई0 में 'हिन्दी साहित्य सम्मेलन' की स्थापना के बाद हिंदी के महाप्राण राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन के सान्निध्य में आकर पं.प्रभात शास्त्री सक्रिय रूप में सम्मेलन-कार्यो से सम्पृक्त हो चुके थे। वे 1948 में सम्मेलन के प्रचारमन्त्री बने थे। तब उन्होंने देश के कई प्रान्तों में सम्मेलन की शाखा-प्रशाखाओं के विकास करने तथा प्रान्तीय सम्मेलनों के आयोजन में अपना श्लाघ्य योगदान किया था। निष्ठा और सांघटनिक कौशल के बल पर वे सम्मेलन के प्रधानमंत्री पद पर आजीवन अधिष्ठित रहे। .

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प्रभु लाल भटनागर

प्रभुलाल भटनागर, (8 अगस्त, 1912 - 5 अक्टूबर, 1976) विश्वप्रसिद्ध भारतीय गणितज्ञ थे। इन्हें गणित के लैटिस-बोल्ट्ज़मैन मैथड में प्रयोग किये गए भटनागर-ग्रॉस-क्रूक (बी.जी.के) कोलीज़न मॉडल के लिये जाना जाता है।। इंडियन मैथ सोसायटी। ऑब्सोल्यूट एस्ट्रॉनोमी .

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प्रमस्तिष्क अंगघात

प्रमस्तिष्क पक्षाघात या सेरेब्रल पाल्सी (cerebral palsy) सेरेब्रल का अर्थ मसि्तष्क के दोनो भाग तथा पाल्सी का अर्थ किसी ऐसा विकार या क्षति से है जो शारीरिक गति के नियंत्रण को क्षतिग्रस्त करती है। एक प्रसिद्ध शल्य चिकित्सक विलियम लिटिल ने 1860 ई में बच्चो में पाई जाने वाली असामान्यता से सम्बंधित चिकित्सा की चर्चा की थी जिसमे हाथ एवं पाव की मांसपेशियों में कड़ापन पाया जाता है। ऐसे बच्चों को वस्तु पकड़ने तथा चलने में कठिनाई होती है जिसे लम्बे समय तक लिटिल्स रोग के नाम से जाना जाता था। अब इसे प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात (सेरिब्रल पाल्सी) कहते हैं। 'सेरेब्रल' का अर्थ है मस्तिष्क के दोनों भाग तथा पाल्सी का अर्थ है ऐसी असामान्यता या क्षति जो शारीरिक गति के नियंत्रण को नष्ट करती है प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात का अर्थ है मस्तिष्क का लकवा। यह मस्तिष्कीय क्षति बच्चो के जन्म के पहले, जन्म के समय और जन्म के बाद कभी भी हो सकता है इसमें जितनी ज्यादा मस्तिष्क की क्षति होगी उतनी ही अधिक बच्चो में विकलांगता की गंभीरता बढ़ जाती है।;परिभाषा- बैटसो एवंं पैरट (1986) के अनुसार "सेरेब्रल पाल्सी एक जटिल, अप्रगतिशील अवस्था है जो जीवन के प्रथम तीन वर्षो मे हुई मस्तिष्कीय क्षति के कारण होती है जिसके फलस्वरूप मांसपेशियों में सामंजस्य न होने के कारण तथा कमजोरी से अपंगता होती है।" यह एक प्रमस्तिष्क संबंधी विकार है। यह विकार विकसित होते मस्तिष्क के मोटर कंट्रोल सेंटर (संचलन नियंत्रण केन्द्र) में हुई किसी क्षति के कारण होता है। यह बीमारी मुख्यत: गर्भधारण (७५ प्रतिशत), बच्चे के जन्म के समय (लगभग ५ प्रतिशत) और तीन वर्ष तक की आयु के बच्चों को होती है। सेरेब्रल पाल्सी पर अभी शोध चल रहा है, क्योंकि वर्तमान उपलब्ध शोध सिर्फ बाल्य (पीडियाट्रिक) रोगियों पर केन्द्रित है। इस बीमारी की वजह से संचार में समस्या, संवेदना, पूर्व धारणा, वस्तुओं को पहचानना और अन्य व्यवहारिक समस्याएं आती है। .

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प्रमोद तिवारी

प्रमोद तिवारी (जन्म: १६ जुलाई,१९५१) एक भारतीय कांग्रेसी नेता और प्रतापगढ़ वर्तमान में राज्यसभा सांसद हैं, उत्तर प्रदेश में स्थित प्रतापगढ़ जनपद के रामपुर खास चुनाव क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। प्रमोद तिवारी का जन्म 16 जुलाई 1951 में हुआ। प्रमोद तिवारी की एजुकेशनल क्वॉलिफिकेशन बीएससी और एलएलबी है। .

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प्रयाग प्रशस्ति

प्रयाग प्रशस्ति गुप्त राजवंश के सम्राट समुद्रगुप्त के दरबारी कवि हरिषेण द्वारा रचित लेख था। इस लेख को समुद्रगुप्त द्वारा २०० ई में कौशाम्बी से लाये गए अशोक स्तंभ पर खुदवाया गया था। इसमें उन राज्यों का वर्णन है जिन्होंने समुद्रगुप्त से युद्ध किया और हार गये तथा उसके अधीन हो गये। इसके अलावा समुद्रगुप्त ने अलग अलग स्थानों पर एरण प्रशस्ति, गया ताम्र शासन लेख, आदि भी खुदवाये थे। इस प्रशस्ति के अनुसार समुद्रगुप्त ने अपने साम्राज्य का अच्छा विस्तार किया था। उसको क्रान्ति एवं विजय में आनन्द मिलता था। इलाहाबाद के अभिलेखों से पता चलता है कि समुद्रगुप्त ने अपनी विजय यात्रा का प्रारम्भ उत्तर भारत से किया एवं यहां के अनेक राजाओं पर विजय प्राप्त की। .

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प्रयाग महिला विद्यापीठ

प्रयाग महिला विद्यापीठ इलाहाबाद स्थित महिला विद्यापीठ है। इलाहाबाद के एक प्रबुद्ध नागरिक श्री संगमलाल अग्रवाल ने महिलाओं को शिक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से इसकी स्थापना की थी जिसकी प्रधानाचार्या महादेवी वर्मा को बनाया गया था। यह विद्यापीठ इलाहाबाद के दक्षिण मलाका नामक मुहल्ले में स्थित है। इस संस्था के माध्यम से प्राइवेट परीक्षाओं 'प्रवेशिका', 'विद्या विनोदिनी', 'विदुषी' तथा 'सरस्वती' आदि की शिक्षा दी जाती थी। संगमलाल जी इन परीक्षाओं के द्वारा महिलाओं मे शिक्षा का प्रसार करना चाहते थे। जब प्रयाग महिला विद्यापीठ स्कूल को हाईस्कूल और फिर इंटर कॉलेज बनाया गया तो महादेवी जी ने शिक्षा अधिनियम के अंतर्गत अपने आपको प्रधानाचार्या न बनाए रखकर सुजाता बोस को कॉलेज की प्रधानाचार्या बनाया था। 1971 में जब इसे महाविद्यालय का स्तर प्राप्त हुआ। तो वे फिर से इसके महाविद्यालय विभाग की प्रधानायार्या बनीं। महादेवी जी ने इस संस्था को अपने आप से इस तरह जोड़ लिया था कि दोनों एक दूसरे के पर्याय बन गए थे और धीरे-धीरे वह दिन भी आया, जब प्रयागवासी ही यह भूल गए कि प्रयाग महिला विद्यापीठ की स्थापना संगमलाल अग्रवाल ने की थी। .

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प्रयाग रेलवे स्टेशन

प्रयाग रेलवे स्टेशन भारतीय रेल का एक रेलवे स्टेशन है। यह इलाहाबाद शहर में स्थित है। श्रेणी:उत्तर प्रदेश के रेलवे स्टेशन.

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प्रयाग घाट रेलवे स्टेशन

प्रयाग घाट रेलवे स्टेशन भारतीय रेल का एक रेलवे स्टेशन है। यह इलाहाबाद शहर में स्थित है। श्रेणी:उत्तर प्रदेश के रेलवे स्टेशन.

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पूर्वांचल

उत्तर प्रदेश के क्षेत्र पूर्वांचल उत्तर-मध्य भारत का एक भौगोलिक क्षेत्र है जो उत्तर प्रदेश के पूर्वी छोर पर स्थित है। यह उत्तर में नेपाल, पूर्व में बिहार, दक्षिण मे मध्य प्रदेश के बघेलखंड क्षेत्र और पश्चिम मे उत्तर प्रदेश के अवध क्षेत्र द्वारा घिरा है। इसे एक अलग राज्य बनाने के लिए लंबे समय राजनीतिक मांग उठती रही है। वर्तमान में इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व उत्तर प्रदेश विधानसभा में 117 विधायकों द्वारा होता है तो वहीं इस क्षेत्र से 23 लोकसभा सदस्य चुने जाते हैं। पूर्वांचल के मुख्यतः तीन भाग हैं- पश्चिम में पूर्वी अवधी क्षेत्र, पूर्व में पश्चिमी-भोजपुरी क्षेत्र और उत्तर में नेपाल क्षेत्र। यह भारतीय-गंगा मैदान पर स्थित है और पश्चिमी बिहार के साथ यह दुनिया में सबसे अधिक घनी आबादी वाला क्षेत्र है। उत्तर प्रदेश के आसपास के जिलों की तुलना में मिट्टी की समृद्ध गुणवत्ता और उच्च केंचुआ घनत्व के कारण कृषि के लिए अनुकूल है। भोजपुरी क्षेत्र में प्रमुख भाषा या बोली है। हालाँकि इस क्षेत्र में हिंदी और भोजपुरी के अलावा अवधी तथा बघेलखंडी पश्चिमी और दक्षिणी क्षेत्रों में बोली जाती हैं।। 1991 में उत्तर प्रदेश की सरकार ने पूर्वांचल विकास निधि की स्थापना की जिसका उद्देश्य था क्षेत्रीय विकास परियोजनाओं के लिये धन इकट्ठा करना जिससे भविष्य में संतुलित विकास के जरिए स्थानीय जरूरतों को पूरा करते हुए क्षेत्रीय असमानताओं का निवारण हो सके। .

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फतेहपुर जिला

फतेहपुर जिला उत्तर प्रदेश राज्य का एक जिला है जो कि पवित्र गंगा एवं यमुना नदी के बीच बसा हुआ है। फतेहपुर जिले में स्थित कई स्थानों का उल्लेख पुराणों में भी मिलता है जिनमें भिटौरा, असोथर अश्वस्थामा की नगरी) और असनि के घाट प्रमुख हैं। भिटौरा, भृगु ऋषि की तपोस्थली के रूप में मानी जाती है। फतेहपुर जिला इलाहाबाद मंडल का एक हिस्सा है और इसका मुख्यालय फतेहपुर शहर है। .

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फ़ैज़ाबाद

फ़ैज़ाबाद भारतवर्ष के उत्तरी राज्य उत्तर प्रदेश का एक नगर है।भगवान राम, राममनोहर लोहिया, कुंवर नारायण, राम प्रकाश द्विवेदी आदि की यह जन्मभूमि है। .

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फिरोज़ गांधी

फिरोज और इन्दिरा का विवाह फिरोज गांधी फिरोज़ गांधी (12 अगस्त 1912 – 8 सितम्बर 1960) भारत के एक राजनेता तथा पत्रकार थे। वे लोकसभा के सदस्य भी रहे। सन् १९४२ में उनका इन्दिरा गांधी से विवाह हुआ जो बाद में भारत की प्रधानमंत्री बनीं। उनके दो पुत्र हुए - राजीव गांधी और संजय गांधी .

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बच्चन परिवार

बच्चन परिवार, भारत का सुप्रसिद्ध परिवार है जिसके मुखिया सम्प्रति अमिताभ बच्चन हैं। इस परिवार के लोग हिन्दी साहित्यकार तथा बम्बई फिल्म उद्योग से जुड़े रहे हैं। .

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बढ़ई

बढ़ई काष्ठकारी से सम्बन्धित औजार लकड़ी का काम करने वाले लोगों को बढ़ई या 'काष्ठकार' (Carpenter) कहते हैं। ये प्राचीन काल से समाज के प्रमुख अंग रहे हैं। घर की आवश्यक काष्ठ की वस्तुएँ बढ़ई द्वारा बनाई जाती हैं। इन वस्तुओं में चारपाई, तख्त, पीढ़ा, कुर्सी, मचिया, आलमारी, हल, चौकठ, बाजू, खिड़की, दरवाजे तथा घर में लगनेवाली कड़ियाँ इत्यादि सम्मिलित हैं। .

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बमरौली रेलवे स्टेशन

बमरौली रेलवे स्टेशन भारतीय रेल का एक रेलवे स्टेशन है। यह इलाहाबाद शहर में स्थित है। श्रेणी:उत्तर प्रदेश के रेलवे स्टेशन.

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बापूदेव शास्त्री

बापूदेव शास्त्री (हाथ में ग्लोब लिए हुए) वाराणसी के 'क्वींस कॉलेज' में पढ़ाते हुए (१८७०) महामहोपाध्याय पंडित बापूदेव शास्त्री (१ नवम्बर १८२१-१९००) काशी संस्कृत कालेज के ज्योतिष के मुख्य अध्यापक थे। वे प्रथम ब्राह्मण (पण्डित) थे जो भारतीय एवं पाश्चात्य खगोलिकी दोनो के प्रोफेसर बने। ये प्रयाग तथा कलकत्ता विश्वविद्यालयों के परिषद तथा आयरलैंड और ग्रेट ब्रिटेन की रॉयल सोसायटी के सम्मानित सदस्य थे। इन्हें महामहोपाध्याय की उपाधि मिली थी। .

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बाबा राघवदास

बाबा राघवदास (१२ दिसम्बर १८९६ - १५ जनवरी १९५८), भारत के एक सन्त तथा भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानी थे। उन्हें 'पूर्वांचल का गांधी' कहा जाता है। .

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बाबू गुलाब सिंह

320px। सवंत्रता सेनानी। अमर शहीद क्रांतिकारी बाबू गुलाब सिंह एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे, जिनका जन्म उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जनपद के तरौल (तारागढ़) गाँव में हुआ था। पेशे से वें तालुकेदार थे।अवध क्षेत्र प्रतापगढ़ और प्रयाग में सन १८५७ की भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में इनकी भूमिका अहम् रही। .

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बालकृष्ण भट्ट

पंडित बाल कृष्ण भट्ट (३ जून १८४४- २० जुलाई १९१४) हिन्दी के सफल पत्रकार, नाटककार और निबंधकार थे। उन्हें आज की गद्य प्रधान कविता का जनक माना जा सकता है। हिन्दी गद्य साहित्य के निर्माताओं में भी उनका प्रमुख स्थान है। .

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बालेश्वर मन्दिर

उत्तराखण्ड राज्य के चम्पावत नगर में स्थित बालेश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक प्राचीन मंदिर समूह है, जिसका निर्माण १०-१२ ईसवीं शताब्दी में चन्द शासकों ने करवाया था। इस मंदिर की वास्तुकला काफी सुंदर है। मन्दिर समूह चम्पावत नगर के बस स्टेशन से लगभग १०० मीटर की दूरी पर स्थित है। मुख्य मन्दिर बालेश्वर महादेव (शिव) को समर्पित है। लगभग २०० वर्ग मीटर फैले मन्दिर परिसर में मुख्य मन्दिर के अतिरिक्त २ मन्दिर और स्थित हैं, जो रत्नेश्वर तथा चम्पावती दुर्गा को समर्पित हैं। मन्दिरों के समीप ही एक नौले का भी निर्माण किया गया है। बालेश्वर मंदिर परिसर उत्तराखण्ड के राष्ट्रीय संरक्षित स्मारकों में से एक है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण देहरादून मण्डल द्वारा इसकी देख-रेख के लिए कर्मचारी नियुक्त किये गये हैं। पुरातत्व विभाग की देख-रेख में बालेश्वर मंदिर परिसर की स्वच्छता एवं प्रसिद्ध बालेश्वर नौले के निर्मल जल को संरक्षित किया गया है। .

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बिनय कुमार सरकार

विनय कुमार सरकार (26 दिसम्बर, 1887 – 1949) भारत के समाजविज्ञानी, प्राध्यापक एवं राष्ट्रवादी चिन्तक थे। उन्होने कोलकाता में अनेकों संस्थाओं की स्थापना की जिनमें बंगाली समाजशास्त्र संस्थान (Bengali Institute of Sociology), बंगाली एशिया अकादमी, बंगाली दाँते सोसायटी (Bengali Dante Society), तथा बंगाली अमेरिकी संस्कृति संस्थान (Bengali Institute of American Culture) प्रमुख हैं। पैतृक निवास बिक्रमपुर, ढाका। पिता सुधन्य कुमार सरकार। १९०१ ई मालदह जिला स्कूल से प्रथम स्थान प्राप्त करके १९०५ ई में प्रेसिडेन्सी कालेज में प्रवेश। वहाँ से छात्रवृत्ति के साथ बी ए तथा १९०६ ई में एम ए किया। वे अंग्रेजी और बंगला के अलावा ६ अन्य भाषाएँ जानते थे। विद्यार्थीजीवन में (१९०२) उन्होने ‘डन सोसाइटि’ में योगदान दिया। १९०७-११ ई तक बंगीय जातीय शिक्षा-परिषद में अध्यापन के समय मालदह में अनेक विद्यालयों की स्थापना की तथा राष्ट्रीय शिक्षा-बिषयक अनेकों ग्रन्थ रचे। उन्होने कई यूरोपीय लेखकों के ग्रन्थों का अनुवाद भी किया। १९०९ ई में इलाहाबाद के पाणिनि कार्यालय के गवेषक रहे। १९१४ ई से १९२५ ई तक उन्होने विश्वभ्रमण किया एवं विश्व के विभिन्न विश्वविद्यालयों में अध्यापन किया। १९२६-१९४९ ई तक कोलकाता विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग के अध्यापक रहे। उन्होने 'धनविज्ञान परिषद' की स्थापना की प्रतिष्ठाता ओ ‘आर्थिक उन्नति’ नामक मासिक पत्रिका का सम्पादन किया। उनके द्वारा रचित ग्रन्थों की संख्या १०० से अधिक है। विदेश में भारत की स्वाधीनता संग्रामी क्रान्तिकारियों की तरह-तरह से सहायता की। उनके अनुज धीरेन सरकार प्रवासी क्रांतिकारियों में अन्यतम थे। उन्होने बहुत से छात्रों को उच्चशिक्षा प्राप्त करने के लिये विदेश भेजा। स्वाधीन भारत की वाणी के प्रचार के लिये अमेरिका सफर के समय उनका देहान्त हो गया। .

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बिरला प्रौद्योगिकी संस्थान

बिरला प्रौद्योगिकी संस्थान मेसरा (अंग्रेज़ी: Birla Institute of Technology Mesra; जो बीआईटी मेसरा या बीआईटी राँची के नाम से भी प्रसिद्ध है) झारखंड के राँची में स्थित भारत का अग्रणी स्वायत्त अभियांत्रिकी और प्रौद्योगिकी उन्मुख संस्थान है। इसे विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम १९५६ के अनुभाग ३ के तहत एक डीम्ड विश्वविद्यालय का दर्ज़ा हासिल है। मुख्य परिसर के अतिरिक्त लालपुर (रांची), इलाहाबाद, कोलकाता, नोएडा, जयपुर, चेन्नई, पटना और देवघर में बीआईटी के भारतीय विस्तार पटल हैं। इनके अतिरिक्त बहरीन, मस्कट, संयुक्त अरब अमीरात और मॉरिशस में बीआईटी के अंतरराष्ट्रीय केंद्र हैं। जून २००५ में एसी निलसन एवं इंडिया टुडे द्वारा किये गये एक सर्वेक्षण के अनुसार इसे देश के दस श्रेष्ठ तकनीकी संस्थानों में शुमार किया गया था। .

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बिली अर्जन सिंह

कुँवर बिली अर्जन सिंह (१५ अगस्त १९१७ – १ जनवरी २०१०) विश्वप्रसिद्ध बाघ सरंक्षक एंव पर्यावरणविद् थे। दुधवा नेशनल पार्क के संस्थापक, बाघ एंव तेन्दुओं के पुनर्वासन कार्यक्रम के जनक बिली जीवन पर्यन्त खीरी जनपद के जंगलों के सरंक्षण व सवंर्धन में संघर्षरत रहे। ब्रिटिश-इंडिया में उत्तर-खीरी वन-प्रभाग के समीप सुहेली नदी पर निवास बनाकर वन्य जीवों की सुरक्षा में शिकारियों एंव भ्रष्ट सरकारी तन्त्र से लड़ाइया लड़ते रहे। वन्य जीवन के क्षेत्र में पूरी दुनिया में इनके प्रयोगों की चर्चा रही और आज के बाघ सरंक्षक इनके कार्यों से प्रेरणा लेते आ रहे हैं। .

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बिहार में यातायात

यह लेख बिहार राज्य की सार्वजनिक और निजी परिवहन प्रणाली के बारे में है। .

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बिहार का भूगोल

बिहार 21°58'10" ~ 27°31'15" उत्तरी अक्षांश तथा 82°19'50" ~ 88°17'40" पूर्वी देशांतर के बीच स्थित भारतीय राज्य है। मुख्यतः यह एक हिंदी भाषी राज्य है लेकिन उर्दू, मैथिली, भोजपुरी, मगही, बज्जिका, अंगिका तथा एवं संथाली भी बोली जाती है। राज्य का कुल क्षेत्रफल 94,163 वर्ग किलोमीटर है जिसमें 92,257.51 वर्ग किलोमीटर ग्रामीण क्षेत्र है। 2001 की जनगणना के अनुसार बिहार राज्य की जनसंख्या 8,28,78,796 है जिनमें ६ वर्ष से कम आयु का प्रतिशत 19.59% है। 2002 में झारखंड के अलग हो जाने के बाद बिहार का भूभाग मुख्यतः नदियों के बाढमैदान एवं कृषियोग्य समतल भूमि है। गंगा तथा इसकी सहायक नदियों द्वारा लायी गयी मिट्टियों से बिहार का जलोढ मैदान बना है जिसकी औसत ऊँचाई १७३ फीट है। बिहार का उपग्रह द्वारा लिया गया चित्र .

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बघेलखंड

बघेलखंड की स्थिति बघेलखंड मध्य भारत का एक क्षेत्र है। यह मध्य प्रदेश राज्य के उत्तर-पूर्वी ओर स्थित है। इसमें मध्य प्रदेश के जिले सम्मिलित हैं.

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बघेली

बघेली या बाघेली, हिन्दी की एक बोली है जो भारत के बघेलखण्ड क्षेत्र में बोली जाती है। यह मध्य प्रदेश के रीवा, सतना, सीधी, उमरिया, एवं अनूपपुर में; उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद एवं मिर्जापुर जिलों में तथा छत्तीसगढ़ के बिलासपुर एवं कोरिया जनपदों में बोली जाती है। इसे "बघेलखण्डी", "रिमही" और "रिवई" भी कहा जाता है। .

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बकुलाही नदी

प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश में बहने वाली एक नदी है। उत्तर प्रदेश के कई ज़िले बकुलाही नदी के पावन तट पर बसे हुए है। यह रायबरेली जिले के भरतपुर झील से निकली है। .

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बक्सर का युद्ध

बक्सर का युद्ध २२ अक्टूबर १७६४ में बक्सर नगर के आसपास ईस्ट इंडिया कंपनी के हैक्टर मुनरो और मुगल तथा नबाबों की सेनाओं के बीच लड़ा गया था। बंगाल के नबाब मीर कासिम, अवध के नबाब शुजाउद्दौला, तथा मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय की संयुक्त सेना अंग्रेज कंपनी से लड़ रही थी। लड़ाई में अंग्रेजों की जीत हुई और इसके परिणामस्वरूप पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, उड़ीसा और बांग्लादेश का दीवानी और राजस्व अधिकार अंग्रेज कंपनी के हाथ चला गया। .

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ब्रज कुमार नेहरू

ब्रज कुमार नेहरू, आयसीएस (4 सितम्बर 1909 – 31 अक्टूबर 2001) एक भारतीय राजनयिक और संयुक्त राज्य अमेरिका में भारतीय राजदूत (1961-1968) थे। वो भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के चचेरे भाई बृजलाल और रामेश्वरी नेहरू के पुत्र थे। .

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बेलन घाटी

बेलन नदी घाटी टोंस (तमस) नदी की सहायिका बेलन नदी का प्रवाह क्षेत्र है। बेलन नदी उत्तर प्रदेश राज्य के सोनभद्र जिले से निकल कर, मिर्जापुर जिले से होते हुए, इलाहाबाद जिले में टोंस नदी से मिलती है। टोंस नदी स्वयं गंगा की सहायिका है जो इलाहाबाद के पूर्व में गंगा में मिलती है। बेलन और टोंस का संगम, देवघाट नामक स्थान से कुछ दूरी पर, राष्ट्रीय राजमार्ग 27 के पास होता है, जहाँ या मार्ग टोंस नदी को पार करता है। .

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बोधा

बोधा (जन्म: 1767, मृत्यु: 1806) हिन्दी साहित्य के रीतिकालीन कवि थे। उन्हें विप्रलम्भ (वियोग) शृंगार रस की कविताओं के लिये जाना जाता है। वर्तमान उत्तर प्रदेश में बाँदा जिले के राजापुर ग्राम में जन्मे कवि बोधा का पूरा नाम बुद्धिसेन था। वर्तमान मध्य प्रदेश स्थित तत्कालीन पन्ना रियासत में बुद्धिसेन के कुछ सम्बंधी उच्च पदों पर आसीन थे। इस कारण बोधा को राजकवि का दर्ज़ा प्राप्त था। हिंदी साहित्य का इतिहास नामक हिन्दी ग्रन्थ में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने बोधा के नीति सम्बन्धी अनेक छन्दों का उल्लेख किया है। नकछेदी तिवारी द्वारा सम्पादित पुस्तक बोधा कवि का इश्कनामा में इनकी शृंगारपरक कविताओं को देखा जा सकता है। .

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भदोही

भदोही के गोपीगंज में कार्पेट दिखाता एक विक्रेता भदोही उत्तर प्रदेश का एक जिला है।जिले का मुख्यालय ज्ञानपुर है यह कालीन निर्माण के लिये प्रसिद्ध है। भदोही क्षेत्र बुनकरों का घर है, जहाँ भोले-भाले परस से कितनी कलाकृतियाँ जन्म लेती हैं। बेलबूटेदार कलात्मक रंगों का इन्द्रधनुषी वैभव लिए हुए बेहद लुभावने गलीचे दुनियां के बाजारों में धाक जमाये हुए हैं। करोड़ों रुपये विदेशी मुद्रा अर्जित कराने तथा लाखों लोगों को रोजी रोटी मुहैया कराने वाले भदोही अंचल की अभिव्यक्ति कालीनों के माध्यम से होती है। आकर्षक कालीनों से ही भदोही को विश्व मानचित्र एवं हस्त कला के क्षेत्र में सर्वोच्च स्थान दिया है। .

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भारत पम्प्स ऐण्ड कम्प्रेसर्स

भारत पम्प्स ऐण्ड कम्प्रेसर्स लिमिटेड (Bharat Pumps & Compressors Limited (BPC)) भारत सरकार की एक लघुरत्न कम्पनी है। यह रेसिप्रोकेटिंग पम्प, सेन्ट्रिफ्युगल पम्प, रेसिप्रोकेटिंग कम्प्रेसर, तथा उच्च दाब के सीवनहीन (सीमलेस) गैस सिलिण्डर बनाती है। इसका मुख्यालय इलाहाबाद में है। श्रेणी:भारत सरकार के उपक्रम.

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भारत में ऊष्मा लहर २०१५

भारत में अप्रैल/मई २०१५ ऊष्मा लहर २६ मई तक १००० से अधिक लोगों की मृत्यु हो गयी और विभिन्न क्षेत्र इससे प्रभावित हुये। भारतीय शुष्क मौसम में ऊष्मीय लहरें चलती हैं जिन्हें लू भी कहा जाता है। ये मुख्यतः मार्च से आरम्भ होकर मई तक चलती हैं। .

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भारत में दर्शनशास्त्र

भारत में दर्शनशास्त्र के दशा और दिशा के अध्ययन को हम दो भागों में विभक्त करके कर सकते हैं -.

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भारत में दशलक्ष-अधिक शहरी संकुलनों की सूची

भारत दक्षिण एशिया में एक देश है। भौगोलिक क्षेत्र के अनुसार, वह सातवाँ सबसे बड़ा देश है, और १.२ अरब से अधिक लोगों के साथ, वह दूसरा सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है। भारत में उनतीस राज्य और सात संघ राज्यक्षेत्र हैं। वह विश्व की जनसंख्या के १७.५ प्रतिशत का घर हैं। .

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भारत में धर्म

तवांग में गौतम बुद्ध की एक प्रतिमा. बैंगलोर में शिव की एक प्रतिमा. कर्नाटक में जैन ईश्वरदूत (या जिन) बाहुबली की एक प्रतिमा. 2 में स्थित, भारत, दिल्ली में एक लोकप्रिय पूजा के बहाई हॉउस. भारत एक ऐसा देश है जहां धार्मिक विविधता और धार्मिक सहिष्णुता को कानून तथा समाज, दोनों द्वारा मान्यता प्रदान की गयी है। भारत के पूर्ण इतिहास के दौरान धर्म का यहां की संस्कृति में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। भारत विश्व की चार प्रमुख धार्मिक परम्पराओं का जन्मस्थान है - हिंदू धर्म, जैन धर्म, बौद्ध धर्म तथा सिक्ख धर्म.

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भारत में पर्यटन

हर साल, 3 मिलियन से अधिक पर्यटक आगरा में ताज महल देखने आते हैं। भारत में पर्यटन सबसे बड़ा सेवा उद्योग है, जहां इसका राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 6.23% और भारत के कुल रोज़गार में 8.78% योगदान है। भारत में वार्षिक तौर पर 5 मिलियन विदेशी पर्यटकों का आगमन और 562 मिलियन घरेलू पर्यटकों द्वारा भ्रमण परिलक्षित होता है। 2008 में भारत के पर्यटन उद्योग ने लगभग US$100 बिलियन जनित किया और 2018 तक 9.4% की वार्षिक वृद्धि दर के साथ, इसके US$275.5 बिलियन तक बढ़ने की उम्मीद है। भारत में पर्यटन के विकास और उसे बढ़ावा देने के लिए पर्यटन मंत्रालय नोडल एजेंसी है और "अतुल्य भारत" अभियान की देख-रेख करता है। विश्व यात्रा और पर्यटन परिषद के अनुसार, भारत, सर्वाधिक 10 वर्षीय विकास क्षमता के साथ, 2009-2018 से पर्यटन का आकर्षण केंद्र बन जाएगा.

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भारत में राष्ट्रीय राजमार्गों की सूची - प्रदेश अनुसार

भारत में राष्ट्रीय राजमार्गों का संजाल भारत में राष्ट्रीय राजमार्गों की सूची भारतीय राजमार्ग के क्षेत्र में एक व्यापक सूची देता है, द्वारा अनुरक्षित सड़कों के एक वर्ग भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण। ये लंबे मुख्य में दूरी roadways हैं भारत और के अत्यधिक उपयोग का मतलब है एक परिवहन भारत में। वे में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा भारतीय अर्थव्यवस्था। राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 2 laned (प्रत्येक दिशा में एक), के बारे में 65,000 किमी की एक कुल, जिनमें से 5,840 किमी बदल सकता है गठन में "स्वर्ण Chathuspatha" या स्वर्णिम चतुर्भुज, एक प्रतिष्ठित परियोजना राजग सरकार द्वारा शुरू की श्री अटल बिहारी वाजपेयी.

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भारत में रेलवे स्टेशनों की सूची

शिकोहाबाद तहसील के ग्राम नगला भाट में श्री मुकुट सिंह यादव जो ग्राम पंचायत रूपसपुर से प्रधान भी रहे हैं उनके तीन पुत्र हैं गजेंद्र यादव नगेन्द्र यादव पुष्पेंद्र यादव प्रधान जी का जन्म सन १९५० में हुआ था उन्होंने अपना सारा जीवन ग़रीबों के लिए क़ुर्बान कर दिया था और वो ५ भाईओ में सबसे छोटे थे और अपने परिवार को बाँधे रखा ११ मार्च २०१५ को उनका देहावसान हो गया ! वो आज भी हमारे दिलों में ज़िंदा हैं इस लेख में भारत में रेलवे स्टेशनों की सूची है। भारत में रेलवे स्टेशनों की कुल संख्या 7,000 और 8,500 के बीच अनुमानित है। भारतीय रेलवे एक लाख से अधिक लोगों को रोजगार देने के साथ दुनिया में चौथा सबसे बड़ा नियोक्ता है। सूची तस्वीर गैलरी निम्नानुसार है। .

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भारत में सर्वाधिक जनसंख्या वाले महानगरों की सूची

इस लेख में भारत के सर्वोच्च सौ महानगरीय क्षेत्रों की सूची (२००८ अनुसार) है। इन सौ महानगरों की संयुक्त जनसंख्या राष्ट्र की कुल जनसंख्या का सातवां भाग बनाती है। .

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भारत में स्मार्ट नगर

भारत में स्मार्ट नगर की कल्पना प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की है जिन्होंने देश के १०० नगरों को स्मार्ट नगरों के रूप में विकसित करने का संकल्प किया है। सरकार ने २७ अगस्त २०१५ को ९८ प्रस्तावित स्मार्ट नगरों की सूची जारी कर दी। .

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भारत में सैन्य अकादमियाँ

भारतीय सैन्य सेवा ने पेशेवर सैनिकों को नई पीढ़ी के सैन्य विज्ञान, युद्ध कमान तथा रणनीति और सम्बंधित प्रौद्योगिकियों में प्रशिक्षण देने के उद्देश्य से भारत के विभिन्न हिस्सों में कई प्रतिष्ठित अकादमियों और स्टाफ कॉलेजों की स्थापना की है। .

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भारत में विश्वविद्यालयों की सूची

यहाँ भारत में विश्वविद्यालयों की सूची दी गई है। भारत में सार्वजनिक और निजी, दोनों विश्वविद्यालय हैं जिनमें से कई भारत सरकार और राज्य सरकार द्वारा समर्थित हैं। इनके अलावा निजी विश्वविद्यालय भी मौजूद हैं, जो विभिन्न निकायों और समितियों द्वारा समर्थित हैं। शीर्ष दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालयों के तहत सूचीबद्ध विश्वविद्यालयों में से अधिकांश भारत में स्थित हैं। .

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भारत में अंग्रेज़ी राज

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भारत का भूगोल

भारत का भूगोल या भारत का भौगोलिक स्वरूप से आशय भारत में भौगोलिक तत्वों के वितरण और इसके प्रतिरूप से है जो लगभग हर दृष्टि से काफ़ी विविधतापूर्ण है। दक्षिण एशिया के तीन प्रायद्वीपों में से मध्यवर्ती प्रायद्वीप पर स्थित यह देश अपने ३२,८७,२६३ वर्ग किमी क्षेत्रफल के साथ विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा देश है। साथ ही लगभग १.३ अरब जनसंख्या के साथ यह पूरे विश्व में चीन के बाद दूसरा सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश भी है। भारत की भौगोलिक संरचना में लगभग सभी प्रकार के स्थलरूप पाए जाते हैं। एक ओर इसके उत्तर में विशाल हिमालय की पर्वतमालायें हैं तो दूसरी ओर और दक्षिण में विस्तृत हिंद महासागर, एक ओर ऊँचा-नीचा और कटा-फटा दक्कन का पठार है तो वहीं विशाल और समतल सिन्धु-गंगा-ब्रह्मपुत्र का मैदान भी, थार के विस्तृत मरुस्थल में जहाँ विविध मरुस्थलीय स्थलरुप पाए जाते हैं तो दूसरी ओर समुद्र तटीय भाग भी हैं। कर्क रेखा इसके लगभग बीच से गुजरती है और यहाँ लगभग हर प्रकार की जलवायु भी पायी जाती है। मिट्टी, वनस्पति और प्राकृतिक संसाधनो की दृष्टि से भी भारत में काफ़ी भौगोलिक विविधता है। प्राकृतिक विविधता ने यहाँ की नृजातीय विविधता और जनसंख्या के असमान वितरण के साथ मिलकर इसे आर्थिक, सामजिक और सांस्कृतिक विविधता प्रदान की है। इन सबके बावजूद यहाँ की ऐतिहासिक-सांस्कृतिक एकता इसे एक राष्ट्र के रूप में परिभाषित करती है। हिमालय द्वारा उत्तर में सुरक्षित और लगभग ७ हज़ार किलोमीटर लम्बी समुद्री सीमा के साथ हिन्द महासागर के उत्तरी शीर्ष पर स्थित भारत का भू-राजनैतिक महत्व भी बहुत बढ़ जाता है और इसे एक प्रमुख क्षेत्रीय शक्ति के रूप में स्थापित करता है। .

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भारत का विभाजन

माउण्टबैटन योजना * पाकिस्तान का विभाजन * कश्मीर समस्या .

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भारत का आर्थिक इतिहास

इस्वी सन ०००१ से २००३ ई तक विश्व के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं का अंश; ध्यातव्य है कि १८वीं शताब्दी के पहले तक भारत और चीन विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ थीं भारत का आर्थिक विकास सिंधु घाटी सभ्यता से आरम्भ माना जाता है। सिंधु घाटी सभ्यता की अर्थव्यवस्था मुख्यतः व्यापार पर आधारित प्रतीत होती है जो यातायात में प्रगति के आधार पर समझी जा सकती है। लगभग 600 ई॰पू॰ महाजनपदों में विशेष रूप से चिह्नित सिक्कों को ढ़ालना आरम्भ कर दिया था। इस समय को गहन व्यापारिक गतिविधि एवं नगरीय विकास के रूप में चिह्नित किया जाता है। 300 ई॰पू॰ से मौर्य काल ने भारतीय उपमहाद्वीप का एकीकरण किया। राजनीतिक एकीकरण और सैन्य सुरक्षा ने कृषि उत्पादकता में वृद्धि के साथ, व्यापार एवं वाणिज्य से सामान्य आर्थिक प्रणाली को बढ़ाव मिल। अगले 1500 वर्षों में भारत में राष्ट्रकुट, होयसला और पश्चिमी गंगा जैसे प्रतिष्ठित सभ्यताओं का विकास हुआ। इस अवधि के दौरान भारत को प्राचीन एवं 17वीं सदी तक के मध्ययुगीन विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में आंकलित किया जाता है। इसमें विश्व के की कुल सम्पति का एक तिहाई से एक चौथाई भाग मराठा साम्राज्य के पास था, इसमें यूरोपीय उपनिवेशवाद के दौरान तेजी से गिरावट आयी। आर्थिक इतिहासकार अंगस मैडीसन की पुस्तक द वर्ल्ड इकॉनमी: ए मिलेनियल पर्स्पेक्टिव (विश्व अर्थव्यवस्था: एक हज़ार वर्ष का परिप्रेक्ष्य) के अनुसार भारत विश्व का सबसे धनी देश था और 17वीं सदी तक दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यस्था था। भारत में इसके स्वतंत्र इतिहास में केंद्रीय नियोजन का अनुसरण किया गया है जिसमें सार्वजनिक स्वामित्व, विनियमन, लाल फीताशाही और व्यापार अवरोध विस्तृत रूप से शामिल है। 1991 के आर्थिक संकट के बाद केन्द्र सरकार ने आर्थिक उदारीकरण की नीति आरम्भ कर दी। भारत आर्थिक पूंजीवाद को बढ़ावा देन लग गया और विश्व की तेजी से बढ़ती आर्थिक अर्थव्यवस्थाओं में से एक बनकर उभरा। .

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भारत के दस लाख से अधिक जनसंख्या वाले नगर

* अमृतसर.

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भारत के प्रधान मंत्रियों की सूची

भारत के प्रधानमंत्री भारत गणराज्य की सरकार के मुखिया हैं। भारत के प्रधानमंत्री, का पद, भारत के शासनप्रमुख (शासनाध्यक्ष) का पद है। संविधान के अनुसार, वह भारत सरकार के मुखिया, भारत के राष्ट्रपति, का मुख्य सलाहकार, मंत्रिपरिषद का मुखिया, तथा लोकसभा में बहुमत वाले दल का नेता होता है। वह भारत सरकार के कार्यपालिका का नेतृत्व करता है। भारत की राजनैतिक प्रणाली में, प्रधानमंत्री, मंत्रिमंडल में का वरिष्ठ सदस्य होता है। .

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भारत के प्रमुख हिन्दू तीर्थ

भारत अनादि काल से संस्कृति, आस्था, आस्तिकता और धर्म का महादेश रहा है। इसके हर भाग और प्रान्त में विभिन्न देवी-देवताओं से सम्बद्ध कुछ ऐसे अनेकानेक प्राचीन और (अपेक्षाकृत नए) धार्मिक स्थान (तीर्थ) हैं, जिनकी यात्रा के प्रति एक आम भारतीय नागरिक पर्यटन और धर्म-अध्यात्म दोनों ही आकर्षणों से बंधा इन तीर्थस्थलों की यात्रा के लिए सदैव से उत्सुक रहा है। .

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भारत के प्रमुख अस्पताल

भारत के प्रत्येक मुख्य नगर में सरकार तथा दानी सज्जनों द्वारा स्थापित अनेक अस्पताल हैं। नीचे केवल कुछ प्रमुख तथा विशिष्ट रोगों से पीड़ितों के लिए अस्पतालों के नाम दिए जाते हैं:-- अमृतसर (पंजाब) - पंजाव मेंटल हास्पिटल (केवल मानसिक रोगों की चिकित्सा के लिए); पंजाब डेंटल हास्पिटल (केवल दंतरोग का चिकित्सा स्थान)। इंदौर (मध्यप्रदेश): इन्फ़ेक्शस डिज़ीज़ेज़ हास्पिटल (संक्रामक रोगों की चिकित्सा के लिए); कल्याणमल नर्सिग होम (रोगियों की देखभाल और उपचार के लिए विशिष्ट संस्था); लेपर असाइलम (कुष्ठरोगियों के लिए); मेंटल हास्पिटल (मानसिक रोगों का चिकित्सालय); टी.बी.

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भारत के राष्ट्रीय राजमार्गों की सूची - संख्या अनुसार

भारत के राष्ट्रीय राजमार्गों की सूची (संख्या के क्रम में) भारत के राजमार्गो की एक सूची है। .

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भारत के राष्‍ट्रीय चिन्ह

Indian Signs .

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भारत के राज्यों और संघ क्षेत्रों की राजधानियाँ

यह सूची भारत के राज्यों और केन्द्र-शासित प्रदेशों की राजधानियों की है। भारत में कुल 29 राज्य और 7 केन्द्र-शासित प्रदेश हैं। सभी राज्यों और दो केन्द्र-शासित प्रदेशों, दिल्ली और पौण्डिचेरी, में चुनी हुई सरकारें और विधानसभाएँ होती हैं, जो वॅस्टमिन्स्टर प्रतिमान पर आधारित हैं। अन्य पाँच केन्द्र-शासित प्रदेशों पर देश की केन्द्र सरकार का शासन होता है। 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम के अन्तर्गत राज्यों का निर्माण भाषाई आधार पर किया गया था, और तबसे यह व्यवस्था लगभग अपरिवर्तित रही है। प्रत्येक राज्य और केन्द्र-शासित प्रदेश प्रशासनिक इकाईयों में बँटा होता है। नीचे दी गई सूची में राज्यों और केन्द्र-शासित प्रदेशों की विभिन्न प्रकार की राजधानियाँ सूचीबद्ध हैं। प्रशासनिक राजधानी वह होती है जहाँ कार्यकारी सरकार के कार्यालय स्थित होते हैं, वैधानिक राजधानी वह है जहाँ से राज्य विधानसभा संचालित होती है, और न्यायपालिका राजधानी वह है जहाँ उस राज्य या राज्यक्षेत्र का उच्च न्यायालय स्थित होता है। .

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भारत के शहरों की सूची

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भारत के सर्वाधिक जनसंख्या वाले शहरों की सूची

यह सूचियों भारत के सबसे बड़े शहरों पर है। .

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भारत के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम

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भारत के उच्च न्यायालयों की सूची

भारतीय उच्च न्यायालय भारत के उच्च न्यायालय हैं। भारत में कुल २४ उच्च न्यायालय है जिनका अधिकार क्षेत्र कोई राज्य विशेष या राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों के एक समूह होता हैं। उदाहरण के लिए, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय, पंजाब और हरियाणा राज्यों के साथ केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ को भी अपने अधिकार क्षेत्र में रखता हैं। उच्च न्यायालय भारतीय संविधान के अनुच्छेद २१४, अध्याय ५ भाग ६ के अंतर्गत स्थापित किए गए हैं। न्यायिक प्रणाली के भाग के रूप में, उच्च न्यायालय राज्य विधायिकाओं और अधिकारी के संस्था से स्वतंत्र हैं .

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भारत की जलवायु

भारत की जलवायु में काफ़ी क्षेत्रीय विविधता पायी जाती है और जलवायवीय तत्वों के वितरण पर भारत की कर्क रेखा पर अवस्थिति और यहाँ के स्थलरूपों का स्पष्ट प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। इसमें हिमालय पर्वत और इसके उत्तर में तिब्बत के पठार की स्थिति, थार का मरुस्थल और भारत की हिन्द महासागर के उत्तरी शीर्ष पर अवस्थिति महत्वपूर्ण हैं। हिमालय श्रेणियाँ और हिंदुकुश मिलकर भारत और पाकिस्तान के क्षेत्रों की उत्तर से आने वाली ठंडी कटाबैटिक पवनों से रक्षा करते हैं। यही कारण है कि इन क्षेत्रों में कर्क रेखा के उत्तर स्थित भागों तक उष्णकटिबंधीय जलवायु का विस्तार पाया जाता है। थार का मरुस्थल ग्रीष्म ऋतु में तप्त हो कर एक निम्न वायुदाब केन्द्र बनाता है जो दक्षिण पश्चिमी मानसूनी हवाओं को आकृष्ट करता है और जिससे पूरे भारत में वर्षा होती है। कोपेन के वर्गीकरण का अनुसरण करने पर भारत में छह जलवायु प्रदेश परिलक्षित होते हैं। लेकिन यहाँ यह अवश्य ध्यान रखना चाहिये कि ये प्रदेश भी सामान्यीकरण ही हैं और छोटे और स्थानीय स्तर पर उच्चावच का प्रभाव काफ़ी भिन्न स्थानीय जलवायु की रचना कर सकता है। भारतीय जलवायु में वर्ष में चार ऋतुएँ होती हैं: जाड़ा, गर्मी, बरसात और शरदकाल। तापमान के वितरण मे भी पर्याप्त विविधता देखने को मिलती है। समुद्र तटीय भागों में तापमान में वर्ष भर समानता रहती है लेकिन उत्तरी मैदानों और थार के मरुस्थल में तापमान की वार्षिक रेंज काफ़ी ज्यादा होती है। वर्षा पश्चिमी घाट के पश्चिमी तट पर और पूर्वोत्तर की पहाड़ियों में सर्वाधिक होती है। पूर्वोत्तर में ही मौसिनराम विश्व का सबसे अधिक वार्षिक वर्षा वाला स्थान है। पूरब से पश्चिम की ओर क्रमशः वर्षा की मात्रा घटती जाती है और थार के मरुस्थलीय भाग में काफ़ी कम वर्षा दर्ज की जाती है। भारतीय पर्यावरण और यहाँ की मृदा, वनस्पति तथा मानवीय जीवन पर जलवायु का स्पष्ट प्रभाव है। हाल में वैश्विक तापन और तज्जनित जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की भी चर्चा महत्वपूर्ण हो चली है। मौसम और जलवायु किसी स्थान की दिन-प्रतिदिन की वायुमंडलीय दशा को मौसम कहते हैं और मौसम के ही दीर्घकालिक औसत को जलवायु कहा जाता है। दूसरे शब्दों में मौसम अल्पकालिक वायुमंडलीय दशा को दर्शाता है और जलवायु दीर्घकालिक वायुमंडलीय दशा को दर्शाता है। मौसम व जलवायु दोनों के तत्व समान ही होते हैं, जैसे-तापमान, वायुदाब, आर्द्रता आदि। मौसम में परिवर्तन अल्पसमय में ही हो जाता है और जलवायु में परिवर्तन एक लंबे समय के दौरान होता है। .

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भारत २०१०

इन्हें भी देखें 2014 भारत 2014 विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी 2014 साहित्य संगीत कला 2014 खेल जगत 2014 .

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भारतभूषण अग्रवाल

भारतभूषण अग्रवाल छायावादोत्तर हिंदी कविता के एक सशक्त हस्ताक्षर हैं। वे अज्ञेय द्वारा संपादित तारसप्तक के महत्वपूर्ण कवि हैं। .

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भारती भवन पुस्तकालय

भारती भवन पुस्तकालय इलाहाबाद स्थित हिन्दी और उर्दू का पुस्तकालय है। इसकी स्थापना पण्डित मदन मोहन मालवीय और बालकृष्ण भट्ट ने की थी। पंडित तोताराम सनाढ्य की पुस्तक फिजी द्वीप में मेरे इक्कीश वर्ष भारती भवन द्वारा प्रकाशित कराकर भवन की ख्याति को बढाया। जिनका जन्म 1876 में हिरनगाँव फ़िरोज़ाबाद में हुआ था। श्रेणी:भारत के पुस्तकालय.

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भारतीय चुनाव

चुनाव लोकतंत्र का आधार स्तम्भ हैं। आजादी के बाद से भारत में चुनावों ने एक लंबा रास्ता तय किया है। 1951-52 को हुए आम चुनावों में मतदाताओं की संख्या 17,32,12,343 थी, जो 2014 में बढ़कर 81,45,91,184 हो गई है। 2004 में, भारतीय चुनावों में 670 मिलियन मतदाताओं ने भाग लिया (यह संख्या दूसरे सबसे बड़े यूरोपीय संसदीय चुनावों के दोगुने से अधिक थी) और इसका घोषित खर्च 1989 के मुकाबले तीन गुना बढ़कर $300 मिलियन हो गया। इन चुनावों में दस लाख से अधिक इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों का इस्तेमाल किया गया। 2009 के चुनावों में 714 मिलियन मतदाताओं ने भाग लिया (अमेरिका और यूरोपीय संघ की संयुक्त संख्या से भी अधिक).

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भारतीय थलसेना

भारतीय थलसेना, सेना की भूमि-आधारित दल की शाखा है और यह भारतीय सशस्त्र बल का सबसे बड़ा अंग है। भारत का राष्ट्रपति, थलसेना का प्रधान सेनापति होता है, और इसकी कमान भारतीय थलसेनाध्यक्ष के हाथों में होती है जो कि चार-सितारा जनरल स्तर के अधिकारी होते हैं। पांच-सितारा रैंक के साथ फील्ड मार्शल की रैंक भारतीय सेना में श्रेष्ठतम सम्मान की औपचारिक स्थिति है, आजतक मात्र दो अधिकारियों को इससे सम्मानित किया गया है। भारतीय सेना का उद्भव ईस्ट इण्डिया कम्पनी, जो कि ब्रिटिश भारतीय सेना के रूप में परिवर्तित हुई थी, और भारतीय राज्यों की सेना से हुआ, जो स्वतंत्रता के पश्चात राष्ट्रीय सेना के रूप में परिणत हुई। भारतीय सेना की टुकड़ी और रेजिमेंट का विविध इतिहास रहा हैं इसने दुनिया भर में कई लड़ाई और अभियानों में हिस्सा लिया है, तथा आजादी से पहले और बाद में बड़ी संख्या में युद्ध सम्मान अर्जित किये। भारतीय सेना का प्राथमिक उद्देश्य राष्ट्रीय सुरक्षा और राष्ट्रवाद की एकता सुनिश्चित करना, राष्ट्र को बाहरी आक्रमण और आंतरिक खतरों से बचाव, और अपनी सीमाओं पर शांति और सुरक्षा को बनाए रखना हैं। यह प्राकृतिक आपदाओं और अन्य गड़बड़ी के दौरान मानवीय बचाव अभियान भी चलाते है, जैसे ऑपरेशन सूर्य आशा, और आंतरिक खतरों से निपटने के लिए सरकार द्वारा भी सहायता हेतु अनुरोध किया जा सकता है। यह भारतीय नौसेना और भारतीय वायुसेना के साथ राष्ट्रीय शक्ति का एक प्रमुख अंग है। सेना अब तक पड़ोसी देश पाकिस्तान के साथ चार युद्धों तथा चीन के साथ एक युद्ध लड़ चुकी है। सेना द्वारा किए गए अन्य प्रमुख अभियानों में ऑपरेशन विजय, ऑपरेशन मेघदूत और ऑपरेशन कैक्टस शामिल हैं। संघर्षों के अलावा, सेना ने शांति के समय कई बड़े अभियानों, जैसे ऑपरेशन ब्रासस्टैक्स और युद्ध-अभ्यास शूरवीर का संचालन किया है। सेना ने कई देशो में संयुक्त राष्ट्र के शांति मिशनों में एक सक्रिय प्रतिभागी भी रहा है जिनमे साइप्रस, लेबनान, कांगो, अंगोला, कंबोडिया, वियतनाम, नामीबिया, एल साल्वाडोर, लाइबेरिया, मोज़ाम्बिक और सोमालिया आदि सम्मलित हैं। भारतीय सेना में एक सैन्य-दल (रेजिमेंट) प्रणाली है, लेकिन यह बुनियादी क्षेत्र गठन विभाजन के साथ संचालन और भौगोलिक रूप से सात कमान में विभाजित है। यह एक सर्व-स्वयंसेवी बल है और इसमें देश के सक्रिय रक्षा कर्मियों का 80% से अधिक हिस्सा है। यह 1,200,255 सक्रिय सैनिकों और 909,60 आरक्षित सैनिकों के साथ दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी स्थायी सेना है। सेना ने सैनिको के आधुनिकीकरण कार्यक्रम की शुरुआत की है, जिसे "फ्यूचरिस्टिक इन्फैंट्री सैनिक एक प्रणाली के रूप में" के नाम से जाना जाता है इसके साथ ही यह अपने बख़्तरबंद, तोपखाने और उड्डयन शाखाओं के लिए नए संसाधनों का संग्रह एवं सुधार भी कर रहा है।.

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भारतीय पुनर्नामकरण विवाद

भारत के शहरों का पुनर्नामकरण, स्न 1947 में, अंग्रेज़ोंके भारत छोड़ कर जाने के बाद आरंभ हुआ था, जो आज तक जारी है। कई पुनर्नामकरणों में राजनैतिक विवाद भी हुए हैं। सभी प्रस्ताव लागू भी नहीं हुए हैं। प्रत्येक शहर पुनर्नामकरण को केन्द्रीय सरकार द्वारा अनुमोदित होना चाहिये। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पुनर्नामांकित हुए, मुख्य शहरों में हैं: तिरुवनंतपुरम (पूर्व त्रिवेंद्रम), मुंबई (पूर्व बंबई, या बॉम्बे), चेन्नई (पूर्व मद्रास), कोलकाता (पूर्व कलकत्ता), पुणे (पूर्व पूना) एवं बेंगलुरु (पूर्व बंगलौर)। .

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भारतीय मीडिया

भारत के संचार माध्यम (मीडिया) के अन्तर्गत टेलीविजन, रेडियो, सिनेमा, समाचार पत्र, पत्रिकाएँ, तथा अन्तरजालीय पृष्ट आदि हैं। अधिकांश मीडिया निजी हाथों में है और बड़ी-बड़ी कम्पनियों द्वारा नियंत्रित है। भारत में 70,000 से अधिक समाचार पत्र हैं, 690 उपग्रह चैनेल हैं (जिनमें से 80 समाचार चैनेल हैं)। आज भारत विश्व का सबसे बड़ा समाचार पत्र का बाजार है। प्रतिदिन १० करोड़ प्रतियाँ बिकतीं हैं। .

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भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्षों की सूची

१९३८ के हरिपुरा सम्मेलन में (बाएं से दाएं) महात्मा गांधी, राजेन्द्र प्रसाद, सुभाष चन्द्र बोस और वल्लभ भाई पटेल। गले में फीता पहने बोस इस सम्मेलन के अध्यक्ष थे। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस स्वतंत्र भारत का प्रमुख राजनीतिक दल है और इस की स्थापना स्वतंत्रता से पूर्व १८८५ में हुई थी। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष दल के चुने हुए प्रमुख होते है जो आम जनता के साथ दल के रिश्ते को प्रबंधित करने के लिए जिम्मेदार होते है। .

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भारतीय शिक्षा का इतिहास

शिक्षा का केन्द्र: तक्षशिला का बौद्ध मठ भारतीय शिक्षा का इतिहास भारतीय सभ्यता का भी इतिहास है। भारतीय समाज के विकास और उसमें होने वाले परिवर्तनों की रूपरेखा में शिक्षा की जगह और उसकी भूमिका को भी निरंतर विकासशील पाते हैं। सूत्रकाल तथा लोकायत के बीच शिक्षा की सार्वजनिक प्रणाली के पश्चात हम बौद्धकालीन शिक्षा को निरंतर भौतिक तथा सामाजिक प्रतिबद्धता से परिपूर्ण होते देखते हैं। बौद्धकाल में स्त्रियों और शूद्रों को भी शिक्षा की मुख्य धारा में सम्मिलित किया गया। प्राचीन भारत में जिस शिक्षा व्यवस्था का निर्माण किया गया था वह समकालीन विश्व की शिक्षा व्यवस्था से समुन्नत व उत्कृष्ट थी लेकिन कालान्तर में भारतीय शिक्षा का व्यवस्था ह्रास हुआ। विदेशियों ने यहाँ की शिक्षा व्यवस्था को उस अनुपात में विकसित नहीं किया, जिस अनुपात में होना चाहिये था। अपने संक्रमण काल में भारतीय शिक्षा को कई चुनौतियों व समस्याओं का सामना करना पड़ा। आज भी ये चुनौतियाँ व समस्याएँ हमारे सामने हैं जिनसे दो-दो हाथ करना है। १८५० तक भारत में गुरुकुल की प्रथा चलती आ रही थी परन्तु मकोले द्वारा अंग्रेजी शिक्षा के संक्रमण के कारण भारत की प्राचीन शिक्षा व्यवस्था का अंत हुआ और भारत में कई गुरुकुल तोड़े गए और उनके स्थान पर कान्वेंट और पब्लिक स्कूल खोले गए। .

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भारतीय स्थापत्यकला

सांची का स्तूप अजन्ता गुफा २६ का चैत्य भारत के स्थापत्य की जड़ें यहाँ के इतिहास, दर्शन एवं संस्कृति में निहित हैं। भारत की वास्तुकला यहाँ की परम्परागत एवं बाहरी प्रभावों का मिश्रण है। भारतीय वास्तु की विशेषता यहाँ की दीवारों के उत्कृष्ट और प्रचुर अलंकरण में है। भित्तिचित्रों और मूर्तियों की योजना, जिसमें अलंकरण के अतिरिक्त अपने विषय के गंभीर भाव भी व्यक्त होते हैं, भवन को बाहर से कभी कभी पूर्णतया लपेट लेती है। इनमें वास्तु का जीवन से संबंध क्या, वास्तव में आध्यात्मिक जीवन ही अंकित है। न्यूनाधिक उभार में उत्कीर्ण अपने अलौकिक कृत्यों में लगे हुए देश भर के देवी देवता, तथा युगों पुराना पौराणिक गाथाएँ, मूर्तिकला को प्रतीक बनाकर दर्शकों के सम्मुख अत्यंत रोचक कथाओं और मनोहर चित्रों की एक पुस्तक सी खोल देती हैं। 'वास्तु' शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत के 'वस्' धातु से हुई है जिसका अर्थ 'बसना' होता है। चूंकि बसने के लिये भवन की आवश्यकता होती है अतः 'वास्तु' का अर्थ 'रहने हेतु भवन' है। 'वस्' धातु से ही वास, आवास, निवास, बसति, बस्ती आदि शब्द बने हैं। .

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भारतीय इतिहास तिथिक्रम

भारत के इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाएं तिथिक्रम में।;भारत के इतिहास के कुछ कालखण्ड.

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भारद्वाज आश्रम, इलाहाबाद

इलाहाबाद स्थित यह आश्रम संत भारद्वाज से संबंधित है। कहा जाता है भगवान राम चित्रकूट में बनवास जाने से पहले यहां आए थे। वर्तमान में यहां भारद्वाजेश्वर महादेव, संत भारद्वाज और देवी काली का मंदिर है। श्रेणी:इलाहाबाद के दर्शनीय स्थल.

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भास्कर वर्मन

भास्कर वर्मन का निधानपुर शिलालेख कुमार भास्कर वर्मन (600 - 650) कामरूप के वर्मन राजवंश के शासकों में अन्तिम एवं अन्यतम राजा थे। अपने ज्येष्ठ भ्राता सुप्रतिश्थि वर्मन की मृत्यु के पश्चात उन्होने सत्ता सम्भाली। वे अविवाहित रहे तथा अनका कोई उत्तराधिकारी नहीं था। उनकी मृत्यु के बाद शालस्तम्भ ने कामरूप पर आक्रमण करके सत्ता पर अधिकार कर लिया और शालस्तम्भ राज्य अथवा म्लेच्छ राजवंश की स्थापना की। उत्तर भारत के राजा हर्षवर्धन (या शीलादित्य) कुमार भास्कर वर्मन के समकालीन थे। हर्षवर्धन के साथ उनकी मित्रता थी। उस समय गौड़ देश (या कर्णसुवर्ण, या बंगाल) में शशांक नामक राजा का शासन था। शशांक ने हर्षवर्धन के बड़े भाई राज्यवर्धन की हत्या कर दी। शशांक से अपने भाई की हत्या का प्रतिशोध लेने के लिये हर्षवर्धन ने शशांक के राज्य पर आक्रमण कर दिया। इस आक्रमण के समय कुमार भास्कर वर्मन ने हर्षवर्धन की सहायता की। गौड़ राजा शशांक पराजित हुआ। फलस्वरूप शशांक के राज्य कर्णसुबर्ण तथा गौड़ या पौण्ड्रबर्द्धन, भास्कर वर्मन के अधिकार में आ गये। इसके बाद भास्कर वर्मन विशाल राज्य का स्वामी बन गया। भास्कर वर्मन के समय में कामरूप राज्य की सीमा पश्चिम में बिहार तक और दक्षिण में ओडीसा तक विस्तृत थी। भास्कर वर्मन ने निधानपुर (सिलहट जिला, बांग्लादेश) में अपने शिविर से तांबे की छाप अनुदान जारी किए और इसे एक अवधि के लिए अपने नियंत्रण में रखा। चीनी यात्री युवान् च्वांग ने सातवीं शताब्दी में कामरुप का भ्रमण किया था। अपनी यात्रा के वर्णन में उसने लिखा है कि कामरूप राज्य का विस्तार १६७५ मील था और राजधानी प्राग्ज्योतिषपुर ६ मील विस्तृत थी। यद्यपि भास्कर वर्मन सनातन धर्म के अनुयायी थे किन्तु बौद्ध धर्म के अनुयायियों और बौद्ध भिक्षुओं का सम्मान करते थे। हर्षबर्द्धन, भास्कर वर्मन का यथेष्ट सम्मान करते थे। एक बार युवान् च्वांग के सम्मान के लिये राजा हर्षबर्धन ने प्रयाग में विशाल सभा का आयोजन किया था। जिसमें भारत के सभी विख्यात राजाओं को आमन्त्रित किया गया था। युवान् च्वांग ने यह भी लिखा है कि कामरुप में प्रवेश करने से पहले उसने एक महान नदी कर्तोय् को पार किया। कामरुप के पूर्व में चीनी सीमा के पास पहाड़ियों की एक पंक्ति थी। उन्होंने उल्लेख किया की फसलें नियमित हैं, लोग सत्यनिष्ट हैं और राजा ब्राह्मण हैं। .

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भगवती चरण वर्मा

भगवती चरण वर्मा (३० अगस्त १९०३ - ५ अक्टूबर १९८८) हिन्दी के साहित्यकार थे। उन्हें साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन १९७१ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। .

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भुवनेश्वर प्रसाद श्रीवास्तव

भुवनेश्वर प्रसाद श्रीवास्तव (१९११ - १९५७) हिन्दी साहित्यकार थे। .

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भृङ्गदूतम्

भृंगदूतम् (२००४), (शब्दार्थ:भ्रमर दूत)) जगद्गुरु रामभद्राचार्य (१९५०-) द्वारा दूतकाव्य शैली में रचित एक संस्कृत खण्डकाव्य है। काव्य दो भागों में विभक्त है और इसमें मन्दाक्रान्ता छंद में रचित ५०१ श्लोक हैं। काव्य की कथा रामायण के किष्किन्धाकाण्ड की पृष्ठभूमि पर आधारित है, जिसमें भगवान राम वर्षा ऋतु के चार महीने किष्किन्धा में स्थित प्रवर्षण पर्वत पर सीता के विरह में व्यतीत करते हैं। प्रस्तुत खण्डकाव्य में राम इस अवधि में अपनी पत्नी, सीता, जो की रावण द्वारा लंका में बंदी बना ली गई हैं, को स्मरण करते हुए एक भ्रमर (भौंरा) को दूत बनाकर सीता के लिए संदेश प्रेषित करते हैं। काव्य की एक प्रति स्वयं कवि द्वारा रचित "गुंजन" नामक हिन्दी टीका के साथ, जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय, चित्रकूट, उत्तर प्रदेश द्वारा प्रकाशित की गई थी। पुस्तक का विमोचन ३० अगस्त २००४ को किया गया था। .

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भीमताल (नगर)

भीमताल उत्तराखण्ड राज्य के नैनीताल जनपद में स्थित एक नगर है। .

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मणीन्द्र अग्रवाल

मणीन्द्र अग्रवाल (जन्म: २० मई १९६६, इलाहाबाद) भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर के संगणक विज्ञान एवं अभियान्त्रिकी विभाग में प्रोफेसर है। संगणक विज्ञान के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए सन् २०१३ में भारत सरकार ने उन्हें पद्म श्री प्रदान किया। .

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मत्स्य पुराण

मत्स्य पुराण पुराण में भगवान श्रीहरि के मत्स्य अवतार की मुख्य कथा के साथ अनेक तीर्थ, व्रत, यज्ञ, दान आदि का विस्तृत वर्णन किया गया है। इसमें जल प्रलय, मत्स्य व मनु के संवाद, राजधर्म, तीर्थयात्रा, दान महात्म्य, प्रयाग महात्म्य, काशी महात्म्य, नर्मदा महात्म्य, मूर्ति निर्माण माहात्म्य एवं त्रिदेवों की महिमा आदि पर भी विशेष प्रकाश डाला गया है। चौदह हजार श्लोकों वाला यह पुराण भी एक प्राचीन ग्रंथ है। .

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मथुरा

मथुरा उत्तरप्रदेश प्रान्त का एक जिला है। मथुरा एक ऐतिहासिक एवं धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। लंबे समय से मथुरा प्राचीन भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता का केंद्र रहा है। भारतीय धर्म,दर्शन कला एवं साहित्य के निर्माण तथा विकास में मथुरा का महत्त्वपूर्ण योगदान सदा से रहा है। आज भी महाकवि सूरदास, संगीत के आचार्य स्वामी हरिदास, स्वामी दयानंद के गुरु स्वामी विरजानंद, कवि रसखान आदि महान आत्माओं से इस नगरी का नाम जुड़ा हुआ है। मथुरा को श्रीकृष्ण जन्म भूमि के नाम से भी जाना जाता है। .

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मदनमोहन मालवीय

महामना मदन मोहन मालवीय (25 दिसम्बर 1861 - 1946) काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रणेता तो थे ही इस युग के आदर्श पुरुष भी थे। वे भारत के पहले और अन्तिम व्यक्ति थे जिन्हें महामना की सम्मानजनक उपाधि से विभूषित किया गया। पत्रकारिता, वकालत, समाज सुधार, मातृ भाषा तथा भारतमाता की सेवा में अपना जीवन अर्पण करने वाले इस महामानव ने जिस विश्वविद्यालय की स्थापना की उसमें उनकी परिकल्पना ऐसे विद्यार्थियों को शिक्षित करके देश सेवा के लिये तैयार करने की थी जो देश का मस्तक गौरव से ऊँचा कर सकें। मालवीयजी सत्य, ब्रह्मचर्य, व्यायाम, देशभक्ति तथा आत्मत्याग में अद्वितीय थे। इन समस्त आचरणों पर वे केवल उपदेश ही नहीं दिया करते थे अपितु स्वयं उनका पालन भी किया करते थे। वे अपने व्यवहार में सदैव मृदुभाषी रहे। कर्म ही उनका जीवन था। अनेक संस्थाओं के जनक एवं सफल संचालक के रूप में उनकी अपनी विधि व्यवस्था का सुचारु सम्पादन करते हुए उन्होंने कभी भी रोष अथवा कड़ी भाषा का प्रयोग नहीं किया। भारत सरकार ने २४ दिसम्बर २०१४ को उन्हें भारत रत्न से अलंकृत किया। .

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मन की आवाज-प्रतिज्ञा

प्रतिज्ञा धारावाहिक सामाजिक कुप्रथाओं एवं कुरीतियों के बारे में दर्शकों की सोच बदलने का एक प्रयास है। .

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मनोविज्ञान का इतिहास तथा शाखाएँ

आधुनिक मनोविज्ञान की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में इसके दो सुनिश्चित रूप दृष्टिगोचर होते हैं। एक तो वैज्ञानिक अनुसंधानों तथा आविष्कारों द्वारा प्रभावित वैज्ञानिक मनोविज्ञान तथा दूसरा दर्शनशास्त्र द्वारा प्रभावित दर्शन मनोविज्ञान। वैज्ञानिक मनोविज्ञान 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध से आरंभ हुआ है। सन् 1860 ई में फेक्नर (1801-1887) ने जर्मन भाषा में "एलिमेंट्स आव साइकोफ़िज़िक्स" (इसका अंग्रेजी अनुवाद भी उपलब्ध है) नामक पुस्तक प्रकाशित की, जिसमें कि उन्होंने मनोवैज्ञानिक समस्याओं को वैज्ञानिक पद्धति के परिवेश में अध्ययन करने की तीन विशेष प्रणालियों का विधिवत् वर्णन किया: मध्य त्रुटि विधि, न्यूनतम परिवर्तन विधि तथा स्थिर उत्तेजक भेद विधि। आज भी मनोवैज्ञानिक प्रयोगशालाओं में इन्हीं प्रणालियों के आधार पर अनेक महत्वपूर्ण अनुसंधान किए जाते हैं। वैज्ञानिक मनोविज्ञान में फेक्नर के बाद दो अन्य महत्वपूर्ण नाम है: हेल्मोलत्स (1821-1894) तथा विल्हेम वुण्ट (1832-1920) हेल्मोलत्स ने अनेक प्रयोगों द्वारा दृष्टीर्द्रिय विषयक महत्वपूर्ण नियमों का प्रतिपादन किया। इस संदर्भ में उन्होंने प्रत्यक्षीकरण पर अनुसंधान कार्य द्वारा मनोविज्ञान का वैज्ञानिक अस्तित्व ऊपर उठाया। वुंट का नाम मनोविज्ञान में विशेष रूप से उल्लेखनीय है। उन्होंने सन् 1879 ई में लाइपज़िग (जर्मनी) में मनोविज्ञान की प्रथम प्रयोगशाला स्थापित की। मनोविज्ञान का औपचारिक रूप परिभाषित किया। मनोविज्ञान अनुभव का विज्ञान है, इसका उद्देश्य चेतनावस्था की प्रक्रिया के तत्त्वों का विश्लेषण, उनके परस्पर संबंधों का स्वरूप तथा उन्हें निर्धारित करनेवाले नियमों का पता लगाना है। लाइपज़िग की प्रयोगशाला में वुंट तथा उनके सहयोगियों ने मनोविज्ञान की विभिन्न समस्याओं पर उल्लेखनीय प्रयोग किए, जिसमें समयअभिक्रिया विषयक प्रयोग विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं। क्रियाविज्ञान के विद्वान् हेरिंग (1834-1918), भौतिकी के विद्वान् मैख (1838-1916) तथा जी ई. म्यूलर (1850 से 1934) के नाम भी उल्लेखनीय हैं। हेरिंग घटना-क्रिया-विज्ञान के प्रमुख प्रवर्तकों में से थे और इस प्रवृत्ति का मनोविज्ञान पर प्रभाव डालने का काफी श्रेय उन्हें दिया जा सकता है। मैख ने शारीरिक परिभ्रमण के प्रत्यक्षीकरण पर अत्यंत प्रभावशाली प्रयोगात्मक अनुसंधान किए। उन्होंने साथ ही साथ आधुनिक प्रत्यक्षवाद की बुनियाद भी डाली। जीदृ ई. म्यूलर वास्तव में दर्शन तथा इतिहास के विद्यार्थी थे किंतु फेक्नर के साथ पत्रव्यवहार के फलस्वरूप उनका ध्यान मनोदैहिक समस्याओं की ओर गया। उन्होंने स्मृति तथा दृष्टींद्रिय के क्षेत्र में मनोदैहिकी विधियों द्वारा अनुसंधान कार्य किया। इसी संदर्भ में उन्होंने "जास्ट नियम" का भी पता लगाया अर्थात् अगर समान शक्ति के दो साहचर्य हों तो दुहराने के फलस्वरूप पुराना साहचर्य नए की अपेक्षा अधिक दृढ़ हो जाएगा ("जास्ट नियम" म्यूलर के एक विद्यार्थी एडाल्फ जास्ट के नाम पर है)। मनोविज्ञान पर वैज्ञानिक प्रवृत्ति के साथ साथ दर्शनशास्त्र का भी बहुत अधिक प्रभाव पड़ा है। वास्तव में वैज्ञानिक परंपरा बाद में आरंभ हुई। पहले तो प्रयोग या पर्यवेक्षण के स्थान पर विचारविनिमय तथा चिंतन समस्याओं को सुलझाने की सर्वमान्य विधियाँ थीं। मनोवैज्ञानिक समस्याओं को दर्शन के परिवेश में प्रतिपादित करनेवाले विद्वानों में से कुछ के नाम उल्लेखनीय हैं। डेकार्ट (1596-1650) ने मनुष्य तथा पशुओं में भेद करते हुए बताया कि मनुष्यों में आत्मा होती है जबकि पशु केवल मशीन की भाँति काम करते हैं। आत्मा के कारण मनुष्य में इच्छाशक्ति होती है। पिट्यूटरी ग्रंथि पर शरीर तथा आत्मा परस्पर एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। डेकार्ट के मतानुसार मनुष्य के कुछ विचार ऐसे होते हैं जिन्हे जन्मजात कहा जा सकता है। उनका अनुभव से कोई संबंध नहीं होता। लायबनीत्स (1646-1716) के मतानुसार संपूर्ण पदार्थ "मोनैड" इकाई से मिलकर बना है। उन्होंने चेतनावस्था को विभिन्न मात्राओं में विभाजित करके लगभग दो सौ वर्ष बाद आनेवाले फ्रायड के विचारों के लिये एक बुनियाद तैयार की। लॉक (1632-1704) का अनुमान था कि मनुष्य के स्वभाव को समझने के लिये विचारों के स्रोत के विषय में जानना आवश्यक है। उन्होंने विचारों के परस्पर संबंध विषयक सिद्धांत प्रतिपादित करते हुए बताया कि विचार एक तत्व की तरह होते हैं और मस्तिष्क उनका विश्लेषण करता है। उनका कहना था कि प्रत्येक वस्तु में प्राथमिक गुण स्वयं वस्तु में निहित होते हैं। गौण गुण वस्तु में निहित नहीं होते वरन् वस्तु विशेष के द्वारा उनका बोध अवश्य होता है। बर्कले (1685-1753) ने कहा कि वास्तविकता की अनुभूति पदार्थ के रूप में नहीं वरन् प्रत्यय के रूप में होती है। उन्होंने दूरी की संवेदनाके विषय में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि अभिबिंदुता धुँधलेपन तथा स्वत: समायोजन की सहायता से हमें दूरी की संवेदना होती है। मस्तिष्क और पदार्थ के परस्पर संबंध के विषय में लॉक का कथन था कि पदार्थ द्वारा मस्तिष्क का बोध होता है। ह्यूम (1711-1776) ने मुख्य रूप से "विचार" तथा "अनुमान" में भेद करते हुए कहा कि विचारों की तुलना में अनुमान अधिक उत्तेजनापूर्ण तथा प्रभावशाली होते हैं। विचारों को अनुमान की प्रतिलिपि माना जा सकता है। ह्यूम ने कार्य-कारण-सिद्धांत के विषय में अपने विचार स्पष्ट करते हुए आधुनिक मनोविज्ञान को वैज्ञानिक पद्धति के निकट पहुँचाने में उल्लेखनीय सहायता प्रदान की। हार्टले (1705-1757) का नाम दैहिक मनोवैज्ञानिक दार्शनिकों में रखा जा सकता है। उनके अनुसार स्नायु-तंतुओं में हुए कंपन के आधार पर संवेदना होती है। इस विचार की पृष्ठभूमि में न्यूटन के द्वारा प्रतिपादित तथ्य थे जिनमें कहा गया था कि उत्तेजक के हटा लेने के बाद भी संवेदना होती रहती है। हार्टले ने साहचर्य विषयक नियम बताते हुए सान्निध्य के सिद्धांत पर अधिक जोर दिया। हार्टले के बाद लगभग 70 वर्ष तक साहचर्यवाद के क्षेत्र में कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं हुआ। इस बीच स्काटलैंड में रीड (1710-1796) ने वस्तुओं के प्रत्यक्षीकरण का वर्णन करते हुए बताया कि प्रत्यक्षीकरण तथा संवेदना में भेद करना आवश्यक है। किसी वस्तु विशेष के गुणों की संवेदना होती है जबकि उस संपूर्ण वस्तु का प्रत्यक्षीकरण होता है। संवेदना केवल किसी वस्तु के गुणों तक ही सीमित रहती है, किंतु प्रत्यक्षीकरण द्वारा हमें उस पूरी वस्तु का ज्ञान होता है। इसी बीच फ्रांस में कांडिलैक (1715-1780) ने अनुभववाद तथा ला मेट्री ने भौतिकवाद की प्रवृत्तियों की बुनियाद डाली। कांडिलैंक का कहना था कि संवेदन ही संपूर्ण ज्ञान का "मूल स्त्रोत" है। उन्होंने लॉक द्वारा बताए गए विचारों अथवा अनुभवों को बिल्कुल आवश्यक नहीं समझा। ला मेट्री (1709-1751) ने कहा कि विचार की उत्पत्ति मस्तिष्क तथा स्नायुमंडल के परस्पर प्रभाव के फलस्वरूप होती है। डेकार्ट की ही भाँति उन्होंने भी मनुष्य को एक मशीन की तरह माना। उनका कहना था कि शरीर तथा मस्तिष्क की भाँति आत्मा भी नाशवान् है। आधुनिक मनोविज्ञान में प्रेरकों की बुनियाद डालते हुए ला मेट्री ने बताया कि सुखप्राप्ति ही जीवन का चरम लक्ष्य है। जेम्स मिल (1773-1836) तथा बाद में उनके पुत्र जान स्टुअर्ट मिल (1806-1873) ने मानसिक रसायनी का विकास किया। इन दोनों विद्वानों ने साहचर्यवाद की प्रवृत्ति को औपचारिक रूप प्रदान किया और वुंट के लिये उपयुक्त पृष्ठभूमि तैयार की। बेन (1818-1903) के बारे में यही बात लागू होती है। कांट समस्याओं के समाधान में व्यक्तिनिष्ठावाद की विधि अपनाई कि बाह्य जगत् के प्रत्यक्षीकरण के सिद्धांत में जन्मजातवाद का समर्थन किया। हरबार्ट (1776-1841) ने मनोविज्ञान को एक स्वरूप प्रदान करने में महत्वपूण्र योगदान किया। उनके मतानुसार मनोविज्ञान अनुभववाद पर आधारित एक तात्विक, मात्रात्मक तथा विश्लेषात्मक विज्ञान है। उन्होंने मनोविज्ञान को तात्विक के स्थान पर भौतिक आधार प्रदान किया और लॉत्से (1817-1881) ने इसी दिशा में ओर आगे प्रगति की। मनोवैज्ञानिक समस्याओं के वैज्ञानिक अध्ययन का शुभारंभ उनके औपचारिक स्वरूप आने के बाद पहले से हो चुका था। सन् 1834 में वेबर ने स्पर्शेन्द्रिय संबंधी अपने प्रयोगात्मक शोधकार्य को एक पुस्तक रूप में प्रकाशित किया। सन् 1831 में फेक्नर स्वयं एकदिश धारा विद्युत् के मापन के विषय पर एक अत्यंत महत्वपूर्ण लेख प्रकाशित कर चुके थे। कुछ वर्षों बाद सन् 1847 में हेल्मो ने ऊर्जा सरंक्षण पर अपना वैज्ञानिक लेख लोगों के सामने रखा। इसके बाद सन् 1856 ई., 1860 ई. तथा 1866 ई. में उन्होंने "आप्टिक" नामक पुस्तक तीन भागों में प्रकाशित की। सन् 1851 ई. तथा सन् 1860 ई. में फेक्नर ने भी मनोवैज्ञानिक दृष्टि से दो महत्वपूर्ण ग्रंथ ('ज़ेंड आवेस्टा' तथा 'एलिमेंटे डेयर साईकोफ़िजिक') प्रकाशित किए। सन् 1858 ई में वुंट हाइडलवर्ग विश्वविद्यालय में चिकित्सा विज्ञान में डाक्टर की उपधि प्राप्त कर चुके थे और सहकारी पद पर क्रियाविज्ञान के क्षेत्र में कार्य कर रहे थे। उसी वर्ष वहाँ बॉन से हेल्मोल्त्स भी आ गए। वुंट के लिये यह संपर्क अत्यंत महत्वपूर्ण था क्योंकि इसी के बाद उन्होंने क्रियाविज्ञान छोड़कर मनोविज्ञान को अपना कार्यक्षेत्र बनाया। वुंट ने अनगिनत वैज्ञानिक लेख तथा अनेक महत्वपूर्ण पुस्तक प्रकाशित करके मनोविज्ञान को एक धुँधले एवं अस्पष्ट दार्शनिक वातावरण से बाहर निकाला। उसने केवल मनोवैज्ञानिक समस्याओं को वैज्ञानिक परिवेश में रखा और उनपर नए दृष्टिकोण से विचार एवं प्रयोग करने की प्रवृत्ति का उद्घाटन किया। उसके बाद से मनोविज्ञान को एक विज्ञान माना जाने लगा। तदनंतर जैसे जैसे मरीज वैज्ञानिक प्रक्रियाओं पर प्रयोग किए गए वैसे वैसे नई नई समस्याएँ सामने आईं। व्यवहार विषयक नियमों की खोज ही मनोविज्ञान का मुख्य ध्येय था। सैद्धांतिक स्तर पर विभिन्न दृष्टिकोण प्रस्तुत किए गए। सन् 1912 ई. के आसपास मनोविज्ञान के क्षेत्र में संरचनावाद, क्रियावाद, व्यवहारवाद, गेस्टाल्टवाद तथा मनोविश्लेषण आदि मुख्य मुख्य शाखाओं का विकास हुआ। इन सभी वादों के प्रवर्तक इस विषय में एकमत थे कि मनुष्य के व्यवहार का वैज्ञानिक अध्ययन ही मनोविज्ञान का उद्देश्य है। उनमें परस्पर मतभेद का विषय था कि इस उद्देश्य को प्राप्त करने का सबसे अच्छा ढंग कौन सा है। सरंचनावाद के अनुयायियों का मत था कि व्यवहार की व्याख्या के लिये उन शारीरिक संरचनाओं को समझना आवश्यक है जिनके द्वारा व्यवहार संभव होता है। क्रियावाद के माननेवालों का कहना था कि शारीरिक संरचना के स्थान पर प्रेक्षण योग्य तथा दृश्यमान व्यवहार पर अधिक जोर होना चाहिए। इसी आधार पर बाद में वाटसन ने व्यवहारवाद की स्थापना की। गेस्टाल्टवादियों ने प्रत्यक्षीकरण को व्यवहारविषयक समस्याओं का मूल आधार माना। व्यवहार में सुसंगठित रूप से व्यवस्था प्राप्त करने की प्रवृत्ति मुख्य है, ऐसा उनका मत था। फ्रायड ने मनोविश्लेषणवाद की स्थापना द्वारा यह बताने का प्रयास किया कि हमारे व्यवहार के अधिकांश कारण अचेतन प्रक्रियाओं द्वारा निर्धारित होते हैं। आधुनिक मनोविज्ञान में इन सभी "वादों" का अब एकमात्र ऐतिहासिक महत्व रह गया है। इनके स्थान पर मनोविज्ञान में अध्ययन की सुविधा के लिये विभिन्न शाखाओं का विभाजन हो गया है। प्रयोगात्मक मनोविज्ञान में मुख्य रूप से उन्हीं समस्याओं का मनोवैज्ञानिक विधि से अध्ययन किया जाने लगा जिन्हें दार्शनिक पहले चिंतन अथवा विचारविमर्श द्वारा सुलझाते थे। अर्थात् संवेदन तथा प्रत्यक्षीकरण। बाद में इसके अंतर्गत सीखने की प्रक्रियाओं का अध्ययन भी होने लगा। प्रयोगात्मक मनोविज्ञान आधुनिक मनोविज्ञान की प्राचीनतम शाखा है। मनुष्य की अपेक्षा पशुओं को अधिक नियंत्रित परिस्थितियों में रखा जा सकता है, साथ ही साथ पशुओं की शारीरिक रचना भी मनुष्य की भाँति जटिल नहीं होती। पशुओं पर प्रयोग करके व्यवहार संबंधी नियमों का ज्ञान सुगमता से हो सकता है। सन् 1912 ई. के लगभग थॉर्नडाइक ने पशुओं पर प्रयोग करके तुलनात्मक अथवा पशु मनोविज्ञान का विकास किया। किंतु पशुओं पर प्राप्त किए गए परिणाम कहाँ तक मनुष्यों के विषय में लागू हो सकते हैं, यह जानने के लिये विकासात्मक क्रम का ज्ञान भी आवश्यक था। इसके अतिरिक्त व्यवहार के नियमों का प्रतिपादन उसी दशा में संभव हो सकता है जब कि मनुष्य अथवा पशुओं के विकास का पूर्ण एवं उचित ज्ञान हो। इस संदर्भ को ध्यान में रखते हुए विकासात्मक मनोविज्ञान का जन्म हुआ। सन् 1912 ई. के कुछ ही बाद मैक्डूगल (1871-1938) के प्रयत्नों के फलस्वरूप समाज मनोविज्ञान की स्थापना हुई, यद्यपि इसकी बुनियाद समाज वैज्ञानिक हरबर्ट स्पेंसर (1820-1903) द्वारा बहुत पहले रखी जा चुकी थी। धीरे-धीरे ज्ञान की विभिन्न शाखाओं पर मनोविज्ञान का प्रभाव अनुभव किया जाने लगा। आशा व्यक्त की गई कि मनोविज्ञान अन्य विषयों की समस्याएँ सुलझाने में उपयोगी हो सकता है। साथ ही साथ, अध्ययन की जानेवाली समस्याओं के विभिन्न पक्ष सामने आए। परिणामस्वरूप मनोविज्ञान की नई नई शाखाओं का विकास होता गया। आज मनोविज्ञान की लगभग 12 शाखाएँ हैं। इनमें से कुछ ने अभी हाल में ही जन्म लिया है, जिनमें प्रेरक मनोविज्ञान, सत्तात्मक मनोविज्ञान, गणितीय मनोविज्ञान विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। आजकल रूस में अनुकूलन तथा अंतरिक्ष मनोविज्ञान में काफी काम हो रहा है। अमरीका में लगभग सभी क्षेत्रों में शोधकार्य हो रहा है। संमोहन तथा प्रेरक मनोविज्ञान में अपेक्षाकृत कुछ अधिक काम किया जा रहा है। परा-इंद्रीय प्रत्यक्षीकरण की तरफ मनोवैज्ञानिकों के सामान्य दृष्टिकोण में कोई उल्लेखनीय परिवर्तन नहीं हुआ है। आज भी इस क्षेत्र में पर्याप्त वैज्ञानिक तथ्यों एवं प्रमाणों का अभाव है। किंतु ड्यूक विश्वविद्यालय (अमरीका) में डा राईन के निदेशन में इस क्षेत्र में बराबर काम हो रहा है। एशिया में जापान मनोविज्ञान के क्षेत्र में सबसे आगे बढ़ा हुआ है। समाज मनोविज्ञान तथा प्रयोगात्मक मनोविज्ञान के साथ साथ वहाँ ज़ेन बुद्धवाद का प्रभाव भी दृष्टिगोचर होता है। .

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मलूकदास

मलूकदास (संo १६३१ की वैशाख बदी ५ - सं. १७३९ वैशाख बदी १४) एक सन्त कवि थे। उनका जन्म, संo १६३१ की वैशाख बदी ५ को, कड़ा (जिo इलाहाबाद) के कक्कड़ खत्री सुंदरदास के घर हुआ था। इनका पूर्वनाम 'मल्लु' था और इनके तीन भाइयों के नाम क्रमश: हरिश्चंद्र, शृंगार तथा रामचंद्र थे। इनकी 'परिचई' के लेखक तथा इनके भांजे एवं शिष्य मथुरादास के अनुसार इनके पितामह जहरमल थे और इनके प्रपितामह का नाम वेणीराम था। उनका कहना है कि मल्लू अपने बचपन से ही अत्यंत उदार एवं कोमल हृदय के थे तथा इनमें भक्तों के लक्षण पाए जाने लगे थे। यह बात इनके माता पिता पसंद नहीं करते थे और जीविकोपार्जन की ओर प्रवृत्त करने के उद्देश्य से, उन्होंने इन्हें केवल बेचने का काम सौंपा था परंतु इसमें उन्हें सफलता नहीं मिल सकी और बहुधा मंगतों को दिए जानेवाले कंबल आदि का हाल सुनकर उन्हें और भी क्लेश होने लगा। बालक मल्लू को दी गई किसी शिक्षा का विवरण हमें उपलब्ध नहीं है और ऐसा अनुमान किया जाता है कि ये अधिक शिक्षित न रहे होंगे। कहते हैं, इनके प्रथम गुरु कोई पुरुषोत्तम थे जो देवनाथ के पुत्र थे और पीछे इन्होंने मुरारिस्वामी से दीक्षा ग्रहण की जिनके विषय में इन्होंने स्वयं भी कहा है, मुझे मुरारि जी सतगुरु मिल गए जिन्होंने मेरे ऊपर विश्वास की छाप लगा दी, (सुखसागर पृo १९२)। अभी तक पाए गए संकेतों के आधार पर कहा जा सकता है कि इनका विवाह संभवत: १२ वर्ष की अवस्था के अनंतर ही हुआ होगा। इनकी पत्नी का नाम ज्ञात नहीं। इनके देशभ्रमण की चर्चा करते समय केवल पुरी, दिल्ली एवं कालपी जैसे स्थानों के ही नाम विशेष रूप से लिए जाते हैं और अनुमान किया जाता है कि यह पर्यटन कार्य भी इन्होंने अधिकतर उस समय किया होगा जब ये वृद्ध हो चले थे तथा जब ये अपने मत का उपदेश भी देने लगे थे। सं.

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महादेवी वर्मा

महादेवी वर्मा (२६ मार्च १९०७ — ११ सितंबर १९८७) हिन्दी की सर्वाधिक प्रतिभावान कवयित्रियों में से हैं। वे हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक मानी जाती हैं। आधुनिक हिन्दी की सबसे सशक्त कवयित्रियों में से एक होने के कारण उन्हें आधुनिक मीरा के नाम से भी जाना जाता है। कवि निराला ने उन्हें “हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती” भी कहा है। महादेवी ने स्वतंत्रता के पहले का भारत भी देखा और उसके बाद का भी। वे उन कवियों में से एक हैं जिन्होंने व्यापक समाज में काम करते हुए भारत के भीतर विद्यमान हाहाकार, रुदन को देखा, परखा और करुण होकर अन्धकार को दूर करने वाली दृष्टि देने की कोशिश की। न केवल उनका काव्य बल्कि उनके सामाजसुधार के कार्य और महिलाओं के प्रति चेतना भावना भी इस दृष्टि से प्रभावित रहे। उन्होंने मन की पीड़ा को इतने स्नेह और शृंगार से सजाया कि दीपशिखा में वह जन-जन की पीड़ा के रूप में स्थापित हुई और उसने केवल पाठकों को ही नहीं समीक्षकों को भी गहराई तक प्रभावित किया। उन्होंने खड़ी बोली हिन्दी की कविता में उस कोमल शब्दावली का विकास किया जो अभी तक केवल बृजभाषा में ही संभव मानी जाती थी। इसके लिए उन्होंने अपने समय के अनुकूल संस्कृत और बांग्ला के कोमल शब्दों को चुनकर हिन्दी का जामा पहनाया। संगीत की जानकार होने के कारण उनके गीतों का नाद-सौंदर्य और पैनी उक्तियों की व्यंजना शैली अन्यत्र दुर्लभ है। उन्होंने अध्यापन से अपने कार्यजीवन की शुरूआत की और अंतिम समय तक वे प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्या बनी रहीं। उनका बाल-विवाह हुआ परंतु उन्होंने अविवाहित की भांति जीवन-यापन किया। प्रतिभावान कवयित्री और गद्य लेखिका महादेवी वर्मा साहित्य और संगीत में निपुण होने के साथ-साथ कुशल चित्रकार और सृजनात्मक अनुवादक भी थीं। उन्हें हिन्दी साहित्य के सभी महत्त्वपूर्ण पुरस्कार प्राप्त करने का गौरव प्राप्त है। भारत के साहित्य आकाश में महादेवी वर्मा का नाम ध्रुव तारे की भांति प्रकाशमान है। गत शताब्दी की सर्वाधिक लोकप्रिय महिला साहित्यकार के रूप में वे जीवन भर पूजनीय बनी रहीं। वर्ष २००७ उनकी जन्म शताब्दी के रूप में मनाया गया।२७ अप्रैल १९८२ को भारतीय साहित्य में अतुलनीय योगदान के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार से इन्हें सम्मानित किया गया था। गूगल ने इस दिवस की याद में वर्ष २०१८ में गूगल डूडल के माध्यम से मनाया । .

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महानदी

छत्तीसगढ़ तथा उड़ीसा अंचल की सबसे बड़ी नदी है। प्राचीनकाल में महानदी का नाम चित्रोत्पला था। महानन्दा एवं नीलोत्पला भी महानदी के ही नाम हैं। महानदी का उद्गम रायपुर के समीप धमतरी जिले में स्थित सिहावा नामक पर्वत श्रेणी से हुआ है। महानदी का प्रवाह दक्षिण से उत्तर की तरफ है। सिहावा से निकलकर राजिम में यह जब पैरी और सोढुल नदियों के जल को ग्रहण करती है तब तक विशाल रूप धारण कर चुकी होती है। ऐतिहासिक नगरी आरंग और उसके बाद सिरपुर में वह विकसित होकर शिवरीनारायण में अपने नाम के अनुरुप महानदी बन जाती है। महानदी की धारा इस धार्मिक स्थल से मुड़ जाती है और दक्षिण से उत्तर के बजाय यह पूर्व दिशा में बहने लगती है। संबलपुर में जिले में प्रवेश लेकर महानदी छ्त्तीसगढ़ से बिदा ले लेती है। अपनी पूरी यात्रा का आधे से अधिक भाग वह छत्तीसगढ़ में बिताती है। सिहावा से निकलकर बंगाल की खाड़ी में गिरने तक महानदी लगभग ८५५ कि॰मी॰ की दूरी तय करती है। छत्तीसगढ़ में महानदी के तट पर धमतरी, कांकेर, चारामा, राजिम, चम्पारण, आरंग, सिरपुर, शिवरी नारायण और उड़ीसा में सम्बलपुर, बलांगीर, कटक आदि स्थान हैं तथा पैरी, सोंढुर, शिवनाथ, हसदेव, अरपा, जोंक, तेल आदि महानदी की प्रमुख सहायक नदियाँ हैं। महानदी का डेल्टा कटक नगर से लगभग सात मील पहले से शुरू होता है। यहाँ से यह कई धाराओं में विभक्त हो जाती है तथा बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। इस पर बने प्रमुख बाँध हैं- रुद्री, गंगरेल तथा हीराकुंड। यह नदी पूर्वी मध्यप्रदेश और उड़ीसा की सीमाओं को भी निर्धारित करती है। .

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महाभारत कालीन जनपद

महाभारत कालीन जनपद .

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महाजनपद

महाजनपद, प्राचीन भारत में राज्य या प्रशासनिक इकाईयों को कहते थे। उत्तर वैदिक काल में कुछ जनपदों का उल्लेख मिलता है। बौद्ध ग्रंथों में इनका कई बार उल्लेख हुआ है। 6वीं-5वीं शताब्दी ईसापूर्व को प्रारंभिक भारतीय इतिहास में एक प्रमुख मोड़ के रूप में माना जाता है; जहाँ सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के बाद भारत के पहले बड़े शहरों के उदय के साथ-साथ श्रमण आंदोलनों (बौद्ध धर्म और जैन धर्म सहित) का उदय हुआ, जिसने वैदिक काल के धार्मिक कट्टरपंथ को चुनौती दी। पुरातात्विक रूप से, यह अवधि उत्तरी काले पॉलिश वेयर संस्कृति के हिस्सा रहे है। .

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महावतार बाबाजी

एक भारतीय संत को लाहिड़ी महाशय और उनके अनेक चेलों ने महावतार बाबाजी का नाम दिया जो 1861 और 1935 के बीच महावतार बाबाजी से मिले। प्रार्थना इन भेंटों में से कुछ का वर्णन परमहंस योगानन्द ने अपनी पुस्तक एक योगी की आत्मकथा (1946) में किया है इसमें योगानन्द की महावतार बाबाजी के साथ स्वंय की भेट का प्रत्यक्ष वर्णन भी शामिल है।योगानन्द, परमहंस, एक योगी की आत्मकथा, 2005.

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महेन्द्रनाथ मंदिर , सिवान , बिहार

बिहार राज्य के सीवान जिला से लगभग 35 किमी दूर सिसवन प्रखण्ड के अतिप्रसिद्ध मेंहदार गांव में स्थित भगवान शिव के प्राचीन महेंद्रनाथ मन्दिर का निर्माण नेपाल नरेश महेंद्रवीर विक्रम सहदेव सत्रहवीं शताब्दी में करवाया था और इसका नाम महेंद्रनाथ रखा था। ऐसी मान्यता है कि मेंहदार के शिवलिंग पर जलाभिषेक करने पर नि:संतानों को संतान व चर्म रोगियों को चर्म रोग रोग से निजात मिल जाती है । .

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महेंद्र भटनागर

डॉ महेंद्र भटनागर (Mahendra Bhatnagar जन्म 26 जून,1926) भारतीय समाजार्थिक-राष्ट्रीय-राजनीतिक चेतना-सम्पन्न द्वि-भाषिक (हिन्दी एवं अंग्रेजी) कवि एवं लेखक हैं। ये सन् 1946 से प्रगतिवादी काव्यान्दोलन से सक्रिय रूप से सम्बद्ध प्रगतिशील हिन्दी कविता के द्वितीय उत्थान के चर्चित हस्ताक्षरों में से एक हैं। .

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माझी जाति

माझी जाति का तात्पर्य नाव चलाने वाले से है। मल्लाह, केवट, नाविक इसके पर्यायवाची हैं। ये विश्वास करते हैं कि इनके पूर्वज पहले गंगा के तटों पर या वाराणसी अथवा इलाहाबाद में रहते थे। बाद में यह जाति मध्य प्रदेश के शहडोल, रीवा, सतना, पन्ना, छतरपुर और टीकमगढ़ ज़िलों में आकर बस गयी। सन 1981 की जनगणना के अनुसार मध्य प्रदेश में माझी समुदाय की कुल जनसंख्या 11,074 है। इनके बोलचाल की भाषा बुन्देली है। ये देवनागरी लिपि का उपयोग करते हैं। ये सर्वाहारी होते हैं तथा मछली, बकरा एवं सुअर का गोश्त खाते हैं। इनका मुख्य भोजन चावल, गेंहु, दाल सरसों तिली महुआ के तेल से बनता है। इनके गोत्र कश्यप, सनवानी, चौधरी, तेलियागाथ, कोलगाथ हैं। .

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माधव शुक्ल

माधव शुक्ल (1881 - 1943) हिन्दी साहित्यकार थे। वे प्रयाग के निवासी और मालवीय ब्राह्मण थे। इनका कंठ बड़ा मधुर था और ये अभिनय कला में पूर्ण दक्ष थे। ये सफल नाटककार होने के साथ ही साथ अच्छे अभिनेता भी थे। इनकी राष्ट्रीय कविताओं के दो संग्रह 'भारत गीतंजलि' और 'राष्ट्रीय गान' जब प्रकाशित हुए तो हिंदी पाठकवर्ग ने उनका सोत्साह स्वागत किया। बहुत इधर आकर भारत और चीन में युद्ध छिड़ने पर इनकी राष्ट्रीय कविताओं का संकलन 'उठो हिंद संतान' नाम से प्रकाशित हुआ था। कविताओं की विशेषता यह है कि आज की स्थिति में भी वे उतनी ही उपयोगी एवं उत्साहवर्धक हैं जितनी अपनी रचना के समय थीं। सन् १८९८ ई० में इन्होंने 'सीय स्वयंबर', सन् १९१६ ई० में 'महाभारत पूर्वाध' और 'भामाशाह की राजभक्ति' नामक नाटकों की रचना की। इनमें केवल एक ही नाटक 'महाभारत पूवार्ध' प्रकाशित हुआ। ये सभी नाटक इनके समय में ही सफलता के साथ खेले गए थे और इन्होंने अभिनय में भाग भी लिया था। प्रयाग के अतिरिक्त ये नाटक कलकत्ता में भी खेले गए थे और उससे शुक्ल जी को काफी ख्याति मिली थी। इन्होंने जौनपुर और लखनऊ में नाटक मंडलियाँ स्थापित की थीं अैर कलकत्ते में हिंदी-नाट्य-परिषद् की प्रतिष्ठा की थी। इनके मन में देश की पराधीनता से मुक्ति की और सामाजिक सुधार की प्रबल आकांक्षा थी। तत्कालीन राष्ट्रीय आंदोलनों में सक्रिय भाग लेने के कारण इन्हें ब्रिटिश शासन का कोपभाजन बनकर कई बार करागार का दंड भी भुगतना पड़ा था। नाटक के प्रति उस समय हिंदी भाषी जनता की सुप्त रुचि को जगाने का बहुत बड़ा श्रेय शुक्ल जी को है। श्रेणी:हिन्दी नाटककार.

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माधव सिंह 'छितिपाल'

माधवसिंह 'छितिपाल' अमेठीनरेश एवं हिन्दी कवि थे। कविवर 'छितिपाल' की गणना उन भारतीय नरेशों में होती है। जो कुशल शासक होने के साथ सहृदय कवि भी थे। इन्होंने अमेठी राज्य तथा हिंदी साहित्य की श्रीवृद्धि में पूरा योगदान दिया। इन्होंने प्रयाग, काशी, विंध्याचल, लखनऊ और अमेठी में कई मंदिरों तथा महलों का निर्माण करवाया। इनका कार्यकाल संवत्‌ 1901 से 1948 तक था। .

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माधवराव पेशवा

पेशवा माधवराव प्रथम (शासनकाल- 1761-1772 ई०) मराठा साम्राज्य के चौथे पूर्णाधिकार प्राप्त पेशवा थे। वे मराठा साम्राज्य के महानतम पेशवा के रूप में मान्य हैं जिनके अल्पवयस्क होने के बावजूद अद्भुत दूरदर्शिता एवं संगठन-क्षमता के कारण पानीपत के तृतीय युद्ध में मराठों की खोयी शक्ति एवं प्रतिष्ठा की पुनर्प्राप्ति संभव हो पायी। 11 वर्षों की अपनी अल्पकालीन शासनावधि में भी आरंभिक 2 वर्ष गृहकलह में तथा अंतिम वर्ष क्षय रोग की पीड़ा में गुजर जाने के बावजूद उन्होंने न केवल उत्तम शासन-प्रबंध स्थापित किया, बल्कि अपनी दूरदर्शिता से योग्य सरदारों को एकजुट कर तथा नाना फडणवीस एवं महादजी शिंदे दोनों का सहयोग लेकर मराठा साम्राज्य को भी सर्वोच्च विस्तार तक पहुँचा दिया। .

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माध्यमिक शिक्षा परिषद, उत्तर प्रदेश

माध्यमिक शिक्षा परिषद, उत्तर प्रदेश एक परीक्षा लेने वाली संस्था है। इसका मुख्यालय इलाहाबाद में है। यह दुनिया की सबसे बड़ी परीक्षा संचालित करने वाली संस्था है। इसे संक्षेप में "यूपी बोर्ड" के नाम से भी जाना जाता है। बोर्ड ने १०+२ शिक्षा प्रणाली अपनायी हुई है। यह १०वीं एवं १२वीं कक्षा के विद्यार्थियों के लिये सार्वजनिक परीक्षा आयोजित करता है। माध्यमिक शिक्षा परिषद, उत्तर प्रदेश की स्थापना सन् १९२१ में इलाहाबाद में संयुक्त प्रान्त वैधानिक परिषद (यूनाइटेड प्रोविन्स लेजिस्लेटिव काउन्सिल) के एक अधिनियम द्वारा की गई थी।-आधिकारिक जालस्थल- अबाउट अस इसने सबसे पहले सन् १९२३ में परीक्षा आयोजित की। यह भारत का प्रथम शिक्षा बोर्ड था जिसने सर्वप्रथम १०+२ परीक्षा पद्धति अपनायी थी। इस पद्धति के अंतर्गत्त प्रथम सार्वजनिक (बोर्ड) परीक्षा का आयोजन १० वर्षों की शिक्षा उपरांत, जिसे हाई-स्कूल परीक्षा एवं द्वितीय सार्वजनिक परीक्षा १०+२.

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माघ मेला

माघ मेला हिन्दुओं का सर्वाधिक प्रिय धार्मिक एवं सांस्कृतिक मेला है। हिन्दू पंचांग के अनुसार १४ या १५ जनवरी को मकर संक्रांति के दिन माघ महीने में यह मेला आयोजित होता है। यह भारत के सभी प्रमुख तीर्थ स्थलों में मनाया जाता है। नदी या सागर स्नान इसका मुख्य उद्देश्य होता है। धार्मिक गतिविधियों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों तथा पारंपरिक हस्त शिल्प, भोजन और दैनिक उपयोग की पारंपरिक वस्तुओं की बिक्री भी की जाती है। धार्मिक महत्त्व के अलावा यह मेला एक विकास मेला भी है तथा इसमें राज्य सरकार विभिन्न विभागों के विकास योजनाओं को प्रदर्शित करती है। प्रयाग, उत्तरकाशी, हरिद्वार इत्यादि स्थलों का माघ मेला प्रसिद्ध है। कहते हैं, माघ के धार्मिक अनुष्ठान के फलस्वरूप प्रतिष्ठानपुरी के नरेश पुरुरवा को अपनी कुरूपता से मुक्ति मिली थी। वहीं भृगु ऋषि के सुझाव पर व्याघ्रमुख वाले विद्याधर और गौतम ऋषि द्वारा अभिशप्त इंद्र को भी माघ स्नान के महाम्त्य से ही श्राप से मुक्ति मिली थी। पद्म पुराण के महात्म्य के अनुसार-माघ स्नान से मनुष्य के शरीर में स्थित उपाताप जलकर भस्म हो जाते हैं। इस प्रकार माघमेले का धार्मिक महत्त्व भी है। .

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मिथिला

'''मिथिला''' मिथिला प्राचीन भारत में एक राज्य था। माना जाता है कि यह वर्तमान उत्तरी बिहार और नेपाल की तराई का इलाका है जिसे मिथिला के नाम से जाना जाता था। मिथिला की लोकश्रुति कई सदियों से चली आ रही है जो अपनी बौद्धिक परम्परा के लिये भारत और भारत के बाहर जानी जाती रही है। इस क्षेत्र की प्रमुख भाषा मैथिली है। हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में सबसे पहले इसका संकेत शतपथ ब्राह्मण में तथा स्पष्ट उल्लेख वाल्मीकीय रामायण में मिलता है। मिथिला का उल्लेख महाभारत, रामायण, पुराण तथा जैन एवं बौद्ध ग्रन्थों में हुआ है। .

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मिन्टो पार्क, इलाहाबाद

इलाहाबाद में स्थित सफेद पत्थर के इस मैमोरियल पार्क में सरस्वती घाट के निकट सबसे ऊंचे शिखर पर चार सिंहों के निशान हैं। लार्ड मिन्टो ने इन्हें 1910 में स्थापित किया था। 1 नवम्बर 1858 में लार्ड कैनिंग ने यहीं रानी विक्टोरिया का लोकप्रिय घोषणापत्र पढा था। श्रेणी:इलाहाबाद के दर्शनीय स्थल.

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मिर्ज़ा नजफ खां

मिर्ज़ा नजफ़ खां मिर्ज़ा नजफ़ खां (१७२२-१७८२) मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय के दरबार में एक फारसी एडवेंचरर था। इसके सफ़ावी वंश को नादिर शाह ने १७३५ में पदच्युत कर दिया था। नजफ़ खां भारत १७४० में आया था। इसकी बहन का विवाह अवध के नवाब से हुआ था। इसे अवध के उप-वज़ीर का पद भी मिला था। मिर्ज़ा १७२२ से अपनी मृत्यु पर्यन्त मुगल सेना का सिपहसालार रहा था। अप्रैल, १७८२ में इसकी मृत्यु हुई। इसके बाद इसका मकबरा नई दिल्ली के लोधी रोड के निकट कर्बला क्षेत्र में स्थित है। दक्षिण-पश्चिमी दिल्ली में स्थित नजफगढ़ का नाम नजफ़ खां के नाम पर ही पड़ा है। इलाहाबाद के फौजदार मोहम्मद कुली खाँ का मामा। मोहम्मद कुली के समय में (1753-59) नजफ़ खाँ इलाहाबाद के किले का रक्षक था। .

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मंगलाप्रसाद पारितोषिक

मंगलाप्रसाद पुरस्कार काशी के एक प्रसिद्ध मंगला प्रसाद परिवार द्वारा इलाहाबाद स्थित हिंदी साहित्य सम्मेलन के माध्यम से साहित्य के क्षेत्र में विशेष योगदान देने वाले व्यक्ति को प्रदान किया जाता है। इसकी स्थापना पुरुषोत्तम दास टंडन ने की थी। मंगलाप्रसाद पुरस्कार प्राप्त करने वाले लोगों के सूची इस प्रकार है-.

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मंगलेश डबराल

मंगलेश डबराल समकालीन हिन्दी कवियों में सबसे चर्चित नाम हैं। इनका जन्म १६ मई १९४८ को टिहरी गढ़वाल, उत्तराखण्ड के काफलपानी गाँव में हुआ था, इनकी शिक्षा-दीक्षा देहरादून में हुई। दिल्ली आकर हिन्दी पैट्रियट, प्रतिपक्ष और आसपास में काम करने के बाद वे भोपाल में मध्यप्रदेश कला परिषद्, भारत भवन से प्रकाशित साहित्यिक त्रैमासिक पूर्वाग्रह में सहायक संपादक रहे। इलाहाबाद और लखनऊ से प्रकाशित अमृत प्रभात में भी कुछ दिन नौकरी की। सन् १९८३ में जनसत्ता में साहित्य संपादक का पद सँभाला। कुछ समय सहारा समय में संपादन कार्य करने के बाद आजकल वे नेशनल बुक ट्रस्ट से जुड़े हैं। मंगलेश डबराल के पाँच काव्य संग्रह प्रकाशित हुए हैं।- पहाड़ पर लालटेन, घर का रास्ता, हम जो देखते हैं, आवाज भी एक जगह है और नये युग में शत्रु। इसके अतिरिक्त इनके दो गद्य संग्रह लेखक की रोटी और कवि का अकेलापन के साथ ही एक यात्रावृत्त एक बार आयोवा भी प्रकाशित हो चुके हैं। दिल्ली हिन्दी अकादमी के साहित्यकार सम्मान, कुमार विकल स्मृति पुरस्कार और अपनी सर्वश्रेष्ठ रचना हम जो देखते हैं के लिए साहित्य अकादमी द्वारा सन् २००० में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित मंगलेश डबराल की ख्याति अनुवादक के रूप में भी है। मंगलेश की कविताओं के भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त अंग्रेज़ी, रूसी, जर्मन, डच, स्पेनिश, पुर्तगाली, इतालवी, फ़्राँसीसी, पोलिश और बुल्गारियाई भाषाओं में भी अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं। कविता के अतिरिक्त वे साहित्य, सिनेमा, संचार माध्यम और संस्कृति के विषयों पर नियमित लेखन भी करते हैं। मंगलेश की कविताओं में सामंती बोध एवं पूँजीवादी छल-छद्म दोनों का प्रतिकार है। वे यह प्रतिकार किसी शोर-शराबे के साथ नहीं अपितु प्रतिपक्ष में एक सुन्दर स्वप्न रचकर करते हैं। उनका सौंदर्यबोध सूक्ष्म है और भाषा पारदर्शी। .

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मकर संक्रान्ति

मकर संक्रान्ति हिन्दुओं का प्रमुख पर्व है। मकर संक्रान्ति पूरे भारत और नेपाल में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तभी इस पर्व को मनाया जाता है। वर्तमान शताब्दी में यह त्योहार जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें दिन ही पड़ता है, इस दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है। एक दिन का अंतर लौंद वर्ष के ३६६ दिन का होने ही वजह से होता है | मकर संक्रान्ति उत्तरायण से भिन्न है। मकर संक्रान्ति पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायणी भी कहते हैं, यह भ्रान्ति गलत है कि उत्तरायण भी इसी दिन होता है । उत्तरायण का प्रारंभ २१ या २२ दिसम्बर को होता है | लगभग १८०० वर्ष पूर्व यह स्थिति उत्तरायण की स्थिति के साथ ही होती थी, संभव है की इसी वजह से इसको व उत्तरायण को कुछ स्थानों पर एक ही समझा जाता है | तमिलनाडु में इसे पोंगल नामक उत्सव के रूप में मनाते हैं जबकि कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे केवल संक्रांति ही कहते हैं। .

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मुदित नायर

मुदित नायर एक भारतीय अभिनेता हैं, यह अनामिका, तेरी मेरी लव स्टोरी आदि कार्यक्रमों में कार्य कर चुके हैं। .

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मुनव्वर राना

मुनव्वर राना (जन्म: 26 नवंबर 1952, रायबरेली, उत्तर प्रदेश) उर्दू भाषा के साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कविता शाहदाबा के लिये उन्हें सन् 2014 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वे लखनऊ में रहते हैं। भारत-पाकिस्तान बंटवारे के समय उनके बहुत से नजदीकी रिश्तेदार और पारिवारिक सदस्य देश छोड़कर पाकिस्तान चले गए। लेकिन साम्प्रदायिक तनाव के बावजूद मुनव्वर राना के पिता ने अपने देश में रहने को ही अपना कर्तव्य माना। मुनव्वर राना की शुरुआती शिक्षा-दीक्षा कलकत्ता (नया नाम कोलकाता) में हुई। राना ने ग़ज़लों के अलावा संस्मरण भी लिखे हैं। उनके लेखन की लोकप्रियता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनकी रचनाओं का ऊर्दू के अलावा अन्य भाषाओं में भी अनुवाद हुआ है। .

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मुनीश्वर दत्त उपाध्याय

पंडित मुनीश्वर दत्त उपाध्याय भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, राजनेता, सामाजिक कार्यकर्ता,शिक्षकविद थे। वे भारत के प्रथम एवं द्वितीय लोकसभा में सांसद थे। .

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मुख्तार अब्बास नकवी

मुख्तार अब्बास नकवी मुख्तार अब्बास नकवी (जन्म: १५ अक्टूबर १९५७) भारत के एक प्रसिद्ध राजनेता हैं। सम्प्रति वे भारतीय जनता पार्टी के उपाध्यक्ष हैं। वे भारत के केन्द्रीय मंत्री रह चुके हैं। श्री नकवी का जन्म इलाहाबाद में हुआ। उन्होने अपनी शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से प्राप्त की। भारत में आपातकाल घोषित होने पर १९७५०७७ तक वे जेल में थे। नकवी कभी इंदिरा गांधी को चुनाव में हराने वाले समाजवादी नेता राजनारायण के करीबी थे और उनके प्रभाव में सोशलिस्ट हुआ करते थे। वे बीजेपी में शामिल हो गए और 1998 में रामपुर से लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीत गए। केंद्र सरकार में सूचना और प्रसारण राज्य मंत्री भी बन गए वह दो किताबें स्याह और दंगा भी लिख चुके हैं। .

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मुग़ल बाग़

पिन्जौर, हरियाणा में मुगल उद्यान मुग़ल उद्यान एक समूह हैं, उद्यान शैलियों का, जिनका उद्गम इस्लामी मुगल साम्राज्य में है। यह शैली फारसी बाग एवं तैमूरी बागों से प्रभावित है। आयताकार खाकों के बाग एक चारदीवारी से घिरे होते हैं। इसके खास लक्षण हैं, फव्वारे, झील, सरोवर, इत्यादि। मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर या तैमूर ने इसे चारबाग कहा था। इस शब्द को भारत में नया अर्थ मिला, क्योंकि बाबर ने कहा था, कि भारत में, इन बागों हेतु तेज बहते स्रोत नहीं हैं, जो कि अधिकतर पर्वतों से उतरी नदियों में मिलते हैं। जब नदी दूर होती जाती है, धारा धीमी पड़ती जाती है। आगरा का रामबाग इसका प्रथम उदाहरण माना जाता है। भारत एवं पाकिस्तान (तत्कालीन भारत) में मुगल उद्यानों के अनेकों उदाहरण हैं। इनमें मध्य एशिया बागों से काफी भिन्नता है, क्योंकि यह बाग ज्यामिति की उच्च माप का नमूना हैं। .

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मुंशी सदासुखलाल

मुंशी सदासुखलाल (1746 - 1824) हिन्दी लेखक थे। खड़ी बोली के प्रारंभिक गद्यलेखकों में उनका ऐतिहासिक महत्व है। फारसी एवं उर्दू के लेखक और कवि होते हुए भी इन्होंने तत्कालीन शिष्ट लोगों के व्यवहार की भाषा को अपने गद्य-लेखन-कार्य के लिए अपनाया। इस भाषा में संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग करके भाषा के जिस रूप को इन्होंने उपस्थित किया, उसमें खड़ी बोली के भावी साहित्यिक रूप का आभास मिलता है। अंग्रेजों के प्रभाव से मुक्त इन्होंने उस गद्य परंपरा का अनुसरण किया जो रामप्रसाद 'निरंजनी' तथा दौलतराम से चली आ रही थी। .

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मौनी अमावस्या

माघ मास की अमावस्या जिसे मौनी अमावस्या कहते हैं। यह योग पर आधारित महाव्रत है। मान्यताओं के अनुसार इस दिन पवित्र संगममें देवताओं का निवास होता है इसलिए इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है। इस मास को भी कार्तिक के समान पुण्य मास कहा गया है। गंगा तट पर इस करणभक्त जन एक मास तक कुटी बनाकर गंगा सेवन करते हैं। .

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मौर्य कला

मौर्य कलाकृतियों के नमूनेमौर्य कला का विकास भारत में मौर्य साम्राज्य के युग में (चौथी से दूसरी शदी ईसा पूर्व) हुआ। सारनाथ और कुशीनगर जैसे धार्मिक स्थानों में स्तूप और विहार के रूप में स्वयं सम्राट अशोक ने इनकी संरचना की। मौर्य काल का प्रभावशाली और पावन रूप पत्थरों के इन स्तम्भों में सारनाथ, इलाहाबाद, मेरठ, कौशाम्बी, संकिसा और वाराणसी जैसे क्षेत्रों में आज भी पाया जाता है। मौर्यकला के नवीन एवं महान रूप का दर्शन अशोक के स्तम्भों में मिलता है। पाषाण के ये स्तम्भ उस काल की उत्कृष्ट कला के प्रतीक हैं। मौर्ययुगीन समस्त कला कृतियों में अशोक द्वारा निर्मित और स्थापित पाषाण स्तम्भ सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण एवं अभूतपूर्व हैं। स्तम्भों को कई फुट नीचे जमीन की ओर गाड़ा जाता था। इस भाग पर मोर की आकृतियाँ बनी हुई हैं। पृथ्वी के ऊपर वाले भाग पर अद्भुत चिकनाई तथा चमक है। मौर्यकाल के स्तम्भों में से फाह्यान ने ६ तथा युवानच्वांग ने १५ स्तम्भों का उल्लेख किया है। गुहा निर्माण कला भी इस काल में चरम पर थी। अशोक के पौत्र दशरथ ने गया से १९ मील बाराबर की पहाड़ियों पर श्रमणों के निवास के लिए कुछ गुहाएँ बनवाईं। इनकी भीतरी दीवार पर चमकीली पालिश है। लोमश ऋषि की गुफा मौर्यकाल में सम्राट अशोक के पौत्र सम्पत्ति द्वारा निर्मित हुई। यह गुफा अधूरी है। इसके मेहराब पर गजपंक्ति की पच्चीकारी अब भी मौजूद है। ऐसी पच्चीकारी प्राचीन काल में काष्ठ पर की जाती थी। सारनाथ का मूर्ति शिल्प और स्थापत्य मौर्य कला का एक अतिश्रेष्‍ठ नमूना है। विनसेन्ट स्मिथ नामक प्रसिद्ध इतिहासकार के अनुसार, किसी भी देश के पौराणिक संग्रहालय में, सारनाथ के समान उच्च श्रेष्‍ठ और प्रशंसनीय कला के दर्शन दुर्लभ हैं क्‍योंकि इनका काल और शिल्प कड़ी छनबीन के बाद प्रमाणित किया गया है। मौर्य काल के दौरान मथुरा कला का एक दूसरा महत्त्वपूर्ण केन्द्र था। शुंग-शातवाहन काल के काल में इस राजवंश की प्रेरणा से कला का अत्यंत विकास हुआ। बड़ी संख्या में इमारतें बनी, अन्य पौराणिक कलाएँ विकसित हुईं जो सारनाथ की पिछली पीढियों के विकास को दरशाती हैं। इस युग की मजबूत जड़ अर्ध वृत्तीय मन्दिर वाली उसी पीढ़ी की नींव पर टिकी है। कला क्षेत्र में विख्यात भारत-सांची विद्यालय मथुरा का एक अनमोल केन्द्र कहा जाता है। जिसकी अनेक छवियां इन विद्यालयों में आज भी देखने को मिलती हैं। .

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मैथिलीशरण गुप्त

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त (३ अगस्त १८८६ – १२ दिसम्बर १९६४) हिन्दी के प्रसिद्ध कवि थे। हिन्दी साहित्य के इतिहास में वे खड़ी बोली के प्रथम महत्त्वपूर्ण कवि हैं। उन्हें साहित्य जगत में 'दद्दा' नाम से सम्बोधित किया जाता था। उनकी कृति भारत-भारती (1912) भारत के स्वतंत्रता संग्राम के समय में काफी प्रभावशाली साबित हुई थी और इसी कारण महात्मा गांधी ने उन्हें 'राष्ट्रकवि' की पदवी भी दी थी। उनकी जयन्ती ३ अगस्त को हर वर्ष 'कवि दिवस' के रूप में मनाया जाता है। महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की प्रेरणा से आपने खड़ी बोली को अपनी रचनाओं का माध्यम बनाया और अपनी कविता के द्वारा खड़ी बोली को एक काव्य-भाषा के रूप में निर्मित करने में अथक प्रयास किया। इस तरह ब्रजभाषा जैसी समृद्ध काव्य-भाषा को छोड़कर समय और संदर्भों के अनुकूल होने के कारण नये कवियों ने इसे ही अपनी काव्य-अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया। हिन्दी कविता के इतिहास में यह गुप्त जी का सबसे बड़ा योगदान है। पवित्रता, नैतिकता और परंपरागत मानवीय सम्बन्धों की रक्षा गुप्त जी के काव्य के प्रथम गुण हैं, जो 'पंचवटी' से लेकर जयद्रथ वध, यशोधरा और साकेत तक में प्रतिष्ठित एवं प्रतिफलित हुए हैं। साकेत उनकी रचना का सर्वोच्च शिखर है। .

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मेजा

8 '"मेजा"' (अंग्रेजी -MEJA) इलाहाबाद जिला के आठ तहसीलो में एक है। इलाहाबाद से मिर्ज़ापुर मार्ग स्थित मेजारोड (लगभग दूरी 47 किलोमीटर) चौराहे से तथा मेजारोड रेलवे स्टेशन से १०किलोमीटर दक्षिण स्थित है। मेजा तहसील में तीन ब्लॉक क्रमश: मेजा,उरुवा और मांडा है।भारत के पूर्व-प्रधानमंत्री श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह मांडा के राजा थे। .

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मोतीलाल नेहरू

मोतीलाल नेहरू (1861 – 1931) मोतीलाल नेहरू (जन्म: 6 मई 1861 – मृत्यु: 6 फ़रवरी 1931) इलाहाबाद के एक मशहूर वकील थे। वे भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू के पिता थे। वे भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के आरम्भिक कार्यकर्ताओं में से थे। 1928 से लेकर 1929 तक पूरे दो वर्ष तक वे काँग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे।I'm .

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मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज

मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले में स्थित मेडिकल कॉलेज है। पंडित मोतीलाल नेहरू के प्रयत्नों से यह मेडिकल कॉलेज डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद के कर कमलों से ५ मई १९६१ को लोकार्पित किया गया था। .

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मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान इलाहाबाद

संस्थान का शैक्षणिक ब्लॉक संस्थान का मुख्य भवन मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय तकनीकी संस्थान उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में स्थित भारत का प्रमुख राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान है। इसका पूर्व नाम 'मोतीलाल नेहरू क्षेत्रीय इंजीनियरिंग कालेज' था। इसकी स्थापना १९६१ में की गई थी और २६ जून २००२ को इसे राष्‍ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान का दर्जा दिया गया। इस संस्थान में आठ विभाग हैं। यह संस्थान सिविल इंजीनियरी, विद्युत इंजीनियरी, अभियांत्रिकी इंजीनियरी, कम्प्यूटर विज्ञान इंजीनियरी, इलैक्ट्रानिकी इंजीनियरी, उत्पादन और औद्योगिक इंजीनियरी, रसायन इंजीनियरी, जैव प्रौद्योगिकी इंजीनियरी तथा सूचना प्रौद्योगिकी जैसे विषेयों में चार वर्षीय अवर स्नातक पाठयक्रम चलाता है। यह संस्थान १३ एम.टेक कार्यक्रमों तथा मास्टर ऑफ कंप्यूटर एप्लीकेशन (एमसीए) एवं मास्टर ऑफ मैनेजमेंट स्टजीज (एमएमएस) का भी संचालन करता है। वर्तमान में संस्थान ९ प्रौद्योगिकी स्नातक, १९ प्रौद्योगिकी निष्णात (अंशकालिक सहित), कंप्यूटर अनुप्रयोग में स्नातकोत्तर (एम्. सी. ए.), प्रबंधन में स्नातकोत्तर (एम्. बी. ए.), विज्ञान के क्षेत्र में निष्णात (एम्. एस. सी.)(गणित और वैज्ञानिक संगणन), और समाज कार्य निष्णात (एम्. एस. डब्लू.) में शिक्षा प्रदान करता है तथा उम्मीदवारों को पी.एच.डी डिग्री पाठ्यक्रम के लिए पंजीकृत भी करता है। संस्थान एम.

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मोहन सिंह मेहता

मोहन सिंह मेहता (1895-1986) देश के जाने माने शिक्षाविद, राजस्थान विश्वविद्यालय के संस्थापक कुलपति, सेवा मंदिर और विद्या भवन उदयपुर के संस्थापक, भूतपूर्व विदेश सचिव पद्मविभूषण जगत मेहता के पिता थे। .

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मोहम्मद कैफ़

मोहम्मद कैफ़ भारत के एक क्रिकेट खिलाड़ी हैं। ये इलाहाबाद नगर के निवासी हैं। श्रेणी:क्रिकेट खिलाड़ी श्रेणी:जीवित लोग श्रेणी:इलाहाबाद के लोग श्रेणी:भारतीय एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खिलाड़ी श्रेणी:भारतीय टेस्ट क्रिकेट खिलाड़ी.

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मीना अलेक्ज़ेंडर

मीना अलेक्ज़ेंडर (जन्म: 1951) भारतीय मूल की अँग्रेजी भाषा की कवयित्री हैं। उनका जन्म इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश में हुआ तथा भारत और सुडान में पली बढ़ीं। वे अमेरिका की न्यूयॉर्क नगर में रहती हैं। .

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यमुना नदी

आगरा में यमुना नदी यमुना त्रिवेणी संगम प्रयाग में वृंदावन के पवित्र केशीघाट पर यमुना सुबह के धुँधलके में यमुनातट पर ताज यमुना भारत की एक नदी है। यह गंगा नदी की सबसे बड़ी सहायक नदी है जो यमुनोत्री (उत्तरकाशी से ३० किमी उत्तर, गढ़वाल में) नामक जगह से निकलती है और प्रयाग (इलाहाबाद) में गंगा से मिल जाती है। इसकी प्रमुख सहायक नदियों में चम्बल, सेंगर, छोटी सिन्ध, बतवा और केन उल्लेखनीय हैं। यमुना के तटवर्ती नगरों में दिल्ली और आगरा के अतिरिक्त इटावा, काल्पी, हमीरपुर और प्रयाग मुख्य है। प्रयाग में यमुना एक विशाल नदी के रूप में प्रस्तुत होती है और वहाँ के प्रसिद्ध ऐतिहासिक किले के नीचे गंगा में मिल जाती है। ब्रज की संस्कृति में यमुना का महत्वपूर्ण स्थान है। .

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योगेन्द्र नारायण

योगेन्द्र नारायण (जन्म: 26 जून 1942, इलाहाबाद) 1965 बैच के एक भारतीय आई॰ए॰एस॰ अधिकारी हैं जो अपनी ईमानदार छवि और वक़्त की पाबन्दी के लिये जाने जाते हैं। उत्तर प्रदेश सरकार में मुख्य सचिव, केन्द्र सरकार में रक्षा सचिव और राज्य सभा में महासचिव रह चुके योगेन्द्र नारायण इस समय रिलाइंस पावर इण्डस्ट्रीज़ की ऑडिट कमेटी के सदस्य हैं। उन्होंने अंग्रेजी में कई पुस्तकें भी लिखी हैं। राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर उपाधि के साथ लम्बे प्रशासनिक अनुभव के मद्देनज़र योगेन्द्र नारायण विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक व आर्थिक मुद्दों पर अपनी बेवाक राय व्यक्त करते रहते हैं। 42 वर्षों से अधिक समय तक भारतीय प्रशासनिक सेवा में रहने के उपरान्त अवकाश प्राप्त कर वे आजकल अपने परिवार के साथ नोएडा में रह रहे हैं। .

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राधाचरण गोस्‍वामी

राधाचरण गोस्‍वामी (२५ फरवरी १८५९ - १२ दिसम्बर १९२५) हिन्दी के भारतेन्दु मण्डल के साहित्यकार जिन्होने ब्रजभाषा-समर्थक कवि, निबन्धकार, नाटकरकार, पत्रकार, समाजसुधारक, देशप्रेमी आदि भूमिकाओं में भाषा, समाज और देश को अपना महत्वपूर्ण अवदान दिया। आपने अच्छे प्रहसन लिखे हैं। .

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राधाबाई

राधाबाई नेवास के बर्वे परिवार की कन्या थीं जिनका विवाह बालाजी विश्वनाथ के साथ हुआ था। इनके पिता का नाम डुबेरकर अंताजी मल्हार बर्वे था। राधाबाई बालाजी के पिता विश्वनाथ भट्ट सिद्दियों के अधीन श्रीवर्धन गाँव के देशमुख थे। भारत के पश्चिमी सिद्दियों से न पटने के कारण विश्वनाथ और बालाजी श्रीवर्धन गाँव छोड़कर बेला नामक स्थान पर भानु भाइयों के साथ रहने लगे। राधाबाई भी अपने परिवार के साथ बेला में रहने लगीं। कुछ समय पश्चात् बालाजी डंडाराजपुरी के देशमुख हो गए। १६९९ ई. से १७०८ ई. तक वे पूना के सर-सूबेदार रहे। राधाबाई में त्याग, दृढ़ता, कार्यकुशलता, व्यवहारचातुर्य और उदारता आदि गुण थे। राधाबाई एवं बालाजी के दो पुत्र और दो पुत्रियाँ थीं। इनके बड़े पुत्र बाजीराव का जन्म १७०० ई. में और दूसरे पुत्र चिमाजी अप्पा का सन् १७१० में हुआ था। इनकी पुत्रियों के नाम अनुबाई और भिऊबाई थे। बालाजी विश्वनाथ की मृत्यु सन् १७२० में हुई। राधाबाई को बहुत दु:ख हुआ, यद्यपि उनके पुत्र बाजीराव पेशवा बनाए गए। राधाबाई राज्य के विभिन्न कार्यों में बाजीराव को उचित सलाह देती थीं। जब १७३५ में राधाबाई ने तीर्थयात्रा पर जाने की इच्छा प्रकट की, चिमाजी अप्पा ने इसका प्रबंध शीघ्र ही किया। १४ फरवरी को इन्होंने पूना से प्रस्थान किया। ८ मार्च को वे बुरहानपुर पहुँची। ६ मई को उदयपुर में उन्हें राजकीय सम्मान मिला। २१ मई को नाथद्वारा का दर्शन किया और २१ जून को जयपुर पहुँची। सवाई राजा जयसिंह ने उनका अत्यधिक आदर सत्कार किया। वे यहाँ तीन माह तक ठहरीं। सितंबर मास में वे जयपुर से चल पड़ीं। वे मथुरा, वृंदावन, कुरुक्षेत्र और प्रयाग होती हुईं १७ अक्टूबर को वाराणसी पहुँच गईं। वहाँ से दिसंबर के अंतिम सप्ताह में गया की ओर प्रस्थान किया। वहीं से १७३६ में वे वापसी यात्रा पर चल पड़ीं। मार्ग में स्थानीय शासकों ने उनके लिए अंगरक्षकों की व्यवस्था की। मोहम्मद खान बंगश ने राधाबाई का बहुत सम्मान किया और उन्हें बहुमूल्य उपहार प्रदान किए। राधाबाई प्रसन्न हुई और १ जून, १७३६ ई. को पूना पहुंचीं। राधाबाई की इस यात्रा ने साधारणत: मराठों के लिए और विशेषकर पेशवा बाजीराव के लिए मित्रतापूर्ण वातावरण का निर्माण किया। राधाबाई को यात्रा से लौट दो वर्ष भी न हो पाए थे कि उन्हें एक और परिस्थिति का सामना करना पड़ा। मस्तानी और बाजीराव का संबंध सरदारों की आलोचना का विषय बन चुका था। बाजीराव के आलोचकों का वर्ताव उस समय और तीव्र हुआ जब पेशवा परिवार में रघुनाथ राव का उपनयन और सदाशिव राव का विवाह होने वाला था। पंडितों ने किसी भी ऐसे कार्य में भाग न लेने का निर्णय किया। राधाबाई ने बाजीराव को विशेष रूप से सतर्क रहने के लिए लिखा। अंतत: राधाबाई उपर्युक्त कार्य कराने में सफल हुई। मस्तानी और बाजीराव के संबंध को विशेष महत्व कभी नहीं दिया अपितु सदा ही यह प्रयत्न किया कि परिवार में फूट की स्थिति न उत्पन्न हो और पेशवा परिवार का सम्मान भी बना रहे। चिमाजी अप्पा ने मस्तानी को कैद किया। राधाबाई ने मस्तानी को कैद से छुड़ाया और वह बाजीराव के पास आ गई। बाजीराव ने भी राधाबाई की आज्ञाओं का पालन किया। १७४० ई. के अप्रैल मास में बाजीराव की मृत्यु से राधाबाई को बहुत दु:ख हुआ। पाँच माह पश्चात् ही चिमाजी अप्पा की भी मृत्यु हो गई। अब राधाबाई का उत्साह शिथिल पड़ गया। फिर भी, जब कभी आवश्यकता पड़ती थी, वे परिवार की सेवा और राजकीय कार्यों में बालाजी बाजीराव को उचित परामर्श देतीं थीं। १७५२ ई. में जब पेशवा दक्षिण की ओर गए हुए थे राधाबाई ने ताराबाई और उमाबाई की सम्मिलित सेना को पूना की ओर बढ़ने से रोकने का उपाय किया। दूसरे अवसर पर उन्होंने बाबूजी नाइक को पेशवा बालाजी के विरुद्ध अनशन करने से रोका। राधाबाई ने तत्कालीन राजनीति में सक्रिय भाग लिया। इनके व्यवहार में कभी भी कटुता नहीं आने पाती थी। इन्होंने अपने परिवार को साधारण स्थिति से पेशवा पद प्राप्त करते देखा। २० मार्च, १७५३ ई. को इनकी मृत्यु हुई। श्रेणी:मराठा साम्राज्य.

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रानी दुर्गावती

रानी दुर्गावती का चित्र रानी दुर्गावती (5 अक्टूबर, 1524 – 24 जून, 1564)) भारत की एक वीरांगना थीं जिन्होने अपने विवाह के चार वर्ष बाद अपने पति दलपत शाह की असमय मृत्यु के बाद अपने पुत्र वीरनारायण को सिंहासन पर बैठाकर उसके संरक्षक के रूप में स्वयं शासन करना प्रारंभ किया। इनके शासन में राज्य की बहुत उन्नति हुई। दुर्गावती को तीर तथा बंदूक चलाने का अच्छा अभ्यास था। चीते के शिकार में इनकी विशेष रुचि थी। उनके राज्य का नाम था जिसका केन्द्र जबलपुर था। वे इलाहाबाद के मुगल शासक आसफ खान से लोहा लेने के लिये प्रसिद्ध हैं। .

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राम प्रसाद 'बिस्मिल'

राम प्रसाद 'बिस्मिल' (११ जून १८९७-१९ दिसम्बर १९२७) भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की क्रान्तिकारी धारा के एक प्रमुख सेनानी थे, जिन्हें ३० वर्ष की आयु में ब्रिटिश सरकार ने फाँसी दे दी। वे मैनपुरी षड्यन्त्र व काकोरी-काण्ड जैसी कई घटनाओं में शामिल थे तथा हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के सदस्य भी थे। राम प्रसाद एक कवि, शायर, अनुवादक, बहुभाषाभाषी, इतिहासकार व साहित्यकार भी थे। बिस्मिल उनका उर्दू तखल्लुस (उपनाम) था जिसका हिन्दी में अर्थ होता है आत्मिक रूप से आहत। बिस्मिल के अतिरिक्त वे राम और अज्ञात के नाम से भी लेख व कवितायें लिखते थे। ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी (निर्जला एकादशी) विक्रमी संवत् १९५४, शुक्रवार को उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर में जन्मे राम प्रसाद ३० वर्ष की आयु में पौष कृष्ण एकादशी (सफला एकादशी), सोमवार, विक्रमी संवत् १९८४ को शहीद हुए। उन्होंने सन् १९१६ में १९ वर्ष की आयु में क्रान्तिकारी मार्ग में कदम रखा था। ११ वर्ष के क्रान्तिकारी जीवन में उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं और स्वयं ही उन्हें प्रकाशित किया। उन पुस्तकों को बेचकर जो पैसा मिला उससे उन्होंने हथियार खरीदे और उन हथियारों का उपयोग ब्रिटिश राज का विरोध करने के लिये किया। ११ पुस्तकें उनके जीवन काल में प्रकाशित हुईं, जिनमें से अधिकतर सरकार द्वारा ज़ब्त कर ली गयीं। --> बिस्मिल को तत्कालीन संयुक्त प्रान्त आगरा व अवध की लखनऊ सेण्ट्रल जेल की ११ नम्बर बैरक--> में रखा गया था। इसी जेल में उनके दल के अन्य साथियोँ को एक साथ रखकर उन सभी पर ब्रिटिश राज के विरुद्ध साजिश रचने का ऐतिहासिक मुकदमा चलाया गया था। --> .

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राम लीला

रामलीला का एक दृश्य। रामलीला उत्तरी भारत में परम्परागत रूप से खेला जाने वाला राम के चरित पर आधारित नाटक है। यह प्रायः विजयादशमी के अवसर पर खेला जाता है। .

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रामचन्द्र शुक्ल

आचार्य रामचंद्र शुक्ल (४ अक्टूबर, १८८४- २ फरवरी, १९४१) हिन्दी आलोचक, निबन्धकार, साहित्येतिहासकार, कोशकार, अनुवादक, कथाकार और कवि थे। उनके द्वारा लिखी गई सर्वाधिक महत्वपूर्ण पुस्तक है हिन्दी साहित्य का इतिहास, जिसके द्वारा आज भी काल निर्धारण एवं पाठ्यक्रम निर्माण में सहायता ली जाती है। हिंदी में पाठ आधारित वैज्ञानिक आलोचना का सूत्रपात उन्हीं के द्वारा हुआ। हिन्दी निबन्ध के क्षेत्र में भी शुक्ल जी का महत्वपूर्ण योगदान है। भाव, मनोविकार संबंधित मनोविश्लेषणात्मक निबंध उनके प्रमुख हस्ताक्षर हैं। शुक्ल जी ने इतिहास लेखन में रचनाकार के जीवन और पाठ को समान महत्व दिया। उन्होंने प्रासंगिकता के दृष्टिकोण से साहित्यिक प्रत्ययों एवं रस आदि की पुनर्व्याख्या की। .

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रामदास गौड़

रामदास गौड़ (1881 - 13 सितम्बर 1938) स्वतंत्रता सेनानी, हिन्दी लेखक तथा विज्ञान परिषद के संस्थापकों में से एक थे। .

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रामनरेश त्रिपाठी

रामनरेश त्रिपाठी (4 मार्च, 1889 - 16 जनवरी, 1962) हिन्दी भाषा के 'पूर्व छायावाद युग' के कवि थे। कविता, कहानी, उपन्यास, जीवनी, संस्मरण, बाल साहित्य सभी पर उन्होंने कलम चलाई। अपने 72 वर्ष के जीवन काल में उन्होंने लगभग सौ पुस्तकें लिखीं। ग्राम गीतों का संकलन करने वाले वह हिंदी के प्रथम कवि थे जिसे 'कविता कौमुदी' के नाम से जाना जाता है। इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए उन्होंने गांव-गांव जाकर, रात-रात भर घरों के पिछवाड़े बैठकर सोहर और विवाह गीतों को सुना और चुना। वह गांधी के जीवन और कार्यो से अत्यंत प्रभावित थे। उनका कहना था कि मेरे साथ गांधी जी का प्रेम 'लरिकाई को प्रेम' है और मेरी पूरी मनोभूमिका को सत्याग्रह युग ने निर्मित किया है। 'बा और बापू' उनके द्वारा लिखा गया हिंदी का पहला एकांकी नाटक है। ‘स्वप्न’ पर इन्हें हिंदुस्तान अकादमी का पुरस्कार मिला। .

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रामबाग रेलवे स्टेशन

रामबाग रेलवे स्टेशन भारतीय रेल का एक रेलवे स्टॆशन है। यह इलाहाबाद शहर में स्थित है। यह शहर के मुख्य स्टेशन इलाहाबाद जंक्शन रेलवे स्टेशन से १५ कि॰मी॰ दूरी पर स्थित है। इसकी ऊंचाई १०१ मीटर है। .

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रामभद्राचार्य

जगद्गुरु रामभद्राचार्य (जगद्गुरुरामभद्राचार्यः) (१९५०–), पूर्वाश्रम नाम गिरिधर मिश्र चित्रकूट (उत्तर प्रदेश, भारत) में रहने वाले एक प्रख्यात विद्वान्, शिक्षाविद्, बहुभाषाविद्, रचनाकार, प्रवचनकार, दार्शनिक और हिन्दू धर्मगुरु हैं। वे रामानन्द सम्प्रदाय के वर्तमान चार जगद्गुरु रामानन्दाचार्यों में से एक हैं और इस पद पर १९८८ ई से प्रतिष्ठित हैं।अग्रवाल २०१०, पृष्ठ ११०८-१११०।दिनकर २००८, पृष्ठ ३२। वे चित्रकूट में स्थित संत तुलसीदास के नाम पर स्थापित तुलसी पीठ नामक धार्मिक और सामाजिक सेवा संस्थान के संस्थापक और अध्यक्ष हैं। वे चित्रकूट स्थित जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय के संस्थापक और आजीवन कुलाधिपति हैं। यह विश्वविद्यालय केवल चतुर्विध विकलांग विद्यार्थियों को स्नातक तथा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम और डिग्री प्रदान करता है। जगद्गुरु रामभद्राचार्य दो मास की आयु में नेत्र की ज्योति से रहित हो गए थे और तभी से प्रज्ञाचक्षु हैं। अध्ययन या रचना के लिए उन्होंने कभी भी ब्रेल लिपि का प्रयोग नहीं किया है। वे बहुभाषाविद् हैं और २२ भाषाएँ बोलते हैं। वे संस्कृत, हिन्दी, अवधी, मैथिली सहित कई भाषाओं में आशुकवि और रचनाकार हैं। उन्होंने ८० से अधिक पुस्तकों और ग्रंथों की रचना की है, जिनमें चार महाकाव्य (दो संस्कृत और दो हिन्दी में), रामचरितमानस पर हिन्दी टीका, अष्टाध्यायी पर काव्यात्मक संस्कृत टीका और प्रस्थानत्रयी (ब्रह्मसूत्र, भगवद्गीता और प्रधान उपनिषदों) पर संस्कृत भाष्य सम्मिलित हैं।दिनकर २००८, पृष्ठ ४०–४३। उन्हें तुलसीदास पर भारत के सर्वश्रेष्ठ विशेषज्ञों में गिना जाता है, और वे रामचरितमानस की एक प्रामाणिक प्रति के सम्पादक हैं, जिसका प्रकाशन तुलसी पीठ द्वारा किया गया है। स्वामी रामभद्राचार्य रामायण और भागवत के प्रसिद्ध कथाकार हैं – भारत के भिन्न-भिन्न नगरों में और विदेशों में भी नियमित रूप से उनकी कथा आयोजित होती रहती है और कथा के कार्यक्रम संस्कार टीवी, सनातन टीवी इत्यादि चैनलों पर प्रसारित भी होते हैं। २०१५ में भारत सरकार ने उन्हें पद्मविभूषण से सम्मानित किया। .

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राममनोहर लोहिया

डॉ॰ राममनोहर लोहिया डॉ॰ राममनोहर लोहिया (जन्म - मार्च २३, इ.स. १९१० - मृत्यु - १२ अक्टूबर, इ.स. १९६७) भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानी, प्रखर चिन्तक तथा समाजवादी राजनेता थे। .

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राममूर्ति नायडू (पहलवान)

प्रोफेसर राममूर्ति नायडू (अंग्रेजी:Kodi Rammurthy Naidu तेलुगू:కోడి రామ్మూర్తి నాయుడు जन्म:१८८२ - मृत्यु:१९४२) भारत के विश्वविख्यात पहलवान हुए हैं जिन्हें उनकी उल्लेखनीय उपलब्धियों के लिये ब्रिटिश सरकार ने कलयुगी भीम की उपाधि से अलंकृत किया था। दक्षिण भारत के उत्तरी आन्ध्र प्रदेश में जन्मे इस महाबली ने एक समय में पूरे विश्व में तहलका मचा दिया था। स्वयं ब्रिटिश सम्राट जार्ज पंचम व महारानी मैरी ने लन्दन स्थित बकिंघम पैलेस में आमन्त्रित कर सम्मानित किया और इण्डियन हरकुलिस व इण्डियन सैण्डोज जैसे उपनाम प्रदान किये। उनके शारीरिक बल के करतब देखकर सामान्य जन से लेकर शासक वर्ग तक सभी दाँतों तले उँगली दबाने को विवश हो जाया करते थे। प्रो॰ साहब ने व्यायाम की जो नयी पद्धति विकसित की उसे आज भी भारतीय मल्लयुद्ध के क्षेत्र में प्रो॰ राममूर्ति की विधि के नाम से जाना जाता है जिसमें दण्ड-बैठक के दैनन्दिन अभ्यास से शरीर को अत्यधिक बलशाली बनाया जाता है। .

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रामस्‍वरूप चतुर्वेदी

रामस्‍वरूप चतुर्वेदी (१९३१ - २००३) हिन्‍दी साहित्‍य के उन समीक्षकों में से थे जो मुख्‍यतः भाषा की सृजनात्‍मकता को केन्‍द्र में रखकर समीक्षा कर्म में प्रवृत्‍त हुए थे। .

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रामानन्द चट्टोपाध्याय

रामानंद चट्टोपाध्याय (1865 – 1943) कोलकाता से प्रकाशित पत्रिका 'मॉडर्न रिव्यू' के संस्थापक, संपादक एवं मालिक थे। उन्हें भारतीय पत्रकारिता का जनक माना जाता है। .

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रामायण

रामायण आदि कवि वाल्मीकि द्वारा लिखा गया संस्कृत का एक अनुपम महाकाव्य है। इसके २४,००० श्लोक हैं। यह हिन्दू स्मृति का वह अंग हैं जिसके माध्यम से रघुवंश के राजा राम की गाथा कही गयी। इसे आदिकाव्य तथा इसके रचयिता महर्षि वाल्मीकि को 'आदिकवि' भी कहा जाता है। रामायण के सात अध्याय हैं जो काण्ड के नाम से जाने जाते हैं। .

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रामकृष्ण खत्री

रामकृष्ण खत्री (जन्म: ३ मार्च १९०२ महाराष्ट्र, मृत्यु: १८ अक्टूबर १९९६ लखनऊ) भारत के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे। उन्होंने हिन्दुस्तान प्रजातन्त्र संघ का विस्तार मध्य भारत और महाराष्ट्र में किया था। उन्हें काकोरी काण्ड में १० वर्ष के कठोर कारावास की सजा दी गयी। हिन्दी, मराठी, गुरुमुखी तथा अंग्रेजी के अच्छे जानकार खत्री ने शहीदों की छाया में शीर्षक से एक पुस्तक भी लिखी थी जो नागपुर से प्रकाशित हुई थी। स्वतन्त्र भारत में उन्होंने भारत सरकार से मिलकर स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानियों की सहायता के लिये कई योजनायें भी बनवायीं। काकोरी काण्ड की अर्द्धशती पूर्ण होने पर उन्होंने काकोरी शहीद स्मृति के नाम से एक ग्रन्थ भी प्रकाशित किया था। लखनऊ से बीस मील दूर स्थित काकोरी शहीद स्मारक के निर्माण में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। १८ अक्टूबर १९९६ को ९४ वर्ष की आयु में उनका देहान्त हुआ। .

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राष्ट्रीय धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यक आयोग

राष्ट्रीय धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यक आयोग: (National Commission for Religious and Linguistic Minorities) भारत सरकार ने धार्मिक और भाषायी अल्पसंख्यकों के सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के कल्याण की आवश्यकता को समझता है। सरकार ने धार्मिक और भाषायी अल्पसंख्यकों के सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों की पहचान का आधार तय करने के लिए विस्तृत जांच और उनके कल्याण के उपाय सुझाने हेतु राष्ट्रीय धार्मिक और भाषायी अल्पसंख्यक आयोग का गठन किया है। जो इस प्रकार हैं। 1.

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राष्ट्रीय राजमार्ग (भारत)

भारत के राजमार्ग भारत के राष्ट्रीय राजमार्ग, भारत की केन्द्रीय सरकार द्वारा संस्थापित और सम्भाले जानी वाली लंबी दूरी की सड़के है। मुख्यतः यह सड़के 2 पंक्तियो की है, प्रत्येक दिशा में जाने के लिए एक पंक्ति। भारत के राजमार्गो की कुल दूरी लगभग 58,000 किमी है, जिसमे से केवल 4,885 किमी की सड़को के मध्य पक्का विभाजन बनाया गया है। राजमार्गो की लंबाई भारत के सड़को का मात्र 2% है, लेकिन यह कुल यातायात का लगभग 40% भार उठाते है। 1995 में पास संसदीय विदेहक के तहत इन राजमार्गो को बनाने और रख-रखाव के लिए निजी संस्थानो की हिस्सेदारी को मंजूरी दी गई। हाल के समय में इन राजमार्गो का तेजी से विकास हुआ जिनके तहत भारत के शहर और कस्बो के बीच यातायात के समय में गिरावट आई। कुछ शहरो के बीच 4 और 6 पंक्तियों के राजमार्गो का भी विकास हुआ। भारत का सबसे बड़ा राजमार्ग राष्ट्रीय राजमार्ग ७ (NH7) है, जो उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर को भारत के दक्षिणी कोने, तमिलनाडु के कन्याकुमारी शहर के साथ जोड़ता है। इसकी लंबाई 2369 किमी है। सबसे छोटा राजमार्ग 5 किलोमीटर लंबा राष्ट्रीय राजमार्ग NH71B (NH71B) है,। काफ़ी सारे राजमार्गों का अभी भी विकास हो रहा है। ज्यादतर राजमार्गों को कंक्रीट का नहीं बनाया गया है। मुम्बई पुणे एक्सप्रेस-वे इसका एक अपवाद है। .

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राष्ट्रीय राजमार्ग २

1465 किलोमीटर लंबा यह राजमार्ग दिल्ली को कोलकाता से जोड़ता है। इसका रूट दिल्ली - मथुरा - आगरा - कानपुर – इलाहाबाद - वाराणसी - मोहनिया - बरही - पलसित – बैद्यबटी - बारा - कोलकाता है। इस हाईवे पर स्थित ताजनगरी आगरा, दिल्ली से मात्र 203 किमी दूर है। यह सड़क जीटी रोड का दूसरा भाग है, प्रथम भाग एनएच 1 है जो अटारी से दिल्ली तक आता है जिसकी लंबाई 465 किलोमीटर है। इसी हाइवे पर दिल्ली से 160 किमी दूर धार्मिक नगरी वृंदावन और मथुरा के कृष्णमय वातावरण में भी एक दिन बिता सकते हैं। वहीं नंदगांव और बरसाना भी इसी हाईवे के आसपास हैं। आगरा में ताजमहल, आगरा फोर्ट देखने के बाद आप हाईवे-11 से फतेहपुर सीकरी जा सकते हैं। यहां का वास्तुशिल्प अवश्य प्रभावित करेगा। वहां से वापस हाईवे-11 पर आकर आप भरतपुर(राजस्थान) स्थित केवलादेव बर्ड सेंक्चुरी में प्रवासी पक्षियों को देखने का आनंद उठा सकते हैं। श्रेणी:भारत के राष्ट्रीय राजमार्ग.

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राष्ट्रीय राजमार्ग २७

९३ किलोमीटर लंबा यह राजमार्ग इलाहाबाद से निकलकर मंगावन तक जाता है। श्रेणी:भारत के राष्ट्रीय राजमार्ग.

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राष्ट्रीय जलमार्ग 1

गंगा नदी से गुजरनेवाले 1680 किलोमीटर लंबे इलाहाबाद-हल्दिया जलमार्ग को भारत में राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या-१ का दर्जा दिया गया है। गंगा नदी का प्रयोग नागरिक यातायात तथा भारवहन के लिए के लिए काफी समय से किया जाता रहा है। इस जलमार्ग पर स्थित प्रमुख शहर इलाहाबाद, वाराणसी, मुगलसराय, बक्सर, आरा, पटना, मोकामा, बाढ, मुंगेर, भागलपुर, फरक्का, कोलकाता तथा हल्दिया है। देश में जल परिवहन को बढावा देने के लिए स्थापित एकमात्र राष्ट्रीय अंतर्देशीय नौकायन संस्थान इस जलमार्ग पर बसे पटना के गायघाट में स्थित है।.

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राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी, इलाहाबाद

भारतीय विज्ञान अकादमी (National Academy of Sciences, India) (स्थापना 1930) भारत की सबसे पुरानी विज्ञान अकादमी है। यह इलाहाबाद में स्थित है। इसका मुख्य उद्देश्य भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा किये गये शोध कार्यों को प्रकाशित करने के लिये एक राष्ट्रीय मंच प्रदान करना है। .

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राजा शिवप्रसाद 'सितारेहिन्द'

राजा शिवप्रसाद 'सितारेहिन्द' (३ फरवरी १८२४ -- २३ मई १८९५) हिन्दी के उन्नायक एवं साहित्यकार थे। वे शिक्षा-विभाग में कार्यरत थे। उनके प्रयत्नों से स्कूलों में हिन्दी को प्रवेश मिला। उस समय हिन्दी की पाठ्यपुस्तकों का बहुत अभाव था। उन्होंने स्वयं इस दिशा में प्रयत्न किया और दूसरों से भी लिखवाया। आपने 'बनारस अखबार' नामक एक हिन्दी पत्र निकाला और इसके माध्यम से हिन्दी का प्रचार-प्रसार किया। इनकी भाषा में फारसी-अरबी के शब्दों का अधिक प्रयोग होता था। राजा साहब 'आम फहम और खास पसंद' भाषा के पक्षपाती और ब्रिटिश शासन के निष्ठावान् सेवक थे। भारतेंदु हरिश्चंद्र ने इन्हें गुरु मानते हुए भी इसलिए इनका विरोध भी किया था। फिर भी इन्हीं के उद्योग से उस समय परम प्रतिकूल परिस्थितियों में भी शिक्षा विभाग में हिंदी का प्रवेश हो सका। साहित्य, व्याकरण, इतिहास, भूगोल आदि विविध विषयों पर इन्होंने प्राय: ३५ पुस्तकों की रचना की जिनमें इनकी 'सवानेह उमरी' (आत्मकथा), 'राजा भोज का सपना', 'आलसियों का कोड़ा', 'भूगोल हस्तामलक' और 'इतिहासतिमिरनाशक' उल्लेख्य हैं। .

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राजिम

राजिम का राजीव लोचन मंदिर राजिम छत्तीसगढ़ में महानदी के तट पर स्थित का प्रसिद्ध तीर्थ है। इसे छत्तीसगढ़ का 'प्रयाग' भी कहते हैं। यहाँ के प्रसिद्ध राजीव लोचन मंदिर में भगवान विष्णु प्रतिष्ठित हैं। प्रतिवर्ष यहाँ पर माघ पूर्णिमा से लेकर शिवरात्रि तक एक विशाल मेला लगता है। यहाँ पर महानदी, पैरी नदी तथा सोंढुर नदी का संगम होने के कारण यह स्थान छत्तीसगढ़ का त्रिवेणी संगम कहलाता है। संगम के मध्य में कुलेश्वर महादेव का विशाल मंदिर स्थित है। कहा जाता है कि वनवास काल में श्री राम ने इस स्थान पर अपने कुलदेवता महादेव जी की पूजा की थी। इस स्थान का प्राचीन नाम कमलक्षेत्र है। ऐसी मान्यता है कि सृष्टि के आरम्भ में भगवान विष्णु के नाभि से निकला कमल यहीं पर स्थित था और ब्रह्मा जी ने यहीं से सृष्टि की रचना की थी। इसीलिये इसका नाम कमलक्षेत्र पड़ा। राजिम को छत्तीसगढ़ का प्रयाग मानते हैं, यहाँ पैरी नदी, सोंढुर नदी और महानदी का संगम है। संगम में अस्थि विसर्जन तथा संगम किनारे पिंडदान, श्राद्ध एवं तर्पण किया जाता है। .

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राजेन्द्र यादव

राजेन्द्र यादव (अंग्रेजी: Rajendra Yadav, जन्म: 28 अगस्त 1929 आगरा – मृत्यु: 28 अक्टूबर 2013 दिल्ली) हिन्दी के सुपरिचित लेखक, कहानीकार, उपन्यासकार व आलोचक होने के साथ-साथ हिन्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय संपादक भी थे। नयी कहानी के नाम से हिन्दी साहित्य में उन्होंने एक नयी विधा का सूत्रपात किया। उपन्यासकार मुंशी प्रेमचन्द द्वारा सन् 1930 में स्थापित साहित्यिक पत्रिका हंस का पुनर्प्रकाशन उन्होंने प्रेमचन्द की जयन्ती के दिन 31 जुलाई 1986 को प्रारम्भ किया था। यह पत्रिका सन् 1953 में बन्द हो गयी थी। इसके प्रकाशन का दायित्व उन्होंने स्वयं लिया और अपने मरते दम तक पूरे 27 वर्ष निभाया। 28 अगस्त 1929 ई० को उत्तर प्रदेश के शहर आगरा में जन्मे राजेन्द्र यादव ने 1951 ई० में आगरा विश्वविद्यालय से एम०ए० की परीक्षा हिन्दी साहित्य में प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान के साथ उत्तीर्ण की। उनका विवाह सुपरिचित हिन्दी लेखिका मन्नू भण्डारी के साथ हुआ था। वे हिन्दी साहित्य की सुप्रसिद्ध हंस पत्रिका के सम्पादक थे। हिन्दी अकादमी, दिल्ली द्वारा राजेन्द्र यादव को उनके समग्र लेखन के लिये वर्ष 2003-04 का सर्वोच्च सम्मान (शलाका सम्मान) प्रदान किया गया था। 28 अक्टूबर 2013 की रात्रि को नई दिल्ली में 84 वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ। .

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राजेंद्र कुमारी बाजपेयी

डॉ॰ राजेंद्र कुमारी बाजपेयी (8 फ़रवरी 1925 - 17 जुलाई 1999) भारत के पूर्व केंद्रीय मंत्री और पांडिचेरी के उपराज्यपाल रह चुकी हैं। वे तीन बार क्रमश: 1980, 1984 और 1989 में सीतापुर से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुई। वे भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की एक समर्पित कार्यकर्त्री और पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी की वहड़ करीबी मानी जाती थी। .

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राजीव दीक्षित

राजीव दीक्षित (30 नवम्बर 1967 - 30 नवम्बर 2010) एक भारतीय वैज्ञानिक, प्रखर वक्ता और आजादी बचाओ आन्दोलन के संस्थापक थे।.

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रज़िया सज्जाद ज़हीर

रजिया सज्जाद जहीर उर्दू की कहानी लेखिका हैं। इनका जन्म १५ फरवरी, सन् १९१७ को राजस्थान के अजमेर शहर में हुआ था। रजिया ने आरम्भिक शिक्षा से लेकर कला स्नातक तक की शिक्षा घर पर रहकर ही प्राप्त की। इसके बाद उनका विवाह सज्जाद ज़हीर नामक साम्यवादी (कम्यूनिस्ट) से हुआ। विवाह के बाद उन्होंने इलाहाबाद से उर्दू में स्नातकोत्तर की परीक्षा उत्तीर्ण की। सन १९४७ में वे अजमेर से लखनऊ आईं और वहाँ करामत हुसैन गर्ल्स कॉलेज में पढाने लगीं। सन् १९६५ में उनकी नियुक्ति सोवियत सूचना विभाग में हुई। उनका निधन १८ दिसबर, १९७९ को हुआ। .

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रघुराज प्रताप सिंह

कुँवर रघुराज प्रताप सिंह (जन्मः 31 अक्टूबर 1967, पश्चिम बंगाल) एक सुप्रसिद्ध भारतीय राजनेता है, जो राजा भैया के नाम से भी प्रसिद्ध हैं। सन 1993 से लेकर अब तक उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिला के विधान सभा क्षेत्र कुंडा से निर्दलीय विधायक निर्वाचित किए जाते हैं। विधानसभा चुनाव 2012 में भी भारी मतों से जीतकर विधानसभा सदस्य हैं। वर्तमान में वे उत्तर प्रदेश के कैबिनेट में खाद्य आपूर्ति मंत्री हैं। .

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रघुवीर सिंह (महाराज कुमार)

डॉ रघुवीर सिंह (23 फरवरी, 1908 - 13 फरवरी, 1991) कुशल चित्रकार, वास्तुशास्त्री, प्रशासक, सैन्य अधिकारी, प्रबुद्ध सांसद, समर्थ इतिहासकार और सुयोग्य हिन्दी साहित्यकार थे। .

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रुडयार्ड किपलिंग

रुडयार्ड किपलिंग (30 दिसम्बर 1865 - 18 जनवरी 1936) एक ब्रिटिश लेखक और कवि थे। ब्रिटिश भारत में बंबई में जन्मे, किपलिंग को मुख्य रूप से उनकी पुस्तक द जंगल बुक(1894) (कहानियों का संग्रह जिसमें रिक्की-टिक्की-टावी भी शामिल है), किम 1901 (साहस की कहानी), द मैन हु वुड बी किंग (1888) और उनकी कविताएं जिसमें मंडालय (1890), गंगा दीन (1890) और इफ- (1910) शामिल हैं, के लिए जाने जाते हैं। उन्हें "लघु कहानी की कला में एक प्रमुख अन्वेषक" माना जाता हैरूदरफोर्ड, एंड्रयू (1987).

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रोशन सिंह

रोशन सिंह (जन्म:१८९२-मृत्यु:१९२७) ठाकुर रोशन सिंह (१८९२ - १९२७) भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के एक क्रान्तिकारी थे। असहयोग आन्दोलन के दौरान उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में हुए गोली-काण्ड में सजा काटकर जैसे ही शान्तिपूर्ण जीवन बिताने घर वापस आये कि हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसियेशन में शामिल हो गये। यद्यपि ठाकुर साहब ने काकोरी काण्ड में प्रत्यक्ष रूप से भाग नहीं लिया था फिर भी आपके आकर्षक व रौबीले व्यक्तित्व को देखकर काकोरी काण्ड के सूत्रधार पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल व उनके सहकारी अशफाक उल्ला खाँ के साथ १९ दिसम्बर १९२७ को फाँसी दे दी गयी। ये तीनों ही क्रान्तिकारी उत्तर प्रदेश के शहीदगढ़ कहे जाने वाले जनपद शाहजहाँपुर के रहने वाले थे। इनमें ठाकुर साहब आयु के लिहाज से सबसे बडे, अनुभवी, दक्ष व अचूक निशानेबाज थे। .

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रोशनी वालिया

रोशनी वालिया जन्म 20 सितम्बर 2001 को इलाहाबाद उत्तर प्रदेश हुआ था। इनकी माँ का नाम स्वीटी वालिया है। रोशनी वालिया एक बाल कलाकार है। .

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रीवा

रीवा भारत के मध्य प्रदेश प्रान्त का नगर है। यह इलाहाबाद नगर से १३१ किलोमीटर दक्षिण स्थित प्रमुख नगर है। यह शहर मध्य प्रदेश प्रांत के विंध्य पठार का एक हिस्से का निर्माण करता है और टोंस एवं उसकी सहायता नदियों द्वारा सिंचित है। इसके उत्तर में उत्तर प्रदेश राज्य, पश्चिम में सतना एवं पूर्व तथा दक्षिण में सीधी जिले स्थित हैं। इसका क्षेत्रफल २,५०९ वर्ग मील है। यह पहले एक बड़ी रियासत थी। यहाँ के निवासियों में गोंड एवं कोल जाति के लोग भी शामिल हैं जो पहाड़ी भागों में रहते हैं। जिले में जंगलों की अधिकता है, जिनसे लाख, लकड़ी एवं जंगली पशु प्राप्त होते हैं। रीवा के जंगलों में ही सफेद बाघ की नस्ल पाई गई हैं। जिले की प्रमुख उपज धान है। जिले के ताला नामक जंगल में बांधागढ़ का ऐतिहासिक किला है। भूतपूर्व रीवा रियासत की स्थापना लगभग 1400 ई. में बघेल राजपूतों द्वारा की गई थी। मुग़ल सम्राट अकबर द्वारा बांधवगढ़ नगर को ध्वस्त किए जाने के बाद रीवा महत्त्वपूर्ण बन गया और 1597 ई, में इसे भूतपूर्व रीवा रियासत की राजधानी के रूप में चुना गया। सन 1812 ई. में यहाँ के स्थानीय शासक ने ब्रिटिश सत्ता से समझौता कर अपनी सम्प्रभुता अंग्रेज़ों को सौंप दी। यह शहर ब्रिटिश बघेलखण्ड एजेंसी की राजधानी भी रहा। यातायात:- रीवा रेल मार्ग से देश के कई बड़े शहरों से जुड़ा है जिससे की रीवा आसानी से पंहुचा जा सकता है। जैसे- दिल्ली, राजकोट, सूरत,नागपुर,जबलपुर,कानपुर,ईलाहाबाद,इंदौर,भोपाल,सतना,बिलासपुर इत्यादि। सड़क मार्ग:- रीवा सड़क मार्ग से निम्न शहरों से आसानी से पहुँचा जा सकता है। और नियमित बसों का संचालन:- भोपाल,इंदौर,जबलपुर,नागपुर,बिलासपुर,रायपुर,ग्वालियर,ईलाहाबाद,बनारस,अमरकंटक.शहडोल.सतना आदि शहरों से है। .

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लाल प्रताप सिंह

युवराज लाल प्रताप सिंह (१८३१-१८५८) कालाकांकर राजघराने से एक स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी व क्रांतिकारी थे, जिन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में अवध की सेना का नेतृत्व करते हुए वर्ष १८५८ ईस्वी में चांदा में वीरगति को प्राप्त हुए थे। १९ फ़रवरी २००९ को भारतीय डाक विभाग ने लाल प्रताप सिंह पर एक डाक टिकट और प्रथम दिवस आवरण जारी किया। .

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लालबहादुर शास्त्री

लालबहादुर शास्त्री (जन्म: 2 अक्टूबर 1904 मुगलसराय - मृत्यु: 11 जनवरी 1966 ताशकन्द), भारत के दूसरे प्रधानमन्त्री थे। वह 9 जून 1964 से 11 जनवरी 1966 को अपनी मृत्यु तक लगभग अठारह महीने भारत के प्रधानमन्त्री रहे। इस प्रमुख पद पर उनका कार्यकाल अद्वितीय रहा। भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात शास्त्रीजी को उत्तर प्रदेश के संसदीय सचिव के रूप में नियुक्त किया गया था। गोविंद बल्लभ पंत के मन्त्रिमण्डल में उन्हें पुलिस एवं परिवहन मन्त्रालय सौंपा गया। परिवहन मन्त्री के कार्यकाल में उन्होंने प्रथम बार महिला संवाहकों (कण्डक्टर्स) की नियुक्ति की थी। पुलिस मन्त्री होने के बाद उन्होंने भीड़ को नियन्त्रण में रखने के लिये लाठी की जगह पानी की बौछार का प्रयोग प्रारम्भ कराया। 1951 में, जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में वह अखिल भारत काँग्रेस कमेटी के महासचिव नियुक्त किये गये। उन्होंने 1952, 1957 व 1962 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी को भारी बहुमत से जिताने के लिये बहुत परिश्रम किया। जवाहरलाल नेहरू का उनके प्रधानमन्त्री के कार्यकाल के दौरान 27 मई, 1964 को देहावसान हो जाने के बाद साफ सुथरी छवि के कारण शास्त्रीजी को 1964 में देश का प्रधानमन्त्री बनाया गया। उन्होंने 9 जून 1964 को भारत के प्रधान मन्त्री का पद भार ग्रहण किया। उनके शासनकाल में 1965 का भारत पाक युद्ध शुरू हो गया। इससे तीन वर्ष पूर्व चीन का युद्ध भारत हार चुका था। शास्त्रीजी ने अप्रत्याशित रूप से हुए इस युद्ध में नेहरू के मुकाबले राष्ट्र को उत्तम नेतृत्व प्रदान किया और पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी। इसकी कल्पना पाकिस्तान ने कभी सपने में भी नहीं की थी। ताशकन्द में पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब ख़ान के साथ युद्ध समाप्त करने के समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद 11 जनवरी 1966 की रात में ही रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गयी। उनकी सादगी, देशभक्ति और ईमानदारी के लिये मरणोपरान्त भारत रत्न से सम्मानित किया गया। .

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लखनऊ

लखनऊ (भारत के सर्वाधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश की राजधानी है। इस शहर में लखनऊ जिले और लखनऊ मंडल के प्रशासनिक मुख्यालय भी स्थित हैं। लखनऊ शहर अपनी खास नज़ाकत और तहजीब वाली बहुसांस्कृतिक खूबी, दशहरी आम के बाग़ों तथा चिकन की कढ़ाई के काम के लिये जाना जाता है। २००६ मे इसकी जनसंख्या २,५४१,१०१ तथा साक्षरता दर ६८.६३% थी। भारत सरकार की २००१ की जनगणना, सामाजिक आर्थिक सूचकांक और बुनियादी सुविधा सूचकांक संबंधी आंकड़ों के अनुसार, लखनऊ जिला अल्पसंख्यकों की घनी आबादी वाला जिला है। कानपुर के बाद यह शहर उत्तर-प्रदेश का सबसे बड़ा शहरी क्षेत्र है। शहर के बीच से गोमती नदी बहती है, जो लखनऊ की संस्कृति का हिस्सा है। लखनऊ उस क्ष्रेत्र मे स्थित है जिसे ऐतिहासिक रूप से अवध क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। लखनऊ हमेशा से एक बहुसांस्कृतिक शहर रहा है। यहाँ के शिया नवाबों द्वारा शिष्टाचार, खूबसूरत उद्यानों, कविता, संगीत और बढ़िया व्यंजनों को हमेशा संरक्षण दिया गया। लखनऊ को नवाबों के शहर के रूप में भी जाना जाता है। इसे पूर्व की स्वर्ण नगर (गोल्डन सिटी) और शिराज-ए-हिंद के रूप में जाना जाता है। आज का लखनऊ एक जीवंत शहर है जिसमे एक आर्थिक विकास दिखता है और यह भारत के तेजी से बढ़ रहे गैर-महानगरों के शीर्ष पंद्रह में से एक है। यह हिंदी और उर्दू साहित्य के केंद्रों में से एक है। यहां अधिकांश लोग हिन्दी बोलते हैं। यहां की हिन्दी में लखनवी अंदाज़ है, जो विश्वप्रसिद्ध है। इसके अलावा यहाँ उर्दू और अंग्रेज़ी भी बोली जाती हैं। .

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लखनऊ का इतिहास

लखनऊ को प्राचीन काल में लक्ष्मणपुर और लखनपुर के नाम से जाना जाता था। कहा जाता है कि अयोध्या के राम ने लक्ष्मण को लखनऊ भेंट किया था। लखनऊ के वर्तमान स्वरूप की स्थापना नवाब आसफउद्दौला ने 1775 ई.में की थी। अवध के शासकों ने लखनऊ को अपनी राजधानी बनाकर इसे समृद्ध किया। लेकिन बाद के नवाब विलासी और निकम्मे साबित हुए। आगे चलकर लॉर्ड डलहौली ने अवध का अधिग्रहण कर ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया। 1850 में अवध के अन्तिम नवाब वाजिद अली शाह ने ब्रिटिश अधीनता स्वीकार कर ली। .

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लीमा धर

लीमा धर (बंगाली লীমা ধর) एक भारतीय लेखक है। फरवरी 2016 तक वह सात पुस्तकें लिखी चुकी है। .

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लीलापुर कलां

लीलापुर कलां, एक इलाहाबाद शहर से लगभग 25 किलोमीटर पर स्थित गांव है और Hanumanganj से करीब 12 राष्ट्रीय राजमार्ग पर 2 किमी है। इलाहाबाद पर रेलवे स्टेशन Ramnathpur वाराणसी मार्ग को Hanumanganj के पास है। ग्रामीण गंगा नदी के किनारे पर स्थित है। गांव के लगभग 5000 निवासियों द्वारा आबादी है। यह जिले के जल्द से जल्द बिजली गांव में से एक था। Kachhar क्षेत्र की बड़ी पथ और ज्यादातर babool पेड़ों यहाँ पाया जाता है, नहीं, आम और अन्य पेड़ों यहाँ हैं कि atay यहाँ बनाने के गर्मियों के मौसम में औसत दर्जे का.

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शम्भूनाथ शुक्ल

शम्भूनाथ शुक्ल (18 दिसंबर 1903), भारत के एक राजनेता, स्वतन्त्रतासंग्राम सेनानी तथा विंध्य प्रदेश के प्रथम मुख्यमन्त्री थे। वे भारतीय संविधान सभा के भी सदस्य थे। उनका जन्म 18 दिसंबर 1903 को हुआ था। शिक्षा इलाहाबाद में हुई। प्रयाग विश्वद्यिालय इलाहाबाद से 1926 में बीए और सन 1928 में एलएलबी की डिग्री हासिल कर ली। एलएलबी में भी गोल्ड मेडल मिला था। 1930 में मुंसिफ मजिस्ट्रेट बुढ़ार में वकालत शुरू की थी। वे महात्मा गांधी के 1920 में असहयोग आंदोलन में हिस्सा लेकर जेल भी पहुंचे थे। 1945 में रीवा महाराजा के कानूनी सलाहकार नियुक्त हुए। 1952 में विंध्यप्रदेश विधान सभा अमरपुर से सदस्य निर्वाचित हुए और विन्धप्रदेश के निर्विरोध मुखय्मन्त्री बने। .

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शान्ति भूषण

शान्ति भूषण (जन्म ११ नवम्बर १९२५ इलाहाबाद) भारत के भूतपूर्व विधिमन्त्री एवं सर्वोच्च न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता हैं। वे मोरारजी देसाई सरकार में विधि, न्याय एवं कम्पनी कार्य मन्त्री थे। सन् २००९ में इंडियन एक्सप्रेस द्वारा उन्हें विश्व के सबसे शक्तिशाली भारतीय लोगों की सूची में ७४वें स्थान पर रखा गया था। वे भारत में भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष करने वालों में अग्रणी हैं। .

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शारदा नहर

शारदा नहर उत्तर प्रदेश की सर्वाधिक लम्बी नहर है। शाखा-प्रशाखाओं सहित शारदा नहर की कुल लम्बाई 12,368 किलोमीटर है। यह उत्तर प्रदेश और नेपाल सीमा के समीप गोमती नदी के किनारे "वनबासा" नामक स्थान से निकाली गई है। नहर का निर्माण कार्य सन् 1920 में प्रारम्भ हुआ और 1928 में पूर्ण हुआ था। इस नहर द्वारा पीलीभीत, बरेली, शाहजहाँपुर, लखीमपुर, हरदोई, सीतापुर, बाराबंकी, लखनऊ, उन्नाव, रायबरेली, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, इलाहाबाद आदि जिलों की लगभग 8 लाख हैक्टेयर भूमि की सिंचाई होती है। नहर की मुख्य शाखाएँ खीरी, शारदा-देवा, बीसलपुर, निगोही, सीतापुर, लखनऊ और हरदोई आदि जिलों में हैं। इस नहर पर "खातिमा शक्ति केन्द्र" भी स्थापित किया गया है। .

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शाहु

छत्रपति शाहु (१६८२-१७४९) मराठा सम्राट और छत्रपति शिवाजी के पौत्र और सम्भाजी का बेटे थे। ये ये छत्रपति शाहु महाराज के नाम से भी जाने जाते हैं। छत्रपति शाहूजी महाराज का जन्म 1874 में हुआ था। उनके बचपन का नाम यशवंतराव था। जब शाहूजी महाराज बालावस्था में थे तभी उनकी माता राधाबाई का निधन तब हो गया । उनके पिता का नाम श्रीमान जयसिंह राव अप्पा साहिब घटगे था। कोलहापुर के राजा शिवजी चतुर्थ की हत्या के पश्चात उनकी विधवा आनन्दीबाई ने उन्हें गोद ले लिया। शाहूजी महाराज को अल्पायु में ही कोल्हापुर की राजगद्दी का उतरदायित्व वहन करना पड़ा। वर्ण-विधान के अनुसार शहूजी शूद्र थे। वे बचपन से ही शिक्षा व कौशल में निपुर्ण थे। शिक्षा प्राप्ति के पश्चात् उन्होने भारत भ्रमण किया। यद्यपि वे कोल्हापुर के महाराज थे परन्तु इसके बावजूद उन्हें भी भारत भ्रमण के दौरान जातिवाद के विष को पीना पड़ा। नासिक, काशी व प्रयाग सभी स्थानों पर उन्हें रूढ़ीवादी ढोंगी ब्राम्हणो का सामना करना करना पड़ा। वे शाहूजी महाराज को कर्मकांड के लिए विवश करना चाहते थे परंतु शाहूजी ने इंकार कर दिया। समाज के एक वर्ग का दूसरे वर्ग के द्वारा जाति के आधार पर किया जा रहा अत्याचार को देख शाहूजी महाराज ने न केवल इसका विरोध किया बल्कि दलित उद्धार योजनाए बनाकर उन्हें अमल में भी लाए। लन्दन में एडवर्ड सप्तम के राज्याभिषेक समारोह के पश्चात् शाहूजी जब भारत वापस लौटे तब भी ब्राह्मणो ने धर्म के आधार पर विभिन्न आरोप उन पर लगाए और यह प्रचारित किया गया की समुद्र पार किया है और वे अपवित्र हो गए है। शाहूजी महाराज की ये सोच थी की शासन स्वयं शक्तिशाली बन जाएगा यदि समाज के सभी वर्ग के लोगों की इसमें हिस्सेदारी सुनिश्चित हो। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए सन 1902 में शाहूजी ने अतिशूद्र व पिछड़े वर्ग के लिए 50 प्रतिशत का आरक्षण सरकारी नौकरियों में दिया। उन्होंने कोलहापुर में शुद्रों के शिक्षा संस्थाओ की शृंखला खड़ी कर दी। अछूतों की शिक्षा के प्रसार के लिए कमेटी का गठन किया। शिक्षा को प्रोत्साहन देने के लिए छात्रवृति व पुरस्कार की व्यवस्था भी करवाई। यद्यपि शाहूजी एक राजा थे परन्तु उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन एक समाजसेवक के रूप में व्यतीत किया। समाज के दबे-कुचले वर्ग के उत्थान के लिए कई कल्याणकारी योजनाएँ प्रारम्भ की। उन्होंने देवदासी प्रथा, सती प्रथा, बंधुआ मजदूर प्रथा को समाप्त किया। विधवा विवाह को मान्यता प्रदान की और नारी शिक्षा को महत्वपूर्ण मानते हुए शिक्षा का भार सरकार पर डाला। मन्दिरो, नदियों, सार्वजानिक स्थानों को सबके लिए समान रूप से खोल दिया गया। शाहूजी महाराज ने डॉ.

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शाहीपुर गाँव, हंडिया (इलाहाबाद)

शाहीपुर, हंडिया,, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश स्थित एक गाँव है। .

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शिव प्रसाद गुप्त

बाबू शिव प्रसाद गुप्ता (28 जून 1883 – 24 अप्रैल 1944) भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, परोपकारी, राष्ट्रवादी कार्यकर्ता तथा महान द्रष्टा थे। उन्होने काशी विद्यापीठ की स्थापना की। शिव प्रसाद ने 'आज' नाम से एक राष्ट्रवादी दैनिक पत्र निकाला। उन्होंने बनारस में 'भारत माता मन्दिर' का भी निर्माण करवाया। .

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शिव गंगा एक्सप्रेस

शिव गंगा एक्सप्रेस उत्तर पूर्व रेलवे जोन वाराणसी की एक भारतीय सुपर फास्ट ट्रेन है इसका नाम वाराणसी के दो अनमोल रत्नों: भगवान शिव और नदी गंगा के नाम पर रखा गया है। मार्ग में मुख्य शहर इलाहाबाद और कानपुर है। इसे 2002 के रेल बजट में पारित कर दिया गया और अतः इसने 1 जुलाई 2002 से अपनी यात्रा की शुरुआत की तथा यह प्रति दिन चलती है और वाराणसी (2014 से मंडुआडीह) से नई दिल्ली 755 किलोमीटर (469 मील) की दूरी तय करती है। श्रेणी:भारतीय रेल की गाड़ियां.

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शिवदान सिंह चौहान

शिवदान सिंह चौहान (1918-2000) हिन्दी साहित्य के प्रथम मार्क्सवादी आलोचक के रूप में ख्यात हैं। लेखक होने के साथ-साथ वे सक्रिय राजनीतिक कार्यकर्ता भी थे। .

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शिवकुटी, इलाहाबाद

इलाहाबाद में गंगा नदी के किनार स्थित शिवकुटी भगवान शिव को समर्पित है। शिवकुटी को कोटीतीर्थ के रूप में भी जाना जाता है। सावन माह में यहां एक मेला लगता है। श्रेणी:इलाहाबाद के दर्शनीय स्थल.

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शुभा मुद्गल

शुभा मुद्गल (जन्म १९४९) भारत की एक प्रसिद्ध हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत, खयाल, टुमरी, दादरा और प्रचलित पॉप संगीत गायिका हैं। इन्हें १९९६ में सर्वश्रेष्ठ गैर-फीचर फिल्म संगीत निर्देशन का नेशनल अवार्ड अमृत बीज के लिये मिला था। Shubha Mudgal Official website.

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श्याम चरण गुप्ता

श्याम चरण गुप्ता (जन्म:९ फ़रवरी १९४५) एक प्रख्यात राजनीतिज्ञ एवं उद्योगपति है। श्याम चरण उत्तर प्रदेश के बाँदा लोकसभा क्षेत्र से २००४ में सांसद निर्वाचित हुए तथा १६ मई २०१४ से इलाहबाद के वर्तमान सांसद है। वे श्याम ग्रुप ऑफ़ कम्पनीज के संस्थापक एवं सी.एम.डी.

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श्रृंग्वेरपुर

लखनऊ रोड पर इलाहाबाद से 45 किलोमीटर दूर श्रृंग्वेरपुर एक धार्मिक स्थान है। स्थानीय लोककथाओं के अनुसार, यह वही स्थान है जहॉ राम ने सीता और लक्ष्मण के साथ निर्वासन के रास्ते पर गंगा नदी को पार कर दिया। श्रृंग्वेरपुर इलाहाबाद के आस-पास के प्रमुख भ्रमण स्थलों में से एक है। यह जगह इलाहाबाद से 40 किलोमीटर दूर स्थित है। श्रृंग्वेरपुर अन्यथा नींद से भरा गांव है जो धीरे-धीरे और लगातार तेजी से बढ़ रहा है यद्यपि, रामायण महाकाव्य में इस स्थान की लंबाई का उल्लेख किया गया है। श्रृंग्वेरपुर निशादराज के प्रसिद्ध राज्य की राजधानी या 'मछुआरों का राजा' के रूप में उल्लेख किया गया है। रामायण में राम, सीता और उनके भाई लक्ष्मन का श्रृंग्वेरपुर आने का अंश पाया गया है। श्रृंग्वेरपुर में किए गए उत्खनन कार्यों ने श्रृंगी ऋषि के मंदिर का पता चला है। यह व्यापक रूप से माना जाता है कि गॉंव का नाम उस ऋषि से ही मिला है। फिर भी, गांव निशादराज की राजधानी के रूप में अधिक प्रसिद्ध है। रामायण का उल्लेख है कि भगवान राम, उनके भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता, निर्वासन पर जंगल जाने से पहले गांव में एक रात तक रहे। ऐसा कहा जाता है कि नावकों ने उन्हें गंगा नदी पार करने से इनकार कर दिया था तब निशादराज ने खुद उस स्थल का दौरा किया जहां भगवान राम इस मुद्दे को सुलझाने में लगे थे। उन्होंने उन्हें रास्ता देने की पेशकश की अगर भगवान राम उन्हें अपना पैर धोने दें, राम ने अनुमति दी और इसका भी उल्लेख है कि निशादराज ने गंगा जल से राम के पैरों को धोया और उसके प्रति अपना श्रद्धा दिखाने के लिए जल पिया। जिस स्थान पर निशादराज ने राम के पैरों को धोया था, वह एक मंच द्वारा चिह्नित किया गया है। इस घटना को पर्याप्त करने के लिए इसका नाम 'रामचुरा' रखा गया है। इस स्थान पर एक छोटा मंदिर भी बनाया गया है। हालांकि इस मंदिर का कोई ऐतिहासिक या सांस्कृतिक महत्व नहीं है, यह जगह बहुत शांत है। गांव में एक बड़ी हाइड्रोलिक प्रणाली भी है यह अच्छी तरह से डिजाइन, वास्तुशिल्प रूप से सुंदर और सच्ची भावना है कि कैसे भारतीय प्राचीन कला और वास्तुकला में अच्छी तरह से अग्रिम थे। ग्रामीणों द्वारा गांव में कई बर्बाद हुई दीवारें और संरचना मिलती है। यह भी कहा गया है कि इंदिरा गांधी सरकार के समय में खुदाई करते समय सरकार द्वारा बहुत सारे खज़ाने मिलते हैं। गंगा नदी के तट पर स्थित यह एक अद्भुत गांव है हरे-भरे 4 छोटे पहाड़ी और सामाजिक और मज़ेदार ग्रामीणों की जगह है, यहॉ हमेशा यात्रा करने के लिए माहौल बना रहता है। नदी के किनारे पर एक अंतिम संस्कार केंद्र है और यह कहा गया है कि जो भी यहां अंतिम संस्कार करते हैं वह धार्मिक रूप से शुद्ध होते हैं। उत्तर प्रदेश पूर्व में सभी लोग अपने प्रियजनों के अंतिम संस्कार के लिए यहां आते हैं। निषाद कोर कमेटी यह उत्तर प्रदेश में एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल बनने के लिए काम कर रही है। मुख्य सदस्य बृजेश कश्यप, शिव सहानी, सुरेश साहनी, डॉ अशोक निषाद और एनसीसी (निषाद कोर कमेटी) के अन्य सदस्य हैं। .

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श्रीधर वर्मन

प्राचीनकाल से ही सागर जिला मध्य भारत के महत्वपूर्ण इलाकों में शामिल रहा है और यहां कई शासक हुए हैं। ऐतिहासिक साक्ष्‍यों के अनुसार सागर का प्रथम ऐतिहासिक शासक श्रीधर वर्मन था। ईसा पश्चात चौथी शताब्दी के प्रारंभ में उत्तर भारत में गुप्त वंश की राजनैतिक सर्वोच्चता स्थापित हुई। इस वंश की राजधानी पाटलिपुत्र थी। चंद्रगुप्त के स्वनामधन्य पुत्र समुद्रगुप्त ने शस्त्र-बल से मध्य भारत और दक्षिण भारत तक अपना आधिपत्य स्थापित करते हुए अनेक राजाओं को हराया। उसके इलाहाबाद में मिले स्तंभों से ज्ञात होता है कि कुछ शकों और मुरुंडों ने शक्तिशाली गुप्त साम्राज्‍य की आधीनता स्वीकार कर ली थी और उससे शासनपत्र प्राप्त कर अपने प्रदेशों का उपभोग करते रहे थे। इस क्षेत्र में मिले विभिन्‍न पुरा साक्ष्यों के अनुसार एक पराजित शक अधिपति श्रीधर वर्मन भी था। उसके बारे में जानकारी देने वाले दो स्तंभों से प्रतीत होता है वह विदिशा-एरण प्रदेश पर राज्‍य कर रहा था। कनखेरा में मिले स्तंभ से प्रतीत होता है कि श्रीधर वर्मन ने अपना जीवन एक सेना अधिकारी के रूप में आरंभ किया और वह संभवत: आभीर राजा का समकालीन था। कालांतर में अपनी योग्‍यता के बलबूते पर श्रीधर वर्मन सामंत बना। आभीर वंश का पतन होने पर उसने अपने स्वतंत्र होने की घोषणा कर दी थी। एरण में प्राप्त दूसरे शिलालेख में उसके राज्‍यकाल के 27वें वर्ष के एक लेख में श्रीधर वर्मन का उल्लेख महाक्षत्रप तथा शकनंद के पुत्र के रूप में किया गया है। ऐतिहासिक साक्ष्‍यों के अनुसार श्रीधर वर्मन धार्मिक प्रवृत्ति का व्‍यक्ति था। दोनों ही शिलालेखों में श्रीधर वर्मन का वर्णन धर्माविजयन अर्थात धार्मिक विजेता के रूप में किया गया है। श्रीधर वर्मन किसी अन्य धर्म का था लेकिन उसे हिंदू धर्म का पक्का अनुयायी माना जाता था। माना जाता है कि समुद्रगुप्त ने किसी बात से उत्तेजित हो उसके राज्‍य पर आक्रमण कर दिया और एरिकिना के युद्ध में उस पर निर्णायक विजय प्राप्त की। श्रेणी:इतिहास श्रेणी:सागर जिला श्रेणी:बुंदेलखंड.

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श्रीनाथ सिंह

श्रीनाथ सिंह (१९०१ - १९९६) द्विवेदी युग के हिन्दी साहित्यकार हैं। इन्होने "सरस्वती" का भी संपादन किया था। उनका जन्म १९०१ ई० में इलाहाबाद जिले के मानपुर ग्राम में हुआ था। इन्होने स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लिया था| हिंदी साहित्य सम्मलेन के इंदौर अधिवेशन में वे महात्मा गाँधी द्वारा सम्मलेन के प्रबंध मंत्री नियुक्त किये गये, बाद में वे हिंदी साहित्य सम्मलेन के सभापति भी हुए| वे तात्कालीन संयुक्त प्रान्त सरकार(१९४६-४७) द्वारा गठित समाचार पत्र उद्योग जांच समिति के सदस्य भी थे| .

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श्रीनारायण चतुर्वेदी

पं॰ श्रीनारायण चतुर्वेदी (१८९५ -- १८ अगस्त १९९०) हिन्दी के साहित्यकार, प्रचारक, सर्जक तथा पत्रकार थे जो आजीवन हिन्दी के लिये समर्पित रहे। वे सरस्वती पत्रिका के सम्पादक रहे। उन्होने राष्ट्र को हिन्दीमय बनाने के लिये जनता में भाषा की जीवन्त चेतना को उकसाया। अपनी अमूल्य हिन्दी सेवा द्वारा उन्होने भारतरत्न मदन मोहन मालवीय तथा पुरुषोत्तम दास टंडन की योजनाओं और लक्ष्यों को आगे बढ़ाया। .

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श्रीभार्गवराघवीयम्

श्रीभार्गवराघवीयम् (२००२), शब्दार्थ परशुराम और राम का, जगद्गुरु रामभद्राचार्य (१९५०-) द्वारा २००२ ई में रचित एक संस्कृत महाकाव्य है। इसकी रचना ४० संस्कृत और प्राकृत छन्दों में रचित २१२१ श्लोकों में हुई है और यह २१ सर्गों (प्रत्येक १०१ श्लोक) में विभक्त है।महाकाव्य में परब्रह्म भगवान श्रीराम के दो अवतारों परशुराम और राम की कथाएँ वर्णित हैं, जो रामायण और अन्य हिंदू ग्रंथों में उपलब्ध हैं। भार्गव शब्द परशुराम को संदर्भित करता है, क्योंकि वह भृगु ऋषि के वंश में अवतीर्ण हुए थे, जबकि राघव शब्द राम को संदर्भित करता है क्योंकि वह राजा रघु के राजवंश में अवतीर्ण हुए थे। इस रचना के लिए, कवि को संस्कृत साहित्य अकादमी पुरस्कार (२००५) तथा अनेक अन्य पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। महाकाव्य की एक प्रति, कवि की स्वयं की हिन्दी टीका के साथ, जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय, चित्रकूट, उत्तर प्रदेश द्वारा प्रकाशित की गई थी। पुस्तक का विमोचन भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा ३० अक्टूबर २००२ को किया गया था। .

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श्रीकृष्णभट्ट कविकलानिधि

(देवर्षि) श्रीकृष्ण भट्ट कविकलानिधि (1675-1761) सवाई जयसिंह के समकालीन, बूंदी और जयपुर के राजदरबारों से सम्मानित, आन्ध्र-तैलंग-भट्ट, संस्कृत और ब्रजभाषा के महाकवि थे। "सवाई जयसिंह द्वितीय (03 नवम्बर 1688 - 21 सितम्बर 1743) ने अपने समय में जिन विद्वत्परिवारों को बाहर से ला कर अपने राज्य में जागीर तथा संरक्षण दिया उनमें आन्ध्र प्रदेश से आया यह तैलंग ब्राह्मण परिवार प्रमुख स्थान रखता है। इस परिवार में में ही उत्पन्न हुए थे (देवर्षि) कविकलानिधि श्रीकृष्णभट्ट जी, जिन्होंने 'ईश्वर विलास', 'पद्यमुक्तावली', 'राघव गीत' आदि अनेक ग्रंथों की रचना कर राज्य का गौरव बढ़ाया। इन्होंने सवाई जयसिंह से सम्मान प्राप्त किया था, (उनके द्वारा जयपुर में आयोजित) अश्वमेध यज्ञ में भाग लिया था, जयपुर को बसते हुए देखा था और उसका एक ऐतिहासिक महाकाव्य में वर्णन किया था। देवर्षि-कुल के इस प्रकांड विद्वान ने अपनी प्रतिभा के बल पर अपने जीवन-काल में पर्याप्त प्रसिद्धि, समृद्धि एवं सम्मान प्राप्त किया था।" भट्ट मथुरानाथ शास्त्री ने अपने इन पूर्वज कविकलानिधि का सोरठा छंद में निबद्ध संस्कृत-कविता में इन शब्दों में स्मरण किया था- तुलसी-सूर-विहारि-कृष्णभट्ट-भारवि-मुखाः। भाषाकविताकारि-कवयः कस्य न सम्भता:।। .

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सतना

सतना भारत के मध्य प्रदेश प्रान्त का एक शहर है। .

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सत्यप्रकाश मिश्र

सत्यप्रकाश मिश्र का जन्म 16 जनवरी 1945 को दोस्तपुर (सुल्तानपुर, उत्तरप्रदेश) में हुआ। सत्यप्रकाश मिश्र हिंदी के आलोचक और संपादक रहे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबाद में हिंदी के प्रोफेसर रहे। हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग (इलाहाबाद) के साहित्य मंत्री रहे ल। सम्मेलन की पत्रिका माध्यम का सम्पादन किया। इलाहाबाद संग्रहालय, इलाहाबाद के मानद निदेशक रहे। 50 से अधिक आलोचनात्मक पुस्तकों का लेखन और सम्पादन किया। उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा साहित्य भूषण सम्मान से सम्मानित किया गया तथा इनका निधन 27 मार्च 2007 को हुआ। .

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सत्येन्द्र दूबे

सत्येन्द्र कुमार दूबे का जन्म बिहार के सिवान जिले में हुआ था। वे भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण में परियोजना निदेशक के पद पर कार्यरत थे। सत्येन्द्र दूबे द्वारा स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना में व्याप्त भ्रष्टाचार को जनता के सामने लाये जाने के कारण उनकी हत्या 27 नवम्बर 2003 में गया जिले में हो गई थी। .

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सबसे सघन आबादी वाले शहर

FE-India-Map-2014.jpg भारत के घनी आबादी वाले शहरों भारत के सबसे घनी आबादी वाले शहरों की सूची .

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समुद्रगुप्त

समुद्रगुप्त (राज 335-380) गुप्त राजवंश के चौथे राजा और चन्द्रगुप्त प्रथम के उत्तरधिकरी थे। वे भारतीय इतिहास में सबसे बड़े और सफल सेनानायक में से एक माने जाते है। समुद्रगुप्त, गुप्त राजवंश के तीसरे शासक थे, और उनका शासनकाल भारत के लिये स्वर्णयुग की शुरूआत कही जाती है। समुद्रगुप्त को गुप्त राजवंश का महानतम राजा माना जाता है। वे एक उदार शासक, वीर योद्धा और कला के संरक्षक थे। उनका नाम जावा पाठ में तनत्रीकमन्दका के नाम से प्रकट है। उसका नाम समुद्र की चर्चा करते हुए अपने विजय अभियान द्वारा अधिग्रहीत एक शीर्षक होना करने के लिए लिया जाता है जिसका अर्थ है "महासागर"। समुद्रगुप्त के कई अग्रज भाई थे, फिर भी उनके पिता ने समुद्रगुप्त की प्रतिभा के देख कर उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। इसलिए कुछ का मानना है कि चंद्रगुप्त की मृत्यु के बाद, उत्तराधिकारी के लिये संघर्ष हुआ जिसमें समुद्रगुप्त एक प्रबल दावेदार बन कर उभरे। कहा जाता है कि समुद्रगुप्त ने शासन पाने के लिये अपने प्रतिद्वंद्वी अग्रज राजकुमार काछा को हराया था। समुद्रगुप्त का नाम सम्राट अशोक के साथ जोड़ा जाता रहा है, हलांकि वे दोनो एक-दूसरे से बिल्कुल भिन्न थे। एक अपने विजय अभियान के लिये जाने जाते थे और दूसरे अपने जुनून के लिये जाने जाते थे। गुप्तकालीन मुद्रा पर वीणा बजाते हुए समुद्रगुप्त का चित्र समुद्र्गुप्त भारत का महान शासक था जिसने अपने जीवन काल मे कभी भी पराजय का स्वाद नही चखा। उसके बारे में वि.एस स्मिथ आकलन किया है कि समुद्रगुप्त प्राचीनकाल में "भारत का नेपोलियन" था। .

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सम्मेलन पत्रिका

सम्मेलन पत्रिका अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग की त्रैमासिक हिन्दी पत्रिका है। .

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सरदार वल्लभभाई राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, सूरत

सरदार वल्लभभाई राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, सूरत जिसे 'एन आई टी सूरत' के नाम से भी जाना जाता है, प्रौद्योगिकी एवम अभियांत्रिकी का राष्ट्रीय महत्व का संस्थान है। यह भारत के लगभग तीस राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (एन आई टी) में से एक है। इसे भारत सरकार ने १९६१ में स्थापित किया था। इसकी संगठनात्मक संरचना एवम स्नातक प्रवेश प्रक्रिया शेष सभी एन आई टी की तरह ही है। संस्थान में इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी, विज्ञान मानविकी और प्रबंधन में स्नातक, पूर्व स्नातक एवम डॉक्टरेट के पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं। .

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सरला देवी चौधुरानी

सरला देवी चौधुरानी (९ सितम्बर १८७२ - १८ अगस्त १९४५) भारत में पहली महिला संगठन की संस्थापक थी। उन्हें १९१० में इलाहाबाद में भारत स्त्री महामंडल की संस्थापक के तौर पर जाना जाता है। संगठन के प्राथमिक लक्ष्यों में से एक यह कि था महिला शिक्षा को बढ़ावा दिया जाए, जो उस समय अच्छी तरह से विकसित नहीं हुआ था। संगठन ने पूरे भारत में महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए लाहौर (उस समय अविभाजित भारत का हिस्सा), इलाहाबाद, दिल्ली, कराची, अमृतसर, हैदराबाद, कानपुर, बंकुरा, हजारीबाग, मिदनापुर और कोलकाता (पूर्व कलकत्ता) में कई कार्यालय खोल दिए थे। .

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सरस्वती नदी

सरस्वती एक पौराणिक नदी जिसकी चर्चा वेदों में भी है। ऋग्वेद (२ ४१ १६-१८) में सरस्वती का अन्नवती तथा उदकवती के रूप में वर्णन आया है। यह नदी सर्वदा जल से भरी रहती थी और इसके किनारे अन्न की प्रचुर उत्पत्ति होती थी। कहते हैं, यह नदी पंजाब में सिरमूरराज्य के पर्वतीय भाग से निकलकर अंबाला तथा कुरुक्षेत्र होती हुई कर्नाल जिला और पटियाला राज्य में प्रविष्ट होकर सिरसा जिले की दृशद्वती (कांगार) नदी में मिल गई थी। प्राचीन काल में इस सम्मिलित नदी ने राजपूताना के अनेक स्थलों को जलसिक्त कर दिया था। यह भी कहा जाता है कि प्रयाग के निकट तक आकार यह गंगा तथा यमुना में मिलकर त्रिवेणी बन गई थी। कालांतर में यह इन सब स्थानों से तिरोहित हो गई, फिर भी लोगों की धारणा है कि प्रयाग में वह अब भी अंत:सलिला होकर बहती है। मनुसंहिता से स्पष्ट है कि सरस्वती और दृषद्वती के बीच का भूभाग ही ब्रह्मावर्त कहलाता था। .

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सरस्वती पत्रिका

सरस्वती हिन्दी साहित्य की प्रसिद्ध रूपगुणसम्पन्न प्रतिनिधि पत्रिका थी। इस पत्रिका का प्रकाशन इलाहाबाद से सन १९०० ई० के जनवरी मास में प्रारम्भ हुआ था। ३२ पृष्ठ की क्राउन आकार की इस पत्रिका का मूल्य ४ आना मात्र था। १९०३ ई० में महावीर प्रसाद द्विवेदी इसके संपादक हुए और १९२० ई० तक रहे। इसका प्रकाशन पहले झाँसी और फिर कानपुर से होने लगा था। महवीर प्रसाद द्विवेदी के बाद पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, देवी दत्त शुक्ल, श्रीनाथ सिंह, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, देवीलाल चतुर्वेदी और श्रीनारायण चतुर्वेदी सम्पादक हुए। १९०५ ई० में काशी नागरी प्रचारिणी सभा का नाम मुखपृष्ठ से हट गया। 1903 में महावीर प्रसाद द्विवेदी ने इसका कार्यभार संभाला। एक ओर भाषा के स्तर पर और दूसरी ओर प्रेरक बनकर मार्गदर्शन का कार्य संभालकर द्विवेदी जी ने साहित्यिक और राष्ट्रीय चेतना को स्वर प्रदान किया। द्विवेदी जी ने भाषा की समृद्धि करके नवीन साहित्यकारों को राह दिखाई। उनका वक्तव्य है: महावीरप्रसाद द्विवेदी ने ‘सरस्वती’ पत्रिका के माध्यम से ज्ञानवर्धन करने के साथ-साथ नए रचनाकारों को भाषा का महत्त्व समझाया व गद्य और पद्य के लिए राह निर्मित की। महावीर प्रसाद द्विवेदी की यह पत्रिका मूलतः साहित्यिक थी और हरिऔध, मैथिलीशरण गुप्त से लेकर कहीं-न-कहीं निराला के निर्माण में इसी पत्रिका का योगदान था परंतु साहित्य के निर्माण के साथ राष्ट्रीयता का प्रसार करना भी इनका उद्देश्य था। भाषा का निर्माण करना साथ ही गद्य-पद्य के लिए खड़ी बोली को ही प्रोत्साहन देना इनका सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य था। मई १९७६ के बाद इसका प्रकाशन बन्द हो गया।लगभग अस्सी वर्षों तक यह पत्रिका निकली I अंतिम बीस वर्षों तक इसका सम्पादन पंडित श्रीनारायण चतुर्वेदी ने किया I .

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सरोजिनी नायडू

महात्मा गांधी के साथ सरोजिनी नायडू सरोजिनी नायडू (१३ फरवरी १८७९ - २ मार्च १९४९) का जन्म भारत के हैदराबाद नगर में हुआ था। इनके पिता अघोरनाथ चट्टोपाध्याय एक नामी विद्वान तथा माँ कवयित्री थीं और बांग्ला में लिखती थीं। बचपन से ही कुशाग्र-बुद्धि होने के कारण उन्होंने १२ वर्ष की अल्पायु में ही १२हवीं की परीक्षा अच्छे अंकों के साथ उत्तीर्ण की और १३ वर्ष की आयु में लेडी ऑफ दी लेक नामक कविता रची। वे १८९५ में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए इंग्लैंड गईं और पढ़ाई के साथ-साथ कविताएँ भी लिखती रहीं। गोल्डन थ्रैशोल्ड उनका पहला कविता संग्रह था। उनके दूसरे तथा तीसरे कविता संग्रह बर्ड ऑफ टाइम तथा ब्रोकन विंग ने उन्हें एक सुप्रसिद्ध कवयित्री बना दिया। १८९८ में सरोजिनी नायडू, डॉ॰ गोविंदराजुलू नायडू की जीवन-संगिनी बनीं। १९१४ में इंग्लैंड में वे पहली बार गाँधीजी से मिलीं और उनके विचारों से प्रभावित होकर देश के लिए समर्पित हो गयीं। एक कुशल सेनापति की भाँति उन्होंने अपनी प्रतिभा का परिचय हर क्षेत्र (सत्याग्रह हो या संगठन की बात) में दिया। उन्होंने अनेक राष्ट्रीय आंदोलनों का नेतृत्व किया और जेल भी गयीं। संकटों से न घबराते हुए वे एक धीर वीरांगना की भाँति गाँव-गाँव घूमकर ये देश-प्रेम का अलख जगाती रहीं और देशवासियों को उनके कर्तव्य की याद दिलाती रहीं। उनके वक्तव्य जनता के हृदय को झकझोर देते थे और देश के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए प्रेरित कर देते थे। वे बहुभाषाविद थी और क्षेत्रानुसार अपना भाषण अंग्रेजी, हिंदी, बंगला या गुजराती में देती थीं। लंदन की सभा में अंग्रेजी में बोलकर इन्होंने वहाँ उपस्थित सभी श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया था। अपनी लोकप्रियता और प्रतिभा के कारण १९२५ में कानपुर में हुए कांग्रेस अधिवेशन की वे अध्यक्षा बनीं और १९३२ में भारत की प्रतिनिधि बनकर दक्षिण अफ्रीका भी गईं। भारत की स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद वे उत्तरप्रदेश की पहली राज्यपाल बनीं। श्रीमती एनी बेसेन्ट की प्रिय मित्र और गाँधीजी की इस प्रिय शिष्या ने अपना सारा जीवन देश के लिए अर्पण कर दिया। २ मार्च १९४९ को उनका देहांत हुआ। १३ फरवरी १९६४ को भारत सरकार ने उनकी जयंती के अवसर पर उनके सम्मान में १५ नए पैसे का एक डाकटिकट भी जारी किया। .

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साधु

साधु, संस्कृत शब्द है जिसका सामान्य अर्थ 'सज्जन व्यक्ति' से है। लघुसिद्धान्तकौमुदी में कहा है- 'साध्नोति परकार्यमिति साधुः' (जो दूसरे का कार्य कर देता है, वह साधु है।)। वर्तमान समय में साधु उनको कहते हैं जो सन्यास दीक्षा लेकर गेरुए वस्त्र धारण करते है उन्हें भी साधु कहा जाने लगा है। साधु(सन्यासी) का मूल उद्देश्य समाज का पथप्रदर्शन करते हुए धर्म के मार्ग पर चलकर मोक्ष प्राप्त करना है। साधु सन्यासी गण साधना, तपस्या करते हुए वेदोक्त ज्ञान को जगत को देते है और अपने जीवन को त्याग और वैराग्य से जीते हुए ईश्वर भक्ति में विलीन हो जाते है। .

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सिद्धार्थ निगम

सिद्धार्थ निगम एक भारतीय फिल्म और टेलीविजन बाल कलाकार है। उन्होंने टीवी विज्ञापन बोर्नवीटा के साथ अपने कैरियर की शुरुआत की। उन्होने 2013 में अपनी पहली फिल्म धूम 3 काम किया। बाद में वह उन्होने अपने टीवी कैरियर शुरू महाकुम्भ के टीवी 'से की। वह ऐतिहासिक नाटक शो चक्रवर्तीं अशोक सम्राट के रूप में युवा अशोक सम्राट अभिनय निभा रहे हैं। .

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सिन्धु-गंगा के मैदान

सिन्धु-गंगा मैदान का योजनामूलक मानचित्र सिन्धु-गंगा का मैदान, जिसे उत्तरी मैदानी क्षेत्र तथा उत्तर भारतीय नदी क्षेत्र भी कहा जाता है, एक विशाल एवं उपजाऊ मैदानी इलाका है। इसमें उत्तरी तथा पूर्वी भारत का अधिकांश भाग, पाकिस्तान के सर्वाधिक आबादी वाले भू-भाग, दक्षिणी नेपाल के कुछ भू-भाग तथा लगभग पूरा बांग्लादेश शामिल है। इस क्षेत्र का यह नाम इसे सींचने वाली सिन्धु तथा गंगा नामक दो नदियों के नाम पर पड़ा है। खेती के लिए उपजाऊ मिट्टी होने के कारण इस इलाके में जनसंख्या का घनत्व बहुत अधिक है। 7,00,000 वर्ग किमी (2,70,000 वर्ग मील) जगह पर लगभग 1 अरब लोगों (या लगभग पूरी दुनिया की आबादी का 1/7वां हिस्सा) का घर होने के कारण यह मैदानी इलाका धरती की सर्वाधिक जनसंख्या वाले क्षेत्रों में से एक है। सिन्धु-गंगा के मैदानों पर स्थित बड़े शहरों में अहमदाबाद, लुधियाना, अमृतसर, चंडीगढ़, दिल्ली, जयपुर, कानपुर, लखनऊ, इलाहाबाद, वाराणसी, पटना, कोलकाता, ढाका, लाहौर, फैसलाबाद, रावलपिंडी, इस्लामाबाद, मुल्तान, हैदराबाद और कराची शामिल है। इस क्षेत्र में, यह परिभाषित करना कठिन है कि एक महानगर कहां शुरू होता है और कहां समाप्त होता है। सिन्धु-गंगा के मैदान के उत्तरी छोर पर अचानक उठने वाले हिमालय के पर्वत हैं, जो इसकी कई नदियों को जल प्रदान करते हैं तथा दो नदियों के मिलन के कारण पूरे क्षेत्र में इकट्ठी होने वाली उपजाऊ जलोढ़ मिटटी के स्रोत हैं। इस मैदानी इलाके के दक्षिणी छोर पर विंध्य और सतपुड़ा पर्वत श्रृंखलाएं तथा छोटा नागपुर का पठार स्थित है। पश्चिम में ईरानी पठार स्थित है। .

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सिंहस्थ

सिंहस्थ उज्जैन का महान स्नान पर्व है। बारह वर्षों के अंतराल से यह पर्व तब मनाया जाता है जब बृहस्पति सिंह राशि पर स्थित रहता है। पवित्र क्षिप्रा नदी में पुण्य स्नान की विधियां चैत्र मास की पूर्णिमा से प्रारंभ होती हैं और पूरे मास में वैशाख पूर्णिमा के अंतिम स्नान तक भिन्न-भिन्न तिथियों में सम्पन्न होती है। उज्जैन के महापर्व के लिए पारम्परिक रूप से दस योग महत्वपूर्ण माने गए हैं। .

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संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी

संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी संस्कृत, हिंदी, ब्रजभाषा के प्रकाण्ड विद्वान तथा आध्यात्म के पुरोधा थे। ब्रह्मचारी जी साधना, समाज सेवा, संस्कृति, साहित्य, स्वाधीनता, शिक्षा के समर्पित पोषक एवं प्रेरणा-स्रोत थे। बलदेव, बरसाना, खुर्जा, नरवर एवं वाराणसी में उन्होंने संस्कृत का अध्ययन किया। स्वामी करपात्रीजी एवं साहित्यकार कन्हैया लाल मिश्र 'प्रभाकर' उनके सहपाठी थे। वे ' श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारी, हे नाथ नारायण वासुदेव ' मंत्र के द्रष्टा थे। उनके जीवन के चार संकल्प थे - दिल्ली में हनुमान जी की ४० फुट ऊंची प्रतिमा की स्थापना, राजधानी स्थित पांडवों के किले (इन्द्रप्रस्थ) में भगवान विष्णु की ६० फुट ऊंची प्रतिमा की स्थापना, गोहत्या पर प्रतिबंध तथा श्रीराम जन्मभूमि की मुक्ति। वे इस सदी के महान संत थे। उन्होंने सतत्‌ नाम संकीर्तन की ज्योति जलाकर सदैव देश और समाज की समृद्धि की कामना की थी। गोरक्षा, गंगा की पवित्रता, हिन्दी भाषा, भारतीय संस्कृति और हिन्दू धर्म की सेवा उनके जीवन के लक्ष्य थे। उन्होंने गोरक्षा के मुद्दे पर अनशन, आन्दोलन तथा यात्राएं भी कीं। .

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संत रविदास नगर जिला

भदोही ज़िला भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश का एक ज़िला है। जिले का मुख्यालय ज्ञानपुर में है। पहले यह वाराणसी जिले में था।भदोही ज़िला इलाहाबाद और वाराणसी के बीच मे स्थित है| यहा का कालीन उद्योग विश्व प्रसिद्ध है और कृषी के बाद दूसरा प्रमुख रोजगार का श्रोत है| .

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संदीप नाथ

संदीप नाथ बॉलीवुड फ़िल्मों में कार्यरत एक भारतीय गीतकार और लेखक व कवि हैं। .

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संपूर्णानन्द

डॉ॰ संपूर्णानंद डॉ॰ संपूर्णानन्द (1 जनवरी 1890 - 10 जनवरी 1969) कुशल तथा निर्भीक राजनेता एवं सर्वतोमुखी प्रतिभावाले साहित्यकार एवं अध्यापक थे। वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। .

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संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द

हिन्दी भाषी क्षेत्र में कतिपय संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द प्रचलित हैं। जैसे- सप्तऋषि, सप्तसिन्धु, पंच पीर, द्वादश वन, सत्ताईस नक्षत्र आदि। इनका प्रयोग भाषा में भी होता है। इन शब्दों के गूढ़ अर्थ जानना बहुत जरूरी हो जाता है। इनमें अनेक शब्द ऐसे हैं जिनका सम्बंध भारतीय संस्कृति से है। जब तक इनकी जानकारी नहीं होती तब तक इनके निहितार्थ को नहीं समझा जा सकता। यह लेख अभी निर्माणाधीन हॅ .

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संगम

संगम के अन्य अर्थों के लिये यहां जाएं - संगम (बहुविकल्पी) संगम का अर्थ है मिलन, सम्मिलन। भूगोल में संगम उस जगह को कहते हैं जहाँ पानी की दो या दो से अधिक धाराएँ मिल रही होती हैं। जैसे इलाहाबाद में गंगा, यमुना (और, लोककथाओं के अनुसार, सरस्वती) के मिलन स्थल को त्रिवेणी संगम कहते हैं। .

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सुभद्रा कुमारी चौहान

सुभद्रा कुमारी चौहान (१६ अगस्त १९०४-१५ फरवरी १९४८) हिन्दी की सुप्रसिद्ध कवयित्री और लेखिका थीं। उनके दो कविता संग्रह तथा तीन कथा संग्रह प्रकाशित हुए पर उनकी प्रसिद्धि झाँसी की रानी कविता के कारण है। ये राष्ट्रीय चेतना की एक सजग कवयित्री रही हैं, किन्तु इन्होंने स्वाधीनता संग्राम में अनेक बार जेल यातनाएँ सहने के पश्चात अपनी अनुभूतियों को कहानी में भी व्यक्त किया। वातावरण चित्रण-प्रधान शैली की भाषा सरल तथा काव्यात्मक है, इस कारण इनकी रचना की सादगी हृदयग्राही है। .

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सुमित्रानन्दन पन्त

सुमित्रानंदन पंत (२० मई १९०० - २९ दिसम्बर १९७७) हिंदी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। इस युग को जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' और रामकुमार वर्मा जैसे कवियों का युग कहा जाता है। उनका जन्म कौसानी बागेश्वर में हुआ था। झरना, बर्फ, पुष्प, लता, भ्रमर-गुंजन, उषा-किरण, शीतल पवन, तारों की चुनरी ओढ़े गगन से उतरती संध्या ये सब तो सहज रूप से काव्य का उपादान बने। निसर्ग के उपादानों का प्रतीक व बिम्ब के रूप में प्रयोग उनके काव्य की विशेषता रही। उनका व्यक्तित्व भी आकर्षण का केंद्र बिंदु था। गौर वर्ण, सुंदर सौम्य मुखाकृति, लंबे घुंघराले बाल, सुगठित शारीरिक सौष्ठव उन्हें सभी से अलग मुखरित करता था। .

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सुरेश कलमाड़ी

सुरेश कलमाड़ी (जन्म 1 मई 1944) एक भारतीय राजनेता और वरिष्ठ खेल प्रबंधक हैं। वे राजनीतिक पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक सदस्य हैं। वे भारतीय ओलंपिक संघ, एशियन एथलेटिक्स एसोसिएशन और भारतीय एथलेटिक्स फेडरेशन के प्रेसिडेंट भी हैं। .

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सुल्तानपुर जिला

उत्तर प्रदेश भारत देश का सर्वाधिक जिलों वाला राज्य है, जिसमें कुल 75 जिले हैं। आदिगंगा गोमती नदी के तट पर बसा सुल्तानपुर इसी राज्य का एक प्रमुख जिला है। यहाँ के लोग सामान्यत: वाराणसी, इलाहाबाद, कानपुर और लखनऊ जिलों में पढ़ाई करने जाते हैं। सुल्तानपुर जिले की स्थानीय बोलचाल की भाषा अवधी और खड़ी बोली है। .

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स्वदेश भारती

स्वदेश भारती हिन्दी के कवि एवं साहित्यकार हैं। उन्हें प्रेमचन्द पुरस्कर एवं साहित्यभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। वे कोलकाता में रहते हैं और रूपाम्बर नामक द्विभाषी त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका के सम्पादक हैं। .

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स्वराज भवन, इलाहाबाद

स्वराज भवन स्वराज भवन इलाहाबाद में स्थित एक ऐतिहासिक भवन एवं संग्रहालय है। इसका मूल नाम 'आनन्द भवन' था। इस ऐतिहासिक भवन का निर्माण मोतीलाल नेहरू ने करवाया था। 1930 में उन्होंने इसे राष्ट्र को समर्पित कर दिया था। इसके बाद यहां कांग्रेस कमेटी का मुख्यालय बनाया गया। भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का जन्म यहीं पर हुआ था। आज इसे संग्रहालय का रूप दे दिया गया है। .

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स्वराज्य (हिन्दी समाचारपत्र)

स्वराज्य इलाहाबाद से निकलने वाला एक राष्ट्रवादी हिन्दी साप्ताहिक समाचारपत्र था। चित्र:Bengal gazetteer 1907-9.jpg .

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स्वाति सिंह

स्वाति सिंह एक भारतीय राजनीतिज्ञ और उत्तर प्रदेश सरकार में की एक मंत्री हैं। वे एनआरआई, बाढ़ नियंत्रण, कृषि आयात, कृषि विपणन, कृषि, विदेश व्यापार की मन्त्री तथा महिला कल्याण मंत्रालय, परिवार कल्याण, मातृत्व और बाल कल्याण मन्त्रालयों की राज्य मंत्री हैं। .

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स्वामी प्रणवानन्द

'''भारत सेवाश्रम संघ''' के संस्थापक '''स्वामी प्रणवानन्द''' स्वामी प्रणवानन्द (14 मई १८९६ - १९४१) एक सन्त थे जिन्होने भारत सेवाश्रम संघ की स्थापना की। उन्होने भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में भी भाग लिया। वे बाबा गंभीरनाथ जी के शिष्य थे। सन् १९१७ में उन्होने भारत सेवाश्रम संघ की स्थापना की। उनके अनुयायी उन्हे भगवान शिव का अवतार मानते हैं। .

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स्वामी रामानन्दाचार्य

स्वामी रामानंद को मध्यकालीन भक्ति आंदोलन का महान संत माना जाता है। उन्होंने रामभक्ति की धारा को समाज के निचले तबके तक पहुंचाया। वे पहले ऐसे आचार्य हुए जिन्होंने उत्तर भारत में भक्ति का प्रचार किया। उनके बारे में प्रचलित कहावत है कि - द्वविड़ भक्ति उपजौ-लायो रामानंद। यानि उत्तर भारत में भक्ति का प्रचार करने का श्रेय स्वामी रामानंद को जाता है। उन्होंने तत्कालीन समाज में ब्याप्त कुरीतियों जैसे छूयाछूत, ऊंच-नीच और जात-पात का विरोध किया। .

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स्वीटी वालिया

स्वीटी वालिया (Sweety Walia) (जन्म;११ जून इलाहाबाद,उत्तर प्रदेश,भारत एक भारतीय हिन्दी टेलीविज़न अभिनेत्री है। जिन्होंने कई बॉलीवुड धारावाहिकों में अभिनय किया है। स्वीटी वालिया बाल - टेलीविजन अभिनेत्री रोशनी वालिया की मां है, रोशनी वालिया जिन्होंने फैज़ल ख़ान के साथ भारत का वीर पुत्र – महाराणा प्रताप नामक धारावाहिक में महाराणा प्रताप की पत्नी अजबदे पंवार का अभिनय किया था। वालिया के पिता जो कि भारतीय सेना के ऑफिसर है। .

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सैम हिग्गिनबॉटम कृषि, प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान

'सैम हिगिनबॉटम कृषि, प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान (Sam Higginbottom Institute of Agriculture, Technology and Science) भारत में उत्तर प्रदेश राज्य के इलाहाबाद नगर में एक प्रमुख विश्वविद्यालय है। यह दक्षिण एशिया के सबसे पुराने संस्थानों में से एक है। इसकी स्थापना १९१० में डॉ॰ सैम हिगिनबौटम द्वारा की गई थी। इसको पहले इलाहाबाद कृषि संस्थान कहा जाता था। .

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सूबेदारगंज रेलवे स्टेशन

सूबेदारगंज रेलवे स्टेशन भारतीय रेल का एक रेलवे स्टेशन है। यह इलाहाबाद शहर में स्थित है। श्रेणी:उत्तर प्रदेश के रेलवे स्टेशन.

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सूर्य मंदिर, प्रतापगढ़

सूर्य मंदिर प्रतापगढ़, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) और बहुमूल्य कलाकृति अधिनियम 1972 के तहत संरक्षित भगवान सूर्य को समर्पित प्राचीन मंदिर है जो उत्तर प्रदेश के इलाहबाद मुख्यालय से करीब 42 किलोमीटर दूर स्थित प्रतापगढ़ के सदर तहसील के गौरा के स्वरूपपुर के मजरा शिवगंज स्थित पटेल बस्ती में स्थित है। .

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सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'

सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (२१ फरवरी, १८९९ - १५ अक्टूबर, १९६१) हिन्दी कविता के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माने जाते हैं। वे जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत और महादेवी वर्मा के साथ हिन्दी साहित्य में छायावाद के प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं। उन्होंने कहानियाँ, उपन्यास और निबंध भी लिखे हैं किन्तु उनकी ख्याति विशेषरुप से कविता के कारण ही है। .

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हनुमान मंदिर, इलाहाबाद

इलाहाबाद में संगम के निकट स्थित यह मंदिर उत्तर भारत के मंदिरों में अद्वितीय है। मंदिर में हनुमान की विशाल मूर्ति आराम की मुद्रा में स्थापित है। यद्यपि यह एक छोटा मंदिर है फिर भी प्रतिदिन सैकड़ों की तादाद में भक्तगण आते हैं। नदी से नजदीक होने कारण बाढ आने पर यह मंदिर डूब जाता है। श्रेणी:इलाहाबाद के दर्शनीय स्थल श्रेणी:हनुमान मंदिर.

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हरिद्वार

हरिद्वार, उत्तराखण्ड के हरिद्वार जिले का एक पवित्र नगर तथा हिन्दुओं का प्रमुख तीर्थ है। यह नगर निगम बोर्ड से नियंत्रित है। यह बहुत प्राचीन नगरी है। हरिद्वार हिन्दुओं के सात पवित्र स्थलों में से एक है। ३१३९ मीटर की ऊंचाई पर स्थित अपने स्रोत गोमुख (गंगोत्री हिमनद) से २५३ किमी की यात्रा करके गंगा नदी हरिद्वार में मैदानी क्षेत्र में प्रथम प्रवेश करती है, इसलिए हरिद्वार को 'गंगाद्वार' के नाम से भी जाना जाता है; जिसका अर्थ है वह स्थान जहाँ पर गंगाजी मैदानों में प्रवेश करती हैं। हरिद्वार का अर्थ "हरि (ईश्वर) का द्वार" होता है। पश्चात्कालीन हिंदू धार्मिक कथाओं के अनुसार, हरिद्वार वह स्थान है जहाँ अमृत की कुछ बूँदें भूल से घड़े से गिर गयीं जब God Dhanwantari उस घड़े को समुद्र मंथन के बाद ले जा रहे थे। ध्यातव्य है कि कुम्भ या महाकुम्भ से सम्बद्ध कथा का उल्लेख किसी पुराण में नहीं है। प्रक्षिप्त रूप में ही इसका उल्लेख होता रहा है। अतः कथा का रूप भी भिन्न-भिन्न रहा है। मान्यता है कि चार स्थानों पर अमृत की बूंदें गिरी थीं। वे स्थान हैं:- उज्जैन, हरिद्वार, नासिक और प्रयाग। इन चारों स्थानों पर बारी-बारी से हर १२वें वर्ष महाकुम्भ का आयोजन होता है। एक स्थान के महाकुम्भ से तीन वर्षों के बाद दूसरे स्थान पर महाकुम्भ का आयोजन होता है। इस प्रकार बारहवें वर्ष में एक चक्र पूरा होकर फिर पहले स्थान पर महाकुम्भ का समय आ जाता है। पूरी दुनिया से करोड़ों तीर्थयात्री, भक्तजन और पर्यटक यहां इस समारोह को मनाने के लिए एकत्रित होते हैं और गंगा नदी के तट पर शास्त्र विधि से स्नान इत्यादि करते हैं। एक मान्यता के अनुसार वह स्थान जहाँ पर अमृत की बूंदें गिरी थीं उसे हर की पौड़ी पर ब्रह्म कुण्ड माना जाता है। 'हर की पौड़ी' हरिद्वार का सबसे पवित्र घाट माना जाता है और पूरे भारत से भक्तों और तीर्थयात्रियों के जत्थे त्योहारों या पवित्र दिवसों के अवसर पर स्नान करने के लिए यहाँ आते हैं। यहाँ स्नान करना मोक्ष प्राप्त करवाने वाला माना जाता है। हरिद्वार जिला, सहारनपुर डिवीजनल कमिशनरी के भाग के रूप में २८ दिसम्बर १९८८ को अस्तित्व में आया। २४ सितंबर १९९८ के दिन उत्तर प्रदेश विधानसभा ने 'उत्तर प्रदेश पुनर्गठन विधेयक, १९९८' पारित किया, अंततः भारतीय संसद ने भी 'भारतीय संघीय विधान - उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम २०००' पारित किया और इस प्रकार ९ नवम्बर २०००, के दिन हरिद्वार भारतीय गणराज्य के २७वें नवगठित राज्य उत्तराखंड (तब उत्तरांचल), का भाग बन गया। आज, यह अपने धार्मिक महत्त्व के अतिरिक्त भी, राज्य के एक प्रमुख औद्योगिक केन्द्र के रूप में, तेज़ी से विकसित हो रहा है। तेज़ी से विकसित होता औद्योगिक एस्टेट, राज्य ढांचागत और औद्योगिक विकास निगम, SIDCUL (सिडकुल), भेल (भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड) और इसके सम्बंधित सहायक इस नगर के विकास के साक्ष्य हैं। .

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हरिप्रसाद चौरसिया

thumb हरिप्रसाद चौरसिया (१९८८ में) हरिप्रसाद चौरसिया या पंडित हरिप्रसाद चौरसिया (जन्म: १ जुलाई १९३८इलाहाबाद) प्रसिद्ध बांसुरी वादक हैं। उन्हे भारत सरकार ने १९९२ में पद्म भूषण तथा सन २००० में पद्मविभूषण से सम्मानित किया था। .

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हरिहर क्षेत्र

बिहार की राजधानी पटना से पाँच किलोमीटर उत्तर सारण में गंगा और गंडक के संगम पर स्थित 'सोनपुर' नामक कस्बे को ही प्राचीन काल में हरिहरक्षेत्र कहते थे। देश के चार धर्म महाक्षेत्रों में से एक हरिहरक्षेत्र है। ऋषियों और मुनियों ने इसे प्रयाग और गया से भी श्रेष्ठ तीर्थ माना है। ऐसा कहा जाता है कि इस संगम की धारा में स्नान करने से हजारों वर्ष के पाप कट जाते हैं। कर्तिक पूर्णिमा के अवसर पर यहाँ एक विशाल मेला लगता है जो मवेशियों के लिए एशिया का सबसे बड़ा मेला समझा जाता है। यहाँ हाथी, घोड़े, गाय, बैल एवं चिड़ियों आदि के अतिरिक्त सभी प्रकार के आधुनिक सामान, कंबल दरियाँ, नाना प्रकार के खिलौने और लकड़ी के सामान बिकने को आते हैं। सोनपुर मेला लगभग एक मास तक चलता है। इस मेले के संबंध में अनेक किंवदंतियाँ प्रचलित हैं। .

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हरिवंश राय बच्चन

हरिवंश राय श्रीवास्तव "बच्चन" (२७ नवम्बर १९०७ – १८ जनवरी २००३) हिन्दी भाषा के एक कवि और लेखक थे। इलाहाबाद के प्रवर्तक बच्चन हिन्दी कविता के उत्तर छायावाद काल के प्रमुख कवियों मे से एक हैं। उनकी सबसे प्रसिद्ध कृति मधुशाला है। भारतीय फिल्म उद्योग के प्रख्यात अभिनेता अमिताभ बच्चन उनके सुपुत्र हैं। उन्होने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्यापन किया। बाद में भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में हिन्दी विशेषज्ञ रहे। अनन्तर राज्य सभा के मनोनीत सदस्य। बच्चन जी की गिनती हिन्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय कवियों में होती है। .

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हरीश चंद्र

---- हरीश चंद्र महरोत्रा (११ अक्टूबर १९२३ - १६ अक्टूबर १९८३) भारत के महान गणितज्ञ थे। वह उन्नीसवीं शदाब्दी के प्रमुख गणितज्ञों में से एक थे। इलाहाबाद में गणित एवं भौतिक शास्त्र का प्रसिद्ध केन्द्र "मेहता रिसर्च इन्सटिट्यूट" का नाम बदलकर अब उनके नाम पर हरीशचंद्र अनुसंधान संस्थान कर दिया गया है। 'हरीश चंद्र महरोत्रा' को सन १९७७ में भारत सरकार द्वारा साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। .

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हरीशचंद्र अनुसंधान संस्थान

हरीशचंद्र अनुसंधान संस्थान (अंग्रेज़ी: हरीशचंद्र रिसर्च इंस्टीट्यूट) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में इलाहाबाद में स्थित एक अनुसंधान संस्थान है। इसका नाम प्रसिद्ध भारतीय गणितज्ञ हरीशचन्द्र के नाम पर रखा गया है। यह एक स्वायत्त संस्थान है, जिसका वित्तपोषण परमाणु ऊर्जा विभाग, भारत सरका द्वारा किया जाता है। यहां विभिन्न संकायों के ३० के लगभग सदस्य हैं। इस संस्थान में गणित एवं सैद्धांतिक भौतिकी पर अनुसंधान के विशेष प्रबंध हैं। इसकी स्थापना १९६६ में बी.एस.

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हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन

हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन, जिसे संक्षेप में एच॰आर॰ए॰ भी कहा जाता था, भारत की स्वतंत्रता से पहले उत्तर भारत की एक प्रमुख क्रान्तिकारी पार्टी थी जिसका गठन हिन्दुस्तान को अंग्रेजों के शासन से मुक्त कराने के उद्देश्य से उत्तर प्रदेश तथा बंगाल के कुछ क्रान्तिकारियों द्वारा सन् १९२४ में कानपुर में किया गया था। इसकी स्थापना में लाला हरदयाल की भी महत्वपूर्ण भूमिका थी। काकोरी काण्ड के पश्चात् जब चार क्रान्तिकारियों को फाँसी दी गई और एच०आर०ए० के सोलह प्रमुख क्रान्तिकारियों को चार वर्ष से लेकर उम्रकैद की सज़ा दी गई तो यह संगठन छिन्न-भिन्न हो गया। बाद में इसे चन्द्रशेखर आजाद ने भगत सिंह के साथ मिलकर पुनर्जीवित किया और एक नया नाम दिया हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन। सन् १९२४ से लेकर १९३१ तक लगभग आठ वर्ष इस संगठन का पूरे भारतवर्ष में दबदबा रहा जिसके परिणामस्वरूप न केवल ब्रिटिश सरकार अपितु अंग्रेजों की साँठ-गाँठ से १८८५ में स्थापित छियालिस साल पुरानी कांग्रेस पार्टी भी अपनी मूलभूत नीतियों में परिवर्तन करने पर विवश हो गयी। .

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हिन्दुस्तानी अकादमी

हिन्दुस्तानी अकादमी एक प्रतिष्ठित हिन्दुस्तानी सेवी संस्था है जिसकी स्थापना सन १९२७ में हुई थी। इसका मुख्यालय इलाहाबाद में स्थित है। हिन्दी व उसकी सहयोगी भाषाओं को समृद्ध व लोकप्रिय बनाने में एकेडेमी का योगदान अविस्मरणीय है। राष्ट्रभाषा को विश्व की प्रमुख भाषाओं के समकक्ष बैठाना और उसकी सर्वांगीण उन्नति ही एकेडेमी का संकल्प है। इस संकल्प को पूरा करने में एकेडेमी का आदर्श वाक्य भवभूति के उत्तररामचरितम्‍ से लिया गया है। यह है - विन्देम देवतां वाचम् ‍; अर्थात् हम देवताओं की वाणी प्राप्त करें। .

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हिन्दू तीर्थ

कोई विवरण नहीं।

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हिन्दी दिवस का इतिहास

हिन्दी दिवस का इतिहास और इसे दिवस के रूप में मनाने का कारण बहुत पुराना है। वर्ष 1918 में महात्मा गांधी ने इसे जनमानस की भाषा कहा था और इसे देश की राष्ट्रभाषा भी बनाने को कहा था। लेकिन आजादी के बाद ऐसा कुछ नहीं हो सका। सत्ता में आसीन लोगों और जाति-भाषा के नाम पर राजनीति करने वालों ने कभी हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनने नहीं दिया। .

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हिन्दी पत्रिकाएँ

हिन्दी पत्रिकाएँ सामाजिक व्‍यवस्‍था के लिए चतुर्थ स्‍तम्‍भ का कार्य करती हैं और अपनी बात को मनवाने के लिए एवं अपने पक्ष में साफ-सूथरा वातावरण तैयार करने में सदैव अमोघ अस्‍त्र का कार्य करती है। हिन्दी के विविध आन्‍दोलन और साहित्‍यिक प्रवृत्तियाँ एवं अन्‍य सामाजिक गतिविधियों को सक्रिय करने में हिन्दी पत्रिकाओं की अग्रणी भूमिका रही है।; प्रमुख हिन्दी पत्रिकाएँ- .

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हिन्दी प्रभाकर

हिन्दी प्रभाकर हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग (इलाहाबाद) द्वारा संचालित हिन्दी की एक परीक्षा का नाम है जो स्नातक (ग्रेजुएशन) अथवा बी०ए० के समकक्ष होती है।.

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हिन्दी कवि

हिन्दी साहित्य राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त हिन्दी कविता परम्परा बहुत समृद्ध है। .

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हिन्दी की साहित्यिक पत्रिकायें

हिंदी की साहित्यिक पत्रिकाएँ, हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं के विकास और संवर्द्धन में उल्लेखनीय भूमिका निभाती रहीं हैं। कविता, कहानी, उपन्यास, निबंध, नाटक, आलोचना, यात्रावृत्तांत, जीवनी, आत्मकथा तथा शोध से संबंधित आलेखों का नियमित तौर पर प्रकाशन इनका मूल उद्देश्य है। अधिकांश पत्रिकाओं का संपादन कार्य अवैतनिक होता है। भाषा, साहित्य तथा संस्कृति अध्ययन के क्षेत्र में साहित्यिक पत्रिकाओं का उल्लेखनीय योगदान रहा है। वर्तमान में प्रकाशित कुछ प्रमुख पत्रिकाओं की सूची निम्नवत है: .

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हिन्दी–उर्दू विवाद

भारत में राजमार्ग चिह्नों में उर्दू और हिन्दी। हिन्दी–उर्दू विवाद भारतीय उपमहाद्वीप में १९वीं सदी में आरम्भ हुआ भाषाई विवाद है। इस विवाद के कुछ मूल प्रश्न ये थे- उत्तरी भारत तथा उत्तरी-पश्चिमी भारत की भाषा का स्वरूप क्या हो, सरकारी कार्यों में किस भाषा/लिपि का प्रयोग हो, हिन्दी और उर्दू एक ही भाषा के दो रूप शैली हैं या अलग-अलग हैं (हिन्दुस्तानी देखें।) हिन्दी और उर्दू हिन्दी भाषा की खड़ी बोली की रूप को कहा जाता है और यह लगभग भारत की ४५% जनसंख्या की भाषा है जिसे विभिन्न हिन्दी, हिन्दुस्तानी और उर्दू के रूप में जाना जाता है। वास्तव में हिन्दी–उर्दू विवाद अंग्रेजी काल में शुरू हुआ था और ब्रितानी शासन ने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इस विवाद को बढ़ाने में मदद की। इसी क्रम में ब्रितानी शासन समाप्त होने के बाद उर्दू पाकिस्तान की राजभाषा घोषित की गयी (१९४६ में) और हिन्दी भारत की राजभाषा (१९५० में)। वर्तमान समय में कुछ मुस्लिमों के अनुसार हिन्दुओं ने उर्दू को परित्यक्त किया जबकि कुछ हिन्दुओं का विश्वास है कि मुस्लिम राज के दौरान उर्दू को कृत्रिम रूप से जनित किया गया। हिंदी और उर्दू हिंदी की खड़ी बोली के दो भिन्न साहित्यिक रूप हैं। खड़ी बोली का एक फ़ारसीकृत रूप, जो विभिन्नता से हिंदी, हिंदुस्तानी और उर्दू कहलाता था, दक्षिण एशिया के दिल्ली सल्तनत (1206-1526 AD) और मुगल सल्तनत (1526–1858 AD) के दौरान आकार लेने लगी। ईस्ट इंडिया कंपनी ने आधुनिक भारत के हिंदी बोलने वाले उत्तरी प्रांतों में फ़ारसी भाषा की जगह उर्दू लिपि में लिखित उर्दू को सरकारी मानक भाषा का दर्रजा दे दिया, अंग्रेज़ी के साथ। उन्नीसवीं सदी के आखिरी कुछ दशकों में उत्तर पश्चिमी प्रांतों और अवध में हिंदी-उर्दू विवाद का प्रस्फुटन हुआ। हिंदी और उर्दू के समर्थक क्रमशः देवनागरी और फ़ारसी लिपि में लिखित हिंदुस्तानी का पक्ष लेने लगे थे। हिंदी के आंदोलन जो देवनागरी का विकास और आधिकारिक दर्जे को हिमायत दे रहे थे उत्तरी हिंद में स्थापित हुए। बाबू शिव प्रसाद और मदनमोहन मालवीय इस आंदोलन के आरंभ के उल्लेखनीय समर्थक थे। इस के नतीजे में उर्दू आंदोलनों का निर्माण हुआ, जिन्होंने उर्दू के आधिकारिक दर्जे को समर्थन दिया; सैयद अहमद ख़ान उनके एक प्रसिद्ध समर्थक थे। सन् 1900 में, सरकार ने हिन्दी और उर्दू दोनों को समान प्रतीकात्मक दर्जा प्रदान किया जिसका मुस्लिमों ने विरोध किया और हिन्दूओं ने खुशी व्यक्त की। हिन्दी और उर्दू का भाषायीं विवाद बढ़ता गया क्योंकि हिन्दी में फारसी-व्युत्पन्न शब्दों के तुल्य औपचारिक और शैक्षिक शब्दावली का मूल संस्कृत को लिया गया। इससे हिन्दू-मुस्लिम मतभेद बढ़ने लगे और महात्मा गांधी ने मानकों का पुनः शुद्धीकरण करके पारम्परिक शब्द हिन्दुस्तानी के अन्दर उर्दू अथवा देवनागरी लिपि काम में लेने का सुझाव दिया। इसका कांग्रेस के सदस्यों तथा भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल कुछ नेताओं ने समर्थन किया। इसके फलस्वरूप 1950 में भारतीय संविधान के लिए बनी संस्था ने अंग्रेज़ी के साथ उर्दू के स्थान पर हिन्दी को देवनागरी लिपि में राजभाषा के रूप में स्वीकार किया। .

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हंडिया प्रखण्ड (इलाहाबाद)

इलाहाबाद जिले की एक तहसील है। जो भदोही और जौनपुर से सटा हुआ है।। इलाहाबाद वाराणसी राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है। इसके दक्षिण में लाक्षागृह गंगा घाट है जिसका अपना ऐतिहासिक महत्व है। ये पूरा इलाका पूर्वांचल की राजनीति का मिनी सेंटर है। हंडिया ऐसी तहसील है जिसमें दो विधानसभा सीटें हैं। 258 हंडिया और 259 प्रतापपुर विधानसभा की सीेटें हैं। ये दोनों विधानसभा सीटें पूर्वांचल में आती हैं। बाहुबलि विधायक विजय मिश्रा का प्रभाव इन दोनों ही सीटों पर देखने को मिलता है। 2017 विधानसभा चुनाव में हंडिया सीट से बीएसपी के हाकिम लाल बिंद ने जीत हासिल की और प्रतापपुर से बीएसपी के मोहम्मद मुस्तफा सिद्दीकी ने जीत हासिल की थी। हंडिया और प्रतापपुर की सीटें भदोही लोकसभा के अंतर्गत आती है। मौजूदा समय में भदोही सीट पर बीजेपी का कब्जा है। बजेपी के विरेंद्र सिंह 2014 से यहां से सांसद हैं। श्रेणी:इलाहाबाद की तहसीलें.

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हेमचन्द जोशी

हेमचंद जोशी (२१ जून सन् १८९४ ई. -) हिंदी के प्रमुख भाषाशास्त्री तथा इतिहासज्ञ थे। इनका जन्म नैनीताल में २१ जून सन् १८९४ ई. को हुआ। शिक्षा दीक्षा अल्मोड़ा, प्रयाग तथा वाराणसी में हुई। काशी हिंदू विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.

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होमी भाभा राष्ट्रीय संस्थान

होमी भाभा राष्ट्रीय संस्थान (Homi Bhabha National Institute(HBNI)) भारत का एक मानित विश्वविद्यालय है। दस प्रमुख अनुसंधान संस्थानों से मिलकर इसकी रचना हुई है। इसका नामकरण भारत के प्रसिद्ध भौतिकशास्त्री होमी जहाँगीर भाभा के नाम पर किया गया है। श्री रवि ग्रोवर इसके वर्तमान निदेशक हैं। .

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जनेश्वर मिश्र

पण्डित जनेश्वर मिश्र (5 अगस्त 1933 – 22 जनवरी 2010) समाजवादी पार्टी के एक राजनेता थे। समाजवादी विचारधारा के प्रति उनके दृढ निष्ठा के कारण वे 'छोटे लोहिया' के नाम से प्रसिद्ध थे। वे कई बार लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य रहे। उन्होने मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, विश्वनाथ प्रताप सिंह, चन्द्रशेखर, एच डी देवगौड़ा और इंद्रकुमार गुज़राल के मंत्रिमण्डलों में काम किया। सात बार केन्द्रीय मंत्री रहने के बाद भी उनके पास न अपनी गाड़ी थी और न ही बंगला। जनेश्वर मिश्र का जन्म ५ अगस्त 1933 को बलिया के शुभनथहीं के गांव में हुआ था। उनके पिता रंजीत मिश्र किसान थे। बलिया में प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद १९५३ में इलाहाबाद पहुंचे जो उनका कार्यक्षेत्र रहा। जनेश्वर को आजाद भारत के विकास की राह समाजवादी सपनों के साथ आगे बढ़ने में दिखी और समाजवादी आंदोलन में इतना पगे कि उन्हें लोग 'छोटे लोहिया' के तौर पर ही जानने लगे। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में स्नातक कला वर्ग में प्रवेश लेकर हिन्दू हास्टल में रहकर पढ़ाई शुरू की और जल्दी ही छात्र राजनीति से जुड़े। छात्रों के मुद्दे पर उन्होंने कई आंदोलन छेड़े जिसमें छात्रों ने उनका बढ-चढ़ कर साथ दिया। 1967 में उनका राजनैतिक सफर शुरू हुआ। वह जेल में थे तभी लोकसभा का चुनाव आ गया। छुन्नन गुरू व सालिगराम जायसवाल ने उन्हें फूलपुर से विजयलक्ष्मी पंडित के खिलाफ चुनाव लड़ाया। चुनाव सात दिन बाकी था तब उन्हें जेल से रिहा किया गया। चुनाव में जनेश्वर को हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद विजय लक्ष्मी राजदूत बनीं। फूलपुर सीट पर 1969 में उपचुनाव हुआ तो जनेश्वर मिश्र सोशलिस्ट पार्टी से मैदान में उतरे और जीते। लोकसभा में पहुंचे तो राजनारायण ने 'छोटे लोहिया' का नाम दिया। वैसे इलाहाबाद में उनको लोग पहले ही छोटे लोहिया के नाम से पुकारने लगे थे। उन्होंने 1972 के चुनाव में यहीं से कमला बहुगुणा को और 1974 में इंदिरा गांधी के अधिवक्ता रहे सतीश चंद्र खरे को हराया। इसके बाद 1978 में जनता पार्टी के टिकट से इलाहाबाद संसदीय क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतरे और विश्वनाथ प्रताप सिंह को पराजित किया। उसी समय वह पहली बार केन्द्रीय पेट्रोलियम, रसायन एवं उर्वरक मंत्री बने। इसके कुछ दिन बाद ही वह अस्वस्थ हो गये। स्वस्थ होने के बाद उन्हें विद्युत, परंपरागत ऊर्जा और खनन मंत्रालय दिया गया। चरण सिंह की सरकार में जहाजरानी व परिवहन मंत्री बने। 1984 में देवरिया के सलेमपुर संसदीय क्षेत्र से चंद्रशेखर से चुनाव हार गये। 1989 में जनता दल के टिकट पर इलाहाबाद से लडे़ और कमला बहुगुणा को हराया। इस बार संचार मंत्री बने। फिर चंद्रशेखर की सरकार में 1991 में रेलमंत्री और एचडी देवगौड़ा की सरकार में जल संसाधन तथा इंद्र कुमार गुजराल की सरकार में पेट्रोलियम मंत्री बनाये गये। 1992 से २०१० तक वह राज्यसभा के सदस्य रहे। .

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जय सिंह द्वितीय

सवाई जयसिंह या द्वितीय जयसिंह (०३ नवम्बर १६८८ - २१ सितम्बर १७४३) अठारहवीं सदी में भारत में राजस्थान प्रान्त के नगर/राज्य आमेर के कछवाहा वंश के सर्वाधिक प्रतापी शासक थे। सन १७२७ में आमेर से दक्षिण छः मील दूर एक बेहद सुन्दर, सुव्यवस्थित, सुविधापूर्ण और शिल्पशास्त्र के सिद्धांतों के आधार पर आकल्पित नया शहर 'सवाई जयनगर', जयपुर बसाने वाले नगर-नियोजक के बतौर उनकी ख्याति भारतीय-इतिहास में अमर है। काशी, दिल्ली, उज्जैन, मथुरा और जयपुर में, अतुलनीय और अपने समय की सर्वाधिक सटीक गणनाओं के लिए जानी गयी वेधशालाओं के निर्माता, सवाई जयसिह एक नीति-कुशल महाराजा और वीर सेनापति ही नहीं, जाने-माने खगोल वैज्ञानिक और विद्याव्यसनी विद्वान भी थे। उनका संस्कृत, मराठी, तुर्की, फ़ारसी, अरबी, आदि कई भाषाओं पर गंभीर अधिकार था। भारतीय ग्रंथों के अलावा गणित, रेखागणित, खगोल और ज्योतिष में उन्होंने अनेकानेक विदेशी ग्रंथों में वर्णित वैज्ञानिक पद्धतियों का विधिपूर्वक अध्ययन किया था और स्वयं परीक्षण के बाद, कुछ को अपनाया भी था। देश-विदेश से उन्होंने बड़े बड़े विद्वानों और खगोलशास्त्र के विषय-विशेषज्ञों को जयपुर बुलाया, सम्मानित किया और यहाँ सम्मान दे कर बसाया। .

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जावेद उस्मानी

वह भारतीय प्रबंध संस्थान, अहमदाबाद के एक पुराने छात्र था IIM Ahmedabad.JPG जावेद उस्मानी (Jawed Usmani.; جاوید عثمانی) भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक अधिकारी हैं। वर्तमान में वे उत्तर प्रदेश के मुख्य सूचना आयुक्त है। पूर्व में वे मार्च 2012 मई 2014 तक उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव रह चुके हैं। वे वर्ष 2003 से 2007 तक समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के प्रमुख सचिव रह चुके हैं। उन्हें कुछ ही दिन पहले योजना आयोग का सचिव बनाया गया था। .

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जिलिया

जिलिया गढ़ राजस्थान के नागौर जिले में स्थित एक स्थान है। इसे झिलिया, अभयपुरा, अभैपुरा, मारोठ, मारोट, महारोट, महारोठ आदि नामों से भी जानते हैं। इसका आधिकारिक नाम ठिकाना जिलिया (अंग्रेज़ी:Chiefship of Jiliya, चीफ़शिप ऑफ़ जिलिया) व उससे पूर्व जिलिया राज्य (अंग्रेज़ी:Kingdom of Jiliya, किंगडम ऑफ़ जिलिया) था। जिलिया मारोठ के पांचमहलों की प्रमुख रियासत थी जिसका राजघराना मीरा बाई तथा मेड़ता के राव जयमल के वंशज हैं। मेड़तिया राठौड़ों का मारोठ पर राज्य स्थापित करने वाले वीर शिरोमणि रघुनाथ सिंह मेड़तिया के पुत्र महाराजा बिजयसिंह ने मारोठ राज्य का अर्ध-विभाजन कर जिलिया राज्य स्थापित किया। इसकी उत्तर दिशा में सीकर, खंडेला, दांता-रामगढ़, पूर्व दिशा में जयपुर, दक्षिण दिशा में किशनगढ़, अजमेर, मेड़ता व जोधपुर और पश्चिम दिशा में नागौर व बीकानेर हैं। सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने बंगाल के गौड़ देश से आये भ्राताओं राजा अछराज व बछराज गौड़ की वीरता से प्रसन्न होकर उन्हें अपना सम्बन्धी बनाया और सांभर के पास भारत का प्राचीन, समृद्ध और शक्तिशाली मारोठ प्रदेश प्रदान किया जो नमक उत्पाद के लिए प्रसिद्ध महाराष्ट्र-नगर के नाम से विख्यात था। गौड़ शासक इतने प्रभावशाली थे की उनके नाम पर सांभर का यह क्षेत्र आज भी गौड़ावाटी कहलाता है। गौड़ावाटी में सांभर झील व कई नदियाँ हैं, जिनमें खण्डेल, रुपनगढ़, मीण्डा (मेंढा) आदि प्रमुख हैं। मारोठ भारत के प्राचीनतम नगरों में से एक है और जैन धर्म का भी यहाँ काफी विकास हुआ और राजपूताना के सत्रहवीं शताब्दी के चित्रणों में मारोठ के मान मन्दिर की तुलना उदयपुर के महलों तथा अम्बामाता के मंदिर, नाडोल के जैन मंदिर, आमेर के निकट मावदूमशाह की कब्र के मुख्य गुम्बद के चित्र, मोजमाबाद (जयपुर), जूनागढ़ (बीकानेर) आदि से की जाती है। .

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जवाहरलाल नेहरू

जवाहरलाल नेहरू (नवंबर १४, १८८९ - मई २७, १९६४) भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री थे और स्वतन्त्रता के पूर्व और पश्चात् की भारतीय राजनीति में केन्द्रीय व्यक्तित्व थे। महात्मा गांधी के संरक्षण में, वे भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के सर्वोच्च नेता के रूप में उभरे और उन्होंने १९४७ में भारत के एक स्वतन्त्र राष्ट्र के रूप में स्थापना से लेकर १९६४ तक अपने निधन तक, भारत का शासन किया। वे आधुनिक भारतीय राष्ट्र-राज्य – एक सम्प्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, और लोकतान्त्रिक गणतन्त्र - के वास्तुकार मानें जाते हैं। कश्मीरी पण्डित समुदाय के साथ उनके मूल की वजह से वे पण्डित नेहरू भी बुलाएँ जाते थे, जबकि भारतीय बच्चे उन्हें चाचा नेहरू के रूप में जानते हैं। स्वतन्त्र भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री का पद सँभालने के लिए कांग्रेस द्वारा नेहरू निर्वाचित हुएँ, यद्यपि नेतृत्व का प्रश्न बहुत पहले 1941 में ही सुलझ चुका था, जब गांधीजी ने नेहरू को उनके राजनीतिक वारिस और उत्तराधिकारी के रूप में अभिस्वीकार किया। प्रधानमन्त्री के रूप में, वे भारत के सपने को साकार करने के लिए चल पड़े। भारत का संविधान 1950 में अधिनियमित हुआ, जिसके बाद उन्होंने आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक सुधारों के एक महत्त्वाकांक्षी योजना की शुरुआत की। मुख्यतः, एक बहुवचनी, बहु-दलीय लोकतन्त्र को पोषित करते हुएँ, उन्होंने भारत के एक उपनिवेश से गणराज्य में परिवर्तन होने का पर्यवेक्षण किया। विदेश नीति में, भारत को दक्षिण एशिया में एक क्षेत्रीय नायक के रूप में प्रदर्शित करते हुएँ, उन्होंने गैर-निरपेक्ष आन्दोलन में एक अग्रणी भूमिका निभाई। नेहरू के नेतृत्व में, कांग्रेस राष्ट्रीय और राज्य-स्तरीय चुनावों में प्रभुत्व दिखाते हुएँ और 1951, 1957, और 1962 के लगातार चुनाव जीतते हुएँ, एक सर्व-ग्रहण पार्टी के रूप में उभरी। उनके अन्तिम वर्षों में राजनीतिक मुसीबतों और 1962 के चीनी-भारत युद्ध में उनके नेतृत्व की असफलता के बावजूद, वे भारत के लोगों के बीच लोकप्रिय बने रहें। भारत में, उनका जन्मदिन बाल दिवस के रूप में मनाया जाता हैं। .

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जगदीशचंद्र माथुर

जगदीशचंद्र माथुर (जन्म १६ जुलाई, १९१७ -- १९७८) हिंदी के लेखक एवं नाटककार थे। वे उन साहित्यकारों में से हैं जिन्होंने आकाशवाणी में काम करते हुए हिन्दी की लोकप्रयता के विकास में महत्वपूर्ण योगदान किया। रंगमंच के निर्माण, निर्देशन, अभिनय, संकेत आदि के सम्बन्ध में आपको विशेष सफलता मिली है। परिवर्तन और राष्ट्र निर्माण के ऐसे ऐतिहासिक समय में जगदीशचंद्र माथुर, आईसीएस, ऑल इंडिया रेडियो के डायरेक्टर जनरल थे। उन्होंने ही 'एआईआर' का नामकरण आकाशवाणी किया था। टेलीविज़न उन्हीं के जमाने में वर्ष १९५९ में शुरू हुआ था। हिंदी और भारतीय भाषाओं के तमाम बड़े लेखकों को वे ही रेडियो में लेकर आए थे। सुमित्रानंदन पंत से लेकर दिनकर और बालकृष्ण शर्मा नवीन जैसे दिग्गज साहित्यकारों के साथ उन्होंने हिंदी के माध्यम से सांस्कृतिक पुनर्जागरण का सूचना संचार तंत्र विकसित और स्थापित किया था। जगदीश चंद्र माथुर- उपन्यास --- यादों का पहाड़,आधा पुल,मुठ्ठी भर कांकर,कभी न छोड़ें खेत,धरती धन न अपना .

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ज्ञानरंजन

ज्ञानरंजन हिन्दी साहित्य के एक शीर्षस्थ कहानीकार तथा हिन्दी की सुप्रसिद्ध पत्रिका पहल के संपादक हैं। .

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जौनपुर

जौनपुर भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का एक प्रमुख ऐतिहासिक शहर है। मध्यकालीन भारत में शर्की शासकों की राजधानी रहा जौनपुर वाराणसी से 58 किलोमीटर और इलाहाबाद से 100 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में गोमती नदी के तट पर बसा है। मध्यकालीन भारत में जौनपुर सल्तनत (1394 और 1479 के बीच) उत्तरी भारत का एक स्वतंत्र राज्य था I वर्तमान राज्य उत्तर प्रदेश जौनपुर सल्तनत के अंतर्गत आता था, जिसपर शर्की शासक जौनपुर से शासन करते थे I .

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वत्स

वत्स महाजनपद वत्स या वंश या बत्स या बंश प्राचीन भारत के 16 महाजनपदों में से एक था। यह आधुनिक इलाहाबाद के आसपास केन्द्रित था। उत्तरपूर्व में यमुना की तटवर्ती भूमि इसमें सम्मिलित थी। इलाहाबाद से ३० मील दूर कौशाम्बी इसकी राजधानी थी। वत्स को वत्स देश और वत्स भूमि भी कहा गया है। इसकी राजधानी कौशांबी (वर्तमान कोसम) इलाहाबाद से 38 मील दक्षिणपश्चिम यमुना पर स्थित थी। महाभारत के युद्ध में वत्स लोग पांडवों के पक्ष से लड़े थे। .

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वाराणसी

वाराणसी (अंग्रेज़ी: Vārāṇasī) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का प्रसिद्ध नगर है। इसे 'बनारस' और 'काशी' भी कहते हैं। इसे हिन्दू धर्म में सर्वाधिक पवित्र नगरों में से एक माना जाता है और इसे अविमुक्त क्षेत्र कहा जाता है। इसके अलावा बौद्ध एवं जैन धर्म में भी इसे पवित्र माना जाता है। यह संसार के प्राचीनतम बसे शहरों में से एक और भारत का प्राचीनतम बसा शहर है। काशी नरेश (काशी के महाराजा) वाराणसी शहर के मुख्य सांस्कृतिक संरक्षक एवं सभी धार्मिक क्रिया-कलापों के अभिन्न अंग हैं। वाराणसी की संस्कृति का गंगा नदी एवं इसके धार्मिक महत्त्व से अटूट रिश्ता है। ये शहर सहस्रों वर्षों से भारत का, विशेषकर उत्तर भारत का सांस्कृतिक एवं धार्मिक केन्द्र रहा है। हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का बनारस घराना वाराणसी में ही जन्मा एवं विकसित हुआ है। भारत के कई दार्शनिक, कवि, लेखक, संगीतज्ञ वाराणसी में रहे हैं, जिनमें कबीर, वल्लभाचार्य, रविदास, स्वामी रामानंद, त्रैलंग स्वामी, शिवानन्द गोस्वामी, मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, पंडित रवि शंकर, गिरिजा देवी, पंडित हरि प्रसाद चौरसिया एवं उस्ताद बिस्मिल्लाह खां आदि कुछ हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने हिन्दू धर्म का परम-पूज्य ग्रंथ रामचरितमानस यहीं लिखा था और गौतम बुद्ध ने अपना प्रथम प्रवचन यहीं निकट ही सारनाथ में दिया था। वाराणसी में चार बड़े विश्वविद्यालय स्थित हैं: बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइयर टिबेटियन स्टडीज़ और संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय। यहां के निवासी मुख्यतः काशिका भोजपुरी बोलते हैं, जो हिन्दी की ही एक बोली है। वाराणसी को प्रायः 'मंदिरों का शहर', 'भारत की धार्मिक राजधानी', 'भगवान शिव की नगरी', 'दीपों का शहर', 'ज्ञान नगरी' आदि विशेषणों से संबोधित किया जाता है। प्रसिद्ध अमरीकी लेखक मार्क ट्वेन लिखते हैं: "बनारस इतिहास से भी पुरातन है, परंपराओं से पुराना है, किंवदंतियों (लीजेन्ड्स) से भी प्राचीन है और जब इन सबको एकत्र कर दें, तो उस संग्रह से भी दोगुना प्राचीन है।" .

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वाकाटक

नन्दिवर्धन दुर्ग के भग्नावशेष वाकाटक शब्द का प्रयोग प्राचीन भारत के एक राजवंश के लिए किया जाता है जिसने तीसरी सदी के मध्य से छठी सदी तक शासन किया था। उस वंश को इस नाम से क्यों संबंधित किया गया, इस प्रश्न का सही उत्तर देना कठिन है। स्यात्‌ वकाट नाम का मध्यभारत में कोई स्थान रहा हो, जहाँ पर शासन करनेवाला वंश वाकाटक कहलाया। अतएव प्रथम राजा को अजंता लेख में "वाकाटक वंशकेतु:" कहा गया है। इस राजवंश का शासन मध्यप्रदेश के अधिक भूभाग तथा प्राचीन बरार (आंध्र प्रदेश) पर विस्तृत था, जिसके सर्वप्रथम शासक विन्ध्यशक्ति का नाम वायुपुराण तथा अजंतालेख मे मिलता है। संभवत: विंध्य पर्वतीय भाग पर शासन करने के कारण प्रथम राजा 'विंध्यशक्ति' की पदवी से विभूषित किया गया। इस नरेश का प्रामाणिक इतिवृत्त उपस्थित करना कठिन है, क्योंकि विंध्यशक्ति का कोई अभिलेख या सिक्का अभी तक उपलब्ध नहीं हो सका। तीसरी सदी के मध्य में सातवाहन राज्य की अवनति हो जाने से विंध्यशक्ति को अवसर मिल गया तो भी उसका यश स्थायी न रह सका। उसके पुत्र प्रथम प्रवरसेन ने वंश की प्रतिष्ठा को अमर बना दिया। अभिलेखों के अध्ययन से पता चलता है कि प्रथम प्रवरसेन ने दक्षिण में राज्यविस्तार के उपलक्ष में चार अश्वमेध किए और सम्राट् की पदवी धारण की। प्रवरसेन के समकालीन शक्तिशाली नरेश के अभाव में वाकाटक राज्य आंध्रप्रदेश तथा मध्यभारत में विस्तृत हो गया। बघेलखंड के अधीनस्थ शासक व्याघ्रराज का उल्लेख समुद्रगुप्त के स्तंभलेख में भी आया है। संभवत: प्रवरसेन ने चौथी सदी के प्रथम चरण में पूर्वदक्षिण भारत, मालवा, गुजरात, काठियावाड़ पर अधिकार कर लिया था परंतु इसकी पुष्टि के लिए सबल प्रमाण नहीं मिलते। यह तो निश्चित है कि प्रवरसेन का प्रभाव दक्षिण में तक फैल गया था। परंतु कितने भाग पर वह सीधा शासन करता रहा, यह स्पष्ट नहीं है। यह कहना सर्वथा उचित होगा कि वाकाटक राज्य को साम्राज्य के रूप में परिणत करना उसी का कार्य था। प्रथम प्रवरसेन ने वैदिक यज्ञों से इसकी पुष्टि की है। चौथी सदी के मध्य में उसका पौत्र प्रथम रुद्रसेन राज्य का उत्तराधिकारी हुआ, क्योंकि प्रवरसेन का ज्येष्ठ पुत्र गोतमीपुत्र पहले ही मर चुका था। मानसर में प्रवरसेन द्वितीय द्वारा निर्मित प्रवरेश्वर शिव मन्दिर के भग्नावशेष वाकाटक वंश के तीसरे शासक महाराज रुद्रसेन प्रथम का इतिहास अत्यंत विवादास्पद माना जाता है। प्रारंभ में वह आपत्तियों तथा निर्बलता के कारण अपनी स्थिति को सबल न बना सका। कुछ विद्वान्‌ यह मानते हैं कि उसके पितृव्य साम्राज्य को विभाजित कर शासन करना चाहते थे, किन्तु पितृव्य सर्वसेन के अतिरिक्त किसी का वृत्तांत प्राप्य नहीं है। वाकाटक राज्य के दक्षिण-पश्चिम भाग में सर्वसेन ने अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया था जहाँ (बरार तथा आंध्र प्रदेश का उत्तरी-पश्चिमी भूभाग) उसके वंशज पाँचवी सदी तक राज्य करते रहे। इस प्रसंग में यह मान लेना सही होगा कि उसके नाना भारशिव महाराज भवनाग ने रुद्रसेन प्रथम की विषम परिस्थिति में सहायता की, जिसके फलस्वरूप रुद्रसेन अपनी सत्ता को दृढ़ कर सका। (चंपक ताम्रपत्र का. इ., इ. भा. ३, पृ. २२६) इस वाकाटक राजा के विनाश के संबंध में कुछ लोगों की असत्य धारण बनी हुई है कि गुप्तवंश के उत्थान से रुद्रसेन प्रथम नष्ट हो गया। गुप्त सम्राट् समुद्रगुप्त ने कौशांबी के युद्ध में वाकाटक नरेश रुद्रसेन प्रथम को मार डाला (अ. भ. ओ. रि. इ., भा. ४, पृ. ३०-४०, अथवा उत्तरी भारत की दिग्विजय में उसे श्रीहत कर दिया। इस कथन की प्रामाणिकता समुद्रगुप्त की प्रयागप्रशस्ति में उल्लिखित पराजित नरेश रुद्रदेव से सिद्ध करते हैं। प्रशस्ति के विश्लेषण से यह समीकरण कदापि युक्तियुक्त नहीं है कि रुद्रदेव तथा वाकाटक महाराज प्रथम रुद्रसेन एक ही व्यक्ति थे। वाकाटकनरेश से समुद्रगुप्त का कहीं सामना न हो सका। अतएव पराजित या श्रीहत होने का प्रश्न ही नहीं उठता। इसके विपरीत यह कहना उचित होगा कि गुप्त सम्राट् ने वाकाटक वंश से मैत्री कर ली। वाकाटक अभिलेखों के आधार पर यह विचार व्यक्त करना सत्य है कि इस वंश की श्री कई पीढ़ियों तक अक्षुण्ण बनी रही। कोष, सेना तथा प्रतिष्ठा की अभिवृद्धि पिछले सौ वर्षों से होती रही (मानकोष दण्ड साधनसंतान पुत्र पौत्रिण: ए. इ., भा. ३, पृ. २६१) इसके पुत्र पृथ्वीषेण प्रथम ने कुंतल पर विजय कर दक्षिण भारत में वाकाटक वंश को शक्तिशाली बनाया। उसके महत्वपूर्ण स्थान के कारण ही गुप्त सम्राट् द्वितीय चंद्रगुप्त को (ई. स. ३८० के समीप) अपनी पुत्री का विवाह युवराज रुद्रसेन से करना पड़ा था। इस वैवाहिक संबंध के कारण गुप्त प्रभाव दक्षिण भारत में अत्यधिक हो गया। फलत: द्वितीय रुद्रसेन ने सिंहासनारूढ़ होने पर अपने श्वसुर का कठियावाड़ विजय के अभियान में साथ दिया था। द्वितीय रुद्रसेन की अकाल मृत्यु के कारण उसकी पत्नी प्रभावती गुप्ता अप्राप्तवयस्क पुत्रों की संरक्षिका के रूप में शासन करने लगी। वाकाटक शासन का शुभचिंतक बनकर द्वितीय चंद्रगुप्त ने सक्रिय सहयोग भी दिया। पाटलिपुत्र से सहकारी कर्मचारी नियुक्त किए गए। यही कारण था कि प्रभावती गुप्ता के पूनाताम्रपत्र में गुप्तवंशावली ही उल्लिखित हुई है। कालांतर में युवराज दामोदरसेन द्वितीय प्रवरसेन के नाम से सिंहासन पर बैठा, किंतु इस वंश के लेख यह बतलाते हैं कि प्रवरसेन से द्वितीय पृथ्वीषेण पर्यंत किसी प्रकार का रण अभियान न हो सका। पाँचवी सदी के अंत में राजसत्ता वेणीमशाखा (सर्वसेन के वंशज) के शासक हरिषेण के हाथ में गई, जिसे अजंता लेख में कुंतल, अवंति, लाट, कोशल, कलिंग तथा आंध्र देशों का विजेता कहा गया है (इंडियन कल्चर, भा. ७, पृ. ३७२) उसे उत्तराधिकारियों की निर्बलता के कारण वाकाटक वंश विनष्ट हो गया। अजन्ता गुफाओं में शैल को काटकर निर्मित बौद्ध बिहार एवं चैत्य वाकाटक साम्राज्य के वत्सगुल्म शाखा के राजाओं के संरक्षण में बने थे। अभिलेखों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि दक्षिण भारत में वाकाटक राज्य वैभवशाली, सबल तथा गौरवपूर्ण रहा है। सांस्कृतिक उत्थान में भी इस वंश ने हाथ बटाया था। प्राकृत काव्यों में "सेतुबंध" तथा "हरिविजय काव्य" क्रमश: प्रवरसेन द्वितीय और सर्वसेन की रचना माने जाते हैं। वैसे प्राकृत काव्य तथा सुभाषित को "वैदर्भी शैली" का नाम दिया गया है। वाकाटकनरेश वैदिक धर्म के अनुयायी थे, इसीलिए अनेक यज्ञों का विवरण लेखों में मिलता है। कला के क्षेत्र में भी इसका कार्य प्रशंसनीय रहा है। अजंता की चित्रकला को वाकाटक काल में अधिक प्रोत्साहन मिला, जो संसार में अद्वितीय भित्तिचित्र माना गया है। नाचना का मंदिर भी इसी युग में निर्मित हुआ और उसी वास्तुकला का अनुकरण कर उदयगिरि, देवगढ़ एवं अजंता में गुहानिर्माण हुआ था। समस्त विषयों के अनुशीलन से पता चलता है कि वाकाटक नरेशों ने राज्य की अपेक्षा सांस्कृतिक उत्थान में विशेष अनुराग प्रदर्शित किया। यही इस वश की विशेषता है। .

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वाक्य और वाक्य के भेद

दो या दो से अधिक पदों के सार्थक समूह को, जिसका पूरा पूरा अर्थ निकलता है, वाक्य कहते हैं। उदाहरण के लिए 'सत्य की विजय होती है।' एक वाक्य है क्योंकि इसका पूरा पूरा अर्थ निकलता है किन्तु 'सत्य विजय होती।' वाक्य नहीं है क्योंकि इसका अर्थ नहीं निकलता है। .

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विट्ठलनाथ

विट्टलनाथ के पिता वल्लभचार्य की तस्वीर विट्ठलनाथ वल्लभ संप्रदाय के प्रवर्तक श्री वल्लभाचार्य जी के द्वितीय पुत्र थे। गुसाईं विट्ठलनाथ का जन्म काशी के निकट चरणाट ग्राम में पौष कृष्ण नवमी को संवत्‌ १५७२ (सन्‌ १५१५ ई.) में हुआ। इनका शैशव काशी तथा प्रयाग के निकट अरैल नामक स्थान में व्यतीत हुआ। काशी में रहकर इन्होंने अपने शास्त्रगुरु श्री माधव सरस्वती से वेदांत आदि शास्त्रों का अध्ययन किया। अपने ज्येष्ठ भ्राता गोपीनाथ जी के अकाल कवलित हो जाने पर संवत्‌ १५९५ में संप्रदाय की गद्दी के स्वामी बनकर उसे नया रूप देने में लीन हो गए। धर्मप्रचार के लिए इन्होंने दो बार गुजरात की यात्रा की और अनेक धर्मप्रेमियों का वैष्णव धर्म में दीक्षित किया। वल्लभ संप्रदाय को सुसंगठित एवं व्यवस्थित रूप देने में विट्ठलनाथ का विशेष योगदान है। श्रीनाथ जी के मंदिर में सेवा पूजा की नूतन विधि, वार्षिक उत्सव, व्रतोपवास आदि की व्यवस्था कर उन्हें अत्यंत आकर्षक बनाने का श्रेय इन्हीं को है। संगीत, साहित्य, कला आदि के सम्मिश्रण द्वारा इन्होंने भक्तों के लिए अद्भुत आकर्षण की सामग्री श्रीनाथ जी के मंदिर में जुटा दी थी। अपने पिता के चार शिष्य कुंभनदास, परमानंददास तथा कृष्णदास के साथ अपने चार शिष्य चतुर्भुजदास, गोविंद स्वामी, छीतस्वामी और नंददास को मिलाकर इन्होंने अष्टछाप की स्थापना की। इन्हीं आठ सखाओं के पद श्रीनाथ जी के मंदिर में सेवा पूजा के समय गाए जाते थे। भक्तमाल में नाभादास ने लिखा है - विट्ठलनाथ का अपने समय में अत्यधिक प्रभाव था। अकबर बादशाह ने इनके अनुरोध से गोकुल में वानर, मयूर, गौ आदि के वध पर प्रतिबंध लगाया था और गोकुल की भूमि अपने फरमान से माफी में प्रदान की थी। विट्ठलनाथ जी के सात पुत्र थे जिन्हें गुसाइर्ं जी ने सात स्थानों में भेजकर संप्रदाय की सात गद्दियाँ स्थापित कर दीं। अपनी संपत्ति का भी उन्होंने अपने जीवनकाल में ही विभाजन कर दिया था। सात पुत्रों को पृथक्‌ स्थानों पर भेजने से संप्रदाय का व्यापक रूप से प्रचार संभव हुआ। इनके चौथे पुत्र गुसाई गोकुलनाथ ने चौरासी वैष्णवन की बार्ता तथा दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता का प्रणयन किया। कुछ विद्वान्‌ मानते हैं कि ये वार्ताएँ प्रारंभ में मौखिक रूप में कही गई थीं, बाद में इन्हें लिखित रूप मिला। विट्ठलनाथ जी के लिखे ग्रंथों में अणुभाष्य, यमुनाष्टक, सुबोधिनी की टीका, विद्वन्मंडल, भक्तिनिर्णय और शृंगाररसमंडन प्रसिद्ध हैं। शृंगाररसमंडन ग्रंथ द्वारा माधुर्य भक्ति की स्थापना में बहुत योग मिला। संवत्‌ १६४२ वि.

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विदुप अग्रहरि

विदुप अग्रहरि (जन्म: १९६९) एक भारतीय गायक, उद्यमी और भारतीय जनता पार्टी के राजनेता हैं। वें श्याम ग्रुप ऑफ़ कम्पनीज के डायरेक्टर हैं। वें उद्योगपति व लोकसभा सदस्य श्यामा चरण गुप्ता और जमुनोत्री गुप्ता के पुत्र हैं। .

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विभिन्न संस्थान और उनके संस्कृत ध्येय-वाक्य

नीचे कुछ महत्वपूर्ण संस्थानों के नाम और उनके संस्कृत में ध्येय-वाक्य या मोट्टो दिये गये हैं: ।श्रीमद्द्यानन्द वेदार्ष महाविद्यालय।गुरुकुल गौतम नगर नई दिल्ली ।पावका न: सरस्वती । .

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विमानक्षेत्रों की सूची ICAO कोड अनुसार: V

प्रविष्टियों का प्रारूप है.

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विश्व भारती पुरस्कार

विश्व भारती पुरस्कार उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान,लखनऊ,भारत के द्वारा दिया जाने वाला सर्वोत्कृष्ट पुरस्कार है। यह पुरस्कार संस्कृत,पाली एवम प्राकृत भाषाओं में उल्लेखनीय योगदान के लिए दिया जाता है। .

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विश्वनाथ प्रताप सिंह

विश्वनाथ प्रताप सिंह भारत गणराज्य के आठवें प्रधानमंत्री थे और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके है। उनका शासन एक साल से कम चला, २ दिसम्बर १९८९ से १० नवम्बर १९९० तक। विश्वनाथ प्रताप सिंह (जन्म- 25 जून 1931 उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 27 नवम्बर 2008, दिल्ली)। विश्वनाथ प्रताप सिंह भारत के आठवें प्रधानमंत्री थे। राजीव गांधी सरकार के पतन के कारण प्रधानमंत्री बने विश्वनाथ प्रताप सिंह ने आम चुनाव के माध्यम से 2 दिसम्बर 1989 को यह पद प्राप्त किया था। सिंह प्रधान मंत्री के रूप में भारत की पिछड़ी जातियों में सुधार करने की कोशिश के लिए जाने जाते हैं। .

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विश्वविद्यालय

विश्वविद्यालय (युनिवर्सिटी) वह संस्था है जिसमें सभी प्रकार की विद्याओं की उच्च कोटि की शिक्षा दी जाती हो, परीक्षा ली जाती हो तथा लोगों को विद्या संबंधी उपाधियाँ आदि प्रदान की जाती हों। इसके अंतर्गत विश्वविद्यालय के मैदान, भवन, प्रभाग, तथा विद्यार्थियों का संगठन आदि भी सम्मिलित हैं। .

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विष्णु मिश्रा

विष्णु मिश्रा (जन्म: १६ अप्रैल १९७५, इलाहबाद) एक भारतीय पार्श्वगायक, संगीत निर्माता, संगीत निर्देशक, गीतकार है। .

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विजयलक्ष्मी पंडित

विजय लक्ष्मी पंडित भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु की बहन थीं। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में विजय लक्ष्मी पंडित ने अपना अमूल्य योगदान दिया। .

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विजित एवं सत्तांतरित प्रांत

विजित एवं सत्तान्तरित प्रान्त १८०५ से १८३४ तक ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा शासित उत्तर भारत का एक क्षेत्र था;इसकी सीमाएं वर्तमान उत्तर प्रदेश राज्य के समान थी, हालांकि अवध के लखनऊ और फ़ैज़ाबाद मण्डल इसमें शामिल नहीं थे; इसके अलावा, इसमें दिल्ली क्षेत्र और, १८१६ के बाद, वर्तमान उत्तराखंड राज्य के कुमाऊँ मण्डल और गढ़वाल मंडल का एक बड़ा हिस्सा भी शामिल था।  १८३६ में यह क्षेत्र एक लेफ्टिनेंट-गवर्नर द्वारा प्रशासित उत्तर-पश्चिमी प्रान्त बन गया, और १९०४ में संयुक्त प्रान्त आगरा व अवध के भीतर आगरा प्रान्त बन गया.

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विज्ञान परिषद् प्रयाग

विज्ञान परिषद् प्रयाग, इलाहाबाद में स्थित है और यह विज्ञान जनव्यापीकरण के क्षेत्र में कार्य करने वाली भारत की सबसे पुरानी संस्थाओं में से एक है। विज्ञान परिषद् की स्थापना सन् १९१३ ई. में हुई थी और इसकी स्थापना का मुख्य उद्देश्य भारत में वैज्ञानिक विचारधारा का प्रचार प्रसार था। इस दिशा में १९१३ से अनवरत कार्य करने वाली इस संस्था से विज्ञान नाम की मासिक पत्रिका का प्रकाशन भी किया जाता है। यह पत्रिका सर्वप्रथम १९१३ में प्रकाशित हुई थी और तब से आज तक अनवरत प्रकाशित रहने का इसका रेकॉर्ड रहा है। विज्ञान परिषद् के मुख्य कार्यक्षेत्र निम्नलिखित हैं।.

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विवेक मिश्रा

विवेक मिश्रा एक भारतीय खिलाड़ी है। यह इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश में रहते हैं। इन्होने २००६ में होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों में अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं भारत का प्रतिनिधित्व किया था। यह २०१० में होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों में रीढ़ की हड्डी टूटने के कारण भाग नहीं ले सके। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उपलब्धियों के कारण २००८-०९ में लक्ष्मण पुरस्कार से सम्मानित किया गया।, द इंडियन एक्सप्रेस, 10 September 2011.

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विकास स्वरुप

अकेडेमी पुरस्कार (ऑस्कर पुरस्कार) में धूम मचाने वाली फिल्‍म 'स्लमडॉग मिलियनेयर' के लेखक विकास स्‍वरूप भारतीय विदेश सेवा के १९८६ बैच के अधिकारी हैं। ब्रिटेन, अमरीका और तुर्की में काम कर चुके विकास स्‍वरूप वर्तमान में दक्षिण अफ़्रीका में भारतीय उप उच्चायुक्त हैं। .

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वैशाली जिला

वैशाली (Vaishali) बिहार प्रान्त के तिरहुत प्रमंडल का एक जिला है। मुजफ्फरपुर से अलग होकर १२ अक्टुबर १९७२ को वैशाली एक अलग जिला बना। वैशाली जिले का मुख्यालय हाजीपुर में है। बज्जिका तथा हिन्दी यहाँ की मुख्य भाषा है। ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार वैशाली में ही विश्व का सबसे पहला गणतंत्र यानि "रिपब्लिक" कायम किया गया था। वैशाली जिला भगवान महावीर की जन्म स्थली होने के कारण जैन धर्म के मतावलम्बियों के लिए एक पवित्र नगरी है। भगवान बुद्ध का इस धरती पर तीन बार आगमन हुआ। भगवान बुद्ध के समय सोलह महाजनपदों में वैशाली का स्थान मगध के समान महत्त्वपूर्ण था। ऐतिहासिक महत्त्व के होने के अलावे आज यह जिला राष्ट्रीय स्तर के कई संस्थानों तथा केले, आम और लीची के उत्पादन के लिए भी जाना जाता है। .

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खपरैल

खपरैल से ढकी हुई घर की छत किसी मिट्टी, पत्थर, धातु, काच आदि कठोर पदार्थ से बने टुकड़े को खपरे या खपरैल (टाइल) कहते हैं। ग्रामीण भारत में घरों पर छाया का मुख्य साधन है, उपयोग प्रायः छत, फर्श, दीवार आदि ढकने में होता है। .

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खपरैल और चौके

खपरैल से निर्मित छत खपरैल एवं चौके (टाइल) प्रायः छतों, फर्श, एवं दीवारों को ढकने के काम आते हैं। इन्हें किसी सिरैमिक, पत्थर, धातु या कांच जैसी कठिनाई से घिसने वाले पदार्थ से बनाया जाता है। .

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खिलाड़ी लाल बैरवा

खिलाड़ी लाल बैरवा एक भारतीय राजनीतिज्ञ तथा पूर्व करौली-धौलपुर लोकसभा क्षेत्र से सांसद थे | वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस दल के सदस्य हैं | .

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खुसरौ बाग, इलाहाबाद

इलाहाबाद स्थित इस विशाल बाग में खुसरौ, उसकी बहन और उसकी राजपूत मां का मकबरा स्थित है। खुसरौ सम्राट जहांगीर के सबसे बड़े पुत्र थे। इस पार्क का संबंध भारत के स्वतंत्रता संग्राम से भी है। श्रेणी:इलाहाबाद के दर्शनीय स्थल.

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गढ़ मुक्तेश्वर

गढ़मुक्तेश्वर, भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के हापुड़ जिले का शहर एवं तहसील मुख्यालय है। इसे गढ़वाल राजाओं ने बसाया था। गंगा नदी के किनारे बसा यह शहर गढ़वाल राजाओं की राजधानी था; बाद में इसपर पृथ्वीराज चौहान का अधिकार हो गया। 'गढ़मुक्तेश्वर' राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से १०० किलोमीटर दूर 'राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 24' पर बसा है। गढ़ मुक्तेश्वर मेरठ से 42 किलोमीटर दूर स्थित है और गंगा नदी के दाहिने किनारे पर बसा है। विकास की दृष्टि से गढ़ मुक्तेश्वर सबसे पिछड़ी तहसील मानी जाती है, किन्तु सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। यहाँ कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर लगने वाला गंगा स्नान पर्व उत्तर भारत का सबसे बड़ा मेला माना जाता है। शिवपुराण के अनुसार, यहाँ पर अभिशप्त शिवगणों की पिशाच योनि से मुक्ति हुई थी, इसलिए इस तीर्थ का नाम 'गढ़ मुक्तेश्वर' अर्थात् 'गण मुक्तेश्वर (गणों को मुक्त करने वाले ईश्वर) नाम से प्रसिद्ध हुआ। .

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गढवा

गढवा भारत में झारखंड प्रान्त का एक जिला है। गढवा जिले का निर्माण पलामू के आठ प्रखंडो को मिलाकर 1 अप्रैल 1991 को किया गया जो पलामू के दक्षिण पश्चिम हिस्से में स्थित थे। गढवा के उत्तर में सोन नदी बहती है जो इसे छत्तीसगढ से अलग करती है, पूर्व में पलामू है और पश्चिम में छत्तीसगढ का सरगुजा जिला तथा उत्तर प्रदेश का सोनभद्र जिला है। गढवा के प्रखंडों में गढवा सहित- मेरेल, रंका, भंडरिया, मझियांव, नगर-ऊँटारी, भवनाथपुर एवं धुरकी शामिल थे। बाद में इन्हीं प्रखंडों में से छह और नये प्रखंड सृजित किए गए जिनमें दंदई, चिनिया, रमना, रमकंदा एवं कंदी शामिल थे। .

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गण

गण यह मूल में वैदिक शब्द था। वहाँ 'गणपति' और 'गणनांगणपति' ये प्रयोग आए हैं। इस शब्द का सीधा अर्थ समूह था। देवगण, ऋषिगण पितृगण-इन समस्त पदों में यही अर्थ अभिप्रेषित है। वैदिक मान्यता के अनुसार सृष्टि मूल में अव्यक्त स्रोत से प्रवृत्त हुई है। वह एक था, उस एक का बहुधा भाव या गण रूप में आना ही विश्व है। सृष्टिरचना के लिए गणतत्व की अनिवार्य आवश्यकता है। नानात्व से ही जगत् बनता है। बहुधा, नाना, गण इन सबका लक्ष्य अर्थ एक ही था। वैदिक सृष्टिविद्या के अनुसार मूलभूत एक प्राण सर्वप्रथम था, वह गणपति कहा गया। उसी से प्राणों के अनेक रूप प्रवृत्त हुए जो ऋषि, पितर, देव कहे गए। ये ही कई प्रकार के गण है। जो मूलभूत गणपति था वही पुराण की भाषा में गणेश कहा जाता है। शुद्ध विज्ञान की परिभाषा में उसे ही समष्टि (युनिवर्सल) कहेंगे। उससे जिन अनेक व्यष्टि भावों का जन्म होता है, उसकी संज्ञा गण है। गणपति या गणेश को महत्ततत्व भी कहते हैं। जो निष्कलरूप से सर्वव्यापक हो वही गणपति है। उसका खंड भाव में आना या पृथक् पृथक् रूप ग्रहण करना गणभाव की सृष्टि है। समष्टि और व्यष्टि दोनों एक दूसरे से अविनाभूत या मिले हुए रहते है। यही संतति संबंध गणेश के सूँड से इंगित होता है। हाथी का मस्तक महत् या महान का प्रतीक है और आंखु या चूहा पार्थित व्यष्टि पदार्थों या केंद्रों का प्रतीक है। वही पुराण की भाषा में गणपति का पशु है। वस्तुत: गणपति तत्व मूलभूत रुद्र का ही रूप है। जिसे महान कहा जाता है उसकी संज्ञा समुद्र भी थी। उसे ही पुराणों ने एकार्णव कहा है। वह सोम का समुद्र था और उसी तत्व के गणभावों का जन्म होता है। सोम का ही वैदिक प्रतीक मधु या अपूप था, उसी का पौराणिक या लोकगत प्रतीक मोदक है जो गणपति को प्रिय कहा जाता है। यही गण और गणपति की मूल कल्पना थी। गणों के स्वामी गणेश हैं और उनके प्रधान वीरभद्र जो सप्तमातृका मूर्तियों की पंक्ति के अंत में दंड धारण कर खड़े होते हैं। शिव के अनंत गण हैं जिनके वामन तथा विचित्र स्वरूपों का गुप्तकालीन कला में पर्याप्त आकलन हुआ है। खोह (म. प्र.) से प्राप्त और इलाहाबाद के संग्रहालय में सुरक्षित स्थूल वामन गणों की अपरिमित संख्या है। विकृत रूपधारीगण पट्टिकाओं पर उत्खचित हैं। परंपराया शिव की बारात में इन अप्राकृतिक रूपधारी गणों का विशेष महत्व माना जाता है। .

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गणेश प्रसाद

गणेशप्रसाद (1876 - 1935 ई.) भारतीय गणितज्ञ। इनका जन्म 15 नवम्बर 1876 ई. का बलिया (उत्तर प्रदेश) में हुआ। इनकी आरंभिक शिक्षा बलिया और उच्च शिक्षा म्योर सेंट्रल कालेज, इलाहाबाद में हुई। 1898 ई. में इन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से डी.

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गणेशशंकर विद्यार्थी

गणेशशंकर विद्यार्थी गणेशशंकर 'विद्यार्थी' (1890 - 25 मार्च 1931), हिन्दी के पत्रकार एवं भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के सिपाही एवं सुधारवादी नेता थे। .

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गांगेयदेव

गांगेयदेव (सन् १०१५-१०४१ ई.) कल्चुरि राजवंश का प्रमुख शासक था। वह सन् १०१५ के लगभग कलचुरि चेदि राज्य के सिंहासन पर बैठा। उसके पिता कोकल्लदेव द्वितीय और दादा युवराजदेव द्वितीय के समय राज्य की स्थिति कुछ कमजोर हो चली थी। गांगेयदेव ने इस स्थिति को केवल सँभाला ही नहीं, उसने चेदिराज का फिर भारत का अत्यंत शक्तिशाली और प्रभावशाली राज्य बना दिया। .

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गंगा देवी

गंगा (ဂင်္ဂါ, गिंगा; คงคา खोंखा) नदी को हिन्दू लोग को माँ एवं देवी के रूप में पवित्र मानते हैं। हिंदुओं द्वारा देवी रूपी इस नदी की पूजा की जाती है क्योंकि उनका विश्वास है कि इसमें स्नान करने से सारे पाप धुल जाते हैं और जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। तीर्थयात्री गंगा के पानी में अपने परिजनों की अस्थियों का विसर्जन करने के लिए लंबी दूरी की यात्रा करते हैं ताकि उनके प्रियजन सीधे स्वर्ग जा सकें। हरिद्वार, इलाहबाद और वाराणसी जैसे हिंदुओं के कई पवित्र स्थान गंगा नदी के तट पर ही स्थित हैं। थाईलैंड के लॉय क्राथोंग त्यौहार के दौरान सौभाग्य प्राप्ति तथा पापों को धोने के लिए बुद्ध तथा देवी गंगा (พระแม่คงคา, คงคาเทวี) के सम्मान में नावों में कैंडिल जलाकर उन्हें पानी में छोड़ा जाता है। .

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गंगा नदी

गंगा (गङ्गा; গঙ্গা) भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण नदी है। यह भारत और बांग्लादेश में कुल मिलाकर २,५१० किलोमीटर (कि॰मी॰) की दूरी तय करती हुई उत्तराखण्ड में हिमालय से लेकर बंगाल की खाड़ी के सुन्दरवन तक विशाल भू-भाग को सींचती है। देश की प्राकृतिक सम्पदा ही नहीं, जन-जन की भावनात्मक आस्था का आधार भी है। २,०७१ कि॰मी॰ तक भारत तथा उसके बाद बांग्लादेश में अपनी लंबी यात्रा करते हुए यह सहायक नदियों के साथ दस लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के अति विशाल उपजाऊ मैदान की रचना करती है। सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण गंगा का यह मैदान अपनी घनी जनसंख्या के कारण भी जाना जाता है। १०० फीट (३१ मी॰) की अधिकतम गहराई वाली यह नदी भारत में पवित्र मानी जाती है तथा इसकी उपासना माँ तथा देवी के रूप में की जाती है। भारतीय पुराण और साहित्य में अपने सौन्दर्य और महत्त्व के कारण बार-बार आदर के साथ वंदित गंगा नदी के प्रति विदेशी साहित्य में भी प्रशंसा और भावुकतापूर्ण वर्णन किये गये हैं। इस नदी में मछलियों तथा सर्पों की अनेक प्रजातियाँ तो पायी ही जाती हैं, मीठे पानी वाले दुर्लभ डॉलफिन भी पाये जाते हैं। यह कृषि, पर्यटन, साहसिक खेलों तथा उद्योगों के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है तथा अपने तट पर बसे शहरों की जलापूर्ति भी करती है। इसके तट पर विकसित धार्मिक स्थल और तीर्थ भारतीय सामाजिक व्यवस्था के विशेष अंग हैं। इसके ऊपर बने पुल, बांध और नदी परियोजनाएँ भारत की बिजली, पानी और कृषि से सम्बन्धित ज़रूरतों को पूरा करती हैं। वैज्ञानिक मानते हैं कि इस नदी के जल में बैक्टीरियोफेज नामक विषाणु होते हैं, जो जीवाणुओं व अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीवों को जीवित नहीं रहने देते हैं। गंगा की इस अनुपम शुद्धीकरण क्षमता तथा सामाजिक श्रद्धा के बावजूद इसको प्रदूषित होने से रोका नहीं जा सका है। फिर भी इसके प्रयत्न जारी हैं और सफ़ाई की अनेक परियोजनाओं के क्रम में नवम्बर,२००८ में भारत सरकार द्वारा इसे भारत की राष्ट्रीय नदी तथा इलाहाबाद और हल्दिया के बीच (१६०० किलोमीटर) गंगा नदी जलमार्ग को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया है। .

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गंगा का आर्थिक महत्त्व

गंगा में मत्स्य पालन गंगा भारत के आर्थिक तंत्र का एक महत्वपूर्ण भाग है। उसके द्वारा सींची गई खेती, उसके वनों में आश्रित पशुपक्षी, उसके जल में पलने वाले मीन मगर, उसके ऊपर बने बाँधों से प्राप्त बिजली और पानी, उस पर ताने गए पुलों से बढ़ता यातायात और उसके जलमार्ग से होता आवागमन और व्यापार तथा पर्यटन उसे भारत की अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण साधन साबित करते हैं। गंगा अपनी उपत्यकाओं से भारत और बांग्लादेश की कृषि आधारित अर्थ में भारी सहयोग तो करती ही है, यह अपनी सहायक नदियों सहित बहुत बड़े क्षेत्र के लिए सिंचाई के बारहमासी स्रोत भी हैं। इन क्षेत्रों में उगाई जाने वाली प्रधान उपज में मुख्यतः धान, गन्ना, दाल, तिलहन, आलू एवं गेहूँ हैं। जो भारत की कृषि आज का महत्वपूर्ण स्रोत हैं। गंगा के तटीय क्षेत्रों में दलदल एवं झीलों के कारण यहां लेग्यूम, मिर्चें, सरसों, तिल, गन्ने और जूट की अच्छी फसल होती है। नदी में मत्स्य उद्योग भी बहुत जोरों पर चलता है। गंगा नदी प्रणाली भारत की सबसे बड़ी नदी प्रणाली है। इसमें लगभग ३७५ मत्स्य प्रजातियाँ उपलब्ध हैं। वैज्ञानिकों द्वारा उत्तर प्रदेश व बिहार में १११ मत्स्य प्रजातियों की उपलब्धता बतायी गयी है। फरक्का बांध बन जाने से गंगा नदी में हिल्सा मछली के बीजोत्पादन में सहायता मिली है। गंगा का महत्व पर्यटन पर आधारित आय के कारण भी है। इसके तट पर ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण तथा प्राकृति सौंदर्य से भरपूर कई पर्यटन स्थल है जो राष्ट्रीय आज का महत्वपूर्ण स्रोत हैं। गंगा नदी पर रैफ्टिंग के शिविरों का आयोजन किया जाता है। जो साहसिक खेलों और पर्यावरण द्वारा भारत के आर्थिक सहयोग में सहयोग करते हैं। गंगा तट के तीन बड़े शहर हरिद्वार, इलाहाबाद एवं वाराणसी जो तीर्थ स्थलों में विशेष स्थान रखते हैं। इस कारण यहाँ श्रद्धालुओं की संख्या में निरंतर बनी रहता है और धार्मिक पर्यटन में महत्वपूर्म योगदान करती है। गर्मी के मौसम में जब पहाड़ों से बर्फ पिघलती है, तब नदी में पानी की मात्रा व बहाव अच्छा होता है, इस समय उत्तराखंड में ऋषिकेश - बद्रीनाथ मार्ग पर कौडियाला से ऋषिकेश के मध्य रैफ्टिंग के शिविरों का आयोजन किया जाता है, जो साहसिक खोलों के शौकीनों और पर्यटकों को विशेष रूप से आकर्षित कर के भारत के आर्थिक सहयोग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। .

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गंगा की सहायक नदियाँ

देवप्रयाग में भागीरथी (बाएँ) एवं अलकनंदा (दाएँ) मिलकर गंगा का निर्माण करती हुईं गंगा नदी भारत की एक प्रमुख नदी है। इसका उप द्रोणी क्षेत्र भागीरथी और अलकनंदा में हैं, जो देवप्रयाग में मिलकर गंगा बन जाती है। यह उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल से होकर बहती है। राजमहल की पहाड़ियों के नीचे भागीरथी नदी, जो पुराने समय में मुख्‍य नदी हुआ करती थी, निकलती है जबकि पद्मा पूरब की ओर बहती है और बांग्लादेश में प्रवेश करती है। यमुना, रामगंगा, घाघरा, गंडक, कोसी, महानदी और सोन गंगा की महत्त्वपूर्ण सहायक नदियाँ है। चंबल और बेतवा महत्‍वपूर्ण उप सहायक नदियाँ हैं जो गंगा से मिलने से पहले यमुना में मिल जाती हैं। पद्मा और ब्रह्मपुत्र बांग्‍लादेश में मिलती है और पद्मा अथवा गंगा के रूप में बहती रहती है। गंगा में उत्तर की ओर से आकर मिलने वाली प्रमुख सहायक नदियाँ यमुना, रामगंगा, करनाली (घाघरा), ताप्ती, गंडक, कोसी और काक्षी हैं तथा दक्षिण के पठार से आकर इसमें मिलने वाली प्रमुख नदियाँ चंबल, सोन, बेतवा, केन, दक्षिणी टोस आदि हैं। यमुना गंगा की सबसे प्रमुख सहायक नदी है जो हिमालय की बन्दरपूँछ चोटी के आधार पर यमुनोत्री हिमखण्ड से निकली है। हिमालय के ऊपरी भाग में इसमें टोंस तथा बाद में लघु हिमालय में आने पर इसमें गिरि और आसन नदियाँ मिलती हैं। इनके अलावा चम्बल, बेतवा, शारदा और केन यमुना की अन्य सहायक नदियाँ हैं। चम्बल इटावा के पास तथा बेतवा हमीरपुर के पास यमुना में मिलती हैं। यमुना इलाहाबाद के निकट बायीँ ओर से गंगा नदी में जा मिलती है। रामगंगा मुख्य हिमालय के दक्षिणी भाग नैनीताल के निकट से निकलकर बिजनौर जिले से बहती हुई कन्नौज के पास गंगा में जा मिलती है। करनाली मप्सातुंग नामक हिमनद से निकलकर अयोध्या, फैजाबाद होती हुई बलिया जिले के सीमा के पास गंगा में मिल जाती है। इस नदी को पर्वतीय भाग में कौरियाला तथा मैदानी भाग में घाघरा कहा जाता है। गंडक हिमालय से निकलकर नेपाल में 'शालग्रामी' नाम से बहती हुई मैदानी भाग में 'नारायणी' उपनाम पाती है। यह काली गंडक और त्रिशूल नदियों का जल लेकर प्रवाहित होती हुई सोनपुर के पास गंगा में मिल जाती है। कोसी की मुख्यधारा अरुण है जो गोसाई धाम के उत्तर से निकलती है। ब्रह्मपुत्र के बेसिन के दक्षिण से सर्पाकार रूप में अरुण नदी बहती है जहाँ यारू नामक नदी इससे मिलती है। इसके बाद एवरेस्ट कंचनजंघा शिखरों के बीच से बहती हुई अरूण नदी दक्षिण की ओर ९० किलोमीटर बहती है जहाँ इसमें पश्चिम से सूनकोसी तथा पूरब से तामूर कोसी नामक नदियाँ इसमें मिलती हैं। इसके बाद कोसी नदी के नाम से यह शिवालिक को पार करके मैदान में उतरती है तथा बिहार राज्य से बहती हुई गंगा में मिल जाती है। अमरकंटक पहाड़ी से निकलकर सोन नदी पटना के पास गंगा में मिलती है। मध्य प्रदेश के मऊ के निकट जनायाब पर्वत से निकलकर चम्बल नदी इटावा से ३८ किलोमीटर की दूरी पर यमुना नदी में मिलती है। काली सिंध, बनास और पार्वती इसकी सहायक नदियाँ हैं। बेतवा नदी मध्य प्रदेश में भोपाल से निकलकर उत्तर-पूर्वी दिशा में बहती हुई भोपाल, विदिशा, झाँसी, जालौन आदि जिलों में होकर बहती है। इसके ऊपरी भाग में कई झरने मिलते हैं किन्तु झाँसी के निकट यह काँप के मैदान में धीमे-धीमें बहती है। इसकी सम्पूर्ण लम्बाई ४८० किलोमीटर है। यह हमीरपुर के निकट यमुना में मिल जाती है। इसे प्राचीन काल में वत्रावटी के नाम से जाना जाता था। भागीरथी नदी के दायें किनारे से मिलने वाली अनेक नदियों में बाँसलई, द्वारका, मयूराक्षी, रूपनारायण, कंसावती और रसूलपुर नदियाँ प्रमुख हैं। जलांगी और माथा भाँगा या चूनीं बायें किनारे से मिलती हैं जो अतीत काल में गंगा या पद्मा की शाखा नदियाँ थीं। किन्तु ये वर्तमान समय में गंगा से पृथक होकर वर्षाकालीन नदियाँ बन गई हैं। .

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गंगाधर नेहरू

गंगाधर नेहरू (1827–1861) भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान दिल्ली के कोतवाल (मुख्य पुलिस अधिकारी) थे। वे स्वतन्त्रता सेनानी कांग्रेस नेता मोतीलाल नेहरू के पिता और भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू के दादा थे। .

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गुनाहों का देवता

गुनाहों का देवता हिंदी उपन्यासकार धर्मवीर भारती के शुरुआती दौर के और सर्वाधिक पढ़े जाने वाले उपन्यासों में से एक है। यह सबसे पहले १९५९ में प्रकाशित हुई थी। इसमें प्रेम के अव्यक्त और अलौकिक रूप का अन्यतम चित्रण है। सजिल्द और अजिल्द को मिलाकर इस उपन्यास के एक सौ से ज्यादा संस्करण छप चुके हैं। पात्रों के चरित्र-चित्रण की दृष्टि से यह हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ उपन्यासों में गिना जाता है। .

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गुप्त राजवंश

गुप्त राज्य लगभग ५०० ई इस काल की अजन्ता चित्रकला गुप्त राजवंश या गुप्त वंश प्राचीन भारत के प्रमुख राजवंशों में से एक था। मौर्य वंश के पतन के बाद दीर्घकाल तक भारत में राजनीतिक एकता स्थापित नहीं रही। कुषाण एवं सातवाहनों ने राजनीतिक एकता लाने का प्रयास किया। मौर्योत्तर काल के उपरान्त तीसरी शताब्दी इ. में तीन राजवंशो का उदय हुआ जिसमें मध्य भारत में नाग शक्‍ति, दक्षिण में बाकाटक तथा पूर्वी में गुप्त वंश प्रमुख हैं। मौर्य वंश के पतन के पश्चात नष्ट हुई राजनीतिक एकता को पुनस्थापित करने का श्रेय गुप्त वंश को है। गुप्त साम्राज्य की नींव तीसरी शताब्दी के चौथे दशक में तथा उत्थान चौथी शताब्दी की शुरुआत में हुआ। गुप्त वंश का प्रारम्भिक राज्य आधुनिक उत्तर प्रदेश और बिहार में था। गुप्त वंश पर सबसे ज्यादा रिसर्च करने वाले इतिहासकार डॉ जयसवाल ने इन्हें जाट बताया है।इसके अलावा तेजराम शर्माhttps://books.google.co.in/books?id.

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गुमानी पन्त

गुमानी पन्त (जन्म: फरवरी १७७० -) काशीपुर राज्य के राजकवि थे। वे संस्कृत और हिन्दी के कवि थे। वे कुमाऊँनी तथा नेपाली के प्रथम कवि थे। कुछ लोग उन्हें खड़ी बोली का प्रथम कवि भी मानते हैं। ग्रियर्सन ने अपनी पुस्तक लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया में गुमानी जी को कुर्मांचल प्राचीन कवि माना है। डॉ॰ भगत सिंह के अनुसार कुमाँऊनी में लिखित साहित्य की परंपरा १९वीं शताब्दी से मिलती हैं और यह परंपरा प्रथम कवि गुमानी पंत से लेकर आज तक अविच्छिन्न रूप से चली आ रही है। इन दो दृष्टांतों से यह सिद्ध हो जाता है कि गुमानी जी ही प्राचीनतम कवि थे। .

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गुर्जर प्रतिहार राजवंश

प्रतिहार वंश मध्यकाल के दौरान मध्य-उत्तर भारत के एक बड़े हिस्से में राज्य करने वाला राजवंश था, जिसकी स्थापना नागभट्ट नामक एक सामन्त ने ७२५ ई॰ में की थी। इस राजवंश के लोग स्वयं को राम के अनुज लक्ष्मण के वंशज मानते थे, जिसने अपने भाई राम को एक विशेष अवसर पर प्रतिहार की भाँति सेवा की। इस राजवंश की उत्पत्ति, प्राचीन कालीन ग्वालियर प्रशस्ति अभिलेख से ज्ञात होती है। अपने स्वर्णकाल में साम्राज्य पश्चिम में सतुलज नदी से उत्तर में हिमालय की तराई और पुर्व में बगांल असम से दक्षिण में सौराष्ट्र और नर्मदा नदी तक फैला हुआ था। सम्राट मिहिर भोज, इस राजवंश का सबसे प्रतापी और महान राजा थे। अरब लेखकों ने मिहिरभोज के काल को सम्पन्न काल बताते हैं। इतिहासकारों का मानना है कि गुर्जर प्रतिहार राजवंश ने भारत को अरब हमलों से लगभग ३०० वर्षों तक बचाये रखा था, इसलिए गुर्जर प्रतिहार (रक्षक) नाम पड़ा। गुर्जर प्रतिहारों ने उत्तर भारत में जो साम्राज्य बनाया, वह विस्तार में हर्षवर्धन के साम्राज्य से भी बड़ा और अधिक संगठित था। देश के राजनैतिक एकीकरण करके, शांति, समृद्धि और संस्कृति, साहित्य और कला आदि में वृद्धि तथा प्रगति का वातावरण तैयार करने का श्रेय प्रतिहारों को ही जाता हैं। गुर्जर प्रतिहारकालीन मंदिरो की विशेषता और मूर्तियों की कारीगरी से उस समय की प्रतिहार शैली की संपन्नता का बोध होता है। .

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ग्रैंड ट्रंक रोड

ग्रैंड ट्रंक रोड, दक्षिण एशिया के सबसे पुराने एवं सबसे लम्बे मार्गों में से एक है। दो सदियों से अधिक काल के लिए इस मार्ग ने भारतीय उपमहाद्वीप के पूर्वी एवं पश्चिमी भागों को जोड़ा है। यह हावड़ा के पश्चिम में स्थित बांगलादेश के चटगाँव से प्रारंभ होता है और लाहौर (पाकिस्तान) से होते हुए अफ़ग़ानिस्तान में काबुल तक जाता है। पुराने समय में इसे, उत्तरपथ,शाह राह-ए-आजम,सड़क-ए-आजम और बादशाही सड़क के नामों से भी जाना जाता था। यह मार्ग, मौर्य साम्राज्य के दौरान अस्तित्व में था और इसका फैलाव गंगा के मुँह से होकर साम्राज्य के उत्तर-पश्चिमी सीमा तक हुआ करता था। आधुनिक सड़क की पूर्ववर्ती का पुनःनिर्माण शेर शाह सूरी द्वारा किया गया था। सड़क का काफी हिस्सा १८३३-१८६० के बीच ब्रिटिशों द्वारा उन्नत बनाया गया था। .

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ग्रेट इंडियन पेनिनसुला रेलवे

1870 में ग्रेट इंडियन पेनिनसुला रेलवे की सीमायें ग्रेट इंडियन पेनिनसुला रेलवे (हिन्दी अनुवाद: विशाल भारतीय प्रायद्वीप रेल), जिसे वर्तमान में भारतीय मध्य रेल के नाम से जाना जाता है और जिसका मुख्यालय बंबई (अब मुंबई) के बोरी बंदर (बाद में, विक्टोरिया टर्मिनस और वर्तमान में छत्रपति शिवाजी टर्मिनस) में था। ग्रेट इंडियन पेनिनसुला रेलवे का गठन 1 अगस्त 1849 को ब्रिटिश संसद के एक अधिनियम द्वारा, 50,000 पाउंड की शेयर पूंजी के साथ किया गया था। 17 अगस्त 1849 को इसने ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ एक 56 किमी लंबी प्रयोगात्मक लाइन के निर्माण और संचालन के लिए एक औपचारिक अनुबंध किया, जिसके अंतर्गत बंबई को खानदेश, बेरार तथा अन्य प्रेसीडेंसियों के साथ जोड़ने के लिए एक ट्रंक लाइन बिछाई जानी थी। इस काम के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी के निदेशक न्यायालय ने जेम्स जे बर्कली को मुख्य आवासीय अभियंता तथा उनके सहायकों के रूप में सी बी कार और आर डब्ल्यू ग्राहम को नियुक्त किया। 1 जुलाई 1925 को इसके प्रबंधन को सरकार ने अपने हाथों में ले लिया। 5 नवम्बर 1951 को इसे मध्य रेल के रूप में निगमित किया गया। .

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गोरखपुर

300px गोरखपुर उत्तर प्रदेश राज्य के पूर्वी भाग में नेपाल के साथ सीमा के पास स्थित भारत का एक प्रसिद्ध शहर है। यह गोरखपुर जिले का प्रशासनिक मुख्यालय भी है। यह एक धार्मिक केन्द्र के रूप में मशहूर है जो बौद्ध, हिन्दू, मुस्लिम, जैन और सिख सन्तों की साधनास्थली रहा। किन्तु मध्ययुगीन सर्वमान्य सन्त गोरखनाथ के बाद उनके ही नाम पर इसका वर्तमान नाम गोरखपुर रखा गया। यहाँ का प्रसिद्ध गोरखनाथ मन्दिर अभी भी नाथ सम्प्रदाय की पीठ है। यह महान सन्त परमहंस योगानन्द का जन्म स्थान भी है। इस शहर में और भी कई ऐतिहासिक स्थल हैं जैसे, बौद्धों के घर, इमामबाड़ा, 18वीं सदी की दरगाह और हिन्दू धार्मिक ग्रन्थों का प्रमुख प्रकाशन संस्थान गीता प्रेस। 20वीं सदी में, गोरखपुर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का एक केन्द्र बिन्दु था और आज यह शहर एक प्रमुख व्यापार केन्द्र बन चुका है। पूर्वोत्तर रेलवे का मुख्यालय, जो ब्रिटिश काल में 'बंगाल नागपुर रेलवे' के रूप में जाना जाता था, यहीं स्थित है। अब इसे एक औद्योगिक क्षेत्र के रूप में विकसित करने के लिये गोरखपुर औद्योगिक विकास प्राधिकरण (गीडा/GIDA) की स्थापना पुराने शहर से 15 किमी दूर की गयी है। .

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गोस्वामी गोकुलनाथ

गोस्वामी गोकुलनाथ वल्लभ संप्रदाय की आचार्य परंपरा में वचनामृत पद्धति के यशस्वी प्रचारक के रूप में विख्यात हैं। आप गोस्वामी विट्ठलनाथ के चतुर्थ पुत्र थे। आपका जन्म संवत्‌ 1608, मार्गशीर्ष शुक्ला सप्तमी को प्रयाग के समीप अड़ैल में हुआ था। गोस्वामी विट्ठलनाथ के सातों पुत्रों में गोकुलनाथ सबसे अधिक मेधावी, प्रतिभाशाली, पंडित और वक्ता थे। सांप्रदायिक गूढ़ गहन सिद्धांतों का आपने विधिवत्‌ अध्ययन किया था और उनके मर्मोद्घाटन की विलक्षण शक्ति आपको प्राप्त हुई थी। सांप्रदायिक सिद्धांतों के प्रचार और प्रसार में अपने पिता के समान आपका भी बहुत योगदान है। संस्कृत भाषा के साथ ही हिंदी काव्य और संगीत का भी आपने गोविन्दस्वामी से अध्ययन किया था, जिसका उपयोग आपने प्रचार कार्य में किया। गोकुलनाथ की वैष्णव जगत्‌ में ख्याति के विशेषत: दो कारण बताए जाते है। पहला कारण यह है कि इन्होंने अपने संप्रदाय के वैष्णव भक्तों के चारित्रिक दृष्टांतों द्वारा सांप्रदायिक उपदेश देने की लोकप्रिय प्रथा का प्रवर्तन किया। इन कथाओं को ही हिंदी साहित्य में 'वार्ता साहित्य' का नाम दिया गया है। आपकी प्रसिद्धि का दूसरा कारण सांप्रदायिक अनुश्रुतियों में 'मालाप्रसंग' नाम से अभिहित किया जाता है। इस मालाप्रसंग के कारण, कहा जाता है कि, गोकुलनाथ जी को वैष्णव जगत्‌ में सार्वदेशिक यश और सम्मान प्राप्त हुआ था। मालाप्रसंग का संबंध एक ऐतिहासिक घटना से बताया जाता है। वंसत्‌ 1674 में बादशाह जहाँगीर की उज्जैन और मथुरा में एक वेदांती संन्यासी चिद्रूप से भेंट हुई जिसकी विस्पृह साधना से बादशाह मुग्ध था। वैष्णवों में प्रचलित है कि उसके कहने पर बादशाह ने वैष्णवों के बाह्य चिन्हों (माला, कंठी और तिलक) के धारण करने पर प्रतिबंध लगा दिया। इस निषेधाज्ञा को हटवाने में गोकुलनाथ जी ने सफलता पाई। यद्यपि इस वैष्णव परंपरा की पुष्टि ऐतिहासिक ग्रंथों से नहीं होती। जहाँगीर के 'आत्मचरित' अथवा फारसी की ऐतिहासिक सामग्री में इस घटना का कहीं उल्लेख नहीं मिलता। परंतु गोकुलनाथ जी के विषय में यह मिलता है कि उन्होंने जहाँगीर से गोस्वामियों के लिए नि:शुल्क चरागाह प्राप्त किए थे। उनका यश और सम्मान पुष्टिमार्गी संतसमाज में इससे अधिक बढ़ गया। चिद्रूप की लोकप्रियता कम हुई अथवा नहीं, किन्तु गोकुलनाथ जी का प्रभाव उत्तरोत्तर बढ़ता गया। आगे चलकर इसका स्पष्ट प्रभाव उनकी कृतियों पर पड़ा। वार्ता साहित्य के यशस्वी कृतिकार एवं प्रचारक के रूप में उनका नाम बड़े आदर से लिया जाता है। वैष्णव मत के सिद्धांतों और भक्ति की रसानुभूति में उनकी लेखनी खूब चली। हिंदी साहित्य के इतिहास ग्रंथों में गोकुलनाथ जी का उल्लेख उनके 'वार्ता साहित्य' के कारण हुआ है। गोकुलनाथ रचित दो वार्ता ग्रंथ प्राप्त हैं। पहला 'चौरासी वैष्णवन की वार्ता' और दूसरा 'दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता'। इन दोनों की प्रामाणिकता और गोकुलनाथ रचित होने में विद्वानों में प्रारंभ से ही मतभेद रहा है, किंतु नवीनतम शोध और अनुशीलन से यह सिद्ध होता जा रहा है कि मूल वार्ताओं का कथन गोकुलनाथ ने ही किया था। इन वार्ताओं से वल्लभ संप्रदायी कवियों तथा वैष्णव भक्तों का परिचय प्राप्त करने में अत्यधिक सहायता प्राप्त हुई है। अत: इनको अप्रामाणिक कहकर उपेक्षणीय नहीं माना जा सकता। सांप्रदायिक पंरपराओं के अध्ययन से यह विदित होता है कि गोकुलनाथ जी ने सर्वप्रथम श्री वल्लभाचार्य जी के शिष्यों-सेवकों का वृत्तांत मौखिक रूप से 'चौरासी वैष्णवन की वार्ता' के रूप में कहा और तदनंतर अपने पिता श्री विट्ठलनाथ जी के शिष्यों-सेवकों का चरित्र 'दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता' में सुनाया, यद्यपि गोकुलनाथ ने स्वयं इन वार्ताओं को नहीं लिखा। लेखन और संपादन का कार्य बाद में होता रहा। विशेष रूप से गुसाई हरिराय ने इनके संपादन का महत्वपूर्ण कार्य किया। उन्होंने 'भाव प्रकाश' लिखकर इन वार्ताओं का पल्लवन करते हुए इनमें विस्तार के साथ कतिपय समसामयिक घटनाओं का भी समावेश कर दिया। इन घटनाओं में औरंगजेब के आक्रमणों की बात विशेष रूप से ध्यान देने योग्य है। वस्तुत: हरिराय जी ने अपने काल की वर्तमानकालिक घटनाओं को भाव प्रकाशन तथा पल्लवन के समय जोड़ा था। मूल वार्ताओं में वे घटनाएँ नहीं थीं। परवर्ती संपादकों और लिपिकारों ने अनेक नवीन प्रसंग जोड़कर वार्ताओं को बहुत भ्रामक बना दिया है। किंतु वार्ताओं की प्राचीनतम प्रतियों में उन घटनाओं का वर्णन न होने से अनेक भ्रांतियों का निराकरण हो जाता है। वार्ता साहित्य का हिंदी गद्य के क्रमिक विकास में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है और अब उनका विधिवत्‌ मूल्यांकन होने लगा है। गोकुलनाथ जी रचित कुछ और ग्रंथ भी उपलब्ध हैं जिनमें 'वनयात्रा', 'नैत्य-सेवा-प्रकार', 'बैठक चरित्र', 'घरू वार्ता', 'भावना', 'हास्य प्रसंग' आदि हैं। गोकुलनाथ जी की ख्याति का एक कारण उनकी सांप्रदायिक विशेषता भी है। गोकुलनाथ के इष्टदेव का स्वरूप 'गोकुलनाथ' ही है और उसके विराजने का स्थान गोकुल है। इनके यहाँ स्वरूपसेवा के स्थान पर गद्दी को ही सर्वस्व मानकर पूजा जाता है। इनका सेवकसमुदाय भंडूची वैष्णवों के नाम से प्रसिद्ध है। गोकुलनाथ जी वचनामृत द्वारा वल्लभ संप्रदाय का प्रचार करनेवाले सबसे प्रमुख आचार्य थे। उनकी मृत्यु संवत्‌ 1697 की फाल्गुन कृष्णा नवमी को हुई। .

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गोविन्द चन्द्र पाण्डेय

डॉ॰ गोविन्द चन्द्र पाण्डेय (30 जुलाई 1923 - 21 मई 2011) संस्कृत, लेटिन और हिब्रू आदि अनेक भाषाओँ के असाधारण विद्वान, कई पुस्तकों के यशस्वी लेखक, हिन्दी कवि, हिन्दुस्तानी अकादमी इलाहबाद के सदस्य राजस्थान विश्वविद्यालय के कुलपति और सन २०१० में पद्मश्री सम्मान प्राप्त, बीसवीं सदी के जाने-माने चिन्तक, इतिहासवेत्ता, सौन्दर्यशास्त्री और संस्कृतज्ञ थे। .

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औरंगज़ेब

अबुल मुज़फ़्फ़र मुहिउद्दीन मुहम्मद औरंगज़ेब आलमगीर (3 नवम्बर १६१८ – ३ मार्च १७०७) जिसे आमतौर पर औरंगज़ेब या आलमगीर (प्रजा द्वारा दिया हुआ शाही नाम जिसका अर्थ होता है विश्व विजेता) के नाम से जाना जाता था भारत पर राज्य करने वाला छठा मुग़ल शासक था। उसका शासन १६५८ से लेकर १७०७ में उसकी मृत्यु होने तक चला। औरंगज़ेब ने भारतीय उपमहाद्वीप पर आधी सदी से भी ज्यादा समय तक राज्य किया। वो अकबर के बाद सबसे ज्यादा समय तक शासन करने वाला मुग़ल शासक था। अपने जीवनकाल में उसने दक्षिणी भारत में मुग़ल साम्राज्य का विस्तार करने का भरसक प्रयास किया पर उसकी मृत्यु के पश्चात मुग़ल साम्राज्य सिकुड़ने लगा। औरंगज़ेब के शासन में मुग़ल साम्राज्य अपने विस्तार के चरमोत्कर्ष पर पहुंचा। वो अपने समय का शायद सबसे धनी और शातिशाली व्यक्ति था जिसने अपने जीवनकाल में दक्षिण भारत में प्राप्त विजयों के जरिये मुग़ल साम्राज्य को साढ़े बारह लाख वर्ग मील में फैलाया और १५ करोड़ लोगों पर शासन किया जो की दुनिया की आबादी का १/४ था। औरंगज़ेब ने पूरे साम्राज्य पर फ़तवा-ए-आलमगीरी (शरियत या इस्लामी क़ानून पर आधारित) लागू किया और कुछ समय के लिए ग़ैर-मुस्लिमों पर अतिरिक्त कर भी लगाया। ग़ैर-मुसलमान जनता पर शरियत लागू करने वाला वो पहला मुसलमान शासक था। मुग़ल शासनकाल में उनके शासन काल में उसके दरबारियों में सबसे ज्यादा हिन्दु थे। और सिखों के गुरु तेग़ बहादुर को दाराशिकोह के साथ मिलकर बग़ावत के जुर्म में मृत्युदंड दिया गया था। .

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आत्माराम

डॉ आत्माराम (१२ अक्टुबर, १९०८ - ६ फ़रवरी १९८३) भारत के एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक थे। उनकी स्मृति में केन्द्रीय हिन्दी संस्थान द्वारा 'आत्माराम पुरस्कार' दिया जाता है। चश्मे के काँच के निर्माण में उनका उल्लेखनीय योगदान था। वे केन्‍द्रीय कांच एवं सिरामिक अनुसन्धान संस्‍थान के निदेशक रहे तथा २१ अगस्त १९६६ को वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद के महानिदेशक का पद संभाला। .

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आदित्य श्रीवास्तव

आदित्य श्रीवास्तव (जन्म २१ जुलाई १९६८, इलाहाबाद में) एक भारतीय फ़िल्म अभिनेता और टीवी प्रयोक्ता हैं। यह भारत के सबसे लंबे समय तक चलने वाले धारावाहिक सीआईडी में वरिष्ठ निरीक्षक अभिजीत के अभिनय के लिए जाने जाते हैं। इन्होंने हिन्दी फ़िल्मों सत्या (१९९८), गुलाल (२००९), पाँच, ब्लैक फ्राईडे और दिल से में भी निर्णायक भूमिका निभाई है। इसके अलावा कालो फ़िल्म में भी बखूबी भूमिका निभाई है। आदित्य श्रीवास्तव अभी अभिजीत के नाम से काफी प्रसिद्ध हैं। .

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आनंद भवन

आनंद भवन, इलाहाबाद में स्थित नेहरू-गाँधी परिवार का पूर्व आवास है जो अब एक संग्रहालय के रूप में है। वस्तुतः यह एक अपेक्षाकृत रूप से नया भवन है, जब मोतीलाल नेहरू ने इस नए भवन का निर्माण करवाया और अपने पुराने आवास को कांग्रेस के कार्यों हेतु स्थानीय मुख्यालय बना दिया, पुराने आनंद भवन का नाम स्वराज भवन कर दिया गया इस नए आवास को आनंद भवन कहा जाने लगा। नेहरू और इंदिरा गांधी के जीवन की कई महत्वपूर्ण घटनायें यहाँ घटित हुई। स्वतंत्रता आन्दोलन में इस स्थान का ऐतिहासिक महत्व रहा है। श्रेणी:भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम श्रेणी:इलाहाबाद.

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आर्यावर्त

आर्यावर्त प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में 'उत्तरी भारत' को आर्यावर्त (शाब्दिक अर्थ: आर्यों का निवासस्थान) कहा गया है। .

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आशुलिपि

डच आशुलिपि (ग्रूट पद्धति से) आशुलिपि (Shorthand) लिखने की एक विधि है जिसमें सामान्य लेखन की अपेक्षा अधिक तीव्र गति से लिखा जा सकता है। इसमें छोटे प्रतीकों का उपयोग किया जाता है। आशुलिपि में लिखने की क्रिया आशुलेखन (stenography) कहलाती है। स्टेनोग्राफी से आशय है तेज और संक्षिप्त लेखन। इसे हिन्दी मे 'शीघ्रलेखन' या 'त्वरालेखन' भी कहते हैं। लिखने और बोलने की गति में अंतर है। साधारण तौर पर जिस गति से कुशल से कुशल व्यक्ति हाथ से लिखता है, उससे चौगुनी, पाँचगुनी गति से वह संभाषण करता है। ऐसी स्थिति में वक्ता के भाषण अथवा संभाषण को लिपिबद्ध करने में विशेष रूप से कठिनाई उपस्थित हो जाती है। इसी कठिनाई को हल करने के लिये त्वरालेखन के आविष्कार की आवश्यकता पड़ी। .

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आज

आज हिन्दी भाषा का एक दैनिक समाचार पत्र है। इस समय `आज' वाराणसी, कानपुर, गोरखपुर, पटना, इलाहाबाद, तथा रांची से प्रकाशित हो रहा है। .

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आगरा लखनऊ द्रुतगामी मार्ग

आगरा लखनऊ द्रुतगामी मार्ग एक ३०२ किलोमीटर लम्बा नियंत्रित-पहुंच द्रुतमार्ग या एक्सप्रेसवे है, जो भीड़ग्रस्त सड़कों पर यातायात के साथ साथ ही प्रदूषण और कार्बन पदचिह्नों को भी कम करने के लिए उत्तर प्रदेश एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण द्वारा निर्मित है। यह भारत का सबसे लंबा एक्सप्रेसवे है। इस द्रुतमार्ग ने आगरा और लखनऊ के बीच की दूरी को काफी कम कर दिया है। यह ६-लेन चौड़ा है, और भविष्य में ८-लेन तक विस्तरित हो सकता है। २१ नवंबर २०१६ को उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री, अखिलेश यादव द्वारा इसका उद्घाटन किया गया था। .

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इण्डियन प्रेस, प्रयाग

इण्डियन प्रेस, भारत का पुराना और प्रसिद्ध प्रकाशन गृह है। यह प्रयाग में स्थित है। सरस्वती पत्रिका, हिन्दी शब्दसागर सहित बहुत सी प्रसिद्ध पुस्तकों के ये प्रकाशक रहे। बहुत सी विख्यात हस्तियाँ इसके साथ जुड़ी रहीं। रवीन्द्रनाथ ठाकुर की 'गीतांजलि' इसी प्रेस से छपी थी। इसकी स्थापना महान कर्मवीर बंगालीभाषी चिन्तामणि घोष (१८५४ - १९२८) ने सन् १८८४ में की थी। .

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इन्दिरा गांधी

युवा इन्दिरा नेहरू औरमहात्मा गांधी एक अनशन के दौरान इन्दिरा प्रियदर्शिनी गाँधी (जन्म उपनाम: नेहरू) (19 नवंबर 1917-31 अक्टूबर 1984) वर्ष 1966 से 1977 तक लगातार 3 पारी के लिए भारत गणराज्य की प्रधानमन्त्री रहीं और उसके बाद चौथी पारी में 1980 से लेकर 1984 में उनकी राजनैतिक हत्या तक भारत की प्रधानमंत्री रहीं। वे भारत की प्रथम और अब तक एकमात्र महिला प्रधानमंत्री रहीं। .

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इलाहाबाद

इलाहाबाद उत्तर भारत के उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग में स्थित एक नगर एवं इलाहाबाद जिले का प्रशासनिक मुख्यालय है। इसका प्राचीन नाम प्रयाग है। इसे 'तीर्थराज' (तीर्थों का राजा) भी कहते हैं। इलाहाबाद भारत का दूसरा प्राचीनतम बसा नगर है। हिन्दू मान्यता अनुसार, यहां सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने सृष्टि कार्य पूर्ण होने के बाद प्रथम यज्ञ किया था। इसी प्रथम यज्ञ के प्र और याग अर्थात यज्ञ से मिलकर प्रयाग बना और उस स्थान का नाम प्रयाग पड़ा जहाँ भगवान श्री ब्रम्हा जी ने सृष्टि का सबसे पहला यज्ञ सम्पन्न किया था। इस पावन नगरी के अधिष्ठाता भगवान श्री विष्णु स्वयं हैं और वे यहाँ माधव रूप में विराजमान हैं। भगवान के यहाँ बारह स्वरूप विध्यमान हैं। जिन्हें द्वादश माधव कहा जाता है। सबसे बड़े हिन्दू सम्मेलन महाकुंभ की चार स्थलियों में से एक है, शेष तीन हरिद्वार, उज्जैन एवं नासिक हैं। हिन्दू धर्मग्रन्थों में वर्णित प्रयाग स्थल पवित्रतम नदी गंगा और यमुना के संगम पर स्थित है। यहीं सरस्वती नदी गुप्त रूप से संगम में मिलती है, अतः ये त्रिवेणी संगम कहलाता है, जहां प्रत्येक बारह वर्ष में कुंभ मेला लगता है। इलाहाबाद में कई महत्त्वपूर्ण राज्य सरकार के कार्यालय स्थित हैं, जैसे इलाहाबाद उच्च न्यायालय, प्रधान महालेखाधिकारी (एजी ऑफ़िस), उत्तर प्रदेश राज्य लोक सेवा आयोग (पी.एस.सी), राज्य पुलिस मुख्यालय, उत्तर मध्य रेलवे मुख्यालय, केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का क्षेत्रीय कार्यालय एवं उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद कार्यालय। भारत सरकार द्वारा इलाहाबाद को जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण योजना के लिये मिशन शहर के रूप में चुना गया है। .

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इलाहाबाद बाईपास द्रुतगामी मार्ग

इलाहाबाद बाईपास द्रुतगामी मार्ग ८४.७०८ किमी (५२.६३५ मील) लम्बा उपयोग नियंत्रित राजमार्ग है। भारत का सबसे लम्बा बाईपास होने के साथ साथ यह स्वर्णिम चतुर्भुज का एक हिस्सा भी है। इस राजमार्ग के बन जाने से राष्ट्रीय राजमार्ग २ पर चलने वाले वाहनों को इलाहबाद नगर के भीतर से होकर नहीं जाना पड़ता तथा इससे नगर की यातायात व्यवस्था सुधरने के साथ-साथ ही लोगों के समय व ईंधन की बचत भी हो जाती है। .

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इलाहाबाद म्युजियम

इलाहाबाद में चन्द्र शेखर आजाद पार्क के निकट स्थित है। इस संग्रहालय का मुख्य आकर्षण निकोलस रोरिच की पेंटिग्स, राजस्थानी लघु आकृतियां, सिक्कों और दूसरी शताब्दी से आधुनिक युग की पत्थरों की मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है। संग्रहालय में 18 गैलरी हैं और यह सोमवार के अलावा प्रतिदिन 10 से 5 बजे तक खुला रहता है। श्रेणी:इलाहाबाद के दर्शनीय स्थल.

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इलाहाबाद राज्य विश्वविद्यालय

इलाहाबाद राज्य विश्वविद्यालय(अंग्रेजी: Allahabad State University), उत्तर प्रदेश सरकार द्वार 17 जून 2016 को इलाहाबाद मे स्थापित किया गया एक विश्वविद्यालय है। इस विश्वविद्यालय के प्रथम सत्र का प्रारम्भ 2016-17 मे इलाहाबाद, कौशाम्बी, फतेहपुर और प्रतापगढ़ के 462 सम्बद्ध काॅलेजो मे हुआ। इलाहाबाद, कौशाम्बी, फतेहपुर और प्रतापगढ़ के वे कालेज जो पूर्व मे छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय, कानपुर तथा डाॅ॰ राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय, फैजाबाद से सम्बद्ध थे अब इस नए स्थापित इलाहाबाद राज्य विश्वविद्यालय के अंतर्गत आ गए है। विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति के अनुसार "यह विश्वविद्यालय रेजीडेन्शियल कम एफिलिएटिंग विश्वविद्यालय होगा। प्रथम चरण में इस विश्वविद्यालय में ह्यूमैनिटीज, सोशल साइंसेज, इण्टरनेशनल स्टडीज, काॅमर्स और मैनेजमेण्ट आदि विषयों की पढ़ाई छात्र-छात्राओं को उपलब्ध होगी।" .

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इलाहाबाद संग्रहालय

इलाहाबाद संग्रहालय उत्तर प्रदेश राज्य के इलाहाबाद शहर में चन्द्र शेखर आज़ाद पार्क के निकट स्थित है। यह संग्रहालय दूसरी शताब्दी से लेकर बाद के काल की आधुनिक युग की सुन्दर मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है। 1947 में प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा इसका उद्घाटन किया गया। चन्द्र शेखर आजाद की माउज़र पिस्तौल भी यहाँ प्रदर्शित है। .

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इलाहाबाद जिला

इलाहाबाद उत्तर प्रदेश प्रान्त का एक ज़िला है। जिले का मुख्यालय इलाहाबाद है। क्षेत्रफल - वर्ग कि.मीकोरावं.

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इलाहाबाद जंक्शन रेलवे स्टेशन

इलाहाबाद जंक्शन प्लेटफॉर्म इलाहाबाद जंक्शन रेलवे स्टेशन इलाहाबाद शहर का रेलवे स्टेशन है। इसके अलावा शहर में सात अन्य रेलवे स्टेशन हैं:-.

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इलाहाबाद विमानक्षेत्र

इलाहाबाद विमानक्षेत्र या बमरौली विमानक्षेत्र इलाहाबाद में स्थित है। यह इलाहाबाद शहर से 12 किमी (7.5 मील) की दूरी पर है, और यहां से घरेलू उड़ानों का परिचालन होता है। यह भारत का पहला हवाई अड्डा है। इलाहाबाद विमानक्षेत्र 1919 में बनाया गया था और 1942 तक इस विमानक्षेत्र से लंदन तक की सीधी उड़ानें उपलब्ध होने के कारण इसे एक अंतरराष्ट्रीय विमानक्षेत्र का दर्जा प्राप्त था। .

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इलाहाबाद विश्वविद्यालय

इलाहाबाद विश्वविद्यालय भारत का एक प्रमुख विश्वविद्यालय है। यह एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय है। यह आधुनिक भारत के सबसे पहले विश्वविद्यालयों में से एक है। इसे 'पूर्व के आक्सफोर्ड' नाम से जाना जाता है। इसकी स्थापना सन् 1887 ई को एल्फ्रेड लायर की प्रेरणा से हुयी थी। इस विश्वविद्यालय का नक्शा प्रसिद्ध अंग्रेज वास्तुविद इमरसन ने बनाया था। १८६६ में इलाहाबाद में म्योर कॉलेज की स्थापना हुई जो आगे चलकर इलाहाबाद विश्वविद्यालय के रूप में विकसित हुआ। आज भी यह इलाहाबाद विश्वविद्यालय का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। म्योर कॉलेज का नाम तत्कालीन संयुक्त प्रांत के गवर्नर विलियम म्योर के नाम पर पड़ा। उन्होंने २४ मई १८६७ को इलाहाबाद में एक स्वतंत्र महाविद्यालय तथा एक विश्वविद्यालय के निर्माण की इच्छा प्रकट की थी। १८६९ में योजना बनी। उसके बाद इस काम के लिए एक शुरुआती कमेटी बना दी गई जिसके अवैतनिक सचिव प्यारे मोहन बनर्जी बने। ९ दिसम्बर १८७३ को म्योर कॉलेज की आधारशिला टामस जार्ज बैरिंग बैरन नार्थब्रेक ऑफ स्टेटस सीएमएसआई द्वारा रखी गई। ये वायसराय तथा भारत के गवर्नर जनरल थे। म्योर सेंट्रल कॉलेज का आकल्पन डब्ल्यू एमर्सन द्वारा किया गया था और ऐसी आशा थी कि कॉलेज की इमारतें मार्च १८७५ तक बनकर तैयार हो जाएँगी। लेकिन इसे पूरा होने में पूरे बारह वर्ष लग गए। १८८८ अप्रैल तक कॉलेज के सेंट्रल ब्लॉक के बनाने में ८,८९,६२७ रुपए खर्च हो चुके थे। इसका औपचारिक उद्घाटन ८ अप्रैल १८८६ को वायसराय लार्ड डफरिन ने किया। २३ सितंबर १८८७ को एक्ट XVII पास हुआ और कलकत्ता, बंबई तथा मद्रास विश्वविद्यालयों के बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय उपाधि प्रदान करने वाला भारत का चौथा विश्वविद्यालय बन गया। इसकी प्रथम प्रवेश परीक्षा मार्च १८८९ में हुई। .

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इलाहाबाद का इतिहास

प्रयाग का इतिहास अत्यन्त प्राचीन है। जान पड़ता है जिस प्रकार सरस्वती नदी के तट पर प्राचीन काल में बहुत से यज्ञादि होते थे उसी प्रकार आगे चलकर गंगा-यमुना के संगम पर भी हुए थे। इसी लिये 'प्रयाग' नाम पड़ा। यह तीर्थ बहुत प्राचीन काल से प्रसिद्ध है और यहाँ के जल से प्राचीन राजाओं का अभिषेक होता था। इस बात का उल्लेख वाल्मीकि रामायण में है। वन जाते समय श्री राम प्रयाग में भारद्वाज ऋषि के आश्रम पर होते हुए गए थे। प्रयाग बहुत दिनों तक कोशल राज्य के अंतर्गत था। अशोक आदि बौद्ध राजाओं के समय यहाँ बौद्धों के अनेक मठ और विहार थे। अशोक का स्तंभ अबतक किले के भीतर खड़ा है जिसमें समुद्रगुप्त की प्रशस्ति खुदी हुई है। फाहियान नामक चीनी यात्री सन् ४१४ ई० में आया था। उस समय प्रयाग कोशल राज्य में ही लगता था। प्रयाग के उस पार ही प्रतिष्ठान नामक प्रसिद्ध दुर्ग था जिसे समुद्रगुप्त ने बहुत द्दढ़ किया था। प्रयाग का अक्षयवट बहुत प्राचीन काल से प्रसिद्ध चला आता है। चीनी यात्री हुएन्सांग ईसा की सातवीं शताब्दी में भारतवर्ष में आया था। उसने अक्षयवट को देखा था। आज भी लाखों यात्री प्रयाग आकर इस वट का दर्शन करते है जो सृष्टि के आदि से माना जाता है। वर्तमान रूप में जो पुराण में मिलते हैं उनमें मत्स्यपुराण बहुत प्राचीन और प्रामाणिक माना जाता है। इस पुराण के १०२ अध्याय से लेकर १०७ अध्याय तक में इस तीर्थ के माहात्म्य का वर्णन है। उसमें लिखा है कि प्रयाग प्रजापति का क्षेत्र है जहाँ गंगा और यमुना बहती हैं। साठ सहस्त्र वीर गंगा की और स्वयं सूर्य जमुना की रक्षा करते हैं। यहाँ जो वट है उसकी रक्षा स्वयं शूलपाणि करते हैं। पाँच कुंड हैं जिनमें से होकर जाह्नवी बहती है। माघ महीने में यहाँ सब तीर्थ आकर वास करते हैं। इससे उस महीने में इस तीर्थवास का बहुत फल है। संगम पर जो लोग अग्नि द्वारा देह विसर्जित करेत हैं वे जितने रोम हैं उतने सहस्र वर्ष स्वर्ग लोक में वास करते हैं। मत्स्य पुराण के उक्त वर्णन में ध्यान देने की बात यह है कि उसमें सरस्वती का कहीं उल्लेख नहीं है जिसे पीछे से लोगों ने 'त्रिवेणी' के भ्रम में मिलाया है। वास्तव में गंगा और जमुना की दो ओर से आई हुई धाराओं और एक दोनों की संमिलित धारा से ही त्रिवेणी हो जाती है। .

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इलाहाबाद किला

इलाहाबाद का किला इलाहाबाद में संगम के निकट स्थित इस किले को मुगल सम्राट अकबर ने 1583 ई. में बनवाया था। वर्तमान में इस किले का कुछ ही भाग पर्यटकों के लिए खुला रहता है। बाकी हिस्से का प्रयोग भारतीय सेना करती है। इस किले में तीन बड़ी गैलरी हैं जहां पर ऊंची मीनारें हैं। सैलानियों को अशोक स्तंभ, सरस्वती कूप और जोधाबाई महल देखने की इजाजत है। इसके अलावा यहां अक्षय वट के नाम से मशहूर बरगद का एक पुराना पेड़ और पातालपुर मंदिर भी है। .

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इलाहाबाद के दर्शनीय स्थल

इलाहाबाद में कई दर्शनीय स्थल हैं। कुछ प्रमुख हैं: .

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इलाहाबाद की शिक्षा संस्थाएं

इलाहाबाद प्राचीन काल से ही शैक्षणिक नगर के रूप में प्रसिद्ध है। इलाहाबाद केवल गंगा और यमुना जैसी दो पवित्र नदियों का ही संगम नही, अपितु आध्यात्म के साथ शिक्षा का भी संगम है, जैहा भारत के सभी राज्यो से विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते हैं। इलाहाबाद विश्व्विद्यालय इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है, जँहा से अनेकानेक विद्वान ने शिक्षा ग्रहण कर देश व समाज के अनेक भागो में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इलाहाबाद विश्वविद्यालय को पूर्व का आक्सफोर्ड ("Oxford of the East") भी कहा जाता है। इलाहाबाद में कई विश्व्विद्यालय, शिक्षा परिषद, ईन्जीनिरिंग कालेज, मेडिकल कालेज तथा मुक्त विश्व्विद्यालय शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय भूमिका निभा रहे हैं। इलाहाबाद में स्थापित विश्व्विद्यालय के नाम इस प्रकार निम्नलिखित है- 1)-इलाहाबाद विश्व्विद्यालय 2)-उत्तर प्रदेश राज‍षिँ टण्डन मुक्त विश्व्विद्यालय 3)-इलाहाबाद एग्रीकल्चर संस्थान (मानित विश्व्विद्यालय)-(AAI-DU) 4)- नेहरू ग्राम भारती विश्वविद्यालय, जमुनीपुर कोटवा इलाहाबाद में स्थापित ईन्जीनिरिंग कालेज के नाम इस प्रकार निम्नलिखित है- १)-मोतीलाल नेहरु नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालाजी (MNNIT) २)-इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इन्फारमेशन टेक्नालाजी, इलाहाबाद (IIIT-A) ३)-हरीश चन्द्र एटामिक एनर्जी रिसर्च इंस्टीट्यूट (HRI) ४)-बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालाजी (BIT-Mesra)-(विस्तार पटल) ५)-उपर्यक्त के अतिरिक्त अन्य ईन्जीनिरिंग कालेज BBS, UCER, SPMIT, SNIT आदि है। इलाहाबाद में स्थापित मेडिकल कालेज का नाम इस प्रकार निम्नलिखित है- १)-मोतीलाल नेहरु मेडिकल कालेज इसके अतिरिक्त इलाहाबाद में हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग संगीत समिति आदि अनेक विख्यात कला संस्थान है। श्रेणी:इलाहाबाद में शिक्षा.

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इलाहाबाद उच्च न्यायालय

इलाहाबाद उच्च न्यायालय (Allahabad High Court) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का उच्च न्यायालय है। भारत में स्थापित सबसे पुराने उच्च न्यायालयों में से एक है। यह १८६९ से कार्य कर रहा है। .

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इलाहाबाद/आलेख

इलाहाबाद (اللہآباد), जिसे प्रयाग (پریاگ) भी कहते हैं, उत्तर भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग में स्थित एक शहर एवं इलाहाबाद जिले का प्रशासनिक मुख्यालय है। शहर का प्राचीन नाम अग्ग्र (संस्कृत) है, अर्थात त्याग स्थल। हिन्दू मान्यता अनुसार, यहां सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने सृष्टि कार्य पूर्ण होने के बाद प्रथम बलिदान दिया था। यही सबसे बड़े हिन्दी सम्मेलन महाकुंभ की चार स्थलियों में से एक है, शेष तीन हरिद्वार, उज्जैन एवं नासिक हैं। हिन्दू धर्मग्रन्थों में वर्णित प्रयाग स्थल पवित्रतम नदी गंगा और यमुना के संगम पर स्थित है। यहीं सरस्वती नदी गुप्त रूप से संगम में मिलती है, अतः ये त्रिवेणी संगम कहलाता है, जहां प्रत्येक बारह वर्ष में कुंभ मेला लगता है। शहर का वर्तमान नाम मुगल सम्राट अकबर द्वारा १५८३ में रखा गया था। हिन्दी नाम इलाहाबाद का अर्थ अरबी शब्द इलाह (अकबर द्वारा चलाये गए नये धर्म दीन-ए-इलाही के सन्दर्भ से, अल्लाह के लिये) एवं फारसी से आबाद (अर्थात बसाया हुआ) – यानि ईश्वर द्वारा बसाया गया, या ईश्वर का शहर है। शहर में कई महत्त्वपूर्ण राज्य सरकार के कार्यालय स्थित हैं, जैसे इलाहाबाद उच्च न्यायालय, प्रधान महालेखाधिकारी (एजी ऑफ़िस), उत्तर प्रदेश राज्य लोक सेवा आयोग (पी.एस.सी), राज्य पुलिस मुख्यालय, उत्तर मध्य रेलवे मुख्यालय, केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का क्षेत्रीय कार्यालय एवं उत्तर प्रदेश राज्य हाईस्कूल एवं इंटरमीडियेट शिक्षा कार्यालय। इलाहाबाद भारत के १४ प्रधानमंत्रियों में से ७ से संबंधित रहा है: जवाहर लाल नेहरु, लालबहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, गुलजारी लाल नंदा, विश्वनाथ प्रताप सिंह एवं चंद्रशेखर; जो या तो यहां जन्में हैं, या इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पढ़े हैं या इलाहाबाद निर्वाचन क्षेत्र से चुने गए हैं। भारत सरकार द्वारा इलाहाबाद को जवाहरलाल नेहरु अर्बन रिन्यूअल मिशन(JNNURM) के लिये मिशन शहर के रूप में चुना गया है, जिसके अन्तर्गत शहरी अवसंरचना में सुधार, दक्ष प्रशासन एवं शहरी नागरिकों हेतु आधारभूत सुविधाओं का प्रयोजन करना है। इलाहाबाद में संगम स्थल का दृश्य इलाहाबाद शहर देश के बड़े शहरों से सड़क व रेल यातायात द्वारा जुड़ा हुआ है। शहर में आठ रेलवे-स्टेशन हैं:प्रयाग रेलवे स्टेशन, इलाहाबाद सिटी रेलवे स्टेशन, दारागंज रेलवे स्टेशन, इलाहाबाद जंक्शन रेलवे स्टेशन, नैनी जंक्शन रेलवे स्टेशन, प्रयाग घाट रेलवे स्टेशन, सूबेदारगंज रेलवे स्टेशन और बमरौली रेलवे स्टेशन। .

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कटवार (उत्तर प्रदेश)

कटवार उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले का एक ग्राम पंचायत है। यह इलाहाबाद-जौनपुर रेल प्रखंड का एक रेलवे स्टेशन है। .

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कन्हैयालाल नन्दन

कन्हैयालाल एक जानेमाने भारतीय साहित्यकार,पत्रकार और गीतकार थे। डाक्टर कन्हैयालाल नंदन (१ जुलाई १९३३ - २५ सितम्बर १०१०) हिन्दी के वरिष्ठ पत्रकार, साहित्यकार, मंचीय कवि और गीतकार थे। पराग, सारिका और दिनमान जैसी पत्रिकाओं में बतौर संपादक अपनी छाप छोड़ने वाले नंदन ने कई किताबें भी लिखीं। कन्हैयालाल नंदन को भारत सरकार के पद्मश्री पुरस्कार के अलावा भारतेन्दु पुरस्कार और नेहरू फेलोशिप पुरस्कार से भी नवाजा गया। .

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कबीर पंथ

संत कबीर कबीर पंथ या सतगुरु कबीर पंथ भारत के भक्तिकालीन कवि कबीर की शिक्षाओं पर आधारित एक संप्रदाय है। कबीर के शिष्य धर्मदास ने उनके निधन के लगभग सौ साल बाद इस पंथ की शुरुआत की थी। प्रारंभ में दार्शनिक और नैतिक शिक्षा पर आधारित यह पंथ कालांतर में धार्मिक संप्रदाय में परिवर्तित हो गया। कबीर पंथ के अनुयायियों में हिंदू, मुसलमान, बौद्ध और जैन सभी धर्मों के लोग शामिल हैं। इनमें बहुतायत हिंदुओं की है। कबीर की रचनाओं का संग्रह बीजक इस पंथ के दार्शनिक और आध्यात्मिक चिंतन का आधार ग्रंथ है। अपने काव्य में कबीर ने पंथ को महत्त्वहीन बताते हुए उसका उपहास उड़ाया है। "ऐसा जोग न देखा भाई। भूला फिरै लिए गफिलाई॥ महादेव को पंथ चलावै। ऐसो बड़ो महंथ कहावै॥" कबीर पंथ का अध्ययन करने वाले केदारनाथ द्विवेदी के अनुसार इसका कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है कि पंथ की स्थापना कबीर ने स्वयं की। कबीर की मृत्यु के पश्चात उनके शिष्यों ने यह कार्य किया। .

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कमलेश कुमारी

कमलेश कुमारी केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सी.आर.पी.एफ़) की कांस्टेबल थीं, जो 13 दिसम्बर 2001 को संसद पर हुए आतंकी हमले में शहीद हो गईं। उन्हें मरणोपरांत भारत सरकार द्वारा 2001 में वीरता पुरस्कार अशोक चक्र दिया गया। इस सम्मान का वहीं महत्‍व है जो युद्ध काल में परमवीर चक्र का है। वे अशोक चक्र से सम्मानित होने वाली पहली भारतीय महिला कांस्टेबल बनी। कांस्टेबल कमलेश कुमारी 1994 में सेना में शामिल हुई और रैपिड एक्शन फोर्स में (आरएएफ) इलाहाबाद में तैनात हुई। उन्हें 12 जुलाई 2001 को 88 महिला बटालियन में तैनात किया गया था। वे जब संसद सत्र में तैनाती के दौरान ब्रावो कंपनी का हिस्सा बनी। 13 दिसम्बर 2001 को सुबह के लगभग 11:50 बजे भारतीय संसद पर हुये आतंकवादी घटना के दौरान वे संसद भवन के भवन के गेट नंबर 11 हेतु बनाए गए आयरन गेट नंबर 1 पर तैनात थी, जहां अवैध रूप से घुसती हुई एम्वेस्डर कार संख्या डीएल -3 सी जे 1527 उन्हें विजय चौक फाटक की ओर जाती हुई दिखाई दी। कमलेश को शक हुआ और वह गेट बंद करने के लिए विजय चौक फाटक की ओर भागी। इसी बीच वह आतंकवादियों की गोलियों का शिकार हो गई। उनके पेट में आतंकवादियों की ग्यारह गोलियां लगी और वह वहीं शहीद हो गयी। .

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कलानाथ शास्त्री

कलानाथ शास्त्री (जन्म: 15 जुलाई 1936) संस्कृत के जाने माने विद्वान,भाषाविद्, एवं बहुप्रकाशित लेखक हैं। आप राष्ट्रपति द्वारा वैदुष्य के लिए अलंकृत, केन्द्रीय साहित्य अकादमी, संस्कृत अकादमी आदि से पुरस्कृत, अनेक उपाधियों से सम्मानित व कई भाषाओँ में ग्रंथों के रचयिता हैं। वे विश्वविख्यात साहित्यकार तथा संस्कृत के युगांतरकारी कवि भट्ट मथुरानाथ शास्त्री के ज्येष्ठ पुत्र हैं। .

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कानपुर

कानपुर भारतवर्ष के उत्तरी राज्य उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख औद्योगिक नगर है। यह नगर गंगा नदी के दक्षिण तट पर बसा हुआ है। प्रदेश की राजधानी लखनऊ से ८० किलोमीटर पश्चिम स्थित यहाँ नगर प्रदेश की औद्योगिक राजधानी के नाम से भी जाना जाता है। ऐतिहासिक और पौराणिक मान्यताओं के लिए चर्चित ब्रह्मावर्त (बिठूर) के उत्तर मध्य में स्थित ध्रुवटीला त्याग और तपस्या का संदेश दे रहा है। यहाँ की आबादी लगभग २७ लाख है। .

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कायस्थ पाठशाला, प्रयाग

कायस्थ पाठशाला, इलाहाबाद का एक पुराना एवं प्रतिष्ठित विद्यालय है। गणेश शंकर 'विद्यार्थी', हरिवंशराय बच्चन आदि यहाँ के विद्यार्थी थे। इसकी स्थापना सन् १८७३ में अवध के प्रसिद्ध वकील मुंशी कालीप्रसाद कुलभास्कर द्वारा हुई थी। श्री हनुमान प्रसाद इस पाठशाला के प्रथम अध्यक्ष थे। आरम्भ में यह हाई स्कूल था जो सन् १८९५ में यह इण्टरमिडिएट कॉलेज बन गया। इसके आरम्भिक प्रधानाचार्यों में एक थे रमानन्द चटर्जी, जो बाद में बंगाली पुनर्जागरण की पत्रिका "मॉडर्न रिव्यू" के संस्थापक बने बने। 'वन्दे मातरम्' यहाँ की प्रार्थना थी। .

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कालाकांकर (रियासत)

कालाकांकर अवध का एक रियासत था। वर्तमान में यह उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिला में स्थित हैं। .

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कालिंजर दुर्ग

कालिंजर, उत्तर प्रदेश के बुन्देलखण्ड क्षेत्र के बांदा जिले में कलिंजर नगरी में स्थित एक पौराणिक सन्दर्भ वाला, ऐतिहासिक दुर्ग है जो इतिहास में सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण रहा है। यह विश्व धरोहर स्थल प्राचीन मन्दिर नगरी-खजुराहो के निकट ही स्थित है। कलिंजर नगरी का मुख्य महत्त्व विन्ध्य पर्वतमाला के पूर्वी छोर पर इसी नाम के पर्वत पर स्थित इसी नाम के दुर्ग के कारण भी है। यहाँ का दुर्ग भारत के सबसे विशाल और अपराजेय किलों में एक माना जाता है। इस पर्वत को हिन्दू धर्म के लोग अत्यंत पवित्र मानते हैं, व भगवान शिव के भक्त यहाँ के मन्दिर में बड़ी संख्या में आते हैं। प्राचीन काल में यह जेजाकभुक्ति (जयशक्ति चन्देल) साम्राज्य के अधीन था। इसके बाद यह दुर्ग यहाँ के कई राजवंशों जैसे चन्देल राजपूतों के अधीन १०वीं शताब्दी तक, तदोपरांत रीवा के सोलंकियों के अधीन रहा। इन राजाओं के शासनकाल में कालिंजर पर महमूद गजनवी, कुतुबुद्दीन ऐबक, शेर शाह सूरी और हुमांयू जैसे प्रसिद्ध आक्रांताओं ने आक्रमण किए लेकिन इस पर विजय पाने में असफल रहे। अनेक प्रयासों के बाद भी आरम्भिक मुगल बादशाह भी कालिंजर के किले को जीत नहीं पाए। अन्तत: मुगल बादशाह अकबर ने इसे जीता व मुगलों से होते हुए यह राजा छत्रसाल के हाथों अन्ततः अंग्रेज़ों के अधीन आ गया। इस दुर्ग में कई प्राचीन मन्दिर हैं, जिनमें से कई तो गुप्त वंश के तृतीय -५वीं शताब्दी तक के ज्ञात हुए हैं। यहाँ शिल्पकला के बहुत से अद्भुत उदाहरण हैं। .

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काशीपुर, उत्तराखण्ड

काशीपुर भारत के उत्तराखण्ड राज्य के उधम सिंह नगर जनपद का एक महत्वपूर्ण पौराणिक एवं औद्योगिक शहर है। उधम सिंह नगर जनपद के पश्चिमी भाग में स्थित काशीपुर जनसंख्या के मामले में कुमाऊँ का तीसरा और उत्तराखण्ड का छठा सबसे बड़ा नगर है। भारत की २०११ की जनगणना के अनुसार काशीपुर नगर की जनसंख्या १,२१,६२३, जबकि काशीपुर तहसील की जनसंख्या २,८३,१३६ है। यह नगर भारत की राजधानी, नई दिल्ली से लगभग २४० किलोमीटर, और उत्तराखण्ड की अंतरिम राजधानी, देहरादून से लगभग २०० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। काशीपुर को पुरातन काल से गोविषाण या उज्जयनी नगरी भी कहा जाता रहा है, और हर्ष के शासनकाल से पहले यह नगर कुनिन्दा, कुषाण, यादव, और गुप्त समेत कई राजवंशों के अधीन रहा है। इस जगह का नाम काशीपुर, चन्दवंशीय राजा देवी चन्द के एक पदाधिकारी काशीनाथ अधिकारी के नाम पर पड़ा, जिन्होंने इसे १६-१७ वीं शताब्दी में बसाया था। १८ वीं शताब्दी तक यह नगर कुमाऊँ राज्य में रहा, और फिर यह नन्द राम द्वारा स्थापित काशीपुर राज्य की राजधानी बन गया। १८०१ में यह नगर ब्रिटिश शासन के अंतर्गत आया, जिसके बाद इसने १८१४ के आंग्ल-गोरखा युद्ध में कुमाऊँ पर अंग्रेजों के कब्जे में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। काशीपुर को बाद में कुमाऊँ मण्डल के तराई जिले का मुख्यालय बना दिया गया। ऐतिहासिक रूप से, इस क्षेत्र की अर्थव्यस्था कृषि तथा बहुत छोटे पैमाने पर लघु औद्योगिक गतिविधियों पर आधारित रही है। काशीपुर को कपड़े और धातु के बर्तनों का ऐतिहासिक व्यापार केंद्र भी माना जाता है। आजादी से पहले काशीपुर नगर में जापान से मखमल, चीन से रेशम व इंग्लैंड के मैनचेस्टर से सूती कपड़े आते थे, जिनका तिब्बत व पर्वतीय क्षेत्रों में व्यापार होता था। बाद में प्रशासनिक प्रोत्साहन और समर्थन के साथ काशीपुर शहर के आसपास तेजी से औद्योगिक विकास हुआ। वर्तमान में नगर के एस्कॉर्ट्स फार्म क्षेत्र में छोटी और मझोली औद्योगिक इकाइयों के लिए एक इंटीग्रेटेड इंडस्ट्रियल एस्टेट निर्माणाधीन है। भौगोलिक रूप से काशीपुर कुमाऊँ के तराई क्षेत्र में स्थित है, जो पश्चिम में जसपुर तक तथा पूर्व में खटीमा तक फैला है। कोशी और रामगंगा नदियों के अपवाह क्षेत्र में स्थित काशीपुर ढेला नदी के तट पर बसा हुआ है। १८७२ में काशीपुर नगरपालिका की स्थापना हुई, और २०११ में इसे उच्चीकृत कर नगर निगम का दर्जा दिया गया। यह नगर अपने वार्षिक चैती मेले के लिए प्रसिद्ध है। महिषासुर मर्दिनी देवी, मोटेश्वर महादेव तथा मां बालासुन्दरी के मन्दिर, उज्जैन किला, द्रोण सागर, गिरिताल, तुमरिया बाँध तथा गुरुद्वारा श्री ननकाना साहिब काशीपुर के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल हैं। .

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कांच

स्वच्छ पारदर्शी कांच का बना प्रकाश बल्ब काच, काँच या कांच (glass) एक अक्रिस्टलीय ठोस पदार्थ है। कांच आमतौर भंगुर और अक्सर प्रकाशीय रूप से पारदर्शी होते हैं। काच अथव शीशा अकार्बनिक पदार्थों से बना हुआ वह पारदर्शक अथवा अपारदर्शक पदार्थ है जिससे शीशी बोतल आदि बनती हैं। काच का आविष्कार संसार के लिए बहुत बड़ी घटना थी और आज की वैज्ञानिक उन्नति में काच का बहुत अधिक महत्व है। किन्तु विज्ञान की दृष्टि से 'कांच' की परिभाषा बहुत व्यापक है। इस दृष्टि से उन सभी ठोसों को कांच कहते हैं जो द्रव अवस्था से ठण्डा होकर ठोस अवस्था में आने पर क्रिस्टलीय संरचना नहीं प्राप्त करते। सबसे आम काच सोडा-लाइम काच है जो शताब्दियों से खिड़कियाँ और गिलास आदि बनाने के काम में आ रहा है। सोडा-लाइम कांच में लगभग 75% सिलिका (SiO2), सोडियम आक्साइड (Na2O) और चूना (CaO) और अनेकों अन्य चीजें कम मात्रा में मिली होती हैं। काँच यानी SiO2 जो कि रेत का अभिन्न अंग है। रेत और कुछ अन्य सामग्री को एक भट्टी में लगभग 1500 डिग्री सैल्सियस पर पिघलाया जाता है और फिर इस पिघले काँच को उन खाँचों में बूंद-बूंद करके उंडेला जाता है जिससे मनचाही चीज़ बनाई जा सके। मान लीजिए, बोतल बनाई जा रही है तो खाँचे में पिघला काँच डालने के बाद बोतल की सतह पर और काम किया जाता है और उसे फिर एक भट्टी से गुज़ारा जाता है। .

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काकोरी काण्ड

काकोरी-काण्ड के क्रान्तिकारी सबसे ऊपर या प्रमुख बिस्मिल थे राम प्रसाद 'बिस्मिल' एवं अशफाक उल्ला खाँ नीचे ग्रुप फोटो में क्रमश: 1.योगेशचन्द्र चटर्जी, 2.प्रेमकृष्ण खन्ना, 3.मुकुन्दी लाल, 4.विष्णुशरण दुब्लिश, 5.सुरेशचन्द्र भट्टाचार्य, 6.रामकृष्ण खत्री, 7.मन्मथनाथ गुप्त, 8.राजकुमार सिन्हा, 9.ठाकुर रोशानसिंह, 10.पं० रामप्रसाद 'बिस्मिल', 11.राजेन्द्रनाथ लाहिडी, 12.गोविन्दचरण कार, 13.रामदुलारे त्रिवेदी, 14.रामनाथ पाण्डेय, 15.शचीन्द्रनाथ सान्याल, 16.भूपेन्द्रनाथ सान्याल, 17.प्रणवेशकुमार चटर्जी काकोरी काण्ड (अंग्रेजी: Kakori conspiracy) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रान्तिकारियों द्वारा ब्रिटिश राज के विरुद्ध भयंकर युद्ध छेड़ने की खतरनाक मंशा से हथियार खरीदने के लिये ब्रिटिश सरकार का ही खजाना लूट लेने की एक ऐतिहासिक घटना थी जो ९ अगस्त १९२५ को घटी। इस ट्रेन डकैती में जर्मनी के बने चार माउज़र पिस्तौल काम में लाये गये थे। इन पिस्तौलों की विशेषता यह थी कि इनमें बट के पीछे लकड़ी का बना एक और कुन्दा लगाकर रायफल की तरह उपयोग किया जा सकता था। हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के केवल दस सदस्यों ने इस पूरी घटना को अंजाम दिया था। क्रान्तिकारियों द्वारा चलाए जा रहे आजादी के आन्दोलन को गति देने के लिये धन की तत्काल व्यवस्था की जरूरत के मद्देनजर शाहजहाँपुर में हुई बैठक के दौरान राम प्रसाद बिस्मिल ने अंग्रेजी सरकार का खजाना लूटने की योजना बनायी थी। इस योजनानुसार दल के ही एक प्रमुख सदस्य राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने ९ अगस्त १९२५ को लखनऊ जिले के काकोरी रेलवे स्टेशन से छूटी "आठ डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेन्जर ट्रेन" को चेन खींच कर रोका और क्रान्तिकारी पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में अशफाक उल्ला खाँ, पण्डित चन्द्रशेखर आज़ाद व ६ अन्य सहयोगियों की मदद से समूची ट्रेन पर धावा बोलते हुए सरकारी खजाना लूट लिया। बाद में अंग्रेजी हुकूमत ने उनकी पार्टी हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के कुल ४० क्रान्तिकारियों पर सम्राट के विरुद्ध सशस्त्र युद्ध छेड़ने, सरकारी खजाना लूटने व मुसाफिरों की हत्या करने का मुकदमा चलाया जिसमें राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ तथा ठाकुर रोशन सिंह को मृत्यु-दण्ड (फाँसी की सजा) सुनायी गयी। इस मुकदमें में १६ अन्य क्रान्तिकारियों को कम से कम ४ वर्ष की सजा से लेकर अधिकतम काला पानी (आजीवन कारावास) तक का दण्ड दिया गया था। .

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किशोरीदास वाजपेयी

आचार्य किशोरीदास वाजपेयी आचार्य किशोरीदास वाजपेयी (१८९८-१९८१) हिन्दी के साहित्यकार एवं सुप्रसिद्ध व्याकरणाचार्य थे। हिन्दी की खड़ी बोली के व्याकरण की निर्मिति में पूर्ववर्ती भाषाओं के व्याकरणाचार्यो द्वारा निर्धारित नियमों और मान्यताओं का उदारतापूर्वक उपयोग करके इसके मानक स्वरूप को वैज्ञानिक दृष्टि से सम्पन्न करने का गुरुतर दायित्व पं॰ किशोरीदास वाजपेयी ने निभाया। इसीलिए उन्हें 'हिन्दी का पाणिनी' कहा जाता है। अपनी तेजस्विता व प्रतिभा से उन्होंने साहित्यजगत को आलोकित किया और एक महान भाषा के रूपाकार को निर्धारित किया। आचार्य किशोरीदास बाजपेयी ने हिन्दी को परिष्कृत रूप प्रदान करने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इनसे पूर्व खडी बोली हिन्दी का प्रचलन तो हो चुका था पर उसका कोई व्यवस्थित व्याकरण नहीं था। अत: आपने अपने अथक प्रयास एवं ईमानदारी से भाषा का परिष्कार करते हुए व्याकरण का एक सुव्यवस्थित रूप निर्धारित कर भाषा का परिष्कार तो किया ही साथ ही नये मानदण्ड भी स्थापित किये। स्वाभाविक है भाषा को एक नया स्वरूप मिला। अत: हिन्दी क्षेत्र में आपको "पाणिनि' संज्ञा से अभिहित किया जाने लगा। .

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कवींद्राचार्य सरस्वती

कवीन्द्राचार्य सरस्वती ब्रजभाषा के कवि थे। सत्रहवीं शताब्दी में भारत में जो श्रेष्ठ तथा दिग्गज आचार्य कवि हुए उनमें कवींद्राचार्य सरस्वती का नाम विशेष उल्लेखनीय है। दक्षिण में गोदावरी के तीर पर एक गाँव में ऋग्वेदीय आश्वलायन शाखा के ब्राह्मण कुल में जन्मे कवींद्राचार्य के वास्तविक नाम का पता नहीं चलता। 'कवींद्र' इनकी उपाधि है। अद्वैतवेदांती संन्यासी होने के कारण ये 'सरस्वती' उपाधि से विभूषित थे और शाहजहाँ के राज्यकाल में प्रयाग तथा वाराणसी के सबसे प्रधान संन्यासी मठाधीश और काव्यदर्शन तथा वेदवेदांग के मूर्धन्य पंडित थे। .

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कुँवर महाराजसिंह

सर कुँवर महाराजसिंह (1878, कपूरथला – 6 June 1959 लखनऊ) बम्बई के प्रथम भारतीय गवर्नर थे। उनका जन्म १७ मई, १८७८ को पंजाब के कपूरथला में हुआ। उनके पिता बहुत बड़े जमींदार थे। उनकी उच्च शिक्षा अधिकतर इंग्लैंड मे हुई। हैरो स्कूल मे शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से एमo एo की डिग्री प्राप्त की। भारत लौट आने पर उनकी नियुक्ति पुरी के डिप्टी कमिश्नर के पद पर हुई। कुछ ही वर्ष बाद वह कमिश्नर बनाए गए। जब वह इलाहाबाद के कमिश्नर थे, भारत सरकार ने उनको जोधपुर का मुख्य मंत्री बनाकर भेजा। अगस्त, १९३२ से जनवरी १९३५ तक वे वहाँ रहे। दक्षिण अफ्रीका में उन्होंने भारतीयों की दशा में विशेष सुधार करवाया। सरकार ने उनको `सर` की उपाधि दी। १९३५ में दक्षिण अफ्रीका से लौटने पर वे संयुक्त प्रांत की सरकार में गृह सदस्य बनाए गए। जब १९३७ में कांग्रेस सरकार स्थापित हुई तो उसने उन्हें कई समितियों का सदस्य बनाया और उनसे कठिन समस्याओं पर बराबर परामर्श लेती रही। १९४८ में सरकार ने उन्हें बंबई का प्रथम भारतीय गवर्नर बनाया। वह भारतीय ईसाई समाज के सर्वश्रेष्ठ नेता थे। १९४७ में उन्होंने ईसाइयों के लिये अलग स्थान न माँगकर भारतीयवासियों के साथ ही रहना स्वीकार किया। उन्होंने सदैव प्रत्येक भारतीय ईसाई को देशभक्त बनने की सलाह दी। अपने जीवनकाल में उन्होंने तथा रानी महाराजसिंह ने ईसाई लड़के लड़कियों को शिक्षा और नौकरियाँ दिलवाने में बड़ी सहायता की। ६ जून, १९५९ को बंबई में उनकी मृत्यु हुई। श्रेणी:मुम्बई के गवर्नर.

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कुँवर सिंह

भारतीय स्वतंत्रता के प्रथम संग्राम (१८५७) के रणबांकुरे '''कुंवर सिंह''' बाबू कुंवर सिंह (1777 - 1857) सन 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सिपाही और महानायक थे। अन्याय विरोधी व स्वतंत्रता प्रेमी बाबू कुंवर सिंह कुशल सेना नायक थे। इनको 80 वर्ष की उम्र में भी लड़ने तथा विजय हासिल करने के लिए जाना जाता है। .

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कुबेर नाथ राय

कुबेरनाथ राय (२६ मार्च १९३३ - ५ जून १९९६) हिन्दी ललित निबन्ध परम्परा के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर, सांस्कृतिक निबन्धकार और भारतीय आर्ष-चिन्तन के गन्धमादन थे। उनकी गिनती आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी और विद्यानिवास मिश्र जैसे ख्यातिलब्ध निबन्धकारों के साथ की जाती है। .

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कुमाऊँ राज्य

कुमाऊँ राज्य, जिसे कूर्मांचल भी कहा जाता था, चन्द राजवंश द्वारा शासित एक पर्वतीय राज्य था, जिसका विस्तार वर्तमान भारत के उत्तराखण्ड राज्य के कुमाऊँ क्षेत्र में था। राज्य की स्थापना ७०० में सोम चन्द ने की थी। प्रारम्भ में यह केवल वर्तमान चम्पावत जनपद तक ही सीमित था। उसके बाद सोम चन्द ने सुई पर आक्रमण कर उसे अपने राज्य में मिला लिया। सर्वप्रथम राजा त्रिलोक चन्द ने छखाता पर आक्रमण कर पश्चिम की ओर राज्य का विस्तार किया। उसके बाद गरुड़ ज्ञान चन्द ने तराई-भाभर, उद्यान चन्द ने चौगरखा, रत्न चन्द ने सोर और कीर्ति चन्द ने बारहमण्डल, पाली तथा फल्दाकोट क्षेत्रों को राज्य में मिला लिया। १५६३ में बालो कल्याण चन्द ने राजधानी चम्पावत से आलमनगर स्थानांतरित कर नगर का नाम अल्मोड़ा रखा, और गंगोली तथा दानपुर पर अधिकार स्थापित किया। उनके बाद उनके पुत्र रुद्र चन्द ने अस्कोट और सिरा को पराजित कर राज्य को उसके चरम पर पहुंचा दिया। सत्रहवीं शताब्दी में कुमाऊँ में चन्द शासन का स्वर्ण काल चला, परन्तु अट्ठारवीं शताब्दी आते आते उनकी शक्ति क्षीण होने लगी। १७४४ में रोहिल्लों के तथा १७७९ में गढ़वाल के हाथों पराजित होने के बाद चन्द राजाओं की शक्ति पूरी तरह बिखर गई थी। फलतः गोरखों ने अवसर का लाभ उठाकर हवालबाग के पास एक साधारण मुठभेड़ के बाद सन्‌ १७९० ई. में अल्मोड़ा पर अपना अधिकार कर लिया। .

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कुम्भ मेला

हरिद्वार के कुंभ मेले (2010) के दौरान गंगा किनारे स्नान घाट पर श्रद्धालु २००१ के प्रयाग कुम्भ मेले का दृष्य कुंभ पर्व हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें करोड़ों श्रद्धालु कुंभ पर्व स्थल हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक में स्नान करते हैं। इनमें से प्रत्येक स्थान पर प्रति बारहवें वर्ष और प्रयाग में दो कुंभ पर्वों के बीच छह वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ भी होता है। २०१३ का कुम्भ प्रयाग में हुआ था। खगोल गणनाओं के अनुसार यह मेला मकर संक्रांति के दिन प्रारम्भ होता है, जब सूर्य और चन्द्रमा, वृश्चिक राशी में और वृहस्पति, मेष राशी में प्रवेश करते हैं। मकर संक्रांति के होने वाले इस योग को "कुम्भ स्नान-योग" कहते हैं और इस दिन को विशेष मंगलिक माना जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस दिन पृथ्वी से उच्च लोकों के द्वार इस दिन खुलते हैं और इस प्रकार इस दिन स्नान करने से आत्मा को उच्च लोकों की प्राप्ति सहजता से हो जाती है। यहाँ स्नान करना साक्षात स्वर्ग दर्शन माना जाता है। .

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कुरुक्षेत्र

कुरुक्षेत्र(Kurukshetra) हरियाणा राज्य का एक प्रमुख जिला और उसका मुख्यालय है। यह हरियाणा के उत्तर में स्थित है तथा अम्बाला, यमुना नगर, करनाल और कैथल से घिरा हुआ है तथा दिल्ली और अमृतसर को जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग और रेलमार्ग पर स्थित है। इसका शहरी इलाका एक अन्य एटिहासिक स्थल थानेसर से मिला हुआ है। यह एक महत्वपूर्ण हिन्दू तीर्थस्थल है। माना जाता है कि यहीं महाभारत की लड़ाई हुई थी और भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश यहीं ज्योतिसर नामक स्थान पर दिया था। यह क्षेत्र बासमती चावल के उत्पादन के लिए भी प्रसिद्ध है। .

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कुंभ एवं अर्धकुंभ मेला, हरिद्वार

कुम्भ एवं अर्धकुंभ मेला, हरिद्वार। उत्तराखण्ड के चारों धामों, बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री एवं यमुनोत्री के लिये प्रवेश द्वार के रूप में प्रसिद्ध हरिद्वार ज्योतिष गणना के आधार पर ग्रह नक्षत्रों के विशेष स्थितियों में हर बारहवें वर्ष कुम्भ के मेले का आयोजन किया जाता है। मेष राशि में सूर्य और कुम्भ राशि में बृहस्पति होने से हरिद्वार में कुम्भ का योग बनता है। .

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क्षिप्रा एक्सप्रेस

शिप्रा एक्सप्रेस (हिन्दी: इंदौर - हावड़ा क्षिप्रा एक्सप्रेस बंगाली: ইন্দোরে - হাওড়া শিপ্রা এক্সপ্রেস, उर्दू:حافظة شبرا إكسبرس - اندر) (के रूप में स्पष्ट Shiprã एक्सप्रेस) एक त्रि-साप्ताहिक सुपर फास्ट एक्सप्रेस ट्रेन की भारतीय रेल, जो  के बीच इंदौर जंक्शन रेलवे स्टेशन के इंदौर, सबसे बड़ा शहर और व्यावसायिक केंद्र के मध्य भारतीय राज्य, मध्य प्रदेश और हावड़ा, के व्यावसायिक केंद्र कोलकाता.

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कौशाम्बी (प्राचीन नगर)

कौशाम्बी (संस्कृत) या कोसंबी (पाली) प्राचीन भारत में एक महत्वपूर्ण शहर था तथा प्राचीन भारत के छः प्रमुख नगरों में से एक था। इसका वर्णन कई ग्रन्थों में आता है। ज्ञान प्राप्ति के पश्चात 6वें और 9वें वर्षों में महात्मा बुद्ध यहाँ आये थे यह यमुना नदी पर लगभग 56 किलोमीटर (35 मील) दक्षिणपश्चिमी के संगम के साथ गंगा के प्रयाग (आधुनिक इलाहाबाद) में स्थित था । भारत के महानतम शहरों में से एक वैदिक काल के अंत तक मौर्य साम्राज्य के अंत तक कब्ज़ा कर रहा था, जब तक कि गुप्त साम्राज्य तक नहीं रह जाता था। एक छोटे शहर के रूप में, इसे वैदिक काल के अंत में स्थापित किया गया था, कुरु साम्राज्य के शासकों ने अपनी नई राजधानी के रूप में स्थापित किया था। प्रारंभिक कुरु राजधानी हस्तिनापुर बाढ़ से नष्ट हो गया था, और कुरु राजा ने अपनी पूरी पूंजी को एक नई राजधानी के रूप में स्थानांतरित कर दिया, जिसने गंगा-जमुमा संगम के पास बनाया, जो कुरु राज्य इलाहाबाद के दक्षिणी हिस्से से 56 किमी दूर था । मौर्य साम्राज्य से पहले की अवधि के दौरान, कौशाम्बी वत्स के स्वतंत्र राज्य की राजधानी थी,जो 14 महाजनपदों में से एक था । कौशाम्बी गौतम बुद्ध के समय तक एक बहुत ही समृद्ध शहर था, जहां बहुत से धनी व्यापारियों का निवास था। यह उत्तर-पश्चिम और दक्षिण की ओर से सामानों और यात्रियों की एक महत्वपूर्ण परियोजना थी यह बुद्ध के जीवन के खातों में बहुत महत्वपूर्ण है। कौशाम्बी के पुरातात्विक स्थल की खुदाई 1949 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के जी आर शर्मा और फिर 1951 से 1956 में, मार्च 1948 में सर मोर्टिमर व्हीलर द्वारा अधिकृत होने के बाद की गई थी। उत्खनन ने सुझाव दिया है कि 12 वीं शताब्दी ईसा पूर्व के रूप में शुरू की गई हो सकती है। इसकी सामरिक भौगोलिक स्थिति ने एक महत्वपूर्ण व्यापार केंद्र के रूप में उभरने में मदद की। ढेर कीचड़ का एक बड़ा हिस्सा 7वीं से 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व में बनाया गया था, और बाद में ईंट की दीवारों और गढ़ों से मजबूत हुआ, जिसमें कई टावर, युद्धक्षेत्र और द्वार थे। लकड़ी का कोयला और उत्तरी काले पॉलिश वेयर की कार्बन डेटिंग ने ऐतिहासिक रूप से 390 BC से 600 AD तक अपने निरंतर कब्जे का दिनांकित किया है। .

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कृपालु महाराज

कृपालु महाराज (अंग्रेजी: Kripalu Maharaj, संस्कृत: जगद्गुरु कृपालुजी महाराज, जन्म: 22 अक्टूबर 1922, मृत्यु: 15 नवम्बर 2013) एक सुप्रसिद्ध हिन्दू आध्यात्मिक प्रवचन कर्ता थे। मूलत: इलाहाबाद के निकट मनगढ़ नामक ग्राम (जिला प्रतापगढ़) में जन्मे कृपालु महाराज का पूरा नाम रामकृपालु त्रिपाठी था।Singh, K. 28 जनवरी 2007.

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कृष्ण कुमार यादव

कृष्ण कुमार यादव (अंग्रेज़ी: Krishna Kumar Yadav, जन्म:10 अगस्त 1977) 2001 बैच के भारतीय डाक सेवा के अधिकारी हैं। साथ हीं सामाजिक, साहित्यिक और समसामयिक मुद्दों से सम्बंधित विषयों पर प्रमुखता से लेखन करने वाले वे साहित्यकार, विचारक और ब्लॉगर भी हैं। उनकी विभिन्न विधाओं में सात पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। वर्तमान में वे राजस्थान पश्चिमी क्षेत्र, जोधपुर में निदेशक डाक सेवाएँ पद पर कार्यरत हैं। .

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केदारनाथ अग्रवाल

केदारनाथ अग्रवाल (१ अप्रैल १९११ - २०००) प्रमुख हिन्दी कवि थे। .

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केन्द्रीय प्रशासनिक अधिकरण

केन्द्रीय प्रशासनिक अधिकरण भारतीय संसद द्वारा 1985 में पारित प्रशासनिक न्यायाधिकरण अधिनियम, केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (Central Administrative tribunal या CAT/कैट)) और राज्य प्रशासनिक न्यायाधिकरण की स्थापना के लिए केंद्र सरकार को अधिकृत करता है। केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण की प्रमुख पीठ (बेंच) दिल्ली में है। इसके अतिरिक्त, विभिन्न राज्यों में अतिरिक्त पीठें भी हैं। वर्तमान में 17 नियमित पीठ और ३० डिविजन बेंच हैं। कैट में एक अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य सदस्य शामिल हैं। इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। न्यायिक और प्रशासनिक क्षेत्रों से कैट के सदस्यों की नियुक्ति होती है। सेवा की अवधि 5 वर्ष या अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के लिए 65 वर्ष और सदस्यों के लिए 62 वर्ष जो भी पहले हो, तक होती है। अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या कैट का कोई भी अन्य सदस्य अपने कार्यकाल के बीच में ही अपना इस्तीफा राष्ट्रपति को भेज सकता है। केन्द्रीय प्रशासनिक अधिकरण के पास निम्नलिखित सेवा क्षेत्र के मामलों में अधिकार है.

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केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड

केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (अंग्रेज़ी:Central Board of Secondary Education या CBSE) भारत की स्कूली शिक्षा का एक प्रमुख बोर्ड है। भारत के अन्दर और बाहर के बहुत से निजी विद्यालय इससे सम्बद्ध हैं। इसके प्रमुख उद्देश्य हैं - शिक्षा संस्थानों को अधिक प्रभावशाली ढंग से लाभ पहुंचाना, उन विद्यार्थियों की शैक्षिक आवश्यकताओं के प्रति उत्तरदायी होना जिनके माता-पिता केन्द्रीय सरकार के कर्मचारी हैं और निरंतर स्थानान्तरणीय पदों पर कार्यरत हों। केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड में शिक्षा का माध्यम हिन्दी या अंग्रेजी हो सकता है। इसमें कुल ८९७ केन्द्रीय विद्यालय, १७६१ सरकारी विद्यालय, ५८२७ स्वतंत्र विद्यालय, ४८० जवाहर नवोदय विद्यालय और १४ केन्द्रीय तिब्बती विद्यालय सम्मिलित हैं।। हिन्दुस्तान लाइव। १८ फ़रवरी २०१० इसका ध्येय वाक्य है - असतो मा सद्गमय (हे प्रभु ! हमे असत्य से सत्य की ओर ले चलो।)-के.मा.शि.बोर्ड। वर्ल्ड प्रेस .

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केन्द्रीय रेल विद्युतीकरण संगठन

केन्द्रीय रेल विद्युतीकरण संगठन (अंग्रेज़ी: Central Organisation for Railway Electrification) पूरे भारतीय रेल नेटवर्क की विद्युतीकरण करने का प्रभारी है। इसका मुख्यालय इलाहाबाद में स्थित है। यह संगठन साल 1961 से एक महाप्रबंधक के नेतृत्व में काम कर रहा है। अंबाला, भुवनेश्वर, चेन्नई, बंगलौर, सिकंदराबाद, लखनऊ, कोटा, कोलकाता, गोरखपुर और न्यू जलपाईगुड़ी में इसकी इकाइयाँ हैं। श्रेणी:भारतीय रेल श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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केन्द्रीय सरकार स्वास्थ्य योजना

केन्द्रीय सरकार स्वास्थ्य योजना (Central Government Health Scheme (CGHS)) भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा संचालित एक स्वास्थ्य योजना है। यह १९५४ में आरम्भ किया गया था। इसका उद्देश्य भारत के केन्द्रीय सरकार के कर्मचारियों, पेंशनधारियों, तथा उनके आश्रितों को सम्पूर्ण स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराना है। यह सेवा निम्नलिखित नगरों में उपलब्ध है- .

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केराकत

केराकत या किराकत उत्तर प्रदेश राज्य के वाराणसी मण्डल के जौनपुर जिले में गोमती नदी के किनारे बसा हुआ एक शहर हैै। यह नगर पंचायत, तहसील मुख्यालय भी है तथा इसके नाम पर विधान सभा क्षेत्र का नाम भी केराकत विधानसभा क्षेत्र है। यह जौनपुर और औड़िहार से रेलमार्ग द्वारा जुड़ा है। यह के गाँव की जनसंख्या मुख्यतः कृषि और संबंधित आर्थिक गतिविधियों पर निर्भर करता है। शहर के आसपास के गांवों के रूप में बस्तियों की बड़ी संख्या हे जो शहर पर निर्भर है। शहर की एक प्रमुख विशेषता यह है कि गोमती नदी यहाँ यू-आकार में बहती है जो यहाँ की मिट्टी को उपजाऊ बनाती है। केराकत डाकघर भी है जिसका पिन कोड २२२१४२ है। इसकी स्थिती जौनपुर से २५ कि॰मी॰ पूर्व मे तथा वाराणसी से ४५ कि॰मी॰ दक्षिण में स्थित है। .

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केशोपुर, इलाहाबाद (इलाहाबाद)

केशोपुर, इलाहाबाद (इलाहाबाद) इलाहाबाद जिले के इलाहाबाद प्रखंड का एक गाँव है। केशोपुर उत्तर प्रदेश राज्य, भारत के इलाहाबाद जिले में कौरहर तहसील का एक ग्राम है। यह इलाहाबाद डिवीजन के अंतर्गत आता है। यह जिला मुख्यालय इलाहाबाद से २० किलोमीटर की दूरी पर पश्चिम की ओर स्थित है। कौरहर से १३ किलोमीटर दूर राज्य की राजधानी लखनऊ से २०० कि.मी.। भीखमपुर मैदावा (२ किलोमीटर), जंका(२ किलोमीटर), मर्दनपुर(२ किलोमीटर), मनोरी(३ किलोमीटर), अकबरपुर सल्लहपुर(३ किलोमीटर), केशपुर से पास के गांव हैं। केशोपुर कौरहर तहसील से लेकर उत्तर की ओर, नेवादा तहसील पश्चिम की ओर, पश्चिम में मुरतगंज तहसील, पूर्वी इलाहाबाद इलाहाबाद तहसील से घिरा हुआ है। इलाहाबाद, लाल गोपालगंज, निंदौर, फूलपुर, चित्रकूट शहर के पास काशोपुर के निकट हैं। यह स्थान इलाहाबाद जिले और कौशम्बी जिले की सीमा में है। कौशंबी जिला चेल पश्चिम की ओर है। .

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कोराँव

कोराँव (अंग्रेजी:Koraon) इलाहाबाद जिले की आठ तहसीलो में एक का मुख्यालय और क़स्बा है। यह नगर पंचायत और ग्रामीण क्षेत्र मिलकर बना हुआ है। इलाहाबाद से मिर्ज़ापुर मार्ग (लगभग दूरी 47 किलोमीटर) स्थित मेजारोड चौराहे से तथा मेजारोड रेलवे स्टेशन से 32 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है। .

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कोलतार में अक्स

कोलतार में अक्स उर्दू, हिंदी लेखक श्री भूपेंद्र नाथ कौशिक "फ़िक्र" जी की रचनाओं का संग्रह है, जो १९८६ में इलाहाबाद से प्रकाशित हुआ। इस संग्रह में लगभग ६० व्यंग्य रचनायें, एवं ११ लघुकथाएँ शामिल हैं। .

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अनुभव सिन्हा

अनुभव सिन्हा (जन्म:२२ जून १९६५) एक भारतीय फिल्म निर्देशक है। जिन्होंने तुम बिन और शाहरुख खान अभिनीत रा.वन जैसी फिल्मों का निर्देशन किया। .

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अभियांत्रिकी एवं ग्रामीण प्रौद्योगिकी संस्थान, इलाहाबाद

अभियांत्रिकी एवं ग्रामीण प्रौद्योगिकी संस्थान (Institute of Engineering and Rural Technology / आईईआरटी) उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में स्थित एक प्रसिद्ध इंजीनियरी शिक्षा संस्थान है। यह उत्तर प्रदेश तकनीकी विश्वविद्यालय से सम्बद्ध है। इस महाविद्यालय में प्रवेश राज्य प्रवेश परीक्षा (SEE) की प्रावीण्यसूची के आधार पर होता है। .

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अभिलाषा गुप्ता नंदी

अभिलाषा गुप्ता नंदी इलाहबाद की वर्तमान और सबसे युवा महापौर हैं। वो उत्तर प्रदेश के पूर्व कैबिनेट मंत्री नन्द गोपाल गुप्ता नंदी की धर्मपत्नी हैं। .

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अभिवृत्ति

अभिवृत्ति (एप्टिट्युड्) मनुष्य की वह सामान्य प्रतिक्रिया है जिसके द्वारा वस्तु का मनोवैज्ञानिक ज्ञान होता है। इसी आधार पर व्यक्ति वस्तुओं का मूल्यांकन करता है। कुछ पाश्चात्य वैज्ञानिकों ने अभिवृत्ति को मनुष्य की वह अवस्था माना है जिसके द्वारा मानसिक तथा नाड़ी-व्यापार-संबंधी अनुभवों का ज्ञान होता है। इस विचारधारा के प्रमुख प्रवर्त्तक औलपार्ट हैं। उनके सिद्धांतों के अनुसार अभिवृत्ति जीवन में वस्तुबोधन का मुख्य कारण है। इस परिभाषा के द्वारा अभिवृत्ति वह सामान्य प्रत्यक्ष है जिसके द्वारा मनुष्य भिन्न-भिन्न अनुभवों का समन्वय करता है। यह वह मापदंड है जिसके द्वारा व्यक्तित्व के निर्माण में सामाजिक तथा बौद्धिक गुणों का समावेश होता है। मनोवैज्ञानिकों ने अभिवृत्तियों का विभाजन, उनके वस्तु आधार, उनकी गहनता तथा उनकी प्रतिक्रिया के आधार पर किया है। इसका घनिष्ठ संबंध व्यक्ति के अमूर्त विचार तथा कल्पना से ही है। अभिवृत्ति का जन्म प्राय: चार साधनों से होता हुआ देखा गया है--प्रथम समन्वय द्वारा, द्वितीय आघात द्वारा, तृतीय भेद द्वारा तथा चतुर्थ स्वीकरण द्वारा। यह आवश्यक नहीं है कि ये यंत्र स्वतंत्र रूप से ही कार्य करे; ऐसा भी देखा गया है कि इनमें एक या दो कारण् भी मिलकर अभिवृति को जन्म देते हैं। इस दिशा में अमेरिका के दो मनोवैज्ञानिकों - जे.

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अमरकांत

अमरकांत (1925 - 17 फ़रवरी 2014) हिंदी कथा साहित्य में प्रेमचंद के बाद यथार्थवादी धारा के प्रमुख कहानीकार थे। यशपाल उन्हें गोर्की कहा करते थे।रविंद्र कालिया, नया ज्ञानोदय (मार्च २०१२), भारतीय ज्ञानपीठ, पृ-६ .

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अमिताभ बच्चन

अमिताभ बच्चन (जन्म-११ अक्टूबर, १९४२) बॉलीवुड के सबसे लोकप्रिय अभिनेता हैं। १९७० के दशक के दौरान उन्होंने बड़ी लोकप्रियता प्राप्त की और तब से भारतीय सिनेमा के इतिहास में सबसे प्रमुख व्यक्तित्व बन गए हैं। बच्चन ने अपने करियर में कई पुरस्कार जीते हैं, जिनमें तीन राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार और बारह फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार शामिल हैं। उनके नाम सर्वाधिक सर्वश्रेष्ठ अभिनेता फ़िल्मफेयर अवार्ड का रिकार्ड है। अभिनय के अलावा बच्चन ने पार्श्वगायक, फ़िल्म निर्माता और टीवी प्रस्तोता और भारतीय संसद के एक निर्वाचित सदस्य के रूप में १९८४ से १९८७ तक भूमिका की हैं। इन्होंने प्रसिद्द टी.वी.

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अम्बाजी मंदिर, गुजरात

अम्बाजी माता मन्दिर (गुजराती:અમ્બાજી માતા મન્દિર) भारत में माँ शक्ति के ५१ शक्तिपीठों में से एक प्रधान पीठ है। यह पालनपुर से लगभग ६५ कि॰मी॰, आबू पर्वत से ४५ कि॰मी॰, आबू रोड से २० किमी, श्री अमीरगढ़ से ४२ कि॰मी॰, कडियाद्रा से ५० कि॰मी॰ दूरी पर गुजरात-राजस्थान सीमा पर अरासुर पर्वत पर स्थित है। अरासुरी अम्बाजी मन्दिर में कोई प्रतिमा स्थापित नहीं है, केवल पवित्र श्रीयंत्र की पूजा मुख्य आराध्य रूप में की जाती है। इस यंत्र को कोई भी सीधे आंखों से देख नहीं सकता एवं इसकी फ़ोटोग्राफ़ी का भी निषेध है। मां अम्बाजी की मूल पीठस्थल कस्बे में गब्बर पर्वत के शिखर पर है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां तीर्थयात्रा करने वर्ष पर्यन्त आते रहते हैं, विशेषकर पूर्णिमा के दिन। भदर्वी पूर्णिमा के दिन यहाँ बड़ा मेला लगता है। देश भर से भक्तगण यहां मां की पूजा अर्चना हेतु आते हैं, विशेषकर जुलाई माह में। इस समय पूरे अम्बाजी कस्बे को दीपावली की तरह प्रकाश से सजाया जाता है। माना जाता है कि ये मन्दिर लगभग बारह सौ वर्ष से अधिक प्राचीन है। इस मंदिर का शिखर १०३ फ़ीट ऊंचा है और इस पर ३५८ स्वर्ण कलश स्थापित हैं। इस मेले में एक अनुमान के अनुसार २००८ में २५ लाख यात्री पहुंचने की संभावना थी। .

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अमृतलाल चक्रवर्ती

अमृतलाल चक्रवर्ती (1863-1936) बांग्लाभाषी होते हुए भी हिन्दीसेवी एवं पत्रकार थे। इन्होंने लगभग दस वर्ष तक साप्ताहिक 'हिन्दी बंगवासी' (कलकत्ता) का सम्पादन किया। वे हिन्दी साहित्य सम्मेलन के 16वें अधिवेशन (वृन्दावन) के सभापति रहे। बंगाल के चौबीस परगना के नादरा गाँव में १८६३ में जन्मे अमृतलाल चक्रवर्ती की प्रारंभिक शिक्षा संस्कृत में हुई। गाजीपुर (उत्तर प्रदेश) में अपने मामा के पास काफी दिनों तक रहने और वहाँ स्कूल में पढ़ने के कारण हिन्दी पर उनका अधिकार हो गया तो भोजपुरी पर भी। वे भोजपुरी बोल भी लेते थे। हिंदी, अँग्रेजी, फारसी और संस्कृत पर भी उनका अधिकार था और बांग्ला तो खैर उनकी मातृभाषा ही थी। अमृतलाल चक्रवर्ती ने औपचारिक शिक्षा पूरी करने से पूर्व ही इलाहाबाद में प्रकाशित 'प्रयाग-समाचार' पत्र से पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रवेश किया। कुछ दिन कालाकांकर से प्रकाशित राजा रामपाल सिंह के पत्र 'हिंदोस्थान' में भी वे रहे। कालाकांकर में रहते हुए अमृतलाल चक्रवर्ती को शिक्षा पूरी करने का मन हुआ सो घर गए, फिर कालाकांकर नहीं लौटे। कोलकाता जाकर उन्होंने कानून की डिग्री ली, लेकिन वकालत में नहीं गए। योगेन्द्रचन्द्र बसु ने 1890 में जब 'हिंदी बंगवासी' निकाला तो उसके संपादन का दायित्व अमृतलाल चक्रवर्ती को सौंपा। यह अखबार डबल रायल आकार के दो बड़े पन्नों में हर हफ्ते प्रकाशित होता था। इसका वार्षिक मूल्य दो रुपए था और प्रसार संख्या दो हजार। उस जमाने में यह संख्या अपने आप में एक कीर्तिमान मानी जाती थी। .

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अमेठी

अमेठी भारत के उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख शहर एवं राजनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण लोकसभा क्षेत्र है। अमेठी उत्तर प्रदेश का 72वां जिला है जिसे B.S.P. सरकार द्वारा आधिकारिक तौर पर 1 जुलाई 2010 को अस्तित्व में लाया गया था। अमेठी में सुल्तानपुर जिले की तीन तहसील मुसाफिरखाना, अमेठी, गौरीगंज तथा रायबरेली जिले की दो तहसील सलोन और तिलोई को मिला कर एक जिले का रूप दिया गया है। गौरीगंज शहर अमेठी जिले का मुख्यालय है। शुरुआत में इसका नाम छत्रपति साहूजी महाराज नगर था परन्तु इसे पुनः बदलकर अमेठी कर दिया गया है। अमेठी जिले का एक महत्वपूर्ण शहर व नगर निगम क्षेत्र है। इसे रायपुर-अमेठी भी कहा जाता है। यह भारत के गांधी परिवार की कर्मभूमि है। पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु उनके पोते संजय गाँधी, राजीव गाँधी तथा उनकी पत्नी सोनिया गाँधी ने इस जिले का प्रतिनिधित्व किया है। 2014 आम चुनाव में राहुल गाँधी यहाँ से साँसद चुने गए। कोरवा अमेठी में हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड की एक इकाई है जो भारतीय वायु सेना के लिए विमान बनाती है। अमेठी में इंडो गल्फ फर्टीलाइशर्स की एक खाद बनाने की इकाई भी मौजूद है।.

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अयोध्याकाण्ड

Kaikeyi demands that Dasaratha banquish Rama from Ayodhya अयोध्याकाण्ड वाल्मीकि कृत रामायण और गोस्वामी तुलसीदास कृत श्री राम चरित मानस का एक भाग (काण्ड या सोपान) है। राम के विवाह के कुछ समय पश्चात् राजा दशरथ ने राम का राज्याभिषेक करना चाहा। इस पर देवता लोगों को चिंता हुई कि राम को राज्य मिल जाने पर रावण का वध असम्भव हो जायेगा। व्याकुल होकर उन्होंने देवी सरस्वती से किसी प्रकार के उपाय करने की प्रार्थना की। सरस्वती नें मन्थरा, जो कि कैकेयी की दासी थी, की बुद्धि को फेर दिया। मन्थरा की सलाह से कैकेयी कोपभवन में चली गई। दशरथ जब मनाने आये तो कैकेयी ने उनसे वरदान मांगे कि भरत को राजा बनाया जाये और राम को चौदह वर्षों के लिये वनवास में भेज दिया जाये। राम के साथ सीता और लक्ष्मण भी वन चले गये। ऋंगवेरपुर में निषादराज गुह ने तीनों की बहुत सेवा की। कुछ आनाकानी करने के बाद केवट ने तीनों को गंगा नदी के पार उतारा| प्रयाग पहुँच कर राम ने भरद्वाज मुनि से भेंट की। वहाँ से राम यमुना स्नान करते हुये वाल्मीकि ऋषि के आश्रम पहुँचे। वाल्मीकि से हुई मन्त्रणा के अनुसार राम, सीता और लक्ष्मण चित्रकूट में निवास करने लगे। Rama Crosses Saryu अयोध्या में पुत्र के वियोग के कारण दशरथ का स्वर्गवास हो गया। वशिष्ठ ने भरत और शत्रुघ्न को उनके ननिहाल से बुलवा लिया। वापस आने पर भरत ने अपनी माता कैकेयी की, उसकी कुटिलता के लिये, बहुत भर्तस्ना की और गुरुजनों के आज्ञानुसार दशरथ की अन्त्येष्टि क्रिया कर दिया। भरत ने अयोध्या के राज्य को अस्वीकार कर दिया और राम को मना कर वापस लाने के लिये समस्त स्नेहीजनों के साथ चित्रकूट चले गये। कैकेयी को भी अपने किये पर अत्यंत पश्चाताप हुआ। सीता के माता-पिता सुनयना एवं जनक भी चित्रकूट पहुँचे। भरत तथा अन्य सभी लोगों ने राम के वापस अयोध्या जाकर राज्य करने का प्रस्ताव रखा जिसे कि राम ने, पिता की आज्ञा पालन करने और रघुवंश की रीति निभाने के लिये, अमान्य कर दिया। भरत अपने स्नेही जनों के साथ राम की पादुका को साथ लेकर वापस अयोध्या आ गये। उन्होंने राम की पादुका को राज सिंहासन पर विराजित कर दिया स्वयं नन्दिग्राम में निवास करने लगे। .

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अयोमुख

अयोमुख भारत का एक ऐतिहासिक स्थान था जहाँ चीनी यात्री युवानच्वांग 630 ई. से 645 ई. तक रहा था। युवानच्वांग ने इस स्थान को अयोध्या से लगभग 300 मील पूर्व की ओर बताया था। युवानच्वांग के वृत्त के अनुसार यह स्थान अयोध्या और प्रयाग के मार्ग पर अवस्थित था। युवानच्वांग की जीवनी से विदित होता है कि अयोमुख के मार्ग में ठगों ने युवान को पकड़ कर अपनी देवी पर उसकी बलि देने का प्रयत्न किया किंतु तूफ़ान आ जाने से वह बच गया। ऐसा जान पड़ता है कि उस समय इस प्रदेश में शाक्तों का विशेष ज़ोर था। कनिंघम के अनुसार यह स्थान प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश से 30 मील दक्षिण-पश्चिम की ओर था। श्रेणी:उत्तर प्रदेश श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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अल्मोड़ा का इतिहास

२०१३ में अल्मोड़ा अल्मोड़ा, भारत के उत्तराखंड राज्य में स्थित एक नगर है। यह अल्मोड़ा जिले का प्रशासनिक मुख्यालय भी है। इस नगर को राजा कल्याण चंद ने १५६८ में स्थापित किया था। महाभारत (८ वीं और ९वीं शताब्दी ईसा पूर्व) के समय से ही यहां की पहाड़ियों और आसपास के क्षेत्रों में मानव बस्तियों के विवरण मिलते हैं। अल्मोड़ा, कुमाऊँ राज्य पर शासन करने वाले चंदवंशीय राजाओं की राजधानी थी। .

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अज्ञेय

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय" (7 मार्च, 1911 - 4 अप्रैल, 1987) को कवि, शैलीकार, कथा-साहित्य को एक महत्त्वपूर्ण मोड़ देने वाले कथाकार, ललित-निबन्धकार, सम्पादक और अध्यापक के रूप में जाना जाता है। इनका जन्म 7 मार्च 1911 को उत्तर प्रदेश के कसया, पुरातत्व-खुदाई शिविर में हुआ। बचपन लखनऊ, कश्मीर, बिहार और मद्रास में बीता। बी.एससी.

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अजीत प्रताप सिंह

राजा अजीत प्रताप सिंह (जन्म: 14 जनवरी, 1917; कुल्हीपुर, प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश- मृत्यु: 6 जनवरी 2000) उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिला के शाही परिवार से राजनेता थे। .

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अवध

अवध अवध वर्तमान उत्तर प्रदेश के एक भाग का नाम है जो प्राचीन काल में कोशल कहलाता था। इसकी राजधानी अयोध्या थी। अवध शब्द अयोध्या से ही निकला है। अवध की राजधानी प्रांरभ में फैजाबाद थी किंतु बाद को लखनऊ उठ आई थी। अवध पर नवाबों का आधिपत्य था जो प्राय: स्वतंत्र थे, क्योंकि अवध के नवाब शिया मुसलमान थे अत: अवध में इसलाम के इस संप्रदाय को विशेष संरक्षण मिला। लखनऊ उर्दू कविता का भी प्रसिद्ध केंद्र रहा। दिल्ली केंद्र के नष्ट होने पर बहुत से दिल्ली के भी प्रसिद्ध उर्दू कवि लखनऊ वापस चले आए थे। अवध की पारम्परिक राजधानी लखनऊ है। भौगोलिक रूप से अवध की आधुनिक परिभाषा - लखनऊ, सुल्तानपुर, रायबरेली, उन्नाव, कानपुर, भदोही, इलाहाबाद, बाराबंकी, फैजाबाद, प्रतापगढ़, बहराइच, बलरामपुर, गोंडा, हरदोई, लखीमपुर खीरी, कौशाम्बी, सीतापुर, श्रावस्ती, बस्ती, सिद्धार्थ नगर, खलीलाबाद, उन्नाव, फतेहपुर, कानपुर, (जौनपुर, और मिर्जापुर के पश्चिमी हिस्सों), कन्नौज, पीलीभीत, शाहजहांपुर से बनती है। .

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अवध के नवाब

भारत के अवध के १८वीं तथा १९वीं सदी में शासकों को अवध के नवाब कहते हैं। अवध के नवाब, इरान के निशापुर के कारागोयुन्लु वंश के थे। नवाब सआदत खान प्रथम नवाब थे। .

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अवधी

अवधी हिंदी क्षेत्र की एक उपभाषा है। यह उत्तर प्रदेश में "अवध क्षेत्र" (लखनऊ, रायबरेली, सुल्तानपुर, बाराबंकी, उन्नाव, हरदोई, सीतापुर, लखीमपुर, फैजाबाद, प्रतापगढ़), इलाहाबाद, कौशाम्बी, अम्बेडकर नगर, गोंडा, बहराइच, श्रावस्ती तथा फतेहपुर में भी बोली जाती है। इसके अतिरिक्त इसकी एक शाखा बघेलखंड में बघेली नाम से प्रचलित है। 'अवध' शब्द की व्युत्पत्ति "अयोध्या" से है। इस नाम का एक सूबा के राज्यकाल में था। तुलसीदास ने अपने "मानस" में अयोध्या को 'अवधपुरी' कहा है। इसी क्षेत्र का पुराना नाम 'कोसल' भी था जिसकी महत्ता प्राचीन काल से चली आ रही है। भाषा शास्त्री डॉ॰ सर "जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन" के भाषा सर्वेक्षण के अनुसार अवधी बोलने वालों की कुल आबादी 1615458 थी जो सन् 1971 की जनगणना में 28399552 हो गई। मौजूदा समय में शोधकर्ताओं का अनुमान है कि 6 करोड़ से ज्यादा लोग अवधी बोलते हैं। उत्तर प्रदेश के 19 जिलों- सुल्तानपुर, अमेठी, बाराबंकी, प्रतापगढ़, इलाहाबाद, कौशांबी, फतेहपुर, रायबरेली, उन्नाव, लखनऊ, हरदोई, सीतापुर, लखीमपुर खीरी, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, गोंडा, फैजाबाद व अंबेडकर नगर में पूरी तरह से यह बोली जाती है। जबकि 6 जिलों- जौनपुर, मिर्जापुर, कानपुर, शाहजहांपुर, बस्ती और बांदा के कुछ क्षेत्रों में इसका प्रयोग होता है। बिहार के 2 जिलों के साथ पड़ोसी देश नेपाल के 8 जिलों में यह प्रचलित है। इसी प्रकार दुनिया के अन्य देशों- मॉरिशस, त्रिनिदाद एवं टुबैगो, फिजी, गयाना, सूरीनाम सहित आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड व हॉलैंड में भी लाखों की संख्या में अवधी बोलने वाले लोग हैं। .

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अवधी में कहावतें

अवधी हिंदी क्षेत्र की एक उपभाषा है। यह उत्तर प्रदेश मे अवधी क्षेत्र लखनऊ, हरदोई, सीतापुर, लखीमपुर, फैजाबाद, प्रतापगढ़, सुल्तानपुर, इलाहबाद तथा फतेहपुर, मिरजापुर, जौनपुर आदि कुछ अन्य जिलों में भी बोली जाती है। अवधी भाषा की कहावते उत्तर प्रदेश के अवध क्षेत्र के ग्रामीण लोक जीवन में अत्यधिक प्रचलित हैं। कहावत आम बोलचाल में इस्तेमाल होने वाले उस वाक्यांश को कहते हैं, जिसका सम्बन्ध किसी न किसी कहानी या पौराणिक कथाओ से जुड़ा हुआ होता है। कहीं कहीं इसे मुहावरा अथवा लोकोक्ति के रूप में भी जानते हैं। प्रायः ये कहावते एक भाषा के कहावतों को अन्य भाषाओं के द्वारा मूल या बदले हुये रूप में अपना भी लिया जाता है। .

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अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ

अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक बीसवीं शती के प्रारंभ में भारतीय प्रगतिशील लेखकों का एस समूह था। यह लेखक समूह अपने लेखन से सामाजिक समानता का समर्थक करता था और कुरीतियों अन्याय व पिछड़ेपन का विरोध करता था। इसकी स्थापना १९३५ में लंदन में हुई। इसके प्रणेता सज्जाद ज़हीर थे। १९३५ के अंत तक लंदन से अपनी शिक्षा समाप्त करके सज्जाद ज़हीर भारत लौटे। यहाँ आने से पूर्व वे अलीगढ़ में डॉ॰ अशरफ, इलाहबाद में अहमद अली, मुम्बई में कन्हैया लाल मुंशी, बनारस में प्रेमचंद, कलकत्ता में प्रो॰ हीरन मुखर्जी और अमृतसर में रशीद जहाँ को घोषणापत्र की प्रतियाँ भेज चुके थे। वे भारतीय अतीत की गौरवपूर्ण संस्कृति से उसका मानव प्रेम, उसकी यथार्थ प्रियता और उसका सौन्दर्य तत्व लेने के पक्ष में थे लेकिन वे प्राचीन दौर के अंधविश्वासों और धार्मिक साम्प्रदायिकता के ज़हरीले प्रभाव को समाप्त करना चाहते थे। उनका विचार था कि ये साम्राज्यवाद और जागीरदारी की सैद्धांतिक बुनियादें हैं। इलाहाबाद पहुंचकर सज्जाद ज़हीर अहमद अली से मिले जो विश्वविद्यालय में अंग्रेज़ी के प्रवक्ता थे। अहमद अली ने उन्हें प्रो॰एजाज़ हुसैन, रघुपति सहाय फिराक, एहतिशाम हुसैन तथा विकार अजीम से मिलवाया.

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अखिल भारतीय हिन्दू महासभा

अखिल भारतीय हिन्दू महासभा का ध्वज अखिल भारत हिन्दू महासभा भारत का एक राजनीतिक दल है। यह एक भारतीय राष्ट्रवादी संगठन है। इसकी स्थापना सन १९१५ में हुई थी। विनायक दामोदर सावरकर इसके अध्यक्ष रहे। केशव बलराम हेडगेवार इसके उपसभापति रहे तथा इसे छोड़कर सन १९२५ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की। भारत के स्वतन्त्रता के उपरान्त जब महात्मा गांधी की हत्या हुई तब इसके बहुत से कार्यकर्ता इसे छोड़कर भारतीय जनसंघ में भर्ती हो गये। .

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अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन

अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन, हिन्दी भाषा एवं साहित्य तथा देवनागरी का प्रचार-प्रसार को समर्पित एक प्रमुख सार्वजनिक संस्था है। इसका मुख्यालय प्रयाग (इलाहाबाद) में है जिसमें छापाखाना, पुस्तकालय, संग्रहालय एवं प्रशासनिक भवन हैं। हिंदी साहित्य सम्मेलन ने ही सर्वप्रथम हिंदी लेखकों को प्रोत्साहित करने के लिए उनकी रचनाओं पर पुरस्कारों आदि की योजना चलाई। उसके मंगलाप्रसाद पारितोषिक की हिंदी जगत् में पर्याप्त प्रतिष्ठा है। सम्मेलन द्वारा महिला लेखकों के प्रोत्साहन का भी कार्य हुआ। इसके लिए उसने सेकसरिया महिला पारितोषिक चलाया। सम्मेलन के द्वारा हिंदी की अनेक उच्च कोटि की पाठ्य एवं साहित्यिक पुस्तकों, पारिभाषिक शब्दकोशों एवं संदर्भग्रंथों का भी प्रकाशन हुआ है जिनकी संख्या डेढ़-दो सौ के करीब है। सम्मेलन के हिंदी संग्रहालय में हिंदी की हस्तलिखित पांडुलिपियों का भी संग्रह है। इतिहास के विद्वान् मेजर वामनदास वसु की बहुमूल्य पुस्तकों का संग्रह भी सम्मेलन के संग्रहालय में है, जिसमें पाँच हजार के करीब दुर्लभ पुस्तकें संगृहीत हैं। .

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अग्रसेन इन्टर कॉलेज

अग्रसेन इन्टर कॉलेज इलाहबाद में स्थित हिंदी माध्यम विद्यालय है, जिसकी स्थापना १९२८ में इलाहबाद रेलवे स्टेशन के पास हुआ था। यह विद्यालय सी.बी.एस.सी.

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अंतर्वेद

अंतर्वेद से अभिप्राय गंगा और यमुना के बीच के उस विस्तृत भूखंड से था जो हरिद्वार से प्रयाग तक फैला हुआ है। इस द्वाब में वैदिक काल से बहुत पीछे तक निरंतर यज्ञादि होते आए हैं। वैदिक काल में वहाँ उशीनर, पंचाल तथा वत्स अथवा वंश बसते थे। इसी से पूर्व की ओर लगे कोसल तथा काशी जनपद थे। अंतर्वेद को पश्चिमी तथा दक्षिणी सीमाओं पर कुरु, शूरसेन, चेदि आदि का आवास था। ऐतिहासिक युग में इस प्रदेश में कई अश्वमेघ यज्ञ हुए जिनमें समुद्र गुप्त का यज्ञ बड़े महत्व का था। गुप्तकालीन शासन व्यवस्था के अनुसार अंतर्वेद साम्राज्य का विषय या जिला था। स्कंद गुप्त के समय उसका विषयपति शर्वनाग स्वयं सम्राट द्वारा नियुक्त किया गया था। श्रेणी:भारत का उत्तरी विशाल मैदान श्रेणी:भारत आधार श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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अंगुलि छाप

अंगुलि छाप पहचान के प्रयोजनों के लिए उंगलियों के निशान के अध्ययन को अंगुलि चिह्न अध्ययन (Dactylography / डेकटायलोग्राफी) कहा जाता है। मनुष्य के हाथों तथा पैरों के तलबों में उभरी तथा गहरी महीन रेखाएँ दृष्टिगत होती हैं। ये हल चलाए खेत की भाँति दिखतीं हैं। वैसे तो वे रेखाएँ इतनी सूक्ष्म होती हैं कि सामान्यत: इनकी ओर ध्यान भी नहीं जाता, किंतु इनके विशेष अध्ययन ने एक विज्ञान को जन्म दिया है जिसे अंगुलि-छाप-विज्ञान कहते हैं। इस विज्ञान में अंगुलियों के ऊपरी पोरों की उन्नत रेखाओं का विशेष महत्व है। कुछ सामान्य लक्षणों के आधार पर किए गए विश्लेषण के फलस्वरूप, इनसे बनने वाले आकार चार प्रकार के माने गए हैं: (1) शंख (लूप), (2) चक्र (व्होर्ल), (3) चाप (आर्च) तथा (4) मिश्रित (र्केपोजिट)। .

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अकबर

जलाल उद्दीन मोहम्मद अकबर (१५ अक्तूबर, १५४२-२७ अक्तूबर, १६०५) तैमूरी वंशावली के मुगल वंश का तीसरा शासक था। अकबर को अकबर-ऐ-आज़म (अर्थात अकबर महान), शहंशाह अकबर, महाबली शहंशाह के नाम से भी जाना जाता है। अंतरण करने वाले के अनुसार बादशाह अकबर की जन्म तिथि हुमायुंनामा के अनुसार, रज्जब के चौथे दिन, ९४९ हिज़री, तदनुसार १४ अक्टूबर १५४२ को थी। सम्राट अकबर मुगल साम्राज्य के संस्थापक जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर का पौत्र और नासिरुद्दीन हुमायूं एवं हमीदा बानो का पुत्र था। बाबर का वंश तैमूर और मंगोल नेता चंगेज खां से संबंधित था अर्थात उसके वंशज तैमूर लंग के खानदान से थे और मातृपक्ष का संबंध चंगेज खां से था। अकबर के शासन के अंत तक १६०५ में मुगल साम्राज्य में उत्तरी और मध्य भारत के अधिकाश भाग सम्मिलित थे और उस समय के सर्वाधिक शक्तिशाली साम्राज्यों में से एक था। बादशाहों में अकबर ही एक ऐसा बादशाह था, जिसे हिन्दू मुस्लिम दोनों वर्गों का बराबर प्यार और सम्मान मिला। उसने हिन्दू-मुस्लिम संप्रदायों के बीच की दूरियां कम करने के लिए दीन-ए-इलाही नामक धर्म की स्थापना की। उसका दरबार सबके लिए हर समय खुला रहता था। उसके दरबार में मुस्लिम सरदारों की अपेक्षा हिन्दू सरदार अधिक थे। अकबर ने हिन्दुओं पर लगने वाला जज़िया ही नहीं समाप्त किया, बल्कि ऐसे अनेक कार्य किए जिनके कारण हिन्दू और मुस्लिम दोनों उसके प्रशंसक बने। अकबर मात्र तेरह वर्ष की आयु में अपने पिता नसीरुद्दीन मुहम्मद हुमायुं की मृत्यु उपरांत दिल्ली की राजगद्दी पर बैठा था। अपने शासन काल में उसने शक्तिशाली पश्तून वंशज शेरशाह सूरी के आक्रमण बिल्कुल बंद करवा दिये थे, साथ ही पानीपत के द्वितीय युद्ध में नवघोषित हिन्दू राजा हेमू को पराजित किया था। अपने साम्राज्य के गठन करने और उत्तरी और मध्य भारत के सभी क्षेत्रों को एकछत्र अधिकार में लाने में अकबर को दो दशक लग गये थे। उसका प्रभाव लगभग पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर था और इस क्षेत्र के एक बड़े भूभाग पर सम्राट के रूप में उसने शासन किया। सम्राट के रूप में अकबर ने शक्तिशाली और बहुल हिन्दू राजपूत राजाओं से राजनयिक संबंध बनाये और उनके यहाँ विवाह भी किये। अकबर के शासन का प्रभाव देश की कला एवं संस्कृति पर भी पड़ा। उसने चित्रकारी आदि ललित कलाओं में काफ़ी रुचि दिखाई और उसके प्रासाद की भित्तियाँ सुंदर चित्रों व नमूनों से भरी पड़ी थीं। मुगल चित्रकारी का विकास करने के साथ साथ ही उसने यूरोपीय शैली का भी स्वागत किया। उसे साहित्य में भी रुचि थी और उसने अनेक संस्कृत पाण्डुलिपियों व ग्रन्थों का फारसी में तथा फारसी ग्रन्थों का संस्कृत व हिन्दी में अनुवाद भी करवाया था। अनेक फारसी संस्कृति से जुड़े चित्रों को अपने दरबार की दीवारों पर भी बनवाया। अपने आरंभिक शासन काल में अकबर की हिन्दुओं के प्रति सहिष्णुता नहीं थी, किन्तु समय के साथ-साथ उसने अपने आप को बदला और हिन्दुओं सहित अन्य धर्मों में बहुत रुचि दिखायी। उसने हिन्दू राजपूत राजकुमारियों से वैवाहिक संबंध भी बनाये। अकबर के दरबार में अनेक हिन्दू दरबारी, सैन्य अधिकारी व सामंत थे। उसने धार्मिक चर्चाओं व वाद-विवाद कार्यक्रमों की अनोखी शृंखला आरंभ की थी, जिसमें मुस्लिम आलिम लोगों की जैन, सिख, हिन्दु, चार्वाक, नास्तिक, यहूदी, पुर्तगाली एवं कैथोलिक ईसाई धर्मशस्त्रियों से चर्चाएं हुआ करती थीं। उसके मन में इन धार्मिक नेताओं के प्रति आदर भाव था, जिसपर उसकी निजि धार्मिक भावनाओं का किंचित भी प्रभाव नहीं पड़ता था। उसने आगे चलकर एक नये धर्म दीन-ए-इलाही की भी स्थापना की, जिसमें विश्व के सभी प्रधान धर्मों की नीतियों व शिक्षाओं का समावेश था। दुर्भाग्यवश ये धर्म अकबर की मृत्यु के साथ ही समाप्त होता चला गया। इतने बड़े सम्राट की मृत्यु होने पर उसकी अंत्येष्टि बिना किसी संस्कार के जल्दी ही कर दी गयी। परम्परानुसार दुर्ग में दीवार तोड़कर एक मार्ग बनवाया गया तथा उसका शव चुपचाप सिकंदरा के मकबरे में दफना दिया गया। .

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अक़बर इलाहाबादी

अकबर ने सैयद अकबर हुसैन के नाम से १८४६ में इलाहाबाद के निकट बारा में एक सम्मानजनक, परिवार में जन्म लिया। उनके पिता का नाम सैयद तफ्फज़ुल हुसैन था। .

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अक्षय वट

पुराणों में वर्णन आता है कि कल्पांत या प्रलय में जब समस्त पृथ्वी जल में डूब जाती है उस समय भी वट का एक वृक्ष बच जाता है। अक्षय वट कहलाने वाले इस वृक्ष के एक पत्ते पर ईश्वर बालरूप में विद्यमान रहकर सृष्टि के अनादि रहस्य का अवलोकन करते हैं। अक्षय वट के संदर्भ कालिदास के रघुवंश तथा चीनी यात्री ह्वेन त्सांग के यात्रा विवरणों में मिलते हैं। भारतवर्ष में क्रमशः चार पौराणिक पवित्र वटवृक्ष हैं--- गृद्धवट- सोरों 'शूकरक्षेत्र', अक्षयवट- प्रयाग, सिद्धवट- उज्जैन और वंशीवट- वृन्दावन। .

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उत्तर प्रदेश

आगरा और अवध संयुक्त प्रांत 1903 उत्तर प्रदेश सरकार का राजचिन्ह उत्तर प्रदेश भारत का सबसे बड़ा (जनसंख्या के आधार पर) राज्य है। लखनऊ प्रदेश की प्रशासनिक व विधायिक राजधानी है और इलाहाबाद न्यायिक राजधानी है। आगरा, अयोध्या, कानपुर, झाँसी, बरेली, मेरठ, वाराणसी, गोरखपुर, मथुरा, मुरादाबाद तथा आज़मगढ़ प्रदेश के अन्य महत्त्वपूर्ण शहर हैं। राज्य के उत्तर में उत्तराखण्ड तथा हिमाचल प्रदेश, पश्चिम में हरियाणा, दिल्ली तथा राजस्थान, दक्षिण में मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ और पूर्व में बिहार तथा झारखंड राज्य स्थित हैं। इनके अतिरिक्त राज्य की की पूर्वोत्तर दिशा में नेपाल देश है। सन २००० में भारतीय संसद ने उत्तर प्रदेश के उत्तर पश्चिमी (मुख्यतः पहाड़ी) भाग से उत्तरांचल (वर्तमान में उत्तराखंड) राज्य का निर्माण किया। उत्तर प्रदेश का अधिकतर हिस्सा सघन आबादी वाले गंगा और यमुना। विश्व में केवल पाँच राष्ट्र चीन, स्वयं भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, इंडोनिशिया और ब्राज़ील की जनसंख्या उत्तर प्रदेश की जनसंख्या से अधिक है। उत्तर प्रदेश भारत के उत्तर में स्थित है। यह राज्य उत्तर में नेपाल व उत्तराखण्ड, दक्षिण में मध्य प्रदेश, पश्चिम में हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान तथा पूर्व में बिहार तथा दक्षिण-पूर्व में झारखण्ड व छत्तीसगढ़ से घिरा हुआ है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ है। यह राज्य २,३८,५६६ वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला हुआ है। यहाँ का मुख्य न्यायालय इलाहाबाद में है। कानपुर, झाँसी, बाँदा, हमीरपुर, चित्रकूट, जालौन, महोबा, ललितपुर, लखीमपुर खीरी, वाराणसी, इलाहाबाद, मेरठ, गोरखपुर, नोएडा, मथुरा, मुरादाबाद, गाजियाबाद, अलीगढ़, सुल्तानपुर, फैजाबाद, बरेली, आज़मगढ़, मुज़फ्फरनगर, सहारनपुर यहाँ के मुख्य शहर हैं। .

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उत्तर प्रदेश पुलिस

उत्तर प्रदेश पुलिस भारत के राज्य उत्तर प्रदेश में २३६,२८६वर्ग.कि.मी के क्षेत्र में २० करोड़ जनसंख्या (वर्ष 2011 के अनुसार) में न्याय एवं कानून व्यवस्था बनाये रखने हेतु उत्तरदायी पुलिस सेवा है। ये पुलिस सेवा न केवल भारत वरन विश्व की सबसे बड़ी पुलिस सेवा है। सेवा के महानिदेशक-पुलिस की कमान की शक्ति १.७० लाख के लगभग है जो 75 जिलों में ३१ सशस्त्र बटालियनों एवं अन्य विशिष्ट स्कंधों में बंटी व्यवस्था का नियामन करती है। इन स्कंधों में प्रमुख हैं: इंटेलिजेंस, इन्वेस्टिगेशन, एंटी-करप्शन, तकनीकी, प्रशिक्षण एवं अपराध-विज्ञान, आदि। .

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उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड

माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड, उत्तर प्रदेश की माध्यमिक शिक्षा अधिनियम १९२१ के अन्तर्गत मान्यताप्राप्त शिक्षण संस्थाओं में शिक्षकों, प्रधानाचार्यों, व्याख्याताओं, मुख्य-शिक्षकों तथा एल टी ग्रेड शिक्षकों के चयन के लिये निर्मित बोर्ड है। इसका गठन १९८२ के उत्तर प्रदेश अधिनियम संख्या-५ के अन्तर्गत हुआ था। इसका मुख्यालय इलाहाबाद में है। इसमें एक अध्यक्ष तथा १० सदस्य होते हैं। .

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उत्तर प्रदेश में पर्यटन

उत्तर प्रदेश में पर्यटन भारत भर में सुविख्यात है एवं इसकी पश्चिमी सीमायें देश की राजधानी नई दिल्ली से लगी हुई हैं। उत्तर प्रदेश भारतीय एवं विदेशी पर्यटको के लिए एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस प्रदेश में कई ऐतिहासिक एवं धार्मिक स्थल हैं। उत्तर प्रदेश की आबादी भारत के सभी राज्योँ में सबसे अधिक है। भूगौलिक रूप से भी उत्तर प्रदेश में विविधता देखने को मिलती है- उत्तर की ओर हिमालय पर्वत हैं और दक्षिण में सिन्धु-गंगा के मैदान हैं। भारत का सबसे लोकप्रिय ऐतिहासिक पर्यटन स्थल ताज महल यहां के आगरा शहर में स्थित है। वाराणसी, जो कि हिन्दुओं के लिए महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है जो इसी प्रदेश में है। .

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उत्तर प्रदेश राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय

उत्तर प्रदेश राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय (Uttar Pradesh Rajarshi Tandon Open University) इलाहाबाद में स्थित एक सार्वजनिक विश्वविद्यालय है। यह राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन के नाम पर है। इसका स्थायी परिसर इलाहाबाद स्थित फाफामऊ में है। इस विश्वविद्यालय की स्थापना उत्तर प्रदेश राजर्षि टण्डन मुक्त विश्वविद्यालय, अधिनियम 1999 उत्तर प्रदेश (अधिनियम संख्या-10, 1999) के अन्तर्गत हुई। इस विश्वविद्यालय को दूरस्थ शिक्षा योजना के अन्तर्गत एक मुक्त विश्वविद्यालय, बनाया गया, जिससे पूरे उत्तर प्रदेश में सुनियोजित ढंग से उच्च शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार दूरस्थ प्रणाली के माध्यम से संचालित हो सके। आबादी के एक बड़े क्षेत्र में काम कर रहे लोगों, गृहणियों और अन्य वयस्कों को उच्च शिक्षा से जोड़ने तथा उनके उन्नत भविष्य के लिए ज्ञानार्जन हेतु विश्वविद्यालय की स्थापना हुई। विश्वविद्यालय का प्रथम शैक्षणिक सत्र जुलाई, 1999 से प्रारम्भ हुआ। खासकर दूरदराज और ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों, विशेषकर उच्च शिक्षा से वंचित तथा उन लोगों के लिए जो पढ़ाई के माध्यम से स्वतंत्र रूप से ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं उनके लिए इस विश्वविद्यालय में कई योजनाएँ संचालित है। इसके पाठ्यक्रम दूरस्थ पद्धति द्वारा संचालित होते हैं। ग्रामीण विकास डिप्लोमा पाठ्यक्रम में दाखिला लेने के लिए उम्मीदवार का स्नातक होना अनिवार्य है। लेकिन उत्तर प्रदेश राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय ने बारहवीं कक्षा में भी इसे मान्यता दी है। ग्रामीण विकास में डिप्लोमा पाठ्यक्रम की अवधि एक वर्ष की है लेकिन उत्तर प्रदेश राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय में एक से तीन वर्ष तक का पाठ्यक्रम है। पाठ्यक्रम का माध्यम केवल हिन्दी और अंग्रेजी ही हैं। .

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उत्तर प्रदेश राज्य राजमार्ग ७

उत्तर प्रदेश राज्य राजमार्ग ७ भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का एक राज्य राजमार्ग है। १०६.५६ किलोमीटर लम्बा यह राजमार्ग इलाहाबाद से शुरू होकर गोरखपुर तक जाता है। इसे इलाहाबाद-गोरखपुर मार्ग भी कहा जाता है। यह इलाहाबाद और जौनपुर जिलों से होकर गुजरता है। .

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उत्तर प्रदेश राज्य राजमार्ग ९

उत्तर प्रदेश राज्य राजमार्ग ९ भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का एक राज्य राजमार्ग है। ७४.२३ किलोमीटर लम्बा यह राजमार्ग इलाहाबाद से शुरू होकर उतरौला तक जाता है। इसे उतरौला-फैजाबाद-इलाहाबाद मार्ग भी कहा जाता है। यह बलरामपुर, गोंडा, फ़ैज़ाबाद और सुल्तानपुर जिलों से होकर गुजरता है। .

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उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम

उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम (UPSRTC) उत्तर प्रदेश राज्य की सड़क परिवहन की सरकारी कंपनी है। यह अंतर्राज्यीय एवं उ.प्र.

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उत्तर प्रदेश सरकार

उत्तर प्रदेश सरकार भारत में एक लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई राज्य सरकार है जिसमें भारत के राष्ट्रपति द्वारा राज्य के नियुक्त संवैधानिक प्रमुख के रूप में राज्यपाल हैं। उत्तर प्रदेश के राज्यपाल को पांच साल की अवधि के लिए नियुक्त किया जाता है और मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद की नियुक्ति कराता है, जो राज्य के विधायी शक्तियों के साथ-साथ कार्यकारी शक्तियों के साथ निहित हैं। राज्यपाल राज्य का एक औपचारिक प्रमुख बना रहता है, जबकि मुख्यमंत्री और उनकी परिषद दिन-प्रतिदिन सरकारी कार्यों के लिए जिम्मेदार होती हैं। भारतीय राजनीति पर यूपी की प्रभावी सरकार है और सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि यह भारतीय संसद के लिए सबसे अधिक संख्या में लोकसभा सीटों को भेजता है। .

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उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव, 2017

उत्तर प्रदेश की सत्तरहवीं विधानसभा के लिए आम चुनाव 11 फरवरी से 8 मार्च 2017 तक सात चरणों में आयोजित हुए। इन चुनावों में मतदान प्रतिशत लगभग 61% रहा। भारतीय जनता पार्टी ने 312 सीटें जीतकर तीन-चौथाई बहुमत प्राप्त किया जबकि सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी गठबन्धन को 54 सीटें और बहुजन समाज पार्टी को 19 सीटों से संतोष करना पड़ा। पिछले चुनावों में समाजवादी पार्टी ने अखिलेश यादव के नेतृत्व में सरकार बनायीं थी। 18 मार्च 2017 को भाजपा विधायक दल की बैठक के बाद योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य एवं दिनेश शर्मा को उपमुख्यमंत्री नियुक्त किया गया। 19 मार्च 2017 को योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। .

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उत्तर प्रदेश का इतिहास

उत्तर प्रदेश का भारतीय एवं हिन्दू धर्म के इतिहास मे अहम योगदान रहा है। उत्तर प्रदेश आधुनिक भारत के इतिहास और राजनीति का केन्द्र बिन्दु रहा है और यहाँ के निवासियों ने भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में प्रमुख भूमिका निभायी। उत्तर प्रदेश के इतिहास को निम्नलिखित पाँच भागों में बाटकर अध्ययन किया जा सकता है- (1) प्रागैतिहासिक एवं पूर्ववैदिक काल (६०० ईसा पूर्व तक), (2) हिन्दू-बौद्ध काल (६०० ईसा पूर्व से १२०० ई तक), (3) मध्य काल (सन् १२०० से १८५७ तक), (4) ब्रिटिश काल (१८५७ से १९४७ तक) और (5) स्वातंत्रोत्तर काल (1947 से अब तक)। .

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उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्रियों की सूची

उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री उत्तर भारत के राज्य उत्तर प्रदेश का प्रमुख होता है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्रियों की सूची यहाँ दी गई है। उत्तर प्रदेश में अब तक 20 व्यक्ति मुख्यमंत्री रह चुके हैं। इन 20 व्यक्तियों के अतरिक्त, तीन व्यक्ति राज्य के कार्यकारी मुख्यमंत्री भी रहे हैं जिनका कार्यकाल बहुत छोटा है। वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी हैं जो कि 19 मार्च 2017 से इस पद पर आसीन हैं। .

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उत्तर प्रदेश के राज्य राजमार्गों की सूची

उत्तर प्रदेश राज्य में कुल ३५ राष्ट्रीय राजमार्ग हैं, जिनकी कुल लंबाई ४०६३५ किमी है; और ८३ राज्य राजमार्ग हैं, जिनकी कुल लंबाई ८४३२ किमी है। .

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उत्तर प्रदेश के सर्वाधिक जनसंख्या वाले शहरों की सूची

उत्तर प्रदेश एक भारतीय राज्य है, जिसकी सीमाऐं नेपाल, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के साथ मिलती हैं। राज्य के उत्तर में हिमालय है और दक्षिण में दक्कन का पठार स्थित है। इन दोनों के बीच में, गंगा, यमुना, घाघरा समेत कई नदियां पूरब की तरफ बहती हैं। उत्तर प्रदेश का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल है। 2011 के जनसंख्या आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश की कुल जनसंख्या 199,581,477 है। उत्तर प्रदेश को 18 मण्डलों के अंतर्गत 75 जिलों में विभाजित किया गया है। 2011 में 199,581,477 की जनसंख्या के साथ उत्तर प्रदेश भारत का सर्वाधिक जनसंख्या वाला राज्य है। उत्तर प्रदेश का क्षेत्रफल भारत के कुल क्षेत्रफल का 6.88 प्रतिशत मात्र है, लेकिन भारत की 16.49 प्रतिशत आबादी यहां निवास करती है। 2011 तक राज्य में 64 ऐसे नगर हैं, जिनकी जनसंख्या 100,000 से अधिक है। 1,640 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 4,542,184 की जनसंख्या के साथ कानपुर राज्य का सर्वाधिक जनसंख्या वाला नगर है। .

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उत्तर प्रदेश के ज़िले

उत्तर प्रदेश भारत का एक राज्य है और प्रशासनिक रूप से कई ज़िलों में बंटा हुआ है। इन ज़िलों को 'विभाग' नामक भौगोलिक व प्रशासनिक समूहों में एकत्रित किया गया है। वर्तमान काल में उत्तर प्रदेश १८ विभागों में बांटा गया है जो आगे स्वयं ७५ ज़िलों में बंटे हैं।, Lalmani Verma, The Indian Express, 01 Dec 2011 .

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उत्तर मध्य रेलवे (भारत)

इसकी स्थापना 1 अप्रैल 2003 में हुई थी। इसका मुख्यालय इलाहाबाद में स्थित है। .

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उदयन (राजा)

उदयन का खंडहर उदयन चंद्रवंश के राजा और सहस्रानीक के पुत्र थे। वत्स का नृपति, जिनकी राजधानी कौशांबी थी। कौशांबी इलाहाबाद जिले में नगर से प्राय: ५० किमी पश्चिम मे बसी थी, जहाँ आज भी यमुना के तीर कोसम गाँव में उनके खंडहर हैं। उदयन संस्कृत साहित्य की परंपरा में महान प्रणयी हो गयेे है और उनकी उस साहित्य में स्पेनी साहित्य के प्रिय नायक दोन जुआन से भी अधिक प्रसिद्धि है। बार-बार संस्कृत के कवियों, नाट्यकारो और कथाकारों ने उन्हे अपनी रचनाओं का नायक बनाया है और उनकी लोकप्रियता के परिणामस्वरूप गाँवों में लोग निंरतर उनकी कथा प्राचीन काल में कहते रहे हैं। महाकवि भास ने अपने दो दो नाटकों-स्वप्नवासवदत्ता और प्रतिज्ञायौगंधरायण-में उन्हें अपनी कथा का नायक बनाया है। वत्सराज की कथा बृहत्कथा और सोमदेव के कथासरित्सागर में भी वर्णित है। इन कृतियों से प्रकट है कि उदयन वीणावादन में अत्यंत कुशल थे और अपने उसी व्यसन के कारण उन्हें उज्जयिनी में अवंतिराज चंडप्रद्योत महासेन का कारागार भी भोगना पड़ा। भास के नाटक के अनुसार वीणा बजाकर हाथी पकड़ते समय छदमगज द्वारा अवंतिराज ने उन्हें पकड़ लिया था। बाद में उदयन प्रद्योत की कन्या वासवदत्ता के साथ हथिनी पर चढ़कर वत्स भाग गयेे। उस पलायन का दृश्य द्वितीय शती ईसवी पूर्व के शुंगकालीन मिट्टी के ठीकरों पर खुदा हुआ मिला है। एस ऐसा ठीकरा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के भारत-कला-भवन में भी सुरक्षित है। कला और साहित्य के इस परस्परावलंबन से राजा की ऐतिहासिकता पुष्ट होती है। वत्सराज उदयन नि:संदेह ऐतिहासिक व्यक्ति थे और उनका उल्लेख साहित्य और कला के अतिरिक्त पुराणों और बौद्ध ग्रंथों में भी हुआ है। उदयन बुद्ध के समकालीन थे और उनके तथा उनके पुत्र बोधी, दोनों ने तथागत के उपदेश सुने थे। बौद्ध ग्रंथों में वर्णित कौशांबी के बुद्ध के आवास पुनीत घोषिताराम से कौशांबों की खुदाई में उस स्थान की नामांकित पट्टिका अभी मिली है। उदयन ने मगध के राजा दर्शक की भगिनी पद्मावती और अंग के राजा दृढ़वर्मा की कन्या को भी, वासवदत्ता के अतिरिक्त, संभवत: ब्याहा था। बुद्धकालीन जिन चार राजवंशों-मगध, कोशल, वत्स, अवंति-में परस्पर दीर्घकालीन संघर्ष चला था उन्हीं में उदयन का वत्स भी था, जो कालांतर में अवंति की बढ़ती हुई सीमाओं में समा गया। इधर हाल में जो प्राचीन के प्रति भारत का पुनर्जागरण हुआ है उसके परिणामस्वरूप उदयन को नायक बनाकर की प्राय: सभी भाषाओं में नाटक और कहानियाँ लिखी गई हैं। इससे प्रकट है कि वत्सराज की साहित्यिक महिमा घटी नहीं और वह नित्यप्रति साहित्यकारों में आज भी लोकप्रिय हो रहें है। .

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उपनदी

बाल्टिक सागर में जाने वाली रेगा नदी (Rega) और उसमें विलय होने वाली उपनदियाँ उपनदी या सहायक नदी ऐसे झरने या नदी को बोलते हैं जो जाकर किसी मुख्य नदी में विलय हो जाती है। उपनदियाँ सीधी किसी सागर या झील में जाकर नहीं मिलतीं। कोई भी मुख्य नदी और उसकी उपनदियाँ एक जलसम्भर क्षेत्र बनती हैं जहाँ का पानी उपनदियों के ज़रिये मुख्य नदी में एकत्रित होकर फिर सागर में विलय हो जाता है। इसका एक उदाहरण यमुना नदी है, जो गंगा नदी की एक उपनदी है। प्रयाग में विलय के बाद यमुना का पानी गंगा में मिल जाता है और उस से आगे सिर्फ मुख्य गंगा नदी ही चलती है।, John Oberlin Harris,...

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उषा प्रियंवदा

उषा प्रियंवदा राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से पद्मभूषण डॉ॰ मोटूरि सत्यनारायण पुरस्कार प्राप्त करते हुए। उषा प्रियंवदा (जन्म २४ दिसम्बर १९३०) प्रवासी हिंदी साहित्यकार हैं। कानपुर में जन्मी उषा प्रियंवदा ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए. तथा पी-एच.

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छिवँकी रेलवे स्टेशन

छिवकी रेलवे स्टेशन, इलाहाबाद के निकट स्थित है। यहाँ से उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के लिये अनेकों रेलगाड़ियाँ निकलतीं हैं। श्रेणी:भारत के रेलवे स्टेशन श्रेणी:रेलवे स्टेशन.

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१४ जनवरी

१४ जनवरी ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का १४वाँ दिन है। वर्ष में अभी और ३५१ दिन बाकी है (लीप वर्ष में ३५२)। .

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१८५७ का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम

१८५७ के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों को समर्पित भारत का डाकटिकट। १८५७ का भारतीय विद्रोह, जिसे प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, सिपाही विद्रोह और भारतीय विद्रोह के नाम से भी जाना जाता है इतिहास की पुस्तकें कहती हैं कि 1857 की क्रान्ति की शुरूआत '10 मई 1857' की संध्या को मेरठ मे हुई थी और इसको समस्त भारतवासी 10 मई को प्रत्येक वर्ष ”क्रान्ति दिवस“ के रूप में मनाते हैं, क्रान्ति की शुरूआत करने का श्रेय अमर शहीद कोतवाल धनसिंह गुर्जर को जाता है 10 मई 1857 को मेरठ में विद्रोही सैनिकों और पुलिस फोर्स ने अंग्रेजों के विरूद्ध साझा मोर्चा गठित कर क्रान्तिकारी घटनाओं को अंजाम दिया।1 सैनिकों के विद्रोह की खबर फैलते ही मेरठ की शहरी जनता और आस-पास के गांव विशेषकर पांचली, घाट, नंगला, गगोल इत्यादि के हजारों ग्रामीण मेरठ की सदर कोतवाली क्षेत्र में जमा हो गए। इसी कोतवाली में धन सिंह कोतवाल (प्रभारी) के पद पर कार्यरत थे।2 मेरठ की पुलिस बागी हो चुकी थी। धन सिंह कोतवाल क्रान्तिकारी भीड़ (सैनिक, मेरठ के शहरी, पुलिस और किसान) में एक प्राकृतिक नेता के रूप में उभरे। उनका आकर्षक व्यक्तित्व, उनका स्थानीय होना, (वह मेरठ के निकट स्थित गांव पांचली के रहने वाले थे), पुलिस में उच्च पद पर होना और स्थानीय क्रान्तिकारियों का उनको विश्वास प्राप्त होना कुछ ऐसे कारक थे जिन्होंने धन सिंह को 10 मई 1857 के दिन मेरठ की क्रान्तिकारी जनता के नेता के रूप में उभरने में मदद की। उन्होंने क्रान्तिकारी भीड़ का नेतृत्व किया और रात दो बजे मेरठ जेल पर हमला कर दिया। जेल तोड़कर 836 कैदियों को छुड़ा लिया और जेल में आग लगा दी।3 जेल से छुड़ाए कैदी भी क्रान्ति में शामिल हो गए। उससे पहले पुलिस फोर्स के नेतृत्व में क्रान्तिकारी भीड़ ने पूरे सदर बाजार और कैंट क्षेत्र में क्रान्तिकारी घटनाओं को अंजाम दिया। रात में ही विद्रोही सैनिक दिल्ली कूच कर गए और विद्रोह मेरठ के देहात में फैल गया। मंगल पाण्डे 8 अप्रैल, 1857 को बैरकपुर, बंगाल में शहीद हो गए थे। मंगल पाण्डे ने चर्बी वाले कारतूसों के विरोध में अपने एक अफसर को 29 मार्च, 1857 को बैरकपुर छावनी, बंगाल में गोली से उड़ा दिया था। जिसके पश्चात उन्हें गिरफ्तार कर बैरकपुर (बंगाल) में 8 अप्रैल को फासी दे दी गई थी। 10 मई, 1857 को मेरठ में हुए जनक्रान्ति के विस्फोट से उनका कोई सम्बन्ध नहीं है। क्रान्ति के दमन के पश्चात् ब्रिटिश सरकार ने 10 मई, 1857 को मेरठ मे हुई क्रान्तिकारी घटनाओं में पुलिस की भूमिका की जांच के लिए मेजर विलियम्स की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की गई।4 मेजर विलियम्स ने उस दिन की घटनाओं का भिन्न-भिन्न गवाहियों के आधार पर गहन विवेचन किया तथा इस सम्बन्ध में एक स्मरण-पत्र तैयार किया, जिसके अनुसार उन्होंने मेरठ में जनता की क्रान्तिकारी गतिविधियों के विस्फोट के लिए धन सिंह कोतवाल को मुख्य रूप से दोषी ठहराया, उसका मानना था कि यदि धन सिंह कोतवाल ने अपने कर्तव्य का निर्वाह ठीक प्रकार से किया होता तो संभवतः मेरठ में जनता को भड़कने से रोका जा सकता था।5 धन सिंह कोतवाल को पुलिस नियंत्रण के छिन्न-भिन्न हो जाने के लिए दोषी पाया गया। क्रान्तिकारी घटनाओं से दमित लोगों ने अपनी गवाहियों में सीधे आरोप लगाते हुए कहा कि धन सिंह कोतवाल क्योंकि स्वयं गूजर है इसलिए उसने क्रान्तिकारियों, जिनमें गूजर बहुसंख्या में थे, को नहीं रोका। उन्होंने धन सिंह पर क्रान्तिकारियों को खुला संरक्षण देने का आरोप भी लगाया।6 एक गवाही के अनुसार क्रान्तिकरियों ने कहा कि धन सिंह कोतवाल ने उन्हें स्वयं आस-पास के गांव से बुलाया है 7 यदि मेजर विलियम्स द्वारा ली गई गवाहियों का स्वयं विवेचन किया जाये तो पता चलता है कि 10 मई, 1857 को मेरठ में क्रांति का विस्फोट काई स्वतः विस्फोट नहीं वरन् एक पूर्व योजना के तहत एक निश्चित कार्यवाही थी, जो परिस्थितिवश समय पूर्व ही घटित हो गई। नवम्बर 1858 में मेरठ के कमिश्नर एफ0 विलियम द्वारा इसी सिलसिले से एक रिपोर्ट नोर्थ - वैस्टर्न प्रान्त (आधुनिक उत्तर प्रदेश) सरकार के सचिव को भेजी गई। रिपोर्ट के अनुसार मेरठ की सैनिक छावनी में ”चर्बी वाले कारतूस और हड्डियों के चूर्ण वाले आटे की बात“ बड़ी सावधानी पूर्वक फैलाई गई थी। रिपोर्ट में अयोध्या से आये एक साधु की संदिग्ध भूमिका की ओर भी इशारा किया गया था।8 विद्रोही सैनिक, मेरठ शहर की पुलिस, तथा जनता और आस-पास के गांव के ग्रामीण इस साधु के सम्पर्क में थे। मेरठ के आर्य समाजी, इतिहासज्ञ एवं स्वतन्त्रता सेनानी आचार्य दीपांकर के अनुसार यह साधु स्वयं दयानन्द जी थे और वही मेरठ में 10 मई, 1857 की घटनाओं के सूत्रधार थे। मेजर विलियम्स को दो गयी गवाही के अनुसार कोतवाल स्वयं इस साधु से उसके सूरजकुण्ड स्थित ठिकाने पर मिले थे।9 हो सकता है ऊपरी तौर पर यह कोतवाल की सरकारी भेंट हो, परन्तु दोनों के आपस में सम्पर्क होने की बात से इंकार नहीं किया जा सकता। वास्तव में कोतवाल सहित पूरी पुलिस फोर्स इस योजना में साधु (सम्भवतः स्वामी दयानन्द) के साथ देशव्यापी क्रान्तिकारी योजना में शामिल हो चुकी थी। 10 मई को जैसा कि इस रिपोर्ट में बताया गया कि सभी सैनिकों ने एक साथ मेरठ में सभी स्थानों पर विद्रोह कर दिया। ठीक उसी समय सदर बाजार की भीड़, जो पहले से ही हथियारों से लैस होकर इस घटना के लिए तैयार थी, ने भी अपनी क्रान्तिकारी गतिविधियां शुरू कर दीं। धन सिंह कोतवाल ने योजना के अनुसार बड़ी चतुराई से ब्रिटिश सरकार के प्रति वफादार पुलिस कर्मियों को कोतवाली के भीतर चले जाने और वहीं रहने का आदेश दिया।10 आदेश का पालन करते हुए अंग्रेजों के वफादार पिट्ठू पुलिसकर्मी क्रान्ति के दौरान कोतवाली में ही बैठे रहे। इस प्रकार अंग्रेजों के वफादारों की तरफ से क्रान्तिकारियों को रोकने का प्रयास नहीं हो सका, दूसरी तरफ उसने क्रान्तिकारी योजना से सहमत सिपाहियों को क्रान्ति में अग्रणी भूमिका निभाने का गुप्त आदेश दिया, फलस्वरूप उस दिन कई जगह पुलिस वालों को क्रान्तिकारियों की भीड़ का नेतृत्व करते देखा गया।11 धन सिंह कोतवाल अपने गांव पांचली और आस-पास के क्रान्तिकारी गूजर बाहुल्य गांव घाट, नंगला, गगोल आदि की जनता के सम्पर्क में थे, धन सिंह कोतवाल का संदेश मिलते ही हजारों की संख्या में गूजर क्रान्तिकारी रात में मेरठ पहुंच गये। मेरठ के आस-पास के गांवों में प्रचलित किवंदन्ती के अनुसार इस क्रान्तिकारी भीड़ ने धन सिंह कोतवाल के नेतृत्व में देर रात दो बजे जेल तोड़कर 836 कैदियों को छुड़ा लिया12 और जेल को आग लगा दी। मेरठ शहर और कैंट में जो कुछ भी अंग्रेजों से सम्बन्धित था उसे यह क्रान्तिकारियों की भीड़ पहले ही नष्ट कर चुकी थी। उपरोक्त वर्णन और विवेचना के आधार पर हम निःसन्देह कह सकते हैं कि धन सिंह कोतवाल ने 10 मई, 1857 के दिन मेरठ में मुख्य भूमिका का निर्वाह करते हुए क्रान्तिकारियों को नेतृत्व प्रदान किया था।1857 की क्रान्ति की औपनिवेशिक व्याख्या, (ब्रिटिश साम्राज्यवादी इतिहासकारों की व्याख्या), के अनुसार 1857 का गदर मात्र एक सैनिक विद्रोह था जिसका कारण मात्र सैनिक असंतोष था। इन इतिहासकारों का मानना है कि सैनिक विद्रोहियों को कहीं भी जनप्रिय समर्थन प्राप्त नहीं था। ऐसा कहकर वह यह जताना चाहते हैं कि ब्रिटिश शासन निर्दोष था और आम जनता उससे सन्तुष्ट थी। अंग्रेज इतिहासकारों, जिनमें जौन लोरेंस और सीले प्रमुख हैं ने भी 1857 के गदर को मात्र एक सैनिक विद्रोह माना है, इनका निष्कर्ष है कि 1857 के विद्रोह को कही भी जनप्रिय समर्थन प्राप्त नहीं था, इसलिए इसे स्वतन्त्रता संग्राम नहीं कहा जा सकता। राष्ट्रवादी इतिहासकार वी0 डी0 सावरकर और सब-आल्टरन इतिहासकार रंजीत गुहा ने 1857 की क्रान्ति की साम्राज्यवादी व्याख्या का खंडन करते हुए उन क्रान्तिकारी घटनाओं का वर्णन किया है, जिनमें कि जनता ने क्रान्ति में व्यापक स्तर पर भाग लिया था, इन घटनाओं का वर्णन मेरठ में जनता की सहभागिता से ही शुरू हो जाता है। समस्त पश्चिम उत्तर प्रदेश के बन्जारो, रांघड़ों और गूजर किसानों ने 1857 की क्रान्ति में व्यापक स्तर पर भाग लिया। पूर्वी उत्तर प्रदेश में ताल्लुकदारों ने अग्रणी भूमिका निभाई। बुनकरों और कारीगरों ने अनेक स्थानों पर क्रान्ति में भाग लिया। 1857 की क्रान्ति के व्यापक आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक कारण थे और विद्रोही जनता के हर वर्ग से आये थे, ऐसा अब आधुनिक इतिहासकार सिद्ध कर चुके हैं। अतः 1857 का गदर मात्र एक सैनिक विद्रोह नहीं वरन् जनसहभागिता से पूर्ण एक राष्ट्रीय स्वतन्त्रता संग्राम था। परन्तु 1857 में जनसहभागिता की शुरूआत कहाँ और किसके नेतृत्व में हुई ? इस जनसहभागिता की शुरूआत के स्थान और इसमें सहभागिता प्रदर्शित वाले लोगों को ही 1857 की क्रान्ति का जनक कहा जा सकता है। क्योंकि 1857 की क्रान्ति में जनता की सहभागिता की शुरूआत धन सिंह कोतवाल के नेतृत्व में मेरठ की जनता ने की थी। अतः ये ही 1857 की क्रान्ति के जनक कहे जाते हैं। 10, मई 1857 को मेरठ में जो महत्वपूर्ण भूमिका धन सिंह और उनके अपने ग्राम पांचली के भाई बन्धुओं ने निभाई उसकी पृष्ठभूमि में अंग्रेजों के जुल्म की दास्तान छुपी हुई है। ब्रिटिश साम्राज्य की औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था की कृषि नीति का मुख्य उद्देश्य सिर्फ अधिक से अधिक लगान वसूलना था। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अंग्रेजों ने महलवाड़ी व्यवस्था लागू की थी, जिसके तहत समस्त ग्राम से इकट्ठा लगान तय किया जाता था और मुखिया अथवा लम्बरदार लगान वसूलकर सरकार को देता था। लगान की दरें बहुत ऊंची थी, और उसे बड़ी कठोरता से वसूला जाता था। कर न दे पाने पर किसानों को तरह-तरह से बेइज्जत करना, कोड़े मारना और उन्हें जमीनों से बेदखल करना एक आम बात थी, किसानों की हालत बद से बदतर हो गई थी। धन सिंह कोतवाल भी एक किसान परिवार से सम्बन्धित थे। किसानों के इन हालातों से वे बहुत दुखी थे। धन सिंह के पिता पांचली ग्राम के मुखिया थे, अतः अंग्रेज पांचली के उन ग्रामीणों को जो किसी कारणवश लगान नहीं दे पाते थे, उन्हें धन सिंह के अहाते में कठोर सजा दिया करते थे, बचपन से ही इन घटनाओं को देखकर धन सिंह के मन में आक्रोष जन्म लेने लगा।13 ग्रामीणों के दिलो दिमाग में ब्रिटिष विरोध लावे की तरह धधक रहा था। 1857 की क्रान्ति में धन सिंह और उनके ग्राम पांचली की भूमिका का विवेचन करते हुए हम यह नहीं भूल सकते कि धन सिंह गूजर जाति में जन्में थे, उनका गांव गूजर बहुल था। 1707 ई0 में औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात गूजरों ने पश्चिम उत्तर प्रदेश में अपनी राजनैतिक ताकत काफी बढ़ा ली थी।14 लढ़ौरा, मुण्डलाना, टिमली, परीक्षितगढ़, दादरी, समथर-लौहा गढ़, कुंजा बहादुरपुर इत्यादि रियासतें कायम कर वे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक गूजर राज्य बनाने के सपने देखने लगे थे।15 1803 में अंग्रेजों द्वारा दोआबा पर अधिकार करने के वाद गूजरों की शक्ति क्षीण हो गई थी, गूजर मन ही मन अपनी राजनैतिक शक्ति को पुनः पाने के लिये आतुर थे, इस दषा में प्रयास करते हुए गूजरों ने सर्वप्रथम 1824 में कुंजा बहादुरपुर के ताल्लुकदार विजय सिंह और कल्याण सिंह उर्फ कलवा गूजर के नेतृत्व में सहारनपुर में जोरदार विद्रोह किये।16 पश्चिमी उत्तर प्रदेष के गूजरों ने इस विद्रोह में प्रत्यक्ष रूप से भाग लिया परन्तु यह प्रयास सफल नहीं हो सका। 1857 के सैनिक विद्रोह ने उन्हें एक और अवसर प्रदान कर दिया। समस्त पश्चिमी उत्तर प्रदेष में देहरादून से लेकिन दिल्ली तक, मुरादाबाद, बिजनौर, आगरा, झांसी तक। पंजाब, राजस्थान से लेकर महाराष्ट्र तक के गूजर इस स्वतन्त्रता संग्राम में कूद पड़े। हजारों की संख्या में गूजर शहीद हुए और लाखों गूजरों को ब्रिटेन के दूसरे उपनिवेषों में कृषि मजदूर के रूप में निर्वासित कर दिया। इस प्रकार धन सिंह और पांचली, घाट, नंगला और गगोल ग्रामों के गूजरों का संघर्ष गूजरों के देशव्यापी ब्रिटिष विरोध का हिस्सा था। यह तो बस एक शुरूआत थी। 1857 की क्रान्ति के कुछ समय पूर्व की एक घटना ने भी धन सिंह और ग्रामवासियों को अंग्रेजी शासन को उखाड़ फेंकने के लिए प्रेरित किया। पांचली और उसके निकट के ग्रामों में प्रचलित किंवदन्ती के अनुसार घटना इस प्रकार है, ”अप्रैल का महीना था। किसान अपनी फसलों को उठाने में लगे हुए थे। एक दिन करीब 10 11 बजे के आस-पास बजे दो अंग्रेज तथा एक मेम पांचली खुर्द के आमों के बाग में थोड़ा आराम करने के लिए रूके। इसी बाग के समीप पांचली गांव के तीन किसान जिनके नाम मंगत सिंह, नरपत सिंह और झज्जड़ सिंह (अथवा भज्जड़ सिंह) थे, कृषि कार्यो में लगे थे। अंग्रेजों ने इन किसानों से पानी पिलाने का आग्रह किया। अज्ञात कारणों से इन किसानों और अंग्रेजों में संघर्ष हो गया। इन किसानों ने अंग्रेजों का वीरतापूर्वक सामना कर एक अंग्रेज और मेम को पकड़ दिया। एक अंग्रेज भागने में सफल रहा। पकड़े गए अंग्रेज सिपाही को इन्होंने हाथ-पैर बांधकर गर्म रेत में डाल दिया और मेम से बलपूर्वक दायं हंकवाई। दो घंटे बाद भागा हुआ सिपाही एक अंग्रेज अधिकारी और 25-30 सिपाहियों के साथ वापस लौटा। तब तक किसान अंग्रेज सैनिकों से छीने हुए हथियारों, जिनमें एक सोने की मूठ वाली तलवार भी थी, को लेकर भाग चुके थे। अंग्रेजों की दण्ड नीति बहुत कठोर थी, इस घटना की जांच करने और दोषियों को गिरफ्तार कर अंग्रेजों को सौंपने की जिम्मेदारी धन सिंह के पिता, जो कि गांव के मुखिया थे, को सौंपी गई। ऐलान किया गया कि यदि मुखिया ने तीनों बागियों को पकड़कर अंग्रेजों को नहीं सौपा तो सजा गांव वालों और मुखिया को भुगतनी पड़ेगी। बहुत से ग्रामवासी भयवश गाँव से पलायन कर गए। अन्ततः नरपत सिंह और झज्जड़ सिंह ने तो समर्पण कर दिया किन्तु मंगत सिंह फरार ही रहे। दोनों किसानों को 30-30 कोड़े और जमीन से बेदखली की सजा दी गई। फरार मंगत सिंह के परिवार के तीन सदस्यों के गांव के समीप ही फांसी पर लटका दिया गया। धन सिंह के पिता को मंगत सिंह को न ढूंढ पाने के कारण छः माह के कठोर कारावास की सजा दी गई। इस घटना ने धन सिंह सहित पांचली के बच्चे-बच्चे को विद्रोही बना दिया।17 जैसे ही 10 मई को मेरठ में सैनिक बगावत हुई धन सिंह और ने क्रान्ति में सहभागिता की शुरूआत कर इतिहास रच दिया। क्रान्ति मे अग्रणी भूमिका निभाने की सजा पांचली व अन्य ग्रामों के किसानों को मिली। मेरठ गजेटियर के वर्णन के अनुसार 4 जुलाई, 1857 को प्रातः चार बजे पांचली पर एक अंग्रेज रिसाले ने तोपों से हमला किया। रिसाले में 56 घुड़सवार, 38 पैदल सिपाही और 10 तोपची थे। पूरे ग्राम को तोप से उड़ा दिया गया। सैकड़ों किसान मारे गए, जो बच गए उनमें से 46 लोग कैद कर लिए गए और इनमें से 40 को बाद में फांसी की सजा दे दी गई।18 आचार्य दीपांकर द्वारा रचित पुस्तक स्वाधीनता आन्दोलन और मेरठ के अनुसार पांचली के 80 लोगों को फांसी की सजा दी गई थी। पूरे गांव को लगभग नष्ट ही कर दिया गया। ग्राम गगोल के भी 9 लोगों को दशहरे के दिन फाँसी की सजा दी गई और पूरे ग्राम को नष्ट कर दिया। आज भी इस ग्राम में दश्हरा नहीं मनाया जाता। संदर्भ एवं टिप्पणी 1.

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१९ दिसम्बर

19 दिसम्बर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 353वॉ (लीप वर्ष में 354 वॉ) दिन है। साल में अभी और 12 दिन बाकी हैं। .

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२०१० हरिद्वार महाकुम्भ

हरिद्वार महाकुंभ २०१० का प्रतीक-चिह्न महाकुम्भ भारत का एक प्रमुख उत्सव है जो ज्योतिषियों के अनुसार तब आयोजित किया जाता है जब बृहस्पति कुंभ राशि में प्रवेश करता है। कुम्भ का अर्थ है घड़ा। यह एक पवित्र हिन्दू उत्सव है। यह भारत में चार स्थानो पर आयोजित किया जाता है: प्रयाग (इलाहाबाद), हरिद्वार, उज्जैन और नासिक। २०१० का कुम्भ मेला हरिद्वार में आयोजित किया जा रहा है। पिछली बार १९९९ में महाकुम्भ का आयोजन यहाँ किया गया था। मकर संक्राति के दिन अर्थात १४ जनवरी, २०१० को इस मेले का शुभारम्भ हो गया है। हरिद्वार में जारी इस मेले में इस बार ७ करोड़ से भी अधिक लोगों के आने का अनुमान है। पौराणिक आख्यानों के अनुसार समुद्रमंथन के दौरान निकला अमृतकलश १२ स्थानों पर रखा गया था जहां अमृत की बूंदें छलक गई थीं। इन १२ स्थानों में से आठ ब्रह्मांड में माने जाते हैं और चार धरती पर जहां कुंभ लगता है। हिन्दू धर्म में मान्यता है कि इस मेले में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। .

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२५ दिसम्बर

२५ दिसंबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का ३५९वाँ (लीप वर्ष में ३६०वाँ) दिन है। वर्ष में अभी और ६ दिन बाकी है। .

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३० सितम्बर

30 सितंबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 273वॉ (लीप वर्ष मे 274 वॉ) दिन है। साल मे अभी और 92 दिन बाकी है। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

प्रयाग, ललिता शक्तिपीठ, इलाहबाद

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