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इंद्रभूति गौतम

सूची इंद्रभूति गौतम

इंद्रभूति गौतम (गौतम गणधर) तीर्थंकर महावीर के प्रथम गणधर (मुख्य शिष्य) थे। जिन्होंने भगवान महावीर के निर्वाण के पश्चात बारह बर्षो तक जैन धर्म की आचार्य परम्परा का निर्वाह किया। .

11 संबंधों: दिगम्बर, दीपावली, दीपावली (जैन), महावीर, सुधर्मास्वामी, जैन धर्म, जैन धर्म का इतिहास, जैन मुनि, गणधर, गौतम, कुन्दकुन्द

दिगम्बर

गोम्मटेश्वर बाहुबली (श्रवणबेळगोळ में) दिगम्बर जैन धर्म के दो सम्प्रदायों में से एक है। दूसरा सम्प्रदाय है - श्वेताम्बर। दिगम्बर.

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दीपावली

दीपावली या दीवाली अर्थात "रोशनी का त्योहार" शरद ऋतु (उत्तरी गोलार्द्ध) में हर वर्ष मनाया जाने वाला एक प्राचीन हिंदू त्योहार है।The New Oxford Dictionary of English (1998) ISBN 0-19-861263-X – p.540 "Diwali /dɪwɑːli/ (also Divali) noun a Hindu festival with lights...". दीवाली भारत के सबसे बड़े और प्रतिभाशाली त्योहारों में से एक है। यह त्योहार आध्यात्मिक रूप से अंधकार पर प्रकाश की विजय को दर्शाता है।Jean Mead, How and why Do Hindus Celebrate Divali?, ISBN 978-0-237-534-127 भारतवर्ष में मनाए जाने वाले सभी त्यौहारों में दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। इसे दीपोत्सव भी कहते हैं। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात् ‘अंधेरे से ज्योति अर्थात प्रकाश की ओर जाइए’ यह उपनिषदों की आज्ञा है। इसे सिख, बौद्ध तथा जैन धर्म के लोग भी मनाते हैं। जैन धर्म के लोग इसे महावीर के मोक्ष दिवस के रूप में मनाते हैं तथा सिख समुदाय इसे बन्दी छोड़ दिवस के रूप में मनाता है। माना जाता है कि दीपावली के दिन अयोध्या के राजा राम अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे। अयोध्यावासियों का ह्रदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से प्रफुल्लित हो उठा था। श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीपक जलाए। कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की वह रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठी। तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं। यह पर्व अधिकतर ग्रिगेरियन कैलन्डर के अनुसार अक्टूबर या नवंबर महीने में पड़ता है। दीपावली दीपों का त्योहार है। भारतीयों का विश्वास है कि सत्य की सदा जीत होती है झूठ का नाश होता है। दीवाली यही चरितार्थ करती है- असतो माऽ सद्गमय, तमसो माऽ ज्योतिर्गमय। दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है। कई सप्ताह पूर्व ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती हैं। लोग अपने घरों, दुकानों आदि की सफाई का कार्य आरंभ कर देते हैं। घरों में मरम्मत, रंग-रोगन, सफ़ेदी आदि का कार्य होने लगता है। लोग दुकानों को भी साफ़ सुथरा कर सजाते हैं। बाज़ारों में गलियों को भी सुनहरी झंडियों से सजाया जाता है। दीपावली से पहले ही घर-मोहल्ले, बाज़ार सब साफ-सुथरे व सजे-धजे नज़र आते हैं। दीवाली नेपाल, भारत, श्रीलंका, म्यांमार, मारीशस, गुयाना, त्रिनिदाद और टोबैगो, सूरीनाम, मलेशिया, सिंगापुर, फिजी, पाकिस्तान और ऑस्ट्रेलिया की बाहरी सीमा पर क्रिसमस द्वीप पर एक सरकारी अवकाश है। .

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दीपावली (जैन)

जैन समाज द्वारा दीपावली, महावीर स्वामी के निर्वाण दिवस के रूप में मनाई जाती है। महावीर स्वामी (वर्तमान अवसर्पिणी काल के अंतिम तीर्थंकर) को इसी दिन (कार्तिक अमावस्या) को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। इसी दिन संध्याकाल में उनके प्रथम शिष्य गौतम गणधर को केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। अतः अन्य सम्प्रदायों से जैन दीपावली की पूजन विधि पूर्णतः भिन्न है। .

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महावीर

भगवान महावीर जैन धर्म के चौंबीसवें (२४वें) तीर्थंकर है। भगवान महावीर का जन्म करीब ढाई हजार साल पहले (ईसा से 599 वर्ष पूर्व), वैशाली के गणतंत्र राज्य क्षत्रिय कुण्डलपुर में हुआ था। तीस वर्ष की आयु में महावीर ने संसार से विरक्त होकर राज वैभव त्याग दिया और संन्यास धारण कर आत्मकल्याण के पथ पर निकल गये। १२ वर्षो की कठिन तपस्या के बाद उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ जिसके पश्चात् उन्होंने समवशरण में ज्ञान प्रसारित किया। ७२ वर्ष की आयु में उन्हें पावापुरी से मोक्ष की प्राप्ति हुई। इस दौरान महावीर स्वामी के कई अनुयायी बने जिसमें उस समय के प्रमुख राजा बिम्बिसार, कुनिक और चेटक भी शामिल थे। जैन समाज द्वारा महावीर स्वामी के जन्मदिवस को महावीर-जयंती तथा उनके मोक्ष दिवस को दीपावली के रूप में धूम धाम से मनाया जाता है। जैन ग्रन्थों के अनुसार समय समय पर धर्म तीर्थ के प्रवर्तन के लिए तीर्थंकरों का जन्म होता है, जो सभी जीवों को आत्मिक सुख प्राप्ति का उपाय बताते है। तीर्थंकरों की संख्या चौबीस ही कही गयी है। भगवान महावीर वर्तमान अवसर्पिणी काल की चौबीसी के अंतिम तीर्थंकर थे और ऋषभदेव पहले। हिंसा, पशुबलि, जात-पात का भेद-भाव जिस युग में बढ़ गया, उसी युग में भगवान महावीर का जन्म हुआ। उन्होंने दुनिया को सत्य, अहिंसा का पाठ पढ़ाया। तीर्थंकर महावीर स्वामी ने अहिंसा को सबसे उच्चतम नैतिक गुण बताया। उन्होंने दुनिया को जैन धर्म के पंचशील सिद्धांत बताए, जो है– अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अचौर्य (अस्तेय) और ब्रह्मचर्य। उन्होंने अनेकांतवाद, स्यादवाद और अपरिग्रह जैसे अद्भुत सिद्धांत दिए।महावीर के सर्वोदयी तीर्थों में क्षेत्र, काल, समय या जाति की सीमाएँ नहीं थीं। भगवान महावीर का आत्म धर्म जगत की प्रत्येक आत्मा के लिए समान था। दुनिया की सभी आत्मा एक-सी हैं इसलिए हम दूसरों के प्रति वही विचार एवं व्यवहार रखें जो हमें स्वयं को पसंद हो। यही महावीर का 'जीयो और जीने दो' का सिद्धांत है। .

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सुधर्मास्वामी

आचार्य सुधर्मास्वामी भगवान महावीर के पांचवे गणधर थे वर्तमान में सभी जैन आचार्य व साधू उनके नियमों का समान रूप से पालन करते हैं। इनका जन्म ६०७ ईसा पूर्व हुआ था तथा इन्हें ५१५ ईसा पूर्व में केवलज्ञान प्राप्त हुआ एवं ५०७ ईसा पूर्व में १०० वर्ष की आयु में इनका निर्वाण हुआ। जिन्होंने गौतम गणधर के निर्वाण के पश्चात बारह बर्षो तक जैन धर्म की आचार्य परम्परा का निर्वाह किया। श्रेणी:गणधर श्रेणी:607 में जन्में लोग श्रेणी:मृत लोग श्रेणी:जैन आचार्य.

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जैन धर्म

जैन ध्वज जैन धर्म भारत के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है। 'जैन धर्म' का अर्थ है - 'जिन द्वारा प्रवर्तित धर्म'। जो 'जिन' के अनुयायी हों उन्हें 'जैन' कहते हैं। 'जिन' शब्द बना है 'जि' धातु से। 'जि' माने - जीतना। 'जिन' माने जीतने वाला। जिन्होंने अपने मन को जीत लिया, अपनी वाणी को जीत लिया और अपनी काया को जीत लिया और विशिष्ट ज्ञान को पाकर सर्वज्ञ या पूर्णज्ञान प्राप्त किया उन आप्त पुरुष को जिनेश्वर या 'जिन' कहा जाता है'। जैन धर्म अर्थात 'जिन' भगवान्‌ का धर्म। अहिंसा जैन धर्म का मूल सिद्धान्त है। जैन दर्शन में सृष्टिकर्ता कण कण स्वतंत्र है इस सॄष्टि का या किसी जीव का कोई कर्ता धर्ता नही है।सभी जीव अपने अपने कर्मों का फल भोगते है।जैन धर्म के ईश्वर कर्ता नही भोगता नही वो तो जो है सो है।जैन धर्म मे ईश्वरसृष्टिकर्ता इश्वर को स्थान नहीं दिया गया है। जैन ग्रंथों के अनुसार इस काल के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव आदिनाथ द्वारा जैन धर्म का प्रादुर्भाव हुआ था। जैन धर्म की अत्यंत प्राचीनता करने वाले अनेक उल्लेख अ-जैन साहित्य और विशेषकर वैदिक साहित्य में प्रचुर मात्रा में हैं। .

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जैन धर्म का इतिहास

उदयगिरि की रानी गुम्फा जैन धर्म भारत की श्रमण परम्परा से निकला प्राचीन धर्म और दर्शन है। जैन अर्थात् कर्मों का नाश करनेवाले 'जिन भगवान' के अनुयायी। सिन्धु घाटी से मिले जैन अवशेष जैन धर्म को सबसे प्राचीन धर्म का दर्जा देते है। http://www.umich.edu/~umjains/jainismsimplified/chapter20.html  संभेद्रिखर, राजगिर, पावापुरी, गिरनार, शत्रुंजय, श्रवणबेलगोला आदि जैनों के प्रसिद्ध तीर्थ हैं। पर्यूषण या दशलाक्षणी, दिवाली और रक्षाबंधन इनके मुख्य त्योहार हैं। अहमदाबाद, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और बंगाल आदि के अनेक जैन आजकल भारत के अग्रगण्य उद्योगपति और व्यापारियों में गिने जाते हैं। जैन धर्म का उद्भव की स्थिति अस्पष्ट है। जैन ग्रंथो के अनुसार धर्म वस्तु का स्वाभाव समझाता है, इसलिए जब से सृष्टि है तब से धर्म है, और जब तक सृष्टि है, तब तक धर्म रहेगा, अर्थात् जैन धर्म सदा से अस्तित्व में था और सदा रहेगा। इतिहासकारो द्वारा Helmuth von Glasenapp,Shridhar B. Shrotri.

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जैन मुनि

आचार्य भूतबली जी की प्रतिमा आचार्य विद्यासागर पिच्छी, कमंडल, शास्त्र जैन मुनि जैन धर्म में संन्यास धर्म का पालन करने वाले व्यक्तियों के लिए किया जाता हैं। जैन मुनि के लिए निर्ग्रन्थ शब्द का प्रयोग भी किया जाता हैं। मुनि शब्द का प्रयोग पुरुष संन्यासियों के लिए किया जाता हैं और आर्यिका शब्द का प्रयोग स्त्री संन्यासियों के लिए किया जाता हैं।Cort, John E. (2001).

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गणधर

गणधर जैन दर्शन में प्रचलित एक उपाधि है। जो अनुत्तर, ज्ञान और दर्शन आदि धर्म के गण को धारण करता है वह गणधर कहा जाता है। इसको तीर्थंकर के शिष्यों के अर्थ में ही विशेष रूप से प्रयोग किया जाता है। गणधर को द्वादश अंगों में पारंगत होना आवश्यक है। प्रत्येक तीर्थंकर के अनेक गणधर कहे गए हैं। महावीर स्वामी के 11 गणधर थे। उनके नाम, गोत्र और निवासस्थान इस प्रकार हैं: १इंद्रभुति गौतम (गोर्वरग्राम) २.अग्निभूति गोतम (गोर्वरग्राम) ३.वायुभूति गोतम (गोर्वरग्राम) ४.व्यक्त भारद्वाज कोल्लक (सन्निवेश) ५.सुधर्म अग्निवेश्यायन कोल्लक (सन्निवेश) ६.मंडिकपुत्र वाशिष्ठ मौर्य (सन्निवेश) ७.भौमपुत्र कासव मौर्य (सन्निवेश) ८. अकंपित गोतम (मिथिला) ९.अचलभ्राता हरिभाण (कोसल) १०.मेतार्य कौंडिन्य तुंगिक (सन्निवेश) ११.प्रभास कौंडिन्य (राजगृह)। .

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गौतम

संस्कृत साहित्य में गौतम का नाम अनेक विद्याओं से संबंधित है। वास्तव में गौतम ऋषि के गोत्र में उत्पन्न किसी व्यक्ति को 'गौतम' कहा जा सकता है अत: यह व्यक्ति का नाम न होकर गोत्रनाम है। वेदों में गौतम मंत्रद्रष्टा ऋषि माने गए हैं। एक मेधातिथि गौतम, धर्मशास्त्र के आचार्य हो गए हैं। बुद्ध को भी 'गौतम' अथवा (पाली में 'गोतम') कहा गया है। न्यायसूत्रों के रचयिता भी गौतम माने जाते हैं। उपनिषदों में भी गौतम नामधारी अनेक व्यक्तियों का उल्लेख मिलता है। पुराणों, महाभारत तथा रामायण में भी गौतम की चर्चा है। यह कहना कठिन है कि ये सभी गौतम एक ही है। रामायण में ऋषि गौतम तथा उनकी पत्नी अहल्या की कथा मिलती है। अहल्या के शाप का उद्धार राम ने मिथिला के रास्ते में किया था। अत: गौतम का निवास मिथिला में ही होना चाहिए और यह बात मिथिला में 'गौतमस्थान' तथा 'अहल्यास्थान' नाम से प्रसिद्ध स्थानों से भी पुष्ट होती है। चूँकि न्यायशास्त्र के लिये मिथिला विख्यात रही है अत: गौतम (नैयायिक) का मैथिल होना इसका मुख्य कारण हो सकता है। .

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कुन्दकुन्द

कुंदकुंदाचार्य की प्रतिमा जी (कर्नाटक) कुंदकुंदाचार्य दिगंबर जैन संप्रदाय के सबसे प्रसिद्ध आचार्य थे। इनका एक अन्य नाम 'कौंडकुंद' भी था। इनके नाम के साथ दक्षिण भारत का कोंडकुंदपुर नामक नगर भी जुड़ा हुआ है। प्रोफेसर ए॰ एन॰ उपाध्ये के अनुसार इनका समय पहली शताब्दी ई॰ है परंतु इनके काल के बारे में निश्चयात्मक रूप से कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं होता। श्रवणबेलगोला के शिलालेख संख्या ४० के अनुसार इनका दीक्षाकालीन नाम 'पद्मनंदी' था और सीमंधर स्वामी से उन्हें दिव्यज्ञान प्राप्त हुआ था। आचार्य कुन्दकुन्द ने ११ वर्ष की उम्र में दिगम्बर मुनि दीक्षा धारण की थी। इनके दीक्षा गुरू का नाम जिनचंद्र था। ये जैन धर्म के प्रकाण्ड विद्वान थे। इनके द्वारा रचित समयसार, नियमसार, प्रवचन, अष्टपाहुड, और पंचास्तिकाय - पंच परमागम ग्रंथ हैं। ये विदेह क्षेत्र भी गए। वहाँ पर इन्होने सीमंधर नाथ की साक्षात दिव्यध्वनि को सुना। वे ५२ वर्षों तक जैन धर्म के संरक्षक एवं आचार्य रहे। वे जैन साधुओं की मूल संघ क्रम में आते हैं। वे प्राचीन ग्रंथों में इन नामों से भी जाने जातें हैं- गौतम गणधर के बाद आचार्य कुन्दकुन्द को संपूर्ण जैन शास्त्रों का एक मात्र ज्ञाता माना गया है। दिगम्बरों के लिए इनके नाम का शुभ महत्त्व है और भगवान महावीर और गौतम गणधर के बाद पवित्र स्तुति में तीसरा स्थान है- आचार्य कुन्दकुन्द तत्त्वार्थसूत्र के रचियता आचार्य उमास्वामी के गुरु थे। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

गौतम गणधर, इंद्रभुति गौतम

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