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आयो (उपग्रह)

सूची आयो (उपग्रह)

आयो (Io), हमारे सौर मण्डल के पाँचवे ग्रह बृहस्पति का तीसरा सब से बड़ा उपग्रह है और यह पूरे सौर मंडल का चौथा सब से बड़ा चन्द्रमा है। आयो का व्यास (डायामीटर) 3,642 किमी है। बृहस्पति के चार प्रमुख उपग्रहों (गैनिमीड, कलिस्टो, आयो और यूरोपा) में यह बृहस्पति की सब से क़रीबी कक्षा में परिक्रमा करने वाला चन्द्रमा है। बृहस्पति के इतना समीप होने की वजह से उस ग्रह के भयंकर गुरुत्वाकर्षण से पैदा होने वाला ज्वारभाटा बल आयो को गूंथता रहता है जिस से इस उपग्रह पर बहुत से ज्वालामुखी हैं। सन् 2010 तक आयो पर 400 से भी अधिक सक्रीय ज्वालामुखी गिने जा चुके थे। पूरे सौर मंडल में और कोई वस्तु नहीं जहाँ आयो से ज़्यादा भौगोलिक उथल-पुथल हो रही हो। सौर मंडल के बाहरी चंद्रमाओं की बनावट में ज़्यादातर बर्फ़ की बहुतायत होती है लेकिन आयो पर ऐसा नहीं है। आयो अधिकतर पत्थरीले पदार्थों का बना हुआ है। .

13 संबंधों: ऍनसॅलअडस (उपग्रह), ऐमलथीया (उपग्रह), त्वष्ट्र, त्वष्ट्र पैटरे, प्राकृतिक उपग्रह, बृहस्पति (ग्रह), बृहस्पति के प्राकृतिक उपग्रह, भूपर्पटी, सौर मण्डल, खगोलशास्त्र से सम्बन्धित शब्दावली, गैलिलेयो (अंतरिक्ष यान), गैलीलियन चंद्रमा, कक्षीय अनुनाद

ऍनसॅलअडस (उपग्रह)

२६ अगस्त १९८१ को वॉयेजर द्वितीय यान द्वारा ली गयी ऍनसॅलअडस की तस्वीर ऍनसॅलअडस के दक्षिणी ध्रुव के पास के "शेर धारियाँ" क्षेत्र में पानी और बर्फ़ उगलते हुए ऊंचे फुव्वारे ऍनसॅलअडस के दक्षिणी ध्रुव के पास की "शेर धारियाँ" इस तस्वीर में साफ़ नज़र आ रही हैं ऍनसॅलअडस हमारे सौर मण्डल के छठे ग्रह शनि का छठा सब से बड़ा उपग्रह है। ऍनसॅलअडस आकार में बहुत छोटा है - इसका व्यास (डायामीटर) केवल ४०० किमी है, जो शनि के सब से बड़े चद्रमा, टाइटन, का सिर्फ़ दसवाँ है। इस छोटे आकार के बावजूद इसकी सतह पर टीले-खाइयों से लेकर उल्कापिंडों के प्रहार से बने हुए गड्ढों तक तरह-तरह की चीजें देखी जाती हैं। ऍनसॅलअडस की सतह पर अधिकतर पानी की बर्फ़ की एक मोटी तह फैली हुई है। इस बर्फ़ीली सतह की वजह से ऍनसॅलअडस का ऐल्बीडो (सफ़ेदपन या चमकीलापन) १.३८ है, जो सौर मण्डल की किसी भी अन्य ज्ञात वस्तु से अधिक है। अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ ने इस उपग्रह की सतह पर मौजूद बहुत से आकारों के नाम आलिफ़ लैला की कहानियों के पात्रों पर रखे हैं, जैसे की समरक़न्द खाइयाँ, अलादीन गड्ढा, सरान्दीब मैदान, वग़ैराह। .

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ऐमलथीया (उपग्रह)

सन् १९९६-९७ में गैलिलेओ यान द्वारा ली गयी ऐमलथीया की झलकी सन् १९७९ में वॉयजर प्रथम द्वारा ली गयी ऐमलथीया की झलकी ऐमलथीया (यूनानी: Αμάλθεια, अंग्रेज़ी: Amalthea) बृहस्पति ग्रह का तीसरा सब से अंदरूनी उपग्रह है। इस उपग्रह की खोज ९ सितम्बर १८९२ में ऍडवर्ड ऍमरसन बर्नार्ड नामक अमेरिकी खगोलशास्त्री ने की थी और यूनानी मिथ्य-कथाओं की एक पारी के नाम पर इसका नाम रखा गया। यह उपग्रह बृहस्पति के छल्लों में स्थित है और ऐमलथीया गोसेमर छल्ले के बाहरी किनारे पर स्थित है। यह छल्ला इसी उपग्रह से उभरी हुई धुल का बना है। यह बृहस्पति की परिक्रमा उस ग्रह से १,८१,००० किमी की दूरी पर करता है। ऐमलथीया के बृहस्पति के इतना पास होने से और उस ग्रह की तुलना में बहुत छोटा होने से बृहस्पति की स्थिरमुखी परिक्रमा करता है, यानि परिक्रमा करते हुए ऐमलथीया का एक ही रुख़ हमेशा बृहस्पति की ओर होता है।, David M. Harland, Springer, 2000, ISBN 978-1-85233-301-0,...

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त्वष्ट्र

त्वष्टा या त्वष्ट्र या त्वष्टृ संस्कृत साहित्य में जाति और व्यक्तिवाचक संज्ञाओं का बोध कराने के लिये अनेक अर्थों में प्रयुक्त हुआ है। महाभारत (प्रथम, 95, 14-15) तथा विष्णुपुराण (प्रथम अंश, 15, 132) के अनुसार 12 आदित्यों में 11 का नाम त्वष्टा है। उसका हिंदू धर्म में प्रमुख स्थान है। इस देवता के संबंध में एक देवकथा मिलती है (रघु षष्ट, 32) कि उसने अपने पुत्री संज्ञा का विवाह सूर्य से कर दिया किंतु संज्ञा सूर्य का तेज न सहन कर सकी और पिता के पास लौट आई। त्वष्टा ने सूर्य के प्रभामण्डल में थोड़ी कांट छांट कर दी, तब संज्ञा का उस अल्पतेजस सूर्य के पास रहना संभव हो गया। धार्मिक हिंदुओं का ऐसा विश्वास है कि सूर्य के कटे हुए भाग से विष्णु का चक्र और शिव का त्रिशूल बना। महाभारत के एक अन्य स्थल में (पचंम 9। 3) प्रजापति को तथा ऋग्वेद के सायण भाष्य (प्रथम, 117। 22) में इंद्र को त्वष्टा कहा गया है। त्वष्टा के मूल कार्य, सूर्य को छांटने, के कारण धीरे धीरे उसका अर्थ बढ़ई से लिया जाने लगा (हेमचंद्र और अमरसिंह के शब्दकोश), जो काष्ठादिकों को स्वरूप प्रदान करता है। इसी कारण त्वष्टा से विश्वकर्मा (प्रजापति अथवा बढ़ई) का भी बोध हुआ। ऋग्वेद के दसवे मंडल व पुरुष सूक्त में उनका उल्लेख हुआ है। वे दिव्य लोहार व धातु से शस्त्र व औज़ार निर्माण करते हैं। उन्हें इन्द्र के वज्र का निर्माता और सोम का रक्षक कहा गया है। ऋग्वेद में उनका ६५ बार ज़िक्र आता है और उन्हें जानवरों व मानवों के शरीरों का रचियता भी बुलाया गया है। संतान पाने वालों के लिये उन्हें गर्भ-पति (यानि गर्भ का अधिदेवता) कहा गया है। उनके लिये रथकार (रथ बनाने वाला) और तक्षा भी नाम उपयोग हुए हैं। इन देवता के नाम पर बृहस्पति ग्रह के आयो चंद्रमा पर एक ज्वालामुखीय क्षेत्र का नाम रखा गया है। .

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त्वष्ट्र पैटरे

त्वष्ट्र पैटरे, जिसे त्वश्तर पैटरे (Tvashtar Paterae) भी उच्चारित करते हैं, बृहस्पति ग्रह के चंद्रमा आयो पर स्थित एक ज्वालामुखीय क्षेत्र है। यह उस चंद्रमा के उत्तरी ध्रुव के पास स्थित है और इसमें ज्वालामुखीय क्रेटरों की एक शृंखला मौजूद है। इसका नाम त्वष्ट्र नामक हिन्दू ऋग्वैदिक देवता पर रखा गया है जो लोहारों के अधिदेवता माने जाते हैं। गैलिलेयो (अंतरिक्ष यान) ने कई सालों तक इस क्षेत्र का अध्ययन किया था जिस दौरान यहाँ एक स्थल से एक २५ किलोमीटर चौड़ी दरार से लावा फटा जो सतह से १ से २ किमी की ऊँचाई तक पहुँच गया। देखने में यह एक २५ किमी चौड़े और १-२ किमी ऊँचे परदे जैसा लगा। कुछ समय बाद यहाँ एक गैस का फ़व्वारा फटा जो सतह से ३८५ किमी की ऊँचाई तक पहुँच गया और जिसकी सामग्री विस्फोट स्थल से ७०० किमी दूर तक के स्थानों को ढक गई। .

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प्राकृतिक उपग्रह

टाइटन) इतना बड़ा है के उसका अपना वायु मण्डल है - आकारों की तुलना के लिए पृथ्वी भी दिखाई गई है प्राकृतिक उपग्रह या चन्द्रमा ऐसी खगोलीय वस्तु को कहा जाता है जो किसी ग्रह, क्षुद्रग्रह या अन्य वस्तु के इर्द-गिर्द परिक्रमा करता हो। जुलाई २००९ तक हमारे सौर मण्डल में ३३६ वस्तुओं को इस श्रेणी में पाया गया था, जिसमें से १६८ ग्रहों की, ६ बौने ग्रहों की, १०४ क्षुद्रग्रहों की और ५८ वरुण (नॅप्ट्यून) से आगे पाई जाने वाली बड़ी वस्तुओं की परिक्रमा कर रहे थे। क़रीब १५० अतिरिक्त वस्तुएँ शनि के उपग्रही छल्लों में भी देखी गई हैं लेकिन यह ठीक से अंदाज़ा नहीं लग पाया है के वे शनि की उपग्रहों की तरह परिक्रमा कर रही हैं या नहीं। हमारे सौर मण्डल से बाहर मिले ग्रहों के इर्द-गिर्द अभी कोई उपग्रह नहीं मिला है लेकिन वैज्ञानिकों का विशवास है के ऐसे उपग्रह भी बड़ी संख्या में ज़रूर मौजूद होंगे। जो उपग्रह बड़े होते हैं वे अपने अधिक गुरुत्वाकर्षण की वजह से अन्दर खिचकर गोल अकार के हो जाते हैं, जबकि छोटे चन्द्रमा टेढ़े-मेढ़े भी होते हैं (जैसे मंगल के उपग्रह - फ़ोबस और डाइमस)। .

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बृहस्पति (ग्रह)

बृहस्पति सूर्य से पांचवाँ और हमारे सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है। यह एक गैस दानव है जिसका द्रव्यमान सूर्य के हजारवें भाग के बराबर तथा सौरमंडल में मौजूद अन्य सात ग्रहों के कुल द्रव्यमान का ढाई गुना है। बृहस्पति को शनि, अरुण और वरुण के साथ एक गैसीय ग्रह के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इन चारों ग्रहों को बाहरी ग्रहों के रूप में जाना जाता है। यह ग्रह प्राचीन काल से ही खगोलविदों द्वारा जाना जाता रहा है तथा यह अनेकों संस्कृतियों की पौराणिक कथाओं और धार्मिक विश्वासों के साथ जुड़ा हुआ था। रोमन सभ्यता ने अपने देवता जुपिटर के नाम पर इसका नाम रखा था। इसे जब पृथ्वी से देखा गया, बृहस्पति -2.94 के सापेक्ष कांतिमान तक पहुंच सकता है, छाया डालने लायक पर्याप्त उज्जवल, जो इसे चन्द्रमा और शुक्र के बाद आसमान की औसत तृतीय सर्वाधिक चमकीली वस्तु बनाता है। (मंगल ग्रह अपनी कक्षा के कुछ बिंदुओं पर बृहस्पति की चमक से मेल खाता है)। बृहस्पति एक चौथाई हीलियम द्रव्यमान के साथ मुख्य रूप से हाइड्रोजन से बना हुआ है और इसका भारी तत्वों से युक्त एक चट्टानी कोर हो सकता है।अपने तेज घूर्णन के कारण बृहस्पति का आकार एक चपटा उपगोल (भूमध्य रेखा के पास चारों ओर एक मामूली लेकिन ध्यान देने योग्य उभार लिए हुए) है। इसके बाहरी वातावरण में विभिन्न अक्षांशों पर कई पृथक दृश्य पट्टियां नजर आती है जो अपनी सीमाओं के साथ भिन्न भिन्न वातावरण के परिणामस्वरूप बनती है। बृहस्पति के विश्मयकारी 'महान लाल धब्बा' (Great Red Spot), जो कि एक विशाल तूफ़ान है, के अस्तित्व को १७ वीं सदी के बाद तब से ही जान लिया गया था जब इसे पहली बार दूरबीन से देखा गया था। यह ग्रह एक शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र और एक धुंधले ग्रहीय वलय प्रणाली से घिरा हुआ है। बृहस्पति के कम से कम ६४ चन्द्रमा है। इनमें वो चार सबसे बड़े चन्द्रमा भी शामिल है जिसे गेलीलियन चन्द्रमा कहा जाता है जिसे सन् १६१० में पहली बार गैलीलियो गैलिली द्वारा खोजा गया था। गैनिमीड सबसे बड़ा चन्द्रमा है जिसका व्यास बुध ग्रह से भी ज्यादा है। यहाँ चन्द्रमा का तात्पर्य उपग्रह से है। बृहस्पति का अनेक अवसरों पर रोबोटिक अंतरिक्ष यान द्वारा, विशेष रूप से पहले पायोनियर और वॉयजर मिशन के दौरान और बाद में गैलिलियो यान के द्वारा, अन्वेषण किया जाता रहा है। फरवरी २००७ में न्यू होराएज़न्ज़ प्लूटो सहित बृहस्पति की यात्रा करने वाला अंतिम अंतरिक्ष यान था। इस यान की गति बृहस्पति के गुरुत्वाकर्षण का इस्तेमाल कर बढाई गई थी। इस बाहरी ग्रहीय प्रणाली के भविष्य के अन्वेषण के लिए संभवतः अगला लक्ष्य यूरोपा चंद्रमा पर बर्फ से ढके हुए तरल सागर शामिल हैं। .

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बृहस्पति के प्राकृतिक उपग्रह

कलिस्टो हमारे सौर मण्डल के पाँचवे ग्रह बृहस्पति के 67 ज्ञात उपग्रह हैं जिनकी परिक्रमा की कक्षाएँ परखी जा चुकी हैं और स्थाई पायी गयी हैं। यह संख्या सौर मण्डल के किसी भी अन्य ग्रह से अधिक है। इन उपग्रहों में से चार चन्द्रमा काफी बड़े आकार के हैं - गैनिमीड, कलिस्टो, आयो और यूरोपा। इनकी खोज गैलीलियो गैलिली ने सन् 1610 में की थी इसलिए इन चारों को बृहस्पति के गैलिलीयाई चन्द्रमा भी कहा जाता है। यह चार पहले उपग्रह थे जो पृथ्वी से अन्य किसी ग्रह की परिक्रमा करते पाए गए थे। इन चारों का व्यास (डायामीटर) ३,१०० कि॰मी॰ से अधिक है। बृहस्पति के बाक़ी किसी भी उपग्रह का व्यास २५० कि॰मी॰ से अधिक नहीं और अधिकतर तो ५ कि॰मी॰ से भी कम का व्यास रखते हैं। .

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भूपर्पटी

भूपर्पटी या क्रस्ट (अंग्रेज़ी: crust) भूविज्ञान में किसी पथरीले ग्रह या प्राकृतिक उपग्रह की सबसे ऊपर की ठोस परत को कहते हैं। यह जिस सामग्री का बना होता है वह इसके नीचे की भूप्रावार (मैन्टल) कहलाई जाने वाली परत से रसायनिक तौर पर भिन्न होती है। हमारे सौरमंडल में पृथ्वी, शुक्र, बुध, मंगल, चन्द्रमा, आयो और कुछ अन्य खगोलीय पिण्डों के भूपटल ज़्यादातर ज्वालामुखीय प्रक्रियाओं में बने हैं (यानि अंदर से उगले गये हैं)।, pp.

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सौर मण्डल

सौर मंडल में सूर्य और वह खगोलीय पिंड सम्मलित हैं, जो इस मंडल में एक दूसरे से गुरुत्वाकर्षण बल द्वारा बंधे हैं। किसी तारे के इर्द गिर्द परिक्रमा करते हुई उन खगोलीय वस्तुओं के समूह को ग्रहीय मण्डल कहा जाता है जो अन्य तारे न हों, जैसे की ग्रह, बौने ग्रह, प्राकृतिक उपग्रह, क्षुद्रग्रह, उल्का, धूमकेतु और खगोलीय धूल। हमारे सूरज और उसके ग्रहीय मण्डल को मिलाकर हमारा सौर मण्डल बनता है। इन पिंडों में आठ ग्रह, उनके 166 ज्ञात उपग्रह, पाँच बौने ग्रह और अरबों छोटे पिंड शामिल हैं। इन छोटे पिंडों में क्षुद्रग्रह, बर्फ़ीला काइपर घेरा के पिंड, धूमकेतु, उल्कायें और ग्रहों के बीच की धूल शामिल हैं। सौर मंडल के चार छोटे आंतरिक ग्रह बुध, शुक्र, पृथ्वी और मंगल ग्रह जिन्हें स्थलीय ग्रह कहा जाता है, मुख्यतया पत्थर और धातु से बने हैं। और इसमें क्षुद्रग्रह घेरा, चार विशाल गैस से बने बाहरी गैस दानव ग्रह, काइपर घेरा और बिखरा चक्र शामिल हैं। काल्पनिक और्ट बादल भी सनदी क्षेत्रों से लगभग एक हजार गुना दूरी से परे मौजूद हो सकता है। सूर्य से होने वाला प्लाज़्मा का प्रवाह (सौर हवा) सौर मंडल को भेदता है। यह तारे के बीच के माध्यम में एक बुलबुला बनाता है जिसे हेलिओमंडल कहते हैं, जो इससे बाहर फैल कर बिखरी हुई तश्तरी के बीच तक जाता है। .

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खगोलशास्त्र से सम्बन्धित शब्दावली

यह पृष्ठ खगोलशास्त्र की शब्दावली है। खगोलशास्त्र वह वैज्ञानिक अध्ययन है जिसका सबंध पृथ्वी के वातावरण के बाहर उत्पन्न होने वाले खगोलीय पिंडों और घटनाओं से होता है। .

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गैलिलेयो (अंतरिक्ष यान)

गैलिलेयो यान निर्मित होते हुए गैलिलेयो (या गैलिलियो) एक अमेरिकी अंतरिक्ष अन्वेषण यान था जो कि बृहस्पति ग्रह का अन्वेषण करता था। गैलिलेयो (Galileo) अमेरिकी अंतरिक्ष अनुसंधान संस्था नासा द्वारा अंतरिक्ष शटल अटलांटिस से भेजा गया अंतरिक्ष यान था जो हमारे सौर मंडल के सबसे बड़े ग्रह बृहस्पति और उसके प्राकृतिक उपग्रहों का अध्ययन करने के लिए भेजा गया था। यह परिक्रमा करने वाले ऑर्बिटर प्रकार का था। .

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गैलीलियन चंद्रमा

गैलीलियन चन्द्रमा (Galilean moons), गैलीलियो गैलीली द्वारा जनवरी 1610 में खोजे गए बृहस्पति के चार चन्द्रमा हैं। वे बृहस्पति के कई चन्द्रमाओं में से सबसे बड़े हैं और वें है: आयो, युरोपा, गेनिमेड और कैलिस्टो। सूर्य और आठ ग्रहों को छोड़कर किसी भी वामन ग्रह से बड़ी त्रिज्या के साथ वें सौरमंडल में सबसे बड़े चंद्रमाओं में से है। तीन भीतरी चांद - गेनीमेड, यूरोपा और आयो एक 1: 2: 4 के कक्षीय अनुनाद में भाग लेते हैं। यह चारों चंद्रमा सन् 1609 और 1610 के बीच किसी समय खोजे गए जब गैलिलियो ने अपनी दूरबीन मे सुधार किया, जिसे उन्हे उन सूदूर आकाशीय पिंडो के प्रेक्षण के योग्य बनाया जिन्हे पहले कभी देखने की संभावना नहीं थी।Galilei, Galileo, Sidereus Nuncius.

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कक्षीय अनुनाद

कक्षीय अनुनाद (Orbital resonance) पाया जाता है जब दो या दो से अधिक पिंड किसी एक ही बड़े पिंड की परिक्रमा समान अवधि में पूरी करते है। उदाहरण के लिए बृहस्पति के उपग्रहों गेनिमेड, युरोपा और आयो का 1: 2: 4 का अनुनाद, तथा प्लुटो और नेप्च्यून के बीच 2: 3 का अनुनाद। आयो, युरोपा और गेनिमेड बृहस्पति के ठीक क्रमशः चार, दो व एक चक्कर लगाने में समान समय लेते है। इसी तरह प्लूटो सूर्य के दो चक्कर (246 x 2 .

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