सामग्री की तालिका
10 संबंधों: डायोफैंटीय समीकरण, बौधायन, भारतीय मानचित्रकला, भारतीय गणित, भारतीय गणितज्ञों की सूची, मानचित्रण का इतिहास, शुल्बसूत्र, विधिकार, आपस्तम्ब धर्मसूत्र, २ का वर्गमूल।
डायोफैंटीय समीकरण
पूर्णांक भुजाओं वाले सभी समकोण त्रिभुज प्राप्त करना एक प्रकार से डायोफैंटीय समीकरण a^2+b^2.
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बौधायन
बौधायन भारत के प्राचीन गणितज्ञ और शुल्ब सूत्र तथा श्रौतसूत्र के रचयिता थे। ज्यामिति के विषय में प्रमाणिक मानते हुए सारे विश्व में यूक्लिड की ही ज्यामिति पढ़ाई जाती है। मगर यह स्मरण रखना चाहिए कि महान यूनानी ज्यामितिशास्त्री यूक्लिड से पूर्व ही भारत में कई रेखागणितज्ञ ज्यामिति के महत्वपूर्ण नियमों की खोज कर चुके थे, उन रेखागणितज्ञों में बौधायन का नाम सर्वोपरि है। उस समय भारत में रेखागणित या ज्यामिति को शुल्व शास्त्र कहा जाता था। .
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भारतीय मानचित्रकला
अभी प्राचीन भारत की मानचित्र कला तथा संबंधित भौगोलिक ज्ञान के विषय में शोध कार्य नहीं हुआ है, लेकिन अन्य विषयों के शोध कार्यों से संबंधित तथ्यों से यह स्पष्ट हो जाता है कि प्राचीन भारतीयों ने मानचित्र कला में पर्याप्त उन्नति की थी। जोजेफ स्क्वार्टबर्ग (Joseph E.
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भारतीय गणित
गणितीय गवेषणा का महत्वपूर्ण भाग भारतीय उपमहाद्वीप में उत्पन्न हुआ है। संख्या, शून्य, स्थानीय मान, अंकगणित, ज्यामिति, बीजगणित, कैलकुलस आदि का प्रारम्भिक कार्य भारत में सम्पन्न हुआ। गणित-विज्ञान न केवल औद्योगिक क्रांति का बल्कि परवर्ती काल में हुई वैज्ञानिक उन्नति का भी केंद्र बिन्दु रहा है। बिना गणित के विज्ञान की कोई भी शाखा पूर्ण नहीं हो सकती। भारत ने औद्योगिक क्रांति के लिए न केवल आर्थिक पूँजी प्रदान की वरन् विज्ञान की नींव के जीवंत तत्व भी प्रदान किये जिसके बिना मानवता विज्ञान और उच्च तकनीकी के इस आधुनिक दौर में प्रवेश नहीं कर पाती। विदेशी विद्वानों ने भी गणित के क्षेत्र में भारत के योगदान की मुक्तकंठ से सराहना की है। .
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भारतीय गणितज्ञों की सूची
सिन्धु सरस्वती सभ्यता से आधुनिक काल तक भारतीय गणित के विकास का कालक्रम नीचे दिया गया है। सरस्वती-सिन्धु परम्परा के उद्गम का अनुमान अभी तक ७००० ई पू का माना जाता है। पुरातत्व से हमें नगर व्यवस्था, वास्तु शास्त्र आदि के प्रमाण मिलते हैं, इससे गणित का अनुमान किया जा सकता है। यजुर्वेद में बड़ी-बड़ी संख्याओं का वर्णन है। .
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मानचित्रण का इतिहास
मानचित्र निर्माण की विद्या अति प्राचीन है। मार्शल द्वीपवासी ताड़ के डंठलों एवं कौड़िओं की सहायता से समुद्र संतरण के मार्गों तथा द्वीपों को दिखाने के लिए चार्ट तैयार करते थे। एस्किमो, अमरीका के रेड इंडियन आदि भी नदियों, वनों, मंदिरों तथा बस्तियों, शिकार के रास्तों आदि का उल्लेख भौगोलिक शुद्धता के साथ रेखाचित्र पर कर लेते थे। इसी प्रकार एशिया तथा अफ्रीका के आदिवासियों तथा अन्य जातियों में भी मानचित्र बनाने के अनेक उदाहरण मिलते हैं। .
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शुल्बसूत्र
शुल्ब सूत्र या शुल्बसूत्र संस्कृत के सूत्रग्रन्थ हैं जो स्रौत कर्मों से सम्बन्धित हैं। इनमें यज्ञ-वेदी की रचना से सम्बन्धित ज्यामितीय ज्ञान दिया हुआ है। संस्कृत कें शुल्ब शब्द का अर्थ नापने की रस्सी या डोरी होता है। अपने नाम के अनुसार शुल्ब सूत्रों में यज्ञ-वेदियों को नापना, उनके लिए स्थान का चुनना तथा उनके निर्माण आदि विषयों का विस्तृत वर्णन है। ये भारतीय ज्यामिति के प्राचीनतम ग्रन्थ हैं। .
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विधिकार
सामान्य भाषा में विधिकार और विधायक शब्दों का प्रयोग भिन्न अर्थों में किया जाता है। विधिकार (law Givers) के प्रयोग से ऐसे व्यक्ति का अभिप्राय है जो स्वयं विधि का निर्माण करे और विधायक किसी एक अथवा कुछ विधियों का निर्माण कर सकता है लेकिन विधायक विधि संस्थानों - संसद, विधानमंडल आदि - में बैठकर अन्य विधायकों के साथ मिलकर विधि का निर्माता होता है अत: व्यक्तिगत रूप से वह विधि का निर्माण नहीं करता। विधिकार की परिभाषा देने के पूर्व विधि संबंधी दृष्ष्टिकोण स्पष्ट होना आवश्यक है। विधि के सिलसिले में कानून, सत्य, धर्म, न्याय, राइट, रेस्ट, ड्रायट आदि भिन्न शब्दों का प्रयोग किया जाता है। लैटिन भाषा में लेजिस्लेटर (विधायक) अथवा जूरिसडेटर (न्यायनिर्माता) शब्दों का प्रयोग नहीं मिलता, लेकिन "लेजेनडेरे" और "लेक्स डेट" में (विधि देने और प्रयुक्त विधि) का उल्लेख मिलता है। जस्टीनियन ऐसे विधिकार को विधायक की संज्ञा दी गई है। यूनानी भाषा में भी विधिकार के संबंध में इसी भांति अस्पष्टता है। "थेसमोस" (Thesmos) का अर्थ एक वाक्य, सूत्र अथवा विधि किया जाता है। विधिसंहिता की नोमोस (Nomos) की संज्ञा दी जाती है। सोलोन (Solon) ने थेसमोइ (थेसमोस का बहुवचन) की रचना की जिसे 250 वर्ष बाद अरस्तू (Aristotle) ने विधिकार नाम से संबोधित किया। विधि संबंधी विभिन्न व्याख्याओं के कारण इस संबंध में भी मतभेद है कि किस व्यक्ति को विधिकार माना जाए और किसको नहीं। ईश्वरप्रदत्त विधि मानने पर भी उनको संसार में लानेवाले माध्यम का महत्व कम नहीं होता अत: हजरत मूसा, ईसा, मुहम्मद, कन्फ्यूशियस, मनु आदि को इस श्रेणी में रखना पड़ेगा। यदि विधि समाज के विवेक और शील का प्रतीक है तो भी विधिरचना में व्यस्त चाहे वह विधानमंडल हो अथवा न्यायाधीश, जो परंपराओं को नवीन स्थितियों में लागू करने के लिए नई व्यवस्थाएँ देते हैं अथवा ऐसे दार्शनिक विचारक जो समाज के विश्लेषणात्मक अध्ययन के उपरांत उसकी आवश्यकताओं के अनुरूप विधि बनाने पर जोर देते हैं अथवा ऐतिहासिक विकासशृंखला के ऐसे नरेश, सत्तासंपन्न व्यक्ति जिन्होंने अपनी शक्ति और निदेश से नए नियमों की रचना की, उन सभी को विधिकार कहा जा सकता है। .
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आपस्तम्ब धर्मसूत्र
आपस्तम्बीय कल्प के 30 प्रश्नों में से 28वें तथा 29वें प्रश्नों को आपस्तम्ब धर्मसूत्र नाम से अभिहित किया जाता है। ये दोनों प्रश्न 11–11 पटलों में विभक्त है, जिनमें क्रमशः 32 और 29 कण्डिकायें प्राप्त हैं। .
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२ का वर्गमूल
200px २ का वर्गमूल (√2) वह संख्या है जिसको स्वयं से गुणा करने पर २ प्राप्त होता है। यह एक अपरिमेय संख्या है। इसका मान लगभग 1.41421 होता है। यदि १ मीटर भुजा वाला एक वर्ग बनाया जाय तो उसके विकर्ण की लम्बाई (मीटर में) का मान २ के वर्गमूल के बराबर होगा। २ के वर्गमूल का दशमलव के ६५ स्थानों तक मान निम्नलिखित है- .
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आपस्तंब के रूप में भी जाना जाता है।