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आदिम-हिन्द-यूरोपीय लोग

सूची आदिम-हिन्द-यूरोपीय लोग

पितृवंश समूह आर१ए का विस्तार आदिम-हिन्द-यूरोपीय लोगों के फैलाव के साथ सम्बंधित माना जाता है आदिम-हिन्द-यूरोपीय यूरेशिया में बसने वाले उन प्राचीन लोगों को कहा जाता है जो आदिम-हिन्द-यूरोपीय भाषा बोलते थे। इनके बारे में जानकारी भाषावैज्ञानिक तकनीकों से और कुछ हद तक पुरातत्व-विज्ञान (आर्कियोलोजी) से आई है। आधुनिक युग में अनुवांशिकी (जेनेटिक्स) के ज़रिये भी इनकी जातीयता के बारे में जानकारी मिल रही है। बहुत से इतिहासकारों का मानना है कि यह लोग ४००० ईसापूर्व के काल में पोंटिक-कैस्पियाई स्तेपी क्षेत्र में बसा करते थे और २,००० ईसापूर्व तक अनातोलिया, पश्चिमी यूरोप, मध्य एशिया और दक्षिणी साइबेरिया तक विस्तृत हो चुके थे।, J.

सामग्री की तालिका

  1. 4 संबंधों: द्यौष्पिता, पितृवंश समूह आर१ए, जेरोम, आदिम-हिन्द-यूरोपीय भाषा

द्यौष्पिता

द्यौष्पिता या द्यौष्पितृ प्राचीन हिन्दू धर्म के एक देवता हैं जिनका उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। उनके नाम का अर्थ 'आकाश (द्यौ) पिता' है और उनकी संगिनी 'पृथ्वी माता' बताई गई हैं। ऋग्वेद, अग्नि, इन्द्र और उषस इन्हीं की सन्तति है। वे आर्यों के सबसे प्राचीन देवताओं में से एक माने जाते हैं।, William Joseph Wilkins, pp.

देखें आदिम-हिन्द-यूरोपीय लोग और द्यौष्पिता

पितृवंश समूह आर१ए

पितृवंश समूह आर१ए का विस्तार पितृवंश समूह आर१ए या हैपलोग्रुप R1a मनुष्यों में वाए गुण सूत्र (Y-क्रोमोज़ोम) का एक वर्ग है, यानि की सभी पुरुष जिनमें इस वंश समूह के चिन्ह हैं एक ही ऐतिहासिक पुरुष की संतान हैं। अनुमान लगाया जाता है के यह पुरुष आज से १८,५०० साल पहले जीवित था। इस पितृवंश के पुरुष भारत, पाकिस्तान, मध्य एशिया, रूस, पूर्वी यूरोप और स्कैन्डिनेवियाई देशों में पाए जाते हैं। .

देखें आदिम-हिन्द-यूरोपीय लोग और पितृवंश समूह आर१ए

जेरोम

संत जेरोम (347 - 30 सितंबर 420) हिन्द-यूरोपीय ईसाई पुजारी, कंफ़ेसर, धर्मज्ञानी और इतिहासकार थे इसके अतिरिक्त वो बाद में डॉक्टर ऑफ़ चर्च (चर्च के डॉक्टर) भी बन गये थे। .

देखें आदिम-हिन्द-यूरोपीय लोग और जेरोम

आदिम-हिन्द-यूरोपीय भाषा

हिन्द-यूरोपीय भाषाओँ का वर्गीकरण ''(अंग्रेजी में, देखने के लिए क्लिक करें)'' आदिम-हिन्द-यूरोपीय भाषा (आ॰हि॰यू॰), जिसे प्रोटो-इंडो-यूरोपियन भाषा (अंग्रेजी: Proto-Indo-European) भी कहा जाता है, भाषावैज्ञानिकों द्वारा पूरे हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार की सभी भाषाओं की एकमात्र प्राचीन जननी भाषा मानी जाती है। माना जाता है के इसे प्राचीन काल में आदिम-हिन्द-यूरोपीय लोग बोला करते थे, लेकिन यह भाषा हज़ारों वर्ष पूर्व ही पूरी तरह से लुप्त हो चुकी थी। बहुत सी हिन्द-यूरोपीय भाषाओं के सजातीय शब्दों की एक-दुसरे से तुलना के बाद भाषावैज्ञानिकों ने इस लुप्त भाषा का पुनर्निर्माण किया है जिस से इस के शब्दों का अनुमान लगाया जा सकता है। भाषावैज्ञानिक अनुमान लगाते हैं के आदिम-हिन्द-यूरोपीय भाषा लगभग ३७०० ई॰पू॰ तक बोली जाती रही और फिर उसका विभिन्न भाषाओं में खंडन होने लगा। इस तिथि के बारे में विद्वानों में हज़ार वर्ष इधर-उधर तक का आपसी मतभेद है। इस बात पर भी कई अवधारणाएँ हैं के इस भाषा को बोलने वाले कहाँ रहते थे, लेकिन बहुत से पश्चिमी विद्वान् कुरगन अवधारणा में विश्वास रखते हैं। कुरगन अवधारणा के अनुसार इस भाषा को बोलने वाले आदिम-हिन्द-यूरोपीय लोग पूर्वी यूरोप और पश्चिमी एशिया के कुछ हिस्सों में फैले हुए पोंटिक-कैस्पियाई स्तेपी के क्षेत्र में रहते थे। आधुनिक युग में विलियम जोन्स पहले विद्वान् थे जिन्होंने प्राचीन संस्कृत, प्राचीन यूनानी, प्राचीन फारसी और लातिन भाषाओं में समानताएँ देखकर यह दावा किया था के ये सारी एक ही आदिम-हिन्द-यूरोपीय भाषा से उपजी भाषाएँ हैं। बीसवी शताब्दी की शुरुआत तक भाषावैज्ञानिकों के परिश्रम से आदिम-हिन्द-यूरोपीय (आ॰हि॰यू॰) भाषा का चित्रण काफ़ी हद तक किया जा चुका था, जिसमे छोटे-मोटे सुधार लगातार होते रहे हैं। .

देखें आदिम-हिन्द-यूरोपीय लोग और आदिम-हिन्द-यूरोपीय भाषा