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अवन्तिसुन्दरी कथा

सूची अवन्तिसुन्दरी कथा

अवंतिसुंदरी कथा संस्कृत साहित्य के गद्यकाव्य के अंतर्गत एक महत्वपूर्ण कथाप्रबंध है। विद्वानों ने इसे आचार्य दण्डी की कृति माना है और इनकी तीसरी रचना के रूप में इसी प्रबंध को मान्यता दी है। दंडी के काव्यादर्श की टीका जंघाल ने इसे दंडी की रचना कहा है।, Sures Chandra Banerji, pp.

4 संबंधों: दण्डी, दशकुमारचरित, बृहतत्रयी (संस्कृत महाकाव्य), भास

दण्डी

दण्डी संस्कृत भाषा के प्रसिद्ध साहित्यकार हैं। इनके जीवन के संबंध में प्रामाणिक सूचनाओं का अभाव है। कुछ विद्वान इन्हें सातवीं शती के उत्तरार्ध या आठवीं शती के प्रारम्भ का मानते हैं तो कुछ विद्वान इनका जन्म 550 और 650 ई० के मध्य मानते हैं। .

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दशकुमारचरित

दशकुमारचरित, दंडी (षष्ठ या सप्तम शताब्दी ई.) द्वारा प्रणीत संस्कृत गद्यकाव्य है। इसमें दश कुमारों का चरित वर्णित होने के कारण इसका नाम "दशकुमारचरित" है। .

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बृहतत्रयी (संस्कृत महाकाव्य)

बृहत्त्रयी के अंतर्गत तीन महाकाव्य आते हैं - "किरातार्जुनीय" "शिशुपालवध" और "नैषधीयचरित"। भामह और दंडी द्वारा परिभाषित महाकाव्य लक्षण की रूढ़ियों के अनुरूप निर्मित होने वाले मध्ययुग के अलंकरण प्रधान संस्कृत महाकाव्यों में ये तीनों कृतियाँ अत्यंत विख्यात और प्रतिष्ठाभाजन बनीं। कालिदास के काव्यों में कथावस्तु की प्रवाहमयी जो गतिमत्ता है, मानवमन के भावपक्ष की जो सहज, पर प्रभावकारी अभिव्यक्ति है, इतिवृत्ति के चित्रफलक (कैन्वैस) की जो व्यापकता है - इन काव्यों में उनकी अवहेलना लक्षित होती है। छोटे छोटे वर्ण्य वृत्तों को लेकर महाकाव्य रूढ़ियों के विस्तृत वर्णनों और कलात्मक, आलंकारिक और शास्त्रीय उक्तियों एवं चमत्कारमयी अभिव्यक्तियों द्वारा काव्य की आकारमूर्ति को इनमें विस्तार मिला है। किरातार्जुनीय, शिशुपालवध और नैषधीयचरित में इन प्रवृत्तियों का क्रमश: अधिकाधिक विकास होता गया है। इसी से कुछ पंडित, इस हर्षवर्धनोत्तर संस्कृत साहित्य को काव्यसर्जन की दृष्टि से "ह्रासोन्मुखयुगीन" मानते हैं। परंतु कलापक्षीय काव्यपरंपरा की रूढ़ रीतियों का पक्ष इन काव्यों में बड़े उत्कर्ष के साथ प्रकट हुआ। इन काव्यों में भाषा की कलात्मकता, शब्दार्थलंकारों के गुंफन द्वारा उक्तिगत चमत्कारसर्जन, चित्र और श्लिष्ट काव्यविधान का सायास कौशल, विविध विहारकेलियों और वर्णनों का संग्रथन आदि काव्य के रूढ़रूप और कलापक्षीय प्रौढ़ता के निदर्शक हैं। इनमें शृंगाररस की वैलासिक परिधि के वर्णनों का रंग असंदिग्ध रूप से पर्याप्त चटकीला है। हृदय के भावप्रेरित, अनुभूतिबोध की सहज की अपेक्षा, वासनामूलक ऐंद्रिय विलासिता का अधिक उद्वेलन है। फिर पांडित्य की प्रौढ़ता, उक्ति की प्रगल्भता और अभिव्यक्तिशिलप की शक्तिमत्ता ने इनकी काव्यप्रतिभा को दीप्तिमय बना दिया है। साहित्यक्षेत्र का पंडित बनने के लिए इनका अध्ययन अनिवार्य माना गया है। .

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भास

भास संस्कृत साहित्य के प्रसिद्ध नाटककार थे जिनके जीवनकाल के बारे में अधिक पता नहीं है। स्वप्नवासवदत्ता उनके द्वारा लिखित सबसे चर्चित नाटक है जिसमें एक राजा के अपने रानी के प्रति अविरहनीय प्रेम और पुनर्मिलन की कहानी है। कालिदास जो गुप्तकालीन समझे जाते हैं, ने भास का नाम अपने नाटक में लिया है, जिससे लगता है कि वो गुप्तकाल से पहले रहे होंगे पर इससे भी उनके जीवनकाल का अधिक ठोस प्रमाण नहीं मिलता। आज कई नाटकों में उनका नाम लेखक के रूप में उल्लिखित है पर १९१२ में त्रिवेंद्रम में गणपति शास्त्री ने नाटकों की लेखन शैली में समानता देखकर उन्हें भास-लिखित बताया। इससे पहले भास का नाम संस्कृत नाटककार के रूप में विस्मृत हो गया था। .

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अवंतिसुंदरी कथा, अवंतिसुंदरीकथा

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