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अरस्तु का अनुकरण सिद्धांत

सूची अरस्तु का अनुकरण सिद्धांत

अरस्तु का अनुकरण सिद्धांत एक स्तर पर प्लेटो का अनुकरण सिद्धांत की प्रतिक्रिया है और दूसरे स्तर पर उसका विकास भी। महान दार्शनिक प्लेटो ने कला और काव्य को सत्य से तिहरी दूरी पर कहकर उसका महत्व बहुत कम कर दिया था। उसके शिष्य अरस्तु ने अनुकरण में पुनर्रचना का समावेश किया। उनके अनुसार अनुकरण हूबहू नकल नहीं है बल्कि पुनः प्रस्तुतिकरण है जिसमें पुनर्रचना भी शामिल होती है। अनुकरण के द्वारा कलाकार सार्वभौम को पहचानकर उसे सरल तथा इन्द्रीय रूप से पुनः रूपागत करने का प्रयत्न करता है। कवि प्रतियमान संभाव्य अथवा आदर्श तीनों में से किसी का भी अनुकरण करने के लिये स्वतंत्र है। वह संवेदना, ज्ञान, कल्पना, आदर्श आदि द्वारा अपूर्ण को पूर्ण बनाता है। .

1 संबंध: अनुकरण

अनुकरण

यहाँ 'अनुकरण' शब्द यूनानी (ग्रीक) भाषा के ‘मिमेसिस’ (Mimesis) के पर्याय रूप में प्रयुक्त हुआ है। ‘मिमेसिस’ का अंग्रेजी अनुवाद है - ‘इमिटेशन’ (imitation) किन्तु ‘इमिटेशन’ से ‘मिमेसिस’ का पूरा अर्थ व्यक्त नहीं होता, क्योंकि यूनानी भाषा के बहुत सारे शब्दों की अर्थवत्ता या अर्थछटा अंग्रेजी में यथावत् व्यक्त नहीं हो पाती। हिन्दी में ‘अनुकरण’ अंग्रेजी के ‘इमिटेशन’ शब्द से रूपान्तर होकर आया है। अनुकरण का सामान्य अर्थ है- नकल या प्रतिलिपि या प्रतिछाया, जबकि वर्तमान सन्दर्भ में उसका मान्य अर्थ है- ‘‘अभ्यास के लिए लेखकों और कवियों को उपलब्ध उत्कृष्ट रचनाओं का अध्ययन एवं अनुसरण करना।’’ यूनानी भाषा में कला के प्रसंग में अनुकरण का व्यवहार अरस्तू का मौलिक प्रयोग नहीं है। अरस्तू से पूर्व प्लेटो ने अनुकरण का प्रतिपादन कविता को हेय तथा हानिकारक सिद्ध करने के हेतु किया था। .

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