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अरबी

सूची अरबी

अरबी बहुविकल्पी शब्द है जिस्का संबंध निम्नलिखित पृष्ठों से होता है। साहित्य और धर्म में-.

272 संबंधों: चचनामा, चन्द्रबली पाण्डेय, ऊषा उत्थुप, चाड, चांद बीबी, चंददास, चंबा, एफ.एस. ग्राउस, डेविड शुल्मन, तकबीर, तुर्की, त्रिभाषा सूत्र, तेल (पुरातत्वशास्त्र), दार अस सलाम, दारुल उलूम देवबंद, दिन, दक्षिण अमेरिका, दुरूद शरीफ़, द्रूस, देशी भाषाओं में देशों और राजधानियों की सूची, धर्मांतरण, धिम्मी, नताली पोर्टमैन, नस्तालीक़, नात ए शरीफ़, नारंगी, नाज़रथ, नजफ़, नुवेइबा, नूर अंतर्राष्ट्रीय माइक्रोफिल्म केन्द्र, नेदीम, नीतिकथा, पतञ्जलि योगसूत्र, पन्ना, पश्चिमी सहारा, पाशा, पाकिस्तान का संविधान, पवित्र आत्मा, प्रणामी संप्रदाय, प्राचीन मिस्र, प्राचीन यूनानी चिकित्साविज्ञान, पृथ्वी गान, फ़तवा, फ़ारस की खाड़ी नाम से सम्बंधित दस्तावेज़ें: एक प्राचीन व अनन्त विरासत, फ़ारस की खाड़ी का राष्ट्रीय दिवस, फ़ारसी साहित्य, फ़िराक़ गोरखपुरी, फ़क़ीर, फ़्रैंकफ़र्ट, फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन, ..., फोर्ट विलियम कॉलेज, बलोच भाषा और साहित्य, बांग्ला शब्दभण्डार, बज्जिका, बज्जिका शब्दावली, ब्रिटिश काल में भारत की अर्थव्यवस्था, बेनगाज़ी, बीबीसी वर्ल्ड सर्विस, बीसवीं शताब्दी, बीजगणित, भट्ट मथुरानाथ शास्त्री, भारत में इस्लाम, भारतीय संख्या प्रणाली, भारतीय ज्योतिषी, भारतीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का इतिहास, भारतीय गणित, भारतीय गणित का इतिहास, भाषा-परिवार, भाषाविज्ञान, भास्कर प्रथम, भगत सिंह, भूपेंद्र नाथ कौशिक, मध्यकालीन भारतीय इतिहास की जानकारी के स्रोत, मलाइका, महर, महल, मानसून, मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा, मालदीव, माजिद देवबन्दी, मिस्र की क्रांति (१९५२), मज़हब (फ़िक़्ह), मुस्लिम राष्ट्रवाद, मुहता नैणसी, मुहम्मद इब्न मूसा अल-ख़्वारिज़्मी, मुहाफ़ज़ाह, मुहाजिर लोग, मुख्य उपनिषद, मुग़ल साम्राज्य, मुअम्मर अल-गद्दाफ़ी, मौलाना मसूद अज़हर, मौलाना सूफी मूफ्ती अज़ानगाछी साहेब, मूसा बिन नुसैर, मेहदी ख्वाजा पीरी, मोमिन, मोहम्मद बिन सलमान, यमन, यूनानी चिकित्सा पद्धति, यूनानी वर्णमाला, यूसी ब्राउजर, यूक्लिड, रमज़ान, रसायन विज्ञान, राबर्ट फिस्क, रामल्ला, राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (भारत), राष्ट्रीय सूत्रों की सूची, राजा राममोहन राय, राजा शिवप्रसाद 'सितारेहिन्द', रियाद, रघु वीर, रुदाकी, रॅपन्ज़ेल, लिसान उद-दावत, लेबनान, लेखांकन का इतिहास, लीबिया, शब्दकल्पद्रुम, शिव दयाल सिंह, शकीरा, , सनातन गोस्वामी, समाजभाषाविज्ञान, सरकैशिया, सलमा हायेक, सलजूक़ साम्राज्य, सहारा मरुस्थल, सहीह मुस्लिम, सहीह अल-बुख़ारी, साना, सामी-हामी भाषा-परिवार, सिन्दहिन्द, सिन्धी भाषा, सिन्धी भाषा की लिपियाँ, सिर्त, सिर्री सक़्ती, सिकन्दरिया, संयुक्त राष्ट्र, संयुक्त राष्ट्र महासभा, संयुक्त राष्ट्र सचिवालय, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, संयुक्त राष्ट्र अधिकारपत्र, संयुक्त अरब अमीरात क्रिकेट टीम, सुधाकर द्विवेदी, स्वाहिली भाषा, स्क्राइबस, सूडान की भाषायें, सोमालिया, सीमाब अकबराबादी, हमाम (साबुन), हलवा, हसन इब्न अली, हाइफ़ा, हिना, हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार, हिन्दुस्तान, हिन्दुस्तानी भाषा, हिन्दी एवं उर्दू, हिन्दी या उर्दू मूल के अंग्रेजी शब्दों की सूची, हव्वा, हकीम अबुल कासिम फिरदौसी तुसी, होम्स, जय सिंह द्वितीय, जर्राह, ज़ाकिर नायक, जायफल, जिराफ़, जगद्वंधु शर्मा, जगन्नाथ सम्राट, जुबा, जोनराज, ईस्टर, वसा, वहाबी आन्दोलन, वादी रम, विभिन्न भाषाओं में रामायण, विलियम जोंस (भाषाशास्त्री), विल्नुस विश्वविद्यालय का पुस्तकालय, विश्व-भारती विश्वविद्यालय, व्याध, वृहद भारत, वैयक्तिक विधि, खलील जिब्रान, ख़ान (उपाधि), ख़ुर्रम सुल्तान, ख़ूज़स्तान, खाबाब, खंभात, गणितीय प्रतीकों की सारणी, ग़ज़ल, ग़ुलाम अहमद फ़रोगी, गंगानाथ झा अनुसंधान संस्थान, प्रयाग, गुरु नानक, गुरुदत्त विद्यार्थी, गुलाम रसूल देहलवी, गूगल खोज, गूगल आन्सर्स, गूगल अनुवाद, गीतगोविन्द, ओमान, औरंगज़ेब, औरेस, आटो फॉन बॉटलिंक, आरमेइक लिपि, आर्यभट, आर्यभटीय, आईएसआईएस, इब्रानी भाषा, इब्रानी लिपि, इमली, इमाम बुसीरी, इराक का राष्ट्रीय संग्रहालय, इराक़, इलाहाबाद, इलाहाबाद/आलेख, इस्माइल पाशा, इस्माइलिया, इस्लाम में धर्मत्याग, इस्लाम के पैग़म्बर, इस्लामिक एकता खेल, इस्लामी शब्दावली, इस्लामी साहित्य, इस्लामी गणराज्य, इस्लामी अक्षरांकन, कथासाहित्य (संस्कृत), कराडा, कलौंजी, क़सीदा बरदा शरीफ़, क़ासिम अमीन, क़ुरआन, काफ़ि़र, कालीन, काउबॉय, किताब-उल-हिन्द, किंगडम ऑफ हेवेन (फ़िल्म), कुफिया, कॉप्टिक भाषा, कोर्डोबा खिलाफत, अचार बनाना, अडोबी इलस्ट्रेटर, अनुवाद, अप्सरा, अफ़्रीका, अफ़्रीका की भाषाएं, अफ्रीका का सींग, अबु बक्र, अबुल कलाम आज़ाद, अब्दुल हाफ़िज़ मोहम्मद बरकतउल्ला, अब्राहम इब्न एजरा, अबू नुवास, अरण्डी, अरब टाइम्स अखबार, अरबस्क, अरीफ़ की जन्नत, अरीश, अल निज़ामिया बग़दाद, अल बुस्तानी, अल बेरुनी, अल जज़ीरा, अल-तूर, अल-राज़ी, अल-क़ायदा, अजमल क़साब, अंग्रेजी और विदेशी भाषाओ का केन्द्रीय संस्थान, अक्षर कोडन, उदयनारायण तिवारी, उबेदा, उमर, उर्दू साहित्य, उर्स, 83वां अकादमी पुरस्कार, 90वें अकादमी पुरस्कार सूचकांक विस्तार (222 अधिक) »

चचनामा

७०० ई में सिन्ध चचनामा (सिन्धी: चचनामो چچ نامو), सिन्ध के इतिहास से सम्बन्धित एक पुस्तक है। इसका लेखक 'अली अहमद' है। इसमें चच राजवंश के इतिहास तथा अरबों द्वारा सिंध विजय का वर्णन किया गया है। इस पुस्तक को 'फतहनामा सिन्ध' (सिन्धी: فتح نامه سنڌ), तथा 'तारीख़ अल-हिन्द वस-सिन्द' (अरबी: تاريخ الهند والسند), भी कहते हैं। चच राजवंश ने राय राजवंश की समाप्ति पर सिन्ध पर शासन किया। 8 वीं शताब्दी के शुरुआती 8 वीं शताब्दी के मुहम्मद बिन कसीम की विजय की कहानियों के साथ, 13 वीं शताब्दी के अनुवाद फारसी द्वारा लंबे समय तक माना जाता है, क्योंकि वह एक निश्चित, मूल लेकिन अनुपलब्ध अरबी पाठ का 'अली कुफी' है। मनन अहमद आसिफ के अनुसार, पाठ महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सिंध क्षेत्र के माध्यम से भारतीय उपमहाद्वीप में इस्लाम के उद्गम के औपनिवेशिक समझ का एक स्रोत था और ब्रिटिश भारत के विभाजन पर बहस को प्रभावित किया था। इसकी कहानी पाकिस्तान की राज्य द्वारा स्वीकृत इतिहास पाठ्य पुस्तकों का एक हिस्सा रही है, लेकिन वास्तविकता में पाठ मूल और "अनुवाद का काम नहीं" है। यह अरबों द्वारा अपनी जीत से पहले सिंध के इतिहास के बारे में एक प्रारंभिक अध्याय है काम का शरीर 7 वीं -8 वीं शताब्दी ईस्वी के सिंध में अरब सहारे का वर्णन करता है।इस प्रकार, 8 वीं शताब्दी की शुरुआत में मोहम्मद बिन कसीम द्वारा अरब विजय के लिए, राजवंश के राई की मृत्यु के बाद और सिंहासन के लिए चोर के अलंकार के बाद चाचा राजवंश की अवधि का संकेत मिलता है।इस पाठ के साथ समाप्त होता है 'अरब कमांडर मुहम्मद बी के दुखद अंत का वर्णन करने वाला एक उपसंहार। अल-आसिदम और सिंध के पराजय राजा, डाहिर की दो बेटियों की। सिंध के अरब विजय के बारे में केवल लिखित स्रोतों में से एक है, और इसलिए भारत में इस्लाम की उत्पत्ति, चच नामा एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक पाठ है जिसे विभिन्न शताब्दियों के लिए विभिन्न हित समूहों द्वारा सह-चुना गया है, और इसका महत्वपूर्ण अर्थ है दक्षिण एशिया में इस्लाम के स्थान के बारे में आधुनिक कल्पनाओं के लिए। तदनुसार, इसके प्रभाव बहुत विवादित हैं। मनन अहमद आसिफ के अनुसार, चच नामा ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण हैं। यह सिंध क्षेत्र के माध्यम से भारतीय उपमहाद्वीप में इस्लाम के उद्गम के औपनिवेशिक समझ का एक स्रोत था।औपनिवेशिक ब्रिटिश साम्राज्य से स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए दक्षिण एशियाई लोगों के संघर्षों के दौरान यह लेख ऐतिहासिक इतिहास और धार्मिक विरोध के स्रोत में से एक रहा है। पाठ, आसिफ का कहना है, हिंदुओं और मुसलमानों के बीच धार्मिक विरोध के लंबे इतिहास के औपनिवेशिक निर्माण का स्रोत और 20 वीं सदी के इतिहासकारों और लेखकों द्वारा दक्षिण एशिया में मुस्लिम मूल के एक कथा है। यह पाकिस्तान के राज्य द्वारा स्वीकृत इतिहास पाठ्यपुस्तकों का एक हिस्सा रहा है। पाकिस्तानी पेशेवर फैसल शहजाद ने अपने 2010 टाइम्स स्क्वायर कार बम विस्फोट के प्रयास से पहले "पाक-ओ-हिंद" पर 17 साल के मुहम्मद बिन कसीम हमले की कहानी का उल्लेख किया था। .

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चन्द्रबली पाण्डेय

चंद्रबली पांडेय (संवत् १९६१ विक्रमी - संवत् २०१५) हिन्दी साहित्यकार तथा विद्वान थे। उन्होने हिंदी भाषा और साहित्य के संरक्षण, संवर्धन और उन्नयन में अपने जीवन की आहुति दे दी। वे नागरी प्रचारिणी सभा के सभापति रहे तथा दक्षिण भारत में हिन्दी का प्रचार-प्रसार किया। उन्होने हिन्दी को भारत की राष्ट्रभाषा का दर्जा प्रदान कराने में ऐतिहासिक भूमिका निभायी। .

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ऊषा उत्थुप

ऊषा उत्थुप (पूर्व में अय्यर) (உஷா உதுப், ঊষা উথুপ) (जन्म - 8 नवम्बर 1947) भारत की एक लोकप्रिय पॉप गायिका हैं। उन्हें 1960 के दशक के उतर्राध, 1970 और 1980 के दशक में अपने लोकप्रिय हिट के लिए जाना जाता है। उन्होंने करीब 16 भाषाओं में गाने गाएं हैं जिसमें बंगाली, हिंदी, पंजाबी, असमी, उड़िया, गुजराती, मराठी, कोंकणी, मलयालम, कन्नड़, तमिल, तुलु और तेलुगु शामिल हैं। वे कई विदेशी भाषाओं में भी गाना गा सकती हैं जिसमें अंग्रेजी, डच, फ्रेंच, जर्मन, इतालवी, सिंहली, स्वाहिली, रूसी, नेपाली, अरबी, क्रियोल, ज़ुलु और स्पेनिश शामिल हैं। .

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चाड

चाड, जिसे त्शाद भी उच्चारित किया जाता है, अफ्रीका में स्थित एक स्थलरुद्ध देश है। इसके उत्तर में लीबिया, दक्षिण में मध्य अफ़्रीकी गणराज्य, पूर्व में सूडान और पश्चिम में नाइजर, नाइजीरिया और कैमरून हैं। यह देश तीन विभिन्न भौगोलिक प्रांतों में बँटा हुआ है। उत्तरी इलाका रेगिस्तानी है जो कि सहारा का भाग है, मध्य का इलाका साहेल है और दक्षिणी भाग सवाना है। चाड झील, जिससे देश को नाम मिला है, चाड का सबसे बड़ा दलदली इलाका है और अफ़्रीका का दूसरा सबसे बड़ा। इसका सबसे बड़ा शहर अन्' ड्जमेना है जो कि इसकी राजधानी भी है। इस्लाम और इसाई धर्म सबसे प्रचलित धर्म हैं, हालाँकि करीब १५% जनसंख्या जीववादी और नास्तिक भी है। अरबी और फ़्रेन्च यहाँ की आधिकारिक भाषाएं हैं। चाड असफल देशों (Failed state) में से एक और दुनिया के सबसे भ्रष्ट देशों में से एक है। .

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चांद बीबी

चांद बीबी हॉकिंग, एक 18 वीं सदी के चित्र चांद बीबी (1550-1599), जिन्हें चांद खातून या चांद सुल्ताना के नाम से भी जाना जाता है, एक भारतीय मुस्लिम महिला योद्धा थी। उन्होंने बीजापुर (1596-1599) और अहमदनगर (1580-1590) की संरक्षक के रूप में काम किया था। चांद बीबी को सबसे ज्यादा सम्राट अकबर की मुगल सेना से अहमदनगर की रक्षा के लिए जाना जाता है। जो आज भी जनता के लिए इतिहास के तौर पर अदभुत परीचय देता है .

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चंददास

चंददास हिन्दी के कवि थे। उनका जन्म अठारहवीं शताब्दी में उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के हस्वा (हंसपुरी) में हुआ था। बाद में इन्होने सन्यास ले लिया। उनकी भाषा में संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश आदि के अतिरिक्त मराठी, पंजाबी, अरबी और फारसी आदि के शब्दों का भी प्रयोग हुआ है। .

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चंबा

चंबा भारत के हिमाचल प्रदेश प्रान्त का एक नगर है। हिमाचल प्रदेश का चंबा अपने रमणीय मंदिरों और हैंडीक्राफ्ट के लिए सर्वविख्यात है। रवि नदी के किनारे 996 मीटर की ऊंचाई पर स्थित चंबा पहाड़ी राजाओं की प्राचीन राजधानी थी। चंबा को राजा साहिल वर्मन ने 920 ई. में स्थापित किया था। इस नगर का नाम उन्होंने अपनी प्रिय पुत्री चंपावती के नाम पर रखा। चारों ओर से ऊंची पहाड़ियों से घिरे चंबा ने प्राचीन संस्कृति और विरासत को संजो कर रखा है। प्राचीन काल की अनेक निशानियां चंबा में देखी जा सकती हैं। जाब 'जाब', चंबा का अरबी नाम है। इसके जाफ, हाब, आब और गाँव नाम भी हैं। इसकी प्राचीन राजधानी ब्रह्मपुर (वयराटपट्टन) थी। हुएनत्सांग ने इसका वर्णन करते हुए लिखा है कि यह अलखनंदा और करनाली नदियों के बीच बसा है। कुछ काल बाद इस प्रदेश की राजधानी चंबा हो गई। १५ अप्रैल १९४८ में इसका विलयन भारत सरकार द्वारा शासित हिमाचल प्रदेश में हो गया। अरब लेखकों ने सामान्यत: चंबा के सूर्यवंशी राजपूत शासकों को 'जाब' की उपाधि के साथ लिखा है। हब्न रुस्ता का मत है कि यह शासन सालुकि वंश के थे परंतु राजवंश की उत्पत्ति के संबंध में विद्वानों में मतभेद है। ८४६ ई. में सर्वप्रथम हब्न खुर्रदद्बी ने 'जाब' का प्रयोग किया, पर ऐसा लगता है कि इस शब्द की उत्पत्ति अरब साहित्य में इससे पूर्व हो चुकी थी। इस प्रकार यह प्रामाणिक माना जाता है कि चंबा नगर ९ वीं शताब्दी के प्रथम दशक में विद्यमान था। इब्न रुस्ता ने लिखा है कि चंबा के शासक प्राय: गुर्जरों और प्रतिहारों से शत्रुता रखते थे। .

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एफ.एस. ग्राउस

एफ.एस.

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डेविड शुल्मन

डेविड शुल्मन, 2008 डेविड डीन शुल्मन (David Dean Shulman; जन्म: 13 जनवरी, 1949) इजराइल के एक भारतविद हैं। वे विश्व के भारतीय भाषाओं के सबसे अग्रणी विद्वानों में से एक हैं। उनके अनुसंधान-क्षेत्र में दक्षिण भारत में धर्म का इतिहास, भारतीय काव्यशास्त्र, तमिल इस्लाम, द्रविड़ भाषाएँ, तथा कर्नाटक संगीत आदि सम्मिलित हैं। पहले वे हिब्रू विश्वविद्यालय, येरुसलम में भारतीय अध्ययन तथा तुलनात्मक धर्म के प्राध्यापक थे। इसके अलावा वे इसी विश्वविद्यालय में भारतीय, इरानी एवम अर्मेनियायी अध्ययन के प्राध्यापक थे।। सम्प्रति वे हिब्रू विश्वविद्यालय में मानवत अध्ययन के रेनी लैंग (Renee Lang) प्राध्यापक हैं। वे १९८८ से इजराइल विज्ञान एवं मानविकी अकादमी के सदस्य हैं। वे हिब्रू के कवि, साहित्यिक आलोचक एवं सांस्कृतिक मानवविज्ञानी हैं। उन्होने २० से अधिक पुस्तकों का लेखन या सहलेखन किया है। in द हिन्दू, Mar 10, 2006 वे शान्ति कार्यकर्ता हैं और 'ता-आयुष' नामक संयुक्त इजराइल-फिलिस्तीनी आन्दोलन के संस्थापक सदस्य हैं। सन २००७ में उन्होने 'डार्क होप: वर्किंग फॉर पीस इन इजरायल ऐण्ड पैलेस्टाइन' नामक पुस्तक की रचना की। वे हिब्रू और अंग्रेजी में द्विभाषी होने के साथ-साथ संस्कृत, हिन्दी, तमिल, तेलुगु के भी विद्वान हैं। इसके अलावा वे ग्रीक, रूसी, फ्रांसीसी, जर्मन, फारसी, अरबी, मलयालम को पढ़ लेते हैं। उनका विवाह ईलीन शुल्मन (Eileen Shulman) से हुआ है। इनके तीन पुत्र हैं। .

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तकबीर

एक मुसलमान अपने हाथ उठाकर प्राथना में तकबीर पढ़ता हुआ। तकबीर (تكبير), वाक्यांश अल्लाहु अकबर (الله أكبر) (अरबी, उर्दू, फ़ारसी: اللہ اکبر) का अरबी नाम है, जिसका हिन्दी अनुवाद आम तौर पर "ईश्वर सबसे महान है", या "ईश्वर महान है" होता है। यह एक आम इस्लामी अरबी अभिव्यक्ति है, जिसे विश्वास की एक अनौपचारिक अभिव्यक्ति या फिर औपचारिक घोषणा दोनो में समान रूप में प्रयोग किया जाता है। इस्लामी धार्मिक दृष्टिकोण में यह एक नारा भी है। जिसका अर्थ अल्लाह बहुत बडा है। नारे के रूप में इसे "नारा ए तकबीर" भी कहा जाता है। .

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तुर्की

तुर्की (तुर्क भाषा: Türkiye उच्चारण: तुर्किया) यूरेशिया में स्थित एक देश है। इसकी राजधानी अंकारा है। इसकी मुख्य- और राजभाषा तुर्की भाषा है। ये दुनिया का अकेला मुस्लिम बहुमत वाला देश है जो कि धर्मनिर्पेक्ष है। ये एक लोकतान्त्रिक गणराज्य है। इसके एशियाई हिस्से को अनातोलिया और यूरोपीय हिस्से को थ्रेस कहते हैं। स्थिति: 39 डिग्री उत्तरी अक्षांश तथा 36 डिग्री पूर्वी देशान्तर। इसका कुछ भाग यूरोप में तथा अधिकांश भाग एशिया में पड़ता है अत: इसे यूरोप एवं एशिया के बीच का 'पुल' कहा जाता है। इजीयन सागर (Aegean sea) के पतले जलखंड के बीच में आ जाने से इस पुल के दो भाग हो जाते हैं, जिन्हें साधारणतया यूरोपीय टर्की तथा एशियाई टर्की कहते हैं। टर्की के ये दोनों भाग बॉसपोरस के जलडमरूमध्य, मारमारा सागर तथा डारडनेल्ज द्वारा एक दूसरे से अलग होते हैं। टर्की गणतंत्र का कुल क्षेत्रफल 2,96,185 वर्ग मील है जिसमें यूरोपीय टर्की (पूर्वी थ्रैस) का क्षेत्रफल 9,068 वर्ग मील तथा एशियाई टर्की (ऐनाटोलिआ) का क्षेत्रफल 2,87,117 वर्ग मील है। इसके अंतर्गत 451 दलदली स्थल तथा 3,256 खारे पानी की झीलें हैं। पूर्व में रूस और ईरान, दक्षिण की ओर इराक, सीरिया तथा भूमध्यसागर, पश्चिम में ग्रीस और बुल्गारिया और उत्तर में कालासागर इसकी राजनीतिक सीमा निर्धारित करते हैं। यूरोपीय टर्की - त्रिभुजाकर प्रायद्वीपी प्रदेश है जिसका शीर्षक पूर्व में बॉसपोरस के मुहाने पर है। उसके उत्तर तथा दक्षिण दोनों ओर पर्वतश्रेणियाँ फैली हुई हैं। मध्य में निचला मैदान मिलता है जिसमें होकर मारीत्सा और इरजिन नदियाँ बहती हैं। इसी भाग से होकर इस्तैस्म्यूल का संबंध पश्चिमी देशों से है। एशियाई टर्की - इसको हम तीन प्राकृतिक भागों में विभाजित कर सकते हैं: 1.

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त्रिभाषा सूत्र

भाषा की एक उदाहरण्। त्रिभाषा सूत्र (Three-language formula) भारत में भाषा-शिक्षण से सम्बन्धित नीति है जो भारत सरकार द्वारा राज्यों से विचार-विमर्श करके बनायी गयी है। यह सूत्र (नीति) सन् १९६८ में स्वीकार किया गया। .

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तेल (पुरातत्वशास्त्र)

इस्राइल की जेज़रील वादी में तेल कशीश इस्राइल में तेल बे'एर शेव का खुदाई स्थल तेल या तॆल (अंग्रेज़ी: tell या tel अरबी: से) पुरातत्वशास्त्र में ऐसे टीले को कहते हैं जो किसी स्थान पर कई सदियों से मानवों के बसने और फिर छोड़ देने से बन गया हो। जब लोगों की कई पुश्तें एक ही जगह पर रहें और बार-बार वहाँ निर्माण और पुनर्निर्माण करती जाएँ तो सैंकड़ों सालों में उस जगह पर एक पहाड़ी जैसा टीला बन जाता है। इस टीले का अधिकाँश भाग मिटटी की बनी ईंटें होता है जो जल्दी ही टूटकर वापस मिटटी बन जाती हैं। अक्सर किसी टेल में ऊपर एक समतल भाग और उसके इर्द-गिर्द ढलानें होती हैं।, Nicholas Clapp, pp.

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दार अस सलाम

दार अस सलाम (अरबी: دار السلام दार अस्सलाम), जिसे पहले म्ज़ीज़िमा कहा जाता था, तंज़ानिया का सबसे बड़ा शहर है। यह देश का सबसे अमीर शहर और एक महत्वपूर्ण क्षेत्रीय आर्थिक केन्द्र है। असल में दार अस सलाम, तंजानिया के भीतर एक प्रशासनिक प्रांत है और इसमें तीन प्रशासनिक जिले, उत्तर में किनोन्दोनी, मध्य में इलाहा और दक्षिण में तेमेकी समाहित हैं। 2002 की जनगणना के अनुसार दार अस सलाम क्षेत्र की आधिकारिक जनसंख्या 2497940 थी। हालांकि 1974 में दोदोमा को दार अस सलाम के स्थान पर राजधानी का दर्जा दे दिया गया पर, यह शहर आज भी केंद्रीय सरकार की स्थायी नौकरशाही का केंद्र बना हुआ है और साथ ही यह दार अस सलाम क्षेत्र की राजधानी भी है। .

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दारुल उलूम देवबंद

दारुल उलूम देवबंद की स्थापना 1857 की क्रांति सन्दर्भ में हुई। इस क्रान्ति में मुगल मुस्लिम शासक को हटा दिया गया था और अनेक मुस्लिम संगठन या तो बन्द हो चुके थे या दिशाहीन रूप से मौजूद थे। ऐसे में देवबंद में दारुल उलूम की स्थापना हुई जिसका लक्ष्य भारत के मुसलमानों को धार्मिक शिक्षा प्रदान करना है। इस संस्था को विश्व-भर के मुस्लिम शिक्षा संस्थाओं को विशेष स्थान प्राप्त हुआ था। श्रेणी:इस्लामी संगठन.

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दिन

दिन (Day), समय की एक इकाई है। आम प्रयोग में यह 24 घंटे के बराबर का अंतराल है। यह एक उजियारे दिवस और एक अंधेरी रात का योग है। .

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दक्षिण अमेरिका

दक्षिण अमेरिका (स्पेनी: América del Sur; पुर्तगाली: América do Sul) उत्तर अमेरिका के दक्षिण पूर्व में स्थित पश्चिमी गोलार्द्ध का एक महाद्वीप है। दक्षिणी अमेरिका उत्तर में १३० उत्तरी अक्षांश (गैलिनस अन्तरीप) से दक्षिण में ५६० दक्षिणी अक्षांश (हार्न अन्तरीप) तक एवं पूर्व में ३५० पश्चिमी देशान्तर (रेशिको अन्तरीप) से पश्चिम में ८१० पश्चिमी देशान्तर (पारिना अन्तरीप) तक विस्तृत है। इसके उत्तर में कैरीबियन सागर तथा पनामा नहर, पूर्व तथा उत्तर-पूर्व में अन्ध महासागर, पश्चिम में प्रशान्त महासागर तथा दक्षिण में अण्टार्कटिक महासागर स्थित हैं। भूमध्य रेखा इस महाद्वीप के उत्तरी भाग से एवं मकर रेखा मध्य से गुजरती है जिसके कारण इसका अधिकांश भाग उष्ण कटिबन्ध में पड़ता है। दक्षिणी अमेरिका की उत्तर से दक्षिण लम्बाई लगभग ७,२०० किलोमीटर तथा पश्चिम से पूर्व चौड़ाई ५,१२० किलोमीटर है। विश्व का यह चौथा बड़ा महाद्वीप है, जो आकार में भारत से लगभग ६ गुना बड़ा है। पनामा नहर इसे पनामा भूडमरुमध्य पर उत्तरी अमरीका महाद्वीप से अलग करती है। किंतु पनामा देश उत्तरी अमरीका में आता है। ३२,००० किलोमीटर लम्बे समुद्रतट वाले इस महाद्वीप का समुद्री किनारा सीधा एवं सपाट है, तट पर द्वीप, प्रायद्वीप तथा खाड़ियाँ कम हैं जिससे अच्छे बन्दरगाहों का अभाव है। खनिज तथा प्राकृतिक सम्पदा में धनी यह महाद्वीप गर्म एवं नम जलवायु, पर्वतों, पठारों घने जंगलों तथा मरुस्थलों की उपस्थिति के कारण विकसित नहीं हो सका है। यहाँ विश्व की सबसे लम्बी पर्वत-श्रेणी एण्डीज पर्वतमाला एवं सबसे ऊँची टीटीकाका झील हैं। भूमध्यरेखा के समीप पेरू देश में चिम्बोरेजो तथा कोटोपैक्सी नामक विश्व के सबसे ऊँचे ज्वालामुखी पर्वत हैं जो लगभग ६,०९६ मीटर ऊँचे हैं। अमेजन, ओरीनिको, रियो डि ला प्लाटा यहाँ की प्रमुख नदियाँ हैं। दक्षिण अमेरिका की अन्य नदियाँ ब्राज़ील की साओ फ्रांसिस्को, कोलम्बिया की मैगडालेना तथा अर्जेण्टाइना की रायो कोलोरेडो हैं। इस महाद्वीप में ब्राज़ील, अर्जेंटीना, चिली, उरुग्वे, पैराग्वे, बोलिविया, पेरू, ईक्वाडोर, कोलोंबिया, वेनेज़ुएला, गुयाना (ब्रिटिश, डच, फ्रेंच) और फ़ाकलैंड द्वीप-समूह आदि देश हैं। .

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दुरूद शरीफ़

दुरूद शरीफ़ (उर्दू) या सलवात (एकवचन: सलात) या अस-सलातु अलन-नबी (अरबी: الصلاة على النبي) एक विशेष अरबी वाक्यांश हैं, जिसमें इस्लाम के आखिरी पैगम्बर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और अहल अल-बैत (अर्थ: मुहम्मद साहब का परिवार) पर अभिवादन भेजा जाता हैं | पैगम्बर मुहम्मद साहब का उल्लेख करते समय, मुस्लिम लोगों द्वारा दुरूद शरीफ़ का उचारण करा जाता हैं | संख्यात्मक रूप से दुरूद शरीफ़ की तादाद हजारों या लाखों में हैं, परन्तु प्रतेक दुरूद शरीफ़ का मूल अर्थ मुहम्मद और उनके परिवार के लिए अल्लाह तआला से आशीर्वाद और दुआ मांगना हैं | .

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द्रूस

द्रूस (अंग्रेजी: Druze; अरबी: درزي, derzī या durzī‎, बहुवचन دروز, durūz; हिब्रू: דרוזים, "druzim") एकेश्वरवादी समुदाय है जो सीरिया, लेबनान, इजराइल और जॉर्डन में पाया जाता है। द्रूस लोगों की मान्यताओं में अब्राहमिक धर्मों, ग्नोस्टिसिज्म (Gnosticism), नवप्लेटोवाद (Neoplatonism), पाइथागोरसवाद (Pythagoreanism) तथा अन्य दर्शनों के बहुत से तत्त्व शामिल हैं। ये लोग अपने को 'अह्ल अल-तौहीद' (एकेश्वरवादी) कहते हैं। यह इस्लाम के शिया सम्प्रदाय की ही एक शाखा है। .

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देशी भाषाओं में देशों और राजधानियों की सूची

निम्न चार्ट विश्व के देशों को सूचीबद्ध करता है (जैसा की यहां परिभाषित किया गया है), इसमें उनके राजधानीयों के नाम भी शामिल है, यह अंग्रेजी के साथ साथ उस देश की मूल भाषा और/या सरकारी भाषा में दी गयी है। ज टी की कोण नॉन en .

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धर्मांतरण

सेंट पॉल के रूपांतरण, इतालवी कलाकार कैरावैजियो (1571-1610) द्वारा एक 1600 सदी का चित्र धर्मांतरण किसी ऐसे नये धर्म को अपनाने का कार्य है, जो धर्मांतरित हो रहे व्यक्ति के पिछले धर्म से भिन्न हो.

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धिम्मी

इस्लाम में धिम्मी (dhimmi (अरबी: ذمي‎, समूह में أهل الذمة अह्ल अल-धिम्माह; ओटोमान तुर्की एवं उर्दू में जिम्मी) उस व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह को कहते हैं जो मुसलमान नहीं है और शरियत कानून के अनुसार चलने वाले किसी राज्य की प्रजा है। इस्लाम के अनुसार इन्हें जीवित रहने के लिये कर (टैक्स) देना अनिवार्य है जिसे जजिया कहा जाता है। धिम्मी को मुसलमानों की तुलना में बहुत कम सामाजिक और कानूनी अधिकार प्राप्त होते हैं। लेकिन यदि धिम्मी इस्लाम स्वीकार कर ले तो उसको लगभग पूरा अधिकार मिल जाता है। .

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नताली पोर्टमैन

नताली पोर्टमैन (נטלי פורטמן, जन्म नताली हर्शलैग, 9 जून 1981) एक इज़रायली अमेरिकी अभिनेत्री हैं। 1994 की स्वतंत्र फ़िल्म लीयॉन (संयुक्त राज्य अमेरिका में द प्रोफेशनल के नाम से जाना जाता है) में निभाई गई भूमिका उनकी पहली भूमिका थी। ''स्टार वॉर्स'' की तीन कड़ियों में पदमे अमिडाला की भूमिका निभाने के बाद उन्हें व्यापक प्रसिद्धि प्राप्त हुई। पोर्टमैन, जिन्होंने कहा है "मैं एक फ़िल्म स्टार की अपेक्षा स्मार्ट होती," ने स्टार वॉर्स फ़िल्मों में काम करने के दौरान हार्वर्ड कॉलेज से मनोविज्ञान में स्नातक की डिग्री पूरी की। सन् 2001 में, पोर्टमैन ने मेरील स्ट्रीप, केविन क्लीन और फिलिप सेमूर हॉफमैन के साथ चेक्होव के द सीगल के न्यूयॉर्क शहर के पब्लिक थिएटर के निर्माण कार्य का उद्घाटन किया। 2005 में, पोर्टमैन को ड्रामा क्लोज़र में सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री के रूप में एक गोल्डन ग्लोब अवार्ड प्राप्त हुआ। मई 2008 में, उन्होंने 61वें वार्षिक कान फ़िल्म समारोह के जूरी के सबसे कम उम्र वाले सदस्य के रूप में काम किया। पोर्टमैन के निर्देशन में बनी पहली फ़िल्म, ईव, ने 2008 में 65वें वेनिस अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म समारोह के शॉर्ट्स प्रतियोगिता का उद्घाटन किया। .

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नस्तालीक़

मीर इमाद का फ़ारसी चलीपा तरीका. नस्तालीक़ (उर्दू), इस्लामी कैलिग्राफ़ी की एक प्रमुख पद्धति है। इसका जन्म इरान में चौदहवीं-पन्द्रहवीं शताब्दी में हुआ। यह इरान, दक्षिणी एशिया एवं तुर्की के क्षेत्रों में बहुतायत में प्रयोग की जाती रही है। कभी कभी इसका प्रयोग अरबी लिखने के लिये भी किया जाता है। शीर्षक आदि लिखने के लिये इसका प्रयोग खूब होता है। नस्तालीक का एक रूप उर्दू एवं फ़ारसी लिखने में प्रयुक्त होता है। उर्दू अधिकांशतः नस्तालीक़ लिपि में लिखी जाती है, जो फ़ारसी-अरबी लिपि का एक रूप है। उर्दू दाएँ से बाएँ लिखी जाती है। .

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नात ए शरीफ़

नात ए शरीफ़: (अरबी - نعت) उर्दू और फ़ारसी में नात ए शरीफ़ (نعت شریف): इस्लामी पद्य साहित्य में एक पद्य रूप है, जिस में पैगंबर हज़रत मुहम्मद साहब की तारीफ़ करते लिखी जाती है। इस पद्य रूप को बडे अदब से गाया भी जाता है। अक्सर नात ए शरीफ़ लिखने वाले आम शायर को नात गो शायर कहते हैं और गाने वाले को नात ख्वां कहते हैं। यह नात ख्वानी का रिवाज भारत, पाकिस्तान और बंगलादेश में आम है। भाशा अनुसार देखें तो, पश्तो, बंगाली, उर्दू और पंजाबी में नात ख्वानी आम है। नात ख्वां तुर्की, फ़ारसी, अरबी, उर्दू, बंगाली, पंजाबी, अंग्रेज़ी, कश्मीरी और सिंधी भाशाओं में आम है। .

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नारंगी

नारंगी एक फल, उसके पेङ तथा सम्बंधित रंग को कहते हैं।.

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नाज़रथ

नाज़रथ शहर नाज़रथ (Nazareth /ˈnæzərəθ/; हिब्रू: נָצְרַת, Natz'rat; अरबी: النَّاصِرَة‎, an-Nāṣirah या an-Nāṣiriyyah) इज़राइल के उत्तरी जिले का सबसे बड़ा नगर है। इसे 'इजराइल की अरब राजधानी' कहा जाता है। यहाँ के अधिकांश निवासी इजराइली मुसलमान (69%) या इसाई (30.9%) हैं। न्यू टेस्टामेण्ट में इस नगर को ईसा मसीह के बचपन का स्थान बताया गया है। इसलिये यह एक इसाई तीर्थस्थल भी है। .

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नजफ़

इमाम अली मस्जिद नजफ़ (अरबी: النجف, अन्नजफ़)इराक़ का एक प्रमुख शहर है जो राजधानी बग़दाद के 160 किलोमीटर दक्षिण में बसा है। सुन्नियों के चौथे ख़लीफ़ा यानि शिया इस्लाम के पहले इमाम अली की मज़ार के यहाँ स्थित होने की वजह से ये इस्लाम तथा शिया इस्लाम का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। यहाँ की कब्रगाह दुनिया की सबसे बड़ी कब्रगाह मानी जाती है। यह नजफ़ प्रान्त की राजधानी है जिसकी आबादी 2008 में साढ़े पाँच लाख थी। .

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नुवेइबा

नुवेइबा या नुएइबा मिस्र के दक्षिण सीनाई मुहाफ़ज़ाह नामक मुहाफ़ज़ाह (उच्च-स्तरीय प्रशासनिक विभाग) में स्थित एक बस्ती व बंदरगाह है। यह नगर सीनाई प्रायद्वीप के पूर्वी हिस्से में अक़ाबा की खाड़ी के किनारे बसा हुआ है। .

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नूर अंतर्राष्ट्रीय माइक्रोफिल्म केन्द्र

नूर अंतर्राष्ट्रीय माइक्रोफिल्म केन्द्र, इस्लामिक गणराज्य ईरान नई दिल्ली, के कल्चर हाउस में स्थित है। नूर अंतर्राष्ट्रीय माइक्रोफिल्म केन्द्र पुरानी पाण्डुलिपि की मरम्मत, उनकी माइक्रोफिल्म व तस्वीर तैयार करना व मुद्रित पृष्ठों को प्रकाशित करना, जैसे कार्यो में लिप्त रहा है। मेहदी ख्वाजा पीरी द्वारा किये गए प्रयासों के परिणाम स्वरूप 1985 में इस सेंटर को स्थापित किया गया था। केन्द्र की शैक्षिक व सांस्कृतिक गतिविधियों की शुरुआत अल्लामा क़ाज़ी नूरुल्लाह शुस्तरी की पुण्यतिथि (बरसी) के साथ हुई। वह अपने समय के विधिवेत्ता होने के साथ-साथ एक विद्वान, मोहद्दिस, धर्मशास्त्री, कवि व साहित्यिक व्यक्ति भी थे। उन्हें शहीद-ए-सालिस से भी जाना जाता है। इस महान व्यक्ति की याद में नूर अंतर्राष्ट्रीय माइक्रोफिल्म केन्द्र का नाम रखा गया। .

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नेदीम

नेदीम (1681? – 1730) अठारहवीं शताब्दी का एक प्रसिद्ध तुर्की कवि थे। इसका मूल नाम 'अहमद' था और उपनाम 'नेदीम'। जीवन के अंतिम दिनों में इसके पोषक सदरेआजम इब्राहीम पाश ने इसको अने द्वारा स्थापित पुस्तकालय का प्रबंधक नियुक्त किया था। अब वह प्राचीन शैली के कवियों में सबसे ऊँचा तुर्की कवि माना जाता है। नेदीम का जन्म कुस्तुंतुनिया, जिसे अब इस्तांबुल कहते हैं में हुआ था। यहीं उसने शिक्षा प्राप्त की। शिक्षा प्राप्ति के बाद इसने अध्यापन का कार्य ग्रहण किया और नगर के प्रतिष्ठित शिक्षा संस्थानों में अध्यापन किया। नेदीम को कविता से बचपन से ही लगाव था; लेकिन तुर्की के उस्मानी सुलतान अहमद सोयम (१७०३-१७३०) के राज्यकाल में प्रसिद्धि इसे प्राप्त हुई। इसका दीवान, कसीदा, गजल और गीत से युक्त है। इसकी रचनाओं में वर्णनात्मकता के स्थान पर आत्मनिष्ठ रोमानी दिखाई देती है, जो दूसरे तुर्की कवियों में सामान्यतयी नहीं पायी जाती। इसने अपने गजलों और गीतों में अपने जमाने की आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया है और अनेक अछूते विषयों, अर्थोद्घाटक शैली और सुपरिचित शब्दों द्वारा वह अपने पूर्ववर्तियों और प्रभावकों से बढ़ गया है। इसके युग में तुर्क कवि अरबी, फारसी छंदों का ही प्रयोग किया करते थे। तुर्की की प्राचीन लोकप्रिय बहर हिजाई (हिजाई नामक छंद) का प्रयोग दोष माना जाता था। लेकिन नेदीम ने इस छंद का भी प्रयोग एक गीत में किया है और वह गीत आज लोकप्रिय है। श्रेणी:तुर्की साहित्यकार.

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नीतिकथा

thumb नीतिकथा (Fable) एक साहित्यिक विधा है जिसमें पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों एवं अन्य निर्जीव वस्तुओं को मानव जैसे गुणों वाला दिखाकर उपदेशात्मक कथा कही जाती है। नीतिकथा, पद्य या गद्य में हो सकती है। पंचतन्त्र, हितोपदेश आदि प्रसिद्ध नीतिकथाएँ हैं। .

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पतञ्जलि योगसूत्र

योगसूत्र, योग दर्शन का मूल ग्रंथ है। यह छः दर्शनों में से एक शास्त्र है और योगशास्त्र का एक ग्रंथ है। योगसूत्रों की रचना ४०० ई॰ के पहले पतंजलि ने की। इसके लिए पहले से इस विषय में विद्यमान सामग्री का भी इसमें उपयोग किया। योगसूत्र में चित्त को एकाग्र करके ईश्वर में लीन करने का विधान है। पतंजलि के अनुसार चित्त की वृत्तियों को चंचल होने से रोकना (चित्तवृत्तिनिरोधः) ही योग है। अर्थात मन को इधर-उधर भटकने न देना, केवल एक ही वस्तु में स्थिर रखना ही योग है। योगसूत्र मध्यकाल में सर्वाधिक अनूदित किया गया प्राचीन भारतीय ग्रन्थ है, जिसका लगभग ४० भारतीय भाषाओं तथा दो विदेशी भाषाओं (प्राचीन जावा भाषा एवं अरबी में अनुवाद हुआ। यह ग्रंथ १२वीं से १९वीं शताब्दी तक मुख्यधारा से लुप्तप्राय हो गया था किन्तु १९वीं-२०वीं-२१वीं शताब्दी में पुनः प्रचलन में आ गया है। .

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पन्ना

पन्ना, बेरिल (Be3Al2(SiO3)6) नामक खनिज का एक प्रकार है जो हरे रंग का होता है और जिसे क्रोमियम और कभी-कभी वैनेडियम की मात्रा से पहचाना जाता है।हर्ल्बट, कॉर्नेलियस एस.

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पश्चिमी सहारा

पश्चिमी सहारा (अरबी: الصحراء الغربية; अरबी उच्चारण:; Sahara Occidental) उत्तरी अफ्रीका का एक क्षेत्र है। यह उत्तर में मोरोक्को, पूर्वोत्तर में अल्जीरिया, पूर्व एवं दक्षिण में मौरिशियाना तथा पश्चिम में अंध महासागर से घिरा हुआ है। इसका कुल क्षेत्रफल है 266,000 km2.

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पाशा

पाशा तुर्की में प्रयुक्त एक पदवी नाम है जो भारतीय उपमहाद्वीप में भी मुस्लिम उपनाम-कुलनाम की तरह इस्तेमाल होते हैं। बीसवीं सदी के तुर्की के कमाल पाशा (अतातुर्क) इसके एक उदाहरण हैं। पाशा फारसी के पाद-शाह (बड़ा राजा) से बना है। इसी पादशाह से अरबी में बादशाह बनता है - क्योंकि अरबी में प का उच्चारण नहीं होता। पंजाबी साहित्य में पादशाह का चलन रहा है, जबकि शेष उत्तर भारत में बादशाह कहते हैं। Category:मुस्लिम कुलनाम.

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पाकिस्तान का संविधान

पाकिस्तान का संविधान (آئین پاکستان;आईन(ए) पाकिस्तान) या दस्तूरे पाकिस्तान دستور پاکستان) को १९७३ का क़ानून भी कहते हैं। यह पाकिस्तान का सर्वोच्च दस्तूर है। पाकिस्तान का संविधान संविधान सभा द्वारा १० अप्रैल १९७३ को पारित हुआ तथा 14 अगस्त 1973 से प्रभावी हुआ। इस का प्रारूप ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो की सरकार और विपक्ष ने मिल कर तैयार किया। ये पाकिस्तान का तीसरा दस्तूर है और इस में कई बार रद्दोबदल की जा चुकी है। .

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पवित्र आत्मा

जुआन साइमन गुटिरेज़ की चित्रकारी, कबूतर के रूप में पवित्र आत्मा पवित्र परिवार के ऊपर दर्शाया गया है त्रिमूर्तिपंथी (ट्रिनीटेरियन) ईसाई धर्म में, पवित्र आत्मा (पूर्व अंग्रेजी भाषा के उपयोग में: होली घोस्ट (पुराने अंग्रेजी में गैस्ट, "आत्मा")) पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा की पवित्र त्रिमूर्ति का एक अन्य व्यक्ति है और वह अपने आपमें सर्वशक्तिमान ईश्वर है। पवित्र आत्मा को ज्यादातर ईसाईयों द्वारा तीन देवताओं में से एक के रूप में नहीं देखा जाता है, बल्कि त्रयात्मक (ट्रायून) ईश्वर के एक रूप की तरह देखा जाता है, जो अपने-आपको तीन व्यक्तियों के रूप में प्रकट करता है, या फिर यूनानी हाइपोस्टेटस में, एक अस्तित्व के रूप में.

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प्रणामी संप्रदाय

प्रणामी सम्प्रदाय एक हिन्दू सम्प्रदाय है जिसमे सर्वेसर्वा इश्वर "राज जी" (सदचित्त आनन्द) को मानने वाले अनुयायी शामिल है। यह संप्रदाय अन्य धर्मों की तरह बहुईश्वर में विश्वास नहीं रखता। यह ४००-वर्ष प्राचीन संप्रदाय है। इसकी स्थापना देवचंद्र महाराज द्वारा हुई तथा इसका प्रचार प्राणनाथ स्वामी व उनके शिष्य महाराज छत्रसाल ने किया। जामनगर में नवतनपुरी धाम प्रणामी धर्म का मुख्य तीर्थ स्थल है। इसे श्री कृष्ण प्रणामी धर्म या निजानंद सम्प्रदाय या परनामी संप्रदाय भी कहते हैं। परब्रह्म परमात्मा श्री राज जी एवं उनकी सह-संगिनी श्री श्यामा महारानी जी इस ब्रह्माण्ड के पालनहार एवं रचयिता है। इस संप्रदाय में जो तारतम ग्रन्थ है, वो स्वयं परमात्मा की स्वरुप सखी इंद्रावती ने प्राणनाथ के मनुष्य रूप में जन्म लेकर लिखा। वाणी का अवतरण हुआ और कुरान, बाइबल, भगवत आदि ग्रंथो के भेद खुले। प्रणामियो को ईश्वर ने ब्रह्म आत्मा घोषित किया है। अर्थात ब्रह्मात्मा के अंदर स्वयं परमात्मा का वास होता है। ये ब्रह्मात्माएँ परमधाम में श्री राज जी एवं श्यामा महारानी जी के संग गोपियों के रूप में रहती है। सबसे पहले परमात्मा का अवतरण अल्लाह के रूप में, दूसरी बार कृष्ण (केवल 11 वर्ष 52 दिन तक के गोपी कृष्ण के रूप में, बाकी जीवन में कृष्ण विष्णु अवतार थे। कृष्ण ने गीता भी परमात्मा अवतार - अक्षरातीत अवतार में ही कही है।) और सोहलवीं शताब्दी में श्री प्राणनाथ के रूप में ईश्वर के रूप में जन्म लिया। इस सम्प्रदाय में 11 साल और 52 दिन की आयु वाले बाल कृष्ण को पूजा जाता है। क्योकि इस आयु तक कृष्ण रासलीला किया करते थे। पाठक गलत न समझे कि कृष्ण अलग अलग है। कृष्ण तो केवल एक मनुष्य रूप का नाम है कोई ईश्वर का नही। बाल्यकाल में कृष्ण परमात्मा के अवतार थे और बाकी जीवन में विष्णु अवतार। .

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प्राचीन मिस्र

गीज़ा के पिरामिड, प्राचीन मिस्र की सभ्यता के सबसे ज़्यादा पहचाने जाने वाले प्रतीकों में से एक हैं। प्राचीन मिस्र का मानचित्र, प्रमुख शहरों और राजवंशीय अवधि के स्थलों को दर्शाता हुआ। (करीब 3150 ईसा पूर्व से 30 ई.पू.) प्राचीन मिस्र, नील नदी के निचले हिस्से के किनारे केन्द्रित पूर्व उत्तरी अफ्रीका की एक प्राचीन सभ्यता थी, जो अब आधुनिक देश मिस्र है। यह सभ्यता 3150 ई.पू.

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प्राचीन यूनानी चिकित्साविज्ञान

हिप्पोक्रेटस: पाश्चात्य जगत में इसे चिकित्साविज्ञान का जनक माना जाता है। यूनानी चिकित्साविज्ञान का सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति हिप्पोक्रेटस था जिसे पाश्चात्य जगत 'चिकित्साविज्ञान का जनक' कहता है। हिप्पोक्रैटस और अन्य लोगों की कृतियों का इस्लामी चिकित्साविज्ञान और मध्यकाल के यूरोपीय चिकित्साविज्ञान पर गहरी छाप पड़ी और अन्ततः १४वीं शती के बाद ये सिद्धान्त कालातीत (obsolete) हो गए। .

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पृथ्वी गान

The Earth seen from Apollo 17 पृथ्वी गान (Earth Anthem) एक अधिकारिक गान हैं, जो पृथ्वी को समर्पित हैं। पृथ्वी गान के रचनाकार भारतीय राजनयिक और कवि अभय कुमार हैं। पृथ्वी गान में हिंदुस्तानी, अंग्रेजी, नेपाली, बंगाली, उर्दू, सिंहल, जोंगखा और धीवेही भाषा की पंक्तियों का इस्तेमाल किया गया है, जो दक्षेस के आठ सदस्य देशों में बोली जाती है। इसे संयुक्त राष्ट्र के आठ अधिकारिक भाषाओ में अनुवादित किया गया, जिस मे अरबी, चीनी, अंग्रेजी, फ्रेंच, रशियन, स्पेनिश भाषा भी सामिल हैं। हिंदी और नेपाली भषा में भी इसका अनुवाद हुआ है। .

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फ़तवा

इस्लाम धर्म में फतवा (अरबी: فتوى‎) मजहब के जानकार व्यक्ति द्वारा दिया गया राय है। .

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फ़ारस की खाड़ी नाम से सम्बंधित दस्तावेज़ें: एक प्राचीन व अनन्त विरासत

फ़ारस की खाड़ी नाम से सम्बंधित दस्तावेज़ें: एक प्राचीन व अनन्त विरासत ‘मोहम्मद अजम’ द्वारा लिखी और संकलित की गई किताब और एटलस है। पहली बार साल 2004 में प्रकाशित इस किताब का दूसरा संस्करण साल 2008 में डाक्टर पीरोज़ मुजतहिदज़ादेह और डाक्टर मोहम्मद हसन गंजी की निगरानी में प्रकाशित किया गया। वर्ष 2010 में यह किताब सर्वश्रेष्ठ किताब का उम्मीदवार बनी थी। यह फ़ारस की खाड़ी के नाम से संबंधित विवाद के बारे में ईरान में पिछले पचास वर्षों में प्रकाशित की गई श्रेष्ठ किताबों में से एक मानी जाती है। इस किताब का पहला अध्याय ‘’फ़ारस की खाड़ी ’’ के नाम से संबंधित राजनीतिक व भौगोलिक विवादों, फ़ारस का खाड़ी के नाम से संबंधित ऐतिहासिक दस्तावेजों और फ़ारस की खाड़ी के नामकरण के बारे में कुछ दिनों पहले उठने वाले विवाद पर आधारित है।.

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फ़ारस की खाड़ी का राष्ट्रीय दिवस

ईरान में 30 अप्रैल का दिन फ़ारस की खाड़ी का राष्ट्रीय दिवस के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन पूरे ईरान में विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। फारस की खाड़ी, मध्य पूर्व एशिया क्षेत्र में हिन्द महासागर का एक विस्तार है, जो ईरान और अरब प्रायद्वीप के बीच तक गया हुआ है।Working Paper No.

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फ़ारसी साहित्य

फारसी भाषा और साहित्य अपनी मधुरता के लिए प्रसिद्ध है। फारसी ईरान देश की भाषा है, परंतु उसका नाम फारसी इस कारण पड़ा कि फारस, जो वस्तुत: ईरान के एक प्रांत का नाम है, के निवासियों ने सबसे पहले राजनीतिक उन्नति की। इस कारण लोग सबसे पहले इसी प्रांत के निवासियों के संपर्क में आए अत: उन्होंने सारे देश का नाम 'पर्सिस' रख दिया, जिससे आजकल यूरोपीय भाषाओं में ईरान का नाम पर्शिया, पेर्स, प्रेज़ियन आदि पड़ गया। .

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फ़िराक़ गोरखपुरी

फिराक गोरखपुरी (मूल नाम रघुपति सहाय) (२८ अगस्त १८९६ - ३ मार्च १९८२) उर्दू भाषा के प्रसिद्ध रचनाकार है। उनका जन्म गोरखपुर, उत्तर प्रदेश में कायस्थ परिवार में हुआ। इनका मूल नाम रघुपति सहाय था। रामकृष्ण की कहानियों से शुरुआत के बाद की शिक्षा अरबी, फारसी और अंग्रेजी में हुई। .

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फ़क़ीर

हिन्दू धर्म में एक फकीर योगी का चित्र। नुकीली शर-शय्या पर आराम से लेटे हुए इस योगी का चित्र बनारस में बहुत पहले सन १९०७ में लिया गया था। फकीर (अंग्रेजी: Fakir, अरबी: فقیر‎) अरबी भाषा के शब्द फक़्र (فقر‎) से बना है जिसका अर्थ होता गरीब। इस्लाम में सूफी सन्तों को इसीलिये फकीर कहा जाता था क्योंकि वे गरीबी और कष्टपूर्ण जीवन जीते हुए दरवेश के रूप में आम लोगों की बेहतरी की दुआ माँगने और उसके माध्यम से इस्लाम पन्थ के प्रचार करने का कार्य मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया में किया करते थे। आगे चलकर यह शब्द उर्दू, बाँग्ला और हिन्दी भाषा में भी प्रचलन में आ गया और इसका शाब्दिक अर्थ भिक्षुक या भीख माँगकर गुजारा करने वाला हो गया। जिस प्रकार हिन्दुओं में स्वामी, योगी व बौद्धों में बौद्ध भिक्खु को सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त थी उसी प्रकार मुसलमानों में भी फकीरों को वही दर्ज़ा दिया जाने लगा। यही नहीं, इतिहासकारों ने भी यूनानी सभ्यता की तर्ज़ पर ईसा पश्चात चौथी शताब्दी के नागा लोगों एवं मुगल काल के फकीरों को एक समान दर्ज़ा दिया है। हिन्दुस्तान में फकीरों की मुस्लिम बिरादरी में अच्छी खासी संख्या है। .

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फ़्रैंकफ़र्ट

फ्रैंकफर्ट ऐम माइन,, जर्मन राज्य हेस का सबसे बड़ा शहर और जर्मनी का पांचवाँ सबसे बड़ा शहर है। इसे प्रायः केवल फ्रैंकफर्ट के नाम से जाना जाता है। इसकी जनसंख्या 2009 में 667,330 थी। 2010 में शहरी क्षेत्र में 2,296,000 आबादी का अनुमान लगाया गया था। यह शहर फ्रैंकफर्ट-राइन-मैन मेट्रोपॉलिटन क्षेत्र के हृदयस्थल में है, जिसकी आबाद 5,600,000 है, और जर्मनी का दूसरा सबसे बड़ा मेट्रॅपॉलिटन क्षेत्र है। यह शहर मेन नदी के तट पर पुराने घाट पर अवस्थित है। जर्मन भाषा में मेन नदी को "फर्ट" कहते है। फ्रैंकफर्ट प्राचीन फ्रैंकोनिया का हिस्सा है, जो कि प्राचीन फ्रैंकों का निवास स्थल था। इसलिए फ्रैंको के घाट के रूप में इनकी विरासत के कारण शहर का नाम पड़ा.

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फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन

फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन (Palestine Liberation Organization (PLO); अरबी: منظمة التحرير الفلسطينية‎; Munaẓẓamat at-Taḥrīr al-Filasṭīniyyah) स्वतन्त्र फिलिस्तीन राज्य स्थापित करने के उद्देश्य से सन् 1964 में गठत एक संगठन है। १०० से अधिक राष्ट्रों ने इसे फिलिस्तीनी लोगों का एकमात्र वैधानिक प्रतिनिधि स्वीकार किया है। यह १९७४ से संयुक्त राष्ट्र संघ में प्रेक्षक के रूप में मान्य है। १९९१ में हुए मैड्रिड सम्मेलन के पहले इजराइल और संयुक्त राज्य अमेरिका इसे एक आतंकवादी संगठन मानते थे। .

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फोर्ट विलियम कॉलेज

फोर्ट विलियम कॉलेज (Fort William College) कोलकाता में स्थित प्राच्य विद्याओं एवं भाषाओं के अध्ययन का केन्द्र है। इसकी स्थापना १० जुलाई सन् १८०० को तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड वेलेजली ने की थी। इस संस्था द्वारा संस्कृत, अरबी, फारसी, बंगला, हिन्दी, उर्दू आदि के हजारों पुस्तकों का अनुवाद हुआ। कुछ लोगों ने इस संस्थान को भारत में भाषा के आधार पर भारत के लोगों को बांटने का खेल खेलने का अड्डा माना है। फोर्ट विलियम कॉलेज भारत में आने वाले नए ब्रिटिश युवकों को भारत की ज्ञान मीमांशा, व्याकरण, संस्कृति, ज्ञान, धार्मिक एवं प्रशासनिक ज्ञान से परिचित करवाने का एक बड़ा केंद्र था। इस कॉलेज ने हिन्दी साहित्य, ब्रजभाषा साहित्य, संस्कृत साहित्य के उन्नयन की आधार भूमि तैयार की। फोर्ट विलियम कॉलेज में हिन्दुस्तानी भाषा जाँन बोर्थ्विक गिलक्रिस्ट (1759 - 1841) के निर्देशन में सुचारू रूप से चला। वह उर्दू, अरबिक एवं संस्कृत का भी विद्वान था। उसने कई महत्त्वपूर्ण पुस्तकें लिखीं जैसे इंगलिश-हिन्दुस्तानी डिक्सनरी, हिन्दुस्तानी ग्रैमर, दि ओरिएंटल लिंग्विस्ट नामक दो ग्रन्थ उसने क्रमशः 1796 और 1798 में प्रकाशित करवाया। श्रेणी:कोलकाता श्रेणी:हिन्दी साहित्य का इतिहास श्रेणी:भारत के महाविद्यालय श्रेणी:कोलकाता के कॉलेज श्रेणी:भारत के कॉलेज श्रेणी:एशिया के कॉलेज.

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बलोच भाषा और साहित्य

बलोची या बलोच भाषा दक्षिण-पश्चिमी पाकिस्तान, पूर्वी ईरान और दक्षिणी अफ़्ग़ानिस्तान में बसने वाले बलोच लोगों की भाषा है। यह ईरानी भाषा परिवार की सदस्य है और इसमें प्राचीन अवस्ताई भाषा की झलक नज़र आती है, जो स्वयं वैदिक संस्कृत के बहुत करीब मानी जाती है। उत्तरपश्चिम ईरान, पूर्वी तुर्की और उत्तर इराक़ में बोले जानी कुर्दी भाषा से भी बलोची भाषा की कुछ समानताएँ हैं। बलोची पाकिस्तान की नौ सरकारी भाषाओँ में से एक है। अनुमानतः इसे पूरे विश्व में लगभग ८० लाख लोग मातृभाषा के रूप में बोलते हैं। पाकिस्तान में इसे अधिकतर बलोचिस्तान प्रान्त में बोला जाता है, लेकिन कुछ सिंध और पंजाब में बसे हुए बलोच लोग भी इसे उन प्रान्तों में बोलते हैं। ईरान में इसे अधिकतर सिस्तान व बलुचेस्तान प्रान्त में बोला जाता है। ओमान में बसे हुए बहुत से बलोच लोग भी इसे बोलते हैं। समय के साथ बलोची पर बहुत सी अन्य भाषाओँ का भी प्रभाव पड़ा है, जैसे की हिन्दी-उर्दू और अरबी। पाकिस्तान में बलोची की दो प्रमुख शाखाएँ हैं: मकरानी (जो बलोचिस्तान से दक्षिणी अरब सागर के तटीय इलाक़ों में बोली जाती है) और सुलेमानी (जो मध्य और उत्तरी बलोचिस्तान के सुलेमान श्रृंखला के पहाड़ी इलाक़ों में बोली जाती है)। ईरान के बलुचेस्तान व सिस्तान सूबे में भी इसकी दो उपशाखाएँ हैं: दक्षिण में बोले जानी वाली मकरानी (जो पाकिस्तान के बलोचिस्तान की मकरानी से मिलती है) और उत्तर में बोले जानी वाली रख़शानी। .

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बांग्ला शब्दभण्डार

बांग्ला भाषा का शब्दभण्डार का मूल एवं आदि उत्स पालि एवं प्राकृत भाषाएँ हैं। बाद में बांग्ला भाषा में संस्कृत, फारसी, अरबी एवं विभिन्न भाषाओं से शब्द लिए गये। .

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बज्जिका

बज्जिका मैथिली भाषा की उपभाषा है, जो कि बिहार के तिरहुत प्रमंडल में बोली जाती है। इसे अभी तक भाषा का दर्जा नहीं मिला है, मुख्य रूप से यह बोली ही है| भारत में २००१ की जनगणना के अनुसार इन जिलों के लगभग १ करोड़ १५ लाख लोग बज्जिका बोलते हैं। नेपाल के रौतहट एवं सर्लाही जिला एवं उसके आस-पास के तराई क्षेत्रों में बसने वाले लोग भी बज्जिका बोलते हैं। वर्ष २००१ के जनगणना के अनुसार नेपाल में २,३८,००० लोग बज्जिका बोलते हैं। उत्तर बिहार में बोली जाने वाली दो अन्य भाषाएँ भोजपुरी एवं मैथिली के बीच के क्षेत्रों में बज्जिका सेतु रूप में बोली जाती है। .

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बज्जिका शब्दावली

बज्जिका के मानक शब्दकोश का अच्छा विकास नहीं हुआ है। कुछ वर्ष पूर्व लेखक सुरेन्द्र मोहन प्रसाद द्वारा संपादित तथा अखिल भारतीय बज्जिका साहित्य सम्मेलन, मुजफ्फरपुर द्वारा सन २००० में प्रकाशित बज्जिका - हिन्दी शब्दकोष उपलब्ध है। बज्जिका की शब्दावली को मुख्यतः तीन वर्गों में रखा जा सकता है- तद्भव शब्द-- ये वैसे शब्द हैं जिनका जन्म संस्कृत या प्राकृत में हुआ था, लेकिन उनमें काफ़ी बदलाव आया है। जैसे- भतार (भर्तार से), चिक्कन (चिक्कण से), आग (अग्नि से), दूध (दुग्ध से), दाँत (दंत से), मुँह (मुखम से)। तत्सम शब्द (संस्कृत से बिना कोई रूप बदले आनेवाले शब्द) का बज्जिका में प्रायः अभाव है। हिंदी और बज्जिका की सीमा रेखा चूँकि क्षीण है इसलिए हिंदी में प्रयुक्त होनेवाले तत्सम शब्द का प्रयोग बज्जिका में भी देखा जा सकता है। देशज शब्द--बज्जिका में प्रयुक्त होने वाले देशज शब्द लुप्तप्राय हैं। इसके सबसे अधिक उपयोगकर्ता गाँव में रहने वाले निरक्षर या किसान हैं। देशज का अर्थ है - जो देश में ही जन्मा हो। जो न तो विदेशी है और न किसी दूसरी भाषा के शब्द से बना हो। ऐसा शब्द जो स्थानीय लोगों ने बोल-चाल में यों ही बना लिया गया हो। बज्जिका में ऐसे शब्दों को देशज के बजाय "मूल शब्द" भी कहा जा सकता है, जैसे- पन्नी (पॉलिथीन), फटफटिया (मोटर सायकिल), घुच्ची (छेद) आदि। विदेशज शब्द हिन्दी के समान बज्जिका में भी कई शब्द अरबी, फ़ारसी, तुर्की, अंग्रेज़ी आदि भाषा से भी आये हैं, इन्हें विदेशज शब्द कह सकते हैं। वास्तव में बज्जिका में प्रयोग होने वाले विदेशज शब्द का तद्भव रूप ही प्रचलित है, जैसे-कौलेज, लफुआ (लोफर), टीशन (स्टेशन), गुलकोंच (ग्लूकोज़), सुर्खुरू (चमकते चेहरे वाला) आदि। हिन्दी के समान बज्जिका को भी देवनागरी लिपि में लिखा जाता है। पहले इसे कैथी लिपि में भी लिखा जाता था। शब्दावली के स्तर पर अधिकांशत: हिंदी तथा उर्दू के शब्दों का प्रयोग होता है। फिर भी इसमें ऐसे शब्दों का इस्तेमाल प्रचलित है जिसका हिंदी में सामान्य प्रयोग नहीं होता। कुछ शब्दों की बानगी देखिए: संज्ञाएँ जैसे- सोंटा (डंडा), छेंहुकी (पतला छड़ी), चट्टी (चप्पल), कचकाड़ा (प्लास्टिक), चिमचिमी (पोलिथिन बैग), खटिया, ढ़िबरी (तेलवाली बत्ती), चुनौटी (तम्बाकूदान), बेंग (मेंढ़क), गमछा, इनार (कुँआ), अमदूर (अमरूद), सिंघारा (समोसा), चमेटा (थप्पड़), कपाड़ (सिर), नरेट्टी (गरदन), ठोड़ (होंठ), गाछी (पेड़), डांड़ (डाल या तना), सोंड़ (मूल जड़), भन्साघर (रसोई घर), आदि। विशेषण जैसे- लिच्चर (कंजूस एवं कपटी स्वभाव वाला), ख़चड़ा या खच्चड़ (बदमाश), ढ़हलेल (बेवकूफ), लतखोर (बार-बार गलती करने वाला), बकलेल (बेवकूफ), बुड़बक (निरा बेवकूफ), भितरघुन्ना (कम बोलने और ज्यादा सोचने वाला), साँवर (साँवला), गोर (गौरवर्ण), लफुआ (लोफर), पतरसुक्खा (दुबला-पतला आदमी), चमड़चिट्ट (पीछा न छोडनेवाला), थेथड़ (बार-बार गलती करने वाला), गोरकी (गोरी लड़की), पतरकी (दुबली लड़की) आदि। क्रियाएँ जैसे- अकबकाना (चौंकना), टरकाना (टालमटोल), कीनना (ख़रीदना), खिसियाना (गुस्सा करना), हँसोथना (जल्दी समेटना), भमोर लेना (मुँह से काट लेना), बकोटना (नाखून से नोंचना), लबड़-लबड़ (जल्दी जल्दी बात बनाना), ढ़ूंकना (प्रवेश करना), खिसियाना (गुस्सा करना), भुतलाना (खो जाना), बीगना (फेंकना), गोंतना (पानी में डुबाना), धड़फड़ाना (जल्दी के चक्कर में गिर जाना), मेहराना (नम होना), सरियाना (सँवारना), चपोड़ना (रोटी में घी उड़ेलना), सुतल (सोया हुआ), देखलिअई (देखा), बजाड़ना (पटकना), टटाना (दर्द करना), तीतना (भींग जाना), बियाना (पैदा होना), पोसना (लालन-पालन करना) आदि। संबंधवाचक शब्द: भतार (पति), जनानी (औरत/पत्नी), मेहरारू (बीवी), मरद (आदमी/ पति), मौगी (पराई औरत), धिया (बेटी), जईधी (बड़ी बहन की बेटी), कनियां (बहू/ नई दुल्हन), पुतोह (पतोहू), गोतनी (पति के भाई की पत्नी), देओर-भौजाई (देवर एवं भाभी), भाभो (भावज), भैंसुर (पति का बड़ा भाई), लौंडा (सयाना लड़का/समलीगिक), छौंड़ा एवं छौड़ी (लड़का एवं लड़की), आदि। खान-पान संबंधी शब्द: मिट्ठा (गुड़), नून (नमक), बूँट (चना), भात (चावल), सतुआ, मुड़ई (मूली), अलुआ (एक प्रकार का कंद), ऊंक्खी (ईख), रमतोरई (भिंडी), कोंहरा, झिंगुनी, कचड़ी (एक नमकीन), ठेकुआ (एक प्रकार का मीठा पकवान), पुरुकिया (गुझिया), कसार (चावल एवं चीनी से बना मिष्टान्न), गरी (नारियल का कोपरा), तरकारी (सब्जी), छुच्छा (बिना सब्जी के), जूठा, निरैठा (जो खाया नहीं गया हो), अज्जू (कच्चा फल), जुआईल (पका फल), चोखा (आग में पकाकर बनाई गई सब्जी), भरता (भुर्ता) आदि। कृषि-कार्य संबंधी शब्द: धूर, लग्गी, कट्ठा, बीघा (जमीन की पैमाईश के लिए बनी इकाई), सिराउर (हल जोतने के समय बनने वाली धारियाँ, सीता), क्यारी (जमीन का छोटा टुकड़ा), कदवा (धान के लिए खेत की तैयारी), बिच्चा (बिचड़ा), बाव (हल की सहायता से अनाज बोना), छिट्टा (छीटकर अनाज बोना), पटवन (सिंचाई), केरौनी (फसल से घास आदि निकालना), कटनी (फसल की कटाई), दौनी (तैयार फसल से अन्न निकालना), हर (हल), फार (फाल), पालो, जुआ, हेंगा (जमीन समतल करने के लिए), पैना (पतला डंडा), जाबी (जानवरों के मुँह बाँधने हेतु बनायी गयी जाली), जोर (जानवरों को बाँधने हेतु प्रयुक्त रस्सी), खूँटा, कुट्टी (महीन चारा), दर्रा या धोईन (जानवरों को दियाजाने वाला अन्नयुक्त पतला आहार), खरी (खल्ली), चुन्नी (अनाज का छिलका), गाछ या गाछी (पेड़), सोंड़ (मूल जड़), डांड़ (तना), बीया (बीज) आदि। कुछ अन्य शब्द जैसे- भिन्सारा (सुबह), अन्हार (अंधेरा), इंजोर (प्रकाश), ओसारा (बरामदा), अनठेकानी (बिना अनुमान के), तनीयक (थोड़ा), निम्मन (अच्छा/स्वादिष्ट), अउँघी (नींद), बहिर (बधिर), भकचोंधर, अखनिए (अभी), तखनिए (तभी), माथा (दिमाग), फैट (मुक्का), लूड़् (कला), गोईंठा, डेकची, फटफटिया (मोटरसायकिल), नूआ (साड़ी), अक्खटल (नहीं मानने योग्य), भुईयां (जमीन), गोर (पैर) आदि। गिनती/ संख्यावाचक/ मात्रात्मक शब्द एक, दू, तीन, चार, पाँच, छौ, सात, आठ, नौ, दस आदि। अंजुरी (हाथ के दोने में समाने लायक), सेर (लगभग ९०० ग्राम), पसेरी (५ सेर), मन (४० सेर), कट्टा (लगभग २५ सेर), कुंटल (क्विंटल, १०० किलो), बित्ता (अंगूठे से कनिष्ठा के छोड़ तक), डेग (पग भर), कोस (लगभग डेढ किलोमीटर की दूरी) आदि। श्रेणी:हिन्दी की उपभाषाएँ.

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ब्रिटिश काल में भारत की अर्थव्यवस्था

१८९० में मुम्बई के कल्बादेवी रोड का एक दृष्य १९०९ में भारतीय रेलवे का मानचित्र १९४५ में हुगली का दृष्य बहुत प्राचीन काल से भारतवर्ष का विदेशों से व्यापार हुआ करता था। यह व्यापार स्थल मार्ग और जल मार्ग दोनों से होता था। इन मार्गों पर एकाधिकार प्राप्त करने के लिए विविध राष्ट्रों में समय-समय पर संघर्ष हुआ करता था। जब इस्लाम का उदय हुआ और अरब, फारस मिस्र और मध्य एशिया के विविध देशों में इस्लाम का प्रसार हुआ, तब धीरे-धीरे इन मार्गों पर मुसलमानों का अधिकार हो गया और भारत का व्यापार अरब निवासियों के हाथ में चला गया। अफ्रीका के पूर्वी किनारे से लेकर चीन समुद्र तक समुद्र तट पर अरब व्यापारियों की कोठियां स्थापित हो गईं। यूरोप में भारत का जो माल जाता था वह इटली के दो नगर जिनोआ और वेनिस से जाता था। ये नगर भारतीय व्यापार से मालामाल हो गए। वे भारत का माल कुस्तुन्तुनिया की मंडी में खरीदते थे। इन नगरों की धन समृद्धि को देखकर यूरोप के अन्य राष्ट्रों को भारतीय व्यापार से लाभ उठाने की प्रबल इच्छा उत्पन्न इस इच्छा की पूर्ति में सफल न हो सके। बहुत प्राचीन काल से यूरोप के लोगों का अनुमान था कि अफ्रीका होकर भारतवर्ष तक समुद्र द्वारा पहुंचने का कोई न कोई मार्ग अवश्य है। चौदहवीं शताब्दी में यूरोप में एक नए युग का प्रारंभ हुआ। नए-नए भौगोलिक प्रदेशों की खोज आरंभ हुई। कोलम्बस ने सन् 1492 ईस्वी में अमेरिका का पता लगाया और यह प्रमाणित कर दिया कि अटलांटिक के उस पार भी भूमि है। पुर्तगाल की ओर से बहुत दिनों से भारतवर्ष के आने के मार्ग का पता लगाया जा रहा था। अंत में, अनेक वर्षों के प्रयास के अनंतर सन् 1498 ई. में वास्कोडिगामा शुभाशा अंतरीप (cape of good hope) को पार कर अफ्रीका के पूर्वी किनारे पर आया; और वहाँ से एक गुजराती नियामक को लेकर मालाबार में कालीकट पहुंचा। पुर्तगालवासियों ने धीरे-धीरे पूर्वी व्यापार को अरब के व्यापारियों से छीन लिया। इस व्यापार से पुर्तगाल की बहुत श्री-वृद्धि हुई। देखा -देखी, डच अंग्रेज और फ्रांसीसियों ने भी भारत से व्यापार करना शुरू किया। इन विदेशी व्यापारियों में भारत के लिए आपस में प्रतिद्वंद्विता चलती थी और इनमें से हर एक का यह इरादा था कि दूसरों को हटाकर अपना अक्षुण्य अधिकार स्थापित करें। व्यापार की रक्षा तथा वृद्धि के लिए इनको यह आवश्यक प्रतीत हुआ कि अपनी राजनीतिक सत्ता कायम करें। यह संघर्ष बहुत दिनों तक चलता रहा और अंग्रेजों ने अपने प्रतिद्वंद्वियों पर विजय प्राप्त की और सन् 1763 के बाद से उनका कोई प्रबल प्रतिद्वंदी नहीं रह गया। इस बीच में अंग्रेजों ने कुछ प्रदेश भी हस्तगत कर लिए थे और बंगाल, बिहार उड़ीसा और कर्नाटक में जो नवाब राज्य करते थे वे अंग्रेजों के हाथ की कठपुतली थे। उन पर यह बात अच्छी तरह जाहिर हो गई थी कि अंग्रेजों ने कुछ प्रदेश भी हस्तगत कर लिए थे और बंगाल, बिहार उड़ीसा और कर्नाटक में जो नवाब राज्य करते थे वे अंग्रेजों के हाथ की कठपुतली थे। उन पर यह बात अच्छी तरह जाहिर हो गई थी कि अंग्रेजों का विरोध करने से पदच्युत कर दिए जाएंगे। यह विदेशी व्यापारी भारत से मसाला, मोती, जवाहरात, हाथी दांत की बनी चीजें, ढाके की मलमल और आबेरवां, मुर्शीदाबाद का रेशम, लखनऊ की छींट, अहमदाबाद के दुपट्टे, नील आदि पदार्थ ले जाया करते थे और वहां से शीशे का सामान, मखमल साटन और लोहे के औजार भारतवर्ष में बेचने के लिए लाते थे। हमें इस ऐतिहासिक तथ्य को नहीं भूलना चाहिए कि भारत में ब्रिटिश सत्ता का आरंभ एक व्यापारिक कंपनी की स्थापना से हुआ। अंग्रेजों की राजनीतिक महत्वाकांक्षा तथा चेष्टा भी इसी व्यापार की रक्षा और वृद्धि के लिए हुई थी। उन्नीसवीं शताब्दी के पहले इंग्लैंड का भारत पर बहुत कम अधिकार था और पश्चिमी सभ्यता तथा संस्थाओं का प्रभाव यहां नहीं के बराबर था। सन् 1750 से पूर्व इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति भी नहीं आरंभ हुई थी। उसके पहले भारत वर्ष की तरह इंग्लैंड भी एक कृषिप्रधान देश था। उस समय इंग्लैंड को आज की तरह अपने माल के लिए विदेशों में बाजार की खोज नहीं करनी पड़ती थी। उस समय गमनागमन की सुविधाएं न होने के कारण सिर्फ हल्की-हल्की चीजें ही बाहर भेजी जा सकती थीं। भारतवर्ष से जो व्यापार उस समय विदेशों से होता था, उससे भारत को कोई आर्थिक क्षति भी नहीं थी। सन् 1765 में जब ईस्ट इंडिया कंपनी को मुगल बादशाह शाह आलम से बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी प्राप्त हुई, तब से वह इन प्रांतों में जमीन का बंदोबस्त और मालगुजारी वसूल करने लगी। इस प्रकार सबसे पहले अंग्रेजों ने यहां की मालगुजारी की प्रथा में हेर-फेर किया। इसको उस समय पत्र व्यवहार की भाषा फारसी थी। कंपनी के नौकर देशी राजाओं से फारसी में ही पत्र व्यवहार करते थे। फौजदारी अदालतों में काजी और मौलवी मुसलमानी कानून के अनुसार अपने निर्णय देते थे। दीवानी की अदालतों में धर्म शास्त्र और शहर अनुसार पंडितों और मौलवियों की सलाह से अंग्रेज कलेक्टर मुकदमों का फैसला करते थे। जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने शिक्षा पर कुछ व्यय करने का निश्चय किया, तो उनका पहला निर्णय अरबी, फारसी और संस्कृत शिक्षा के पक्ष में ही हुआ। बनारस में संस्कृत कालेज और कलकत्ते में कलकत्ता मदरसा की स्थापना की गई। पंडितों और मौलवियों को पुरस्कार देकर प्राचीन पुस्तकों के मुद्रित कराने और नवीन पुस्तकों के लिखने का आयोजन किया गया। उस समय ईसाइयों को कंपनी के राज में अपने धर्म के प्रचार करने किया गया। उस समय ईसाइयों को कंपनी के राज में अपने धर्म के प्रचार करने की स्वतंत्रता नहीं प्राप्त थी। बिना कंपनी से लाइसेंस प्राप्त किए कोई अंग्रेज न भारतवर्ष में आकर बस सकता था और न जायदाद खरीद सकता था। कंपनी के अफसरों का कहना था कि यदि यहां अंग्रेजों को बसने की आम इजाजत दे दी जाएगी तो उससे विद्रोह की आशंका है; क्योंकि विदेशियों के भारतीय धर्म और रस्म-रिवाज से भली -भांति परिचित न होने के कारण इस बात का बहुत भय है कि वे भारतीयों के भावों का उचित आदर न करेंगे। देशकी पुरानी प्रथा के अनुसार कंपनी अपने राज्य के हिंदू और मुसलमान धर्म स्थानों का प्रबंध और निरीक्षण करती थी। मंदिर, मस्जिद, इमामबाड़े और खानकाह के आय-व्यय का हिसाब रखना, इमारतों की मरम्मत कराना और पूजा का प्रबंध, यह सब कंपनी के जिम्मे था। अठारहवीं शताब्दी के अंत से इंग्लैंड के पादरियों ने इस व्यवस्था का विरोध करना शुरू किया। उनका कहना था कि ईसाई होने के नाते कंपनी विधर्मियों के धर्म स्थानों का प्रबंध अपने हाथ में नहीं ले सकती। वे इस बात की भी कोशिश कर रहे थे कि ईसाई धर्म के प्रचार में कंपनी की ओर से कोई बाधा नहीं होनी चाहिए। उस समय देशी ईसाइयों की अवस्था बहुत शोचनीय थी। यदि कोई हिंदू या मुसलमान ईसाई हो जाता था तो उसका अपनी जायदाद और बीवी एवं बच्चों पर कोई हक नहीं रह जाता था। मद्रास के अहाते में देशी ईसाइयों को बड़ी-बड़ी नौकरियां नहीं मिल सकती थीं। इनको भी हिंदुओं के धार्मिक कृत्यों के लिए टैक्स देना पड़ता था। जगन्नाथ जी का रथ खींचने के लिए रथ यात्रा के अवसर पर जो लोग बेगार में पकड़े जाते थे उनमें कभी-कभी ईसाई भी होते थे। यदि वे इस बेगार से इनकार करते थे तो उनको बेंत लगाए जाते थे। इंग्लैंड के पादरियों का कहना था कि ईसाइयों को उनके धार्मिक विश्वास के प्रतिकूल किसी काम के करने के लिए विवश नहीं करना चाहिए और यदि उनके साथ कोई रियायत नहीं की जा सकती तो कम से कम उनके साथ वहीं व्यवहार होना चाहिए जो अन्य धर्माबलंबियों के साथ होता है। धीरे-धीरे इस दल का प्रभाव बढ़ने लगा और अंत में ईसाई पादरियों की मांग को बहुत कुछ अंश में पूरा करना पड़ा। उसके फलस्वरूप अपनी जायदाद से हाथ नहीं धोना पड़ेगा। ईसाइयों को धर्म प्रचार की भी स्वतंत्रता मिल गई। अब राज दरबार की भाषा अंग्रेजी हो गई और अंग्रेजी शिक्षा को प्रोत्साहन देने का निश्चय हुआ। धर्म-शास्त्र और शरह का अंग्रेजी में अनुवाद किया गया और एक ‘ला कमीश’ नियुक्त कर एक नया दंड़ विधान और अन्य नए कानून तैयार किए गए। सन् 1853 ई. में धर्म स्थानों का प्रबंध स्थानीय समितियां बनाकर उनके सुपुर्द कर दिया गया। सन् 1854 में अदालतों में जो थोड़े बहुत पंडित और मौलवी बच गए थे वे भी हटा दिए गए। इस प्रकार देश की पुरानी संस्थाएं नष्ट हो गईं और हिंदू और मुसलमानों की यह धारणा होने लगी कि अंग्रेज उन्हें ईसाई बनाना चाहते हैं। इन्हीं परिवर्तनों का और डलहौजी की हड़पने की नीति का यह फल हुआ कि सन् 1857 में एक बड़ी क्रांति हुई जिसे सिपाही विद्रोह कहते हैं। सन् 1857 के पहले ही यूरोप में औद्योगिक क्रांति हो चुकी थी। इस क्रांति में इंग्लैंड सबका अगुआ था; क्योंकि उसको बहुत-सी ऐसी सुविधाएं थीं जो अन्य देशों को प्राप्त नहीं थी। इंग्लैंड ने ही वाष्प यंत्र का आविष्कार किया। भारत के व्यापार से इंग्लैंड की पूंजी बहुत बढ़ गई थी। उसके पास लोहे और कोयले की इफरात थी। कुशल कारीगरों की भी कमी न थी। इस नानाविध कारणों से इंग्लैंड इस क्रांति में अग्रणी बना। इंग्लैंड के उत्तरी हिस्से में जहां लोहा तथा कोयला निकलता था वहां कल कारखाने स्थापित होने लगे। कारखानों के पास शहर बसने लगे। इंग्लैंड के घरेलू उद्योग-धंधे नष्ट हो गए। मशीनों से बड़े पैमाने पर माल तैयार होने लगा। इस माल की खपत यूरोप के अन्य देशों में होने लगी। देखा-देखी यूरोप के अन्य देशों में भी मशीन के युग का आरंभ हुआ। ज्यों-ज्यों यूरोप के अन्य देशों में नई प्रथा के अनुसार उद्योग व्यवसाय की वृद्धि होने लगी, त्यों-त्यों इंग्लैंड को अपने माल के लिए यूरोप के बाहर बाजार तलाश करने की आवश्यकता प्रतीत होने लगी। भारतवर्ष इंग्लैंड के अधीन था, इसलिए राजनीतिक शक्ति के सहारे भारतवर्ष को सुगमता के साथ अंग्रेजी माल का एक अच्छा-खासा बाजार बना दिया गया। अंग्रेजी शिक्षा के कारण धीरे-धीरे लोगों की अभिरुचि बदल रही थी। यूरोपीय वेशभूषा और यूरोपीय रहन-सहन अंग्रेजी शिक्षित वर्ग को प्रलोभित करने लगा। भारत एक सभ्य देश था, इसलिए यहां अंग्रेजी माल की खपत में वह कठिनाई नहीं प्रतीत हुई जो अफ्रीका के असभ्य या अर्द्धसभ्य प्रदेशों में अनुभूत हुई थी। सबसे पहले इस नवीन नीति का प्रभाव भारत के वस्त्र व्यापार पर पड़ा। मशीन से तैयार किए हुए माल का मुकाबला करना करघों पर तैयार किए हुए माल के लिए असंभव था। धीरे-धीरे भारत की विविध कलाएं और उद्योग नष्ट होने लगे। भारत के भीतरी प्रदेशों में दूर-दूर माल पहुंचाने के लिए जगह-जगह रेल की सड़कें निकाली गईं। भारत के प्रधान बंदरगाह कलकत्ता, बंबई और मद्रास भारत के बड़े-बड़े नगरों से संबद्ध कर दिए गए विदेशी व्यापार की सुविधा की दृष्टि से डलहौजी के समय में पहली रेल की सड़कें बनी थीं। इंगलैंड को भारत के कच्चे माल की आवश्यकता थी। जो कच्चा माल इन बंदरगाहों को रवाना किया जाता था, उस पर रेल का महसूल रियायती था। आंतरिक व्यापार की वृद्धि की सर्वथा उपेक्षा की जाती थी। इस नीति के अनुसार इंग्लैंड को यह अभीष्ट न था कि नए-नए आविष्कारों से लाभ उठाकर भारतवर्ष के उद्योग व्यवसाय का नवीन पद्धति से पुनः संगठन किया जाए। वह भारत को कृषि प्रधान देश ही बनाए रखना चाहता था, जिसमें भारत से उसे हर तरह का कच्चा माल मिले और उसका तैयार किया माल भारत खरीदे। जब कभी भारतीय सरकार ने देशी व्यवसाय को प्रोत्साहन देने का निश्चय किया, तब तब इंग्लैंड की सरकार ने उसके इस निश्चय का विरोध किया और उसको हर प्रकार से निरुत्साहित किया। जब भारत में कपड़े की मिलें खुलने लगीं और भारतीय सरकार को इंग्लैंड से आनेवाले कपड़े पर चुंगी लगाने की आवश्यकता हुई, तब इस चुंगी का लंकाशायर ने घोर विरोध किया और जब उन्होंने यह देखा कि हमारी वह बात मानी न जाएगी तो उन्होंने भारत सरकार को इस बात पर विवश किया कि भारतीय मिल में तैयार हुए कपड़े पर भी चुंगी लगाई जाए, जिसमें देशी मिलों के लिए प्रतिस्पर्द्धा करना संभव न हो। पब्लिक वर्क्स विभाग खोलकर बहुत-सी सड़के भी बनाई गईं जिसका फल यह हुआ कि विदेशी माल छोटे-छोटे कस्बों तथा गांवों के बाजारों में भी पहुंचने लगा। रेल और सड़कों के निर्माण से भारत के कच्चे माल के निर्यात में वृद्धि हो गई और चीजों की कीमत में जो अंतर पाया जाता था। वह कम होने लगा। खेती पर भी इसका प्रभाव पड़ा और लोग ज्यादातर ऐसी ही फसल बोने लगे जिनका विदेश में निर्यात था। यूरोपीय व्यापारी हिंदुस्तानी मजदूरों की सहायता से हिंदुस्तान में चाय, कहवा, जूट और नील की काश्त करने लगे। बीसवीं शताब्दी के पाँचवे दशक में भारतवर्ष में अग्रेजों की बहुत बड़ी पूँजी लगी हुई थी। पिछले पचास-साठ वर्षों में इस पूँजी में बहुत तेजी के साथ वृद्धि हुई। 634 विदेशी कंपनियां भारत में इस समय कारोबार कर रही थीं। इनकी वसूल हुई पूंजी लगभग साढ़े सात खरब रुपया थी और 5194 कंपनियां ऐसी थीं जिनकी रजिस्ट्री भारत में हुई थी और जिनकी पूंजी 3 खरब रुपया थी। इनमें से अधिकतर अंग्रेजी कंपनियां थीं। इंग्लैंड से जो विदेशों को जाता था उसका दशमांश प्रतिवर्ष भारत में आता था। वस्त्र और लोहे के व्यवसाय ही इंग्लैंड के प्रधान व्यवसाय थे और ब्रिटिश राजनीति में इनका प्रभाव सबसे अधिक था। भारत पर इंग्लैंड का अधिकार बनाए रखने में इन व्यवसायों का सबसे बड़ा स्वार्थ था; क्योंकि जो माल ये बाहर रवाना करते थे उसके लगभग पंचमांश की खपत भारतवर्ष में होती थी। भारत का जो माल विलायत जाता था उसकी कीमत भी कुछ कम नहीं थी। इंग्लैंड प्रतिवर्ष चाय, जूट, रुई, तिलहन, ऊन और चमड़ा भारत से खरीदता था। यदि केवल चाय का विचार किया जाए तो 36 करोड़ रुपया होगा। इन बातों पर विचार करने से यह स्पष्ट है कि ज्यों-ज्यों इंग्लैंड का भारत में आर्थिक लाभ बढ़ता गया त्यों-त्यों उसका राजनीतिक स्वार्थ भी बढ़ता गया। .

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बेनगाज़ी

बेनगाज़ी या बेंगाज़ी (अरबी: بنغازي बंगाज़ी) लीबिया का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला शहर और सिरेनेइका क्षेत्र में सबसे बड़ा शहर है। लिबिया में भूमध्य सागर पर स्थित बंदरगाह के रूप में बेनगाज़ी, त्रिपोली के साथ संयुक्त रूप से राजधानी के है, जोकि संभवतः राजा और सेनुसी शाही परिवार के त्रिपोलिटानिया की बजाय साइरेनिका से जुड़े होने के कारण था। यह शहर राष्ट्रीय संक्रमणकालीन परिषद की अस्थायी राजधानी भी थी। बेनगाज़ी में आमतौर पर राष्ट्रीय राजधानी शहर में होने वाले संगठन, जैसे कि देश की संसद, राष्ट्रीय पुस्तकालय, और लीबिया एयरलाइंस के मुख्यालय, राष्ट्रीय एयरलाइन और नेशनल ऑयल कॉर्पोरेशन आदि संस्थान स्थित है। जिसके कारण बेनगाज़ी और त्रिपोली और साइरेनाका और ट्रिपोलिटानिया के बीच प्रतिद्वंद्विता और संवेदनशीलता का निरंतर वातावरण बना रहता है। 2006 की जनगणना के अनुसार यहाँ की जनसंख्या 670,797 थी।.

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बीबीसी वर्ल्ड सर्विस

बीबीसी वर्ल्ड सर्विस दुनिया का सबसे बड़ा अंतरराष्ट्रीय प्रसारक है,जो सादृश और अंकीय लघु तरंगों (एनालॉग एंड डिजिटल शार्टवेव), इंटरनेट स्ट्रीमिंग और पॉडकास्टिंग, उपग्रह, एफएम और एमडब्ल्यू प्रसारणों के जरिये दुनिया के कई हिस्सों में 32 भाषाओं में प्रसारण करता है। यह राजनीतिक रूप से स्वतंत्र, (बीबीसी के घोषणपत्र में उल्लिखित विषयों का ब्यौरा उपलब्ध कराने के समझौते के आदेश द्वारा) गैर-लाभकारी और वाणिज्यिक विज्ञापनों से मुक्त है। अंग्रेजी भाषा की सेवा हर दिन 24 घंटे प्रसारित होती है। जून 2009 में बीबीसी की रिपोर्ट है कि विश्व सेवा के साप्ताहिक श्रोताओं का औसत 188 मिलियन लोगों तक पहुंच गया। वर्ल्ड सर्विस के लिए ब्रिटिश सरकार विदेशी और राष्ट्रमंडल कार्यालय द्वारा अनुदान सहायता के माध्यम से वित्तपोषित करती है। 2014 से यह अनिवार्य बीबीसी लाइसेंस शुल्क से वित्तपोषित होगा, जो ब्रिटेन में टेलीविजन पर प्रसा‍रित कार्यक्रमों को देखने वाले हर घर पर लगाया जायेगा.

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बीसवीं शताब्दी

ग्रेगरी पंचांग (कलेंडर) के अनुसार ईसा की बीसवीं शताब्दी 1 जनवरी 1901 से 31 दिसम्बर 2000 तक मानी जाती है। कुछ इतिहासवेत्ता 1914 से 1992 तक को संक्षिप्त बीसवीं शती का नाम भी देते हैं। (उन्नीसवी शताब्दी - बीसवी शताब्दी - इक्कीसवी शताब्दी - और शताब्दियाँ) दशक: १९०० का दशक १९१० का दशक १९२० का दशक १९३० का दशक १९४० का दशक १९५० का दशक १९६० का दशक १९७० का दशक १९८० का दशक १९९० का दशक ---- समय के गुज़रने को रेकोर्ड करने के हिसाब से देखा जाये तो बीसवी शताब्दी वह शताब्दी थी जो १९०१ - २००० तक चली थी। मनुष्य जाति के जीवन का लगभग हर पहलू बीसवी शताब्दी में बदल गया।.

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बीजगणित

बीजगणित (संस्कृत ग्रन्थ) भी देखें। ---- आर्यभट बीजगणित (algebra) गणित की वह शाखा जिसमें संख्याओं के स्थान पर चिन्हों का प्रयोग किया जाता है। बीजगणित चर तथा अचर राशियों के समीकरण को हल करने तथा चर राशियों के मान निकालने पर आधारित है। बीजगणित के विकास के फलस्वरूप निर्देशांक ज्यामिति व कैलकुलस का विकास हुआ जिससे गणित की उपयोगिता बहुत बढ़ गयी। इससे विज्ञान और तकनीकी के विकास को गति मिली। महान गणितज्ञ भास्कराचार्य द्वितीय ने कहा है - अर्थात् मंदबुद्धि के लोग व्यक्ति गणित (अंकगणित) की सहायता से जो प्रश्न हल नहीं कर पाते हैं, वे प्रश्न अव्यक्त गणित (बीजगणित) की सहायता से हल कर सकते हैं। दूसरे शब्दों में, बीजगणित से अंकगणित की कठिन समस्याओं का हल सरल हो जाता है। बीजगणित से साधारणतः तात्पर्य उस विज्ञान से होता है, जिसमें संख्याओं को अक्षरों द्वारा निरूपित किया जाता है। परंतु संक्रिया चिह्न वही रहते हैं, जिनका प्रयोग अंकगणित में होता है। मान लें कि हमें लिखना है कि किसी आयत का क्षेत्रफल उसकी लंबाई तथा चौड़ाई के गुणनफल के समान होता है तो हम इस तथ्य को निमन प्रकार निरूपित करेंगे— बीजगणिति के आधुनिक संकेतवाद का विकास कुछ शताब्दी पूर्व ही प्रारंभ हुआ है; परंतु समीकरणों के साधन की समस्या बहुत पुरानी है। ईसा से 2000 वर्ष पूर्व लोग अटकल लगाकर समीकरणों को हल करते थे। ईसा से 300 वर्ष पूर्व तक हमारे पूर्वज समीकरणों को शब्दों में लिखने लगे थे और ज्यामिति विधि द्वारा उनके हल ज्ञात कर लेते थे। .

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भट्ट मथुरानाथ शास्त्री

कवि शिरोमणि भट्ट श्री मथुरानाथ शास्त्री कविशिरोमणि भट्ट मथुरानाथ शास्त्री (23 मार्च 1889 - 4 जून 1964) बीसवीं सदी पूर्वार्द्ध के प्रख्यात संस्कृत कवि, मूर्धन्य विद्वान, संस्कृत सौन्दर्यशास्त्र के प्रतिपादक और युगपुरुष थे। उनका जन्म 23 मार्च 1889 (विक्रम संवत 1946 की आषाढ़ कृष्ण सप्तमी) को आंध्र के कृष्णयजुर्वेद की तैत्तरीय शाखा अनुयायी वेल्लनाडु ब्राह्मण विद्वानों के प्रसिद्ध देवर्षि परिवार में हुआ, जिन्हें सवाई जयसिंह द्वितीय ने ‘गुलाबी नगर’ जयपुर शहर की स्थापना के समय यहीं बसने के लिए आमंत्रित किया था। आपके पिता का नाम देवर्षि द्वारकानाथ, माता का नाम जानकी देवी, अग्रज का नाम देवर्षि रमानाथ शास्त्री और पितामह का नाम देवर्षि लक्ष्मीनाथ था। श्रीकृष्ण भट्ट कविकलानिधि, द्वारकानाथ भट्ट, जगदीश भट्ट, वासुदेव भट्ट, मण्डन भट्ट आदि प्रकाण्ड विद्वानों की इसी वंश परम्परा में भट्ट मथुरानाथ शास्त्री ने अपने विपुल साहित्य सर्जन की आभा से संस्कृत जगत् को प्रकाशमान किया। हिन्दी में जिस तरह भारतेन्दु हरिश्चंद्र युग, जयशंकर प्रसाद युग और महावीर प्रसाद द्विवेदी युग हैं, आधुनिक संस्कृत साहित्य के विकास के भी तीन युग - अप्पा शास्त्री राशिवडेकर युग (1890-1930), भट्ट मथुरानाथ शास्त्री युग (1930-1960) और वेंकट राघवन युग (1960-1980) माने जाते हैं। उनके द्वारा प्रणीत साहित्य एवं रचनात्मक संस्कृत लेखन इतना विपुल है कि इसका समुचित आकलन भी नहीं हो पाया है। अनुमानतः यह एक लाख पृष्ठों से भी अधिक है। राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान, नई दिल्ली जैसे कई संस्थानों द्वारा उनके ग्रंथों का पुनः प्रकाशन किया गया है तथा कई अनुपलब्ध ग्रंथों का पुनर्मुद्रण भी हुआ है। भट्ट मथुरानाथ शास्त्री का देहावसान 75 वर्ष की आयु में हृदयाघात के कारण 4 जून 1964 को जयपुर में हुआ। .

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भारत में इस्लाम

भारतीय गणतंत्र में हिन्दू धर्म के बाद इस्लाम दूसरा सर्वाधिक प्रचलित धर्म है, जो देश की जनसंख्या का 14.2% है (2011 की जनगणना के अनुसार 17.2 करोड़)। भारत में इस्लाम का आगमन करीब 7वीं शताब्दी में अरब के व्यापारियों के आने से हुआ था (629 ईसवी सन्‌) और तब से यह भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत का एक अभिन्न अंग बन गया है। वर्षों से, सम्पूर्ण भारत में हिन्दू और मुस्लिम संस्कृतियों का एक अद्भुत मिलन होता आया है और भारत के आर्थिक उदय और सांस्कृतिक प्रभुत्व में मुसलमानों ने महती भूमिका निभाई है। हालांकि कुछ इतिहासकार ये दावा करते हैं कि मुसलमानों के शासनकाल में हिंदुओं पर क्रूरता किए गए। मंदिरों को तोड़ा गया। जबरन धर्मपरिवर्तन करा कर मुसलमान बनाया गया। ऐसा भी कहा जाता है कि एक मुसलमान शासक टीपू शुल्तान खुद ये दावा करता था कि उसने चार लाख हिंदुओं का धर्म परिवर्तन करवाया था। न्यूयॉर्क टाइम्स, प्रकाशित: 11 दिसम्बर 1992 विश्व में भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां सरकार हज यात्रा के लिए विमान के किराया में सब्सिडी देती थी और २००७ के अनुसार प्रति यात्री 47454 खर्च करती थी। हालांकि 2018 से रियायत हटा ली गयी है। .

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भारतीय संख्या प्रणाली

भारतीय संख्या प्रणाली भारतीय उपमहाद्वीप की परम्परागत गिनने की प्रणाली है जो भारत, पाकिस्तान, बंगलादेश और नेपाल में आम इस्तेमाल होती है। जहाँ पश्चिमी प्रणाली में दशमलव के तीन स्थानों पर समूह बनते हैं वहाँ भारतीय प्रणाली में दो स्थानों पर बनते हैं। .

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भारतीय ज्योतिषी

भारतीय ज्योतिषी से अभिप्राय उन ग्रंथकारों से है जिन्होंने अपने ग्रंथ, भारत में विकसित ज्योतिष प्रणाली के आधार पर लिखे। प्राचीन काल के ज्योतिषगणना संबंधी कुछ ग्रंथ ऐसे हैं, जिनके लेखकों ने अपने नाम नहीं दिए हैं। ऐसे ग्रंथ हैं वेदांग ज्योतिष (काल ई पू 1200); पंचसिद्धांतिका में वर्णित पाँच ज्योतिष सिद्धांत ग्रंथ। कुछ ऐसे भी ज्योतिष ग्रंथकार हुए हैं जिनके वाक्य अर्वाचीन ग्रंथों में उद्धृत हैं, किंतु उनके ग्रंथ नहीं मिलते। उनमें मुख्य हैं नारद, गर्ग, पराशर, लाट, विजयानंदि, श्रीषेण, विष्णुचंद आदि। अलबेरूनी के लेख के आधार पर लाट ने मूल सूर्यसिद्धांत के आधार पर इसी नाम के एक ग्रंथ की रचना की है। श्रीषेण के मूल वसिष्ठ सिद्धांत के आधार पर वसिष्ठ-सिद्धांत लिखा। ये सब ज्योतिषी ब्रह्मगुप्त (शक संवत् 520) से पूर्व हुए है। श्रीषेण आर्यभट के बाद तथा ब्रह्मगुप्त से पूर्व हुए हैं। प्रसिद्ध ज्योतिषियों का परिचय निम्नलिखित है:;आर्यभट प्रथम;वराहमिहिर;ब्रह्मगुप्त;मनु रचनाकाल: शक संवत् 800 के लगभग, ग्रंथ: बृहन्मानसकरण।;विटेश्वर रचनाकाल: शंक संवत् 821, ग्रंथ: करणसार।;बटेश्वर इन्होंने सिद्धांत बटेश्वर लिखा है, जिसे हाल ही में इंडियन इंस्टिट्यूट ऑव ऐस्ट्रोनॉमिकल ऐंड संस्कृत रिसर्च, नई दिल्ली, ने छपाया है। अलबेरुनी के पास इस ग्रंथ का एक अरबी अनुवाद था और उसने इसकी बहुत प्रंशसा की है। इसकी ज्याप्रणाली अन्य सिद्धांतों की ज्याप्रणाली से सूक्ष्म है। कुछ विद्वानों के अनुसार वित्तेश्वर और बटेश्वर एक ही व्यक्ति थे।;मुंजाल इनका रचनाकाल शक संवत् 854 है। इनका उपलब्ध ग्रंथ लघुमानसकरण है। इन्होंने अयनगति 1 कला मानी है। अयनगति के प्रसंग में भास्कराचार्य ने इनका नाम लिया है। मुनीश्वर ने मरीचि में अयनगति विषयक इनके कुछ श्लोक उद्धृत किए हैं, जो लघुमानस के नहीं हैं। इससे पता चलता है कि मुंजाल का एक और मानस नामक ग्रंथ था, जो उपलब्घ नहीं है।;आर्यभट द्वितीय;चतुर्वेद पृथूदक स्वामी, रचनाकाल: 850-900 शक संवत् के भीतर। ग्रंथ: ब्रह्मस्फुटसिद्धांत की टीका।;विजयनंदि रचनाकाल: शक सं 888। ग्रंथ: करणतिलक।;श्रीपति इनका रचनाकाल शक सं 961 हैं। इन्होंने सिद्धांतशेखर तथा धीकोटिदकरण नामक गणित ज्योतिष विषयक और रत्नमाला नामक मुहूर्त्त विषयक ग्रंथ लिखा है। सुधाकर द्विवेदी के अनुसार इनका रत्नसार नामक एक अन्य मुहूर्त ग्रंथ भी है। इनकी विशेषता यह है कि इन्होंने ज्याखंडों के बिना केवल चाप के अंशों से ज्यासाधन किया है। ये नागदेव के पुत्र थे।;वरुण रचनाकाल: शक सं 962। ग्रंथ: खंडखाद्य टीका।;भोजराज इनका रचनाकाल शक सं 964 है। इनका ग्रंथ राजमृगांक है। इसमें इन्होंने ब्रह्मगुप्त के सिद्धांत के लिये बीजसंस्कारों को निकाला है।;दशबल इनका रचनाकाल शक सं 980 है। इसका ग्रंथ करणकमलमार्तंड है। इसकी विशेषता यह है कि इसमें सारणियाँ दी गई हैं, जिनसे ग्रहों की गणना सुगम हो जाती है।;ब्रह्मदेव गणक इनके पिता का नाम चंद्र था। ये मथुरा के रहनेवाले थे। इनका रचनाकाल शक सं 1014 है। इन्होंने करणप्रकाश नामक ग्रंथ लिखा है। इन्होंने आर्यभटीयम् की गतियों में लल्ल के बीजसंस्कार करके उसे ग्रहण किया है। इनका शून्यायनांश वर्ष शक सं 445 है। इन्होंने अयनगति 1 कला मानी है1;शतानंद जगन्नाथपुरी निवासी शतानंद का रचनाकाल शक सं 1021 है। इनका प्रसिद्ध ग्रंथ भास्वतीकरण है। इनका शून्यायनांश वर्ष 450 तथा अयनगति 1 कला है। इन्होंने अहर्गण का साधन स्पष्ट मेष से किया है। इनकी विशेषता यह है कि इन्होंने ग्रहगतियों को शतांश अथवा प्रति शत में रखा है, जिससे गणित करने में सरलता हो जाती है। यह पद्धति आधुनिक दशमलव प्रणाली जैसी है1;महेश्वर प्रसिद्ध गणित ज्योतिषी भास्कराचार्य के पिता तथा गुरु, महेश्वर, का जन्मकाल शक सं 1000 के लगभग है। शेखर इनका गणितज्योतिष का ग्रंथ है। इनके अन्य ग्रंथ हैं। लघुजातकटीका, वृत्तशत, प्रतिष्ठाविधिदीपक।;सोमेश्वर तृतीय इनके अन्य नाम हैं भूलोक मल्ल और सर्वज्ञभूपाल। ये चालुक्य वंश के राजा थे। इन्होंने शक सं 1051 में अभिलाषितार्थचिंतामणि नामक ग्रंथ लिखा।;भास्कराचार्य;वाविलालकोच्चन्ना रचनाकाल: शक संवत् 1220। इन्होंने सूर्यसिद्धांत के आधार पर एक करणग्रंथ लिखा है।;महादेव प्रथम ये गुजराती ब्राह्मण थे। शक संवत् 1238 में इन्होंने चक्रेश्वर नामक ज्योतिषी द्वारा आरंभ किए हुए, ग्रहसिद्धि नामक सारणीग्रंथ को पूर्ण किया।;महादेव तृतीय ये त्र्यंबक की राजसभा के पंडित, बोपदेव, के पुत्र थे। इन्होंने शक संवत् 1289 में कामधेनुकरण नामक ग्रंथ लिखा।;नार्मद रचनाकाल: शक संवत् 1300। रचना: सूर्यसिद्धांत टीका।;पद्नाभ रचनाकाल: शक संवत् 1320। रचना: यंत्ररत्नावली, जिसके द्वितीय अध्याय में प्रसिद्ध ध्रुवमय यंत्र है।;लल्ल पं सुधाकर द्विवेदी ने इनका रचनाकाल शक संवत् 421 तथा केर्न ने शक संवत् 420 माना है, किंतु बालशंकर दीक्षित के अनुसार इनका काल लगभग शक संवत् 560 है। इन्होंने आर्यभटीय के आधार पर अपना शिष्यधीवृद्धिदतंत्र नामक ग्रहगणित का ग्रंथ लिखा है। प्रत्यक्ष वेध द्वारा इन्होंने कुछ बीज संस्कारों का वर्णन किया है। भास्कराचार्य ने सिद्धांतशिरोमणि में कई स्थानों पर इनके गणनासूत्रों की अशुद्धियाँ दिखलाई हैं।;दामोदर रचनाकाल: शक सं 1339, ग्रंथ: भट्टतुल्य। इसकी ग्रहगणना आर्यभट सरीखी है।;गंगाधर रचनाकाल: शक सं 1356। ग्रंथ: चंद्रमान।;मकरंद रचनाकाल: शक सं 1400। इन्होंने सूर्यसिद्धांत के अनुसार सारणियाँ बनाईं, जो बहुत प्रसिद्ध है। आज भी बहुत से पंचांग इनके आधार पर बनते हैं।;केशव प्रसिद्ध ग्रहलाघवाकार गणेश के पिता केशव का रचनाकाल 1418 ई सं के लगभग है। इन्होंने करणग्रंथ ग्रहकौतुक लिखा। ये बहुत निपुण वेधकर्त्ता थे। इन्होंने अपने ग्रंथ में प्रत्यक्ष वेध द्वारा अन्य सिद्धांतकारों के ग्रहगणित की अशुद्धियों का निर्देश किया है।;गणेश केशव के पुत्र गणेश का जन्मकाल 1420 शक सं के लगभग है। इनके ग्रंथ हैं ग्रहलाघव, लघुतिथि चिंतामणि, बृहत्तिथिचिंतामणि, सिद्धांतशिरोमणि टीका, लीलावती टीका, विवाहवृंदावन टीका, मुहूर्तत्व टीका, श्राद्धनिर्णय, छंदोर्णव, टीका, तर्जनीयंत्र, कृष्णाष्टमीनिर्णय, होलिकानिर्णय, लघुपाय पात आदि। इनकी कीर्ति का मुख्य स्तंभ है ग्रहलाघवकरण। सिद्धांतग्रंथों में वर्ण्य प्राय: सभी विषय इसमें हैं। इसकी विशेषता यह है कि इसमें ज्या चाप की गणना के बिना ही सब गणना की गई है और यह अत्यंत शुद्ध है। ये बहुत अच्छे वेधकर्ता थे। इन्होंने अपने पिता के वेधों से भी लाभ उठाया। इसीलिये इन्होंने एक ऐसी गणनाप्रणाली निकाली जो अति सरल होते हुए भी बहुत शुद्ध थी। इनके ग्रंथ के आधार पर भारत में बहुत से पंचांग बनते हैं। ग्रहलाघव की अनेक टीकाएँ हो चुकी हैं।;लक्ष्मीदास रचनाकाल: शक सं 1422, रचना: सिद्धांतशिरोमणि के गणिताध्याय तथा गोलाध्याय की उदाहरण सहित टीका।;ज्ञानराज इनका रचनाकाल शक सं 1425 है। इनका ग्रंथ सुंदरसिद्धांत है। इसके दो मुख्य भाग हैं: गणिताध्याय तथा गोलाध्याय। ग्रहगणित के लिये इन्होंने करणग्रंथों की तरह क्षेपक तथा वर्षगतियाँ भी दी हैं। कहीं कहीं पर इनकी उपपत्तियाँ भास्करसिद्धांत से विशिष्ट हैं। इन्होंने यंत्रमालाधिकार में एक नवीन यंत्र बनाया है।;सूर्य इनका जनम शक सं 1430 है। ये ज्ञानराज के पुत्र थे। इन्होंने गणित ज्योतिष के सूर्यप्रकाश, लीलावती टीका, बीज टीका, श्रीपतिपद्धतिगणित, बीजगणित, नामक ग्रंथों की रचना की है। कोलब्रुक के अनुसार इन्होंने सिद्धांतशिरोमणि टीका तथा गणितमालती ग्रंथ भी बनाए हैं। इनका एक और ग्रंथ है सिद्धांतसंहितासार समुच्चय।;अनंत प्रथम रचनाकाल: शक सं 1447। रचना: अनंतसुधारस नामक सारणीग्रंथ।;ढुंढिराज रचनाकाल: शक सं 1447 के लगभग, रचना: अनुंबसुधारस की सुधारस-चषक-टीका, ग्रहलाघवोदाहरण, ग्रहफलोपपत्ति; पंचांगफल, कुंडकल्पलता तथा प्रसिद्ध फलितग्रंथ जातकाभरण।;नृसिंह प्रथम ये गणेश के भाई, राम, के पुत्र थे। रचना मध्यग्रहसिद्धि (शक सं 1400) तथा ग्रहकौमुदी।;अनंत द्वितीय मुहूर्तचिंतामणि के निर्माता राम तथा ताजिक नीलकंठी के निर्माता, नीलकंठ के पिता अनंत, का रचनाकाल शक सं 1480 है। इन्होंने कामधेनु की टीका तथा जातकपद्धति की रचना की।;नीलकंठ रचनाकाल: शक सं 509, ग्रंथ: तोडरानंद तथा ताजिकनीलकंठी। गणकतरंगिणी के अनुसार इन्होंने जातकपद्धति भी लिखी थी। आफ्रेच सूची के अनुसार इनके अन्य ग्रंथ हैं: तिथिरतनमाला, प्रश्नकौमुदी अथवा ज्योतिषकौमुदी, दैवज्ञवल्लभा, जैमिनीसूत्र की सूबोधिनी टीका। ग्रहलाघव टीका, ग्रहौतक टीका, मकरंद टीका तथा एक मुहूर्तग्रंथ की टीका।;रघुनाथ प्रथम काल: शक सं 1484, रचना: सुबोधमंजरी।;रघुनाथ द्वितीय काल: शक सं 1487, रचना: मणिप्रदीप।;कृपाराम काल: शक सं 1420 के पश्चात्, रचनाएँ: बीजगणित, मकरंद तथा यंत्रचिंतामणि की उदाहरणस्वरूप टीकाएँ। इन्होंने सर्वार्थचिंतामणि, पंचपक्षी तथा मुहूर्ततत्व की टीकाएँ भी की हैं।;दिनकर काल: शक सं 1500, ग्रंथ: खेटकसिद्धि तथा चंद्रार्की।;गंगाधर काल: शक सं 1508, ग्रंथ: ग्रहलाघव की मनोरमा टीका।;रामभट काल: शक सं 1512, ग्रंथ: रामविनोदकरण।;श्रीनाथ काल: शक सं 1512, ग्रंथ: ग्रहचिंतामणि।;विष्णु काल: शक सं 1530, ग्रंथ: एक करणग्रंथ।;मल्लारि काल: शक सं 1524, ग्रंथ: ग्रहलाघव की उपपत्तिसहित टीका।;विश्वनाथ काल: शक सं 1534-1556। ये प्रसिद्ध सोदाहरण टीकाकार हैं। इन्होंने सूर्यसिद्धांत शिरोमणि, करणकुतूहल, मकरंद, केशबीजातक पद्धति, सोमसिद्धांत, तिथिचिंतामणि, चंद्रमानतंत्र, बृहज्जातक, श्रीपतिपद्धति वसिष्ठसंहिता तथा बृहत्संहिता पर टीकाएँ की हैं।;नृसिंह द्वितीय जन्म: शक सं 1508, ग्रंथ: सूर्यसिद्धांत की सौरभाष्य तथा सिद्धांतशिरोमणि की वासनाभाष्य टीकाएँ।;शिव जन्म: शक सं 1510, ग्रंथ: अनंतसुधारस टीका।;कृष्ण प्रथम रचना: शक सं 1500-1530, ग्रंथ: भास्कराचार्य के बीजगणित की बीजनवांकुद तथा जातकपद्धति की टीकाएँ, तथा छादकनिर्णय।;रंगनाथ प्रथम रचना: शक सं 1525, ग्रंथ: सूर्यसिद्धांत की गूढ़ार्थप्रकाशिका टीका।;नागेश रचनाकाल: शक सं-1541, ग्रंथ: करणग्रंथ, तथा ग्रहप्रबोध।;मुनीश्वर ये गूढ़ार्थप्रकाशिकाकार रंगनाथ के पुत्र थे। इनका जन्मकाल श सं 1525 है। इन्होंने सिद्धांतसार्वभौम ग्रंथ लिखा तथा लीलावती पर निसृष्टार्थदूती और सिद्धांतशिरोमणि की मरीचि टीका की। कुछ विद्वान् पाटीसार भी इनका लिखा मानते हैं।;दिवाकर जन्मकाल: शक सं 1528 है, रचना: मकरंद की मकरंदविवृत्ति टीका।;कमलाकर भट्ट जन्म: शक सं 1530 के लगभग। इन्होंने काशी में शक सं 1580 के लगभग सिद्धांततत्वविवेक बनाया। यह आधुनिक सूर्यसिद्धांत के आधार पर लिखा गया है। इसमें बहुत सी गणित संबंधी नवीन रीतियाँ है। तुरीय यंत्र का विस्तृत वर्णन तथा ध्रुवतारा की स्थिरता का वर्णन इनकी नूतनता है। इन्होंने मुनीश्वर तथा भास्कराचार्य का कई स्थलों पर खंडन किया है, जो कुछ स्थलों पर इनके निजी अज्ञान का द्योतक है। ये संक्षिप्त न लिखकर बहुत विस्तार से लिखते हैं। इनके 13 अध्यायों के ग्रंथ में 3,024 श्लोक हैं।;रंगनाथ द्वितीय जन्म: शक सं 1534 के लगभग, ग्रंथ: सिद्धांतशिरोमणि की मितभाषिणी टीका तथा सिद्धांतचूड़ामणि।;नित्यानंद रचनाकाल: शक सं 1561। इन्होंने सायन मानों से सर्वसिद्धांतराज ग्रंथ लिखा है। इसमें वर्तमान 365.14.33.7 40448 दिनादि है, जो वास्तव काल के निकटतर है। इनके दिए हुए भगणों से यह स्पष्ट है कि ये कुशल वेधकर्ता थे।;कृष्ण द्वितीय इन्होंने शक सं 1575 में करणकौस्तुभ लिखा1;रत्नकंठ इन्होंने शक सं 1580 में पंचांगकौस्तुभ नामक सारणीग्रंथ लिखा।;विद्दन शक सं 1626 से कुछ पूर्व, इन्होंने वार्षिकतंत्र लिखा। इनका अन्य ग्रंथ ग्रहणमुकुर है।;जटाधर इन्होंने शक सं 1626 में फत्तेशाह प्रकाश नामक करणग्रंथ लिखा।;दादाभट इन्होंने शक सं 1641 में सूर्यसिद्धांत की करणावलि टीका लिखी1;नारायण रचना: शक सं 1661। इन्होंने होरासारसुधानिधि, नरजातकव्याख्या, गणकप्रिया, स्वरसार तथा ताजकसुधानिधि लिखे।;जयसिंह राजा जयसिंह शंक सं 1615 में राजसिंहासन पर बैठे थे। इन्होंने हिंदू, मुसलमान तथा यूरोपीय ज्योतिष ग्रंथों का अध्ययन किया और देखा कि उनसे स्पष्ट ग्रह तथा दृश्य ग्रहों में अंतर है। इसलिये इन्होंने जयपुर, दिल्ली, मथुरा, उज्जैन तथा काशी में पक्की वेधशालाएँ बनवाईं जो अब भी इनके कीर्तिस्तंभ की तरह विद्यमान हैं। आठ साल तक वेध करवाकर इन्होंने अरबी का जिजमुहम्मद तथा संस्कृत में सम्राट् सिद्धांत नामक ग्रंथ बनवाए। सिद्धांत सम्राट् इन्होंने जगन्नाथ पंडित से शक सं 1653 में बनवाया। इनके ग्रंथ से ग्रह अतिसूक्ष्म आते हैं।;शंकर इन्होंने शक सं 1688 में वैष्णवकरण लिखा।;मणिराम इन्होंने शक सं 1696 में ग्रहगणित चिंतामणि लिखी।;भुला इन्होंने शक सं 1703 में ब्रह्मसिद्धांतसार लिखा।;मथुरानाथ इन्होंने शक सं 1704 में यंत्रराजघटना लिखा।;चिंतामणिदीक्षित शक सं 1658-1733। इन्होंने सूर्यसिद्धांतसारणी तथा गोलानंद नामक वेधग्रंथ लिखा।;शिव इन्होंने शक सं 1737 में तिथिपारिजात लिखा।;दिनकर इन्होंने शक सं 1734 से 1761 के बीच ग्रहविज्ञानसारणी, मासप्रवेशसारणी, लग्नसारणी, क्रांतिसारणी आदि ग्रंथ लिखे।;बापूदेव शास्त्री काशी के संस्कृत कालेज के ज्योतिष के मुख्य अध्यापक थे। बापूदेव शास्त्री (नृसिंह) का जन्म शक सं 1743 में हुआ। ये प्रयाग तथा कलकत्ता विश्वविद्यालयों के परिषद तथा आयरलैंड और ग्रेट ब्रिटेन की रॉयल के सम्मानित सदस्य थे। इन्हें महामहोपाध्याय की उपाधि मिली थी। इनके ग्रंथ हैं: रेखागणित प्रथमाध्याय, त्रिकोणमिति, प्राचीन ज्योतिषाचार्याशयवर्णन, सायनवाद, तत्वविवेकपरीक्षा, मानमंदिरस्थ यंत्रवर्णन, अंकगणित, बीजगणित। इन्होंने सिद्धांतशिरोमणि का संपादन तथा सूर्यसिद्धांत का अंग्रेजी में अनुवाद किया। इनका दृक्सिद्ध पंचांग आज भी वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय से प्रकाशित होता है।;नीलांबर शर्मा इनका गोलप्रकाश शक सं 1793 में प्रकाशित हुआ।;विनायक अथवा केरो लक्ष्मण छत्रे इन्होंने पाश्चात्य ज्योतिष के आधार पर ग्रहसाधनकोष्ठक शक सं 1772 में लिखा। इनका अन्य ग्रंथ चिंतामणि हैं।;चिंतामणि रघुनाथ आचार्य जन्म: शक सं 1750। इन्होंने तमिल में ज्योतिषचिंतामणि लिखा।;कृष्ण शास्त्री गाडबोले जन्म: शक सं 1753। इन्होंने वामनकृष्ण जोशी गद्रे के साथ ग्रहलाघव का मराठी अनुवाद, ज्योतिषशास्त्र तथा पंचांगसाधनसार छपाया तथा "मासानां मार्गशीर्षोहं" लेख द्वारा यह सिद्ध किया कि वेद शकपूर्व 30 हजार वर्ष से प्राचीन हैं1;वेंकटेश बापूजी केतकर इन्होंने शक सं 1812 में पाश्चात्य ज्योतिष के आधार पर "ज्योतिर्गणित" लिखा, जिससे ग्रहगणना बहुत सूक्ष्म होती है।;सुधाकर द्विवेदी इनका जन्मकाल शक सं 1782 है। ये काशी के संस्कृत कालेज के ज्योतिष के प्रधान पंडित तथा अपने समय के अति प्रसिद्ध विद्वान् थे। इन्हें महामहोपाध्याय की उपाधि प्राप्त थी। इनके ग्रंथ हैं: दीर्घवृत्तलक्षण, विचित्र प्रश्न सभंग, द्युचरचार, वास्ववचंद्रश्रृंगोन्नति, पिंडप्रभाकर, भाभ्रम रेखानिरूपण, धराभ्रम, ग्रहणकरण, गोलीयरेखागणित, रेखागणित के एकादश द्वादश अध्याय तथा गणकतरंगिणी। इन्होंने सूर्यसिद्धांत, ग्रहलाघव आदि ग्रंथों की टीकाएँ तथा बहुत से ग्रंथों का संपादन भी किया।; शंकर बालकृष्ण दीक्षित जन्मकाल सं 1775 है। इन्होंने विद्यार्थीबुद्धिवर्द्धिनी, सृष्टिचमत्कार,

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भारतीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का इतिहास

भारत की विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की विकास-यात्रा प्रागैतिहासिक काल से आरम्भ होती है। भारत का अतीत ज्ञान से परिपूर्ण था और भारतीय संसार का नेतृत्व करते थे। सबसे प्राचीन वैज्ञानिक एवं तकनीकी मानवीय क्रियाकलाप मेहरगढ़ में पाये गये हैं जो अब पाकिस्तान में है। सिन्धु घाटी की सभ्यता से होते हुए यह यात्रा राज्यों एवं साम्राज्यों तक आती है। यह यात्रा मध्यकालीन भारत में भी आगे बढ़ती रही; ब्रिटिश राज में भी भारत में विज्ञान एवं तकनीकी की पर्याप्त प्रगति हुई तथा स्वतंत्रता की प्राप्ति के बाद भारत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के सभी क्षेत्रों में तेजी से प्रगति कर रहा है। सन् २००९ में चन्द्रमा पर यान भेजकर एवं वहाँ पानी की प्राप्ति का नया खोज करके इस क्षेत्र में भारत ने अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज की है। चार शताब्दियों पूर्व प्रारंभ हुई पश्चिमी विज्ञान व प्रौद्योगिकी संबंधी क्रांति में भारत क्यों शामिल नहीं हो पाया ? इसके अनेक कारणों में मौखिक शिक्षा पद्धति, लिखित पांडुलिपियों का अभाव आदि हैं। .

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भारतीय गणित

गणितीय गवेषणा का महत्वपूर्ण भाग भारतीय उपमहाद्वीप में उत्पन्न हुआ है। संख्या, शून्य, स्थानीय मान, अंकगणित, ज्यामिति, बीजगणित, कैलकुलस आदि का प्रारम्भिक कार्य भारत में सम्पन्न हुआ। गणित-विज्ञान न केवल औद्योगिक क्रांति का बल्कि परवर्ती काल में हुई वैज्ञानिक उन्नति का भी केंद्र बिन्दु रहा है। बिना गणित के विज्ञान की कोई भी शाखा पूर्ण नहीं हो सकती। भारत ने औद्योगिक क्रांति के लिए न केवल आर्थिक पूँजी प्रदान की वरन् विज्ञान की नींव के जीवंत तत्व भी प्रदान किये जिसके बिना मानवता विज्ञान और उच्च तकनीकी के इस आधुनिक दौर में प्रवेश नहीं कर पाती। विदेशी विद्वानों ने भी गणित के क्षेत्र में भारत के योगदान की मुक्तकंठ से सराहना की है। .

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भारतीय गणित का इतिहास

सभी प्राचीन सभ्यताओं में गणित विद्या की पहली अभिव्यक्ति गणना प्रणाली के रूप में प्रगट होती है। अति प्रारंभिक समाजों में संख्यायें रेखाओं के समूह द्वारा प्रदर्शित की जातीं थीं। यद्यपि बाद में, विभिन्न संख्याओं को विशिष्ट संख्यात्मक नामों और चिह्नों द्वारा प्रदर्शित किया जाने लगा, उदाहरण स्वरूप भारत में ऐसा किया गया। रोम जैसे स्थानों में उन्हें वर्णमाला के अक्षरों द्वारा प्रदर्शित किया गया। यद्यपि आज हम अपनी दशमलव प्रणाली के अभ्यस्त हो चुके हैं, किंतु सभी प्राचीन सभ्यताओं में संख्याएं दशमाधार प्रणाली पर आधारित नहीं थीं। प्राचीन बेबीलोन में 60 पर आधारित संख्या-प्रणाली का प्रचलन था। भारत में गणित के इतिहास को मुख्यता ५ कालखंडों में बांटा गया है-.

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भाषा-परिवार

विश्व के प्रमुख भाषाकुलों के भाषाभाषियों की संख्या का पाई-चार्ट आपस में सम्बंधित भाषाओं को भाषा-परिवार कहते हैं। कौन भाषाएँ किस परिवार में आती हैं, इनके लिये वैज्ञानिक आधार हैं। इस समय संसार की भाषाओं की तीन अवस्थाएँ हैं। विभिन्न देशों की प्राचीन भाषाएँ जिनका अध्ययन और वर्गीकरण पर्याप्त सामग्री के अभाव में नहीं हो सका है, पहली अवस्था में है। इनका अस्तित्व इनमें उपलब्ध प्राचीन शिलालेखो, सिक्कों और हस्तलिखित पुस्तकों में अभी सुरक्षित है। मेसोपोटेमिया की पुरानी भाषा ‘सुमेरीय’ तथा इटली की प्राचीन भाषा ‘एत्रस्कन’ इसी तरह की भाषाएँ हैं। दूसरी अवस्था में ऐसी आधुनिक भाषाएँ हैं, जिनका सम्यक् शोध के अभाव में अध्ययन और विभाजन प्रचुर सामग्री के होते हुए भी नहीं हो सका है। बास्क, बुशमन, जापानी, कोरियाई, अंडमानी आदि भाषाएँ इसी अवस्था में हैं। तीसरी अवस्था की भाषाओं में पर्याप्त सामग्री है और उनका अध्ययन एवं वर्गीकरण हो चुका है। ग्रीक, अरबी, फारसी, संस्कृत, अंग्रेजी आदि अनेक विकसित एवं समृद्ध भाषाएँ इसके अन्तर्गत हैं। .

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भाषाविज्ञान

भाषाविज्ञान भाषा के अध्ययन की वह शाखा है जिसमें भाषा की उत्पत्ति, स्वरूप, विकास आदि का वैज्ञानिक एवं विश्लेषणात्मक अध्ययन किया जाता है। भाषा विज्ञान के अध्ययेता 'भाषाविज्ञानी' कहलाते हैं। भाषाविज्ञान, व्याकरण से भिन्न है। व्याकरण में किसी भाषा का कार्यात्मक अध्ययन (functional description) किया जाता है जबकि भाषाविज्ञानी इसके आगे जाकर भाषा का अत्यन्त व्यापक अध्ययन करता है। अध्ययन के अनेक विषयों में से आजकल भाषा-विज्ञान को विशेष महत्त्व दिया जा रहा है। .

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भास्कर प्रथम

भास्कर प्रथम (600 ई – 680 ईसवी) भारत के सातवीं शताब्दी के गणितज्ञ थे। संभवतः उन्होने ही सबसे पहले संख्याओं को हिन्दू दाशमिक पद्धति में लिखना आरम्भ किया। उन्होने आर्यभट्ट की कृतियों पर टीका लिखी और उसी सन्दर्भ में ज्या य (sin x) का परिमेय मान बताया जो अनन्य एवं अत्यन्त उल्लेखनीय है। आर्यभटीय पर उन्होने सन् ६२९ में आर्यभटीयभाष्य नामक टीका लिखी जो संस्कृत गद्य में लिखी गणित एवं खगोलशास्त्र की प्रथम पुस्तक है। आर्यभट की परिपाटी में ही उन्होने महाभास्करीय एवं लघुभास्करीय नामक दो खगोलशास्त्रीय ग्रंथ भी लिखे। .

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भगत सिंह

भगत सिंह (जन्म: २८ सितम्बर या १९ अक्टूबर, १९०७, मृत्यु: २३ मार्च १९३१) भारत के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे। चन्द्रशेखर आजाद व पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर इन्होंने देश की आज़ादी के लिए अभूतपूर्व साहस के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का मुक़ाबला किया। पहले लाहौर में साण्डर्स की हत्या और उसके बाद दिल्ली की केन्द्रीय संसद (सेण्ट्रल असेम्बली) में बम-विस्फोट करके ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध खुले विद्रोह को बुलन्दी प्रदान की। इन्होंने असेम्बली में बम फेंककर भी भागने से मना कर दिया। जिसके फलस्वरूप इन्हें २३ मार्च १९३१ को इनके दो अन्य साथियों, राजगुरु तथा सुखदेव के साथ फाँसी पर लटका दिया गया। सारे देश ने उनके बलिदान को बड़ी गम्भीरता से याद किया। भगत सिंह को समाजवादी,वामपंथी और मार्क्सवादी विचारधारा में रुचि थी। सुखदेव, राजगुरु तथा भगत सिंह के लटकाये जाने की ख़बर - लाहौर से प्रकाशित ''द ट्रिब्युन'' के मुख्य पृष्ठ --> .

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भूपेंद्र नाथ कौशिक

व्यंग्यकार भूपेंद्र नाथ कौशिक "फ़िक्र" (७ जुलाई, १९२५-२७ अक्टूबर,२००७) आधुनिक काल के सशक्त व्यंग्यकार थे, उनकी कविता में बाज़ारवाद और कोरे हुल्लड़ के खिलाफ रोष बहुलता से मिलता है। हिमांचल प्रदेश के खुबसूरत इलाके "नाहन" में जन्मे फ़िक्र साहब के पिता का नाम पंडित अमरनाथ था और माता का नाम लीलावती था, पिताजी संगीत और अरबी भाषा की प्रकांड विद्वान थे। आध्यात्म के संस्कार फ़िक्र को बचपन में शैख़ सादी की फारसी हिकायत "गुलिस्तान" से मिले। प्रारंभिक शिक्षा संस्कृत और फारसी में हुयी। उच्च शिक्षा के लिए फ़िक्र जी अम्बाला छावनी आ गए। और यहाँ के राजकीय कॉलेज से अरबी, फारसी, उर्दू और अंग्रेजी की शिक्षा ली। नौकरी की तलाश में जबलपुर आना पड़ा, यहाँ आकर, बी.

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मध्यकालीन भारतीय इतिहास की जानकारी के स्रोत

मध्ययुग में अनेक ऐतिहासिक ग्रंथ लिखे गये, जिनसे हमें इस युग की राजनीतिक घटनाओं के बारे में जानकारी मिलती है। मुसलमानों के सम्पर्क में आने के बाद भारतीय भी इस लोक की तरफ आकर्षित हुए। इस काल के ग्रंथों में सभ्यता एवं संस्कृति का उल्लेख बहुत कम हुआ है। प्रो॰यू.एन.

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मलाइका

मलाइका (अरबी - ملائكة)- यह एक अरबी शब्द है, एक वचन मलक (ملک) और बहुवचन मलाइका (ملائکہ) है। इन को फ़ारसी और उर्दू भाशा में फ़रिश्ते भी कहा जाता है। एकवचन फ़रिश्ता बहुवचन फ़रिश्ते। अर्थात देवदूत। .

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महर

इस्लाम में महर (अरबी: مهر) वह धनराशि है जो विवाह के समय वर या वर का पिता, कन्या को देता है। यद्यपि यह मुद्रा के रूप में होती है किन्तु यह आभूषण, घरेलू सामान, फर्नीचर, या जमीन आदि के रूप में भी हो सकती है। .

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महल

जयपुर स्थित हवामहल का एक दृश्य महल का अर्थ होता है भव्य और शानदार भवन जो सामानयतः शासकों, राजाओं के आवास के लिये निर्मित किये जाते थे। भारत में मध्यकाल तक ऐसे भवन निर्मित किये जाते रहे जिन्हें महल की संज्ञा दी जाती है और ऐसे कई तरह के महल पाये जाते हैं। यह मूलतः अरबी शब्द है जिसका मतलब होता है भवन। राजस्थान प्रान्त तो राजा महाराजाओं के महलों के कारण ही जाना जाता है। राजस्थानी महलों मे शेखावती महल अपनी खूबसूरती के लिये जाना जाता है। .

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मानसून

जब ITCZ(उष्ण कटिबंधीय संरक्षित क्षेत्र)से जब व्यापारिक एवं समाॅगी हवाये ऊपर की ओर कोरियोलिस बल के कारण भारत के राज्य केरल मे 2महिना 10दिन मे मानसून पहुंचता है जो कि यहां सबसे पहले सबसे बाद मे भी मानसून यही होता है लेकिन भारत मे सबसे ज्यादा मानसून मासिनराम(मेघालय) मे होती है जो कि वहा पर औषतन बरसात 11873मिमी॰ की होती है । तमिलनाडु के नागरकायल (कन्याकुमारी के पास) में मानसून के बादल मानसून मूलतः हिन्द महासागर एवं अरब सागर की ओर से भारत के दक्षिण-पश्चिम तट पर आनी वाली हवाओं को कहते हैं जो भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि में भारी वर्षा करातीं हैं। ये ऐसी मौसमी पवन होती हैं, जो दक्षिणी एशिया क्षेत्र में जून से सितंबर तक, प्रायः चार माह सक्रिय रहती है। इस शब्द का प्रथम प्रयोग ब्रिटिश भारत में (वर्तमान भारत, पाकिस्तान एवं बांग्लादेश) एवं पड़ोसी देशों के संदर्भ में किया गया था। ये बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से चलने वाली बड़ी मौसमी हवाओं के लिये प्रयोग हुआ था, जो दक्षिण-पश्चिम से चलकर इस क्षेत्र में भारी वर्षाएं लाती थीं। हाइड्रोलोजी में मानसून का व्यापक अर्थ है- कोई भी ऐसी पवन जो किसी क्षेत्र में किसी ऋतु-विशेष में ही अधिकांश वर्षा कराती है। यहां ये उल्लेखनीय है, कि मॉनसून हवाओं का अर्थ अधिकांश समय वर्षा कराने से नहीं लिया जाना चाहिये। इस परिभाषा की दृष्टि से संसार के अन्य क्षेत्र, जैसे- उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका, उप-सहारा अफ़्रीका, आस्ट्रेलिया एवं पूर्वी एशिया को भी मानसून क्षेत्र की श्रेणी में रखा जा सकता है। ये शब्द हिन्दी व उर्दु के मौसम शब्द का अपभ्रंश है। मॉनसून पूरी तरह से हवाओं के बहाव पर निर्भर करता है। आम हवाएं जब अपनी दिशा बदल लेती हैं तब मॉनसून आता है।.

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मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा

Eleanor Roosevelt & मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा सम्पादन (1949) संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में यह कथन था कि संयुक्त राष्ट्र के लोग यह विश्वास करते हैं कि कुछ ऐसे मानवाधिकार हैं जो कभी छीने नहीं जा सकते; मानव की गरिमा है और स्त्री-पुरुष के समान अधिकार हैं। इस घोषणा के परिणामस्वरूप संयुक्त राष्ट्र संघ ने 10 दिसम्बर 1948 को मानव अधिकार की सार्वभौम घोषणा अंगीकार की। इस घोषणा से राष्ट्रों को प्रेरणा और मार्गदर्शन प्राप्त हुआ और वे इन अधिकारों को अपने संविधान या अधिनियमों के द्वारा मान्यता देने और क्रियान्वित करने के लिए अग्रसर हुए। राज्यों ने उन्हें अपनी विधि में प्रवर्तनीय अधिकार का दर्जा दिया। 10 दिसम्बर 1948 को संयुक्त राष्ट्र संघ की समान्य सभा ने मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा को स्वीकृत और घोषित किया। इसका पूर्ण पाठ आगे के पृष्ठों में दिया गया है। इस ऐतिहासिक कार्य के बाद ही सभा ने सभी सदस्य देशों से पुनरावेदन किया कि वे इस घोषणा का प्रचार करें और देशों अथवा प्रदेशों की राजनैतिक स्थिति पर आधारित भेदभाव का विचार किए बिना, विशेषतः विद्यालयों और अन्य शिक्षा संस्थाओं में, इसके प्रचार, प्रदर्शन, पठन और व्याख्या का प्रबंध करें। इसी घोषणा का सरकारी पाठ संयुक्त राष्ट्रों की इन पांच भाषाओं में प्राप्य है: अंग्रेज़ी, चीनी, फ़्रांसीसी, रूसी और स्पेनी। अनुवाद का जो पाठ यहां दिया गया है, वह भारत सरकार द्वारा स्वीकृत है। .

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मालदीव

मालदीव या (Dhivehi: ދ ި ވ ެ ހ ި ރ ާ އ ް ޖ ެ Dhivehi Raa'je) या मालदीव द्वीप समूह, आधिकारिक तौर पर मालदीव गणराज्य, हिंद महासागर में स्थित एक द्वीप देश है, जो मिनिकॉय आईलेंड और चागोस अर्किपेलेगो के बीच 26 प्रवाल द्वीपों की एक दोहरी चेन, जिसका फेलाव भारत के लक्षद्वीप टापू की उत्तर-दक्षिण दिशा में है, से बना है। यह लक्षद्वीप सागर में स्थित है, श्री लंका की दक्षिण-पश्चिमी दिशा से करीब सात सौ किलोमीटर (435 mi) पर.

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माजिद देवबन्दी

डा। माजिद देवबन्दी: जन्म ०७ सितम्बर 1964 को उत्तर प्रदेश के देवबन्द में हुआ। इनके पिता अपने काल के प्रसिद्ध विद्वान थे। फ़ारसी, उर्दू और अरबी भाषाओं में विषेश प्रतिभा थी। माजिद १२ साल की उम्र से शायरी करते आरहे हैं। शायरी के इलावा, पत्रकारिता, लेखन में भी माहिर माने जाने वाले माजिद उर्दू भाषा को लोकप्रिय करने और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर लेजाने में अपना योगदान प्रदान किया है। १२ साल की उम्र में कहा शेर; .

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मिस्र की क्रांति (१९५२)

नासर और नकीब १९५२ की मिस्र की क्रांति (अरबी: ثورة 23 يوليو 1952‎), २३ जुलाई १९५२ को मिस्र की थलसेना के कुछ अधिकारियों के समूह द्वारा की गयी थी जिसका नेतृत्व मुहम्मद नकीब और गमाल अब्देल नासर ने किया। आरम्भ में इस क्रान्ति का उद्देश्य वहाँ के राजा फारुख को अपदस्थ करना था। किन्तु इस क्रान्ति के परिणामस्वरूप अन्ततः मिस्र और सूडान में संवैधानिक राजतंत्र एवं कुलीनतंत्र की समाप्ति हुई। इसके बाद मिस्र एक रिपब्लिक बना तथा इससे ब्रिटेन का कब्जा समाप्त हुआ। सूडान भी स्वतंत्र हो गया। श्रेणी:मिस्र का इतिहास.

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मज़हब (फ़िक़्ह)

इस्लाम के सात प्रमुख 'विधि-सम्प्रदाय' मज़हब (अरबी: مذهب‎ मदहब, IPA:, "सिद्धांत"; तुर्की: mezhep; उर्दू: مذہب मज़हब) से तात्पर्य इस्लाम के उन सम्प्रदायों से हैं जो इस्लामी विधिशास्त्र (फ़िक़्ह) के आधार पर अलग-अलग है। इस्लाम के उद्भव के प्रथम 150 वर्षों में अनेकों मज़हब उत्पन्न हो चुके थे। उसके बाद के वर्षों में इनकी संख्या में और वृद्धि हुई, कुछ का प्रसार हुआ, कुछ कई भागों में टूट गये और कुछ दूसरे मज़हबों में मिल गये या अप्रचलित हो गये। .

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मुस्लिम राष्ट्रवाद

मुस्लिम राष्ट्रवाद या अखिल इस्लामवाद (अरबी: الوحدة الإسلامية) एक इस्लामी राज्य या खलीफा या किसी अंतर्राष्ट्रीय संस्था के तहत मुसलमानों की एकता की वकालत करता एक राजनीतिक आंदोलन है। .

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मुहता नैणसी

मुहता नैणसी (1610–1670) महाराजा जसवन्त सिंह के राज्यकाल में मारवाड़ के दीवान थे। वे भारत के उन क्षेत्रों का अध्यन करने के लिये प्रसिद्ध हैं जो वर्तमान में राजस्थान कहलाता है। 'मारवाड़ रा परगना री विगत' तथा 'नैणसी री ख्यात' उनकी प्रसिद्ध कृतियाँ हैं। .

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मुहम्मद इब्न मूसा अल-ख़्वारिज़्मी

अबू अब्दल्लाह मुहम्मद इब्न मूसा अल-ख़्वारिज़्मी (अरबी:, अंग्रेज़ी: Muḥammad ibn Mūsā al-Khwārizmī; जन्म: लगभग ७८० ई; देहांत: लगभग ८५० ई), जिन्हें पश्चिमी देशों में ग़लती से अल्गोरित्मी (Algoritmi) और अलगौरिज़िन​ (Algaurizin) भी कहा जाता था, एक ईरानी-मूल के गणितज्ञ, खगोलशास्त्री और भूगोलवेत्ता थे।, Cristopher Moore, Stephan Mertens, pp.

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मुहाफ़ज़ाह

मुहाफ़ज़ाह (अरबी: محافظة), कई अरब देशों के प्रथम स्तर के प्रशासनिक प्रभाग और सऊदी अरब के दूसरे स्तर के प्रशासनिक प्रभाग को कहते हैं। हिन्दी में इसे प्रांत, प्रदेश या फिर राज्य कहा जाता है। किसी मुहाफ़ज़ाह का प्रमुख, मुहाफ़िज़ (रक्षक या हिफ़ाज़त करने वाला) कहलाता है। .

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मुहाजिर लोग

पाकिस्तान में उन लोगों को मुहाजिर या मोहाजिर (उर्दू: مہاجر‎, अरबी: مهاجر‎) कहते हैं जो भारत के विभाजन के बाद वर्तमान भारत के किसी भाग से अपना घरबार छोड़कर वर्तमान पाकिस्तान के किसी भाग में आकर बस गये। .

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मुख्य उपनिषद

मुख्य उपनिषद् 11 माने जाते हैं,जिनके नाम इस प्रकार हैंः-- 1.

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मुग़ल साम्राज्य

मुग़ल साम्राज्य (फ़ारसी:, मुग़ल सलतनत-ए-हिंद; तुर्की: बाबर इम्परातोरलुग़ु), एक इस्लामी तुर्की-मंगोल साम्राज्य था जो 1526 में शुरू हुआ, जिसने 17 वीं शताब्दी के आखिर में और 18 वीं शताब्दी की शुरुआत तक भारतीय उपमहाद्वीप में शासन किया और 19 वीं शताब्दी के मध्य में समाप्त हुआ। मुग़ल सम्राट तुर्क-मंगोल पीढ़ी के तैमूरवंशी थे और इन्होंने अति परिष्कृत मिश्रित हिन्द-फारसी संस्कृति को विकसित किया। 1700 के आसपास, अपनी शक्ति की ऊँचाई पर, इसने भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश भाग को नियंत्रित किया - इसका विस्तार पूर्व में वर्तमान बंगलादेश से पश्चिम में बलूचिस्तान तक और उत्तर में कश्मीर से दक्षिण में कावेरी घाटी तक था। उस समय 40 लाख किमी² (15 लाख मील²) के क्षेत्र पर फैले इस साम्राज्य की जनसंख्या का अनुमान 11 और 13 करोड़ के बीच लगाया गया था। 1725 के बाद इसकी शक्ति में तेज़ी से गिरावट आई। उत्तराधिकार के कलह, कृषि संकट की वजह से स्थानीय विद्रोह, धार्मिक असहिष्णुता का उत्कर्ष और ब्रिटिश उपनिवेशवाद से कमजोर हुए साम्राज्य का अंतिम सम्राट बहादुर ज़फ़र शाह था, जिसका शासन दिल्ली शहर तक सीमित रह गया था। अंग्रेजों ने उसे कैद में रखा और 1857 के भारतीय विद्रोह के बाद ब्रिटिश द्वारा म्यानमार निर्वासित कर दिया। 1556 में, जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर, जो महान अकबर के नाम से प्रसिद्ध हुआ, के पदग्रहण के साथ इस साम्राज्य का उत्कृष्ट काल शुरू हुआ और सम्राट औरंगज़ेब के निधन के साथ समाप्त हुआ, हालाँकि यह साम्राज्य और 150 साल तक चला। इस समय के दौरान, विभिन्न क्षेत्रों को जोड़ने में एक उच्च केंद्रीकृत प्रशासन निर्मित किया गया था। मुग़लों के सभी महत्वपूर्ण स्मारक, उनके ज्यादातर दृश्य विरासत, इस अवधि के हैं। .

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मुअम्मर अल-गद्दाफ़ी

मुअम्मर अल-गद्दाफ़ी (अरबी: معمر القذافي‎) (७ जून १९४२ - २० अक्टूबर २०११) सन् १९६९ से लीबिया के शासक बने हुए थे। उन्हें 'कर्नल गद्दाफ़ी' के नाम से जाना जाता था। कर्नल मुअम्मर गद्दाफ़ी ने लिबिया पर कुल 42 साल तक राज किया और वे किसी अरब देश में सबसे अधिक समय तक राज करने वाले तानाशाह के रूप में जाने जाते रहे। उन्होंने अपने को क्रांति का प्रथप्रदर्शक और राजाओं का राजा घोषित कर रखा था। गद्दाफ़ी के दावों पर यकीन करें तो उनके दादा अब्देसलम बोमिनियार ने इटली द्वारा लिबिया को कब्ज़ा करने की कोशिश के दौरान लड़ाई लड़ी थी और १९११ के युद्ध में मारे गये थे। वे उस युद्ध के पहले शहीद थे। गद्दाफी ने 1952 के आसपास मिस्र के राष्ट्रपति गमल अब्देल नसीर से प्रेरणा ली और 1956 मंउ इज़राइल विरोधी आंदोलन में भाग भी लिया। मिस्र में ही उन्होंने अपनी पढ़ाई भी की। १९६० के शुरुवाती दिनों में गद्दाफ़ी ने लिबिया की सैन्य अकादमी में प्रवेश लिया, जिसके बाद उन्होंने यूरोप में अपनी शिक्षा ग्रहण की और जब लिबिया में क्रांति हुई तो उन्होंने लिबिया की कमान संभाली.

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मौलाना मसूद अज़हर

मसूद अज़हर आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का स्थापक और नेता है। जैश-ए-मोहम्मद जिसे संक्षेप में जैश भी कहते हैं पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में सक्रिय एक आतंकी संगठन है। पाकिस्तानी अधिकारियों ने भारत में हुए पठानकोट हमले के बाद उसे हिरासत में ले लिया था। भारत ने मसूद अजहर को उसकी आतंकी गतिविधियों की वजह से उसे अपने सबसे वांक्षित आतंकवादियों की सूची में रखा हुआ है। .

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मौलाना सूफी मूफ्ती अज़ानगाछी साहेब

हज़रत मौलाना सूफी मूफ्ती अज़ानगाछी साहेब (र०) (उर्दू: مولانا صوفی مفتی اذانگاچھی, अंग्रेजी: Maulana Sufi Mufti Azangachhi Shaheb (1828 या 1829 - 19 दिसंबर 1932)), एक महान भारतीय सूफी संत थे। ये पश्चिम बंगाल के बागमारी में एक इस्लामी सुफी गैर सरकारी संगठन, हक्कानी अंजुमन के स्थापकके रूप में काफी परिचीत हैं। ये इस्लाम धर्म के दुसरे खलीफा हजरत उमर (रह०) के 36 वें बाद की पीढ़ी से संबंधित हैं। सूफ़ीम एक तरीका है, जो एक व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास में मदद करता है और प्रत्येक व्यक्ति के माध्यम से, कुल प्रणाली में अनुशासन लाने में मदद करता है। हज़रत मौलाना अज़ानगाछी (रए•) ऐसे सूफी थे, जिन्होंने 1920 के दशक और 1930 के शुरुआती दिनों में ब्रिटिश बंगाल (अब बांग्लादेश और भारत के पूर्वी भाग) में सुफ़िज्म का प्रसार किया। उन्होंने एक तारिका विकसित किया, जिसका नाम तारिका ई जामिया | .

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मूसा बिन नुसैर

मुसा बिन नुसर (अरबी: موسى بن نصير मुसा बिन नुय्यार; 640-716 ईस्वी) उमय्यद खलीफा अल-वालिद प्रथम के तहत एक गवर्नर और जनरल के रूप में कार्य किया। उन्होंने उत्तरी अफ्रीका के मुस्लिम प्रांतों (इफिरिया) पर शासन किया, और इस्लामिक कॉन्क्वेस्ट को निर्देशित किया। "हिस्पैनिया" (स्पेन, पुर्तगाल, अंडोरा और फ्रांस का हिस्सा था) पर मुस्लिम विजय अभियाननों का सफल नेतृत्व किया था। .

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मेहदी ख्वाजा पीरी

मेहदी ख्वाजा पीरी (फ़ारसी), नूर अंतर्राष्ट्रीय माइक्रोफिल्म केन्द्र, नई दिल्ली के संस्थापक है। इनका जन्म (1955) में तेहरान में स्थित याहिया मज़ार (इमाम जादा) के पास एक धार्मिक परिवार में हुआ। मरम्मत, पेस्टिंग और एक ही पाण्डुलिपि (हस्तलिपि) की दूसरी प्रतिलिपियों के प्रिंट के नए तरीको का अविष्कार किया जो प्राचीन ग्रंथो के संरक्षण में एक अभिनव कदम है। उन्होंने भारत में पुस्तको के पुनरुद्धार (पुनर्जीवन) में अपने जीवन के 35 वर्ष बिताये। इस अवधि के दौरान वह भारत की विविध संस्कृतियों से परिचित हुए। और इसके अलावा हिंदी, अंग्रेजी, और अरबी में भी महारत हासिल की। .

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मोमिन

मुहम्मद मोमिन खाँ (1800-1851) भारत के उर्दू कवि थे। उन्होने गजलें लिखीं हैं। कश्मीरी थे पर वे दिल्ली में आ बसे थे। उस समय शाह आलम बादशाह थे और इनके पितामह शाही हकीमों में नियत हो गए। अँग्रेजी राज्य में पेंशन मिलने लगा, जो मोमिस को भी मिलती थी। इनका जन्म दिल्ली में सन्‌ 1800 ई. में हुआ। फारसी -अरबी की शिक्षा ग्रहण कर हकीमी और मजूम में अच्छी योग्यता प्राप्त कर ली। छोटेपन ही से यह कविता करने लगे। तारीख कहने में यह बड़े निपुण थे। अपनी मृत्यु की तारीख इन्होंने कही थी-दस्तों बाजू बशिकस्त। इससे सन्‌ 1852 ई. निकलता है और इसी वर्ष यह कोठे से गिरकर मर गए। इनमें अहंकार की मात्रा अधिक थी, इसी से जब राजा कपूरथला ने इन्हें तीन सौ रुपए मासिक पर अपने यहाँ बुलाया तब यह केवल इस कारण वहाँ नहीं गए कि उतना ही वेतन एक गवैए को भी मिलता था। मोमिन बड़े सुंदर, प्रेमी, मनमौजी तथा शौकीन प्रकृति के थे। सुंदर वस्त्रों तथा सुगंध से प्रेम था। इनकी कविता में इनकी इस प्रकृति तथा सौंदर्य का प्रभाव लक्षित होता है। इसमें तत्सामयिक दिल्ली का रंग तथा विशेषताएँ भी हैं अर्थात्‌ इसमें अत्यंत सरल, रंगीन शेर भी हैं और क्लिष्ट उलझे हुए भी। इनकी गजलें भी लोकप्रिय हुई। इन्होंने बहुत से अच्छे वासोख्त भी लिखे हैं। वासोख्त लंबी कविता होत है जिसमें प्रेमी अपने प्रेमिका की निन्दा और शिकायत बड़े कठोर शब्दों में करता है। श्रेणी:उर्दू शायर.

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मोहम्मद बिन सलमान

मोहम्मद बिन सलमान अल सौद (अरबी: محمد بن سلمان آل سعود بن عبد العزيز; जन्म: 31 अगस्त 1985 जेद्दा में) सऊदी अरब के युवराज तथा सऊदी अरब प्रशस्ति पत्र के प्रथम उप प्रधानमंत्री और दुनिया के सबसे कम उम्र के रक्षामंत्री है।वे शाह बनने से पहले भी कभी-कभी शाही अदालत और विकास मामलों के लिए परिषद के प्रमुख अध्यक्ष के रूप में भी कार्य करते थे।वे अपने पिता राजा सलमान के सिंहासन के उत्तराधिकारी शक्ति के रूप में वर्णित किये गये और २१ जून २०१७ को उनका राज्याभिषेक किया गया।युवराज मौहम्मद बिन सलमान अपने पिता के सिंहासन के लिए वारिस बनाने तथा राजा सलमान के सभी पदों से पदच्युत होने के बाद राज सिंहासन पर नियुक्त हुए। .

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यमन

यमन (अरबी भाषा: اليَمَن अल-यमन), आधिकारिक तौर पर यमन गणराज्य (अरबी भाषा: الجمهورية اليمنية अल-जम्हूरिया अल-यमन) मध्यपूर्व एशिया का एक देश है, जो अरब प्रायद्वीप में दक्षिण पश्चिम में स्थित है। 2 करोड़ वाली आबादी वाले देश यमन की सीमा उत्तर में सऊदी अरब, पश्चिम में लाल सागर, दक्षिण में अरब सागर और अदन की खाड़ी और पूर्व में ओमान से मिलती है। यमन की भौगोलिक सीमा में लगभग 200 से ज्यादा द्वीप भी शामिल हैं, जिनमें सोकोत्रा द्वीप सबसे बड़ा है। .

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यूनानी चिकित्सा पद्धति

यूनानी चिकित्सा पद्धति को केवल यूनानी या हिकमत के नाम से भी पुकारा जाता है। इसे " यूनानी-तिब " या केवल " यूनान " के नाम से भी जाना जाता है। यूनानी तिब में यूनानी शब्द मूलत: " लोनियन " का अरबी रूपांतरण है जिसका अर्थ ग्रीक या यूनान है। भारत में सौ से अधिक यूनानी चिकित्सा विश्वविद्यालयों में यूनानी चिकित्सा पद्धति सिखाया जाता है। यह प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद के करीब है। इसे भारत में भी वैकल्पिक चिकित्सा माना गया है। यूनानी चिकित्सा पद्धति का इतिहास बड़ा शानदार था पर वर्तमान में एलोपैथी के सामने इसका टिकना बड़ा कठिन हो रहा है। .

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यूनानी वर्णमाला

यूनानी वर्णमाला (Greek alphabet) चौबीस अक्षरों की वर्ण व्यवस्था है जिनके प्रयोग से यूनानी भाषा को आठवीं सदी ईसा-पूर्व से लिखा जा रहा है। प्रत्येक स्वर एवं व्यंजन लिए पृथक चिन्ह वाली यह पहली एवं प्राचीनतम वर्णमाला है। यह वर्णमाला फ़ोनीशियाई वर्णमाला से उत्पन्न हुई थी और यूरोप की कई वर्ण-व्यवस्थाएँ इसी से जन्मी हैं। अंग्रेज़ी लिखने के लिये प्रयुक्त रोमन लिपि तथा रूसी भाषा लिखने के लिए प्रयोग की जाने वाली सीरिलिक वर्णमाला दोनों यूनानी लिपि से जन्मी हैं। दूसरी शताब्दी ईसापूर्व के बाद गणितज्ञों ने यूनानी अक्षरों को अंक दर्शाने के लिए भी प्रयोग करना शुरू कर दिया। यूनानी वर्णों का प्रयोग विज्ञान के कई क्षेत्रों में किया जाता है, जैसे भौतिकी में तत्वों के नाम, सितारों के नाम, बिरादरी एवं साथी सम्प्रदाय के नाम, ऊष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों के नाम के लिए। .

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यूसी ब्राउजर

यूसी ब्राउजर एक वेब ब्राउजर (यूसी मोबाइल के नाम से भी जाना जाता है) है। चीन में इसका मजबूत यूज़र बेस है और कस्टमाइज करने के बाद इसकी भारत के स्थानीय बाजार में काफी वृद्धि हुई है। यह मूलतः 2004 में लांच हुआ था। उस समय ये केवल J2me (जावा) के लिए उपलब्ध था।पर ये अब एंड्राइड विंडोज़ आईओएस ब्लैकबेरी पर भी उपलब्ध है। 2010 में इसने अपनी पहली एप (आईओएस के लिए) एप्पल एप स्टोर पर लांच की थी। इसपर हम कंप्यूटर तथा मोबाइल पर इंटरनेट देख सकते हैं। यूसी ब्राउजर पर इंटरनेट देखना बहुत सरल है। इस ब्राउजर में हम अनगिनत पृष्ठों को रोक कर कभी भी देख सकते हैं। .

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यूक्लिड

यूक्लिड यूक्लिड (Euclid; 300 ईसा पूर्व), या उकलैदिस, प्राचीन यूनान का एक गणितज्ञ था। उसे "ज्यामिति का जनक" कहा जाता है। उसकी एलिमेण्ट्स (Elements) नामक पुस्तक गणित के इतिहास में सफलतम् पुस्तक है। इस पुस्तक में कुछ गिने-चुने स्वयंसिद्धों (axioms) के आधार पर ज्यामिति के बहुत से सिद्धान्त निष्पादित (deduce) किये गये हैं। इनके नाम पर ही इस तरह की ज्यामिति का नाम यूक्लिडीय ज्यामिति पड़ा। हजारों वर्षों बाद भी गणितीय प्रमेयों को सिद्ध करने की यूक्लिड की विधि सम्पूर्ण गणित का रीढ़ बनी हुई यूक्लिड ने शांकवों, गोलीय ज्यामिति और संभवत: द्विघातीय तलों पर भी पुस्तकें लिखीं। .

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रमज़ान

रमज़ान या रमदान (उर्दू - अरबी - फ़ारसी: رمضان) इस्लामी कैलेण्डर का नवां महीना है। मुस्लिम समुदाय इस महीने को परम पवित्र मानता है।; इस मास की विशेषताएं.

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रसायन विज्ञान

300pxरसायनशास्त्र विज्ञान की वह शाखा है जिसमें पदार्थों के संघटन, संरचना, गुणों और रासायनिक प्रतिक्रिया के दौरान इनमें हुए परिवर्तनों का अध्ययन किया जाता है। इसका शाब्दिक विन्यास रस+अयन है जिसका शाब्दिक अर्थ रसों (द्रवों) का अध्ययन है। यह एक भौतिक विज्ञान है जिसमें पदार्थों के परमाणुओं, अणुओं, क्रिस्टलों (रवों) और रासायनिक प्रक्रिया के दौरान मुक्त हुए या प्रयुक्त हुए ऊर्जा का अध्ययन किया जाता है। संक्षेप में रसायन विज्ञान रासायनिक पदार्थों का वैज्ञानिक अध्ययन है। पदार्थों का संघटन परमाणु या उप-परमाण्विक कणों जैसे इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन और न्यूट्रॉन से हुआ है। रसायन विज्ञान को केंद्रीय विज्ञान या आधारभूत विज्ञान भी कहा जाता है क्योंकि यह दूसरे विज्ञानों जैसे, खगोलविज्ञान, भौतिकी, पदार्थ विज्ञान, जीवविज्ञान और भूविज्ञान को जोड़ता है। .

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राबर्ट फिस्क

रॉबर्ट फिस्क (Robert Fisk जन्म: 12 जुलाई 1946) मेडस्टोन, केंट के रहने वाले एक ब्रिटिश पत्रकार एवं लेखक हैं, जो कि मध्य पूर्व में अपनी बहादुर पत्रकारी के लिए जाने जाते हैं। फिस्क १२ वर्षों से ज्यादा समय तक अंग्रेज़ी अख़बार द इंडिपेंडेंट के लिए मध्य पूर्व के मुख्यत: बेरुत में संवाददाता रह चुके हैं। किसी भी अन्य पत्रकार कि तुलना में फिस्क को पत्रकारिता से संबन्धित कहीं अधिक ब्रिटिश व अंतरराष्ट्रिय पुरस्कार मिल चुके हैं। उन्हें ७ बार ब्रिटेन का वार्षिक अंतरराष्ट्रिय पत्रकार पुरस्कार मिल चुका है। उन्होंने विभिन्न युद्धों व सैन्य टकरावटों पे किताबें प्रकाशित की हैं। अरबी भाषा बोलने वाले वे उन कुछेक ऐसे पश्चिमी पत्रकारों में हैं जिन्होने ओसामा बिन लादेन का साक्षात्कार किया है। १९९३ से १९९७ के बीच में उन्होने ऐसा ३ बार किया है। .

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रामल्ला

रामल्ला (अरबी: رام الله रामल्लाह) पश्चिमी किनारे के मध्य में स्थित एक फिलीस्तीनी शहर है। यह यरूशलेम के उत्तर में 10 किमी (6 मील) की दूरी और समुद्र तल से 880 मीटर (2890 फुट) की औसत ऊंचाई पर स्थित है। यह अल-बिरेह से सटा है। वर्तमान में यह शहर फिलिस्तीनी राष्ट्रीय प्राधिकरण (पीएनए) की वास्तविक प्रशासनिक राजधानी है। रामल्ला ऐतिहासिक रूप से एक अरब ईसाई शहर था। आज लगभग 27,092 की आबादी के साथ मुस्लिम यहाँ बहुमत मे हैं, जबकि ईसाइ प्रमुख अल्पसंख्यक समूह हैं। .

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राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (भारत)

राष्ट्रीय रक्षा अकादमी, भारतीय सशस्त्र सेना की एक संयुक्त सेवा अकादमी है, जहां तीनों सेवाओं, थलसेना, नौसेना और वायु सेना के कैडेटों को उनके संबंधित सेवा अकादमी के पूर्व-कमीशन प्रशिक्षण में जाने से पहले, एक साथ प्रशिक्षित किया जाता है। यह महाराष्ट्र, पुणे के करीब खडकवासला में स्थित है। जबसे अकादमी की स्थापना हुई है तब से एनडीए के पूर्व छात्रों ने सभी बड़े संघर्ष का नेतृत्व किया है जिसमें भारतीय थलसेना को कार्यवाही के लिए आमंत्रित किया जाता रहा है। पूर्व छात्रों में तीन परमवीर चक्र प्राप्तकर्ता और 9 अशोक चक्र प्राप्तकर्ता शामिल हैं। .

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राष्ट्रीय सूत्रों की सूची

यह प्र्ष्ट विश्व के स्वतन्त्र राष्ट्रों एवं उनकी शाखाओं की सूची है।.

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राजा राममोहन राय

राजा राममोहन राय राजा राममोहन राय (রাজা রামমোহন রায়) (२२ मई १७७2 - २७ सितंबर १८३३) को भारतीय पुनर्जागरण का अग्रदूत और आधुनिक भारत का जनक कहा जाता है। भारतीय सामाजिक और धार्मिक पुनर्जागरण के क्षेत्र में उनका विशिष्ट स्थान है। वे ब्रह्म समाज के संस्थापक, भारतीय भाषायी प्रेस के प्रवर्तक, जनजागरण और सामाजिक सुधार आंदोलन के प्रणेता तथा बंगाल में नव-जागरण युग के पितामह थे। उन्होंने भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम और पत्रकारिता के कुशल संयोग से दोनों क्षेत्रों को गति प्रदान की। उनके आन्दोलनों ने जहाँ पत्रकारिता को चमक दी, वहीं उनकी पत्रकारिता ने आन्दोलनों को सही दिशा दिखाने का कार्य किया। राजा राममोहन राय की दूर‍दर्शिता और वैचारिकता के सैकड़ों उदाहरण इतिहास में दर्ज हैं। हिन्दी के प्रति उनका अगाध स्नेह था। वे रू‍ढ़िवाद और कुरीतियों के विरोधी थे लेकिन संस्कार, परंपरा और राष्ट्र गौरव उनके दिल के करीब थे। वे स्वतंत्रता चाहते थे लेकिन चाहते थे कि इस देश के नागरिक उसकी कीमत पहचानें। .

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राजा शिवप्रसाद 'सितारेहिन्द'

राजा शिवप्रसाद 'सितारेहिन्द' (३ फरवरी १८२४ -- २३ मई १८९५) हिन्दी के उन्नायक एवं साहित्यकार थे। वे शिक्षा-विभाग में कार्यरत थे। उनके प्रयत्नों से स्कूलों में हिन्दी को प्रवेश मिला। उस समय हिन्दी की पाठ्यपुस्तकों का बहुत अभाव था। उन्होंने स्वयं इस दिशा में प्रयत्न किया और दूसरों से भी लिखवाया। आपने 'बनारस अखबार' नामक एक हिन्दी पत्र निकाला और इसके माध्यम से हिन्दी का प्रचार-प्रसार किया। इनकी भाषा में फारसी-अरबी के शब्दों का अधिक प्रयोग होता था। राजा साहब 'आम फहम और खास पसंद' भाषा के पक्षपाती और ब्रिटिश शासन के निष्ठावान् सेवक थे। भारतेंदु हरिश्चंद्र ने इन्हें गुरु मानते हुए भी इसलिए इनका विरोध भी किया था। फिर भी इन्हीं के उद्योग से उस समय परम प्रतिकूल परिस्थितियों में भी शिक्षा विभाग में हिंदी का प्रवेश हो सका। साहित्य, व्याकरण, इतिहास, भूगोल आदि विविध विषयों पर इन्होंने प्राय: ३५ पुस्तकों की रचना की जिनमें इनकी 'सवानेह उमरी' (आत्मकथा), 'राजा भोज का सपना', 'आलसियों का कोड़ा', 'भूगोल हस्तामलक' और 'इतिहासतिमिरनाशक' उल्लेख्य हैं। .

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रियाद

रियाद (अरबी: الرياض शाब्दिक अर्थ उद्यान) सउदी अरब की राजधानी और सबसे बड़ा शहर है। यह सउदी अरब के रियाद प्रांत की राजधानी भी है साथ ही इसका संबंध नेज्द और अल यमामा जैसे ऐतिहासिक क्षेत्रों से भी है। यह अरब प्रायद्वीप के एक बड़े पठार पर स्थित है और इसकी जनसंख्या लगभग ६० लाख है। शहर को नगर निगम के 15 जिलों में विभाजित किया गया है जिसका प्रंबंधन रियाद नगर पालिका जिसके मुखिया रियाद के महापौर है और रियाद विकास प्राधिकरण जिसके अध्यक्ष रियाद प्रांत के राज्यपाल शहजादा सलमान बिन अब्दुलाजी़ज़ हैं, के द्वारा किया जाता है। रियाद के वर्तमान महापौर अब्दुल अजीज इब्न अय्याफ अल मिगरिन, हैं जिनकी नियुक्ति 1998 में हुई थी। .

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रघु वीर

आचार्य रघुवीर (३०, दिसम्बर १९०२ - १४ मई १९६३) महान भाषाविद, प्रख्यात विद्वान्‌, राजनीतिक नेता तथा भारतीय धरोहर के मनीषी थे। आप महान्‌ कोशकार, शब्दशास्त्री तथा भारतीय संस्कृति के उन्नायक थे। एक ओर आपने कोशों की रचना कर राष्ट्रभाषा हिंदी का शब्दभण्डार संपन्न किया, तो दूसरी ओर विश्व में विशेषतः एशिया में फैली हुई भारतीय संस्कृति की खोज कर उसका संग्रह एवं संरक्षण किया। राजनीतिक नेता के रूप में आपकी दूरदर्शिता, निर्भीकता और स्पष्टवादिता कभी विस्मृत नहीं की जा सकती। वे भारतीय संविधान सभा के सदस्य थे। दो बार (१९५२ व १९५८) राज्य सभा के लिये चुने गये। नेहरू की आत्मघाती चीन-नीति से खिन्न होकर जन संघ के साथ चले गये। भारतीय संस्कृति को जगत्गुरू के पद पर आसीन करने के लिये उन्होने विश्व के अनेक देशों का भ्रमण किया तथा अनेक प्राचीन ग्रन्थों को एकत्रित किया। उन्होने ४ लाख शब्दों वाला अंग्रेजी-हिन्दी तकनीकी शब्दकोश के निर्माण का महान कार्य भी किया। भारतीय साहित्य, संस्कृति और राजनीति के क्षेत्र में आपकी देन विशिष्ट एवं उल्लेखनीय है। भारत के आर्थिक विकास के संबंध में भी आपने पुस्तकें लिखी हैं और उनमें यह मत प्रतिपादित किया है कि वस्तु को केंद्र मानकर कार्य आरंभ किया जाना चाहिए। .

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रुदाकी

अब्दुल्ला जफ़र इब्न मुहम्म्द रुदाकी (859-941) फारसी के सबसे प्रमुख कवियों में से एक हैं। इन्हें आधुनिक फ़ारसी भाषा के प्रवर्तक कवि के रूप में भी जाना जाता है। उस समय जब फ़ारस (ईरान) पर अरबों का अधिकार हो गया था और साहित्यिक जगत में अरबी का प्रभुत्व बढ़ गया था, रुदाकी ने फ़ारसी भाषा के नवोदय करवाया था। उन्होंने अरबी लिपि के नए संशोधित संस्करण में लिखना चालू किया जो बाद में फ़ारसी भाषा की लिपि बन गई। रुदाकी की जन्म आधुनिक ताजिकिस्तान में माना जाता था जो उस समय फ़ारसी सांस्कृतिक क्षेत्र के अन्दर आता था। कहा जाता है कि वे जन्मजात अन्धे थे पर उनके द्वारा रंगों का इतना संजीदा चित्रण किया है कि यह विश्वास करना मुश्किल लगता है। यह जनश्रुति हिन्दी कवि सूरदास की कहानी जैसी लगती है। श्रेणी:फ़ारसी साहित्यकार.

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रॅपन्ज़ेल

जॉनी ग्रुएल द्वारा चित्रण "रॅपन्ज़ेल " एक जर्मन परि-कथा है जिसे ब्रदर्स ग्रिम ने अपने कथा-संग्रह में संग्रहित किया था और जो 1812 में पहली बार चिल्ड्रन्स एंड हाउसहोल्ड टेल्स के भाग के रूप में प्रकाशित हुई थी। ग्रिम ब्रदर्स की कहानी मूल रूप से 1698 में प्रकाशित चार्लट-रोज़ डे कॉमॉन्ट डे ला फ़ोर्स द्वारा लिखित परि कथा पर्सीनेट का रूपांतरण है। इसके कथानक और पैरोडियों का उपयोग विभिन्न मीडिया में हुआ है तथा इसकी सुविख्यात पंक्ति ("रॅपन्ज़ेल, रॅपन्ज़ेल, लेट डाउन योर हेयर") लोकप्रिय संस्कृति का मुहावरा है। यह आर्ने-थॉम्पसन टाइप 310, द मेडन इन द टॉवर (मीनार में कन्या) है। एंड्रयू लैंग ने इसे द रेड फ़ेयरी बुक में शामिल किया। कहानी के अन्य पाठांतर रूथ मैनिंग-सैंडर्स की अ बुक ऑफ़ विचस और पॉल ओ. ज़ेलिन्स्की की 1998 काल्डेकॉट पदक विजेता चित्र पुस्तिका, रॅपन्ज़ेल में भी प्रकाशित हुई हैं। .

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लिसान उद-दावत

लिसान उद-दावत (لسان الدعوة, दावत की भाषा) गुजराती भाषा की एक उपभाषा है। यह भाषा मुख्यतः इस्माइली शिया बिरादरी के आलवी और तायबी बोहराओं द्वारा बोली जाती है। मानक गुजराती से भिन्न, लिसान उद-दावत में अरबी और फ़ारसी के शब्द ज़्यादा हैं और यह भाषा अरबी लिपि में लिखी जाती है। यह मूलतः अनुष्ठान हेतु प्रयुक्त भाषा है, लेकिन 1330 में वडोदरा से सईदना जिवाभाई फ़ख़रुद्दीन ने स्थानीय भाषा के रूप में इसका प्रचार किया था। .

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लेबनान

लेबनॉन, आधिकारिक रूप से लुबनॉन गणराज्य, पश्चिमी एशिया में भूमध्य सागर के पूर्वी तट पर स्थित एक देश है। इसके उत्तर और पूर्व में सीरिया और दक्षिण में इसराइल स्थित है। भूमध्य बेसिन और अरब के भीतरी भाग के बीच में सेतु बने इस देश का इतिहास समृद्ध और मिश्रित है। यह भूमि फ़ीनिसियनों की अति-प्राचीन (2500 ईसापूर्व - 539 ईसापूर्व) संस्कृति का स्थल थी जहाँ से लेखन कला के विकास की कड़ी जुड़ी है। इसके बाद फ़ारसी, यूनानी, रोमन, अरब और उस्मानी तुर्कों के कब्जे में रहने के बाद यह फ्रांस के शासन में भी रहा। इसी ऐतिहासिक वजह से देश की धार्मिक और जातीय विविधता इसकी अनूठी सांस्कृतिक पहचान बनाती है। यहाँ 60 प्रतिशत लोग मुस्लिम हैं जिनमें शिया और सुन्नी का लगभग समान हिस्सा है और लगभग 38 प्रतिशत ईसाई। 1943 में फ्रांस से स्वतंत्रता मिलने के बाद यहाँ एक गृहयुद्ध चला था और 2006 में इसराइल के साथ एक युद्ध। यहाँ एक विशेष प्राकर की गणतांत्रिक सरकार का शासन है जिसमें राष्ट्रपति एक ईसाई होता है, प्रधान मंत्री एक सुन्नी मुस्लिम, निव्राचित प्रतिनिधियों की सभा का अध्यक्ष एक शिया मुस्लिम और उप प्रधान मंत्री एक ग्रीक परंपरावादी धर्म का होता है। अरबी यहाँ की सबसे बोले जाने वाली और सांवैधानिक भाषा है। .

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लेखांकन का इतिहास

भारत में लेखांकन का इतिहास भारत के वेदों से जानकारी मिलती है के विश्व को लिखांकन का ज्ञान भारत ने दिया | अथर्वेद में विक्रय शब्द हा जिसका मतलब सलेस होता है तथा शुल्क भी ऋग्वेद से लिया हुआ शब्द है जिस का भाव कीमत होता है | धर्म सूत्र का मतलब टैक्स होता है .

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लीबिया

लीबिया (ليبيا.), आधिकारिक तौर पर 'महान समाजवादी जनवादी लिबियाई अरब जम्हूरिया' (الجماهيرية العربية الليبية الشعبية الإشتراكية العظمى.‎ Al-Jamāhīriyyah al-ʿArabiyyah al-Lībiyyah aš-Šaʿbiyyah al-Ištirākiyyah al-ʿUẓmā), उत्तरी अफ़्रीका में स्थित एक देश है। इसकी सीमाएं उत्तर में भूमध्य सागर, पूर्व में मिस्र, उत्तरपूर्व में सूडान, दक्षिण में चाड व नाइजर और पश्चिम में अल्जीरिया और ट्यूनीशिया से मिलती है। करीबन १,८००,०० वर्ग किमी (६९४,९८४ वर्ग मील) क्षेत्रफल वाला यह देश, जिसका ९० प्रतिशत हिस्सा मरुस्थल है, अफ़्रीका का चौथा और दुनिया का १७ वां बड़ा देश है। देश की ५७ लाख की आबादी में से १७ लाख राजधानी त्रिपोली में निवास करती है। सकल घरेलू उत्पाद के लिहाज से यह इक्वीटोरियल गिनी के बाद अफ्रीका का दूसरा समृद्ध देश है। इसके पीछे मुख्य कारण विपुल तेल भंडार और कम जनसंख्या है। लीबिया १९५१ मे आजाद हुआ था एवं इस्क नाम 'युनाइटेड लीबियन किंगडम' (United Libyan Kingdom) रखा गया। जिसका नाम १९६३ मे 'किंगडम ऑफ लीबिया' (Kingdom of Libya) हो गया। १९६९ के तख्ता-पलट के बाद इस देश का नाम 'लिबियन अरब रिपब्लिक' रखा गया। १९७७ में इसका नाम बदलकर 'महान समाजवादी जनवादी लिबियाई अरब जम्हूरिया' रख दिया गया। .

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शब्दकल्पद्रुम

शब्दकल्पद्रुम संस्कृत का आधुनिक युग का एक महाशब्दकोश है। यह स्यार राजा राधाकांतदेव बाहादुर द्वारा निर्मित है। इसका प्रकाशन १८२८-१८५८ ई० में हुआ। यह पूर्णतः संस्कृत का एकभाषीय कोश है और सात खण्डों में विरचित है। इस कोश में यथासंभव समस्त उपलब्ध संस्कृत साहित्य के वाङ्मय का उपयोग किया गया है। इसके अतिरिक्त अंत में परिशिष्ट भी दिया गया है जो अत्यंत महत्वपूर्ण है। ऐतिहसिक दृष्टि से भारतीय-कोश-रचना के विकासक्रम में इसे विशिष्ट कोश कहा जा सकता है। परवर्ती संस्कृत कोशों पर ही नहीं, भारतीय भाषा के सभी कोशों पर इसका प्रभाव व्यापक रूप से पड़ता रहा है। यह कोश विशुद्ध शब्दकोश नहीं है, वरन् अनेक प्रकार के कोशों का शब्दार्थकोश, प्रर्यायकोश, ज्ञानकोश और विश्वकोश का संमिश्रित महाकोश है। इसमें बहुबिधाय उद्धरण, उदाहरण, प्रमाण, व्याख्या और विधाविधानों एवं पद्धतियों का परिचय दिया गया है। इसमें गृहीत शब्द 'पद' हैं, सुवंततिंगन्त प्रातिपदिक या धातु नहीं। .

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शिव दयाल सिंह

श्री शिव दयाल सिंह साहब (1861 - 1878) (परम पुरुश पुरन धनी हुजुर स्वामी जी महाराज) राधास्वामी मत की शिक्षाओं का प्रारंभ करने वाले पहले सन्त सतगुरु थे। उनका जन्म नाम सेठ शिव दयाल सिंह था। उनका जन्म 24 अगस्त 1818 में आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत में जन्माष्टमी के दिन हुआ। पाँच वर्ष की आयु में उन्हें पाठशाला भेजा गया जहाँ उन्होंने हिंदी, उर्दू, फारसी और गुरमुखी सीखी। उन्होंने अरबी और संस्कृत भाषा का भी कार्यसाधक ज्ञान प्राप्त किया। उनके माता-पिता हाथरस, भारत के परम संत तुलसी साहब के अनुयायी थे। छोटी आयु में ही इनका विवाह फरीदाबाद के इज़्ज़त राय की पुत्री नारायनी देवी से हुआ। उनका स्वभाव बहुत विशाल हृदयी था और वे पति के प्रति बहुत समर्पित थीं। शिव दयाल सिंह स्कूल से ही बांदा में एक सरकारी कार्यालय के लिए फारसी के विशेषज्ञ के तौर पर चुन लिए गए। वह नौकरी उन्हें रास नहीं आई.

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शकीरा

शकीरा इसाबेल मेबारक रिपोल (जन्म - २ फ़रवरी १९७७), जो शकीरा नाम से प्रसिद्ध हैं, एक कोलंबियन गायिका-गीतकार, संगीतकार, रिकॉर्ड निर्माता, नृत्यांगना और लोकोपकारक हैं, जो लैटिन अमेरिका के संगीत परिदृश्य में १९९० के दशक में एक संगीत प्रतिभा के रूप में उभरी। बेरेंकिया, कोलम्बिया में जन्मी और बड़ी हुई शकीरा ने विद्यालय में ही अपनी कई प्रतिभाओं को प्रदर्शित किया जिनमे रॉक एंड रोल, लैटिन तथा अरब में गायन क्षमता और गर्भ-नृत्य (बेली डांस) शामिल हैं। शकीरा की मातृभाषा स्पेनिश है पर वह सहज अंग्रेजी और पुर्तगाली और इतालवी, फ्रेंच तथा कातालान भी बोल लेती है। वह अरब शास्त्रीय संगीत भी जानती हैं। स्थानीय निर्माताओं के साथ किए उनके पहले दो एल्बम असफल हुए। उस वक्त शकीरा कोलंबिया के बाहर मशहूर नहीं थी। उन्होंने अपने खुद के ब्रांड के संगीत का निर्माण करने का फैसला किया। १९९५ में उन्होने पीएस देस्काल्सोस एल्बम निकला जिसने उन्हे लैटिन अमेरिका और स्पेन में खूब प्रसिद्धि दिलायी। १९९८ में उन्होंने ¿दोंदे एस्तन लोस लाद्रोनेस? (स्पेन: Dónde Están los Ladrones?) नामक एल्बम निकाला जिसके दुनिया भर में ७० लाख से अधिक प्रतियां बिकीं और उन्हे एक महत्वपूर्ण सफलता दिलाई। सन् २००१ में अपने संगीत वीडियो "व्हेनेवर, व्हेरेवर" (अनुवाद: जब भी, जहाँ भी) के जबर्दस्त सफलता के साथ, उन्होंने अपने एल्बम लांड्री सर्विस (अनुवाद: धुलाई - सेवा) से अंग्रेजी-बोलने वाली दुनिया में कदम रखा और दुनिया भर में १.३ करोड़ से अधिक प्रतियां बिकीं।, BMI.com चार साल बाद शकीरा ने दो एल्बम परियोजनाओं,ओरल फिक्सेशन खंड १ और ओरल फिक्सेशन खंड २ को जारी किया। दोनों ने उनकी सफलता को बल दिया विशेषतः २१वीं सदी का सबसे सफल गीत "हिप्स डोंट लाय"। अक्टूबर-नवम्बर 2009 के बाद शकीरा ने अपना नवीनतम एल्बम "शी वूल्फ " दुनिया भर में जारी किया। उन्होंने दो ग्रैमी पुरस्कार, सात लैटिनग्रैमी पुरस्कार जीते हैं और वह गोल्डन ग्लोब पुरस्कार के लिए भी नामांकित की गयी हैं। वह आज तक की सर्वाधिक-बिक्री वाली कोलंबियाई कलाकार और ग्लोरिया स्टेफान से पीछे दूसरी सबसे सफल लैटिन गायिका है, जिनके ५० मिलियन से अधिक एल्बम दुनिया भर में बिक चुके हैं। इसके अतिरिक्त वह दक्षिण अमेरिका की एकमात्र कलाकार है जो अमेरीकी बिलबोर्ड हॉट 100, ऑस्ट्रेलियाई ARIA चार्ट और ब्रिटेन सिंगल चार्ट में पहले स्थान तक पहुंच चुकी है। शकीरा का मशहूर गाना "वाका वाका"२०१० फुटबॉल विश्व कप के अधिकृत गाने के रूप में चुना गया था। शकीरा को हॉलीवुड वॉक ऑफ फेम में एक स्टार मिला है। .

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ष का संस्कृत उच्चारण सुनिए - यह श से थोड़ा भिन्न है श का उच्चारण सुनिए - हिंदी में ष इसी की तरह कहा जाता है, लेकिन संस्कृत का ष इस से भिन्न है ष देवनागरी लिपि का एक वर्ण है। संस्कृत से उत्पन्न कई शब्दों में इसका प्रयोग होता है, जैसे की षष्ठ, धनुष, सुष्मा, कृषि, षड्यंत्र, संघर्ष और कष्ट। अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला (अ॰ध॰व॰) में इसके संस्कृत उच्चारण को ʂ के चिन्ह से लिखा जाता है। संस्कृत में 'ष' और 'श' के उच्चारण में काफ़ी अंतर है, लेकिन हिंदी से 'ष' ध्वनि लगभग लुप्त हो चुकी है और इसे 'श' कि तरह उच्चारित किया जाता है, जिसका अ॰ध॰व॰ चिन्ह ʃ है। संस्कृत में 'क' और 'ष' का एक संयुक्त अक्षर 'क्ष' भी प्रयोग होता है। संस्कृत में 'क्ष' का उच्चारण भी 'क्श' से भिन्न है हालाँकि हिंदी में इनमें अंतर नहीं है। .

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सनातन गोस्वामी

सनातन गोस्वामी (सन् 1488 - 1558 ई), चैतन्य महाप्रभु के प्रमुख शिष्य थे। उन्होने गौड़ीय वैष्णव भक्ति सम्प्रदाय की अनेकों ग्रन्थोंकी रचना की। अपने भाई रूप गोस्वामी सहित वृन्दावन के छ: प्रभावशाली गोस्वामियों में वे सबसे ज्येष्ठ थे। .

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समाजभाषाविज्ञान

समाजभाषाविज्ञान (Sociolinguistics) के अन्तर्गत समाज का भाषा पर एवं भाषा के समाज पर प्रभाव का अध्ययन किया जाता है। यह भाषावैज्ञानिक अध्ययन का वह क्षेत्र है जो भाषा और समाज के बीच पाये जानेवाले हर प्रकार के सम्बंधों का अध्ययन विश्लेषण करता है। अर्थात समाजभाषाविज्ञान वह है जो भाषा की संरचना और प्रयोग के उन सभी पक्षों एवं संदर्भों का अध्ययन करता है जिनका सम्बंध सामाजिक एवं सांस्कृतिक प्रकार्य के साथ होता है अत: इसके अध्ययन क्षेत्र के भीतर विभिन्न सामाजिक वर्गों की भाषिक अस्मिता, भाषा के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण एवं अभिवृत्ति, भाषा की सामाजिक शैलियाँ, बहुभाषिकता का सामाजिक आधार, भाषा नियोजन आदि भाषा-अध्ययन के वे सभी संदर्भ आ जाते है, जिनका संबंध सामाजिक संस्थान से रहता है। .

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सरकैशिया

सरकैशिया (Circassia; रूसी: Черке́сия, अरबी: شيركاسيا‎) एक प्रदेश (क्षेत्र) तथा ऐतिहासिक देश है। यह उत्तरी काकेशस क्षेत्र में कृष्ण सागर के उत्तरी-पूर्वी किनारे पर स्थित है। यह काकेशियन लोगों का प्राचीन देश है। मध्य युग में सरकैशियावासी काकेशस पर्वतों में रहते थे। १०वीं से १३वीं शताब्दी तक सरकैशिया जार्जिया के शासन के अंतर्गत रहा, फिर कई शताब्दियों तक सरकैशिया स्वतंत्र रहा। सन् १८२९ ई. में सरकैशिया पर रूस का पूर्ण शासन कायम हुआ। फलस्वरूप लगभग पाँच लाख सरकैशियावासी टर्की और बल्गेरिया चले गए और अब केवल ९३,००० (१९५०) सरकैशियावासी रह गए हैं। इस क्षेत्र में निवास करनेवाली ही अन्य जातियों में रूसी और कॉकेशियाई जातियाँ हैं। उच्च वर्ग के सरकैशियावासी मुसलमान हैं। सरकैशियावासी स्त्रियाँ सुंदरता के लिए प्रसिद्ध हैं और एक समय बादशाहों के हरम के लिए इनकी बड़ी चाह थी। श्रेणी:यूरोप के प्राचीन देश श्रेणी:एशिया के प्राचीन देश.

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सलमा हायेक

सलमा वल्गार्मा हायेक जिमेनेज़ दी पिनौल्ट (Salma Valgarma Hayek Jiménez de Pinault, जन्म २ सितम्बर १९६६) एक मैक्सिकी अभिनेत्री, निर्देशक, टीवी और फ़िल्म निर्माता हैं। हायेक के परोपकारी कार्यों में महिलाओं के प्रति हिंसा के खिलाफ जागरूकता को बढ़ावा देना और अप्रवासियों के प्रति भेदभाव को ख़त्म करने जैसी चीज़ें शामिल हैं। हायेक पहली ऐसी मैक्सिकन नागरिक हैं जिन्हें अकादमी पुरस्कार के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के तौर पर नामांकित किया गया। मूक फ़िल्मों की अभिनेत्री डोलोरेस डेल रियो के बाद सलमा हायेक हॉलीवुड में काम करने वाले मेक्सिको के सबसे प्रख्यात लोगों में से एक हैं। सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के रूप में अकादमी पुरस्कार के लिए नामांकित होने वाली तीन लातिनी अमरीकी अभिनेत्रियों में भी वो तीसरे स्थान पर हैं यानि दूसरे स्थान पर फर्नेंडा मोंटेनेग्रो के बाद (जबकि इन तीन अभिनेत्रियों में एक और हैं कैटलीना सैंडीनो मोरेनो)। जुलाई २००७ में, हॉलीवुड रिपोर्टर ने लैटीनो पावर ५० यानि हॉलीवुड के लातिनी समुदाय के सबसे प्रभावशाली सदस्यों की सूची के शुरूआती अंक में हायेक को चौथे स्थान पर रखा। इसी महीने के दौरान, एक सर्वेक्षण में ३,००० प्रसिद्ध व्यक्तियों (स्त्री और पुरुष) में से हायेक को "सबसे आकर्षक (सेक्सी) व्यक्तित्व" के रूप में चुना गया, इस सर्वेक्षण के अनुसार, "अमेरिका की 65 प्रतिशत जनता हायेक के लिए 'सेक्सी' शब्द का प्रयोग करेगी"। दिसम्बर 2008 में, एन्टरटेनमेंट वीकली ने हायेक को "टीवी पर आने वाले 25 सबसे स्मार्ट लोगों" की सूची में १७वां स्थान दिया। .

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सलजूक़ साम्राज्य

'बुर्ज तोग़रोल​' ईरान की राजधानी तेहरान के पास तुग़रिल बेग़​ के लिए १२वीं सदी में बना एक स्मारक बुर्ज है सलजूक़​ साम्राज्य या सेल्जूक साम्राज्य(तुर्की: Büyük Selçuklu Devleti; फ़ारसी:, दौलत-ए-सलजूक़ियान​; अंग्रेज़ी: Seljuq Empire) एक मध्यकालीन तुर्की साम्राज्य था जो सन् १०३७ से ११९४ ईसवी तक चला। यह एक बहुत बड़े क्षेत्र पर विस्तृत था जो पूर्व में हिन्दू कुश पर्वतों से पश्चिम में अनातोलिया तक और उत्तर में मध्य एशिया से दक्षिण में फ़ारस की खाड़ी तक फैला हुआ था। सलजूक़ लोग मध्य एशिया के स्तेपी क्षेत्र के तुर्की-भाषी लोगों की ओग़ुज़​ शाखा की क़िनिक़​ उपशाखा से उत्पन्न हुए थे। इनकी मूल मातृभूमि अरल सागर के पास थी जहाँ से इन्होनें पहले ख़ोरासान​, फिर ईरान और फिर अनातोलिया पर क़ब्ज़ा किया। सलजूक़ साम्राज्य की वजह से ईरान, उत्तरी अफ़्ग़ानिस्तान​, कॉकस और अन्य इलाक़ों में तुर्की संस्कृति का प्रभाव बना और एक मिश्रित ईरानी-तुर्की सांस्कृतिक परम्परा जन्मी।, Jamie Stokes, Anthony Gorman, pp.

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सहारा मरुस्थल

पाठ.

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सहीह मुस्लिम

सहीह मुस्लिम (अरबी: صحيح مسلم, Ṣaḥīḥ मुस्लिम; पूर्ण शीर्षक: अल-मुसनद अल-सहीहु बी नक़लिल अदली) सुन्नी इस्लाम में * Category:सुन्नी हदीसों का संग्रह Category:9th-century Arabic books.

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सहीह अल-बुख़ारी

सहीह अल-बुख़ारी (अरबी: صحيح البخاري), जिसे बुखारी शरीफ़ (अरबी: بخاري شريف) भी कहा जाता है। सुन्नी इस्लाम के कुतुब अल-सित्ताह (छह प्रमुख हदीस संग्रह) में से एक है। इन पैग़म्बर की परंपराओं, या हदीसों को मुस्लिम विद्वान मुहम्मद अल-बुख़ारी ने एकत्र किया। इस हदीस का संग्रह 846/232 हिजरी के आसपास पूरा हो गया था। सुन्नी मुसलमान सही बुख़ारी और सही मुस्लिम को दो सबसे भरोसेमंद संग्रह मानते हैं। ज़ैदी शिया मुसलमानों द्वारा भी एक प्रामाणिक हदीस संग्रह के रूप में माना और इसका उपयोग भी किया जाता है। कुछ समूहों में, इसे कुरान के बाद सबसे प्रामाणिक पुस्तक माना जाता है। Muqaddimah Ibn al-Salah, pg.

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साना

सना या सनआ (अरबी: صنعاء) यमन की राजधानी और सनआ मुहाफ़ज़ाह का प्रशासनिक केंद्र है (हालाँकि उस प्रान्त का हिस्सा नहीं है)। यह यमन का सबसे बड़ा शहर है। सनआ पर स्थित है और 2004 जनगणना के अनुसार इसकी आबादी 1747627 है। .

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सामी-हामी भाषा-परिवार

सामी-हामी (अथवा अफ़्रो-एशियाई) भाषा-परिवार (अंग्रेज़ी::en:Afro-Asiatic languages) मध्य-पूर्व (एशिया) और उत्तरी अफ़्रीका की कई सम्बन्धित भाषाओं का समूह है। इस परिवार की सामी शाखा साउदी अरब, फ़िलिस्तीन, इस्राइल, इराक़, सीरिया (शाम), मिस्र, यार्दन, इथियोपिया, तुनीसिया, अल्जीरिया, मोरोक्को, इत्यादि में और हामी शाखा लीबिया, सोमालीलैंड, मिस्र और इथियोपिया में फ़ैली हुई हैं। इसकी शामी शाखा में इब्रानी, अरबी, अरामी, प्राचीन सुमेरियाई शामिल हैं और हामी शाखा में प्राचीन मिस्री, कॉप्टिक, सोमाली, गल्ला, नामा, आदि भाषाएँ आती हैं। इस वर्ग की भाषाएँ अन्तर्मुखी श्लिष्ट-योगातमक होती हैं। उदाहरण के तौर पर अरबी में क्-त्-ल् (मारना) धातु से बीच में स्वर घुसाने पर कई नये शब्द बनते हैं, जैसे: कत्ल (हत्या), कातिल (हत्यारा), कित्ल (दुश्मन) और यक्तुल (वो मारता है)। श्रेणी:भाषा-परिवार.

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सिन्दहिन्द

ज़िज अल-सिन्दहिन्द या ज़िज अल-सिन्दहिन्द अल-कबीर भारत में रचित एक ज्योतिषीय ग्रन्थ है जिसमें खगोलीय पिण्डों की स्थिति की गणना करने के लिये सारणियाँ दी गयीं हैं। अरबी-फारसी में इस प्रकार के ज्योतिषीय ग्रन्थों को 'ज़िज' (Zīj) कहा गया है। 'सिन्दहिन्द' शब्द 'सिद्धान्त' से आया है जो 'सिद्धान्त ज्योतिष' या 'गणित ज्योतिष' का सूचक है। इसकी रचना ७७० ई के आसपास बगदाद के खलीफा अल मंसूर के दरबार में हुई। अल मंसूर ने संस्कृत से इस ग्रन्थ को अनूदित करने के लिये मुहम्मद अल-फज़ारी को नियुक्त किया था। श्रेणी:भारतीय गणित.

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सिन्धी भाषा

सिंधी भारत के पश्चिमी हिस्से और मुख्य रूप से गुजरात और पाकिस्तान के सिंध प्रान्त में बोली जाने वाली एक प्रमुख भाषा है। इसका संबंध भाषाई परिवार के स्तर पर आर्य भाषा परिवार से है जिसमें संस्कृत समेत हिन्दी, पंजाबी और गुजराती भाषाएँ शामिल हैं। अनेक मान्य विद्वानों के मतानुसार, आधुनिक भारतीय भाषाओं में, सिन्धी, बोली के रूप में संस्कृत के सर्वाधिक निकट है। सिन्धी के लगभग ७० प्रतिशत शब्द संस्कृत मूल के हैं। सिंधी भाषा सिंध प्रदेश की आधुनिक भारतीय-आर्य भाषा जिसका संबंध पैशाची नाम की प्राकृत और व्राचड नाम की अपभ्रंश से जोड़ा जाता है। इन दोनों नामों से विदित होता है कि सिंधी के मूल में अनार्य तत्व पहले से विद्यमान थे, भले ही वे आर्य प्रभावों के कारण गौण हो गए हों। सिंधी के पश्चिम में बलोची, उत्तर में लहँदी, पूर्व में मारवाड़ी और दक्षिण में गुजराती का क्षेत्र है। यह बात उल्लेखनीय है कि इस्लामी शासनकाल में सिंध और मुलतान (लहँदीभाषी) एक प्रांत रहा है और 1843 से 1936 ई. तक सिन्ध, बम्बई प्रांत का एक भाग होने के नाते गुजराती के विशेष संपर्क में रहा है। पाकिस्तान में सिंधी भाषा नस्तालिक (यानि अरबी लिपि) में लिखी जाती है जबकि भारत में इसके लिये देवनागरी और नस्तालिक दोनो प्रयोग किये जाते हैं। .

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सिन्धी भाषा की लिपियाँ

सिन्धी वर्णमाला तथा उसके तुल्य देवनागरी, उर्दू, तथा रोमन वर्ण एक शताब्दी से कुछ पहले तक सिन्धी लेखन के लिए चार लिपियाँ प्रचलित थीं। हिन्दू पुरुष देवनागरी का, हिंदु स्त्रियाँ प्राय: गुरुमुखी का, व्यापारी लोग (हिंदू और मुसलमान दोनों) "हटवाणिको" का (जिसे 'सिंधी लिपि' भी कहते हैं) और मुसलमान तथा सरकारी कर्मचारी अरबी-फारसी लिपि का प्रयोग करते थे। सन 1853 ई. में ईस्ट इंडिया कंपनी के निर्णयानुसार लिपि के स्थिरीकरण हेतु सिंध के कमिश्नर मिनिस्टर एलिस की अध्यक्षता में एक समिति नियुक्त की गई। इस समिति ने अरबी-फारसी-उर्दू लिपियों के आधार पर "अरबी सिंधी " लिपि की सर्जना की। सिंधी ध्वनियों के लिए सवर्ण अक्षरों में अतिरिक्त बिंदु लगाकर नए अक्षर जोड़ लिए गए। अब यह लिपि सभी वर्गों द्वारा व्यवहृत होती है। इधर भारत के सिंधी लोग नागरी लिपि को सफलतापूर्वक अपना रहे हैं। .

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सिर्त

सिर्त (अरबी: سرت), लीबिया का एक शहर है जो सिद्र की खाड़ी के दक्षिणी तट पर स्थित है। सिर्त त्रिपोली और बेनग़ाज़ी के रास्ते पर दोनो शहरों से बराबर दूरी पर स्थित है। सिर्त की स्थापना एक बस्ती के रूप में बीसवीं शताब्दी की शुरुआत में इतालवियों ने उस स्थान पर की थी जिस स्थान पर 19 वीं सदी में ओटोमनों ने एक किले का निर्माण किया था। सिर्त द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान एक शहर के रूप में विकसित हुआ। सिर्त लीबिया के तानाशाह मुअम्मर अल-गद्दाफी का जन्मस्थान है। यह शहर लीबिया के गृहयुद्ध के दौरान गद्दाफी की वफादार सेनाओं का अंतिम प्रमुख गढ़ बना जहां गद्दाफी 20 अक्टूबर 2011 को विद्रोही बलों के हाथों मारा गया। इस युद्ध के फलस्वरूप सिर्त की अधिकांश इमारते या तो पूरी तरह ध्वस्त हो गयीं या क्षतिग्रस्त हो गयीं। .

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सिर्री सक़्ती

शेख सिर्री सक़्ती (अरबी:سری سقطی; मृत्यु: ८६७ ई) बिन अल मुफ़्लिस बगदाद के सुन्नी संप्रदाय के एक सूफ़ी थे। जुनैद बग़्दाादी के चाचा होते थे। नूरी, खरज़ि तथा खैर नस्साज से दीक्षित थे। अपने समय के महान् सूफ़ी, सृष्टि के पथप्रदर्शक और बड़े आलिम (धर्मपंडित) समझे जाते थे। आध्यात्मिक सिद्धांतों में अल मुहास्वी के अनुयायी थे। उनके कथनानुसार ईश्वर और मानव प्रेमसूत्र में संबद्ध हैं, और सच्चे प्रेमी को शारीरिक संताप सहन नहीं करना पड़ता। मर्द (पुरुष) वह है जो बाजार में भी ईश्वर के गुणगान में संलग्न रहे। महाबली तथा मल्ल वह है जो अपनी दुरभिलाषाओं को अपने वश में कर ले। उन्होंने यह भी कहा कि जब हृदय में और कोई वस्तु होती है तो यह पाँच बातें वहाँ नहीं होतीं - ईश्वरभय, आशा, प्रेम, लज्जा तथा अनुकंपा। पुरुष वह है जिससे सृष्टि को किसी प्रकार का कष्ट न पहुँचे। जुनैद बग़्दाादी के कथानुसार सरी सक़्ती चिंतन तथा ईश्वर-गुणगान में अद्वितीय थे। ९८ वर्षों तक कभी धरती पर नहीं बैठे। इब्ने हबल ने उनके इस मत का खंडन किया है कि कुरान के अक्षर मनुष्य द्वारा रचित हैं। व्यापार करते थे। ९८ वर्ष की आयु में २८ रमज़ान २५० (८७० ई.) अथवा २५३ (८६७ ई.) को स्वर्गवास हुआ। समाधि बगदाद में है। श्रेणी:सूफी सन्त.

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सिकन्दरिया

सूर्यास्तकालीन सिकन्दरिया. सिकन्दरिया की सड़कें. सिकन्दरिया (अंग्रेजी:Alexandria; अरबी: الإسكندرية अल-इस्कंदरिया), मिस्र का दूसरा सबसे बड़ा शहर है। यहां की जनसंख्या 41 लाख है और यह देश का सबसे बड़ा समुद्री बंदरगाह है जहां मिस्र का लगभग 80% आयात और निर्यात कार्य संपन्न होता है। सिकन्दरिया एक महत्वपूर्ण पर्यटक स्थल भी है। सिकन्दरिया, उत्तर-मध्य मिस्र में भूमध्य सागर के तट के किनारे लगभग दूर तक फैला हुआ है। यह बिब्लियोथेका अलेक्जेंड्रिना (नया पुस्तकालय) का घर है। एक अन्य शहर, स्वेज, से अपने प्राकृतिक गैस और तेल की पाइपलाइनों की वजह से यह मिस्र का एक महत्वपूर्ण औद्योगिक केंद्र बन गया है। प्राचीन काल में, सिकन्दरिया दुनिया के सबसे प्रसिद्ध शहरों में से एक था। इसकी स्थापना सिकंदर महान (अलेक्जेंडर द ग्रेट) ने लगभग (c.) 331 ई.पू.

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संयुक्त राष्ट्र

संयुक्त राष्ट्र (United Nations) एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है, जिसके उद्देश्य में उल्लेख है कि यह अंतरराष्ट्रीय कानून को सुविधाजनक बनाने के सहयोग, अन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक विकास, सामाजिक प्रगति, मानव अधिकार और विश्व शांति के लिए कार्यरत है। संयुक्त राष्ट्र की स्थापना २४ अक्टूबर १९४५ को संयुक्त राष्ट्र अधिकारपत्र पर 50 देशों के हस्ताक्षर होने के साथ हुई। द्वितीय विश्वयुद्ध के विजेता देशों ने मिलकर संयुक्त राष्ट्र को अन्तर्राष्ट्रीय संघर्ष में हस्तक्षेप करने के उद्देश्य से स्थापित किया था। वे चाहते थे कि भविष्य में फ़िर कभी द्वितीय विश्वयुद्ध की तरह के युद्ध न उभर आए। संयुक्त राष्ट्र की संरचना में सुरक्षा परिषद वाले सबसे शक्तिशाली देश (संयुक्त राज्य अमेरिका, फ़्रांस, रूस और संयुक्त राजशाही) द्वितीय विश्वयुद्ध में बहुत अहम देश थे। वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र में १९३ देश है, विश्व के लगभग सारे अन्तर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त देश। इस संस्था की संरचन में आम सभा, सुरक्षा परिषद, आर्थिक व सामाजिक परिषद, सचिवालय और अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय सम्मिलित है। .

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संयुक्त राष्ट्र महासभा

संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly), संयुक्त राष्ट्र के छः अंगों में से एक हैं और यहीं केवल सर्वांगीण संस्था है, जिसमें संयुक्त राष्ट्र के समस्त सदस्य राष्ट्रों का सम प्रतिनिधित्व है। महासभा संयुक्त राष्ट्र के घोषणापत्र के अंतर्गत आनेवाले समस्त विषयों पर तथा संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न अंगों की कार्यपरिधि में आनेवाले प्रश्नों पर विचार करती है और सदस्य राष्ट्रों एवं सुरक्षा परिषद् से उचित अभिस्ताव कर सकती है। यह संयुक्त राष्ट्र के पांच मुख्य अंगों में से एक है। इस सभा का हर वर्ष सब सदस्य देशों के प्रतिनिधियों के साथ सम्मेलन होता है। इन प्रतिनिधियों में से एक को अध्यक्ष चुना जाता है। क्योंकि समान्य सभा वह अकेला मुख्य अंग है जिसमें सब सदस्य देश सम्मिलित होते है, उसके सम्मेलन अधिकतर विवाद के मंच होते है। .

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संयुक्त राष्ट्र सचिवालय

संयुक्त राष्ट्र सचिवालय संयुक्त राष्ट्र का एक मुख्य अंग है जो संयुक्त राष्ट्र महासचिव द्वारा नेतृत्व होता है। संयुक्त राष्ट्र के बाकी के अंगों के लिए आवश्यक जानकारी और सुविधा सचिवालय द्वारा प्राप्त होती हैं। संयुक्त राष्ट्र अधिकारपत्र के अनुरूप, महासचिव अपनी सहायता के लिए दक्ष, योग्य और सत्यनिष्ठ कर्मचारियों का अंतर्राष्ट्रीय समूह खुद चुनता है। .

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संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद संयुक्त राष्ट्र के छः प्रमुख अंगों में से एक अंग है, जिसका उत्तरदायित्व है अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखना। परिषद को अनिवार्य निर्णयों को घोषित करने का अधिकार भी है। ऐसे किसी निर्णय को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद प्रस्ताव कहा जाता है। सुरक्षा परिषद में 15 सदस्य है ः पांच स्थाई और दस अल्पकालिक (प्रत्येक 2 वर्ष के लिए) पांच स्थाई सदस्य हैं चीन, फ़्रांस, रूस, ग्रेट ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका । इन पांच देशों को कार्यविधि मामलों में तो नहीं पर विधिवत मामलों में प्रतिनिषेध शक्ति है। बाकी के दस सदस्य क्षेत्रीय आधार के अनुसार दो साल की अवधि के लिए सामान्य सभा द्वारा चुने जाते है। सुरक्षा परिषद का अध्यक्ष हर महीने वर्णमालानुसार बदलता है। .

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संयुक्त राष्ट्र अधिकारपत्र

संयुक्त राष्ट्र अधिकारपत्र (United Nations Charter) वह पत्र है जिसपर 50 देशों के हस्ताक्षर द्वारा संयुक्त राष्ट्र स्थापित हुआ। अक्सर इस पत्र को संविधान माना जाता है, पर वास्तव में यह एक संधि है। इस पर अावश्यक 50 हस्ताक्षर 26 जून 1945 को हुए, पर संयुक्त राष्ट्र वास्तव में 24 अक्टूबर 1945 को स्थापित हुआ जब पांच मुख्य संस्थापक देशों (चीन गणराज्य, फ़्रांस, संयुक्त राज्य, संयुक्त राजशाही और सोवियत संघ) ने इस पत्र को स्वीकृत किया। .

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संयुक्त अरब अमीरात क्रिकेट टीम

संयुक्त अरब अमीरात (अंग्रेजी:United Arab Emirates national cricket team)(अरबी: فريق الإمارات الوطني للكريكيت‎) एक राष्ट्रीय क्रिकेट टीम है जो एशिया महाद्वीप के अंतर्गत आती है। इनको सक्षिप्त रूप से (यूएई) के नाम से जानी जाती है। .

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सुधाकर द्विवेदी

पंडित सुधाकर द्विवेदी महामहोपाध्याय पण्डित सुधाकर द्विवेदी (अनुमानतः २६ मार्च १८५५ -- २८ नवंबर, १९१० ई. (मार्गशीर्ष कृष्ण द्वादशी सोमवार संवत् १९६७)) भारत के आधुनिक काल के महान गणितज्ञ एवं उद्भट ज्योतिर्विद थे। आप हिन्दी साहित्यकार एवं नागरी के प्रबल पक्षधर भी थे। .

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स्वाहिली भाषा

स्वाहिली (Kiswahili) विभिन्न जातीय समूहों द्वारा बोली जाने वाली भाषा है, जो हिंद महासागर तट से लगे दक्षिणी सोमालिया से लेकर कोमोरोस द्वीप सहित, उत्तरी मोजाम्बिक में रहती है। यद्यपि केवल एक करोड़ से लेकर ५० लाख तक की आबादी इस भाषा को मातृभाषा के रूप में प्रयुक्त करती है, लेकिन स्वाहिली चार देशों की राष्ट्रीय या आधिकारिक भाषा है, साथ ही अफ्रीकी संघ की आधिकारिक भाषाओं में अकेली अफ़्रीफी मूल की भाषा है। .

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स्क्राइबस

स्क्राइबस (Scribus) डेस्कटॉप प्रकाशन का मुक्तस्रोत प्रोग्राम है। पहले इसमें यूनिकोड का समर्थन तो था किन्तु अब भी भारतीय लिपियों (जैसे, देवनागरी), अरबी, हिब्रू एवं दक्षिण-पूर्वी एशिया के लिपियों का पूर्ण समर्थन नहीं हो पाया था। किन्तु मई २०१७ में आये इसके १.५.३ संस्करण के बाद सब कुछ ठीक है। इसमें देवनागरी का प्रदर्शन ठीक हो रहा है (पहले छोटी इ की मात्रा गलत तरह से दिखती थी)। .

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सूडान की भाषायें

सूडान एक बहुभाषी देश है जहाँ कई भाषाएँ बोली जाती हैं जिनमें सर्वाधिक प्रमुख सूडानी अरबी है। .

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सोमालिया

सोमालिया(Soomaaliya; الصومال), या आधिकारिक तौर पर संघीय गणराज्य सोमालियाThe Federal Republic of Somalia is the country's name per Article 1 of the.

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सीमाब अकबराबादी

सीमाब अकबराबादी उर्दू के महान लेखक और कवि थे सीमाब अकबराबादी उर्दू के महान लेखक व कवि थे। वह दाग़ देहलवी के शागिर्द थे। जब कभी उर्दू अदब का ज़िक्र होता है तब उनका नाम मोहमद इक़बाल, जोश मलीहाबादी, फ़िराक गोरखपुरी और जिग़र मुरादाबादी के साथ लिया जाता है। .

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हमाम (साबुन)

हमाम भारत में यूनिलीवर कंपनी का साबुन ब्रांड हैं। यह नाम अरबी / फारसी / हिंदी शब्द से आता है। हम्माम मध्य पूर्वी देशों में एक सार्वजनिक स्नान स्थापना के लिए संदर्भित करता है। यह एक समय भारत में एक प्रमुख स्नान साबुन ब्रांड था। हमाम साबुन परिवारों द्वारा इस्तेमाल किया जा सकता है जिसे एक हल्के साबुन के रूप में 1931 में स्थापित किया गया था। यह एक समय, केवल भारत में बना प्राकृतिक साबुन में थ। हमाम साबुन का उपयोग के लिए तमिलनाडु के चिकित्सको द्वारा सबसे सिफारिश साबुन है। .

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हलवा

पिस्ता के साथ बाल्कन शैली में ताहिनी आधारित हलवा हलवा (या हलावा, हलेवेह, हेलवा, हलवाह, हालवा, हेलावा, हेलवा, हलवा, अलुवा, चालवा, चलवा) कई प्रकार की घनी, मीठी मिठाई को संदर्भित करता है, जिसे पूरे मध्य पूर्व, दक्षिण एशिया, मध्य एशिया, पश्चिम एशिया, उत्तरी अफ्रीका, अफ्रीका का सींग, बाल्कन, पूर्वी यूरोप, माल्टा और यहूदी जगत में खाने के लिए पेश किया जाता है। शब्द हलवा (अरबी हलवा حلوى से) का प्रयोग दो प्रकार की मिठाई के वर्णन के लिए किया जाता है.

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हसन इब्न अली

हसन इब्न अली या अल-हसन बिन अली (अरबी: الحسن بن علي بن أﺑﻲ طالب यानि हसन, पिता का नाम अली सन् 625-671) खलीफ़ा अली अ० के बड़े बेटे थे। आप अली अ० के बाद कुछ समय के लिये खलीफ़ा रहे थे। माविया, जो कि खुद खलीफा बनना चाहता था, आप से संघर्ष करना चाहता था पर आपने इस्लाम में गृहयुद्ध (फ़ितना) छिड़ने की आशंका से ऐसा होने नहीं दिया। इमाम हसन उस समय के बहुत बड़े विद्वान थे। इमाम हसन ने उसको सन्धि करने के लिये मजबूर कर दिया। जिसके अनुसार वो सिर्फ़ इस्लामी देशों पर शासन कर सकता है, पर इस्लाम के कानूनो में हस्तक्षेप नहीं कर सकता। उसका शासन केवल उसकी मौत तक ही होगा उस्को किसी को ख़लीफा बनाने का अधिकार नहीं होगा। उस्को इसलाम के सभी नियमो का पालन करना होगा। उसके मरने के बाद ख़लीफा फिर हसन अ० होगे। यदि हसन अ० कि मर्त्यु हो जाय तो इमाम हुसेन को ख़लीफा माना जायगा। इस्के अलावा भी और शर्त थी पर मविया अपने पुत्र को भी खलीफा बनाना चाहता था जो कि बहुत बड़ा अधर्मी था। ने धोके से इमाम हसन को जहर दिलवा कर शहिद करवा दीया। और अपने मरने से पहले अपने बेटे यजीद को ख़लीफा बना दिया। इस पर भी हुसेन अ.स. ने युद्ध नहीं किया बल्कि अल्लाह कि रज़ा के लिये खूँरेजी से दूर रहे। .

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हाइफ़ा

हाइफ़ा (Haifa; हिब्रू: חֵיפָה Heifa , हिब्रू उच्चारण:, अरबी: حيفا‎ Ḥayfā ) उत्तरी इजराइल का सबसे बड़ा नगर तथा इजराइल का तीसरा सबसे बड़ा नगर है। इसकी जनसंख्या लगभग तीन लाख है। इसके अलावा लगभग तीन लाख लोग इसके समीपवर्ती नगरों में रहते हैं। इसी नगर में बहाई विश्व केन्द्र भी है जो यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत घोषित है। .

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हिना

हिना या हीना (अरबी:حــنــا, pronounced /ħinnaːʔ/)एक पुष्पीय पौधा होता है जिसका वैज्ञानिक नाम लॉसोनिया इनर्मिस है। इसे त्वचा, बाल, नाखून, चमड़ा और ऊन रंगने के काम में प्रयोग किया जाटा है। इससे ही मेहंदी भी लगायी जाती है। मेंहदी (henna) का वानस्पतिक नाम 'लॉसोनिया इनर्मिस' (lawsonia inermis) है और यह लिथेसिई (lythraceae) कुल का काँटेदार पौधा है। यह उत्तरी अफ्रीका, अरब देश, भारत तथा पूर्वी द्वीप समूह में पाया जाता है। अधिकतर घरों के सामने की बाटिका अथवा बागों में इसकी बाड़ लगाई जाती है जिसकी ऊँचाई आठ दस फुट तक हो जाती है और यह झाड़ी का रूप धारण कर लेती है। कभी कभी जंगली रूप से यह ताल तलैयों के किनारे भी उग आती है। टहनियों को काटकर भूमि में गाड़ देने से ही नए पौधे लग जाते हैं। इसके छोटे सफेद अथवा हलके पीले रंग के फूल गुच्छों में निकलते हैं, जो वातावरण को, विशेषत: रात्रि में अपनी भीनी महक से सुगंधित करते हैं। फूलों को सुखाकर सुगंधित तेल भी निकाला जाता है। इसकी छोटी चिकनी पत्तियों को पीसकर एक प्रकार का लेप बनाते हैं, जिसे स्त्रियाँ नाखून, हाथ, पैर तथा उँगलियों पर श्रृंगार हेतु कई अभिकल्पों में रचाती हैं। लेप को लगाने के कुछ घंटों के बाद धो देने पर लगाया हुआ स्थान लाल, या नारंगी रंग में रंग जाता है जो तीन चार सप्ताह तक नहीं छूटता। पत्तियों को पीसकर भी रख लिया जाता है, जिसे गरम पानी में मिलाकर रंग देने वाला लेप तैयार किया जा सकता है। इसपौधे की छाल तथा पत्तियाँ दवा में प्रयुक्त होती हैं। Image:Small Lawsonia inermis Plant.png| Image:Henna Istanbul.jpg| Image:Henna for hair.jpg| Image:Mehandi.jpg|thumb| .

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हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार

हिन्द - यूरोपीय भाषाओं देश बोल रही हूँ. गाढ़े हरे रंग के देश में जो बहुमत भाषा हिन्द - यूरोपीय परिवार हैं, लाइट ग्रीन एक देश वह जिसका आधिकारिक भाषा हिंद- यूरोपीय है, लेकिन अल्पसंख्यकों में है। हिन्द-यूरोपीय (या भारोपीय) भाषा-परिवार संसार का सबसे बड़ा भाषा परिवार (यानी कि सम्बंधित भाषाओं का समूह) हैं। हिन्द-यूरोपीय (या भारोपीय) भाषा परिवार में विश्व की सैंकड़ों भाषाएँ और बोलियाँ सम्मिलित हैं। आधुनिक हिन्द यूरोपीय भाषाओं में से कुछ हैं: हिन्दी, उर्दू, अंग्रेज़ी, फ़्रांसिसी, जर्मन, पुर्तगाली, स्पैनिश, डच, फ़ारसी, बांग्ला, पंजाबी, रूसी, इत्यादि। ये सभी भाषाएँ एक ही आदिम भाषा से निकली है, उसे आदिम-हिन्द-यूरोपीय भाषा का नाम दे सकता है। यह संस्कृत से बहुत मिलती-जुलती थी, जैसे कि वह सांस्कृत का ही आदिम रूप हो। .

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हिन्दुस्तान

right हिन्दुस्तान (अथवा हिन्दोस्तान या हिन्द) भारत देश का कई भाषाओं में अनाधिकारिक लेकिन विख्यात नाम है, जैसे, उर्दू, हिन्दी, अरबी, फ़ारसी इत्यादि। आजकल अरब देशों और ईरान में "हिन्दुस्तान" शब्द भारतीय उपमहाद्वीप के लिये प्रयुक्त होता है और भारत गणराज्य को हिन्द (अरबी: अल-हिन्द) कहा जाता है। हिंदुस्तान एवं हिन्द शब्द का प्रयोग अक्सर अरबी एवं ईरानी (पर्शियन) किआ करते थे। .

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हिन्दुस्तानी भाषा

150px हिन्दुस्तानी (नस्तलीक़: ہندوستانی, अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक लिपि: / hindustɑːniː /) भाषा हिन्दी और उर्दू का एकीकृत रूप है। ये हिन्दी और उर्दू, दोनो के बोलचाल की भाषा है। इसमें संस्कृत के तत्सम शब्द और अरबी-फ़ारसी के उधार लिये गये शब्द, दोनों कम होते हैं। यही हिन्दी और उर्दू का वह रूप है जो भारत की जनता रोज़मर्रा के जीवन में उपयोग करती है और हिन्दी सिनेमा इसी पर आधारित है। ये हिन्द यूरोपीय भाषा परिवार की हिन्द आर्य शाखा में आती है। ये देवनागरी या फ़ारसी-अरबी, किसी भी लिपि में लिखी जा सकती है। .

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हिन्दी एवं उर्दू

हिंदी और उर्दू भारतीय उपमहाद्वीप में बोली जाने वाली दो प्रमुख भाषाएँ हैं। वर्तमान समय में हिन्दी मुख्यतः देवनागरी लिपि में लिखी जाति है जबकि उर्दू मुख्यतः नस्तालीक़ में। दोनों की सामान्य शब्दावली भी बहुत सीमा तक समान है, विशेष सन्दर्भों में हिन्दी में संस्कृत शब्दों की अधिकता हो जाती है जबकि उर्दू में फारसी और अरबी शब्दों की। बहुत से लोग यह मानते हैं कि नामभेद, लिपिभेद और शैलीभेद के अलावा दोनों एक ही भाषा हैं, अलग-अलग नहीं। प्रसिद्ध समालोचक रामविलास शर्मा का मत है कि इतिहास में हम जितना ही पीछे की तरफ चलते हैं, उतना ही हिन्दी-उर्दू का भेद कम दिखाई देता है। उनका यह भी कहना है कि हिन्दी और उर्दू के व्याकरण समान हैं, उनके सर्वनाम और क्रियापद एक ही है। ऐसा दो भिन्न भाषाओं में नहीं होता। हिन्दी और बांग्ला के व्याकरण भिन्न-भिन्न हैं। आधुनिक साहित्य की रचना खड़ी बोली में हुई है। खड़ी बोली हिंदी में अरबी-फारसी के मेल से जो भाषा बनी वह 'उर्दू' कहलाई। मुसलमानों ने 'उर्दू' का प्रयोग छावनी, शाही लश्कर और किले के अर्थ में किया है। इन स्थानों में बोली जानेवाली व्यावहारिक भाषा 'उर्दू की जबान' हुई। पहले-पहले बोलचाल के लिए दिल्ली के सामान्य मुसलमान जो भाषा व्यवहार में लाते थे वह हिन्दी ही थी। चौदहवीं सदी में मुहम्मद तुगलक जब अपनी राजधानी दिल्ली से देवगिरि ले गया तब वहाँ जानेवाले पछाँह के मुसलमान अपनी सामान्य बोलचाल की भाषा भी अपने साथ लेते गए। प्रायः पंद्रहवीं शताब्दी में बीजापुर, गोलकुंडा आदि मुसलमानी राज्यों में साहित्य के स्तर पर इस भाषा की प्रतिष्ठा हुई। उस समय उत्तरभारत के मुसलमानी राज्य में साहित्यिक भाषा फारसी थी। दक्षिणभारत में तेलुगू आदि द्रविड़ भाषाभाषियों के बीच उत्तर भारत की इस आर्य भाषा को फारसी लिपि में लिखा जाता था। इस दखिनी भाषा को उर्दू के विद्वान्‌ उर्दू कहते हैं। शुरू में दखिनी बोलचाल की खड़ी बोली के बहुत निकट थी। इसमें हिंदी और संस्कृत के शब्दों का बहुल प्रयोग होता था। छंद भी अधिकतर हिंदी के ही होते थे। पर सोलहवीं सदी से सूफियों और बीजापुर, गोलकुंडा आदि राज्यों के दरबारियों द्वारा दखिनी में अरबी फारसी का प्रचलन धीरे-धीरे बढ़ने लगा। फिर भी अठारहवीं शताब्दी के आरंभ तक इसका रूप प्रधानतया हिंदी या भारतीय ही रहा। सन्‌ १७०० के आस पास दखिनी के प्रसिद्ध कवि शम्स वलीउल्ला 'वली' दिल्ली आए। यहाँ आने पर शुरू में तो वली ने अपनी काव्यभाषा दखिनी ही रखी, जो भारतीय वातावरण के निकट थी। पर बाद में उनकी रचनाओं पर अरबी-फारसी की परंपरा प्रवर्तित हुई। आरंभ की दखिनी में फारसी प्रभाव कम मिलता है। दिल्ली की परवर्ती उर्दू पर फारसी शब्दावली और विदेशी वातावरण का गहरा रंग चढ़ता गया। हिंदी के शब्द ढूँढकर निकाल फेंके गए और उनकी जगह अरबी फारसी के शब्द बैठाए गए। मुगल साम्राज्य के पतनकाल में जब लखनऊ उर्दू का दूसरा केंद्र हुआ तो उसका हिंदीपन और भी सतर्कता से दूर किया। अब वह अपने मूल हिंदी से बहुत भिन्न हो गई। हिंदी और उर्दू के एक मिले जुले रूप को हिंदुस्तानी कहा गया है। भारत में अँगरेज शासकों की कूटनीति के फलस्वरूप हिंदी और उर्दू एक दूसरे से दूर होती गईं। एक की संस्कृतनिष्ठता बढ़ती गई और दूसरे का फारसीपन। लिपिभेद तो था ही। सांस्कृतिक वातावरण की दृष्टि से भी दोनों का पार्थक्य बढ़ता गया। ऐसी स्थिति में अँगरेजों ने एक ऐसी मिश्रित भाषा को हिंदुस्तानी नाम दिया जिसमें अरबी, फारसी या संस्कृत के कठिन शब्द न प्रयुक्त हों तथा जो साधारण जनता के लिए सहजबोध्य हो। आगे चलकर देश के राजनयिकों ने भी इस तरह की भाषा को मान्यता देने की कोशिश की और कहा कि इसे फारसी और नागरी दोनों लिपियों में लिखा जा सकता है। पर यह कृत्रिम प्रयास अंततोगत्वा विफल हुआ। इस तरह की भाषा ज्यादा झुकाव उर्दू की ओर ही था। .

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हिन्दी या उर्दू मूल के अंग्रेजी शब्दों की सूची

यह हिन्दी तथा उर्दू मूल के अंग्रेजी शब्दों की सूची है। कई हिन्दी तथा उर्दू समकक्ष शब्द संस्कृत से निकले हैं; देखें संस्कृत मूल के अंग्रेज़ी शब्दों की सूची। कई अन्य फारसी भाषा मूल के हैं। कुछ बाद वाले अरबी तथा तुर्की मूल के हैं। कई मामलों में शब्द अंग्रेजी भाषा में कई रास्तों से आये हैं जिससे अन्ततः विभिन्न अर्थ, वर्तनी तथा उच्चारण हो गये हैं जैसा कि यूरोपीय मूल के शब्दों के साथ हुआ है। कई शब्द अंग्रेजी में ब्रिटिश राज के दौरान आये जब कई लोग हिन्दी तथा उर्दू को हिन्दुस्तानी की किस्म मानते थे। इन उपनिवेशकाल के उधार आये हुये शब्दों को, प्रायः ऐंग्लो इंडियन कहा जाता है। .

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हव्वा

हौवा (हिब्रू: חַוָּה‎, Ḥawwāh प्राचीन हिब्रू में; 'खवा' आधुनिक इजरायली हिब्रू में; अरबी में: حواء‎) अब्राहमिक धर्मों के मिथक के अनुसार प्रथम स्त्री थी जिसे ईश्वर ने बनाया। उसके पति का नाम आदम (Adam) था। प्रचलित व्युत्पत्ति के अनुसार हौवा का अर्थ है 'सभी मनुष्यों की माता'। ईश्वर ने हौवा की सृष्टि करके आदम को उसे पत्नी स्वरूप प्रदान किया था। वह अपने पति के अधीन रहते हुए भी आदम की भाँति पूर्ण मानव है। बाइबिल में प्रतीकात्मक ढंग से शैतान द्वारा हौवा का प्रलोभन चित्रित किया गया है। उसके अनुसार शैतान साँप का रूप धारण कर ईश्वर की आज्ञा का उल्लंघन करने के लिए हौवा को प्रेरित करता है और बाद में हौवा अपने पति को भी वैसा ही करने के लिए फुसलाती है (दे. आदम, आदि पाप)। संत पाल अपने पत्रों में शिक्षा देते हैं। कि ईसा रहस्यात्मक रूप से द्वितीय आदम हैं जो प्रथम आदम का उद्धार करते हैं। इस शिक्षा के आधार पर ईसा की माता मरियम को द्वितीय हौवा माना गया है, वह ईसा के अधीन रहकर और उनके मुक्ति कार्य में सहायक बनकर प्रथम हौवा का उद्धार करती हैं। .

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हकीम अबुल कासिम फिरदौसी तुसी

हकीम अबुल कासिम फिरदौसी तुसी (फारसी-حکیم ابوالقاسم فردوسی توسی) फारसी कवि थे। उन्होने शाहनामा की रचना की जो बाद में फारस (ईरान) की राष्ट्रीय महाकाव्य बन गई। इसमें उन्होने सातवीं सदी में फारस पर अरबी फतह के पहले के ईरान के बारे में लिखा है। .

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होम्स

हौम्स शहर के स्थल होम्स (अरबी - हिमसा) सीरिया के मध्य में स्थित एक प्रमुख शहर है। २0११ ईस्वी में शुरु हुई अरब क्रांति के दौरान यह राष्ट्रपति बसर अल-असद के खिलाफ विद्रोह करने वालों का केंद्र बना। .

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जय सिंह द्वितीय

सवाई जयसिंह या द्वितीय जयसिंह (०३ नवम्बर १६८८ - २१ सितम्बर १७४३) अठारहवीं सदी में भारत में राजस्थान प्रान्त के नगर/राज्य आमेर के कछवाहा वंश के सर्वाधिक प्रतापी शासक थे। सन १७२७ में आमेर से दक्षिण छः मील दूर एक बेहद सुन्दर, सुव्यवस्थित, सुविधापूर्ण और शिल्पशास्त्र के सिद्धांतों के आधार पर आकल्पित नया शहर 'सवाई जयनगर', जयपुर बसाने वाले नगर-नियोजक के बतौर उनकी ख्याति भारतीय-इतिहास में अमर है। काशी, दिल्ली, उज्जैन, मथुरा और जयपुर में, अतुलनीय और अपने समय की सर्वाधिक सटीक गणनाओं के लिए जानी गयी वेधशालाओं के निर्माता, सवाई जयसिह एक नीति-कुशल महाराजा और वीर सेनापति ही नहीं, जाने-माने खगोल वैज्ञानिक और विद्याव्यसनी विद्वान भी थे। उनका संस्कृत, मराठी, तुर्की, फ़ारसी, अरबी, आदि कई भाषाओं पर गंभीर अधिकार था। भारतीय ग्रंथों के अलावा गणित, रेखागणित, खगोल और ज्योतिष में उन्होंने अनेकानेक विदेशी ग्रंथों में वर्णित वैज्ञानिक पद्धतियों का विधिपूर्वक अध्ययन किया था और स्वयं परीक्षण के बाद, कुछ को अपनाया भी था। देश-विदेश से उन्होंने बड़े बड़े विद्वानों और खगोलशास्त्र के विषय-विशेषज्ञों को जयपुर बुलाया, सम्मानित किया और यहाँ सम्मान दे कर बसाया। .

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जर्राह

जर्राह, शल्य चिकित्सक का अरबी पर्याय है। जर्राह शब्द का अरबी साहित्य में प्रयोग सर्वप्रथम 9वीं शताब्दी में मिलता है, तत्पश्चात् यह चिकित्सा शास्त्र में प्रयुक्त हुआ। उस समय तक समाज में शल्य चिकित्सक का स्थान निकृष्ट माना जाता था। इस्लाम की शिक्षा के अनुसार किसी मनुष्य या पशु की शारीरिक स्थिति में हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए। इब्न सीना और इब्न जुहर जैसे विख्यात चिकित्सक भी इस प्रणाली को निम्न कोटि का और विशेष पेशेवर जर्राहों और मुजब्बिलों (अस्थिचिकित्सक) का काम मानते थे। इब्न सोना ने अपनी "कानून" पुस्तक में "इल्म-अल-जर्राह" (शल्य चिकित्सा प्रणाली) पर विस्तार से लिखा है। अल-मजूसी ने अपनी "कामिल-अल-सीना" में इस प्रणाली की विशेष चर्चा की है। अल-कुफ की कृति अल-उम्दा-फि-सिनाअत-अल-जिराह अरबी शल्य चिकित्साशास्त्र में बहुत महत्व रखती है। पाश्चात्य संसार को आंशिक रूप से इस प्रणाली का परिचय देने का श्रेय अल-जहरावी की रचना किताब-अल-तशरीफ़ को है। मध्यकाल में अरब और यूरोप में शल्य चिकित्सा साथ साथ और पारस्परिक प्रभाव में विकसित हुई। श्रेणी:चिकित्सा शास्त्र.

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ज़ाकिर नायक

जाकिर नाइक (Zakir Naik) एक विवादित इस्लामी धर्मोपदेशक हैं जिन्हें कट्टरपंथी सलाफ़ी विचारधारा का हामी माना जाता है  । जाकिर नायक इस्लामिक रिसर्च फांउडेशन के संस्थापक और अध्यक्ष हैं।Shukla, Ashutosh.

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जायफल

गोवा में मिरिस्टिका फ्रेग्रंस वृक्ष वृक्ष पर जायफल (केरल) जायफल (वानस्पतिक नाम: Myristica fragrans; संस्कृत: जातीफल) एक सदाबहार वृक्ष है जो इण्डोनेशिया के मोलुकास द्वीप (Moluccas) का देशज है। इससे दो मसाले प्राप्त होते हैं - जायफल (nutmeg) तथा जावित्री (mace)। यह चीन, ताइवान, मलेशिया, ग्रेनाडा, केरल, श्रीलंका, और दक्षिणी अमेरिका में खूब पैदा होता है। मिरिस्टिका नामक वृक्ष से जायफल तथा जावित्री प्राप्त होती है। मिरिस्टका की अनेक जातियाँ हैं परंतु व्यापारिक जायफल अधिकांश मिरिस्टिका फ्रैग्रैंस से ही प्राप्त होता है। मिरिस्टिका प्रजाति की लगभग ८० जातियाँ हैं, जो भारत, आस्ट्रेलिया तथा प्रशंत महासागर के द्वीपों में उपलब्ध हैं। यह पृथग्लिंगी (डायोशियस, dioecious) वृक्ष है। इसके पुष्प छोटे, गुच्छेदार तथा कक्षस्थ (एक्सिलरी, axillary) होते हैं। मिरिस्टिका वृक्ष के बीज को जायफल कहते हैं। यह बीज चारों ओर से बीजोपांग (aril) द्वारा ढँका रहता है। यही बीजोपांग व्यापारिक महत्व का पदार्थ जावित्री है। इस वृक्ष का फल छोटी नाशपाती के रूप का १ इंच से डेढ़ इंच तक लंबा, हल्के लाल या पीले रंग का गूदेदा होता है। परिपक्व होने पर फल दो खंडों में फट जाता है और भीतर सिंदूरी रंग का बीजोपांग या जावित्री दिखाई देने लगती है। जावित्री के भीतर गुठली होती है, जिसके काष्ठवत् खोल को तोड़ने पर भीतर जायफल (nutmeg) प्राप्त होता है। जायफल तथा जावित्री व्यापार के लिये मुख्यत: पूर्वी ईस्ट इंडीज से प्राप्त होता हैं। जायफल का वृक्ष समुद्रतट से ४००-५०० फुट तक की ऊँचाई पर उष्णकटिबंध की गरम तथा नम घाटियों में पैदा होता है। इसकी सफलता के लिये जल-निकास-युक्त गहरी तथा उर्वरा दूमट मिट्टी उपयुक्त है। इसके वृक्ष ६-७ वर्ष की आयु प्राप्त होने पर फूलते-फलते हैं। फूल लगने के पहले नर या मादा वृक्ष का पहचाना कठिन होता है। ग्रैनाडा (वेस्ट इंडीज) में साधारणत: नर तथा मादावृक्ष ३: १ के अनुपात में पाए जाते हैं जमैका के वनस्पति उद्यान में जायफल के छोटे पौधों पर मादावृक्ष की टहनी कलम करके मादा वृक्ष की संख्यावृद्धि में सफलता प्राप्त की गई है। .

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जिराफ़

जिराफ़ (जिराफ़ा कॅमेलोपार्डेलिस) अफ़्रीका के जंगलों मे पाया जाने वाला एक शाकाहारी पशु है। यह सभी थलीय पशुओं मे सबसे ऊँचा होता है तथा जुगाली करने वाला सबसे बड़ा जीव है। इसका वैज्ञानिक नाम ऊँट जैसे मुँह तथा तेंदुए जैसी त्वचा के कारण पड़ा है। .

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जगद्वंधु शर्मा

जगद्वंधु शर्मा, संस्कृत के प्रसिद्ध बंगाली पंडित थे। इन्होंने "अरेबियन नाइट्स" की प्रथम पचास कहानियों का पद्यानुवाद मूल अरबी से संस्कृत भाषा में "आख्यामिनी" नाम से किया था। श्रेणी:संस्कृत साहित्यकार.

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जगन्नाथ सम्राट

ॱ पंडित जगन्नाथ सम्राट (1652–1744) भारत के जाने-माने खगोलविद एवं गणितज्ञ थे। वे आमेर के महाराजा द्वितीय जयसिंह के दरबार में सम्मानित वैज्ञानिक थे। यह संस्कृत, पालि, प्राकृत, गणित, खगोलशास्त्र, रेखागणित, वैदिक अंकगणित आदि के तो धुरंधर विद्वान थे ही, साथ ही उन्होंने अरबी और फारसी भाषाएँ भी सीखी ताकि इस्लामिक खगोलशास्त्र के ग्रंथों का अध्ययन कर सकें। इन्हें सवाई जयसिंह ने जागीरों के अलावा 'गर्गाचार्य' की उपाधि दी थी। एक पुराने आलेख में लिखा है कि सवाई जयसिंह ने २६ॱ५५'२७" अक्षांश उत्तर में जयपुर में जिस महती वेधशाला की स्थापना की थी, उसके इन मुख्य यंत्रों का निर्माण इन्होने ही किया था- इस पुस्तक और चन्द्रमहल पोथीखाना के अभिलेखों के अनुसार पंडित जगन्नाथ सम्राट जयपुर नगर की स्थापना किये जाने के समय राजगुरु होने के नाते नगर के शिलान्यास-संस्कार के मुख्य पुरोहित थे। .

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जुबा

जुबा (अरबी: جوبا‎; अँग्रेजी: Juba) दक्षिण सूडान गणराज्य की राजधानी और सबसे बड़ा शहर है। यह दक्षिण सूडान के दस राज्यों में से एक मध्य एक्वाटोरिया की भी राजधानी है। यह श्वेत नील के किनारे बसा प्रमुख अफ्रीकी महानगर और व्यापारिक केंद्र है। यह नगर 1899 से 1956 तक एंग्लो मिस्र सूडान के अंतर्गत अवस्थित था, तत्पश्चात 1956 से 2011 तक यह सूडान और 2011 के बाद से दक्षिण सूडान में अवस्थित है। .

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जोनराज

जोनराज (देहांत: १४५९ ईसवी) १५वीं सदी के एक कश्मीरी इतिहासकार और संस्कृत कवि थे। उन्होंने 'द्वितीय राजतरंगिणी' नामक इतिहास-ग्रन्थ लिखा जिसमें उन्होंने कल्हण की राजतरंगिणी का सन् ११४९ तक का वृत्तान्त जारी रखते हुए अपने समकालीन सुल्तान ज़ैन-उल-अबिदीन​ (उर्फ़ 'बुड शाह') तक का वर्णन लिखा। बुड शाह का राज सन् १४२३ से १४७४ तक चला लेकिन जोनराज उनके शासनकाल का पूरा बखान नहीं लिख पाए क्योंकि उनके राजकाल के ३५वें वर्ष में ही जोनराज का देहांत हो गया। उनके शिष्य श्रीवर ने वृत्तांत आगे चलाया और उनकी कृति का नाम 'तृतीय राजतरंगिणी' था जो १४५९-१४८६ काल के बारे में है।, Rājānaka Jonarāja, Jogesh Chandra Dutt, Shyam Lal Sadhu, Atlantic Publishers & Distributors, 1993,...

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ईस्टर

ईस्टर, Πάσχα ईसाई पूजन-वर्ष में सबसे महत्वपूर्ण वार्षिक धार्मिक पर्व है। ईसाई धार्मिक ग्रन्थ के अनुसार, सूली पर लटकाए जाने के तीसरे दिन यीशु मरे हुओं में से पुनर्जीवित हो गए थे। इस मृतोत्थान को ईसाई ईस्टर दिवस या ईस्टर रविवार मानते हैं। (इसे वो मृतोत्थान दिवस या मृतोत्थान रविवार भी कहते हैं), ये दिन गुड फ्राईडे के दो दिन बाद और पुन्य बृहस्पतिवार या मौण्डी थर्सडे के तीन दिन बाद आता है। 26 और 36 ई.प. के बीच में हुई उनकी मृत्यु और उनके जी उठने के कालक्रम को अनेकों तरीके से बताया जाता है। ईस्टर को चर्च के वर्ष का काल या ईस्टर काल या द ईस्टर सीज़न भी कहा जाता है। परंपरागत रूप से ईस्टर काल चालीस दिनों का होता है। ये ईस्टर दिवस से लेकर स्वर्गारोहण दिवस तक होता आया है लेकिन आधिकारिक तौर पर अब ये पंचाशती तक पचास दिनों का होता है। ईस्टर सीज़न या ईस्टर काल के पहले सप्ताह को ईस्टर सप्ताह या ईस्टर अष्टक या ओक्टेव ऑफ़ ईस्टर कहते हैं। ईस्टर को चालीस सप्ताहों के काल या एक चालीसे के अंत के रूप में भी देखा जाता है, इस काल को उपवास, प्रार्थना और प्रायश्चित करने के लिए माना जाता है। ईस्टर एक गतिशील त्यौहार है, जिसका अर्थ है कि ये नागरिक कैलेंडर के अनुसार नहीं चलता.

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वसा

lipid एक ट्राईग्लीसराइड अणु वसा अर्थात चिकनाई शरीर को क्रियाशील बनाए रखने में सहयोग करती है। वसा शरीर के लिए उपयोगी है, किंतु इसकी अधिकता हानिकारक भी हो सकती है। यह मांस तथा वनस्पति समूह दोनों प्रकार से प्राप्त होती है। इससे शरीर को दैनिक कार्यों के लिए शक्ति प्राप्त होती है। इसको शक्तिदायक ईंधन भी कहा जाता है। एक स्वस्थ व्यक्ति के लिए १०० ग्राम चिकनाई का प्रयोग करना आवश्यक है। इसको पचाने में शरीर को काफ़ी समय लगता है। यह शरीर में प्रोटीन की आवश्यकता को कम करने के लिए आवश्यक होती है। वसा का शरीर में अत्यधिक मात्रा में बढ़ जाना उचित नहीं होता। यह संतुलित आहार द्वारा आवश्यक मात्रा में ही शरीर को उपलब्ध कराई जानी चाहिए। अधिक मात्रा जानलेवा भी हो सकती है, यह ध्यान योग्य है। यह आमाशय की गतिशीलता में कमी ला देती है तथा भूख कम कर देती है। इससे आमाशय की वृद्धि होती है। चिकनाई कम हो जाने से रोगों का मुकाबला करने की शक्ति कम हो जाती है। अत्यधिक वसा सीधे स्रोत से हानिकारक है। इसकी संतुलित मात्रा लेना ही लाभदायक है। .

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वहाबी आन्दोलन

वहाबी सम्प्रदाय (अरबी: وهابية‎, Wahhābiyyah) इस्लाम की एक शाखा है जिसका स्वभाव अत्यन्त कट्टर है। विश्व के अधिकांश वहाबी कतर, सउदी अरब और यूएई के निवासी हैं। सउदी अरब के लगभग २३% लोग वहाबी हैं। .

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वादी रम

वादी रम (अरबी: وادي رم) जिसे चंद्रमा की घाटी के नाम से भी जाना जाता है (अरबी: وادي القمر) दक्षिणी जॉर्डन में अकाबा के पूर्व में 60 किमी (37 मील) की दूरी पर स्थित, बलुआ पत्थर और ग्रेनाइट पत्थर के प्राकृतिक क्षरण से निर्मित एक घाटी है। यह जॉर्डन की सबसे बड़ी वादी है। रम नाम संभवत: अरामी भाषा से आया है जिसका अर्थ 'उच्च' या 'बुलंद' होता है। .

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विभिन्न भाषाओं में रामायण

म्यांमार के रामायण (रामजात्तौ) पर आधारित नृत्य भिन्न-भिन्न प्रकार से गिनने पर रामायण तीन सौ से लेकर एक हजार तक की संख्या में विविध रूपों में मिलती हैं। इनमें से संस्कृत में रचित वाल्मीकि रामायण (आर्ष रामायण) सबसे प्राचीन मानी जाती है। साहित्यिक शोध के क्षेत्र में भगवान राम के बारे में आधिकारिक रूप से जानने का मूल स्रोत महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण है। इस गौरव ग्रंथ के कारण वाल्मीकि दुनिया के आदि कवि माने जाते हैं। श्रीराम-कथा केवल वाल्मीकीय रामायण तक सीमित न रही बल्कि मुनि व्यास रचित महाभारत में भी 'रामोपाख्यान' के रूप में आरण्यकपर्व (वन पर्व) में यह कथा वर्णित हुई है। इसके अतिरिक्त 'द्रोण पर्व' तथा 'शांतिपर्व' में रामकथा के सन्दर्भ उपलब्ध हैं। बौद्ध परंपरा में श्रीराम से संबंधित दशरथ जातक, अनामक जातक तथा दशरथ कथानक नामक तीन जातक कथाएँ उपलब्ध हैं। रामायण से थोड़ा भिन्न होते हुए भी ये ग्रन्थ इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठ हैं। जैन साहित्य में राम कथा संबंधी कई ग्रंथ लिखे गये, जिनमें मुख्य हैं- विमलसूरि कृत 'पउमचरियं' (प्राकृत), आचार्य रविषेण कृत 'पद्मपुराण' (संस्कृत), स्वयंभू कृत 'पउमचरिउ' (अपभ्रंश), रामचंद्र चरित्र पुराण तथा गुणभद्र कृत उत्तर पुराण (संस्कृत)। जैन परंपरा के अनुसार राम का मूल नाम 'पद्म' था। अन्य अनेक भारतीय भाषाओं में भी राम कथा लिखी गयीं। हिन्दी में कम से कम 11, मराठी में 8, बाङ्ला में 25, तमिल में 12, तेलुगु में 12 तथा उड़िया में 6 रामायणें मिलती हैं। हिंदी में लिखित गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरित मानस ने उत्तर भारत में विशेष स्थान पाया। इसके अतिरिक्त भी संस्कृत,गुजराती, मलयालम, कन्नड, असमिया, उर्दू, अरबी, फारसी आदि भाषाओं में राम कथा लिखी गयी। महाकवि कालिदास, भास, भट्ट, प्रवरसेन, क्षेमेन्द्र, भवभूति, राजशेखर, कुमारदास, विश्वनाथ, सोमदेव, गुणादत्त, नारद, लोमेश, मैथिलीशरण गुप्त, केशवदास, गुरु गोविंद सिंह, समर्थ रामदास, संत तुकडोजी महाराज आदि चार सौ से अधिक कवियों तथा संतों ने अलग-अलग भाषाओं में राम तथा रामायण के दूसरे पात्रों के बारे में काव्यों/कविताओं की रचना की है। धर्मसम्राट स्वामी करपात्री ने 'रामायण मीमांसा' की रचना करके उसमें रामगाथा को एक वैज्ञानिक आयामाधारित विवेचन दिया। वर्तमान में प्रचलित बहुत से राम-कथानकों में आर्ष रामायण, अद्भुत रामायण, कृत्तिवास रामायण, बिलंका रामायण, मैथिल रामायण, सर्वार्थ रामायण, तत्वार्थ रामायण, प्रेम रामायण, संजीवनी रामायण, उत्तर रामचरितम्, रघुवंशम्, प्रतिमानाटकम्, कम्ब रामायण, भुशुण्डि रामायण, अध्यात्म रामायण, राधेश्याम रामायण, श्रीराघवेंद्रचरितम्, मन्त्र रामायण, योगवाशिष्ठ रामायण, हनुमन्नाटकम्, आनंद रामायण, अभिषेकनाटकम्, जानकीहरणम् आदि मुख्य हैं। विदेशों में भी तिब्बती रामायण, पूर्वी तुर्किस्तानकी खोतानीरामायण, इंडोनेशिया की ककबिनरामायण, जावा का सेरतराम, सैरीराम, रामकेलिंग, पातानीरामकथा, इण्डोचायनाकी रामकेर्ति (रामकीर्ति), खमैररामायण, बर्मा (म्यांम्मार) की यूतोकी रामयागन, थाईलैंड की रामकियेनआदि रामचरित्र का बखूबी बखान करती है। इसके अलावा विद्वानों का ऐसा भी मानना है कि ग्रीस के कवि होमर का प्राचीन काव्य इलियड, रोम के कवि नोनस की कृति डायोनीशिया तथा रामायण की कथा में अद्भुत समानता है। विश्व साहित्य में इतने विशाल एवं विस्तृत रूप से विभिन्न देशों में विभिन्न कवियों/लेखकों द्वारा राम के अलावा किसी और चरित्र का इतनी श्रद्धा से वर्णन न किया गया। .

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विलियम जोंस (भाषाशास्त्री)

सर विलियम जोंस सर विलियम जोंस (28 सितम्बर 1746 – 27 अप्रैल 1794)), अंग्रेज प्राच्य विद्यापंडित और विधिशास्त्री तथा प्राचीन भारत संबंधी सांस्कृतिक अनुसंधानों का प्रारंभकर्ता। लंदन में 28 सितंबर 1746 को जन्म। हैरो और आक्सफर्ड में शिक्षा प्राप्त की। शीघ्र ही उसने इब्रानी, फारसी, अरबी और चीनी भाषाओं का अभ्यास कर लिया। इनके अतिरिक्त जर्मन, इतावली, फ्रेंच, स्पेनी और पुर्तगाली भाषाओं पर भी उसका अच्छा अधिकार था। नादिरशाह के जीवनवृत का फारसी से फ्रेंच भाषा में उसका अनुवाद 1770 में प्रकाशित हुआ। 1771 में उसने फारसी व्याकरण पर एक पुस्तक लिखी। 1774 में "पोएसिअस असिपातिका कोमेंतेरिओरम लिबरीसेम्स" और 1783 में "मोअल्लकात" नामक सात अरबी कविताओं का अनुवाद किया। फिर उसने पूर्वी साहित्य, भाषाशास्त्र और दर्शन पर भी अनेक महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखी और अनुवाद किए। कानून में भी उसने अच्छी पुस्तकें लिखीं है। उसी "आन द ला ऑव बेलमेंट्स" (1781) विशेष प्रसिद्ध है। 1774 से उसने अपना जीवन कानून के क्षेत्र में लगाया और 1783 में बंगाल के उच्च न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) में न्यायाधीश नियुक्त हुआ। उसी वर्ष उसे "सर" की उपाधि मिली। भारत में उसने पूर्वी विषयों के अध्ययन में गंभीर रुचि प्रदर्शित की। उसने संस्कृत का अध्ययन किया और 1784 में "बंगाल एशियाटिक सोसाइटी" की स्थापना की जिससे भारत के इतिहास, पुरातत्व, विशेषकर साहित्य और विधिशास्त्र संबंधी अध्ययन की नींव पड़ी। यूरोप में उसी ने संस्कृत साहित्य की गरिमा सबसे पहले घोषित की। उसी के कालिदासीय अभिज्ञान शाकुंतलम के अनुवाद ने संस्कृत और भारत संबंधी यूरोपीयदृष्टि में क्रांति उत्पन्न कर दी। गेटे आदि महान कवि उस अनुवाद से बड़े प्रभावित हुए। कलकत्ते में ही 17 अप्रैल 1794 के इस महापंडित का निधन हुआ। .

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विल्नुस विश्वविद्यालय का पुस्तकालय

श्रेणी:पुस्तकालय विल्नुस विश्वविद्यालय का पुस्तकालय (VUB) - सब से पुराना पुस्तकालय लिथुआनिया में है। वह जेशूइट के द्वारा स्थापित किया गया था। पुस्तकालय विल्नुस विश्वविद्यालय से पुराना है - पुस्तकालय १५७० में और विश्वविद्यालय १५७९ में स्थापित किया गया था। कहने तो लायक है कि अभी तक पुस्तकालय समान निर्माण में रहा है।पहले पुस्तकालय वर्तमान भाषाशास्त्र (फ़िलोलोजी) के वाचनालय में रहा था। आज पुस्तकालय में लगभग ५४ लाख दस्तावेज रखे हैं। ताक़ों की लम्बाई - १६६ किलोमीटर ।अभी पुस्तकालय के २९ हज़ार प्रयोक्ते हैं। १७५३ में यहाँ लिथुआनिया की प्रथम वेधशाला स्थापित की गयी थी। प्रतिवर्ष विल्नुस विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में बहुत पर्यटक आते हैं - न केवल लिथुआनिया से बल्कि भारत, स्पेन, चीन, अमरीका से, वगैरह। विल्नुस विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में प्रसिद्ध व्यक्तित्व भी आते हैं। उदाहरण के लिये - राष्ट्रपति, पोप, दलाई लामा, वगैरह। विल्नुस विश्वविद्यालय के पुस्तकालय का सदर मकान उनिवेर्सितेतो ३ में, राष्ट्रपति भवन के पास स्थापित किया गया है। यहाँ १३ वाचनालय और ३ समूहों के कमरे हैं। दूसरे विल्नुस के स्थानों में अन्य पुस्तकालय के भाग मिलते हैं। .

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विश्व-भारती विश्वविद्यालय

विश्वभारती विश्वविद्यालय की स्थापना 1921 में रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने पश्चिम बंगाल के शान्तिनिकेतन नगर में की। यह भारत के केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में से एक है। अनेक स्नातक और परास्नातक संस्थान इससे संबद्ध हैं। शान्ति निकेतन के संस्थापक रवीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म १८६१ ई में कलकत्ता में एक सम्पन्न परिवार में हुआ था। इनके पिता महर्षि देवेन्द्रनाथ ठाकुर ने १८६३ ई में अपनी साधना हेतु कलकत्ते के निकट बोलपुर नामक ग्राम में एक आश्रम की स्थापना की जिसका नाम `शांति-निकेतन' रखा गया। जिस स्थान पर वे साधना किया करते थे वहां एक संगमरमर की शिला पर बंगला भाषा में अंकित है--`तिनि आमार प्राणेद आराम, मनेर आनन्द, आत्मार शांति।' १९०१ ई में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने इसी स्थान पर बालकों की शिक्षा हेतु एक प्रयोगात्मक विद्यालय स्थापित किया जो प्रारम्भ में `ब्रह्म विद्यालय,' बाद में `शान्ति निकेतन' तथा १९२१ ई। `विश्व भारती' विश्वविद्यालय के नाम से प्रख्यात हुआ। टैगोर बहुमुखी प्रतिभा के व्यक्ति थे। .

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व्याध

व्याध मूलत: संस्कृत भाषा का शब्द है जिसका हिन्दी भाषा में अर्थ होता है शिकारी। वैसे कालिका प्रसाद के वृहत् हिन्दी कोश में इसका अर्थ शिकार द्वारा जीविका चलाने वाली एक संकर जाति बताया गया है जिसे आमतौर पर बहेलिया कहा जाता है। इस शब्द का एक और लाक्षणिक अर्थ नीच या कमीना आदमी भी है। .

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वृहद भारत

'''वृहद भारत''': केसरिया - भारतीय उपमहाद्वीप; हल्का केसरिया: वे क्षेत्र जहाँ हिन्दू धर्म फैला; पीला - वे क्षेत्र जिनमें बौद्ध धर्म का प्रसार हुआ वृहद भारत (Greater India) से अभिप्राय भारत सहित उन अन्य देशों से है जिनमें ऐतिहासिक रूप से भारतीय संस्कृति का प्रभाव है। इसमें दक्षिणपूर्व एशिया के भारतीकृत राज्य मुख्य रूप से शामिल है जिनमें ५वीं से १५वीं सदी तक हिन्दू धर्म का प्रसार हुआ था। वृहद भारत में मध्य एशिया एवं चीन के वे वे भूभाग भी सम्मिलित किये जा सकते हैं जिनमे भारत में उद्भूत बौद्ध धर्म का प्रसार हुआ था। इस प्रकार पश्चिम में वृहद भारत कीघा सीमा वृहद फारस की सीमा में हिन्दुकुश एवं पामीर पर्वतों तक जायेगी। भारत का सांस्कृतिक प्रभाव क्षेत्र .

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वैयक्तिक विधि

विधि या कानून को वैयक्तिक विधि (Personal law) और प्रादेशिक विधि - इन दो प्रवर्गों में विभक्त किया जा सकता है। वैयक्तिक विधि से तात्पर्य उस विधि से है जो केवल किसी व्यक्तिविशेष अथवा व्यक्तियों के वर्ग पर लागू हो चाहे वे व्यक्ति कहीं पर भी रहते हों। यह विधि प्रादेशिक विधि से भिन्न है जो केवल एक निश्चित प्रदेश के भीतर सब व्यक्तियों पर समान रूप से लागू होती है। वैयक्तिक विधि की वह प्रणाली भारत में वारेन हेस्टिग्ज ने प्रारंभ की थी। उन्होंने कुछ तरह के दीवानी मामलों में हिंदुओं के लिए हिंदू विधि तथा मुसलमानों के लिए मुस्लिम विधि विहित की थी। यह व्यवस्था आज भी विद्यमान है और हिंदू विधि विवाह, दत्तकग्रहण, संयुक्त परिवार, ऋण, बँटवारा, दाय तथा उत्तराधिकार, स्त्रीधन, पोषण और धार्मिक धर्मस्वों के मामलों में हिंदुओं पर लागू है। .

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खलील जिब्रान

खलील जिब्रान खलील जिब्रान खलील जिब्रान (Khalil Gibran (/dʒɪˈbrɑːn/; पूरा अरबी नाम: Gibran Khalil Gibran, अरबी: جبران خليل جبران‎ / ALA-LC: Jubrān Khalīl Jubrān or Jibrān Khalīl Jibrān) (6 जनवरी, 1883 – 10 जनवरी, 1931) एक लेबनानी-अमेरिकी कलाकार, कवि तथा न्यूयॉर्क पेन लीग के लेखक थे। उन्हें अपने चिंतन के कारण समकालीन पादरियों और अधिकारी वर्ग का कोपभाजन होना पड़ा और जाति से बहिष्कृत करके देश निकाला तक दे दिया गया था। आधुनिक अरबी साहित्य में जिब्रान खलील 'जिब्रान' के नाम से प्रसिद्ध हैं, किंतु अंग्रेजी में वह अपना नाम खलील ज्व्रान लिखते थे और इसी नाम से वे अधिक प्रसिद्ध भी हुए। .

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ख़ान (उपाधि)

ओगदाई ख़ान, चंग़ेज़ ख़ान का तीसरा पुत्र ख़ान या ख़ाँ (मंगोल: хан, फ़ारसी:, तुर्की: Kağan) मूल रूप से एक अल्ताई उपाधि है तो शासकों और अत्यंत शक्तिशाली सिपहसालारों को दी जाती थी। यह समय के साथ तुर्की-मंगोल क़बीलों द्वारा पूरे मध्य एशिया में इस्तेमाल होने लगी। जब इस क्षेत्र के सैन्य बलों ने भारतीय उपमहाद्वीप, ईरान, अफ़्ग़ानिस्तान और अन्य क्षेत्रों पर क़ब्ज़ा कर के अपने साम्राज्य बनाने शुरू किये तो इसका प्रयोग इन क्षेत्रों की कई भाषाओँ में आ गया, जैसे कि हिन्दी-उर्दू, फ़ारसी, पश्तो, इत्यादि। इसका एक और रूप 'ख़ागान' है जिसका अर्थ है 'ख़ानों का ख़ान' या 'ख़ान-ए-ख़ाना', जो भारत में कभी प्रचलित नहीं हुआ। इसके बराबरी की स्त्रियों की उपाधियाँ ख़ानम और ख़ातून हैं।, Elena Vladimirovna Boĭkova, R. B. Rybakov, Otto Harrassowitz Verlag, 2006, ISBN 978-3-447-05416-4 .

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ख़ुर्रम सुल्तान

''ला सुल्ताना रोज़्ज़ा'', तितियन द्वारा चित्र, 1550. ख़ुर्रम सुल्तान (तुर्कीयाई: हुर्रेम सुल्टान, उच्चारण:, उस्मान तुर्कीयाई: خرم سلطان) जो पश्चिमी दुनिया में रोक्सेलाना (Roxelana) के नाम से प्रसिद्ध सुलैमान प्रथम की पत्नी और शहज़ादा महमद, महर माह सुल्तान, शहज़ादा अब्दुल्लाह, सलीम द्वितीय, शहज़ादा बायज़ीद और शहज़ादा जहाँगीर की माँ थीं वे ख़ासकी सुल्तान के पद की सर्वप्रथम पदाधिकारी थीं और इसलिए उस्मान साम्राज्य के इतिहास में सबसे शक्तिशाली महिलाओं में से एक थीं। वे महिलाओं की सल्तनत की एक प्रतिष्ठित व्यक्ति थीं। उन्होंने अपने पति के माध्यम से उस्मान साम्राज्य में राजकीय शक्ति प्राप्त की और राजनीति में उन्होंने एक प्रभावशाली भूमिका निभाई थीं। .

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ख़ूज़स्तान

ख़ूज़स्तान (फ़ार्सी: خوزستان ओस्तान-ए-ख़ूज़स्तान) ईरान के ३१ प्रांतों में से एक है जो देश के दक्षिण-पश्चिम की दिशा में इराक़ की सीमा से लगा है। इसका इतिहास ईलम के साम्राज्य से शुरु होता है जो ईसा के २४००-६४० साल पहले था। यहाँ के लोग अरबी और फ़ारसी दोनों बोलते हैं और इसके अलावा बख़्तियारी तथा लूरी भाषा भी बोली जाती है। इसकी राजधनी अहवाज़ है। ख़ुज़स्तान को हुज़ लोगों का स्थान माना जाता है जो प्राचीनकाल से यहाँ रहते हैं। .

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खाबाब

खाबाब (अरबी: خبب, अंग्रेज़ी: Khabab, सीरियाई:ܟܒܒ)हौरन सादे, दरआ प्रान्त, 57 किमी (~ 36 मील) दमिश्क के दक्षिण और दरआ प्रान्त के शहर से एक ही दूरी के बारे में के भाग में दक्षिणी सीरिया में स्थित एक शहर है।.

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खंभात

खंभात नगर, (गुजराती:ખંભાત) पूर्व-मध्य गुजरात के आनन्द जिले की एक नगरपालिका है। यह खंभात की खाड़ी के उत्तर में, माही नदी के मुहाने पर स्थित एक प्राचीन नगर है। टॉलमी नामक विद्वान ने भी इसका उल्लेख किया है। प्रथम शती में यह महत्वपूर्ण सागर पत्तन था। १५वीं शताब्दी में खंभात पश्चिमी भारत के हिंदू राजा की राजधानी था। जेनरल गेडार्ड ने १७०० ई. में इस नगर को अधिकृत कर लिया था, किंतु १७८३ ई. में यह पुन: मराठों को लौटा दिया गया। १८०३ ई. के बाद से यह अंग्रेजी राज्य के अंतर्गत रहा। नगर के दक्षिण-पूर्व में प्राचीन जैन मंदिर के भग्नावशेष विस्तृत प्रदेश में मिलते हैं। प्राचीन काल में रेशम, सोने का समान और छींट यहाँ के प्रमुख व्यापार थे। कपास प्रधान निर्यात थी। किन्तु नदियों के निक्षेपण से पत्तन पर पानी छिछला होता गया और अब यह जलयानों के रुकने योग्य नहीं रहा। फलत: निकटवर्ती नगरों का व्यापारिक महत्व खंभात की अपेक्षा अधिक बढ़ गया और अब यह एक नगर मात्र रह गया है। .

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गणितीय प्रतीकों की सारणी

नीचे गणित के सभी शाखाओं में प्रयोग में आने वाले प्रतीकों की सूची दी गयी है। सभी संकेत एचटीएमएल (HTML) तथा टेक्स (TeX) दोनों में ही दिये गये हैं। यह सूची अपूर्ण है, इसको पूर्ण करने में मदद करें।.

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ग़ज़ल

यह अरबी साहित्य की प्रसिद्ध काव्य विधा है जो बाद में फ़ारसी, उर्दू, नेपाली और हिंदी साहित्य में भी बेहद लोकप्रिय हुइ। संगीत के क्षेत्र में इस विधा को गाने के लिए इरानी और भारतीय संगीत के मिश्रण से अलग शैली निर्मित हुई। .

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ग़ुलाम अहमद फ़रोगी

ग़ुलाम अहमद फ़रोगी (1861-1919) भोपाल राज्य में अरबी और फ़ारसी भाषा के ख्याति के एक विद्वान और शायर थे। उन्होंने भोपाल के जहांगीरा स्कूल में शिक्षक और सुलेमानिया स्कूल में 'हेड मौलवी' के रूप में कार्य किया। ये दोनों स्कूल भोपाल रियासत के दौरान धनी वर्ग के छात्रों के दाखिले के लिए बहुत प्रसिद्ध थे। .

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गंगानाथ झा अनुसंधान संस्थान, प्रयाग

राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान (गंगानाथ झा कैम्पस) एक तुल्यविश्वविद्यालय है। यह १९४३ से १९७१ तक 'गंगानाथ झा अनुसंधान संस्थान' के नाम से तथा १९७१ से २००२ तक 'गंगानाथ झा केन्द्रीय संस्कृत विद्यापीठ' के नाम से जाना जाता था। इसकी स्थापना 17 नवम्बर 1943 को डॉ गंगानाथ झा के नाम एवं कार्यों को अमर बनाने के लिए किया गया था। .

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गुरु नानक

नानक (पंजाबी:ਨਾਨਕ) (15 अप्रैल 1469 – 22 सितंबर 1539) सिखों के प्रथम (आदि गुरु) हैं। इनके अनुयायी इन्हें नानक, नानक देव जी, बाबा नानक और नानकशाह नामों से संबोधित करते हैं। लद्दाख व तिब्बत में इन्हें नानक लामा भी कहा जाता है। नानक अपने व्यक्तित्व में दार्शनिक, योगी, गृहस्थ, धर्मसुधारक, समाजसुधारक, कवि, देशभक्त और विश्वबंधु - सभी के गुण समेटे हुए थे। .

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गुरुदत्त विद्यार्थी

पंडित गुरुदत्त विद्यार्थी पंडित गुरुदत्त विद्यार्थी (२६ अप्रैल १८६४ - १८९०), महर्षि दयानन्द सरस्वती के अनन्य शिष्य एवं कालान्तर में आर्यसमाज के प्रमुख नेता थे। उनकी गिनती आर्य समाज के पाँच प्रमुख नेताओं में होती है। २६ वर्ष की अल्पायु में ही उनका देहान्त हो गया किन्तु उतने ही समय में उन्होने अपनी विद्वता की छाप छोड़ी और अनेकानेक विद्वतापूर्ण ग्रन्थों की रचना की। .

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गुलाम रसूल देहलवी

ग़ुलाम रसूल देहलवी एक पत्रकार, अनुवादक, लेखक और वक्ता हैं। वह अंग्रेज़ी, अरबी, फ़ारसी और उर्दू भाषाओं में किताबें और लेख लिखते हैं। उन्होंने कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों और सेमिनारों में धार्मिक और राजनीतिक संबोधित किया है। उनका मूल दर्शन "शांति के लिए शब्द" है, वह इसी शीर्षक वाली एक वेबसाइट भी चलाते हैं। उनके कॉलम भारतीय-अंग्रेज़ी समाचार पत्रों में प्रकाशित होते हैं। .

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गूगल खोज

गूगल खोज या गूगल वेब खोज वेब पर खोज का एक इंजन है, जिसका स्वामित्व गूगल इंक के पास है और यह वेब पर सबसे ज्यादा उपयोग किया जाने वाला खोज इंजन है। अपनी विभिन्न सेवाओं के जरिये गूगल प्रति दिन कई सौ लाख विभिन्न प्रश्न प्राप्त करता है। गूगल खोज का मुख्य उद्देश्य अन्य सामग्रियों, जैसे गूगल चित्र खोज के मुकाबले वेबपृष्ठों से सामग्री की खोज करना है। मूलतः गूगल खोज का विकास 1997 में लैरी पेज और सेर्गेई ब्रिन ने किया। गूगल खोज मूल शब्द खोज क्षमता से परे कम से कम 22 विशेष सुविधाएं प्रदान करता है। इनमें समानार्थी शब्द, मौसम पूर्वानुमान, समय क्षेत्र, स्टॉक उद्धरण, मानचित्र, भूकंप डेटा, मूवी शोटाइम, हवाई अड्डा, होम लिस्टिंग और खेल स्कोर शामिल है। (नीचे देखें: विशेष सुविधाएं).

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गूगल आन्सर्स

गूगल आन्सर्स (Google Answers) गूगल द्वारा ऑनलाइन ज्ञान बाज़ार की पेशकश थी जिसमें उपयोगकर्ताओं को अपने प्रश्नों पर अच्छी तरह शोध किए गए उत्तरों के लिए आनुतोषिक पोस्ट करना अनुमत था। प्रश्नकर्ता-स्वीकृत उत्तरों की लागत $2 से $200 तक थी। गूगल अनुसंधानकर्ता पारितोषिक का 25% और 50 सेंट शुल्क प्रति प्रश्न प्रतिधारित करता था। शोधकर्ता शुल्क के अलावा यदि ग्राहक उत्तर से संतुष्ट हो तो वह $100 तक टिप भी छोड़ सकता था। नवंबर 2006 के अंत में, गूगल ने रिपोर्ट किया कि वे इस सेवा को स्थाई रूप से बंद करना चाहते हैं और दिसंबर 2006 के अंत तक नई गतिविधि के लिए इसे पूरी तरह बंद कर दिया गया, हालांकि इसके संग्रह उपलब्ध रहते हैं। .

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गूगल अनुवाद

गूगल अनुवाद या गूगल ट्रान्स्लेट (Google Translate) एक अनुवादक साफ्टवेयर एवं सेवा है जो एक भाषा के टेक्स्ट या वेबपेज को दूसरी भाषा में अनुवाद करता है। यह गूगल नामक कंपनी द्वारा विकसित एवं परिचालित है। इसके लिये गूगल अपना स्वयं का अनुवादक सॉफ्टवेयर प्रयोग करता है जो सांख्यिकीय मशीनी अनुवाद है। जनवरी 2016 की स्थिति के अनुसार, गूगल अनुवाद विभिन्न स्तरों पर 90 भाषाओं का समर्थन करता है और प्रतिदिन 20 करोड़ लोगों को अनुवाद प्रदान करता है। .

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गीतगोविन्द

गीतगोविन्द की पाण्डुलिपि (१५५० ई) गीतगोविन्द (ଗୀତ ଗୋବିନ୍ଦ) जयदेव की काव्य रचना है। गीतगोविन्द में श्रीकृष्ण की गोपिकाओं के साथ रासलीला, राधाविषाद वर्णन, कृष्ण के लिए व्याकुलता, उपालम्भ वचन, कृष्ण की राधा के लिए उत्कंठा, राधा की सखी द्वारा राधा के विरह संताप का वर्णन है। जयदेव का जन्म ओडिशा में भुवनेश्वर के पास केन्दुबिल्व नामक ग्राम में हुआ था। वे बंगाल के सेनवंश के अन्तिम नरेश लक्ष्मणसेन के आश्रित महाकवि थे। लक्ष्मणसेन के एक शिलालेख पर १११६ ई० की तिथि है अतः जयदेव ने इसी समय में गीतगोविन्द की रचना की होगी। ‘श्री गीतगोविन्द’ साहित्य जगत में एक अनुपम कृति है। इसकी मनोरम रचना शैली, भावप्रवणता, सुमधुर राग-रागिणी, धार्मिक तात्पर्यता तथा सुमधुर कोमल-कान्त-पदावली साहित्यिक रस पिपासुओं को अपूर्व आनन्द प्रदान करती हैं। अतः डॉ॰ ए॰ बी॰ कीथ ने अपने ‘संस्कृत साहित्य के इतिहास’ में इसे ‘अप्रतिम काव्य’ माना है। सन् 1784 में विलियम जोन्स द्वारा लिखित (1799 में प्रकाशित) ‘ऑन द म्यूजिकल मोड्स ऑफ द हिन्दूज’ (एसियाटिक रिसर्चेज, खंड-3) पुस्तक में गीतगोविन्द को 'पास्टोरल ड्रामा' अर्थात् ‘गोपनाट्य’ के रूप में माना गया है। उसके बाद सन् 1837 में फ्रेंच विद्वान् एडविन आरनोल्ड तार्सन ने इसे ‘लिरिकल ड्रामा’ या ‘गीतिनाट्य’ कहा है। वान श्रोडर ने ‘यात्रा प्रबन्ध’ तथा पिशाल लेवी ने ‘मेलो ड्रामा’, इन्साइक्लोपिडिया ब्रिटानिका (खण्ड-5) में गीतगोविन्द को ‘धर्मनाटक’ कहा गया है। इसी तरह अनेक विद्वानों ने अपने-अपने ढंग से इसके सम्बन्ध में विचार व्यक्त किया है। जर्मन कवि गेटे महोदय ने अभिज्ञानशाकुन्तलम् और मेघदूतम् के समान ही गीतगोविन्द की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। गीतगोविन्द काव्य में जयदेव ने जगदीश का ही जगन्नाथ, दशावतारी, हरि, मुरारी, मधुरिपु, केशव, माधव, कृष्ण इत्यादि नामों से उल्लेख किया है। यह 24 प्रबन्ध (12 सर्ग) तथा 72 श्लोकों (सर्वांगसुन्दरी टीका में 77 श्लोक) युक्त परिपूर्ण ग्रन्थ है जिसमें राधा-कृष्ण के मिलन-विरह तथा पुनर्मिलन को कोमल तथा लालित्यपूर्ण पदों द्वारा बाँधा गया है। किन्तु नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित ‘हस्तलिखित संस्कृत ग्रन्थ सूची, भाग-इ’ में गीतगोविन्द का 13वाँ सर्ग भी उपलब्ध है। परन्तु यह मातृका अर्वाचीन प्रतीत होती है। गीतगोविन्द वैष्णव सम्प्रदाय में अत्यधिक आदृत है। अतः 13वीं शताब्दी के मध्य से ही श्री जगन्नाथ मन्दिर में इसे नित्य सेवा के रूप में अंगीकार किया जाता रहा है। इस गीतिकाव्य के प्रत्येक प्रबन्ध में कवि ने काव्यफल स्वरूप सुखद, यशस्वी, पुण्यरूप, मोक्षद आदि शब्दों का प्रयोग करके इसके धार्मिक तथा दार्शनिक काव्य होने का भी परिचय दिया है। शृंगार रस वर्णन में जयदेव कालिदास की परम्परा में आते हैं। गीतगोविन्द का रास वर्णन श्रीमद्भागवत के वर्णन से साम्य रखता है; तथा श्रीमद्भागवत के स्कन्ध 10, अध्याय 40 में (10-40-17/22) अक्रूर स्तुति में जो दशावतार का वर्णन है, गीतगोविन्द के प्रथम सर्ग के स्तुति वर्णन से साम्य रखता है। आगे चलकर गीतगोविन्द के अनेक ‘अनुकृति’ काव्य रचे गये। अतः जयदेव ने स्वयं १२वें सर्ग में लिखा है - कुम्भकर्ण प्रणीत ‘रसिकप्रिया’ टीका आदि में इसकी पुष्टि की गयी है। .

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ओमान

ओमान (अरबी) अरबी प्रायद्वीप के पूर्व-दक्षिण में स्थित एक देश है जिसे आधिकारिक रूप से सल्तनत उमान नाम से जानते हैं। यह सउदी अरब के पूर्व और दक्षिण की दिशा में अरब सागर की सीमा से लगा है। संयुक्त अरब अमीरात इसके उत्तर में स्थित है। ओमान की कुल जनसंख्या 25 लाख के आसपास है और यहाँ बाहर से आकर रहने वालों (आप्रवासियों) की संख्या काफ़ी है। लगभग पूरी जनसंख्या मुस्लिम है जिसमें इबादियों की संख्या सबसे अधिक है। इसके अमेरिका और ब्रिटेन के साथ गहरे कूटनीतिक संबंध हैं। .

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औरंगज़ेब

अबुल मुज़फ़्फ़र मुहिउद्दीन मुहम्मद औरंगज़ेब आलमगीर (3 नवम्बर १६१८ – ३ मार्च १७०७) जिसे आमतौर पर औरंगज़ेब या आलमगीर (प्रजा द्वारा दिया हुआ शाही नाम जिसका अर्थ होता है विश्व विजेता) के नाम से जाना जाता था भारत पर राज्य करने वाला छठा मुग़ल शासक था। उसका शासन १६५८ से लेकर १७०७ में उसकी मृत्यु होने तक चला। औरंगज़ेब ने भारतीय उपमहाद्वीप पर आधी सदी से भी ज्यादा समय तक राज्य किया। वो अकबर के बाद सबसे ज्यादा समय तक शासन करने वाला मुग़ल शासक था। अपने जीवनकाल में उसने दक्षिणी भारत में मुग़ल साम्राज्य का विस्तार करने का भरसक प्रयास किया पर उसकी मृत्यु के पश्चात मुग़ल साम्राज्य सिकुड़ने लगा। औरंगज़ेब के शासन में मुग़ल साम्राज्य अपने विस्तार के चरमोत्कर्ष पर पहुंचा। वो अपने समय का शायद सबसे धनी और शातिशाली व्यक्ति था जिसने अपने जीवनकाल में दक्षिण भारत में प्राप्त विजयों के जरिये मुग़ल साम्राज्य को साढ़े बारह लाख वर्ग मील में फैलाया और १५ करोड़ लोगों पर शासन किया जो की दुनिया की आबादी का १/४ था। औरंगज़ेब ने पूरे साम्राज्य पर फ़तवा-ए-आलमगीरी (शरियत या इस्लामी क़ानून पर आधारित) लागू किया और कुछ समय के लिए ग़ैर-मुस्लिमों पर अतिरिक्त कर भी लगाया। ग़ैर-मुसलमान जनता पर शरियत लागू करने वाला वो पहला मुसलमान शासक था। मुग़ल शासनकाल में उनके शासन काल में उसके दरबारियों में सबसे ज्यादा हिन्दु थे। और सिखों के गुरु तेग़ बहादुर को दाराशिकोह के साथ मिलकर बग़ावत के जुर्म में मृत्युदंड दिया गया था। .

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औरेस

औरेस (Ouarsenis या Ouanchariss; अरबी: الونشريس‎ El Ouanchariss, बर्बर: Ouarsnis, अर्थ: "इससे ऊँचा नहीं") अफ्रीका के उत्तर पश्चिम में स्थित एक पर्वतीय क्षेत्र है। अल्जीरिया के पूर्वी भाग में टेलऐटलस और सहारा की ऐटलस पर्वतश्रेणियों का जहाँ संधिस्थल है, उस पर्वतीय क्षेत्र को औरेस कहते हैं। दोनों पर्वतमालाओं के मिल जाने से ऊँचाई काफी अधिक हो गई है। यह अल्जीरिया का सबसे अधिक ऊँचा भाग है जिसकी औसतन ऊँचाई समुद्रतल से ६,००० फुट और सबसे ऊँची चोटी ७,६३८ फुट ऊँची है। यह क्षेत्र अधिकतर चूने के पत्थर का बना है। पुराने युग में औरेस पहाड़ बर्बर शरणार्थियों के छिपने का उत्तम स्थान था। रोम साम्राज्य में यह सेना का केंद्र था। कई पुराने टूटे किले अब भी दिखाई पड़ते हैं। इस क्षेत्र में औसत वार्षिक वर्षा १२ इंच से २० इंच तक होती है। परंतु औरेस पहाड़ का दक्षिणी भाग, जो सहारा रेगिस्तान की ओर है, सूखा है और यहाँ प्राकृतिक वनस्पतियाँ बहुत कम हैं। इस पर्वतीय क्षेत्र में आबादी बहुत कम है; अधिकतर बर्बर लोग रहते हैं। यायावर बर्बर जानवर चराते हैं। जहाँ पानी मिल जाता है वहाँ खेती होती है तथा फलों के बाग लगाए जाते हैं। फलों में खूबानी और अंजीर मुख्य हैं। श्रेणी:पर्वत श्रेणी.

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आटो फॉन बॉटलिंक

आटो फॉन बॉटलिंक का चित्र। आटो फॉन बॉटलिंक (१८१५-१९०४) जर्मनी के भारतविद तथा संस्कृत के प्रकांड पंडित थे जिन्होंने संस्कृत साहित्य का विधिपूर्वक अध्ययन करके, वर्षों के परिश्रम के पश्चात् एक विशाल शब्दकोश सात भागों में प्रकाशित किया। यह आज भी अद्वितीय ग्रंथ है। .

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आरमेइक लिपि

सम्राट अशोक द्वारा ईसापूर्व तीसरी शताब्दी में कन्दहार (अफगानिस्तान) में ग्रीक तथा आरमेइक लिपि में लिखवाया गया शिलालेख आरमेइक लिपि (Aramaic Script) संसार की प्रसिद्ध एवं महत्वपूर्ण लिपि है। इसका विकास प्राचीन सामी लिपि की उत्तरी शाखा से हुआ है, जिस शाखा से फोनिशियन लिपि का भी विकास हुआ था। आरमेइक लिपि का प्रयोग सीरिया, फिलस्तीन, मिस्र, अरबिस्तान आदि स्थानों पर होता था। आरमेइक भाषा इसी आरमेइक लिपि में लिखी जाती थी। आरमेइक के प्राचीनतम अभिलेख ज़र्जीन एवं ज़ेनज़ीरली में प्राप्त कलमू अथवा मिलामूवा के अभिलेख हैं जो ई.पू.

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आर्यभट

आर्यभट (४७६-५५०) प्राचीन भारत के एक महान ज्योतिषविद् और गणितज्ञ थे। इन्होंने आर्यभटीय ग्रंथ की रचना की जिसमें ज्योतिषशास्त्र के अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन है। इसी ग्रंथ में इन्होंने अपना जन्मस्थान कुसुमपुर और जन्मकाल शक संवत् 398 लिखा है। बिहार में वर्तमान पटना का प्राचीन नाम कुसुमपुर था लेकिन आर्यभट का कुसुमपुर दक्षिण में था, यह अब लगभग सिद्ध हो चुका है। एक अन्य मान्यता के अनुसार उनका जन्म महाराष्ट्र के अश्मक देश में हुआ था। उनके वैज्ञानिक कार्यों का समादर राजधानी में ही हो सकता था। अतः उन्होंने लम्बी यात्रा करके आधुनिक पटना के समीप कुसुमपुर में अवस्थित होकर राजसान्निध्य में अपनी रचनाएँ पूर्ण की। .

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आर्यभटीय

आर्यभटीय नामक ग्रन्थ की रचना आर्यभट प्रथम (४७६-५५०) ने की थी। यह संस्कृत भाषा में आर्या छंद में काव्यरूप में रचित गणित तथा खगोलशास्त्र का ग्रंथ है। इसकी रचनापद्धति बहुत ही वैज्ञानिक और भाषा बहुत ही संक्षिप्त तथा मंजी हुई है। इसमें चार अध्यायों में १२३ श्लोक हैं। आर्यभटीय, दसगीतिका पाद से आरम्भ होती है। इसके चार अध्याय इस प्रकार हैं: 1.

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आईएसआईएस

'''इस्लामिक राज्य''' का ध्वज इस्लामी राज्य (अरबी: ﺍﻟﺪﻭﻟﺔ ﺍﻹﺳﻼﻣﻴﺔ al-Dawlah al-Islāmīyah) जून २०१४ में निर्मित एक अमान्य राज्य तथा इराक एवं सीरिया में सक्रिय जिहादी सुन्नी सैन्य समूह है। अरबी भाषा में इस संगठन का नाम है 'अल दौलतुल इस्लामिया फिल इराक वल शाम'। इसका हिन्दी अर्थ है- 'इराक एवं शाम का इस्लामी राज्य'। शाम सीरिया का प्राचीन नाम है। इस संगठन के कई पूर्व नाम हैं जैसे आईएसआईएस अर्थात् 'इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया', आईएसआईएल्, दाइश आदि। आईएसआईएस नाम से इस संगठन का गठन अप्रैल 2013 में हुआ। इब्राहिम अव्वद अल-बद्री उर्फ अबु बक्र अल-बगदादी इसका मुखिया है। शुरू में अल कायदा ने इसका हर तरह से समर्थन किया किन्तु बाद में अल कायदा इस संगठन से अलग हो गया। अब यह अल कायदा से भी अधिक मजबूत और क्रूर संगठन के तौर पर जाना जाता हैं। यह दुनिया का सबसे अमीर आतंकी संगठन है जिसका बजट 2 अरब डॉलर का है। २९ जून २०१४ को इसने अपने मुखिया को विश्व के सभी मुसलमानों का खलीफा घोषित किया है। विश्व के अधिकांश मुस्लिम आबादी वाले क्षेत्रों को सीधे अपने राजनीतिक नियंत्रण में लेना इसका घोषित लक्ष्य है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिये इसने सबसे पहले लेवेन्त क्षेत्र को अपने अधिकार में लेने का अभियान चलाया है जिसके अन्तर्गत जॉर्डन, इजरायल, फिलिस्तीन, लेबनान, कुवैत, साइप्रस तथा दक्षिणीतुर्की का कुछ भाग आता हैं। आईएसआईएस के सदस्यो की संख्या करीब 10,000 हैं। .

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इब्रानी भाषा

हिब्रूभाषी क्षेत्र हिब्रू (עִבְרִית, Ivrit) सामी-हामी भाषा-परिवार की सामी शाखा में आने वाली एक भाषा है। ये इस्राइल की मुख्य- और राष्ट्रभाषा है। इसका पुरातन रूप बिब्लिकल हिब्रू यहूदी धर्म की धर्मभाषा है और बाइबिल का पुराना नियम इसी में लिखा गया था। ये हिब्रू लिपि में लिखी जाती है ये दायें से बायें पढ़ी और लिखी जाती है। पश्चिम के विश्वविद्यालयों में आजकल इब्रानी का अध्ययन अपेक्षाकृत लोकप्रिय है। प्रथम महायुद्ध के बाद फिलिस्तीन (यहूदियों का इज़रायल नामक नया राज्य) की राजभाषा आधुनिक इब्रानी है। सन् १९२५ई.

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इब्रानी लिपि

दसवीं शताब्दी में लिखी इब्रानी बाइबल का एक लघु अंश इब्रानी लिपि (इब्रानी भाषा: אָלֶף־בֵּית עִבְרִי, alefbet ʿIvri) का प्रयोग इब्रानी भाषा सहित अन्य यहूदी भाषाओं को लिखने में होता है। इसे यहूदी लिपि, वर्गाकार लिपि, ब्लॉक लिपि, या ऐतिहासिक रूप से अरिमियाई लिपि (Aramaic alphabet) कहते हैं। यिद्दिश भाषा, लैडिनो (Ladino) तथा यहूदी-अरबी (Judeo-Arabic) यहूदी भाषाएँ इसी में लिखी जाती हैं। इब्रानी लिपि दाएँ से बाएँ की तरफ लिखी और पढ़ी जाती है। इब्रानी लिपि के दो रूप प्रयोग किए जाते रहे हैं- मूल इब्रानी लिपि तथा आधुनिक इब्रानी लिपि जो वर्गाकार दिखती है। Note: The chart reads from left to right.

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इमली

इमली, (अंग्रेजी:Tamarind, अरबी: تمر هندي तमर हिन्दी "भारतीय खजूर") पादप कुल फैबेसी का एक वृक्ष है। इसके फल लाल से भूरे रंग के होते हैं, तथा स्वाद में बहुत खट्टे होते हैं। इमली का वृक्ष समय के साथ बहुत बड़ा हो सकता है और इसकी पत्तियाँ एक वृन्त के दोनों तरफ छोटी-छोटी लगी होती हैं। इसके वंश टैमेरिन्डस में सिर्फ एक प्रजाति होती है। .

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इमाम बुसीरी

सिकन्दरिया, मिस्र में अल-बुसीरी की क़ब्र अल-बुसीरी (अरबी: البوصيري जन्म: 1211 - मौत: 1294), पूरा नाम मुहम्मद बिन सय्यद बिन हम्माद अलसनेआजी अलबुसीरी (अरबी: محمد بن سعيد بن حماد الصنهاجي البوصيري) शाधीलिया शाखा से संबंधित एक सानहाजी बर्बर सूफ़ी इमाम थे। .

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इराक का राष्ट्रीय संग्रहालय

इराक का राष्ट्रीय संग्रहालय (अरबी: المتحف العراقي) एक संग्रहालय है जो बगदाद, इराक में स्थित है। इराक संग्रहालय के रूप में भी जाना जाता है, इसमें मेसोपोटामियन, बेबीलोनियन और फारसी सभ्यता से सम्बन्धी कीमती अवशेष शामिल हैं। 2003 के इराक पर हमले के दौरान इसे लूट लिया गया था। अंतरराष्ट्रीय प्रयासों के बावजूद, केवल चुराई गई कुछ कलाकृतियों को वापस कर दिया गया। नवीनीकरण के दौरान कई सालों तक बंद होने के बाद, और सार्वजनिक रूप से देखने के लिए शायद ही कभी खुला, संग्रहालय आधिकारिक तौर पर फरवरी 2015 में फिर से खोल दिया गया था। .

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इराक़

इराक़ पश्चिमी एशिया में स्थित एक जनतांत्रिक देश है जहाँ के लोग मुख्यतः मुस्लिम हैं। इसके दक्षिण में सउदी अरब और कुवैत, पश्चिम में जोर्डन और सीरिया, उत्तर में तुर्की और पूर्व में ईरान अवस्थित है। दक्षिण पश्चिम की दिशा में यह फ़ारस की खाड़ी से भी जुड़ा है। दजला नदी और फरात इसकी दो प्रमुख नदियाँ हैं जो इसके इतिहास को ५००० साल पीछे ले जाती हैं। इसके दोआबे में ही मेसोपोटामिया की सभ्यता का उदय हुआ था। इराक़ के इतिहास में असीरिया के पतन के बाद विदेशी शक्तियों का प्रभुत्व रहा है। ईसापूर्व छठी सदी के बाद से फ़ारसी शासन में रहने के बाद (सातवीं सदी तक) इसपर अरबों का प्रभुत्व बना। अरब शासन के समय यहाँ इस्लाम धर्म आया और बगदाद अब्बासी खिलाफत की राजधानी रहा। तेरहवीं सदी में मंगोल आक्रमण से बगदाद का पतन हो गया और उसके बाद की अराजकता के सालों बाद तुर्कों (उस्मानी साम्राज्य) का प्रभुत्व यहाँ पर बन गया २००३ से दिसम्बर २०११ तक अमेरिका के नेतृत्व में नैटो की सेना की यहाँ उपस्थिति बनी हुई थी जिसके बाद से यहाँ एक जनतांत्रिक सरकार का शासन है। राजधानी बगदाद के अलावा करबला, बसरा, किर्कुक तथा नजफ़ अन्य प्रमुख शहर हैं। यहाँ की मुख्य बोलचाल की भाषा अरबी और कुर्दी भाषा है और दोनों को सांवैधानिक दर्जा मिला है। .

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इलाहाबाद

इलाहाबाद उत्तर भारत के उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग में स्थित एक नगर एवं इलाहाबाद जिले का प्रशासनिक मुख्यालय है। इसका प्राचीन नाम प्रयाग है। इसे 'तीर्थराज' (तीर्थों का राजा) भी कहते हैं। इलाहाबाद भारत का दूसरा प्राचीनतम बसा नगर है। हिन्दू मान्यता अनुसार, यहां सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने सृष्टि कार्य पूर्ण होने के बाद प्रथम यज्ञ किया था। इसी प्रथम यज्ञ के प्र और याग अर्थात यज्ञ से मिलकर प्रयाग बना और उस स्थान का नाम प्रयाग पड़ा जहाँ भगवान श्री ब्रम्हा जी ने सृष्टि का सबसे पहला यज्ञ सम्पन्न किया था। इस पावन नगरी के अधिष्ठाता भगवान श्री विष्णु स्वयं हैं और वे यहाँ माधव रूप में विराजमान हैं। भगवान के यहाँ बारह स्वरूप विध्यमान हैं। जिन्हें द्वादश माधव कहा जाता है। सबसे बड़े हिन्दू सम्मेलन महाकुंभ की चार स्थलियों में से एक है, शेष तीन हरिद्वार, उज्जैन एवं नासिक हैं। हिन्दू धर्मग्रन्थों में वर्णित प्रयाग स्थल पवित्रतम नदी गंगा और यमुना के संगम पर स्थित है। यहीं सरस्वती नदी गुप्त रूप से संगम में मिलती है, अतः ये त्रिवेणी संगम कहलाता है, जहां प्रत्येक बारह वर्ष में कुंभ मेला लगता है। इलाहाबाद में कई महत्त्वपूर्ण राज्य सरकार के कार्यालय स्थित हैं, जैसे इलाहाबाद उच्च न्यायालय, प्रधान महालेखाधिकारी (एजी ऑफ़िस), उत्तर प्रदेश राज्य लोक सेवा आयोग (पी.एस.सी), राज्य पुलिस मुख्यालय, उत्तर मध्य रेलवे मुख्यालय, केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का क्षेत्रीय कार्यालय एवं उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद कार्यालय। भारत सरकार द्वारा इलाहाबाद को जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण योजना के लिये मिशन शहर के रूप में चुना गया है। .

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इलाहाबाद/आलेख

इलाहाबाद (اللہآباد), जिसे प्रयाग (پریاگ) भी कहते हैं, उत्तर भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग में स्थित एक शहर एवं इलाहाबाद जिले का प्रशासनिक मुख्यालय है। शहर का प्राचीन नाम अग्ग्र (संस्कृत) है, अर्थात त्याग स्थल। हिन्दू मान्यता अनुसार, यहां सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने सृष्टि कार्य पूर्ण होने के बाद प्रथम बलिदान दिया था। यही सबसे बड़े हिन्दी सम्मेलन महाकुंभ की चार स्थलियों में से एक है, शेष तीन हरिद्वार, उज्जैन एवं नासिक हैं। हिन्दू धर्मग्रन्थों में वर्णित प्रयाग स्थल पवित्रतम नदी गंगा और यमुना के संगम पर स्थित है। यहीं सरस्वती नदी गुप्त रूप से संगम में मिलती है, अतः ये त्रिवेणी संगम कहलाता है, जहां प्रत्येक बारह वर्ष में कुंभ मेला लगता है। शहर का वर्तमान नाम मुगल सम्राट अकबर द्वारा १५८३ में रखा गया था। हिन्दी नाम इलाहाबाद का अर्थ अरबी शब्द इलाह (अकबर द्वारा चलाये गए नये धर्म दीन-ए-इलाही के सन्दर्भ से, अल्लाह के लिये) एवं फारसी से आबाद (अर्थात बसाया हुआ) – यानि ईश्वर द्वारा बसाया गया, या ईश्वर का शहर है। शहर में कई महत्त्वपूर्ण राज्य सरकार के कार्यालय स्थित हैं, जैसे इलाहाबाद उच्च न्यायालय, प्रधान महालेखाधिकारी (एजी ऑफ़िस), उत्तर प्रदेश राज्य लोक सेवा आयोग (पी.एस.सी), राज्य पुलिस मुख्यालय, उत्तर मध्य रेलवे मुख्यालय, केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का क्षेत्रीय कार्यालय एवं उत्तर प्रदेश राज्य हाईस्कूल एवं इंटरमीडियेट शिक्षा कार्यालय। इलाहाबाद भारत के १४ प्रधानमंत्रियों में से ७ से संबंधित रहा है: जवाहर लाल नेहरु, लालबहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, गुलजारी लाल नंदा, विश्वनाथ प्रताप सिंह एवं चंद्रशेखर; जो या तो यहां जन्में हैं, या इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पढ़े हैं या इलाहाबाद निर्वाचन क्षेत्र से चुने गए हैं। भारत सरकार द्वारा इलाहाबाद को जवाहरलाल नेहरु अर्बन रिन्यूअल मिशन(JNNURM) के लिये मिशन शहर के रूप में चुना गया है, जिसके अन्तर्गत शहरी अवसंरचना में सुधार, दक्ष प्रशासन एवं शहरी नागरिकों हेतु आधारभूत सुविधाओं का प्रयोजन करना है। इलाहाबाद में संगम स्थल का दृश्य इलाहाबाद शहर देश के बड़े शहरों से सड़क व रेल यातायात द्वारा जुड़ा हुआ है। शहर में आठ रेलवे-स्टेशन हैं:प्रयाग रेलवे स्टेशन, इलाहाबाद सिटी रेलवे स्टेशन, दारागंज रेलवे स्टेशन, इलाहाबाद जंक्शन रेलवे स्टेशन, नैनी जंक्शन रेलवे स्टेशन, प्रयाग घाट रेलवे स्टेशन, सूबेदारगंज रेलवे स्टेशन और बमरौली रेलवे स्टेशन। .

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इस्माइल पाशा

इस्माइल पाशा इस्माइल पाशा (अरबी: إسماعيل باشا‎ Ismā‘īl Bāshā, तुर्की भाषा: İsmail Paşa; १८३० - १८९५) सन १८६३ से १८७९ तक मिस्र तथा सूडान का ख़ेदिव (शासक की उपाधि) था। १८७९ में उसे ग्रेट ब्रिटेन के दबाव में पदच्युत होना पड़ा। अपने शासन काल में उसने अपने दादा मेहमत अली की भांति मिस्र और सूडान का आधुनीकीकरण किया, औद्योगिक तथा आर्थिक विकास में जमकर निवेश किया। इसके शासन काल में देश की सीमाओं का विस्तार भी किया। .

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इस्माइलिया

इस्माइलिया का प्रशासकीय भवन इस्माइलिया (Ismailia; अरबी: الإسماعيلية‎ al-Ismāʻīlīyah) स्वेज़ थलडमरूमध्य में तिम्सा झील के उत्तर पश्चिमी तट पर मिस्र का एक नगर है जो भूमध्यसागर से ७५ किमी तथा काहिरा से १३५ किमी दूर है। यह स्वेज़ और पोर्ट सैइद के बीचोबीच स्थित है। इसे सन् १८६३ ई. में स्वेज़ नहर की खुदाई के समय ख़ेदिव इस्माइल ने बसाया था, अत: इसका नाम इस्माइलिया पड़ा गया। इसकी इसकी गलियों तथा मकानों की स्वच्छता तथा क्रम में आधुनिकता की गहरी छाप है। यह तीन ओर उद्यानों तथा एक ओर झील से घिरा हुआ है। स्वेज़ नहर के किनारे पर 'के मोहमत अली' (मोहम्मद अली का घाट) है, जहाँ नहर की खुदाई के समय फरदीनाँ दे लेपेस निवास करते थे। घाट के अंत में जलकल है जो पोर्ट सईद को मीठा जल पहुँचाता है। इस नगर में बहुत से सरकारी कार्यालय, गोदाम तथा सांस्कृतिक भवन हैं। इसकी जनसंख्या लगभग ७,५०,००० है। श्रेणी:मिस्र का भूगोल.

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इस्लाम में धर्मत्याग

वर्ष २०१३ में विश्व के विभिन्न देशों में धर्मत्याग से सम्बन्धित नियमों की स्थिति इस्लाम में धर्मत्याग (अरबी: ردة‎‎ रिद्दा या ارتداد इर्तिदाद) का अर्थ किसी मुस्लिम द्वारा सोच-समझकर इस्लाम का त्याग करने से है। इसके अन्तर्गत किसी दूसरे धर्म को अपनाना, भी सम्मिलित है। इस्लाम का त्याग की परिभाषा तथा उसके लिये निर्धारित दण्ड अत्यन्त विवादास्पद हैं तथा इस पर इस्लामी विद्वानों के अलग-अलग विचार हैं। .

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इस्लाम के पैग़म्बर

इस्लाम के पैग़म्बर (अरबी: الأنبياء في الإسلام) में "दूत" (रसूल, बहुवचन: रुसुल) शामिल हैं, एक मलक के माध्यम से एक दिव्य प्रकाशन के लायक (अरबी: ملائكة, malā'ikah); Shaatri, A. I. (2007).

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इस्लामिक एकता खेल

इस्लामिक एकता खेल; Islamic Solidarity Games: (अरबी‎‏: ﺃﻟﻌﺎﺏ ﺍﻟﺘﻀﺎﻣﻦ ﺍﻹﺳﻼﻣﻲ‎),‎ एक बहुराष्ट्रीय, बहु-खेल आयोजन है। इस खेल में इस्लामी सम्मेलन संगठन के अभिजात वर्ग के एथलीट शामिल हैं। इस्लामी सॉलिडिटी स्पोर्ट्स फेडरेशन (आईएसएसएफ) एक ऐसा संगठन है जो इस्लामी एकता खेलों के दिशा और नियंत्रण के लिए उत्तरदायी है। .

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इस्लामी शब्दावली

यह श्रेणी इस्लामी और अरबी परंपरा से उत्पन्न विचारो की है,जो कि अरबी भाषा में शब्द के रूप में व्यक्त होते हैं। इस सूचि का खास उद्देश्य विभिन्न वर्तनीयो (हिज्जो) को स्पष्ट करना है, वे शब्द जो इस में ज़्यादा काम के नहीं वो एक या दो लाइन में है क्योंकि कोई विशिष्ट चीज़ किसी के लिए ढूढ़ने और याद रखने में बिलकुल आसानी हो जाये। साथ ही सभी चीज़े एक ही जगह पर मौजूद या मुहैय्या हो जाएगी। कोई अलग प्रकार का कांसेप्ट जो अरबी से भिन्न हो, या इस की भाषा से तो यह कठिन हो सकता है कई कांसेप्ट धर्मनिरपेक्ष होते साथ ही साथ इस्लामी भी। (यानि सब पर लागु होते हैं।) जैसे:- दावत। स्वयं इस्लाम एक अच्छा उदहारण है। अरबी अपने खुद की वर्णमाला से अपनी ही वर्णमाला, पत्र, प्रतीक, और हिजा (वर्तनी) के साथ लिखी जाती है शब्दों का देवनागरी में बिलकुल सही अर्थ नहीं निकलता। यह सूचि(list) अरबी शब्द और वाक्यांशो का लिप्यंतरण है। लिस्ट में ज्यादातर वाक्यांश उनके वास्तविक अरबी हिज्जे में हैं। .

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इस्लामी साहित्य

इस्लामी साहित्य इस्लाम के दृष्टिकोण से अथवा इस्लामी परिप्रेक्ष्यों के बारे में लिखा गया साहित्य है। यह किसी भी भाषा में लिखा गया हो सकता है। सुरुआती अध्ययनों में अरबी और फ़ारसी में इस्लाम के बारे में लिखा गया साहित्य ही इस्लामी साहित्य माना जाता था, बाद में इसे विस्तृत अवधारणा के रूप में देखा गया और गैर-मुस्लिम लेखकों द्वारा लिखा गया साहित्य भी इसमें शामिल किया जाता है। इसके लिए एक शब्द "अदब" भी है, हालाँकि अब इस शब्द का प्रयोग "साहित्य" के लिए होने लगा है।Issa J. Boullata, 'Translator's Introduction', in Ibn ʿAbd Rabbih, The Unique Necklace: Al-ʿIqd al-Farīd, trans.

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इस्लामी गणराज्य

इस्लामी गणराज्य, या इस्लामी जम्हूरिया(अरबी:الجمهورية الإسلامية;अल्'जम्हूरियत् अल्'इस्लामियाह्/उर्दू:اسلامی جمہوریہ;इस्लामी जम्हूरिया/फ़ारसी:جمهوری اسلامی;जम्हूरी इस्लामी) एक ऐसी रियासत या राजनैतिक व्यवस्था होती है, जिसे संविधान में बतौर इस्लामिक गणराज्य निर्दिष्ट एवं वर्णित किया गया हो। इस शब्दावली की विस्तृत परिभाषा, देश-दर-देश एवं संविधान-दर-संविधान भिन्न हो सकती है, परंतु सैद्धांतिक तौर पर ऐसी व्यवस्था की मूल-विचारधारा में इस्लामीक सिद्धांतों एवं गणतांत्रिक सिद्धांतों का सम्मिलन होता है। अर्थात् इस व्यवस्था में नाहीं संपूर्णतः इस्लामिक सिद्धांत होते हैं, नाहीं संपूर्णतः गणतांत्रिक सिद्धांत होते हैं, बलकी इन दोनों विचारधाराओं का सम्मिलित रूप होता है। आधिकतर परिस्थितियों में, राजनयिक तंत्र व कार्यप्रणाली, गणतांत्रिक सिद्धांतों पर होती है, और न्यायिक व्यवस्था एवं नागरिक व दंड संहिता इस्लामिक उसूलों पर आधारित होती है। पाकिस्तान विश्व का पहला ऐसा देश था जिसने संवैधानिक तौर पर स्वयं को एक "इस्लामिक गणराज्य" घोषित किया था, एवं इस शब्द का उपयोग भी सर्वप्रथम पाकिस्तान के 1956 के संविधान में ही किया गया था। तत्पश्चात, मॉरीतानिया ने 28 नवंबर 1958 में अपने नाम के साथ इस्लामी गणराज्य शब्द का इस्तेमाल किया, ईरान ने ईरानी क्रांती के बाद और अफगानिस्तान ने 2001 में तालिबान सरकार समाप्ति के बाद अपने नाम के साथ इस्लामी गणराज्य शब्द को जोड़ा। वर्ष 2015 में गाम्बिया ने भी स्वयं को एक इस्लामी गणराज्य घोषित कर लिया था। .

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इस्लामी अक्षरांकन

इसलामी अक्षरांकन, या अरबिक अक्षरांकन, एक ऐसी कला है जो क़लम से हस्ताक्षरों से सुंदर रूप में अक्षरांकन करना। यह खास तौर से अरबी अक्षरों को लिखने में उपयोगित है, जो कि इस्लामी संस्कृती का अंग माना जाता है। और यह अक्षरांकन फ़ारसी अक्षरांकन से लिया गया है। Chapman, Caroline (2012).

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कथासाहित्य (संस्कृत)

संस्कृत भाषा में निबद्ध कथाओं का प्रचुर साहित्य है जो सैकड़ों वर्षो से मनोरंजन करता हुआ उपदेश देता आ रहा है। कथासाहित्य से संबद्ध ग्रंथों के आलोचन से स्पष्ट हो जाता है कि संस्कृत साहित्य में तीनों प्रकार की कहानियों के उदाहरण मिलते हैं जो वर्तमान समय में पश्चिमी देशों में (१) फ़ेअरी टेल्स (परियों की कहानियाँ), (२) फ़ेबुल्स (जंतुकथाएँ) तथा (३) डायडेक्टिक टेल्स (उपदेशमयी कहानियाँ) कही जातीं हैं। .

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कराडा

कराडा (अंग्रेजी:Karrada/(अरबी: كرّادة‎‎) इराक़ के बगदाद शहर का एक मध्यम वर्ग का ज़िला है जहां २०१६ में आतंकी हमले हुए।. .

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कलौंजी

कलौंजी, (अंग्रेजी:Nigella) एक वार्षिक पादप है जिसके बीज औषधि एवं मसाले के रूप में प्रयुक्त होते हैं। कलौंजी और प्याज में फर्क .

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क़सीदा बरदा शरीफ़

क़सीदा बरदा शरीफ़ से कुछ सुलेखित पाठ मान्य सूफ़ी कवि इमाम बुसीरी (1211 -1294) द्वारा रचित काव्य शब्द क़सीदा बरदा शरीफ़ (अरबी: قصيدة البردة) जो इस्लामी दुनिया में अत्यंत प्रसिद्ध है। .

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क़ासिम अमीन

क़ासिम अमीन का चित्र क़ासिम अमीन (अरबी: قاسم أمين;; 1 दिसंबर 1863, सिकन्दरिया मेंPolitical and diplomatic history of the Arab world, 1900-1967, Menahem Mansoor – 22 अप्रैल 1908, क़ाहिरा में) एक मिस्री क़ानूनविद और इस्लामी आधुनिकतावादी थे जिन्होंने मिस्री राष्ट्रीय आंदोलन और क़ाहिरा विश्वविद्यालय का स्थापना किया। उन्होंने महिलाओं के अधिकार को बहुत अहमियत दी और इस कारण से वे अरबी दुनिया के पहले पुरुष नारीवादी के रूप में जाने जाते हैं। उनके अनुसार एक मुक्त और स्वतंत्र मिस्र का निर्माण करने हेतु महिलाओं और उनके अधिकार का सम्मान करना ज़रूरी है। उन्होंने अपनी पुस्तक महिला मुक्ति (1899) में क़ुरआन और हदीस के हवाले देकर, इस्लाम में महिलाओं के अधिकार की अहमियत की स्पष्टता दी थी।Tahrir al-mar'a ("The Liberation of Women"), Kaïro, 1899.

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क़ुरआन

'''क़ुरान''' का आवरण पृष्ठ क़ुरआन, क़ुरान या कोरआन (अरबी: القرآن, अल-क़ुर्'आन) इस्लाम की पवित्रतम किताब है और इसकी नींव है। मुसलमान मानते हैं कि इसे अल्लाह ने फ़रिश्ते जिब्रील द्वारा हज़रत मुहम्मद को सुनाया था। मुसलमान मानते हैं कि क़ुरआन ही अल्लाह की भेजी अन्तिम और सर्वोच्च किताब है। यह ग्रन्थ लगभग 1400 साल पहले अवतरण हुई है। इस्लाम की मान्यताओं के मुताबिक़ क़ुरआन अल्लाह के फ़रिश्ते जिब्रील (दूत) द्वारा हज़रत मुहम्मद को सन् 610 से सन् 632 में उनकी मौत तक ख़ुलासा किया गया था। हालांकि आरंभ में इसका प्रसार मौखिक रूप से हुआ पर पैग़म्बर मुहम्मद की मौत के बाद सन् 633 में इसे पहली बार लिखा गया था और सन् 653 में इसे मानकीकृत कर इसकी प्रतियाँ इस्लामी साम्राज्य में वितरित की गईं थी। मुसलमानों का मानना है कि ईश्वर द्वारा भेजे गए पवित्र संदेशों के सबसे आख़िरी संदेश क़ुरआन में लिखे गए हैं। इन संदेशों की शुरुआत आदम से हुई थी। हज़रत आदम इस्लामी (और यहूदी तथा ईसाई) मान्यताओं में सबसे पहला नबी (पैग़म्बर या पयम्बर) था और इसकी तुलना हिन्दू धर्म के मनु से एक हद तक की जा सकती है। जिस तरह से हिन्दू धर्म में मनु की संतानों को मानव कहा गया है वैसे ही इस्लाम में आदम की संतानों को आदमी कहा जाता है। तौहीद, धार्मिक आदेश, जन्नत, जहन्नम, सब्र, धर्म परायणता (तक्वा) के विषय ऐसे हैं जो बारम्बार दोहराए गए। क़ुरआन ने अपने समय में एक सीधे साधे, नेक व्यापारी इंसान को, जो अपने ‎परिवार में एक भरपूर जीवन गुज़ार रहा था। विश्व की दो महान शक्तियों ‎‎(रोमन तथा ईरानी) के समक्ष खड़ा कर दिया। केवल यही नहीं ‎उसने रेगिस्तान के अनपढ़ लोगों को ऐसा सभ्य बना दिया कि पूरे विश्व पर ‎इस सभ्यता की छाप से सैकड़ों वर्षों बाद भी इसके निशान पक्के मिलते हैं। ‎क़ुरआन ने युध्द, शांति, राज्य संचालन इबादत, परिवार के वे आदर्श प्रस्तुत ‎किए जिसका मानव समाज में आज प्रभाव है। मुसलमानों के अनुसार कुरआन में दिए गए ज्ञान से ये साबित होता है कि हज़रत मुहम्मद एक नबी है | .

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काफ़ि़र

काफिर (अरबी كافر (काफिर); बहुवचन كفّار कुफ्फार) इस्लाम में अरबी भाषा का बहुत विवादित शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ - "अस्वीकार करने वाला" या "ढ़कने वाला" होता है किन्तु इस्लामी मत में "काफिर" शब्द उस व्यक्ति के लिये प्रयुक्त होता है जो अल्लाह को नहीं मानता, या जो मोहम्मद को अल्लाह का रसुल नहीं मानता (अर्थात सभी गैर-मुसलमान लोग)। आजकल इस शब्द को अपमानसूचक माना जाने लगा है; इसी लिये कुछ मुस्लिम इसके स्थान पर "गैर-मुस्लिम" शब्द का प्रयोग करने की सलाह देते हैं। .

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कालीन

कालीन कालीन (अरबी: क़ालीन) अथवा गलीचा (फारसी: ग़लीच) उस भारी बिछावन को कहते हैं जिसके ऊपरी पृष्ठ पर आधारणत: ऊन के छोटे-छोटे किंतु बहुत घने तंतु खड़े रहते हैं। इन तंतुओं को लगाने के लिए उनकी बुनाई की जाती है, या बाने में ऊनी सूत का फंदा डाल दिया जाता है, या आधारवाले कपड़े पर ऊनी सूत की सिलाई कर दी जाती है, या रासायनिक लेप द्वारा तंतु चिपका दिए जाते हैं। ऊन के बदले रेशम का भी प्रयोग कभी-कभी होता है परंतु ऐसे कालीन बहुत मँहगे पड़ते हैं और टिकाऊ भी कम होते हैं। कपास के सूत के भी कालीन बनते हैं, किंतु उनका उतना आदर नहीं होता। कालीन की पीठ के लिए सूत और पटसन (जूट) का उपयोग होता है। ऊन के तंतु में लचक का अमूल्य गुण होने से यह तंतु कालीनों के मुखपृष्ठ के लिए विशेष उपयोगी होता है। फलस्वरूप जूता पहनकर भी कालीन पर चलते रहने पर वह बहुत समय तक नए के समान बना रहता है। ताने के लिए कपास की डोर का ही उपयोग किया जाता है, परंतु बाने के लिए सूत अथवा पटसन का। पटसन के उपयोग से कालीन भारी और कड़ा बनता है, जो उसका आवश्यक तथा प्रशंसनीय गुण है। अच्छे कालीनों में सूत की डोर के साथ पटसन का उपयोग किया जाता है। .

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काउबॉय

सी.एम. रसेल द्वारा दर्शाया एक अमेरिकी काउबॉय की उत्कृष्ट छवि. उत्तरी अमेरिका में फार्मों के पशुओं की रखवाली करने वाले को काउबॉय कहा जाता है, परंपरागत रूप से घोड़े पर सवार होकर वह यह काम करता है और अक्सर फ़ार्म संबंधित अन्य अनेक प्रकार के काम भी किया करता है। 19वीं शताब्दी के अंत में यह ऐतिहासिक अमेरिकी काउब्वॉय उत्तरी मेक्सिको के वाकुएरो (काउब्वॉय का एक स्थानीय नाम) परंपराओं से उत्पन्न हुआ और इसने विशेष महत्व का आकार ग्रहण कर लिया और एक दंतकथा बन गया।मेलोन, जे., पृष्ठ.

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किताब-उल-हिन्द

किताब-उल-हिन्द अरबी में लिखी गई अल-बेरुनी की एक कृति है। इसकी भाषा सरल और स्पष्ट है। यह एक विस्तृत ग्रन्थ है जिसमें धर्म और दर्शन,त्योहारों,खगोल-विज्ञान,रीति-रिवाजों तथा प्रथाओं,सामाजिक जीवन,भार-तौल तथा मापन-विधियों,मूर्तिकला, कानून, मापतंत्र विज्ञान आदि विषयों का विवेचन किया गया है। .

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किंगडम ऑफ हेवेन (फ़िल्म)

किंगडम ऑफ हेवेन (अंग्रेजी; Kingdom of Heaven) वर्ष २००५ की एक ऐतिहासिक ड्रामा फ़िल्म है जिसका निर्माण-निर्देशन रिड्ले स्काॅट ने किया और पटकथा विलियम मोनाहन ने लिखी है। फ़िल्म में ओरलेंडो ब्लूम, इवा ग्रीन, जेरेमी आयरन्स, डेविड थेव्लिस, ब्रेनडेन ग्लीसन, लैन ग्लेन, मार्टन सोकास, लियाम नीसन, एडवर्ड नाॅर्टन, ग़स़न मस़ूद, माइकल शीन, वेलीबोर टाॅपिक तथा ऐलेक्ज़ेण्डर सिद्दीग ने किया है। फ़िल्म का वस्तु-विषय १२वीं शताब्दी के धर्मयुद्ध पर आधारित है। जहाँ एक फ्रेंच ग्रामीण लोहार येरुशलेम राज्य को मुस्लिम शासक सुल्तान सलाउद्दीन से बचाने जाता है, वह जहाँ ईसाइयों की अगुवाई में शहर वापिस पाने के हात्तिन की जंग लड़ता है। फ़िल्म की व्यापक पटकथा इबलिन के बलियान (ca. ११४३–९३) के जीवन पर चित्रण की गया है। फ़िल्मांकन का कार्य मोरोक्को के ऑर्ज़ाज़ाते में हुआ है, जहाँ स्काॅट ने ग्लेडिएटर एवं ब्लैक हाॅक डाउन आदि के लिए पूर्व भी काम किया था, और साथ स्पेन के लाॅआरे कैसेल (हुएस्का), सेगोविया, ऐविला, पेल्मा डेल रियो, और सेविला में कैसे डे पिलातुस जैसे जगहों को चुना गया। फ़िल्म की प्रदर्शनी पर आलोचकों ने मिश्रित प्रतिक्रिया दी। दिसम्बर २००५ में, निर्देशक-निर्माता स्काॅट ने फ़िल्म की अतिरिक्त निर्देशक-कट जारी की, जिन्हें वह उनका वास्तविक संस्करण कहते हैं, और जिससे उन्हें बेहतर प्रतिक्रिया भी मिली। .

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कुफिया

कुफिया (अरबी: كوفية‎‎ कुफ़ियाह, जिसका अर्थ है "कूफा शहर से" (الكوفة); बहुवचन كوفيات कूफ़ीयात), जिसे गुतराह (غترة), शेमाग (شماغ), हत्ताह (حطة), मशदाह (مشدة), चुफिया (फारसी: چفیه) या सेमेदानी (कुर्द: جه مه داني), एक वर्गाकार पारंपरिक सिरवस्त्र है जिसे मध्य पूर्वी देशों के लोगों मुख्यत: अरब लोगों द्वारा पहना जाता है। आम तौर पर यह सूती कपड़े से बना होता है। पारंपरिक रूप से इसे अरबों के अलावा कुछ मिर्ज्राही यहूदियों और ईरान के खानाबदोशों (विशेषकर कुर्दिश लोगों) द्वारा पहना जाता है। सामान्यतः यह शुष्क क्षेत्रों में पाया जाता है क्योंकि इससे धूप, धूल और रेत से सुरक्षा मिलती है। चारखाने में बुना इसका विशिष्ट डिज़ाइन शायद प्राचीन मेसोपोटामियाई संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता है, लेकिन पैटर्न का सही मूल अज्ञात है। .

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कॉप्टिक भाषा

कॉप्टिक या कोप्ती मिस्र की एक भाषा थी जो १७वीं शताब्दी तक लुप्त हो गयी। यह प्राचीन मिस्रियों के आधुनिक वंशधर कोप्तों (किब्त, कुब्त) की भाषा थी। कोपी भाषा उस प्राचीन मिस्री से निकली थी जो स्वयं चित्रलिपिक (हिरोग्लिफ़िक), पुरोहिती (हिरेतिक), देमोतिक आदि अनेक रूपों में लिखी गई। दीर्घकाल तक, ग्रीक भाषा के घने प्रभाव के बावजूद, कोप्ती अपनी निजता बनाए रही। अरबों की मिस्र विजय ने नि:संदेह इसपर अपना गहरा प्रभाव डाला और अरबी प्राय: इसे आत्मसात् कर गई। १७वीं सदी ईसवी तक पहुँचते-पहुँचते इसके अस्तित्व का लोप हो गया। दूसरी सदी ईसवी में देमोतिक से मिलीजुली वह जंतर-मंतर के उपयोग के लिए लिखी जाने लगी थी। तब तक उसका रूप प्राय: शुद्ध प्राचीन था। प्राचीन कोप्ती की अपनी अनेक जनबोलियाँ भी थीं जिनमें तीन - साहीदी, अख़मीमी और फ़ायूमी प्रधान थीं। ग्रीक भाषा प्रभावित इन बोलियों का उपयोग अधिकतर १३वीं सदी तक होता रहा, पर अरबी के बढ़ते हुए प्रभाव और प्रयोग के धीरे-धीरे इसका अस्तित्व मिटा दिया। इनके धार्मिक साहित्यों की व्याख्या तक अरबी में होने लगी। स्वयं कोप्तों ने १०वीं सदी से ही अरबी में लिखना-पढ़ना शुरू कर दिया था, यद्यपि कोप्ती का साहित्यिक व्यवहार एक अंश में १४वीं सदी तक जहाँ-तहाँ दीख जाता है। प्राय: पिछले ३०० वर्षों से बोली जानेवाली भाषा के रूप में कोप्ती का उपयोग उठ गया है। साधारणत: माना जाता है कि कोप्त जाति और भाषा का संबंध मिस्र के उस कुफ्त गाँव से है जो नील नदी के पूर्वी तट पर प्राचीन थीब्ज़ से प्राय: ३५ किमी उत्तर-पूर्व आज भी खड़ा है। कोप्त लोग ईसा की तीसरी चौथी सदी में ईसाई हो गए थे। वस्तुत: प्राचीन मिस्री ईसाइयों का ही नाम कोप्त पड़ा और उनकी भाषा कोप्ती कहलाई। इसकी जनबोली साहीदी बियाई जनपद में बोली जाती थी, जैसे अख़मीमी अख़मीम के पड़ोस में और फ़ायुमी फ़ायूम के आस पास मिस्र के मध्य भाग में, मेंफ़िस तक। बोहाइरी नाम की कोप्ती बोली डेल्टा के उत्तर-पश्चिमी भाग में बोली जाती थी। इसमें लिखा नवीं सदी का ईसाई साहित्य आज भी उपलब्ध है। कोप्ती का प्राय: समूचा साहित्य धार्मिक है जो मूलत: ग्रीक से अनूदित है। साहीदी, अख़मीमी और फ़ायूमी तीनों में बाइबिल की पुरानी और नई दोनों पोथियों के अनुवाद ४५० ई. से पूर्व ही प्रस्तुत हो चुके थे। धर्मेतर विषयों का बहुत थोड़ा साहित्य कोप्ती में लिखा गया या आज बच रहा है। इसमें कुछ तो झाड़-फूँक या जंतर-मंतर संबंधी प्रयोग हैं, कुछ चिकित्सा से संबंधित हैं, कुछ में सिकन्दर और मिस्रविजेता प्राचीन ईरानी सम्राट् कंबुजीय की जीवन की घटनाएँ हैं। १३वीं-१४वीं सदी में काप्ती का यह रूप भी अरबी के प्रभाव से मिट गया। श्रेणी:विश्व की भाषाएँ.

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कोर्डोबा खिलाफत

कोर्डोबा खिलाफत; Caliphate of Córdoba (خلافة قرطبة; खिलाफत कोरडोबा) उमय्यद वंश द्वारा शासित उत्तरी अफ्रीका के एक भाग के साथ इबेरिया प्रायद्वीप में एक इस्लामी राज्य था। कोर्डोबा में राजधानी के साथ राज्य 929 से 1031 ईस्वी आस्तिव में रहा जो क्षेत्र पूर्व में उमय्यद खिलाफत की शाखा कोर्डोबा अमीरात (756-929) का वर्चास्व था। यह अवधि व्यापार और संस्कृति के विस्तार से हुई और अल- अन्डालुस में वास्तुकला की उत्कृष्ठ कृतियो का निर्माण देखा गया। .

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अचार बनाना

अचार बनाने के लिए एकत्रित किए गए खीरे (विशेष रूप से, घेर्किन). सीरिया के मध्य पूर्व शैली अचार. अचार बनाना, जिसे ब्राइनिंग या डिब्बाबंदी के नाम से भी जाना जाता है, लैक्टिक एसिड बनाने के लिए, या खाद्य पदार्थ को किसी अम्लीय घोल, सामान्यतः सिरका (एसेटिक एसिड) में मसाले लगाकर संग्रहीत करने के लिए लवण (नमक और पानी का घोल) में वातनिरपेक्ष किण्वन द्वारा खाद्य पदार्थ संरक्षित करने की एक प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया के बाद तैयार होने वाले खद्य पदार्थ को अचार कहा जाता है। इस प्रक्रिया से खाद्य पदार्थ का स्वाद नमकीन या खट्टा हो जाता है। दक्षिण एशिया में, खाद्य तेलों का उपयोग सिरका के साथ अचार बनाने के माध्यम के रूप में किया जाता है। एक और ख़ास विशेषता यह है कि इसका pH, 4.6 से कम होता है, जो अधिकांश बैक्टीरिया को मारने के लिए पर्याप्त है। अचार बनाकर विकारी खाद्य पदार्थों को भी महीनों तक संरक्षित किया जा सकता है। सुक्ष्मजीवीरोधी जड़ी बूटियों और मसालें, जैसे सरसों के बीज, लहसुन दालचीनी या लौंग अक्सर लिलाए जाते हैं। अगर खाद्य पदार्थ में पर्याप्त नमी हो, तो अचार बनाने का लवण केवल सूखा नमक मिलाकर बनाया जा सकता है। उदाहरण के लिए, गोभी और कोरियाई किमची अतिरिक्त पानी से सब्जियों को बाहर निकालकर उनमें नमक लगाकर बनाया जाता है। लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया से, कमरे के तापमान पर प्राकृतिक किण्वन आवश्यक अम्लता का निर्माण करता है। अन्य अचार सिरका में सब्जियों को रखकर बनाए जाते हैं। डिब्बाबंदी प्रक्रिया के विपरीत, अचार बनाने (जिसमें किण्वन शामिल है) के लिए सील किए जाने से पहले खाद्य पदार्थ को को पूरी तरह से रोगाणुहीन करने की आवश्यकता नहीं होती है। घोल की अम्लता या लवणता, किण्वन का तापमान और ऑक्सीजन का बहिष्करण जिस पर सूक्ष्मजीव हावी होते हैं, उत्पाद के स्वाद को निर्धारित करती है।मैकगी, हेरोल्ड (2004).

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अडोबी इलस्ट्रेटर

अडोबी इलस्ट्रेटर एडोब सिस्टम्स द्वारा विकसित और विपणित वेक्टर ग्राफ़िक्स एडिटर है। नवीनतम संस्करण, इलस्ट्रेटर CS5, उत्पाद श्रंखला की पंद्रहवीं पीढ़ी है। .

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अनुवाद

किसी भाषा में कही या लिखी गयी बात का किसी दूसरी भाषा में सार्थक परिवर्तन अनुवाद (Translation) कहलाता है। अनुवाद का कार्य बहुत पुराने समय से होता आया है। संस्कृत में 'अनुवाद' शब्द का उपयोग शिष्य द्वारा गुरु की बात के दुहराए जाने, पुनः कथन, समर्थन के लिए प्रयुक्त कथन, आवृत्ति जैसे कई संदर्भों में किया गया है। संस्कृत के ’वद्‘ धातु से ’अनुवाद‘ शब्द का निर्माण हुआ है। ’वद्‘ का अर्थ है बोलना। ’वद्‘ धातु में 'अ' प्रत्यय जोड़ देने पर भाववाचक संज्ञा में इसका परिवर्तित रूप है 'वाद' जिसका अर्थ है- 'कहने की क्रिया' या 'कही हुई बात'। 'वाद' में 'अनु' उपसर्ग उपसर्ग जोड़कर 'अनुवाद' शब्द बना है, जिसका अर्थ है, प्राप्त कथन को पुनः कहना। इसका प्रयोग पहली बार मोनियर विलियम्स ने अँग्रेजी शब्द टांंसलेशन (translation) के पर्याय के रूप में किया। इसके बाद ही 'अनुवाद' शब्द का प्रयोग एक भाषा में किसी के द्वारा प्रस्तुत की गई सामग्री की दूसरी भाषा में पुनः प्रस्तुति के संदर्भ में किया गया। वास्तव में अनुवाद भाषा के इन्द्रधनुषी रूप की पहचान का समर्थतम मार्ग है। अनुवाद की अनिवार्यता को किसी भाषा की समृद्धि का शोर मचा कर टाला नहीं जा सकता और न अनुवाद की बहुकोणीय उपयोगिता से इन्कार किया जा सकता है। ज्त्।छैस्।ज्प्व्छ के पर्यायस्वरूप ’अनुवाद‘ शब्द का स्वीकृत अर्थ है, एक भाषा की विचार सामग्री को दूसरी भाषा में पहुँचना। अनुवाद के लिए हिंदी में 'उल्था' का प्रचलन भी है।अँग्रेजी में TRANSLATION के साथ ही TRANSCRIPTION का प्रचलन भी है, जिसे हिंदी में 'लिप्यन्तरण' कहा जाता है। अनुवाद और लिप्यंतरण का अंतर इस उदाहरण से स्पष्ट है- इससे स्पष्ट है कि 'अनुवाद' में हिंदी वाक्य को अँग्रेजी में प्रस्तुत किया गया है जबकि लिप्यंतरण में नागरी लिपि में लिखी गयी बात को मात्र रोमन लिपि में रख दिया गया है। अनुवाद के लिए 'भाषांतर' और 'रूपांतर' का प्रयोग भी किया जाता रहा है। लेकिन अब इन दोनों ही शब्दों के नए अर्थ और उपयोग प्रचलित हैं। 'भाषांतर' और 'रूपांतर' का प्रयोग अँग्रेजी के INTERPRETATION शब्द के पर्याय-स्वरूप होता है, जिसका अर्थ है दो व्यक्तियों के बीच भाषिक संपर्क स्थापित करना। कन्नडभाषी व्यक्ति और असमियाभाषी व्यक्ति के बीच की भाषिक दूरी को भाषांतरण के द्वारा ही दूर किया जाता है। 'रूपांतर' शब्द इन दिनों प्रायः किसी एक विधा की रचना की अन्य विधा में प्रस्तुति के लिए प्रयुक्त है। जैस, प्रेमचन्द के उपन्यास 'गोदान' का रूपांतरण 'होरी' नाटक के रूप में किया गया है। किसी भाषा में अभिव्यक्त विचारों को दूसरी भाषा में यथावत् प्रस्तुत करना अनुवाद है। इस विशेष अर्थ में ही 'अनुवाद' शब्द का अभिप्राय सुनिश्चित है। जिस भाषा से अनुवाद किया जाता है, वह मूलभाषा या स्रोतभाषा है। उससे जिस नई भाषा में अनुवाद करना है, वह 'प्रस्तुत भाषा' या 'लक्ष्य भाषा' है। इस तरह, स्रोत भाषा में प्रस्तुत भाव या विचार को बिना किसी परिवर्तन के लक्ष्यभाषा में प्रस्तुत करना ही अनुवाद है।ज .

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अप्सरा

अप्सरा तिलोत्तमा अप्सरा देव लोक में नृत्य संगीत करने वाली सुन्दरियाँ। इनमें से प्रमुख हैं उर्वशी, रम्भा, मेनका आदि। .

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अफ़्रीका

अफ़्रीका वा कालद्वीप, एशिया के बाद विश्व का सबसे बड़ा महाद्वीप है। यह 37°14' उत्तरी अक्षांश से 34°50' दक्षिणी अक्षांश एवं 17°33' पश्चिमी देशान्तर से 51°23' पूर्वी देशान्तर के मध्य स्थित है। अफ्रीका के उत्तर में भूमध्यसागर एवं यूरोप महाद्वीप, पश्चिम में अंध महासागर, दक्षिण में दक्षिण महासागर तथा पूर्व में अरब सागर एवं हिन्द महासागर हैं। पूर्व में स्वेज भूडमरूमध्य इसे एशिया से जोड़ता है तथा स्वेज नहर इसे एशिया से अलग करती है। जिब्राल्टर जलडमरूमध्य इसे उत्तर में यूरोप महाद्वीप से अलग करता है। इस महाद्वीप में विशाल मरुस्थल, अत्यन्त घने वन, विस्तृत घास के मैदान, बड़ी-बड़ी नदियाँ व झीलें तथा विचित्र जंगली जानवर हैं। मुख्य मध्याह्न रेखा (0°) अफ्रीका महाद्वीप के घाना देश की राजधानी अक्रा शहर से होकर गुजरती है। यहाँ सेरेनगेती और क्रुजर राष्‍ट्रीय उद्यान है तो जलप्रपात और वर्षावन भी हैं। एक ओर सहारा मरुस्‍थल है तो दूसरी ओर किलिमंजारो पर्वत भी है और सुषुप्‍त ज्वालामुखी भी है। युगांडा, तंजानिया और केन्या की सीमा पर स्थित विक्टोरिया झील अफ्रीका की सबसे बड़ी तथा सम्पूर्ण पृथ्वी पर मीठे पानी की दूसरी सबसे बड़ी झीलहै। यह झील दुनिया की सबसे लम्बी नदी नील के पानी का स्रोत भी है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इसी महाद्वीप में सबसे पहले मानव का जन्म व विकास हुआ और यहीं से जाकर वे दूसरे महाद्वीपों में बसे, इसलिए इसे मानव सभ्‍यता की जन्‍मभूमि माना जाता है। यहाँ विश्व की दो प्राचीन सभ्यताओं (मिस्र एवं कार्थेज) का भी विकास हुआ था। अफ्रीका के बहुत से देश द्वितीय विश्व युद्ध के बाद स्वतंत्र हुए हैं एवं सभी अपने आर्थिक विकास में लगे हुए हैं। अफ़्रीका अपनी बहुरंगी संस्कृति और जमीन से जुड़े साहित्य के कारण भी विश्व में जाना जाता है। .

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अफ़्रीका की भाषाएं

भाषाई विभिन्नता को दर्शाता अफ्रीका का एक मानचित्र युनेस्को के अनुसार अफ्रीका में २००० से भी ज्यादा भाषाएँ बोली जाती है। अधिकतर भाषाएं अफ्रीकी मूल की है परन्तु यूरोपीय एवं एशियाई प्रभाव भी देखा जा सकता है। अफ्रीका महाद्वीप में बुशमैन (बुल्मनिवासी), वांटू, सूडान तथा सामी-हामी-परिवार की भाषाएँ बोली जाती हैं। अफ्रीका के समस्त उत्तरी भग में सामी भषाओं का आधिपत्य प्राय: दो हजार वर्षों से रहा है। इधर दो-तीन शताब्दियों से दक्षिण के कोने पर और समस्त पश्चिमी किनारे पर यूरोपीय जातियों ने कब्जा करके मूल निवासियों को महाद्वीप मे भीतरी भागों की ओर हटा दिया। किंतु अब अफ्रीकी निवासियों में जागृति हो चली है और फलस्वरूप उनकी निजी भाषाएँ अपना अधिकार प्राप्त कर रही हैं। अफ्रीकी भाषाओँ को निम्नलिखित समूहों में बांटा जा सकता है।.

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अफ्रीका का सींग

अफ्रीका का सींग मे आने वाले अफ़्रीकी देश अफ्रीका का सींग, (सोमाली: Geeska Afrika, अंग्रेजी: Horn of Africa, गीज़: የአፍሪካ ቀንድ, अरबी: القرن الأفريقي) (वैकल्पिक रूप से पूर्वोत्तर अफ्रीका और कभी कभी सोमाली प्रायद्वीप) पूर्वी अफ्रीका का एक प्रायद्वीप है जो अरब सागर में सैकड़ों किलोमीटर तक फैला है और अदन की खाड़ी के दक्षिणी किनारे पर स्थित है। मानचित्र पर इसका स्वरूप एक सींग के समान लगता है इसी लिए इसे यह नाम दिया गया है। यह अफ्रीकी महाद्वीप का सबसे पूर्वी विस्तार है। इसको मध्ययुगीन काल में बिलाद अल बरबर ("बरबरों की भूमि") कहा जाता था। अफ्रीका का सींग के क्षेत्र में इरिट्रिया, जिबूती, इथियोपिया और सोमालिया जैसे देश स्थित हैं।Robert Stock, Africa South of the Sahara, Second Edition: A Geographical Interpretation, (The Guilford Press: 2004), p. 26Michael Hodd, East Africa Handbook, 7th Edition, (Passport Books: 2002), p. 21: "To the north are the countries of the Horn of Africa comprising Ethiopia, Eritrea, Djibouti and Somalia."Encyclopaedia Britannica, inc, Jacob E. Safra, The New Encyclopaedia Britannica, (Encyclopaedia Britannica: 2002), p.61: "The northern mountainous area, known as the Horn of Africa, comprises Djibouti, Ethiopia, Eritrea, and Somalia."Sandra Fullerton Joireman, Institutional Change in the Horn of Africa, (Universal-Publishers: 1997), p.1: "The Horn of Africa encompasses the countries of Ethiopia, Eritrea, Djibouti and Somalia.

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अबु बक्र

अबू बक्र का असली नाम अब्दुल्लाह इब्न अबू क़ुहाफ़ा (Abdullah ibn Abi Quhaafah अरबी عبد الله بن أبي قحافة), c. 573 ई – 23 अगस्त 634 ई, इनका मशहूर नाम अबू बक्र (أبو بكر) है।, from islam4theworld अबू बक्र पैगंबर मुहम्मद के ससुर और उनके प्रमुख साथियों में से थे। वह मुहम्मद साहब के बाद मुसल्मानों के पहले खलीफा चुने गये। सुन्नी मुसलमान इनको चार प्रमुख पवित्र खलीफाओं में अग्रणी मानतें हैं। ये पैगंबर मुहम्मद के प्रारंभिक अनुयायियों में से थे और इनकी पुत्री आयशा पैगंबर की चहेती पत्नी थी। .

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अबुल कलाम आज़ाद

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद या अबुल कलाम गुलाम मुहियुद्दीन (11 नवंबर, 1888 - 22 फरवरी, 1958) एक प्रसिद्ध भारतीय मुस्लिम विद्वान थे। वे कवि, लेखक, पत्रकार और भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे। भारत की आजादी के वाद वे एक महत्त्वपूर्ण राजनीतिक रहे। वे महात्मा गांधी के सिद्धांतो का समर्थन करते थे। उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए कार्य किया, तथा वे अलग मुस्लिम राष्ट्र (पाकिस्तान) के सिद्धांत का विरोध करने वाले मुस्लिम नेताओ में से थे। खिलाफत आंदोलन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। 1923 में वे भारतीय नेशनल काग्रेंस के सबसे कम उम्र के प्रेसीडेंट बने। वे 1940 और 1945 के बीच काग्रेंस के प्रेसीडेंट रहे। आजादी के वाद वे भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के रामपुर जिले से 1952 में सांसद चुने गए और वे भारत के पहले शिक्षा मंत्री बने। वे धारासन सत्याग्रह के अहम इन्कलाबी (क्रांतिकारी) थे। वे 1940-45 के बीट भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे जिस दौरान भारत छोड़ो आन्दोलन हुआ था। कांग्रेस के अन्य प्रमुख नेताओं की तरह उन्हें भी तीन साल जेल में बिताने पड़े थे। स्वतंत्रता के बाद वे भारत के पहले शिक्षा मंत्री बने और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना में उनके सबसे अविस्मरणीय कार्यों में से एक था। .

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अब्दुल हाफ़िज़ मोहम्मद बरकतउल्ला

अब्दुल हाफिज मोहम्मद बारकतुल्ला, जिन्हें मौलाना बरकतुलह (सी.7 जुलाई 1854 - 20 सितंबर 1 9 27) के रूप में सम्मानित किया गया था, पैन इस्लामिक आंदोलन के लिए सहानुभूति के साथ एक भारतीय क्रांतिकारी था। बरकातुल्ला का जन्म 7 जुलाई 1854 को मध्य प्रदेश के इट्रा मोहल्ला भोपाल में हुआ था। उन्होंने भारत के बाहर से लड़ा, भारत के स्वतंत्रता के लिए प्रमुख समाचार पत्रों में अग्निमय भाषण और क्रांतिकारी लेखन के साथ। वह भारत को स्वतंत्र देखने के लिए जीवित नहीं था 1 9 88 में, भोपाल विश्वविद्यालय का नाम बदलकर बरकातुल्ला विश्वविद्यालय रखा गया था। .

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अब्राहम इब्न एजरा

अब्राहम इब्न एजरा हिब्रू: אברהם אבן עזרא or ראב"ע, अरबी: अबेनेज्रा; 1089 – 1164) अपने समय का प्रसिद्ध यहूदी कवि और विद्वान् था। उसका पूरा नाम अब्राहम बिनमेअर इब्न एजरा था। वह तोलेदो (स्पेन) में पैदा हुआ था। अपनी जन्मभूमि में यथेष्ट कीर्ति उपार्जित कर सन् ११४० में वह भ्रमण के लिए निकला। सबसे पहले वह उत्तरी अफ्रीका के देशों में गया। कुछ वर्षों तक वहाँ ठहरने के पश्चात् वह इटली, फ्रांस और इंग्लैड भी गया। लगभग २५ वर्ष तक विदेशों में रहकर उसने अपनी विद्वता की कीर्तिध्वजाएँ फहराई। वह उच्च कोटि का विचारक ओर जनप्रिय कवि था। आधुनिक इब्रानी व्याकरण के जनक हय्यूज की पुस्तकों का उसने अरबी से इब्रानी भाषा में अनुवाद किया और स्वयं उनपर टीकाएँ लिखीं। अबेनेज्रा की रचनाओं में दर्शन, गाणित, ज्योतिष आदि विषयों के ग्रंथ हैं। किंतु उसकी प्रसिद्धि का मुख्य कारण यहूदी धर्मग्रंथों पर लिखी उसकी टीकाएँ हैं। पुराने अहदनामें के प्रमुख यहूदी पैगंबरी की पुस्तकों पर अबेनेज्रा के भाष्य बड़े चाव से पढ़े जाते हैं। .

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अबू नुवास

अबु नुवास (756-814) इस्लाम के शुरुआती काल में अरबी का प्रसिद्ध कवि था। उसको इस्लाम के सिद्धांतों के ख़िलाफ़ शराब, उत्सव और दैहिक प्रेम के ख़ुले आम प्रशंसा के लिए जाना जाता है। उसकी कविताओं में समलैंगिकता के स्वर भी पाए जाते हैं। इसकी माँ ईरानी थी और मध्य काल (तेरहवीं-चैदहवीं सदी) में हाफ़िज़ तथा कई अन्य सूफ़ी कवियों का प्रेरणास्रोत माना जाता है। .

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अरण्डी

अरंडी (अंग्रेज़ी:कैस्टर) तेल का पेड़ एक पुष्पीय पौधे की बारहमासी झाड़ी होती है, जो एक छोटे आकार से लगभग १२ मी के आकार तक तेजी से पहुँच सकती है, पर यह कमजोर होती है। इसकी चमकदार पत्तियॉ १५-४५ सेमी तक लंबी, हथेली के आकार की, ५-१२ सेमी गहरी पालि और दांतेदार हाशिए की तरह होती हैं। उनके रंग कभी कभी, गहरे हरे रंग से लेकर लाल रंग या गहरे बैंगनी या पीतल लाल रंग तक के हो सकते है।। वेब ग्रीन तना और जड़ के खोल भिन्न भिन्न रंग लिये होते है। इसके उद्गम व विकास की कथा अभी तक अध्ययन अधीन है। यह पेड़ मूलतः दक्षिण-पूर्वी भूमध्य सागर, पूर्वी अफ़्रीका एवं भारत की उपज है, किन्तु अब उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में खूब पनपा और फैला हुआ है। .

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अरब टाइम्स अखबार

अरब टाइम्स अखबार(अरबी عرب تايمز), न्यूयॉर्क टाइम्स संयुक्त राज्य अमेरिका में एक दैनिक अरबी समाचार पत्र है। की ह्यूस्टन शहर से जारी किए गए। .

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अरबस्क

अरबस्क या इस्लामी कला अक्सर ज्यामितीय पुष्प या वनस्पति डिजाइनों के उपयोग को पुनरावृत्ति में अरबी के रूप में जाना जाता है। इस तरह की डिजाइन बेहद गैर- प्रतिनिधित्वकारी हैं, क्योंकि इस्लाम ने पूर्व-इस्लामी बुतपरस्त (मूर्तिपुज्य) धर्मों में पाए जाने वाले प्रतिनिधित्व के चित्रणों को मना किया है। इसके बावजूद, कुछ मुस्लिम समाजों में चित्रण कला की उपस्थिति है, खासकर लघु शैली जो फारस में और ऑटोमन साम्राज्य के तहत प्रसिद्ध थी, जिसमें लोगों और जानवरों के चित्रों को प्रदर्शित किया गया था, और धार्मिक अध्याय और इस्लामी परंपरागत कथाओं के चित्रण भी शामिल हैं। एक अन्य कारण है कि इस्लामी कला आम तौर पर अमूर्त है, अक्रांस, अक्रियाशील और अनन्त प्रकृति का प्रतीक है, जो कि अरबस्क द्वारा प्राप्त एक उद्देश्य है। इस्लामी शिलालेख इस्लामी कला में एक सर्वव्यापी सजावट है, और आमतौर पर कुरान अध्यायो के रूप में व्यक्त किया जाता है। इसमें शामिल दो मुख्य लिपियों में प्रतीकात्मक कुफिक और नास्क लिपि हैं, जो कि मस्जिदों की दीवारों और गुंबदों, मिनारो पर लिखी जाती है। इस्लामी वास्तुकला के भेदभाव की प्रस्तुतियों को हमेशा पुनरावृत्ति, विकिरण संरचनाओं और लयबद्ध, मीट्रिक पैटर्नों का आदेश दिया गया है। इस संबंध में फ्रैक्टल ज्यामिति एक प्रमुख उपयोगिता रही है, विशेष रूप से मस्जिदों और महलों के लिए। रूपांकनों के रूप में कार्यरत अन्य विशेषताओं में स्तभ, और मेहराब शामिल हैं, जो संयोजन और अन्तर्निर्मित होते हैं। इस्लामी वास्तुकला में गुंबदों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण रही है। इसका उपयोग सबसे पहले 691 में मस्जिद अल-अक्सा के गुंबद के निर्माण के साथ, और 17 वीं सदी तक ताजमहल के साथ भी आवर्ती हो रहा है। और 19वीं शताब्दी के रूप में, इस्लामी गुम्बद को यूरोपीय वास्तुकला में शामिल किया गया था। File:Columns and decoration of the Upper gallery of Hagia Sophia.jpg|बीजान्टिन राजधानी और सजावट में हागिया सोफिया, सफेद संगमरमर, 6 सदी। File:Basilica of San Vitale - Lamb of God mosaic.jpg|बीजान्टिन मोज़ेक 6 सदी.

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अरीफ़ की जन्नत

अरीफ़ की जन्नत (अरबी: جَنَّة الْعَرِيف‎ Jannat al-‘Arīf, literally, "Architect's Garden") एक महल है। ये स्पेन में आंदालूसिया के शहर ग्रनादा में स्थित है। अल्लाब्रा के साथ ही ये भी एक विश्व धरोहर स्थल है। .

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अरीश

अरीश या अल-अरीश मिस्र के उत्तर सीनाई मुहाफ़ज़ाह नामक मुहाफ़ज़ाह (उच्च-स्तरीय प्रशासनिक विभाग) की राजधानी और सबसे बड़ा शहर है। मिस्र की राष्ट्रीय राजधानी क़ाहिरा से ३४४ किमी पूर्वोत्तर में भूमध्य सागर के तट पर स्थित यह नगर पूरे सीनाई प्रायद्वीप का सबसे बड़ा शहर भी है। अरीश अपने समुद्र के साफ़​ नीले पानी, सफ़ेद​ रेत के तट और विस्त्रित तटवर्तीय खजूर के पेड़ों के लिये जाना जाता है। .

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अल निज़ामिया बग़दाद

अल निज़ामिया बग़दाद: बग़दाद (अरबी, المدرسة النظامية) का अल-निजामीया, 1965 में स्थापित किया गया था। 1065 में स्थापित किया गया था। जुलाई 10 9 1 में, निज़ाम अल-मुल्क ने स्कूल के प्रोफेसर के रूप में 33 वर्षीय अल ग़ज़ाली को नियुक्त किया। मुफ्त शिक्षा की पेशकश, इसे "मध्ययुगीन दुनिया का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय" के रूप में वर्णित किया गया है। इब्न टुमार्ट, बर्बर अलमोहाद वंश के संस्थापक, प्रतिष्ठित रूप से स्कूल में भाग लेते और अल-गजाली के तहत अध्ययन करते थे। निजाम अल-मुल्क के दामाद मुगलिल इब्न बक़री भी स्कूल द्वारा नियोजित थे। 10 9 6 में, जब अल ग़ज़ाली निज़ामिया छोड़ दिया, तो यह 3000 छात्रों को रखे। 1116 में, मुहम्मद अल-शाहरावती निज़ामिया में पढ़ाया। 1170 के दशक में, राजनेता बहाउद्दीन ने निज़ामिया में पढ़ाते थे, इससे पहले कि वे मोसुल में पढ़ाने के लिए चले गए। फ़ारसी कवि शेख़ सादी ने 1195 से 1226 तक निज़ामिया में अध्ययन किया, जब उन्होंने तीस साल की यात्रा शुरू की थी, तो उन लोगों में भी शामिल थे जिन्होंने मंगोल के इल्खनाते आक्रमणकारियों के हाथों से बग़दाद को लुटते हुवे को देखा था, जिसको उलुघ खान नेतृत्व कर रहा था। वर्ष 1258 में बगदाद। सादा बगदाद के अल-निजामीय्या में अपने दिनों की पढ़ाई को याद करते हैं: निजामिया में एक साथी छात्र मेरे प्रति क्रूरता दिखाते हैं, और मैंने अपने ट्यूटर को बताया, "जब भी मैं ज्यादा उचित जवाब देता हूं वह ईर्ष्या के साथी नाराज हो जाता है। " प्रोफेसर ने उत्तर दिया: आपके दोस्त की ईर्ष्या तुमसे सहमत नहीं है, लेकिन मैं नहीं जानता कि किसने कहा था कि पीठ पीछे बोलना प्रशंसनीय था। यदि वह ईर्ष्या के मार्ग से विनाश की तलाश करता है, तो आप बदनाम करने के रास्ते से उनके साथ मिलना चाहेंगे। " पाठ्यक्रम शुरू में इस्लामी धार्मिक अध्ययन, इस्लामी क़ानून, अरबी साहित्य और अंकगणित पर केंद्रित था, और बाद में इतिहास, गणित, भौतिक विज्ञान और संगीत में विस्तारित किया गया था। .

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अल बुस्तानी

अल बुस्तानी बुट्रस अल बुस्तानी (१८१९ - १८८३) वर्तमान लेबनान के एक लेखक एवं साहित्य पंडित थे। वे १९वीं शताब्दी के अन्तिम भाग में मिस्र में शुरू होकर मध्य पूर्व में फैले अरबी पुनर्जागरण के प्रमुख अग्रदूतों में से थे। अमरीकी मिशनरियों के संपर्क में आकर वह ऐबे में अध्यापक बने। उन्होने अली स्मिथ के बाइबिल के अरबी अनुवाद में सहायक का कार्य किया। इसके लिए उसको इब्रानी, यूनानी, सीरियाई और लैटिन भाषाएँ भी सीखनी पड़ीं। वह अंग्रेजी, फ्रांसीसी और इतालीय भाषाओं के भी विद्वान् थे। उन्होने एक विस्तृत अरबी शब्दकोश का भी संपादन किया। उसका दूसरा संपादित ग्रंथ 'दायरात अल-म-आरिफ़' (विश्वकोश) भी बहुत प्रसिद्ध है। १८६० में, मुसलमानों और ईसाइयों के बीच गृहयुद्ध के दौरान अपने पत्र 'नफीर सूरीया' के माध्यम से सद्भावना और सुमति का संदेश प्रचारित किया। अपने जीवन भर बुस्तानी सहिष्णुता और देशभक्ति के मूल्यों का प्रचार करते रहे। श्रेणी:अरबी साहित्यकार.

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अल बेरुनी

अबु रेहान मुहम्मद बिन अहमद अल-बयरुनी (फ़ारसी-अरबी: ابوریحان محمد بن احمد بیرونی यानि अबू रयहान, पिता का नाम अहमद अल-बरुनी) या अल बेरुनी (973-1048) एक फ़ारसी विद्वान लेखक, वैज्ञानिक, धर्मज्ञ तथा विचारक था। अल बेरुनी की रचनाएँ अरबी भाषा में हैं पर उसे अपनी मातृभाषा फ़ारसी के अलावा कम से कम तीन और भाषाओं का ज्ञान था - सीरियाई, संस्कृत, यूनानी। वो भारत और श्रीलंका की यात्रा पर 1017-20 के मध्य आया था। ग़ज़नी के महमूद, जिसने भारत पर कई बार आक्रमण किये, के कई अभियानों में वो सुल्तान के साथ था। अलबरुनी को भारतीय इतिहास का पहला जानकार कहा जाता था। .

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अल जज़ीरा

अल जजीरा (Al Jazeera; अरबी में: الجزيره‎ al-ğazīra IPA), मध्य पूर्व का समाचार-नेटवर्क है। 'अल जजीरा' का अरबी में अर्थ होता है - 'द्वीप'। इस टेलीविजन नेटवर्क का मुख्यालय कतर के दोहा में स्थित है। अल जजीरा का आरम्भ समाचार एवं समसामयिक घटनाओ को दिखाने वाला अरबी भाषा के एक उपग्रह चैनेल के रूप में हुआ था किन्तु अब यह अन्तरजाल एवं 'स्पेसिआलिटी टीवी' सहित कई भाषाओं में प्रसारण करते हुए विभिन्न क्षेत्रों में विकास कर चुका है। गैर-इस्लामी जगत में यह प्राय: अल कायदा के भोंपू (माउथ पीस) के रूप में समझा जाता है। अल जजीरा चैनल के अंग्रेजी संस्करण की शुरूआत 15 नवम्बर 2006 को दुनिया के कई देशों में एक साथ हुई थी। अलजजीरा समाचार चैनल अपने शुरूआत से ही अलकायदा की खबरों को प्रसारित करके विवादों में रहा है। अरबी में अलजजीरा का मतलब होता है द्वीप या समुद्र का टापू.

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अल-तूर

अल-तूर या अत-तूर, जिसे प्राचीनकाल में राएथू (Raithu) भी कहा जाता था, मिस्र के दक्षिण सीनाई मुहाफ़ज़ाह नामक मुहाफ़ज़ाह (उच्च-स्तरीय प्रशासनिक विभाग) की राजधानी है। इस शहर का नाम पास ही में स्थित तूर पर्वत पर पड़ा है (जिसे जबल अल-तूर या सीनाई पर्वत भी कहते हैं)। इस्लाम, ईसाई धर्म व यहूदी धर्म के अनुसार इस पहाड़ पर ईश्वर ने मूसा को दस धर्मादेश दिये थे। अल-तूर शहर सीनाई प्रायद्वीप के दक्षिणी हिस्से में सुएज़ की खाड़ी के किनारे बसा हुआ है। .

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अल-राज़ी

मुहम्मद इब्न जकारिया राजी (अरबी: أبو بكر محمد بن يحيى بن زكريا الرازي‎ अबू बक्र मोहम्मद बिन याहिया बिन जकारिया अल-राजी; फारसी: محمد زکریای رازی‎ मोहम्मद-ए-जकारिया-ए-राजी), फारस (इरान) के प्रसिद्ध हकीम थे (संभवत: सन् ८५०-९२३)। इनका जन्म तेहरान के पास राज नामक नगर में हुआ था। इनके जन्म तथा मृत्यु का यथार्थ समय अनिश्चित है। ये फारस की खाड़ी पर स्थित बसरा नगर में बस गए थे। अरबी में चिकित्साशास्त्र पर पुस्तक लिखनेवाले हकीमों में इन्हें अग्रगण्य समझा जाता है। इन्होंने लगभग २०० पुस्तकें लिखीं, जिनमें चिकित्साशास्त्र की अन्य पुस्तकों के सिवाय इस विषय का एक सार्वभौम कोश तथा गणित, ज्योतिष, धर्म और दर्शनशास्त्र पर भी पुस्तकें थीं। अपनी एक पुस्तक में इन्होंने सर्वप्रथम चेचक को मसूरिका से भिन्न रोग बताया। इनकी अरबी की पुस्तकों का अनुवाद लैटिन भाषा में किया गया और इस प्रकार इनके द्वारा संचित ज्ञान का यूरोप में प्रसार हुआ। .

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अल-क़ायदा

विभिन्न अल-क़ायदा गुटबंदियों द्वारा इस्तेमाल किया गया परचम अल-क़ायदा (अरबी: القاعدة‎, अर्थ: 'बुनियाद', 'आधार') एक बहुराष्ट्रीय उग्रवादी सुन्नी इस्लामवादी संगठन है जिसका स्थापना ओसामा बिन लादेन, अब्दुल्लाह आज़म और 1980 के दशक में अफ़ग़ानिस्तान पर सोवियतों के आक्रमण के विरोध करने वाले कुछ अन्य अरब स्वयंसेवकों द्वारा 1988 में किया गया था। यह इस्लामी कट्टरपंथी सलाफ़ी जिहादवादियों का जालतंत्र है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो), यूरोपीय संघ, संयुक्त राज्य अमरीका, संयुक्त बादशाही,भारत, रूस और कई अन्य देशों द्वारा यह संगठन एक आतंकवादी समूह क़रार दिया गया है। .

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अजमल क़साब

अजमल क़साब (पाकिस्तानी आतंकवादी) अजमल क़साब (पूरा नाम: मुहम्मद अजमल आमिर क़साब, उर्दू: محمد اجمل امیر قصاب‎, जन्म: १३ जुलाई १९८७ ग्राम: फरीदकोट, पाकिस्तान - फांसी: २१ नवम्बर २०१२ यरवदा जेल, पुणे) २६/११/२००८ को ताज़ होटल मुंबई पर वीभत्स हमला करने वाला एक पाकिस्तानी आतंकवादी था। मुहम्मद आमिर क़साब उसके बाप का नाम था। वह कसाई जाति का मुसलमान था। "क़साब" (قصاب‎) शब्द अरबी भाषा का है जिसका हिन्दी में अर्थ कसाई या पशुओं की हत्या करने वाला होता है। साधारणतया लोगबाग उसे अजमल क़साब के नाम से ही जानते थे। क़साब पाकिस्तान में पंजाब प्रान्त के ओकरा जिला स्थित फरीदकोट गाँव का मूल निवासी था और पिछले कुछ साल से आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त था। हमलों के बाद चलाये गये सेना के एक अभियान के दौरान यही एक मात्र ऐसा आतंकी था जो जिन्दा पुलिस के हत्थे चढ़ गया। इस अभियान में इसके सभी नौ अन्य साथी मारे गये थे। इसने और इसके साथियों ने इन हमलों में कुल १६६ निहत्थे लोगों की बर्बरतापूर्ण हत्या कर दी थी। पाकिस्तान सरकार ने पहले तो इस बात से इनकार किया कि क़साब पाकिस्तानी नागरिक है किन्तु जब भारत सरकार द्वारा सबूत पेश किये गये तो जनवरी २००९ में उसने स्वीकार कर लिया कि हाँ वह पाकिस्तान का ही मूल निवासी है। ३ मई २०१० को भारतीय न्यायालय ने उसे सामूहिक ह्त्याओं, भारत के विरुद्ध युद्ध करने तथा विस्फोटक सामग्री रखने जैसे अनेक आरोपों का दोषी ठहराया। ६ मई २०१० को उसी न्यायालय ने साक्ष्यों के आधार पर मृत्यु दण्ड की सजा सुनायी। २६-११-२००८ को मुम्बई में ताज़ होटल पर हुए हमले में ९ आतंकवादियों के साथ कुल १६६ निरपराध लोगों की हत्या में उसके विरुद्ध एक मामले में ४ और दूसरे मामले में ५ हत्याओं का दोषी होना सिद्ध हुआ था। इसके अतिरिक्त नार्को टेस्ट में उसने ८० मामलों में अपनी संलिप्तता भी स्वीकार की थी। २१ फ़रवरी २०११ को मुम्बई उच्च न्यायालय ने उसकी फाँसी की सजा पर मोहर लगा दी। २९ अगस्त २०१२ को भारत के उच्चतम न्यायालय ने भी उसके मृत्यु दण्ड की पुष्टि कर दी। बाद में गृह मंत्रालय, भारत सरकार के माध्यम से उसकी दया याचिका राष्ट्रपति के पास भिजवायी गयी। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी द्वारा उसे अस्वीकार करने के बाद पुणे की यरवदा केन्द्रीय कारागार में २१ नवम्बर २०१२ को प्रात: ७ बजकर ३० मिनट पर उसे फाँसी दे दी गयी। .

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अंग्रेजी और विदेशी भाषाओ का केन्द्रीय संस्थान

अंग्रेजी और विदेशी भाषा विश्वविद्यालय (EFLU) (जिसे पहले CIEFL के नाम से जाना जाता था) भारत में स्थित एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय है। यह उच्चतर शिक्षा के लिए राष्ट्रीय स्तर का विश्वविद्यालय है। इसका मुख्य परिसर में हैदराबाद में स्थित है। हालांकि लखनऊ और शिलौंग में भी इसके परिसर हैं। ईएफएलयू (EFLU) में अंग्रेजी और विदेशी भाषाओं के साथ उनके साहित्य के बारे में भी पढ़ाया जाता है। साथ ही ये इन भाषाओं से जुड़े अनुसंधान (रिसर्च), शिक्षकों के प्रशिक्षण, प्रशिक्षण सामग्री को मुहैया कराने का भी काम करता है, एक तरह से कहा जाए तो ईएफएलयू सेवाओं का शिक्षा विस्तार है जिसका मुख्य उदेश्य भारत में अंग्रेजी और विदेशी भाषाओं की पढ़ाई के स्तर को सुधारना है। ये देश का अकेला ऐसा शिक्षण संस्थान है जो पूरी तरह से अंग्रेजी और विदेशी भाषाओं की पढ़ाई को लेकर प्रतिबद्ध है। ईन वर्षोमें ईएफएलयु (EFLU) ने विभिन्न विदेशी भाषाओं की पढाई शरू की है जिनकी काफी माग थी। यहां अंग्रेजी, अरबी, फ्रेंच, जर्मन, जापानी, रशियन, स्पैनिश, पोर्टेगीज, पर्सियन, तुर्की, इटालियन, चीनी, कोरियन और हिंदी जैसी भाषाओं की पढ़ाई होती है। ईएफएलयु (EFLU) एम.ए. (M.A) के साथ उस विषय में एक सांस्कृतिक अध्ययन पाठ्यक्रम शुरू करने वाला देश का पहला शिक्षण संस्थान भी है। ईएफएलयु (EFLU) समाजशास्त्र, फिल्म स्टूडियो, मानवशास्त्र, इतिहास और साहित्य जैसे क्षेत्र, जहां ईन शिक्षा शाखाओं को पृथक करना कठिन हो जाता है, एसे क्षत्रोमें एम.फिल.

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अक्षर कोडन

अक्षर कूटन या संप्रतीक कूटन (character encoding) के अन्तर्गत किसी लेखन पद्धति में प्रयुक्त सभी अक्षरों एवं प्रतीकों के लिये अलग-अलग संख्याएँ निर्धारित कर दी जाती हैं। उदाहरण के लिये आस्की (ASCII) में लैटिन अक्षर A को निरूपित करने के लिये संख्या 65 निर्धारित की गयी है; B के लिये 66, C के लिये 67 आदि। इन्हीं संख्याओं को 'कूट' या 'संप्रतीक कूट' कहा जाता है। कम्प्युटर के अन्दर किसी टेक्स्ट को सहेजने या निरुपित करने के लिये इन्हीं संख्याओं का प्रयोग होता है। मोर्स कोड, आस्की और नवीनतम यूनिकोड, 'अक्षर कूटन' के कुछ प्रकार हैं। 'अक्षर कूटन' के स्थान पर 'संप्रतीक सेट', 'संप्रतीक मैप' और 'कूट पृष्ट' आदि शब्दों का प्रयोग भी किया जाता है। कभी-कभी 'अक्षर कूटन' से सीमित अर्थ लगाया जाता है। यूनिकोड के आने के बाद पुराने अक्षर कोडिंग को 'लिगेसी कोडिंग' कहा जाने लगा है। देवनागरी के लिये कृतिदेव, सुशा, चाणक्य आदि पुराने कोडिंग प्रयोग होते थे। .

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उदयनारायण तिवारी

उदयनारायण तिवारी (-- 28 जुलाई,1984) भारत के एक भाषावैज्ञानिक थे। हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन में जो ऐतिहासिक महत्व आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का है, हिन्दी भाषा के ऐतिहासिक एवं तुलनात्मक अध्ययन के क्षेत्र में वही महत्व डॉ.

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उबेदा

उबेदा (अरबी: उबादा अल-अरब) स्पेन में अदालूसिया में एक शहर है। इसकी आबादी लगभग 36,025 है। इस शहर सोलवीं सदी में निर्मित एक शहर है। यह पूरा पुनर्जागरणशैली में बना हुआ है। 2003 में इसे यूनेस्को ने इसे विश्व विरासत स्थानों में शामिल किया। .

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उमर

हजरत उमर इब्न अल-ख़त्ताब (अरबी में عمر بن الخطّاب), ई. (586–590 – 644) मुहम्मद साहब के प्रमुख चार सहाबा (साथियों) में से थे। वह हज़रत अबु बक्र के बाद मुसलमानों के दूसरे खलीफा चुने गये। मुहम्मद साहब ने फारूक नाम की उपाधि दी थी। जिसका अर्थ सत्य और असत्य में फर्क करने वाला। मुहम्मद साहब के अनुयाईयों में इनका रुतबा हज़रत अबू बक्र के बाद आता है। उमर ख़ुलफा-ए-राशीदीन में दूसरे ख़लीफा चुने गए। उमर ख़ुलफा-ए-राशीदीन में सबसे सफल ख़लीफा साबित हुए। मुसलमान इनको फारूक-ए-आज़म तथा अमीरुल मुमिनीन भी कहते हैं। युरोपीय लेखकों ने इनके बारे में कई किताबें लिखी हैं तथा उमर महान (Umar The Great) की उपाधी दी है। प्रसिद्ध लेखक माइकल एच.

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उर्दू साहित्य

उर्दू भारत तथा पाकिस्तान की आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं में से एक है। इसका विकास मध्ययुग में उत्तरी भारत के उस क्षेत्र में हुआ जिसमें आज पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दिल्ली और पूर्वी पंजाब सम्मिलित हैं। इसका आधार उस प्राकृत और अपभ्रंश पर था जिसे 'शौरसेनी' कहते थे और जिससे खड़ीबोली, ब्रजभाषा, हरियाणी और पंजाबी आदि ने जन्म लिया था। मुसलमानों के भारत में आने और पंजाब तथा दिल्ली में बस जाने के कारण इस प्रदेश की बोलचाल की भाषा में फारसी और अरबी शब्द भी सम्मिलित होने लगे और धीरे-धीरे उसने एक पृथक् रूप धारण कर लिया। मुसलमानों का राज्य और शासन स्थापित हो जाने के कारण ऐसा होना स्वाभाविक भी था कि उनके धर्म, नीति, रहन-सहन, आचार-विचार का रंग उस भाषा में झलकने लगे। इस प्रकार उसके विकास में कुछ ऐसी प्रवृत्तियाँ सम्मिलित हो गईं जिनकी आवश्यकता उस समय की दूसरी भारतीय भाषाओं को नहीं थी। पश्चिमी उत्तर प्रदेश और दिल्ली में बोलचाल में खड़ीबोली का प्रयोग होता था। उसी के आधार पर बाद में उर्दू का साहित्यिक रूप निर्धारित हुआ। इसमें काफी समय लगा, अत: देश के कई भागों में थोड़े-थोड़े अंतर के साथ इस भाषा का विकास अपने-अपने ढंग से हुआ। उर्दू का मूल आधार तो खड़ीबोली ही है किंतु दूसरे क्षेत्रों की बोलियों का प्रभाव भी उसपर पड़ता रहा। ऐसा होना ही चाहिए था, क्योंकि आरंभ में इसको बोलनेवाली या तो बाजार की जनता थी अथवा वे सुफी-फकीर थे जो देश के विभिन्न भागों में घूम-घूमकर अपने विचारों का प्रचार करते थे। इसी कारण इस भाषा के लिए कई नामों का प्रयोग हुआ है। अमीर खुसरो ने उसको "हिंदी", "हिंदवी" अथवा "ज़बाने देहलवी" कहा था; दक्षिण में पहुँची तो "दकिनी" या "दक्खिनी" कहलाई, गुजरात में "गुजरी" (गुजराती उर्दू) कही गई; दक्षिण के कुछ लेखकों ने उसे "ज़बाने-अहले-हिंदुस्तान" (उत्तरी भारत के लोगों की भाषा) भी कहा। जब कविता और विशेषतया गजल के लिए इस भाषा का प्रयोग होने लगा तो इसे "रेख्ता" (मिली-जुली बोली) कहा गया। बाद में इसी को "ज़बाने उर्दू", "उर्दू-ए-मुअल्ला" या केवल "उर्दू" कहा जाने लगा। यूरोपीय लेखकों ने इसे साधारणत: "हिंदुस्तानी" कहा है और कुछ अंग्रेज लेखकों ने इसको "मूस" के नाम से भी संबोधित किया है। इन कई नामों से इस भाषा के ऐतिहासिक विकास पर भी प्रकार पड़ता है। .

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उर्स

दक्षिण एशिया में उर्स (अरबी: عرس, शाब्दिक "शादी"), आमतौर पर किसी सूफी संत की पुण्यतिथि पर उसकी दरगाह पर वार्षिक रूप से आयोजित किये जाने वाले उत्सव को कहते हैं। दक्षिण एशियाई सूफी संत मुख्य रूप से चिश्तिया कहे जाते हैं और उन्हें परमेश्वर का प्रेमी समझा जाता है। किसी सूफी संत की मृत्यु को विसाल कहा जाता है जिसका अर्थ प्रेमियों का मिलाप होता है और उनकी बरसी को शादी की सालगिरह के रूप में मनाया जाता है। उर्स के अनुष्ठानों को अमूमन दरगाह के संरक्षकों द्वारा निभाया जाता है और इनमें आमतौर पर धार्मिक संगीत जैसे कि कव्वाली का गायन शामिल होता है। अजमेर में दरगाह शरीफ में मोइनुद्दीन चिश्ती के उर्स पर हर साल 400000 से अधिक श्रद्धालु शिरकत करते हैं। .

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83वां अकादमी पुरस्कार

83वां अकादमी पुरस्कार समारोह, एकेडमी ऑफ मोशन पिक्चर आर्ट्स एंड साइंसेस (Academy of Motion Picture Arts and Sciences) (एएमपीएएस) द्वारा प्रस्तुत किया गया जिसमें 2010 की सर्वश्रेष्ठ फिल्मों को सम्मानित किया गया और इसका आयोजन 27 जनवरी 2011 को हॉलीवुड, लॉस एंजिल्स के कोडैक थिएटर में हुआ। समारोह के दौरान 24 प्रतिस्पर्धी श्रेणियों में अकादमी पुरस्कार (जिसे आम तौर पर ऑस्कर कहा जाता है) प्रदान किये गए। समारोह को अमेरिका में एबीसी टेलीविजन पर प्रसारित किया गया। अभिनेता जेम्स फ्रांको और ऐन हैथावे ने समारोह का सह–आयोजन किया जो दोनों के लिए पहला अवसर था। द किंग्स स्पीच ने चार पुरस्कार जीते और ये सभी प्रमुख श्रेणियों में आये थे: सर्वश्रेष्ठ फिल्म, सर्वश्रेष्ठ निर्देशक, सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और सर्वश्रेष्ठ मूल पटकथा। इंसेप्शन ने भी चार पुरस्कार जीते और ये सभी तकनीकी श्रेणियों में आये। अन्य बहु-पुरस्कार विजेताओं में शामिल हैं, तीन पुरस्कारों के साथ द सोशल नेटवर्क और दो-दो पुरस्कारों के साथ एलिस इन वंडरलैंड, द फाइटर और टॉय स्टोरी 3.

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90वें अकादमी पुरस्कार

90वें अकादमी पुरस्कार (ऑस्कर 2018) समारोह, मोशन पिक्चर आर्ट्स एंड साइंसेज (AMPAS) द्वारा 2017 की सर्वश्रेष्ठ फिल्मों का सम्मान करने के लिए, 4 मार्च 2018 को लॉस एंजिल्स, कैलिफोर्निया के डॉल्बी थिएटर में आयोजित किया गया। 2018 शीतकालीन ओलम्पिक की वजह से यह समारोह हमेशा की तरह फरवरी के अन्तिम सप्ताह की जगह मार्च में किया जा रहा है। समारोह के दौरान, 24 श्रेणियों में अकादमी पुरस्कार (ऑस्कर) प्रदान किया गया। निर्माता माइकल डी लुका और जेनिफर टोड, तथा ग्लेन वेइस द्वारा निर्देशित इस समारोह का टीवी प्रसारण एबीसी द्वारा किया गया। इस समारोह का संचालन लगातार दूसरे वर्ष हास्य अभिनेता जिमी किमेल द्वारा किया गया। .

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