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अपसारी श्रेणी

सूची अपसारी श्रेणी

गणित में अपसारी श्रेणी एक अनन्त श्रेणी है जो अभिसारी नहीं है, मतलब यह कि श्रेणी के आंशिक योग का अनन्त अनुक्रम का सीमान्त मान नहीं होता। यदि एक श्रेणी अभिसरण करती है तो इसका व्याष्‍टिकारी पद (nवाँ पद जहाँ n अनन्त की ओर अग्रसर है।) शून्य की ओर अग्रसर होना चहिए। अतः कोई भी श्रेणी जिसका व्याष्‍टिकारी पद शून्य की ओर अग्रसर नहीं होता तो वह अपसारी होती है। तथापि अभिसरण की शर्त थोडी प्रबल है: जिस श्रेणियों का व्याष्‍टिकारी पद शून्य की ओर अग्रसर हो वह आवश्यक रूप से अभिसारी नहीं होती। इसका एक गणनीय उदाहरण निम्न हरात्मक श्रेणी है: हरात्मक श्रेणी का अपसरण मध्यकालीन गणितज्ञ निकोल ऑरेसम द्वारा सिद्ध किया जा चुका है। .

14 संबंधों: बोरल संकलन, सिसैरा-संकलन, हरात्मक श्रेणी, ग्रांडी श्रेणी, आयलर संकलन, अनन्त समान्तर श्रेणी, अपसारी गुणोत्तर श्रेणी, अभिसारी श्रेणी, १ + १ + १ + १ + · · ·, १ + २ + ३ + ४ + · · ·, १ + २ + ४ + ८ + · · ·, १ − १ + २ − ६ + २४ − १२० + · · ·, १ − २ + ३ − ४ + · · ·, १ − २ + ४ − ८ + · · ·

बोरल संकलन

गणित में बोरल संकलन अथवा बोरेल संकलन एमिल बोरेल (१८९९) द्वारा अपसारी श्रेणियों के लिए दी गयी संकलन विधि है। यह विधि मुख्यतः अपसारी अलक्षणी श्रेणियों का योग प्राप्त करने के लिए उपयोगी है तथा कुछ अर्थों में ऐसी श्रेणियों के लिए सर्वश्रेष्ठ परिणाम देती है। इस विधि में विभिन्न विविधता के पायी जाती है और इन सब विधियों को भी बोरल संकलन कहते हैं तथा इसके सामान्यीकरण को 'मिटेग-लिफलेर संकलन' कहते हैं। .

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सिसैरा-संकलन

सिसैरा-संकलन गणितीय विश्लेषण में, सिसैरो संकलन सामान्य अर्थों में अभिसरण नहीं करने वाले अनन्त संकलन को मान निर्दिष्ट करता है जो मानक संकलन के साथ सन्निपतित होता है यदि वह अभिसारी हो। सिसैरा संकलन श्रेणी के आंशिक संकलन के समान्तर माध्य के सीमान्त मान के रूप में परिभाषित होता है। सिसैरा संकलन का नामकरण इतालवी विश्लेषक अर्नेस्टो सिसैरा (1859–1906) के सम्मान में रखा गया। .

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हरात्मक श्रेणी

गणित में हरात्मक श्रेणी अपसारी अनन्त श्रेणी है: इसका नामकरण समान्तर श्रेणी के व्युत्क्रम से हुआ है। समान्तर श्रेणी के पदों को यहां हर में लिखा जाता है अर्थात समान्तर श्रेणी के पद a_i से सम्बंधित हरात्मक श्रेणी का पद \frac है। अंग्रेजी में इसे हार्मोनिक श्रेणी कहते हैं जिसकी अवधारणा संगीत की धुन से हुआ। एक कम्पनशील तंतु से निकलने वाल अधिस्वरक (धुन) 1/2, 1/3, 1/4, आदि, तंतु की मूलभूत तरंगदैर्घ्य हैं। प्रथम पद के बाद श्रेणी का प्रत्येक पद अपने पास वाले पदों का हरात्मक माध्य होता है। .

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ग्रांडी श्रेणी

गणित में 1 − 1 + 1 − 1 + · · · को निम्न प्रकार भी लिखा जाता है \sum_^ (-1)^n जिसे ग्रांडी श्रेणी भी कहा जाता है, यह नामकरण इतालवी गणितज्ञ, दार्शनिक और पादरी लुइगी गुइडो ग्रांडी के नाम से किया गया जिन्होंने इसे 1703 में प्रतिपादित किया था। यह एक अपसारी श्रेणी श्रेणी है, अर्थात सामन्य शब्दों में एसका मान प्राप्त नहीं किया जा सकता। दूसरी तरफ इसका सिसैरा योग 1/2 प्राप्त है। .

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आयलर संकलन

अभिसरण और अपसारी श्रेणी की गणित में आयलर संकलन एक संकलनीय विधि है। अर्थात यह किसी श्रेणी को एक मान निर्दिष्ट करने की, आंशिक योग के सीमान्त मान वाली पारम्परिक विधियों से अलग एक विधि है। यदि किसी श्रेणी Σan का आयलर रुपांतरण इसके योग पर अभिसरित होता है तो इस योग को मूल श्रेणी का आयलर संकलन कहते हैं। इसी प्रकार अपसारी श्रेणी के लिए मान परिभाषित करने के लिए आयलर योग को श्रेणी के तीव्र अभिसरण के लिए काम में लिया जा सकता है। आयलर योग को (E, q) द्वारा निरुपित किये गये जाने वाली विधियों के एक परिवार के रूप में व्यापकीकृत किया जा सकता है, जहाँ q ≥ 0 है। योग (E, 0) प्रायिक (अभिसारी) योग है जबकि (E, 1) साधारण आयलर योग है। ये सभी विधियाँ वास्तव में बोरेल संकलन से दुर्बल हैं; q > 0 के लिए एबल संकलन के तुल्य होता है। .

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अनन्त समान्तर श्रेणी

गणित में अनन्त समान्तर श्रेणी एक अनन्त श्रेणी है जिसके पद समान्तार श्रेढ़ी में होते हैं। उदाहरण के लिए और, जहाँ सार्व अन्तर क्रमशः शून्य (0) और एक (1) हैं। एक अनन्त श्रेणी के लिए व्यापक पद निम्न प्रकार लिखा जा सकता है यदि a .

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अपसारी गुणोत्तर श्रेणी

गणित में निम्न प्रकार की अनन्त गुणोत्तर श्रेणी अपसारी होगी यदि और केवल यदि | r | ≥ 1.

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अभिसारी श्रेणी

गणित में संख्याओं के किसी अनुक्रम (सेक्वेंस) के योग को श्रेणी (सिरीज़/series) कहते हैं। यदि पदों की संख्या अपरिमित हो, तो इस श्रेणी को अनंत श्रेणी कहते हैं। यदि दिया हुआ अनुक्रम \left \ है तो, अनुक्रम के पहले n पदों के योग S_n को nवाँ आंशिक योग (partial sum) कहते हैं। अर्थात् कोई श्रेणी अभिसारी (convergent) तब कहलाती है जब इसके आंशिक योगों का अनुक्रम \left \ अभिसारी हो। जब कोई श्रेणी अभिसारी नहीं होती तो उसे अपसारी (divergent) कहते हैं। .

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१ + १ + १ + १ + · · ·

गणित में, 1 + 1 + 1 + 1 + · · ·, जिसे निम्न प्रकार भी लिखा जाता है \sum_^ n^0, \sum_^ 1^n, अथवा साधारणतया \sum_^ 1, एक अपसारी श्रेणी है इसका अर्थ यह है कि इस अनुक्रम के आंशिक योग वास्तविक संख्याओं में सीमा पर अभिसरण नहीं करते। अनुक्रम 1n को सार्वानुपात 1 के साथ गुणोत्तर श्रेणी भी माना जा सकता है। विस्तारित वास्तविक संख्या रेखा के प्रसंग में चूँकि इसके आंशिक योग का अनुक्रम सीमा रहित एकदिष्‍टतः वर्धमान है। जहाँ n0 का योग एक भौतिकीय अनुप्रयोग के रूप में प्राप्त होता है, यह कभी-कभी ज़ेटा फलन नियमितीकरण के रूप में भी प्राप्त होता है। यह रीमान ज़ेटा फलन का 1.

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१ + २ + ३ + ४ + · · ·

सभी प्राकृत संख्याओं का योग 1 + 2 + 3 + 4 + · · · एक अपसारी श्रेणी है। श्रेणी का nवाँ आंशिक योग त्रिकोण संख्या है जो जैसे ही n का मान अनन्त की ओर अग्रसर होता है वैसे बिना किसी सीमा के बढता है। यद्यपि पूर्ण श्रेणी को प्रथम दृष्टया देखने पर यह इस प्रकार लगता है जैसे यह अर्थहीन है, इसको गणितीय रूप से रोचक परिणाम वाली संख्या के रूप में प्रकलकलित किया जा सकता है, जिसके अनुप्रयोग अन्य क्षेत्रों जैसे सम्मिश्र विश्लेषण, क्वांटम क्षेत्र सिद्धांत और स्ट्रिंग सिद्धांत में होता है। .

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१ + २ + ४ + ८ + · · ·

गणित में 1 + 2 + 4 + 8 + · · · एक अनन्त श्रेणी है जिसके व्यंजक उत्तरोतर दो की घात के रूप में हैं। एक गुणोत्तर श्रेणी के रूप में इसका प्रथम पद 1, है और सार्वानुपात 2 है। एक वास्तविक संख्याओं की श्रेणी के रूप में यह अनन्त पर अपसरण करती है, अतः वास्तविक परिदृश्य में इसका संकलन महत्व हीन है। व्यापक अभिप्राय से देखने पर श्रेणी ∞ के अतिरिक्त अन्य मान से भी सम्बंधित है और यह संख्या -1 है। .

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१ − १ + २ − ६ + २४ − १२० + · · ·

गणित में, अपसारी श्रेणी को सर्वप्रथम आयलर ने प्राप्त किया गया, जिसने श्रेणी को एक परिमित मान निर्दिष्ट करने के लिए पुनरारंभ विधि लागू की।यह श्रेणी परिवर्ती चिह्न के साथ क्रमगुणित संख्याओं का योग है। अपसारी श्रेणी का साधरण तरीके से योग बोरल संकलन के उपयोग से प्राप्त किया जाता है: यदि हम संकलन (योग संकारक) को समाकलन में परिवर्तित करें तो: बड़े कोष्टक में स्थित संकलन अभिसरण करता है और इसका मान 1/(1 + x) है यदि x \sum_^\infty (-1)^ k! .

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१ − २ + ३ − ४ + · · ·

गणित में, 1 − 2 + 3 − 4 + ··· एक अनन्त श्रेणी है जिसके व्यंजक क्रमानुगत धनात्मक संख्याएं होती हैं जिसके एकांतर चिह्न होते हैं अर्थात प्रत्येक व्यंजक के चिह्न, इसके पूर्व व्यंजक से विपरीत होते हैं। श्रेणी के प्रथम m पदों का योग सिग्मा योग निरूपण की सहायता से निम्नवत् लिखा जा सकता है: अनन्त श्रेणी के अपसरण का मतलब यह है कि इसके आंशिक योग का अनुक्रम किसी परिमित मान की ओर अग्रसर नहीं होता है। बहरहाल, 18वीं शताब्दी के मध्य में लियोनार्ड आयलर ने विरोधाभासी समीकरण में लिखा: लेकिन इस समीकरण की सार्थकता बहुत समय बाद तक स्पष्ट नहीं हो पाई। 1980 के पूर्वार्द्ध में अर्नेस्टो सिसैरा, एमिल बोरेल तथा अन्य ने अपसारी श्रेणियों को व्यापक योग निर्दिष्ट करने के लिए सुपरिभाषित विधि प्रदान की— जिसमें नवीन आयलर विधियों का भी उल्लेख था। इनमें से विभिन्न संकलनीयता विधियों द्वारा का "योग" लिखा जा सकता है। सिसैरा-संकलन उन विधियों में से एक है जो का योग प्राप्त नहीं कर सकती, अतः श्रेणी एक ऐसा उदाहरण है जिसमें थोड़ी प्रबल विधि यथा एबल संकलन विधि की आवश्यकता होती है। श्रेणी, ग्रांडी श्रेणी से अतिसम्बद्ध है। आयलर ने इन दोनों श्रेणियों को श्रेणी जहाँ (n यदृच्छ है), की विशेष अवस्था के रूप में अध्ययन किया और अपने शोध कार्य को बेसल समस्या तक विस्तारित किया। बाद में उनका ये कार्य फलनिक समीकरण के रूप में परिणत हुआ जिसे अब डीरिख्ले ईटा फलन और रीमान जीटा फलन के नाम से जाना जाता है। .

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१ − २ + ४ − ८ + · · ·

गणित में 1 - 2 + 4 - 8 + · · · एक अनन्त श्रेणी है जिसके व्यंजक उत्तरोतर दो की घात के रूप में हैं। एक गुणोत्तर श्रेणी के रूप में इसका प्रथम पद 1, है और सार्वानुपात -2 है। एक वास्तविक संख्याओं की श्रेणी के रूप में यह अनन्त पर अपसरण करती है, अतः वास्तविक परिदृश्य में इसका संकलन महत्व हीन है। विस्तृत रूप से देखने पर श्रेणी का व्यापक संकलन ⅓ है। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

संकलन विधि, संकलनीयता विधि

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