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अन्तरराष्ट्रीय विधि

सूची अन्तरराष्ट्रीय विधि

अन्तर्राष्ट्रीय विधि (International law) से आशय उन नियमों से है जो स्वतंत्र देशों के बीच परस्पर सम्बन्धों (विवादों) के निपटारे के लिये लागू होते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय कानून किसी देश के अपने कानून से इस अर्थ में भिन्न है कि अन्तर्राष्ट्रीय कानून दो देशों के सम्बन्धों के लिए लागू होता है न कि दो या अधिक नागरिकों के बीच। .

21 संबंधों: एंगारी, निजी अंतरराष्ट्रीय कानून, प्रभावक्षेत्र, यथापूर्व स्थापन, युद्ध विधि, राधाविनोद पाल, रासायनिक शस्त्र, राजनयिक दूत, राजनीति विज्ञान, शक्‍ति-संतुलन, सन्धि, सन्धि (समझौता), संघबद्ध राज्य, हंस मोर्गेंथाऊ, जॉन आस्टिन, आतंकवाद, आत्मनिर्णय, अन्तरराष्ट्रीय दण्ड विधि, अन्तरराष्ट्रीय सम्बन्ध, अशासकीय संस्था, अंतरराष्‍ट्रीय न्यायालय

एंगारी

एंगारी (Angary; लैटिन: jus angariae; फ्रेंच: droit d'angarie; जर्मन: Angarie; ग्रीक: ἀγγαρεία, angareia से व्युत्पन्न) शब्द प्राचीन फारस की राजकीय संदेशहर सेवा (रायल कीरियर सर्विस) के नामकरण से प्राप्त हुआ है। वहाँ से ग्रीक और लातिनी में 'दूत' के अर्थ में यह शब्द प्रचलित हुआ। वर्तमान में यह अन्तरराष्ट्रीय विधि से सम्बन्धित एक शब्द है। वर्तमान अंतरराष्ट्रीय विधि में एंगारी किसी देश की युद्धकाल में या राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए यह अधिकार प्रदान करता है कि जलयान, हवाईजहाज, रेल का सामान या यातायात के अन्य साधन जो दूसरे देशों के हैं, परन्तु उनके अधिक्षेत्र में उपस्थित हैं, अपने काम में ले आए। परंतु उस देश को यातायात के साधनों के उन मालिकों की पूरी क्षतिपूर्ति करनी होगी। किन्तु वर्तमान काल में नाविकों या अन्य चालकों की सेवाएँ नहीं प्राप्त की जा सकती हैं। .

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निजी अंतरराष्ट्रीय कानून

निजी अंतर्राष्ट्रीय कानून (Private international law) से तात्पर्य उन नियमों से है जो किसी राज्य द्वारा ऐसे वादों का निर्णय करने के लिए चुने जाते हैं जिनमें कोई विदेशी तत्व होता है। इन नियमों का प्रयोग इस प्रकार के वाद विषयों के निर्णय में होता है जिनका प्रभाव किसी ऐसे तथ्य, घटना अथवा संव्यवहार पर पड़ता है जो किसी अन्य देशीय विधि प्रणाली से इस प्रकार संबद्ध है कि उस प्रणाली का अवलंबन आवश्यक हो जाता है। 'निजी अंतर्राष्ट्रीय कानून' नाम से ऐसा बोध होता है कि यह विषय अंतर्राष्ट्रीय कानून की ही शाखा है। परंतु वस्तुतः ऐसा है नहीं। निजी अंतर्राष्ट्रीय कानून और सार्वजनिक अंतर्राष्ट्रीय कानून (Public international law) में किसी प्रकार की पारस्परिकता नहीं है। .

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प्रभावक्षेत्र

यह कार्टून 'मोनोरो डॉक्ट्रिन' के बाद लैटिन अमेरिका पर यूएएस के प्रभाव को रेखांकित कर रहा है। अन्तरराष्ट्रीय सम्बन्ध की दृष्टि से १९८० में प्रभाव क्षेत्र; '''लाल'''- सोवियत संघ; '''नीला'''- अमेरिका अंतर्देशीय व्यवहारनुकूल कुछ समय पूर्व प्रभावक्षेत्र (Sphere of Influence) प्रथा मान्य थी। औपनिवेशिक शक्तियाँ पारस्परिक सुविधा के हेतु, कुछ प्रदेशों को एक देशविशेष के उपनिवेशन के लिये भविष्य में सुरक्षित मान लेतीं अर्थात् ऐसे प्रदेशों में उस देश के अतिरिक्त किसी अन्य राज्यशक्ति को औपनिवेशिक शोषण या सत्ताप्रसार का अधिकार नहीं रहता। फलत: संबंधित पक्ष कालांतर में अंतर्देशीय कलह किए बिना अपनी राज्यसत्ता विस्तृत प्रदेशों में स्थापित करते। इस प्रकार का अधिकार प्रयोग 19वीं शताब्दी के अंतिम चरण में विशेषतया हुआ, जबकि दुर्बल एवं पिछड़े हुए देशों का शोषण इतिहास में सबसे प्रचंड और खुले हुए देशों का शोषण इतिहास में सबसे प्रचंड और खुले रूप से हो रहा था। "प्रभावक्षेत्र" प्रथा का आधुनिक अंतरराष्ट्रीय विधि में कोई स्थान या मान्यता नहीं है। संयुक्त राष्ट्रसंघ के अधिकारपत्र द्वारा संघ के सब सदस्यों को यह आदेश है कि वे अपने अंतर्देशीय व्यवहार में इस बात की अपेक्षा करें कि किसी देश की राजनीतिक स्वतंत्रता तथा प्रादेशिक सर्वसत्ता का हनन बलप्रयोग से या अन्य किसी प्रकार से न हो। संयुक्त राष्ट्रसंघ की न्यासत्व परिषद एक और उपाय है, जिसके अनुसार संसार के दुर्बल और पिछड़े हुए देशों की सुरक्षा और पर्यवेक्षण होता है किंतु यह उन्हीं देशों पर लागू है जिनको औपनिवेशिक स्वामियों ने स्वेच्छा से इस परिषद् के अधिकारक्षेत्र में रखा है। विश्व के जो अन्य देश स्वशासित नहीं हैं, उनकी सुरक्षा के लिये संघ के अधिकारपत्र का आदेश है कि इन प्रदेशों के औपनिवेशिक शासक वहाँ के निवासियों के हितार्थ अधिक से अधिक प्रयत्नशील और सक्रिय होने के लिये बाध्य हैं। यह सुरक्षा प्रणाली कहाँ तक सफल हुई है, यह कहना कठिन है। यदि प्रभावक्षेत्र प्रथा के अनुसार प्रमुख शक्तियाँ 19वीं शताब्दी में अपनी राज्य शक्ति का विस्तार करती थीं, तो आज इस प्रथा के न होते हुए भी शक्तिसंपन्न राज्य किसी न किसी प्रकार दुर्बल देशों पर अपना स्वामित्व स्थापित करते रहते हैं। अंतराष्ट्रीय संघ के सुरक्षा नियमों और बंधनों द्वारा बाध्य राज्य शक्तियाँ भी सत्ता विस्तार में सतत प्रयत्नशील एवं तत्पर रहती रही हैं और हैं। सत्ताविस्तार का रूप अवश्य बदल गया है। जिस प्रकार प्रभावक्षेत्र प्रथा के अनुसार ब्रिटेन ने इटली, जर्मनी तथा फ्रांस के क्रमश: 1890, 1891, 1886, 1890 तथा 1890 तथा 1896 ई. में संधि स्थापित कर भविष्य में अपने लिये प्रदेश सुरक्षित किए, वैसे शोषण संबंधी स्पष्ट समझौते आज असंभव हैं, किंतु अनेक चतुर राजनीतिक योजनाएँ हैं जिनके द्वारा अधिकारविस्तार होता है। कुछ संधियाँ नियोजित होती हैं, जिनसे आर्थिक और सैन्य संबंधी परिहार प्राप्त किए जाते हैं। उदाहरणार्थ, संयुक्त राज्य अमरीका ने 19वीं तथा इस शताब्दी के आरंभ में लैटिन अमरीकी देशों से संधियाँ कीं, जिनसे उनके प्राकृतिक संसाधनों का शोषण संभव हुआ। इनके साक्षी रूप हैं दक्षिणी पूर्वी एशियाई संधि संघ तथा वारसा की संधि। 1957 में इंग्लैंड तथा फ्रांस ने मिस्र के ऊपर अभ्याक्रमण किया तथा मिस्र एवं इजराइल के मध्य शांति और सुरक्षा स्थापित करना, इस आक्रमण का उद्देश्य बताया। किंतु इसके भीतर इंग्लैंड और फ्रांस का गूढ़ स्वार्थ निहित था, इस प्रकार वे दोनों स्वेज नहर के समीपवर्ती प्रदेश पर अपना अधिकार स्थापित करना चाहते थे। कभी कभी कोई देश एक पार्श्विक घोषणा करके भी प्रभुत्व अधिकार स्थापित करते है, भविष्य में किसी यूरोपीय शक्ति द्वारा उपनिवेश के विषय नहीं विचार किए जाएँगे।" इन बहु उपायों द्वारा परोक्ष और अपरोक्ष रूप से शक्तिशाली देश दुर्बल देशों का जो शोषण करते हैं उसमें एक प्रकार से "प्रभावक्षेत्र" प्रथा की अनुकूलता कही जा सकती है। वैसे यह सिद्धांत अक्षरश: जिस रूप में पहले प्रचलित और मान्य था वह मिट चुका है। आज कोई प्रदेश किसी देशविशेष की प्रभुता और शोषण के लिये सुरक्षित नहीं माना जाता। .

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यथापूर्व स्थापन

यथापूर्व स्थापन (Postliminium) विधि से संबन्धित अधिकार है। 'पोस्टलीमिनियम' शब्द पोस्ट (बाहर) और लाइमन (दहलीज) से मिलकर बना है। प्राचीन काल में, जब कोई रोम निवासी किसी विदेशी राज्य में बंदी बना लिया जाता था, उसके वहाँ से छूटने और रोम साम्राज्य की सीमा में पुन: प्रवेश करने पर, यथार्पूव स्थापना द्वारा, उसको फिर वही अधिकर प्राप्त हो जाते थे जो पहले मिले हुए थे। रोमन विधि का यह सिद्धांत इस परिकल्पना पर आधारित था, मानो वह मनुष्य कभी बंदी बनाया ही न गया हो। वर्तमान अन्तरराष्ट्रीय विधि और जनपदीय विधि में, यथापूर्व स्थापन इस तथ्य का द्योतक है कि कोई प्रदेश, व्यक्ति और संपत्ति, युद्ध के समय शत्रु के अधिकार में आने के पश्चात्‌, युद्धकालीन समय में ही या उसकी समाप्ति पर, फिर अपनी मूल सत्ता (original sovereign) की पुन: मिल गए हैं। अगर कोई प्रदेश शांति-संधि द्वारा समर्तित को पुन: मिल गए हैं। अगर कोई प्रदेश शांति-संधि द्वारा समर्पित (ceded) कर दिया गया है, अथवा युद्ध में जीते जोने के पश्चात्‌ अनुबद्ध (annexed) कर लिया गया है, तब, अगर कुछ समय पश्चात्‌ यह प्रदेश फिर अपने पहले राज्य के पास वापस आ जाता है, तो यथापूर्व स्थापन का प्रश्न नहीं उठता। इस प्रकार यथापूर्व स्थापन का अधिकर केवल युद्ध की अवस्था में ही उत्पन्न होता है। इस अस्थायी सैनिक परिभोग (military occupation) के बीच यदि शत्रु देश कोई ऐसा काम करता है जो न्यायानुकूल है, जो यथापूर्ण स्थापन के अधिकार का उपयोग संभव नहीं है, उदाहरणार्थ यदि वह कोई साधारण कर लगाये, अथवा किसी दंडनीय व्यक्ति को दंड दे। फिर भी यह अवस्था केवल उस समय तक लागू है जब तक कि वह प्रदेश उस परिभोगी के अधिकार में हैं। परंतु यदि परिभोगी कोई ऐसा काम करता है, जो अंतरराष्ट्रीय विधि के प्रतिकूल है, तो यथापूर्व स्थापना की दृष्टि से ऐसे कोर्य को वास्तव में प्रभावहीन हो माना जाता है, उदाहरणार्थ, यदि परिभागी राज्य की अचल संपत्ति को बेच दे। .

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युद्ध विधि

युद्ध विधि (law of war) एक कानूनी शब्द है जिसका सम्बन्ध युद्ध आरम्भ करने के स्वीकार्य कारणों (jus ad bellum) से से है और युद्ध के समय के आचरण की स्वीकार्य सीमा (jus in bello or International humanitarian law) से है। .

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राधाविनोद पाल

न्यायमूर्ति राधाबिनोद पाल राधाबिनोद पाल (27 जनवरी 1886 – 10 जनवरी 1967) भारत के अंतरराष्ट्रीय ख्याति के विधिवेत्ता और न्यायाधीश थे। उन्होंने द्वितीय महायुद्ध के बाद जापान द्वारा सुदूर पूर्व में किए गये युद्धापराधों के विरुद्ध चलाए गए अंतरराष्ट्रीय मुकदमे में वे भारतीय जज थे। ११ जजों में वे अकेले थे जिन्होने निर्णय दिया कि सभी निर्दोष हैं। उन्होंने युद्धबंदियों पर मुकदमा चलाने को विजेता की जबर्दस्ती बताते हुए सभी युद्धबंदियों को छोड़ने का फैसला दिया था। जापान के राष्ट्रवादी लोग राधाबिनोद पाल को बहुत चाहते हैं जबकि बहुत से भारतीय इतिहासविदों की राय है कि उनका रवैया वास्तव में उपनिवेशवाद के खिलाफ था, उन्हें जापान के युद्ध अपराधियों से कोई खास सरोकार नहीं था। जापान के यशुकुनी देवालय तथा क्योतो के र्योजेन गोकोकु देवालय में न्यायमूर्ति राधाबिनोद के लिए विशेष स्मारक निर्मित किए गये हैं। .

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रासायनिक शस्त्र

रासायनिक शस्त्र का प्रतीक उन शस्त्रों को रासायनिक शस्त्र (chemical weapon (CW)) कहते हैं जिसमें किसी ऐसे रसायन का उपयोग किया जाता है जो मानव को मार सकता है या उन्हें किसी प्रकार का नुकसान पहुँचा सकता है। अपनी मारक क्षमता के कारण ये जनसंहार करने वाले शस्त्रों की श्रेणी में आते हैं। रासायनिक शस्त्र, जनसंहार करने वाले शस्त्रों का एक प्रकार है। अन्य जनसंहारक शस्त्र हैं - जैविक शस्त्र (रोग), रासायनिक शस्त्र, तथा रेडियोसक्रिय अस्त्र (radiological weapons)। तंत्रिका गैस, अश्रु गैस, कालीमिर्च स्प्रे ये तीन आधुनिक रासायनिक शत्र के उदाहरण हैं। .

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राजनयिक दूत

राजनयिक दूत (Diplomatic Envoys) संप्रभु राज्य या देश द्वारा नियुक्त प्रतिनिधि होते हैं, जो अन्य राष्ट्र, अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन अथवा अंतरराष्ट्रीय संस्था में अपने देश का प्रतिनिधित्व करते हैं। वर्तमान अंतरराष्ट्रीय विधि का प्रचलन आरंभ होने के बहुत पूर्व से ही रोम, चीन, यूनान और भारत आदि देशों में एक राज्य से दूसरे राज्य में दूत भेजने की प्रथा प्रचलित थी। रामायण, महाभारत, मनुस्मृति, कौटिल्यकृत अर्थशास्त्र और 'नीतिवाक्यामृत' में प्राचीन भारत में प्रचलित दूतव्यवस्था का विवरण मिलता है। इस काल में दूत अधिकांशत: अवसरविशेष पर अथवा कार्यविशेष के लिए ही भेजे जाते थे। यूरोप में रोमन साम्राज्य के पतन के उपरांत छिन्न भिन्न दूतव्यवस्था का पुनरारंभ चौदहवीं शताब्दी में इटली के स्वतंत्र राज्यों एवं पोप द्वारा दूत भेजने से हुआ। स्थायी राजदूत को भेजने की नियमित प्रथा का श्रीगणेश इटली के गणतंत्रों एवं फ्रांस के सम्राट् लुई ग्यारहवें ने किया। सत्रहवीं शताब्दी के पूर्वार्ध तक दूतव्यवस्था यूरोप के अधिकांश देशों में प्रचलित हो गई थी। .

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राजनीति विज्ञान

राजनीति विज्ञान एक सामाजिक विज्ञान है जो सरकार और राजनीति के अध्ययन से सम्बन्धित है। राजनीति विज्ञान अध्ययन का एक विस्तृत विषय या क्षेत्र है। राजनीति विज्ञान में ये तमाम बातें शामिल हैं: राजनीतिक चिंतन, राजनीतिक सिद्धान्त, राजनीतिक दर्शन, राजनीतिक विचारधारा, संस्थागत या संरचनागत ढांचा, तुलनात्मक राजनीति, लोक प्रशासन, अंतर्राष्ट्रीय कानून और संगठन आदि। .

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शक्‍ति-संतुलन

शक्‍ति-संतुलन का सिद्धान्त (balance of power theory) यह मानता है कि कोई राष्ट्र तब अधिक सुरक्षित होता है जब सैनिक क्षमता इस प्रकार बंटी हुई हो कि कोई अकेला राज्य इतना शक्तिशाली न हो कि वह अकेले अन्य राज्यों को दबा दे। .

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सन्धि

यह पृष्ठ संस्कृत व्याकरण में प्रयुक्त सन्धि के बारे में है। अन्तरराष्ट्रीय विधि के सन्दर्भ में सन्धि अलग पृष्ठ पर देखें। ---- सन्धि का अर्थ होता है जोड़ (Addition या Joint)। संस्कृत, हिन्दी एवं अन्य भाषाओं में जब दो शब्दों के मेल से एक नया शब्द बनता है तो इसे सन्धि कहते हैं। सन्धि के नियम केवल भारोपीय भाषाओं में ही नहीं हैं बल्कि कोरियायी जैसी यूराल-आल्टिक परिवार की भाषाओं में भी हैं। जिस प्रकार नीला और लाल मिलकर बैगनी रंग बन जाता है उसी प्रकार सन्धि एक "प्राकृतिक" या सहज क्रिया है। .

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सन्धि (समझौता)

पांच भाषाओं - जर्मन, हंग्री की भाषा, बुल्गेरियायी भाषा, तुर्की भाषा एवं रूसी भाषा में ब्रेस्ट-लिटोव्स्क संधि के प्रथम दो पृष्ट अन्तरराष्ट्रीय विधि के अन्तर्गत दो या अधिक देशों या अन्य अन्तरराषट्रीय संगठनों के बीच हुए करार (agreement) या समझौते को सन्धि (treaty) कहते हैं। जिनका स्वरूप अनुबंध के समान होता है तथा जिनके अनुसार संबंधित पक्षों के प्रति कुछ में परस्पर विधिवत् अधिकारकर्तव्य के दायित्व की सृष्टि होती है। अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में संधियों का वह स्थान है जो देशीय क्षेत्र में विधिनियमों का होता है। यह वह साधन है जिनके द्वारा विभिन्न राज्य अपने अंतरराष्ट्रीय जीवन का व्यवहार संतुलित करते हैं। .

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संघबद्ध राज्य

संघबद्ध राज्य (जिसका सन्दर्भ किसी राज्य, प्रदेश, कैंटन, लैण्ड, इत्यादि से हो सकता है) एक क्षेत्रीय और संवैधानिक समुदाय होता है, जो किसी संघ का हिस्सा होता है। ऐसे राज्य, पूर्ण रूप से सम्प्रभु राज्यों से इस बात में अलग होते हैं कि उन्होंने उनकी सम्प्रभु शक्तियों का एक भाग किसी संघीय सरकार को हस्तान्तरित किया होता है। विशेषकर, जब राज्य संघबद्ध होने का चयन करते हैं, वे अन्तरराष्ट्रीय विधि के व्यक्ति के रूप में अपनी स्थिति खो देते हैं। इसके बजाय, अन्तरराष्ट्रीय विधि के हेतुओं के लिए वह संघीय संघ (फ़ेडरल यूनियन) इकलौते सत्त्व के रूप में, एक सम्प्रभु राज्य बन जाता है। एक संघबद्ध राज्य का किसी परिभाषित भौगोलिक क्षेत्र पर अधिकार-क्षेत्र होता है और वह क्षेत्रीय सरकार का एक रूप है। .

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हंस मोर्गेंथाऊ

'हंस मोर्गेंथाऊ (17 फ़रवरी 1904 - 19 जुलाई 1980) बीसवीं सदी के अंतरराष्ट्रीय राजनीति के अध्ययन में अग्रणी विद्वानों में से एक थे। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय संबंधों के सिद्धांत और अंतरराष्ट्रीय कानून के अध्ययन में ऐतिहासिक योगदान दिया और उनकी पुस्तक राष्ट्रों के बीच राजनीति (Politics Among Nations), 1948 में पहली बार प्रकाशित हुई एवं इसके कई संस्करण छपे, कई दशकों से यह अमेरिकी विश्वविद्यालयों में अपने क्षेत्र में सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली पाठ्यपुस्तक थी। .

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जॉन आस्टिन

जॉन ऑस्टिन जॉन आस्टिन (John Austin; ३ मार्च सन्‌ १७९० - १८५९) एक अंग्रेज न्यायज्ञ थे। उन्होने विधि के दर्शन तथा विधिशास्त्र पर बहुत अधिक लिखा है। उन्होने विधिक प्रत्यक्षवाद के सिद्धान्त के विकास में उल्लेखनीय योगदान दिया। .

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आतंकवाद

विभाग राज्य Department of State) आतंकवाद एक प्रकार के erहौल को कहा जाता है। इसे एक प्रकार के हिंसात्मक गतिविधि के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो कि अपने आर्थिक, धार्मिक, राजनीतिक एवं विचारात्मक लक्ष्यों की प्रतिपूर्ति के लिए गैर-सैनिक अर्थात नागरिकों की सुरक्षा को भी निशाना बनाते हैं। गैर-राज्य कारकों द्वारा किये गए राजनीतिक, वैचारिक या धार्मिक हिंसा को भी आतंकवाद की श्रेणी का ही समझा जाता है। अब इसके तहत गैर-क़ानूनी हिंसा और युद्ध को भी शामिल कर लिया गया है। अगर इसी तरह की गतिविधि आपराधिक संगठन द्वारा चलाने या को बढ़ावा देने के लिए करता है तो सामान्यतः उसे आतंकवाद नहीं माना जाता है, यद्यपि इन सभी कार्यों को आतंकवाद का नाम दिया जा सकता है। गैर-इस्लामी संगठनों या व्यक्तित्वों को नजरअंदाज करते हुए प्रायः इस्लामी या जिहादी के साथ आतंकवाद की अनुचित तुलना के लिए इसकी आलोचना भी की जाती है। .

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आत्मनिर्णय

राष्ट्रों के आत्मनिर्णय (self-determination) का अधिकार आधुनिक अन्तरराष्ट्रीय विधि का एक आधारभूत सिद्धान्त है (आम तौर पर जस कोजेंस नियम के रूप में माना जाने वाला), जो अधिकारपत्र के मानदण्डों के आधिकारिक विवेचन के रूप में संयुक्त राष्ट्र पर, जैसे, बाध्यकारी हैं। .

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अन्तरराष्ट्रीय दण्ड विधि

अन्तरराष्ट्रीय दण्ड विधि (International criminal law) सार्वजनिक अन्तरराष्ट्रीय विधि का वह भाग है जो ऐसे आचरण को रोकने के उद्देश्य से बनाया गया है जिन्हें गम्भीर नृशंसता माना जाता है। ऐसे अपराधकर्ताओं को अन्तरराष्ट्रीय दण्ड विधि के अनुसार अपने किये अपराध के लिये जिम्मेदार माना जाता है। अन्तरराष्त्रीय विधि के अधीन मुख्य अपराध ये हैं- नरसंहार, युद्ध अपराध, मानवता के प्रति अपराध, तथा आक्रमण का अपराध। .

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अन्तरराष्ट्रीय सम्बन्ध

राष्ट्र महल (Palace of Nations): जेनेवा स्थित इस भवन में २०१२ में ही दस हाजार से अधिक अन्तरसरकारी बैठकें हुईं। जेनेवा में विश्व की सर्वाधिक अन्तर्राष्ट्रीय संस्थान हैं। अंतरराष्ट्रीय संबंध (IR) विभिन्न देशों के बीच संबंधों का अध्ययन है, साथ ही साथ सम्प्रभु राज्यों, अंतर-सरकारी संगठनों (IGOs), अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठनों (INGOs), गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) और बहुराष्ट्रीय कंपनियों (MNCs) की भूमिका का भी अध्ययन है। अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध को कभी-कभी 'अन्तरराष्ट्रीय अध्ययन' (इंटरनेशनल स्टडीज (IS)) के रूप में भी जाना जाता है, हालांकि दोनों शब्द पूरी तरह से पर्याय नहीं हैं। .

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अशासकीय संस्था

गैर सरकारी संगठन (NGO) एक ऐसा शब्द है जो बिना किसी सरकारी भागीदारी या प्रतिनिधित्व के साथ प्राकृतिक या कानूनी व्यक्तियों के द्वारा बनाए गए विधिवत संगठित गैर सरकारी संगठनों को संदर्भित करने के लिए व्यापक रूप से स्वीकार किया गया है। उन मामले में जिनमें गैर सरकारी संगठन पूरी तरह से या आंशिक रूप से सरकारों द्वारा निधिबद्ध होते हैं, NGO अपना गैर-सरकारी ओहदा बनाए रखता है और सरकारी प्रतिनिधिओं को संगठन में सदस्यता से बाहर रखता है। शब्द इंटरगवर्नमेंटल ओर्गेनाइज़ेशन के विपरीत, "गैर सरकारी संगठन" एक आम उपयोग का शब्द है, लेकिन एक कानूनी परिभाषा नहीं है। कई न्यायालयों में इस प्रकार के संगठनों को "नागरिक समाज संगठन" के रूप में परिभाषित किया जाता है या अन्य नामों से निर्दिष्ट किया जाता है। अनुमान है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय गैर सरकारी संगठनों की संख्या 40,000 है। राष्ट्रीय संख्या और भी अधिक है: रूस में 277,000 गैर सरकारी संगठन हैं। भारत में 1 मिलियन और 2 मिलियन के बीच गैर सरकारी संगठन होने का अनुमान है। .

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अंतरराष्‍ट्रीय न्यायालय

अंतरराष्‍ट्रीय न्यायालय संयुक्त राष्ट्र का प्रधान न्यायिक अंग है और इस संघ के पांच मुख्य अंगों में से एक है। इसकी स्थापना संयुक्त राष्ट्रसंघ के घोषणा पत्र के अंतर्गत हुई है। इसका उद्घाटन अधिवेशन 18 अप्रैल 1946 ई. को हुआ था। इस न्यायालय ने अंतर्राष्ट्रीय न्याय के स्थाई न्यायालय की जगह ले ली थी। न्यायालय हेग में स्थित है और इसका अधिवेशन छुट्टियों को छोड़ सदा चालू रहता है। न्यायालय के प्रशासन व्यय का भार संयुक्त राष्ट्रसंघ पर है। 1980 तक अंतर्राष्ट्रीय समाज इस न्यायालय का ज़्यादा प्रयोग नहीं करती थी, पर तब से अधिक देशों ने, विशेषतः विकासशील देशों ने, न्यायालय का प्रयोग करना शुरू किया है। फ़िर भी, कुछ अहम राष्ट्रों ने, जैसे कि संयुक्त राज्य, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के निर्णयों को निभाना नहीं समझा हुआ है। ऐसे देश हर निर्णय को निभाने का खुद निर्णय लेते है। .

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