वरुण-पार वस्तुएँ और सौर मण्डल के बीच समानता
वरुण-पार वस्तुएँ और सौर मण्डल आम में 7 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): प्लूटो (बौना ग्रह), बिखरा चक्र, वरुण (ग्रह), खगोलीय वस्तु, खगोलीय इकाई, और्ट बादल, काइपर घेरा।
प्लूटो (बौना ग्रह)
यम या प्लूटो सौर मण्डल का दुसरा सबसे बड़ा बौना ग्रह है (सबसे बड़ा ऍरिस है)। प्लूटो को कभी सौर मण्डल का सबसे बाहरी ग्रह माना जाता था, लेकिन अब इसे सौर मण्डल के बाहरी काइपर घेरे की सब से बड़ी खगोलीय वस्तु माना जाता है। काइपर घेरे की अन्य वस्तुओं की तरह प्लूटो का अकार और द्रव्यमान काफ़ी छोटा है - इसका आकार पृथ्वी के चन्द्रमा से सिर्फ़ एक-तिहाई है। सूरज के इर्द-गिर्द इसकी परिक्रमा की कक्षा भी थोड़ी बेढंगी है - यह कभी तो वरुण (नॅप्टयून) की कक्षा के अन्दर जाकर सूरज से ३० खगोलीय इकाई (यानि ४.४ अरब किमी) दूर होता है और कभी दूर जाकर सूर्य से ४५ ख॰ई॰ (यानि ७.४ अरब किमी) पर पहुँच जाता है। प्लूटो काइपर घेरे की अन्य वस्तुओं की तरह अधिकतर जमी हुई नाइट्रोजन की बर्फ़, पानी की बर्फ़ और पत्थर का बना हुआ है। प्लूटो को सूरज की एक पूरी परिक्रमा करते हुए २४८.०९ वर्ष लग जाते हैं। .
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बिखरा चक्र
डिस्नोमिआ भी देखा जा सकता है बिखरा चक्र या स्कैटर्ड डिस्क (अंग्रेज़ी:scattered disk) हमारे सौर मण्डल का एक बाहरी क्षेत्र है। यह वरुण-पार वस्तुओं के बड़े क्षेत्र का एक उपक्षेत्र है। इसमें बहुत से बर्फ़ीले हीन ग्रह हैं लेकिन यह अधिकतर एक-दुसरे से काफ़ी दूर हैं जिस से यह क्षेत्र बहुत ख़ाली सा है। माना जाता है के इनमें से कुछ हमारे सौर मण्डल के गैस दानव ग्रहों के शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से इस क्षेत्र में फेंके गए हैं। इनमें से बहुत सी वस्तुएँ सूरज की परिक्रमा बड़ी टेढ़ी-मेढ़ी कक्षाओं में कर रहे हैं, जो इस बात का संकेत है के इन्हें किसी बड़े ग्रह ने अपने गुरुत्वाकर्षण के थपेड़ों से इन्हें गुलेल की तरह यहाँ फेंक दिया है। यह वस्तुएँ परिक्रमा करते हुए कभी तो सूरज से ३५ खगोलीय इकाई की दूरी पर पहुँच जाती हैं और फिर कभी १०० ख॰ई॰ से भी दूर चली जाती हैं। ऍरिस, जो सौर मण्डल का सब से बड़ा बौना ग्रह है, बिखरे चक्र की सब से बड़ी ज्ञात वस्तु भी है। .
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वरुण (ग्रह)
वरुण, नॅप्टयून या नॅप्चयून हमारे सौर मण्डल में सूर्य से आठवाँ ग्रह है। व्यास के आधार पर यह सौर मण्डल का चौथा बड़ा और द्रव्यमान के आधार पर तीसरा बड़ा ग्रह है। वरुण का द्रव्यमान पृथ्वी से १७ गुना अधिक है और अपने पड़ौसी ग्रह अरुण (युरेनस) से थोड़ा अधिक है। खगोलीय इकाई के हिसाब से वरुण की कक्षा सूरज से ३०.१ ख॰ई॰ की औसत दूरी पर है, यानि वरुण पृथ्वी के मुक़ाबले में सूरज से लगभग तीस गुना अधिक दूर है। वरुण को सूरज की एक पूरी परिक्रमा करने में १६४.७९ वर्ष लगते हैं, यानि एक वरुण वर्ष १६४.७९ पृथ्वी वर्षों के बराबर है। हमारे सौर मण्डल में चार ग्रहों को गैस दानव कहा जाता है, क्योंकि इनमें मिटटी-पत्थर की बजाय अधिकतर गैस है और इनका आकार बहुत ही विशाल है। वरुण इनमे से एक है - बाकी तीन बृहस्पति, शनि और अरुण (युरेनस) हैं। इनमें से अरुण की बनावट वरुण से बहुत मिलती-जुलती है। अरुण और वरुण के वातावरण में बृहस्पति और शनि के तुलना में बर्फ़ अधिक है - पानी की बर्फ़ के अतिरिक्त इनमें जमी हुई अमोनिया और मीथेन गैसों की बर्फ़ भी है। इसलिए कभी-कभी खगोलशास्त्री इन दोनों को "बर्फ़ीले गैस दानव" नाम की श्रेणी में डाल देते हैं। .
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खगोलीय वस्तु
आकाशगंगा सब से बड़ी खगोलीय वस्तुएँ होती हैं - एन॰जी॰सी॰ ४४१४ हमारे सौर मण्डल से ६ करोड़ प्रकाश-वर्ष दूर एक ५५,००० प्रकाश-वर्ष के व्यास की आकाशगंगा है खगोलीय वस्तु ऐसी वस्तु को कहा जाता है जो ब्रह्माण्ड में प्राकृतिक रूप से पायी जाती है, यानि जिसकी रचना मनुष्यों ने नहीं की होती है। इसमें तारे, ग्रह, प्राकृतिक उपग्रह, गैलेक्सी आदि शामिल हैं। .
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खगोलीय इकाई
खगोलीय इकाई (AU या au या a.u. या यद कदा ua) लम्बाई की इकाई है, जो लगभग 150 मिलियन किलोमीटर है और पृथ्वी से सूर्य की दूरी पर आधारित है। इसकी सही सही मान है 149,597,870,691 ± 30 मीटर (लगभग 150 मिलियन किलोमीटर या 93 मिलियन मील).
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और्ट बादल
चित्रकार द्वारा कल्पित और्ट बादल का चित्र - ऊपर बाएँ की और काइपर घेरा दिखाया गया है और्ट बादल या और्ट क्लाउड एक गोले के रूप का धूमकेतुओं का बादल है जो सूर्य से लगभग एक प्रकाश-वर्ष के दूरी पर हमारे सौर मण्डल को घेरे हुए है। इसमें अरबों की संख्या में धूमकेतु हैं। खगोलीय इकाई में एक प्रकाश वर्ष लगभग ५०,००० ख॰ई॰ होता है (१ ख॰ई॰ पृथ्वी से सूरज की दूरी है), यानि और्ट बादल सूरज से पृथ्वी के मुक़ाबले में पचास हज़ार गुना अधिक दूर है। और्ट बादल सौर मण्डल के सब से दूर-तरीन क्षेत्र है। सौर मण्डल के काइपर घेरे और बिखरा चक्र वाले क्षेत्र - जो वैसे बहुत बाहर की ओर माने जाते हैं - दोनों और्ट बादल के हज़ार गुना अधिक सूरज के पास है। यह बात ध्यान योग्य है के वैज्ञानिकों ने और्ट बादल के अस्तित्व के मिल जाने की भविष्यवाणी तो की है लेकिन इसके अस्तित्व का अभी कोई पक्का प्रमाण नहीं मिला है। मानना है के और्ट बादल हमारे सौर मण्डल की गुरुत्वाकर्षक सीमा पर है और उसके बाद सूरज का खिचाव बहुत कम रह जाता है। .
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काइपर घेरा
काइपर घेरे की ज्ञात वस्तुएँ - मुख्य घेरे की वस्तुएँ हरे रंग में, घेरे की बिखरी हुई वस्तुएँ नारंगी रंग में, सौर मण्डल के चार बाहरी ग्रह नीले रंग में, वरुण (नॅप्ट्यून) के इर्द-गिर्द की वस्तुएँ पीले रंग में और बृहस्पति के इर्द-गिर्द की वस्तुएँ गुलाबी रंग में दिखाई गयी हैं काइपर घेरा, काइपर-ऍजवर्थ घेरा या काइपर बॅल्ट हमारे सौर मण्डल का एक बाहरी क्षेत्र है जो वरुण ग्रह (नॅप्ट्यून) की कक्षा (जो सूरज से लगभग ३० खगोलीय इकाई दूर है) से लेकर सूर्य से ५५ ख॰इ॰ तक फैला हुआ है। क्षुद्रग्रह घेरे की तरह इसमें भी हज़ारों-लाखों छोटी-बड़ी खगोलीय वस्तुएँ हैं जो सौर मण्डल के ग्रहों के सृजनात्मक दौर से बची हुई रह गयी। काइपर घेरा का क्षेत्र क्षुद्रग्रह घेरे के क्षेत्र से २० गुना चौड़ा और २०० गुना ज़्यादा फैला हुआ है। जहाँ क्षुद्रग्रह घेरे की वस्तुएँ पत्थर और धातुओं की बनी हुई हैं, वहाँ काइपर घेरे की वस्तुएँ सर्दी की सख्ती से जमे हुए पानी, मीथेन और अमोनिया की मिली-जुली बर्फ़ों की बनी हुई हैं। सौर मण्डल के ज्ञात बौने ग्रहों में से तीन - यम, हउमेया और माकेमाके - काइपर घेरे के निवासी हैं। वैज्ञानिकों का यह भी मानना है के सौर मण्डल के कुछ प्राकृतिक उपग्रह भी इसी घेरे में जन्मे और घुमते-फिरते अपने ग्रहों के निटक पहुँच कर उनके गुरुत्वाकर्षण में फँस कर उनकी परिक्रमा करने लगे, जैसे की वरुण (नॅप्ट्यून) का उपग्रह ट्राइटन और शनि का उपग्रह फ़ीबी। काइपर घेरे का नाम डच-अमेरिकी खगोलशास्त्री जेरार्ड काइपर के नाम पर रखा गया हालाँकि, वास्तव में खुद उन्होंने इसके अस्तित्व की भविष्यवाणी नहीं की थी। वर्ष 1992 में, यम के बाद खोजा जाने वाला पहला काइपर घेरा वस्तु (केबीओ) था। इसकी खोज के बाद से अब तक, ज्ञात काइपर घेरा वस्तुओं (केबीओ'स) की संख्या हज़ार से अधिक हो चुकी है और से अधिक व्यास वाले 1,00,000 से अधिक केबीओ'स के होने का अनुमान है। प्रारम्भ में यह सोचा गया था कि काइपर बेल्ट ही उन सावधिक धूमकेतुओं का भण्डार है जिनकी कक्षायें 200 सालों से कम अवधि वाली हैं। हालाँकि, नब्बे के दशक के बाद के अध्ययनों ने दर्शाया है कि यह घेरा गतिशीलता की दृष्टि से स्थायित्व वाला है, और धूमकेतुओं की उत्पत्ति का वास्तविक स्थल एक प्रकीर्ण डिस्क है जो नेपच्यून की बहिर्मुखी गति द्वारा 4.5 बिलियन वर्ष पूर्व निर्मित, गतिशीलता के दृष्टि से एक सक्रिय मंडल है; इस प्रकीर्ण डिस्क के कुछ पिण्डों, जैसे कि ऍरिस इत्यादि, की विकेन्द्रता अत्यंत अधिक है और वे अपने परिक्रमा पथ में सूर्य से 100 AU तक की दूरी तक भी चले जाते हैं। .
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- क्या वरुण-पार वस्तुएँ और सौर मण्डल लगती में
- यह आम वरुण-पार वस्तुएँ और सौर मण्डल में है क्या
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वरुण-पार वस्तुएँ और सौर मण्डल के बीच तुलना
वरुण-पार वस्तुएँ 14 संबंध है और सौर मण्डल 99 है। वे आम 7 में है, समानता सूचकांक 6.19% है = 7 / (14 + 99)।
संदर्भ
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