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भरतपुरा लाइब्रेरी और शाहनामा

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

भरतपुरा लाइब्रेरी और शाहनामा के बीच अंतर

भरतपुरा लाइब्रेरी vs. शाहनामा

पटना से करीब 45 किलोमीटर दूर भरतपुरा गांव में स्टेनगनधारी पुलिसकर्मियों से घिरी एक इमारत में ढेर सारे अमूल्य दुर्लभ ग्रन्थ, प्राचीन तथा मुगलकालीन सचित्र पाण्डुलिपियां, पंचमार्क से लेकर मुगलकालीन सोने के सिक्के किसी को भी विस्मित कर सकती है। यह ऐसी है ही। भरतपुरा गांव स्थित गोपालनारायण पब्लिक लाइब्रेरी कहने भर को ही लाइब्रेरी है। यह अमूल्य एवं दुर्लभ सचित्र पाण्डुलिपियों की खान है। यहां फिरदौसी का शाहनामा, निजामी का सिकन्दरनामा, अमीर हम्जा का दास्तान-ए-अमीर हम्जा, दसवीं सदी के जरीन रकम, अलहुसैनी, शिराजी तथा 11वीं सदी के मुहम्मद मोमिन जैसे उत्कृष्ट कैलिग्राफरों की कृतियों (वैसलिस) समेत 11वीं सदी की सिंहासन बतीसी, बैताल पचीसी, अबुलफजल की कृतियां, त्रिपुरसुन्दरी पटलम, गर्ग संहिता जैसे ग्रन्थ एवं पाण्डुलिपियां हैं। पटना कलम के पूर्वज मनोहर के पिता बसावन की पेंटिंग ‘साधु’ इस लाइब्रेरी की खास धरोहर है। राजा भरत सिंह के वंशज गोपालनारायण सिंह ने इस लाइब्रेरी की स्थापना सन् 1912 ईस्वी में ब्रिटिश भारत में सम्राट के दिल्ली में ताजपोशी के अवसर पर पटना के तत्कालीन कलक्टर मि॰ प्रेन्टिस के हाथों करवाई थी। गोपालनारायण सिंह राजा बनारस के दामाद थे। राजा बनारस से उपहारस्वरूप उन्हें अनेक दुर्लभ बहुमूल्य पाण्डुलिपियां मिली। जिनमें ताड़ के पत्ते पर महाभारत, त्रिपुरसुन्दरी पटलम, तुलसीकृत रामायण, सिकन्दरनामा, शाहनामा, वैसलिस (कैलिग्राफी के बेहतरीन एवं दुर्लभ नमूने) तथा कई अन्य प्राचीन तथा मुगलकालीन ग्रन्थ थे। बाद के दिनों में गोपालनारायण सिंह ने और भी बहुमूल्य, दुर्लभ पाण्डुलिपियों का संग्रह किया। प्राचीन पाण्डुलिपियां लाइब्रेरी के कर्ताधर्ताओं को इन पाण्डुलिपियों के महत्व का अंदाजा नहीं था। शायद इसलिए यह लाइब्रेरी बरसों यूं ही उपेक्षित पड़ी रही। तभी पटना से दो रिसर्च स्कालर डा॰ क्यामुद्दीन अहमद (बाद के दिनों के प्रसिद्ध इतिहासकार) और एस.एन. शाहनामा या शाहनामे (شاهنامه) फ़ारसी भाषा का एक महाग्रंथ है जिसके रचायिता फ़िरदोसी हैं। इसमें ईरान पर अरबी फ़तह (सन् 636) के पूर्व के शासकों का चरित लिखा गया है। ख़ोरासान के महमूद ग़ज़नी के दरबार में प्रस्तुत इस किताब को फ़िरदौसी ने 30 साल की मेहनत के बाद सन् 1010 में तैयार किया था। इसमें मुखयतः दोहे हैं, जो दो मुख्य भागों में विभक्त हैं - मिथकीय (या कवि-कल्पित) और ऐतिहासिक सासानी शासकों से मेल खाते। कहा जाता है कि महमूद गज़नवी ने फिरदौसी को यह वचन दिया था कि वह 'शाहनामा' के हर शब्द के लिए एक दीनार देगा। वर्षों की मेहनत के बाद जब 'शाहनामा' तैयार हो गया और फिरदौसी उसे लेकर महमूद गज़नबी के दरबार में गया तो सम्राट ने उसे प्रत्येक शब्द के लिए एक दीनार नहीं बल्कि एक दिरहम का भुगतान करा दिया। कहा जाता है इस पर नाराज होकर फिरदौसी लौट गया और उसने एक दिरहम भी नहीं लिया। यह वायदा ख़िलाफ़ी कुछ ऐसी थी जैसे किसी कवि के प्रति शब्द एक रुपये देने का वचन देकर प्रति शब्द एक पैसा दिया जाये। फिरदौसी ने गुस्से में आकर महमूद गज़नबी के खिलाफ़ कुछ पंक्तियां लिखी। वे पंक्तियां इतनी प्रभावशाली थी कि पूरे साम्राज्य में फैल गयीं। कुछ साल बाद महमूद गज़नवी से उसके विश्वासपात्र मंत्रियों ने निवेदन किया कि फिरदौसी को उसी दर पर भुगतान कर दिया जाये जो तय की गयी थी। सम्राट के कारण पूछने पर प्रधानमंत्री ने कहा कि हम लोग साम्राज्य के जिस कोने में जाते हैं हमें वे पंक्तियां सुनने को मिलती हैं जो फिरदौसी ने आपके विरुद्ध लिखी हैं और हमारा सिर्फ शर्म से झुक जाता है। उसे निर्धारित दर पर पैसा दे दिया जायेगा तो हमें बड़ा नैतिक बल मिलेगा।' सम्राट ने आदेश दे दिया। दीनारों से भरी गाड़ी जब फिरदौसी के घर पहुंची तो घर के अंदर से फिरदौसी का जनाज़ा निकल रहा था। पूरी उम्र गरीबी, तंगी और मुफ़लिसी में काटने के बाद फिरदौसी मर चुका था। कहते हैं कि फिरदौसी की एकमात्र संतान उसकी लड़की ने भी यह धान लेने से इंकार कर दिया था। इस तरह सम्राट कवि का कर्जदार रहा और आज भी है। शायद यही वजह है कि आज फिरदौसी का शाहनामा जितना प्रसिद्ध है उतनी ही या उससे ज्यादा प्रसिद्ध वे पंक्तियां है जो फिरदौसी ने महमूद गज़नबी की आलोचना करते हुए लिखी थीं। फिरदौसी का 'शाहनामा' दरअसल ईरान का इतिहास ही नहीं ईरानी अस्मिता की पहचान है। उसमें प्राचीन ईरान की उपलब्धियों का बखान है। सम्राटों का इतिहास है। प्राचीन फ़ारसी ग्रंथों को नया रूप देकर उनको शामिल किया गया है। मिथक और इतिहास के सम्मिश्रण से एक अद्भुत प्रभाव उत्पन्न हुआ है। प्रेम, विद्रोह, वीरता, दुष्टता, मानवीयता, युद्ध, साहस के ऐसे उत्कृष्ट उदाहरण हैं जिन्होंने 'शाहनामा' को ईरानी साहित्य की अमर कृति बना दिया है। ईरानी साहित्य में 'शाहनामा' जितनी तरह से जितनी बार छपा है उतना और कोई पुस्तक नहीं छपी है। फिरदौसी ने रुस्तम और सोहराब जैसे पात्र निर्मित किए हैं जो मानव-स्मृति का हिस्सा बन चुके हैं। | accessdate.

भरतपुरा लाइब्रेरी और शाहनामा के बीच समानता

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भरतपुरा लाइब्रेरी और शाहनामा के बीच तुलना

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