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पेचिश और व्रणीय बृहदान्त्रशोथ

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

पेचिश और व्रणीय बृहदान्त्रशोथ के बीच अंतर

पेचिश vs. व्रणीय बृहदान्त्रशोथ

पेचिश (Dysentery) या प्रवाहिका, पाचन तंत्र का रोग है जिसमें गम्भीर अतिसार (डायरिया) की शिकायत होती है और मल में रक्त एवं श्लेष्मा (mucus) आता है। यदि इसकी चिकित्सा नहीं की गयी तो यह जानलेवा भी हो सकता है। . अंगूठाकार व्रणीय बृहदान्त्रशोथ (Ulcerative colitis / UC) एक जीर्ण रोग है जिसमें बृहदान्त्र तथा गुदा में व्रण (अल्सर) हो जाता है। इस रोग का प्रमुख लक्षण पेट का दर्द तथा रक्तमिश्रित अतिसार है जिससे भार घटना, ज्वर, रक्ताल्पता आदि भी हो सकते हैं। .

पेचिश और व्रणीय बृहदान्त्रशोथ के बीच समानता

पेचिश और व्रणीय बृहदान्त्रशोथ आम में 3 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): रक्त, व्रण, अतिसार

रक्त

मानव शरीर में लहू का संचरण लाल - शुद्ध लहू नीला - अशु्द्ध लहू लहू या रक्त या खून एक शारीरिक तरल (द्रव) है जो लहू वाहिनियों के अन्दर विभिन्न अंगों में लगातार बहता रहता है। रक्त वाहिनियों में प्रवाहित होने वाला यह गाढ़ा, कुछ चिपचिपा, लाल रंग का द्रव्य, एक जीवित ऊतक है। यह प्लाज़मा और रक्त कणों से मिल कर बनता है। प्लाज़मा वह निर्जीव तरल माध्यम है जिसमें रक्त कण तैरते रहते हैं। प्लाज़मा के सहारे ही ये कण सारे शरीर में पहुंच पाते हैं और वह प्लाज़मा ही है जो आंतों से शोषित पोषक तत्वों को शरीर के विभिन्न भागों तक पहुंचाता है और पाचन क्रिया के बाद बने हानिकारक पदार्थों को उत्सर्जी अंगो तक ले जा कर उन्हें फिर साफ़ होने का मौका देता है। रक्तकण तीन प्रकार के होते हैं, लाल रक्त कणिका, श्वेत रक्त कणिका और प्लैटलैट्स। लाल रक्त कणिका श्वसन अंगों से आक्सीजन ले कर सारे शरीर में पहुंचाने का और कार्बन डाईआक्साईड को शरीर से श्वसन अंगों तक ले जाने का काम करता है। इनकी कमी से रक्ताल्पता (अनिमिया) का रोग हो जाता है। श्वैत रक्त कणिका हानीकारक तत्वों तथा बिमारी पैदा करने वाले जिवाणुओं से शरीर की रक्षा करते हैं। प्लेटलेट्स रक्त वाहिनियों की सुरक्षा तथा खून बनाने में सहायक होते हैं। मनुष्य-शरीर में करीब पाँच लिटर लहू विद्यमान रहता है। लाल रक्त कणिका की आयु कुछ दिनों से लेकर १२० दिनों तक की होती है। इसके बाद इसकी कोशिकाएं तिल्ली (Phagocytosis) में टूटती रहती हैं। परन्तु इसके साथ-साथ अस्थि मज्जा (बोन मैरो) में इसका उत्पादन भी होता रहता है (In 7 steps)। यह बनने और टूटने की क्रिया एक निश्चित अनुपात में होती रहती है, जिससे शरीर में खून की कमी नहीं हो पाती। मनुष्यों में लहू ही सबसे आसानी से प्रत्यारोपित किया जा सकता है। एटीजंस से लहू को विभिन्न वर्गों में बांटा गया है और रक्तदान करते समय इसी का ध्यान रखा जाता है। महत्वपूर्ण एटीजंस को दो भागों में बांटा गया है। पहला ए, बी, ओ तथा दुसरा आर-एच व एच-आर। जिन लोगों का रक्त जिस एटीजंस वाला होता है उसे उसी एटीजंस वाला रक्त देते हैं। जिन पर कोई एटीजंस नहीं होता उनका ग्रुप "ओ" कहलाता है। जिनके रक्त कण पर आर-एच एटीजंस पाया जाता है वे आर-एच पाजिटिव और जिनपर नहीं पाया जाता वे आर-एच नेगेटिव कहलाते हैं। ओ-वर्ग वाले व्यक्ति को सर्वदाता तथा एबी वाले को सर्वग्राही कहा जाता है। परन्तु एबी रक्त वाले को एबी रक्त ही दिया जाता है। जहां स्वस्थ व्यक्ति का रक्त किसी की जान बचा सकता है, वहीं रोगी, अस्वस्थ व्यक्ति का खून किसी के लिये जानलेवा भी साबित हो सकता है। इसीलिए खून लेने-देने में बहुत सावधानी की आवश्यकता होती है। लहू का pH मान 7.4 होता है कार्य.

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व्रण

एक बच्चे के पैर में अल्सर व्रण या अल्सर (Ulcer) शरीरपृष्ठ (body surface) पर संक्रमण द्वारा उत्पन्न होता है। इस संक्रमण के जीवविष (toxins) स्थानिक उपकला (epithelium) को नष्ट कर देते हैं। नष्ट हुई उपकला के ऊपर मृत कोशिकाएँ एवं पूय (pus) संचित हो जाता है। मृत कोशिकाओं तथा पूय के हट जाने पर नष्ट हुई उपकला के स्थान पर धीरे धीरे कणिकामय ऊतक (granular tissues) आने लगते हैं। इस प्रकार की विक्षति को व्रण कहते हैं। दूसरे शब्दों में संक्रमणोपरांत उपकला ऊतक की कोशिकीय मृत्यु को व्रण कहते है। किसी भी पृष्ठ के ऊपर, अथवा पार्श्व में, यदि कोई शोधयुक्त परिगलित (necrosed) भाग हो गया है, तो वहाँ व्रण उत्पन्न हो जाएगा। शीघ्र भर जानेवाले व्रण को सुदम्य व्रण कहते हैं। कभी-कभी कोई व्रण शीघ्र नहीं भरता। ऐसा व्रण दुदम्य हो जाता है, इसका कारण यह है कि उसमें या तो जीवाणुओं (bacteria) द्वारा संक्रमण होता रहता है, या व्रणवाले भाग में रक्त परिसंचरण (circulation of blood) उचित रूप से नहीं हो पाता। व्रण, पृष्ठ पर की एक कोशिका के बाद दूसरी कोशिका के नष्ट होने पर, बनता है। .

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अतिसार

अतिसार या डायरिया (अग्रेज़ी:Diarrhea) में या तो बार-बार मल त्याग करना पड़ता है या मल बहुत पतले होते हैं या दोनों ही स्थितियां हो सकती हैं। पतले दस्त, जिनमें जल का भाग अधिक होता है, थोड़े-थोड़े समय के अंतर से आते रहते हैं। .

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सूची के ऊपर निम्न सवालों के जवाब

पेचिश और व्रणीय बृहदान्त्रशोथ के बीच तुलना

पेचिश 11 संबंध है और व्रणीय बृहदान्त्रशोथ 9 है। वे आम 3 में है, समानता सूचकांक 15.00% है = 3 / (11 + 9)।

संदर्भ

यह लेख पेचिश और व्रणीय बृहदान्त्रशोथ के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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