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पी॰ऍस॰आर॰ बी1257+12

सूची पी॰ऍस॰आर॰ बी1257+12

पी॰ऍस॰आर॰ बी१२५७+१२ पल्सर के इर्द-गिर्द परिक्रमा करते ग़ैर-सौरीय ग्रहों का काल्पनिक चित्रण इस पल्सर के 'ए', 'बी' और 'सी' ग्रहों का काल्पनिक चित्रण पी॰ऍस॰आर॰ बी१२५७+१२ (अंग्रेज़ी: PSR B1257+12) पृथ्वी से लगभग २,००० प्रकाश वर्ष दूर स्थित एक पल्सर है। आकाश में यह कन्या तारामंडल के क्षेत्र में स्थित है। सन् २००७ में ज्ञात हुआ के इसके इर्द-गिर्द ३ ग़ैर-सौरीय ग्रह परिक्रमा कर रहें हैं। वैज्ञानिकों को एक चौथे ग्रह की मजूदगी पर भी शक है। .

20 संबंधों: द्रव्यमान, नोवा, पल्सर, प्रकाश-वर्ष, प्लूटो (बौना ग्रह), पृथ्वी, पोलैंड, बहिर्ग्रह, भारतीय संख्या प्रणाली, महानोवा, मुख्य अनुक्रम, सौर द्रव्यमान, सौर अर्धव्यास, खगोल विज्ञानी, ग्रहीय मण्डल, कन्या तारामंडल, काइपर घेरा, क्षुद्रग्रह घेरा, क्वार्क, अंग्रेज़ी भाषा

द्रव्यमान

द्रव्यमान किसी पदार्थ का वह मूल गुण है, जो उस पदार्थ के त्वरण का विरोध करता है। सरल भाषा में द्रव्यमान से हमें किसी वस्तु का वज़न और गुरुत्वाकर्षण के प्रति उसके आकर्षण या शक्ति का पता चलता है। श्रेणी:भौतिकी श्रेणी:भौतिक शब्दावली *.

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नोवा

अपने साथी से हाइड्रोजन खींचता हुआ एक सफ़ेद बौना तारा - यही हाइड्रोजन आगे चलकर एक नोवा विस्फोट करेगा (काल्पनिक चित्रण) सन् २००९ में स्रोतास्विनी तारामंडल में देखा गया ऍरिडानी नोवा नोवा या नवतारा किसी सफ़ेद बौने तारे की सतह पर हाइड्रोजन एकत्रित होने के बाद उसमें एक भयंकर परमाणु विस्फोट को कहते हैं जिसमें अनियंत्रित रफ़्तार से नाभिकीय संलयन (न्यूक्लियर फ्यूज़न) होता है। हांलांकि इसका नाम महानोवा से मिलता-जुलता है, इन दोनों में कोई सम्बन्ध नहीं। .

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पल्सर

अत्यधिक चुम्बकीय, बहुत तेज घूर्णन करने वाले न्यूट्रॉन तारे हैं, जो की विद्युतचुम्बकीय विकरण उतपन्न करते हैं। इनका विकरण तभी आभासित होता है जब विकरण पैदा होने की दिशा प्रथ्वी की ओर हो। क्योंकि इनके द्वारा उतपन्न विकरण निश्चित अंतराल के बाद ही पृथ्वी पर आता है (यानी इनका सिग्नल निरंतर ना आकर रुक रुक कर आता है), इसलिए इन्हें प्रकाशस्तंभ प्रभाव देने वाले तारों की संज्ञा भी दी जाती है। चूँकि न्यूट्रॉन तारे बहुत ही घने निकाय होते हैं, उसकी घूर्णन अवधि और इसी तरह उनकी पल्स (धड़कन) के बीच का अंतराल बहुत ही नियमित होता है। कुछ पल्सर की धड़कन की नियमितता सटीक रूप में एक परमाणु घड़ी जैसी होती है। उनके पल्स विस्तार की प्रेक्षित अवधि १.४ मिली सेकण्ड से लेकर ८.५ मिली सेकण्ड है। वेला पल्सर द्वारा उत्पन्न गामा किरणों का आवर्तन .

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प्रकाश-वर्ष

प्रकाश वर्ष (चिन्ह:ly) लम्बाई की मापन इकाई है। यह लगभग 950 खरब (9.5 ट्रिलियन) किलोमीटर के अन्दर होती है। यहां एक ट्रिलियन 1012 (दस खरब, या अरब पैमाने) के रूप में लिया जाता है। अन्तर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ के अनुसार, प्रकाश वर्ष वह दूरी है, जो प्रकाश द्वारा निर्वात में, एक वर्ष में पूरी की जाती है। यह लम्बाई मापने की एक इकाई है जिसे मुख्यत: लम्बी दूरियों यथा दो नक्षत्रों (या ता‍रों) बीच की दूरी या इसी प्रकार की अन्य खगोलीय दूरियों को मापने मैं प्रयोग किया जाता है। .

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प्लूटो (बौना ग्रह)

यम या प्लूटो सौर मण्डल का दुसरा सबसे बड़ा बौना ग्रह है (सबसे बड़ा ऍरिस है)। प्लूटो को कभी सौर मण्डल का सबसे बाहरी ग्रह माना जाता था, लेकिन अब इसे सौर मण्डल के बाहरी काइपर घेरे की सब से बड़ी खगोलीय वस्तु माना जाता है। काइपर घेरे की अन्य वस्तुओं की तरह प्लूटो का अकार और द्रव्यमान काफ़ी छोटा है - इसका आकार पृथ्वी के चन्द्रमा से सिर्फ़ एक-तिहाई है। सूरज के इर्द-गिर्द इसकी परिक्रमा की कक्षा भी थोड़ी बेढंगी है - यह कभी तो वरुण (नॅप्टयून) की कक्षा के अन्दर जाकर सूरज से ३० खगोलीय इकाई (यानि ४.४ अरब किमी) दूर होता है और कभी दूर जाकर सूर्य से ४५ ख॰ई॰ (यानि ७.४ अरब किमी) पर पहुँच जाता है। प्लूटो काइपर घेरे की अन्य वस्तुओं की तरह अधिकतर जमी हुई नाइट्रोजन की बर्फ़, पानी की बर्फ़ और पत्थर का बना हुआ है। प्लूटो को सूरज की एक पूरी परिक्रमा करते हुए २४८.०९ वर्ष लग जाते हैं। .

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पृथ्वी

पृथ्वी, (अंग्रेज़ी: "अर्थ"(Earth), लातिन:"टेरा"(Terra)) जिसे विश्व (The World) भी कहा जाता है, सूर्य से तीसरा ग्रह और ज्ञात ब्रह्माण्ड में एकमात्र ग्रह है जहाँ जीवन उपस्थित है। यह सौर मंडल में सबसे घना और चार स्थलीय ग्रहों में सबसे बड़ा ग्रह है। रेडियोधर्मी डेटिंग और साक्ष्य के अन्य स्रोतों के अनुसार, पृथ्वी की आयु लगभग 4.54 बिलियन साल हैं। पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण, अंतरिक्ष में अन्य पिण्ड के साथ परस्पर प्रभावित रहती है, विशेष रूप से सूर्य और चंद्रमा से, जोकि पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह हैं। सूर्य के चारों ओर परिक्रमण के दौरान, पृथ्वी अपनी कक्षा में 365 बार घूमती है; इस प्रकार, पृथ्वी का एक वर्ष लगभग 365.26 दिन लंबा होता है। पृथ्वी के परिक्रमण के दौरान इसके धुरी में झुकाव होता है, जिसके कारण ही ग्रह की सतह पर मौसमी विविधताये (ऋतुएँ) पाई जाती हैं। पृथ्वी और चंद्रमा के बीच गुरुत्वाकर्षण के कारण समुद्र में ज्वार-भाटे आते है, यह पृथ्वी को इसकी अपनी अक्ष पर स्थिर करता है, तथा इसकी परिक्रमण को धीमा कर देता है। पृथ्वी न केवल मानव (human) का अपितु अन्य लाखों प्रजातियों (species) का भी घर है और साथ ही ब्रह्मांड में एकमात्र वह स्थान है जहाँ जीवन (life) का अस्तित्व पाया जाता है। इसकी सतह पर जीवन का प्रस्फुटन लगभग एक अरब वर्ष पहले प्रकट हुआ। पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के लिये आदर्श दशाएँ (जैसे सूर्य से सटीक दूरी इत्यादि) न केवल पहले से उपलब्ध थी बल्कि जीवन की उत्पत्ति के बाद से विकास क्रम में जीवधारियों ने इस ग्रह के वायुमंडल (the atmosphere) और अन्य अजैवकीय (abiotic) परिस्थितियों को भी बदला है और इसके पर्यावरण को वर्तमान रूप दिया है। पृथ्वी के वायुमंडल में आक्सीजन की वर्तमान प्रचुरता वस्तुतः जीवन की उत्पत्ति का कारण नहीं बल्कि परिणाम भी है। जीवधारी और वायुमंडल दोनों अन्योन्याश्रय के संबंध द्वारा विकसित हुए हैं। पृथ्वी पर श्वशनजीवी जीवों (aerobic organisms) के प्रसारण के साथ ओजोन परत (ozone layer) का निर्माण हुआ जो पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र (Earth's magnetic field) के साथ हानिकारक विकिरण को रोकने वाली दूसरी परत बनती है और इस प्रकार पृथ्वी पर जीवन की अनुमति देता है। पृथ्वी का भूपटल (outer surface) कई कठोर खंडों या विवर्तनिक प्लेटों में विभाजित है जो भूगर्भिक इतिहास (geological history) के दौरान एक स्थान से दूसरे स्थान को विस्थापित हुए हैं। क्षेत्रफल की दृष्टि से धरातल का करीब ७१% नमकीन जल (salt-water) के सागर से आच्छादित है, शेष में महाद्वीप और द्वीप; तथा मीठे पानी की झीलें इत्यादि अवस्थित हैं। पानी सभी ज्ञात जीवन के लिए आवश्यक है जिसका अन्य किसी ब्रह्मांडीय पिण्ड के सतह पर अस्तित्व ज्ञात नही है। पृथ्वी की आतंरिक रचना तीन प्रमुख परतों में हुई है भूपटल, भूप्रावार और क्रोड। इसमें से बाह्य क्रोड तरल अवस्था में है और एक ठोस लोहे और निकल के आतंरिक कोर (inner core) के साथ क्रिया करके पृथ्वी मे चुंबकत्व या चुंबकीय क्षेत्र को पैदा करता है। पृथ्वी बाह्य अंतरिक्ष (outer space), में सूर्य और चंद्रमा समेत अन्य वस्तुओं के साथ क्रिया करता है वर्तमान में, पृथ्वी मोटे तौर पर अपनी धुरी का करीब ३६६.२६ बार चक्कर काटती है यह समय की लंबाई एक नाक्षत्र वर्ष (sidereal year) है जो ३६५.२६ सौर दिवस (solar day) के बराबर है पृथ्वी की घूर्णन की धुरी इसके कक्षीय समतल (orbital plane) से लम्बवत (perpendicular) २३.४ की दूरी पर झुका (tilted) है जो एक उष्णकटिबंधीय वर्ष (tropical year) (३६५.२४ सौर दिनों में) की अवधी में ग्रह की सतह पर मौसमी विविधता पैदा करता है। पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह चंद्रमा (natural satellite) है, जिसने इसकी परिक्रमा ४.५३ बिलियन साल पहले शुरू की। यह अपनी आकर्षण शक्ति द्वारा समुद्री ज्वार पैदा करता है, धुरिय झुकाव को स्थिर रखता है और धीरे-धीरे पृथ्वी के घूर्णन को धीमा करता है। ग्रह के प्रारंभिक इतिहास के दौरान एक धूमकेतु की बमबारी ने महासागरों के गठन में भूमिका निभाया। बाद में छुद्रग्रह (asteroid) के प्रभाव ने सतह के पर्यावरण पर महत्वपूर्ण बदलाव किया। .

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पोलैंड

पोलैंड आधिकारिक रूप से पोलैंड गणराज्य एक मध्य यूरोप राष्ट्र है। पोलैंड पश्चिम में जर्मनी, दक्षिण में चेक गणराज्य और स्लोवाकिया, पूर्व में युक्रेन, बेलारूस और लिथुआनिया एवं उत्तर में बाल्टिक सागर व रूस के कालिनिनग्राद ओब्लास्ट के द्वारा घिरा हुआ है। पोलैंड का कुल क्षेत्रफ़ल ३ लगभग लाख वर्ग कि.मि. (1.20 लाख वर्ग मील) है, जिससे ये दुनिया का ६९वां व युरोप का ९वां विशालतम राष्ट्र बन जाता है। लगभग 4 करोड़ की जनसंख्या के साथ यह दुनिया का ३३वां सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश बन जाता है। एक राष्ट्र के रूप में पोलैंड की स्थापना को इसके शासक मिस्जको प्रथम द्वारा ९६६ इसवी में इसाई धर्म को राष्ट्रधर्म बनाने के साथ जोड़ कर देखा जाता है। तत्कालीन समय में पोलैंड का आकार वर्तमान पोलैंड के जैसा ही था। १०२५ में पोलैंड राजाओं के अधीन आया और १५६९ में पोलैंड ने लिथुआनिया के ग्रैंड डचि के साथ मिलकर पोलिश-लिथुआनियन कामनवेल्थ की स्थापना करते हुए एक लंबे रिश्ते की नींव डाली। ये कामनवेल्थ १७९५ में तोड़ दिया गया और पोलैंड को आस्ट्रिया, रूस और प्रुसिया के बीच बांट लिया गया। पोलैंड ने प्रथम विश्व युद्ध के बाद १९१८ में अपनी स्वाधीनता पुनः हसिल की मगर द्वितीय विश्वयुद्ध के समय फ़िर से पराधीन होकर नाजी जर्मनी और सोवियत संघ के अधीन चला गया। द्वितीय विश्वयुद्ध में पोलैंड ने अपने साठ लाख नागरिकों को खो दिया। कई साल बाद पोलैंड रूस से प्रभावित एक साम्यवादी गणराज्य के रूप में ईस्टर्न ब्लॉक में उभरा। १९८९ में साम्यवादी शासन का पतन हुआ और पोलैंड एक नये राष्ट्र के रूप में उभरा जिसे सांविधानिक तौर पे "तृतीय पोलिश गणतंत्र" कहा जाता है। पोलैंड एक स्वयंशासित स्वतंत्र राष्ट्र है जो कि सोलह अलग-अलग वोइवोदेशिप या राज्यों (पोलिश: वोयेवुद्ज़त्वो) को मिलाकर गठित हुआ है। पोलैंड यूरोपीय संघ, नाटो एवं ओ.ई.सि.डी का सदस्य राष्ट्र है। .

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बहिर्ग्रह

धूल के बादल में फ़ुमलहौत बी ग्रह परिक्रमा करता हुआ पाया गया (हबल अंतरिक्ष दूरबीन द्वारा ली गई तस्वीर) बहिर्ग्रह (exoplanet) या ग़ैर-सौरीय ग्रह (extrasolar planet, ऍक्स्ट्रासोलर प्लैनॅट) ऐसे ग्रह को कहा जाता है जो हमारे सौर मण्डल से बाहर स्थित हो। सन् १९९२ तक खगोलशास्त्रियों को एक भी ग़ैर-सौरीय ग्रह के अस्तित्व का ज्ञान नहीं था, लेकिन उसके बाद बहुत से ऐसे ग्रह मिल चुके हैं। २४ मई २०११ तक ५५२ ग़ैर-सौरीय ग्रह ज्ञात हो चुके थे। क्योंकि इनमें से अधिकतर को सीधा देखने के लिए तकनीकें अभी विकसित नहीं हुई हैं, इसलिए सौ प्रतिशत भरोसे से नहीं कहा जा सकता के वास्तव में यह सारे ग्रह मौजूद हैं, लेकिन इनके तारों पर पड़ रहे गुरुत्वाकर्षक प्रभाव और अन्य लक्षणों से वैज्ञानिक इनके अस्तित्व के बारे में विश्वस्त हैं। अनुमान लगाया जाता है के सूरज की श्रेणी के लगभग १०% तारों के इर्द-गिर्द ग्रह परिक्रमा कर रहे हैं, हालांकि यह संख्या उस से भी अधिक हो सकती है। कॅप्लर अंतरिक्ष क्षोध यान द्वारा एकत्रित जानकारी के बूते पर कुछ वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है के आकाशगंगा (हमारी गैलेक्सी) में कम-से-कम ५० अरब ग्रहों के होने की सम्भावना है। कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों ने जनवरी २०१३ में अनुमान लगाया कि आकाशगंगा में इस अनुमान से भी दुगने, यानि १०० अरब, ग्रह हो सकते हैं। .

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भारतीय संख्या प्रणाली

भारतीय संख्या प्रणाली भारतीय उपमहाद्वीप की परम्परागत गिनने की प्रणाली है जो भारत, पाकिस्तान, बंगलादेश और नेपाल में आम इस्तेमाल होती है। जहाँ पश्चिमी प्रणाली में दशमलव के तीन स्थानों पर समूह बनते हैं वहाँ भारतीय प्रणाली में दो स्थानों पर बनते हैं। .

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महानोवा

केंकड़ा नॅब्युला - यह एक महानोवा विस्फोट का बचा हुआ बादल है हम से २१,००० प्रकाश-वर्ष दूर डब्ल्यू॰आर॰ १२४ नाम के वुल्फ़-राये श्रेणी के तारे के इर्द-गिर्द महानोवा अवशेष का नॅब्युला खगोलशास्त्र में महानोवा (सुपरनोवा) किसी तारे के भयंकर विस्फोट को कहते हैं। महानोवा नोवा से अधिक बड़ा धमाका होता है और इस से निकलता प्रकाश और विकिरण (रेडीएशन) इतना ज़ोरदार होता है के कुछ समय के लिए अपने आगे पूरी आकाशगंगा को भी धुंधला कर देता है लेकिन फिर धीरे-धीरे ख़ुद धुंधला जाता है। जब तक महानोवा अपनी चरमसीमा पर होता है, वह कभी-कभी कुछ ही हफ़्तों या महीनो में इतनी उर्जा प्रसारित कर सकता है जितनी की हमारा सूरज अपने अरबों साल के जीवनकाल में करेगा। महानोवा के धमाके में सितारा अपने अधिकाँश भाग को ३०,००० किमी प्रति सैकिंड (यानि प्रकाश की गति का १०%) तक की रफ़्तार से व्योम में फेंकता है, जो अंतरतारकीय माध्यम (इन्टरस्टॅलर स्पेस) में एक आक्रमक झटके की तरंग बन के फैलती है। इसके नतीजे से जो फैलता हुआ गैस और खगोलीय धूल का बादल बनता है उसे "महानोवा अवशेष" कहते हैं। .

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मुख्य अनुक्रम

यह चित्र २३,००० तारों के रंग और उनकी निरपेक्ष कान्तिमान (चमक) की तुलना कर रहा है और जो बाएँ ओर पट्टी बन गई है उसे से इन दोनों चीज़ों का सम्बन्ध साफ़ नज़र आता है। ऐसे तुलनात्मक चित्र को "हर्ट्ज़्प्रुन्ग-रसल" चित्रण कहते हैं। मुख्य अनुक्रम या मेन सीक्वॅन्स एक तारों की श्रेणी है। हज़ारों-लाखों तारों के अध्ययन के बाद देखा गया है के बहुत से छोटे आकार के तारों में तारे के रंग और उसकी निरपेक्ष कान्तिमान (यानि मूल चमक) में गहरा सम्बन्ध होता है। इन तारों की चमक जितनी ज़्यादा हो वे उतने ही नीले नज़र आते हैं और चमक जितनी कम हो वे उतने ही लाल नज़र आते हैं। ऐसे तारों को मुख्य अनुक्रम तारे या बौने तारे कहा जाता है। .

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सौर द्रव्यमान

वी॰वाए॰ कैनिस मेजौरिस का द्रव्यमान ३०-४० \beginsmallmatrixM_\odot\endsmallmatrix है, यानि सूरज के द्रव्यमान का ३०-४० गुना है खगोलविज्ञान में सौर द्रव्यमान (solar mass) (\beginM_\odot\end) द्रव्यमान की मानक इकाई है, जिसका मान १.९८८९२ X १०३० कि.ग्रा.

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सौर अर्धव्यास

सौर अर्धव्यास (solar radius), जिसे \beginR_\odot\end के चिन्ह से दर्शाया जाता है, हमारे सूरज का अर्धव्यास (रेडियस) है जो ६.९५५ x १०५ किलोमीटर के बराबर है। खगोलशास्त्र में, सौर्य अर्धव्यास का तारों के अर्धव्यास बताने के लिए इकाई की तरह इस्तेमाल होता है। अगर किसी तारे का अर्धव्यास हमारे सूरज से बीस गुना है, जो कहा जाएगा के उसका अर्धव्यास २० \beginR_\odot\end है। ज़ाहिर है के सूरज का अपना अर्धव्यास १ \beginR_\odot\end है। .

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खगोल विज्ञानी

खगोल विज्ञानी अथवा खगोल शास्त्री वे वैज्ञानिक अध्ययनकर्ता हैं जी आकाशीय पिण्डों, उनकी गतियों और अंतरिक्ष में मौजूद विविध प्रकार की चीजों की खोज और अध्ययन का कार्य करते हैं। पश्चिमी संस्कृति में गैलीलियो नामक खगोल विज्ञानी को आधुनिक खगोलशास्त्र का पिता माना जाता है। हालाँकि कुछ लोग यह नाम कॉपरनिकस को देते हैं। .

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ग्रहीय मण्डल

एक काल्पनिक ग्रहीय मण्डल एक और काल्पनिक ग्रहीय मण्डल का नज़दीकी दृश्य - इसमें पत्थर, गैस और धूल अपने तारे के इर्द-गिर्द परिक्रमा कर रहें हैं ग्रहीय मण्डल किसी तारे के इर्द गिर्द परिक्रमा करते हुई उन खगोलीय वस्तुओं के समूह को कहा जाता है जो अन्य तारे न हों, जैसे की ग्रह, बौने ग्रह, प्राकृतिक उपग्रह, क्षुद्रग्रह, उल्का, धूमकेतु और खगोलीय धूल। हमारे सूरज और उसके ग्रहीय मण्डल को मिलाकर हमारा सौर मण्डल बनता है। .

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कन्या तारामंडल

कन्या तारामंडल बिना दूरबीन के रात में कन्या तारामंडल की एक तस्वीर (जिसमें काल्पनिक लक़ीरें डाली गयी हैं) कन्या या वर्गो (अंग्रेज़ी: Virgo) तारामंडल राशिचक्र का एक तारामंडल है। पुरानी खगोलशास्त्रिय पुस्तकों में इसे अक्सर एक कन्या के रूप में दर्शाया जाता था। आकाश में इसके पश्चिम में सिंह तारामंडल होता है और इसके पूर्व में तुला तारामंडल। कन्या तारामंडल को आकाश में इसके सबसे रोशन तारे, चित्रा (स्पाइका) के ज़रिये ढूँढा जा सकता है, जो आसमान का १५वा सब से चमकीला तारा है। .

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काइपर घेरा

काइपर घेरे की ज्ञात वस्तुएँ - मुख्य घेरे की वस्तुएँ हरे रंग में, घेरे की बिखरी हुई वस्तुएँ नारंगी रंग में, सौर मण्डल के चार बाहरी ग्रह नीले रंग में, वरुण (नॅप्ट्यून) के इर्द-गिर्द की वस्तुएँ पीले रंग में और बृहस्पति के इर्द-गिर्द की वस्तुएँ गुलाबी रंग में दिखाई गयी हैं काइपर घेरा, काइपर-ऍजवर्थ घेरा या काइपर बॅल्ट हमारे सौर मण्डल का एक बाहरी क्षेत्र है जो वरुण ग्रह (नॅप्ट्यून) की कक्षा (जो सूरज से लगभग ३० खगोलीय इकाई दूर है) से लेकर सूर्य से ५५ ख॰इ॰ तक फैला हुआ है। क्षुद्रग्रह घेरे की तरह इसमें भी हज़ारों-लाखों छोटी-बड़ी खगोलीय वस्तुएँ हैं जो सौर मण्डल के ग्रहों के सृजनात्मक दौर से बची हुई रह गयी। काइपर घेरा का क्षेत्र क्षुद्रग्रह घेरे के क्षेत्र से २० गुना चौड़ा और २०० गुना ज़्यादा फैला हुआ है। जहाँ क्षुद्रग्रह घेरे की वस्तुएँ पत्थर और धातुओं की बनी हुई हैं, वहाँ काइपर घेरे की वस्तुएँ सर्दी की सख्ती से जमे हुए पानी, मीथेन और अमोनिया की मिली-जुली बर्फ़ों की बनी हुई हैं। सौर मण्डल के ज्ञात बौने ग्रहों में से तीन - यम, हउमेया और माकेमाके - काइपर घेरे के निवासी हैं। वैज्ञानिकों का यह भी मानना है के सौर मण्डल के कुछ प्राकृतिक उपग्रह भी इसी घेरे में जन्मे और घुमते-फिरते अपने ग्रहों के निटक पहुँच कर उनके गुरुत्वाकर्षण में फँस कर उनकी परिक्रमा करने लगे, जैसे की वरुण (नॅप्ट्यून) का उपग्रह ट्राइटन और शनि का उपग्रह फ़ीबी। काइपर घेरे का नाम डच-अमेरिकी खगोलशास्त्री जेरार्ड काइपर के नाम पर रखा गया हालाँकि, वास्तव में खुद उन्होंने इसके अस्तित्व की भविष्यवाणी नहीं की थी। वर्ष 1992 में, यम के बाद खोजा जाने वाला पहला काइपर घेरा वस्तु (केबीओ) था। इसकी खोज के बाद से अब तक, ज्ञात काइपर घेरा वस्तुओं (केबीओ'स) की संख्या हज़ार से अधिक हो चुकी है और से अधिक व्यास वाले 1,00,000 से अधिक केबीओ'स के होने का अनुमान है। प्रारम्भ में यह सोचा गया था कि काइपर बेल्ट ही उन सावधिक धूमकेतुओं का भण्डार है जिनकी कक्षायें 200 सालों से कम अवधि वाली हैं। हालाँकि, नब्बे के दशक के बाद के अध्ययनों ने दर्शाया है कि यह घेरा गतिशीलता की दृष्टि से स्थायित्व वाला है, और धूमकेतुओं की उत्पत्ति का वास्तविक स्थल एक प्रकीर्ण डिस्क है जो नेपच्यून की बहिर्मुखी गति द्वारा 4.5 बिलियन वर्ष पूर्व निर्मित, गतिशीलता के दृष्टि से एक सक्रिय मंडल है; इस प्रकीर्ण डिस्क के कुछ पिण्डों, जैसे कि ऍरिस इत्यादि, की विकेन्द्रता अत्यंत अधिक है और वे अपने परिक्रमा पथ में सूर्य से 100 AU तक की दूरी तक भी चले जाते हैं। .

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क्षुद्रग्रह घेरा

कक्षाओं के बीच स्थित है - सफ़ेद बिन्दुएँ इस घेरे में मौजूद क्षुद्रग्रहों को दर्शाती हैं क्षुद्रग्रह घेरा या ऐस्टरौएड बॅल्ट हमारे सौर मण्डल का एक क्षेत्र है जो मंगल ग्रह (मार्ज़) और बृहस्पति ग्रह (ज्यूपिटर) की कक्षाओं के बीच स्थित है और जिसमें हज़ारों-लाखों क्षुद्रग्रह (ऐस्टरौएड) सूरज की परिक्रमा कर रहे हैं। इनमें एक ९५० किमी के व्यास वाला सीरीस नाम का बौना ग्रह भी है जो अपने स्वयं के गुरुत्वाकर्षक खिचाव से गोल अकार पा चुका है। यहाँ तीन और ४०० किमी के व्यास से बड़े क्षुद्रग्रह पाए जा चुके हैं - वॅस्टा, पैलस और हाइजिआ। पूरे क्षुद्रग्रह घेरे के कुल द्रव्यमान में से आधे से ज़्यादा इन्ही चार वस्तुओं में निहित है। बाक़ी वस्तुओं का अकार भिन्न-भिन्न है - कुछ तो दसियों किलोमीटर बड़े हैं और कुछ धूल के कण मात्र हैं। .

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क्वार्क

प्रोटॉन क्वार्क एक प्राथमिक कण है तथा यह पदार्थ का मूल घटक है। क्वार्क एकजुट होकर सम्मिश्र कण हेड्रॉन बनाते है, परमाणु नाभिक के मुख्य अवयव प्रोटॉन व न्यूट्रॉन इनमें से सर्वाधिक स्थिर हैं। नैसर्गिक घटना रंग बंधन के कारण, क्वार्क ना कभी सीधे प्रेक्षित हुआ या एकांत में पाया गया; वे केवल हेड्रॉनों के भीतर पाये जा सकते है, जैसे कि बेरिऑनों (उदाहरणार्थ: प्रोटान और न्यूट्रान) और मेसॉनों के रूप में। क्वार्क के अनेक आंतरिक गुण है, जिनमे विद्युत आवेश, द्रव्यमान, रंग आवेश और स्पिन सम्मिलित है। कण भौतिकी के मानक मॉडल में क्वार्क एकमात्र प्राथमिक कण है जो सभी चार मूलभूत अंतःक्रिया या मौलिक बलों (विद्युत चुंबकत्व, गुरुत्वाकर्षण, प्रबल अंतःक्रिया और दुर्बल अंतःक्रिया) को महसूस करता है, साथ ही यह मात्र ज्ञात कण है जिसका विद्युत आवेश प्राथमिक आवेश का पूर्णांक गुणनफल नहीं है। क्वार्क के छह प्रकार है, जो जाने जाते है फ्लेवर से: अप, डाउन, स्ट्रेन्ज, चार्म, टॉप और बॉटम। अप व डाउन क्वार्क के द्रव्यमान सभी क्वार्को में सबसे कम है। अपेक्षाकृत भारी क्वार्क कणिका क्षय की प्रक्रिया के माध्यम से तीव्रता से अप व डाउन क्वार्क में बदल जाते हैं। कणिका क्षय, एक उच्च द्रव्य अवस्था का एक निम्न द्रव्य अवस्था में परिवर्तन है। इस वजह से, अप व डाउन क्वार्क आम तौर पर स्थिर होते है और ब्रह्मांड में सबसे आम हैं, वहीं स्ट्रेन्ज, चार्म, बॉटम और टॉप क्वार्क केवल उच्च ऊर्जा टक्करों में उत्पन्न किए जा सकते है। हर क्वार्क फ्लेवर के प्रतिकण होते है जिनके परिमाण तो क्वार्क के बराबर होते है परंतु चिन्ह विपरीत रखते है तथा यह एंटीक्वार्क के रूप में जाने जाते है। क्वार्क मॉडल स्वतंत्र रूप से भौतिकविदों मरे गेल-मन और जॉर्ज वाइग द्वारा 1964 में प्रस्तावित किया गया था। क्वार्क हेड्रॉनों के अंग के रूप में पेश किए गए थे। 1968 में स्टैनफोर्ड रैखिक त्वरक केंद्र पर प्रयोग होने तक उनके भौतिक अस्तित्व के बहुत कम प्रमाण थे। त्वरक प्रयोगों ने सभी छह फ्लेवरों के लिए प्रमाण प्रदान किए। टॉप क्वार्क सबसे अंत में फर्मीलैब पर 1995 में खोजा गया। .

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अंग्रेज़ी भाषा

अंग्रेज़ी भाषा (अंग्रेज़ी: English हिन्दी उच्चारण: इंग्लिश) हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार में आती है और इस दृष्टि से हिंदी, उर्दू, फ़ारसी आदि के साथ इसका दूर का संबंध बनता है। ये इस परिवार की जर्मनिक शाखा में रखी जाती है। इसे दुनिया की सर्वप्रथम अन्तरराष्ट्रीय भाषा माना जाता है। ये दुनिया के कई देशों की मुख्य राजभाषा है और आज के दौर में कई देशों में (मुख्यतः भूतपूर्व ब्रिटिश उपनिवेशों में) विज्ञान, कम्प्यूटर, साहित्य, राजनीति और उच्च शिक्षा की भी मुख्य भाषा है। अंग्रेज़ी भाषा रोमन लिपि में लिखी जाती है। यह एक पश्चिम जर्मेनिक भाषा है जिसकी उत्पत्ति एंग्लो-सेक्सन इंग्लैंड में हुई थी। संयुक्त राज्य अमेरिका के 19 वीं शताब्दी के पूर्वार्ध और ब्रिटिश साम्राज्य के 18 वीं, 19 वीं और 20 वीं शताब्दी के सैन्य, वैज्ञानिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक प्रभाव के परिणाम स्वरूप यह दुनिया के कई भागों में सामान्य (बोलचाल की) भाषा बन गई है। कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों और राष्ट्रमंडल देशों में बड़े पैमाने पर इसका इस्तेमाल एक द्वितीय भाषा और अधिकारिक भाषा के रूप में होता है। ऐतिहासिक दृष्टि से, अंग्रेजी भाषा की उत्पत्ति ५वीं शताब्दी की शुरुआत से इंग्लैंड में बसने वाले एंग्लो-सेक्सन लोगों द्वारा लायी गयी अनेक बोलियों, जिन्हें अब पुरानी अंग्रेजी कहा जाता है, से हुई है। वाइकिंग हमलावरों की प्राचीन नोर्स भाषा का अंग्रेजी भाषा पर गहरा प्रभाव पड़ा है। नॉर्मन विजय के बाद पुरानी अंग्रेजी का विकास मध्य अंग्रेजी के रूप में हुआ, इसके लिए नॉर्मन शब्दावली और वर्तनी के नियमों का भारी मात्र में उपयोग हुआ। वहां से आधुनिक अंग्रेजी का विकास हुआ और अभी भी इसमें अनेक भाषाओँ से विदेशी शब्दों को अपनाने और साथ ही साथ नए शब्दों को गढ़ने की प्रक्रिया निरंतर जारी है। एक बड़ी मात्र में अंग्रेजी के शब्दों, खासकर तकनीकी शब्दों, का गठन प्राचीन ग्रीक और लैटिन की जड़ों पर आधारित है। .

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