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तुलसी घाट और मेला

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

तुलसी घाट और मेला के बीच अंतर

तुलसी घाट vs. मेला

तुलसी घाट, वाराणसी तुलसी घाट का पुराना नाम "लोलार्क घाट" था। यह बाद में संत तुलसी दास जी के नाम पर सोलहवीं सदी इसका नाम बदल दिया। भाद्रपद महिने में यहाँ बहुत बड़ा मेला लगता है। संत तुलसी दास जी द्वारा इस घाट पर श्रीकृष्ण लीला का आरम्भ किया गया,जो अभी तक कायम है। जो कार्तिक कृष्ण पक्ष द्वादशी तिथी से आरम्भ होकर अश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथी तक होती है। जिसमे नागनथैया (चार-लखी मेला), दशावतार झाकी, रास लीला मशहूर है। काशी नरेश द्वारा नागनथैया में स्वर्ण मुद्रा दी जाती है। इस घाट पर संत तुलसी दास जी द्वारा एक हनुमान जी का मंदिर स्थापित है। यहाँ नियमित रूप से संकट मोचन मंदिर की राम नाम संकृर्तन के बाद कीर्तन करने वाले भक्त गण तुलसी घाट स्थित हनुमान मंदिर में कीर्तन करते हैं। महन्त संकट मोचन(विश्वम्भर नाथ मिश्र) से प्रसाद ग्रहण करते हैं। श्रेणी:वाराणसी के दर्शनीय स्थल. जब किसी एक स्थान पर बहुत से लोग किसी सामाजिक,धार्मिक एवं व्यापारिक या अन्य कारणों से एकत्र होते हैं तो उसे मेला कहते हैं। भारतवर्ष में लगभग हर माह मेले लगते रहते ही है। मेले तरह-तरह के होते हैं। एक ही मेले में तरह-तरह के क्रियाकलाप देखने को मिलते हैं और विविध प्रकार की दुकाने एवं मनोरंजन के साधन हो सकते हैं। भारत तो मेलों के लिये प्रसिद्ध है। यहाँ कोस-दो-कोस पर जगह-जगह मेले लगते हैं जो अधिकांशत: धार्मिक होते हैं किन्तु कुछ पशु-मेले एवं कृषक मेले भी यहाँ लगते हैं। भारत का सबसे बड़ा मेला कुम्भ मेला कहा जाता है। भारत के राजस्थान राज्य में भी काफी मेले आयोजित होते है। .

तुलसी घाट और मेला के बीच समानता

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तुलसी घाट और मेला के बीच तुलना

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संदर्भ

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