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टेंक

सूची टेंक

एक जेर्मन लेपर्ड २ टेंक फिनिश सेना की सेवा में टेंक एक ऐसे सेन्य बख्तरबंध वाहन को कहते है जो की विशेष तोर से युद्ध में सेना के द्वारा गोले दागने के कार्य में लिया जाता है। टेंक अट्ठारवी सदी की तोपों का बेहद ही उन्नत व चालित आधुनिक रूप है जिनसे की आज की सेन्य तोपे भी प्रेरित है। टेंक विशेष तोर से अपने एक ट्रेक पे चलता है व इसके पहिये कभी भी जमीन से सीधे संपर्क में नहीं आते व हमेशा अपने ट्रेकों पर ही चलते है, इस खास वजह से यह किसी भी प्रकार की बेहद ही दुर्गम जगह पे भी आसानी से चल सकता है व अपनी ही जगह खड़े खड़े एक से दूसरी और मुड सकता है। इसका खास एवं बेहद मजबूत बख्तर दुश्मन सेना की और से दागे गोले बारूद को सहन करने में सक्षम होता है। टेंक में मुख्य तोर पे दो हिस्से होते है, एक निचे का चलित हिस्सा जिसमे की ट्रेक, पहिये, इंजन व सेन्य दल होते है व उप्पर का जिसे की टेरत कहते है जिसमे की तोप, मशीन गन व टेंक के अन्य उपकरण होते है। इसके सेन्य दल में ३ या ४ सदस्य हो सकते है जो की टेंक चलाने, गोले दागने, मशीन गन चलाने व टेंक कमांडर की भूमिका निभाते है। टेंक का मुख्य कार्य गोले दागना होता है। इसे सेनाओं द्वारा युद्ध में दुश्मन पर विशेष तोर से बने कई प्रकार के गोले दागने, इस पर लगी मशीन गन से गोली मारने व पैदल सेना को सहायता उपलब्ध कराने के लिए भेजा जाता है। टेंक का उपयोग प्रथम विश्वयुद्ध में सर्वप्रथम ब्रिटिश सेना के द्वारा किया गया था व तबसे ही इसकी उपयोगता की वजह से इसमें लगातार बदलाव कर एक के बाद एक उन्नत प्रकार विश्व की सेनाओं द्वारा काम में लाये जा रहे है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद बने टेंको को उनकी पीड़ी में बाटा जाता है। .

11 संबंधों: तोप, द्वितीय विश्वयुद्ध, पहला विश्व युद्ध, पहिया, मशीन गन, युद्ध, सेना, वाहन, गोला, इंजन, अर्जुन टैंक

तोप

एक तोप तोप (cannon) वह हथियार है जो किसी भारी गोले को बहुत दूर तक प्रक्षिप्त कर (छोड़) सकती है। ये प्राय: बारूद या किसी विस्फोटक के द्वारा उत्पन्न गैसीय दाब के बल से गोले को दागते हैं। आधुनिक युग में तोप का प्रयोग सामान्यत: नहीं होता है। इसके स्थान मोर्टार, होविट्जर आदि का प्रयोग किया जाता है। तोपें अपनी क्षमता, परास, चलनीयता (मोबिलिटी), दागने की गति, दागने का कोण एवं दागने की शक्ति आदि के आधार पर अनेक प्रकार की होतीं हैं। .

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द्वितीय विश्वयुद्ध

द्वितीय विश्वयुद्ध १९३९ से १९४५ तक चलने वाला विश्व-स्तरीय युद्ध था। लगभग ७० देशों की थल-जल-वायु सेनाएँ इस युद्ध में सम्मलित थीं। इस युद्ध में विश्व दो भागों मे बँटा हुआ था - मित्र राष्ट्र और धुरी राष्ट्र। इस युद्ध के दौरान पूर्ण युद्ध का मनोभाव प्रचलन में आया क्योंकि इस युद्ध में लिप्त सारी महाशक्तियों ने अपनी आर्थिक, औद्योगिक तथा वैज्ञानिक क्षमता इस युद्ध में झोंक दी थी। इस युद्ध में विभिन्न राष्ट्रों के लगभग १० करोड़ सैनिकों ने हिस्सा लिया, तथा यह मानव इतिहास का सबसे ज़्यादा घातक युद्ध साबित हुआ। इस महायुद्ध में ५ से ७ करोड़ व्यक्तियों की जानें गईं क्योंकि इसके महत्वपूर्ण घटनाक्रम में असैनिक नागरिकों का नरसंहार- जिसमें होलोकॉस्ट भी शामिल है- तथा परमाणु हथियारों का एकमात्र इस्तेमाल शामिल है (जिसकी वजह से युद्ध के अंत मे मित्र राष्ट्रों की जीत हुई)। इसी कारण यह मानव इतिहास का सबसे भयंकर युद्ध था। हालांकि जापान चीन से सन् १९३७ ई. से युद्ध की अवस्था में था किन्तु अमूमन दूसरे विश्व युद्ध की शुरुआत ०१ सितम्बर १९३९ में जानी जाती है जब जर्मनी ने पोलैंड पर हमला बोला और उसके बाद जब फ्रांस ने जर्मनी पर युद्ध की घोषणा कर दी तथा इंग्लैंड और अन्य राष्ट्रमंडल देशों ने भी इसका अनुमोदन किया। जर्मनी ने १९३९ में यूरोप में एक बड़ा साम्राज्य बनाने के उद्देश्य से पोलैंड पर हमला बोल दिया। १९३९ के अंत से १९४१ की शुरुआत तक, अभियान तथा संधि की एक शृंखला में जर्मनी ने महाद्वीपीय यूरोप का बड़ा भाग या तो अपने अधीन कर लिया था या उसे जीत लिया था। नाट्सी-सोवियत समझौते के तहत सोवियत रूस अपने छः पड़ोसी मुल्कों, जिसमें पोलैंड भी शामिल था, पर क़ाबिज़ हो गया। फ़्रांस की हार के बाद युनाइटेड किंगडम और अन्य राष्ट्रमंडल देश ही धुरी राष्ट्रों से संघर्ष कर रहे थे, जिसमें उत्तरी अफ़्रीका की लड़ाइयाँ तथा लम्बी चली अटलांटिक की लड़ाई शामिल थे। जून १९४१ में युरोपीय धुरी राष्ट्रों ने सोवियत संघ पर हमला बोल दिया और इसने मानव इतिहास में ज़मीनी युद्ध के सबसे बड़े रणक्षेत्र को जन्म दिया। दिसंबर १९४१ को जापानी साम्राज्य भी धुरी राष्ट्रों की तरफ़ से इस युद्ध में कूद गया। दरअसल जापान का उद्देश्य पूर्वी एशिया तथा इंडोचायना में अपना प्रभुत्व स्थापित करने का था। उसने प्रशान्त महासागर में युरोपीय देशों के आधिपत्य वाले क्षेत्रों तथा संयुक्त राज्य अमेरीका के पर्ल हार्बर पर हमला बोल दिया और जल्द ही पश्चिमी प्रशान्त पर क़ब्ज़ा बना लिया। सन् १९४२ में आगे बढ़ती धुरी सेना पर लगाम तब लगी जब पहले तो जापान सिलसिलेवार कई नौसैनिक झड़पें हारा, युरोपीय धुरी ताकतें उत्तरी अफ़्रीका में हारीं और निर्णायक मोड़ तब आया जब उनको स्तालिनग्राड में हार का मुँह देखना पड़ा। सन् १९४३ में जर्मनी पूर्वी युरोप में कई झड़पें हारा, इटली में मित्र राष्ट्रों ने आक्रमण बोल दिया तथा अमेरिका ने प्रशान्त महासागर में जीत दर्ज करनी शुरु कर दी जिसके कारणवश धुरी राष्ट्रों को सारे मोर्चों पर सामरिक दृश्टि से पीछे हटने की रणनीति अपनाने को मजबूर होना पड़ा। सन् १९४४ में जहाँ एक ओर पश्चिमी मित्र देशों ने जर्मनी द्वारा क़ब्ज़ा किए हुए फ़्रांस पर आक्रमण किया वहीं दूसरी ओर से सोवियत संघ ने अपनी खोई हुयी ज़मीन वापस छीनने के बाद जर्मनी तथा उसके सहयोगी राष्ट्रों पर हमला बोल दिया। सन् १९४५ के अप्रैल-मई में सोवियत और पोलैंड की सेनाओं ने बर्लिन पर क़ब्ज़ा कर लिया और युरोप में दूसरे विश्वयुद्ध का अन्त ८ मई १९४५ को तब हुआ जब जर्मनी ने बिना शर्त आत्मसमर्पण कर दिया। सन् १९४४ और १९४५ के दौरान अमेरिका ने कई जगहों पर जापानी नौसेना को शिकस्त दी और पश्चिमी प्रशान्त के कई द्वीपों में अपना क़ब्ज़ा बना लिया। जब जापानी द्वीपसमूह पर आक्रमण करने का समय क़रीब आया तो अमेरिका ने जापान में दो परमाणु बम गिरा दिये। १५ अगस्त १९४५ को एशिया में भी दूसरा विश्वयुद्ध समाप्त हो गया जब जापानी साम्राज्य ने आत्मसमर्पण करना स्वीकार कर लिया। .

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पहला विश्व युद्ध

पहला विश्व युद्ध 1914 से 1918 तक मुख्य तौर पर यूरोप में व्याप्त महायुद्ध को कहते हैं। यह महायुद्ध यूरोप, एशिया व अफ़्रीका तीन महाद्वीपों और समुंदर, धरती और आकाश में लड़ा गया। इसमें भाग लेने वाले देशों की संख्या, इसका क्षेत्र (जिसमें यह लड़ा गया) तथा इससे हुई क्षति के अभूतपूर्व आंकड़ों के कारण ही इसे विश्व युद्ध कहते हैं। पहला विश्व युद्ध लगभग 52 माह तक चला और उस समय की पीढ़ी के लिए यह जीवन की दृष्टि बदल देने वाला अनुभव था। क़रीब आधी दुनिया हिंसा की चपेट में चली गई और इस दौरान अंदाज़न एक करोड़ लोगों की जान गई और इससे दोगुने घायल हो गए। इसके अलावा बीमारियों और कुपोषण जैसी घटनाओं से भी लाखों लोग मरे। विश्व युद्ध ख़त्म होते-होते चार बड़े साम्राज्य रूस, जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी (हैप्सबर्ग) और उस्मानिया ढह गए। यूरोप की सीमाएँ फिर से निर्धारित हुई और अमेरिका निश्चित तौर पर एक 'महाशक्ति ' बन कर उभरा। .

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पहिया

पहिया (wheel) किसी भौतिक वस्तु में लगा हुआ एक गोल आकार का ऐसा अंश होता है जो अपने बीच में स्थित के खुले स्थान में किसी धुरी (ऐक्सल) पर टिका हुआ हो और घूम सके। मानव-कृत पहिये अक्सर वाहनों में नीचे लगे होते हैं जहाँ वह भार ढोने के साथ-साथ धरती पर लुड़क कर वाहन को चलाने का काम भी करते हैं। आधुनिक वाहनों में हवा से भरे रबर के पहिये होते हैं जो टायर कहलाते हैं। क्योंकि पहिये गति और समय की चाल का प्रतीक हैं इसलिये हिन्दू, बौद्ध, सिख व जैन धर्मों में इन्हें चिन्हों के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। .

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मशीन गन

एक अमेरिकी एम२-१ मशीन गन मशीन गन एक ऐसी बन्दूक है जो की स्वचालित रूप से एक के बाद कई गोलिया कई सो प्रति मिनट की रफ़्तार से एक साथ दाग सकती है। इन्हें मूल रूप से सब मशीन गन भी कहा जाता है। यह या तो किसी स्टैंड के उप्पर लगाके के व उस के सहयोग से प्रयोग में ली जाती है या इनके हलके प्रकार सीधे हाथ में लेकर प्रयोग में लिए जाते है। इसके लगातार गोली चलाने के दो तरीके है। कुछ मशीन गन सीधे पिस्टन का प्रयोग करती है व आजकल ज्यादातर गैस से स्वचालित पिस्टन का.

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युद्ध

वर्ष १९४५ में कोलोन युद्ध एक लंबे समय तक चलने वाला आक्रामक कृत्य है जो सामान्यतः राज्यों के बीच झगड़ों के आक्रामक और हथियारबंद लड़ाई में परिवर्तित होने से उत्पन्न होता है। .

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सेना

सन् १९०५ में कोहाट ज़िले, ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा में भारतीय सिख सैनिक सेना पर खर्च सेना पर सर्वाधिक खर्च करने वाले दस देश (२००७) सशस्त्र सैनिकों की संख्या सेना या फ़ौज किसी देश या उसके नागरिकों या फिर किसी शासन-व्यवस्था और उस से सम्बन्धित लोगों के हितों व ध्येयों को बढ़ाने और उनकी रक्षा के लिये घातक बल-प्रयोग की क्षमता रखने वाला सशस्त्र संगठन होता है। सेना का काम देश व नागरिकों की रक्षा, उनके शत्रुओं पर प्रहार करना और शत्रुओं के प्रहारों को खदेड़ देना होता है। अलग-अलग व्यस्थाओं में सेना की ज़िम्मेदारियाँ भी भिन्न हो सकती हैं। कुछ स्थनों व कालों में सेना का इस्तेमाल विषेश राजनैतिक विचारधाराओं को बढ़ावा देने, व्यापारिक हितों और कम्पनियों को लाभ कराने, जनसंख्या-वृद्धि को रोकने, इमारतों व सड़कों का निर्माण करने, आपातकालीन बच-बचाव करने, सामाजिक रीतियों में भाग लेने और विषेश स्थनों पर पहरा देने के लिये भी किया जाता रहा है। व्यावसायिक रूप से सैनिक बनने की परम्परा लिखित इतिहास से पुरानी है। .

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वाहन

वाहन वाहन का अर्थ होता है एक ऐसी मशीन जो यातायात ले लिये मनुष्यों या सामान-असबाब को ढो कर एक जगह से दूसरी जगह पहुँचा सके। .

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गोला

गोला गोला (sphere) वह ठोस है जिसमें केवल एक तल होता है और इसके तल का प्रत्येक बिन्दु एक निश्चित बिन्दु से समान दूरी पर होता है। इस बिन्दु को गोले का केन्द्र कहते हैं तथा केन्द्र से गोले के किसी बिन्दु की दूरी को गोले की त्रिज्या कहते हैं। उदाहरण के लिए, गेंद का आकार गोल होता है। .

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इंजन

चार-स्ट्रोक वाला आन्तरिक दहन इंजन आजकल अधिकांश कामों में इस्तेमाल होता है इंजन या मोटर उस यंत्र या मशीन (या उसके भाग) को कहते हैं जिसकी सहायता से किसी भी प्रकार की ऊर्जा का यांत्रिक ऊर्जा में रूपांतरण होता है। इंजन की इस यांत्रिक ऊर्जा का उपयोग, कार्य करने के लिए किया जाता है। अर्थात् इंजन रासायनिक ऊर्जा, विद्युत ऊर्जा, गतिज ऊर्जा या ऊष्मीय ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में बदलने का कार्य करता है। वर्तमान युग में अंतर्दहन इंजन तथा विद्युत मोटरों का अत्यन्त महत्व है। .

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अर्जुन टैंक

अर्जुन (संस्कृत में "अर्जुनः") एक तीसरी पीढ़ी का मुख्य युद्धक टैंक (एमबीटी) है। इसे भारतीय सेना के लिए भारत के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) द्वारा विकसित किया गया है। अर्जुन टैंक का नाम महाभारत के पात्र अर्जुन के नाम पर ही रखा गया है। अर्जुन टैंक में 120 मिमी में एक मेन राइफल्ड गन है जिसमें भारत में बने आर्मर-पेअरसिंग फिन-स्टेबलाइज़्ड डिस्कार्डिंग-सेबट एमुनीशन का प्रयोग किया जाता है। इसमें PKT 7.62 मिमी कोएक्सिल मशीन गन और NSVT 12.7 मिमी मशीन गन भी है। यह 1,400 हार्सपावर के एक एमटीयू बहु ईंधन डीजल इंजन द्वारा संचालित है। इसकी अधिकतम गति 67 किमी / घंटा (42 मील प्रति घंटा) और क्रॉस-कंट्री में 40 किमी / घंटा (25 मील प्रति घंटा) है। कमांडर, गनर, लोडर और चालक का एक चार सदस्यीय चालक दल इसे चलाता है। ऑटोमैटिक फायर डिटेक्शन और सप्रेशन और NBC प्रोटेक्शन सिस्टम्स इसमें शामिल किये गए हैं। नए कंचन आर्मर द्वारा ऑल-राउंड एंटी-टैंक वॉरहेड प्रोटेक्शन को और अधिक बढ़ाया गया है। इस आर्मर का थर्ड जनरेशन टैंक्स के आर्मर से अधिक प्रभावशाली होने का दावा भी किया गया है। बाद में, देरी और 1990 के दशक से 2000 के दशक तक इसके विकास में अन्य समस्याओं के कारण आर्मी ने रूस से टी -90 टैंकों को खरीदने का आदेश दिया ताकि उन आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके जिनकी अर्जुन से पूरा करने के लिए उम्मीद की गई थी। मार्च 2010 में, अर्जुन के तुलनात्मक परीक्षणों के लिए इसे टी -90 के खिलाफ खड़ा किया और इसने अच्छी तरह से प्रदर्शन किया। सेना ने 17 मई 2010 को 124 अर्जुन एमके 1 टैंक और 10 अगस्त 2010 को अतिरिक्त 124 अर्जुन एमके 2 टैंकों का ऑर्डर दिया। अर्जुन द्वारा 2004 में भारतीय सेना के साथ सेवा में प्रवेश किया गया। टैंक को पहले भारतीय सेना के आर्मर्ड कोर्स के 43 आर्मर्ड रेजीमेंट में शामिल किया गया, जबकि 12 मार्च 2011 को 75 आर्मर्ड रेजिमेंट में भी इसे शामिल किया गया। .

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