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चर परिवर्तन

सूची चर परिवर्तन

गणित में चर परिवर्तन (change of variables) एक मूलभूत तकनीक है जिसमें मूल चर को किसी अन्य चर के किसी उपयुक्त फलन द्वारा प्रतिस्थापित किया जाता है। लक्ष्य यह होता है कि नए चर के आने से समस्या का हल सरल हो जाता है। उदाहरण के लिए, समाकलन करने के लिए प्रतिस्थापन द्वारा समाकलन विधि का प्रयोग लिया जाता है जो चर परिवर्तन ही है। .

6 संबंधों: त्रिकोणमितीय प्रतिस्थापन, द्विघात समीकरण, प्रतिस्थापन द्वारा समाकलन, समाकलन, वास्तविक संख्या, गणित

त्रिकोणमितीय प्रतिस्थापन

गणित के सन्दर्भ में, त्रिकोणमितीय प्रतिस्थापन (Trigonometric substitution) का अर्थ है, गैर-त्रिकोणमितीय फलनों के स्थान पर त्रिकोणमितीय फलनों को स्थापित करना। इनके उपयोग से कुछ समाकल सरल हो जाते हैं। प्रतिस्थापन 1. यदि समाकल्य (integrand) में a2 − x2 हो तो, रखें और यह सर्वसमिका प्रयोग करें- प्रतिस्थापन 2. If the integrand contains a2 + x2, let and use the identity 1+\tan^2 \theta .

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द्विघात समीकरण

वर्ग समीकरण x^2 -5 x + 6 .

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प्रतिस्थापन द्वारा समाकलन

कैलकुलस में प्रतिस्थापन द्वारा समाकलन (Integration by substitution), समाकलन की एक प्रमुख विधि है। वस्तुतः यह अवकलन के शृंखला नियम का उल्टा (counterpart) है। .

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समाकलन

किसी फलन का निश्चित समाकल (definite integral) उस फलन के ग्राफ से घिरे क्षेत्र का चिह्नसहित क्षेत्रफल द्वारा निरूपित किया जा सकता है। समाकलन (जर्मन; अंग्रेज़ी; स्पेनिश; पुर्तगाली: Integral) यह एक विशेष प्रकार की योग क्रिया है जिसमें अत्यणु (infinitesimal) मान वाली किन्तु गिनती में अत्यधिक चर राशियों को जोड़ा जाता है। इसका एक प्रमुख उपयोग वक्राकार क्षेत्रों का क्षेत्रफल निकालने में होता है। समाकलन को अवकलन की व्युत्क्रम संक्रिया की तरह भी समझा जा सकता है। .

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वास्तविक संख्या

गणित में, वास्तविक संख्या सरल रेखा के अनुदिश किसी राशी को प्रस्तुत करने वाला मान है। वास्तविक संख्याओं में सभी परिमेय संख्यायें जैसे -5 एवं भिन्नात्मक संख्यायें जैसे 4/3 और सभी अपरिमेय संख्यायें जैसे √2 (1.41421356…, 2 का वर्गमूल, एक अप्रिमेय बीजीय संख्या) शामिल हैं। वास्तविक संख्याओं में अप्रिमेय संख्याओं को शामिल करने से इन्हें वास्तविक संख्या रेखा के रूप में एक रेखा पर निरुपित किये जा सकने वाले अनन्त बिन्दुओं से प्रस्तुत किया जा सकता है। श्रेणी:गणित *.

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गणित

पुणे में आर्यभट की मूर्ति ४७६-५५० गणित ऐसी विद्याओं का समूह है जो संख्याओं, मात्राओं, परिमाणों, रूपों और उनके आपसी रिश्तों, गुण, स्वभाव इत्यादि का अध्ययन करती हैं। गणित एक अमूर्त या निराकार (abstract) और निगमनात्मक प्रणाली है। गणित की कई शाखाएँ हैं: अंकगणित, रेखागणित, त्रिकोणमिति, सांख्यिकी, बीजगणित, कलन, इत्यादि। गणित में अभ्यस्त व्यक्ति या खोज करने वाले वैज्ञानिक को गणितज्ञ कहते हैं। बीसवीं शताब्दी के प्रख्यात ब्रिटिश गणितज्ञ और दार्शनिक बर्टेंड रसेल के अनुसार ‘‘गणित को एक ऐसे विषय के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें हम जानते ही नहीं कि हम क्या कह रहे हैं, न ही हमें यह पता होता है कि जो हम कह रहे हैं वह सत्य भी है या नहीं।’’ गणित कुछ अमूर्त धारणाओं एवं नियमों का संकलन मात्र ही नहीं है, बल्कि दैनंदिन जीवन का मूलाधार है। .

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