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घृष्णेश्वर मन्दिर और मालोजी भोंसले

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

घृष्णेश्वर मन्दिर और मालोजी भोंसले के बीच अंतर

घृष्णेश्वर मन्दिर vs. मालोजी भोंसले

महाराष्ट्र में औरंगाबाद के नजदीक दौलताबाद से 11 किलोमीटर दूर घृष्‍णेश्‍वर महादेव का मंदिर स्थित है। यह बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। कुछ लोग इसे घुश्मेश्वर के नाम से भी पुकारते हैं। बौद्ध भिक्षुओं द्वारा निर्मित एलोरा की प्रसिद्ध गुफाएँ इस मंदिर के समीप ही स्थित हैं। इस मंदिर का निर्माण देवी अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था। शहर से दूर स्थित यह मंदिर सादगी से परिपूर्ण है। द्वादश ज्योतिर्लिंगों में यह अंतिम ज्योतिर्लिंग है। इसे घुश्मेश्वर, घुसृणेश्वर या घृष्णेश्वर भी कहा जाता है। यह महाराष्ट्र प्रदेश में दौलताबाद से बारह मीर दूर वेरुलगाँव के पास स्थित है। . मालोजी भोंसले (लगभग १५५०-१६२० ई०) शाहजी के पिता तथा ख्यातिलब्ध छत्रपति शिवाजी के पितामह थे। मालोजी के पिता का नाम बाबाजी भोंसले था जो वेरूल के निवासी थे। उनका विवाह मराठा अभिजात वंश में उत्पन्न बनगोजी नामक निंबालकर की बहिन दीपाबाई से हुआ था। २७ वर्ष की अवस्था में वे सिंधखेड के लखू जी यादव के अधीन, जो अहमदनगर के निजामशाही राज में उच्च पदाधिकारी थे, एक पद पर नियुक्त हो गए। सौभाग्य से मालोजी को अकस्मात् एक स्थान पर गड़ा हुआ धन प्राप्त हो गया। जिससे उन्होंने अपनी सेना में बहुत से युवक सिलहदारों को भरती कर लिया। अपने साहस, वीरता और सैनिक पराक्रम से उन्होंने यथेष्ट ख्याति अर्जित कर ली और समाज में अपने पुराने स्वामी लखूजी जादव के समकक्ष स्थान प्राप्त कर लिया। अब उन्होंने लखू जी से अनुरोध किया कि वे अपनी पुत्री जीजाबाई का विवाह उनके पुत्र शाहजी से कर दें। इसका प्रस्ताव उन्होंने एक बार पहले भी किया था किंतु उस समय लखूजी ने उसे ठुकरा दिया था, पर अब उन्हें प्रतिष्ठित स्थिति में देखकर लखूजी ने सहर्ष इसकी स्वीकृति दे दी। निजामशाही वंश को कुछ सीमा तक पुनरधिष्ठित कराने में मालोजी ने प्रसिद्ध सेनानी और राजनेता मलिक अंबर की सहायता की, जिसके बदले में उन्हें दौलताबाद तथा पूना के बीच में स्थित कुछ क्षेत्र जागीर के रूप में भेंट कर दिए गए। उन्होंने वेरूल के धृष्णेश्वर मंदिर का जीर्णोद्वार कराया, जैसा एक अभिलेख से प्रकट होता है। उन्होंने खानदेश में शिंगनपुर नामक स्थान पर एक तालाब बनवाया जिससे वहाँ के निवासियों को यथेष्ट मात्रा में पेय जल की उपलब्धि हो सके। श्रेणी:भारत के शासक श्रेणी:भारत का इतिहास.

घृष्णेश्वर मन्दिर और मालोजी भोंसले के बीच समानता

घृष्णेश्वर मन्दिर और मालोजी भोंसले आम में 4 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): एलोरा गुफाएं, दौलताबाद, शिवाजी, घृष्णेश्वर मन्दिर

एलोरा गुफाएं

एलोरा या एल्लोरा (मूल नाम वेरुल) एक पुरातात्विक स्थल है, जो भारत में औरंगाबाद, महाराष्ट्र से 30 कि॰मि॰ (18.6 मील) की दूरी पर स्थित है। इन्हें राष्ट्रकूट वंश के शासकों द्वारा बनवाया गया था। अपनी स्मारक गुफाओं के लिए प्रसिद्ध, एलोरा युनेस्को द्वारा घोषित एक विश्व धरोहर स्थल है। एलोरा भारतीय पाषाण शिल्प स्थापत्य कला का सार है, यहाँ 34 "गुफ़ाएँ" हैं जो असल में एक ऊर्ध्वाधर खड़ी चरणाद्रि पर्वत का एक फ़लक है। इसमें हिन्दू, बौद्ध और जैन गुफ़ा मन्दिर बने हैं। ये पाँचवीं और दसवीं शताब्दी में बने थे। यहाँ 12 बौद्ध गुफ़ाएँ (1-12), 17 हिन्दू गुफ़ाएँ (13-29) और 5 जैन गुफ़ाएँ (30-34) हैं। ये सभी आस-पास बनीं हैं और अपने निर्माण काल की धार्मिक सौहार्द को दर्शाती हैं। एलोरा के 34 मठ और मंदिर औरंगाबाद के निकट 2 कि॰मि॰ के क्षेत्र में फैले हैं, इन्हें ऊँची बेसाल्ट की खड़ी चट्टानों की दीवारों को काट कर बनाया गया हैं। दुर्गम पहाड़ियों वाला एलोरा 600 से 1000 ईसवी के काल का है, यह प्राचीन भारतीय सभ्यता का जीवन्त प्रदर्शन करता है। बौद्ध, हिन्दू और जैन धर्म को भी समर्पित पवित्र स्थान एलोरा परिसर न केवल अद्वितीय कलात्मक सृजन और एक तकनीकी उत्कृष्टता है, बल्कि यह प्राचीन भारत के धैर्यवान चरित्र की व्याख्या भी करता है। यह यूनेस्को की विश्व विरासत में शामिल है। .

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दौलताबाद

देवगिरि दुर्ग तथा चाँद मीनार दौलताबाद महाराष्ट्र का एक नगर है। इसका प्राचीन नाम देवगिरि है।। मुहम्म्द बिन तुगलक़ की राजधानी। यह औरंगाबाद जिले में स्थित है। यह शहर हमेशा शक्‍तिशाली बादशाहों के बहन लिए आकर्षण का केंद्र साबित हुआ है। दौलताबाद की सामरिक स्थिति बहुत ही महत्‍वपूर्ण थी। यह उत्तर और दक्षिण भारत के मध्‍य में पड़ता था। यहां से पूरे भारत पर शासन किया जा सकता था। इसी कारणवश बादशाह मुहम्‍मद बिन तुगलक ने इसे अपनी राजधानी बनाया था। उसने दिल्‍ली की समस्‍त जनता को दौलताबाद चलने का आदेश दिया था। लेकिन वहां की खराब स्थिति तथा आम लोगों की तकलीफों के कारण उसे कुछ वर्षों बाद राजधानी पुन: दिल्‍ली लानी पड़ी।बहन .

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शिवाजी

छत्रपति शिवाजी महाराज या शिवाजी राजे भोसले (१६३० - १६८०) भारत के महान योद्धा एवं रणनीतिकार थे जिन्होंने १६७४ में पश्चिम भारत में मराठा साम्राज्य की नींव रखी। उन्होंने कई वर्ष औरंगज़ेब के मुगल साम्राज्य से संघर्ष किया। सन १६७४ में रायगढ़ में उनका राज्याभिषेक हुआ और छत्रपति बने। शिवाजी महाराज ने अपनी अनुशासित सेना एवं सुसंगठित प्रशासनिक इकाइयों की सहायता से एक योग्य एवं प्रगतिशील प्रशासन प्रदान किया। उन्होंने समर-विद्या में अनेक नवाचार किये तथा छापामार युद्ध (Gorilla War) की नयी शैली (शिवसूत्र) विकसित की। उन्होंने प्राचीन हिन्दू राजनीतिक प्रथाओं तथा दरबारी शिष्टाचारों को पुनर्जीवित किया और फारसी के स्थान पर मराठी एवं संस्कृत को राजकाज की भाषा बनाया। भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में बहुत से लोगों ने शिवाजी के जीवनचरित से प्रेरणा लेकर भारत की स्वतन्त्रता के लिये अपना तन, मन धन न्यौछावर कर दिया। .

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घृष्णेश्वर मन्दिर

महाराष्ट्र में औरंगाबाद के नजदीक दौलताबाद से 11 किलोमीटर दूर घृष्‍णेश्‍वर महादेव का मंदिर स्थित है। यह बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। कुछ लोग इसे घुश्मेश्वर के नाम से भी पुकारते हैं। बौद्ध भिक्षुओं द्वारा निर्मित एलोरा की प्रसिद्ध गुफाएँ इस मंदिर के समीप ही स्थित हैं। इस मंदिर का निर्माण देवी अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था। शहर से दूर स्थित यह मंदिर सादगी से परिपूर्ण है। द्वादश ज्योतिर्लिंगों में यह अंतिम ज्योतिर्लिंग है। इसे घुश्मेश्वर, घुसृणेश्वर या घृष्णेश्वर भी कहा जाता है। यह महाराष्ट्र प्रदेश में दौलताबाद से बारह मीर दूर वेरुलगाँव के पास स्थित है। .

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घृष्णेश्वर मन्दिर और मालोजी भोंसले के बीच तुलना

घृष्णेश्वर मन्दिर 9 संबंध है और मालोजी भोंसले 8 है। वे आम 4 में है, समानता सूचकांक 23.53% है = 4 / (9 + 8)।

संदर्भ

यह लेख घृष्णेश्वर मन्दिर और मालोजी भोंसले के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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