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घनानन्द और रस (काव्य शास्त्र)

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

घनानन्द और रस (काव्य शास्त्र) के बीच अंतर

घनानन्द vs. रस (काव्य शास्त्र)

घनानंद की काव्य रचनाओं का अंग्रेज़ी अनुवाद घनानंद (१६७३- १७६०) रीतिकाल की तीन प्रमुख काव्यधाराओं- रीतिबद्ध, रीतिसिद्ध और रीतिमुक्त के अंतिम काव्यधारा के अग्रणी कवि हैं। ये 'आनंदघन' नाम स भी प्रसिद्ध हैं। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने रीतिमुक्त घनानन्द का समय सं. श्रव्य काव्य के पठन अथवा श्रवण एवं दृश्य काव्य के दर्शन तथा श्रवण में जो अलौकिक आनन्द प्राप्त होता है, वही काव्य में रस कहलाता है। रस से जिस भाव की अनुभूति होती है वह रस का स्थायी भाव होता है। रस, छंद और अलंकार - काव्य रचना के आवश्यक अवयव हैं। रस का शाब्दिक अर्थ है - निचोड़। काव्य में जो आनन्द आता है वह ही काव्य का रस है। काव्य में आने वाला आनन्द अर्थात् रस लौकिक न होकर अलौकिक होता है। रस काव्य की आत्मा है। संस्कृत में कहा गया है कि "रसात्मकम् वाक्यम् काव्यम्" अर्थात् रसयुक्त वाक्य ही काव्य है। रस अन्त:करण की वह शक्ति है, जिसके कारण इन्द्रियाँ अपना कार्य करती हैं, मन कल्पना करता है, स्वप्न की स्मृति रहती है। रस आनंद रूप है और यही आनंद विशाल का, विराट का अनुभव भी है। यही आनंद अन्य सभी अनुभवों का अतिक्रमण भी है। आदमी इन्द्रियों पर संयम करता है, तो विषयों से अपने आप हट जाता है। परंतु उन विषयों के प्रति लगाव नहीं छूटता। रस का प्रयोग सार तत्त्व के अर्थ में चरक, सुश्रुत में मिलता है। दूसरे अर्थ में, अवयव तत्त्व के रूप में मिलता है। सब कुछ नष्ट हो जाय, व्यर्थ हो जाय पर जो भाव रूप तथा वस्तु रूप में बचा रहे, वही रस है। रस के रूप में जिसकी निष्पत्ति होती है, वह भाव ही है। जब रस बन जाता है, तो भाव नहीं रहता। केवल रस रहता है। उसकी भावता अपना रूपांतर कर लेती है। रस अपूर्व की उत्पत्ति है। नाट्य की प्रस्तुति में सब कुछ पहले से दिया रहता है, ज्ञात रहता है, सुना हुआ या देखा हुआ होता है। इसके बावजूद कुछ नया अनुभव मिलता है। वह अनुभव दूसरे अनुभवों को पीछे छोड़ देता है। अकेले एक शिखर पर पहुँचा देता है। रस का यह अपूर्व रूप अप्रमेय और अनिर्वचनीय है। .

घनानन्द और रस (काव्य शास्त्र) के बीच समानता

घनानन्द और रस (काव्य शास्त्र) आम में 3 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): रस (काव्य शास्त्र), रामचन्द्र शुक्ल, शृंगार रस

रस (काव्य शास्त्र)

श्रव्य काव्य के पठन अथवा श्रवण एवं दृश्य काव्य के दर्शन तथा श्रवण में जो अलौकिक आनन्द प्राप्त होता है, वही काव्य में रस कहलाता है। रस से जिस भाव की अनुभूति होती है वह रस का स्थायी भाव होता है। रस, छंद और अलंकार - काव्य रचना के आवश्यक अवयव हैं। रस का शाब्दिक अर्थ है - निचोड़। काव्य में जो आनन्द आता है वह ही काव्य का रस है। काव्य में आने वाला आनन्द अर्थात् रस लौकिक न होकर अलौकिक होता है। रस काव्य की आत्मा है। संस्कृत में कहा गया है कि "रसात्मकम् वाक्यम् काव्यम्" अर्थात् रसयुक्त वाक्य ही काव्य है। रस अन्त:करण की वह शक्ति है, जिसके कारण इन्द्रियाँ अपना कार्य करती हैं, मन कल्पना करता है, स्वप्न की स्मृति रहती है। रस आनंद रूप है और यही आनंद विशाल का, विराट का अनुभव भी है। यही आनंद अन्य सभी अनुभवों का अतिक्रमण भी है। आदमी इन्द्रियों पर संयम करता है, तो विषयों से अपने आप हट जाता है। परंतु उन विषयों के प्रति लगाव नहीं छूटता। रस का प्रयोग सार तत्त्व के अर्थ में चरक, सुश्रुत में मिलता है। दूसरे अर्थ में, अवयव तत्त्व के रूप में मिलता है। सब कुछ नष्ट हो जाय, व्यर्थ हो जाय पर जो भाव रूप तथा वस्तु रूप में बचा रहे, वही रस है। रस के रूप में जिसकी निष्पत्ति होती है, वह भाव ही है। जब रस बन जाता है, तो भाव नहीं रहता। केवल रस रहता है। उसकी भावता अपना रूपांतर कर लेती है। रस अपूर्व की उत्पत्ति है। नाट्य की प्रस्तुति में सब कुछ पहले से दिया रहता है, ज्ञात रहता है, सुना हुआ या देखा हुआ होता है। इसके बावजूद कुछ नया अनुभव मिलता है। वह अनुभव दूसरे अनुभवों को पीछे छोड़ देता है। अकेले एक शिखर पर पहुँचा देता है। रस का यह अपूर्व रूप अप्रमेय और अनिर्वचनीय है। .

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रामचन्द्र शुक्ल

आचार्य रामचंद्र शुक्ल (४ अक्टूबर, १८८४- २ फरवरी, १९४१) हिन्दी आलोचक, निबन्धकार, साहित्येतिहासकार, कोशकार, अनुवादक, कथाकार और कवि थे। उनके द्वारा लिखी गई सर्वाधिक महत्वपूर्ण पुस्तक है हिन्दी साहित्य का इतिहास, जिसके द्वारा आज भी काल निर्धारण एवं पाठ्यक्रम निर्माण में सहायता ली जाती है। हिंदी में पाठ आधारित वैज्ञानिक आलोचना का सूत्रपात उन्हीं के द्वारा हुआ। हिन्दी निबन्ध के क्षेत्र में भी शुक्ल जी का महत्वपूर्ण योगदान है। भाव, मनोविकार संबंधित मनोविश्लेषणात्मक निबंध उनके प्रमुख हस्ताक्षर हैं। शुक्ल जी ने इतिहास लेखन में रचनाकार के जीवन और पाठ को समान महत्व दिया। उन्होंने प्रासंगिकता के दृष्टिकोण से साहित्यिक प्रत्ययों एवं रस आदि की पुनर्व्याख्या की। .

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शृंगार रस

श्रृंगार रस रसों में से एक प्रमुख रस है। यह रति भाव को दर्शाता है। .

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घनानन्द और रस (काव्य शास्त्र) के बीच तुलना

घनानन्द 28 संबंध है और रस (काव्य शास्त्र) 65 है। वे आम 3 में है, समानता सूचकांक 3.23% है = 3 / (28 + 65)।

संदर्भ

यह लेख घनानन्द और रस (काव्य शास्त्र) के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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