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ग्रहीय मण्डल और सौर मण्डल

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

ग्रहीय मण्डल और सौर मण्डल के बीच अंतर

ग्रहीय मण्डल vs. सौर मण्डल

एक काल्पनिक ग्रहीय मण्डल एक और काल्पनिक ग्रहीय मण्डल का नज़दीकी दृश्य - इसमें पत्थर, गैस और धूल अपने तारे के इर्द-गिर्द परिक्रमा कर रहें हैं ग्रहीय मण्डल किसी तारे के इर्द गिर्द परिक्रमा करते हुई उन खगोलीय वस्तुओं के समूह को कहा जाता है जो अन्य तारे न हों, जैसे की ग्रह, बौने ग्रह, प्राकृतिक उपग्रह, क्षुद्रग्रह, उल्का, धूमकेतु और खगोलीय धूल। हमारे सूरज और उसके ग्रहीय मण्डल को मिलाकर हमारा सौर मण्डल बनता है। . सौर मंडल में सूर्य और वह खगोलीय पिंड सम्मलित हैं, जो इस मंडल में एक दूसरे से गुरुत्वाकर्षण बल द्वारा बंधे हैं। किसी तारे के इर्द गिर्द परिक्रमा करते हुई उन खगोलीय वस्तुओं के समूह को ग्रहीय मण्डल कहा जाता है जो अन्य तारे न हों, जैसे की ग्रह, बौने ग्रह, प्राकृतिक उपग्रह, क्षुद्रग्रह, उल्का, धूमकेतु और खगोलीय धूल। हमारे सूरज और उसके ग्रहीय मण्डल को मिलाकर हमारा सौर मण्डल बनता है। इन पिंडों में आठ ग्रह, उनके 166 ज्ञात उपग्रह, पाँच बौने ग्रह और अरबों छोटे पिंड शामिल हैं। इन छोटे पिंडों में क्षुद्रग्रह, बर्फ़ीला काइपर घेरा के पिंड, धूमकेतु, उल्कायें और ग्रहों के बीच की धूल शामिल हैं। सौर मंडल के चार छोटे आंतरिक ग्रह बुध, शुक्र, पृथ्वी और मंगल ग्रह जिन्हें स्थलीय ग्रह कहा जाता है, मुख्यतया पत्थर और धातु से बने हैं। और इसमें क्षुद्रग्रह घेरा, चार विशाल गैस से बने बाहरी गैस दानव ग्रह, काइपर घेरा और बिखरा चक्र शामिल हैं। काल्पनिक और्ट बादल भी सनदी क्षेत्रों से लगभग एक हजार गुना दूरी से परे मौजूद हो सकता है। सूर्य से होने वाला प्लाज़्मा का प्रवाह (सौर हवा) सौर मंडल को भेदता है। यह तारे के बीच के माध्यम में एक बुलबुला बनाता है जिसे हेलिओमंडल कहते हैं, जो इससे बाहर फैल कर बिखरी हुई तश्तरी के बीच तक जाता है। .

ग्रहीय मण्डल और सौर मण्डल के बीच समानता

ग्रहीय मण्डल और सौर मण्डल आम में 16 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): चन्द्रमा, तारा, धूमकेतु, प्राकृतिक उपग्रह, पृथ्वी, बौना ग्रह, मंगल, सूर्य, खगोलीय धूल, खगोलीय वस्तु, गुरुत्वाकर्षण, ग्रह, आणविक बादल, आदिग्रह चक्र, क्षुद्रग्रह, उल्का

चन्द्रमा

कोई विवरण नहीं।

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तारा

तारे (Stars) स्वयंप्रकाशित (self-luminous) उष्ण गैस की द्रव्यमात्रा से भरपूर विशाल, खगोलीय पिंड हैं। इनका निजी गुरुत्वाकर्षण (gravitation) इनके द्रव्य को संघटित रखता है। मेघरहित आकाश में रात्रि के समय प्रकाश के बिंदुओं की तरह बिखरे हुए, टिमटिमाते प्रकाशवाले बहुत से तारे दिखलाई देते हैं। .

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धूमकेतु

हेल-बॉप धुमकेतू २९ मार्च १९९७ में पेजिन, क्रोएशिया में देखा गया धूमकेतु सौरमण्डलीय निकाय है जो पत्थर, धूल, बर्फ और गैस के बने हुए छोटे-छोटे खण्ड होते है। यह ग्रहो के समान सूर्य की परिक्रमा करते है। छोटे पथ वाले धूमकेतु सूर्य की परिक्रमा एक अण्डाकार पथ में लगभग ६ से २०० वर्ष में पूरी करते है। कुछ धूमकेतु का पथ वलयाकार होता है और वो मात्र एक बार ही दिखाई देते है। लम्बे पथ वाले धूमकेतु एक परिक्रमा करने में हजारों वर्ष लगाते है। अधिकतर धूमकेतु बर्फ, कार्बन डाईऑक्साइड, मीथेन, अमोनिया तथा अन्य पदार्थ जैसे सिलिकेट और कार्बनिक मिश्रण के बने होते है। .

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प्राकृतिक उपग्रह

टाइटन) इतना बड़ा है के उसका अपना वायु मण्डल है - आकारों की तुलना के लिए पृथ्वी भी दिखाई गई है प्राकृतिक उपग्रह या चन्द्रमा ऐसी खगोलीय वस्तु को कहा जाता है जो किसी ग्रह, क्षुद्रग्रह या अन्य वस्तु के इर्द-गिर्द परिक्रमा करता हो। जुलाई २००९ तक हमारे सौर मण्डल में ३३६ वस्तुओं को इस श्रेणी में पाया गया था, जिसमें से १६८ ग्रहों की, ६ बौने ग्रहों की, १०४ क्षुद्रग्रहों की और ५८ वरुण (नॅप्ट्यून) से आगे पाई जाने वाली बड़ी वस्तुओं की परिक्रमा कर रहे थे। क़रीब १५० अतिरिक्त वस्तुएँ शनि के उपग्रही छल्लों में भी देखी गई हैं लेकिन यह ठीक से अंदाज़ा नहीं लग पाया है के वे शनि की उपग्रहों की तरह परिक्रमा कर रही हैं या नहीं। हमारे सौर मण्डल से बाहर मिले ग्रहों के इर्द-गिर्द अभी कोई उपग्रह नहीं मिला है लेकिन वैज्ञानिकों का विशवास है के ऐसे उपग्रह भी बड़ी संख्या में ज़रूर मौजूद होंगे। जो उपग्रह बड़े होते हैं वे अपने अधिक गुरुत्वाकर्षण की वजह से अन्दर खिचकर गोल अकार के हो जाते हैं, जबकि छोटे चन्द्रमा टेढ़े-मेढ़े भी होते हैं (जैसे मंगल के उपग्रह - फ़ोबस और डाइमस)। .

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पृथ्वी

पृथ्वी, (अंग्रेज़ी: "अर्थ"(Earth), लातिन:"टेरा"(Terra)) जिसे विश्व (The World) भी कहा जाता है, सूर्य से तीसरा ग्रह और ज्ञात ब्रह्माण्ड में एकमात्र ग्रह है जहाँ जीवन उपस्थित है। यह सौर मंडल में सबसे घना और चार स्थलीय ग्रहों में सबसे बड़ा ग्रह है। रेडियोधर्मी डेटिंग और साक्ष्य के अन्य स्रोतों के अनुसार, पृथ्वी की आयु लगभग 4.54 बिलियन साल हैं। पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण, अंतरिक्ष में अन्य पिण्ड के साथ परस्पर प्रभावित रहती है, विशेष रूप से सूर्य और चंद्रमा से, जोकि पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह हैं। सूर्य के चारों ओर परिक्रमण के दौरान, पृथ्वी अपनी कक्षा में 365 बार घूमती है; इस प्रकार, पृथ्वी का एक वर्ष लगभग 365.26 दिन लंबा होता है। पृथ्वी के परिक्रमण के दौरान इसके धुरी में झुकाव होता है, जिसके कारण ही ग्रह की सतह पर मौसमी विविधताये (ऋतुएँ) पाई जाती हैं। पृथ्वी और चंद्रमा के बीच गुरुत्वाकर्षण के कारण समुद्र में ज्वार-भाटे आते है, यह पृथ्वी को इसकी अपनी अक्ष पर स्थिर करता है, तथा इसकी परिक्रमण को धीमा कर देता है। पृथ्वी न केवल मानव (human) का अपितु अन्य लाखों प्रजातियों (species) का भी घर है और साथ ही ब्रह्मांड में एकमात्र वह स्थान है जहाँ जीवन (life) का अस्तित्व पाया जाता है। इसकी सतह पर जीवन का प्रस्फुटन लगभग एक अरब वर्ष पहले प्रकट हुआ। पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के लिये आदर्श दशाएँ (जैसे सूर्य से सटीक दूरी इत्यादि) न केवल पहले से उपलब्ध थी बल्कि जीवन की उत्पत्ति के बाद से विकास क्रम में जीवधारियों ने इस ग्रह के वायुमंडल (the atmosphere) और अन्य अजैवकीय (abiotic) परिस्थितियों को भी बदला है और इसके पर्यावरण को वर्तमान रूप दिया है। पृथ्वी के वायुमंडल में आक्सीजन की वर्तमान प्रचुरता वस्तुतः जीवन की उत्पत्ति का कारण नहीं बल्कि परिणाम भी है। जीवधारी और वायुमंडल दोनों अन्योन्याश्रय के संबंध द्वारा विकसित हुए हैं। पृथ्वी पर श्वशनजीवी जीवों (aerobic organisms) के प्रसारण के साथ ओजोन परत (ozone layer) का निर्माण हुआ जो पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र (Earth's magnetic field) के साथ हानिकारक विकिरण को रोकने वाली दूसरी परत बनती है और इस प्रकार पृथ्वी पर जीवन की अनुमति देता है। पृथ्वी का भूपटल (outer surface) कई कठोर खंडों या विवर्तनिक प्लेटों में विभाजित है जो भूगर्भिक इतिहास (geological history) के दौरान एक स्थान से दूसरे स्थान को विस्थापित हुए हैं। क्षेत्रफल की दृष्टि से धरातल का करीब ७१% नमकीन जल (salt-water) के सागर से आच्छादित है, शेष में महाद्वीप और द्वीप; तथा मीठे पानी की झीलें इत्यादि अवस्थित हैं। पानी सभी ज्ञात जीवन के लिए आवश्यक है जिसका अन्य किसी ब्रह्मांडीय पिण्ड के सतह पर अस्तित्व ज्ञात नही है। पृथ्वी की आतंरिक रचना तीन प्रमुख परतों में हुई है भूपटल, भूप्रावार और क्रोड। इसमें से बाह्य क्रोड तरल अवस्था में है और एक ठोस लोहे और निकल के आतंरिक कोर (inner core) के साथ क्रिया करके पृथ्वी मे चुंबकत्व या चुंबकीय क्षेत्र को पैदा करता है। पृथ्वी बाह्य अंतरिक्ष (outer space), में सूर्य और चंद्रमा समेत अन्य वस्तुओं के साथ क्रिया करता है वर्तमान में, पृथ्वी मोटे तौर पर अपनी धुरी का करीब ३६६.२६ बार चक्कर काटती है यह समय की लंबाई एक नाक्षत्र वर्ष (sidereal year) है जो ३६५.२६ सौर दिवस (solar day) के बराबर है पृथ्वी की घूर्णन की धुरी इसके कक्षीय समतल (orbital plane) से लम्बवत (perpendicular) २३.४ की दूरी पर झुका (tilted) है जो एक उष्णकटिबंधीय वर्ष (tropical year) (३६५.२४ सौर दिनों में) की अवधी में ग्रह की सतह पर मौसमी विविधता पैदा करता है। पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह चंद्रमा (natural satellite) है, जिसने इसकी परिक्रमा ४.५३ बिलियन साल पहले शुरू की। यह अपनी आकर्षण शक्ति द्वारा समुद्री ज्वार पैदा करता है, धुरिय झुकाव को स्थिर रखता है और धीरे-धीरे पृथ्वी के घूर्णन को धीमा करता है। ग्रह के प्रारंभिक इतिहास के दौरान एक धूमकेतु की बमबारी ने महासागरों के गठन में भूमिका निभाया। बाद में छुद्रग्रह (asteroid) के प्रभाव ने सतह के पर्यावरण पर महत्वपूर्ण बदलाव किया। .

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बौना ग्रह

हउमेया और उसके उपग्रहों (हिइआका और नामाका) का काल्पनिक चित्रण माकेमाके का काल्पनिक चित्रण डिस्नोमिया की तस्वीर हमारे सौरमण्डल में पाँच ज्ञात बौने ग्रह है: १) यम (प्लूटो) २) सीरीस ३) हउमेया ४) माकेमाके ५) ऍरिस श्रेणी:सौर मंडल श्रेणी:बौने ग्रह.

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मंगल

यदि आपका मतलब कुछ और था तो यहां जाएं -मंगल (बहुविकल्पी) मंगल का अर्थ होता है शुभ, पावन, कुशल इत्यादि। .

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सूर्य

सूर्य अथवा सूरज सौरमंडल के केन्द्र में स्थित एक तारा जिसके चारों तरफ पृथ्वी और सौरमंडल के अन्य अवयव घूमते हैं। सूर्य हमारे सौर मंडल का सबसे बड़ा पिंड है और उसका व्यास लगभग १३ लाख ९० हज़ार किलोमीटर है जो पृथ्वी से लगभग १०९ गुना अधिक है। ऊर्जा का यह शक्तिशाली भंडार मुख्य रूप से हाइड्रोजन और हीलियम गैसों का एक विशाल गोला है। परमाणु विलय की प्रक्रिया द्वारा सूर्य अपने केंद्र में ऊर्जा पैदा करता है। सूर्य से निकली ऊर्जा का छोटा सा भाग ही पृथ्वी पर पहुँचता है जिसमें से १५ प्रतिशत अंतरिक्ष में परावर्तित हो जाता है, ३० प्रतिशत पानी को भाप बनाने में काम आता है और बहुत सी ऊर्जा पेड़-पौधे समुद्र सोख लेते हैं। इसकी मजबूत गुरुत्वाकर्षण शक्ति विभिन्न कक्षाओं में घूमते हुए पृथ्वी और अन्य ग्रहों को इसकी तरफ खींच कर रखती है। सूर्य से पृथ्वी की औसत दूरी लगभग १४,९६,००,००० किलोमीटर या ९,२९,६०,००० मील है तथा सूर्य से पृथ्वी पर प्रकाश को आने में ८.३ मिनट का समय लगता है। इसी प्रकाशीय ऊर्जा से प्रकाश-संश्लेषण नामक एक महत्वपूर्ण जैव-रासायनिक अभिक्रिया होती है जो पृथ्वी पर जीवन का आधार है। यह पृथ्वी के जलवायु और मौसम को प्रभावित करता है। सूर्य की सतह का निर्माण हाइड्रोजन, हिलियम, लोहा, निकेल, ऑक्सीजन, सिलिकन, सल्फर, मैग्निसियम, कार्बन, नियोन, कैल्सियम, क्रोमियम तत्वों से हुआ है। इनमें से हाइड्रोजन सूर्य के सतह की मात्रा का ७४ % तथा हिलियम २४ % है। इस जलते हुए गैसीय पिंड को दूरदर्शी यंत्र से देखने पर इसकी सतह पर छोटे-बड़े धब्बे दिखलाई पड़ते हैं। इन्हें सौर कलंक कहा जाता है। ये कलंक अपने स्थान से सरकते हुए दिखाई पड़ते हैं। इससे वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला है कि सूर्य पूरब से पश्चिम की ओर २७ दिनों में अपने अक्ष पर एक परिक्रमा करता है। जिस प्रकार पृथ्वी और अन्य ग्रह सूरज की परिक्रमा करते हैं उसी प्रकार सूरज भी आकाश गंगा के केन्द्र की परिक्रमा करता है। इसको परिक्रमा करनें में २२ से २५ करोड़ वर्ष लगते हैं, इसे एक निहारिका वर्ष भी कहते हैं। इसके परिक्रमा करने की गति २५१ किलोमीटर प्रति सेकेंड है। Barnhart, Robert K. (1995) The Barnhart Concise Dictionary of Etymology, page 776.

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खगोलीय धूल

खगोलीय धूल का कण - यह कॉन्ड्राइट, यानि पत्थरीले पदार्थ, का बना है चील नॅब्युला जहाँ गैस और खगोलीय धूल के बादल में तारे बन रहे हैं खगोलीय धूल अंतरिक्ष में मिलने वाले वह कण होते हैं जो आकार में कुछ अणुओं के झुण्ड से लेकर ०.१ माइक्रोमीटर तक होते हैं। इस धूल में कई प्रकार के पदार्थ हो सकते हैं। खगोलीय धूल ब्रह्माण्ड में कई जगह मिलती है -.

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खगोलीय वस्तु

आकाशगंगा सब से बड़ी खगोलीय वस्तुएँ होती हैं - एन॰जी॰सी॰ ४४१४ हमारे सौर मण्डल से ६ करोड़ प्रकाश-वर्ष दूर एक ५५,००० प्रकाश-वर्ष के व्यास की आकाशगंगा है खगोलीय वस्तु ऐसी वस्तु को कहा जाता है जो ब्रह्माण्ड में प्राकृतिक रूप से पायी जाती है, यानि जिसकी रचना मनुष्यों ने नहीं की होती है। इसमें तारे, ग्रह, प्राकृतिक उपग्रह, गैलेक्सी आदि शामिल हैं। .

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गुरुत्वाकर्षण

गुरुत्वाकर्षण के कारण ही ग्रह, सूर्य के चारों ओर चक्कर लगा पाते हैं और यही उन्हें रोके रखती है। गुरुत्वाकर्षण (ग्रैविटेशन) एक पदार्थ द्वारा एक दूसरे की ओर आकृष्ट होने की प्रवृति है। गुरुत्वाकर्षण के बारे में पहली बार कोई गणितीय सूत्र देने की कोशिश आइजक न्यूटन द्वारा की गयी जो आश्चर्यजनक रूप से सही था। उन्होंने गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत का प्रतिपादन किया। न्यूटन के सिद्धान्त को बाद में अलबर्ट आइंस्टाइन द्वारा सापेक्षता सिद्धांत से बदला गया। इससे पूर्व वराह मिहिर ने कहा था कि किसी प्रकार की शक्ति ही वस्तुओं को पृथिवी पर चिपकाए रखती है। .

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ग्रह

हमारे सौरमण्डल के ग्रह - दायें से बाएं - बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, युरेनस और नेप्चून सौर मंडल के ग्रहों, सूर्य और अन्य पिंडों के तुलनात्मक चित्र सूर्य या किसी अन्य तारे के चारों ओर परिक्रमा करने वाले खगोल पिण्डों को ग्रह कहते हैं। अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ के अनुसार हमारे सौर मंडल में आठ ग्रह हैं - बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, युरेनस और नेप्चून। इनके अतिरिक्त तीन बौने ग्रह और हैं - सीरीस, प्लूटो और एरीस। प्राचीन खगोलशास्त्रियों ने तारों और ग्रहों के बीच में अन्तर इस तरह किया- रात में आकाश में चमकने वाले अधिकतर पिण्ड हमेशा पूरब की दिशा से उठते हैं, एक निश्चित गति प्राप्त करते हैं और पश्चिम की दिशा में अस्त होते हैं। इन पिण्डों का आपस में एक दूसरे के सापेक्ष भी कोई परिवर्तन नहीं होता है। इन पिण्डों को तारा कहा गया। पर कुछ ऐसे भी पिण्ड हैं जो बाकी पिण्डों के सापेक्ष में कभी आगे जाते थे और कभी पीछे - यानी कि वे घुमक्कड़ थे। Planet एक लैटिन का शब्द है, जिसका अर्थ होता है इधर-उधर घूमने वाला। इसलिये इन पिण्डों का नाम Planet और हिन्दी में ग्रह रख दिया गया। शनि के परे के ग्रह दूरबीन के बिना नहीं दिखाई देते हैं, इसलिए प्राचीन वैज्ञानिकों को केवल पाँच ग्रहों का ज्ञान था, पृथ्वी को उस समय ग्रह नहीं माना जाता था। ज्योतिष के अनुसार ग्रह की परिभाषा अलग है। भारतीय ज्योतिष और पौराणिक कथाओं में नौ ग्रह गिने जाते हैं, सूर्य, चन्द्रमा, बुध, शुक्र, मंगल, गुरु, शनि, राहु और केतु। .

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आणविक बादल

यह धूल और गैस का आणविक बादल कैरीना नॅब्युला का एक टूटा हुआ अंश है और इसके पास नवजात तारे नज़र आ रहे हैं। इन तारों की रोशनी खगोलीय धूल से गुज़रती हुई नीली लगने लगी है क्योंकि यह धूल नीला रंग अधिक फैलती है। इन तारों का कठोर प्रकाश कुछ लाख सालों में इस आणविक बदल को उबल कर ख़तम कर देगा। यह छवि १९९९ में हबल अंतरिक्ष दूरबीन से ली गयी थी। बार्नार्ड ६८ का विशाल आणविक बादल इतना घना है के यह एक "काले नॅब्युला" की तरह प्रतीत होता है, क्योंकि यह पीछे से आने वाले तारों की रोशनी को एक परदे की तरह रोक रहा है। "सॅफ़्यस बी" नामक आणविक बादल और उसमें नए जन्मे तारे। खगोलशास्त्र में आणविक बादल अंतरतारकीय माध्यम (इन्टरस्टॅलर स्पेस) में स्थित ऐसे अंतरतारकीय बादल (इन्टरस्टॅलर क्लाउड) को कहते हैं जिसका घनत्व और और आकार अणुओं को बनाने के लिए पार्यप्त हो। अधिकतर यह अणु हाइड्रोजन (H2) के होते हैं, हालांकि आणविक बादलों में और भी प्रकार के अणु मिलते हैं। आणविक बादलों में मौजूद हाइड्रोजन अणुओं को उनसे उभरने वाली विद्युतचुंबकीय विकिरण (इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन) के ज़रिये पहचान लेना मुश्किल है इसलिए इन बादलों में हाइड्रोजन की मात्रा का अनुमान लगाना कठिन होता है। सौभाग्य से, हमारी आकाशगंगा (गैलॅक्सी) में देखा गया है के आणविक बादलों में हाइड्रोजन के साथ-साथ कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) के अणु भी मिलते हैं और इस कार्बन मोनोऑक्साइड से उभरती रोशनी उतनी ही प्रबल होती है जितनी उसके इर्द-गिर्द हाइड्रोजन की मात्रा होती है। हालांकि यह हाइड्रोजन की मात्रा को अनुमानित करने का तरीका हमारी आकाशगंगा में तो चल जाता है, कुछ वैज्ञानिकों का मानना है के कार्बन मोनोऑक्साइड के रोशानपन और हाइड्रोजन की मात्रा का यह सम्बन्ध शायद कुछ दूसरी आकाशगंगाओं में सच न हो। .

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आदिग्रह चक्र

एक चित्रकार द्वारा कल्पनित किसी तारे के इर्द-गिर्द परिक्रमा करता आदिग्रह चक्र आदिग्रह चक्र या प्रोटोप्लैनॅटेरी डिस्क या प्रॉपलिड एक नए जन्में तारे के इर्द-गिर्द घूमता घनी गैस का चक्र होता है। कभी-कभी इस चक्र में जगह-जगह पर पदार्थों का जमावड़ा हो जाने से पहले धूल के कण और फिर ग्रह जन्म ले लेते हैं। .

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क्षुद्रग्रह

क्षुद्रग्रह क्षुद्रग्रह (English: Asteroid) अथवा ऐस्टरौएड एक खगोलिय पिंड होते है जो ब्रह्माण्ड में विचरण करते रहते हे। यह आपने आकार में ग्रहो से छोटे और उल्का पिंडो से बड़े होते है। खोजा जाने वाला पहला क्षुद्रग्रह, सेरेस, 1819 में ग्यूसेप पियाज़ी द्वारा पाया गया था और इसे मूल रूप से एक नया ग्रह माना जाता था। इसके बाद अन्य समान निकायों की खोज के बाद, जो समय के उपकरण के साथ, प्रकाश के अंक होने लगते हैं, जैसे सितारों, छोटे या कोई ग्रहिक डिस्क नहीं दिखाते हैं, हालांकि उनके स्पष्ट गति के कारण सितारों से आसानी से अलग हो सकते हैं। इसने खगोल विज्ञानी सर विलियम हर्शल को "ग्रह", शब्द को प्रस्तावित करने के लिए प्रेरित किया, जिसे ग्रीस में ἀστεροειδής या एस्टरियोइड्स के रूप में तब्दील किया गया, जिसका अर्थ है 'तारा-जैसे, तारा-आकार', और प्राचीन ग्रीक ἀστήρ astér 'तारा, ग्रह से व्युत्पन्न '। उन्नीसवीं सदी के शुरुआती छमाही में, शब्द "क्षुद्रग्रह" और "ग्रह" (हमेशा "नाबालिग" के रूप में योग्य नहीं) अभी भी एक दूसरे का प्रयोग किया गया था पिछले दो शताब्दियों में एस्टरॉयड डिस्कवरी विधियों में नाटकीय रूप से सुधार हुआ है 18 वीं शताब्दी के आखिरी वर्षों में, बैरन फ्रांज एक्सवेर वॉन जैच ने 24 खगोलविदों के समूह को एक ग्रह का आयोजन किया, जिसमें आकाश के बारे में 2.8 एयू के बारे में अनुमानित ग्रह के लिए आकाश की खोज थी, जिसे टिटियस-बोद कानून द्वारा आंशिक रूप से खोज की गई थी। कानून द्वारा अनुमानित दूरी पर ग्रह यूरेनस के 1781 में सर विलियम हर्शल। इस काम के लिए ज़ोनियाकल बैंड के सभी सितारों के लिए हाथों से तैयार हुए आकाश चार्ट तैयार किए जाने की आवश्यकता है, जो कि संवेदनाहीनता की सीमा के नीचे है। बाद की रातों में, आकाश फिर से सनदी जाएगा और किसी भी चलती वस्तु को उम्मीद है, देखा जाना चाहिए। लापता ग्रह की उम्मीद की गति प्रति घंटे 30 सेकंड का चाप था, पर्यवेक्षकों द्वारा आसानी से पता चला। मंगल ग्रह से पहले क्षुद्रग्रह छवि (सेरेस और वेस्ता) - जिज्ञासा (20 अप्रैल 2014) द्वारा देखा गया। पहला उद्देश्य, सेरेस, समूह के किसी सदस्य द्वारा नहीं खोजा गया था, बल्कि 1801 में सिसिली में पालेर्मो के वेधशाला के निदेशक ग्यूसेप पियाज़ी ने दुर्घटना के कारण नहीं खोजा था। उन्होंने वृषभ में एक नया सितारा की तरह वस्तु की खोज की और कई वस्तुओं के दौरान इस ऑब्जेक्ट के विस्थापन का अनुसरण किया। उस वर्ष बाद, कार्ल फ्रेडरिक गॉस ने इस अज्ञात वस्तु की कक्षा की गणना करने के लिए इन टिप्पणियों का इस्तेमाल किया, जो मंगल और बृहस्पति ग्रहों के बीच पाया गया था। पियाजी ने इसे कृषि के रोमन देवी सेरेस के नाम पर रखा था। अगले कुछ वर्षों में तीनों क्षुद्रग्रहों (2 पल्लस, 3 जूनो और 4 वेस्ता) की खोज की गई, साथ में वेस्ता को 1807 में मिला। आठ वर्षों के व्यर्थ खोजों के बाद, अधिकांश खगोलविदों ने मान लिया था कि अब और नहीं और आगे की खोजों को छोड़ दिया गया था। हालांकि, कार्ल लुडविग हेन्के ने दृढ़ किया, और 1830 में अधिक क्षुद्रग्रहों की खोज करना शुरू कर दिया। पन्द्रह वर्ष बाद, उन्हें 38 अस्वास्थापों में पहला नया क्षुद्रग्रह पाया गया, जो 5 अस्त्रिया पाए गए। उन्होंने यह भी पाया 6 हेबे कम से कम दो साल बाद इसके बाद, अन्य खगोलविदों ने खोज में शामिल हो गए और इसके बाद हर वर्ष कम से कम एक नया क्षुद्रग्रह पाया गया (युद्धकालीन वर्ष 1 9 45 को छोड़कर) इस शुरुआती युग के उल्लेखनीय क्षुद्रग्रह शिकारी जे आर हिंद, एनीबेल डी गैसपरिस, रॉबर्ट लूथर, एचएमएस गोल्डस्मिथ, जीन चिकार्नाक, जेम्स फर्ग्यूसन, नॉर्मन रॉबर्ट पॉगसन, ईडब्ल्यू टेम्पाल, जेसी वाटसन, सीएफ़एफ़ पीटर्स, ए। बोरलिलली, जे। पॉलिसा, हेनरी भाई और अगस्टे चार्लोइस 1891 में, मैक्स वुल्फ ने क्षुद्रग्रहों का पता लगाने के लिए "आस्ट्रोफ़ोटोग्राफी" के इस्तेमाल की शुरुआत की, जो लंबे समय तक एक्सपोजर फोटोग्राफिक प्लेट्स पर छोटी धारियों के रूप में दिखाई दिए। इससे पहले दृश्य तरीकों की तुलना में नाटकीय रूप से पहचान की दर में वृद्धि हुई: वुल्फ ने केवल 248 क्षुद्रग्रहों की खोज की, 323 ब्रुसिया से शुरुआत करते हुए, जबकि उस समय तक केवल 300 से थोड़ा अधिक की खोज की गई थी यह ज्ञात था कि वहां बहुत अधिक थे, लेकिन अधिकांश खगोलविदों ने उनके साथ परेशान नहीं किया, उन्हें "आसमान की किरण" कहा, एडुआर्ड सूसे और एडमंड वेज़ के लिए अलग-अलग वाक्यांशों का श्रेय। यहां तक ​​कि एक सदी बाद, केवल कुछ हज़ार क्षुद्रग्रहों की पहचान की गई,क्षुद्रग्रह छोटे ग्रह हैं, विशेषकर इनर सौर मंडल के बड़े लोगों को ग्रहोइड कहा जाता है इन शब्दों को ऐतिहासिक रूप से किसी भी खगोलीय वस्तु पर लागू किया गया है जो कि सूर्य की परिक्रमा करता है, जो कि किसी ग्रह की डिस्क नहीं दिखाया था और सक्रिय धूमकेतु की विशेषताओं को देखते हुए नहीं देखा गया था। के रूप में बाहरी सौर मंडल में छोटे ग्रहों की खोज की गई और उन्हें ज्वालामुखी-आधारित सतहों को मिला जो कि धूमकेतु के समान थे, वे अक्सर क्षुद्रग्रह बेल्ट के क्षुद्रग्रहों से अलग थे। इस लेख में, "एस्टरॉयड" शब्द का अर्थ आंतरिक सौर मंडल के छोटे ग्रहों को संदर्भित करता है जिसमें उन सह-कक्षाओं में बृहस्पति शामिल हैं। वहाँ लाखों क्षुद्रग्रह हैं, बहुत से ग्रहों के बिखर अवशेष, सूर्य के सौर नेब्यूला के भीतर निकाले जाने वाले शरीर के रूप में माना जाता है, जो कि ग्रह बनने के लिए बड़े पैमाने पर कभी बड़ा नहीं बनता था। मंगल और बृहस्पति के कक्षाओं के बीच क्षुद्रग्रहों के बेल्ट में ज्ञात क्षुद्रग्रहों की बड़ी संख्या, या बृहस्पति (बृहस्पति ट्रोजन) के साथ सह-कक्षीय हैं। हालांकि, अन्य कक्षीय परिवारों में पास-पृथ्वी ऑब्जेक्ट्स सहित महत्वपूर्ण आबादी मौजूद है। व्यक्तिगत क्षुद्रग्रहों को उनके विशिष्ट स्पेक्ट्रा द्वारा वर्गीकृत किया जाता है, जिनमें बहुमत तीन मुख्य समूहों में आती है: सी-टाइप, एम-प्रकार और एस-टाइप। इसका नाम क्रमशः कार्बन-समृद्ध, धातु, और सिलिकेट (पत्थर) रचनाओं के नाम पर रखा गया था। क्षुद्रग्रहों का आकार बहुत भिन्न होता है, कुछ तक पहुंचते हुए 1000 किमी तक पहुंचते हैं। क्षुद्रग्रहों को धूमकेतु और मेटोरोइड से विभेदित किया जाता है धूमकेतु के मामले में, अंतर संरचना में से एक है: जबकि क्षुद्रग्रह मुख्य रूप से खनिज और चट्टान से बना है, धूमकेतु धूल और बर्फ से बना है इसके अलावा, क्षुद्रग्रहों ने सूरज के करीब का गठन किया, जो कि ऊपर उल्लिखित धूमकेतू बर्फ के विकास को रोकता है। क्षुद्रग्रहों और meteorids के बीच का अंतर मुख्य रूप से आकार में से एक है: उल्कापिंडों का एक मीटर से कम का व्यास है, जबकि क्षुद्रग्रहों का एक मीटर से अधिक का व्यास है। अंत में, उल्कामी द्रव्य या तो समृद्ध या क्षुद्रग्रहयुक्त पदार्थों से बना हो सकता है। केवल एक क्षुद्रग्रह, 4 वेस्ता, जो एक अपेक्षाकृत चिंतनशील सतह है, आमतौर पर नग्न आंखों के लिए दिखाई देता है, और यह केवल बहुत ही अंधेरे आसमान में है जब यह अनुकूल स्थिति है शायद ही, छोटे क्षुद्रग्रह पृथ्वी के नजदीक से गुजरते हैं, कम समय के लिए नग्न आंखों में दिखाई दे सकते हैं। मार्च 2016 तक, माइनर प्लैनेट सेंटर के आंतरिक और बाहरी सौर मंडल में 1.3 मिलियन से अधिक ऑब्जेक्ट्स पर डेटा था, जिसमें से 750,000 में पर्याप्त जानकारी दी गई पदनामों की जानी थी। संयुक्त राष्ट्र ने 30 जून को अंतर्राष्ट्रीय क्षुद्रग्रह दिवस की घोषणा की ताकि क्षुद्रग्रहों के बारे में जनता को शिक्षित किया जा सके। अंतर्राष्ट्रीय एस्टरॉयड दिवस की तारीख 30 जून 1 9 08 को साइबेरिया, रूसी संघ पर टंगुस्का क्षुद्रग्रह की सालगिरह की स्मृति मनाई जाती है।  .

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उल्का

आकाश के एक भाग में उल्का गिरने का दृष्य; यह दृष्य एक्स्ोजर समय कबढ़ाकर लिया गया है आकाश में कभी-कभी एक ओर से दूसरी ओर अत्यंत वेग से जाते हुए अथवा पृथ्वी पर गिरते हुए जो पिंड दिखाई देते हैं उन्हें उल्का (meteor) और साधारण बोलचाल में 'टूटते हुए तारे' अथवा 'लूका' कहते हैं। उल्काओं का जो अंश वायुमंडल में जलने से बचकर पृथ्वी तक पहुँचता है उसे उल्कापिंड (meteorite) कहते हैं। प्रायः प्रत्येक रात्रि को उल्काएँ अनगिनत संख्या में देखी जा सकती हैं, किंतु इनमें से पृथ्वी पर गिरनेवाले पिंडों की संख्या अत्यंत अल्प होती है। वैज्ञानिक दृष्टि से इनका महत्व बहुत अधिक है क्योंकि एक तो ये अति दुर्लभ होते हैं, दूसरे आकाश में विचरते हुए विभिन्न ग्रहों इत्यादि के संगठन और संरचना (स्ट्रक्चर) के ज्ञान के प्रत्यक्ष स्रोत केवल ये ही पिंड हैं। इनके अध्ययन से हमें यह भी बोध होता है कि भूमंडलीय वातावरण में आकाश से आए हुए पदार्थ पर क्या-क्या प्रतिक्रियाएँ होती हैं। इस प्रकार ये पिंड ब्रह्माण्डविद्या और भूविज्ञान के बीच संपर्क स्थापित करते हैं। .

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ग्रहीय मण्डल और सौर मण्डल के बीच तुलना

ग्रहीय मण्डल 23 संबंध है और सौर मण्डल 99 है। वे आम 16 में है, समानता सूचकांक 13.11% है = 16 / (23 + 99)।

संदर्भ

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