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कालिंजर दुर्ग और बार्हस्पत्य सूत्र

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

कालिंजर दुर्ग और बार्हस्पत्य सूत्र के बीच अंतर

कालिंजर दुर्ग vs. बार्हस्पत्य सूत्र

कालिंजर, उत्तर प्रदेश के बुन्देलखण्ड क्षेत्र के बांदा जिले में कलिंजर नगरी में स्थित एक पौराणिक सन्दर्भ वाला, ऐतिहासिक दुर्ग है जो इतिहास में सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण रहा है। यह विश्व धरोहर स्थल प्राचीन मन्दिर नगरी-खजुराहो के निकट ही स्थित है। कलिंजर नगरी का मुख्य महत्त्व विन्ध्य पर्वतमाला के पूर्वी छोर पर इसी नाम के पर्वत पर स्थित इसी नाम के दुर्ग के कारण भी है। यहाँ का दुर्ग भारत के सबसे विशाल और अपराजेय किलों में एक माना जाता है। इस पर्वत को हिन्दू धर्म के लोग अत्यंत पवित्र मानते हैं, व भगवान शिव के भक्त यहाँ के मन्दिर में बड़ी संख्या में आते हैं। प्राचीन काल में यह जेजाकभुक्ति (जयशक्ति चन्देल) साम्राज्य के अधीन था। इसके बाद यह दुर्ग यहाँ के कई राजवंशों जैसे चन्देल राजपूतों के अधीन १०वीं शताब्दी तक, तदोपरांत रीवा के सोलंकियों के अधीन रहा। इन राजाओं के शासनकाल में कालिंजर पर महमूद गजनवी, कुतुबुद्दीन ऐबक, शेर शाह सूरी और हुमांयू जैसे प्रसिद्ध आक्रांताओं ने आक्रमण किए लेकिन इस पर विजय पाने में असफल रहे। अनेक प्रयासों के बाद भी आरम्भिक मुगल बादशाह भी कालिंजर के किले को जीत नहीं पाए। अन्तत: मुगल बादशाह अकबर ने इसे जीता व मुगलों से होते हुए यह राजा छत्रसाल के हाथों अन्ततः अंग्रेज़ों के अधीन आ गया। इस दुर्ग में कई प्राचीन मन्दिर हैं, जिनमें से कई तो गुप्त वंश के तृतीय -५वीं शताब्दी तक के ज्ञात हुए हैं। यहाँ शिल्पकला के बहुत से अद्भुत उदाहरण हैं। . बार्हस्पत्य सूत्र देवगुरु बृहस्पति का ग्रन्थ है। बृहस्पति चार्वाक दर्शन के प्रणेता माने जाते हैं। यह ग्रंथ अप्राप्य माना जाता है। सर्व दर्शन संग्रह के पहले अध्याय में चार्वाक मत के सिद्धांतों का सार मिलता है। इसे लोकायत दर्शन के नाम से भी जाना जाता है। भूमि, जल, अग्नि, वायु जिनका प्रत्यक्ष अनुभव हो सकता है, इनके अतिरिक्त संसार में कुछ भी नहीं है। इन चार तत्वों के समिश्रण से ही चेतना शक्ति और बुद्धि का प्रादुर्भाव होता है। चार्वाक के अनुसार यावज्जीवेत सुखं जीवेत, ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत। अर्थात जब तक जीवन है सुखों का उपभोग कर लेना चाहिए। भौतिक सुख को त्याज्य समझने की परंपरा को चार्वाक ने चुनौती दी। चूंकि इस लोक के अलावा और कोई दूसरा लोक नहीं है, इसलिए इस लोक का भरपूर आनंद लेना चाहिए, खूब ऐश-आराम करना चाहिए। शरीर के एक बार भस्म हो जाने पर वह पुन: वापिस लौट कर नहीं आता। नास्तिक दर्शनों में चार्वाक, जैन और बौद्ध दर्शन आते हैं। ये वेदों के प्रमाण में विश्वास नहीं रखते, इसलिए नास्तिक दर्शन के अंतर्गत रखे गए हैं। ये ग्रन्थ ईसा पूर्व अंतिम शताब्दियों में, लगभग मौर्य काल में धीरे -धीरे गायब होता गया। इसके बाद इसे मात्र कुछ बचे व बोले गये सूत्रों के रूप में ही सहेजा जा सका। १९२८ में दक्षिणरंजन शास्त्री ने ऐसे ६० श्लोकों को प्रकाशित किया। १९५९ में उन्होंने ५४ चुने हुए श्लोक बार्हस्पत्य सूत्रम नाम से प्रकाशित किये। शास्त्री जी का मत था कि इसी प्रकार शेष अन्य श्लोकों को भी ढूंढा और प्रकाशित किया जा सकता है। २००२ में भट्टाचार्य ने कुछ और श्लोक ढूंढ कर निकाले, किन्तु इनमें विदेशी पाठ्य के मिले होने या अशुद्धता होने की बड़ी संभावना है। इन संकलनों में अधिकांश कार्य भारतीय मध्य कालीन हैं, मोटे तौर पर लगभग ८वीं से १२वीं शताब्दी के बीच के। सायण द्वारा भारतीय दर्शन पर विशिष्ट टीका १४वीं शताब्दी में सर्वदर्शनसंग्रह नाम से निकली जिसमें चार्वाक के बारे में विस्तृत जानकारी मिलती है। किन्तु ये चार्वाक के पाठ सीधे मूल रूप में नहीं दिखाती है वरन १४वीं शताब्दी के एक शिक्षित वेदांतज्ञ के पढ़े और समझे सिद्धांतों के रूप में देती है। भट्टाचार्य ने ६८ श्लोक ९ पृष्ठों में पृष्ठ पर दिये हैं। बार्हस्पत्यसूत्रम अर्थात बार्हस्पत्य अर्थशास्त्रम भी इनसे प्रभावित किन्तु पारदर्शी और भ्रष्टरूप है। .

कालिंजर दुर्ग और बार्हस्पत्य सूत्र के बीच समानता

कालिंजर दुर्ग और बार्हस्पत्य सूत्र आम में 2 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): भारत, मौर्य राजवंश

भारत

भारत (आधिकारिक नाम: भारत गणराज्य, Republic of India) दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। पूर्ण रूप से उत्तरी गोलार्ध में स्थित भारत, भौगोलिक दृष्टि से विश्व में सातवाँ सबसे बड़ा और जनसंख्या के दृष्टिकोण से दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत के पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर-पूर्व में चीन, नेपाल और भूटान, पूर्व में बांग्लादेश और म्यान्मार स्थित हैं। हिन्द महासागर में इसके दक्षिण पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व में इंडोनेशिया से भारत की सामुद्रिक सीमा लगती है। इसके उत्तर की भौतिक सीमा हिमालय पर्वत से और दक्षिण में हिन्द महासागर से लगी हुई है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी है तथा पश्चिम में अरब सागर हैं। प्राचीन सिन्धु घाटी सभ्यता, व्यापार मार्गों और बड़े-बड़े साम्राज्यों का विकास-स्थान रहे भारतीय उपमहाद्वीप को इसके सांस्कृतिक और आर्थिक सफलता के लंबे इतिहास के लिये जाना जाता रहा है। चार प्रमुख संप्रदायों: हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्मों का यहां उदय हुआ, पारसी, यहूदी, ईसाई, और मुस्लिम धर्म प्रथम सहस्राब्दी में यहां पहुचे और यहां की विविध संस्कृति को नया रूप दिया। क्रमिक विजयों के परिणामस्वरूप ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी ने १८वीं और १९वीं सदी में भारत के ज़्यादतर हिस्सों को अपने राज्य में मिला लिया। १८५७ के विफल विद्रोह के बाद भारत के प्रशासन का भार ब्रिटिश सरकार ने अपने ऊपर ले लिया। ब्रिटिश भारत के रूप में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रमुख अंग भारत ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में एक लम्बे और मुख्य रूप से अहिंसक स्वतन्त्रता संग्राम के बाद १५ अगस्त १९४७ को आज़ादी पाई। १९५० में लागू हुए नये संविधान में इसे सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के आधार पर स्थापित संवैधानिक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित कर दिया गया और युनाईटेड किंगडम की तर्ज़ पर वेस्टमिंस्टर शैली की संसदीय सरकार स्थापित की गयी। एक संघीय राष्ट्र, भारत को २९ राज्यों और ७ संघ शासित प्रदेशों में गठित किया गया है। लम्बे समय तक समाजवादी आर्थिक नीतियों का पालन करने के बाद 1991 के पश्चात् भारत ने उदारीकरण और वैश्वीकरण की नयी नीतियों के आधार पर सार्थक आर्थिक और सामाजिक प्रगति की है। ३३ लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ भारत भौगोलिक क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा राष्ट्र है। वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था क्रय शक्ति समता के आधार पर विश्व की तीसरी और मानक मूल्यों के आधार पर विश्व की दसवीं सबसे बडी अर्थव्यवस्था है। १९९१ के बाज़ार-आधारित सुधारों के बाद भारत विश्व की सबसे तेज़ विकसित होती बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं में से एक हो गया है और इसे एक नव-औद्योगिकृत राष्ट्र माना जाता है। परंतु भारत के सामने अभी भी गरीबी, भ्रष्टाचार, कुपोषण, अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य-सेवा और आतंकवाद की चुनौतियां हैं। आज भारत एक विविध, बहुभाषी, और बहु-जातीय समाज है और भारतीय सेना एक क्षेत्रीय शक्ति है। .

कालिंजर दुर्ग और भारत · बार्हस्पत्य सूत्र और भारत · और देखें »

मौर्य राजवंश

मौर्य राजवंश (३२२-१८५ ईसापूर्व) प्राचीन भारत का एक शक्तिशाली एवं महान राजवंश था। इसने १३७ वर्ष भारत में राज्य किया। इसकी स्थापना का श्रेय चन्द्रगुप्त मौर्य और उसके मन्त्री कौटिल्य को दिया जाता है, जिन्होंने नन्द वंश के सम्राट घनानन्द को पराजित किया। मौर्य साम्राज्य के विस्तार एवं उसे शक्तिशाली बनाने का श्रेय सम्राट अशोक को जाता है। यह साम्राज्य पूर्व में मगध राज्य में गंगा नदी के मैदानों (आज का बिहार एवं बंगाल) से शुरु हुआ। इसकी राजधानी पाटलिपुत्र (आज के पटना शहर के पास) थी। चन्द्रगुप्त मौर्य ने ३२२ ईसा पूर्व में इस साम्राज्य की स्थापना की और तेजी से पश्चिम की तरफ़ अपना साम्राज्य का विकास किया। उसने कई छोटे छोटे क्षेत्रीय राज्यों के आपसी मतभेदों का फायदा उठाया जो सिकन्दर के आक्रमण के बाद पैदा हो गये थे। ३१६ ईसा पूर्व तक मौर्य वंश ने पूरे उत्तरी पश्चिमी भारत पर अधिकार कर लिया था। चक्रवर्ती सम्राट अशोक के राज्य में मौर्य वंश का बेहद विस्तार हुआ। सम्राट अशोक के कारण ही मौर्य साम्राज्य सबसे महान एवं शक्तिशाली बनकर विश्वभर में प्रसिद्ध हुआ। .

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कालिंजर दुर्ग और बार्हस्पत्य सूत्र के बीच तुलना

कालिंजर दुर्ग 190 संबंध है और बार्हस्पत्य सूत्र 12 है। वे आम 2 में है, समानता सूचकांक 0.99% है = 2 / (190 + 12)।

संदर्भ

यह लेख कालिंजर दुर्ग और बार्हस्पत्य सूत्र के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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