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कछवाहा और महाभारत

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

कछवाहा और महाभारत के बीच अंतर

कछवाहा vs. महाभारत

कछवाहा(कुशवाहा) वंश सूर्यवंशी राजपूतों की एक शाखा है। कुल मिलाकर बासठ वंशों के प्रमाण ग्रन्थों में मिलते हैं। ग्रन्थों के अनुसार: अर्थात दस सूर्य वंशीय क्षत्रिय दस चन्द्र वंशीय,बारह ऋषि वंशी एवं चार अग्नि वंशीय कुल छत्तिस क्षत्रिय वंशों का प्रमाण है,बाद में भौमवंश नागवंश क्षत्रियों को सामने करने के बाद जब चौहान वंश चौबीस अलग अलग वंशों में जाने लगा तब क्षत्रियों के बासठ अंशों का प्रमाण मिलता है। इन्हीं में से एक क्षत्रिय शाखा कछवाहा (कुशवाहा) निकली। यह उत्तर भारत के बहुत से क्षेत्रों में फ़ैली। . महाभारत हिन्दुओं का एक प्रमुख काव्य ग्रंथ है, जो स्मृति वर्ग में आता है। कभी कभी केवल "भारत" कहा जाने वाला यह काव्यग्रंथ भारत का अनुपम धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक और दार्शनिक ग्रंथ हैं। विश्व का सबसे लंबा यह साहित्यिक ग्रंथ और महाकाव्य, हिन्दू धर्म के मुख्यतम ग्रंथों में से एक है। इस ग्रन्थ को हिन्दू धर्म में पंचम वेद माना जाता है। यद्यपि इसे साहित्य की सबसे अनुपम कृतियों में से एक माना जाता है, किन्तु आज भी यह ग्रंथ प्रत्येक भारतीय के लिये एक अनुकरणीय स्रोत है। यह कृति प्राचीन भारत के इतिहास की एक गाथा है। इसी में हिन्दू धर्म का पवित्रतम ग्रंथ भगवद्गीता सन्निहित है। पूरे महाभारत में लगभग १,१०,००० श्लोक हैं, जो यूनानी काव्यों इलियड और ओडिसी से परिमाण में दस गुणा अधिक हैं। हिन्दू मान्यताओं, पौराणिक संदर्भो एवं स्वयं महाभारत के अनुसार इस काव्य का रचनाकार वेदव्यास जी को माना जाता है। इस काव्य के रचयिता वेदव्यास जी ने अपने इस अनुपम काव्य में वेदों, वेदांगों और उपनिषदों के गुह्यतम रहस्यों का निरुपण किया हैं। इसके अतिरिक्त इस काव्य में न्याय, शिक्षा, चिकित्सा, ज्योतिष, युद्धनीति, योगशास्त्र, अर्थशास्त्र, वास्तुशास्त्र, शिल्पशास्त्र, कामशास्त्र, खगोलविद्या तथा धर्मशास्त्र का भी विस्तार से वर्णन किया गया हैं। .

कछवाहा और महाभारत के बीच समानता

कछवाहा और महाभारत आम में 2 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): सूर्यवंशी, आदिपर्व

सूर्यवंशी

सूर्यवंशी भारशिव (सूर्यवंशी, अर्कवंशी क्षत्रिय) शासक भगवान सूर्य एवं भगवान शिव के उपासक थे। ये भारशिव राजभर होते हें बहराइच में सूर्यकुंड पर स्थित भगवान सूर्य केमूर्ति की वे पूजा करते थे। उस स्थान पर प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ मास मे प्रथम रविवार को, जो बृहस्पतिवार के बाद पड़ता था एक बड़ा मेला लगता था यह मेला सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण तथा प्रत्येकरविवार को भी लगता था। वहां यह परंपरा काफी प्राचीन थी। यहाँ बालार्क मन्दिर था, बालार्क अर्थ "सूर्योदय" जो भगवान सूर्य को समर्पित था। भारशिव राजाओं का साम्राज्य पश्चिम में मथुरा और पूर्व में काशी से भी कुछ परे तक अवश्य विस्तृत था। इस सारे प्रदेश में बहुत से उद्धार करने के कारण गंगा-यमुना को ही उन्होंने अपना राजचिह्न बनाया था। गंगा-यमुना के जल से अपना राज्याभिषेक कर इन राजाओं ने बहुत काल बाद इन पवित्र नदियों के गौरव का पुनरुद्धार किया था। भारशिव नाम से नया राजवंश उदय हुआ था। साधारण जनता इनको अज्ञानता से भर कहने लगे शैव धर्म का अनुशरण करते हुये वैदिक काल में राजभर क्षत्रिय नाम प्रचलित हुए। उन्होंने उत्तर भारत के बड़े हिस्सों और केंद्रीय पर उनके प्रतीक (रॉयल इन्सिग्निया) के रूप में शासन किया और अपनी गर्दन के चारों ओर पहना शुरू कर दिया। इस प्रकार उन सूर्यवंशी क्षत्रिय जो शिव (शिव) के वजन ((bhar): भार) लेते थे, को भारशिवा (भारशिव .

कछवाहा और सूर्यवंशी · महाभारत और सूर्यवंशी · और देखें »

आदिपर्व

महाभारत के आदि पर्व के अन्तर्गत कुल १९ उपपर्व और २३३ अध्याय हैं। .

आदिपर्व और कछवाहा · आदिपर्व और महाभारत · और देखें »

सूची के ऊपर निम्न सवालों के जवाब

कछवाहा और महाभारत के बीच तुलना

कछवाहा 33 संबंध है और महाभारत 257 है। वे आम 2 में है, समानता सूचकांक 0.69% है = 2 / (33 + 257)।

संदर्भ

यह लेख कछवाहा और महाभारत के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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