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अहीरवाल

सूची अहीरवाल

अहीरवाल एक ऐसा क्षेत्र है जो दक्षिणी हरियाणा और उत्तर-पूर्वी राजस्थान के हिस्सों में फैला हुआ है, जो भारत के वर्तमान राज्य हैं। यह क्षेत्र एक बार रेवाडी के शहर से नियंत्रित रियासत थी और मुगल साम्राज्य के पतन के समय से अहीर समुदाय के सदस्यों द्वारा नियंत्रित था। नाम "अहीर की भूमि" के रूप में अनुवादित है। जेई श्वार्ट्ज़बर्ग ने इसे "लोक क्षेत्र" और लुसिया माइकलुट्टी को "सांस्कृतिक-भौगोलिक क्षेत्र" के रूप में वर्णित किया है।..

37 संबंधों: चौधरी ब्रह्म प्रकाश, दलित, दिल्ली, दिल्ली के मुख्यमंत्रियों की सूची, दक्षिण पश्चिम दिल्ली, द्वितीय आंग्ल-सिख युद्ध, नारनौल, पश्चिम दिल्ली लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र, प्रथम आंग्ल-सिख युद्ध, भारत के राज्य तथा केन्द्र-शासित प्रदेश, भारत के ज़िले, भाषा, भिवानी, महाराजा रणजीत सिंह, महेंद्रगढ़, यादव, राजपूत, राजस्थान, राजा, राव तुला राम, राव रूड़ा सिंह, रेवाड़ी, रोहतक लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र, लोक सभा, सरदार हरि सिंह नलवा, हरियाणा, हरियाणा के मुख्यमंत्रियों की सूची, हिन्दी, जाट, गुरुग्राम, गुर्जर, कोटपुतली, अलवर, अलवर लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र, अहीर, अहीर्वती, १८५७ का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम

चौधरी ब्रह्म प्रकाश

चौधरी ब्रह्म प्रकाश यादव (1918–1993) भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तथा दिल्ली के प्रथम मुख्यमंत्री थे। वे लोकसभा के सदस्य भी रहे। १९४० में महात्मा गाँधी द्वारा चलाये गये व्यक्तिगत सत्याग्रह आन्दोलन में उन्होने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। १९४२ के भारत छोड़ो आन्दोलन में 'भूमिगत नेताओं' में वे भी थे। स्वतंत्रता संग्राम के समय वे कई बार जेल गये। चौधरी भ्रह्म प्रकाश पश्चिमोत्तर दिल्ली के शकूरपुर से थे। 'शेर–ए-दिल्ली' एवं 'मुगले आज़म' के नाम से मशहूर चौधरी ब्रह्म प्रकश 1952 से 1955 तक दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे। वह केवल 33 साल की उम्र में दिल्ली के मुख्यमंत्री बने और उस समय के सबसे युवा मुख्यमंत्री थे। उन्हें भारत के प्रथम निर्दलीय मुख्यमंत्री बनने का भी गौरव प्राप्त है।बाद में वे सांसद बने तथा केन्द्रीय खाद्य, कृषि, सिंचाई और सहकारिता मंत्री के रूप में उल्लेखनीय कार्य किये। 1977 में उन्होंने पिछड़ी, अनुसूचित जातियों व अल्पसंख्यकों का एक राष्ट्रीय संघ बनाया। राष्ट्र के प्रति उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए उनके सम्मान में 11 अगस्त 2001 स्मारक डाक टिकट जारी किया गया। .

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दलित

दलित का मतलब पहले पिडीत, शोषित, दबा हुआ, खिन्न, उदास, टुकडा, खंडित, तोडना, कुचलना, दला हुआ, पीसा हुआ, मसला हुआ, रौंदाहुआ, विनष्ट हुआ करता था, लेकिन अब अनुसूचित जाति को दलित बताया जाता है, अब दलित शब्द पूर्णता जाति विशेष को बोला जाने लगा हजारों वर्षों तक अस्‍पृश्‍य या अछूत समझी जाने वाली उन तमाम शोषित जातियों के लिए सामूहिक रूप से प्रयुक्‍त होता है जो हिंदू धर्म शास्त्रों द्वारा हिंदू समाज व्‍यवस्‍था में सबसे निचले (चौथे) पायदान पर स्थित है। और बौद्ध ग्रन्थ में पाँचवे पायदान पर (चांडाल) है संवैधानिक भाषा में इन्‍हें ही अनुसूचित जाति कहां गया है। भारतीय जनगनणा 2011 के अनुसार भारत की जनसंख्‍या में लगभग 16.6 प्रतिशत या 20.14 करोड़ आबादी दलितों की है।http://m.timesofindia.com/india/Half-of-Indias-dalit-population-lives-in-4-states/articleshow/19827757.cms आज अधिकांश हिंदू दलित बौद्ध धर्म के तरफ आकर्षित हुए हैं और हो रहे हैं, क्योंकी बौद्ध बनने से हिंदू दलितों का विकास हुआ हैं।http://www.bbc.com/hindi/india/2016/04/160414_dalit_vote_politician_rd "दलित" शब्द की व्याखा, अर्थ तुलनात्मक दृष्टी से देखे तो इसका विरुद्ध विषलेशण इस प्रकार है। "दलित" -: पिडीत, शोषित, दबा हुआ, खिन्न, उदास, टुकडा, खंडित, तोडना, कुचलना, दला हुआ, पीसा हुआ, मसला हुआ, रौंदाहुआ, विनष्ट "फलित" -: पिडामुक्त, उच्च, प्रसन्न, खुशहाल, अखंड, अखंडित, जोडना, समानता, एकरुप, पूर्णरूप, संपूर्ण .

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दिल्ली

दिल्ली (IPA), आधिकारिक तौर पर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (अंग्रेज़ी: National Capital Territory of Delhi) भारत का एक केंद्र-शासित प्रदेश और महानगर है। इसमें नई दिल्ली सम्मिलित है जो भारत की राजधानी है। दिल्ली राजधानी होने के नाते केंद्र सरकार की तीनों इकाइयों - कार्यपालिका, संसद और न्यायपालिका के मुख्यालय नई दिल्ली और दिल्ली में स्थापित हैं १४८३ वर्ग किलोमीटर में फैला दिल्ली जनसंख्या के तौर पर भारत का दूसरा सबसे बड़ा महानगर है। यहाँ की जनसंख्या लगभग १ करोड़ ७० लाख है। यहाँ बोली जाने वाली मुख्य भाषाएँ हैं: हिन्दी, पंजाबी, उर्दू और अंग्रेज़ी। भारत में दिल्ली का ऐतिहासिक महत्त्व है। इसके दक्षिण पश्चिम में अरावली पहाड़ियां और पूर्व में यमुना नदी है, जिसके किनारे यह बसा है। यह प्राचीन समय में गंगा के मैदान से होकर जाने वाले वाणिज्य पथों के रास्ते में पड़ने वाला मुख्य पड़ाव था। यमुना नदी के किनारे स्थित इस नगर का गौरवशाली पौराणिक इतिहास है। यह भारत का अति प्राचीन नगर है। इसके इतिहास का प्रारम्भ सिन्धु घाटी सभ्यता से जुड़ा हुआ है। हरियाणा के आसपास के क्षेत्रों में हुई खुदाई से इस बात के प्रमाण मिले हैं। महाभारत काल में इसका नाम इन्द्रप्रस्थ था। दिल्ली सल्तनत के उत्थान के साथ ही दिल्ली एक प्रमुख राजनैतिक, सांस्कृतिक एवं वाणिज्यिक शहर के रूप में उभरी। यहाँ कई प्राचीन एवं मध्यकालीन इमारतों तथा उनके अवशेषों को देखा जा सकता हैं। १६३९ में मुगल बादशाह शाहजहाँ ने दिल्ली में ही एक चारदीवारी से घिरे शहर का निर्माण करवाया जो १६७९ से १८५७ तक मुगल साम्राज्य की राजधानी रही। १८वीं एवं १९वीं शताब्दी में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने लगभग पूरे भारत को अपने कब्जे में ले लिया। इन लोगों ने कोलकाता को अपनी राजधानी बनाया। १९११ में अंग्रेजी सरकार ने फैसला किया कि राजधानी को वापस दिल्ली लाया जाए। इसके लिए पुरानी दिल्ली के दक्षिण में एक नए नगर नई दिल्ली का निर्माण प्रारम्भ हुआ। अंग्रेजों से १९४७ में स्वतंत्रता प्राप्त कर नई दिल्ली को भारत की राजधानी घोषित किया गया। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् दिल्ली में विभिन्न क्षेत्रों से लोगों का प्रवासन हुआ, इससे दिल्ली के स्वरूप में आमूल परिवर्तन हुआ। विभिन्न प्रान्तो, धर्मों एवं जातियों के लोगों के दिल्ली में बसने के कारण दिल्ली का शहरीकरण तो हुआ ही साथ ही यहाँ एक मिश्रित संस्कृति ने भी जन्म लिया। आज दिल्ली भारत का एक प्रमुख राजनैतिक, सांस्कृतिक एवं वाणिज्यिक केन्द्र है। .

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दिल्ली के मुख्यमंत्रियों की सूची

दिल्ली के मुख्यमंत्री दिल्ली सरकार व मंत्री परिषद के प्रमुख और दिल्ली विधानसभा में बहुमत दल के नेता होते हैं। मुख्यमंत्री दिल्ली सरकार की कार्यकारी शाखा का नेतृत्व करते हैं। .

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दक्षिण पश्चिम दिल्ली

दक्षिण पश्चिम दिल्ली जिला दिल्ली का जिला है। इसमें आने वाले उपमंडल हैं.

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द्वितीय आंग्ल-सिख युद्ध

द्वितीय आंग्ल-सिख युद्ध पंजाब के सिख प्रशासित क्षेत्रों वाले राज्य तथा अंग्रेजों के ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच 1848-49 के बीच लड़ा गया था। इसके परिणाम स्वरूप सिख राज्य का संपूर्ण हिस्सा अंग्रेजी राज का अंग बन गया। .

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नारनौल

नारनौल हरियाणा प्रान्त का एक शहर है। यह महेंद्रगढ़ जिले का मुख्यालय है। .

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पश्चिम दिल्ली लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र

पश्चिम दिल्ली लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र दिल्ली के भारतीय राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की 7 लोकसभा (संसदीय) निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है। यह निर्वाचन क्षेत्र 2002 में गठित परिसीमन आयोग की सिफारिशों के परिपालन से साल 2008 में अस्तित्व में आया। .

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प्रथम आंग्ल-सिख युद्ध

प्रथम आंग्ल-सिख युद्ध पंजाब के सिख राज्य तथा अंग्रेजों के बीच 1845-46 के बीच लड़ा गया था। इसके परिणाम स्वरूप सिख राज्य का कुछ हिस्सा अंग्रेजी राज का हिस्सा बन गया।.

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भारत के राज्य तथा केन्द्र-शासित प्रदेश

भारत राज्यों का एक संघ है। इसमें उन्तीस राज्य और सात केन्द्र शासित प्रदेश हैं। ये राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश पुनः जिलों और अन्य क्षेत्रों में बांटे गए हैं।.

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भारत के ज़िले

तालुकों में बंटे हैं ज़िला भारतीय राज्य या केन्द्र शासित प्रदेश का प्रशासनिक हिस्सा होता है। जिले फिर उप-भागों में या सीधे तालुकों में बंटे होते हैं। जिले के अधिकारियों की गिनती में निम्न आते हैं.

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भाषा

भाषा वह साधन है जिसके द्वारा हम अपने विचारों को व्यक्त करते है और इसके लिये हम वाचिक ध्वनियों का उपयोग करते हैं। भाषा मुख से उच्चारित होनेवाले शब्दों और वाक्यों आदि का वह समूह है जिनके द्वारा मन की बात बतलाई जाती है। किसी भाषा की सभी ध्वनियों के प्रतिनिधि स्वन एक व्यवस्था में मिलकर एक सम्पूर्ण भाषा की अवधारणा बनाते हैं। व्यक्त नाद की वह समष्टि जिसकी सहायता से किसी एक समाज या देश के लोग अपने मनोगत भाव तथा विचार एक दूसरे पर प्रकट करते हैं। मुख से उच्चारित होनेवाले शब्दों और वाक्यों आदि का वह समूह जिनके द्वारा मन की बात बतलाई जाती है। बोली। जबान। वाणी। विशेष— इस समय सारे संसार में प्रायः हजारों प्रकार की भाषाएँ बोली जाती हैं जो साधारणतः अपने भाषियों को छोड़ और लोगों की समझ में नहीं आतीं। अपने समाज या देश की भाषा तो लोग बचपन से ही अभ्यस्त होने के कारण अच्छी तरह जानते हैं, पर दूसरे देशों या समाजों की भाषा बिना अच्छी़ तरह नहीं आती। भाषाविज्ञान के ज्ञाताओं ने भाषाओं के आर्य, सेमेटिक, हेमेटिक आदि कई वर्ग स्थापित करके उनमें से प्रत्येक की अलग अलग शाखाएँ स्थापित की हैं और उन शाखाकों के भी अनेक वर्ग उपवर्ग बनाकर उनमें बड़ी बड़ी भाषाओं और उनके प्रांतीय भेदों, उपभाषाओं अथाव बोलियों को रखा है। जैसे हमारी हिंदी भाषा भाषाविज्ञान की दृष्टि से भाषाओं के आर्य वर्ग की भारतीय आर्य शाखा की एक भाषा है; और ब्रजभाषा, अवधी, बुंदेलखंडी आदि इसकी उपभाषाएँ या बोलियाँ हैं। पास पास बोली जानेवाली अनेक उपभाषाओं या बोलियों में बहुत कुछ साम्य होता है; और उसी साम्य के आधार पर उनके वर्ग या कुल स्थापित किए जाते हैं। यही बात बड़ी बड़ी भाषाओं में भी है जिनका पारस्परिक साम्य उतना अधिक तो नहीं, पर फिर भी बहुत कुछ होता है। संसार की सभी बातों की भाँति भाषा का भी मनुष्य की आदिम अवस्था के अव्यक्त नाद से अब तक बराबर विकास होता आया है; और इसी विकास के कारण भाषाओं में सदा परिवर्तन होता रहता है। भारतीय आर्यों की वैदिक भाषा से संस्कुत और प्राकृतों का, प्राकृतों से अपभ्रंशों का और अपभ्रंशों से आधुनिक भारतीय भाषाओं का विकास हुआ है। सामान्यतः भाषा को वैचारिक आदान-प्रदान का माध्यम कहा जा सकता है। भाषा आभ्यंतर अभिव्यक्ति का सर्वाधिक विश्वसनीय माध्यम है। यही नहीं वह हमारे आभ्यंतर के निर्माण, विकास, हमारी अस्मिता, सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान का भी साधन है। भाषा के बिना मनुष्य सर्वथा अपूर्ण है और अपने इतिहास तथा परम्परा से विच्छिन्न है। इस समय सारे संसार में प्रायः हजारों प्रकार की भाषाएँ बोली जाती हैं जो साधारणतः अपने भाषियों को छोड़ और लोगों की समझ में नहीं आतीं। अपने समाज या देश की भाषा तो लोग बचपन से ही अभ्यस्त होने के कारण अच्छी तरह जानते हैं, पर दूसरे देशों या समाजों की भाषा बिना अच्छी़ तरह सीखे नहीं आती। भाषाविज्ञान के ज्ञाताओं ने भाषाओं के आर्य, सेमेटिक, हेमेटिक आदि कई वर्ग स्थापित करके उनमें से प्रत्येक की अलग अलग शाखाएँ स्थापित की हैं और उन शाखाओं के भी अनेक वर्ग-उपवर्ग बनाकर उनमें बड़ी बड़ी भाषाओं और उनके प्रांतीय भेदों, उपभाषाओं अथाव बोलियों को रखा है। जैसे हिंदी भाषा भाषाविज्ञान की दृष्टि से भाषाओं के आर्य वर्ग की भारतीय आर्य शाखा की एक भाषा है; और ब्रजभाषा, अवधी, बुंदेलखंडी आदि इसकी उपभाषाएँ या बोलियाँ हैं। पास पास बोली जानेवाली अनेक उपभाषाओं या बोलियों में बहुत कुछ साम्य होता है; और उसी साम्य के आधार पर उनके वर्ग या कुल स्थापित किए जाते हैं। यही बात बड़ी बड़ी भाषाओं में भी है जिनका पारस्परिक साम्य उतना अधिक तो नहीं, पर फिर भी बहुत कुछ होता है। संसार की सभी बातों की भाँति भाषा का भी मनुष्य की आदिम अवस्था के अव्यक्त नाद से अब तक बराबर विकास होता आया है; और इसी विकास के कारण भाषाओं में सदा परिवर्तन होता रहता है। भारतीय आर्यों की वैदिक भाषा से संस्कृत और प्राकृतों का, प्राकृतों से अपभ्रंशों का और अपभ्रंशों से आधुनिक भारतीय भाषाओं का विकास हुआ है। प्रायः भाषा को लिखित रूप में व्यक्त करने के लिये लिपियों की सहायता लेनी पड़ती है। भाषा और लिपि, भाव व्यक्तीकरण के दो अभिन्न पहलू हैं। एक भाषा कई लिपियों में लिखी जा सकती है और दो या अधिक भाषाओं की एक ही लिपि हो सकती है। उदाहरणार्थ पंजाबी, गुरूमुखी तथा शाहमुखी दोनो में लिखी जाती है जबकि हिन्दी, मराठी, संस्कृत, नेपाली इत्यादि सभी देवनागरी में लिखी जाती है। .

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भिवानी

गंगा सतलुज के मैदान में बसा तथा दक्षिण में थार रेगिस्तान को छूता हुआ भिवानी, हरियाणा प्रदेश (भारत) का एक प्रमुख शहर तथा भिवानी जिले का प्रमुखालय है। क्षेत्रफल की दृष्टि से यह हरियाणा का सबसे बड़ा जिला है। यह प्रदेश अपने ऐतिहासिक तथा धार्मिक दृष्टव्य स्थलों के लिए प्रसिद्द है। इसके अलावा, भिवानी नगर शिक्षा, चिकित्सा एवं खेल कूद के लिए भी जाना जाता है। भिवानी हरियाणा के तीन मुख्यमंत्रियों की जन्मस्थली रह चुका है, चौ॰ बंसी लाल, बाबू गुप्ता एवं हुकुम चंद। भिवानी जिले को 22 दिसम्बर 1972 को हिसार से अलग कर दिया गया था। इस में छ: तहसील हैं - भिवानी, बवानी खेड़ा, तोशाम, चरखी दादरी, लोहारू और सिवानी। वर्त्तमान में चरखी दादरी को नया जिला बना दिया गया है भिवानी के उत्तर में हिसार, पूर्व में रोहतक, दक्षिण में महेंद्रगढ़, दक्षिण पूर्व में रेवाड़ी तथा पशिम और दक्षिण पश्चिम में राजस्थान है। ये हरियाणा के सबसे नीचे जल स्तर के जिलों में आता है। खासकर लोहारू और चरखी दादरी की ओर पानी की अत्यधिक कमी है। .

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महाराजा रणजीत सिंह

महाराजा रणजीत सिंह (पंजाबी: ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ) (१७८०-१८३९) सिख साम्राज्य के राजा थे। वे शेर-ए पंजाब के नाम से प्रसिद्ध हैं। जाट सिक्ख महाराजा रणजीत एक ऐसी व्यक्ति थे, जिन्होंने न केवल पंजाब को एक सशक्त सूबे के रूप में एकजुट रखा, बल्कि अपने जीते-जी अंग्रेजों को अपने साम्राज्य के पास भी नहीं भटकने दिया। रणजीत सिंह का जन्म सन 1780 में गुजरांवाला (अब पाकिस्तान) जाट सिक्ख महाराजा महां सिंह के घर हुआ था। उन दिनों पंजाब पर सिखों और अफगानों का राज चलता था जिन्होंने पूरे इलाके को कई मिसलों में बांट रखा था। रणजीत के पिता महा सिंह सुकरचकिया मिसल के कमांडर थे। पश्चिमी पंजाब में स्थित इस इलाके का मुख्यालय गुजरांवाला में था। छोटी सी उम्र में चेचक की वजह से महाराजा रणजीत सिंह की एक आंख की रोशनी जाती रही। महज 12 वर्ष के थे जब पिता चल बसे और राजपाट का सारा बोझ इन्हीं के कंधों पर आ गया। 12 अप्रैल 1801 को रणजीत ने महाराजा की उपाधि ग्रहण की। गुरु नानक के एक वंशज ने उनकी ताजपोशी संपन्न कराई। उन्होंने लाहौर को अपनी राजधानी बनाया और सन 1802 में अमृतसर की ओर रूख किया। महाराजा रणजीत ने अफगानों के खिलाफ कई लड़ाइयां लड़ीं और उन्हें पश्चिमी पंजाब की ओर खदेड़ दिया। अब पेशावर समेत पश्तून क्षेत्र पर उन्हीं का अधिकार हो गया। यह पहला मौका था जब पश्तूनों पर किसी गैर मुस्लिम ने राज किया। उसके बाद उन्होंने पेशावर, जम्मू कश्मीर और आनंदपुर पर भी अधिकार कर लिया। पहली आधुनिक भारतीय सेना - "सिख खालसा सेना" गठित करने का श्रेय भी उन्हीं को जाता है। उनकी सरपरस्ती में पंजाब अब बहुत शक्तिशाली सूबा था। इसी ताकतवर सेना ने लंबे अर्से तक ब्रिटेन को पंजाब हड़पने से रोके रखा। एक ऐसा मौका भी आया जब पंजाब ही एकमात्र ऐसा सूबा था, जिस पर अंग्रेजों का कब्जा नहीं था। ब्रिटिश इतिहासकार जे टी व्हीलर के मुताबिक, अगर वह एक पीढ़ी पुराने होते, तो पूरे हिंदूस्तान को ही फतह कर लेते। महाराजा रणजीत खुद अनपढ़ थे, लेकिन उन्होंने अपने राज्य में शिक्षा और कला को बहुत प्रोत्साहन दिया। उन्होंने पंजाब में कानून एवं व्यवस्था कायम की और कभी भी किसी को मृत्युदण्ड नहीं दी। उनका सूबा धर्मनिरपेक्ष था उन्होंने हिंदुओं और सिखों से वसूले जाने वाले जजिया पर भी रोक लगाई। कभी भी किसी को सिख धर्म अपनाने के लिए विवश नहीं किया। उन्होंने अमृतसर के हरिमन्दिर साहिब गुरूद्वारे में संगमरमर लगवाया और सोना मढ़वाया, तभी से उसे स्वर्ण मंदिर कहा जाने लगा। बेशकीमती हीरा कोहिनूर महाराजा रणजीत सिंह के खजाने की रौनक था। सन 1839 में महाराजा रणजीत का निधन हो गया। उनकी समाधि लाहौर में बनवाई गई, जो आज भी वहां कायम है। उनकी मौत के साथ ही अंग्रेजों का पंजाब पर शिकंजा कसना शुरू हो गया। अंग्रेज-सिख युद्ध के बाद 30 मार्च 1849 में पंजाब ब्रिटिश साम्राज्य का अंग बना लिया गया और कोहिनूर महारानी विक्टोरिया के हुजूर में पेश कर दिया गया। .

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महेंद्रगढ़

हरियाणा में स्थित महेन्द्रगढ़ अपने खूबसूरत पर्यटक स्थलों के लिए प्रसिद्ध है। यह महेंद्रगढ़ जिला मुख्यालय है। पहले यहां पर पृथ्वीराज चौहान के वंशज अंगपाल का साम्राज्य था। बाद में इस पर मराठों, झज्जार के नवाबों और ब्रिटिश शासकों ने भी शासन किया। आधुनिक महेन्द्रगढ़ की स्थापना १९४८ ई. में की गई थी। नारनौल, दादरी और महेन्द्रगढ़ इसके प्रमुख शहर हैं। इसके उत्तर में भिवानी व रोहतक, पूर्व में रेवाड़ी व अल्वर, दक्षिण में सीकर व जयपुर और पश्चिम में सीकर व झंझनू स्थित है। पिछले दिनों महेन्द्रगढ़ की दादरी तहसील को भिवानी में और गुड़गांव के भिवानी को महेन्द्रगढ़ में जोड़ा गया है। यहां के निवासी बडे हंसमुख और मिलनसार हैं। वह अपने यहां आने वाले पर्यटकों का स्वागत बड़ी गर्मजोशी से करते हैं। पर्यटकों को यहां कहीं भी बोरियत या नीरसता का सामना नहीं करना पड़ता। वह यहां पर शानदार छुट्टियां व्यतीत कर सकते हैं। .

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यादव

यादव (अर्थ- महाराज यदु के वंशज)) प्राचीन भारत के वह लोग जो पौराणिक नरेश यदु के वंशज होने का दावा करते रहे हैं। यादव वंश प्रमुख रूप से आभीर (वर्तमान अहीर), अंधक, व्रष्णि तथा सत्वत नामक समुदायों से मिलकर बना था, जो कि भगवान कृष्ण के उपासक थे। यह लोग प्राचीन भारतीय साहित्य मे यदुवंश के प्रमुख अंगों के रूप मे वर्णित है।Thapar, Romila (1978, reprint 1996). Ancient Indian Social History: Some Interpretations, नई दिल्ली: Orient Longman, ISBN 978-81-250-0808-8, p.223 प्राचीन, मध्यकालीन व आधुनिक भारत की कई जातियाँ तथा राज वंश स्वयं को यदु का वंशज बताते है और यादव नाम से जाने जाते है। .

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राजपूत

राजपूत उत्तर भारत का एक क्षत्रिय कुल माना जाता है।जो कि राजपुत्र का अपभ्रंश है। राजस्थान को ब्रिटिशकाल मे राजपूताना भी कहा गया है। पुराने समय में आर्य जाति में केवल चार वर्णों की व्यवस्था थी। राजपूत काल में प्राचीन वर्ण व्यवस्था समाप्त हो गयी थी तथा वर्ण के स्थान पर कई जातियाँ व उप जातियाँ बन गईं थीं। कवि चंदबरदाई के कथनानुसार राजपूतों की 36 जातियाँ थी। उस समय में क्षत्रिय वर्ण के अंतर्गत सूर्यवंश और चंद्रवंश के राजघरानों का बहुत विस्तार हुआ। .

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राजस्थान

राजस्थान भारत गणराज्य का क्षेत्रफल के आधार पर सबसे बड़ा राज्य है। इसके पश्चिम में पाकिस्तान, दक्षिण-पश्चिम में गुजरात, दक्षिण-पूर्व में मध्यप्रदेश, उत्तर में पंजाब (भारत), उत्तर-पूर्व में उत्तरप्रदेश और हरियाणा है। राज्य का क्षेत्रफल 3,42,239 वर्ग कि॰मी॰ (132139 वर्ग मील) है। 2011 की गणना के अनुसार राजस्थान की साक्षरता दर 66.11% हैं। जयपुर राज्य की राजधानी है। भौगोलिक विशेषताओं में पश्चिम में थार मरुस्थल और घग्गर नदी का अंतिम छोर है। विश्व की पुरातन श्रेणियों में प्रमुख अरावली श्रेणी राजस्थान की एक मात्र पर्वत श्रेणी है, जो कि पर्यटन का केन्द्र है, माउंट आबू और विश्वविख्यात दिलवाड़ा मंदिर सम्मिलित करती है। पूर्वी राजस्थान में दो बाघ अभयारण्य, रणथम्भौर एवं सरिस्का हैं और भरतपुर के समीप केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान है, जो सुदूर साइबेरिया से आने वाले सारसों और बड़ी संख्या में स्थानीय प्रजाति के अनेकानेक पक्षियों के संरक्षित-आवास के रूप में विकसित किया गया है। .

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राजा

राजा (king) राजतंत्रात्मक शासन तंत्र का सर्वोच्च पद है। प्रायः यह वंशानुगत होता है। कुछ उदाहरण ऐसे जरूर मिलते हैं जहाँ राजा का चुनाव वंश परंपरा के बाहर के लोगों में से किया गया है। वह अपने मंत्रियों की सलाह से अपने राज्य पर शासन करता है। वह अपने शासन क्षेत्र, अधिपत्य या नियंत्रण वाले क्षेत्रों के लोगों के लिए नियम और नीतियाँ बनाता है। उसकी सहायता के लिए दरबार में विभिन्न स्तर के पद होते हैं। राजा के गुण और कर्तव्यों पर महाभारत सहित अनेक ग्रंथों में प्रकाश डाला गया है। .

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राव तुला राम

राव तुलाराम सिंह (09 दिसम्बर 1825 -23 सितम्बर 1863) 1857 का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेताओं में से एक थे। उन्हे हरियाणा राज्य में " राज नायक" माना जाता है। विद्रोह काल मे, हरियाणा के दक्षिण-पश्चिम इलाके से सम्पूर्ण बिटिश हुकूमत को अस्थायी रूप से उखाड़ फेंकने तथा दिल्ली के ऐतिहासिक शहर में विद्रोही सैनिको की, सैन्य बल, धन व युद्ध सामाग्री से सहता प्रदान करने का श्रेय राव तुलाराम को जाता है। अंग्रेजों से भारत को मुक्त कराने के उद्देश्य से एक युद्ध लड़ने के लिए मदद लेने के लिए उन्होंने भारत छोड़ा तथा ईरान और अफगानिस्तान के शासकों से मुलाकात की, रूस के ज़ार के साथ सम्पर्क स्थापित करने की उनकी योजनाएँ थीं। इसी मध्य 37 वर्ष की आयु में 23 सितंबर 1863 को काबुल में पेचिश से उनकी मृत्यु हो गई। .

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राव रूड़ा सिंह

एक जंगली इलाके की जागीर को तिजारा के कुलीन अहीर शासक राव रुडा सिंह ने रेवाड़ी राज्य के रूप मे स्थापित किया था। यह जागीर उन्हें मुगल शासक हुमायूँ को मेधावी सैन्य सेवाओं के बदले में वर्ष 1555 में प्राप्त हुयी थी। राव रुडा सिंह ने रेवाड़ी से 12 किलोमीटर दूर दक्षिण पूर्व म स्थित एक छोटे से गाँव बोलनी को अपना मुख्यालय बनाया। उन्होने जंगलों की सफाई करवा के कई नए गाँव स्थापित किए थे। Man Singh, Abhirkuladipika Urdu (1900) Delhi, p.105 .

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रेवाड़ी

रेवाड़ी एक ऐतिहासिक शहर है। बलराम भगवान की राजधानी और उनके बाद कृष्ण भगवान के प्रपौत्र महाराज बज्रभान आभीरीया शासन को आगे बढ़ाया। हालाँकि यह शहर अपनी पुरानी छवि खोता जा रहा है। खाने के हिसाब से यहाँ की रेवड़ियाँ बहुत मशहूर हैं। .

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रोहतक लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र

रोहतक लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र भारत के हरियाणा राज्य का एक लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र है। श्रेणी:हरियाणा के लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र.

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लोक सभा

लोक सभा, भारतीय संसद का निचला सदन है। भारतीय संसद का ऊपरी सदन राज्य सभा है। लोक सभा सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के आधार पर लोगों द्वारा प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों से गठित होती है। भारतीय संविधान के अनुसार सदन में सदस्यों की अधिकतम संख्या 552 तक हो सकती है, जिसमें से 530 सदस्य विभिन्न राज्यों का और 20 सदस्य तक केन्द्र शासित प्रदेशों का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं। सदन में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं होने की स्थिति में भारत का राष्ट्रपति यदि चाहे तो आंग्ल-भारतीय समुदाय के दो प्रतिनिधियों को लोकसभा के लिए मनोनीत कर सकता है। लोकसभा की कार्यावधि 5 वर्ष है परंतु इसे समय से पूर्व भंग किया जा सकता है .

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सरदार हरि सिंह नलवा

सरदार हरि सिंह (1791 - 1837), सिक्ख महाराजा रणजीत सिंह के सेनाध्यक्ष थे जिन्होने पठानों से साथ कई युद्धों का नेतृत्व किया। रणनीति और रणकौशल की दृष्टि से हरि सिंह नलवा की तुलना भारत के श्रेष्ठ सेनानायकों से की जा सकती है। हरि सिंह नलवा ने कश्मीर पर विजय प्राप्त कर अपना लोहा मनवाया। यही नहीं, काबुल पर भी सेना चढ़ाकर जीत दर्ज की। खैबर दर्रे से होने वाले अफगान आक्रमणों से देश को मुक्त किया। इतिहास में पहली बार हुआ था कि पेशावरी पश्तून, पंजाबियों द्वारा शासित थे। महाराजा रणजीत सिंह के निर्देश के अनुसार हरि सिंह नलवा ने सिख साम्राज्य की भौगोलिक सीमाओं को पंजाब से लेकर काबुल बादशाहत के बीचोंबीच तक विस्तार किया था। महाराजा रणजीत सिंह के सिख शासन के दौरान 1807 ई. से लेकर 1837 ई. तक हरि सिंह नलवा लगातार अफगानों के खिलाफ लड़े। अफगानों के खिलाफ जटिल लड़ाई जीतकर नलवा ने कसूर, मुल्तान, कश्मीर और पेशावर में सिख शासन की व्यवस्था की थी। सर हेनरी ग्रिफिन ने हरि सिंह को "खालसाजी का चैंपियन" कहा है। ब्रिटिश शासकों ने हरि सिंह नलवा की तुलना नेपोलियन से भी की है। .

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हरियाणा

हरियाणा उत्तर भारत का एक राज्य है जिसकी राजधानी चण्डीगढ़ है। इसकी सीमायें उत्तर में हिमाचल प्रदेश, दक्षिण एवं पश्चिम में राजस्थान से जुड़ी हुई हैं। यमुना नदी इसके उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश राज्यों के साथ पूर्वी सीमा को परिभाषित करती है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली हरियाणा से तीन ओर से घिरी हुई है और फलस्वरूप हरियाणा का दक्षिणी क्षेत्र नियोजित विकास के उद्देश्य से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में शामिल है। यह राज्य वैदिक सभ्यता और सिंधु घाटी सभ्यता का मुख्य निवास स्थान है। इस क्षेत्र में विभिन्न निर्णायक लड़ाइयाँ भी हुई हैं जिसमें भारत का अधिकत्तर इतिहास समाहित है। इसमें महाभारत का महाकाव्य युद्ध भी शामिल है। हिन्दू मतों के अनुसार महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र में हुआ (इसमें भगवान कृष्ण ने भागवत गीता का वादन किया)। इसके अलावा यहाँ तीन पानीपत की लड़ाइयाँ हुई। ब्रितानी भारत में हरियाणा पंजाब राज्य का अंग था जिसे १९६६ में भारत के १७वें राज्य के रूप में पहचान मिली। वर्तमान में खाद्यान और दुध उत्पादन में हरियाणा देश में प्रमुख राज्य है। इस राज्य के निवासियों का प्रमुख व्यवसाय कृषि है। समतल कृषि भूमि निमज्जक कुओं (समर्सिबल पंप) और नहर से सिंचित की जाती है। १९६० के दशक की हरित क्रान्ति में हरियाणा का भारी योगदान रहा जिससे देश खाद्यान सम्पन्न हुआ। हरियाणा, भारत के अमीर राज्यों में से एक है और प्रति व्यक्ति आय के आधार पर यह देश का दूसरा सबसे धनी राज्य है। वर्ष २०१२-१३ में देश में इसकी प्रति-व्यक्ति १,१९,१५८ (अर्थव्यवस्था के आकार के आधार पर भारत के राज्य देखें) और वर्ष २०१३-१४ में १,३२,०८९ रही। इसके अतिरिक्त भारत में सबसे अधिक ग्रामीण करोड़पति भी इसी राज्य में हैं। हरियाणा आर्थिक रूप से दक्षिण एशिया का सबसे विकसित क्षेत्र है और यहाँ कृषि एवं विनिर्माण उद्योग ने १९७० के दशक से निरंतर वृद्धि का प्राप्त की है। भारत में हरियाणा यात्रि कारों, द्विचक्र वाहनों और ट्रैक्टरों के निर्माण में सर्वोपरी राज्य है। भारत में प्रति व्यक्ति निवेश के आधार पर वर्ष २००० से राज्य सर्वोपरी स्थान पर रहा है। .

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हरियाणा के मुख्यमंत्रियों की सूची

यह भारतीय राज्य हरियाणा के मुख्यमंत्रियों की सूची है। .

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हिन्दी

हिन्दी या भारतीय विश्व की एक प्रमुख भाषा है एवं भारत की राजभाषा है। केंद्रीय स्तर पर दूसरी आधिकारिक भाषा अंग्रेजी है। यह हिन्दुस्तानी भाषा की एक मानकीकृत रूप है जिसमें संस्कृत के तत्सम तथा तद्भव शब्द का प्रयोग अधिक हैं और अरबी-फ़ारसी शब्द कम हैं। हिन्दी संवैधानिक रूप से भारत की प्रथम राजभाषा और भारत की सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा है। हालांकि, हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा नहीं है क्योंकि भारत का संविधान में कोई भी भाषा को ऐसा दर्जा नहीं दिया गया था। चीनी के बाद यह विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा भी है। विश्व आर्थिक मंच की गणना के अनुसार यह विश्व की दस शक्तिशाली भाषाओं में से एक है। हिन्दी और इसकी बोलियाँ सम्पूर्ण भारत के विविध राज्यों में बोली जाती हैं। भारत और अन्य देशों में भी लोग हिन्दी बोलते, पढ़ते और लिखते हैं। फ़िजी, मॉरिशस, गयाना, सूरीनाम की और नेपाल की जनता भी हिन्दी बोलती है।http://www.ethnologue.com/language/hin 2001 की भारतीय जनगणना में भारत में ४२ करोड़ २० लाख लोगों ने हिन्दी को अपनी मूल भाषा बताया। भारत के बाहर, हिन्दी बोलने वाले संयुक्त राज्य अमेरिका में 648,983; मॉरीशस में ६,८५,१७०; दक्षिण अफ्रीका में ८,९०,२९२; यमन में २,३२,७६०; युगांडा में १,४७,०००; सिंगापुर में ५,०००; नेपाल में ८ लाख; जर्मनी में ३०,००० हैं। न्यूजीलैंड में हिन्दी चौथी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है। इसके अलावा भारत, पाकिस्तान और अन्य देशों में १४ करोड़ १० लाख लोगों द्वारा बोली जाने वाली उर्दू, मौखिक रूप से हिन्दी के काफी सामान है। लोगों का एक विशाल बहुमत हिन्दी और उर्दू दोनों को ही समझता है। भारत में हिन्दी, विभिन्न भारतीय राज्यों की १४ आधिकारिक भाषाओं और क्षेत्र की बोलियों का उपयोग करने वाले लगभग १ अरब लोगों में से अधिकांश की दूसरी भाषा है। हिंदी हिंदी बेल्ट का लिंगुआ फ़्रैंका है, और कुछ हद तक पूरे भारत (आमतौर पर एक सरल या पिज्जाइज्ड किस्म जैसे बाजार हिंदुस्तान या हाफ्लोंग हिंदी में)। भाषा विकास क्षेत्र से जुड़े वैज्ञानिकों की भविष्यवाणी हिन्दी प्रेमियों के लिए बड़ी सन्तोषजनक है कि आने वाले समय में विश्वस्तर पर अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व की जो चन्द भाषाएँ होंगी उनमें हिन्दी भी प्रमुख होगी। 'देशी', 'भाखा' (भाषा), 'देशना वचन' (विद्यापति), 'हिन्दवी', 'दक्खिनी', 'रेखता', 'आर्यभाषा' (स्वामी दयानन्द सरस्वती), 'हिन्दुस्तानी', 'खड़ी बोली', 'भारती' आदि हिन्दी के अन्य नाम हैं जो विभिन्न ऐतिहासिक कालखण्डों में एवं विभिन्न सन्दर्भों में प्रयुक्त हुए हैं। .

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जाट

जाट उत्तरी भारत और पाकिस्तान की एक जाति है। वर्ष 2016 तक, जाट, भारत की कुल जनसंख्या का 0.1 प्रतिशत हैं । एन्साइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका के अनुसार, .

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गुरुग्राम

गुरुग्राम (पूर्व नाम: गुड़गाँव), हरियाणा का एक नगर है जो राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली से सटा हुआ है। यह दिल्ली से ३२ किमी.

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गुर्जर

सम्राट मिहिर भोज की मूर्ति:भारत उपवन, अक्षरधाम मन्दिर, नई दिल्ली गुर्जर समाज, प्राचीन एवं प्रतिष्ठित समाज में से एक है। यह समुदाय गुज्जर, गूजर, गोजर, गुर्जर, गूर्जर और वीर गुर्जर नाम से भी जाना जाता है। गुर्जर मुख्यत: उत्तर भारत, पाकिस्तान और अफ़्ग़ानिस्तान में बसे हैं। इस जाति का नाम अफ़्ग़ानिस्तान के राष्ट्रगान में भी आता है। गुर्जरों के ऐतिहासिक प्रभाव के कारण उत्तर भारत और पाकिस्तान के बहुत से स्थान गुर्जर जाति के नाम पर रखे गए हैं, जैसे कि भारत का गुजरात राज्य, पाकिस्तानी पंजाब का गुजरात ज़िला और गुजराँवाला ज़िला और रावलपिंडी ज़िले का गूजर ख़ान शहर।; आधुनिक स्थिति प्राचीन काल में युद्ध कला में निपुण रहे गुर्जर मुख्य रूप से खेती और पशुपालन के व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। गुर्जर अच्छे योद्धा माने जाते थे और इसीलिए भारतीय सेना में अभी भी इनकी अच्छी ख़ासी संख्या है| गुर्जर महाराष्ट्र (जलगाँव जिला), दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर जैसे राज्यों में फैले हुए हैं। राजस्थान में सारे गुर्जर हिंदू हैं। सामान्यत: गुर्जर हिन्दू, सिख, मुस्लिम आदि सभी धर्मो में देखे जा सकते हैं। मुस्लिम तथा सिख गुर्जर, हिन्दू गुर्जरो से ही परिवर्तित हुए थे। पाकिस्तान में गुजरावालां, फैसलाबाद और लाहौर के आसपास इनकी अच्छी ख़ासी संख्या है। .

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कोटपुतली

कोटपूतली एक शहर तथा नगर पालिका है जो जयपुर जिला राजस्थान में हरियाणा सीमा के पास स्थित है जनसँख्या -२००१ के आंकडो के हिसाब से यहाँ की आबादी ४०१५७ है जिसमे ५३% पुरुष तथा ४७% महिला है, साक्षरता दर ६७% है कोटपूतली एक बड़े शहर और राजस्थान राज्य के जयपुर जिले में एक नगर पालिका है। अब यह मुख्य शहर का एक हिस्सा माना जाता है जो कोट और आसपास के पूतली गांव नामित मुख्य शहर है, से बना है। कोटपूतली एक बहुत पुरानी और ऐतिहासिक जगह है। यह महाभारत की अवधि के दौरान पास के कस्बे विराटनगरपर राजधानी होने मत्स्य (अब अलवर) राज्य का एक हिस्सा था। कोटपूतली तंवर राजपूत पाटन में अपने मूल, सीकर जिले में अब एक छोटे से शहर होने के नाम पर है जो टोरावाटी का एक हिस्सा था। ब्रिटिश काल के दौरान, कोटपूतली खेतड़ी की रियासत के तहत एक निजामत था। खेतड़ी के राजा सरदार सिंह उपस्थित सरदार स्कूल और सरदार जनाना अस्पताल सहित कोटपूतली में कई इमारतों का निर्माण किया। इसका स्थान भी बहुत अच्छा है। यह 79 किलोमीटर दूर अलवर से 105 किलोमीटर दूर जयपुर से और गुड़गांव से 128 किमी दूर है। यात्रा करने के लिए आस-पास के स्थानों पर यह एक तेजी से विकसित शहर है, जिनमें सिलीसेढ़, सरिस्का,विराटनगर,सरूंड माता,भानगढ़ अादि शामिल है। यहां पर सीमेंट उत्पादन के मामले में एशिया की सबसे बड़ी कंपनी अल्ट्राटेक सीमेंट का सीमेंट का कारखाना है। गत पंचायती चुनाव के दौरान कोटपूतली पंचायत समिति में से कुछ ग्राम प़ंचायतें निकालकर पावटा नयी पंचायत समिति बनायी गयी है। ग्राम पंचायत रायकरणपुरा के बखराना गांव में स्थित ठाकुर जी का मंदीर है जो दन्त कथानुसार लगभग ६०० वर्ष पुराना है। कोटपूतली के वर्तमान विधायक राजेंद्र सिंह यादव (कोंग्रेस) है वीर सिंह यादव श्रेणी:जयपुर जिले के गाँव.

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अलवर

अलवर भारत के राजस्थान प्रान्त का एक शहर है। यह नगर राजस्थान के मेवात अंचल के अंतर्गत आता है। दिल्ली के निकट होने के कारण यह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में शामिल है। राजस्थान की राजधानी जयपुर से करीब १६० कि॰मी॰ की दूरी पर है। अलवर अरावली की पहाडियों के मध्य में बसा है। अलवर का प्राचीन नाम 'शाल्वपुर' था। चारदीवारी और खाई से घिरे इस शहर में एक पर्वतश्रेणी की पृष्ठभूमि के सामने शंक्वाकार छन्द की पहाड़ी पर स्थित बाला क़िला इसकी विशिष्टता है। 1775 में इसे अलवर रजवाड़े की राजधानी बनाया गया था। वर्तमान में अलवर राजस्थान का महत्त्वपूर्ण औधोगिक नगर हैं तथा आठवाँ बड़ा नगर हैं। अलवर को राजस्थान का सिंह द्वार भी कहते हैं। अलवर यादव बाहुल्य जिला है। मतस्य प्रदेश अथवा अलवर का राठ क्षेत्र(बहरोड तथा नीमराना का क्षेत्र)पूरे जिले में अपना अलग ही प्रभाव रखता है। राठ के बारे में एक बात कही जाती है "ना राठ नवै, ना राठ मनै"। अर्थात राठ ना तो झुकाने से झुकता है और ना ही मनाने से मानता है,राठ क्षेत्र अपनी मर्जी से चलता है। .

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अलवर लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र

अलवर लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र भारत के राजस्थान राज्य का एक लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र है। .

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अहीर

अहीर प्रमुखतः एक भारतीय जाति समूह है,जिसके सदस्यों को यादव समुदाय के नाम से भी पहचाना जाता है तथा अहीर व यादव या राव साहब Rajasthan, Anthropological Survey of India, 1998, आईएसबीएन-9788171547661, पृष्ठ-44,45 शब्दों को एक दूसरे का पर्यायवाची समझा जाता है। अहीरों को एक जाति, वर्ण, आदिम जाति या नस्ल के रूप मे वर्णित किया जाता है, जिन्होने भारत व नेपाल के कई हिस्सों पर राज किया है। .

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अहीर्वती

अहीर्वती एक इंडो-आर्यन भाषा है, जिसे हरियाणा-राजस्थानी भाषा के रूप में वर्गीकृत किया गया है और अहीरवाल, दिल्ली, रेवाड़ी, महेंद्रगढ़ में बोली जाती है। और गुड़गांव, हरियाणा, अलवर और कोटपुटली राजस्थान के। प्रसिद्ध इतिहासकार रॉबर्ट वान रसेल अहिरवती के अनुसार यदुवंशी अहीर की भाषा है और हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली में बोली जाती है। यह मेवाती के समान है, राजस्थानी के रूपों में से एक या अहीर की भाषा भी राजपूताना की भाषा है रेवाड़ी, महेन्द्रगढ़, गुरगांव, कोटकासिम, कोटपुटली, बंसूर, दक्षिण दिल्ली, बिहोर, दक्षिण-पश्चिम दिल्ली, और मुंदवावार को अहीर्वती बोलने वाले क्षेत्र का केंद्र माना जा सकता है। श्रेणी:भारत यूरोपीय भाषा परिवार.

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१८५७ का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम

१८५७ के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों को समर्पित भारत का डाकटिकट। १८५७ का भारतीय विद्रोह, जिसे प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, सिपाही विद्रोह और भारतीय विद्रोह के नाम से भी जाना जाता है इतिहास की पुस्तकें कहती हैं कि 1857 की क्रान्ति की शुरूआत '10 मई 1857' की संध्या को मेरठ मे हुई थी और इसको समस्त भारतवासी 10 मई को प्रत्येक वर्ष ”क्रान्ति दिवस“ के रूप में मनाते हैं, क्रान्ति की शुरूआत करने का श्रेय अमर शहीद कोतवाल धनसिंह गुर्जर को जाता है 10 मई 1857 को मेरठ में विद्रोही सैनिकों और पुलिस फोर्स ने अंग्रेजों के विरूद्ध साझा मोर्चा गठित कर क्रान्तिकारी घटनाओं को अंजाम दिया।1 सैनिकों के विद्रोह की खबर फैलते ही मेरठ की शहरी जनता और आस-पास के गांव विशेषकर पांचली, घाट, नंगला, गगोल इत्यादि के हजारों ग्रामीण मेरठ की सदर कोतवाली क्षेत्र में जमा हो गए। इसी कोतवाली में धन सिंह कोतवाल (प्रभारी) के पद पर कार्यरत थे।2 मेरठ की पुलिस बागी हो चुकी थी। धन सिंह कोतवाल क्रान्तिकारी भीड़ (सैनिक, मेरठ के शहरी, पुलिस और किसान) में एक प्राकृतिक नेता के रूप में उभरे। उनका आकर्षक व्यक्तित्व, उनका स्थानीय होना, (वह मेरठ के निकट स्थित गांव पांचली के रहने वाले थे), पुलिस में उच्च पद पर होना और स्थानीय क्रान्तिकारियों का उनको विश्वास प्राप्त होना कुछ ऐसे कारक थे जिन्होंने धन सिंह को 10 मई 1857 के दिन मेरठ की क्रान्तिकारी जनता के नेता के रूप में उभरने में मदद की। उन्होंने क्रान्तिकारी भीड़ का नेतृत्व किया और रात दो बजे मेरठ जेल पर हमला कर दिया। जेल तोड़कर 836 कैदियों को छुड़ा लिया और जेल में आग लगा दी।3 जेल से छुड़ाए कैदी भी क्रान्ति में शामिल हो गए। उससे पहले पुलिस फोर्स के नेतृत्व में क्रान्तिकारी भीड़ ने पूरे सदर बाजार और कैंट क्षेत्र में क्रान्तिकारी घटनाओं को अंजाम दिया। रात में ही विद्रोही सैनिक दिल्ली कूच कर गए और विद्रोह मेरठ के देहात में फैल गया। मंगल पाण्डे 8 अप्रैल, 1857 को बैरकपुर, बंगाल में शहीद हो गए थे। मंगल पाण्डे ने चर्बी वाले कारतूसों के विरोध में अपने एक अफसर को 29 मार्च, 1857 को बैरकपुर छावनी, बंगाल में गोली से उड़ा दिया था। जिसके पश्चात उन्हें गिरफ्तार कर बैरकपुर (बंगाल) में 8 अप्रैल को फासी दे दी गई थी। 10 मई, 1857 को मेरठ में हुए जनक्रान्ति के विस्फोट से उनका कोई सम्बन्ध नहीं है। क्रान्ति के दमन के पश्चात् ब्रिटिश सरकार ने 10 मई, 1857 को मेरठ मे हुई क्रान्तिकारी घटनाओं में पुलिस की भूमिका की जांच के लिए मेजर विलियम्स की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की गई।4 मेजर विलियम्स ने उस दिन की घटनाओं का भिन्न-भिन्न गवाहियों के आधार पर गहन विवेचन किया तथा इस सम्बन्ध में एक स्मरण-पत्र तैयार किया, जिसके अनुसार उन्होंने मेरठ में जनता की क्रान्तिकारी गतिविधियों के विस्फोट के लिए धन सिंह कोतवाल को मुख्य रूप से दोषी ठहराया, उसका मानना था कि यदि धन सिंह कोतवाल ने अपने कर्तव्य का निर्वाह ठीक प्रकार से किया होता तो संभवतः मेरठ में जनता को भड़कने से रोका जा सकता था।5 धन सिंह कोतवाल को पुलिस नियंत्रण के छिन्न-भिन्न हो जाने के लिए दोषी पाया गया। क्रान्तिकारी घटनाओं से दमित लोगों ने अपनी गवाहियों में सीधे आरोप लगाते हुए कहा कि धन सिंह कोतवाल क्योंकि स्वयं गूजर है इसलिए उसने क्रान्तिकारियों, जिनमें गूजर बहुसंख्या में थे, को नहीं रोका। उन्होंने धन सिंह पर क्रान्तिकारियों को खुला संरक्षण देने का आरोप भी लगाया।6 एक गवाही के अनुसार क्रान्तिकरियों ने कहा कि धन सिंह कोतवाल ने उन्हें स्वयं आस-पास के गांव से बुलाया है 7 यदि मेजर विलियम्स द्वारा ली गई गवाहियों का स्वयं विवेचन किया जाये तो पता चलता है कि 10 मई, 1857 को मेरठ में क्रांति का विस्फोट काई स्वतः विस्फोट नहीं वरन् एक पूर्व योजना के तहत एक निश्चित कार्यवाही थी, जो परिस्थितिवश समय पूर्व ही घटित हो गई। नवम्बर 1858 में मेरठ के कमिश्नर एफ0 विलियम द्वारा इसी सिलसिले से एक रिपोर्ट नोर्थ - वैस्टर्न प्रान्त (आधुनिक उत्तर प्रदेश) सरकार के सचिव को भेजी गई। रिपोर्ट के अनुसार मेरठ की सैनिक छावनी में ”चर्बी वाले कारतूस और हड्डियों के चूर्ण वाले आटे की बात“ बड़ी सावधानी पूर्वक फैलाई गई थी। रिपोर्ट में अयोध्या से आये एक साधु की संदिग्ध भूमिका की ओर भी इशारा किया गया था।8 विद्रोही सैनिक, मेरठ शहर की पुलिस, तथा जनता और आस-पास के गांव के ग्रामीण इस साधु के सम्पर्क में थे। मेरठ के आर्य समाजी, इतिहासज्ञ एवं स्वतन्त्रता सेनानी आचार्य दीपांकर के अनुसार यह साधु स्वयं दयानन्द जी थे और वही मेरठ में 10 मई, 1857 की घटनाओं के सूत्रधार थे। मेजर विलियम्स को दो गयी गवाही के अनुसार कोतवाल स्वयं इस साधु से उसके सूरजकुण्ड स्थित ठिकाने पर मिले थे।9 हो सकता है ऊपरी तौर पर यह कोतवाल की सरकारी भेंट हो, परन्तु दोनों के आपस में सम्पर्क होने की बात से इंकार नहीं किया जा सकता। वास्तव में कोतवाल सहित पूरी पुलिस फोर्स इस योजना में साधु (सम्भवतः स्वामी दयानन्द) के साथ देशव्यापी क्रान्तिकारी योजना में शामिल हो चुकी थी। 10 मई को जैसा कि इस रिपोर्ट में बताया गया कि सभी सैनिकों ने एक साथ मेरठ में सभी स्थानों पर विद्रोह कर दिया। ठीक उसी समय सदर बाजार की भीड़, जो पहले से ही हथियारों से लैस होकर इस घटना के लिए तैयार थी, ने भी अपनी क्रान्तिकारी गतिविधियां शुरू कर दीं। धन सिंह कोतवाल ने योजना के अनुसार बड़ी चतुराई से ब्रिटिश सरकार के प्रति वफादार पुलिस कर्मियों को कोतवाली के भीतर चले जाने और वहीं रहने का आदेश दिया।10 आदेश का पालन करते हुए अंग्रेजों के वफादार पिट्ठू पुलिसकर्मी क्रान्ति के दौरान कोतवाली में ही बैठे रहे। इस प्रकार अंग्रेजों के वफादारों की तरफ से क्रान्तिकारियों को रोकने का प्रयास नहीं हो सका, दूसरी तरफ उसने क्रान्तिकारी योजना से सहमत सिपाहियों को क्रान्ति में अग्रणी भूमिका निभाने का गुप्त आदेश दिया, फलस्वरूप उस दिन कई जगह पुलिस वालों को क्रान्तिकारियों की भीड़ का नेतृत्व करते देखा गया।11 धन सिंह कोतवाल अपने गांव पांचली और आस-पास के क्रान्तिकारी गूजर बाहुल्य गांव घाट, नंगला, गगोल आदि की जनता के सम्पर्क में थे, धन सिंह कोतवाल का संदेश मिलते ही हजारों की संख्या में गूजर क्रान्तिकारी रात में मेरठ पहुंच गये। मेरठ के आस-पास के गांवों में प्रचलित किवंदन्ती के अनुसार इस क्रान्तिकारी भीड़ ने धन सिंह कोतवाल के नेतृत्व में देर रात दो बजे जेल तोड़कर 836 कैदियों को छुड़ा लिया12 और जेल को आग लगा दी। मेरठ शहर और कैंट में जो कुछ भी अंग्रेजों से सम्बन्धित था उसे यह क्रान्तिकारियों की भीड़ पहले ही नष्ट कर चुकी थी। उपरोक्त वर्णन और विवेचना के आधार पर हम निःसन्देह कह सकते हैं कि धन सिंह कोतवाल ने 10 मई, 1857 के दिन मेरठ में मुख्य भूमिका का निर्वाह करते हुए क्रान्तिकारियों को नेतृत्व प्रदान किया था।1857 की क्रान्ति की औपनिवेशिक व्याख्या, (ब्रिटिश साम्राज्यवादी इतिहासकारों की व्याख्या), के अनुसार 1857 का गदर मात्र एक सैनिक विद्रोह था जिसका कारण मात्र सैनिक असंतोष था। इन इतिहासकारों का मानना है कि सैनिक विद्रोहियों को कहीं भी जनप्रिय समर्थन प्राप्त नहीं था। ऐसा कहकर वह यह जताना चाहते हैं कि ब्रिटिश शासन निर्दोष था और आम जनता उससे सन्तुष्ट थी। अंग्रेज इतिहासकारों, जिनमें जौन लोरेंस और सीले प्रमुख हैं ने भी 1857 के गदर को मात्र एक सैनिक विद्रोह माना है, इनका निष्कर्ष है कि 1857 के विद्रोह को कही भी जनप्रिय समर्थन प्राप्त नहीं था, इसलिए इसे स्वतन्त्रता संग्राम नहीं कहा जा सकता। राष्ट्रवादी इतिहासकार वी0 डी0 सावरकर और सब-आल्टरन इतिहासकार रंजीत गुहा ने 1857 की क्रान्ति की साम्राज्यवादी व्याख्या का खंडन करते हुए उन क्रान्तिकारी घटनाओं का वर्णन किया है, जिनमें कि जनता ने क्रान्ति में व्यापक स्तर पर भाग लिया था, इन घटनाओं का वर्णन मेरठ में जनता की सहभागिता से ही शुरू हो जाता है। समस्त पश्चिम उत्तर प्रदेश के बन्जारो, रांघड़ों और गूजर किसानों ने 1857 की क्रान्ति में व्यापक स्तर पर भाग लिया। पूर्वी उत्तर प्रदेश में ताल्लुकदारों ने अग्रणी भूमिका निभाई। बुनकरों और कारीगरों ने अनेक स्थानों पर क्रान्ति में भाग लिया। 1857 की क्रान्ति के व्यापक आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक कारण थे और विद्रोही जनता के हर वर्ग से आये थे, ऐसा अब आधुनिक इतिहासकार सिद्ध कर चुके हैं। अतः 1857 का गदर मात्र एक सैनिक विद्रोह नहीं वरन् जनसहभागिता से पूर्ण एक राष्ट्रीय स्वतन्त्रता संग्राम था। परन्तु 1857 में जनसहभागिता की शुरूआत कहाँ और किसके नेतृत्व में हुई ? इस जनसहभागिता की शुरूआत के स्थान और इसमें सहभागिता प्रदर्शित वाले लोगों को ही 1857 की क्रान्ति का जनक कहा जा सकता है। क्योंकि 1857 की क्रान्ति में जनता की सहभागिता की शुरूआत धन सिंह कोतवाल के नेतृत्व में मेरठ की जनता ने की थी। अतः ये ही 1857 की क्रान्ति के जनक कहे जाते हैं। 10, मई 1857 को मेरठ में जो महत्वपूर्ण भूमिका धन सिंह और उनके अपने ग्राम पांचली के भाई बन्धुओं ने निभाई उसकी पृष्ठभूमि में अंग्रेजों के जुल्म की दास्तान छुपी हुई है। ब्रिटिश साम्राज्य की औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था की कृषि नीति का मुख्य उद्देश्य सिर्फ अधिक से अधिक लगान वसूलना था। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अंग्रेजों ने महलवाड़ी व्यवस्था लागू की थी, जिसके तहत समस्त ग्राम से इकट्ठा लगान तय किया जाता था और मुखिया अथवा लम्बरदार लगान वसूलकर सरकार को देता था। लगान की दरें बहुत ऊंची थी, और उसे बड़ी कठोरता से वसूला जाता था। कर न दे पाने पर किसानों को तरह-तरह से बेइज्जत करना, कोड़े मारना और उन्हें जमीनों से बेदखल करना एक आम बात थी, किसानों की हालत बद से बदतर हो गई थी। धन सिंह कोतवाल भी एक किसान परिवार से सम्बन्धित थे। किसानों के इन हालातों से वे बहुत दुखी थे। धन सिंह के पिता पांचली ग्राम के मुखिया थे, अतः अंग्रेज पांचली के उन ग्रामीणों को जो किसी कारणवश लगान नहीं दे पाते थे, उन्हें धन सिंह के अहाते में कठोर सजा दिया करते थे, बचपन से ही इन घटनाओं को देखकर धन सिंह के मन में आक्रोष जन्म लेने लगा।13 ग्रामीणों के दिलो दिमाग में ब्रिटिष विरोध लावे की तरह धधक रहा था। 1857 की क्रान्ति में धन सिंह और उनके ग्राम पांचली की भूमिका का विवेचन करते हुए हम यह नहीं भूल सकते कि धन सिंह गूजर जाति में जन्में थे, उनका गांव गूजर बहुल था। 1707 ई0 में औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात गूजरों ने पश्चिम उत्तर प्रदेश में अपनी राजनैतिक ताकत काफी बढ़ा ली थी।14 लढ़ौरा, मुण्डलाना, टिमली, परीक्षितगढ़, दादरी, समथर-लौहा गढ़, कुंजा बहादुरपुर इत्यादि रियासतें कायम कर वे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक गूजर राज्य बनाने के सपने देखने लगे थे।15 1803 में अंग्रेजों द्वारा दोआबा पर अधिकार करने के वाद गूजरों की शक्ति क्षीण हो गई थी, गूजर मन ही मन अपनी राजनैतिक शक्ति को पुनः पाने के लिये आतुर थे, इस दषा में प्रयास करते हुए गूजरों ने सर्वप्रथम 1824 में कुंजा बहादुरपुर के ताल्लुकदार विजय सिंह और कल्याण सिंह उर्फ कलवा गूजर के नेतृत्व में सहारनपुर में जोरदार विद्रोह किये।16 पश्चिमी उत्तर प्रदेष के गूजरों ने इस विद्रोह में प्रत्यक्ष रूप से भाग लिया परन्तु यह प्रयास सफल नहीं हो सका। 1857 के सैनिक विद्रोह ने उन्हें एक और अवसर प्रदान कर दिया। समस्त पश्चिमी उत्तर प्रदेष में देहरादून से लेकिन दिल्ली तक, मुरादाबाद, बिजनौर, आगरा, झांसी तक। पंजाब, राजस्थान से लेकर महाराष्ट्र तक के गूजर इस स्वतन्त्रता संग्राम में कूद पड़े। हजारों की संख्या में गूजर शहीद हुए और लाखों गूजरों को ब्रिटेन के दूसरे उपनिवेषों में कृषि मजदूर के रूप में निर्वासित कर दिया। इस प्रकार धन सिंह और पांचली, घाट, नंगला और गगोल ग्रामों के गूजरों का संघर्ष गूजरों के देशव्यापी ब्रिटिष विरोध का हिस्सा था। यह तो बस एक शुरूआत थी। 1857 की क्रान्ति के कुछ समय पूर्व की एक घटना ने भी धन सिंह और ग्रामवासियों को अंग्रेजी शासन को उखाड़ फेंकने के लिए प्रेरित किया। पांचली और उसके निकट के ग्रामों में प्रचलित किंवदन्ती के अनुसार घटना इस प्रकार है, ”अप्रैल का महीना था। किसान अपनी फसलों को उठाने में लगे हुए थे। एक दिन करीब 10 11 बजे के आस-पास बजे दो अंग्रेज तथा एक मेम पांचली खुर्द के आमों के बाग में थोड़ा आराम करने के लिए रूके। इसी बाग के समीप पांचली गांव के तीन किसान जिनके नाम मंगत सिंह, नरपत सिंह और झज्जड़ सिंह (अथवा भज्जड़ सिंह) थे, कृषि कार्यो में लगे थे। अंग्रेजों ने इन किसानों से पानी पिलाने का आग्रह किया। अज्ञात कारणों से इन किसानों और अंग्रेजों में संघर्ष हो गया। इन किसानों ने अंग्रेजों का वीरतापूर्वक सामना कर एक अंग्रेज और मेम को पकड़ दिया। एक अंग्रेज भागने में सफल रहा। पकड़े गए अंग्रेज सिपाही को इन्होंने हाथ-पैर बांधकर गर्म रेत में डाल दिया और मेम से बलपूर्वक दायं हंकवाई। दो घंटे बाद भागा हुआ सिपाही एक अंग्रेज अधिकारी और 25-30 सिपाहियों के साथ वापस लौटा। तब तक किसान अंग्रेज सैनिकों से छीने हुए हथियारों, जिनमें एक सोने की मूठ वाली तलवार भी थी, को लेकर भाग चुके थे। अंग्रेजों की दण्ड नीति बहुत कठोर थी, इस घटना की जांच करने और दोषियों को गिरफ्तार कर अंग्रेजों को सौंपने की जिम्मेदारी धन सिंह के पिता, जो कि गांव के मुखिया थे, को सौंपी गई। ऐलान किया गया कि यदि मुखिया ने तीनों बागियों को पकड़कर अंग्रेजों को नहीं सौपा तो सजा गांव वालों और मुखिया को भुगतनी पड़ेगी। बहुत से ग्रामवासी भयवश गाँव से पलायन कर गए। अन्ततः नरपत सिंह और झज्जड़ सिंह ने तो समर्पण कर दिया किन्तु मंगत सिंह फरार ही रहे। दोनों किसानों को 30-30 कोड़े और जमीन से बेदखली की सजा दी गई। फरार मंगत सिंह के परिवार के तीन सदस्यों के गांव के समीप ही फांसी पर लटका दिया गया। धन सिंह के पिता को मंगत सिंह को न ढूंढ पाने के कारण छः माह के कठोर कारावास की सजा दी गई। इस घटना ने धन सिंह सहित पांचली के बच्चे-बच्चे को विद्रोही बना दिया।17 जैसे ही 10 मई को मेरठ में सैनिक बगावत हुई धन सिंह और ने क्रान्ति में सहभागिता की शुरूआत कर इतिहास रच दिया। क्रान्ति मे अग्रणी भूमिका निभाने की सजा पांचली व अन्य ग्रामों के किसानों को मिली। मेरठ गजेटियर के वर्णन के अनुसार 4 जुलाई, 1857 को प्रातः चार बजे पांचली पर एक अंग्रेज रिसाले ने तोपों से हमला किया। रिसाले में 56 घुड़सवार, 38 पैदल सिपाही और 10 तोपची थे। पूरे ग्राम को तोप से उड़ा दिया गया। सैकड़ों किसान मारे गए, जो बच गए उनमें से 46 लोग कैद कर लिए गए और इनमें से 40 को बाद में फांसी की सजा दे दी गई।18 आचार्य दीपांकर द्वारा रचित पुस्तक स्वाधीनता आन्दोलन और मेरठ के अनुसार पांचली के 80 लोगों को फांसी की सजा दी गई थी। पूरे गांव को लगभग नष्ट ही कर दिया गया। ग्राम गगोल के भी 9 लोगों को दशहरे के दिन फाँसी की सजा दी गई और पूरे ग्राम को नष्ट कर दिया। आज भी इस ग्राम में दश्हरा नहीं मनाया जाता। संदर्भ एवं टिप्पणी 1.

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