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हमास और २०१० से प्रारंभ होने वाली अरब जगत की क्रांतिकारी लहर

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

हमास और २०१० से प्रारंभ होने वाली अरब जगत की क्रांतिकारी लहर के बीच अंतर

हमास vs. २०१० से प्रारंभ होने वाली अरब जगत की क्रांतिकारी लहर

हमास (अरबी भाषा में حركة المقاومة الاسلامي, या हरकत अल-मुकावामा अल-इस्लामिया या "इस्लामिक प्रतिरोध आंदोलन") फ़िलिस्तीनी सुन्नी मुसलमानों की एक सशस्त्र संस्था है जो फ़िलिस्तीन राष्ट्रीय प्राधिकरण की मुख्य पार्टी है। हमास का गठन 1987 में मिस्र तथा फलस्तीन के मुसलमानों ने मिलकर किया था जिसका उद्धेश्य क्षेत्र में इसरायली प्रशासन के स्थान पर इस्लामिक शासन की स्थापना करनी थी। हमास का प्रभाव ग़ज़ा पट्टी में अधिक है। इसके सशस्त्र विभाग का गठन 1992 में हुआ था। 1993 में किए गए पहले आत्मघाती हमले के बाद से लेकर 2005 तक हमास ने इसरायली क्षेत्रों में कई आत्मघाती हमले किए। 2005 में हमास ने हिंसा से अपने आप को अलग किया और 2006 में फलीस्तीनी चुनावों में हमास को जीत मिली। इसके बाद 2006 से गज़ा से इसरायली क्षेत्रों में रॉकेट हमलों का सिलसिला आरंभ हुआ जिसके लिए हमास को जिम्मेवार माना जाता है। सन् 2008 के अंत में इसरायल द्वारा गज़ा पट्टी में हमास के खिलाफ की गई सैन्य कार्रवाई में कोई 1300 लोग मारे गए थे। इस अभियान का उद्देश्य इसरायली क्षेत्रों में रॉकेट हमले रोकना था। पर हमास ने इसरायल पर आम नागरिकों को मारने का आरोप लगाया। . मध्य पश्चिमी एशिया एवं उत्तरी अफ्रीका में श्रृखंलाबद्ध विरोध-प्रदर्शन एवं धरना का दौर २०१० मे आरंभ हुआ, इसे अरब जागृति, अरब स्प्रिंग या अरब विद्रोह कहतें हैं। अरब स्प्रिंग, क्रान्ति की एक ऐसी लहर थी जिसने धरना, विरोध-प्रदर्शन, दंगा तथा सशस्त्र संघर्ष की बदौलत पूरे अरब जगत के संग समूचे विश्व को हिला कर रख दिया। इसकी शुरूआत ट्यूनीशिया में १८ दिसमबर २०१० को मोहम्मद बउज़िज़ी (Md. Bouazizi) के आत्मदाह के साथ हुई। इसकी आग की लपटें पहले-पहल अल्जीरिया, मिस्र, जॉर्डन और यमन पहुँची जो शीघ्र ही पूरे अरब लीग एवं इसके आसपास के क्षेत्रों में फैल गई। इन विरोध प्रदर्शनो के परिणाम स्वरूप कई देशों के शासकों को सत्ता की गद्दी से हटने पर मजबूर होना पड़ा। बहरीन, सीरिया, अल्जीरिया, ईरक, सुडान, कुवैत, मोरक्को, इजरायल में भारी जनविरोध हुए, तो वही मौरितानिया, ओमान, सऊदी अरब, पश्चिमी सहारा तथा पलीस्तिन भी इससे अछूते न रहे। हालाँकि यह क्रान्ति अलग-अलग देशों में हो रही थी, परंतु इनके विरोध प्रदर्शनो के तौर-तरीके में कई समानता थी - हड़ताल, धरना, मार्च एवं रैली। अमूमन, शुक्रवार (जिसे आक्रोश का दिन भी कहा जाता) को विशाल एवं संगठित भारी विरोध प्रदर्शन होता, जब जुमे की नमाज़ अदा कर सड़कों पर आम नागरिक इकठ्ठित होते थे। सोशल मीडिया का अरब क्रांति में अनोखा एवं अभूतपूर्व योगदान था। एक बेहद ही ढ़ाँचागत तरीके से दूर-दराज के लोगों को क्रांति से जोड़ने के लिए सोशल मीडिया का भरपूर इस्तेमाल हुआ। अरब सप्रिङ के क्रन्तिकारियों को सरकार, सरकार-समर्थित हथियारबंद लड़ाके एवं अन्य विरोधियों से दमन का सामना करना पड़ा, लेकिन ये अपने नारे 'Ash-sha`b yurid isqat an-nizam' (अंग्रेज़ी में - "the people want to bring down the regime"; हिन्दी में - 'जनता की पुकार-शासन का खात्मा हो') के साथ आगे बढ़ते रहें। अरब क्रांति ने पूरी दुनिया का आकर्षण अपनी ओर खींचा। तवाकोल करमान (Tawakkol Karman), यमनवासी, अरब स्प्रिङ के प्रमुख योद्धाओं में एक, २०११ शान्ति नोबल पुरस्कार विजेता थी। दिसमबर २०११ में 'टाईम' पत्रिका ने अरब विरोधियों को 'द परसन ऑफ द ईयर' (The Person of the Year) की खिताब से नवाजा। .

हमास और २०१० से प्रारंभ होने वाली अरब जगत की क्रांतिकारी लहर के बीच समानता

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हमास और २०१० से प्रारंभ होने वाली अरब जगत की क्रांतिकारी लहर के बीच तुलना

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संदर्भ

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