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स्वदेशी और हिन्दू मेला

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

स्वदेशी और हिन्दू मेला के बीच अंतर

स्वदेशी vs. हिन्दू मेला

स्वदेशी का अर्थ है- 'अपने देश का' अथवा 'अपने देश में निर्मित'। वृहद अर्थ में किसी भौगोलिक क्षेत्र में जन्मी, निर्मित या कल्पित वस्तुओं, नीतियों, विचारों को स्वदेशी कहते हैं। वर्ष 1905 के बंग-भंग विरोधी जनजागरण से स्वदेशी आन्दोलन को बहुत बल मिला, यह 1911 तक चला और गाँधी जी के भारत में पदार्पण के पूर्व सभी सफल अन्दोलनों में से एक था। अरविन्द घोष, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, वीर सावरकर, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और लाला लाजपत राय स्वदेशी आन्दोलन के मुख्य उद्घोषक थे। आगे चलकर यही स्वदेशी आन्दोलन महात्मा गांधी के स्वतन्त्रता आन्दोलन का भी केन्द्र-बिन्दु बन गया। उन्होंने इसे "स्वराज की आत्मा" कहा। . हिन्दु मेला एक सामाजिक-सांस्कृतिक संस्था थी जिसकी स्थापना 1867 में गणेन्द्रनाथ ठाकुर ने द्विजेन्द्र नाथ ठाकुर, राजनारायण बसु और नवगोपाल मित्र के साथ मिलकर की थी। इसे 'चैत्र मेला' भी कहते थे क्योंकि इसकी स्थापना चैत्र संक्रान्ति (बंगाली वर्ष का अन्तिम दिन) के दिन हुई थी। गगेन्द्रनाथ ठाकुर इसके संस्थापक सचिव थे। हिन्दु मेला ने बंगाल के पढे लिखे वर्ग में देश के लिये सोचने, उसके प्रति देशवासियों को तैयार करने की कोशिश की। यह किसी धार्मिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए नहीं बनी थी। यह देशभक्ति का विकास और स्वदेशी उद्योगों को बढ़ावा देने का कार्य करती थी। इसका उद्देश्य भारत की सभ्यता की कीर्ति को पुनर्जीवित करना, देशवासियों को जागृत करना, राष्ट्रभाषा का विकास करना, उनके विचारों को उन्नत बनाना था ताकि अंग्रेजों द्वारा किये जा रहे सांस्कृतिक उपनिवेशीकरण का प्रतिकार किया जा सके। यह मेला प्रतिवर्ष चैत्र संक्रान्ति को आयोजित किया जाता था। इसमें देशभक्ति के गीत, कविताएँ और व्याख्यान होते थे। इसमें भारत के राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक दशा की विस्तृत समीक्षा की जाती थी। स्वदेशी कला, स्वदेशी हस्तशिल्प, स्वदेशी व्यायाम और पहलवानी की प्रदर्शनी लगती थी। इसमें अखिल भारतीयता का भी ध्यान रखा जाता था तथा बनारस, जयपुर, लखनऊ, पटना और कश्मीर आदि की कलात्मक वस्तुएं, हस्तशिल्प आदि का प्रदर्शन न्ही किया जाता था। 'लज्जय भारत-यश गाइबो की कोरे?' नामक गाना इसमें कई बार गाया गया। इसके रचयिता गगेन्द्रनाथ थे। १८९० के दशक में इस संस्था का प्रभाव कम हो गया किन्तु इसने स्वदेशी आन्दोलन के लिए जमीन तैयार कर दी थी। .

स्वदेशी और हिन्दू मेला के बीच समानता

स्वदेशी और हिन्दू मेला आम में एक बात है (यूनियनपीडिया में): स्वदेशी आन्दोलन

स्वदेशी आन्दोलन

१९३० के दशक का पोस्टर जिसमें गाँधीजी को जेल के अन्दर चरखा कातते हुए दिखाया गया है, और लिखा है- ''चरखा और स्वदेशी पर ध्यान दो।'' स्वदेशी आन्दोलन भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन का एक महत्वपूर्ण आन्दोलन, सफल रणनीति व दर्शन था। स्वदेशी का अर्थ है - 'अपने देश का'। इस रणनीति के लक्ष्य ब्रिटेन में बने माल का बहिष्कार करना तथा भारत में बने माल का अधिकाधिक प्रयोग करके साम्राज्यवादी ब्रिटेन को आर्थिक हानि पहुँचाना व भारत के लोगों के लिये रोजगार सृजन करना था। यह ब्रितानी शासन को उखाड़ फेंकने और भारत की समग्र आर्थिक व्यवस्था के विकास के लिए अपनाया गया साधन था। वर्ष 1905 के बंग-भंग विरोधी जनजागरण से स्वदेशी आन्दोलन को बहुत बल मिला। यह 1911 तक चला और गान्धीजी के भारत में पदार्पण के पूर्व सभी सफल अन्दोलनों में से एक था। अरविन्द घोष, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, वीर सावरकर, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और लाला लाजपत राय स्वदेशी आन्दोलन के मुख्य उद्घोषक थे। आगे चलकर यही स्वदेशी आन्दोलन महात्मा गांधी के स्वतन्त्रता आन्दोलन का भी केन्द्र-बिन्दु बन गया। उन्होने इसे "स्वराज की आत्मा" कहा। .

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स्वदेशी और हिन्दू मेला के बीच तुलना

स्वदेशी 21 संबंध है और हिन्दू मेला 11 है। वे आम 1 में है, समानता सूचकांक 3.12% है = 1 / (21 + 11)।

संदर्भ

यह लेख स्वदेशी और हिन्दू मेला के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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