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समस्त रचनाकार

सूची समस्त रचनाकार

अकारादि क्रम से रचनाकारों की सूची अ.

289 संबंधों: चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी', चित्रा मुद्गल, चंद्र मोहन प्रधान, चंद्रशेखर रथ, चंद्रकान्ता, चंद्रकिशोर जायसवाल, एस॰आर॰ हरनोट, डॉ॰ नगेन्द्र, तारिक असलम तस्नीम, त्रिलोचन शास्त्री, तेजेंद्र शर्मा, दण्डपाणि जयकान्तन, दामोदरदत्त दीक्षित, दूधनाथ सिंह, देवनूर महादेव, देवकीनन्दन खत्री, दीपक शर्मा, धर्मवीर भारती, धूमिल, नमिता सिंह, नरेन्द्र देव, नरेन्द्र मौर्य, नरेन्द्र शर्मा, नरेन्द्र कोहली, नरेश मेहता, नामवर सिंह, नारायण बी आर, नासिरा शर्मा, नागार्जुन, निर्मल वर्मा, नवीन सागर, नंदकिशोर आचार्य, नीलाक्षी सिंह, पदुमलाल पन्नालाल बख्शी, पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र', पुष्पा सक्सेना, प्रतापनारायण मिश्र, प्रतिभा राय, प्रत्यक्षा, प्रभा खेतान, प्रभाकर श्रोत्रिय, प्रभु जोशी, प्रयाग नारायण त्रिपाठी, प्रयाग शुक्ल, प्रियंवद, प्रेमचंद, प्रेमपाल शर्मा, पी वी नरसा रेड्डी, फणीश्वर नाथ "रेणु", फ्रैंज काफ्का, ..., बनारसीदास चतुर्वेदी, बर्तोल्त ब्रेख्त, बलराम, बलराम अग्रवाल, बाबू गुलाबराय, बाल शौरि रेड्डी, बालमुकुंद गुप्त, बालकवि बैरागी, बालकृष्ण भट्ट, भारत यायावर, भारतभूषण अग्रवाल, भारतेन्दु हरिश्चंद्र, भवानी प्रसाद मिश्र, भविलाल लामिछाने, भगवतशरण उपाध्याय, भगवती चरण वर्मा, भगीरथ, भैरवप्रसाद गुप्त, भूपेंद्र नाथ कौशिक, भीष्म साहनी, मधु कांकरिया, मनमोहन सरल, मनजीत टिवाणा, मनजीत कौर भाटिया, मन्नू भंडारी, मनोहरश्याम जोशी, मनीषा शुक्ला, ममता कालिया, महादेवी वर्मा, महावीर प्रसाद द्विवेदी, महावीरप्रसाद जैन, महुआ माझी, महेश कटारे, माधवराव सप्रे, माया गोविन्द, मालती महावर, मालती जोशी, माखनलाल चतुर्वेदी, मिथिलेश्वर, मिर्ज़ा हादी रुस्वा, मंगलेश डबराल, मुशर्रफ आलम ज़ौकी, मृणाल पाण्डे, मृदुला गर्ग, मैत्रेयी पुष्पा, मैथिलीशरण गुप्त, मेहरुन्निसा परवेज, मोहन राकेश, मोहम्मद मांकड, मीना काकोडकर, यशपाल, यज्ञदत्त शर्मा, योगेंद्र आहूजा, रफिया मंजूरूल अमीन, रमणलाल वसंतलाल देसाई, रमाकांत रथ, रमेश बतरा, रामचन्द्र शुक्ल, रामदरश मिश्र, रामधारी सिंह 'दिनकर', रामविलास शर्मा, रामवृक्ष बेनीपुरी, राहुल सांकृत्यायन, राही मासूम रज़ा, राज बुद्धिराजा, राजकमल चौधरी, राजेन्द्र प्रसाद मिश्र, राजेन्द्र यादव, राजेन्द्र सिंह बेदी, राजेन्द्र जोशी, राजेन्द्रसिंह बेदी, राजेश जैन, राजेश जोशी, रांगेय राघव, रजनी पनिक्कर, रघुनन्दन त्रिवेदी, रघुवीर सहाय, रवीन्द्र कालिया, रंजिता नायक, ललित कार्तिकेय, लाल्टू, लवलीन, लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय, लक्ष्मीकांत वर्मा, लू शुन, लीलाधर जगूड़ी, शफ़ी मशहदी, शमशेर बहादुर सिंह, शमोएल अहमद, शरत्चन्द्र चट्टोपाध्याय, शरद जोशी, शिव प्रसाद सिंह, शिवप्रकाश एच एस, शिवमंगल सिंह 'सुमन', शिवमूर्ति, शिवानी, शंकर पुण्तांबेकर, श्यामसुन्दर दास, श्रीलाल शुक्ल, श्रीकांत वर्मा, शैलेन्द्र सागर, शैलेश मटियानी, शेखर जोशी, सत्यदेव दुबे, सत्येन कुमार, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, सज्जाद ज़हीर, संतोष जैन, संजीव, सुदर्शन, सुदर्शन नारंग, सुदामा पांडेय 'धूमिल', सुधा अरोड़ा, सुभद्रा कुमारी चौहान, सुभाष नीरव, सुमित्रा कुमारी सिन्हा, सुमित्रानन्दन पन्त, सुरेन्द्र वर्मा, सुरेश सलिल, सुशील कुमार (पहलवान), सुषमा मुनीन्द्र, सुकेश साहनी, स्वयं प्रकाश, सूरज प्रकाश, सूर्यबाला, सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला', से॰रा॰ यात्री, सोमावीरा, सीमा शफ़क, हबीब कैफ़ी, हरप्रसाद दास, हरि भटनागर, हरिशंकर परसाई, हरिसुमन बिष्ट, हरिवंश राय बच्चन, हजारी प्रसाद द्विवेदी, हृदयेश, हृषीकेश सुलभ, हीरालाल नागर, जयनन्दन, जयप्रकाश भारती, जयशंकर प्रसाद, जया जादवानी, जितेन ठाकुर, जगदीश कश्यप, जगन्नाथ प्रसाद दास, जगन्नाथदास रत्नाकर, ज्ञान चतुर्वेदी, ज्ञान प्रकाश विवेक, ज्ञानरंजन, ज्ञानेन्द्रपति, जैनेन्द्र कुमार, जे बी मोरायश, जीवनानंद दास, वसंत देव, वासुदेव शरण अग्रवाल, विनय मोहन शर्मा, विनोद कुमार शुक्ल, वियोगी हरि, विश्वंभर नाथ शर्मा 'कौशिक', विष्णु नागर, विष्णु प्रभाकर, विष्णु खरे, विजयदेव नारायण साही, विजया मुखोपाध्याय, विकेश निझावन, वृन्द, वृंदावनलाल वर्मा, वैकम मुहम्मद बशीर, वीरेन डंगवाल, वीरेन्द्र जैन, खडगराज गिरि, खलील जिब्रान, ख़्वाजा अहमद अब्बास, खुदेजा ख़ान, खुर्शीद आलम, गिरिराज किशोर (साहित्यकार), गजानन माधव मुक्तिबोध, गुलशेर खान शानी, गोपाल सिंह नेपाली, गोपाल कृष्ण अडिग, गोपालदास नीरज, गोपालप्रसाद व्यास, गोविन्द पुरुषोत्तम देशपांडे, गीतांजलिश्री, ओमा शर्मा, आचार्य चतुरसेन शास्त्री, आचार्य रामलोचन सरन, आचार्य शिवपूजन सिंह, आले अहमद सुरूर, इलाचन्द्र जोशी, इस्मत चुग़ताई, इवान तुर्गेन्येव, इवान बूनिन, इक़बाल मजीद, कन्हैयालाल नन्दन, कमलकान्‍त बुधकर, कमलेश्वर, कर्मेंदु शिशिर, कामतानाथ, काशीनाथ सिंह, कुँवर नारायण, कुमार अंबुज, कुर्अतुल ऐन हैदर, कुलदीप जैन, कृष्ण चंदर, कृष्ण बलदेव वैद, कृष्णा सोबती, के शिवा रेड्डी, केदारनाथ सिंह, केदारनाथ अग्रवाल, कीर्ति चौधरी, अनिल जनविजय, अब्दुल बिस्मिल्लाह, अमरकांत, अमरेश पटनायक, अमृत राय, अमृतलाल नागर, अमृता प्रीतम, अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध', अरुण प्रकाश, अरुण कमल, अरुणा सीतेश, अलका सरावगी, अशोक चक्रधर, अशोक भाटिया, अशोक रानाडे, अशोक वाजपेयी, असगर वजाहत, अज्ञेय, अवधेश कुमार, अविनाश वाचस्‍पति, अंबिका प्रसाद बाजपेयी, अंबिकादत्त व्यास, उदय प्रकाश, उपेन्द्रनाथ अश्क, उर्मिला शिरीष, उषा प्रियंवदा, छाया वर्मा सूचकांक विस्तार (239 अधिक) »

चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी'

चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी' चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी' (१८८३ - १२ सितम्बर १९२२) हिन्दी के कथाकार, व्यंगकार तथा निबन्धकार थे। .

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चित्रा मुद्गल

चित्रा मुद्गल हिन्दी की वरिष्ठ कथालेखिका हैं। उनका जीवन किसी रोमांचक प्रेम-कथा से कम नहीं है। उन्नाव के जमींदार परिवार में जन्मी किसी लड़की के लिए साठ के दशक में अंतरजातीय प्रेमविवाह करना आसान काम नहीं था। लेकिन चित्रा जी ने तो शुरू से ही कठिन मार्ग के विकल्प को अपनाया। पिता का आलीशान बंगला छोड़कर 25 रुपए महीने के किराए की खोली में रहना और मजदूर यूनियन के लिए काम करना - चित्रा ने हर चुनौती को हँसते-हँसते स्वीकार किया। १० दिसम्बर १९४४ को जनमी चित्रा मुद्गल की प्रारंभिक शिक्षा पैतृक ग्राम निहाली खेड़ा (जिला उन्नाव, उ.प्र.) से लगे ग्राम भरतीपुर के कन्या पाठशाला में। हायर सेकेंडरी पूना बोर्ड से की और शेष पढ़ाई मुंबई विश्वविद्यालय से। बहुत बाद में स्नातकोत्तर पढ़ाई पत्राचार पाठ्यक्रम के माध्यम से एस.एन.डी.टी.

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चंद्र मोहन प्रधान

हिन्दी लेखक.

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चंद्रशेखर रथ

चंद्रशेखर रथ ओड़िया भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कहानी–संग्रह सबुठारु दीर्घराति के लिये उन्हें सन् 1997 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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चंद्रकान्ता

चंद्रकांता (१९३८) हिन्दी की जानी मानी लेखिका है। उनके लेखन का प्रारंभ १९६६ से हुआ जब उनकी पहली कहानी 'खून के रेशे' कल्पना में प्रकाशित हुई। आठ साल बाद उनका पहला कहानी संग्रह 'सलाखों के पीछे' प्रकाशित हुआ। इसके छे साल बाद उनका पहला उपन्यास 'अर्थान्तर' प्रकाशित हुआ। वे दो सौ से अधिक कहानियों की रचना कर चुकी हैं। उनकी कहानियों के १३ संग्रह, ७ उपन्यास और १ कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। इनमें 'पोशनूल की वापसी', 'ऐलान गली ज़िन्दा है', 'यहाँ वितस्ता बहती है' तथा 'अपने अपने कोणार्क' काफी चर्चित रहे। कश्मीर की केसरी आबोहवा में पली बढ़ी चंद्रकांता की कहानियों में वहां की सभ्यता और संस्कृति का अंदाज सहज समाया हुआ है। वे वहाँ के लोक और लोक संस्कृति की गहरी पहचान रखती हैं और उनकी लेखनी इसे मर्मभेदी सफलता के साथ व्यक्त करती है। आज के दौर की सुप्रसिद्ध कथा लेखिका चंद्रकांता का २००१ में प्रकाशित उपन्यास 'कथा सतीसर', कश्मीर के वृहत्तर इतिहास के बेबाक चित्रण के लिये जाना जाता है। इसके लिए चंद्रकांता को २००५ में बिड़ला फाउंडेशन के व्यास सम्मान से विभूषित किया गया है। उनकी रचनाओं के विश्व की अनेक भाषाओं में अनुवाद हो चुके हैं। .

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चंद्रकिशोर जायसवाल

हिन्दी लेखक.

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एस॰आर॰ हरनोट

२००३ में अपने कहानी संग्रह दारोश तथा अन्य कहानियाँ के लिए यू॰के॰ कथा सम्मान से सम्मानित हिन्दी लेखक.

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डॉ॰ नगेन्द्र

डॉ॰ नगेन्द्र (जन्म: 9 मार्च 1915 अलीगढ़, मृत्यु: 27 अक्टूबर 1999 नई दिल्ली) हिन्दी के प्रमुख आधुनिक आलोचकों में थे। वे एक सुलझे हुए विचारक और गहरे विश्लेषक थे। अपनी सूझ-बूझ तथा पकड़ के कारण वे गहराई में पैठकर केवल विश्लेषण ही नहीं करते, बल्कि नयी उद्भावनाओं से अपने विवेचन को विचारोत्तेजक भी बना देते थे। उलझन उनमें कहीं नहीं थी। 'साधारणीकरण' सम्बन्धी उनकी उद्भावनाओं से लोग असहमत भले ही रहे हों, पर उसके कारण लोगों को उस सम्बन्ध में नये ढंग से विचार अवश्य करना पड़ा है। 'भारतीय काव्य-शास्त्र' (1955ई.) की विद्वत्तापूर्ण भूमिका प्रस्तुत करके उन्होंने हिन्दी में एक बड़े अभाव की पूर्ति की। उन्होंने 'पाश्चात्य काव्यशास्त्र: सिद्धांत और वाद' नामक आलोचनात्मक कृति में अपनी सूक्ष्म विवेचन-क्षमता का परिचय भी दिया। अरस्तू के काव्यशास्त्र की भूमिका-अंश उनका सूक्ष्म पकड़, बारीक विश्लेषण और अध्यवसाय का परिचायक है। बीच-बीच में भारतीय काव्य-शास्त्र से तुलना करके उन्होंने उसे और भी उपयोगी बना दिया है। उन्होंने हिंदी मिथक को भी परिभाषित किया है। .

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तारिक असलम तस्नीम

हिन्दी कवि और लेखक.

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त्रिलोचन शास्त्री

कवि त्रिलोचन को हिन्दी साहित्य की प्रगतिशील काव्यधारा का प्रमुख हस्ताक्षर माना जाता है। वे आधुनिक हिंदी कविता की प्रगतिशील त्रयी के तीन स्तंभों में से एक थे। इस त्रयी के अन्य दो सतंभ नागार्जुन व शमशेर बहादुर सिंह थे। .

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तेजेंद्र शर्मा

तेजेंद्र शर्मा (जन्म २१ अक्टूबर १९५२) ब्रिटेन में बसे भारतीय मूल के हिंदी कवि लेखक एवं नाटककार है। इनका जन्म 21 अक्टूबर 1952 में पंजाब के जगरांव शहर में हुआ। तेजेन्द्र शर्मा की स्कूली पढ़ाई दिल्ली के अंधा मुग़ल क्षेत्र के सरकारी स्कूल में हुई। दिल्ली विश्वविद्यालय से अंग्रेजी विषय में एम.ए. तथा कम्प्यूटर में डिप्लोमा करने वाले तेजेन्द्र शर्मा हिन्दी, अंग्रेजी, पंजाबी, उर्दू तथा गुजराती भाषाओं का ज्ञान रखते हैं। उनके द्वारा लिखा गया धारावाहिक 'शांति' दूरदर्शन से १९९४ में अंतर्राष्ट्रीय लोकप्रियता प्राप्त कर चुका है। अन्नू कपूर निर्देशित फ़िल्म 'अमय' में नाना पाटेकर के साथ उन्होंने प्रमुख भूमिका निभाई है। वे इंदु शर्मा मेमोरियल ट्रस्ट के संस्थापक तथा हिंदी साहित्य के एकमात्र अंतर्राष्ट्रीय सम्मान इन्दु शर्मा अंतर्राष्ट्रीय कथा सम्मान प्रदान करनेवाली संस्था 'कथा यू॰के॰' के सचिव हैं। .

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दण्डपाणि जयकान्तन

दण्डपाणि जयकान्तन (जन्म: २४ अप्रैल १९३४, कड्डलूर, तमिलनाडु) एक बहुमुखी तमिल लेखक हैं -- केवल लघु-कथाकार और उपन्यासकार ही नहीं (जिनके कारण उन्हें आज के सर्वश्रेष्ठ लेखकों में माना जाता है) परन्तु निबन्धकार, पत्रकार, निर्देशक और आलोचक भी हैं। विचित्र बात यह है कि उनकी स्कूल की पढ़ाई कुछ पाँच साल ही रही! घर से भाग कर १२ साल के जयकान्तन अपने चाचा के यहाँ पहुँचे जिनसे उन्होंने कम्युनिज़्म (मार्कसीय समाजवाद) के बारे में सीखा। बाद में चेन्नई (जिसका नाम उस समय मद्रास था) आकर जयकान्तन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) की पत्रिका जनशक्ति में काम करने लगे। दिन में प्रेस में काम करते और शाम को सड़कों पर पत्रिका बेचते। १९५० के दशक की शुरुआत से ही वह लिखते आ रहे हैं और जल्दी ही तमिल के जाने-माने लेखकों में गिने जाने लगे। हालाँकि उनका नज़रिया वाम पक्षीय ही रहा। वह खुद पार्टी के सदस्य न रहे और काँग्रेस पार्टी में भर्ती हो गए। ४० उपन्यासों के अलावा उन्होंने कई-कई लघुकथाएँ, आत्मकथा (दो खंडों में) और रोमेन रोलांड द्वारा फ़्रेन्च में रची गयी गांधी जी की जीवनी का तमिल अनुवाद भी किया है। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास शिल नेरंगळिल शिल मणितर्कळ के लिये उन्हें सन् १९७२ में साहित्य अकादमी पुरस्कार (तमिल) से सम्मानित किया गया। "जटिल मानव स्वभाव के गहरे और संवेदनशील समझ" के हेतु, उनकी कृतियों को "तमिल साहित्य की उच्च परम्पराओं की अभिवृद्दि" के लिए २००२ में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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दामोदरदत्त दीक्षित

कथाकार-व्‍यंग्‍यकार दामोदर दत्‍त दीक्षित को उत्‍तर प्रदेश हिंदी संस्‍थान ने प्रेमचंद सम्‍मान प्रदान करने की घोषणा की है। ये सम्‍मान उन्‍हें भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित उनके उपन्‍यास धुंआ और चीखें के लिए दिया जा रहा है जिसमें उन्‍हें उत्‍तर प्रदेश हिंदी संस्‍थान की तरफ से बीस हजार रूपये की पुरस्‍कार राशि दी जाएगी। इससे पूर्व उनके इसी उपन्‍यास के लिए राजस्‍थान का प्रतिष्ठित आचार्य निरंजननाथ सम्‍मान प्रदान किया जा चुका है। दामोदर दत्‍त दीक्षित इन दिनों मेरठ में उप चीनी आयुक्‍त के पद पर कार्यरत हैं। श्रेणी:हिन्दी गद्यकार.

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दूधनाथ सिंह

दूधनाथ सिंह (जन्म:१७ अक्टूबर, १९३६ एवं निधन १२ जनवरी, २०१८) हिन्दी के आलोचक, संपादक एवं कथाकार हैं। .

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देवनूर महादेव

देवनूर महादेव (१९४८) कन्नड़ के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। उनका जन्म कर्नाटक में नंजगुड़ा तालुक के देवनूर ग्राम में हुआ था। उनका पहला कहानी संग्रह द्यावानूरु १९७३ में प्रकाशित हुआ। १९८१ में प्रकाशित उनके उपन्यास औडालाला को भारतीय भाषा परिषद द्वारा तथा कर्नाटक सरकार द्वारा राज्योत्सव प्रशस्ति से सम्मानित किया गया है। उनके लघु उपन्यास कुसुमबाले को साहित्य अकादमी का पुरस्कार प्राप्त हुआ है। .

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देवकीनन्दन खत्री

देवकीनन्दन खत्री देवकीनन्दन खत्री बाबू देवकीनन्दन खत्री (29 जून 1861 - 1 अगस्त 1913) हिंदी के प्रथम तिलिस्मी लेखक थे। उन्होने चंद्रकांता, चंद्रकांता संतति, काजर की कोठरी, नरेंद्र-मोहिनी, कुसुम कुमारी, वीरेंद्र वीर, गुप्त गोंडा, कटोरा भर, भूतनाथ जैसी रचनाएं की। 'भूतनाथ' को उनके पुत्र दुर्गा प्रसाद खत्री ने पूरा किया। हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार में उनके उपन्यास चंद्रकांता का बहुत बड़ा योगदान रहा है। इस उपन्यास ने सबका मन मोह लिया। इस किताब का रसास्वादन के लिए कई गैर-हिंदीभाषियों ने हिंदी सीखी। बाबू देवकीनंदन खत्री ने 'तिलिस्म', 'ऐय्यार' और 'ऐय्यारी' जैसे शब्दों को हिंदीभाषियों के बीच लोकप्रिय बनाया। जितने हिन्दी पाठक उन्होंने (बाबू देवकीनन्दन खत्री ने) उत्पन्न किये उतने किसी और ग्रंथकार ने नहीं। .

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दीपक शर्मा

दीपक शर्मा दीपक शर्मा (जन्म ३० नवंबर १९४६) हिन्दी की जानी मानी कथाकार हैं। उन्होंने चंडीगढ़ स्थित पंजाब विश्वविद्यालय से अँग्रेजी साहित्य में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की। उनके पिता आल्हासिंह भुल्लर पाकिस्तान के लब्बे गाँव के निवासी थे तथा माँ मायादेवी धर्मपरायण गृहणी थीं। १९७२ में उनका विवाह श्री प्रवीण चंद्र शर्मा से हुआ जो भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी थे। संप्रति वे लखनऊ क्रिश्चियन कॉलेज के अंग्रेज़ी विभाग में वरिष्ठ प्रवक्ता हैं। .

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धर्मवीर भारती

धर्मवीर भारती (२५ दिसंबर, १९२६- ४ सितंबर, १९९७) आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रमुख लेखक, कवि, नाटककार और सामाजिक विचारक थे। वे एक समय की प्रख्यात साप्ताहिक पत्रिका धर्मयुग के प्रधान संपादक भी थे। डॉ धर्मवीर भारती को १९७२ में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। उनका उपन्यास गुनाहों का देवता सदाबहार रचना मानी जाती है। सूरज का सातवां घोड़ा को कहानी कहने का अनुपम प्रयोग माना जाता है, जिस श्याम बेनेगल ने इसी नाम की फिल्म बनायी, अंधा युग उनका प्रसिद्ध नाटक है।। इब्राहीम अलकाजी, राम गोपाल बजाज, अरविन्द गौड़, रतन थियम, एम के रैना, मोहन महर्षि और कई अन्य भारतीय रंगमंच निर्देशकों ने इसका मंचन किया है। .

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धूमिल

धूमिल का अर्थ होता है धूम्रमय। .

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नमिता सिंह

हिन्दी कवि और लेखक.

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नरेन्द्र देव

फैजाबाद स्थित आचार्य नरेन्द्र देव का पारिवारिक घर आचार्य नरेंद्रदेव (1889-19 फ़रवरी 1956) भारत के प्रमुख स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी, पत्रकार, साहित्यकार एवं शिक्षाविद थे। वे कांग्रेस समाजवादी दल के प्रमुख सिद्धान्तकार थे। विलक्षण प्रतिभा और व्यक्तित्व के स्वामी आचार्य नरेन्द्रदेव अध्यापक के रूप में उच्च कोटि के निष्ठावान अध्यापक और महान शिक्षाविद् थे। काशी विद्यापीठ के आचार्य बनने के बाद से यह उपाधि उनके नाम का ही अंग बन गई। देश को स्वतंत्र कराने का जुनून उन्हें स्वतंत्रता आन्दोलन में खींच लाया और भारत की आर्थिक दशा व गरीबों की दुर्दशा ने उन्हें समाजवादी बना दिया। .

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नरेन्द्र मौर्य

हिन्दी कवि और लेखक.

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नरेन्द्र शर्मा

पण्डित नरेन्द्र शर्मा (२८ फरवरी १९१३–११ फरवरी १९८९) हिन्दी के लेखक, कवि तथा गीतकार थे। उन्होने हिन्दी फिल्मों (जैसे सत्यम शिवम सुन्दरम) के लिये गीत भी लिखे। .

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नरेन्द्र कोहली

डॉ॰ नरेन्द्र कोहली (जन्म ६ जनवरी १९४०) प्रसिद्ध हिन्दी साहित्यकार हैं। कोहली जी ने साहित्य के सभी प्रमुख विधाओं (यथा उपन्यास, व्यंग्य, नाटक, कहानी) एवं गौण विधाओं (यथा संस्मरण, निबंध, पत्र आदि) और आलोचनात्मक साहित्य में अपनी लेखनी चलाई है। उन्होंने शताधिक श्रेष्ठ ग्रंथों का सृजन किया है। हिन्दी साहित्य में 'महाकाव्यात्मक उपन्यास' की विधा को प्रारंभ करने का श्रेय नरेंद्र कोहली को ही जाता है। पौराणिक एवं ऐतिहासिक चरित्रों की गुत्थियों को सुलझाते हुए उनके माध्यम से आधुनिक सामाज की समस्याओं एवं उनके समाधान को समाज के समक्ष प्रस्तुत करना कोहली की अन्यतम विशेषता है। कोहलीजी सांस्कृतिक राष्ट्रवादी साहित्यकार हैं, जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से भारतीय जीवन-शैली एवं दर्शन का सम्यक् परिचय करवाया है। जनवरी, २०१७ में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। .

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नरेश मेहता

ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित हिन्दी के यशस्वी कवि श्री नरेश मेहता उन शीर्षस्थ लेखकों में हैं जो भारतीयता की अपनी गहरी दृष्टि के लिए जाने जाते हैं। नरेश मेहता ने आधुनिक कविता को नयी व्यंजना के साथ नया आयाम दिया। रागात्मकता, संवेदना और उदात्तता उनकी सर्जना के मूल तत्त्व है, जो उन्हें प्रकृति और समूची सृष्टि के प्रति पर्युत्सुक बनाते हैं। आर्ष परम्परा और साहित्य को श्रीनरेश मेहता के काव्य में नयी दृष्टि मिली। साथ ही, प्रचलित साहित्यिक रुझानों से एक तरह की दूरी ने उनकी काव्य-शैली और संरचना को विशिष्टता दी। श्री नरेश मेहता ने इन्दौर से प्रकाशित चौथा संसार हिन्दी दैनिक का सम्पादन भी किया। .

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नामवर सिंह

नामवर सिंह (जन्म: 28 जुलाई 1926(क)नामवर होने का अर्थ (व्यक्तित्व एवं कृतित्व), भारत यायावर, किताबघर प्रकाशन, नयी दिल्ली; संस्करण-2012; पृ०-32; (ख)द्रष्टव्य-'कविता की ज़मीन और ज़मीन की कविता' सहित डाॅ० नामवर सिंह की सभी नयी पुस्तकों में दिये गये लेखक परिचय में। बनारस, उत्तर प्रदेश) हिन्दी के शीर्षस्थ शोधकार-समालोचक, निबन्धकार तथा मूर्द्धन्य सांस्कृतिक-ऐतिहासिक उपन्यास लेखक हजारी प्रसाद द्विवेदी के प्रिय शिष्‍य रहे हैं। अत्यधिक अध्ययनशील तथा विचारक प्रकृति के नामवर सिंह हिन्दी में अपभ्रंश साहित्य से आरम्भ कर निरन्तर समसामयिक साहित्य से जुड़े हुए आधुनिक अर्थ में विशुद्ध आलोचना के प्रतिष्ठापक तथा प्रगतिशील आलोचना के प्रमुख हस्‍ताक्षर हैं। .

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नारायण बी आर

नारायण बी आर (या बी आर नारायण) (२४ फ़रवरी १९२८) कन्नड़ से हिन्दी अनुवाद के क्षेत्र में एक प्रसिद्ध नाम है। उनका जन्म बैंगलूर के कंबीपुर नामक स्थान में हुआ। कन्नड़ से हिन्दी में किए गए उनके मास्ति, कारंत, भैरप्पा और अनंतमूर्ति के अनेक अनुवाद प्रशंसित और चर्चित रहे हैं। उन्हें उत्तर प्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी तथा भारतीय भाषा परिषद द्वारा पुरस्कृत भी किया गया है। .

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नासिरा शर्मा

नासिरा शर्मा (जन्म: १९४८) हिन्दी की प्रमुख लेखिका हैं। सृजनात्मक लेखन के साथ ही स्वतन्त्र पत्रकारिता में भी उन्होंने उल्लेखनीय कार्य किया है। वह ईरानी समाज और राजनीति के अतिरिक्त साहित्य कला व सांस्कृतिक विषयों की विशेषज्ञ हैं। वर्ष २०१६ का साहित्य अकादमी पुरस्कार उनके उपन्यास पारिजात के लिए दिया जायेगा। .

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नागार्जुन

नागार्जुन (३० जून १९११-५ नवंबर १९९८) हिन्दी और मैथिली के अप्रतिम लेखक और कवि थे। अनेक भाषाओं के ज्ञाता तथा प्रगतिशील विचारधारा के साहित्यकार नागार्जुन ने हिन्दी के अतिरिक्त मैथिली संस्कृत एवं बाङ्ला में मौलिक रचनाएँ भी कीं तथा संस्कृत, मैथिली एवं बाङ्ला से अनुवाद कार्य भी किया। साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित नागार्जुन ने मैथिली में यात्री उपनाम से लिखा तथा यह उपनाम उनके मूल नाम वैद्यनाथ मिश्र के साथ मिलकर एकमेक हो गया। .

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निर्मल वर्मा

निर्मल वर्मा निर्मल वर्मा (३ अप्रैल १९२९- २५ अक्तूबर २००५) हिन्दी के आधुनिक कथाकारों में एक मूर्धन्य कथाकार और पत्रकार थे। शिमला में जन्मे निर्मल वर्मा को मूर्तिदेवी पुरस्कार (१९९५), साहित्य अकादमी पुरस्कार (१९८५) उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान पुरस्कार और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। परिंदे (१९५८) से प्रसिद्धि पाने वाले निर्मल वर्मा की कहानियां अभिव्यक्ति और शिल्प की दृष्टि से बेजोड़ समझी जाती हैं। ब्रिटिश भारत सरकार के रक्षा विभाग में एक उच्च पदाधिकारी श्री नंद कुमार वर्मा के घर जन्म लेने वाले आठ भाई बहनों में से पांचवें निर्मल वर्मा की संवेदनात्मक बुनावट पर हिमांचल की पहाड़ी छायाएं दूर तक पहचानी जा सकती हैं। हिन्दी कहानी में आधुनिक-बोध लाने वाले कहानीकारों में निर्मल वर्मा का अग्रणी स्थान है। उन्होंने कम लिखा है परंतु जितना लिखा है उतने से ही वे बहुत ख्याति पाने में सफल हुए हैं। उन्होंने कहानी की प्रचलित कला में तो संशोधन किया ही, प्रत्यक्ष यथार्थ को भेदकर उसके भीतर पहुंचने का भी प्रयत्न किया है। हिन्दी के महान साहित्यकारों में से अज्ञेय और निर्मल वर्मा जैसे कुछ ही साहित्यकार ऐसे रहे हैं जिन्होंने अपने प्रत्यक्ष अनुभवों के आधार पर भारतीय और पश्चिम की संस्कृतियों के अंतर्द्वन्द्व पर गहनता एवं व्यापकता से विचार किया है।। सृजन शिल्पी। ७ अक्टूबर २००६ .

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नवीन सागर

हिन्दी कवि और लेखक.

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नंदकिशोर आचार्य

नंदकिशोर आचार्य (३१ अगस्त १९४५) हिन्दी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। इनका जन्म बीकानेर में हुआ। तथागत (उपन्यास), अज्ञेय की काव्य तितीर्षा, रचना का सच और सर्जक का मन (आलोचना) देहांतर और पागलघर (नाटक), जल है जहाँ। वह एक समुद्र था, शब्द भूले हुए, आती है मृत्यु (कविता संग्रह) उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं। उन्हें राजस्थान साहित्य अकादमी के सर्वोच्च मीरा पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। इनका संबंध राजस्थान से है .

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नीलाक्षी सिंह

हिन्दी लेखक.

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पदुमलाल पन्नालाल बख्शी

डॉ॰ पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी (27 मई 1894-28 दिसम्बर 1971) जिन्हें ‘मास्टरजी’ के नाम से भी जाना जाता है, हिंदी के निबंधकार थे। वे राजनंदगांव की हिंदी त्रिवेणी की तीन धाराओं में से एक हैं।। राजनांदगांव के त्रिवेणी परिसर में इनके सम्मान में मूर्तियों की स्थापना की गई है। .

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पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र'

पांडेय बेचन शर्मा "उग्र" (१९०० - १९६७) हिन्दी के साहित्यकार एवं पत्रकार थे। का जन्म उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जनपद के अंतर्गत चुनार नामक कसबे में पौष शुक्ल 8, सं.

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पुष्पा सक्सेना

हिन्दी कवि और लेखक.

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प्रतापनारायण मिश्र

प्रतापनारायण मिश्र (सितंबर, 1856 - जुलाई, 1894) भारतेन्दु मण्डल के प्रमुख लेखक, कवि और पत्रकार थे। वह भारतेंदु निर्मित एवं प्रेरित हिंदी लेखकों की सेना के महारथी, उनके आदर्शो के अनुगामी और आधुनिक हिंदी भाषा तथा साहित्य के निर्माणक्रम में उनके सहयोगी थे। भारतेंदु पर उनकी अनन्य श्रद्धा थी, वह अपने आप को उनका शिष्य कहते तथा देवता की भाँति उनका स्मरण करते थे। भारतेंदु जैसी रचनाशैली, विषयवस्तु और भाषागत विशेषताओं के कारण मिश्र जी "प्रतिभारतेंदु" अथवा "द्वितीयचंद्र" कहे जाने लगे थे। .

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प्रतिभा राय

प्रतिभा राय (जन्म 21 जनवरी 1943) ओड़िया भाषा की लेखिका हैं जिन्हें वर्ष 2011 के लिए 47वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। प्रतिभा राय के अब तक 20 उपन्यास, 24 लघुकथा संग्रह, 10 यात्रा वृत्तांत, दो कविता संग्रह और कई निबंध प्रकाशित हो चुके हैं। उनकी प्रमुख रचनाओं का देश की प्रमुख भारतीय भाषाओं व अंग्रेजी समेत दूसरी विदेशी भाषाओं में अनुवाद हुआ है। उनके प्रसिद्द उपन्यास शिलापद्म का हिन्दी में कोणार्क के नाम से और याज्ञसेनी का द्रौपदी के नाम से अनुवाद हुआ है जो हिन्दी में काफ़ी पढ़े जाने वाले उपन्यासों में से हैं। .

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प्रत्यक्षा

हिन्दी कवि और लेखक श्रेणी:व्यक्तिगत जीवन श्रेणी:हिन्दी साहित्य.

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प्रभा खेतान

डॉ प्रभा खेतान डॉ॰ प्रभा खेतान (१ नवंबर १९४२ - २० सितंबर २००८) प्रभा खेतान फाउन्डेशन की संस्थापक अध्यक्षा, नारी विषयक कार्यों में सक्रिय रूप से भागीदार, फिगरेट नामक महिला स्वास्थ्य केन्द्र की स्थापक, १९६६ से १९७६ तक चमड़े तथा सिले-सिलाए वस्त्रों की निर्यातक, अपनी कंपनी 'न्यू होराईजन लिमिटेड' की प्रबंध निदेशिका, हिन्दी भाषा की लब्ध प्रतिष्ठित उपन्यासकार, कवयित्री तथा नारीवादी चिंतक तथा समाज सेविका थीं। उन्हें कलकत्ता चैंबर ऑफ कॉमर्स की एकमात्र महिला अध्यक्ष होने का गौरव प्राप्त था। वे केन्द्रीय हिन्दी संस्थान की सदस्या थीं। .

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प्रभाकर श्रोत्रिय

डॉ॰ प्रभाकर श्रोत्रिय (जन्म १९ दिसम्बर १९३८) हिन्दी साहित्यकार, आलोचक तथा नाटककार हैं। हिंदी आलोचना में प्रभाकर श्रोत्रिय एक महत्वपूर्ण नाम है पर आलोचना से परे भी साहित्य में उनका प्रमुख योगदान रहा है, खासकर नाटकों के क्षेत्र में। उन्होंने कम नाटक लिखे पर जो भी लिखे उसने हिंदी नाटकों को नई दिशा दी। पूर्व में मध्यप्रदेश साहित्य परिषद के सचिव एवं 'साक्षात्कार' व 'अक्षरा' के संपादक रहे हैं एवं विगत सात वर्षों से भारतीय भाषा परिषद के निदेशक एवं 'वागर्थ' के संपादक पद पर कार्य करने के साथ-साथ वे भारतीय ज्ञानपीठ नई दिल्ली के निदेशक पद पर भी कार्य कर चुके हैं। वे अनेक महत्वपूर्ण संस्थानों के सदस्य हैं। .

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प्रभु जोशी

प्रभु जोशी प्रभु जोशी, हिन्दी कवि, लेखक, कथाकार एवं विचारक हैं। .

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प्रयाग नारायण त्रिपाठी

प्रयाग नारायण त्रिपाठी तीसरा सप्तक के प्रमुख कवि हैं। प्रयाग नारायण त्रिपाठी.

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प्रयाग शुक्ल

प्रयाग शुक्ल (जन्म १९४०) हिन्दी के कवि, कला-समीक्षक, अनुवादक एवं कहानीकार हैं। ये साहित्य अकादेमी का अनुवाद पुरस्कार, शरद जोशी सम्मान एवं द्विजदेव सम्मान से सम्मानित हैं। .

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प्रियंवद

प्रियंवद (जन्मः २२ दिसम्बर १९५२, कानपुर) एक हिन्दी साहित्यकार हैं। वे प्राचीन भारतीय इतिहास एवं संस्कृति में एम ए हैं। .

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प्रेमचंद

प्रेमचंद (३१ जुलाई १८८० – ८ अक्टूबर १९३६) हिन्दी और उर्दू के महानतम भारतीय लेखकों में से एक हैं। मूल नाम धनपत राय प्रेमचंद को नवाब राय और मुंशी प्रेमचंद के नाम से भी जाना जाता है। उपन्यास के क्षेत्र में उनके योगदान को देखकर बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें उपन्यास सम्राट कहकर संबोधित किया था। प्रेमचंद ने हिन्दी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया जिसने पूरी सदी के साहित्य का मार्गदर्शन किया। आगामी एक पूरी पीढ़ी को गहराई तक प्रभावित कर प्रेमचंद ने साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नींव रखी। उनका लेखन हिन्दी साहित्य की एक ऐसी विरासत है जिसके बिना हिन्दी के विकास का अध्ययन अधूरा होगा। वे एक संवेदनशील लेखक, सचेत नागरिक, कुशल वक्ता तथा सुधी (विद्वान) संपादक थे। बीसवीं शती के पूर्वार्द्ध में, जब हिन्दी में तकनीकी सुविधाओं का अभाव था, उनका योगदान अतुलनीय है। प्रेमचंद के बाद जिन लोगों ने साहित्‍य को सामाजिक सरोकारों और प्रगतिशील मूल्‍यों के साथ आगे बढ़ाने का काम किया, उनमें यशपाल से लेकर मुक्तिबोध तक शामिल हैं। .

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प्रेमपाल शर्मा

हिन्दी कवि और लेखक.

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पी वी नरसा रेड्डी

पी वी नरसा रेड्डी (१९४५) तेलुगु के प्रसिद्ध साहित्यकार हैं। उनका एक शोध ग्रंथ, एक निबंध संग्रह और एक कहानी संग्रह प्रकाशित हुआ है। कई तेलुगु कहानियों के हिन्दी अनुवाद भी हुए हैं। उन्हें कई सम्मानों से अलंकृत किया गया है। .

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फणीश्वर नाथ "रेणु"

फणीश्वर नाथ 'रेणु' (४ मार्च १९२१ औराही हिंगना, फारबिसगंज - ११ अप्रैल १९७७) एक हिन्दी भाषा के साहित्यकार थे। इनके पहले उपन्यास मैला आंचल को बहुत ख्याति मिली थी जिसके लिए उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। .

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फ्रैंज काफ्का

फ्रैंज काफ्का (३ जुलाई १८८३ - ३ जून १९२४) बीसवीं सदी के एक सांस्कृतिक रूप से प्रभावशाली, लघु कहानियां और उपन्यास के जर्मन लेखक थे। उनकी रचनाऍं आधुनिक समाज के व्यग्र अलगाव को चित्रित करतीं हैं। समकालीन आलोचकों और शिक्षाविदों, व्लादिमिर नबोकोव सहित, का मानना है कि काफ्का 20 वीं सदी के सर्वश्रेष्ठ लेखकों में से एक है। "Kafkaesque" अंग्रेजी भाषा का हिस्सा बन गया है जिसका उपयोग 'बहकानेवाला','खतरनाक जटिलता' आदि के संदर्भ में किया जाता है। नई यॉर्कर के लिए एक लेख में, जॉन अपडाइक ने समझाया: "जब काफ्का का जन्म हुआ तब उस सदी मे आधुनिकता के विचारों का पनपना आरम्भ हुआ - जैसे कि सदियों के बीच में एक नइ आत्म-चेतना, नएपन की चेतना का जन्म हुआ हो। अपनी मृत्यु के इतने साल बाद भी, काफ्का आधुनिक विचारधारा के एक पहलू के प्रतीक है - चिंता और शर्म की उस अनुभूति के जिसे स्थित नहीं किया जा सकता है इसलिए शांत नहीं किया जा सकता है; चीजों के भीतर एक अनंत कठिनाई की भावना के, जो हर कदम बाधा दालती है; उपयोगिता से परे तीव्र संवेदनशीलता के, जैसे कि सामाजिक उपयोग और धार्मिक विश्वास की अपनी पुरानी त्वचा के छिन जाने पर उस शरीर के समान जिसे हर स्पर्श से पीड़ा हो। काफ्का के इस अजीब और उच्च मूल मामले को देखें तो उनका यह भयानक गुण विशाल कोमलता, विचित्र व अच्छा हास्य, कुछ गंभीर और आश्वस्त औपचारिकता से भरपूर था। यह संयोजन उन्हे एक कलाकार बनाता है, पर उन्होने अपनी कला की कीमत के रूप में अधिक से अधिक भीतर प्रतिरोध और अधिक गंभीर संशय के खिलाफ संघर्ष किया है। काफ्का की बहु-प्रचलित रचनाओं में से कुछ हैं - (कायापलट), जांच, एक भूख-कलाकार, (महल) आदि। .

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बनारसीदास चतुर्वेदी

पण्डित बनारसीदास चतुर्वेदी (२४ दिसम्बर, १८९२ -- २ मई, १९८५) प्रसिद्ध हिन्दी लेखक एवं पत्रकार थे। वे राज्यसभा के सांसद भी रहे। उनके सम्पादकत्व में हिन्दी में कोलकाता से 'विशाल भारत' नामक हिन्दी मासिक निकला। पं॰ बनारसीदास चतुर्वेदी जैसे सुधी चिंतक ने ही साक्षात्कार की विधा को पुष्पित एवं पल्लवित करने के लिए सर्वप्रथम सार्थक कदम बढ़ाया था। उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। वे अपने समय का अग्रगण्य संपादक थे तथा अपनी विशिष्ट और स्वतंत्र वृत्ति के लिए जाने जाते हैं। उनके जैसा शहीदों की स्मृति का पुरस्कर्ता (सामने लाने वाला) और छायावाद का विरोधी समूचे हिंदी साहित्य में कोई और नहीं हुआ। उनकी स्मृति में बनारसीदास चतुर्वेदी सम्मान दिया जाता है। कहते हैं कि वे किसी भी नई सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक या राष्ट्रीय मुहिम से जुड़ने, नए काम में हाथ डालने या नई रचना में प्रवृत्त होने से पहले स्वयं से एक ही प्रश्न पूछते थे कि उससे देश, समाज, उसकी भाषाओं और साहित्यों, विशेषकर हिंदी का कुछ भला होगा या मानव जीवन के किसी भी क्षेत्र में उच्चतर मूल्यों की प्रतिष्ठा होगी या नहीं? .

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बर्तोल्त ब्रेख्त

बर्तोल्त ब्रेख्त बीसवीं सदी के एक प्रसिद्ध जर्मन कवि, नाटककार और नाट्य निर्देशक थे। द्वितीय विश्व-युद्ध के बाद ब्रेख्त ने अपनी पत्नी हेलेन विगेल के साथ मिलकर बर्लिन एन्सेंबल नाम से एक नाट्य मंडली का गठन किया और यूरोप के विभिन्न देशों में अपने नाटकों का प्रदर्शन किया। .

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बलराम

पांचरात्र शास्त्रों के अनुसार बलराम (बलभद्र) भगवान वासुदेव के ब्यूह या स्वरूप हैं। उनका कृष्ण के अग्रज और शेष का अवतार होना ब्राह्मण धर्म को अभिमत है। जैनों के मत में उनका संबंध तीर्थकर नेमिनाथ से है। बलराम या संकर्षण का पूजन बहुत पहले से चला आ रहा था, पर इनकी सर्वप्राचीन मूर्तियाँ मथुरा और ग्वालियर के क्षेत्र से प्राप्त हुई हैं। ये शुंगकालीन हैं। कुषाणकालीन बलराम की मूर्तियों में कुछ व्यूह मूर्तियाँ अर्थात् विष्णु के समान चतुर्भुज प्रतिमाए हैं और कुछ उनके शेष से संबंधित होने की पृष्ठभूमि पर बनाई गई हैं। ऐसी मूर्तियों में वे द्विभुज हैं और उनका मस्तक मंगलचिह्नों से शोभित सर्पफणों से अलंकृत है। बलराम का दाहिना हाथ अभयमुद्रा में उठा हुआ है और बाएँ में मदिरा का चषक है। बहुधा मूर्तियों के पीछे की ओर सर्प का आभोग दिखलाया गया है। कुषाण काल के मध्य में ही व्यूहमूर्तियों का और अवतारमूर्तियों का भेद समाप्तप्राय हो गया था, परिणामत: बलराम की ऐसी मूर्तियाँ भी बनने लगीं जिनमें नागफणाओं के साथ ही उन्हें हल मूसल से युक्त दिखलाया जाने लगा। गुप्तकाल में बलराम की मूर्तियों में विशेष परिवर्तन नहीं हुआ। उनके द्विभुज और चतुर्भुज दोनों रूप चलते थे। कभी-कभी उनका एक ही कुंडल पहने रहना "बृहत्संहिता" से अनुमोदित था। स्वतंत्र रूप के अतिरिक्त बलराम तीर्थंकर नेमिनाथ के साथ, देवी एकानंशा के साथ, कभी दशावतारों की पंक्ति में दिखलाई पड़ते हैं। कुषाण और गुप्तकाल की कुछ मूर्तियों में बलराम को सिंहशीर्ष से युक्त हल पकड़े हुए अथवा सिंहकुंडल पहिने हुए दिखलाया गया है। इनका सिंह से संबंध कदाचित् जैन परंपरा पर आधारित है। मध्यकाल में पहुँचते-पहुँचते ब्रज क्षेत्र के अतिरिक्त - जहाँ कुषाणकालीन मदिरा पीने वाले द्विभुज बलराम मूर्तियों की परंपरा ही चलती रही - बलराम की प्रतिमा का स्वरूप बहुत कुछ स्थिर हो गया। हल, मूसल तथा मद्यपात्र धारण करनेवाले सर्पफणाओं से सुशोभित बलदेव बहुधा समपद स्थिति में अथवा कभी एक घुटने को किंचित झुकाकर खड़े दिखलाई पड़ते हैं। कभी-कभी रेवती भी साथ में रहती हैं। .

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बलराम अग्रवाल

हिन्दी कवि और लेखक बलराम अग्रवाल एक प्रसिद्ध साहित्यकार हैं। इनकी लघुकथाएं बहुत ही शिक्षाप्रद और मनोरंजक होती हैं। अपनी लेखनी के आधार पर कई सामाजिक समस्याओं को भी उठाते हैं। इनकी अविरल चलने वाली लेखनी निरंतर हिन्दी साहित्य को समृद्ध कर रही है। इनके अपने ब्लॉग भी हैं। इनके नाम हैं, |.

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बाबू गुलाबराय

बाबू गुलाबराय (१७ जनवरी १८८८ - १३ अप्रैल १९६३) हिन्दी के आलोचक तथा निबन्धकार थे।। .

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बाल शौरि रेड्डी

बाल शौरि रेड्डी हिन्दी के सुप्रसिद्ध लेखक और बाल साहित्यकार हैं। उनका जन्म ग्राम मोल्लर गुडर, जिला कण्ण गुडर आंध्र प्रदेश में हुआ। वे मूल रूप से तेलुगु भाषी हैं। उन्होंने दक्षिण भारत की हिन्दी प्रचार सभा मद्रास में लेखन एवं संपादन कार्य किया। वे काफ़ी दिनों तक मासिक बाल पत्रिका चंदामामा के संपादक रहे। इसके पश्छात वे भारतीय भाषा परिषद कलकत्ता में नियुक्त हुए। संप्रति स्वतंत्र लेखन में संलग्न हैं। मौलिक लेखन के अतिरिक्त उन्होंने हिन्दी से तेलगु और तेलुगु से हिन्दी में अनुवाद भी किया है। श्रेणी:हिन्दी साहित्यकार श्रेणी:साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत हिन्दी भाषा के साहित्यकार.

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बालमुकुंद गुप्त

बालमुकुंद गुप्त (१४ नवंबर १८६५ - १८ सितंबर १९०७) का जन्म गुड़ियानी गाँव, जिला Rewari, हरियाणा में हुआ। उन्होने हिन्दी के निबंधकार और संपादक के रूप हिन्दी जगत की सेवा की। .

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बालकवि बैरागी

हिन्दी कवि और लेखक आदरणीय बालकवि बैरागी जी (Balkavi Bairagi) का जन्म जन्म १० फरवरी १९३१ को मंदसौर जिले की मनासा तहसील के रामपुर गाँव में हुआ था। बैरागी जी ने विक्रम विश्वविद्यालय से हिंदी में एम्.ए. किया था। इनकी मृत्यु 13 मई 2018 को इनके गृह नगर मनासा में हुई । प्रमुख कवितायेँ - .

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बालकृष्ण भट्ट

पंडित बाल कृष्ण भट्ट (३ जून १८४४- २० जुलाई १९१४) हिन्दी के सफल पत्रकार, नाटककार और निबंधकार थे। उन्हें आज की गद्य प्रधान कविता का जनक माना जा सकता है। हिन्दी गद्य साहित्य के निर्माताओं में भी उनका प्रमुख स्थान है। .

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भारत यायावर

भारत यायावर (१९५४) हिन्दी के जाने माने साहित्यकार हैं। उनका जन्म आधुनिक झारखंड के हजारीबाग जिले में हुआ। सुरु से ही गरीबी में पले बढे भारत ने विलक्षण प्रतिभा पायी थी I चार भाई और दो बहनो के बिच भारत अपनी बड़ी बहन के सबसे करीब थे I इनका बड़ी बहन के प्रति सम्मान इनकी कविता मेरा झोला में दिखाई देता है I भारत का अपने आस पास के लोगो से भी बड़ा लगाव था, इन बातो का जिक्र इन्होने अपनी कविता पड़ियायिन मामा और लंगड़ू पांडे कडरू के बच्चा हुर्रे में  किया हैI झेलते हुए (१९८०) और मैं यहाँ हूँ (१९८६) उनके चर्चित कविता संग्रह हैं। १९८८ में उन्हें नागार्जुन पुरस्कार से अलंकृत किया गया। उन्होंने फणीश्वरनाथ रेणु की खोई हुई और दुर्लभ ८ पुस्तकों का संपादन किया है। .

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भारतभूषण अग्रवाल

भारतभूषण अग्रवाल छायावादोत्तर हिंदी कविता के एक सशक्त हस्ताक्षर हैं। वे अज्ञेय द्वारा संपादित तारसप्तक के महत्वपूर्ण कवि हैं। .

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भारतेन्दु हरिश्चंद्र

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (९ सितंबर १८५०-७ जनवरी १८८५) आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह कहे जाते हैं। वे हिन्दी में आधुनिकता के पहले रचनाकार थे। इनका मूल नाम 'हरिश्चन्द्र' था, 'भारतेन्दु' उनकी उपाधि थी। उनका कार्यकाल युग की सन्धि पर खड़ा है। उन्होंने रीतिकाल की विकृत सामन्ती संस्कृति की पोषक वृत्तियों को छोड़कर स्वस्थ्य परम्परा की भूमि अपनाई और नवीनता के बीज बोए। हिन्दी साहित्य में आधुनिक काल का प्रारम्भ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से माना जाता है। भारतीय नवजागरण के अग्रदूत के रूप में प्रसिद्ध भारतेन्दु जी ने देश की गरीबी, पराधीनता, शासकों के अमानवीय शोषण का चित्रण को ही अपने साहित्य का लक्ष्य बनाया। हिन्दी को राष्ट्र-भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने की दिशा में उन्होंने अपनी प्रतिभा का उपयोग किया। भारतेन्दु बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। हिंदी पत्रकारिता, नाटक और काव्य के क्षेत्र में उनका बहुमूल्य योगदान रहा। हिंदी में नाटकों का प्रारंभ भारतेन्दु हरिश्चंद्र से माना जाता है। भारतेन्दु के नाटक लिखने की शुरुआत बंगला के विद्यासुंदर (१८६७) नाटक के अनुवाद से होती है। यद्यपि नाटक उनके पहले भी लिखे जाते रहे किंतु नियमित रूप से खड़ीबोली में अनेक नाटक लिखकर भारतेन्दु ने ही हिंदी नाटक की नींव को सुदृढ़ बनाया। उन्होंने 'हरिश्चंद्र पत्रिका', 'कविवचन सुधा' और 'बाल विबोधिनी' पत्रिकाओं का संपादन भी किया। वे एक उत्कृष्ट कवि, सशक्त व्यंग्यकार, सफल नाटककार, जागरूक पत्रकार तथा ओजस्वी गद्यकार थे। इसके अलावा वे लेखक, कवि, संपादक, निबंधकार, एवं कुशल वक्ता भी थे।। वेबदुनिया। स्मृति जोशी भारतेन्दु जी ने मात्र ३४ वर्ष की अल्पायु में ही विशाल साहित्य की रचना की। पैंतीस वर्ष की आयु (सन् १८८५) में उन्होंने मात्रा और गुणवत्ता की दृष्टि से इतना लिखा, इतनी दिशाओं में काम किया कि उनका समूचा रचनाकर्म पथदर्शक बन गया। .

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भवानी प्रसाद मिश्र

भवानी प्रसाद मिश्र (जन्म: २९ मार्च १९१४ - मृत्यु: २० फ़रवरी १९८५) हिन्दी के प्रसिद्ध कवि तथा गांधीवादी विचारक थे। वे दूसरे तार-सप्तक के एक प्रमुख कवि हैं। गाँधीवाद की स्वच्छता, पावनता और नैतिकता का प्रभाव तथा उसकी झलक उनकी कविताओं में साफ़ देखी जा सकती है। उनका प्रथम संग्रह 'गीत-फ़रोश' अपनी नई शैली, नई उद्भावनाओं और नये पाठ-प्रवाह के कारण अत्यंत लोकप्रिय हुए थे। प्यार से लोग उन्हें भवानी भाई कहकर सम्बोधित किया करते थे। उन्होंने स्वयं को कभी भी कभी निराशा के गर्त में डूबने नहीं दिया। जैसे सात-सात बार मौत से वे लड़े वैसे ही आजादी के पहले गुलामी से लड़े और आजादी के बाद तानाशाही से भी लड़े। आपातकाल के दौरान नियम पूर्वक सुबह दोपहर शाम तीनों बेलाओं में उन्होंने कवितायें लिखी थीं जो बाद में त्रिकाल सन्ध्या नामक पुस्तक में प्रकाशित भी हुईं।http://www.deshbandhu.co.in/newsdetail/4488/3/52 भवानी भाई को १९७२ में उनकी कृति बुनी हुई रस्सी के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। १९८१-८२ में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का साहित्यकार सम्मान दिया गया तथा १९८३ में उन्हें मध्य प्रदेश शासन के शिखर सम्मान से अलंकृत किया गया। .

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भविलाल लामिछाने

भविलाल लामिछाने (जन्म: १९५०, डिगबोई, आसाम) नेपाली साहित्य के अग्रणी आधुनिक युवा कवि हैं। उनका एक कविता संग्रह अनागत नाम से प्रकाशित हुआ है। .

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भगवतशरण उपाध्याय

भगवतशरण उपाध्याय का जन्म 1910 ई0 को उजियारपुर, जिला- बलिया (उ0प्र0) में हुआ। निधन 12 अगस्त 1982 ई0 को हुआ। उपाध्याय जी ने संस्कृत, हिन्दी साहित्य, इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व का गहन अध्ययन किया। आपकी भाषा शैली तत्सम् शब्दों से युक्त साहित्यिक खड़ीबोली है। आपने विवेचनात्मक भावुकता पूर्ण, चित्रात्मक भाषा का प्रयोग तथा कहीं-कहीं रेखाचित्र शैली का प्रयोग किया है।;रचनाएँ- विश्व साहित्य की रूपरेखा, कालिदास का भारत, कादम्बरी, ठूँठा आम, लाल चीन, गंगा-गोदावरी, बुद्ध वैभव, साहित्य और कला, सागर की लहरों पर।;संपादन- बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की शोध पत्रिका का संपादन। हिन्दी विश्वकोश संपादक-मंडल के सदस्य। विशेष-मारीशस में भारते के राजदूत तथा विक्रम विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर रहे। .

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भगवती चरण वर्मा

भगवती चरण वर्मा (३० अगस्त १९०३ - ५ अक्टूबर १९८८) हिन्दी के साहित्यकार थे। उन्हें साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन १९७१ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। .

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भगीरथ

भगीरथ इक्ष्वाकुवंशीय सम्राट् दिलीप के पुत्र थे जिन्होंने घोर तपस्या से गंगा को पृथ्वी पर अवतरित कर कपिल मुनि के शाप से भस्म हुए ६० हजार सगरपुत्रों के उद्धारार्थ पीढ़ियों से चले प्रयत्नों को सफल किया था। गंगा को पृथ्वी पर लाने का श्रेय भगीरथ को है, इसलिए इनके नाम पर उन्हें 'भागीरथी' कहा गया। गंगावतरण की इस घटना का क्रमबद्ध वर्णन वायुपुराण (४७.३७), विष्णुपुराण (४.४.१७), हरवंश पुराण (१.१५), ब्रह्मवैवर्त पुराण(१.०), महाभारत (अनु. १२६.२६), भागवत (९.९) आदि पुराणों तथा वाल्मीकीय रामायण (बाल., १.४२-४४) में मिलता है। .

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भैरवप्रसाद गुप्त

हिन्दी कवि और लेखक.

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भूपेंद्र नाथ कौशिक

व्यंग्यकार भूपेंद्र नाथ कौशिक "फ़िक्र" (७ जुलाई, १९२५-२७ अक्टूबर,२००७) आधुनिक काल के सशक्त व्यंग्यकार थे, उनकी कविता में बाज़ारवाद और कोरे हुल्लड़ के खिलाफ रोष बहुलता से मिलता है। हिमांचल प्रदेश के खुबसूरत इलाके "नाहन" में जन्मे फ़िक्र साहब के पिता का नाम पंडित अमरनाथ था और माता का नाम लीलावती था, पिताजी संगीत और अरबी भाषा की प्रकांड विद्वान थे। आध्यात्म के संस्कार फ़िक्र को बचपन में शैख़ सादी की फारसी हिकायत "गुलिस्तान" से मिले। प्रारंभिक शिक्षा संस्कृत और फारसी में हुयी। उच्च शिक्षा के लिए फ़िक्र जी अम्बाला छावनी आ गए। और यहाँ के राजकीय कॉलेज से अरबी, फारसी, उर्दू और अंग्रेजी की शिक्षा ली। नौकरी की तलाश में जबलपुर आना पड़ा, यहाँ आकर, बी.

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भीष्म साहनी

रावलपिंडी पाकिस्तान में जन्मे भीष्म साहनी (८ अगस्त १९१५- ११ जुलाई २००३) आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रमुख स्तंभों में से थे। १९३७ में लाहौर गवर्नमेन्ट कॉलेज, लाहौर से अंग्रेजी साहित्य में एम ए करने के बाद साहनी ने १९५८ में पंजाब विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि हासिल की। भारत पाकिस्तान विभाजन के पूर्व अवैतनिक शिक्षक होने के साथ-साथ ये व्यापार भी करते थे। विभाजन के बाद उन्होंने भारत आकर समाचारपत्रों में लिखने का काम किया। बाद में भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) से जा मिले। इसके पश्चात अंबाला और अमृतसर में भी अध्यापक रहने के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय में साहित्य के प्रोफेसर बने। १९५७ से १९६३ तक मास्को में विदेशी भाषा प्रकाशन गृह (फॉरेन लॅग्वेजेस पब्लिकेशन हाउस) में अनुवादक के काम में कार्यरत रहे। यहां उन्होंने करीब दो दर्जन रूसी किताबें जैसे टालस्टॉय आस्ट्रोवस्की इत्यादि लेखकों की किताबों का हिंदी में रूपांतर किया। १९६५ से १९६७ तक दो सालों में उन्होंने नयी कहानियां नामक पात्रिका का सम्पादन किया। वे प्रगतिशील लेखक संघ और अफ्रो-एशियायी लेखक संघ (एफ्रो एशियन राइटर्स असोसिएशन) से भी जुड़े रहे। १९९३ से ९७ तक वे साहित्य अकादमी के कार्यकारी समीति के सदस्य रहे। भीष्म साहनी को हिन्दी साहित्य में प्रेमचंद की परंपरा का अग्रणी लेखक माना जाता है। वे मानवीय मूल्यों के लिए हिमायती रहे और उन्होंने विचारधारा को अपने ऊपर कभी हावी नहीं होने दिया। वामपंथी विचारधारा के साथ जुड़े होने के साथ-साथ वे मानवीय मूल्यों को कभी आंखो से ओझल नहीं करते थे। आपाधापी और उठापटक के युग में भीष्म साहनी का व्यक्तित्व बिल्कुल अलग था। उन्हें उनके लेखन के लिए तो स्मरण किया ही जाएगा लेकिन अपनी सहृदयता के लिए वे चिरस्मरणीय रहेंगे। भीष्म साहनी हिन्दी फ़िल्मों के जाने माने अभिनेता बलराज साहनी के छोटे भाई थे। उन्हें १९७५ में तमस के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार, १९७५ में शिरोमणि लेखक अवार्ड (पंजाब सरकार), १९८० में एफ्रो एशियन राइटर्स असोसिएशन का लोटस अवार्ड, १९८३ में सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड तथा १९९८ में भारत सरकार के पद्मभूषण अलंकरण से विभूषित किया गया। उनके उपन्यास तमस पर १९८६ में एक फिल्म का निर्माण भी किया गया था। .

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मधु कांकरिया

मधु कांकरिया हिन्दी साहित्य की प्रतिष्ठित लेखिका, कथाकार तथा उपन्यासकार हैं। उन्होंने बहुत सुन्दर यात्रा-वृत्तांत भी लिखे हैं। उनकी रचनाओं में विचार और संवेदना की नवीनता तथा समाज में व्याप्त अनेक ज्वलंत समस्याएें जैसे संस्कृति, महानगर की घुटन और असुरक्षा के बीच युवाओं में बढ़ती नशे की आदत, लालबत्ती इलाकों की पीड़ा नारी अभिव्यक्ति उनकी रचनाओं के विषय रहे हैं। .

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मनमोहन सरल

ग्रिफ्फिन पद 1966 Griffin Award.jpg जन्म: 28 दिसम्बर 1934, नजीबाबाद, उत्तरप्रदेश। शिक्षा: एम.ए., बी.एससी., एलएल.बी.

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मनजीत टिवाणा

मनजीत टिवाणा (१९४७) पंजाबी के प्रसिद्ध रचनाकार हैं। उनकी पहली रचनाएँ अमृता प्रीतम द्वारा संपादित नागमणि में प्रकाशित हुईं। इलहाम, इलज़ाम और उणींदा वर्तमान उनके चर्चित कविता संग्रह हैं। उणींदा वर्तमान के लिए उन्हें १९८९ का साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया है। सावित्री (प्रबंध काव्य) और सतमंज़िला समुद्र (उपन्यास) भी उनकी प्रमुख कृतियों में से हैं। .

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मनजीत कौर भाटिया

मनजीत कौर भाटिया (२८ अप्रैल १९६१) साहित्य अकादमी दिल्ली में कार्यरत पंजाबी लेखिका हैं। उन्होंने पंजाबी से हिन्दी में अनुवाद के भी कार्य किए हैं। .

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मन्नू भंडारी

मन्नू भंडारी मन्नू भंडारी (जन्म ३ अप्रैल १९३१) हिन्दी की सुप्रसिद्ध कहानीकार हैं। मध्य प्रदेश में मंदसौर जिले के भानपुरा गाँव में जन्मी मन्नू का बचपन का नाम महेंद्र कुमारी था। लेखन के लिए उन्होंने मन्नू नाम का चुनाव किया। उन्होंने एम ए तक शिक्षा पाई और वर्षों तक दिल्ली के मीरांडा हाउस में अध्यापिका रहीं। धर्मयुग में धारावाहिक रूप से प्रकाशित उपन्यास आपका बंटी से लोकप्रियता प्राप्त करने वाली मन्नू भंडारी विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में प्रेमचंद सृजनपीठ की अध्यक्षा भी रहीं। लेखन का संस्कार उन्हें विरासत में मिला। उनके पिता सुख सम्पतराय भी जाने माने लेखक थे। .

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मनोहरश्याम जोशी

हिन्दी लेखक.

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मनीषा शुक्ला

मनीषा शुक्ला का जन्म उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में हुआ। वे हिंदी कवि सम्मेलन की एक प्रतिष्ठित कवयित्री हैं। जामिया मिल्लिया इस्लामिया से इन्होंने बी टेक (इलैक्ट्रोनिक्स एन्ड कम्युनिकेशन) की उपाधि प्राप्त की। श्रृंगार रस के गीतों में आधुनिकता के बिम्ब पिरोकर वे अपने लेखन को विशेष बनाती हैं। गीत, ग़ज़ल और नवगीत इनके लेखन की प्रमुख शैलियाँ हैं। उन्होंने भारत के संसद भवन में भी काव्य पाठ किया है।.

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ममता कालिया

ममता कालिया (02 नवम्बर,1940) एक प्रमुख भारतीय लेखिका हैं। वे कहानी, नाटक, उपन्यास, निबंध, कविता और पत्रकारिता अर्थात साहित्य की लगभग सभी विधाओं में हस्तक्षेप रखती हैं। हिन्दी कहानी के परिदृश्य पर उनकी उपस्थिति सातवें दशक से निरन्तर बनी हुई है। लगभग आधी सदी के काल खण्ड में उन्होंने 200 से अधिक कहानियों की रचना की है। वर्तमान में वे महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय की त्रैमासिक पत्रिका "हिन्दी" की संपादिका हैं। .

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महादेवी वर्मा

महादेवी वर्मा (२६ मार्च १९०७ — ११ सितंबर १९८७) हिन्दी की सर्वाधिक प्रतिभावान कवयित्रियों में से हैं। वे हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक मानी जाती हैं। आधुनिक हिन्दी की सबसे सशक्त कवयित्रियों में से एक होने के कारण उन्हें आधुनिक मीरा के नाम से भी जाना जाता है। कवि निराला ने उन्हें “हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती” भी कहा है। महादेवी ने स्वतंत्रता के पहले का भारत भी देखा और उसके बाद का भी। वे उन कवियों में से एक हैं जिन्होंने व्यापक समाज में काम करते हुए भारत के भीतर विद्यमान हाहाकार, रुदन को देखा, परखा और करुण होकर अन्धकार को दूर करने वाली दृष्टि देने की कोशिश की। न केवल उनका काव्य बल्कि उनके सामाजसुधार के कार्य और महिलाओं के प्रति चेतना भावना भी इस दृष्टि से प्रभावित रहे। उन्होंने मन की पीड़ा को इतने स्नेह और शृंगार से सजाया कि दीपशिखा में वह जन-जन की पीड़ा के रूप में स्थापित हुई और उसने केवल पाठकों को ही नहीं समीक्षकों को भी गहराई तक प्रभावित किया। उन्होंने खड़ी बोली हिन्दी की कविता में उस कोमल शब्दावली का विकास किया जो अभी तक केवल बृजभाषा में ही संभव मानी जाती थी। इसके लिए उन्होंने अपने समय के अनुकूल संस्कृत और बांग्ला के कोमल शब्दों को चुनकर हिन्दी का जामा पहनाया। संगीत की जानकार होने के कारण उनके गीतों का नाद-सौंदर्य और पैनी उक्तियों की व्यंजना शैली अन्यत्र दुर्लभ है। उन्होंने अध्यापन से अपने कार्यजीवन की शुरूआत की और अंतिम समय तक वे प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्या बनी रहीं। उनका बाल-विवाह हुआ परंतु उन्होंने अविवाहित की भांति जीवन-यापन किया। प्रतिभावान कवयित्री और गद्य लेखिका महादेवी वर्मा साहित्य और संगीत में निपुण होने के साथ-साथ कुशल चित्रकार और सृजनात्मक अनुवादक भी थीं। उन्हें हिन्दी साहित्य के सभी महत्त्वपूर्ण पुरस्कार प्राप्त करने का गौरव प्राप्त है। भारत के साहित्य आकाश में महादेवी वर्मा का नाम ध्रुव तारे की भांति प्रकाशमान है। गत शताब्दी की सर्वाधिक लोकप्रिय महिला साहित्यकार के रूप में वे जीवन भर पूजनीय बनी रहीं। वर्ष २००७ उनकी जन्म शताब्दी के रूप में मनाया गया।२७ अप्रैल १९८२ को भारतीय साहित्य में अतुलनीय योगदान के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार से इन्हें सम्मानित किया गया था। गूगल ने इस दिवस की याद में वर्ष २०१८ में गूगल डूडल के माध्यम से मनाया । .

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महावीर प्रसाद द्विवेदी

आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी (1864–1938) हिन्दी के महान साहित्यकार, पत्रकार एवं युगप्रवर्तक थे। उन्होने हिंदी साहित्य की अविस्मरणीय सेवा की और अपने युग की साहित्यिक और सांस्कृतिक चेतना को दिशा और दृष्टि प्रदान की। उनके इस अतुलनीय योगदान के कारण आधुनिक हिंदी साहित्य का दूसरा युग 'द्विवेदी युग' (1900–1920) के नाम से जाना जाता है। उन्होने सत्रह वर्ष तक हिन्दी की प्रसिद्ध पत्रिका सरस्वती का सम्पादन किया। हिन्दी नवजागरण में उनकी महान भूमिका रही। भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन को गति व दिशा देने में भी उनका उल्लेखनीय योगदान रहा। .

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महावीरप्रसाद जैन

हिन्दी लेखक.

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महुआ माझी

२००७ में अपने उपन्यास मैं बोरिशाइल्ला के लिए यू॰के॰ कथा सम्मान से सम्मानित हिन्दी लेखिका.

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महेश कटारे

हिन्दी कवि और लेखक.

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माधवराव सप्रे

माधवराव सप्रे माधवराव सप्रे (जून १८७१ - २६ अप्रैल १९२६) हिन्दी के आरंभिक कहानीकारों में से एक, सुप्रसिद्ध अनुवादक एवं हिन्दी के आरंभिक संपादकों में प्रमुख स्थान रखने वाले हैं। वे हिन्दी के प्रथम कहानी लेखक के रूप में जाने जाते हैं। .

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माया गोविन्द

हिन्दी कवयित्री.

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मालती महावर

हिन्दी कवि और लेखक.

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मालती जोशी

मालती जोशी एक हिन्दी लेखिका हैं, जिन्हें २०१८ में साहित्य तथा शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदानों के लिए पद्म श्री से सम्मानित किया गया। मालती जोशी का जन्म ४ जून १९३४ को औरंगाबाद में हुआ था। आपने आगरा विश्वविद्यालय से वर्ष १९५६ में हिन्दी विषय से एम.ए. की शिक्षा ग्रहण की। अब तक अनगिनत कहानियां, बाल कथायें व उपन्यास प्रकाशित कर चुकी हैं। इनमें से अनेक रचनाओं का विभिन्न भारतीय व विदेशी भाषाओं में अनुवाद भी किया जा चुका है। कई कहानियों का रंगमंचन रेडियो व दूर दर्शन पर नाट्य रूपान्तर भी प्रस्तुत किया जा चुका है। कुछ पर जया बच्चन द्वारा दूरदर्शन धारावाहिक सात फेरे का निर्माण किया गया है तथा कुछ कहानियां गुलज़ार के दूरदर्शन धारावाहिक किरदार में तथा भावना धारावाहिक में शामिल की जा चुकी हैं। इन्हें हिन्दी व मराठी की विभिन्न व साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित व पुरस्कृत किया जा चुका है। मध्य प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा वर्ष १९९८ के भवभूति अलंकरण सम्मान से विभूषित किया जा चुका है। मालती जोशी जी कि कहानियां मन को छूने वाली होती हैं। अपनी कहानियों के बारे में, वे कहती हैं, ' जीवन की छोटी-छोटी अनुभूतियों को, स्मरणीय क्षणों को मैं अपनी कहानियों में पिरोती रही हूं। ये अनुभूतियां कभी मेरी अपनी होती हैं कभी मेरे अपनों की। और इन मेरे अपनों की संख्या और परिधि बहुत विस्तृत है। वैसे भी लेखक के लिए आप पर भाव तो रहता ही नहीं है। अपने आसपास बिखरे जगत का सुख-दु:ख उसी का सुख-दु:ख हो जाता है। और शायद इसीलिये मेरी अधिकांश कहानियां "मैं” के साथ शुरू होती हैं।' मालती जोशी का पता है स्नेहबंध, ५०-दीपक सोसाइटी, चूना भट्टी- कोलार रोड, भोपाल .

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माखनलाल चतुर्वेदी

माखनलाल चतुर्वेदी (४ अप्रैल १८८९-३० जनवरी १९६८) भारत के ख्यातिप्राप्त कवि, लेखक और पत्रकार थे जिनकी रचनाएँ अत्यंत लोकप्रिय हुईं। सरल भाषा और ओजपूर्ण भावनाओं के वे अनूठे हिंदी रचनाकार थे। प्रभा और कर्मवीर जैसे प्रतिष्ठत पत्रों के संपादक के रूप में उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जोरदार प्रचार किया और नई पीढी का आह्वान किया कि वह गुलामी की जंज़ीरों को तोड़ कर बाहर आए। इसके लिये उन्हें अनेक बार ब्रिटिश साम्राज्य का कोपभाजन बनना पड़ा। वे सच्चे देशप्रमी थे और १९२१-२२ के असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेते हुए जेल भी गए। आपकी कविताओं में देशप्रेम के साथ साथ प्रकृति और प्रेम का भी चित्रण हुआ है। .

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मिथिलेश्वर

मिथिलेश्वर (जन्म: 31 दिसंबर 1950) हिंदी साहित्य में मुख्यतः साठोत्तरी पीढ़ी से सम्बद्ध प्रमुख कथाकार हैं। मुख्यतः ग्रामीण जीवन से सम्बद्ध कथानकों के प्रति समर्पित कथाकार मिथिलेश्वर सीधी-सादी शैली में विशिष्ट रचनात्मक प्रभाव उत्पन्न करने में सिद्धहस्त माने जाते हैं। .

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मिर्ज़ा हादी रुस्वा

मिर्जा मोहम्मद हादी रुस्वा (उर्दू: ﻣﺮﺯﺍ ﻣﺤﻤﺪ ﮨﺎﺩﯼ ﺭﺳﻮﺍ) (1857 - 21 अक्टूबर 1931), एक उर्दू कवि, कथा, और ग्रंथ (मुख्य रूप से धर्म, दर्शन, और खगोल विज्ञान पर) लेखक थे। वह कई साल अवध के निज़ाम की भाषा मामलों की बोर्ड में सलाहकार बने रहे। इन्हें उर्दू, फारसी, अरबी, हिब्रू, अंग्रेजी, लैटिन, और ग्रीक का अच्छा ज्ञान था। .

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मंगलेश डबराल

मंगलेश डबराल समकालीन हिन्दी कवियों में सबसे चर्चित नाम हैं। इनका जन्म १६ मई १९४८ को टिहरी गढ़वाल, उत्तराखण्ड के काफलपानी गाँव में हुआ था, इनकी शिक्षा-दीक्षा देहरादून में हुई। दिल्ली आकर हिन्दी पैट्रियट, प्रतिपक्ष और आसपास में काम करने के बाद वे भोपाल में मध्यप्रदेश कला परिषद्, भारत भवन से प्रकाशित साहित्यिक त्रैमासिक पूर्वाग्रह में सहायक संपादक रहे। इलाहाबाद और लखनऊ से प्रकाशित अमृत प्रभात में भी कुछ दिन नौकरी की। सन् १९८३ में जनसत्ता में साहित्य संपादक का पद सँभाला। कुछ समय सहारा समय में संपादन कार्य करने के बाद आजकल वे नेशनल बुक ट्रस्ट से जुड़े हैं। मंगलेश डबराल के पाँच काव्य संग्रह प्रकाशित हुए हैं।- पहाड़ पर लालटेन, घर का रास्ता, हम जो देखते हैं, आवाज भी एक जगह है और नये युग में शत्रु। इसके अतिरिक्त इनके दो गद्य संग्रह लेखक की रोटी और कवि का अकेलापन के साथ ही एक यात्रावृत्त एक बार आयोवा भी प्रकाशित हो चुके हैं। दिल्ली हिन्दी अकादमी के साहित्यकार सम्मान, कुमार विकल स्मृति पुरस्कार और अपनी सर्वश्रेष्ठ रचना हम जो देखते हैं के लिए साहित्य अकादमी द्वारा सन् २००० में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित मंगलेश डबराल की ख्याति अनुवादक के रूप में भी है। मंगलेश की कविताओं के भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त अंग्रेज़ी, रूसी, जर्मन, डच, स्पेनिश, पुर्तगाली, इतालवी, फ़्राँसीसी, पोलिश और बुल्गारियाई भाषाओं में भी अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं। कविता के अतिरिक्त वे साहित्य, सिनेमा, संचार माध्यम और संस्कृति के विषयों पर नियमित लेखन भी करते हैं। मंगलेश की कविताओं में सामंती बोध एवं पूँजीवादी छल-छद्म दोनों का प्रतिकार है। वे यह प्रतिकार किसी शोर-शराबे के साथ नहीं अपितु प्रतिपक्ष में एक सुन्दर स्वप्न रचकर करते हैं। उनका सौंदर्यबोध सूक्ष्म है और भाषा पारदर्शी। .

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मुशर्रफ आलम ज़ौकी

हिन्दी कवि और लेखक.

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मृणाल पाण्डे

मृणाल पाण्डे (जन्म: 26 फरवरी 1946) भारत की एक पत्रकार, लेखक एवं भारतीय टेलीविजन की जानी-मानी हस्ती हैं। सम्प्रति वे प्रसार भारती की अध्यक्षा हैं। अगस्त २००९ तक वे हिन्दी दैनिक "हिन्दुस्तान" की सम्पादिका थीं। हिन्दुस्तान भारत में सबसे ज्यादा पढे जाने वाले अखबारों में से एक हैं। वे हिन्दुस्तान टाइम्स के हिन्दी प्रकाशन समूह की सदस्या भी हैं। इसके अलावा वो लोकसभा चैनल के साप्ताहिक साक्षात्कार कार्यक्रम (बातों बातों में) का संचालन भी करती हैं। .

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मृदुला गर्ग

मृदुला गर्ग (जन्म:२५ अक्टूबर, १९३८) कोलकाता में जन्मी, हिंदी की सबसे लोकप्रिय लेखिकाओं में से एक हैं। उपन्यास, कहानी संग्रह, नाटक तथा निबंध संग्रह सब मिलाकर उन्होंने २० से अधिक पुस्तकों की रचना की है। १९६० में अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर उपाधि लेने के बाद उन्होंने ३ साल तक दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापन भी किया है। उनके उपन्यासों को अपने कथानक की विविधता और नयेपन के कारण समालोचकों की बड़ी स्वीकृति और सराहना मिली। उनके उपन्यास और कहानियों का अनेक हिंदी भाषाओं तथा जर्मन, चेक, जापानी और अँग्रेजी में अनुवाद हुआ है। वे स्तंभकार रही हैं, पर्यावरण के प्रति सजगता प्रकट करती रही हैं तथा महिलाओं तथा बच्चों के हित में समाज सेवा के काम करती रही हैं। उनका उपन्यास 'चितकोबरा' नारी-पुरुष के संबंधों में शरीर को मन के समांतर खड़ा करने और इस पर एक नारीवाद या पुरुष-प्रधानता विरोधी दृष्टिकोण रखने के लिए काफी चर्चित और विवादास्पद रहा था। उन्होंने इंडिया टुडे के हिन्दी संस्करण में २००३ से २०१० तक 'कटाक्ष' नामक स्तंभ लिखा है जो अपने तीखे व्यंग्य के कारण खूब चर्चा में रहा। उनके आठ उपन्यास- उसके हिस्से की धूप, वंशज, चित्तकोबरा, अनित्य, 'मैं और मैं', कठगुलाब, 'मिलजुल मन' और 'वसु का कुटुम'। ग्यारह कहानी संग्रह- 'कितनी कैदें', 'टुकड़ा टुकड़ा आदमी', 'डैफ़ोडिल जल रहे हैं', 'ग्लेशियर से', 'उर्फ सैम', 'शहर के नाम', 'चर्चित कहानियाँ', समागम, 'मेरे देश की मिट्टी अहा', 'संगति विसंगति', 'जूते का जोड़ गोभी का तोड़', चार नाटक- 'एक और अजनबी', 'जादू का कालीन', 'तीन कैदें' और 'सामदाम दंड भेद', तीन निबंध संग्रह- 'रंग ढंग','चुकते नहीं सवाल' तथा 'कृति और कृतिकार', एक यात्रा संस्मरण- 'कुछ अटके कुछ भटके' तथा दो व्यंग्य संग्रह- 'कर लेंगे सब हज़म' तथा 'खेद नहीं है' प्रकाशित हुए हैं। .

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मैत्रेयी पुष्पा

मैत्रेयी पुष्पा एक हिंदी कथा लेखक है। हिन्दी में एक प्रख्यात लेखक, मैत्रेयी पुष्पा उसे क्रेडिट के लिए दस उपन्यास और सात लघु कहानी संग्रह है मैत्रेयी पुष्पा (30 नवंबर, 1944) हिंदी साहित्यकार है। मैत्रेयी पुष्पा को हिन्दी अकादमी दिल्ली का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया है। .

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मैथिलीशरण गुप्त

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त (३ अगस्त १८८६ – १२ दिसम्बर १९६४) हिन्दी के प्रसिद्ध कवि थे। हिन्दी साहित्य के इतिहास में वे खड़ी बोली के प्रथम महत्त्वपूर्ण कवि हैं। उन्हें साहित्य जगत में 'दद्दा' नाम से सम्बोधित किया जाता था। उनकी कृति भारत-भारती (1912) भारत के स्वतंत्रता संग्राम के समय में काफी प्रभावशाली साबित हुई थी और इसी कारण महात्मा गांधी ने उन्हें 'राष्ट्रकवि' की पदवी भी दी थी। उनकी जयन्ती ३ अगस्त को हर वर्ष 'कवि दिवस' के रूप में मनाया जाता है। महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की प्रेरणा से आपने खड़ी बोली को अपनी रचनाओं का माध्यम बनाया और अपनी कविता के द्वारा खड़ी बोली को एक काव्य-भाषा के रूप में निर्मित करने में अथक प्रयास किया। इस तरह ब्रजभाषा जैसी समृद्ध काव्य-भाषा को छोड़कर समय और संदर्भों के अनुकूल होने के कारण नये कवियों ने इसे ही अपनी काव्य-अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया। हिन्दी कविता के इतिहास में यह गुप्त जी का सबसे बड़ा योगदान है। पवित्रता, नैतिकता और परंपरागत मानवीय सम्बन्धों की रक्षा गुप्त जी के काव्य के प्रथम गुण हैं, जो 'पंचवटी' से लेकर जयद्रथ वध, यशोधरा और साकेत तक में प्रतिष्ठित एवं प्रतिफलित हुए हैं। साकेत उनकी रचना का सर्वोच्च शिखर है। .

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मेहरुन्निसा परवेज

मेहरुन्निसा परवेज (जन्म- 1944, बालाघाट, मध्य प्रदेश) भारत की समकालीन महिला साहित्यकार और कथाकार हैं। वर्ष 1969 में उनका पहला उपन्यास 'आंखों की दहलीज' प्रकाशित हुआ था। आंखों की दहलीज, कोरजा और अकेला पलाश उनके प्रमुख उपन्यास तथा आदम और हव्वा, टहनियों पर धूप, गलत पुरुष,फाल्गुनी, अंतिम पढ़ाई, सोने का बेसर, अयोध्या से वापसी, एक और सैलाब, कोई नहीं, कानी बाट, ढहता कुतुबमीनार, रिश्ते, अम्मा और समर उनकी प्रमुख कहानियाँ है। उन्हें 'साहित्य भूषण सम्मान', 'महाराजा वीरसिंह जूदेव पुरस्कार' और 'सुभद्रा कुमारी चौहान पुरस्कार' से सम्मानित किया जा चुका है। .

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मोहन राकेश

मोहन राकेश(८ जनवरी १९२५ - ३ जनवरी, १९७२) नई कहानी आन्दोलन के सशक्त हस्ताक्षर थे। पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए किया। जीविकोपार्जन के लिये अध्यापन। कुछ वर्षो तक 'सारिका' के संपादक। 'आषाढ़ का एक दिन','आधे अधूरे' और लहरों के राजहंस के रचनाकार। 'संगीत नाटक अकादमी' से सम्मानित। ३ जनवरी १९७२ को नयी दिल्ली में आकस्मिक निधन। मोहन राकेश हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और उपन्यासकार हैं। समाज के संवेदनशील व्यक्ति और समय के प्रवाह से एक अनुभूति क्षण चुनकर उन दोनों के सार्थक सम्बन्ध को खोज निकालना, राकेश की कहानियों की विषय-वस्तु है। मोहन राकेश की डायरी हिंदी में इस विधा की सबसे सुंदर कृतियों में एक मानी जाती है। .

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मोहम्मद मांकड

मोहम्मद मांकड (गुजराती: મોહમ્મદ માંકડ, जन्म: 13 फ़रवरी 1928) गुजराती भाषा के जाने माने साहित्यकार हैं। उनका जन्म गुजरात में भावनगर जिले के पलियाड गाँव में हुआ था। उनके अनेक गुजराती उपन्यास और कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। गुजरात सरकार व अन्य संस्थाओं की ओर से उन्हें पुरस्कृत व सम्मानित भी किया जा चुका है। .

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मीना काकोडकर

मीना काकोडकर (२१ सितंबर १९४४) कोंकणी की जानी मानी लेखिका है। उनका जन्म गोआ में पोलोलम नामक स्थान पर हुआ। डोगर चन्वला, सपन फुलां कहानी संग्रह तथा सत्कान्तलों जादूगर (बाल नाटक) उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं। उन्हें १९९१ में साहित्य अकादमी के पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। .

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यशपाल

---- यशपाल (३ दिसम्बर १९०३ - २६ दिसम्बर १९७६) का नाम आधुनिक हिन्दी साहित्य के कथाकारों में प्रमुख है। ये एक साथ ही क्रांतिकारी एवं लेखक दोनों रूपों में जाने जाते है। प्रेमचंद के बाद हिन्दी के सुप्रसिद्ध प्रगतिशील कथाकारों में इनका नाम लिया जाता है। अपने विद्यार्थी जीवन से ही यशपाल क्रांतिकारी आन्दोलन से जुड़े, इसके परिणामस्वरुप लम्बी फरारी और जेल में व्यतीत करना पड़ा। इसके बाद इन्होने साहित्य को अपना जीवन बनाया, जो काम कभी इन्होने बंदूक के माध्यम से किया था, अब वही काम इन्होने बुलेटिन के माध्यम से जनजागरण का काम शुरु किया। यशपाल को साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन १९७० में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। .

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यज्ञदत्त शर्मा

वीर यज्ञदत्त शर्मा (२१ अक्टूबर १९२२ - ४ जुलाई १९९६), एक भारतीय राजनेता थे। वे दो बार सांसद रहे और उड़ीसा के राज्यपाल रहे। यज्ञदत्त शर्मा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े नेता भारतीय जनसंघ के संस्थापकों में से एक थे। उन्होने तत्कालीन पंजाब के कांगड़ा, उना, हमीरपुर और शिमला के ग्रामीण क्षेत्रों में जनसंघ का आधार मजबूत करने में महती भूमिका निभायी। १९९० से ९३ तक वे उड़ीसा के राज्यपाल थे। वे पेशे से आयुर्वेदिक चिकित्सक थे और उन्होने इसके उन्नयन के लिये कार्य किया। .

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योगेंद्र आहूजा

हिन्दी कवि और लेखक.

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रफिया मंजूरूल अमीन

रफिया मंजूरूल अमीनरफिया मंजूरूल अमीन (१९३०- ३० जून २००८) उर्दू की जानीमानी लेखिकाओं में से हैं। उनका पहला उपन्‍यास था 'सारे जहाँ का दर्द'। जो कश्‍मीर की पृष्‍ठभूमि पर लिखा गया था और इसे लखनऊ के नसीम अनहोन्‍वी के प्रकाशन ने छापा था। उनका दूसरा उपन्‍यास था--'ये रास्‍ते' और इसके बाद आया 'आलमपनाह'। उन्होंने दो सौ से ज्‍यादा कहानियाँ लिखी हैं। वे विज्ञान की छात्रा थीं और उन्‍होंने एक विज्ञान-पुस्‍तक भी लिखी--'साइंसी ज़ाविये'। ९० के दशक में रेडियो पर आलमपनाह का रूपांतरण जितना लोकप्रिय हुआ था उतना ही लोकप्रिय हुआ था इसका टी.वी.

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रमणलाल वसंतलाल देसाई

रमणलाल वसंतलाल देसाई (१८९२-१९५४ ई.) गुजराती भाषा के प्रसिद्ध साहित्यकार थे। उन्हें गुजराती साहित्य का "युगमूर्ति वार्ताकार' कहा जाता है। साहित्यिक सौष्ठव और लोकप्रियता दोनों की दृष्टि से गुजरात के कथाकारों में उनका स्थान "मुंशी' के बाद सर्वप्रमुख है। वे अनेक भाषाओं के विद्वान, लोक मर्मज्ञ तथा समाज के अनेक क्षेत्रों में योगदान के लिए विख्यात थे। इनके अनेक नाटक, उपन्यास, कविता संग्रह और यात्रा संस्मरण प्रकाशित हुए हैं। दिव्य यक्षु, भरेलो अग्नि, ग्राम लक्ष्मी, ग्रामोन्नति, बाला जोगन आदि उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं। .

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रमाकांत रथ

रमाकांत रथ (१३ दिसम्बर १९३४) उड़ीसा के कटक नगर में निवास करने वाले ओड़िया साहित्यकार हैं। केते दिनार, अनेक कोठरी, संदिग्ध मृगया, सप्तम ऋतु आदि उनके प्रमुख कविता संग्रह हैं। उन्हें सरला पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, विषुव पुरस्कार, सरस्वती सम्मान तथा कबीर सम्मान से अलंकृत किया जा चुका है। रमाकांत रथ को भारत सरकार द्वारा सन २००६ में साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये उड़ीसा के हैं। .

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रमेश बतरा

हिन्दी कवि और लेखक.

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रामचन्द्र शुक्ल

आचार्य रामचंद्र शुक्ल (४ अक्टूबर, १८८४- २ फरवरी, १९४१) हिन्दी आलोचक, निबन्धकार, साहित्येतिहासकार, कोशकार, अनुवादक, कथाकार और कवि थे। उनके द्वारा लिखी गई सर्वाधिक महत्वपूर्ण पुस्तक है हिन्दी साहित्य का इतिहास, जिसके द्वारा आज भी काल निर्धारण एवं पाठ्यक्रम निर्माण में सहायता ली जाती है। हिंदी में पाठ आधारित वैज्ञानिक आलोचना का सूत्रपात उन्हीं के द्वारा हुआ। हिन्दी निबन्ध के क्षेत्र में भी शुक्ल जी का महत्वपूर्ण योगदान है। भाव, मनोविकार संबंधित मनोविश्लेषणात्मक निबंध उनके प्रमुख हस्ताक्षर हैं। शुक्ल जी ने इतिहास लेखन में रचनाकार के जीवन और पाठ को समान महत्व दिया। उन्होंने प्रासंगिकता के दृष्टिकोण से साहित्यिक प्रत्ययों एवं रस आदि की पुनर्व्याख्या की। .

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रामदरश मिश्र

डॉ॰ रामदरश मिश्र (जन्म: १५ अगस्त, १९२४) हिन्दी के प्रतिष्ठित साहित्यकार हैं। ये जितने समर्थ कवि हैं उतने ही समर्थ उपन्यासकार और कहानीकार भी। इनकी लंबी साहित्य-यात्रा समय के कई मोड़ों से गुजरी है और नित्य नूतनता की छवि को प्राप्त होती गई है। ये किसी वाद के कृत्रिम दबाव में नहीं आये बल्कि उन्होंने अपनी वस्तु और शिल्प दोनों को सहज ही परिवर्तित होने दिया। अपने परिवेशगत अनुभवों एवं सोच को सृजन में उतारते हुए, उन्होंने गाँव की मिट्टी, सादगी और मूल्यधर्मिता अपनी रचनाओं में व्याप्त होने दिया जो उनके व्यक्तित्व की पहचान भी है। गीत, नई कविता, छोटी कविता, लंबी कविता यानी कि कविता की कई शैलियों में उनकी सर्जनात्मक प्रतिभा ने अपनी प्रभावशाली अभिव्यक्ति के साथ-साथ गजल में भी उन्होंने अपनी सार्थक उपस्थिति रेखांकित की। इसके अतिरक्त उपन्यास, कहानी, संस्मरण, यात्रावृत्तांत, डायरी, निबंध आदि सभी विधाओं में उनका साहित्यिक योगदान बहुमूल्य है। .

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रामधारी सिंह 'दिनकर'

रामधारी सिंह 'दिनकर' (२३ सितंबर १९०८- २४ अप्रैल १९७४) हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार थे। वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं। बिहार प्रान्त के बेगुसराय जिले का सिमरिया घाट उनकी जन्मस्थली है। उन्होंने इतिहास, दर्शनशास्त्र और राजनीति विज्ञान की पढ़ाई पटना विश्वविद्यालय से की। उन्होंने संस्कृत, बांग्ला, अंग्रेजी और उर्दू का गहन अध्ययन किया था। 'दिनकर' स्वतन्त्रता पूर्व एक विद्रोही कवि के रूप में स्थापित हुए और स्वतन्त्रता के बाद राष्ट्रकवि के नाम से जाने गये। वे छायावादोत्तर कवियों की पहली पीढ़ी के कवि थे। एक ओर उनकी कविताओ में ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रान्ति की पुकार है तो दूसरी ओर कोमल श्रृंगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति है। इन्हीं दो प्रवृत्तिय का चरम उत्कर्ष हमें उनकी कुरुक्षेत्र और उर्वशी नामक कृतियों में मिलता है। उर्वशी को भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार जबकि कुरुक्षेत्र को विश्व के १०० सर्वश्रेष्ठ काव्यों में ७४वाँ स्थान दिया गया। .

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रामविलास शर्मा

डॉ॰ रामविलास शर्मा (१० अक्टूबर, १९१२- ३० मई, २०००) आधुनिक हिन्दी साहित्य के सुप्रसिद्ध आलोचक, निबंधकार, विचारक एवं कवि थे। व्यवसाय से अंग्रेजी के प्रोफेसर, दिल से हिन्दी के प्रकांड पंडित और महान विचारक, ऋग्वेद और मार्क्स के अध्येता, कवि, आलोचक, इतिहासवेत्ता, भाषाविद, राजनीति-विशारद ये सब विशेषण उन पर समान रूप से लागू होते हैं। .

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रामवृक्ष बेनीपुरी

रामवृक्ष बेनीपुरी (२३ दिसंबर, 1900 - ९ सितंबर, १९६८) भारत के एक महान विचारक, चिन्तक, मनन करने वाले क्रान्तिकारी साहित्यकार, पत्रकार, संपादक थे।वे हिन्दी साहित्य के शुक्लोत्तर युग के प्रसिद्ध साहित्यकार थे। .

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राहुल सांकृत्यायन

राहुल सांकृत्यायन जिन्हें महापंडित की उपाधि दी जाती है हिन्दी के एक प्रमुख साहित्यकार थे। वे एक प्रतिष्ठित बहुभाषाविद् थे और बीसवीं सदी के पूर्वार्ध में उन्होंने यात्रा वृतांत/यात्रा साहित्य तथा विश्व-दर्शन के क्षेत्र में साहित्यिक योगदान किए। वह हिंदी यात्रासहित्य के पितामह कहे जाते हैं। बौद्ध धर्म पर उनका शोध हिन्दी साहित्य में युगान्तरकारी माना जाता है, जिसके लिए उन्होंने तिब्बत से लेकर श्रीलंका तक भ्रमण किया था। इसके अलावा उन्होंने मध्य-एशिया तथा कॉकेशस भ्रमण पर भी यात्रा वृतांत लिखे जो साहित्यिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण हैं। २१वीं सदी के इस दौर में जब संचार-क्रान्ति के साधनों ने समग्र विश्व को एक ‘ग्लोबल विलेज’ में परिवर्तित कर दिया हो एवं इण्टरनेट द्वारा ज्ञान का समूचा संसार क्षण भर में एक क्लिक पर सामने उपलब्ध हो, ऐसे में यह अनुमान लगाना कि कोई व्यक्ति दुर्लभ ग्रन्थों की खोज में हजारों मील दूर पहाड़ों व नदियों के बीच भटकने के बाद, उन ग्रन्थों को खच्चरों पर लादकर अपने देश में लाए, रोमांचक लगता है। पर ऐसे ही थे भारतीय मनीषा के अग्रणी विचारक, साम्यवादी चिन्तक, सामाजिक क्रान्ति के अग्रदूत, सार्वदेशिक दृष्टि एवं घुमक्कड़ी प्रवृत्ति के महान पुरूष राहुल सांकृत्यायन। राहुल सांकृत्यायन के जीवन का मूलमंत्र ही घुमक्कड़ी यानी गतिशीलता रही है। घुमक्कड़ी उनके लिए वृत्ति नहीं वरन् धर्म था। आधुनिक हिन्दी साहित्य में राहुल सांकृत्यायन एक यात्राकार, इतिहासविद्, तत्वान्वेषी, युगपरिवर्तनकार साहित्यकार के रूप में जाने जाते है। .

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राही मासूम रज़ा

राही मासूम रज़ा (१ सितंबर, १९२५-१५ मार्च १९९२) का जन्म गाजीपुर जिले के गंगौली गांव में हुआ था और प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा गंगा किनारे गाजीपुर शहर के एक मुहल्ले में हुई थी। बचपन में पैर में पोलियो हो जाने के कारण उनकी पढ़ाई कुछ सालों के लिए छूट गयी, लेकिन इंटरमीडियट करने के बाद वह अलीगढ़ आ गये और यहीं से एमए करने के बाद उर्दू में `तिलिस्म-ए-होशरुबा' पर पीएच.डी.

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राज बुद्धिराजा

राज बुद्धिराजा (१६ मार्च १९३७) दिल्ली में रहनेवाली हिन्दी साहित्यकार और आलोचक हैं। कन्यादान, रेत का टीला, दिल्ली अतीत के झरोखे से, जापान की श्रेष्ठ कहानियाँ, जापानी हिन्दी कोश आदि उनकी प्रमुख पुस्तकें हैं। उन्हें महिला शिरोमणि, भारतीय प्रतिष्ठा आदि भारतीय पुरस्कारों के साथ साथ जापान द्वारा भी पुरस्कृत किया गया है। श्रेणी:हिन्दी साहित्यकार.

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राजकमल चौधरी

राजकमल चौधरी (१३ दिसंबर १९२९-१९ जून १९६७) हिन्दी और मैथिली के प्रसिद्ध कवि एवं कहानीकार थे। मैथिली में स्वरगंधा, कविता राजकमलक आदि कविता संग्रह, एकटा चंपाकली एकटा विषधर (कहानी संग्रह) तथा आदिकथा, फूल पत्थर एवं आंदोलन उनके चर्चित उपन्यास हैं। हिन्दी में उनकी संपूर्ण कविताएँ भी प्रकाशित हो चुकी हैं। .

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राजेन्द्र प्रसाद मिश्र

राजेन्द्र प्रसाद मिश्र (६ अप्रैल १९५५) ओड़िया से हिन्दी अनुवाद के लिए जाने जाते हैं। उनका जन्म रायरंगपुर मयूरभंज उड़ीसा में हुआ था। वे अब तक लगभग ३० उड़िया किताबों का हिन्दी अनुवाद कर चुके हैं। उनका फणीश्वरनाथ रेणु तथा गोपीनाथ महंति पर किया गया शोधकार्य भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। .

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राजेन्द्र यादव

राजेन्द्र यादव (अंग्रेजी: Rajendra Yadav, जन्म: 28 अगस्त 1929 आगरा – मृत्यु: 28 अक्टूबर 2013 दिल्ली) हिन्दी के सुपरिचित लेखक, कहानीकार, उपन्यासकार व आलोचक होने के साथ-साथ हिन्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय संपादक भी थे। नयी कहानी के नाम से हिन्दी साहित्य में उन्होंने एक नयी विधा का सूत्रपात किया। उपन्यासकार मुंशी प्रेमचन्द द्वारा सन् 1930 में स्थापित साहित्यिक पत्रिका हंस का पुनर्प्रकाशन उन्होंने प्रेमचन्द की जयन्ती के दिन 31 जुलाई 1986 को प्रारम्भ किया था। यह पत्रिका सन् 1953 में बन्द हो गयी थी। इसके प्रकाशन का दायित्व उन्होंने स्वयं लिया और अपने मरते दम तक पूरे 27 वर्ष निभाया। 28 अगस्त 1929 ई० को उत्तर प्रदेश के शहर आगरा में जन्मे राजेन्द्र यादव ने 1951 ई० में आगरा विश्वविद्यालय से एम०ए० की परीक्षा हिन्दी साहित्य में प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान के साथ उत्तीर्ण की। उनका विवाह सुपरिचित हिन्दी लेखिका मन्नू भण्डारी के साथ हुआ था। वे हिन्दी साहित्य की सुप्रसिद्ध हंस पत्रिका के सम्पादक थे। हिन्दी अकादमी, दिल्ली द्वारा राजेन्द्र यादव को उनके समग्र लेखन के लिये वर्ष 2003-04 का सर्वोच्च सम्मान (शलाका सम्मान) प्रदान किया गया था। 28 अक्टूबर 2013 की रात्रि को नई दिल्ली में 84 वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ। .

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राजेन्द्र सिंह बेदी

हिन्दी लेखक.

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राजेन्द्र जोशी

राजेन्द्र जोशी गुजराती के सुप्रसिद्ध कवि और अनुवादक हैं। .

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राजेन्द्रसिंह बेदी

हिन्दी कवि और लेखक.

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राजेश जैन

हिन्दी कवि और लेखक.

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राजेश जोशी

राजेश जोशी, जुलाई २०१७राजेश जोशी (जन्म १९४६) साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत हिन्दी साहित्यकार हैं। उनका जन्म मध्य प्रदेश के नरसिंहगढ़ जिले में हुआ। उन्होंने शिक्षा पूरी करने के बाद पत्रकारिता शुरू की और कुछ सालों तक अध्यापन किया। राजेश जोशी ने कविताओं के अलावा कहानियाँ, नाटक, लेख और टिप्पणियाँ भी लिखीं। साथ ही उन्होंने कुछ नाट्य रूपांतर तथा कुछ लघु फिल्मों के लिए पटकथा लेखन का कार्य भी किया। उनके द्वारा भतृहरि की कविताओं की अनुरचना भूमिका "कल्पतरू यह भी" एवं मायकोवस्की की कविता का अनुवाद "पतलून पहिना बादल" नाम से किए गए है। कई भारतीय भाषाओं के साथ-साथ अँग्रेजी, रूसी और जर्मन में भी उनकी कविताओं के अनुवाद प्रकाशित हुए हैं। राजेश जोशी के चार कविता-संग्रह- एक दिन बोलेंगे पेड़, मिट्टी का चेहरा, नेपथ्य में हँसी और दो पंक्तियों के बीच, दो कहानी संग्रह - सोमवार और अन्य कहानियाँ, कपिल का पेड़, तीन नाटक - जादू जंगल, अच्छे आदमी, टंकारा का गाना। इसके अतिरिक्त आलोचनात्मक टिप्पणियों की किताब - एक कवि की नोटबुक प्रकाशित हुए हैं। उन्हें शमशेर सम्मान, पहल सम्मान, मध्य प्रदेश सरकार का शिखर सम्मान और माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार के साथ केन्द्र साहित्य अकादमी के प्रतिष्ठित सम्मान से सम्मानित किया गया है। राजेश जोशी की कविताएँ गहरे सामाजिक अभिप्राय वाली होती हैं। वे जीवन के संकट में भी गहरी आस्था को उभारती हैं। उनकी कविताओं में स्थानीय बोली-बानी, मिजाज़ और मौसम सभी कुछ व्याप्त है। उनके काव्यलोक में आत्मीयता और लयात्मकता है तथा मनुष्यता को बचाए रखने का एक निरंतर संघर्ष भी। दुनिया के नष्ट होने का खतरा राजेश जोशी को जितना प्रबल दिखाई देता है, उतना ही वे जीवन की संभावनाओं की खोज के लिए बेचैन दिखाई देते हैं। .

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रांगेय राघव

रांगेय राघव (१७ जनवरी, १९२३ - १२ सितंबर, १९६२) हिंदी के उन विशिष्ट और बहुमुखी प्रतिभावाले रचनाकारों में से हैं जो बहुत ही कम उम्र लेकर इस संसार में आए, लेकिन जिन्होंने अल्पायु में ही एक साथ उपन्यासकार, कहानीकार, निबंधकार, आलोचक, नाटककार, कवि, इतिहासवेत्ता तथा रिपोर्ताज लेखक के रूप में स्वंय को प्रतिस्थापित कर दिया, साथ ही अपने रचनात्मक कौशल से हिंदी की महान सृजनशीलता के दर्शन करा दिए।आगरा में जन्मे रांगेय राघव ने हिंदीतर भाषी होते हुए भी हिंदी साहित्य के विभिन्न धरातलों पर युगीन सत्य से उपजा महत्त्वपूर्ण साहित्य उपलब्ध कराया। ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर जीवनीपरक उपन्यासों का ढेर लगा दिया। कहानी के पारंपरिक ढाँचे में बदलाव लाते हुए नवीन कथा प्रयोगों द्वारा उसे मौलिक कलेवर में विस्तृत आयाम दिया। रिपोर्ताज लेखन, जीवनचरितात्मक उपन्यास और महायात्रा गाथा की परंपरा डाली। विशिष्ट कथाकार के रूप में उनकी सृजनात्मक संपन्नता प्रेमचंदोत्तर रचनाकारों के लिए बड़ी चुनौती बनी। .

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रजनी पनिक्कर

रजनी पनिक्कर (११ सितंबर १९२४- १८ नवम्बर १९७४) का जन्म लाहौर में हुआ था। वहीं से उन्होंने अंग्रेजी और हिंदी में एम० ए० किया। बचपन से ही उनकी रूचि लेखने में थी। उन्होंने बंबई में प्रकाशित होने वाली कहानी की एक पत्रिका का संपादन किया। भारत विभाजन के बाद वे पंजाब सरकार के सूचना विभाग के पाक्षिक हिंदी पत्र 'प्रदीप' की संपादिका बनीं और आकाशवाणी के लखनऊ, कलकत्ता, दिल्ली, जयपुर आदि विभिन्न केंद्रों पर अनेक वर्ष तक अधिकारी के रूप में रहीं। उन्होंने दिल्ली स्थित महत्त्वपूर्ण सस्था लेखिका संघ की स्थापना की तथा उसकी प्रथम अध्यक्षा भी रहीं। विवाह पूर्व उनका नाम रजनी नैयर था। फौजी अफसर ट्रावनकोर के श्रीधर पनिक्कर से विवाह हो जाने के बाद वे नैयर से रजनी पनिक्कर बन गईं। वे अपने निर्भीक और ओजपूर्ण लेखन के कारण जानी जाती हैं। उन्होंने उपन्यास और कहानी के क्षेत्र में अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की। उन्होंने लगभग एक दर्जन उपन्यासों की रचना की है, जो हिंदी संसार में बहुचर्चित रहे। (१९४९) में 'ठोकर' नाम से अपना पहला उपन्यास रजनी नैयर नाम से ही लिखा था। इसमें शिक्षित मध्यमवर्गीय परिवार की स्वछंदता का सफल चित्रण देखा जा सकता है। उनके उपन्यास 'पानी की दीवार' (१९५४) की कथा प्रेम के स्वस्थ और शालीन दृष्टिकोण को उभारती है। यह उपन्यास मनोवैज्ञानिक पर आधारित है। 'मोम के मोती' (१९५४) में रजनी पनिक्कर ने पुरूषों की उद्दंड कामुकता और इससे उत्पन्न सामाजिक वातावरण में नौकरीपेशा नारी की समस्याओं को उजागर किया है। 'प्यासे बादल' (१९५५) में उन्होंने सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार का महत्व प्रदर्शित किया है और बताया है कि इससे समाज का कोढ़ समझा जानेवाला आदमी भी सुधर सकता है। 'जाड़े की धूप' (१९५८) नौकरीपेशा नारी और उसके बदलते प्रेम संबंधों की कहानी है जिसमें दांपत्य से विचलन और निस्सरता की बात की गई है। 'काली लड़की' (१९५८) साँवली सूरत वाली लड़की की सामाजिक कठिनाइयों की कहानी है। 'महानगर की मीता' (१९५६) में मीता अपनी शर्त पर जीवन जीने की चाह रखती है और जीकर दिखाती है। इसके अतिरिक्त रजनी पनिक्कर के 'एक लड़कीः दो रूप', 'दूरियाँ', 'अपने-अपने दायरे', 'सिगरेट के टुकड़े' (१९५६), 'सोनाली दी', 'प्रेम चुनरिया बहुरंगी' आदि उपन्यास भी महत्वपूर्ण हैं। उनकी कई रचनाएं उत्तरप्रदेश सरकार, केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय और यूनेस्को द्वारा पुरस्कृत हुई हैं। पचास वर्ष की छोटी सी जीवन अवधि में ही उन्होंने हिंदी कथा लेखन में अपने अनुभवों को जो विस्तार दिया वह हिन्दी साहित्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। श्रेणी:हिन्दी उपन्यासकार श्रेणी:हिन्दी कथाकार श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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रघुनन्दन त्रिवेदी

रघुनन्दन त्रिवेदी (१७ जनवरी १९५५-१० जुलाई २००४ हिन्दी के कवि और लेखक हैं। उन्होंने हिन्दी में एम ए तक की शिक्षा प्राप्त की और तीन कहानी संग्रह लिखे- १९८८ में प्रकाशित यह ट्रेजेडी क्यों हुई, १९९४ में वह लड़की अभी जिन्दा है तथा २००१ में हमारे शहर की भावी लोक-कथा। इसके अतिरिक्त विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में उनकी अनेक कहानियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। यह ट्रेजेडी क्यों हुई कहानी संग्रह पर उन्हें राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर द्वारा रांगेय राघव पुरस्कार से तथा वह लड़की अभी ज़िन्दा है को अंतरीप सम्मान द्वारा सम्मानित किया गया था। श्रेणी:हिन्दी कवि श्रेणी:हिन्दी कथाकार.

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रघुवीर सहाय

रघुवीर सहाय रघुवीर सहाय (९ दिसम्बर १९२९ - ३० दिसम्बर १९९०) हिन्दी के साहित्यकार व पत्रकार थे। रघुवीर सहाय का जन्म लखनऊ में हुआ था। अंग्रेज़ी साहित्य में एम ए (१९५१) लखनऊ विश्वविद्यालय। साहित्य सृजन १९४६ से। पत्रकारिता की शुरुआत दैनिक नवजीवन (लखनऊ) से १९४९ में। १९५१ के आरंभ तक उपसंपादक और सांस्कृतिक संवाददाता। इसी वर्ष दिल्ली आए। यहाँ प्रतीक के सहायक संपादक (१९५१-५२), आकाशवाणी के समाचार विभाग में उपसंपादक (१९५३-५७)। १९५५ में विमलेश्वरी सहाय से विवाह। दूसरा सप्तक, सीढ़ियों पर धूप में, आत्महत्या के विरुद्ध, हँसो हँसो जल्दी हँसो (कविता संग्रह), रास्ता इधर से है (कहानी संग्रह), दिल्ली मेरा परदेश और लिखने का कारण (निबंध संग्रह) उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं। इसके अलावा 'बारह हंगरी कहानियाँ', विवेकानंद (रोमां रोला), 'जेको', (युगोस्लावी उपन्यास, ले० येर्ज़ी आन्द्र्ज़ेएव्स्की, 'राख़ और हीरे'(पोलिश उपन्यास,ले० येर्ज़ी आन्द्र्ज़ेएव्स्की) तथा 'वरनम वन'(मैकबेथ, शेक्सपियर) शीर्षक से हिन्दी भाषांतर भी समय-समय पर प्रकाशित हुए हैं। रघुवीर सहाय समकालीन हिन्दी कविता के महत्वपूर्ण स्तम्भ हैं। उनके साहित्य में पत्रकारिता का और उनकी पत्रकारिता पर साहित्य का गहरा असर रहा है। उनकी कविताएँ आज़ादी के बाद विशेष रूप से सन् ’60 के बाद के भारत की तस्वीर को समग्रता में पेश करती हैं। उनकी कविताएँ नए मानव संबंधों की खोज करना चाहती हैं जिसमें गैर बराबरी, अन्याय और गुलामी न हो। उनकी समूची काव्य-यात्रा का केंद्रीय लक्ष्य ऐसी जनतांत्रिक व्यवस्था की निर्मिति है जिसमें शोषण, अन्याय, हत्या, आत्महत्या, विषमता, दासता, राजनीतिक संप्रभुता, जाति-धर्म में बँटे समाज के लिए कोई जगह न हो। जिन आशाओं और सपनों से आज़ादी की लड़ाई लड़ी गई थी उन्हें साकार करने में जो बाधाएँ आ रही हों, उनका निरंतर विरोध करना उनका रचनात्मक लक्ष्य रहा है। वे जीवन के अंतिम पायदान पर खड़े होकर अपनी जिजीविषा का कारण ‘अपनी संतानों को कुत्ते की मौत मरने से बचाने’ की बात कहकर अपनी प्रतिबद्धता को मरते दम तक बनाए रखते हैं। .

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रवीन्द्र कालिया

हिंदी साहित्य में रवींद्र कालिया की ख्याति उपन्यासकार, कहानीकार और संस्मरण लेखक के अलावा एक ऐसे बेहतरीन संपादक के रूप में है, जो मृतप्राय: पत्रिकाओं में भी जान फूंक देते हैं। रवींद्र कालिया हिंदी के उन गिने-चुने संपादकों में से एक हैं, जिन्हें पाठकों की नब्ज़ और बाज़ार का खेल दोनों का पता है। 11 नवम्बर, 1939 को जालंधर में जन्मे रवीन्द्र कालिया हाल ही में भारतीय ज्ञानपीठ के निदेशक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं, उन्होंने ‘नया ज्ञानोदय’ के संपादन का दायित्व संभालते ही उसे हिंदी साहित्य की अनिवार्य पत्रिका बना दिया। धर्मयुग में रवींद्र कालिया के योगदान से सारा साहित्य-जगत परिचित है। रवीन्द्र कालिया ग़ालिब छुटी शराब में लिखते हैं “मोहन राकेश ने अपने मोटे चश्‍मे के भीतर से खास परिचित निगाहों से देखते हुए उनसे पूछा / ‘बम्‍बई जाओगे?' / ‘बम्बई ?' कोई गोष्‍ठी है क्‍या?' / ‘नहीं, ‘धर्मयुग' में।' / ‘धर्मयुग' एक बड़ा नाम था, सहसा विश्‍वास न हुआ। / उन्‍होंने अगले रोज़ घर पर बुलाया और मुझ से सादे काग़ज़ पर ‘धर्मयुग' के लिए एक अर्ज़ी लिखवायी और कुछ ही दिनों में नौकरी ही नहीं, दस इन्‍क्रीमेंट्‌स भी दिलवा दिये....” रवीन्द्रजी ने वागर्थ, गंगा जमुना, वर्ष का प्रख्यात कथाकार अमरकांत पर एकाग्र अंक, मोहन राकेश संचयन, अमरकांत संचयन सहित अनेक पुस्तकों का संपादन किया है। हाल ही में उन्होंने साहित्य की अति महत्वपूर्ण ३१ वर्षों से प्रकशित हो रही ‘वर्तमान साहित्य’ में सलाहकार संपादक का कार्यभार सम्हाला है। .

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रंजिता नायक

रंजिता नायक (६ जून १९५५) कटक निवासी ओड़िया साहित्यकार हैं। अशांत अपराह्न, दृश्य-दृश्यांतर, झडर आकाश, तल-अतल उनके प्रमुख कविता संग्रह हैं। इसके अतिरिक्त उनकी आलोचना की पुस्तकें भी प्रकाशित हुई हैं। उन्हें ओड़ीसा साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा प्रजातंत्र विषुव कविता पुरस्कार आदि अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। वे कटक के शैलबाला कॉलेज में ओड़िया विभाग में रीडर के पद पर कार्यरत हैं। श्रेणी:ओड़िया साहित्यकार.

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ललित कार्तिकेय

हिन्दी कवि और लेखक.

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लाल्टू

हरजिन्दर सिंह, लाल्टू (10 दिसंबर 1957, कोलकाता) हिन्दी कवि और लेखक हैं। .

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लवलीन

हिन्दी कवि और लेखक.

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लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय

लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय १९१४ ई० अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश) आधुनिक युग हिन्दी साहित्य: नये सन्दर्भ, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र और २०वीं शताब्दी, आधुनिक हिन्दी साहित्य की भूमिका, फोर्ट विलियम कॉलेज, हिन्दी साहित्य का इतिहास। भाषा सरल, सुबोध एवं शुद्ध खड़ीबोली, मुहावरेदार भाषा। शैली आलोचनात्मक, विवरणात्मक, विवेचनात्मक।.

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लक्ष्मीकांत वर्मा

लक्ष्मीकांत वर्मा जी जमीनी हकीकत से जुड़े एक हिंदी साहित्यकार। वे एक ऐसे सर्जक थे, जिनका व्यक्तित्व बहुआयामी था। वे उत्कृष्ट कोटि के समीक्षक, निबन्धकार, कवि, कथाकार, नाटककार तो थे ही, एक कुशल संपादक भी थे। उस समय की देश-प्रसिद्ध साहित्यिक-वैचारिक संस्था 'परिमल' के सक्रिय कलमकार और संयोजक थे। 15 फ़रवरी 1922 को उत्तर प्रदेश के बस्ती जनपद के रुधैली तहसील के टँडौठी ग्राम में जन्मे लक्ष्मीकांत वर्मा को हिन्दी, उर्दू, फारसी तथा अंग्रेजी-भाषाओं का सम्यक ज्ञान था। वे अपने घर और घरेलू मित्रों के बीच 'चौकन दादा' के नाम से पुकारे जाते थे। आरम्भ में वे परतन्त्र भारत की राजनीति से प्रभावित हो गये थे। 40 के दशक में महात्मा गांधी के आनन्द भवन-आगमन पर लक्ष्मीकांत जी को उनका सानिध्य प्राप्त हुआ था और महात्मा जी के आह्वान पर स्वतंत्रता आन्दोलन में उनकी सक्रिय भागीदारी आरम्भ हो चुकी थी। इसी आंदोलन की आग में उनकी शिक्षा भस्मीभूत हो चुकी थी। 1946 में वे लोहिया जी के संपर्क में आये थे। वहीं से उनके जीवन में समाजवादी दर्शन के प्रति आस्था पनपी और एक वटवृक्ष का आकार ग्रहण कर गयी।' हिन्दी-भाषा को प्रचारित-प्रसारित करने में उनका विशिष्ट योगदान था। 'हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग' के अनेक सर्जनात्मक योजनाओं को उन्होंने प्रभावाकारी ढंग से क्रियान्वित किया था तथा कई अधूरी पड़ी हुई हैं। लक्ष्मीकांत जी ने देश की लगभग सभी स्तरीय पत्र-पत्रिकाओं में स्वतंत्र लेखक के रूप में अपना लोहा मनवाया था। उन्होंने इलाहाबाद से प्रकाशित दो समाचार पत्रों से अपने लेखन का आरम्भ किया था। उनकी प्रमुख कृतियां 'ख़्ाली कुर्सी की आत्मा', 'सफेद चेहरे', 'तीसरा प्रसंग', 'मुंशी रायजादा', 'सीमान्त के बादल', 'अपना-अपना जूता', 'रोशनी एक नदी है', 'धुएं की लकीरें', 'तीसरा पक्ष', 'कंचन मृग', 'राख का स्तूप', 'नीली झील का सपना', 'नीम के फूल' आदि। उन्होंने इलाहाबाद से 'आज की बात' 'मासिकी' का प्रकाशन किया था। 1960 में 'सेतुमंच' नाट्यसंस्था की स्थापना की थी। उत्तर प्रदेश हिन्दी-संस्थान और उत्तर प्रदेश भाषा-संस्थान, लखनऊ के वे कार्यकारी अध्यक्ष थे। संस्थान सम्मान, डॉ॰ लोहिया अतिविशिष्ट सम्मान, एकेडेमी सम्मान, साहित्य वाचस्पति आदि सम्मानों से उन्हें आभूषित किया गया था। .

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लू शुन

हिन्दी कवि और लेखक.

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लीलाधर जगूड़ी

लीलाधर जगूड़ी साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत हिन्दी कवि है जिनके कृति अनुभव के आकाश में चांद को १९९७ मे पुरस्कार प्राप्त हुआ। उनका जन्म 1 जुलाई 1940 को धंगड़, टिहरी-गढ़वाल जिला, उत्तराखंड में हुआ था। उन्होंने अपने साहित्यिक जीवन में कई कविता, गद्य व नाटक लिखे हैं, जिनमें प्रमुख उनकी कविता संग्रह अनुभव के आकाश में चांद है। .

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शफ़ी मशहदी

शफ़ी मशहदी उर्दू के प्रसिद्ध साहित्यकार हैं। शाखे लहू और सब्ज़ परिंदों का सफ़र (कहानी संग्रह), तथा दोपहर के बाद (नाटक) उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं। वे बिहार तथा उत्तर प्रदेश की उर्दू अकादमी द्वारा सम्मानित हो चुके हैं। .

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शमशेर बहादुर सिंह

शमशेर बहादुर सिंह 13 जनवरी 1911- 12 मई 1993 आधुनिक हिंदी कविता की प्रगतिशील त्रयी के एक स्तंभ हैं। हिंदी कविता में अनूठे माँसल एंद्रीए बिंबों के रचयिता शमशेर आजीवन प्रगतिवादी विचारधारा से जुड़े रहे। तार सप्तक से शुरुआत कर चुका भी नहीं हूँ मैं के लिए साहित्य अकादमी सम्मान पाने वाले शमशेर ने कविता के अलावा डायरी लिखी और हिंदी उर्दू शब्दकोश का संपादन भी किया। .

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शमोएल अहमद

हिन्दी कवि और लेखक.

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शरत्चन्द्र चट्टोपाध्याय

शरत्चन्द्र चट्टोपाध्याय (१५ सितंबर, १८७६ - १६ जनवरी, १९३८) बांग्ला के सुप्रसिद्ध उपन्यासकार थे। उनका जन्म हुगली जिले के देवानंदपुर में हुआ। वे अपने माता-पिता की नौ संतानों में से एक थे। अठारह साल की अवस्था में उन्होंने इंट्रेंस पास किया। इन्हीं दिनों उन्होंने "बासा" (घर) नाम से एक उपन्यास लिख डाला, पर यह रचना प्रकाशित नहीं हुई। रवींद्रनाथ ठाकुर और बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय का उन पर गहरा प्रभाव पड़ा। शरतचन्द्र ललित कला के छात्र थे लेकिन आर्थिक तंगी के चलते वह इस विषय की पढ़ाई नहीं कर सके। रोजगार के तलाश में शरतचन्द्र बर्मा गए और लोक निर्माण विभाग में क्लर्क के रूप में काम किया। कुछ समय बर्मा रहकर कलकत्ता लौटने के बाद उन्होंने गंभीरता के साथ लेखन शुरू कर दिया। बर्मा से लौटने के बाद उन्होंने अपना प्रसिद्ध उपन्यास श्रीकांत लिखना शुरू किया। बर्मा में उनका संपर्क बंगचंद्र नामक एक व्यक्ति से हुआ जो था तो बड़ा विद्वान पर शराबी और उछृंखल था। यहीं से चरित्रहीन का बीज पड़ा, जिसमें मेस जीवन के वर्णन के साथ मेस की नौकरानी से प्रेम की कहानी है। जब वह एक बार बर्मा से कलकत्ता आए तो अपनी कुछ रचनाएँ कलकत्ते में एक मित्र के पास छोड़ गए। शरत को बिना बताए उनमें से एक रचना "बड़ी दीदी" का १९०७ में धारावाहिक प्रकाशन शुरु हो गया। दो एक किश्त निकलते ही लोगों में सनसनी फैल गई और वे कहने लगे कि शायद रवींद्रनाथ नाम बदलकर लिख रहे हैं। शरत को इसकी खबर साढ़े पाँच साल बाद मिली। कुछ भी हो ख्याति तो हो ही गई, फिर भी "चरित्रहीन" के छपने में बड़ी दिक्कत हुई। भारतवर्ष के संपादक कविवर द्विजेंद्रलाल राय ने इसे यह कहकर छापने से मना कर दिया किया कि यह सदाचार के विरुद्ध है। विष्णु प्रभाकर द्वारा आवारा मसीहा शीर्षक रचित से उनका प्रामाणिक जीवन परिचय बहुत प्रसिद्ध है। .

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शरद जोशी

कोई विवरण नहीं।

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शिव प्रसाद सिंह

साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत हिन्दी उपन्यासकार श्रेणी:हिन्दी उपन्यासकार.

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शिवप्रकाश एच एस

शिवप्रकाश एच एस नई पीढ़ी के समर्थ कन्नड़ कवि हैं। उन्होंने इतिहास के वर्तमान में नई दृष्टि से देखने की कोशिश की है। मिलरेप और मलेबिद्द नेलदल्लि उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं। .

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शिवमंगल सिंह 'सुमन'

शिवमंगल सिंह 'सुमन' (1 915-2002) एक प्रसिद्ध हिंदी कवि और शिक्षाविद् थे। उनकी मृत्यु के बाद, भारत के तत्कालीन प्रधान मंत्री ने कहा, "डॉ शिव मंगल सिंह 'सुमन' केवल हिंदी कविता के क्षेत्र में एक शक्तिशाली हस्ताक्षर ही नहीं थे, बल्कि वह अपने समय की सामूहिक चेतना के संरक्षक भी थे। न केवल अपनी भावनाओं का दर्द व्यक्त किया, बल्कि युग के मुद्दों पर भी निर्भीक रचनात्मक टिप्पणी भी थी। " .

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शिवमूर्ति

हिन्दी कथाकार व्यक्तिगत जीवन मूल निवास- सुल्तानपुर (उत्तर प्रदेश) का एक अत्यंत पिछड़ा गांव कुरंग.

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शिवानी

शिवानी हिन्दी की एक प्रसिद्ध उपन्यासकार थीं। इनका वास्तविक नाम गौरा पन्त था किन्तु ये शिवानी नाम से लेखन करती थीं। इनका जन्म १७ अक्टूबर १९२३ को विजयदशमी के दिन राजकोट, गुजरात मे हुआ था। इनकी शिक्षा शन्तिनिकेतन में हुई! साठ और सत्तर के दशक में, इनकी लिखी कहानियां और उपन्यास हिन्दी पाठकों के बीच अत्यधिक लोकप्रिय हुए और आज भी लोग उन्हें बहुत चाव से पढ़ते हैं। शिवानी का निधन 2003 ई० मे हुआ। उनकी लिखी कृतियों मे कृष्णकली, भैरवी,आमादेर शन्तिनिकेतन,विषकन्या चौदह फेरे आदि प्रमुख हैं। हिंदी साहित्य जगत में शिवानी एक ऐसी श्ख्सियत रहीं जिनकी हिंदी, संस्कृत, गुजराती, बंगाली, उर्दू तथा अंग्रेजी पर अच्छी पकड रही और जो अपनी कृतियों में उत्तर भारत के कुमाऊं क्षेत्र के आसपास की लोक संस्कृति की झलक दिखलाने और किरदारों के बेमिसाल चरित्र चित्रण करने के लिए जानी गई। महज 12 वर्ष की उम्र में पहली कहानी प्रकाशित होने से लेकर 21 मार्च 2003 को उनके निधन तक उनका लेखन निरंतर जारी रहा। उनकी अधिकतर कहानियां और उपन्यास नारी प्रधान रहे। इसमें उन्होंने नायिका के सौंदर्य और उसके चरित्र का वर्णन बडे दिलचस्प अंदाज में किया कहानी के क्षेत्र में पाठकों और लेखकों की रुचि निर्मित करने तथा कहानी को केंद्रीय विधा के रूप में विकसित करने का श्रेय शिवानी को जाता है।वह कुछ इस तरह लिखती थीं कि लोगों की उसे पढने को लेकर जिज्ञासा पैदा होती थी। उनकी भाषा शैली कुछ-कुछ महादेवी वर्मा जैसी रही पर उनके लेखन में एक लोकप्रिय किस्म का मसविदा था। उनकी कृतियों से यह झलकता है कि उन्होंने अपने समय के यथार्थ को बदलने की कोशिश नहीं की।शिवानी की कृतियों में चरित्र चित्रण में एक तरह का आवेग दिखाई देता है। वह चरित्र को शब्दों में कुछ इस तरह पिरोकर पेश करती थीं जैसे पाठकों की आंखों के सामने राजारवि वर्मा का कोई खूबसूरत चित्र तैर जाए। उन्होंने संस्कृत निष्ठ हिंदी का इस्तेमाल किया। जब शिवानी का उपन्यास कृष्णकली में प्रकाशित हो रहा था तो हर जगह इसकी चर्चा होती थी। मैंने उनके जैसी भाषा शैली और किसी की लेखनी में नहीं देखी। उनके उपन्यास ऐसे हैं जिन्हें पढकर यह एहसास होता था कि वे खत्म ही न हों। उपन्यास का कोई भी अंश उसकी कहानी में पूरी तरह डुबो देता था। भारतवर्ष के हिंदी साहित्य के इतिहास का बहुत प्यारा पन्ना थीं। अपने समकालीन साहित्यकारों की तुलना में वह काफी सहज और सादगी से भरी थीं। उनका साहित्य के क्षेत्र में योगदान बडा है परिचय जन्म: 17 अक्टूबर 1923, राजकोट (गुजरात) भाषा: हिंदी विधाएँ: उपन्यास, कहानी, संस्मरण, यात्रा वृत्तांत, आत्मकथा मुख्य कृतियाँ उपन्यास: कृष्णकली, कालिंदी, अतिथि, पूतों वाली, चल खुसरों घर आपने, श्मशान चंपा, मायापुरी, कैंजा, गेंदा, भैरवी, स्वयंसिद्धा, विषकन्या, रति विलाप, आकाश कहानी संग्रह: शिवानी की श्रेष्ठ कहानियाँ, शिवानी की मशहूर कहानियाँ, झरोखा, मृण्माला की हँसी संस्मरण: अमादेर शांति निकेतन, समृति कलश, वातायन, जालक यात्रा वृतांत: चरैवैति, यात्रिक आत्मकथा: सुनहुँ तात यह अमर कहानी .

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शंकर पुण्तांबेकर

हिन्दी कवि और लेखक.

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श्यामसुन्दर दास

हिन्दी के महान सेवक: बाबू श्यामसुन्दर दास डॉ॰ श्यामसुंदर दास (सन् 1875 - 1945 ई.) हिंदी के अनन्य साधक, विद्वान्, आलोचक और शिक्षाविद् थे। हिंदी साहित्य और बौद्धिकता के पथ-प्रदर्शकों में उनका नाम अविस्मरणीय है। हिंदी-क्षेत्र के साहित्यिक-सांस्कृतिक नवजागरण में उनका योगदान विशेष रूप से उल्लेखनीय है। उन्होंने और उनके साथियों ने मिलकर काशी नागरी प्रचारिणी सभा की स्थापना की। विश्वविद्यालयों में हिंदी की पढ़ाई के लिए अगर बाबू साहब के नाम से मशहूर श्याम सुंदर दास ने पुस्तकें तैयार न की होतीं तो शायद हिंदी का अध्ययन-अध्यापन आज सबके लिए इस तरह सुलभ न होता। उनके द्वारा की गयी हिंदी साहित्य की पचास वर्षों तक निरंतर सेवा के कारण कोश, इतिहास, भाषा-विज्ञान, साहित्यालोचन, सम्पादित ग्रंथ, पाठ्य-सामग्री निर्माण आदि से हिंदी-जगत समृद्ध हुआ। उन्हीं के अविस्मरणीय कामों ने हिंदी को उच्चस्तर पर प्रतिष्ठित करते हुए विश्वविद्यालयों में गौरवपूर्वक स्थापित किया। बाबू श्याम सुंदर दास ने अपने जीवन के पचास वर्ष हिंदी की सेवा करते हुए व्यतीत किए उनकी इस हिंदी सेवा को ध्यान में रखते हुए ही राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त ने निम्न पंक्तियाँ लिखी हैं- डॉ॰ राधा कृष्णन के शब्दों में, बाबू श्याम सुंदर अपनी विद्वत्ता का वह आदर्श छोड़ गए हैं जो हिंदी के विद्वानों की वर्तमान पीढ़ी को उन्नति करने की प्रेरणा देता रहेगा। .

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श्रीलाल शुक्ल

श्रीलाल शुक्ल (31 दिसम्बर 1925 - 28 अक्टूबर 2011) हिन्दी के प्रमुख साहित्यकार थे। वह समकालीन कथा-साहित्य में उद्देश्यपूर्ण व्यंग्य लेखन के लिये विख्यात थे। श्रीलाल शुक्ल (जन्म-31 दिसम्बर 1925 - निधन- 28 अक्टूबर 2011) को लखनऊ जनपद के समकालीन कथा-साहित्य में उद्देश्यपूर्ण व्यंग्य लेखन के लिये विख्यात साहित्यकार माने जाते थे। उन्होंने 1947 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक परीक्षा पास की। 1949 में राज्य सिविल सेवासे नौकरी शुरू की। 1983 में भारतीय प्रशासनिक सेवा से निवृत्त हुए। उनका विधिवत लेखन 1954 से शुरू होता है और इसी के साथ हिंदी गद्य का एक गौरवशाली अध्याय आकार लेने लगता है। उनका पहला प्रकाशित उपन्यास 'सूनी घाटी का सूरज' (1957) तथा पहला प्रकाशित व्यंग 'अंगद का पाँव' (1958) है। स्वतंत्रता के बाद के भारत के ग्रामीण जीवन की मूल्यहीनता को परत दर परत उघाड़ने वाले उपन्यास 'राग दरबारी' (1968) के लिये उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनके इस उपन्यास पर एक दूरदर्शन-धारावाहिक का निर्माण भी हुआ। श्री शुक्ल को भारत सरकार ने 2008 में पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया है। .

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श्रीकांत वर्मा

श्रीकांत वर्मा (Shrikant verma) (१८ नवंबर १९३१- १९८६) का जन्म बिलासपुर (bilaspur), मध्य प्रदेश में हुआ। वे गीतकार, कथाकार तथा समीक्षक के रूप में जाने जाते हैं। ये राजनीति से भी जुडे थे तथा लोकसभा के सदस्य रहे। १९५७ में प्रकाशित भटका मेघ, १९६७ में प्रकाशित मायादर्पण और दिनारम्भ, १९७३ में प्रकाशित जलसाघर और १९८४ में प्रकाशित मगध इनकी काव्य-कृतियाँ हैं। 'झाडियाँ तथा 'संवाद इनके कहानी-संग्रह है। 'बीसवीं शताब्दी के अंधेरे में एक आलोचनात्मक ग्रंथ है। उनकी प्रारंभिक शिक्षा बिलासपुर(bilaspur) तथा रायपुर(raipur) में हुई तथा नागपुर विश्वविद्यालय से १९५६ में उन्होंने हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की। इसके बाद वे दिल्ली चले गए और वहाँ विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में लगभग एक दशक तक पत्रकार के रूप में कार्य किया। १९६६ से १९७७ तक वे दिनमान के विशेष संवाददाता रहे। १९७६ में काँग्रेस के के टिकट पर चुनाव जीतकर वे राज्य सभा के सदस्य बने। और सत्तरवें दशक के उत्तरार्ध से ८०वें दशक के पूर्वार्ध तक पार्टी के प्रवक्ता के रूप में कार्य करते रहे। १९८० में वे इंदिरा गांधी के राष्ट्रीय चुनाव अभियान के प्रमुख प्रबंधक रहे और १९८४ में राजीव गांधी के परामर्शदाता तथा राजनीतिक विश्लेषक के रूप में कार्य करते रहे। कांग्रेस को अपना "गरीबी हटाओ" का अमर स्लोगन दिया.

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शैलेन्द्र सागर

हिन्दी कवि और लेखक.

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शैलेश मटियानी

शैलेश मटियानी (१४ अक्टूबर १९३१ - २४ अप्रैल २००१) आधुनिक हिन्दी साहित्य-जगत् में नयी कहानी आन्दोलन के दौर के कहानीकार एवं प्रसिद्ध गद्यकार थे। उन्होंने 'बोरीवली से बोरीबन्दर' तथा 'मुठभेड़', जैसे उपन्यास, चील, अर्धांगिनी जैसी कहानियों के साथ ही अनेक निबंध तथा प्रेरणादायक संस्मरण भी लिखे हैं। उनके हिन्दी साहित्य के प्रति प्रेरणादायक समर्पण व उत्कृष्ट रचनाओं के फलस्वरूप आज भी उत्तराखण्ड सरकार द्वारा उत्तराखण्ड राज्य में पुरस्कार का वितरण होता है। .

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शेखर जोशी

शेखर जोशी कथा लेखन को दायित्वपूर्ण कर्म मानने वाले सुपरिचित कथाकार हैं। शेखर जोशी की कहानियों का अंगरेजी, चेक, पोलिश, रुसी और जापानी भाषाओं में अनुवाद हुआ है। उनकी कहानी दाज्यू पर बाल-फिल्म सोसायटी द्वारा फिल्म का निर्माण किया गया है। .

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सत्यदेव दुबे

सत्यदेव दुबे (19 मार्च 1936 -25 दिसम्बर 2011), भारतीय रंगमंच निर्देशक, अभिनेता, नाटककार, पटकथा लेखक और चलचित्र अभिनेता तथा निर्देशक थे। रंगमंच और चलचित्र से जुड़े महती कार्यों के लिए उन्हें १९७१ ई. में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। १९७८ में उन्होंने श्याम बेनेगल द्वारा निर्देशित हिंदी चलचित्र भूमिका के लिए सर्वश्रेष्ठ पटकथा का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्राप्त किया। १९८० ई. में उन्हें जुनून के लिए सर्वश्रेष्ठ संवाद का पुरस्कार मिला। २०११ में उन्हें भारत सरकार ने पद्म भूषण से सम्मानित किया। .

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सत्येन कुमार

सत्येन कुमार 1944-2007 हिन्दी लेखक.

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सर्वेश्वर दयाल सक्सेना

thumb सर्वेश्वर दयाल सक्सेना मूलतः कवि एवं साहित्यकार थे, पर जब उन्होंने दिनमान का कार्यभार संभाला तब समकालीन पत्रकारिता के समक्ष उपस्थित चुनौतियों को समझा और सामाजिक चेतना जगाने में अपना अनुकरणीय योगदान दिया। सर्वेश्वर मानते थे कि जिस देश के पास समृद्ध बाल साहित्य नहीं है, उसका भविष्य उज्ज्वल नहीं रह सकता। सर्वेश्वर की यह अग्रगामी सोच उन्हें एक बाल पत्रिका के सम्पादक के नाते प्रतिष्ठित और सम्मानित करती है। .

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सज्जाद ज़हीर

सज्जाद ज़हीर (5 नवंबर 1905 – 13 सतंबर 1973) उर्दू के एक प्रसिद्ध लेखक और मार्क्सवादी चिंतक थे। इन्होंने मुल्कराज आनंद और ज्योतिर्मय घोष के साथ मिलकर १९३५ में प्रोग्रेसिव राइटर्स एसोसिएशन (Progressive writer's association) की स्थापना इंग्लैंड में की। उर्दू की प्रसिद्ध लेखिका रज़िया सज्जाद ज़हीर इनकी पत्नी थीं। .

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संतोष जैन

हिन्दी से एम ए संतोष जैन १९७० से १९७४ तक रंगमंच पर अभिनय से जुड़ी रहीं। आकाशवाणी के लिए नियमित रूप से लिखती रही हैं। रुपकों में विशेष योग्यता। .

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संजीव

संजीव (6 जुलाई, 1947 से वर्तमान) हिन्दी साहित्य की जनवादी धारा के प्रमुख कथाकारों में से एक हैं। कहानी एवं उपन्यास दोनों विधाओं में समान रूप से रचनाशील। प्रायः समाज की मुख्यधारा से कटे विषयों, क्षेत्रों एवं वर्गों को लेकर गहन शोधपरक कथालेखक के रूप में मान्य। .

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सुदर्शन

कोई विवरण नहीं।

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सुदर्शन नारंग

हिन्दी लेखक.

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सुदामा पांडेय 'धूमिल'

सुदामा पाण्डेय धूमिल हिंदी की समकालीन कविता के दौर के मील के पत्थर सरीखे कवियों में एक है। उनकी कविताओं में आजादी के सपनों के मोहभंग की पीड़ा और आक्रोश की सबसे सशक्त अभिव्यक्ति मिलती है। व्यवस्था जिसने जनता को छला है, उसको आइना दिखाना मानों धूमिल की कविताओं का परम लक्ष्य है। .

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सुधा अरोड़ा

नाम सुधा अरोड़ा ---- जन्म 04 अक्टूबर 1948 ---- जन्मस्थान लाहौर पाकिस्तान ---- पेशा लेखिका ---- राष्ट्रीयता भारतीय ---- .

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सुभद्रा कुमारी चौहान

सुभद्रा कुमारी चौहान (१६ अगस्त १९०४-१५ फरवरी १९४८) हिन्दी की सुप्रसिद्ध कवयित्री और लेखिका थीं। उनके दो कविता संग्रह तथा तीन कथा संग्रह प्रकाशित हुए पर उनकी प्रसिद्धि झाँसी की रानी कविता के कारण है। ये राष्ट्रीय चेतना की एक सजग कवयित्री रही हैं, किन्तु इन्होंने स्वाधीनता संग्राम में अनेक बार जेल यातनाएँ सहने के पश्चात अपनी अनुभूतियों को कहानी में भी व्यक्त किया। वातावरण चित्रण-प्रधान शैली की भाषा सरल तथा काव्यात्मक है, इस कारण इनकी रचना की सादगी हृदयग्राही है। .

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सुभाष नीरव

सुभाष नीरव एक हिंदी कथाकार, कवि और लेखक है। सुभाष नीरव का जन्म उत्तर प्रदेश के एक बेहद छोटे शहर मुराद नगर में 27 दिसम्बर 1953 को हुआ। .

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सुमित्रा कुमारी सिन्हा

सुमित्रा कुमारी सिन्हा (१९१३-३० सितंबर १९९४) हिन्दी की लोकप्रिय कवयित्री तथा लेखिका थीं। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के फ़ैज़ाबाद जिले में हुआ। स्वाधीनता आंदोलन में उनका सक्रिय योगदान रहा। कवि-सम्मेलनों में मधुर कंठ से कविता पाठ करने वाली सुमित्रा कुमारी सिन्हा आकाशवाणी लखनऊ से सम्बद्ध रही। उन्होंने बाल साहित्य के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण काम किया है। उनके पुत्र अजीत कुमार सिन्हा एक प्रतिभा संपन्न लेखक हैं। उनकी पुत्री कीर्ति चौधरी ने तार सप्तक की प्रसिद्ध कवियित्री के रूप में अपनी पहचान बनाई। प्रमुख रचनाएँ- कविता संकलन - विहाग - १९४०, आशापर्व - १९४२, बोलों के देवता - १९५४। कहानी संग्रह - अचल सुहाग - १९३९, वर्ष गाँठ - १९४२। अन्य रचनाएँ - पंथिनी, प्रसारिका, वैज्ञानिक बोधमाला, कथा कुंज, आँगन के फूल, फूलों के गहने, आंचल के फूल, दादी का मटका। श्रेणी:हिन्दी कवि श्रेणी:हिन्दी गद्यकार.

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सुमित्रानन्दन पन्त

सुमित्रानंदन पंत (२० मई १९०० - २९ दिसम्बर १९७७) हिंदी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। इस युग को जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' और रामकुमार वर्मा जैसे कवियों का युग कहा जाता है। उनका जन्म कौसानी बागेश्वर में हुआ था। झरना, बर्फ, पुष्प, लता, भ्रमर-गुंजन, उषा-किरण, शीतल पवन, तारों की चुनरी ओढ़े गगन से उतरती संध्या ये सब तो सहज रूप से काव्य का उपादान बने। निसर्ग के उपादानों का प्रतीक व बिम्ब के रूप में प्रयोग उनके काव्य की विशेषता रही। उनका व्यक्तित्व भी आकर्षण का केंद्र बिंदु था। गौर वर्ण, सुंदर सौम्य मुखाकृति, लंबे घुंघराले बाल, सुगठित शारीरिक सौष्ठव उन्हें सभी से अलग मुखरित करता था। .

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सुरेन्द्र वर्मा

सुरेन्द्र वर्मा (जन्म: १९४१) हिन्दी के प्रतिष्ठित साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास मुझे चाँद चाहिए के लिये उन्हें सन् 1996 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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सुरेश सलिल

सुरेश सलिल (जन्म १९४२) हिन्दी के समर्थ कवि, आलोचक और साहित्यिक इतिहास के गहन अध्येता हैं। गणेश शंकर विद्यार्थी के कृतित्व और व्यक्तित्व पर अनेक प्रकाशनों के अतिरिक्त एक कविति संग्रह खुले में खड़े होकर प्रकाशित हुआ है। बच्चों व किशोरों के लिए भी इन्होंने कई किताबें प्रकाशित की हैं। .

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सुशील कुमार (पहलवान)

---- सुशील कुमार (जन्म: २६ मई १९८३) भारत के एक कुश्ती पहलवान हैं जो 2012 के लंदन ओलंपिक में रजत पदक, 2008 के बीजिंग ओलंपिक में कांस्य पदक जीतकर लगातार दो ओलम्पिक मुकाबलों में व्यक्तिगत पदक जीतने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी बने। २००८ ओलम्पिक में 66 किग्रा फ्रीस्टाइल में कजा‍खिस्तान के लियोनिड स्प्रिडोनोव को हरा कांस्य पदक जीत कर उन्होंने ५६ साल बाद १९५२ के इतिहास को एक बार फिर से दोहराया जब यह पदक महाराष्ट्र के खशाबा जाधव ने जीता था। सुशील, सतपाल पहलवान के शिष्य हैं। सुशील कुमार के लिए दिल्ली सरकार ने ५० लाख के इनाम की घोषणा की जबकि रेलवे ने ५५ लाख और हरियाणा सरकार ने २५ लाख के इनाम की घोषणा की है। 2010 तथा 2014 राष्ट्रमण्डल खेलों में इन्होंने स्वर्ण पदक प्राप्त किया। मंजीत दूबे dhyeya IAS .

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सुषमा मुनीन्द्र

सुषमा मुनीन्द्र एक हिन्दी लेखक और गद्यकार हैं। .

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सुकेश साहनी

सुकेश साहनी (जन्म: 5सितंबर 1956, लखनऊ, उ.प्र.), हिंदी के लघुकथा लेखक हैं, जिनका लघुकथा की विकास यात्रा में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। उनके दो लघुकथा संग्रह 'डरे हुए लोग' तथा 'ठंडी रज़ाई'प्रकाशित हैं। उनकी दोनों पुस्तकें क्रमश: 'डरे हुए लोग' का पंजाबी, गुजराती, मराठी व अंग्रेज़ी में तथा 'ठंडी रज़ाई' का अंग्रेज़ी व पंजाबी भाषा में अनुवाद हुआ है। इसके अतिरिक्त एक कहानी संग्रह 'मैग्मा और अन्य कहानियाँ' तथा बालकथा संग्रह 'अक्ल बड़ी या भैंस' प्रकाशित हुए हैं। साथ हीं उनकी कुछ लघुकथाएँ जर्मन भाषा में भी अनूदित हुईं हैं। 'रोशनी' कहानी पर दूरदर्शन के लिए उन्होने टेलीफिल्म का निर्माण किया है। उनकी एक और पुस्तक "लघु अपराध कथाएं " प्रकाशित हुई हैं और उन्होने लघुकथाओं के आधे दर्जन से अधिक संकलनों का संपादन भी किया है। उन्हें 1994 में डॉ॰परमेश्वर गोयल लघुकथा सम्मान, 1996 में माता शरबती देवी पुरस्कार,1998 में डॉ॰ मुरली मनोहर हिन्दी साहित्यिक सम्मान तथा 2008 में माधवराव सप्रे सम्मान प्राप्त हुए हैं। .

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स्वयं प्रकाश

स्वयं प्रकाश (Swayam Prakash) हिन्दी साहित्यकार हैं। वे मुख्यतः हिन्दी कहानीकार के रूप में विख्यात हैं। कहानी के अतिरिक्त उन्होंने उपन्यास तथा अन्य विधाओं को भी अपनी लेखनी से समृद्ध किया है। वे हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में साठोत्तरी पीढ़ी के जनवादी लेखन से सम्बद्ध रहे हैं। आजीविका के लिए मेकेनिकल इंजीनियरिंग, शिक्षा से एम.ए. (हिन्दी,1977) तथा पीएच.डी.(1980) एवं कथा-लेखन की एक लम्बी समर्पित पारी से सम्बद्ध स्वयं प्रकाश का जीवनानुभव बहुआयामी रहा है। .

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सूरज प्रकाश

सूरज प्रकाश (जन्म १४ मार्च, १९५२; देहरादून) हिंदी और गुजराती के लेखक और कथाकार हैं। .

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सूर्यबाला

सूर्यबाला (जन्म- 1943, वाराणसी) हिन्दी की उपन्यासकार और कहानीकार हैं। .

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सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'

सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (२१ फरवरी, १८९९ - १५ अक्टूबर, १९६१) हिन्दी कविता के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माने जाते हैं। वे जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत और महादेवी वर्मा के साथ हिन्दी साहित्य में छायावाद के प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं। उन्होंने कहानियाँ, उपन्यास और निबंध भी लिखे हैं किन्तु उनकी ख्याति विशेषरुप से कविता के कारण ही है। .

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से॰रा॰ यात्री

से.रा.यात्री (मूल नाम: सेवा राम यात्री, जन्म 10 जुलाई 1932) एक भारतीय लेखक, कथाकार, व्यंग्यकार और उपन्यासकार हैं। 1971 ई. में 'दूसरे चेहरे' नामक कथा संग्रह से शुरू हुई उनकी साहित्यिक यात्रा अनवरत जारी है। तकरीबन चार दशकों के अपने लेखकीय यात्रा में उन्होंने 18 कथा संग्रह, 33 उपन्यास, 2 व्यंग्य संग्रह, 1 संस्मरण तथा 1 संपादित कथा संग्रह हिंदी जगत के पाठकों को दी है। हाल ही में उत्‍तर प्रदेश सरकार ने उन्‍हें उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान की ओर से संचालित पुरस्कार योजना के तहत 2008 का महात्‍मा गांधी पुरस्‍कार दिये जाने की घोषणा की है। .

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सोमावीरा

सोमावीरा लोकप्रिय हिंदी लेखिका हैं।.

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सीमा शफ़क

हिन्दी कवयित्री और लेखिका.

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हबीब कैफ़ी

हिन्दी लेखक.

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हरप्रसाद दास

हरप्रसाद दास ओड़िया भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कविता–संग्रह गर्भगृह के लिये उन्हें सन् 1999 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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हरि भटनागर

हिन्दी लेखक.

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हरिशंकर परसाई

हरिशंकर परसाई (२२ अगस्त, १९२४ - १० अगस्त, १९९५) हिंदी के प्रसिद्ध लेखक और व्यंगकार थे। उनका जन्म जमानी, होशंगाबाद, मध्य प्रदेश में हुआ था। वे हिंदी के पहले रचनाकार हैं जिन्होंने व्यंग्य को विधा का दर्जा दिलाया और उसे हल्के–फुल्के मनोरंजन की परंपरागत परिधि से उबारकर समाज के व्यापक प्रश्नों से जोड़ा। उनकी व्यंग्य रचनाएँ हमारे मन में गुदगुदी ही पैदा नहीं करतीं बल्कि हमें उन सामाजिक वास्तविकताओं के आमने–सामने खड़ा करती है, जिनसे किसी भी व्यक्ति का अलग रह पाना लगभग असंभव है। लगातार खोखली होती जा रही हमारी सामाजिक और राजनैतिक व्यवस्था में पिसते मध्यमवर्गीय मन की सच्चाइयों को उन्होंने बहुत ही निकटता से पकड़ा है। सामाजिक पाखंड और रूढ़िवादी जीवन–मूल्यों की खिल्ली उड़ाते हुए उन्होंने सदैव विवेक और विज्ञान–सम्मत दृष्टि को सकारात्मक रूप में प्रस्तुत किया है। उनकी भाषा–शैली में खास किस्म का अपनापा है, जिससे पाठक यह महसूस करता है कि लेखक उसके सामने ही बैठा है। .

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हरिसुमन बिष्ट

हिन्दी लेखक.

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हरिवंश राय बच्चन

हरिवंश राय श्रीवास्तव "बच्चन" (२७ नवम्बर १९०७ – १८ जनवरी २००३) हिन्दी भाषा के एक कवि और लेखक थे। इलाहाबाद के प्रवर्तक बच्चन हिन्दी कविता के उत्तर छायावाद काल के प्रमुख कवियों मे से एक हैं। उनकी सबसे प्रसिद्ध कृति मधुशाला है। भारतीय फिल्म उद्योग के प्रख्यात अभिनेता अमिताभ बच्चन उनके सुपुत्र हैं। उन्होने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्यापन किया। बाद में भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में हिन्दी विशेषज्ञ रहे। अनन्तर राज्य सभा के मनोनीत सदस्य। बच्चन जी की गिनती हिन्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय कवियों में होती है। .

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हजारी प्रसाद द्विवेदी

हजारी प्रसाद द्विवेदी (19 अगस्त 1907 - 19 मई 1979) हिन्दी के मौलिक निबन्धकार, उत्कृष्ट समालोचक एवं सांस्कृतिक विचारधारा के प्रमुख उपन्यासकार थे। .

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हृदयेश

हृदयेश एक हिन्दी लेखक है। .

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हृषीकेश सुलभ

हृषीकेश सुलभ (जन्म फ़रवरी १५, १९५५) हिन्दी के समकालीन शीर्ष लेखकों में हैं, जो कि कहानी और नाटक-लेखन की विधाओं के लिये जाने जाते हैं। आप ऑल इण्डिया रेडियो में कार्यरत भी हैं। .

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हीरालाल नागर

हिन्दी लेखक.

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जयनन्दन

हिन्दी कवि और लेखक.

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जयप्रकाश भारती

जयप्रकाश भारती (०२ जनवरी, १९३६ ई० - 5 फरवरी, 2005) हिन्दी के प्रख्यात लेखक और नन्दन के पूर्व सम्पादक थे। भारती जी ने हिन्दी बालसाहित्य पर महत्त्वपूर्ण कार्य किया। उन्हें हिन्दी बाल-साहित्य का युगनिर्माता कहा जाता है। 'नंदन' को उन्होंने सर्वश्रेष्ठ बाल पत्रिका का दर्जा दिलाया। .

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जयशंकर प्रसाद

जयशंकर प्रसाद (30 जनवरी 1890 - 15 नवम्बर 1937)अंतरंग संस्मरणों में जयशंकर 'प्रसाद', सं०-पुरुषोत्तमदास मोदी, विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी; संस्करण-2001ई०,पृ०-2(तिथि एवं संवत् के लिए)।(क)हिंदी साहित्य का बृहत् इतिहास, भाग-10, नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी; संस्करण-1971ई०, पृ०-145(तारीख एवं ईस्वी के लिए)। (ख)www.drikpanchang.com (30.1.1890 का पंचांग; तिथ्यादि से अंग्रेजी तारीख आदि के मिलान के लिए)।, हिन्दी कवि, नाटककार, कहानीकार, उपन्यासकार तथा निबन्धकार थे। वे हिन्दी के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। उन्होंने हिंदी काव्य में एक तरह से छायावाद की स्थापना की जिसके द्वारा खड़ी बोली के काव्य में न केवल कमनीय माधुर्य की रससिद्ध धारा प्रवाहित हुई, बल्कि जीवन के सूक्ष्म एवं व्यापक आयामों के चित्रण की शक्ति भी संचित हुई और कामायनी तक पहुँचकर वह काव्य प्रेरक शक्तिकाव्य के रूप में भी प्रतिष्ठित हो गया। बाद के प्रगतिशील एवं नयी कविता दोनों धाराओं के प्रमुख आलोचकों ने उसकी इस शक्तिमत्ता को स्वीकृति दी। इसका एक अतिरिक्त प्रभाव यह भी हुआ कि खड़ीबोली हिन्दी काव्य की निर्विवाद सिद्ध भाषा बन गयी। आधुनिक हिन्दी साहित्य के इतिहास में इनके कृतित्व का गौरव अक्षुण्ण है। वे एक युगप्रवर्तक लेखक थे जिन्होंने एक ही साथ कविता, नाटक, कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में हिंदी को गौरवान्वित होने योग्य कृतियाँ दीं। कवि के रूप में वे निराला, पन्त, महादेवी के साथ छायावाद के प्रमुख स्तंभ के रूप में प्रतिष्ठित हुए हैं; नाटक लेखन में भारतेंदु के बाद वे एक अलग धारा बहाने वाले युगप्रवर्तक नाटककार रहे जिनके नाटक आज भी पाठक न केवल चाव से पढ़ते हैं, बल्कि उनकी अर्थगर्भिता तथा रंगमंचीय प्रासंगिकता भी दिनानुदिन बढ़ती ही गयी है। इस दृष्टि से उनकी महत्ता पहचानने एवं स्थापित करने में वीरेन्द्र नारायण, शांता गाँधी, सत्येन्द्र तनेजा एवं अब कई दृष्टियों से सबसे बढ़कर महेश आनन्द का प्रशंसनीय ऐतिहासिक योगदान रहा है। इसके अलावा कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में भी उन्होंने कई यादगार कृतियाँ दीं। विविध रचनाओं के माध्यम से मानवीय करुणा और भारतीय मनीषा के अनेकानेक गौरवपूर्ण पक्षों का उद्घाटन। ४८ वर्षो के छोटे से जीवन में कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास और आलोचनात्मक निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाएँ की। उन्हें 'कामायनी' पर मंगलाप्रसाद पारितोषिक प्राप्त हुआ था। उन्होंने जीवन में कभी साहित्य को अर्जन का माध्यम नहीं बनाया, अपितु वे साधना समझकर ही साहित्य की रचना करते रहे। कुल मिलाकर ऐसी बहुआयामी प्रतिभा का साहित्यकार हिंदी में कम ही मिलेगा जिसने साहित्य के सभी अंगों को अपनी कृतियों से न केवल समृद्ध किया हो, बल्कि उन सभी विधाओं में काफी ऊँचा स्थान भी रखता हो। .

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जया जादवानी

हिन्दी कवि और लेखक.

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जितेन ठाकुर

हिन्दी कवि और लेखक.

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जगदीश कश्यप

यह लेख जगदीश कश्यप (कथाकार) के बारे में भिक्षु जगदीश कश्यप के बारे में अलग से देखिये। ---- अगर सभी कुछ ठीक-ठाक रहता...समय पर होता तो जगदीश कश्यप द्वारा लघुकथाओं पर संपादित पुस्तक बीसवीं सदी और हिंदी लघुकथा इस शताब्दी के पहले ही वर्ष में पाठकों की नजर होती.

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जगन्नाथ प्रसाद दास

जगन्नाथ प्रसाद दास (१९३६) ओड़िया के प्रसिद्ध कवि व नाटककार हैं। उनका पहला कविता संग्रह प्रथम पुरुष १९७१ में प्रकाशित हुआ था। उन्होंने ओड़िया चित्रकला पर शोध किया है। उनके अन्य सबु मृत्यु जे जाहार, निर्जनता, सबा शेष लोक और असंगत नाटक प्रकाशित हुए हैं। १९१९ में आह्निक कविता संग्रह पर उन्हें साहित्य अकादमी द्वारा सम्मानित किया गया है। .

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जगन्नाथदास रत्नाकर

जगन्नाथदास रत्नाकर (१८६६ - २१ जून १९३२) आधुनिक युग के श्रेष्ठ ब्रजभाषा कवि थे। .

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ज्ञान चतुर्वेदी

सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड, भोपाल द्वारा संचालित एक अस्पताल में ह्रदय विशेषज्ञ डॉ ज्ञान चतुर्वेदी जानेमाने व्यंग्यकार हैं। 2002 में अपने उपन्यास बारामासी के लिए यू॰के॰ कथा सम्मान से सम्मानित किये गये। श्रेणी:हिन्दी व्यंग्यकार श्रेणी:यू के कथा सम्मान श्रेणी:हिन्दी गद्यकार.

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ज्ञान प्रकाश विवेक

हिन्दी लेखक .

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ज्ञानरंजन

ज्ञानरंजन हिन्दी साहित्य के एक शीर्षस्थ कहानीकार तथा हिन्दी की सुप्रसिद्ध पत्रिका पहल के संपादक हैं। .

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ज्ञानेन्द्रपति

ज्ञानेन्द्रपति हिन्दी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। श्रेणी:हिन्दी साहित्यकार श्रेणी:साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत हिन्दी भाषा के साहित्यकार.

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जैनेन्द्र कुमार

प्रेमचंदोत्तर उपन्यासकारों में जैनेंद्रकुमार (२ जनवरी, १९०५- २४ दिसंबर, १९८८) का विशिष्ट स्थान है। वह हिंदी उपन्यास के इतिहास में मनोविश्लेषणात्मक परंपरा के प्रवर्तक के रूप में मान्य हैं। जैनेंद्र अपने पात्रों की सामान्यगति में सूक्ष्म संकेतों की निहिति की खोज करके उन्हें बड़े कौशल से प्रस्तुत करते हैं। उनके पात्रों की चारित्रिक विशेषताएँ इसी कारण से संयुक्त होकर उभरती हैं। जैनेंद्र के उपन्यासों में घटनाओं की संघटनात्मकता पर बहुत कम बल दिया गया मिलता है। चरित्रों की प्रतिक्रियात्मक संभावनाओं के निर्देशक सूत्र ही मनोविज्ञान और दर्शन का आश्रय लेकर विकास को प्राप्त होते हैं। .

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जे बी मोरायश

जे बी मोरायश (१९३३) कर्नाटक के कल्लामुंडकूर नगर में जन्मे कोंकणी साहित्यकार हैं। उनका पहला कविता संग्रह नोंनी व्होकोले नाम से तथा पहला कहानी संग्रह कोशेददान नाम से १९७७ में प्रकाशित हुआ। उन्हें १९८५-८६ में कोंकणी भाषा में लिखे गए भितरलें तूफान के लिए साहित्य अकादमी द्वारा सम्मानित किया गया। .

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जीवनानंद दास

जीवनान्द दास जीवनानंद दास (१७ फ़रवरी १८९९- २२ अक्तुबर १९५४) बोरिशाल (बांग्लादेश) में जन्मे बांग्ला के सबसे जनप्रिय रवीन्द्रोत्तर कवि हैं। उन्हें १९५५ में मरणोपरांत श्रेष्ठ कविता के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। १९२६ में उनका पहला कविता संग्रह प्रकाशित हुआ। झरा पालक, धूसर पांडुलिपि, बनलता सेन, महापृथिबी, रूपसी बांगला आदि उनकी बहुचर्चित कृतियाँ हैं। रबीन्द्रनाथके रुमानी कविता के प्रभावको अस्वीकार कर उनहोनें अपनाहि एक अलग काव्यभाषा का जन्म दिया जो पहले पाठक-समाज को गवारा नहीं था। परन्तु २०वीं सदी के शेष भाग से वह उभर कर आयें और पाठक के दिलोदिमाग को चा गये। पहले तो रबीन्द्रनाथ भी उनके काव्यभाषा के खिलाफ कटु आलोचना किये थे। उनके जीवनकाल में वह केवल २६९ कवितायें प्रकाश कर पाये थे जिसमें १६२ था उनके प्रकाशित संकलनों में। उनके मृत्यु के बाद उनके सारे अप्रकाशित कवितायें प्रकाश होने के पश्चात यह संख्या ८०० से भी ज्यादा हो चुका है। यंहा तक की उनके घर से १२ अप्रकाशित उपन्यास मिले जो अपने-आप में अभिनव था। इसके अलावे ३५ कहानियाँ भी मिलीं। उनका पारिवारिक जीवन बहुत ही दुखद था। १९५४ में जब एकदिन वह कोलकाता के ट्रामसे कुचले पाये गये तो लोगों का मानना था कि वह आत्महत्या कर लिये हैं। .

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वसंत देव

वसंत देव मराठी के सुप्रसिद्ध नाटककार तथा मराठी से हिन्दी के कुशल अनुवादक के रूप में प्रसिद्ध हैं। .

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वासुदेव शरण अग्रवाल

वासुदेव शरण अग्रवाल (1904 - 1966) भारत के इतिहास, संस्कृति, कला एवं साहित्य के विद्वान थे। वे साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत हिन्दी गद्यकार हैं। .

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विनय मोहन शर्मा

विनय मोहन शर्मा १९०५ ई० जीवित हैं ककड़बेल (मध्य प्रदेश) शुक्लोत्तर युग.

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विनोद कुमार शुक्ल

हिन्दी लेखक.

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वियोगी हरि

सं.-वियोगी हरि (1895-1988 ई.) प्रसिद्ध गांधीवादी एवं हिन्दी के साहित्यकार थे। ये आधुनिक ब्रजभाषा के प्रमुख कवि, हिंदी के सफल गद्यकार तथा समाज-सेवी संत थे। "वीर-सतसई" पर इन्हें मंगलाप्रसाद पारितोषिक मिला था। उन्होंने अनेक ग्रंथों का संपादन, प्राचीन कविताओं का संग्रह तथा संतों की वाणियों का संकलन किया। कविता, नाटक, गद्यगीत, निबंध तथा बालोपयोगी पुस्तकें भी लिखी हैं। वे हरिजन सेवक संघ, गाँधी स्मारक निधि तथा भूदान आंदोलन में सक्रिय रहे। .

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विश्वंभर नाथ शर्मा 'कौशिक'

विश्वंभर नाथ शर्मा 'कौशिक' (१८९९- १९४५) प्रेमचन्द परम्परा के ख्याति प्राप्त कहानीकार थे। प्रेमचन्द के समान साहित्य में आपका दृष्टिकोण भी आदर्शोन्मुख यथार्थवाद था। कौशिक जी का जन्म १८९९ में पंजाब के अम्बाला नामक नगर में हुआ था। इनकी अधिकांश कहानियाँ चरित्र प्रधान हैं। इन कहानियों के पात्रों में चरित्र निर्माण में लेखक ने मनोविज्ञान का सहारा लिया है और सुधारवादी मनोवृत्तियों से परिचालित होने के कारण उन्हें अन्त में दानव से देवता बना दिया है। .

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विष्णु नागर

विष्णु नागर 1950- हिन्दी लेखक.

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विष्णु प्रभाकर

विष्णु प्रभाकर (२१ जून १९१२- ११ अप्रैल २००९) हिन्दी के सुप्रसिद्ध लेखक थे जिन्होने अनेकों लघु कथाएँ, उपन्यास, नाटक तथा यात्रा संस्मरण लिखे। उनकी कृतियों में देशप्रेम, राष्ट्रवाद, तथा सामाजिक विकास मुख्य भाव हैं। .

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विष्णु खरे

विष्णु खरे (जन्म १९४०) एक प्रमुख कवि, आलोचक, अनुवादक एवं पत्रकार हैं। आलोचना की पहली किताब इनकी प्रसिद्ध आलोचना पुस्तक है। .

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विजयदेव नारायण साही

विजयदेव नारायण साही हिंदी साहित्य के नयी कविता दौर के प्रसिद्ध कवि, एवं आलोचक हैं। वे तीसरा सप्तक के कवियों में शामिल थे। जायसी पर केन्द्रित उनका व्यवस्थित अध्ययन एवं नयी कविता के अतिरिक्त विभिन्न साहित्यिक तथा समसामयिक मुद्दों पर केन्द्रित उनके आलेख उनकी प्रखर आलोचकीय क्षमता के परिचायक हैं। .

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विजया मुखोपाध्याय

विजया मुखोपाध्याय (११ मार्च १९३७) बांग्ला भाषा की प्रसिद्ध कवयित्री हैं। उनका जन्म बांग्लादेश के ढाका नगर में विक्रमपुर गाँव में हुआ था। आमार प्रभूर जन्म, यदि शर्तहीन, भेंगे जाय अनंत, बादाम, उड़ंत, नामाबलि, दांडाओ तर्जनी उनके प्रमुख काव्य संग्रह हैं। एक संपूर्ण संकलन विजया मुखोपाध्यायेर श्रेष्ठ कविता भी प्रकाशित हुआ है। विश्व की अनेक भाषाओं में उनकी कविताओं का अनुवाद हुआ है। .

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विकेश निझावन

हिन्दी कवि और लेखक.

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वृन्द

वृन्द (१६४३-१७२३) हिन्दी के कवि थे। रीतिकालीन परम्परा के अन्तर्गत वृन्द का नाम आदर के साथ लिया जाता है। इनके नीति के दोहे बहुत प्रसिद्ध हैं। .

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वृंदावनलाल वर्मा

वृन्दावनलाल वर्मा (०९ जनवरी, १८८९ - २३ फरवरी, १९६९) हिन्दी नाटककार तथा उपन्यासकार थे। हिन्दी उपन्यास के विकास में उनका योगदान महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने एक तरफ प्रेमचंद की सामाजिक परंपरा को आगे बढ़ाया है तो दूसरी तरफ हिन्दी में ऐतिहासिक उपन्यास की धारा को उत्कर्ष तक पहुँचाया है। इतिहास, कला, पुरातत्व, मनोविज्ञान, मूर्तिकला और चित्रकला में भी इनकी विशेष रुचि रही। 'अपनी कहानी' में आपने अपने संघर्षमय जीवन की गाथा कही है। .

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वैकम मुहम्मद बशीर

वैकम मुहम्मद बशीर (१९१०) मलयालम के वरिष्ठ साहित्यकार हैं। अनर्थ निमिष, जन्मदिन, मूर्खों का स्वर्ग, मेरे दादा का हाथी आदि उनकी २५ से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। वे साहित्य अकादमी के वरिष्ठ पदों पर भी रह चुके हैं। .

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वीरेन डंगवाल

वीरेन डंगवाल (५ अगस्त १९४७ - २८ सितंबर २०१५) साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत हिन्दी कवि थे। उनका जन्म कीर्तिनगर, टेहरी गढ़वाल, उत्तराखंड में हुआ। उनकी माँ एक मिलनसार धर्मपरायण गृहणी थीं और पिता स्वर्गीय रघुनन्दन प्रसाद डंगवाल प्रदेश सरकार में कमिश्नरी के प्रथम श्रेणी अधिकारी। उनकी रूचि कविताओं कहानियों दोनों में रही है। उन्होंने मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, कानपुर, बरेली, नैनीताल और अन्त में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने १९६८ में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम॰ए॰ और तत्पश्चात डी॰फिल की डिग्रियाँ प्राप्त की। वीरेन १९७१ से बरेली कॉलेज में हिन्दी के अध्यापक रहे। साथ ही शौकिया पत्रकार भी। पत्नी रीता भी शिक्षक। स्थाई रूप से बरेली के निवासी। अंतिम दिनों में स्वास्थ्य संबंधी कारणों से दिल्ली में रहना पड़ा और २८ सितम्बर २०१५ को ६८ साल की उम्र में बरेली में देहांत हुआ। .

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वीरेन्द्र जैन

हिन्दी लेखक.

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खडगराज गिरि

खडगराज गिरि नेपाली साहित्यकार हैं। .

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खलील जिब्रान

खलील जिब्रान खलील जिब्रान खलील जिब्रान (Khalil Gibran (/dʒɪˈbrɑːn/; पूरा अरबी नाम: Gibran Khalil Gibran, अरबी: جبران خليل جبران‎ / ALA-LC: Jubrān Khalīl Jubrān or Jibrān Khalīl Jibrān) (6 जनवरी, 1883 – 10 जनवरी, 1931) एक लेबनानी-अमेरिकी कलाकार, कवि तथा न्यूयॉर्क पेन लीग के लेखक थे। उन्हें अपने चिंतन के कारण समकालीन पादरियों और अधिकारी वर्ग का कोपभाजन होना पड़ा और जाति से बहिष्कृत करके देश निकाला तक दे दिया गया था। आधुनिक अरबी साहित्य में जिब्रान खलील 'जिब्रान' के नाम से प्रसिद्ध हैं, किंतु अंग्रेजी में वह अपना नाम खलील ज्व्रान लिखते थे और इसी नाम से वे अधिक प्रसिद्ध भी हुए। .

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ख़्वाजा अहमद अब्बास

ख़्वाजा अहमद अब्बास प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक, पटकथा लेखक और उर्दू लेखक थे। उन्होंने 'अलीगढ़ ओपिनियन' शुरू किया। 'बॉम्बे क्रॉनिकल' में ये लंबे समय तक बतौर संवाददाता और फ़िल्म समीक्षक काम किया। इनका स्तंभ 'द लास्ट पेज' सबसे लंबा चलने वाले स्तंभों में गिना जाता है। यह 1941 से 1986 तक चला। अब्बास इप्टा के संस्थापक सदस्य थे। .

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खुदेजा ख़ान

प्रसिद्ध कवि और लेखक.

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खुर्शीद आलम

खुर्शीद आलम (१ जुलाई १९५७) उर्दू के जाने माने साहित्यकार हैं। वे अपने काहनी संग्रह आधे अधूरे के लिए उर्दू अकादमी द्वारा पुरस्कृत किए जा चुके हैं। उनकी आठ दस पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। .

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गिरिराज किशोर (साहित्यकार)

पद्मा श्री गिरिराज किशोर गिरिराज जी का जन्म 8 जुलाई 1937 को मुजफ्फररनगर में हुआ, इनके पिता ज़मींदार थे। गिरिराज जी ने कम उम्र में ही घर छोड़ दिया और स्वतंत्र लेखन किया। शिक्षा: मास्टर ऑफ सोशल वर्क 1960, समाज विज्ञान संस्थान, आगरा अनुभव: 1960 से 1964 तक सेवायोजन अधिकारी व प्रोबेशन अधिकारी उ.प्र.

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गजानन माधव मुक्तिबोध

गजानन माधव मुक्तिबोध (१३ नवंबर १९१७ - ११ सितंबर १९६४) हिन्दी साहित्य के प्रमुख कवि, आलोचक, निबंधकार, कहानीकार तथा उपन्यासकार थे। उन्हें प्रगतिशील कविता और नयी कविता के बीच का एक सेतु भी माना जाता है। .

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गुलशेर खान शानी

शानी (अंग्रेज़ी:Shaani, पूरा नाम: गुलशेर ख़ाँ शानी, जन्म: 16 मई, 1933 - मृत्यु: 10 फ़रवरी, 1995) प्रसिद्ध कथाकार एवं साहित्य अकादमी की पत्रिका 'समकालीन भारतीय साहित्य' और 'साक्षात्कार' के संस्थापक-संपादक थे। 'नवभारत टाइम्स' में भी इन्होंने कुछ समय काम किया। अनेक भारतीय भाषाओं के अलावा रूसी, लिथुवानी, चेक और अंग्रेज़ी में इनकी रचनाएं अनूदित हुई। मध्य प्रदेश के शिखर सम्मान से अलंकृत और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पुरस्कृत हैं। ----------------------------------------------------------------------------- जीवन परिचय 16 मई 1933 को जगदलपुर में जन्‍मे शानी ने अपनी लेखनी का सफ़र जगदलपुर से आरंभ कर ग्वालियर फिर भोपाल और दिल्ली तक तय किया। वे 'मध्‍य प्रदेश साहित्‍य परिषद', भोपाल के सचिव और परिषद की साहित्यिक पत्रिका 'साक्षात्कार' के संस्‍थापक संपादक रहे। दिल्‍ली में वे 'नवभारत टाइम्स' के सहायक संपादक भी रहे और साहित्य अकादमी से संबद्ध हो गए। साहित्‍य अकादमी की पत्रिका 'समकालीन भारतीय साहित्‍य' के भी वे संस्‍थापक संपादक रहे। इस संपूर्ण यात्रा में शानी साहित्‍य और प्रशासनिक पदों की उंचाईयों को निरंतर छूते रहे। मैट्रिक तक शिक्षा प्राप्‍त शानी बस्तर जैसे आदिवासी इलाके में रहने के बावजूद अंग्रेज़ी, उर्दू, हिन्‍दी के अच्‍छे ज्ञाता थे। उन्‍होंने एक विदेशी समाजविज्ञानी के आदिवासियों पर किए जा रहे शोध पर भरपूर सहयोग किया और शोध अवधि तक उनके साथ सूदूर बस्‍तर के अंदरूनी इलाकों में घूमते रहे। कहा जाता है कि उनकी दूसरी कृति 'सालवनो का द्वीप' इसी यात्रा के संस्‍मरण के अनुभवों में पिरोई गई है। उनकी इस कृति की प्रस्‍तावना उसी विदेशी ने लिखी और शानी ने इस कृति को प्रसिद्ध साहित्‍यकार प्रोफेसर कांति कुमार जैन जो उस समय 'जगदलपुर महाविद्यालय' में ही पदस्‍थ थे, को समर्पित किया है। शालवनों के द्वीप एक औपन्‍यासिक यात्रावृत है। मान्‍यता है कि बस्‍तर का जैसा अंतरंग चित्र इस कृति में है वैसा हिन्‍दी में अन्‍यत्र नहीं है। शानी ने 'साँप और सीढ़ी', 'फूल तोड़ना मना है', 'एक लड़की की डायरी' और 'काला जल' जैसे उपन्‍यास लिखे। लगातार विभिन्‍न पत्र-पत्रिकाओं में छपते हुए 'बंबूल की छाँव', 'डाली नहीं फूलती', 'छोटे घेरे का विद्रोह', 'एक से मकानों का नगर', 'युद्ध', 'शर्त क्‍या हुआ ?', 'बिरादरी' और 'सड़क पार करते हुए' नाम से कहानी संग्रह व प्रसिद्ध संस्‍मरण 'शालवनो का द्वीप' लिखा। शानी ने अपनी यह समस्‍त लेखनी जगदलपुर में रहते हुए ही लगभग छ:-सात वर्षों में ही की। जगदलपुर से निकलने के बाद उन्‍होंनें अपनी उल्‍लेखनीय लेखनी को विराम दे दिया। बस्तर के बैलाडीला खदान कर्मियों के जीवन पर तत्‍कालीन परिस्थितियों पर उपन्‍यास लिखने की उनकी कामना मन में ही रही और 10 फ़रवरी 1995 को वे इस दुनिया से रुख़सत हो गए। ------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- .

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गोपाल सिंह नेपाली

गोपाल सिंह नेपाली गोपाल सिंह नेपाली (1911 - 1963) हिन्दी एवं नेपाली के प्रसिद्ध कवि थे। उन्होने बम्बइया हिन्दी फिल्मों के लिये गाने भी लिखे। वे एक पत्रकार भी थे जिन्होने "रतलाम टाइम्स", चित्रपट, सुधा, एवं योगी नामक चार पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया। सन् १९६२ के चीनी आक्रमन के समय उन्होने कई देशभक्तिपूर्ण गीत एवं कविताएं लिखीं जिनमें 'सावन', 'कल्पना', 'नीलिमा', 'नवीन कल्पना करो' आदि बहुत प्रसिद्ध हैं। .

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गोपाल कृष्ण अडिग

गोपाल कृष्ण अडिग (१८ फ़रवरी १९१८) कन्नड़ में नवयुग के प्रवर्तक कवियों में से एक हैं। कृष्ण नकोबलु, हिमगिरिथ कंदर, वर्धमान, देहलिचाल्लि, आरोहण, मूलक महाशयस आदि उनके प्रमुख कविता संग्रह हैं। अनेक पुरस्कारों से अलंकृत गोपाल कृष्ण अडिग १९७४ में साहित्य अकादमी तथा कबीर सम्मान से भी सम्मानित हो चुके हैं। .

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गोपालदास नीरज

गोपालदास नीरज (जन्म: 4 जनवरी 1925), हिन्दी साहित्यकार, शिक्षक, एवं कवि सम्मेलनों के मंचों पर काव्य वाचक एवं फ़िल्मों के गीत लेखक हैं। वे पहले व्यक्ति हैं जिन्हें शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में भारत सरकार ने दो-दो बार सम्मानित किया, पहले पद्म श्री से, उसके बाद पद्म भूषण से। यही नहीं, फ़िल्मों में सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिये उन्हें लगातार तीन बार फिल्म फेयर पुरस्कार भी मिला। .

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गोपालप्रसाद व्यास

पंडित गोपालप्रसाद व्यास (जन्म- 13 फरवरी 1915, गोवर्धन, मथुरा; मृत्यु - 28 मई 2005, नई दिल्ली) हिन्दी के प्रमुख साहित्यकार थे। वे ब्रजभाषा और पिंगल के मर्मज्ञ माने जाते थे। व्यास को भारत सरकार ने पद्मश्री, दिल्ली सरकार ने शलाका सम्मान और उत्तर प्रदेश सरकार ने यश भारती सम्मान से विभूषित किया था। दिल्ली में हिंदी भवन के निर्माण में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। लाल किले पर हर वर्ष होने वाले राष्ट्रीय कवि सम्मेलन की शुरुआत में उनकी अहम भूमिका मानी जाती है। .

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गोविन्द पुरुषोत्तम देशपांडे

गोविन्द पुरुषोत्तम देशपांडे (२ अगस्त १९३८) नासिक में जन्मे मराठी के सुप्रसिद्ध नाटककार हैं। उध्वस्त धर्मशाला, एक वाजनू गोला आहे, मामकाः पांडवाश्चैव, अस्सा नवरा सुरेख बाई, अंधार यात्रा उनके प्रमुख नाटक हैं। कई नाटक हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में अनूदित हुए हैं। अलोचना तथा निबंधों का संकलन आहे चक्वलचे आधि इतर निबंध उनका एक आलोचनात्मक निबंधों का संग्रह भी है। वे समाजशास्त्री तथा चीनी भाषा के विशेषज्ञ भी हैं। .

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गीतांजलिश्री

गीतांजलिश्री (जन्म 12 जून 1957) हिन्दी का जानी मानी कथाकार और उपन्यासकार हैं। उत्तर-प्रदेश के मैनपुरी नगर में जन्मी गीतांजलि की प्रारंभिक शिक्षा उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों में हुई। बाद में उन्होंने दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज से स्नातक और जवाहरलाल नेहरू विश्‍वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. किया। महाराज सयाजी राव विवि, वडोदरा से प्रेमचंद और उत्तर भारत के औपनिवेशिक शिक्षित वर्ग विषय पर शोध की उपाधि प्राप्त की। कुछ दिनों तक जामिया मिल्लिया इस्लामिया विवि में अध्यापन के बाद सूरत के सेंटर फॉर सोशल स्टडीज में पोस्ट-डॉ टरल रिसर्च के लिए गईं। वहीं रहते हुए उन्होंने कहानियाँ लिखनी शुरू कीं। उनकी पहली कहानी बेलपत्र १९८७ में हंस में प्रकाशित हुई थी। इसके बाद उनकी दो और कहानियाँ एक के बाद एक 'हंस` में छपीं। अब तक उनकी 'माई`, 'हमारा शहर उस बरस`, 'तिरोहित` (उपन्यास); 'अनुगूंज` और 'वैराग्य` (कथा संग्रह) कृतियां प्रकाशित हो चुकी हैं। 'माई` का अंग्रेजी रूपांतरण हाल ही में प्रकाशित हुआ था, जो 'क्रॉसवर्ड अवार्ड` के लिए नामित अंतिम चार किताबों में शामिल था। अपने लेखन में वैचारिक रूप से स्पष्ट और प्रौढ़ अभिव्यिक्ति के जरिए उन्होंने एक विशिष्ट स्थान बनाया है। दिल्ली की हिंदी अकादमी ने उन्हें 2000-2001 के साहित्यकार सम्मान से अलंकृत किया है। १९९५ में उन्हें अपने कहानी संग्रह अनुगूँज के लिए यू॰के॰ कथा सम्मान से सम्मानित किया गया। .

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ओमा शर्मा

हिन्दी कवि और लेखक.

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आचार्य चतुरसेन शास्त्री

आचार्य चतुरसेन शास्त्री (26 अगस्त 1891 – 2 फ़रवरी 1960)) हिन्दी भाषा के एक महान उपन्यासकार थे। इनका अधिकतर लेखन ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित है। इनकी प्रमुख कृतियां गोली, सोमनाथ, वयं रक्षाम: और वैशाली की नगरवधू इत्यादि हैं। आभा इनकी पहली रचना थी। .

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आचार्य रामलोचन सरन

आचार्य रामलोचन सरन (1889 – 1971) हिन्दी के लेखक थे। उन्होंने १९१५ में पुस्तक भंडार प्रकाशन की स्थापना लहेरियासराय और पटना में की। उन्होंने बालक पत्रिका, हिमालय पत्रिका, होनहार पत्रिका को भी प्रकाशित किया। उन्होंने नए लेखकों को प्रोत्साहित किया। उन्होंने मनोहर पोथी छापी, जिससे नौसिखियों को हिन्दी सिखाया जा सके।.

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आचार्य शिवपूजन सिंह

हिन्दी लेखक.

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आले अहमद सुरूर

आले अहमद सुरूर (९ सितंबर १९११) उर्दू के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। उनका जन्म बदायूँ में हुआ। पहला कविता संग्रह सल सबिल १९३५ में प्रकाशित हुआ। नए और पुराने चिराग, तनक़ीद क्या है, अदब और नज़रिया, (आलोचनात्मक निबंध) ख़्वाब बाकी है (आत्मकथा) आदि रचनाओं के रचयिता आले अहमद को उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी, साहित्य अकादमी, इक़बाल पुरस्कार तथा पद्म भूषण (१९९१) से सम्मानित किया जा चुका है। .

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इलाचन्द्र जोशी

इलाचन्द्र जोशी (अंग्रेज़ी: Ilachandra Joshi, जन्म- 13 दिसम्बर 1903 - मृत्यु- 1982) हिन्दी लेखक थे। .

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इस्मत चुग़ताई

इस्मत चुग़ताई (عصمت چغتائی) (जन्म: 15 अगस्त 1915-निधन: 24 अक्टूबर 1991) भारत से उर्दू की एक लेखिका थीं। उन्हें ‘इस्मत आपा’ के नाम से भी जाना जाता है। वे उर्दू साहित्य की सर्वाधिक विवादास्पद और सर्वप्रमुख लेखिका थीं, जिन्होंने महिलाओं के सवालों को नए सिरे से उठाया। उन्होंने निम्न मध्यवर्गीय मुस्लिम तबक़ें की दबी-कुचली सकुचाई और कुम्हलाई लेकिन जवान होती लड़कियों की मनोदशा को उर्दू कहानियों व उपन्यासों में पूरी सच्चाई से बयान किया है। .

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इवान तुर्गेन्येव

इवान तुर्गेन्येव इवान तुर्गेन्येव (रूसी: Ива́н Серге́евич Турге́нев) रूसी कवि और लेखक थे। .

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इवान बूनिन

रूसी कवि और लेखक श्रेणी:रूसी साहित्य श्रेणी:रूसी साहित्यकार.

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इक़बाल मजीद

इक़बाल मजीद १९६० के बाद उभरे उर्दू कथाकारों में विशेष स्थान रखते हैं। उनके दो कथासंग्रह भीगे ५० लोग तथा हलफ़िया बयान प्रकाशित हुए हैं। उन्होंने रेडियो के लिए बहुत से नाटक लिखे हैं जिनमें से कुछ पुरस्कृत भी हुए हैं। .

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कन्हैयालाल नन्दन

कन्हैयालाल एक जानेमाने भारतीय साहित्यकार,पत्रकार और गीतकार थे। डाक्टर कन्हैयालाल नंदन (१ जुलाई १९३३ - २५ सितम्बर १०१०) हिन्दी के वरिष्ठ पत्रकार, साहित्यकार, मंचीय कवि और गीतकार थे। पराग, सारिका और दिनमान जैसी पत्रिकाओं में बतौर संपादक अपनी छाप छोड़ने वाले नंदन ने कई किताबें भी लिखीं। कन्हैयालाल नंदन को भारत सरकार के पद्मश्री पुरस्कार के अलावा भारतेन्दु पुरस्कार और नेहरू फेलोशिप पुरस्कार से भी नवाजा गया। .

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कमलकान्‍त बुधकर

19 जनवरी 1950 को हरिद्वार में जन्‍मे मराठी भाषी डॉ॰ कमलकांत बुधकर शिक्षक के रूप में 1972 से ही विभिन्न स्नातक महाविद्यालयों में हिन्दी प्राध्यापक और 1990 से गुरुकुल काँगड़ी वि.वि.

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कमलेश्वर

कमलेश्वर (६ जनवरी१९३२-२७ जनवरी २००७) हिन्दी लेखक कमलेश्वर बीसवीं शती के सबसे सशक्त लेखकों में से एक समझे जाते हैं। कहानी, उपन्यास, पत्रकारिता, स्तंभ लेखन, फिल्म पटकथा जैसी अनेक विधाओं में उन्होंने अपनी लेखन प्रतिभा का परिचय दिया। कमलेश्वर का लेखन केवल गंभीर साहित्य से ही जुड़ा नहीं रहा बल्कि उनके लेखन के कई तरह के रंग देखने को मिलते हैं। उनका उपन्यास 'कितने पाकिस्तान' हो या फिर भारतीय राजनीति का एक चेहरा दिखाती फ़िल्म 'आंधी' हो, कमलेश्वर का काम एक मानक के तौर पर देखा जाता रहा है। उन्होंने मुंबई में जो टीवी पत्रकारिता की, वो बेहद मायने रखती है। 'कामगार विश्व’ नाम के कार्यक्रम में उन्होंने ग़रीबों, मज़दूरों की पीड़ा-उनकी दुनिया को अपनी आवाज़ दी। कमलेश्वर का जन्म ६ जनवरी १९३२ को उत्तरप्रदेश के मैनपुरी जिले में हुआ। उन्होंने १९५४ में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में एम.ए. किया। उन्होंने फिल्मों के लिए पटकथाएँ तो लिखी ही, उनके उपन्यासों पर फिल्में भी बनी। `आंधी', 'मौसम (फिल्म)', 'सारा आकाश', 'रजनीगंधा', 'छोटी सी बात', 'मिस्टर नटवरलाल', 'सौतन', 'लैला', 'रामबलराम' की पटकथाएँ उनकी कलम से ही लिखी गईं थीं। लोकप्रिय टीवी सीरियल 'चन्द्रकांता' के अलावा 'दर्पण' और 'एक कहानी' जैसे धारावाहिकों की पटकथा लिखने वाले भी कमलेश्वर ही थे। उन्होंने कई वृतचित्रों और कार्यक्रमों का निर्देशन भी किया। १९९५ में कमलेश्वर को 'पद्मभूषण' से नवाज़ा गया और २००३ में उन्हें 'कितने पाकिस्तान'(उपन्यास) के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वे 'सारिका' 'धर्मयुग', 'जागरण' और 'दैनिक भास्कर' जैसे प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं के संपादक भी रहे। उन्होंने दूरदर्शन के अतिरिक्त महानिदेशक जैसा महत्वपूर्ण दायित्व भी निभाया। कमलेश्वर ने अपने ७५ साल के जीवन में १२ उपन्यास, १७ कहानी संग्रह और क़रीब १०० फ़िल्मों की पटकथाएँ लिखीं। कमलेश्वर की अंतिम अधूरी रचना अंतिम सफर उपन्यास है, जिसे कमलेश्वर की पत्नी गायत्री कमलेश्वर के अनुरोध पर तेजपाल सिंह धामा ने पूरा किया और हिन्द पाकेट बुक्स ने उसे प्रकाशित किया और बेस्ट सेलर रहा। २७ जनवरी २००७ को उनका निधन हो गया। .

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कर्मेंदु शिशिर

कर्मेंदु शिशिर (जन्म:26 अगस्त, 1953 -) हिंदी के विनम्र कथाकार, आलोचक और शोधार्थी हैं। .

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कामतानाथ

कामतानाथ हिन्दी के लेखक थे। 22 सितम्बर 1935 को लखनऊ में उनका जन्म हुआ। उन्हें उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान ने साहित्य भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया था। 25 मई 2015 को लगभग 80 वर्ष की आयु में उनका शरीर पूरा हुआ। उन्होंने कई लेख लिखे, उपन्यास: समुद्र तट पर खुलने वाली खिड़की, सुबह होने तक, एक और हिंदुस्तान, तुम्हारे नाम, काल-कथा (दो खंड), पिघलेगी बर्फ कहानी संग्रह: छुट्टियाँ, तीसरी साँस, सब ठीक हो जाएगा, शिकस्त, रिश्ते-नाते, आकाश से झाँकता वह चेहरा, सोवियत संघ का पतन क्यों हुआ नाटक: दिशाहीन, फूलन, कल्पतरु की छाया, दाखला डॉट काम, संक्रमण, वार्ड नं एक (एकांकी), भारत भाग्य विधाता (प्रहसन), औरतें (गाइ द मोपांसा की कहानियों पर आधारित) अनुवाद: प्रेत (घोस्ट: हेनरिक इब्सन) संपादन: कथांतर .

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काशीनाथ सिंह

काशीनाथ सिंह (सन १९३७ को जीयनपुर नामक गाँव में जन्मे) हिन्दी के जानेमाने विद्वान्, कथाकार और उपन्यासकार हैं। काशीनाथ सिंह ने लंबे समय तक काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हिंदी साहित्य के प्रोफेसर के रूप में अध्यापन कार्य किया। सन् 2011 में उन्हें रेहन पर रघ्घू (उपन्यास) के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया। उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा राज्य में साहित्य के सर्वोच्च सम्मान भारत भारती से भी सम्मानित किया जा चुका है। .

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कुँवर नारायण

कुँवर नारायण का जन्म १९ सितंबर १९२७ को हुआ। नई कविता आंदोलन के सशक्त हस्ताक्षर कुँवर नारायण अज्ञेय द्वारा संपादित तीसरा सप्तक (१९५९) के प्रमुख कवियों में रहे हैं। कुँवर नारायण को अपनी रचनाशीलता में इतिहास और मिथक के जरिये वर्तमान को देखने के लिए जाना जाता है। कुंवर नारायण का रचना संसार इतना व्यापक एवं जटिल है कि उसको कोई एक नाम देना सम्भव नहीं। यद्यपि कुंवर नारायण की मूल विधा कविता रही है पर इसके अलावा उन्होंने कहानी, लेख व समीक्षाओं के साथ-साथ सिनेमा, रंगमंच एवं अन्य कलाओं पर भी बखूबी लेखनी चलायी है। इसके चलते जहाँ उनके लेखन में सहज संप्रेषणीयता आई वहीं वे प्रयोगधर्मी भी बने रहे। उनकी कविताओं-कहानियों का कई भारतीय तथा विदेशी भाषाओं में अनुवाद भी हो चुका है। ‘तनाव‘ पत्रिका के लिए उन्होंने कवाफी तथा ब्रोर्खेस की कविताओं का भी अनुवाद किया है। 2009 में कुँवर नारायण को वर्ष 2005 के लिए देश के साहित्य जगत के सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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कुमार अंबुज

कुमार अंबुज। कुमार अंबुज (१३ अप्रैल १९५७), जिनका मूल नाम पुरुषोत्‍तम कुमार सक्‍सेना है और जिनका कार्यालयीन रिकॉर्ड में जन्‍म दिनांक 13 अप्रैल 1956 है, हिन्दी के कवि हैं। उनका पहला कविता संग्रह किवाड़ है जिसकी शीर्षक कविता को भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार मिला। 'क्रूरता' नामक इनका दूसरा कविता संग्रह है। उसके बाद 'अनंतिम', 'अतिक्रमण' और फिर 2011 में 'अमीरी रेखा' कविता संग्रह विशेष रूप से चर्चित हुए हैं। अलग तरह की अनेक कहानियाँ पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित और प्रशंसित हुई हैं। कविता के लिए भारत भूषण अग्रवाल पुरस्‍कार, श्रीकांत वर्मा सम्‍मान, गिरिजा कुमार माथुर सम्‍मान, केदार सम्मान, माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्‍कार और वागीश्‍वरी पुरस्‍कार प्राप्‍त हुए हैं। हिन्‍दी और अंग्रेजी में प्रकाशित अनेक प्रतिनिधि संचयनों में कविताऍं/कहानियाँ शामिल। कुछ कविताऍं और कहानियाँ विभिन्‍न पाठयक्रमों में शरीक। इस तरह कुल पाँच कविता संग्रह और एक कहानी संग्रह प्रकाशित हैं। आधार प्रकाशन, पंचकूला से किवाड़ 1992 और राधाकष्‍ण प्रकाशन, नयी दिल्‍ली से क्रूरता 1996, अनंतिम 1998 और अतिक्रमण 2002 और 2011 में अमीरी रेखा। वर्ष 2008 में इनका एक कहानी संग्रह भी भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्‍ली से आया है। 2012 में किताबघर प्रकाशन की बहुचर्चित सीरीज 'कवि ने कहा' अंतर्गत प्रतिनिधि कविताओं का संकलन प्रकाशित हुआ है। विचार लेख भी प्रकाशित हैं। कुछ चर्चित और अन्‍य भाषाओं में अनूदित कविताऍं हैं-'क्रूरता, चंदेरी, जंजीरें, भरी बस में लाल साफेवाला आदमी, चुंबक, तुम्‍हारी जाति क्‍या है, अक्‍तूबर का उतार, अकेला आदमी, नागरिक पराभव, किवाड़, चाय की गुमटी, साध्वियां, प्रधानमंत्री और शिल्‍पी, होम्‍योपैथी, कोई मांजता है मुझे, मेरा प्रिय कवि, भाषा से परे, खाना बनाती स्‍त्रियां और नयी सभ्‍यता की मुसीबत' आदि। इसी तरह 'माँ रसोई में रहती है', 'सनक', 'एक दिन मन्‍ना डे' जैसी अनेक कहानियाँ चर्चित और अन्‍य भाषाओं में अनूदित हुई हैं। .

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कुर्अतुल ऐन हैदर

ऐनी आपा के नाम से जानी जानी वाली क़ुर्रतुल ऐन हैदर (२० जनवरी १९२७ - २१ अगस्त २००७) प्रसिद्ध उपन्यासकार और लेखिका थीं। .

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कुलदीप जैन

हिन्दी कवि और लेखक.

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कृष्ण चंदर

कृष्ण चन्दर अथवा कृश्न चन्दर (23 नवम्बर 1914 – 8 मार्च 1977) हिन्दी और उर्दू के कहानीकार थे। उन्हें साहित्य एवं शिक्षा क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन १९६९ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। उन्होने मुख्यतः उर्दू में लिखा किन्तु भारत की स्वतंत्रता के बाद मुख्यतः हिन्दी में लिखा। .

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कृष्ण बलदेव वैद

हिन्दी के आधुनिक गद्य-साहित्य में सब से महत्वपूर्ण लेखकों में गिने जाने वाले कृष्ण बलदेव वैद ने डायरी लेखन, कहानी और उपन्यास विधाओं के अलावा नाटक और अनुवाद के क्षेत्र में भी अप्रतिम योगदान दिया है। अपनी रचनाओं में उन्होंने सदा नए से नए और मौलिक-भाषाई प्रयोग किये हैं जो पाठक को 'चमत्कृत' करने के अलावा हिन्दी के आधुनिक-लेखन में एक खास शैली के मौलिक-आविष्कार की दृष्टि से विशेष अर्थपूर्ण हैं। .

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कृष्णा सोबती

कृष्णा सोबती (१८ फ़रवरी १९२५, गुजरात (अब पाकिस्तान में)) हिन्दी की कल्पितार्थ (फिक्शन) एवं निबन्ध लेखिका हैं। उन्हें १९८० में साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा १९९६ में साहित्य अकादमी अध्येतावृत्ति से सम्मानित किया गया था। अपनी संयमित अभिव्यक्ति और सुथरी रचनात्मकता के लिए जानी जाती हैं। उन्होंने हिंदी की कथा भाषा को विलक्षण ताज़गी़ दी है। उनके भाषा संस्कार के घनत्व, जीवन्त प्रांजलता और संप्रेषण ने हमारे समय के कई पेचीदा सत्य उजागर किए हैं। .

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के शिवा रेड्डी

के शिवा रेड्डी (१९४३) तेलुगु के सुप्रसिद्ध कवि हैं। उनका जन्म आंध्र प्रदेश के कारुमुरिवारी पालम गाँव में हुआ। उनके छे कविता संग्रह प्रकाशित हुए हैं। रक्तम सूर्युदु के लिए उन्हें फ्री वर्स फ़्रंट पुरस्कार से अलंकृत किया गया। १९८९ में उन्हें मोहना ओ मोहना कविता संग्रह के लिए साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत किया गया। वे हैदराबाद में रहते और काम करते हैं। .

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केदारनाथ सिंह

केदारनाथ सिंह (७ जुलाई १९३४ – १९ मार्च २०१८), हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि व साहित्यकार थे। वे अज्ञेय द्वारा सम्पादित तीसरा सप्तक के कवि रहे। भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा उन्हें वर्ष २०१३ का ४९वां ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया था। वे यह पुरस्कार पाने वाले हिन्दी के १०वें लेखक थे। .

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केदारनाथ अग्रवाल

केदारनाथ अग्रवाल (१ अप्रैल १९११ - २०००) प्रमुख हिन्दी कवि थे। .

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कीर्ति चौधरी

जन्म- १ जनवरी, १९३४ को उत्तर प्रदेश के उन्नाव ज़िले के नईमपुर गाँव में एक कायस्थ परिवार में उनका जन्म हुआ था। कीर्ति चौधरी का मूल नाम कीर्ति बाला सिन्हा था। शिक्षा- उन्नाव में जन्म के कुछ बरस बाद उन्होंने पढ़ाई के लिए कानपुर का रुख़ किया। १९५४ में एम.ए. करने के बाद 'उपन्यास के कथानक तत्व' जैसे विषय पर उन्होंने शोध भी किया। कार्यक्षेत्र- साहित्य उन्हें विरासत में भी मिला और फिर जीवन साथी के साथ भी साहित्य, संप्रेषण जुड़े रहे। उनके पिता ज़मींदार थे और माँ, सुमित्रा कुमारी सिन्हा जानी-मानी कवयित्री, लेखिका और गीतकार थीं। तीसरा सप्तक’ (1960) के संपादक अज्ञेय ने 60 के दशक में प्रयाग नारायण त्रिपाठी, केदारनाथ सिंह, कुँवर नारायण, विजयदेव नारायण साही, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना और मदन वात्स्यायन जैसे साहित्यकारों के साथ कीर्ति चौधरी को भी तीसरा सप्तक का हिस्सा बनाया। निधन- १३ जून २००८ को लंदन में उनका देहांत हो गया। .

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अनिल जनविजय

अनिल जनविजय (२८ जुलाई १९५७), हिन्दी कवि-लेखक और रूसी और अंग्रेज़ी भाषाओं से हिन्दी में दुनिया भर के साहित्य का अनुवादक हैं। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से बी.कॉम और मॉस्को स्थित गोर्की साहित्य संस्थान से सृजनात्मक साहित्य विषय में एम० ए० किया। इन दिनों मॉस्को विश्वविद्यालय में हिंदी साहित्य का अध्यापन और रेडियो रूस का हिन्दी डेस्क देख रहे हैं। .

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अब्दुल बिस्मिल्लाह

अब्दुल बिस्मिल्लाह (जन्म- 5 जुलाई 1949) हिन्दी साहित्य जगत के प्रसिद्ध उपन्यासकार हैं। वे एक प्रतिबद्ध रचनाकार हैं और पिछले लगभग तीन दशकों से साहित्य स्रुजन में सरक्रिय हैं। ग्रामीण जीवन व मुस्लिम समाज के संघर्ष, संवेदनाएं, यातनाएं और अन्तर्द्वंद उनकी रचनाओं के मुख्य केन्द्र बिन्दु हैं। उनकी पहली रचना ‘झीनी झीनी बीनी चदरिया’हिन्दी कथा साहित्य की एक मील का पत्थर मानी जाती है। उन्होंने उपन्यास के साथ ही कहानी, कविता, नाटक जैसी सृजनात्मक विधाओं के अलावा आलोचना भी लिखी है। सम्प्रति वह जामिया मिलिया विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर हैं। .

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अमरकांत

अमरकांत (1925 - 17 फ़रवरी 2014) हिंदी कथा साहित्य में प्रेमचंद के बाद यथार्थवादी धारा के प्रमुख कहानीकार थे। यशपाल उन्हें गोर्की कहा करते थे।रविंद्र कालिया, नया ज्ञानोदय (मार्च २०१२), भारतीय ज्ञानपीठ, पृ-६ .

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अमरेश पटनायक

अमरेश पटनायक (१९५०) कटक में निवास करने वाले ओड़िया कवि और लेखक हैं। उन्हें साहित्य अकादमी के अनुवाद पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। मणिश आंगुले, मन रु मनकु, संधि-विसंधि, अबुद्ध गरुण और घट घटांतर उनके प्रमुख कविता संग्रह हैं। आरत अविरत नाम से उनका एक उपन्यास भी प्रकाशित हुआ है। श्रेणी:ओड़िया साहित्यकार श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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अमृत राय

अमृतराय आधुनिक कहानीकार हैं। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी में हुआ था। अमृतराय प्रसिद्ध लेखक प्रेमचन्द के सुपुत्र हँ। ये प्रगतिशील साहित्यकारों में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। कहानी तथा ललित निबन्ध के लेखन में भारत विख्यात इस लेखक को कलम का सिपाही नामक पुस्तक पर साहित्य अकादमी का पुरस्कार मिल चुका है। इनका उपन्यास बीज तथा कहानी-संग्रह तिरंगा कफन बहु-चर्चित है। श्रेणी:हिन्दी गद्यकार श्रेणी:साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत हिन्दी भाषा के साहित्यकार श्रेणी:चित्र जोड़ें श्रेणी:1921 में जन्मे लोग.

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अमृतलाल नागर

हिन्दी साहित्यकार '''अमृतलाल नागर''' अमृतलाल नागर (17 अगस्त, 1916 - 23 फरवरी, 1990) हिन्दी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार थे। आपको भारत सरकार द्वारा १९८१ में साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। .

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अमृता प्रीतम

अमृता प्रीतम (१९१९-२००५) पंजाबी के सबसे लोकप्रिय लेखकों में से एक थी। पंजाब (भारत) के गुजराँवाला जिले में पैदा हुईं अमृता प्रीतम को पंजाबी भाषा की पहली कवयित्री माना जाता है। उन्होंने कुल मिलाकर लगभग १०० पुस्तकें लिखी हैं जिनमें उनकी चर्चित आत्मकथा 'रसीदी टिकट' भी शामिल है। अमृता प्रीतम उन साहित्यकारों में थीं जिनकी कृतियों का अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ। अपने अंतिम दिनों में अमृता प्रीतम को भारत का दूसरा सबसे बड़ा सम्मान पद्मविभूषण भी प्राप्त हुआ। उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से पहले ही अलंकृत किया जा चुका था। अमृता प्रीतम का जन्म १९१९ में गुजरांवाला पंजाब (भारत) में हुआ। बचपन बीता लाहौर में, शिक्षा भी वहीं हुई। किशोरावस्था से लिखना शुरू किया: कविता, कहानी और निबंध। प्रकाशित पुस्तकें पचास से अधिक। महत्त्वपूर्ण रचनाएं अनेक देशी विदेशी भाषाओं में अनूदित। १९५७ में साहित्य अकादमी पुरस्कार, १९५८ में पंजाब सरकार के भाषा विभाग द्वारा पुरस्कृत, १९८८ में बल्गारिया वैरोव पुरस्कार;(अन्तर्राष्ट्रीय) और १९८२ में भारत के सर्वोच्च साहित्त्यिक पुरस्कार ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित। उन्हें अपनी पंजाबी कविता अज्ज आखाँ वारिस शाह नूँ के लिए बहुत प्रसिद्धी प्राप्त हुई। इस कविता में भारत विभाजन के समय पंजाब में हुई भयानक घटनाओं का अत्यंत दुखद वर्णन है और यह भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में सराही गयी। .

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अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध'

अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' (15 अप्रैल, 1865-16 मार्च, 1947) हिन्दी के एक सुप्रसिद्ध साहित्यकार थे। वे 2 बार हिंदी साहित्य सम्मेलन के सभापति रह चुके हैं और सम्मेलन द्वारा विद्यावाचस्पति की उपाधि से सम्मानित किये जा चुके हैं। प्रिय प्रवास हरिऔध जी का सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण ग्रंथ है। यह हिंदी खड़ी बोली का प्रथम महाकाव्य है और इसे मंगला प्रसाद पारितोषित पुरस्कार प्राप्त हो चुका है। .

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अरुण प्रकाश

---- एडमिरल अरुण प्रकाश जुलाई 31, 2004 से अक्टूबर 31, 2006 तक भारत के नौसेनाध्यक्ष रहे। उन्होंने माधवेंद्र सिंह से यह पदभार ग्रहण किया था तथा उनके पश्चात् सुरीश मेहता इस पद पर आए। .

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अरुण कमल

हिन्दी कवि (आधुनिक काल के) अपनी केवल धार 1980 सबूत 1989 नए इलाके में 1996 पुतली में संसार 2004 श्राद्ध काअनन .

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अरुणा सीतेश

अरुणा सीतेश डॉ॰ अरुणा सीतेश (३१ अक्टूबर १९४५-१९ नवंबर २००७) हिंदी की प्रसिद्ध कथाकार थीं। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से १९६५ में अंग्रेज़ी साहित्य में एम.

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अलका सरावगी

अलका सरावगी (जन्म- 17 नवम्बर,1960, कोलकाता) हिन्दी कथाकार हैं। वे साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हो चुकी हैं। कोलकाता (भूतपूर्व कलकत्ता) में जन्मी अलका ने हिन्दी साहित्य में एम.ए. और 'रघुवीर सहाय के कृतित्व' विषय पर पीएच.डी की उपाधि प्राप्त की है। "कलिकथा वाया बाइपास" उनका चर्चित उपन्यास है, जो अनेक भाषाओं में अनुदित हो चुके हैं। अपने प्रथम उपन्यास ‘कलिकथा वाया बायपास’ से एक सशक्त उपन्यासकार के रूप में स्थापित हो चुकी अलका का पहला कहानी संग्रह वर्ष 1996 में 'कहानियों की तलाश में' आया। इसके दो साल बाद ही उनका पहला उपन्यास 'काली कथा, वाया बायपास' शीर्षक से प्रकाशित हुआ। 'काली कथा, वाया बायपास' में नायक किशोर बाबू और उनके परिवार की चार पीढिय़ों की सुदूर रेगिस्तानी प्रदेश राजस्थान से पूर्वी प्रदेश बंगाल की ओर पलायन, उससे जुड़ी उम्मीद एवं पीड़ा की कहानी बयाँ की गई है। वर्ष 2000 में उनके दूसरे कहानी संग्रह 'दूसरी कहानी' के बाद उनके कई उपन्यास प्रकाशित हुए। पहले 'शेष कादंबरी' फिर 'कोई बात नहीं' और उसके बाद 'एक ब्रेक के बाद'। उन्होने ‘एक ब्रेक के बाद’ उपन्यास के विषय का ताना-बाना समसामायिक कोर्पोरेट जगत को कथावस्तु का आधार लेते हुए बुना है। अपने पहले उपन्यास के लिए ही उनको वर्ष 2001 में 'साहित्य कला अकादमी पुरस्कार' और 'श्रीकांत वर्मा पुरस्कार' से नवाजा गया था। यही नहीं, उनके उपन्यासों को देश की सभी आधिकारिक भाषाओं में अनूदित करने की अनुशंसा भी की गई है। .

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अशोक चक्रधर

डॉ॰ अशोक चक्रधर (जन्म ८ फ़रवरी सन् १९५१) हिंदी के विद्वान, कवि एवं लेखक है। हास्य-व्यंग्य के क्षेत्र में अपनी विशिष्ट प्रतिभा के कारण प्रसिद्ध वे कविता की वाचिक परंपरा का विकास करने वाले प्रमुख विद्वानों में से भी एक है। टेलीफ़िल्म लेखक-निर्देशक, वृत्तचित्र लेखक निर्देशक, धारावाहिक लेखक, निर्देशक, अभिनेता, नाटककर्मी, कलाकार तथा मीडिया कर्मी के रूप में निरंतर कार्यरत अशोक चक्रधर जामिया मिलिया इस्लामिया में हिंदी व पत्रकारिता विभाग में प्रोफेसर के पद से सेवा निवृत्त होने के बाद संप्रति केन्द्रीय हिंदी संस्थानतथा हिन्दी अकादमी, दिल्ली के उपाध्यक्ष पद पर कार्यरत हैं। 2014 में उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया गया। .

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अशोक भाटिया

हिन्दी लेखक.

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अशोक रानाडे

अशोक रानाडे (२५ अक्टूबर १९३७) मराठी के सुप्रसिद्ध संगीत लेखक हैं। "संगाताचे सौंदर्यशास्त्र", "लोकसंगीत शास्त्र", "म्यूज़िक इन महाराष्ट्र" आदि उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं। वे नेशनल सेंटर फ़ॉर परफ़ार्मिंग आर्ट्स, मुंबई में सहायक निर्देशक हैं। .

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अशोक वाजपेयी

अशोक वाजपेयी समकालीन हिंदी साहित्य के एक प्रमुख साहित्यकार हैं। सामाजिक जीवन में व्यावसायिक तौर पर वाजपेयी जी भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक पूर्वाधिकारी है, परंतु वह एक कवि के रूप में ज़्यादा जाने जाते हैं। उनकी विभिन्न कविताओं के लिए सन् १९९४ में उन्हें भारत सरकार द्वारा साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाज़ा गया। वाजपेयी महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा के उपकुलपति भी रह चुके हैं। वर्तमान में यह ललित कला अकादमी के अध्यक्ष हैं। इन्होंने भोपाल में भारत भवन की स्थापना में भी काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अशोक वाजपेयी के प्रमुख काव्य संग्रह:-.

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असगर वजाहत

असग़र वजाहत (जन्म - 5 जुलाई, 1946) हिन्दी के प्रोफ़ेसर तथा रचनाकार हैं। इन्होंने नाटक, कथा, उपन्यास, यात्रा-वृत्तांत तथा अनुवाद के क्षेत्र में रचा है। ये दिल्ली स्थित जामिला मिलिया इस्लामिया के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष रह चुके हैं। .

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अज्ञेय

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय" (7 मार्च, 1911 - 4 अप्रैल, 1987) को कवि, शैलीकार, कथा-साहित्य को एक महत्त्वपूर्ण मोड़ देने वाले कथाकार, ललित-निबन्धकार, सम्पादक और अध्यापक के रूप में जाना जाता है। इनका जन्म 7 मार्च 1911 को उत्तर प्रदेश के कसया, पुरातत्व-खुदाई शिविर में हुआ। बचपन लखनऊ, कश्मीर, बिहार और मद्रास में बीता। बी.एससी.

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अवधेश कुमार

हिन्दी कवि और लेखक.

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अविनाश वाचस्‍पति

अविनाश वाचस्पति (१४ दिसंबर १९५८)दिल्ली विश्वविद्यालय से कला स्नातक हैं और भारतीय जन संचार संस्थान से 'संचार परिचय', तथा हिंदी पत्रकारिता पाठ्यक्रम पूरा किया है। साहित्यकार होने के साथ-साथ वे साहित्य, फ़िल्म और समाज से जुड़ी अनेक संस्थाओं के प्रबंधक पद पर काम कर चुके हैं। उन्होंने लगभग सभी साहित्यिक विधाओं में लेखन किया है परंतु व्यंग्य, कविता एवं फ़िल्म पत्रकारिता में प्रमुख उपलब्धियाँ हैं। उनकी रचनाएँ भारत तथा विदेश से प्रकाशित लगभग सभी प्रमुख हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं तथा उनकी कविताएँ चर्चित काव्य संकलनों में संकलित की गई हैं। वे हरियाणवी फ़ीचर फ़िल्मों 'गुलाबो', 'छोटी साली' और 'ज़र, जोरू और ज़मीन' में प्रचार और जन-संपर्क तथा नेत्रदान पर बनी हिंदी टेली फ़िल्म 'ज्योति संकल्प' में सहायक निर्देशक रहे हैं। वे राष्ट्रभाषा नव-साहित्यकार परिषद और हरियाणवी फ़िल्म विकास परिषद के संस्थापकों में भी हैं। सामयिक साहित्यकार संगठन, दिल्ली तथा साहित्य कला भारती, दिल्ली में उपाध्यक्ष और केंद्रीय सचिवालय हिंदी परिषद के शाखा मंत्री पद पर भी कार्य कर चुके अविनाश संप्रति इसके आजीवन सदस्य हैं। वे सर्वोदय कन्या विद्यालय नई दिल्ली के अभिभावक शिक्षक संघ में उप-प्रधान रह चुके हैं। 'साहित्यालंकार' और 'साहित्य दीप' उपाधियों के साथ साथ उन्हें राष्ट्रीय हिंदी सेवी सहस्त्राब्दी सम्मान' से सम्मानित किया गया है। 'शहर में हैं सभी अंधे'उनकी मौलिक कविताओं का संग्रह है जिसे हिन्‍दी अकादमी, दिल्‍ली के सौजन्‍य से 'साहित्‍य मंदिर', नई सड़क, दिल्‍ली ने वर्ष 1994 में प्रकाशित किया है। उन्होंने काव्य संकलन 'तेताला' तथा 'नवें दशक के प्रगतिशील कवि' कविता संकलन का संपादन किया है। वे 'हिंदी हीरक' व 'झकाझक देहलवी' उपनामों से भी लिखते-छपते रहे हैं। संप्रति वे फ़िल्म समारोह निदेशालय, सूचना और प्रसारण मंत्रालय, नई दिल्ली में कार्यरत् हैं। .

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अंबिका प्रसाद बाजपेयी

अंबिका प्रसाद बाजपेयी का जन्म दिसम्बर मास में १८८० में कानपुर में हुआ। शिक्षा कानपुर में हुई। इन्होंने संस्कृत, उर्दू, अंग्रेजी तथा फारसी भाषाओं का अध्ययन किया। सन् १९०० ई. में आपने इंट्रेस परीक्षा पास की। कलकत्ता से प्रकाशित 'हिन्दी बंगवासी' तथा 'भारतमित्र' (१९११- १९१९) के आप संपादक रहे। १९२० से १९३० तक स्वतंत्र का संपादन किया। सन् १९०४ से १९१९ ई. तक व्याकरण का अध्ययन कर आपने 'हिन्दी कौमुदी' नामक पुस्तक लिखी। 'हिन्दी पर फारसी का प्रभाव' आपका प्रसिद्ध निबंध है। हिन्दी सेवा, संपादन कला तथा विद्वता से प्रभावित होकर 'हिन्दी साहित्य सम्मेलन' काशी ने आपको अपना सभापति बनाया। आप उत्तर प्रदेश विधान परिषद के मनोनीत सदस्य भी रहे। .

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अंबिकादत्त व्यास

भारतेन्दु मण्डल के प्रसिद्ध कवि अंबिकादत्त व्यास का जन्म सन् १८४८ ई. में तथा मृत्यु सन् १९०० ई. में हुई। इन्होंने कवित्त सवैया की प्रचलित शैली में ब्रजभाषा में रचना की। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के समकालीन हिन्दी सेवियों में पंडित अंबिकादत्त व्यास बहुत प्रसिद्ध लेखक और कवि हैं। .

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उदय प्रकाश

उदय प्रकाश (जन्म: १ जनवरी १९५२) चर्चित कवि, कथाकार, पत्रकार और फिल्मकार हैं। आपकी कुछ कृतियों के अंग्रेज़ी, जर्मन, जापानी एवं अन्य अंतरराष्ट्रीय भाषाओं में अनुवाद भी उपलब्ध हैं। लगभग समस्त भारतीय भाषाओं में रचनाएं अनूदित हैं। इनकी कई कहानियों के नाट्यरूपंतर और सफल मंचन हुए हैं। 'उपरांत' और 'मोहन दास' के नाम से इनकी कहानियों पर फीचर फिल्में भी बन चुकी हैं, जिसे अंतरराष्ट्रीय सम्मान मिल चुके हैं। उदय प्रकाश स्वयं भी कई टी.वी.धारावाहिकों के निर्देशक-पटकथाकार रहे हैं। सुप्रसिद्ध राजस्थानी कथाकार विजयदान देथा की कहानियों पर बहु चर्चित लघु फिल्में प्रसार भारती के लिए निर्देशित-निर्मित की हैं। भारतीय कृषि का इतिहास पर महत्वपूर्ण पंद्रह कड़ियों का सीरियल 'कृषि-कथा' राष्ट्रीय चैनल के लिए निर्देशित कर चुके हैं। .

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उपेन्द्रनाथ अश्क

उपेन्द्र नाथ अश्क (१९१०- १९ जनवरी १९९६) उर्दू एवं हिन्दी के प्रसिद्ध कथाकार तथा उपन्यासकार थे। ये अपनी पुस्तक स्वयं ही प्रकाशित करते थे। .

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उर्मिला शिरीष

उर्मिला शिरीष एक हिन्दी लेखक है। डॉ॰ उर्मिला शिरीष की विभिन्न कहानियां उर्दू, अंग्रेजी, पंजाबी, गुजराती तथा उडि़या में अनुवादित हुई हैं। .

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उषा प्रियंवदा

उषा प्रियंवदा राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से पद्मभूषण डॉ॰ मोटूरि सत्यनारायण पुरस्कार प्राप्त करते हुए। उषा प्रियंवदा (जन्म २४ दिसम्बर १९३०) प्रवासी हिंदी साहित्यकार हैं। कानपुर में जन्मी उषा प्रियंवदा ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए. तथा पी-एच.

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छाया वर्मा

हिन्दी कवि और लेखक.

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