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सभ्यता और हिंदी की विभिन्न बोलियाँ और उनका साहित्य

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

सभ्यता और हिंदी की विभिन्न बोलियाँ और उनका साहित्य के बीच अंतर

सभ्यता vs. हिंदी की विभिन्न बोलियाँ और उनका साहित्य

भारत के धौलावीर नामक से प्राप्त सिंधु-घाटी-सभ्यता के दस लिपि-चिह्न सभ्यता शब्द का प्रयोग मानव समाज के एक सकारात्मक, प्रगतिशील और समावेशी विकास को इंगित करने के लिये किया जाता है। सभ्य समाज अक्सर उन्नत कृषि, लंबी दूरी के व्यापार, व्यावसायिक विशेषज्ञता और नगरीकरण आदि की उन्नत स्थिति का द्योतक है। इन मूल तत्वों के अलावा, सभ्यता कुछ माध्यमिक तत्वों, जैसे विकसित यातायात व्यवस्था, लेखन, मापन के मानक, संविदा एवं नुकसानी पर आधारित विधि-व्यवस्था, कला के महान शैलियों, स्मारकों के स्थापत्य, गणित, उन्नत धातुकर्म एवं खगोलविद्या आदि की स्थिति से भी परिभाषित होती है। श्रेणी:सभ्यता श्रेणी:संस्कृति श्रेणी:समाज श्रेणी:सांस्कृतिक इतिहास श्रेणी:समुदायों की मानवशास्त्रीय श्रेणियाँ. हिन्दी की अनेक बोलियाँ (उपभाषाएँ) हैं, जिनमें अवधी, ब्रजभाषा, कन्नौजी, बुंदेली, बघेली, भोजपुरी, हरयाणवी, राजस्थानी, छत्तीसगढ़ी, मालवी, झारखंडी, कुमाउँनी, मगही आदि प्रमुख हैं। इनमें से कुछ में अत्यंत उच्च श्रेणी के साहित्य की रचना हुई है। ऐसी बोलियों में ब्रजभाषा और अवधी प्रमुख हैं। यह बोलियाँ हिन्दी की विविधता हैं और उसकी शक्ति भी। वे हिन्दी की जड़ों को गहरा बनाती हैं। हिन्दी की बोलियाँ और उन बोलियों की उपबोलियाँ हैं जो न केवल अपने में एक बड़ी परंपरा, इतिहास, सभ्यता को समेटे हुए हैं वरन स्वतंत्रता संग्राम, जनसंघर्ष, वर्तमान के बाजारवाद के खिलाफ भी उसका रचना संसार सचेत है। मोटे तौर पर हिंद (भारत) की किसी भाषा को 'हिंदी' कहा जा सकता है। अंग्रेजी शासन के पूर्व इसका प्रयोग इसी अर्थ में किया जाता था। पर वर्तमानकाल में सामान्यतः इसका व्यवहार उस विस्तृत भूखंड को भाषा के लिए होता है जो पश्चिम में जैसलमेर, उत्तर पश्चिम में अंबाला, उत्तर में शिमला से लेकर नेपाल की तराई, पूर्व में भागलपुर, दक्षिण पूर्व में रायपुर तथा दक्षिण-पश्चिम में खंडवा तक फैली हुई है। हिंदी के मुख्य दो भेद हैं - पश्चिमी हिंदी तथा पूर्वी हिंदी। .

सभ्यता और हिंदी की विभिन्न बोलियाँ और उनका साहित्य के बीच समानता

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