शिक्षा और समाजशास्त्र के बीच समानता
शिक्षा और समाजशास्त्र आम में 4 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): प्रौढ़ शिक्षा, समाज, सामाजीकरण, उच्च शिक्षा।
प्रौढ़ शिक्षा
प्रौढ़ शिक्षा का उद्देश्य उन प्रौढ व्यक्तियों को शैक्षिक विकल्प देना है, जिन्होंने यह अवसर गंवा दिया है और औपचारिक शिक्षा आयु को पार कर चुके हैं, लेकिन अब वे साक्षरता, आधारभूत शिक्षा, कौशल विकास (व्यावसायिक शिक्षा) और इसी तरह की अन्य शिक्षा सहित किसी तरह के ज्ञान की आवश्यकता का अनुभव करते हैं। प्रौढ़ शिक्षा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से पहली पंचवर्षीय योजना से अनेक कार्यक्रम शुरू किए गए हैं, जिनमें सबसे प्रमुख राष्ट्रीय साक्षरता मिशन (एन एल एम) है, जिसे समयबद्ध तरीके से 15-35 वर्ष की आयु समूह में अशिक्षितों को कार्यात्मक साक्षरता प्रदान करने के लिए 1988 में शुरू किया गया था। 10वीं योजना अवधि के अंत तक एन एल एम ने 127.45 मिलियन व्यक्तियों को साक्षर किया, जिनमें से 60 प्रतिशत महिलाएं थीं, 23 प्रतिशत अनुसूचित जाति (अजा) और 12 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति (अजजा) से संबंधित थे। समग्र साक्षरता अभियान के अंतर्गत 597 जिलों को शामिल किया गया था, जिनमें 502 साक्षरता पश्चात चरण और 328 सतत शिक्षा चरण में पहुंच गए हैं। 2001 की जनगणना में पुरूष साक्षरता 75.26 प्रतिशत दर्ज की गई थी, जबकि महिला साक्षरता 53.67 प्रतिशत के अस्वीकार्य स्तर पर थी। 2001 की जनगणना ने यह भी खुलासा किया कि साक्षरता में लैंगिक और क्षेत्रीय भिन्नताएं मौजूद रही हैं। अत: प्रौढ़ शिक्षा और कौशल विकास मजबूत करने के लिए भारत सरकार ने 11वीं योजना में दो स्कीमें नामत: साक्षर भारत और प्रौढ़ शिक्षा एवं कौशल विकास हेतु स्वैच्छिक एजेंसियों को सहायता की स्कीम शुरू की। साक्षर भारत, जो पूर्ववर्ती एन एल एम का नया रूपभेद है, निम्नलिखित लक्ष्य निर्धारित किया: साक्षरता दर को 80 प्रतिशत तक बढ़ाना, लैंगिक अंतर को 10 प्रतिशत तक कम करना और महिलाओं, अजा, अजजा, अल्पसंख्यकों और अन्य वंचित समूहों पर फोकस के साथ क्षेत्रीय और सामाजिक विषमताओं को कम करना। साक्षरता स्तर पर ध्यान दिए बिना वाम विंग अतिवाद प्रभावित जिले सहित उन सभी जिलों, जिनमें 2001 की जनगणना के अनुसार महिला साक्षरता दर 50 प्रतिशत से कम थी, इस कार्यक्रम के अंतर्गत शामिल किए जा रहे हैं। भारत का साक्षरता परिदृश्य:2011 की जनगणना से यह प्रकट होता है कि भारत ने साक्षरता में उल्लेखनीय प्रगति की है। भारत की साक्षरता दर 72.98 प्रतिशत है। पिछले दशक की समग्र साक्षरता दर में 8.14 प्रतिशत की वृद्धि हुई है (2001 में 64.84 प्रतिशत और 2011 में 72.98 प्रतिशत) पुरूष साक्षरता दर में 5.62 प्रतिशत (2001 में 75.26 प्रतिशत और 2011 में 80.88 प्रतिशत) जबकि महिला साक्षरता दर में 10.96 प्रतिशत (2001 में 53.67 प्रतिशत और 2011 में 64.63 प्रतिशत) की वृद्धि हुई है। निरक्षरों की संख्या (7+ आयु समूह) 2001 में 304.10 मिलियन से घटकर 2011 में 282.70 मिलियन हो गई। 90 प्रतिशत से अधिक की साक्षरता वाले राज्य: केरल (94%), लक्षद्वीप(91.85%) एवं मिजोरम (91.33%)। राष्ट्रीय स्तर (72.98%) और 90% से नीचे के बीच साक्षरता दर वाले राज्य: त्रिपुरा (87.22%), गोवा (88.70%), दमन एवं दीव (87.10%), पुडुचेरी (85.85%), चंडीगढ़ (86.05%), दिल्ली (86.21%), अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह (86.63%), हिमाचल प्रदेश (82.80%), महाराष्ट्र (82.34%), सिक्किम (81.42%), तमिलनाडु (80.09%), नागालैंड (79.55%), मणिपुर (76.94%), उत्तराखण्ड (78.82%), गुजरात (78.03%), दादरा एवं नागर हवेली (76.24%), पश्चिम बंगाल (76.26%), पंजाब (75.84%), हरियाणा (75.55%), कर्नाटक (75.36%) और मेघालय (74.43%)। ग्रामीण क्षेत्रों में 77.15% की ग्रामीण पुरूष साक्षरता दर और 57.93% की ग्रामीण महिला साक्षरता दर के साथ साक्षरता दर 67.67% है, जबकि शहरी क्षेत्रों में 88.76% की शहरी पुरूष साक्षरता दर और 79.11% की शहरी महिला साक्षरता दर के साथ साक्षरता दर 84.11% है। अजा की साक्षरता दर 66.07% है (पुरूष अजा 75.17% और महिला अजा 56.46%) जबकि अजजा की साक्षरता दर 58.96% है (पुरूष अजजा 68.53% और महिला अजजा 49.35%) साक्षरता के लिंग विभेद में 2001 में 21.59 प्रतिशत से 2001-2011 में 16.25 प्रतिशत होकर 5.34 प्रतिशत की कमी हुई है। 1991 से साक्षरता में लिंग अंतर में सतत् कमी होती रही है (24.84 प्रतिशत)। श्रेणी:शिक्षा *.
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समाज
समाज एक से अधिक लोगों के समुदाय को कहते हैं जिसमें सभी व्यक्ति मानवीय क्रियाकलाप करते है। मानवीय क्रियाकलाप में आचरण, सामाजिक सुरक्षा और निर्वाह आदि की क्रियाएं सम्मिलित होती है। समाज लोगों का ऐसा समूह होता है जो अपने अंदर के लोगों के मुकाबले अन्य समूहों से काफी कम मेलजोल रखता है। किसी समाज के अंतर्गत आने वाले व्यक्ति एक दूसरे के प्रति परस्पर स्नेह तथा सहृदयता का भाव रखते हैं। दुनिया के सभी समाज अपनी एक अलग पहचान बनाते हुए अलग-अलग रस्मों-रिवाज़ों का पालन करते हैं। .
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सामाजीकरण
सामाजीकरण: ह्यूगो ओहमिकन की 'पहला घूंट' नामक पेंटिंग विद्यालय सामाजीकरण का प्रमुख स्थान है। सामाजीकरण (Socialization) वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से मनुष्य समाज के विभिन्न व्यवहार, रीति-रिवाज़, गतिविधियाँ इत्यादि सीखता है। जैविक अस्तित्व से सामाजिक अस्तित्व में मनुष्य का रूपांतरण भी सामाजीकरण के माध्यम से ही होता है। सामाजीकरण के माध्यम से ही वह संस्कृति को आत्मसात् करता है। सामाजीकरण की प्रक्रिया मनुष्य का संस्कृति के भौतिक व अ-भौतिक रूपों से परिचय कराती है। सीखने की यह प्रक्रिया समाज के नियमों के अधीन चलती है। समाजशास्त्र की भाषा में कहें तो समाज में अपनी परिस्थिति या दर्जे के बोध और उसके अनुरूप भूमिका निभाने की विधि को हम सामाजीकरण के ज़रिये ही आत्मसात् करते हैं। सामाजीकरण व्यक्ति को सामाजिक रूप से क्रियाशील बनाता है। इसी के माध्यम से संस्कृति के अनुरूप आचरण करने का विवेक विकसित होता है। इसके लिए व्यक्ति द्वारा सांस्कृतिक मूल्यों का जो अभ्यंतरीकरण किया जाता है वह सामाजीकरण का ही रूप है। पर सामाजीकरण के विश्लेषण और अध्ययन में इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि सीखने की प्रक्रिया में सामाजिक मानदण्डों व संस्कृति की सबसे ज़्यादा अहमियत होती है। इन्हें अस्वीकार कर जो कुछ सीखा जाता है, जैसे हत्या, चोरी या अन्य आपराधिक वारदातें करना, उन्हें सामाजीकरण में नहीं गिना जाता बल्कि इनकी गिनती विपथगामी व्यवहार में होती है। इन्हें सीखने वाला व्यक्ति समाज की मुख्यधारा के विपरीत माना जाता है। वह समाज में सकारात्मक योगदान देने की अवस्था में भी नहीं रहता है। इन नकारात्मक क्रियाओं और आचरणों को प्रायः विफल सामाजीकरण के उदाहरण की तरह देखा जाता है। इस प्रकार सामाजीकरण व्यक्ति को समाज का प्रकार्यात्मक सदस्य बना कर समाज की क्रियाओं में भाग लेने में समर्थ बनाता है। सामाजीकरण की एक सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह जीवन-पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है। व्यक्ति की परिस्थिति व सामाजिक भूमिकाएँ बदलती रहती हैं और उनके अनुरूप व्यवहार के लिए उसे आचरण तथा व्यवहार के नये प्रतिमान सीखने पड़ते हैं। उदाहरण के लिए बचपन में जहाँ बच्चा सामाजीकरण के माध्यम से माता-पिता, संबंधियों व बुज़ुर्गों से व्यवहार करना सीखता है, वहीं युवावस्था में उसे नये सिरे से दफ्तर में अपने सहयोगियों, वरिष्ठों, पड़ोसियों आदि से व्यवहार के तौर-तरीकों को सीखना पड़ता है। यहाँ तक कि वृद्धावस्था में भी व्यक्ति नयी भूमिकागत अपेक्षाओं के अनुसार संबंधित सामाजिक व्यवहार ग्रहण करता है। इस प्रकार सामाजीकरण वह प्रक्रिया है जो जन्म से लेकर मृत्यु तक लगातार चलती रहती है। .
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उच्च शिक्षा
एक उच्चतर शिक्षा संस्थान में गणित का शिक्षण उच्च शिक्षा (higher education) उच्च शिक्षा का अर्थ है सामान्य रूप से सबको दी जानेवाली शिक्षा से ऊपर किसी विशेष विषय या विषयों में विशेष, विशद तथा शूक्ष्म शिक्षा। यह शिक्षा के उस स्तर का नाम है जो विश्वविद्यालयों, व्यावसायिक विश्वविद्यालयों, कम्युनिटी महाविद्यालयों, लिबरल आर्ट कालेजों एवं प्रौद्योगिकी संस्थानों आदि के द्वारा दी जाती है। प्राथमिक एवं माध्यमिक के बाद यह शिक्षा का तृतीय स्तर है जो प्राय: ऐच्छिक (non-compulsory) होता है। इसके अन्तर्गत स्नातक, परास्नातक (postgraduate education) एवं व्यावसायिक शिक्षा एवं प्रशिक्षण आदि आते हैं। .
सूची के ऊपर निम्न सवालों के जवाब
- क्या शिक्षा और समाजशास्त्र लगती में
- यह आम शिक्षा और समाजशास्त्र में है क्या
- शिक्षा और समाजशास्त्र के बीच समानता
शिक्षा और समाजशास्त्र के बीच तुलना
शिक्षा 25 संबंध है और समाजशास्त्र 107 है। वे आम 4 में है, समानता सूचकांक 3.03% है = 4 / (25 + 107)।
संदर्भ
यह लेख शिक्षा और समाजशास्त्र के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें: