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वेदान्त दर्शन और हिन्दू धर्म

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

वेदान्त दर्शन और हिन्दू धर्म के बीच अंतर

वेदान्त दर्शन vs. हिन्दू धर्म

वेदान्त ज्ञानयोग की एक शाखा है जो व्यक्ति को ज्ञान प्राप्ति की दिशा में उत्प्रेरित करता है। इसका मुख्य स्रोत उपनिषद है जो वेद ग्रंथो और अरण्यक ग्रंथों का सार समझे जाते हैं। उपनिषद् वैदिक साहित्य का अंतिम भाग है, इसीलिए इसको वेदान्त कहते हैं। कर्मकांड और उपासना का मुख्यत: वर्णन मंत्र और ब्राह्मणों में है, ज्ञान का विवेचन उपनिषदों में। 'वेदान्त' का शाब्दिक अर्थ है - 'वेदों का अंत' (अथवा सार)। वेदान्त की तीन शाखाएँ जो सबसे ज्यादा जानी जाती हैं वे हैं: अद्वैत वेदान्त, विशिष्ट अद्वैत और द्वैत। आदि शंकराचार्य, रामानुज और श्री मध्वाचार्य जिनको क्रमश: इन तीनो शाखाओं का प्रवर्तक माना जाता है, इनके अलावा भी ज्ञानयोग की अन्य शाखाएँ हैं। ये शाखाएँ अपने प्रवर्तकों के नाम से जानी जाती हैं जिनमें भास्कर, वल्लभ, चैतन्य, निम्बारक, वाचस्पति मिश्र, सुरेश्वर और विज्ञान भिक्षु। आधुनिक काल में जो प्रमुख वेदान्ती हुये हैं उनमें रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, अरविंद घोष, स्वामी शिवानंद राजा राममोहन रॉय और रमण महर्षि उल्लेखनीय हैं। ये आधुनिक विचारक अद्वैत वेदान्त शाखा का प्रतिनिधित्व करते हैं। दूसरे वेदान्तो के प्रवर्तकों ने भी अपने विचारों को भारत में भलिभाँति प्रचारित किया है परन्तु भारत के बाहर उन्हें बहुत कम जाना जाता है। . हिन्दू धर्म (संस्कृत: सनातन धर्म) एक धर्म (या, जीवन पद्धति) है जिसके अनुयायी अधिकांशतः भारत,नेपाल और मॉरिशस में बहुमत में हैं। इसे विश्व का प्राचीनतम धर्म कहा जाता है। इसे 'वैदिक सनातन वर्णाश्रम धर्म' भी कहते हैं जिसका अर्थ है कि इसकी उत्पत्ति मानव की उत्पत्ति से भी पहले से है। विद्वान लोग हिन्दू धर्म को भारत की विभिन्न संस्कृतियों एवं परम्पराओं का सम्मिश्रण मानते हैं जिसका कोई संस्थापक नहीं है। यह धर्म अपने अन्दर कई अलग-अलग उपासना पद्धतियाँ, मत, सम्प्रदाय और दर्शन समेटे हुए हैं। अनुयायियों की संख्या के आधार पर ये विश्व का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है। संख्या के आधार पर इसके अधिकतर उपासक भारत में हैं और प्रतिशत के आधार पर नेपाल में हैं। हालाँकि इसमें कई देवी-देवताओं की पूजा की जाती है, लेकिन वास्तव में यह एकेश्वरवादी धर्म है। इसे सनातन धर्म अथवा वैदिक धर्म भी कहते हैं। इण्डोनेशिया में इस धर्म का औपचारिक नाम "हिन्दु आगम" है। हिन्दू केवल एक धर्म या सम्प्रदाय ही नहीं है अपितु जीवन जीने की एक पद्धति है। .

वेदान्त दर्शन और हिन्दू धर्म के बीच समानता

वेदान्त दर्शन और हिन्दू धर्म आम में 8 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): भारत, श्रीमद्भगवद्गीता, संहिता, आरण्यक, कृष्ण, अद्वैत वेदान्त, अरविन्द घोष, उपनिषद्

भारत

भारत (आधिकारिक नाम: भारत गणराज्य, Republic of India) दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। पूर्ण रूप से उत्तरी गोलार्ध में स्थित भारत, भौगोलिक दृष्टि से विश्व में सातवाँ सबसे बड़ा और जनसंख्या के दृष्टिकोण से दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत के पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर-पूर्व में चीन, नेपाल और भूटान, पूर्व में बांग्लादेश और म्यान्मार स्थित हैं। हिन्द महासागर में इसके दक्षिण पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व में इंडोनेशिया से भारत की सामुद्रिक सीमा लगती है। इसके उत्तर की भौतिक सीमा हिमालय पर्वत से और दक्षिण में हिन्द महासागर से लगी हुई है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी है तथा पश्चिम में अरब सागर हैं। प्राचीन सिन्धु घाटी सभ्यता, व्यापार मार्गों और बड़े-बड़े साम्राज्यों का विकास-स्थान रहे भारतीय उपमहाद्वीप को इसके सांस्कृतिक और आर्थिक सफलता के लंबे इतिहास के लिये जाना जाता रहा है। चार प्रमुख संप्रदायों: हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्मों का यहां उदय हुआ, पारसी, यहूदी, ईसाई, और मुस्लिम धर्म प्रथम सहस्राब्दी में यहां पहुचे और यहां की विविध संस्कृति को नया रूप दिया। क्रमिक विजयों के परिणामस्वरूप ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी ने १८वीं और १९वीं सदी में भारत के ज़्यादतर हिस्सों को अपने राज्य में मिला लिया। १८५७ के विफल विद्रोह के बाद भारत के प्रशासन का भार ब्रिटिश सरकार ने अपने ऊपर ले लिया। ब्रिटिश भारत के रूप में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रमुख अंग भारत ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में एक लम्बे और मुख्य रूप से अहिंसक स्वतन्त्रता संग्राम के बाद १५ अगस्त १९४७ को आज़ादी पाई। १९५० में लागू हुए नये संविधान में इसे सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के आधार पर स्थापित संवैधानिक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित कर दिया गया और युनाईटेड किंगडम की तर्ज़ पर वेस्टमिंस्टर शैली की संसदीय सरकार स्थापित की गयी। एक संघीय राष्ट्र, भारत को २९ राज्यों और ७ संघ शासित प्रदेशों में गठित किया गया है। लम्बे समय तक समाजवादी आर्थिक नीतियों का पालन करने के बाद 1991 के पश्चात् भारत ने उदारीकरण और वैश्वीकरण की नयी नीतियों के आधार पर सार्थक आर्थिक और सामाजिक प्रगति की है। ३३ लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ भारत भौगोलिक क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा राष्ट्र है। वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था क्रय शक्ति समता के आधार पर विश्व की तीसरी और मानक मूल्यों के आधार पर विश्व की दसवीं सबसे बडी अर्थव्यवस्था है। १९९१ के बाज़ार-आधारित सुधारों के बाद भारत विश्व की सबसे तेज़ विकसित होती बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं में से एक हो गया है और इसे एक नव-औद्योगिकृत राष्ट्र माना जाता है। परंतु भारत के सामने अभी भी गरीबी, भ्रष्टाचार, कुपोषण, अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य-सेवा और आतंकवाद की चुनौतियां हैं। आज भारत एक विविध, बहुभाषी, और बहु-जातीय समाज है और भारतीय सेना एक क्षेत्रीय शक्ति है। .

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श्रीमद्भगवद्गीता

कुरु क्षेत्र की युद्धभूमि में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिया था वह श्रीमद्भगवदगीता के नाम से प्रसिद्ध है। यह महाभारत के भीष्मपर्व का अंग है। गीता में १८ अध्याय और ७०० श्लोक हैं। जैसा गीता के शंकर भाष्य में कहा है- तं धर्मं भगवता यथोपदिष्ट वेदव्यास: सर्वज्ञोभगवान् गीताख्यै: सप्तभि: श्लोकशतैरु पनिबंध। ज्ञात होता है कि लगभग ८वीं सदी के अंत में शंकराचार्य (७८८-८२०) के सामने गीता का वही पाठ था जो आज हमें उपलब्ध है। १०वीं सदी के लगभग भीष्मपर्व का जावा की भाषा में एक अनुवाद हुआ था। उसमें अनेक मूलश्लोक भी सुरक्षित हैं। श्रीपाद कृष्ण बेल्वेलकर के अनुसार जावा के इस प्राचीन संस्करण में गीता के केवल साढ़े इक्यासी श्लोक मूल संस्कृत के हैं। उनसे भी वर्तमान पाठ का समर्थन होता है। गीता की गणना प्रस्थानत्रयी में की जाती है, जिसमें उपनिषद् और ब्रह्मसूत्र भी संमिलित हैं। अतएव भारतीय परंपरा के अनुसार गीता का स्थान वही है जो उपनिषद् और ब्रह्मसूत्रों का है। गीता के माहात्म्य में उपनिषदों को गौ और गीता को उसका दुग्ध कहा गया है। इसका तात्पर्य यह है कि उपनिषदों की जो अध्यात्म विद्या थी, उसको गीता सर्वांश में स्वीकार करती है। उपनिषदों की अनेक विद्याएँ गीता में हैं। जैसे, संसार के स्वरूप के संबंध में अश्वत्थ विद्या, अनादि अजन्मा ब्रह्म के विषय में अव्ययपुरुष विद्या, परा प्रकृति या जीव के विषय में अक्षरपुरुष विद्या और अपरा प्रकृति या भौतिक जगत के विषय में क्षरपुरुष विद्या। इस प्रकार वेदों के ब्रह्मवाद और उपनिषदों के अध्यात्म, इन दोनों की विशिष्ट सामग्री गीता में संनिविष्ट है। उसे ही पुष्पिका के शब्दों में ब्रह्मविद्या कहा गया है। गीता में 'ब्रह्मविद्या' का आशय निवृत्तिपरक ज्ञानमार्ग से है। इसे सांख्यमत कहा जाता है जिसके साथ निवृत्तिमार्गी जीवनपद्धति जुड़ी हुई है। लेकिन गीता उपनिषदों के मोड़ से आगे बढ़कर उस युग की देन है, जब एक नया दर्शन जन्म ले रहा था जो गृहस्थों के प्रवृत्ति धर्म को निवृत्ति मार्ग के समकक्ष और उतना ही फलदायक मानता था। इसी का संकेत देनेवाला गीता की पुष्पिका में ‘योगशास्त्रे’ शब्द है। यहाँ ‘योगशास्त्रे’ का अभिप्राय नि:संदेह कर्मयोग से ही है। गीता में योग की दो परिभाषाएँ पाई जाती हैं। एक निवृत्ति मार्ग की दृष्टि से जिसमें ‘समत्वं योग उच्यते’ कहा गया है अर्थात् गुणों के वैषम्य में साम्यभाव रखना ही योग है। सांख्य की स्थिति यही है। योग की दूसरी परिभाषा है ‘योग: कर्मसु कौशलम’ अर्थात् कर्मों में लगे रहने पर भी ऐसे उपाय से कर्म करना कि वह बंधन का कारण न हो और कर्म करनेवाला उसी असंग या निर्लेप स्थिति में अपने को रख सके जो ज्ञानमार्गियों को मिलती है। इसी युक्ति का नाम बुद्धियोग है और यही गीता के योग का सार है। गीता के दूसरे अध्याय में जो ‘तस्य प्रज्ञाप्रतिष्ठिता’ की धुन पाई जाती है, उसका अभिप्राय निर्लेप कर्म की क्षमतावली बुद्धि से ही है। यह कर्म के संन्यास द्वारा वैराग्य प्राप्त करने की स्थिति न थी बल्कि कर्म करते हुए पदे पदे मन को वैराग्यवाली स्थिति में ढालने की युक्ति थी। यही गीता का कर्मयोग है। जैसे महाभारत के अनेक स्थलों में, वैसे ही गीता में भी सांख्य के निवृत्ति मार्ग और कर्म के प्रवृत्तिमार्ग की व्याख्या और प्रशंसा पाई जाती है। एक की निंदा और दूसरे की प्रशंसा गीता का अभिमत नहीं, दोनों मार्ग दो प्रकार की रु चि रखनेवाले मनुष्यों के लिए हितकर हो सकते हैं और हैं। संभवत: संसार का दूसरा कोई भी ग्रंथ कर्म के शास्त्र का प्रतिपादन इस सुंदरता, इस सूक्ष्मता और निष्पक्षता से नहीं करता। इस दृष्टि से गीता अद्भुत मानवीय शास्त्र है। इसकी दृष्टि एकांगी नहीं, सर्वांगपूर्ण है। गीता में दर्शन का प्रतिपादन करते हुए भी जो साहित्य का आनंद है वह इसकी अतिरिक्त विशेषता है। तत्वज्ञान का सुसंस्कृत काव्यशैली के द्वारा वर्णन गीता का निजी सौरभ है जो किसी भी सहृदय को मुग्ध किए बिना नहीं रहता। इसीलिए इसका नाम भगवद्गीता पड़ा, भगवान् का गाया हुआ ज्ञान। .

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संहिता

संहिता हिन्दू धर्म के पवित्रतम और सर्वोच्च धर्मग्रन्थ वेदों का मन्त्र वाला खण्ड है। ये वैदिक वाङ्मय का पहला हिस्सा है जिसमें काव्य रूप में देवताओं की यज्ञ के लिये स्तुति की गयी है। इनकी भाषा वैदिक संस्कृत है। चार वेद होने की वजह से चार संहिताएँ हैं (हर संहिता की अपनी अलग अलग शाखा है).

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आरण्यक

आरण्यक हिन्दू धर्म के पवित्रतम और सर्वोच्च ग्रन्थ वेदों का गद्य वाला खण्ड है। ये वैदिक वाङ्मय का तीसरा हिस्सा है और वैदिक संहिताओं पर दिये भाष्य का दूसरा स्तर है। इनमें दर्शन और ज्ञान की बातें लिखी हुई हैं, कर्मकाण्ड के बारे में ये चुप हैं। इनकी भाषा वैदिक संस्कृत है। वेद, मंत्र तथा ब्राह्मण का सम्मिलित अभिधान है। मंत्रब्राह्मणयोर्वेदनामधेयम् (आपस्तंबसूत्र)। ब्राह्मण के तीन भागों में आरण्यक अन्यतम भाग है। सायण के अनुसार इस नामकरण का कारण यह है कि इन ग्रंथों का अध्ययन अरण्य (जंगल) में किया जाता था। आरण्यक का मुख्य विषय यज्ञभागों का अनुष्ठान न होकर तदंतर्गत अनुष्ठानों की आध्यात्मिक मीमांसा है। वस्तुत: यज्ञ का अनुष्ठान एक नितांत रहस्यपूर्ण प्रतीकात्मक व्यापार है और इस प्रतीक का पूरा विवरण आरण्यक ग्रंथो में दिया गया है। प्राणविद्या की महिमा का भी प्रतिपादन इन ग्रंथों में विशेष रूप से किया गया है। संहिता के मंत्रों में इस विद्या का बीज अवश्य उपलब्ध होता है, परंतु आरण्यकों में इसी को पल्लवित किया गया है। तथ्य यह है कि उपनिषद् आरण्यक में संकेतित तथ्यों की विशद व्याख्या करती हैं। इस प्रकार संहिता से उपनिषदों के बीच की श्रृंखला इस साहित्य द्वारा पूर्ण की जाती है। .

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कृष्ण

बाल कृष्ण का लड्डू गोपाल रूप, जिनकी घर घर में पूजा सदियों से की जाती रही है। कृष्ण भारत में अवतरित हुये भगवान विष्णु के ८वें अवतार और हिन्दू धर्म के ईश्वर हैं। कन्हैया, श्याम, केशव, द्वारकेश या द्वारकाधीश, वासुदेव आदि नामों से भी उनको जाना जाता हैं। कृष्ण निष्काम कर्मयोगी, एक आदर्श दार्शनिक, स्थितप्रज्ञ एवं दैवी संपदाओं से सुसज्ज महान पुरुष थे। उनका जन्म द्वापरयुग में हुआ था। उनको इस युग के सर्वश्रेष्ठ पुरुष युगपुरुष या युगावतार का स्थान दिया गया है। कृष्ण के समकालीन महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित श्रीमद्भागवत और महाभारत में कृष्ण का चरित्र विस्तुत रूप से लिखा गया है। भगवद्गीता कृष्ण और अर्जुन का संवाद है जो ग्रंथ आज भी पूरे विश्व में लोकप्रिय है। इस कृति के लिए कृष्ण को जगतगुरु का सम्मान भी दिया जाता है। कृष्ण वसुदेव और देवकी की ८वीं संतान थे। मथुरा के कारावास में उनका जन्म हुआ था और गोकुल में उनका लालन पालन हुआ था। यशोदा और नन्द उनके पालक माता पिता थे। उनका बचपन गोकुल में व्यतित हुआ। बाल्य अवस्था में ही उन्होंने बड़े बड़े कार्य किये जो किसी सामान्य मनुष्य के लिए सम्भव नहीं थे। मथुरा में मामा कंस का वध किया। सौराष्ट्र में द्वारका नगरी की स्थापना की और वहाँ अपना राज्य बसाया। पांडवों की मदद की और विभिन्न आपत्तियों में उनकी रक्षा की। महाभारत के युद्ध में उन्होंने अर्जुन के सारथी की भूमिका निभाई और भगवद्गीता का ज्ञान दिया जो उनके जीवन की सर्वश्रेष्ठ रचना मानी जाती है। १२५ वर्षों के जीवनकाल के बाद उन्होंने अपनी लीला समाप्त की। उनकी मृत्यु के तुरंत बाद ही कलियुग का आरंभ माना जाता है। .

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अद्वैत वेदान्त

अद्वैत वेदान्त वेदान्त की एक शाखा। अहं ब्रह्मास्मि अद्वैत वेदांत यह भारत में प्रतिपादित दर्शन की कई विचारधाराओँ में से एक है, जिसके आदि शंकराचार्य पुरस्कर्ता थे। भारत में परब्रह्म के स्वरूप के बारे में कई विचारधाराएं हैँ। जिसमें द्वैत, अद्वैत या केवलाद्वैत, विशिष्टाद्वैत, शुद्धाद्वैत, द्वैताद्वैत जैसी कई सैद्धांतिक विचारधाराएं हैं। जिस आचार्य ने जिस रूप में ब्रह्म को जाना उसका वर्णन किया। इतनी विचारधाराएं होने पर भी सभी यह मानते है कि भगवान ही इस सृष्टि का नियंता है। अद्वैत विचारधारा के संस्थापक शंकराचार्य हैं, जिसे शांकराद्वैत या केवलाद्वैत भी कहा जाता है। शंकराचार्य मानते हैँ कि संसार में ब्रह्म ही सत्य है। बाकी सब मिथ्या है (ब्रह्म सत्य, जगत मिथ्या)। जीव केवल अज्ञान के कारण ही ब्रह्म को नहीं जान पाता जबकि ब्रह्म तो उसके ही अंदर विराजमान है। उन्होंने अपने ब्रह्मसूत्र में "अहं ब्रह्मास्मि" ऐसा कहकर अद्वैत सिद्धांत बताया है। वल्लभाचार्य अपने शुद्धाद्वैत दर्शन में ब्रह्म, जीव और जगत, तीनों को सत्य मानते हैं, जिसे वेदों, उपनिषदों, ब्रह्मसूत्र, गीता तथा श्रीमद्भागवत द्वारा उन्होंने सिद्ध किया है। अद्वैत सिद्धांत चराचर सृष्टि में भी व्याप्त है। जब पैर में काँटा चुभता है तब आखोँ से पानी आता है और हाथ काँटा निकालनेके लिए जाता है। ये अद्वैत का एक उत्तम उदाहरण है। शंकराचार्य का ‘एकोब्रह्म, द्वितीयो नास्ति’ मत था। सृष्टि से पहले परमब्रह्म विद्यमान थे। ब्रह्म सत और सृष्टि जगत असत् है। शंकराचार्य के मत से ब्रह्म निर्गुण, निष्क्रिय, सत-असत, कार्य-कारण से अलग इंद्रियातीत है। ब्रह्म आंखों से नहीं देखा जा सकता, मन से नहीं जाना जा सकता, वह ज्ञाता नहीं है और न ज्ञेय ही है, ज्ञान और क्रिया के भी अतीत है। माया के कारण जीव ‘अहं ब्रह्म’ का ज्ञान नहीं कर पाता। आत्मा विशुद्ध ज्ञान स्वरूप निष्क्रिय और अनंत है, जीव को यह ज्ञान नहीं रहता। .

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अरविन्द घोष

अरविन्द घोष या श्री अरविन्द (बांग्ला: শ্রী অরবিন্দ, जन्म: १८७२, मृत्यु: १९५०) एक योगी एवं दार्शनिक थे। वे १५ अगस्त १८७२ को कलकत्ता में जन्मे थे। इनके पिता एक डाक्टर थे। इन्होंने युवा अवस्था में स्वतन्त्रता संग्राम में क्रान्तिकारी के रूप में भाग लिया, किन्तु बाद में यह एक योगी बन गये और इन्होंने पांडिचेरी में एक आश्रम स्थापित किया। वेद, उपनिषद ग्रन्थों आदि पर टीका लिखी। योग साधना पर मौलिक ग्रन्थ लिखे। उनका पूरे विश्व में दर्शन शास्त्र पर बहुत प्रभाव रहा है और उनकी साधना पद्धति के अनुयायी सब देशों में पाये जाते हैं। यह कवि भी थे और गुरु भी। .

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उपनिषद्

उपनिषद् हिन्दू धर्म के महत्त्वपूर्ण श्रुति धर्मग्रन्थ हैं। ये वैदिक वाङ्मय के अभिन्न भाग हैं। इनमें परमेश्वर, परमात्मा-ब्रह्म और आत्मा के स्वभाव और सम्बन्ध का बहुत ही दार्शनिक और ज्ञानपूर्वक वर्णन दिया गया है। उपनिषदों में कर्मकांड को 'अवर' कहकर ज्ञान को इसलिए महत्व दिया गया कि ज्ञान स्थूल से सूक्ष्म की ओर ले जाता है। ब्रह्म, जीव और जगत्‌ का ज्ञान पाना उपनिषदों की मूल शिक्षा है। भगवद्गीता तथा ब्रह्मसूत्र उपनिषदों के साथ मिलकर वेदान्त की 'प्रस्थानत्रयी' कहलाते हैं। उपनिषद ही समस्त भारतीय दर्शनों के मूल स्रोत हैं, चाहे वो वेदान्त हो या सांख्य या जैन धर्म या बौद्ध धर्म। उपनिषदों को स्वयं भी वेदान्त कहा गया है। दुनिया के कई दार्शनिक उपनिषदों को सबसे बेहतरीन ज्ञानकोश मानते हैं। उपनिषद् भारतीय सभ्यता की विश्व को अमूल्य धरोहर है। मुख्य उपनिषद 12 या 13 हैं। हरेक किसी न किसी वेद से जुड़ा हुआ है। ये संस्कृत में लिखे गये हैं। १७वी सदी में दारा शिकोह ने अनेक उपनिषदों का फारसी में अनुवाद कराया। १९वीं सदी में जर्मन तत्त्ववेता शोपेनहावर और मैक्समूलर ने इन ग्रन्थों में जो रुचि दिखलाकर इनके अनुवाद किए वह सर्वविदित हैं और माननीय हैं। .

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सूची के ऊपर निम्न सवालों के जवाब

वेदान्त दर्शन और हिन्दू धर्म के बीच तुलना

वेदान्त दर्शन 37 संबंध है और हिन्दू धर्म 113 है। वे आम 8 में है, समानता सूचकांक 5.33% है = 8 / (37 + 113)।

संदर्भ

यह लेख वेदान्त दर्शन और हिन्दू धर्म के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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