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विषाणु और श्वसनीशोथ

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

विषाणु और श्वसनीशोथ के बीच अंतर

विषाणु vs. श्वसनीशोथ

विषाणु अकोशिकीय अतिसूक्ष्म जीव हैं जो केवल जीवित कोशिका में ही वंश वृद्धि कर सकते हैं। ये नाभिकीय अम्ल और प्रोटीन से मिलकर गठित होते हैं, शरीर के बाहर तो ये मृत-समान होते हैं परंतु शरीर के अंदर जीवित हो जाते हैं। इन्हे क्रिस्टल के रूप में इकट्ठा किया जा सकता है। एक विषाणु बिना किसी सजीव माध्यम के पुनरुत्पादन नहीं कर सकता है। यह सैकड़ों वर्षों तक सुशुप्तावस्था में रह सकता है और जब भी एक जीवित मध्यम या धारक के संपर्क में आता है उस जीव की कोशिका को भेद कर आच्छादित कर देता है और जीव बीमार हो जाता है। एक बार जब विषाणु जीवित कोशिका में प्रवेश कर जाता है, वह कोशिका के मूल आरएनए एवं डीएनए की जेनेटिक संरचना को अपनी जेनेटिक सूचना से बदल देता है और संक्रमित कोशिका अपने जैसे संक्रमित कोशिकाओं का पुनरुत्पादन शुरू कर देती है। विषाणु का अंग्रेजी शब्द वाइरस का शाब्दिक अर्थ विष होता है। सर्वप्रथम सन १७९६ में डाक्टर एडवर्ड जेनर ने पता लगाया कि चेचक, विषाणु के कारण होता है। उन्होंने चेचक के टीके का आविष्कार भी किया। इसके बाद सन १८८६ में एडोल्फ मेयर ने बताया कि तम्बाकू में मोजेक रोग एक विशेष प्रकार के वाइरस के द्वारा होता है। रूसी वनस्पति शास्त्री इवानोवस्की ने भी १८९२ में तम्बाकू में होने वाले मोजेक रोग का अध्ययन करते समय विषाणु के अस्तित्व का पता लगाया। बेजेर्निक और बोर ने भी तम्बाकू के पत्ते पर इसका प्रभाव देखा और उसका नाम टोबेको मोजेक रखा। मोजेक शब्द रखने का कारण इनका मोजेक के समान तम्बाकू के पत्ते पर चिन्ह पाया जाना था। इस चिन्ह को देखकर इस विशेष विषाणु का नाम उन्होंने टोबेको मोजेक वाइरस रखा। विषाणु लाभप्रद एवं हानिकारक दोनों प्रकार के होते हैं। जीवाणुभोजी विषाणु एक लाभप्रद विषाणु है, यह हैजा, पेचिश, टायफायड आदि रोग उत्पन्न करने वाले जीवाणुओं को नष्ट कर मानव की रोगों से रक्षा करता है। कुछ विषाणु पौधे या जन्तुओं में रोग उत्पन्न करते हैं एवं हानिप्रद होते हैं। एचआईवी, इन्फ्लूएन्जा वाइरस, पोलियो वाइरस रोग उत्पन्न करने वाले प्रमुख विषाणु हैं। सम्पर्क द्वारा, वायु द्वारा, भोजन एवं जल द्वारा तथा कीटों द्वारा विषाणुओं का संचरण होता है परन्तु विशिष्ट प्रकार के विषाणु विशिष्ट विधियों द्वारा संचरण करते हैं। . तीव्र ब्रोंकाइटिस से ग्रस्त रोगी के फेफड़े की दशा फेफड़ों के अंदर स्थित श्वसनी के श्लेष्मकला के प्रदाह (inflammation) को श्वसनीशोथ या ब्रोंकाइटिस (Bronchitis) कहते है। श्वासनली (Trachea) से फेफड़ों में वायु ले जाने वाली नलियों को श्वसनी (Bronchi / bronchus का बहुबचन) कहते हैं। इसमें श्वसनी की दीवारें इन्फेक्शन व सूजन की वजह से अनावश्यक रूप से कमजोर हो जाती हैं जिसकी वजह से इनका आकार नलीनुमा न रहकर गुब्बारेनुमा या फिर सिलेंडरनुमा हो जाता है। सूजन के कारण सामान्य से अधिक बलगम बनता है। साथ ही ये दीवारें इकट्ठा हुए बलगम को बाहर ढकेलने में असमर्थ हो जाती हैं। इसका परिणाम यह होता है कि श्वास की नलियों में गाढ़े बलगम का भयंकर जमाव हो जाता है, जो नलियों में रुकावट पैदा कर देता है। इस रुकावट की वजह से नलियों से जुड़ा हुआ फेफड़े का अंग बुरी तरह क्षतिग्रस्त व नष्ट होकर सिकुड़ जाता है या गुब्बारेनुमा होकर फूल जाता है। क्षतिग्रस्त भाग में स्थित फेफड़े को सप्लाई करने वाली धमनी व गिल्टी भी आकार में बड़ी हो जाती है। इन सबका मिला-जुला परिणाम यह होता है कि क्षतिग्रस्त फेफड़ा व श्वास नली अपना कार्य सुचारू रूप से नहीं कर पाते और मरीज के शरीर में तरह-तरह की जटिलताएँ पैदा हो जाती हैं। .

विषाणु और श्वसनीशोथ के बीच समानता

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विषाणु और श्वसनीशोथ के बीच तुलना

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संदर्भ

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